Rajat Sharma

My Opinion

नीतीश INDI गठबंधन के ताबूत में आखिरी कील ठोंकेंगे

rajat-sirबिहार में बदलाव होगा, नीतीश कुमार पाला बदलेंगे, मुख्यमंत्री वही रहेंगे, लेकिन मंत्री बदल जाएंगे. चेहरा वही होगा, लेकिन चोला बदल जाएगा. अब लालटेन की बजाए LED लाइट जलेगी. क्योंकि नीतीश ने जेडीयू के तीर से लालू की लालटेन का कांच तोड़ने का फैसला कर लिया है. हालांकि अभी इसका औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है कि नीतीश, आरजेडी साथ छोड़कर फिर बीजेपी के पाले में जाएंगे लेकिन बिहार से लेकर दिल्ली तक जो हो रहा है, जो दिखाई दे रहा है, जो सुनाई दे रहा है, उससे बिल्कुल साफ है कि फैसला हो चुका है, डील हो चुकी है. अब सिर्फ ऐलान होना बाकी है. नीतीश कुमार ने साबित कर दिया है कि बिहार में नेताओं की कसमों का, उनके वादों का, उनके बयानों का कोई मतलब नहीं होता. बिहार की राजनीति में जो हो रहा है, इसका बिहार की जनता के कल्याण से भी कोई लेना देना नहीं है. ये सिर्फ सत्ता में बने रहने का खेल है, कुर्सी पर बैठे रहने के लिए जोड़-तोड़ है, मोलभाव है. डेढ़ साल पहले जब लालू यादव ने नीतीश कुमार को समर्थन दिया, उन्हें मुख्यमंत्री बनाया तो भी खेल सत्ता में हिस्सेदारी का ही था , डील साफ थी. लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश को दिल्ली भेजा जाएगा. INDI एलायन्स का संयोजक बनाया जाएगा, प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाएगा और जब नीतीश कुमार दिल्ली जाएंगे, तो उनकी कुर्सी पर लालू जी के सुपुत्र तेजस्वी को बैठाया जाएगा . नीतीश जानते थे कि “न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी”. न उन्हें कोई पीएम फेस बनाएगा और न गद्दी छोड़नी पड़ेगी लेकिन बेटे को जल्दी से CM बनाने की लालू की तड़प का कोई क्या कर सकता था? नीतीश पर दबाव बढने लगा -दिल्ली जाओ, कुर्सी छोड़ो, संयोजक बाद में बनवा देंगे. जब नीतीश नहीं माने, तो ललन सिंह के जरिए जेडीयू के MLAs को तोड़कर उन्हें पैदल करने की धमकी दी गई. ऐसे मामलों में नीतीश सबके बाप हैं. वो जानते थे कि लोकसभा चुनाव सामने है, बीजेपी को बिहार में स्वीप करना है तो नीतीश की ज़रूरत होगी, चालीस सीटें हैं. बीजेपी रिस्क नहीं लेना चाहती. नीतीश का ये खेल बीजेपी को भी सूट करता है, इसलिए डील हो गई . नोट करने की बात ये है कि खेल के तीनों बड़े खिलाड़ी अमित शाह, लालू यादव और नीतीश कुमार, न तो एक दूसरे को पसंद करते हैं, न एक दूसरे पर भरोसा करते है. तीनों जनता से कई बार कह चुके हैं कि मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन इनके उनके साथ नहीं जाएंगे. लेकिन राजनीति बड़ी निष्ठुर होती है. ज़रूरत के हिसाब से बदलने को विवश कर देती है. लेकिन बिहार में जो बदलाव होगा, उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ेगी. सबसे बडा कुठाराघात राहुल गांधी के सपनों पर होगा. INDI एलायन्स का अब कोई मतलब नहीं रह जाएगा. राहुल गांधी की उम्मीद इस बात पर टिकी थी कि सब मिलकर लड़ेंगे , उनकी calculation थी हमारे पास 60 परसेंट वोट हो जाएंगे, हम जीत जाएंगे .लोग भी पूछते थे कि सब इक्कठे हो गए तो क्या वाकई में मोदी को रोक पाएंगे? अब बाजी पलट गई. राहुल की यात्रा बंगाल पहुंची तो ममता ने साथ छोड़ दिया और बिहार पहुंचने से पहले ही नीतीश ने गच्चा दे दिया. केजरीवाल पहले ही उम्मीदों पर पानी फेर चुके हैं और इंडी एलायन्स के ताबूत में आखिरी कील नीतीश कुमार कल या परसों ठोंक देंगें. अब न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

बिहार में आंकड़ों का खेल : नीतीश ने फिर कर दिखाया

AKBबिहार में फिर बदलाव की बयार है। कारण फिर से नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार फिर पाला बदल सकते हैं। लालू को छोड़ मोदी से मिल सकते हैं। पिछले छत्तीस घंटों में इसके कई संकेत मिले। पटना से लेकर दिल्ली तक कई घटनाएं हुई। सब के केन्द्र में नीतीश कुमार हैं। शुक्रवार को पटना में आयोजित गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में नीतीश भी मोजूद थे, और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद थे, लेकिन मुख्यमंत्री के पास रखी कुर्सी पर तेजस्वी नहीं बैठे। वह कुछ दूरी पर अपनी पार्टी के नेता और स्पीकर अवध नारायण चौधरी के साथ बैठे। पूरे कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। इधर, दिल्ली में खबर आई कि नीतीश बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने वाले हैं। नीतीश और राजद के बीच पिछले कई हफ्तों से खटास चल रही थी। नीतीश ने बुधवार को परिवारवाद की आलोचना की, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए नरेन्द्र मोदी की तारीफ की। गुरुवार को लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ट्विटर पर बिना नाम लिए नीतीश पर हमला किया, उनकी नीयत पर सवाल उठाए। लालू की बेटी ने ट्विटर पर लिखा – “समाजवादी पुरोधा होने का दावा वही करता है, जिसकी विचारधारा हवाओं की तरह बदलती है। ..खीज जताए क्या होगा, जब हुआ न कोई अपना योग्य, विधि का विधान कौन टाले, जब खुद की नीयत में ही हो खोट”। जब ये ट्वीट वायरल हुए, हंगामा हुआ तो लालू की बेटी ने ट्वीट को डिलीट कर दिया। जेडीयू के नेता के सी त्यागी ने कहा कि बच्चों को बड़ों के मामले में बोलना नहीं चाहिए। नीतीश ने एक दिन पहले कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती के कार्यक्रम में परिवारवाद पर हमला करते हुए कहा था कि कर्पूरी जी ने कभी अपने जीते जी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया और उन्होंने खुद परिवारवाद को कभी बढ़ावा नहीं दिया, लेकिन आज के नेता परिवार को, बेटे-बेटी को आगे बढाते हैं।

इसी बीच नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की न्याय यात्रा के दौरान होने वाली रैली में शामिल होने से इंकार कर दिया। कहा जा रहा है कि वह 4 फरवरी को नरेंद्र मोदी की बेतिया में होने वाली रैली में जा सकते हैं। बुधवार देर रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जे पी नड्डा की तीन घंटे तक बैठक हुई जिसमें बिहार को लेकर रणनीति तय हुई। नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खोला जाए या नहीं, इस पर विचार हुआ। पटना में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के बड़े नेताओं की अचानक मीटिंग बुला ली। राबड़ी देवी के घर पर भी पिछले दो दिनों से आरजेडी के नेताओं की मीटिंग चल रही है। बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्ढा ने केरल का दौरा रद्द कर दिया। गुरुवार रात को दिल्ली में अमित शाह के घर पर बिहार बीजेपी के बड़े नेताओं की बैठक हुई। एक बात बिलकुल स्पष्ट है। नीतीश कुमार को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वो बीजेपी के साथ जाएं या लालू के साथ रहें। नीतीश को सिर्फ ये देखना है कि उनकी कुर्सी किस तरह बची रहे। लालू कुर्सी छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं, वह तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और अगर बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखने का वादा करती है, तो नीतीश बीजेपी के साथ चले जाएंगे।

चूंकि नीतीश ये जानते हैं कि इस वक्त बीजेपी और लालू दोनों को उनकी जरूरत है, वो जिसके साथ जाएंगे उसे फायदा होगा, इसीलिए नीतीश चाहेंगे कि बीजेपी ठोस वादा करे। उसके बाद बात आगे बढ़े। बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखेगी इसमें फिलहाल कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन सवाल ये है कि फिर रुकावट कहां है? रुकावट विधानसभा के गणित में हैं। विधानसभा में कुल 243 सदस्य हैं, बहुमत के लिए 122 की जरूरत है। बीजेपी के पास 78 विधायक हैं। नीतीश की पार्टी के विधायकों की संख्या 45 है और जीतनराम मांझी की पार्टी के चार विधायक हैं। तीनों पार्टियों के कुल विधायकों की संख्या 127 होती है, यानि बहुमत से 5 ज्यादा लेकिन लालू यादव दांव लगा सकते हैं, नीतीश की पार्टी को तोड़ सकते हैं। लालू की पार्टी के 79, कांग्रेस के 19 , वाम दलों के 16 और दो अन्य विधायकों की संख्या को मिला दें तो आंकड़ा 116 होता है, यानि बहुमत से सिर्फ 6 कम। नीतीश को इस बात का डर है कि लालू उनकी पार्टी के कुछ विधायक तोड़ सकते हैं, कुछ विधायकों का इस्तीफा करवा सकते हैं। स्पीकर लालू के करीबी हैं। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है। इससे सारा गणित गड़बड़ा सकता है। इसीलिए एक विकल्प यह भी है कि विधानसभा को भंग कर दिया जाए। ऐसी स्थिति में बिहार में भी लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव करवाए जाएं। लेकिन उसके लिए वक्त बहुत कम है। बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं दिखती। और अब बात इतनी बढ़ चुकी है, इतनी फैल चुकी है कि जो करना है, जल्दी करना होगा, इसलिए मुझे लगता है कि बिहार में जो होना है, वो अगले कुछ घंटों में भी हो सकता है क्योंकि नीतीश के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं और अमित शाह के पास भी विकल्प कम हैं।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

POWER GAME IN BIHAR : NITISH DOES IT AGAIN !

rajat-sir Bihar is currently witnessing swiftly changing political dynamics with strong indications that Chief Minister Nitish Kumar may switch camps and join BJP-led NDA. At the Republic Day function in Patna on Friday, Deputy Chief Minister Tejashwi Yadav did not sit in the chair placed near the Chief Minister, and opted to sit at a distance with his party leader and Assembly Speaker Awadh Bihari Chaudhary. Nitish Kumar and Tejashwi Yadav did not speak to each other throughout the function, leading to speculations of an imminent parting of ways between the two. On Thursday, there were hectic parleys in JD(U), RJD and BJP camps, with Home Minister Amit Shah holding a meeting with senior party leaders in Delhi. Nitish Kumar has directed all his party MLAs to assemble in Patna by Friday evening and all scheduled party programs have been cancelled. There was tension in JD(U) and RJD camps on Thursday when RJD supremo Lalu Prasad Yadav’s daughter Rohini Acharya posted a series of tweets, indirectly attacking Nitish (without naming him) and later deleted the tweets on X platform. Nitish Kumar has decided to stay away from Rahul Gandhi’s Bharat Jodo Nyay Yatra rally in Purnea on January 30, and instead has reportedly opted to attend Prime Minister Narendra Modi’s rally in Bettiah on February 4. A top-level meeting was held in Delhi between Prime Minister Modi, Amit Shah and BJP chief J P Nadda on Wednesday evening to discuss the pros and cons of joining hands with Nitish Kumar in Bihar. Nadda has cancelled his scheduled Kerala tour and BJP leaders from Bihar have been called to Delhi. With reports coming that the RJD may try to wean away some JD(U) legislators, speculations are rife on whether Nitish Kumar will opt to join NDA and prove his majority in the Assembly, or whether he may ask the Governor to dissolve the assembly. All options are presently being worked out. Looking at the overall scenario, one thing is clear. It does not matter the least to Nitish Kumar whether he joins BJP camp or continues to stay with Lalu Yadav. Nitish’s sole aim is to ensure that his throne must remain intact. But Lalu Yadav is putting pressure on him to quit and make way for his son Tejashwi to become the chief minister. If BJP promises the CM’s post to Nitish Kumar, the latter will be more than willing to join the BJP camp. Nitish Kumar knows, both Lalu and BJP need his support, and whichever camp he may choose to join, will benefit. Nitish Kumar wants the BJP to come forward with a concrete promise that he will continue as chief minister. As of now, there is no problem in BJP agreeing to the continuance of Nitish as CM, but the moot point is: Where lies the obstacle? The problem lies in simple arithmetic. Bihar assembly has a total of 243 members, and 122 is the magic number required for proving majority inside the House. BJP has 78 MLAs, Nitish’s JD(U) has 45, Jitanram Majhi’s party has four MLAs. Adding all three, the total comes to a comfortable 127, five more than the required majority. But Lalu Yadav can play his card. He can try to break the JD(U). Lalu’s RJD has 79 MLAs, Congress has 19, Left parties have 16 and there are two other MLAs. Adding all these numbers, the total comes to 116. Support of six more MLAs is required to prove majority. Nitish Kumar is apprehensive that Lalu may wean away some of his MLAs, or force some of the MLAs to resign. The Speaker is close to Lalu Yadav, and Lalu may try to take advantage. This can jumble all arithmetic figures. One option is to dissolve the assembly, but there is little time left. BJP does not appear to be ready for this. Time is of the essence. Anything that is going to happen, must be done as soon as possible. Amit Shah has few options left before him.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

ममता और मान बाहर : इंडी अलायंस में टूट

AKB30 मोदी विरोधी मोर्चा कई जगहों से टूट गया है. गठबंधन में बड़ी-बड़ी दरारें दिखने लगी हैं. ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी, कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा. भगवंत मान ने कह दिया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सभी तेरह लोकसभा सीटों पर लड़ेगी और अपने दम पर जीतेगी. यानी पंजाब में भी विपक्षी गठबंधन का कोई वजूद नहीं होगा. बिहार में नीतीश कुमार के तेवर और कलेवर देखकर कांग्रेस और RJD में खलबली है. नीतीश के भविष्य को लेकर संदेह है कि क्या वो गठबंधन में रहेंगे और अगर रहेंगे, तो कब तक? खबर है कि नीतीश बीजेपी की चौखट पर दस्तक दे रहे हैं, बस दरवाजा खुलने का इंतजार है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को उसकी हैसियत बता दी है. उन्होंने जयन्त चौधरी के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया है, सीटों की संख्या भी तय कर दी है लेकिन कांग्रेस से साफ साफ बता दिया है कि कांग्रेस के लिए सिर्फ दो अमेठी और रायबरेली की सीट छोड़ी जा सकती है. कांग्रेस के नेता परेशान हैं, शरद पवार से मदद मांगी गई है, पवार ने ममता से फोन पर बात की है. कांग्रेस के नेता अभी भी दावा कर रहे हैं कि ममता से बात हो जाएगी, जो विवाद हैं, उनको सुलझा लिया जाएगा. उनका कहना है कि ममता गठबंधन के साथ रहेंगी क्योंकि सभी का लक्ष्य एक ही है – बीजेपी को हराना, मोदी को हटाना. लेकिन ममता ने साफ कह दिया कि कांग्रेस देश भर में तीन सौ लोकसभा सीटों पर अकेले लड़ ले, वहां वो कांग्रेस की मदद करेंगी लेकिन बंगाल में उन्हें कांग्रेस के साथ की ज़रूरत नहीं हैं. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अकेले ही बीजेपी को हराने का दम-खम रखती है. इसके बाद कोई गुंजाइश बचती नहीं है. लेकिन फिर कांग्रेस के नेता किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि ममता को मना लेंगे? ममता की नाराज़गी की असली वजह क्या है? अधीर रंजन चौधरी आग में घी डालने का काम क्यों कर रहे हैं? लेफ्ट फ्रंट का इस सबमें क्या रोल है? पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल क्या करेंगे? नीतीश का प्लान क्या है? बंगाल में गुरुवार को राहुल गांधी की न्याया यात्रा पहुंचने से एक दिन पहले ही ममता ने ‘एकलो चलो’ का नारा दे दिया. ममता ने ये कहकर कांग्रेस के नेताओं को टेंशन में डाल दिया कि राहुल की यात्रा बंगाल में कब आ रही है, यात्रा का क्या रूट है, राहुल का क्या प्रोग्राम है, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं हैं. ममता ने कहा कि कांग्रेस ने इसके बारे में उनसे कोई बात नहीं की है, न उन्हें यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया है. ममता ने बता दिया कि वो ‘ एकला चलो’ के रास्ते पर चलने को मजबूर क्यों हुईं. ममता ने कहा कि वो कांग्रेस के रवैए से नाराज़ हैं. कांग्रेस नेतृत्व ने उनका कोई सुझाव नहीं माना, गठबंधन में उनकी कोई बात नहीं सुनी गई. ममता की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है. वो जानती हैं कि बंगाल में मुकाबला बीजेपी से है, कांग्रेस और वाम मोर्चा की बंगाल में कोई ताकत नहीं है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सीपीएम का तो खाता ही नहीं खुला. इसलिए ममता को लगता है कि इन दोनों पार्टियों से हाथ मिलाने का कोई फायदा नहीं हैं. वैसे भी साथ-साथ लड़ने पर भी लैफ्ट का वोट किसी कीमत पर ममता को नहीं मिलेगा. इसलिए ममता लैफ्ट को गठबंधन में शामिल नहीं करना चाहती थी. उन्होंने ये बात कांग्रेस को बता दी थी. दूसरी बात, ममता ने कांग्रेस को दो सीटें देने का ऑफर दिया लेकिन कांग्रेस कम से कम पांच सीटें चाहती हैं. अधीर रंजन चौधरी इसीलिए ममता पर दबाव बना रहे थे. कांग्रेस नेतृत्व को उन्होंने समझाया कि दो सीटें तो कांग्रेस अपने दम पर जीत जाती है, अगर कांग्रेस को दो ही सीटें मिलनी है तो ममता के साथ गठबंधन की ज़रूरत क्या है? इसीलिए कांग्रेस के नेता दिल्ली में तो दीदी के सम्मान के दावे करते थे और कोलकाता में अधीर रंजन को ममता के खिलाफ बयान देने की छूट दे रखी थी. ममता इससे नाराज थी. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को अधीर रंजन को पार्टी से बाहर करने की मांग की, उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग की. लेकिन अगर कांग्रेस अधीर रंजन के खिलाफ एक्शन लेगी तो उसके पास बंगाल में नेतृत्व के नाम पर बचेगा क्या? और इन हालात में जो होना था, वही हुआ. ममता ने फैसला कर लिया. वो ‘एकला चलो’ के मंत्र पर चलेंगी. और अब कांग्रेस कितनी भी कोशिश कर ले, ममता अपना रास्ता नहीं बदलेंगी. अब बस इतना हो सकता है कि कांग्रेस ममता की शर्तों पर चले, ममता की बात माने तो शायद ममता कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ दें. कांग्रेस के लिए बुरी खबर पंजाब से भी आई. मुख्यमंत्री भगवन्त मान ने साफ साफ कह दिया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सभी 13 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी, अकेले लड़ेगी और जीतेगी. भगवंन्त मान ने कहा कि बंगाल में हो सकता है ममता बनर्जी तो शायद मान भी जाएं लेकिन पंजाब में ये तय है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा. मान ने कहा कि उनकी पार्टी ऩे अपनी तैयारी पूरी कर ली है, अब तो बस उम्मीदवारों का ऐलान होना ही बाकी है. चूंकि भगवंत मान ने दो टूक बात कह दी और ये भी सब जानते हैं कि जो कुछ कहा, वह अपने नेता अरविंद केजरीवाल से पूछकर ही कहा होगा, इसलिए इस मामले में कांग्रेस के पास इस बात को मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं था कि पंजाब में कोई गठबंधन नहीं होगा. पंजाब में समझौता होगा नहीं, बंगाल में ममता ने समझौते से इंकार कर दिया, केरल में भी यही स्थिति है, वहां भी कांग्रेस और वाम मोर्चा आमने सामने होंगे. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस को भाव देने के मूड में हैं नहीं, तो फिर गठबंधन कहाँ होगा? कैसे होगा? असल में गठबंधन की पहल लालू यादव ने की थी. कांग्रेस और नीतीश कुमार दोनों को अपना-अपना फायदा समझाया था, शरद पवार को आगे किया था, नीतीश को प्रधानमंत्री पद का सपना दिखाया था और कांग्रेस को देशभर में फिर मजबूत होने का मौका दिखाया था. कांग्रेस को लगा कि जिन राज्यों में उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला है, वहां तो सीधी लड़ाई होगी, गठबंधन में शामिल छोटी पार्टियों के उम्मीदवार नहीं होंगे, तो वोटों का बंटवारा नहीं होगा और इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा. बंगाल, बिहार, झारखंड, यूपी, पंजाब और दिल्ली में जहां कांग्रेस साफ हो चुकी है, जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मोलभाव करके जितनी सीटें मिल जाएं, वो कांग्रेस के लिए बोनस होगा. लेकिन ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता अपने अफने राज्य में कांग्रेस को सहारा देकर मजबूत नहीं होने देना चाहते. इसीलिए गठबंधन में दरारे दिख रही हैं. बिहार में लालू यादव तो जी-जान से लगे हैं कि किसी तरह से बात बन जाए, नीतीश गद्दी छोड़ें, तेजस्वी का रास्ता साफ हो, लेकिन अब नीतीश को समझ आ गया कि न उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा, न गठबंधन का संयोजक. इसलिए अब वो इधर-उधऱ की बातें कर रहे हैं. पिछले चौबीस घंटे में नीतीश कुमार ने जिस तरह के बयान दिए हैं, उसके बाद ये चर्चा जोरों पर हैं कि नीतीश कभी भी पाला बदल सकते हैं, फिर से पलटी मार सकते हैं. नीतीश कुमार, जो कभी मोदी का नाम नहीं लेते, वह घूम-घूम कर नरेन्द्र मोदी को थैक्यू कहते सुनाई दे रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने पर नीतीश कुमार ने सिर्फ केन्द्र सरकार और नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद नहीं दिया, इशारों-इशारों में कांग्रेस और लालू यादव पर हमले भी शुरू कर दिए. इसीलिए चर्चा तेज हुई कि परदे के पीछे कुछ तो हो रहा है. नीतीश का रुख़ बदल रहा है. मोदी को धन्यवाद कहा, वहां तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद नीतीश ने कांग्रेस और RJD को भी लपेट लिया. कहा कि केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही, उस वक्त भी वह कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग करते रहे लेकिन कांग्रेस सरकार कर्पूरी ठाकुर को ये सम्मान नहीं दे पाई. इसके बाद नीतीश ने परिवारवाद के सवाल पर बिना नाम लिए लालू को लपेटा. नीतीश ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीते जी परिवार के लिए कुछ नहीं किया, कभी परिवार को आगे नहीं बढाया, वो भी कर्पूरी की राह पर चल रहे हैं, उन्होंने भी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया. नीतीश ने कहा कि आज के नेता परिवार को, बेटे बेटी को आगे बढ़ाते हैं लेकिन कर्पूरी ठाकुर परिवारवाद के सख़्त ख़िलाफ़ थे. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री अगर प्रधानमंत्री को धन्यवाद दें, इसमें कुछ अटपटा नहीं लगना चाहिए. लेकिन नीतीश के धन्यवाद देने के कई मतलब लगाए जा रहे हैं. क्योंकि उनके दो सहयोगी दलों, कांग्रेस और आरजेडी ने तो कर्पूरी बाबू को भारत रत्न देर से देने के लिए मोदी की आलोचना की. नीतीश कुमार जब ये कहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर ने अपने बेटे को कभी आगे नहीं बढ़ाया तो इसमें भी कोई गलत बात नहीं देखी जानी चाहिए लेकिन बिहार की राजनीति में इसका मतलब लगाया जाएगा. क्योंकि सब जानते हैं कि लालू यादव अपने बेटे तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के काम में लगे हैं. इसीलिए वह नीतीश को गठबंधन के नाम पर दिल्ली डिस्पैच करना चाहते हैं. दूसरी तरफ नीतीश पिछले कई दिनों से इस तरह के संकेत दे रहे हैं कि वो मोदी विरोधी गठबंधन से पीछा छुड़ाना चाहते हैं, मोदी को रोकने के लिए जो नया गठबंधन बना है, उससे उन्होंने दूरी बनाई है. जेडीयू पार्टी की अध्यक्षता अपने हाथ में ले ली. लालू के करीबी ललन सिंह की छुट्टी कर दी. मंत्रियों के विभागों में बदलाव किया. नीतीश कुमार का एक इतिहास है. तेजस्वी के लिए वह पलटू चाचा हैं, कभी भी पलटी मार सकते हैं, उन्होंने संकेत पूरे-पूरे दे दिए हैं लेकिन बीजेपी की तरफ से अभी कोई इशारा नहीं आया है. बीजेपी के लोग अभी ये पक्के तौर पर पता लगा रहे हैं कि क्या नीतीश वाकई में मोदी के साथ आना चाहते हैं, या ऐसे संकेत देकर लालू पर दबाव बनाना चाहते हैं. इसलिए बिहार में गठबंधन का क्या होगा, कौन किसके साथ रहेगा, ये कंफर्म होने में अभी कुछ वक्त लगेगा.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

MAMATA & MANN OUT : INDI ALLIANCE IN DISARRAY

AKB30 Major fault lines appeared in the anti-Modi opposition bloc on Wednesday with Trinamool Congress chief Mamata Banerjee announcing her party’s decision to go it alone in West Bengal. There will be no seat adjustment with Congress or Left Front in the state, she said. In Punjab, chief minister Bhagwant Mann said, his Aam Aadmi Party will contest all 13 Lok Sabha seats . Mann ruled out any possibility of seat sharing with the Congress. A peculiar situation has developed in Bihar with Janata Dal(United) chief Nitish Kumar giving broad signals of an impending tie-up with BJP, causing tensions in Congress and Lalu Prasad’s RJD camps. There are speculations that Nitish Kumar is awaiting firm signals from BJP central leadership for forging an alliance. In Uttar Pradesh, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has shown Congress its place by announcing seat adjustment with Jayant Chaudhary’s Rashtriya Lok Dal. The state Congress has been clearly told that only two LS seats, Amethi and Rae Bareli, will be left for the party. Congress leadership has sought assistance from NCP supremo Sharad Pawar, and the latter reportedly spoke to Mamata Banerjee over phone. Congress leaders are still hopeful that Mamata Banerjee will stay in the alliance. On her part, Mamata Banerjee has said, let Congress contest 300 Lok Sabha seats on its own and leave West Bengal to her party. She said, TMC has the strength to defeat BJP alone on its turf. Meanwhile, Rahul Gandhi’s Bharat Jodo Nyay Yatra entered Cooch Behar in West Bengal on Thursday, but Mamata Banerjee said, she had not been informed, nor invited to join the Yatra by Congress leaders till now. Congress leader Jairam Ramesh tried to calm tempers by saying that both Mamata Banerjee and the Congress have a single aim to defeat BJP, and the opposition alliance cannot be complete without Mamata Banerjee. Jairam Ramesh said, “speed breakers are always there on roads, but that does not mean that the journey has ended”. TMC leader Kunal Ghosh countered this by saying that “double standards” of Congress high command is the main reason behind his party supremo’s decision. He said, while Congress leaders in Delhi praise Mamata, their leaders in Bengal target her almost daily. In Bengal, there are three main forces – TMC, Congress and Left Front. CPI-M leader Mohammed Salim alleged, it was Mamata who brought a split in Congress to help the BJP in the past, and she has again struck a deal with BJP. “Her nephew Abhishek Banerjee, facing ED inquiry, has got relief and that is why Mamata wants to walk out of the alliance”, he said. It is an open fact that Mamata Banerjee is unhappy with the barrage of verbal attacks on her by Congress leader Adhir Ranjan Chowdhury, who has been describing her as a BJP agent. A day before, Chowdhury had remarked that “Congress does not want alms from Mamata and the party has the strength to fight elections alone”. On Wednesday, on directions from party high command, Chowdhury maintained a low profile and refused to comment on Mamata’s announcement. But former Congress MP Deepa Dasmunshi alleged that Mamata has entered into a secret pact with BJP and has, therefore, walked out of the alliance. Dasmunshi said, Mamata has been acting like a mole in the opposition alliance. Mamata Banerjee’s strategy is quite clear. She knows, her straight fight in Bengal is with the BJP, and both the Congress and Left Front are a spent force now. They could not even open their account in the West Bengal assembly elections in 2021. Mamata feels that joining hands with both these parties will be of no use. She knows, even if she join hands with the Left Front, not a single Left supporter is going to vote for her party. Mamata does not want to keep the Left in her state-level alliance. She conveyed this to Congress leaders clearly. Secondly, Mamata offered two Lok Sabha seats in Bengal to Congress, but the latter wanted five seats. Mamata is unhappy that the Congress leadership gave full liberty to Adhir Ranjan Chowdhury to give statements against her in Kolkata almost on a daily basis. She demanded that Adhir Ranjan Chowdhury be either expelled from the party or at least some action be taken against him. The Congress leadership was in a dilemma. It has no mass base leader in Bengal except Chowdhury. Finally, Mamata Banerjee made up her mind and announced “Ekla Chalo” line. Mamata is not going to budge from her stand, and there is possibility that if she tones down her stand, she may agree to leave two seats for Congress in Bengal. In Punjab, both the state units of AAP and Congress have already decided that they would contest separately and there is no possibility of any seat sharing. The same is the situation in Kerala, where the Left Democratic Front and Congress-led United Democratic Front face each other at the hustings. Possibility of seat sharing in UP is limited with Akhilesh Yadav unwilling to leave more than two seats for Congress. The question now is: where will the opposition contest jointly? One must remember, floating an opposition bloc was Lalu Prasad Yadav’s original idea. It was Lalu Prasad who had convinced Congress and Nitish Kumar to go in for opposition unity, and he had later brought in Sharad Pawar. Lalu kindled the dream of becoming PM in Nitish Kumar’s mind. At the same time, he broached the possibility of Congress regaining its strength across the country. The Congress leadership felt that since it was in a straight contest against BJP in most of the states, allying with small regional parties will prevent division of votes. The Congress leadership thought it could get the added bonus of more seats if it forged an alliance in states like Bengal, Bihar, Jharkhand, UP, Punjab and Delhi, where regional parties hold sway. The ground realities are different. Leaders like Mamata Banerjee, Akhilesh Yadav, Hemant Soren, Arvind Kejriwal do not want to lend support to Congress in their states and resurrect the party indirectly. This is the reason why clear, major fault lines have now appeared in the opposition bloc. In Bihar, a different ball game altogether is emerging. Lalu Prasad is trying hard to ease Nitish Kumar out from the post of CM to make the path clear for his son Tejashwi Yadav. Nitish Kumar has now realized that he would neither be projected as the PM candidate, nor will he be made the convenor of INDIA alliance. If one goes through the statements made by the Bihar chief minister in the last 24 hours, there are clear indications that he may cross the fence. On Wednesday, at the birth centenary event of Karpoori Thakur in Samastipur, Bihar, Nitish Kumar not only thanked Narendra Modi and the Centre for bestowing Bharat Ratna honour on the late Socialist leader, but also made indirect attacks on Congress and RJD. Nitish Kumar said, despite being in power at the Centre for ten years, the Congress did not honour Karpoori Thakur with Bharat Ratna. Hitting out at dynastic politics, he said, both he and Karpoori Thakur never promoted their family members in politics – an indirect reference to the Lalu Yadav clan. All eyes are now on Patna with indications that Nitish Kumar may jump the fence and join hands with BJP.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

YOGI’S MAGIC : AYODHYA CROWDS UNDER CONTROL

rajat-sir More than seven lakh devotees thronged Ayodhya on Tuesday to perform prayers before the idol of Ram Lalla in the newly constructed temple, throwing security arrangements in a tizzy. There was a stampede-like situation and chief minister Yogi Adityanath had to rush to Ayodhya within 45 minutes to guide senior officials on how to handle the surging crowds. There were only 8,000-odd policemen to control the crowd of devotees who had surged not only from different parts of Uttar Pradesh, but also from other states of India. The Principal Secretary (Home) and Director General (Law and Order) were sent to control the situation. On Wednesday, there was improvement in the situation, as large crowds of devotees, despite biting cold, took dip in the Saryu river and started ‘darshan from 6.15 am onwards. Meanwhile, the borders of Ayodhya town have been sealed and bus services from Lucknow and other cities to Ayodhya have been temporarily suspended to stem the rush of devotees. To control the entry of devotees inside the temple premises, several entry gates are being manned for frisking and allowing entry. Chief Minister Yogi Adityanath has appealed to devotees to exercise patience. He has requested devotees coming from outside the state to defer their visit to Ayodhya by at least ten days in view of surging crowds. India TV team of reporters found a sea of humanity on Ram Path, the main thoroughfare leading to the temple, with devotees pouring in from as faraway places as Chennai, Nashik, Bhopal, Rameshwaram, Kolkata, Guwahati, Haridwar and Jaipur. At all the four main gates of Ram temple till Lata Mangeshkar Chowk, huge crowds of devotees had gathered in queues to gain entry. The 75-year-old tiny idol of Ram Lalla has been installed just below the new consecrated idol on the golden throne. The first ‘aarti’ of Ram Lalla was performed as per Ramanandi tradition on Tuesday morning. A new 47-page manual has been issued outlining in detail the rituals to be performed on a daily basis for Bhog, Prasad and Aarti. Chief Minister Yogi Adityanath had an inkling that a massive crowd of devotees would land in Ayodhya to have ‘darshan’ of Ram Lalla idol in the new temple. Two days ago, he had appealed to the public, with folded hands, to avoid coming to Ayodhya either in vehicles, or on foot, but plan their visit in leisure, so that every devotee can have a ‘darshan’ of Lord Ram’s idol peacefully. But given the huge surge in enthusiasm among millions of Indians eager to visit the shrine, the collection of crowds was a foregone conclusion. The temple has been built only a few days ago and the Pran Pratistha (consecration) rituals took place on Monday. All the arrangements made in Ayodhya were made only recently. The state administration had no idea about any lacunae that may have taken place in planning or about what to do to control the surge of massive crowds. Senior state officials had no such inkling. This led to a stampede-like situation and both devotees and the local administration had to face difficulties. Credit should go to Yogi Adityanath, who after watching the surge of crowds in Ayodhya, immediately took a helicopter, surveyed the area within 45 minutes, and then sat with top officials to bring the situation under control. This is Yogi’s typical style of working which commoners in UP like.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

योगी का जादू : अयोध्या में भक्तों का सैलाब अब काबू में

rajat-sirअयोध्या में रामलला के दर्शन के लिए रामभक्तों का सैलाब उमड़ा है. सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा के बाद अगले ही दिन सुबह रामलला की पहली आरती हुई. राम लला के दर्शन के लिए सात लाख से ज्यादा भक्त अयोध्य़ा पहुंच गए. भक्तों की इतनी भारी भीड़ को संभालना मुश्किल हो गया, सारे इंतजाम कम पड़ गए. दिन में कई बार भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई. इसलिए मंदिर के पट बंद करने पड़े. दर्शन पूजन रोकना पड़ा. आठ हजार से ज्यादा जवानों की तैनाती कम पड़ने लगी तो उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े बड़े अधिकारी अयोध्या पहुंचे. जब योगी आदित्यनाथ को ये खबर लगी कि अयोध्या में भक्तों की भीड़ ज्यादा है, कोई दुर्घटना हो सकती है तो योगी बिना देर किए पैंतालीस मिनट के भीतर खुद अयोध्या पहुंच गए, खुद मोर्चा संभाला, सारी व्यवस्थाओं का जायजा लिया, अफसरों के साथ मीटिंग की, फिर भक्तों से संयम बरतने की अपील की. इसके बाद हालात काबू में आए लेकिन दोपहर तक अयोध्या से जो तस्वीरें आ रही थी वो वाकई में हैरान करने वाली थी. न सरकार को, न प्रशासन को, न श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को इतनी भारी संख्या में भक्तों के पहुंचने की उम्मीद की थी लेकिन योगी की अपील के बाद लोगों ने धैर्य दिखाया. रामभक्तों ने कहा कि वो बिना दर्शन के वापस नहीं लौटेंगे, राम की नगरी में ही रहेंगे, अपनी बारी का इंतजार करेंगे, भले ही दो-तीन दिन लग जाएं. लेकिन दर्शन करने के बाद ही घर वापस जाएंगे. आस्था के इस सैलाब को देखकर अब उन नेताओं में, उन पार्टियों में भी खलबली है जो अब तक रामलला के मंदिर के उद्घाटन का विरोध कर रहे थे, जो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त को अशुभ बता रहे थे. मंगलवार पौ फटने से पहले ही राम मंदिर परिसर के बाहर भीड़ का एकत्र होना शुरु हो चुका था. प्रशासन ने भक्तों को बाहर रोक दिया, सुबह जबरदस्त सर्दी थी, कोहरा था, तापमान सात डिग्री से भी कम था, लेकिन रामभक्तों के जोश में कोई कमी नहीं थी. हजारों लोग दर्शन के लिए अपनी बारी के इंतजार में राम मंदिर की तरफ टकटकी लगाये हुए थे. हजारों की इस भीड़ में बुजुर्ग भी थे, महिलाएं भी थीं और नौजवान भी. चेन्नई, नासिक, भोपाल, रामेश्वरम, कोलकाता, गुवाहाटी, हरिद्वार और देश के कई अन्य शहरों से लोग दर्शन करने आए हुए थे. मंगलवार को सात लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने अयोध्या में रामलला के दर्शन किए. राममंदिर के चारों प्रवेश द्वारों पर, रामलला मंदिर से लेकर लता चौक तक, सिर्फ रामभक्तों के सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे. अयोध्या की हर सड़क पर भक्तों का सैलाब था, ट्रैफिक बंद हो गया, सारी व्यवस्थाएं चरमरा गईं, पुलिस ने रास्तों पर लोहे के बैरीकेड्स रख दिए. मंदिर के गर्भगृह में रामलला की नई मूर्ति के बिल्कुल नीचे रामलला की पुरानी मूर्ति का विग्रह भी स्थापित है. सोने के सिंहासन पर विराजमान रामलला की दोनों मूर्तियों की रामनंदी परंपरा के मुताबिक आरती पूजा हुई. चूंकि रामलला के नए विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूजन आरती के लिए नई व्यवस्था शुरू की गई है, इसलिए नई सैतालीस पेज की पूजन विधि पुस्तिका जारी की गई है. इसमें पूजा, भोग, प्रसाद, आरती के सारे विधान बताए गए हैं. योगी आदित्यनाथ को इस बात का अंदाज़ा था कि रामलला के दर्शन के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में अयोध्या पहुंचेंगे. उन्होंने दो दिन पहले लोगों से हाथ जोड़कर अपील की थी कि वो बिना बताए अयोध्या नगरी न आएं, पैदल न आएं, आराम से आएं ताकि सबके दर्शन के लिए ठीक से इंतजाम किए जा सकें. लेकिन पूरे देश में भगवान राम के मंदिर को लेकर जिस तरह का उत्साह है, रामलला का दर्शन करने की ललक है, उसको देखते हुए इतनी बडी संख्या में लोगों का वहां पहंचना स्वभाविक है. पर मंदिर अभी नया बना है, कल ही प्राण प्रतिष्ठा हुई है, अयोध्या में सारे इंतजामात नए हैं, इसलिए प्रशासन को भी अंदाजा नहीं है कि कहां कहां कमी हैं, क्या क्या और करना है और एक साथ लाखों भक्त पहुंच जाएंगे, इसकी उम्मीद वहां के अफसरों ने नहीं की थी. इसलिए पहले दिन तमाम तरह की मुश्किलात पेश आईं. भक्तों को दिक्कत हुई और प्रशासन को भी. लेकिन ये बड़ी बात है कि राम भक्तों के सैलाब को देखकर, राम मंदिर में भगदड़ की स्थिति को देखकर योगी आदित्यनाथ बिना देर किए सारा कामकाज छोड़कर खुद अयोध्या पहुंच गए. ये योगी का स्टाइल है जिसे लोग पसंद करते हैं.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

MODI’S MESSAGE FROM AYODHYA: ‘THIS IS THE TIME, THE RIGHT TIME’

akbThe historic, spectacular inauguration of Ram Mandir by Prime Minister Narendra Modi was not only watched by thousands of devotees in Ayodhya, but also by millions of Indians on big screens across India and abroad. Bells tolled in almost all the major temples, as Modi performed the Pran Pratistha of Lord Ram’s exquisite idol in the presence of dignitaries, film and sports celebrities, industrialists and heads of Hindu religious sects. This was followed by nightlong celebrations in cities and towns, with people lighting ‘diyas’ outside their homes amidst fireworks. It was a sort of second Deepawali, the day when India celebrates the homecoming of Lord Ram after spending 14 years in exile. The day after, on Tuesday, when the doors were opened, nearly three lakh devotees flocked to the shrine to watch the ‘aarti’ causing security issues. In one of his most powerful speeches, Prime Minister Modi in his 36-minute address exhorted the young generation to come forward to lay the foundation for building a new India for the next one thousand years. “Yahi Samay Hai, Sahi Samay Hai”(This is the time, the right time), he said. In phrases, loaded with emotion and political message, Modi said: “Ram is not fire, he is energy.” He said, “some people were warning that the construction of Ram temple will start a firestorm. I want to tell them, Ram is not fire, Ram is energy. Ram is not Chinta (worry), but Chintan (thought), Ram is not dispute, Ram is Samadhan (solution)”. In a voice choked with emotion, Modi said, “Aaj Hamaare Ram Aa Gaye Hain” (Our Lord Ram has finally arrived). He will no longer stay in a tent, he will reside in a grand temple…. A thousand years from now, people will discuss this date, this moment….January 22, 2024 is not just a date on the calendar. It marks the beginning of a new Wheel of Time (Kaal Chakra). Today, we have been rewarded for centuries-long patience. ..This nation will now write a new history.” RSS chief Mohan Bhagwat, in his speech, called for “shunning ego and staying united to make India the Vishwaguru (world leader).” Indians living in the United States, United Kingdon, Russia, Australia, Denmark, Mauritius, Singapoire, Thailand, Indonesia and Sri Lanka watched Modi’s speech preceded by the consecration ceremony. The new idol of Ram Lala (Lord Ram as a five-year-old boy) was decked with meticulously crafted ornaments studded with emeralds, diamonds, rubies and other precious stones. The chest of the Ram idol was adorned with ‘Kaustubh Mani’ gemstone. The consecration ceremony was conducted by Acharya Laxmikant Dixit and his disciples. UP governor Anandiben Patel and chief minister Yogi Adityanath were present at the ceremony. Conch shells were blown and the air was rent with shouts of ‘Jai Shri Ram’ after the ceremony was over. IAF helicopters showered flower petals on the assembled devotees. Among those present were Reliance group chief Mukesh Ambani, mega stars Amitabh Bachchan and Rajinikanth, Swami Ramdev, Rambhadracharya, Uma Bharti, Sadhvi Ritambhara, top actors from Mumbai film industry, and other celebrities. The level of participation of the common people in the festivities in Ayodhya and in almost all major cities of India were clearly an eyeopener for those who were opposing the consecration event and its timing. IN Karnataka, chief minister Siddaramaiah, a leading Congress leader, opened a new Ram temple in K R Puram, Bengaluru, while Congress leader Deependra Hooda opened another Ram temple in Patauda village of Jhajjar, Haryana. Himachal Pradesh former CM Late Virbhadra Singh’s son and state minister Vikramaditya Singh attended the consecration event in Ayodhya, disregarding the official Congress line that it was Modi’s “political event”. In Delhi, chief minister Arvind Kejriwal and his Aam Aadmi Party leaders took part in Ram processions, havans and bhandaras (food distribution). In Maharashtra, Shiv Sena chief Uddhav Thackeray prayed at Kalaram temple in Nashik with his family. In Kolkata, chief minister Mamata Banerjee took out a rally with priests of several religions, and addressed a public meeting where she targeted BJP for trying to garner votes in the name of Lord Ram. For people who think on political lines, the natural question that arises is: how much will this event affect the forthcoming general elections and whether Modi will be able to garner advantage. I think the picture is quite clear. There is religious fervour among people cutting across all castes and communities, and almost the entire nation is now in deep devotion of Lord Ram. Naturally, Modi is going to gain advantage. In his speech, Modi spoke about the ardent tribal female devotee Shabri and the boatman devotee Nishad Raj. Modi explained the significance of Lord Ram to the young generation. He showered petals on the workers who built the Ram temple in Ayodhya. These are messages which are going to have effect on national politics and on the forthcoming elections. Opposition leaders do understand the significance of these messages. They had been questioning why Modi is in a hurry to perform the consecration ceremony in a partially built temple, why he took up the responsibility of being Mukhya Yajmaan, why Modi is trying to corner the devotional topic of Lord Ram. But opposition leaders realized soon that such questions have no effect on common people. Even the Shankaracharyas who were raising questions on the event, have now changed their tune. Leaders like Siddaramaiah, Arvind Kejriwal and others went to temples to offer prayers to Lord Ram and took part in religious events on Monday. They not only did this, but also shared their pictures on social media handles. Most of the leaders have now realized that they will have to seek the blessings of Lord Ram, whatever may be the official party line. There is a popular Hindi proverb – “Ab Pachhtaye Hot Kya, Jab Chidiya Chug Gayi Khet” (meaning: There’s no use crying over spilt milk). When the man on the street finds the original Ram devotee in the form of Narendra Modi, why should anybody bother to go to duplicates? I have not an iota of doubt that the Pran Pratistha ceremony has infused new life in BJP. Leaders opposing Modi are now finding it difficult to save their political Vase. The biggest losers will be Rahul Gandhi and his Congress party. In their blind opposition to Modi, they opposed the Ram temple. The Congress party has a large number of leaders and workers who are real devotees of Lord Ram. Several of these leaders went to Ayodhya to attend the event. A large number of Congress supporters lighted diyaas on Monday night. They feel that Sonia Gandhi and party president Mallikarjun Kharge should have visited the consecration event. The policy of boycotting the event was not the right one. On the other hand, BJP policy is quite clear. People may ask why no top BJP leader was seen at Ayodhya event, except Modi and Yogi. Top leaders like Rajnath Singh, Amit Shah, Nitin Gadkari, J P Nadda were busy attending events in several temples across India, and they are going to lead thousands of party supporters in the coming days to visit Ayodhya for ‘darshan’ of Lord Ram. The din is not going to die down. The coming weeks and months will see thousands converging on Ayodhya to visit the Ram Mandir. This was the reason why Modi said: “Ram is the samaadhan (solution). This is the time. The right time.”

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

अयोध्या से मोदी का संदेश : ‘यही समय है, ये सही समय है’

AKB 22 जनवरी 2024 एक ऐसी तारीख है जो भारत के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज़ रहेगा. पूरे देश में दिवाली मनाई गई, घर-घर गली-गली दीप जलाए गए, पांच सौ साल के बाद भगवान राम फिर अयोध्या में पधारे, भव्य राम मंदिर में विराजे, अयोध्या पूरी तरह जगमग है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे विधि विधान से, वैदिक परंपराओं के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की. राम जन्मभूमि पर दिव्य मंदिर का उद्घाटन किया. रामलला के स्वागत में देश भर के मंदिरों को सजाया गया. हर जगह जोश, उमंग, उत्साह, भक्ति है. हर जगह राम नाम का प्रताप, राम की शक्ति और प्रभु राम के प्रति आस्था का सागर दिखा. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही मोदी का 11 दिन का व्रत पूरा हुआ. रामलला को भोग लगाने, उनकी आरती और साष्टांग प्रणाम के बाद मोदी ने प्रसाद ग्रहण करके अपना अनुष्ठान पूरा किया. जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान अयोध्या में चल रहा था, उस वक्त पूरे देश के मंदिरों में करोड़ों रामभक्त इसका लाइव टेलीकास्ट देख रहे थे. उत्सव तो अयोध्या में हो रहा था लेकिन इसमें पूरी दुनिया के रामभक्त शामिल थे. अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, आस्ट्रेलिया, डेनमार्क, मारीशस, सिंगापुर, थाईलैंड, इंडोनेशिया और श्रीलंका समेत तमाम देशों में रामलला के स्वागत में प्रभात फेरियां निकाली गईंस दीवाली मनाई गई, आतिशबाज़ी हुई, मिठाइयां बांटी गईं. हमारे देश में तो हर गली चौराहे पर रामनाम का संकीर्तन हुआ, भंडारा हुआ. मोदी ने कहा कि पांच सौ सालों की तपस्या, बलिदान और धैर्य का सुखद परिणाम मिला है. रामलला टेंट से भव्य राम मंदिर में पधारे हैं. मोदी ने कहा कि जो लोग कहते थे राम मंदिर बनेगा तो देश में आग लग जाएगी, भक्ति का ये सैलाब देखने के बाद उन्हें भी समझ आ जाना चाहिए कि राम आग नहीं, ऊर्जा हैं, राम देश की चिंता नहीं, चिंतन हैंस राम विवाद नहीं, समाधान है. राम अतीत नहीं, अनंत हैं, राम मंदिर सिर्फ देव मंदिर नहीं, राष्ट्र मंदिर है. सनातन संस्कृति का अमिट प्रमाण है. मोदी ने कहा कि एक यज्ञ तो पूरा हुआ, अब आगे क्या? अब प्रभु राम को परिश्रम का प्रसाद चढ़ाना है, भारत को विश्वगुरू बनाना है, भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है. मोदी आस्था से ओत-प्रोत थे, भक्ति से भरे थे. प्राण प्रतिष्ठा के अगले दिन सुबह ही अयोध्या में करीब 3 लाख लोग रामलला का दर्शन करने के लिए मंदिर पहुंच गए. रामलला का रूप दिव्य है, आंखों में बसने वाला है. ये विग्रह पांच वर्ष के बालक राम का है. 51 इंच लंबी श्यामल मूर्ति को जो मुकुट पहनाया गया है, वो उत्तर भारतीय परंपरा का प्रतीक है. सोने के इस मुकुट में पन्ना, माणिक्य, हीरा और दूसरे जवाहरात लगाए गए हैं. मुकुट के बीचो-बीच सूर्य भगवान की आकृति बनाई गई है. जो कुंडल पहनाए गए हैं, वो सोने के बने हुए हैं. इन कुंडलों में हीरा, पन्ना और माणिक्य लगे हैं. कुंडलों को मोर की आकृति में ढाला गया है. राम के गले में लगा कंठहार चंद्रमा की आकृति का है, जिसमें बारीक हीरे जवाहरात लगे हैं. रामलला के वक्ष स्थल पर कौस्तुभ मणि पहनाई गई है. इस कौस्तुभ मणि के बीच में एक बड़ा सा माणिक्य लगाया गया है और उसके चारों तरफ़ छोटे छोटे हीरे लगे हैं. ये परंपरा है कि भगवान विष्णु के अवतारों को कौस्तुभ मणि पहनाई जाती है. इसीलिए, रामलला को भी कौस्तभु मणि पहनाई गई. रामलला के गले में एक हार भी पहनाया गया है. सोने के पांच तारों से बने इस हार में भी पन्ने जड़े गए हैं और नीचे की ओर एक कर्णफूल भी हार में लगा हुआ है. एक और हार भी पहनाया गया है जिसका नाम वैजयंतिका है. ये रामलला के गले में डाला गया, सबसे लंबा हार है, जो वैष्णव परंपराओं के प्रतीक चिह्नों से आभूषित है. वैजयंतिका में सुदर्शन चक्र, कमल, शंख और मंगल कलश बनाए गए हैं. भगवान को प्रिय फूलों जैसे कि चंपा, पारिजात कुंड और तुलसी की आकृतियां भी इस हार में उकेरी गई हैं. प्रतिमा की कमर में करधनी पहनाई गई है, तरह तरह के हीरे जवाहरात इस करधनी में जड़े गए हैं. इनमें हीरे, पन्ना, मोती और माणिक्य शामिल हैं. राम के दोनों हाथों में भुजबंद पहनाए गए हैं, जो सोने के बने हैं और इनमें भी क़ीमती रत्न जड़े हैं. भगवान की कलाई में हीरे जवाहरात जड़े सोने के कंगन भी पहनाए गए हैं. इसके अलावा, रामलला की मूर्ति को हीरे और मोतियों से जड़ी अंगूठियां अथवा मुद्रिकाएं भी पहनाई गई हैं. रामलला के पैरों में पैंजनियां पहनाई गई हैं, तो बाएं हाथ में सोने का धनुष और दाहिने हाथ में सोने का बाण है. भगवान के पैरों के नीचे कमल की आकृति बनाई गई है, जिसको सोने की माला से सजाया गया है. रामलला की इस ख़ूबसूरत प्रतिमा के ऊपर सोने का एक छत्र भी लगाया गया है. राम, बनारसी वस्त्र की पीताम्बर धोती तथा लाल रंग के अंगवस्त्रम से सुशोभित हैं. इन वस्त्रों पर शुद्ध सोने की ज़री और तारों से काम किया गया है जिनमें वैष्णव संप्रदाय के मंगल चिह्न, शंख, पद्म, चक्र और मोर अंकित हैं. प्राण प्रतिष्ठा के लिए भारत की 150 से भी अधिक परंपराओं, धर्म, संप्रदाय, पूजा पद्धति और परंपराओं के संत, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत इस कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए थे. नागा साधुओं के साथ साथ 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तातवासी, द्वीपवासी आदिवासी परंपराओं के प्रमुख व्यक्तियों को प्राण प्रतिष्ठा में बुलाया गया था. मोदी ने सबसे मुलाक़ात की,
मोदी भव्य राममंदिर बनाने के काम में लगे श्रमजीवियों से भी मिले. उनपर फूल बरसाए. आज मोदी ने दिखाया कि साधना में कितनी शक्ति होती है, राम नाम का क्या प्रभाव है. ये भी पूरे देश में दिख रहा है. ये सही है कि आज सनातन संस्कृति के लिए ऐतिहासिक पल है. पांच सौ साल के बाद अयोध्या का पुनरुद्धार हुआ है. अयोध्या में एक बार फिर रामलला लौटे हैं. ये दिन तो प्रतिफल है, उस तपस्या का, जो अनगनित रामभक्तों ने अनवरत की. मैने योगी आदित्यनाथ से अयोध्या में हुए संघर्ष की, बलिदानों की गाथा सुनी तो कलेजा भर आया. उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा को बरसों बाद गले मिलकर खुशी के आंसू बहाते देखा. स्वामी रामदेव और रामभद्राचार्य को रामलला के चरणों में बैठे देखा. मुकेश अंबानी, अमिताभ बच्चन, रजनीकांत जैसे प्रसिद्ध लोगों को रामलला के सामने शीश नवाते देखा. RSS प्रमुख मोहन भागवत से पूरे देश को आपसी झगड़े भूलकर भाईचारा लाने का संदेश सुना. फिर लगा कि आज सिर्फ राम मंदिर का उद्घाटन नहीं हुआ. सिर्फ भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई. देश के लिए एक नए भविष्य का सूत्रपात हुआ. लेकिन ये अवसर पांच सौ साल बाद आया है. देश भर के रामभक्तों में उत्साह है, खुशी है. देशभर का जो माहौल है, देशवासियों में जो उत्साह है, वह उन सभी लोगों की आंखें खोलने वाला है जो अब तक राम मंदिर का विरोध कर रहे थे. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त पर सवाल उठा रहे थे. इसीलिए जब देशभर के मंदिरों में भक्तों की भीड़ बढ़ी, देशभर में राम नाम के जयकारे गूंजने लगे, तो विरोधी दलों के बड़े बड़े नेता भी मंदिरों की तरफ गए. कोई रामनामी चोला ओढ़कर सड़क पर निकला तो किसी ने खुद को रामभक्त दिखाने के लिए रामनाम का जप शुरू कर दिया. जिस वक्त अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा था, उस वक्त कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया बेंगलुरु में भघवान राम के जयकारे लगा रहे थे, बैंगलूरू के के आर पुरम में राम मंदिर का उद्घाटन कर रहे थे, पिछले 10 साल से ये मंदिर बन रहा था, मंदिर को स्थानीय लोगों ने बनवाया है लेकिन उद्घाटन करने सिद्धारमैया पहुंच गए और इसके बाद उन्होंने कहा कि वो जल्दी ही अयोध्या जाकर भगवान के दर्शन जरूर करेंगे. कांग्रेस के दूसरे नेता भी आज भक्ति रस में डूबे दिखे. दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने झज्जर के पटौदा गांव में राम मंदिर का उद्घघाटन किया और प्राण प्रतिष्ठा की. हुड्डा एक खुली जीप में सवार हुए, हाथ में भगवा झंडा था और जुबां पर सियावर रामचंद्र की जय के नारे थे. नोट करने वाली बात ये है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया था लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता पार्टी की नाराजगी को नंजरअंदाज करके अयोध्या गए, रामलला के दर्शन किए. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह भी अयोध्या के कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि ये ऐतिहासिक दिन है, हर हिन्दू के लिए गर्व का मौका है, इसलिए वो अयोध्या आए हैं. जो लोग राजनीति के लिहाज से सोचते हैं, उनके मन में ये सवाल जरूर होगा कि राममंदिर बनने का का प्राण प्रतिष्ठा का, मोदी के मुख्य यजमान बनने का, आने वाले चुनाव पर क्या असर होगा?क्या मोदी को इसका फायदा होगा? मुझे लगता है कि यहां मामला साफ है. देश में जो वातावरण बना है. जिस तरह से पूरा देश राममय हो गया उससे नरेन्द्र मोदी को फायदा होगा ही होगा. मोदी ने माता शबरी की बात की, निषादराज से भगवान राम के रिश्तों का जिक्र किया. मोदी ने नौजवानों को राम का महत्व समझाया. मोदी ने मंदिर बनाने वाले श्रमिकों पर पुष्पवर्षा की. ये सारी बातें ऐसी हैं जिनका असर देश की जनता के दिलो दिमाग पर पड़ेगा, देश की राजनीति पर पड़ेगा, चुनाव पर पड़ेगा. इस बात को विरोधी दलों क नेता भी समझते हैं, इसलिए उन्होंने पहले दिन से ही कहना शुरू कर दिया ता कि बीजेपी ने राम पर कब्जा कर लिया है, चुनाव के मौके पर आधे अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जा रही है? मोदी किस हैसियत से यजमान बने? शंकराचार्य भी प्राण प्रतिष्ठा का विरोध कर रहे हैं, लेकिन विरोधी दलों के नेताओं को दो चार दिन में समझ भी आ गया कि जनता पर ऐसी बातों का कोई असर नहीं हो रहा. जो शंकराचार्य दिग्विजिय सिंह के कहने पर मोदी विरोध करने के लिए मैदान में उतरे थे, वे भी घबरा कर पलट गए. बदला माहौल देखकर वो शंकराचार्य भी मोदी की गुणगान करने लगे. सिद्धारमैया ने अपने राम मंदिर का उद्घाटन कर दिया. केजरीवाल ने रामलला की तस्वीर लगाकर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की बधाई दे दी. विरोधी दलों के ज्यादातर नेता आज मंदिर गए, भगवान राम की पूजा की. प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला की मूर्ति की फोटो अपने सोशल मीडिया हैडल पर शेयर की. सबको लगा कि पार्टी की लाइन कुछ भी हो, जनता के प्रकोप से बचना है तो राम की शरण में जाना ही पड़ेगा. लेकिन कहावत है ‘अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत’ . जब लोगों के पास ओरिजिनल रामभक्त मोदी मौजूद हैं, तो कोई किसी डुप्लीकेट के पास क्यों जाएगा? मुझे कोई संदेह नहीं कि आज राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा ने बीजेपी में भी नए प्राण फूंक दिए. राम का विरोध करने वाले नेताओं को अपने राजनीतिक प्राण को बचाना मुश्किल हो रहा है. और इसका सबसे ज्यादा नुकसान राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को होगा क्योंकि उन्होंने मोदी विरोध के चक्कर में राममंदिर का विरोध कर दिया. काँग्रेस में बड़ी संख्या में ऐसे नेता और कार्यकर्ता हैं जो राम भक्त हैं .इनमें से कई नेता आज अयोध्या पहुंचे, बड़ी संख्या में काँग्रेस समर्थकनों ने शाम को दिए जलाए। उन्हें लगता है सोनिया और खरगे को प्राण प्रतिष्ठा में जान चाहिए था, ये बॉयकाट की नीति सही नहीं है. दूसरी तरफ बीजेपी की नीति साफ है. आज मोदी और योगी का अलावा बीजेपी का कोई बड़ा नेता प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में दिखाई नहीं दिया. इसका मतलब भी समझने की जरूरत है. आने वाले दिनों में राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गड़करी, जे पी नड्डा जैसे बड़े बड़े नेता देश भर के अलग अलग कोनों से हजारों भक्तों के साथ अयोध्य़ा जाएंगे, रामलला के दर्शन करेंगे, और आज जो हुआ उसकी गूंज कई महीनों तक पूरे देश में सुनाई दजेगी. शायद इसीलिए मोदी ने कहा- राम जी समाधान है, अभी समय है, सही समय है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

राम मंदिर : जब ऋतंभरा ने 1990 की लोमहर्षक फायरिंग की दास्तां बताई

akbइस वक्त पूरा देश राममय है. हर जगह सिर्फ रामभक्ति में डूबे लोग दिख रहे हैं. शुक्रवार को अयोध्या के भव्य मंदिर में विराजमान होने वाले रामलला की छवि पहली बार रामभक्तों ने देखी. उस मूर्ति के दर्शन पहली बार हुए, इसीलिए करोड़ों रामभक्त भाव विभोर हैं. अयोध्या में तो उत्सव जैसा माहौल है. देशभर से पहुंचे रामभक्त तो जैसे सुधबुध खो बैठे हैं. हर तरफ सिर्फ राम नाम का शोर है. कहीं भजन चल रहे हैं, कोई डमरू बजा रहा है, कोई नाच रहा है, कोई खुशी में रो रहा है. सबकी ज़ुबान पर एक ही बात है ,रामलला आ गए, जय श्रीराम. सिर्फ अपने देश के नहीं, दुनिया के तमाम देशों से रामभक्त अयोध्या पहुंचे हैं.जो नहीं पहुंच पाए, उन्होंने रामलला के लिए तमाम तरह के उपहार भेजे हैं. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में सिर्फ कुछ घंटे का वक्त बाकी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वह पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ धर्माचार्यों के बताए यम नियम का कठोरता से पालन कर रहे हैं. मोदी इस वक्त पूर्ण व्रत पर हैं, दिन में सिर्फ एक बार फलाहार कर रहे हैं और नरियल का पानी पी रहे हैं. शनिवार को मोदी तमिलनाडु के तिरुचिरपल्ली में श्री रंगनाथस्वामी मोदिर गए, पूजा की और कम्बन रामायण के श्लोक सुने. मंदिर के पुजारियों ने रामलला को पहनाने के लिए बेशकीमती वस्त्र मोदी को भेंट किया. पहली बार ‘आपकी अदालत’ में भी जय श्रीराम के नारे लगे. ‘आपकी अदालत’ में भी माहौल राममय हो गया. इस बार ‘आपकी अदालत’ में साध्वी ऋतंभरा मेरी मेहमान हैं. साध्वी ऋतंभरा उन संतों में से हैं जो अयोध्या आंदोलन में सबसे आगे रहीं. वह नेता नहीं हैं, राजनीति में नहीं हैं, किसी पार्टी में नहीं हैं….लेकिन जब उन्होंने ‘आपकी अदालत’ में अयोध्या आंदोलन के वक्त रामभक्तों पर किए गए जुल्मों की बात की और ये कहा कि आज जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का वक्त आया है, तो उस वक्त की पीड़ा बहुत हल्की महसूस होती है. साध्वी ऋतंभरा ने भविष्य की बात कही. उन्होंने कहा कि राम मंदिर तो बन गया, अयोध्या आंदोलन का फल मिल गया लेकिन अभी काशी और मथुरा बाक़ी हैं. साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के सबूत तो जमीन के नीचे छुपे थे, इसलिए आंदोलन करना पड़ा,कोर्ट में लड़ना पड़ा लेकिन काशी में तो विश्वनाथ के नंदी खुद गवाही दे रहे हैं, बता रहे हैं, भोलेनाथ कहां बैठे हैं. मथुरा में भी पत्थर गवाही दे रहे हैं, इसलिए अगर हिन्दुओं को काशी और मथुरा दे दिए जाएं तो फिर उन तीस हजार मंदिरों की मांग नहीं जाएगी जिन्हें मुगल काल में तोड़ा गया. साध्वी ऋतंभरा ने ‘आपकी अदालत’ में उस वक्त के किस्से सुनाए जब वो देश भर में राम मंदिर निर्माण के लिए अलख जगा रही थीं, रामभक्तों के संघर्ष और उस वक्त मुलायम सिंह की सरकार के जुल्म, पुलिस की प्रताड़ना की बहुत सारी दिल दहलाने वाली घटनाओं की याद दिलाई. कैसे राम भक्तों पर गोलियां चलीं, कैसे सरयू का पानी लाल हुआ, उन्होंने सब बताया. आज किस तरह वो आनंद में डूबी हैं और आगे अब हिन्दू संगठनों की क्या योजना होगी, इसका भी खुलासा किया. साध्वी ऋतंभरा के साथ आपकी अदालत का रामभक्ति में डूबा ये स्पेशल शो आप देख पाएंगे शनिवार रात दस बजे. अयोध्या का जो भव्य और दिव्य स्वरूप दिखाई दे रहा है, उसे देखने के लिए लोगों ने 500 वर्ष इंतजार किया है. आज रामलला का जो बाल स्वरूप दिखाई दिया..उसकी प्राण प्रतिष्ठा के लिए हज़ारों लोगों ने कड़ा संघर्ष किया. सैकड़ों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी. इसीलिए सभी को 22 जनवरी के शुभ मुहूर्त का उत्सुकता से इंतज़ार है. पूरे देश में हर जगह इसी की चर्चा है, लेकिन जिन लोगों ने राम जन्मभूमि के आंदोलन में हिस्सा लिया था, वे आज भी जब जुल्म और अपमान की बातें बताते हैं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं. ‘आप की अदालत’ में साध्वी ऋतंभरा ने बताया कि कैसे उन्हें प्रताड़ित किया जाता था,पूरे हिंदू समाज का मज़ाक उड़ाया जाता था, कैसे पुलिस हमेशा उनके पीछे पड़ी रहती थी और उन्हें भेष बदल-बदलकर जन जागरण की सभाओं में जाना पड़ता था. साध्वी ऋतंभरा उन कारसेवकों को याद करके रो पड़ीं जिन पर मुलायम सिंह यादव की पुलिस ने गोलियां चलवाई, जिनके खून से सरयू का पानी लाल हो गया था. .ये बात सब लोग जानते हैं कि इस पूरे संघर्ष में नरेंद्र मोदी का भी काफी सक्रिय रोल था. राम जन्मभूमि आंदोलन को लीड करने वाले लालकृष्ण आडवाणी के रथ के वो सारथी थे..आज ही मैंने वो वीडियो देखा जिसमें बिहार की पुलिस आडवाणी जी को गिरफ्तार करने पहुंची तो मोदी सारी व्यवस्था देख रहे थे. मोदी ने तभी प्रण किया था कि वो अयोध्या में राम मंदिर बनवाकर रहेंगे, इसीलिए आज भी राम मंदिर के आंदोलन को याद करके वो भावुक हो जाते हैं. देश के करोड़ों लोगों की तरह मोदी को भी प्राण प्रतिष्ठा के क्षण की बेताबी से प्रतीक्षा है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

AKB

RAM TEMPLE : RITAMBHARA NARRATES SPINE CHILLING STORY OF 1990 POLICE FIRING

AKBAs Prime Minister Narendra Modi offered prayers at the Sri Ranganathaswamy temple in Tiruchirapalli, Tamil Nadu, on Saturday and listened to recital of verses from Kamban Ramayana, a wave of religious fervour has gripped the temple town of Ayodhya, where the PM will perform the consecration ceremony of Ram idol on Monday. Groups of devotees have come from different corners of India, along with several groups from abroad. The priests of Sri Ranganathswamy temple gave a basket containing ornamental dresses to the PM to be taken to Ayodhya for Lord Ram’s idol. Modi is on fast since last several days since he is the Mukhya Yajman of the consecration ceremony. He is visiting several temples in southern India linked to Lord Ram. On Friday, Modi while addressing a public meeting in Solapur while distributing keys of Pradhan Mantri Awas houses to poor families, he became emotional for sometime while reminiscing his childhood which was spent in poverty. Ayodhya has been decked with flowers and lights to celebrate the auspicious occasion. The entire town was lit on Friday night with diyas and other lamps. Hindus have been waiting for nearly 500 centuries for the restoration of Lord Ram’s temple in his birthplace. This was aptly described by Sadhvi Ritambhara, one of the firebrand leaders of Ram Janmabhoomi movement since Eighties, who recited poems in praise of Lord Ram, Ayodhya and Sanatan parampara (tradition). Sadhvi Ritambhara was present in my show ‘Aap Ki Adalat’, which will be telecast on Saturday and Sunday nights and on Sunday morning on India TV. She recounted those horrible days of 1990, when police had been asked to round up every Ram devotee. Ritambhara revealed how she had to hide inside a car, and travel incognito in trains by cutting off her hair. She also disclosed how she had to spend up to 10 to 12 hours at airports before she was permitted to travel. Sadhvi Ritambhara disclosed how Hindus and devotees like her had to face insults and beatings and the Hindu community was made the butt of jokes. She used to address 22 rallies on a single day. The most spine chilling disclosure was about how police, on instructions of the then CM Mulayam Singh Yadav, threw bodies of dead kar sevaks in gunny bags, tied them with stones and threw them into the Saryu river in Ayodhya. In 1990, Narendra Modi was the charioteer of BJP leader Lal Krishna Advani’s Somnath to Ayodhya yatra. I have seen the video of how Modi was looking after all arrangements, when Bihar police came to arrest Advani, on orders of then CM Lalu Prasad Yadav, in Samastipur. Modi had then vowed that he would visit Ayodhya only when a grand Ram temple will be built. His vow is going to be fulfilled after more than three decades on January 22. Modi becomes emotional when he reminisces about what happened during Advani’s Rath Yatra. Millions of Indians are also waiting for the auspicious moment when Lord Ram’s idol will be consecrated at the holy site.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

कांग्रेस मीनमेख निकालना बंद करे, प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाए

akbरामलला भव्य राम मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं. रामलला की प्रतिमा का सरयू के जल से शुद्धिकरण किया गया, जिसे जलाधिवास कहा जाता है. इसके बाद गणेश पूजन और वरुण पूजन हुआ. 121 आचार्य वास्तु पूजन की तैयारी कर रहे हैं.शुक्रवार को देश भर में राम भक्तों ने रामलला प्रतिमा की पहली तस्वीरें देखी. अयोध्या में हर किसी को अब सिर्फ प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार है. मंदिर बन कर तैयार है, जो शिखर अभी अधूरे हैं, उन्हें फिलहाल अस्थाई रूप से बना दिया गया है लेकिन गर्भगृह पूरी तरह तैयार है. एक तरफ जब पूरा देश राममय हो गया है, भक्ति में सराबोर है, तब कुछ नेताओं ने एक बार फिर रामभक्तों के पुराने जख्म को कुरेदने की कोशिश की. उस वक्त की याद दिलाई जब सरयू का पानी रामभक्तों के खून से लाल हो गया था. समाजवादी पार्टी के नेता और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने कहा कि मुलायम सिंह की सरकार ने 1990 में अयोध्या में रामभक्तों पर गोली चलवा कर संविधान सम्मत काम किया था, रामभक्तों पर फायरिंग कानून की रक्षा और संविधान को बचाने के लिए की गई थी. शिवपाल ने आरोप लगाया कि बीजेपी राम के नाम पर सियासत कर रही है, इसलिए 22 जनवरी के समारोह में उनकी पार्टी के नेता नहीं जाएंगे. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और महाराष्ट्र सपा के नेता अबु आजमी ने कह दिया कि बीजेपी का मकसद राम मंदिर बनाना नहीं, बाबरी मस्जिद गिराना था जिससे समाज में हिन्दू मुसलमानों को लड़वाया जा सके. कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भक्ति नकली है, मोदी चुनाव देखकर मंदिर मंदिर घूम रहे हैं, रामभक्त बने हुए हैं, असली भक्त तो कांग्रेस के नेता हैं, जो अयोध्या में हो रहे बीजेपी के चुनावी कार्यक्रम का बॉयकॉट कर रहे हैं. इन सब नेताओं को साध्वी ऋतंभरा, जगदगुरू रामभद्राचार्य और रामकथा वाचक मोरारी बापू ने जवाब दिया. साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि 1990 में रामभक्तों का खून बहाकर जो पाप समाजवादियों ने किया उसका प्रायश्चित तो सौ जन्मों में भी नहीं कर पाएंगे. साध्वी ऋतंभरा रामजन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय थीं, कारसेवा के लिए हर बार अयोध्या पहुंचने वालों में सबसे आगे रहीं. पुलिस से बचकर भेष बदल कर, बाल मुंडवा कर, गेरूआ वस्त्र छोड़कर सामान्य कपड़े पहने कर, ट्रेन की जनरल बोगी में बैठकर, खेतों के रास्ते पैदल चल कर कैसे कैसे राम मंदिर के लिए लोगों को जगाया. .ये सारे किस्से उन्होंने ‘आपकी अदालत’ में सुनाए हैं. साध्वी बार बार कहती हैं कि उस वक्त मुलायम सिंह की सरकार ने जो किया, उसकी कल्पना किसी हिंदू ने सपने में भी नहीं की थी, उस वक्त को कभी याद करने का मन नहीं करता लेकिन मुश्किल ये है कि विरोधी दलों के नेता, जो रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बॉयकॉट कर रहे हैं, वो बार-बार रामभक्तों को 1990 की याद दिलाते हैं. शिवपाल यादव इस वक्त भले ही समाजवादी पार्टी के बड़े नेता हों लेकिन जिस वक्त की वो बात कर रहे हैं, 1990 में जब मुलायम सिंह यादव की सरकार ने अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां बरसाईं थी, उस वक्त शिवपाल सिंह यादव की पहचान सिर्फ मुलायम सिंह के भाई की थी. वो न विधायक थे, न उस सरकार में मंत्री थे, 1990 में शिवपाल सिंह मुलायम सिंह की पार्टी के पर्चे बांटते थे और मुलायम सिंह की कृपा से इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बन गए थे. इसलिए उस वक्त मुलायम सिंह ने क्या सोचकर रामभक्तों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था और उस वक्त अयोध्या में कैसा माहौल था, इसका शिवपाल सिंह को कुछ पता भी नहीं होगा. लेकिन आज राम मंदिर का निर्माण पूरा हो गया है. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. उससे पहले शिवपाल सिंह यादव रामभक्तों को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उस वक्त जो रामभक्त अयोध्या में मौजूद थे, जिन्होंने अयोध्या में रामभक्तों की लाशों को देखा, खून से लथपथ, पानी के लिए तड़पते रामभक्तों को बचाने की कोशिश की, पुलिस वालों को सरयू में घायल रामभक्तों को लाश की तरह बहाते देखा, वो शिवपाल सिंह जैसे नेताओं की इस तरह तरह की हरकतों से नाराज़ हैं. यही बात साध्वी ऋतंभरा ने ‘आप की अदालत’ शो में कही, जिसका प्रसारण इंडिया टीवी पर शनिवार 20 जनवरी को होने वाला है. साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि 1990 के उस काले दिन की याद जब आती है, तो दिल भर आता है. साध्वी ऋतंभरा की आवाज में जोश था, आवेश था. उनकी इस बात का विरोधी दलों के नेताओं के पास कोई जवाब नहीं है कि आखिर राम मंदिर के मुद्दे को इतने सालों तक क्यों अटकाया गया, लटकाया गया. उस वक्त कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल मुस्लिम वोटों के लिए, तुष्टीकरण की नीति के तहत ये सब क्यों कर रहे थे. कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि भारत सिर्फ हिन्दुओं का देश नहीं है, यहां मुस्लिम-सिख-ईसाई सब रहते हैं और कांग्रेस किसी एक धर्म का नहीं, सभी धर्मों का सम्मान करती है. अयोध्या में जो कार्यक्रम हो रहा है, उसमें हर जगह नरेन्द्र मोदी हैं, सारे काम मोदी कर रहे हैं तो दूसरों के लिए कोई जगह ही नहीं है, इसीलिए कांग्रेस ने 22 जनवरी का न्यौता ठुकराया. लेकिन कांग्रेस में भी बहुत से नेता हैं जो कांग्रेस के इस रुख से परेशान और नाराज़ हैं. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष निर्मल खत्री ने ऐलान किया है कि वो रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाएंगे क्योंकि यह ऐतिहासिक मौका है और हिन्दू होने के नाते वो ऐसे मौक़े से गैरहाज़िर नहीं हो सकते. कांग्रेस के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम पहले ही अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन कर आए हैं, 22 जनवरी को फिर अयोध्या जाएंगे. आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि भारत के कण-कण में, हर मन में राम हैं, राम के बिना भारत में राजनीति तो क्या, कुछ भी करना संभव नहीं है. आचार्य ने कहा कि कांग्रेस पर वामपंथ का बेताल सवार है इसलिए दिग्विजय सिंह जैसे नेता ऐसे आत्मघाती बयान दे रहे हैं, राम के निमंत्रण को ठुकरा रहे हैं, प्राण प्रतिष्ठा पर बेवजह के सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की लाइन पर चल रहे हैं और वो लाइन आचार्य प्रमोद कृष्णम, निर्मल खत्री या लक्ष्मण सिंह जैसे नेताओं के समझाने से नहीं बदल सकती. रामकथा वाचक मोरारी बापू आम तौर पर राजनीति पर नहीं बोलते, नेताओं की बातों का जवाब नहीं देते लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह से रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मुहूर्त पर सवाल उठाए, नरेन्द्र मोदी के अयोध्या जाने को मुद्दा बनाया, उससे मोरारी बापू भी आहत हैं. मोरारी बापू ने कहा कि इस शुभ मौके पर इस तरह की अशुभ बातें करना ठीक नहीं है, जो लोग इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा क्यों कर रहे हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर नरेन्द्र मोदी देश के प्रदानमंत्री न होते, तो राम मंदिर के लिए और कितने सालों तक इंतजार करना पड़ता कोई नहीं जानता. मोरारी बापू ने जो कहा, वो सबको सुनना और समझना चाहिए. प्राण प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर अशुभ बातें नहीं करनी चाहिए. 500 साल की प्रतीक्षा पूरी हुई है. राम मंदिर बना है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बना. शांतिपूर्ण तरीके से बना. इसमें कोई विवाद नहीं है. मंदिर पूरी तरह दान-दक्षिणा में मिली राशि से बना है. इसमें किसी सरकार का एक पैसा नहीं लगा. कोई विवाद नहीं है. इसलिए कभी मंदिर को अधूरा बताना, कभी विधि-विधान पर सवाल खड़े करना, कभी ये कहना है कि गर्भ गृह असली जगह से दूर बनाया गया है, कभी कहना कि सारा श्रेय मोदी ले रहे हैं, इन सब बातों की मीनमेख निकालना आज की तारीख में कोई मतलब नहीं है. 22 जनवरी को जो हो रहा है, ये एक ऐतिहासिक घटना है. दुनियाभर में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान है और ऐसे ही राम भक्तों के प्रयास से ये मंदिर बना है..मंदिर के परिसर के बाहर का इलाका योगी की सरकार ने विकसित किया है और अयोध्या नगरी को अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन के मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान देने का प्रयत्न किया है. ये सिर्फ धर्म से जुड़ा मसला नहीं है. अयोध्या के आर्थिक विकास और समृद्धि का रास्ता भी राम मंदिर से होकर गुजरता है. अगर इस मंदिर को इस दृष्टिकोण से देखा जाएगा तो किसी को कोई समस्या नहीं है. जहां तक राजनीति का सवाल है, कुछ लोग पहले कई साल तक ये कहते रहे कि बीजेपी मंदिर बनाना नहीं चाहती, इसे अटकाना चाहती है ताकि राम मंदिर के नाम पर वोट मिलते रहें. अब बात बिल्कुल बदल गई है. अब कह रहे हैं कि मंदिर इसलिए बनवाया ताकि लोकसभा इलेक्शन में उसका फायदा उठाया जा सके. मोदी का विरोध करने वालों को पहले ये तय करना होगा कि वो कहना क्या चाहते हैं.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook