अयोध्या में भव्य राम मंदिर : बनेगा गेम चेंजर
अयोध्या में बन रहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य और दिव्य मंदिर में विराजने वाली रामलला की तीन मूर्तियां बनकर तैयार हैं. 29 दिसम्बर को उन तीनों में से एक मूर्ति का चयन होगा जिसे मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा. मंदिर का गर्भगृह बनकर तैयार है. पांचों मंडप बन गए हैं. पहली मंज़िल का काम तक़रीबन पूरा हो गया है. गर्भगृह की दीवारों पर नक्काशी और मूर्तियां बनाने का काम खत्म हो गया है. अब रामलला के सिंहासन और गर्भगृह के दरवाजों पर सोने की परत चढ़ाने का काम हो रहा है. अयोध्या में अब आसमान से ही राम मंदिर दिखने लगा है. चूंकि मंदिर का काम प्रथम तल तक तकरीबन पूरा हो गया है, इसलिए मंदिर आकार लेने लगा है, परकोटा बन गया है. ग्राउंड फ्लोर पर सीढियों से लेकर गर्भगृह तक काम पूरा हो गया है. सत्तर एकड़ में फैले मंदिर परिसर में निर्माण का काम सिर्फ इक्कीस एकड़ में हो रहा है. बाकी जगह को पूरी तरह हराभरा रखा गया है. इसमें भी रामलला का मंदिर सिर्फ 2.7 एकड़ में होगा. 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह संपन्न होने के बाद भक्त राम मंदिर में दक्षिण द्वार से प्रवेश कर पाएंगे. मंदिर परिसर में पहुंचते ही 32 सीढियां होंगी. इन सीढ़ियों से होकर भक्त गर्भगृह की तरफ बढ़ेंगे. सीढियों के ऊपर तीन द्वार है – सिंह द्वार, गज द्वार और हनुमान द्वार. इन दरवाजों के जरिए भक्त भूतल पर मौजूद बरामदे में पहुंचेंगे. यहां पांच मंडप हैं – नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप. इन मंडपों में भक्तों के बैठने का इंतजाम है. मंडपों की दीवारों पर शानदार नक़्क़ाशी की गई है, खंभों पर देवी देवताओं और वैदिक परपंराओं के प्रतीकों को उकेरा गया है. पांच मंडपों को पार करके भक्त गर्भगृह तक पहुंचेंगे, जहां रामलला का विग्रह विराजेगा. मंदिर का गर्भगृह 20 फीट लंबा और 20 फीट चौड़ा बनाया जा रहा है, इसकी ऊंचाई 161 फीट है. गर्भ गृह को सफेद मकराना संगमरमर से इतना मज़बूत बनाया गया है कि अगले एक हज़ार तक उसको खंरोच तक नही आएगी. राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने बताया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने से पहले अयोध्या में एक छोटा राम मंदिर बनाने का ही प्लान था लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट में रामलला की जीत हुई, तो मंदिर के मूल डिज़ाइन में बदलाव किया गया. दिक़्क़त ये थी कि मंदिर बनाने का बहुत सा काम पिछले दस साल में हो चुका था. पिलर्स तैयार थे. उन पर नक़्क़ाशी की गई थी, मंदिर निर्माण समिति ने तय किया कि तैयार हो चुके पत्थरों का इस्तेमाल भी इस नए मंदिर में किया जाएगा. इनमें से कई पिलर्स ऐसे हैं जिन पर नक़्क़ाशी का काम पंद्रह वर्ष पहले ही हो चुका था. इस वक्त जिस अस्थायी स्थान पर रामलला की मूर्ति की पूजा हो रही है, उसे गर्भगृह में ही स्थापित किया जाएगा, उसकी पूजा अर्चना उसी नियम से होगी, जैसे अभी होती है लेकिन चूंकि यह विग्रह छोटा है, भक्तों को दूर से दर्शन करने में दिक्कत होगी इसलिए अब रामलला की 51 इंच ऊंची मूर्ति गर्भगृह में स्थापित की जाएगी, जिसकी प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को करेंगे. रामलला का ये विग्रह पांच वर्ष के बालक का होगा. वाल्मीकि रामायण में प्रभु राम के बाल स्वरूप का जो वर्णन बालकांड में है, उसी के अनुरूप विग्रह तैयार किया गया है. अभी रामलला की तीन मूर्तियां बनाई गई हैं, दो काले पत्थर की और एक सफेद पत्थर की. अब इन तीन मूर्तियों में से किसकी स्थापना होगी , इसका चुनाव ट्रस्ट की कमेटी करेगी. उम्मीद ये है कि जनवरी के पहले हफ्ते में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट इसका ऐलान कर देगा कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए किस मूर्ति का चयन किया गया है. तीनों ही मूर्तियां भगवान के बाल स्वरूप की होंगी. 17 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति अयोध्या के नगर भ्रमण के लिए निकलेगी. तब पहली बार भक्त भगवान राम के इस स्वरूप के दर्शन कर सकेंगे. रामलला की 51 इंच की मूर्ति का जिस सिंहासन पर विराजमान होगी, वह तीन फीट ऊंचा और आठ फीट चौड़ा होगा. इससे गर्भगृह के बाहर खड़े भक्तों को रामलला के चरणों से लेकर माथे तक पूरे स्वरूप का दर्शन आसानी से हो सकेगा. मूर्ति का वास्तु इस तरह का है कि हर साल रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें रामलला के मस्तिष्क का अभिषेक करेंगी. रामलला का सिंहासन सोने से मढ़ा जाएगा. फिलहाल करीब 140 वर्गफीट वाले इस सिंहासन पर तांबे के तारों की कसाई हो रही है. इसके बाद तांबे के तारों के ऊपर सोने की परत चढ़ाई जाएगी. रामलला की तीन मूर्तियों में से एक की स्थापना होगी जबकि दूसरे दो विग्रह मंदिर में रहेंगे. एक चल विग्रह होगा जो समय समय पर त्योहारों और पर्वों के मौकों भक्तों के दर्शन के लिए बाहर रखी जाएंगी या नगर में निकलेंगी. बड़ी बात ये है कि रामलला का मंदिर दो हजार वर्ष पुरानी पंचायतन परंपरा के अनुसार हो रहा हैस यानि एक ही जगह पर पांच देवी देवताओं की पूजा का स्थान. गर्भगृह के चारों ओर, चार कोनों पर सूर्य, शिव, देवी भगवती और गणपति के चार मंदिर और बने हैं. मंदिर में कुल 118 दरवाज़े होंगे. ये सारे दरवाजे तेलंगाना के सिकंदराबाद में बन रहे हैं, जो एक निजी टिंबर कंपनी बना रही है. सारे दरवाजे महाराष्ट्र से लाई गई सागौन की लकड़ी से बने हैं. इसी कंपनी ने यदाद्रि मंदिर के दरवाज़े बनाए थे. मंदिर के दरवाज़े बनाने के काम में तमिलनाडु के सौ से ज्यादा कारीगर लगे हैं. सारे दरवाज़े पुरानी तकनीक से बनाए जा रहे हैं, इनमें कोई नट-बोल्ट नहीं लगाए जा रहे हैं, ताकि ये हजार साल से ज्यादा तक मजबूत रहे. 118 दरवाजे चार अलग डिजाइनों में बने हैं. मंदिर में प्रवेश के तीन द्वार हैं. इसके अलावा गर्भ गृह का अलग दरवाज़ा है. गर्भ गृह के दरवाजे की ऊंचाई 8 फीट है और चौड़ाई 12 फीट है. ये विशाल द्वार पांच इंच मोटा होगा. गर्भगृह के दरवाजे को भी सोने से मढ़ा जाएगा. भारत में मंदिरों के निर्माण की 16 अलग शैलियां रही हैं, जिनमे तीन प्रमुख हैं, नागर, द्रविड और पगोडा. राम का मंदिर नागर शैली में बन रहा है लेकिन इसमें दक्षिण भारतीय और बेसर शैली की ख़ूबियों को भी शामिल किया गया है. मंदिर में परकोटा भी बनाया गया है जबकि आम तौर पर उत्तर भारत के मंदिरों में परकोटे नहीं होते. मंदिर के चारों तरफ़ जो परकोटा होगा, उसमें भी छह मंदिर बनाए जा रहे हैं. ये मंदिर, सूर्य भगवान, शंकर भगवान, माता भगवती, विनायक, हनुमान जी और माता अन्नपूर्णा के होंगे. ये सारे मंदिर परकोटे में ही बनाए जाएंगे जो भारत के मंदिर निर्माण की पंचायतन परंपरा का हिस्सा होंगे. ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि मंदिर के परकोटे के बाहर भी सात और मंदिरों का निर्माण होगा. मंदिर प्रांगण में जटायु की मूर्ति भी स्थापित की गई है. मंदिर के हरेक खंभे और हर दीवार पर नक़्क़ाशी की जा रही है. चूंकि प्राण प्रतिष्ठा में अब 25 दिन बाकी है, इसलिए काम में तेजी लाई गई है. इस वक्त चार हजार मजदूर दिन रात तीन शिफ्ट में चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं. नृपेंद्र मिश्र ने बताय़ा कि मंदिर बनाने का काम आसान नहीं था. जब सरकार ने ट्रस्ट का गठन किया और मंदिर निर्माण के लिए पहली मीटिंग हुई, तो पता चला कि जिस जगह पर मंदिर बनना है, वो ज़मीन सख़्त नहीं है. आज जहां मंदिर बन रहा है, पहले वहां सरयू नदी बहा करती थी. ऐेसे में मंदिर की नींव मजबूत नहीं होती. रामलला का यह मंदिर जब पूरी तरह बन कर तैयार हो जाएगा तो ये दुनिया का सबसे खूबसूरत, भव्य और दिव्य मंदिर होगा. यह पूरी दुनिया के रामभक्तों की आस्था का केन्द्र होगा, भक्ति और शक्ति का प्रतीक होगा, सनातन की अनंत और अमिट परंपराओं का वाहक होगा. तमाम देशों से लोग अपनी श्रद्धा के हिसाब से उपहार भेज रहे हैं. कंबोडिया, श्रीलंका, मॉरीसस, सूरीनाम से लेकर नेपाल और भूटान से रामलला के लिए उपहार भेजे जा रहे हैं. नेपाल में जनकपुर के लोग खुद को माता सीता का परिवार मानते हैं. जनकपुर से रामलला की मूर्ति को स्नान कराने के लिए तीस पवित्र नदियों का जल, वस्त्र, आभूषण और मेवा उपहार स्वरूप भेजे गए हैं.. जनकपुर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन दीपोत्सव मनाया जाएगा. प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ के लिए जोधपुर से देसी घी भेजा गया है, हल्दी कंबोडिया से आई है. पुणे की महिलाएं रामलला को पहनाने के लिए सोने के धागों से कढ़ाई किये गये वस्त्र भेज रही हैं. मुझे याद है जब 1992 में कार सेवा शुरू हुई थी, उस वक्त देशभर में घर घर से राम शिलाएं अयोध्या के लिए निकली थीं. वैसा ही सहयोग अब फिर दिखने लगा है. लेकिन उस वक्त के माहौल और आज के वातावरण में अंतर है. उस वक्त आंदोलन की शुरूआत थी, अनिश्चितता थी, माहौल में गर्मी थी, विद्वेष का भाव था, लोगों में भक्ति के साथ साथ गुस्सा था लेकिन आज आंदोलन की परिणति की वेला है, एक नई शुरूआत की घड़ी है. अब कोई अनिश्चितता नहीं है, कोई विद्वेष नहीं है. अब सिर्फ भक्ति है, शान्ति है, सद्भाव है, ये बड़ा फर्क है. उस वक्त भी लोग भक्ति रस में डूबे थे. आज भी भक्ति में भाव विभोर हैं. उस वक्त भी गांव-गांव से, घर-घर से रामशिलाएं आ रही थी. आज भी घर-घऱ से राममंदिर के लिए सहयोग और समपर्ण का भाव है, उपहार आ रहे हैं. दक्षिण में राम मंदिर के दरवाजे बन रहे हैं, गुजरात के शिल्पकार है, उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक के मूर्तिकार और मजदूर है. पूरे देश के लोगों का दान है. मुस्लिम भाइयों ने भी मंदिर के लिए दिल खोलकर दान दिया है. ये प्रभु राम की सार्वभौमिकता का प्रमाण है. अयोध्या में बन रहा राम मंदिर देश की एकता का प्रतीक है. इसलिए प्राण प्रतिष्ठा के इस समारोह को उसी भावना से लेना चाहिए. लेकिन दुख की बात है कि कुछ नेता, कुछ पार्टियों इस मौके पर भी राजनीति कर रही है. कांग्रेस के नेताओं को रामभक्ति में डूबे लोग पसंद नहीं आ रहे हैं. कांग्रेस के नेता सैम पित्रोदा ने
कहा कि राम मंदिर से देश का भला नहीं होगा, इससे आधुनिक भारत को कुछ नहीं मिलेगा, मंदिर बनने से महंगाई, बेरोजगारी या प्रदूषण खत्म नहीं हो जाएगा. इतनी भूमिका बांधने के बाद सैम का असली दर्द सामने आया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मंदिर मंदिर क्यों घूमते रहते हैं, प्रधानमंत्री सारा काम छोड़कर धर्म के काम में लगे रहते हैं, ये सही नहीं है. सैम पित्रोदा ने देश के लोगों से कहा कि अब ये तय करने का वक्त आ गया है कि राम मंदिर चाहिए या रोजगार. सैम पित्रोदा एक जमाने में राजीव गांधी के बहुत करीबी हुआ करते थे. आज कल राहुल गांधी के करीबी हैं, उनके सलाहकार हैं, इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. राहुल के सारे विदेशी दौरे सैम ही करवाते हैं. असल में सैम की समस्या राम मंदिर से नहीं है. उनकी समस्या है कि राम मंदिर की निर्माण का श्रेय नरेंद्र मोदी को मिल रहा है. सैम पित्रौदा भूल गए कि जब राजीव गाँधी ने राम मंदिर का ताला खुलवाया था तो उन्हें भी इसका श्रेय मिला था. अब मोदी के प्रयास से अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर मिल रहा है, तो मोदी को चुनाव में फायदा तो होगा. पर सैम पित्रोदा से कोई ये पूछे कि अगर मंदिर में जाने से तरक्की रुकती है, अगर नेताओं का मंदिर जाना गुनाह है, तो चुनाव से पहले राहुल गांधी जनेऊ पहनकर मंदिर-मंदिर क्यों जाते हैं ? असल में सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के लिए पहली बार मुश्किल खड़ी नही की है. ये वही सैम पित्रोदा हैं जिन्होंने 1984 के सिख विरोधी दगों के बारे में पूछे जाने पर कहा था कि “हुआ सो हुआ”, इसके बाद कांग्रेस मुश्किल में फंसी. सैम को माफी मांगनी पड़ी. फिर पुलावामा में हमला हुआ, भारत ने बालाकोट पर एयर स्ट्राइक की, तो सैम ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई ठीक नहीं, पुलवामा आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं. सैम पित्रोदा ने 26/11 के मुंबई हमले में भी पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी थी. और अब सैम राम मंदिर पर सवाल उठा रहे हैं, रामभक्ति को गुनाह बता रहे हैं. मुझे लगता है कि ये सैम पित्रोदा की नासमझी है, नादानी है. न वो इस देश को जानते हैं, न इस देश के मिज़ाज को जानते हैं, न इस देश की भक्ति की शक्ति को पहचानते हैं. इसीलिए उन्होंने प्रभु राम के बारे में, राम मंदिर के बारे में ऐसी बात कही. सैम के बयान पर कांग्रेस की खामोशी भी हैरान करने वाली है और ये खामोशी कांग्रेस को मंहगी पड़ सकती है.
बृज भूषण को कैसे भारतीय कुश्ती जगत छोड़ने पर मजबूर किया गया
बृज भूषण शरण सिंह को आखिरकार झुकना पड़ा. भारतीय कुश्ती संघ से उनका दबदबा खत्म हुआ. इसे देखकर देश के हर खिलाड़ी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति विश्वास बढ़ेगा. बृजभूषण की दबंगई का हवा होना देश के लिए कुश्ती का मेडल जीतने वाली बहादुर बेटियों के आंसुओं का जवाब है, कुश्ती पर उनके कर्ज का हिसाब है. देश का नाम रौशन करने वाली बेटियों को रूलाने वाले जो बृजभूषण शरण सिंह चार दिन पहले कह रहे थे कि दबदबा था और दबदबा कायम रहेगा, वही बृजभूषण कह रहे थे कि उस बयान में अंहकार था, गड़बड़ हो गई, गलती हो गई. बृजभूषण के चेले संजय सिंह WFI के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद बोल रहे थे कि बृजभूषण भारतीय कुश्ती की आत्मा है, उनके मार्गदर्शन में काम होगा. लेकिन रविवार को बृजभूषण ने कहा कि उनका कुश्ती और कुश्ती संघ से अब कोई वास्ता नहीं हैं, वो कुश्ती से पूरी तरह से दूर हो चुके हैं, अब संजय सिंह को जो करना है, करें, सरकार से बात करनी है, करें, कोर्ट जाना है, जाएं. जिस दिन बृजभूषण ने कहा था कि दबदबा कायम रहेगा, उसी दिन मैंने कहा था कि वक्त बदलते देर नहीं लगती, ये अहंकार ज्यादा वक्त नहीं रहेगा, बेटियों के आंसू बेकार नहीं जाएंगे. उसी की तस्वीर रविवार को सामने आई. बृजभूषण का हृदय परिवर्तन क्यों हुआ? उन्हें अपनी गलती का पछतावा हुआ या कराया गया है? उन्होंने कुश्ती संघ से दूरी बनाई या उन्हें दूर करवाया गया? 48 घंटे में ऐसा क्या हुआ जिसने बृजभूषण के दबदबे की हवा निकाल दी? मैं आपको बताता दूं कि बृजभूषण शरण सिंह के तेवर क्यों बदले. पिछले 48 घंटे में क्या क्या हुआ, जिससे बृजभूषण की सारी हेकड़ी निकल गई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का निर्देश मिलने के बाद बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने बृजभूषण शरण सिंह को बुलाया. नड्डा ने बृजभूषण से पूछा कि आखिर वादा करने के बाद भी कुश्ती संघ में दखलंदाजी क्यों कर रहे हैं. उन्होंने WFI के चुनाव में सक्रिय भूमिका क्यों निभाई, और फिर नतीजे आने के बाद बेहूदा बयानबाजी क्यों की? बृजभूषण के पास कोई जवाब नहीं था. इसके बाद नड्डा ने साफ शब्दों में बता दिया कि अब कुश्ती संघ में उनकी दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, अब वो कुश्ती संघ से दूर रहेंगे, WFI का नाम भी नहीं लेंगे, अगर उन्होंने इस बार वादाखिलाफी की, तो उनके खिलाफ पार्टी कार्रवाई करेगी. खेल मंत्रालय को रविवार को ही बृजभूषण के चेलों के खिलाफ सख्त एक्शन का निर्देश मिल चुका था. मंत्रालय ने WFI की नई फेडरेशन को सस्पेंड कर दिया, फेडरेशन के अध्यक्ष संजय सिंह जो बृजभूषण शरण सिंह के चहेते हैं, उन्हें निलम्बित कर दिया. WFI का कामकाज देखने की जिम्मेदारी फिलहाल भारतीय ओलंपिक एसोशिएशन को दे दी. इसके बाद बृजभूषण को समझ आ गया कि अब पानी सिर से ऊपर से निकल चुका है, अगर अब भी वो दबदबा बनाए रखने के चक्कर में पड़े, तो डूबना तय है. इसलिए बृजभूषण ने WFI से दूरी बनाने में ही भलाई समझी. सरकार ने WFI के पदाधिकारियों को फिलहाल सस्पेंड करने का जो फैसला किया है, उससे साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट कुछ हद तक संतुष्ट हैं. साक्षी मलिक ने संकेत दिया है कि वो अपने फैसले पर फिर से विचार करेगी. साक्षी मलिक ने कहा कि उनकी लड़ाई कभी खेल मंत्रालय या सरकार के खिलाफ नहीं थी. उन्होंने बेटियों का सम्मान बचाने के लिए बृजभूषण के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था, वो लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री ने 48 घंटे के अंदर एक्शन लिया. कुश्ती से बृजभूषण शरण सिंह के दबदबे को खत्म किया. कुश्ती की चैंपियन बेटियों को विश्वास दिया. सबको संदेश दिया कि कुश्ती में किसी दबंग की मनमानी नहीं चलने दी जाएगी. पहलवानों को संदेश दिया कि विनेश और साक्षी के आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे. बजरंग पुनिया का संघर्ष बेकार नहीं जाएगा. बृजभूषण को लगता था कि वो यूपी में 4-5 सीटों पर हार जीत का असर डाल सकते हैं. चुनाव सिर पर हैं, इसलिए वो जो चाहे करें, उन्हें कोई कुछ नहीं कह सकता. उन्हें भी संदेश मिल गया कि जे पी नड्डा ऐसे अध्यक्ष नहीं है जो इन धमकियों से डर जाएं. ये सही है कि बृजभूषण के दादागिरी भरे बयान के बाद, साक्षी मलिक के आंखों में आंसू भरकर कुश्ती छोड़ने के ऐलान के बाद, कुश्ती खेलने और देखने वालों में निराशा का माहौल था. बजरंग पुनिया ने भी जब पद्मश्री लौटाने का ऐलान किया तो वो भी हताशा में लिया गया फैसला था. खेल मंत्रालय ने जब कुश्ती संघ की गतिविधियों पर रोक लगाई तो पासा पलट गया. जे पी नड्डा ने बृजभूषण शरण सिंह पर जो लगाम लगाई, उससे बाजी पलट गई, पहलवानों में भरोसा पैदा हुआ. पर कुश्ती संघ के संजय सिंह बृजभूषण के चेले हैं. संजय सिंह अभी भी कोशिश में लगे हैं. कभी कहते हैं वो बृजभूषण के रिश्तेदार नहीं हैं, कभी कहते हैं वो सरकार से बात करेंगें, कभी कहते हैं वो कोर्ट जाएंगे, इसलिए अभी सावधान रहने की ज़रुरत है. कुश्ती संघ को दबंगों से मुक्त कराना आसान काम नहीं है. कुश्ती लड़ने की ललक रखने वाली बहादुर बेटियों को भरोसा दिलाना तो और भी मुश्किल है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कारण एक उम्मीद जगी है. आशा की किरण दिखाई दी है. हमें भरोसा करना चाहिए कि कुश्ती लड़ने वालों को अब अपने हक के लिए सड़क पर उतरने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. विनेश, साक्षी और बजरंग जैसे पहलवान जिन्होंने हिम्मत दिखाई, जोखिम उठायी, मुझे उम्मीद है कि अब उन्हें किसी राजनेता की शरण में जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. कुश्ती का पूरा मसला राजनीति से जितना दूर रहे, उतना अच्छा. सबसे ज्यादा तारीफ़ मैं उन महिला पहलवानों की हिम्मत की करुंगा, जिन्होंने ज़ुल्म के खिलाफ पुलिस में शिकायत लिखाई, और तमाम तरह के दबावों के बावजूद अपनी बात पर डटी हुई हैं. इन्हीं के कारण आज ये दिन आया कि बृजभूषण को कुश्ती से तौबा करनी पड़ी. मुझे उम्मीद है कि चैंपियन बेटियों के हक की ये लड़ाई जल्द ही एक निर्णायक मोड़ तक पहुंचेगी.
HOW BRIJ BHUSHAN WAS FORCED TO QUIT WRESTLING
The sheer arrogance of former Wrestling Federation chief Brij Bhushan Sharan Singh, displayed brazenly after the election of his acolytes in WFI elections, was nowhere to be seen after he reportedly got a severe dressing-down from BJP president J P Nadda on Sunday. Reports say, Nadda, on getting directive from Prime Minister Narendra Modi, summoned Singh and demanded to know why he was interfering in WFI activity, despite promising to stay away. Nadda reportedly asked him bluntly why he played an active role in WFI office-bearer elections, by reneging on his promise, and why after the results were out, he publicly bragged about his ‘dabdaba’ (dominance) in Indian wrestling. Reports say, Brij Bhushan had no cogent reply to give. Nadda reportedly told him that his interference in Indian wrestling would no longer be tolerated and he must stay away from Wrestling Federation of India. Singh was reportedly warned that if he again reneged on his promise, the party would take action against him. Already, the Sports Ministry has suspended the newly elected WFI body, and has asked the Indian Olympic Association to set up an ad hoc committee to manage and execute the roles and functions of WFI. The newly elected WFI body, packed with Singh’s acolytes, had announced holding of Under-15 and Under-20 nationals in Singh’s hometown, and this was ticked off by the Sports Ministry as a step taken “without following due procedure and not giving sufficient notice to wrestlers” for preparations. On Sunday, posters praising Singh at his residence were hurriedly pulled down. Brij Bhushan Sharan Singh said, “I have now retired (from wrestling). I have a lot of other work to do like (Lok Sabha) elections. ..I have nothing to do with wrestling federation now … the issue of WFI is a matter to be sorted out between the office-bearers and the government.” Singh admitted that some of the ‘dabdaba’ posters displayed at his residence smacked of “arrogance”. The former WFI chief appears to have reconciled himself to the fact that his innings in wrestling federation is over, and if he still insisted on his ‘dabdaba’, his political future was bound to take a low dip. I am happy that the Prime Minister took action within 48 hours and showed Brij Bhushan Sharan Singh his place. In one single stroke, he ended Singh’s tight grip over Indian wrestling. The message has gone out that Brij Bhushan’s ‘dabdaba’ (dominance) over Indian wrestling is now over and the brave champion daughters of Indian wrestling will now get their due. The wrestlers have been given the message that the tears of medal winners Sakshi Malik and Vinesh Phogat, and the struggle of Bajrang Punia will not go waste. Brij Bhushan was under the illusion that any action taken against him could adversely affect BJP’s chances in four to five Lok Sabha constituencies in eastern UP. Already, general elections are due any time and Singh was smug in his belief that nobody would dare take action against him. Singh has now got the right message that J P Nadda is not a party president who will wilt in the face of threats. It is true that an atmosphere of despondence and sadness had descended on Indian wrestling after people watched a weeping Sakshi Malik announcing her retirement when the former WFI chief bragged about his ‘dabdaba’. When Bajrang Punia decided to return his Padma Shri to the Prime Minister, it was a decision taken in desperation. The tables were turned on Singh when the Sports Ministry suspended all activities of the newly elected WFI body and Nadda put the leash on Brij Bhushan. These measures have instilled trust and confidence among the Indian wrestlers. However, Sanjay Singh, who has been elected WFI president, and is now suspended, continues to be Singh’s acolyte. He is still trying to regain lost ground. Sanjay Singh at times claims he is not Brij Bhushan’s relative, and sometimes he threatens to go to court against the Sports Ministry order. One needs to be on alert. Freeing the Wrestling Federation from the clutches of ‘dabang’ (strongmen) is not an easy job. It is all the more difficult to instil trust in the minds of our brave daughters who want to make a mark in the field of world wrestling. Prime Minister Modi has provided a ray of hope. We should hope that the wrestlers might not have to hit the roads again to demand their rights. Vinesh, Sakshi and Bajrang have shown courage and took risks. I hope they will not have to seek the help of politicians again. The more Indian wrestling sport is kept away from politics, the better. My fulsome praise are for those women wrestlers, who had the courage to go to the police and file their complaints against Brij Bhushan. They remained steadfast despite all sorts of pressures and threats. It is because of their perseverance and courage that Brij Bhushan had to bid goodbye to wrestling. I hope the struggle of our champion daughters will surely reach a decisive conclusion.
विपक्ष: जंतर मंतर पर एकता, राज्यों में खींचतान
दिल्ली में शुक्रवार को विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता एक बार फिर इकट्ठा हुए. जंतर-मंतर पर प्रोटेस्ट करके एक बार फिर एकता दिखाने की कोशिश की, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विपक्ष की आवाज को दबाने, लोकतंत्र को खत्म करने और तानाशाही जैसे इल्जाम लगाए लेकिन जब दिल्ली में मोदी विरोधी मोर्चे के नेता मंच पर हाथ में हाथ डालकर बैठे थे, उस वक्त पटना, मुंबई और लखनऊ में इन्हीं पार्टियों के नेताओं के बीच खींचतान चल रही थी, प्रधानमंत्री पद के चेहरे को लेकर, सीटों के बंटवारे को लेकर, कौन किसके साथ होगा इसको लेकर. सब अपने अपने दावे करने में लगे थे. जैसे शुक्रवार को अचानक नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अपने घर पर बुलाया. इसके थोड़ी ही देर बाद नीतीश के करीबी जेडी-यू विधायक गोपाल मंडल ने कहा कि ‘ये खरगे वरगे कौन हैं? उन्हें कौन जानता है? नीतीश कुमार की बदौलत सभी विरोधी दलों के नेता एक मंच पर आए हैं, नीतीश ने Fevicol का काम किया है, नीतीश को देश भर में सब जानते हैं, इसलिए INDI अलायंस की तरफ से नीतीश को ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए… खरगे तो PM मैटेरियल नहीं हैं’. इसके बाद नीतीश की पार्टी के एक और नेता संजय झा ने कहा, ‘सबसे बेहतर उम्मीदवार नीतीश ही होंगे’. वहीं महाराष्ट्र में संजय राउत ने एलान कर दिया कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना महाराष्ट्र में 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, बाकी बची सीटों पर कांग्रेस और NCP तय कर लें उन्हें कितनी-कितनी सीटों पर लड़ना है. यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बड़ी खींचतान चल रही है, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, मायावती को गठबंधन में शामिल करना चाहिए, इससे अखिलेश यादव नाराज हैं.
बिहार
बिहार में JDU-RJD का कांग्रेस के साथ झगड़ा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और सीटों के बंटवारे दोनों मुद्दों पर है. एक-एक करके अब जेडीयू के नेता खुलकर नीतीश कुमार के नाम को आगे बढ़ा रहे हैं, और सिर्फ आगे नहीं बढ़ा रहे हैं, खरगे और कांग्रेस के खिलाफ भी बोल रहे हैं.. JDU के विधायक गोपाल मंडल ने कहा कि ” इंडिया गठबंधन जो नाम पड़ा, नीतीश कुमार ने संयोजक का काम किया, नीतीश कुमार चेहरा है..निर्विवादित है, सब कुछ है.. इनको ही प्रधानमंत्री चुनना चाहिए.. पब्लिक नहीं मानेगी..ये खरगे-फरगे का नाम नहीं जानता है..अभी नाम बोले हैं तो हम सुने हैं, जानते भी नहीं थे कि वो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं खरगे जी. आप बोले तो हम जान गए..उनको कोई नहीं जानता है. आम पब्लिक नहीं जानता है. आम पब्लिक नीतीश कुमार को जानता है. नीतीश कुमार प्राइम मिनिस्टर बनेंगे. सब कोई नीतीश कुमार को जानता है. पूरा हिंदुस्तान नीतीश कुमार को जानता है, ममता बनर्जी बोल दी और कोई बोल दिया, इसलिए बोल दिया. साथ ही में बैठे-उठे हैं. .मुख्यमंत्री को कोई तकलीफ नहीं हैं, वो निर्विवादित आदमी हैं..उनको प्रधानमंत्री बनाया जाय ये अभियान है..लालू का भी अभियान है..भाजपा को उखाड़ फेंको..भाजपा को भगाओ.” गोपाल मंडल गोपालपुर सीट से JDU के विधायक है. नीतीश कुमार के चहेते हैं. ये वही गोपाल मंडल है जो रिवॉल्वर लहराते हुए अस्पताल में जाते हैं, और सवाल पूछा जाता है तो कहते हैं कि रिवॉलवर पायजामा की जेब में रखने के लिए थोड़े है, कोई भी हमला कर सकता है, इसलिए हमेशा हाथ में रखते हैं. गोपाल मंडल बिहार के दबंग विधायक है. जेडीयू के एक और बड़े नेता संजय झा ने भी कहा कि नीतीश कुमार ने सबको एक साथ बैठाया, नीतीश कुमार ही गठबंधन के सूत्रधार हैं, इसलिए उन्हें संयोजक बनाया जाना चाहिए, प्रधानमंत्री का चेहरा कौन बनेगा, कौन नहीं, इसका फैसला तो बाद में हो जाएगा, इस वक्त तो प्राथमिकता ये है कि सीटों का बंटवारा हो जाए.” शुक्रवार को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में आधे घंटे की मीटिंग हुई. मीटिंग के बाद तेजस्वी ने कहा कि बात एलायन्स के बारे में हुई , सब इस बात पर सहमत हैं कि सीट बंटवारे को लेकर जितनी जल्दी फैसला हो जाए उतना बेहतर है. तेजस्वी ने कहा कि गठबंधन का मुख्य मकसद नरेंद्र मोदी को हराना है, बाकी बातें गौण हैं. ये तो सही है कि प्रधानमंत्री पद के लिए खरगे का नाम आगे बढ़ाने से नीतीश भी नाराज हैं और लालू यादव भी परेशान हैं. जहां तक सीट शेयरिंग का सवाल है तो पता ये लगा है कि ये मामला सुलझने में भी वक्त लगेगा क्योंकि जेडीयू 20 सीट मांग रहा है, आरजेडी 18 सीटें पर दावेदारी कर रही है, कांग्रेस 10 सीटें मांग रही है और वामपंथी पार्टियां 5 सीट चाहती हैं. लेकिन बिहार में कुल चालीस सीटें हैं. लालू JDU को RJD से ज्यादा सीटें देने को तैयार हैं क्योंकि उनकी दिलचस्पी फिलहाल दिल्ली की बजाय बिहार में हैं लेकिन लालू भी कांग्रेस औऱ लैफ्ट के साथ रियासत बरतने को तैयार नहीं हैं. अगर JDU ने 20 सीटें ले लीं और RJD ने 18 तो कांग्रेस और लैफ्ट के लिए कुल मिलाकर दो सीटें बचेंगी, इसीलिए मामला पेचीदा है. लालू चाहते हैं कि नीतीश कुमार दिल्ली की तरफ देंखे. बिहार की कुर्सी तेजस्वी के लिए खाली करें और ये काम लोकसभा चुनाव से पहले हो जाए तो बेहतर .इसीलिए शुक्रवार को जब नीतीश ने तेजस्वी को बुलिया तो मंत्रिमंडल में बदलाव की भी चर्चा शुरू हो गई. .वैसे भी बीजेपी के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि लालू ने उनसे फ्लाइट में कहा कि अब तेजस्वी को लाए बगैर बिहार का भला नहीं होगा.
बिहार की राजनीति में क्या हो रहा है ये कोई सीक्रेट नहीं है. नीतीश कुमार जानते हैं कि अब बिहार में उनकी पारी खत्म हो चुकी है, वो किसी तरह समय काट रहे हैं. उन्होंने बड़े जोश से मोदी-विरोधी पार्टियों को इकट्ठा किया था.वो इस गठबंधन के नेता बनना चाहते थे लेकिन पहले कांग्रेस ने राहुल गांधी के लिए उनको आउट कर दिया, फिर ममता ने खरगे का नाम चलाकर रही सही कसर भी पूरी कर दी. दूसरी तरफ लालू की प्रबल इच्छा है कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का उनका सपना जल्दी पूरा हो, इसके लिए जरूरी है कि नीतीश बिहार से बाहर निकलें. इस चक्कर में नीतीश कुमार अधर में लटके हुए हैं – न इधर के रहे, ना उधर के.
महाराष्ट्र
झगड़ा महाराष्ट्र में भी है. महाराष्ट्र में बिहार की तरफ दबे छुपे बात नहीं हो रही है.वहां उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने साफ साफ कह दिया वो 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. महाराष्ट्र में कुल 48 सीटें हैं. अब बची 25 , यानि कांग्रेस और NCP आपस में 25 सीटें बांट ले. संजय राउत ने कहा कि शिवसेना 23 सीटों पर शुरू से चुनाव लड़ती आई है, इसलिए इस बार भी 25 सीटों पर लडेगी. संजय राउत कह रहे हैं कि सीट बंटवारे पर महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं से बात नहीं होगी, सीधे कांग्रेस हाईकमान से चर्चा होगी. लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष नसीम खान ने कहा कि इतनी जल्दी सीटों की संख्या को लेकर बात करना ठीक नहीं है, विनेबिलिटी के हिसाब से सीटों का बंटवारा हो और सारी पार्टियां एक-दूसरे को समर्थन करें. शरद पवार की एनसीपी की नेता विद्या चव्हाण ने कहा कि सीटों की संख्या को प्रतिष्ठा का विषय बनाने की जरूरत नहीं है, अलायंस में शामिल पार्टियों का मकसद ये होना चाहिए बीजेपी और मोदी को कैसे हराया जाए. संजय राउत ने 23 सीटों पर लड़ने की बात कहते हुए ये कहा था कि शिवसेना हमेशा से 23 सीटों पर लड़ती आई है और उनकी बात सही भी है. 2019 से पहले जब शिवसेना NDA में थी, उस वक्त और उसके बाद 2019 के चुनाव में भी शिवसेना ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और 18 सीटों पर जीती जबकि कांग्रेस 25 और एनसीपी 19 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. अब शिवसेना और एनसीपी दोनों ही पार्टियां टूट चुकी हैं. शिवेसना का एक गुट एकनाथ शिंदे के साथ है और एनसीपी के एक गुट पर अजित पवार को कब्जा है. कांग्रेस को लगता है कि वो अब ज्यादा मजबूत स्थिति में है. उसकी बार्गेनिंग पावर ज्यादा है लेकिन उद्धव ठाकरे और शरद पवार अब उल्टा कांग्रेस पर प्रैशर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस इस प्रैशर में बहुत ज्यादा एडजस्ट करेगी, ये मुश्किल लगता है.
उत्तर प्रदेश
यही हाल उत्तर प्रदेश में है. यूपी में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है. पता ये लगा है कि अखिलेश यादव ने यूपी की 80 में से 76 सीटों पर दावा कर दिया, कुल मिलाकर चार सीटें बचती हैं. इनमें से दो RLD को, और रायबरेली और अमेठी, दो सीटें कांग्रेस के लिए बचती हैं. समाजवादी पार्टी के इस रुख के जबाव में कांग्रेस ने नई चाल चली है. यूपी कांग्रेस के नेताओं ने ये कहना शुरू कर दिया है कि गठबंधन में मायावती को भी आना चाहिए क्योंकि मायावती के बगैर यूपी में बीजेपी का मुकाबला मुश्किल है. पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था, नतीजा सबने देखा. दो दिन पहले एलायन्स की मीटिंग में कांग्रेस ने ये प्रस्ताव रखा था, लेकिन रामगोपाल यादव ने साफ कह दिया था कि अगर मायावती गठबंधन में आती हैं तो समाजवादी पार्टी एलान्यस का हिस्सा नहीं रहेगी. शुक्रवार को शिवपाल यादव ने कहा कि मायावती तो बीजेपी की मदद कर रही हैं, पर्दे के पीछे वो बीजेपी के साथ हैं, पहले वो बीजेपी से दूरी बनाएं, इसके बाद बाकी बातें होंगी. आज समाजवादी पार्टी मायावती के नाम से भाग रही है लेकिन सबको पता है कि पिछला लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव ने मायावती के साथ मिलकर ही लड़ा था. इस अलायन्स से मायावती को फायदा हुआ और समाजवादी पार्टी को नुकसान. इसलिए अब अखिलेश मायावती के साथ एलायन्स नहीं चाहते. दूसरी बात ये है कि कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस को वोट ट्रांसफर नहीं करा सकती. BSP का वोट मायावती की कॉल पर ट्रांसफर हो सकता है, इसलिए एलायन्स में मायावती को शामिल करना चाहिए. अगर समाजवादी कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने को तैयार नहीं होती और कांग्रेस भी अपने रूख पर अड़ी रही तो फिर वैसा ही होगा जैसा मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हुआ था. विरोधी दलों के एलायन्स में बिहार, महाराष्ट्र, यूपी के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और पंजाब में भी सीटों को लेकर झगड़ा है लेकिन दिल्ली में इन पार्टियों के नेता एकजुटता दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
जंतर मंतर पर एकता
शुक्रवार को जंतर-मंतर पर विपक्षी गठबंधन की सभी पार्टियों के नेता पहुंचे, सबने मंच पर एकजुटता दिखाई. विपक्ष के 146 सासंदों के सस्पेंशन के खिलाफ ये प्रदर्शन था. जंतर मंतर प्रोटेस्ट से दो बातें सामने आईं. एक थी, सांसदों का निलम्बन. इस मामले में एक बात जानना जरूरी है. जब संसद नये भवन में शिफ्ट हुई तो सारी पार्टियों के नेताओं ने स्पीकर और चेयरमैन के सामने वादा किया था कि अब Decorum का पालन किया जाएगा. सबने माना कि 75 साल में जो हुआ सो हुआ, अब नई बिल्डिंग में सांसद वेल में नहीं आएंगे और प्लेकार्ड लेकर तो बिलकुल ही कोई नहीं आएगा. सब इस बात पर सहमत हुए कि जिसको प्रोटेस्ट करना होगा वो अपनी सीट पर खड़े होकर शोर मचाएगा. सभी नेताओं ने ये भी माना कि अगर कोई एमपी इस सहमति का उल्लंघन करेगा तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. इसके बाद भी अगर राजनीतिक दलों के नेता अपनी बात से मुकर जाएं और मुकरने के बाद एक्शन न हो, तो फिर इन सब मीटिंग्स का, इन सब संकल्पों का क्या मतलब ? दूसरी बात संसद की सुरक्षा से जुड़ी है. ये बात सही है कि संसद की सुरक्षा में भारी चूक हुई है, कोई भी अनहोनी हो सकती थी, ये पूरी तरह सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन सुरक्षा में सेंध लगाने वाली हरकत को बेरोजगारी से जोड़ना कैसे जायज हो सकता है? उदाहरण के तौर पर लोकसभा में कूदने वाला एक लड़का 12वीं पास है. उसकी मां ने बताया कि वो नौकरी नहीं करना चाहता था, वो ई-रिक्शा चलाता था. तो ये बेरोजगारी से जुड़ा मसला कैसे हो सकता है? आज जो जानकारी सामने आई, उसके मुताबिक संसद में धुआं उडाने वाले असल में राजनीतिक दल बनाना चाहते थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके खिलाफ UAPA कानून लगाया जाएगा. वो तो ये सोचकर संसद में कूदे थे कि 4-6 महीने में जमानत मिल जाएगी, फिर वो हीरो बनकर बाहर निकलेंगे. उन्हें ये सपना दिखाया गया था कि फिर वो बड़े नेता बन जाएंगे. हो सकता है ये जानकारी मिलने के बाद अब राहुल गांधी को कोई ये समझा दे कि ये वो नौजवान नहीं हैं जिनकी किसी ने नौकरी छीन ली. ये तो सियासत की दुनिया में काम ढूंढने आए थे और इस चक्कर में इन्होंने गंभीर अपराध कर दिया.
BEHIND FACADE OF UNITY, RUMBLINGS IN OPPOSITION BLOC
The INDIA alliance of opposition parties staged a ‘Save Democracy’ protest at Delhi’s Jantar Mantar on Friday protesting mass suspension of 146 MPs. It was attended by Congress leaders Rahul Gandhi, Mallikarjun Kharge, NCP chief Sharad Pawar and other opposition leaders. It was a show of opposition unity. But in Patna, Lucknow and Mumbai, there are already rumblings in the opposition bloc over the choice of PM candidate and sharing of seats.
BIHAR
Bihar CM Nitish Kumar had a brief 30-minute meeting on Friday with his deputy CM Tejashwi Yadav, and soon after JD-U ‘bahubali’ leader Gopal Mandal, said to be close to Nitish, publicly opposed projection of Kharge as PM candidate. Mandal said, “The common public do not know who Kharge is….Nitish Kumar acted as ‘Fevicol’ in bringing together all opposition leaders on a single platform, his face is known to all, he should be projected as PM, otherwise public will not accept any other name. Entire India knows who is Nitish Kumar. Our chief minister is the undisputed leader. It is Lalu’s mission to make him PM. We will uproot BJP.” Another JD-U leader Sanjay Jha said, “Nitish Kumar will be the best choice. .. It was he who brought all parties together, he should be made the convenor. But the name of PM will be decided only after elections. Presently, the top priority is seat sharing.” RJD leader Tejashwi Yadav said the discussion with his CM was over seat sharing in the alliance. “The sooner the decision is taken, the better. Our main aim is to defeat Modi, other matters are secondary”, Tejashwi Yadav said. It is true that the floating of Kharge’s name as PM candidate by Mamata Banerjee and Arvind Kejriwal has made Nitish Kumar unhappy and Lalu Prasad Yadav is worried. Seat sharing in Bihar can face problems because JD-U is demanding 20 and RJD wants 18 seats. Congress wants 10 seats, and Left parties want to contest 5 seats. But Bihar has only 40 Lok Sabha seats. Lalu Yadav is unwilling to concede more seats to JD-U compared to his own party’s seats. Out of a total of 40 LS seats, if JD-U corners 20 and RJD 18, only two seats will be left for Congress and Left. The issue is really complicated. Lalu wants Nitish Kumar to shift to the Centre and vacate his chief minister seat for his son Tejashwi. He wants this to be done before the Lok Sabha elections. This led to intense speculations in Patna when Nitish called Tejashwi for a meeting. Already, BJP Union Minister Giriraj Singh has claimed that Lalu had told him on a flight that ‘conditions in Bihar will not improve unless Tejashwi is brought (as CM)’. Already, Rahul Gandhi has been pestering Nitish Kumar to induct two Congress ministers in his government. In Bihar politics, nothing remains a secret. Nitish Kumar knows that his innings in Bihar is now over, and he is biding his time. Several months ago, he was full of energy and had visited several state capitals to meet opposition chief ministers in order to bring anti-Modi opposition parties together. Nitish wanted to become the leader of a united opposition. But his plans ran aground when Congress sidelined him to make way for Rahul Gandhi, and Mamata Banerjee queered the pitch by floating Kharge’s name. On the other hand, it is Lalu Yadav’s strong ambition to realize his dream to see his son Tejashwi become the chief minister. For this, it is necessary that Nitish Kumar leaves Bihar, but as of now, Nitish’s fate hangs in balance. He is neither here, nor there. And the JD-U leaders are openly demanding projection of Nitish Kumar as PM candidate.
MAHARASHTRA
There is tussle in Maharashtra too. Shiv Sena (Uddhav Thackeray) has clearly said that it will contest 23 out of a total of 48 seats, and out of the remaining 25 seats, Congress and NCP will have to divide among themselves. Uddhav’s close aide Sanjay Raut said, his party had been contesting these 23 LS seats since the beginning. Raut said, he had met Congress chief Mallikarjun Kharge on Thursday, and that Uddhav and Aditya Thackeray had already spoken to Sonia and Rahul Gandhi. He was emphatic on Shiv Sena contesting 23 seats and also added that all talks over seat sharing will be held with the central Congress leadership, and not with the state unit. Maharashtra Congress working president Naseem Khan said, it is not proper to speak about number of seats so soon. “Seats should be distributed on the basis of winnability and all parties should support each other”, he said. NCP leader Vidya Chavan said, number of seats should not be made an issue of prestige, and the main aim should be to defeat BJP and Modi. Sanjay Raut is correct when he says that Shiv Sena had been contesting 23 LS seats in Maharashtra since the beginning. Shiv Sena was part of NDA and it had contested 23 seats in 2014 and 2019 elections. In 2019, it won 18 out of 23 seats it contested, while Congress had contested 25 and NCP had contested 19 seats at that time. Both Shiv Sena and NCP are now split. Eknath Shinde’s Shiv Sena and Ajit Pawar’s NCP are in NDA now. Congress feels it is in a stronger position now and has more bargaining power, but Uddhav and Sharad Pawar are trying to put more pressure on Congress. It seems difficult how Congress will adjust itself to such pressures.
UTTAR PRADESH
In Uttar Pradesh, Samajwadi Party, the dominant party in INDIA alliance, is unwilling to concede more seats to Congress. Reports say, Akhilesh Yadav’s party wants to contest 76 out of a total of 80 seats in UP. This leaves four seats – two for RLD in western UP, and two, (Amethi and Rae Bareli) for Congress. To counter this, Congress leaders in UP have started saying that Mayawati’s BSP should be included in the alliance. Their argument is that without BSP support, it will be difficult to give a tough fight to the BJP in UP. People have already seen the fate of SP-Congress alliance during assembly elections. UP Congress chief Ajay Rai said, the issue of inducting BSP into the alliance was discussed at the Delhi INDIA meet, but SP leader Ramgopal Yadav opposed it. He said, if Mayawati is taken into the alliance, Samajwadi Party will walk out of the opposition bloc. On Friday, Akhilesh’s uncle Shivpal Yadav said, Mayawati is helping BJP secretly, she should first stop doing this and then talks can take place. Samajwadi Party is opposing Mayawati, but in the 2019 Lok Sabha elections, Akhilesh Yadav’s and Mayawati’s parties had contested polls jointly. That alliance helped Mayawati but caused big damage to Samajwadi Party. This is the reason why Akhilesh does not want to ally with Mayawati now. Secondly, Congress leaders feel that Samajwadi Party cannot transfer its votes to Congress during elections, but BSP’s traditional votes can be transferred to Congress if Mayawati joins the bloc. If SP refuses to leave more seats for Congress in UP, and Congress sticks to its stand, a situation to that of MP assembly elections can arise. Already, there are tussles between INDIA bloc parties for seats in Jharkhand, West Bengal, Delhi and Punjab, the joint opposition protest at Jantar Mantar in Delhi notwithstanding.
JANTAR MANTAR PROTEST
Two issues emerged from Friday’s Jantar Mantar protest. One, mass suspension of opposition MPs. Why did it take place? Let me disclose. When Parliament shifted from its old Lutyens era building to the new complex, leaders of all political parties had promised Lok Sabha Speaker and Rajya Sabha chairman that they would surely maintain decorum in the new building. These leaders had then said that what happened for the last 75 years in the old building will not be repeated in the new complex. They had promised not to enter the well of the House and stage protest by holding placards inside the House. All parties agreed that if members had any grievances, they could stand near their seat and protest. All the parties had agreed that if members violated decorum, action will be taken against the members. If members themselves deliberately go back on their commitments, then what is the use of holding all-party meetings? Two, the issue relating to breach of Parliament security. It is a fact that there was a major breach in security and any big untoward incident could have taken place. It was the responsibility of the government to ensure security. But can one link this security breach issue with the issue of unemployment? Let me give one example. The youth who jumped into the Lok Sabha was a Class 12 pass out. His mother said, he did not want to do jobs, he drove an e-rickshaw. How can this be an unemployment issue, like Rahul Gandhi said at the Jantar Mantar protest? Fresh inputs that have come in course of police probe indicate that the group of youths who breached security, wanted to float a political party. They told investigators that they never expected that UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) will be slapped against them. They had hoped to get bail within 4-6 months after jumping inside the House, and come out as ‘heroes’. They were sold dreams of becoming a leader after committing this act. Hope, somebody should tell Rahul Gandhi that these youths are not those, whose jobs have been snatched away. They had intruded into Parliament in search of work in the world of politics. And, in this process, they committed a serious crime.
बृज भूषण को एक-न-एक दिन अपने किये की सज़ा ज़रूर मिलेगी
देश की बहादुर बेटियां फिर रोईं और आरोपी बृजभूषण शरण सिंह एक बार फिर ठहाके लगाकर हंसे. मेडल जीतने वाले चैम्पियन पहलवानों ने कहा कि वो हार गए. अब कुश्ती में आने वाली पीढियों को बेटियों के सम्मान की लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी. बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि “दबदबा था, दबदबा है, और दबदबा बना रहेगा”. आंखों मे आंसू लिए साक्षी मलिक ने कुश्ती की रिंग में अब कभी न उतरने का ऐलान किया और बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि भारतीय कुश्ती पर 11 महीने से चल रहा राहु काल खत्म हो गया, अब रिंग में उनके मुकाबले कोई नहीं. गुरुवार को भारतीय कुश्ती फेडरेशन WFI के चुनाव हुए. बृजभूषण शरण सिंह ने अपने सारे मोहरों को चुनाव जिता दिया – अध्यक्ष, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उपाध्क्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव और कार्यकारिणी के सदस्य, सभी पदों पर बृजभूषण शरण सिंह के लोग जीते. हालांकि दावा ये किया जा रहा था कि अब बृजभूषण का फेडरेशन से कोई लेना देना नहीं है. विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और तमाम महिला पहलवानों ने बृजभूषण पर लड़कियों के साथ जोर-जबरदस्ती करने, उनका यौन शोषण करने के इल्जाम लगाए थे. फेडरेशन में वित्तीय और दूसरी गड़बडियों के आरोप लगाए थे. दिल्ली के जंतर मंतर पर दो-दो बार खिलाड़ी धरने पर बैठे, खेल मंत्री ने कई दौर की बातचीत की. बृजभूषण के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. बीजेपी के बाहुबली सांसद को फेडरेशन और चुनाव से दूर रखने का भरोसा दिया गया. बृजभूषण और उनके परिवार के किसी सदस्य पर फेडरेशन का चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई लेकिन इसके बाद भी बृजभूषण बहादुर पहलवान बेटियों पर हंसते नजर आए और दावा किया कि 90 प्रतिशत वोट उनको मिले हैं. अब सवाल ये है कि क्या बृजभूषण सरकार से बड़े हो गए? क्या बेटियों का संघर्ष बेकार चला गया? क्या पहलवानों के आरोपों का कोई मतलब नहीं था? क्या दिल्ली पुलिस की चार्जशीट की कोई अहमियत नहीं? क्या मेडल जीतने वाली, देश का नाम रौशन करने वाली बेटियों के प्रति दिखाई गई सहानुभूति, उनसे किए गए वादे झूठे थे? चुनाव नतीजों का जश्न बृजभूषण के घर पर ही हुआ. चुनाव जीतने वाले पहले से बृजभूषण के घर पर मौजूद थे. WFI के अध्यक्ष पद के लिए संजय सिंह के खिलाफ राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता अनीता श्योराण खड़ी थीं लेकिन कुल 47 वोटों में से संजय सिंह को 40 वोट मिले और अनीता श्योराण को सिर्फ 7 वोट मिले. जैसे ही नतीजा आया, बृजभूषण के घर पर जम कर आतिशबाजी शुरू हो गई. बृज भूषण विजेता की तरह घर से बाहर निकले. संजय सिंह बृजभूषण के पीछे पीछे चल रहे थे. बाकी पदाधिकारी भी नेताजी के अगल बगल थे. जो जीते, उनके गले में कोई माला नहीं थी, उन पर किसी तरह के फूल नहीं बरसे. सारी मालाएं बृजभूषण के गले में थीं, फूल भी नेताजी पर बरस रहे थे. बाहर आते ही बृजभूषण ने व्यंग्यात्मक हंसी के साथ विक्ट्री का साइन दिखाया, मूंछों पर ताव दिया, और कहा कि दबदबा था, दबदबा है, और दबदबा रहेगा, दबदबा तो भगवान का दिया हुआ है. बृजभूषण जब डायलॉग मार रहे थे तब नए अध्यक्ष संजय सिंह नेताजी के डायलॉग की वाहवाही कर रहे थे. संजय सिंह ने कहा कि वो भले ही चुनाव जीते हैं लेकिन कुश्ती की आत्मा तो बृजभूषण ही हैं. बृजभूषण ने कहा कि अब कुश्ती में नई जान आएगी. बृजभूषण नारे लगवा कर, मीडिया के सामने शेखी बघारकर, विरोध करने वाले पहलवानों को अपनी ताकत का अहसास करवा कर घर में वापस चले गए. उधर, विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक टीवी पर बृजभूषण की बातें देख रहे थे, उनकी आंखों में आंसू थे. तीनों पहलवान काफी हिम्मत जुटाकर कैमरों के सामने आए, बोलने की बहुत कोशिश की लेकिन दो मिनट से ज्यादा कोई नहीं बोल पाया. सबने कहा कि अब और हिम्मत नहीं है, अब उम्मीद नहीं है, हम हार गए, पता नहीं हमारे देश में न्याय कहां मिलता है, सारे दरवाजे तो खटखटा लिए, अब कहां जाएं, जो आरोपी, गुनहगार हैं, वो जीत के ठहाके लगा रहे हैं, .हमारी बेबसी पर हंस रहे हैं, अब कुश्ती में लड़कियों का क्या होगा, वो नहीं जानते. साक्षी मलिक ने तो अपने जूते खोलकर टेबल पर रख दिए, रोते रोते बोलीं, अब कभी रिंग में नहीं उतरेंगी, कभी मैट पर दिखाई नहीं देंगी. इतना कहकर वह रोते हुए उठकर चली गईं. बृजभूषण ने जो कहा वो करके दिखा दिया. ये साबित कर दिया. कुश्ती संघ में दबदबा तो उनका ही रहेगा लेकिन आज देश के लिए मेडल जीतने वाली बेटियों के आंसू देखकर हर किसी का दिल रोया होगा. यौन शोषण का आरोपी बृजभूषण शरण सिंह का अट्टहास देखकर सबको सिस्टम की बेबसी पर गुस्सा आया होगा. बृजभूषण ने पहले ही कहा था, कुश्ती पर उनका दबदबा है और रहेगा, देश का नाम रौशन करने वाली पहलवान बेटियों से वादा किया गया था कि फेडरेशन को बृजभूषण के चंगुल से आजाद करा दिया जाएगा लेकिन चुनाव जीतने के बाद संजय सिंह अपने आका के घर पहुंचे, जीत का अहंकार बृजभूषण के चेहरे पर दिखा. उनकी तैयारी पूरी थी क्योंकि वोटर उनके थे, सिस्टम उनका था, जीतने वाला चेला उनका था. बृजभूषण छह बार के सांसद हैं, 50 से ज्यादा स्कूल कॉलेज चलाते हैं, कई बार जेल जा चुके हैं, बाहुबली हैं. उनका दावा है कि वो दबदबे से बीजेपी को चुनाव जिता सकते हैं. अगर उन्हें किनारे करने की कोशिश की गई तो वो समाजवादी पार्टी में जा सकते हैं. ये कारनामा वो पहले करके दिखा चुके हैं. महाबली बृजभूषण शरण सिंह मानते हैं कि उनके सामने धरने पर बैठने वाली लड़कियों की कोई हैसियत नहीं है. वह सोचते हैं कि ये चैम्पियन, पहलवान लड़कियां बीजेपी के किस काम की हैं, उनके पास ना वोट है, ना सपोर्ट है, इनके रोने-धोने से क्या होगा. लेकिन मुझे लगता है कि जीत के गुरूर में बृजभूषण शरण सिंह कुछ भूल रहे हैं. दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ जो चार्जशीट फाइल की है वो बहुत खतरनाक है. लड़कियों ने उन पर यौन शोषण के जो आरोप लगाए हैं वो बहुत गंभीर हैं. अगर वो ये सोचते हैं कि फेडरेशन का चुनाव जीतकर अपना दबदबा दिखाकर वो आरोप लगाने वाली पहलवानों को डरा देंगे, गवाहों को धमकाकर पलटवा देंगे तो वो गलतफहमी में हैं. फेडरेशन में बृजभूषण के कब्जे की चिंगारी आग बनकर भड़केगी, साक्षी और विनेश के आंसू अदालत में तेजाब बनकर बरसेंगे. भगवान के घर में देर हैं, पर अंधेर नहीं है. कानून के लंबे हाथ जब बृजभूषण तक पहुंचेंगे तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होगा.
ONE DAY BRIJ BHUSHAN WILL GET THE PUNISHMENT HE DESERVES
A shocked nation watched on Thursday as two top Indian female wrestlers wept in front of the media and one of them, Sakshi Malik, Olympic bronze medalist, put her athletic shoes on the table to announce that she was quitting sports. Sitting with her was Vinesh Phogat, the first Indian woman wrestler to win gold medals in both Asian and Commonwealth Games. Accompanying them was Bajrang Punia, 65 kg freestyle Olympic bronze medal winner and the only Indian wrestler to win four medals at World Wrestling Championships. As India’s medal winning daughters wept in public, the main accused in the sexual harassment scandal, Brij Bhushan Sharan Singh, former Wrestling Federation of India chief, stood at his residence, wearing garlands. He said laughingly, “Dabdabaa thaa, dabdabaa hai, aur dabdabaa rahgea” (meaning, my dominance was there, is there and it will be there). Singh said, he had been facing a bad time “Rahu Kaal” for the last 11 months, which was now over. His acolyte Sanjay Singh and his panel of candidates had swept the WFI elections. Singh’s supporters won the posts of President, Senior Vice President, Vice President, Treasurer, Secretary and executive members. Singh had kept himself and his family members out of the elections. Vinesh Phogat, Sakshi Malik and several women wrestlers had levelled serious sexual harassment and exploitation charges against Singh. The wrestlers had sat on dharna at Delhi’s Jantar Mantar twice, had several rounds of talks with Sports Minister, a case was filed against Singh by Delhi Police, and the minister had assured that the ‘bahubali’ (strongman) will be kept out from WFI and its elections. A ban was imposed on Singh and any of his family members from contesting WFI elections. On Thursday, Singh had the last laugh. He claimed that his men garnered 90 per cent votes. The question now is: Has Brij Bhushan Sharan Singh become more powerful that the government? Did the struggle of our daughter wrestlers go in vain? Was the Delhi Police chargesheet against Sinha worth nothing? Were the promises made and sympathy shown to our medal winning wrestlers fake? There were celebrations and fireworks at Brij Bhushan Sharan Singh’s residence when the results were declared. Singh’s acolyte Sanjay Singh contested the post of President against the wrestlers’ choice Anita Sheoran. He got 40 out of 47 votes, while remaining seven votes went to Anita Sheoran. Brij Bhushan had made foolproof arrangements to ensure the victory of his supporters. Sanjay Singh had been working as the eyes and ears of Brij Bhushan for the last several years. He was vice-president of UP Wrestling Association, and had become WFI vice president. Since the government had prohibited Singh from contesting elections, Brij Bhushan wanted to anoint his son or his son-in-law as WFI chief, but this was not allowed by the government. The Centre wanted that Brij Bhushan’s control on WFI should go, but the wily politician found a way out. He fielded his acolytes, made them victorious and will now be running WFI with a remote control in hand. Watching them rejoicing on TV, Sakshi Malik and Vinesh Phogat told media persons that they have lost the battle and have now little hope of getting justice. Bajrang Punia said, he has still not lost hope and will continue his struggle for the sake of future generation of wrestlers. He expressed faith in the judiciary. Brij Bhushan has done what he had promised. His dominance will continue in WFI. It was heartbreaking for people watching the medal winner female wrestlers weeping on TV. Watching the sexual exploitation accused laughing in arrogance may have angered millions of people about the ineffectiveness of our system. Brij Bhushan had said several months ago that his ‘dabdabaa’ (dominance) will continue to remain in Indian wrestling. The girls who won medals and brought accolades for India were promised that they would be freed from the clutches of Brij Bhushan. But the broad smile on Brij Bhushan’s face said it all. He had the votes, the system, his winning acolytes with him. Brij Bhushan has been MP six times, he runs more than 50 schools and colleges in Uttar Pradesh, has been imprisoned several times in the past, is known as a ‘bahubali’ (strongman). He claims he can make BJP win vital parliamentary seats in UP, and if he was sidelined by his party, he would make the Samajwadi Party win those seats. He has done this in the past too. ‘Mahabali’ Brij Bhushan Sharan Singh knows that the female wrestlers sitting on dharna do not carry any weight. For him, these champion female wrestlers are not worth a dime for BJP, because they do not have votes, nor popular support. If Brij Bhushan thinks that by winning elections and ensuring his ‘dabdabaa’ in WFI, he will frighten these female wrestlers and arm-twist witnesses in his case, he is mistaken. The sparks of Thursday’s WFI elections are bound to fly and cause a big fire, Sakshi’s and Vinesh’s tears will act as acid rain in courts. In Hindi, there is a proverb, “Bhagwaan ke ghar me der hai, par andher nahin” (verbatim translation: In God’s abode, there can be delay, but there won’t be any injustice). When the long hands of law will finally reach Brij Bhushan, he will get his just desserts.
मिमिक्री : राहुल अपना दोष मीडिया पर न डालें
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अपमान एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. दिल्ली के जंतर मंतर पर गुरुवार को बीजेपी ने प्रदर्शन किया, जबकि जाट समुदाय ने मांग की है कि धनखड़ का अपमान करने वाले तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से माफी मांगें. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने गहरी नाराजगी और दुख जाहिर किया है. राष्ट्रपति ने कहा कि सभी को संवैधानिक पदों की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ने उपराष्ट्रपति को फोन करके सहानुभूति व्यक्त की और कल्याण बनर्जी की हरकत की निंदा की. मोदी ने उपराष्ट्रपति से कहा कि वह खुद इसी तरह 20 साल से अपमान झेल रहे हैं. बुधवार को दिल्ली में तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा कि अगर राहुल गांधी मिमिक्री का वीडियो ना बनाते तो ममला इतना तूल न पकड़ता. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि वीडियो अकेले राहुल गांधी ने नहीं बनाया था, कल्याण बनर्जी तो मिमिक्री कर रहे थे, जो कि एक कला है, इसका क्या बुरा मानना, ये किसी का अपमान नहीं हैं. इसके बाद राहुल गांधी ने सफाई दी. जब बात बहुत बढ़ गई, राहुल गांधी पर चारों तरफ से हमले होने लगे, तो राहुल सामने आए. उन्होंने गलती नहीं मानी, उल्टे मीडिया को नसीहत दे दी. राहुल ने कहा- “वहां पर MPs बैठे हुए थे, मैने उनका वीड़ियो लिया, मेरा वीडियो मेरे फोन पर है, ये सब मीडिया दिखा रहा है, मीडिया कह रहा है, मोदीजी कह रहे हैं, यहां किसी ने कुछ कहा ही नहीं. ..हमारे 150 MPs को पार्लियामेंट से उठा कर बाहर फेंक दिया…उसके बारे में मीडिया में कोई चर्चा नहीं हो रही है..अडानी पर कोई चर्चा नहीं हो रही है, राफेल पर फ्रांस ने कहा कि इनवेस्टिगेशन हो रहा है, उस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है, बेरोज़गारी पर कोई चर्चा नहीं हो रही है. हमारे MPs यहां दुखी हैं, बाहर बैठे हुए हैं.. उन पर (मिमिक्री पे) आप चर्चा कर रहे हो. ..थोड़ा तो न्यूज़ दिखा दिया करो” . अपनी गलतियों के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराना राहुल गांधी की आदत हो गई है. वो कैसे कह सकते हैं कि MPs के सस्पेन्शन पर मीडिया में चर्चा नहीं हुई? खूब हुई. राफेल पर, अडानी पर, क्या राहुल के बयान मीडिया ने नहीं दिखाए? खूब दिखाए. पर क्या उपराष्ट्रपति का मज़ाक मीडिया ने उड़ाया? क्या धनखड़ की मिमिक्री का वीडियो मीडिया ने बनाया? इसे कहते हैं – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. ममता बनर्जी ने ठीक कहा कि अगर राहुल गांधी वीडियो न बनाते, राज्यसभा के सभापति की मिमिक्री पर ठहाके न लगाते, तो मामला इतना बड़ा न बनता. और राहुल गांधी ने मीडिया के बारे में ऐसी बातें कोई पहली बार नहीं कही है. राहुल को राफेल के मुद्दे पर गलतबयानी के लिए सुप्रीम कोर्ट से लिखित माफी मांगनी पडी थी. क्या इसके लिए मीडिया जिम्मेदार था? उसके बाद अपने बयान के चक्कर में सूरत की कोर्ट से सजा मिली. क्या इसके लिए भी मीडिया जिम्मेदार था? फिर उनकी संसद की सदस्यता चली गई. क्या इसके लिए मीडिया जिम्मेदार था? वो तीन राज्यों में चुनाव हार गए, क्या इसके लिए मीडिया जिम्मेदार है? अब अगर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने इंडी अलायंस की मीटिंग में राहुल गांधी की बजाय मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर दिया, तो क्या इसके लिए भी राहुल मीडिया को दोष देंगे? केजरीवाल और ममता ही नहीं, कांग्रेस के कई लोगों को भी लगता है कि राहुल गांधी चुनाव नहीं जिता सकते. कैंपेन के दौरान बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. हाल ही में विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल ने कहा था कि मैंने मोदी की गाड़ी के चारों पहियों की हवा निकाल दी है. राहुल ने कहा था कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मोदी को उखाड़ फेकेंगे. लेकिन जो हुआ वो सबने देखा. इसलिए कभी कभी अपने गिरेबां में झांक कर भी देखना चाहिए. मोदी-विरोधी मोर्चे की जिस मीटिंग से विरोधी दलों के नेताओं को बहुत उम्मीदें थी, वो मीटिंग डिरेल क्यों हो गई? ये भी सोचना चाहिए.
MIMICRY: INSTEAD OF BLAMING MEDIA, RAHUL SHOULD INTROSPECT
The face-off between BJP and opposition parties over the mimicry of Vice President Jagdeep Dhankhar by a Trinamool MP, has snowballed into a major controversy with BJP leaders and workers staging protest at Delhi’s Jantar Mantar on Thursday. Jat community leaders have demanded apology from TMC MP Kalyan Banerjee and Congress leader Rahul Gandhi. President Droupadi Murmu, Prime Minister Narendra Modi, Lok Sabha Speaker Om Birla have condemned the mimicry incident describing it as an insult to the Vice President. In Rajya Sabha on Wednesday, Chairman Jagdeep Dhankhar expressed his anguish and said it was “an insult to the dignity of the post of Vice President, the farmers and his Jat community”. Dhankhar said, “I do not care if somebody insults me personally, I will bear it, I will swallow it, but I will never tolerate if I am unable to protect the dignity of the post that I hold.” Trinamool Congress chief Mamata Banerjee refused to comment on the mimicry incident, but tried shifting the blame to Rahul Gandhi. She said, “we have respect for everyone. This has to be taken casually. ..You would not have come to know about this if Rahul Ji had not taken the video of the incident”. Rahul Gandhi reacted by blaming the media for hyping the mimicry act. He said, “MPs were sitting there, I shot the video. My video is on my phone. Media is playing it up. Nobody says anything when our 150 MPs are thrown out, but there is no discussion over that in media. There is no discussion on Adani, on Rafale deal, on unemployment. Our MPs are unhappy and sitting outside, but media is discussing this (mimicry).” It appears as if Rahul Gandhi has made it his habit to blame the media for his own mistakes. How can he say that there has not been any discussion on suspension of opposition MPs in media? There were so many discussions. Did not media show Rahul’s allegations about Rafale deal and against Adani? It is a case of the pot calling the kettle black. In Hindi, the proverb is, “Ulta Chor Kotwaal Ko Daante”. Mamata Banerjee was right when she said that had Rahul Gandhi not made the video and laughed at the mimicry of Rajya Sabha chairman, the matter would not have blown out of proportions. This is not the first time that Rahul has blamed the media. He had to give a written apology in Supreme Court for giving incorrect statement on Rafale deal. Was the media responsible for this? On describing people with Modi surnames as thieves at a public meeting, the Surat district court convicted him. Was the media responsible for this? He then automatically lost his Parliament membership after being convicted by court. Was the media responsible? His party lost assembly elections in three key states. Was the media responsible? And when Mamata and Arvind Kejriwal floated the name of Mallikarjun Kharge instead of Rahul’s name for leading INDIA alliance, will Rahul now blame the media? Not only Kejriwal and Mamata, but many leaders in the Congress feel that Rahul cannot lead a united opposition to victory. Rahul made lofty claims during his election campaign. During the recent assembly elections, Rahul Gandhi said, “I have taken the air out of all four tyres in Modi’s car”. He claimed that Modi will be uprooted from MP, Rajasthan and Chhattisgarh. The world saw what happened in these three states. It would be better if Rahul does some self- introspection. Twenty-eight opposition parties had pinned high hopes on some concrete outcome from the Delhi meet of INDIA alliance, but the meeting was derailed. Why? He should ponder over it.
मिमिक्री से सबसे ज़्यादा नुकसान विपक्ष को होगा
संसद में बुधवार तक 143 सदस्यों का निलम्बन हो चुका है, भारत के संसदीय इतिहास में कभी इतनी बड़ी संख्या में सासदों को सदन से बाहर नहीं किया गया, विरोधी दलों ने इसे सरकार की तानाशाही का सबूत बताया, लेकिन इसी बीच ममता बनर्जी की पार्टी के सांसद कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी ने ऐसा कारनामा कर दिया जिसने निलंबन के मुद्दे को पीछ छोड़ दिया. मंगलवार को संसद परिसर में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने दूसरे निलम्बित सांसदों के बीच खड़े होकर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ की मिमिक्री की, उपराष्ट्रपति का मज़ाक उड़ाया. कल्याण बनर्जी की मिमिक्री पर विपक्ष के सांसदों ने ठहाके लगाए और सामने खड़े होकर राहुल गांधी ने अपने फोन पर इसका वीडियो बनाया. कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से इस वीडियो को सोशल मीडिय़ा पर अपलोड किया गया. बीजेपी ने विपक्ष के नेताओं को संवैधानिक पदों की गरिमा का सम्मान करने की नसीहत दी. जाट एसोशिएशन ने जगदीप धनकड़ के अपमान को पूरे जाट समुदाय का अपमान बताया. सरकार की तरफ से कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी के खिलाफ एक्शन की मांग की गई. कांग्रेस डिफेंसिव पर आ गई. राहुल गांधी की नासमझी ने विपक्ष की रणनीति पर पानी फेर दिया और सरकार को आक्रामक होने का मौका दे दिया. इसमें तो कोई दो राय नहीं कि कल्याण बनर्जी ने जो किया, वो किसी भी नज़रिए से सही नहीं हैं – संवैधानिक मर्यादा के लिहाज से, संसद के नियमों के हिसाब से, संवैधानिक पदों की गरिमा के पैमाने से, और राजनीतिक मर्यादा की नज़र से. किसी भी तरह से कल्याण बनर्जी की हरकत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. राहुल गांधी तो खुद को सबसे बड़ा नेता मानते हैं. क्या राहुल को सभापति या स्पीकर के पद की गरिमा के बारे में नहीं मालूम? राहुल गांधी को चाहिए था कि वो कल्याण बनर्जी को मिमिक्री करने से रोकते. लेकिन उन्होंने रोकने की बजाय वीडिया बनाया. ये राहुल की नामसमझी का सबूत है. उन्हें पता ही नहीं होता कि वो क्या कर रहे हैं, और जो कर रहे हैं उसका क्या असर होगा. कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी की इस हरकत का सबसे बड़ा नुकसान विपक्ष को ही हुआ. विरोध दल बड़ी संख्या में सांसदों के सस्पेंशन को मुद्दा बना रहे थे, सरकार पर तानाशाही का इल्जाम लगा रहे थे, लोगों की सहानुभूति भी विपक्ष के साथ थी, लेकिन अब इस हरकत ने सारा गुड़ गोबर कर दिया. अब सासंदों का सस्पेंशन का मुद्दा तो पीछे रह गया, अब बीजेपी के नेता मांग कर रहे हैं कि कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी को हर हालत में राज्यसभा के सभपति जगदीप धनकड़ से मांफी मांगनी होगी. साथ ही मुझे लगता है कि 143 सासंदों को संसद से निलम्बित कर देना, इतनी बडी संख्या में सांसदों को सस्पेंड करना दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इसके लिए सरकार और विपक्ष दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं. विपक्ष के सांसद इरादतन राज्यसभा और लोकसभा में प्लेकार्ड लेकर नारबाजी करने आये ताकि उन्हें सस्पेंड कर दिया जाए और वे बाहर जाकर ये इल्जाम लगा सके कि सरकार ने संसद को विपक्ष विहीन कर दिया, विपक्ष की आवाज़ संसद में बिल्कुल बंद कर दी. संसद में IPC, CrPC, Indian Evidence Act जैसे पुराने कानूनों को बदल कर नये विधेयक लाये गये हैं, ऐसे बिल अगर विपक्ष की चर्चा और सहयोग के बगैर पास हो गए तो ये लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है. बेहतर होता विपक्ष थोड़ा संयम दिखाता, चर्चा में हिस्सा लेता, और सरकार भी थोड़ा बड़ा दिल दिखाती, गृह मंत्री संसद की सुरक्षा में सेंध की जांच के बारे में बयान देते, जो बात उन्होंने पार्लियामेंट के बाहर कही, वही सदन में कह देते, तो शायद रास्ता निकल आता. लेकिन दोनों पक्ष अड़े हुए हैं और इससे नुकसान आम लोगों का हो रहा है. संसदीय प्रणाली को हो रहा है, हमारी संसदीय परंपराओं का हो रहा है, जो अच्छा नहीं है.
INDIA गठबंधन : नेता की तलाश
सांसदों के सस्पेंशन का बड़ा असर विरोधी दलों के INDIA अलायन्स की मीटिंग में भी दिखाई दिया. सबसे पहले इसी मुद्दे पर चर्चा हुई. सांसदों के सस्पेंशन पर मोदी विरोधी मोर्चे की मीटिंग में एक निंदा प्रस्ताव पारित किया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि विरोधी दलों के खिलाफ सरकार के रवैए की पूरी ताकत के साथ विरोध करेंगे, मिलकर आवाज उठाएंगे. प्रस्ताव तो पारित हो गया लेकिन जिन सवालों के जवाब खोजने के लिए मीटिंग बुलाई गई थी, उस पर न कोई फैसला हुआ, न कोई प्रस्ताव पास हुआ. मीटिंग में 28 पार्टियों के नेता मौजूद थे लेकिन नेताओं ने जो बातें पटना में हुई पहली मीटिंग में कहीं थी, वही चौथी मीटिंग के बाद कही. सिर्फ एक घटना हुई. ममता बनर्जी ने कांग्रेस को टेंशन में डालने वाली एक चाल चल दी. ममता ने मीटिंग में ये प्रस्ताव रख दिया कि मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद के लिए विरोधी दलों की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को प्रोजैक्ट किया जाए. ममता की बात सुनकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नीतीश कुमार, लालू यादव, सीताराम येचुरी और अखिलेश यादव जैसे नेता सकते में आ गए. शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे नेता चुपचाप बैठे रहे. स्थिति को संभाला खऱगे ने. खरगे ने कहा कि MP होंगे, तो PM बनेंगे, इसलिए पहले MPs तो जुटा लें, इसके बाद PM कौन होगा, इस पर बात करेंगे. खरगे ने कहा कि गठबंधन का नेता कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा, इसका फैसला चुनाव नतीजे आने के बाद होगा. तीन घंटे की मीटिंग के बाद जब विरोधी दलों के नेता बाहर निकले तो ज्यादातर नेताओं ने अंदर क्या बात हुई, इस पर बोलने से इंकार कर दिया. अब सवाल ये है कि MPs को जिताने का जुगाड़ तो तब होगा, जब सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो जाएगा. पता ये लगा है कि इस मामले में भी ममता ने खुलकर बात की. मीटिंग में ममता ने साफ कहा कि पहले ही बहुत देर हो चुकी है, अब और देर नहीं होनी चाहिए, दिसंबर के आखिर तक या फिर जनवरी के पहले हफ्ते तक सीट शेयरिंग पर फैसला हो जाना चाहिए, क्योंकि अब चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है. ज्यादातर पार्टियों ने इस पर सहमति जताई. कांग्रेस को अंदाजा था कि इस मुद्दे पर बात होगी, इसलिए कांग्रेस ने मीटिंग शुरू होने से पहले ही एक गठबंधन समन्वय कमेटी बनाने का एलान कर दिया. इसमें अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और मुकुल वासनिक सहित कुल पांच लोग हैं. फिर मीटिंग में फैसला हुआ कि गठबंधन में शामिल पार्टियां अपनी-अपनी कमेटी बनाएंगी, कमेटी के नेता सीट शेयरिंग पर बात करेंगे, फैसला करेंगे, अगर कहीं कोई दिक्कत होगी तो पार्टियों के बड़े नेता मिलकर रास्ता निकालेंगे और जनवरी के आखिर तक सीट शेयरिंग हो जाएगी. न पीएम के चेहरे पर फैसला हुआ, न सीटों का बंटवारा हुआ, न कोई फॉर्मूला निकला. तो फिर तीन घंटे की मीटिंग में हुआ क्या? इसका जवाब भी खरगे ने दिया. खरगे ने कहा कि जल्दी ही गठबंधन के सभी नेता एक मंच पर दिखाई देंगे, कम से कम आठ बड़ी साझा जनसभाएं होगी जिसमें गठबंधन में शामिल सभी दलों के नेता शामिल होंगे. ये बात सही है कि लालू यादव, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव मीटिंग से सबसे पहले निकले, उन्होंने किसी से कोई बात नहीं की. इससे समझ आया कि ये सारे नेता ममता के प्रस्ताव से नाराज थे. मल्लिकार्जुन खरगे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का ओरिजिनल आइडिया केजरीवाल का था. केजरीवाल ने ममता बनर्जी से बात की और उनसे ये नाम पेश करने को कहा. केजरीवाल और ममता दोनों को लगता है कि राहुल गांधी को अगर गठबंधन के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा, तो इसका नुकसान होगा, बीजेपी इसका फायदा उठाएगी. लेकिन अगर खरगे को प्रोजेक्ट किया जाएगा, तो एक दलित और अनुभवी नेता का चेहरा सामने होगा, जिसे काउंटर कर पाना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा. लेकिन कांग्रेस ने इस आइडिया को पैदा होने से पहले ही दफन कर दिया. चुनाव से पहले ही राहुल की दावेदारी पर ताला लगाना कांग्रेस को सूट नहीं करता है. इसलिए प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, इस पर कांग्रेस ने कोई फैसला नहीं होने दिया. लालू की समस्या अलग है. वो चाहते हैं, गठबंधन में नीतीश कुमार लीडर बनें, पटना छोड़ें, दिल्ली आएं, ताकि मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी के लिए खाली हो. पर चार-चार मीटिंग हो चुकी, लालू कुछ करवा नहीं पाए. कुल मिला कर मंगलवार को कुछ खास नहीं हुआ. ज्यादातर बातें वही हुई, जो पटना की पहली मीटिंग में हुई थीं. मैंने एक दिन पहले ही कहा था कि सांसदों के निलम्बन का मुद्दा मोदी विरोधी मोर्चे की मीटिंग को पटरी से उतार देगा. मीटिंग में ज्यादातर चर्चा सस्पेंशन और मोदी के तानाशाही की हुई. न तो नेता पर फैसला हो पाया, न ही सीट शेयरिंग का कोई फॉर्मूला निकल पाया. बस यही कहा गया कि मोदी के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे, मोदी को हराने के लिए मिलकर कैंपेन करेंगे. लेकिन उनको अंदाजा ही नहीं है कि मोदी किस दिशा में आगे निकल चुके हैं.
BY MIMICKING, OPPOSITION MAY BECOME THE BIGGEST LOSER
By mimicking Rajya Sabha chairman Jagdeep Dhankhar during a protest by opposition MPs in Parliament premises on Tuesday, Trinamool Congress MP Kalyan Banerjee has brought disgrace to the norms of Indian parliamentary democracy. Banerjee’s mimicry act cannot be justified by any means, whether from the point of upholding dignity of a Constitutional post, or from the view of Parliamentary norms, or even from the view of decency in politics. The sad part was that Congress leader Rahul Gandhi was filming the mimicry act on his cellphone. Rahul Gandhi is a top leader, but does he know much about the dignity of Constitutional posts, like those of Rajya Sabha chairman and Lok Sabha Speaker? It would have been better if he could have stopped Kalyan Banerjee from performing the mimicry act. Instead, he videographed the act on his phone. This is a clear evidence of his lack of political understanding. I sometimes feel, he may not be realizing what he is doing, and the consequences thereof. On Wednesday, Jagdeep Dhankhar tweeted to say that the Prime Minister Narendra Modi spoke to him over phone and “expressed great pain over the abject theatrics of some Honourable MPs…He told me that he has been at the receiving end of such insults for twenty years and counting….I told him…none of the insults will make me change my path”. Even the President Droupadi Murmu, who normally keeps herself aloof from the rough and tumble of politics, had to post on social media: “I was dismayed to see the manner in which our respected Vice President was humiliated in the Parliament complex. Elected representatives must be free to express themselves, but their expression should be within the norms of dignity and courtesy. That has been the Parliamentary tradition we are proud of, and the People of India expect them to uphold it.” The Opposition is the biggest loser from Kalyan Banerjee’s mimicry act, with Rahul Gandhi videographing it. For the last three days, opposition parties were making a big political issue over the suspension of a large number of MPs and were making allegations of “dictatorship” against the government. They were getting public sympathy on the suspension issue, but by mimicking the Vice President of India, they have made a mess of it. The issue of mass suspension has now been relegated to the background, and BJP is now demanding that both Kalyan Banerjee and Rahul Gandhi must apologize to the Rajya Sabha chairman. At the same time, I would like to say that suspending 143 MPs in Parliament is really an unfortunate step, and both the ruling party and opposition are responsible for this. By shouting slogans inside the well of the House and holding placards, the opposition MPs were themselves inviting suspension, so that they can go outside and tell the people that the government has made Parliament “opposition-less”. Passage of important bills on criminal laws replacing IPC, CrPC and Indian Evidence Act, without involvement of opposition members, is not a good sign for democracy. It would have been better if opposition had shown patience and taken part in the debate. On its part, the government could have shown large-heartedness and the Home Minister could have given a brief statement on the ongoing probe into Parliament security breach. This could have assuaged the feelings of opposition, but, as of now, both sides are adamant. This is not good for our parliamentary system.
INDIA OPPOSITION BLOC : A HOUSE DIVIDED
The mass suspension of opposition MPs cast its shadow on the 28-party INDIA bloc meeting that took place in Delhi on Tuesday. It was attended by Congress President Mallikarjun Kharge, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Mamata Banerjee, Nitish Kumar, Lalu Prasad Yadav, Akhilesh Yadav, M K Stalin, Sharad Pawar, Uddhav Thackeray, Arvind Kejriwal, Sitaram Yechury, Dr Farooq Abdullah and other top leaders. At the meeting, top Congress leaders were surprised when Mamata Banerjee suddenly proposed the name of Mallikarjun Kharge as the convenor of the INDIA bloc, citing his Dalit background. Kejriwal supported her by saying that Kharge could be projected as both convenor and prime ministerial candidate. Kejriwal claimed he had done some research and he can say with confidence that projecting a Dalit face in the elections will be a big advantage. Other leaders sitting around the table were caught unawares, and it was left to Kharge to defuse the palpable tension inside the hall. Kharge said, all parties should focus on defeating BJP first and the issue of electing a PM could be taken up after the polls. He also made it clear that he never used his Dalit caste background to secure any post. There was lack of bonhomie among the INDIA bloc leaders, that was noticed in the past three meetings. The seat-sharing task was left to state units and it was decided to complete the process by the second week of January. There was no joint press conference after the meeting. Mamata Banerjee, M K Stalin, Lalu Prasad, Nitish Kumar, Uddhav Thackeray, Jayant Chowdhury and Kejriwal left the hotel after the meeting was over. The original idea of floating Kharge’s name was that of Kejriwal, who had called on Mamata Banerjee earlier and had requested her to suggest this name. When Kharge’s name was floated by the West Bengal CM, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Nitish Kumar, Lalu Prasad, Sitaram Yechury and Akhilesh Yadav looked in surprise, while Sharad Pawar and Uddhav Thackeray sat silently. Both Kejriwal and Mamata Banerjee feel that the alliance could be on a weak pitch if Rahul Gandhi is projected as opposition bloc leader, and BJP can gain advantage. Their idea was, if an experienced political leader like Kharge could be projected in the elections as India’s first Dalit PM, it can make things difficult for the BJP. The Congress, however, decided to bury this idea as soon as it was floated. It would not have suited the Congress leadership to weaken Rahul’s claim for the position of PM, and, therefore, the party decided to put the issue on the backburner. Lalu Prasad’s problem is a bit different. He wants Nitish Kumar out of Patna by resigning as chief minister of Bihar and come to Delhi to lead the INDIA alliance. This can pave the way for making his son Tejashwi Yadav to take over as chief minister. Four INDIA bloc meetings have taken place, but Lalu Prasad could not manage to push Nitish’s name as convenor. Overall, nothing of significant import took place at Tuesday’s opposition bloc meeting. The same topics that were taken up at the first meeting in Patna were raised again in Delhi. I had already said in my show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday that the suspension issue can derail the INDIA bloc meeting, and the same thing happened. Most of the participants spoke on the issue of suspension of MPs and Modi’s ‘dictatorship’, but no decision could be reached on the issue of convenor or prime ministerial face, nor was a proper seat-sharing formula evolved. The old refrain of “defeating Modi by remaining united” was noticed. Opposition leaders have no idea how Modi has already begun his poll preparations, in which direction and at what speed.
141 सांसदों का निलम्बन : अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण
संसद में मंगलवार को विपक्ष के 49 और सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया. इन्हें मिला कर दोनों सदनों में अब तक कुल 141 विपक्षी सांसद सस्पेंड किये जा चुके हैं. मंगलवार को सस्पेंड होने वालों में डॉ. फारूक़ अब्दुल्ला, सुप्रिया सुले, मनीष तिवारी, डिम्पल यादव, सुदीप बंद्योपाध्याय शामिल हैं. सोमनार को 78 सांसद सस्पेंड हुए थे. इनमें जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला, के सी वेणुगोपाल, अधीर रंजन चौधरी, प्रमोद तिवारी, रामगोपाल यादव, कणिमोली, गौरव गोगोई, दयानिधि मारन और सोगत राय शामिल थे. इन सभी सांसदों को शीताकालीन सत्र के बाकी दिनों के लिए सस्पेंड किया गया. असल में विपक्ष संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में चर्चा की मांग को लेकर हंगामा कर रहा है. विपक्ष संसद की सुरक्षा में सेंध लगाये जाने के मामले में गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर अड़ा है. विरोधी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री संसदीय परंपराओं की अनदेखी कर रहे हैं, संसद की सुरक्षा में सेंध जैसे गंभीर मसले पर संसद के बाहर बयान दे रहे हैं, जबकि परंपरा के मुताबिक जब सत्र चल रहा हो तो इस तरह के मुद्दे पर सरकार को पहले संसद में अपनी बात कहनी चाहिए. चूंकि सरकार के कई महत्वपूर्ण विधेयक लम्बित हैं, सरकार जल्द से जल्द ये सारे बिल पास करवाना चाहती है और विपक्ष सरकार को वॉकओवर देने को तैयार नहीं है, इसीलिए सोमवार को दोनों सदनों में विरोधी दलों के सदस्य प्लेकार्डस लेकर पहुंचे थे. सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विरोधी दलों के सासंदों ने नारेबाजी शुरू कर दी. लोकसभा में स्पीकर ने और राज्यसभा में सभापति ने बार बार सासंदों को समझाने की कोशिश की, नाम लेकर चेतावनी दी लेकिन जब विपक्ष के सासदों के रवैए पर कोई असर नहीं पड़ा तो लोकसभा से 33 और राज्यसभा से 45 सांसदों को सस्पेंड किया गया और आखिरकार दोनों सदनों की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी. इतनी बड़ी संख्या में विरोधी दलों के सांसदों का निलम्बन वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन विरोधी दलों के जो सांसद कह रहे हैं कि इससे पहले संसदीय इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, उन्हें मैं याद दिला दूं कि 1989 में जब राजीव गांधी की सरकार थी, उस वक्त विरोधी दलों के सांसद इंदिरा गांधी की हत्या पर बने ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को सदन में पेश करने की मांग कर रहे थे. इसी बात को लेकर हंगामा हो रहा था. उस वक्त एक दिन में लोकसभा के 63 सांसदों का सस्पेंड किया गया था. उस वक्त भी मैंने कहा था कि विरोधी दलों के खिलाफ ये कार्रवाई गलत है. आज भी कह रहा हूं ये कार्रवाई स्वस्थ लोकतन्त्र के लिहाज से ठीक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ सरकार जिम्मेदार नहीं है. सिर्फ स्पीकर या सभापति को दोष देना ठीक नहीं है. विरोधी दलों के सांसद प्लाकार्ड लेकर आए, नारे लगाए, सदन के बीचोंबीच आकर हंगामा किया, सभापति की बात नहीं मानी. इसके बाद सरकार को उन्हें सस्पेंड करने की मांग करने का मौका मिला. बीजेपी ने जाल बुना और विरोधी दलों के सांसद उस जाल में खुशी खुशी कूदकर फंस गए, वो ये समझ ही नही पाये कि इस एक्शन से ज्यादा सियासी नुकसान विपक्ष का ही होगा क्योंकि दिल्ली में विपक्षी इंडिया एलायन्स की जो मीटिंग हो रही है, उससे पहले इतनी बड़ी संख्या में सांसदों के निलम्बन से मीटिंग का एजेंडा पटरी से उतर जाएगा.
विपक्षी गठबंधन : कांग्रेस पर दवाब बढ़ा
दिल्ली के अशोका होटल में मंगलवार को करीब 28 विरोधी दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई. इस बैठक में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जन खर्गे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी, एम. के.स्टालिन, उद्धव ठाकरे, फारूक़ अब्दुल्ला, आदि नेता पहुंचे. बैठक में मुख्यत: सीटोंके बंटलवारे की निति पर चर्चा होगी. बैठक से एक दिन पहले ममता बनर्जी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन का नेता कौन होगा, प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा, ये चुनाव नतीजे आने के बाद तय होगा. रही बात सीटों के बंटवारे की, तो इस पर ज़ोर रहेगा कि विपक्ष की तरफ से हर सीट के लिए एक उम्मीदवार खड़ा किया जाय. लालू यादव ने अपनी चिरपरिचित अंदाज़ में कहा कि सभी पार्टियां एकजुट हैं, सब लोग दिल्ली पहुंच रहे हैं, सब मिलकर मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. विरोधी दलों के गठबंधन के सारे नेता ये मान रहे हैं कि मिलकर लड़ेंगे. मिलकर ही मोदी को हराया जा सकता है लेकिन कोई ये बताने को तैयार नहीं है कि मोदी के मुकाबले चेहरा किसका होगा? गठबंधन का नेता कौन होगा? इसका एक ही जवाब है कि नेता के नाम का फैसला चुनाव के बाद होगा. लेकिन कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा? इसका फैसला तो चुनाव से पहले ही करना होगा लेकिन इसमें भी मुश्किल है. सर्वसम्मती से कुछ तय होगा, इसकी उम्मीद कम है क्योंकि इससे पहले तीन बैठकों में सीटों के बंटवारे पर इसलिए बात नहीं हो पाई क्योंकि उस वक्त कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव जीता था, इसलिए कांग्रेस की दावेदारी मजबूत थी. सहयोगी दल उस वक्त तैयार नहीं थे. अब तीन राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह हारी है, इसलिए कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. अब ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, नीतीश कुमार, शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपने अपने राज्यों में कांग्रेस को कम से कम सीटें देने की बात कहेंगे. अखिलेश यादव जैसे नेता कांग्रेस से उन राज्यों में ज्यादा सीटें मांगेगे जिनमें कांग्रेस मजबूत है. अब गठबंधन का दबाव कांग्रेस पर है. और कांग्रेस इस दवाब के आगे कितना झुकती है, इस पर मोदी-विरोधी मोर्चे का भविष्य निर्भर होगा.