WEST BENGAL : ATTACKS ON ED OFFICERS WILL WEAKEN OUR SYSTEM
The murderous attack on officers of Enforcement Directorate in West Bengal by a mob instigated by local Trinamool Congress leaders on Friday has shocked the nation. Several of them were beaten up by the mob and their official cars were vandalized. Only 27 jawans of Central Reserve Police Force were present and they were unable to stop the several hundred strong mob. The ED team had gone to the home of local Trinamool leader Shahjahan Shekh, whose name has figured in the multi-crore ration scam. Shahjahan Sheikh has a long criminal record, he locked his house from inside, when the attack took place. Other top leaders of Trinamool Congress whose names figure in the ration scam include Chief Minister Mamata Banerjee’s close associate and minister Jyotipriya Mallick and former Bongaon municipality chairman Shankar Adhya, who was arrested on Saturday by ED. Jyotipriya Mallick was arrested last year. After Friday’s attack, BJP leaders have demanded Mamata Banerjee’s resignation and imposition of President’s rule. West Bengal governor C V Ananda Bose summoned the Director General of Police and Home Secretary to know why local police did not provide protection to the ED team. Three ED officers, Rajkumar Ram, Somnath Dutta and Ankur Gupta were badly wounded in the mob attack. They saved their lives by taking an auto to flee, while the mob looted their mobile phones and laptops. Trinamool Congress leaders tried to blame the ED for this attack. They alleged that ED officers did not inform the local police in advance and reached Shahjahan Sheikh’s home for carrying out searches. But Basirhat SP Joby Thomas nailed the lie when he said that ED had informed police about the raid on e-mail at around 8.30 am on Friday. What happened in West Bengal was anticipated. With ED and CBI carrying out raids against ministers and bureaucrats in West Bengal, Chief Minister Mamata Banerjee is worried. Already, several crores of rupees in cash were seized during the raids against the key accused in teachers recruitment scam. Prior to that, Sharada chit fund scam and Rose Valley scam have exposed the shenanigans of Trinamool Congress leaders. Ministers and Trinamool leaders like Partha Chatterjee, Jyotipriya Mallick, Madan Mitra, Mukul Roy, Sudeep Bandopadhyay, Tapas Paul and others were named in these scams. Several ministers and leaders close to Mamata Banerjee are still in jail or had been jailed. ED and CBI probes are still going on, but the moot point is : Mamata Banerjee has not disowned any of her leaders or close bureaucrats who have been found involved in corruption. In February 2019, on the eve of Lok Sabha elections, Mamata Banerjee sat on a two-day dharna in Kolkata to prevent the arrest of Kolkata Police Commissioner Rajiv Kumar by CBI. The same Rajiv Kumar is now the Director General of West Bengal Police. In a state where the chief minister herself tried to stop a CBI probe, one should not be surprised if her party leaders instigate a mob to attack ED officers. I believe, such attacks on officers of investigative agencies are neither good for our democratic system, nor is it good for Centre-State relations. It was Mamata Banerjee who had challenged the Left Front government in Bengal ten years ago and had uprooted the Left from power. If she levels allegation of misuse of ED by BJP, how can she justify misuse of West Bengal Police? Governments come and go, chief ministers come and go, but the administrative system remains in its place. The bureaucrats remain part of the system and they discharge their responsibilities. If officers of central agencies are attacked in states, what will be the fate of our system? Will there be attacks on central agency officers if they go to Ranchi to question Chief Minister Hemant Soren, or if they go to Patna to question deputy CM Tejashwi Yadav? These officers are only performing their duties, no matter which party or chief minister is in power in the state. If state police is unable to stop attacks on officers of central agencies, action must be taken against senior police officers.
राम मंदिर को लेकर विपक्ष में कन्फ्यूज़न
देश भर में भगवान राम के नाम पर सियासत हुई. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को मांसाहारी बताने वाले NCP के नेता जितेन्द्र अव्हाण हाथ जोड़कर माफी मांगते नजर आए. हालांकि उन्होंने बार बार ये कहा कि उनका भाषण गजब का था, सिर्फ एक लाइन ने गड़बड़ कर दी, हालांकि उनका दावा है कि वह लाइन भी गलत नहीं थी लेकिन फिर भी उनकी बात से अगर लोगों की आस्था को चोट पहुंची हो, तो वह खेद व्यक्त करते हैं.
जितेन्द्र अव्हाड़ ने भगवान राम को मांसाहारी बताया था, कहा था कि 14 साल के वनवास के दौरान क्या राम साग भाजी खाते रहे? जंगल में मेथी का साग कहां मिलता है? राम मांस खाते थे, राम हमारे आदर्श हैं, इसलिए हम भी मांसहारी हैं. महाराष्ट्र में हंगामा हुआ, जितेन्द्र अव्हाड के पुतले जलाए गए, थानों में शिकायतें दर्ज कराई गईं, नासिक में साधु संतों ने अव्हाड़ की गिरफ़्तारी की मांग की. मुंबई में बीजेपी की महिला कार्यकर्ताओं ने जितेंद्र अव्हाड़ के पोस्टर्स पर जूते चप्पल बरसाए. जब बात बढ़ गई, हर तरफ से आलोचना होने लगी, जब सहयोगी पार्टियों के नेता भी अव्हाड के खिलाफ बोलने लगे तो NCP के नेता एकनाथ खड़से ने जितेंद्र अव्हाड़ को गलती सुधारने की सलाह दी. शरद पवार अपने परिवार के साथ शिरड़ी में सांई बाबा के दरबार में थे. शरद पवार ने अव्हाड़ को संदेश भिजवाया कि वह अपनी गलती सुधारें. पवार के आदेश का असर हुआ और अव्हाड़ ने अपने बयान के लिए माफी मांगी. जितेन्द्र अव्हाड़ ने वाल्मीकि रामायण के श्लोकों का हवाला दिया, खुद को राम भक्त बताया, कहा कि उन्होंने जो कुछ कहा, रिसर्च के आधार पर कहा. लेकिन फिर भी अगर किसी की भावनाओं को चोट पहुंची हो तो वो खेद जताते हैं, क्योंकि शरद पवार ने कहा है कि सच अगर कडवा हो तो वो सच नहीं बोलना चाहिए. जितेंद्र अव्हाड़ को तो ये भी नहीं पता है कि रामायण में कितने कांड हैं. वो सात कांडों के नाम भी लिख कर लाए थे. जिस श्लोक का हवाला दे रहे थे, वह संस्कृत में है. उसे जितेन्द्र अव्हाड़ कितना समझे होंगे, वो वही जानते होंगे. लेकिन मैं आपको बता दूं कि जितेन्द्र अव्हाड़ वाल्मीकि रामायण में अयोध्या कांड के 52 वें सर्ग के 102 वें श्लोक का हवाला दे रहे थे. उस श्लोक में एक शब्द है, मेध्यं. इस शब्द का अर्थ महाशय ने मांस लगाया लेकिन मैं जितेन्द्र अव्हाड़ को बताना चाहता हूं कि इस शब्द का अर्थ कन्द मूल और फलों का गूदा भी होता है. इसी अर्थे में ये शब्द दूसरे कई श्लोकों में प्रयोग हुआ है. इसके अलावा अव्हाड़ को वाल्मीकि रामायण में सुंदर कांड का वो हिस्सा भी पढ़ना चाहिए, जिसमें माता सीता के साथ हनुमान जी का संवाद है. 36 वें सर्ग का 41 वां श्लोक है, जिसमें माता सीता, हनुमान जी से प्रभु राम का हाल पूछती हैं तो हनुमान जी जवाब देते हैं. बताते हैं कि प्रभु राम दिन में सिर्फ एक बार खाते हैं, वन में मिले शास्त्रोक्त कंद मूल फल का ही सेवन करते हैं. इस तरह के कई वृतांत वाल्मीकि रामायण में हैं लेकिन अव्हाड़ ने तेंतीस हजार श्लोकों में से एक श्लोक का एक शब्द उठाकर मर्यादा पुरूषोत्तम को मांसाहारी बता दिया, इसीलिए उनकी आलोचना हो रही है. साधु संत भी उनकी बातों से आहत हैं. रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी कहा कि हर शास्त्र में यही लिखा है कि वनवास के दौरान भगवान राम ने कंद-मूल खाकर गुज़ारा किया था, कहीं भी मांसाहार का ज़िक्र नहीं मिलता. जितेन्द्र अव्हाड़ ने गलती की, उन्हें गलती का एहसास है लेकिन फिर भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने खेद जताया लेकिन ये भी कहा कि उन्होंने जो कहा वो सही था, इसलिए उनके खेद का कोई मतलब नहीं है. शरद पवार और उद्धव ठाकरे समझ रहे हैं कि जितेन्द्र अव्हाड़ की जहरीली जुबान पूरे गठबंधन का नुकसान करेगी. इसीलिए NCP, कांग्रेस और शिवसेना का कोई नेता उनके समर्थन में खड़ा नहीं हुआ. जितेन्द्र अव्हाड़ भी जानते हैं कि हिन्दू उदार हैं, सनातन में गलती करने वाले को माफ करना सबसे हिम्मत का काम बताया गया है. कहा गया है, क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात. राम चरित मानस में तुलसी दास ने लिखा है, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन जैसी” इसलिए जितेन्द्र अव्हाड़ की भावना में जो राक्षसी गुण हैं, उन्होंने भगवान राम की कल्पना भी वैसी ही की. हमारे यहां तो जितेन्द्र अव्हाड़ को माफ कर दिया जाएगा लेकिन अव्हाड़ से लोग पूछ सकते हैं कि हिन्दू देवी देवताओं के अलावा किसी मज़हब के प्रतीकों के बारे में वो ऐसा बोलने की उनकी हिम्मत है और अगर दूसरे मज़हब के बारे में उन्होंने ऐसी बातें कही होतीं, तो क्या सिर्फ ऐसी माफी मांगकर वो बच जाते? लेकिन मुश्किल ये है कि आजकल राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बारे में विरोधी दलों के नेता इसी तरह की उल्टी सीधी बातें कर रहे हैं. गुरुवार को तेजस्वी यादव ने कह दिया कि मंदिर बनाने से क्या होगा, मंदिर की जगह अस्पताल बनाना बेहतर होता. तेजस्वी यादव ने कहा, मोदी कहते हैं कि राम के लिए महल बनवाया, लेकिन श्रीराम तो भगवान है, अगर उन्हें महल की ज़रूरत होती, तो ख़ुद बना लेते, करोड़ों रूपए मंदिर बनाने में खर्च हो रहा है, इतने पैसे में कितने अस्पताल और स्कूल बन जाते. तेजस्वी ने लोगों से कहा कि बीमार पड़ोगे तो मंदिर जाओगे या अस्पताल? इसलिए इस चक्कर में मत पड़ो. इस पर गिरिराज सिंह ने कहा कि तेजस्वी हिन्दुओं की आस्था पर चोट कर रहे हैं, लालू और नीतीश का राजनीतिक DNA सनातन विरोधी है, क्या तेजस्वी कहेंगे कि पटना के हज हाउस को तोड़कर अस्पताल बनवा देंगे? कांग्रेस के नेता अब इस मुद्दे पर थोड़ा संभलकर बोल रहे हैं. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राम मंदिर इसलिए बना क्योंकि राजीव गांधी ने मंदिर का ताला खुलवाया, राजीव गांधी ने शिलान्यास कराया लेकिन बीजेपी ने इस धार्मिक कार्यक्रम को अपना राजनीतिक एजेंडा बना लिया है. RJD, काग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बयानों से ये तो साफ है कि विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल पार्टियां अयोध्या के मुद्दे पर कन्फ्यूज़्ड हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बीजेपी के आक्रामक रुख़ को कैसे काउंटर करें. इसी कन्फ्यूजन में गलतियां हो रही हैं, बेतुके बयान आ रहे हैं. इससे मामला और उलझ रहा है. ममता की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने तो कह दिया है कि दीदी प्राण प्रतिष्ठा समारोह के कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगी. सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने अभी तक फैसला नहीं किया है कि जाए या न जाएं. नीतीश और लालू ने अभी तक निमंत्रण स्वीकार नहीं किया है. उद्धव को अभी तक निमंत्रण कार्ड नहीं मिला है. अखिलेश यादव अयोध्या जाएंगे या नहीं इसको लेकर कन्फ्यूज्ड हैं. इसलिए अब ये लग रहा है कि मोदी-विरोधी मोर्चे के नेता प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में नहीं जाएंगे. प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद एक साथ अयोध्या जाने का कार्यक्रम बनाएंगे. इसके दो फायदे होंगे. एक तो राम विरोधी कहलाने से बच पाएंगे और बीजेपी पर मंदिर के नाम पर सियासत करने का इल्जाम लगा पाएंगे. दूसरा, चूंकि गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेताओं को निमंत्रण नहीं मिला है, इसलिए अगर कुछ लोग चले गए तो गठबंधन में दरार पड़ सकती है, इसलिए हो सकता है एकजुटता दिखाने के लिए 22 जनवरी को विरोधी दल का कोई नेता न जाए और उसके बाद सभी नेता एक साथ रामलला के दर्शन करने पहुंचें.
OPPOSITION CONFUSED ON RAM TEMPLE ISSUE
There seems to be utter confusion among anti-Modi INDIA opposition bloc leaders over the Ayodhya Ram Temple issue, with leaders of different parties taking divergent stands. Maharashtra NCP leader Jitendra Awhad had to apologize with folded hands over his remark that Lord Ram was non-vegetarian. He was saying there was no point in banning sale of meat on January 22, the day when the Ayodhya Ram temple will be consecrated. There were protests in Thane, Pune, Nashik, Nagpur and Mumbai and his effigy was burnt. Chief Minister Eknath Shinde denounced Awhad for hurting the faith of Hindus. Congress leader Husain Dalwai advised Awhad to be careful while making remarks about Lord Ram. NCP leader Eknath Khadse said, such remarks tend to create tension in society. NCP supremo Sharad Pawar, who had gone to pray at Shirdi Sai shrine, sent message to Awhad asking him to apologize. Awhad claimed he was a Ram Bhakt, and what he had said was based on research. However, he apologized saying if his remark has caused hurt to anybody, he seeks apology. It is good that Jitendra Awhad realized his mistake and apologized. His apology has no meaning. Sharad Pawar and Uddhav Thackeray know that Awhad’s blasphemous remark can hurt the Maharashtra Vikas Aghadi in this year’s elections. Not a single leader from NCP, Congress or Shiv Sena supported him. Jitendra Awhad knows that Hindus are liberal, and in Sanatan Dharma, pardoning those who commit mistakes is considered a courageous step. The great poet Tulsidas, who wrote Ramcharit Manas, had said, “Jaaki Rahi Bhavna Jaisi, Prabhu Moorat Dekhi Tin Taisi” (One views God’s idol with the feeling that one has in mind). Jitendra Awhad’s feelings about Lord Ram may have had the streak of devil. Hindus may pardon him for his remarks, but people can surely ask him whether he can make a similar blasphemous remark about any other religion and then save his skin by apologizing. In Bihar, RJD chief Tejashwi Yadav remarked that Modi may claim he is building a palace for Lord Ram, but Lord Ram is God incarnate, and he does not need Modi to build a palace for him. He then went on to ask people at his rally, whether they would go to a temple or a hospital, if they break their leg in an accident? He also asked people whether they would go to a temple, if they were hungry? Union Minister Giriraj Singh said, the political DNA of both Lalu Prasad and his son Tejashwi is anti-Hindu. Singh challenged Tejashwi whether he would ask Haj pilgrims why they were wasting time on Haj pilgrimage and convert the Haj House in Patna into a hospital? Senior Congress leader and former Rajasthan chief minister Ashok Gehlot claimed that it was Rajiv Gandhi who ordered the opening of locks of Ram Janmabhoomi and allowed ‘shilanayas’ of Ram temple in Ayodhya. He blamed BJP for misusing a religious consecration ceremony for its political agenda. Trinamool Congress chief Mamata Banerjee has already instructed her party leaders not to speak at all about the Ayodhya event. Remarks of RJD, Congress and Trinamool leader make it quite clear that there seems to be confusion among the constituent parties of INDIA opposition bloc. They are unable to decide on taking a clear stand to counter BJP’s aggressive Hindutva line. Because of this confusion, they are committing mistakes by making controversial remarks. While Mamata Banerjee has clearly said she would not attend the consecration ceremony in Ayodhya, Sonia Gandhi and Mallikarjun Kharge are yet to decide whether they would attend. Nitish Kumar and Lalu Prasad are yet to give time to VHP leaders for getting the invitation card. Uddhav Thackeray is yet to receive the invitation. There is confusion whether Akhilesh Yadav will attend the ceremony or not. It seems leaders of anti-Modi front will not be attending the consecration ceremony. They may decide to collectively visit the Ayodhya Ram temple after the ceremony is over. This could give them a twin advantage: One, they can save themselves from being branded as anti-Ram and lay the blame at BJP’s doors for doing politics in the name of Ram temple. Two, since all the parties in the opposition bloc have not received invitations, and if a few leaders attend the ceremony, it can cause fissures in the alliance. In such a situation, the entire bloc may decide not to attend the January 22 event. The opposition leaders may collectively visit Ayodhya and offer prayers to Lord Ram after the ceremony is over.
अडानी को क्लीन चिट : राहुल को अब नई स्क्रिप्ट की ज़रूरत
सुप्रीम कोर्ट ने अडानी ग्रुप पर लगे आरोपों की जांच के लिए किसी तरह की SIT बनाने से साफ इंकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जो 24 मामले थे, उनमें से 22 की जांच SEBI कर चुकी है, कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली. बाकी जो दो मामले बचे हैं, उनकी जांच भी SEBI अगले तीन महीने में पूरी करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने SEBI को ये आदेश भी दिया कि अगर हिंडनबर्ग ने कोई गड़बड़ी की है, जिससे भारतीय निवेशकों को नुक़सान हुआ है, तो उसकी जांच भी करे. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे. बी. परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपने फ़ैसले में कहा कि अडानी ग्रुप के ख़िलाफ़ जांच के लिए पेटिशनर्स कोई ठोस सुबूत पेश नहीं कर पाए हैं. CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि बिना ठोस सबूतों के मीडिया में थर्ड पार्टी की रिपोर्ट या किसी संस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता, इनके पास कोई ठोस सबूत नहीं है. अदालत ने कहा कि हिंडनबर्ग या ऐसी किसी बाहरी रिपोर्ट के आधार पर जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पिछले साल 24 जनवरी को आई थी जिसमें अडानी ग्रुप पर गंभीर आरोप लगाए गए थे. दो दिन बाद ही अडानी ग्रुप, देश का सबसे बड़ा फ़ॉलो ऑन पब्लिक ऑफ़र लाने वाली थी. 20 हज़ार करोड़ रुपये के इस FPO को अडानी ग्रुप ने वापस ले लिया था क्योंकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई थी. हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद कई पेटिशनर्स ने इसकी जांच कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी थी. इस पर चली लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने डेढ़ महीने पहले नवंबर में अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद गौतम अडानी ने खुशी जाहिर की. गौतम अडानी ने कहा कि सत्य की जीत हुई है, सत्यमेव जयते. उनका ग्रुप देश के विकास में अपना योगदान देना जारी रखेगा. सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने SEBI की जांच पर पूरा भरोसा जताया है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी ग्रुप के काम-काज पर, इन्वेस्टमेंट और मैनेजमेंट पर सवाल उठाए थे. ये मामला संसद में भी ज़ोर-शोर से उठा था. पिछले साल का पूरा बजट सेशन हंगामे का शिकार हो गया था. विपक्षी दलों ने सेबी के काम-काज पर भी सवाल उठाए थे. अब सुप्रीम कोर्ट ने अडानी ग्रुप की जांच SIT से कराने से इनकार कर दिया है तो विपक्षी दल ये इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने निवेशकों के साथ इंसाफ़ नहीं किया. CPI-M महासचिव, सीताराम येचुरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि वो इंसाफ करे, लेकिन कोर्ट के फ़ैसले से उन्हें निराशा हुई है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी कांग्रेस ने सेबी के काम-काज पर सवाल उठाए. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि पूरी सरकार अडानी का घोटाला छुपाने में लगी है, इसीलिए जब उन्होंने मामला संसदीय समिति में उठाया, तो भी बीजेपी ने बहुमत के दम पर उनकी आवाज़ को दबा दिया था. मनीष तिवारी ने कहा कि सेबी चाहती तो वो ईमानदारी से इस मामले की जांच पहले ही पूरी कर सकती थी. दिलचस्प बात ये है कि राहुल गांधी लगातार गौतम अडानी और उनके ग्रुप के कारोबार पर सवाल उठाते रहे हैं, लेकिन जिन जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि अडानी उनके राज्य में आएं, पूंजी लगाएं. तेलंगाना में कांग्रेस की नई नई सरकार बनी है और बुधवार को अडानी ग्रुप के एक प्रतिनिधिमंडल ने तेलंगाना में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से मुलाकात की. अडानी ग्रुप के इस प्रतिनिधिमंडल में अडानी पोर्ट ऐंड स्पेशल इकॉनमिक ज़ोन के CEO करण अडानी भी शामिल थे. करण अडानी गौतम अडानी के बेटे हैं. अडानी ग्रुप तेलंगाना में डेटा सेंटर और एरो स्पेस पार्क एस्टैब्लिश करना चाहता है. पता ये लगा है कि रेवंत रेड्डी ने अडानी ग्रुप को हरसंभव मदद का भरोसा दिया है. गौतम अडानी देश के सबसे बड़े उद्योगपतिय़ों में से एक हैं. जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई, उस वक्त अडानी दुनिया के अमीरों में तीसरे नंबर पर थे लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी की संपत्ति घटकर आधी रह गई. अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयर बुरी तरह गिरे. सिर्फ बीस दिन में अडानी, दुनिया के बीस top अमीरों की लिस्ट से बाहर हो गए. एक विदेशी कंपनी की गलत, झूठी और मनगंढत रिपोर्ट से जो नुकसान हुआ, वो सिर्फ अडानी का नुकसान नहीं था, यह देश का नुकसान था, देश का पैसा डूबा, हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ. विपक्ष ने इस मुद्दे पर खूब हंगामा किया. संसद नहीं चलने दी, राहुल गांधी ने अडानी के नाम को मोदी पर हमले का हथियार बना लिया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने अडानी को क्लीन चिट दे दी, तो राहुल कहीं दिखाई नहीं दिए. उन्होंने कोई ट्वीट नहीं किया. मुझे याद है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद जब गौतम अडानी “आपकी अदालत” में आए थे तो उन्होंने कहा था कि उनकी बैलेंस शीट क्लीयर है, पाई-पाई का हिसाब है, न उन्होंने बेईमानी की है, न बेईमानी में यकीन करते हैं, नियम कानून का पालन करते हैं, इसलिए उन्हें कोई चिन्ता नहीं है. अडानी ने बाद में मुझ से कहा था की जल्दी ही वो दिन आएगा जब अडानी ग्रुप फिर आसमान की ऊंचाईयों पर होगा. मुझे लगता है कि अडानी आज सही साबित हुए. उनकी बात सच थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें क्लीन चिट दे दी है. अब सबसे ज्यादा मुसीबत राहुल गांधी को होगी, अब वो अडानी का नाम लेकर मोदी पर आरोप कैसे लगाएंगे ,राहुल के स्क्रिप्ट writers को पूरी कहानी बदलनी पड़ेगी.
SC CLEAN CHIT TO ADANI : RAHUL MAY HAVE TO WRITE A NEW SCRIPT
The Supreme Court on Wednesday rejected prayers for a court-monitored probe by CBI or SIT(Special Investigation Team) into allegations made against Adani group by an American short seller firm, Hindenburg Research, in its report which was published on January 24, 2023. A three judge bench comprising Chief Justice D Y Chandrachud, Justice J B Pardiwala and Justice Manoj Misra disposed of a batch of four petitions seeking probe into Hindenburg allegations. The apex court pointed out that SEBI(Securities & Exchange Board of India) has completed 22 out of the 24 investigations into the Adani group and the remaining two are pending due to inputs awaited from foreign regulators. The court directed SEBI to complete the remaining probe within three months. The apex court said, “SEBI has prima facie conducted a comprehensive investigation… No apparent regulatory failure can be attributed to SEBI based on the material before this court. Therefore, there is prima facie no deliberate inaction or inadequacy in the investigation by SEBI.” The apex court also rejected the views of some petitioners who had relied on a report published by Organized Crime and Corruption Reporting Project (OCCRP) and various other newspaper articles which referred to the OCCRP report, and had complained that SEBI was lackadaisical in conducting the probe. Rejecting the petitioners’ views, the apex court said, “the petitioner’s case appears to rest solely on inference from the OCCRP report…such reports by ‘independent’ groups or investigative pieces by newspapers may act as inputs before SEBI or the Expert Committee, but they cannot be relied on as conclusive proof”. The Hindenburg report came in January 2023, two days before Adani group was supposed to come with its largest Follow-On Public Offer of Rs 20,000 crore. The Adani group withdrew its FPO offer and this led to a sharp decline in the prices of Adani group shares in the stock market. Expressing happiness over the apex court verdict, Gautam Adani went on social media platform X and tweeted: “The Hon’ble Supreme Court’s judgement shows that: “Truth has prevailed. Satyameva Jayate. I am grateful to those who stood by us. Our humble contribution to India’s growth story will continue. Jai Hind.” Senior Advocate Mukul Rohatgi welcomed the verdict saying that the apex court has reposed its full trust in SEBI probe. The Hindenburg report had raised questions about the style of working, investments and management of Adani group. There was hue and cry inside Parliament over this issue and the entire budget session witnessed pandemonium. Now that the apex court has refused to direct a SIT probe into Adani group, opposition parties are alleging that the Supreme Court has not done justice to investors. CPI-M general secretary Sitaram Yechury said, “SC judgement in the Adani case is disappointing and unfortunate on several grounds…SC has not enhanced its credibility with this judgement.” Congress party said, “The Supreme Court judgement .. has proved extraordinarily generous to SEBI…Truth dies a thousand deaths when we hear Satyameva Jayate from those who have gamed, manipulated and subverted the system this past decade….Our fight for NYAY against crony capitalism and its ill-effects on prices, unemployment and inequalities will continue even more forcefully”. Congress MP Manish Tewari alleged that Modi government is trying hush up Adani scam. Interestingly, on one hand while Congress leader Rahul Gandhi has been consistently raising questions against Gautam Adani and his group, his party’s government in Telangana is welcoming investments from Adani group. On Wednesday, Telangana chief minister Revanth Reddy met a delegation from Adani group led by Gautam Adani’s son, Karan Adani, CEO of Adani Ports and Special Economic Zone, for setting up a data center and aerospace park in the state. Revanth Reddy promised full assistance to the group. Gautam Adani is one of India’s leading industrialists. When the Hindenburg report came, Adani was third in the list of World’s richest persons, but after the report came, his wealth declined by nearly half and prices of his group companies crashed. Within 20 days, Adani was out from the list of World’s Top 20 richest persons. The loss that accrued because of an incorrect, false, fabricated and speculative report of a foreign short seller company was not only Adani’s, but also India’s loss. It hurt Indian economy. The opposition made hue and cry over this report, did not allow Parliament to function, and Rahul Gandhi made Adani his main tool to attack Narendra Modi. On Wednesday, when the Supreme Court gave a clean chit to Adani group, Rahul was nowhere on the scene. He did not post any tweet. I remember, when the Hindenburg report came, Gautam Adani was my guest in ‘Aap Ki Adalat’. Adani had then said clearly that his “balance sheet was clear, every paisa was accounted for, there has been no dishonesty”, nor does he believe in dishonesty, and he follows rules and laws scrupulously. He said, he was least worried. Later, Adani told me that a day will soon come when Adani group will touch the pinnacle of success. I think, Gautam Adani has been proved correct. His words have come true. Now that the Supreme Court has given his group a clean chit, Rahul Gandhi may become worried, because he has lost his biggest weapon to target Modi. Rahul’s script writers will have to change the entire story.
क्या मोदी मुसलमानों का दिल जीत पाएंगे?
आप सबको नए साल की शुभकामनाएं. 2024 दुनिया के सबसे बड़े चुनाव का साल होगा. एक तरफ बीजेपी और NDA और दूसरी तरफ कांग्रेस और इंडी एलायन्स का मुकाबला. मेरी कोशिश रहेगी दोनों तरफ की रणनीति, दोनो तरफ की तैयारी और इस मुकाबले की खबर सबसे पहले आप तक पहुंचाऊं. मंगलवार को बीजेपी ने एलान कर दिया कि इस बार लोकसभा चुनाव में उसका नारा होगा – ‘तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार 400 पार.’ इस लक्ष्य को पाने के लिए बीजेपी ने रणनीति भी तय कर ली है. बीजेपी देश भर में ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे को लेकर जाएगी. नोट करने वाली बात ये है कि इस बार बीजेपी, मुस्लिम मतदाताओं का दिल जीतने की कोशिश करेगी. सभी राज्यों में बीजेपी बूथ लेबल तक मुस्लिम परिवारों के पास पहुंचेगी.खासतौर पर उन मुस्लिम परिवारों को टारगेट किया जाएगा, जो किसी न किसी सरकारी योजना के लाभार्थी हैं. सभी राज्यों में प्रधानमंत्री की योजनाओं के साथ बीजेपी के कार्यकर्ता, ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में जाएंगे. उत्तर प्रदेश में ‘शुक्रिया मोदी भाईजान’, बंगाल में ‘मोदी दादा’, महाराष्ट्र में ‘मोदी भाऊ’ और तमिलनाडु में ‘मोदी अन्ना’ अभियान चलाया जाएगा. इस अभियान की टैग लाइन होगी – ‘न दूरी है, न खाई है, मोदी हमारा भाई है’. बीजेपी की इस नई कोशिश का पहला उदाहरण मिला, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान की अनौपचारिक शुरूआत लक्षद्वीप से की. मोदी मंगलवार की रात लक्षद्वीप में ठहरे. बुधवार को उन्होने लक्षद्वीप में 1150 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का तोहफा दिया. लक्षद्वीप वो चुनावक्षेत्र है, जहां 95 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. यहां बीजेपी कभी नहीं जीती लेकिन मोदी ने लक्षद्वीप के लोगों से कहा कि वो उनके साथ हैं, उनके साथ रहेंगे, उनकी सभी जरूरतों का ख्याल रखेंगे. जिस वक्त विरोधी दलों के नेता बीजेपी पर राम मंदिर का हवाला देकर हिन्दुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने का इल्जाम लगा रहे हैं, मुसलमानों को मोदी के खिलाफ भड़का रहे हैं, ऐसे वक्त मोदी ने अचानक पैंतरा बदल कर विरोधियों को चौंका दिया.
लक्षद्वीप केन्द्र शासित क्षेत्र है, यहां केवल एक लोकसभा सीट है. वोटर्स की संख्या के लिहाज से सबसे छोटी लोकसभा सीट है, आबादी करीब 70 हजार है लेकिन खास बात ये है कि लोकसभा सीट बनने के बाद 1967 से यहां जनसंघ या बीजेपी कभी नहीं जीती. कांग्रेस के पीएम सईद यहां से दस बार सांसद रहे, जो लगातार एक सीट से चुनाव जीतने का रिकॉर्ड है. पीएम सईद के निधन के बाद यहां से लोकसभा का चुनाव उनके बेटे अब्दुल्ला सईद ने जीता. इस मुसलिम बहुल चुनावक्षेत्र में जाकर नरेन्द्र मोदी का लोगों से बात करना, वहां रात भर ठहरना, ये बीजेपी की रणनीति में बदलाव का सबूत है. बीजेपी ने अब तय किया है कि मुस्लिम भाइयों के दिलों में विरोधी दलों ने ,बीजेपी को लेकर जो खौफ पैदा किया है, जो दूरियां बनाने की कोशिश की गई है, उन्हें खत्म करना है. अब बीजेपी खुद मुस्लिम भाइयों के घर जाकर उनकी बात सुनेगी और अपनी बात कहेगी. बीजेपी की माइनॉरिटी सेल के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने बताया कि बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं खुद आगे आ रही हैं, मोदी को शुक्रिया कहकर चिट्ठियां लिख रही हैं, पूरे देश से मुस्लिम बहनों के करीब पांच लाख पत्र प्रधानमंत्री को भेजे गए हैं – उत्तर प्रदेश के अलावा असम, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे कई प्रदेशों से जबरदस्त फीडबैक मिल रहा है. इसलिए अब बीजेपी भी मुस्लिम परिवारों तक खुद पहुंचेगी. अगले दो हफ्तों में देशभर में ये अभियान चलाया जाएगा. उत्तर प्रदेश में शुक्रिया मोदी भाईजान अभियान की शुरूआत 12 जनवरी से होगी. पहला कार्यक्रम 12 जनवरी को लखनऊ में होगा. इसके बाद हर जिले में करीब दो हजार ऐसे सम्मेलन होंगे, जिसमें उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना की लाभार्थी मुस्लिम महिलाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को शुक्रिया भाईजान कहेंगी. यूपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा कि विपक्ष की सरकारों के लिए मुसलमान सिर्फ वोटबैंक था लेकिन केंद्र सरकार ने बिना भेदभाव के काम किया, मुस्लिम परिवारों को भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है. कुंवर बासित अली ने कहा कि मुस्लिम परिवारों को अब समझ में आ गया है कि मोदी ने उनके लिए क्या किया है. इसीलिए मुस्लिम वोटर्स और बीजेपी के बीच जो खाई थी वो अब पट रही है. बड़ी बात ये है कि मोदी ने दस साल पहले नारा दिया था – सबका साथ सबका विकास. 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले जब मोदी ‘आप की अदालत’ में आए थे, तो उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं मुस्लिम नौजवानों के एक हाथ में कुरान हों और दूसरे हाथ में कंप्यूटर हो. अगर वो प्रधानमंत्री बने तो सबका साथ सबके विकास के नारे पर काम करेंगे. मोदी ने दस साल तक इसी थीम पर काम किया. अब मुस्लिम भाइयों के दिलों में जो शंकाएं थी, आशंकाएं थीं, उनको दूर करने की जो कोशिश हुई, उस में कितनी कामयाबी मिली, अब बीजेपी ने जो दोस्ती का हाथ बढाया है, इसका राजनीतिक असर क्या होगा, बीजेपी को इसका कितना फायदा मिलेगा, ये अभी कहना मुश्किल है. बीजेपी की मंशा तो समझ में आती है, देश में करीब सौ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिनमें मुस्लिम मतदाता जीत हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं. इसलिए अगर बीजेपी को चार सौ का आंकड़ा पार करना है तो ये मुसलमानों के वोट के वगैर नहीं होगा. लेकिन बीजेपी और मुसलमान वोटर्स के बीच खाई गहरी है. ये तो सब मानते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ मुसलमानों तक बिना भेद भाव के पहुँचा है, मकान मिले, राशन मिला, बिजली मिली, नल से जल मिला, लोन मिला , हुनर को मौका मिला, पर मोदी को मुलालमानों का वोट नहीं मिला. मुस्लिम समाज में मोदी को लेकर एक बड़े वर्ग में पर्सेप्शन बदला है, पर बीजेपी की विचारधारा को लेकर, इसके कई नेताओं की बयान बाजी को लेकर, mob lynching जैसी घटनाओं को लेकर बहुत सारे सवाल हैं, शक है, डर है। विरोधी दलों के नेता भी इस बात को समझते हैं, वो भी भड़काने और आग लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, वो जानते हैं कि अगर कुछ मुस्लिम वोट बीजेपी के पाले में चले गए तो उनके सारे सियासी समीकरण बिगड़ जाएंगे. उदाहरण के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी ने मौका लगते ही शुरुआत कर दी, वो राम मंदिर का हवाला देकर काम पर लग गए. ओवैसी ने मुस्लिम नौजवानों से कहा कि एक मस्जिद तो छीन ली गई, अब जाग जाओ, दूसरी मस्जिदों को बचाओ. ओबैसी के इस बयान पर बीजेपी, वीएचपी और साधु संतों ने कड़ी नाराजगी जाहिर की. ओवैसी की सारी सियासत राम मंदिर के विरोध पर टिकी है. वो लगातर कहते रहे हैं कि वहां बाबरी मस्जिद थी, बाबरी है और बाबरी मस्जिद ही रहेगी. लेकिन कहने से क्या होता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, ये एक सर्वमान्य सत्य हैं कि अब वहां राम मंदिर है और राम मंदिर ही रहेगा. तमाम विरोधी दल इस हकीकत को समझ चुके हैं. मुस्लिम भाईयों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल से स्वीकार किया है. ओवैसी जितने जल्दी इस हकीकत को समझ जाएं, अच्छा है, वरना उनके भड़काऊ बयान से कुछ होने वाला नहीं है. इस पूरे मामले का दूसरा पक्ष देखने समझने की जरूरत है. अयोध्या नगरी का कायाकल्प हो चुका है. राम मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्राणप्रतिष्ठा की तैयारी पूरे जोर शोर से चल रही है.
MODI’S OUTREACH TOWARDS MUSLIMS
First of all, New Year greetings to all of you. This year will witness one of the world’s largest elections in history. The contest is between BJP-led NDA and Congress-led INDIA alliances. Already both camps have started preparations. On Tuesday, BJP announced its slogan, “Teesri Baar Modi Sarkar, Ab Ki Baar 400 Paar”. BJP has chalked out a strategy to achieve its target of 400 Lok Sabha seats. BJP will be trying to win the support of Muslim voters this time. Party workers have been asked to reach out to all Muslim families at the polling booth level. Muslim families who have benefited from a plethora of Modi government’s welfare initiatives will be targeted. BJP workers will be reaching out to voters in states with different names – “Shukriyaa Modi Bhaijaan” in UP, “Modi Dada” in West Bengal, “Modi Bhau” in Maharashtra and “Modi Anna” in Tamil Nadu. The tag line will be “Na Doori Hai, Na Khai Hai, Modi Hamara Bhai Hai”. Already, Prime Minister Modi has begun his informal launch of the campaign by visiting Lakshadweep, located 1,215 km away from Delhi, where more than 95 per cent voters are Muslims. BJP never won this parliamentary seat in the past. During his two-day visit, Modi told Muslim voters in Lakshadweep that he would continue to take care of their needs and aspirations. At a time when leaders of opposition parties are alleging that BJP is pushing its majoritarian Hindutva agenda by building the Ram temple in Ayodhya, and leaders like Asaduddin Owaisi are inciting Muslim youths to come forward to protect mosques, Modi has surprised his rivals by changing tack. The Prime Minister preferred a night stay in Lakshadweep before launching projects worth Rs 1150 crore. He launched a submarine optical fibre project linking Lakshadweep to Kochi in mainland Kerala on Wednesday. Since 1967 when Lakshadweep became a Lok Sabha constituency, BJP or its previous avatar Jana Sangh, never won this seat. P M Sayeed of Congress party won this seat ten times consecutively. After his death, his son Abdullah Sayeed won. Modi wooing Muslim voters in Lakshadweep has sent a message to the entire community. BJP minority cell chief Jamal Siddiqui says, large number of Muslim women are now coming forward to support the party and they have written letters thanking the PM for putting an end to ‘triple talaq’ and providing them with welfare schemes. Similar feedback has come from UP, Assam, Maharashtra, West Bengal, Kerala, MP and Rajasthan. In UP, BJP is going to launch ‘Modi Bhaijaan’ campaign from January 12 to reach out to Muslim voters. BJP’s UP Minority Morcha chief Kunwar Basit Ali said, Muslims had been merely vote banks for opposition governments in the past, but for the first time, Modi government has made no discrimination in providing welfare benefits to Muslim families. When he took over as Prime Minister in 2014, Modi had coined the slogan “Sabka Saath, Sabka Vishwas”. The same year during the Lok Sabha elections, Modi was my guest in ‘Aap Ki Adalat’ show, where he made the famous remark: “I would one day like to see Muslim youths holding the Holy Quran in one hand and a computer in the other”. Modi worked on this theme for ten years and tried to dispel all misgivings from the minds of minorities. It remains to be seen how far this outreach towards Muslim community will work during the forthcoming general elections. There are nearly 100 Lok Sabha seats in India where Muslim voters play a major role in the victory or defeat of candidates. BJP can touch the magical 400 figure in Lok Sabha only by securing the support of Muslim voters. However, the chasm between BJP and Muslim voters continues to remain deep, despite the fact that benefits of most of the welfare schemes of Modi government have also reached Muslims. Whether it is housing, or free ration, or drinking water supply, or Ujjwala LPG cylinders, or electricity, or bank loans, Muslims have also been the beneficiaries. Yet, during elections, Modi’s BJP failed to get Muslim votes. Gradually the perception of Muslims towards Modi is changing. Issues like mob lynching, hate speeches by some hardline leaders remain and Muslim voters still have fear in their minds. Opposition leaders realize this and they do not miss any opportunity in stoking fear in the minds of Muslims. These leaders are apprehensive that Modi may ruffle their political equations. On New Year Day, AIMIM chief Asaduddin Owaisi told Muslim youths in Hyderabad to mobilize and protect all mosques. VHP president Alok Kumar condemned his remark, while Union Minister Giriraj Singh said, “the jinn (soul) of Jinnah has now entered Owaisi’s body”. Singh alleged that Owaisi is trying to incite Muslims, but he must know that the DNA of both Hindus and Muslims in India is the same. It is no secret that Owaisi’s politics has always been focused on Babri mosque demolition issue and on opposing the building of Ram Temple in Ayodhya. Owaisi continues to say that Babri mosque was, is and will always remain in its place. His remark may sound pompous now, because already the Supreme Court has given its verdict and the grand Ram Temple that is being built will continue to remain in its place. Most of the opposition parties have acknowledged this reality, and Muslims have also accepted the apex court verdict. The sooner Owaisi realizes this reality, the better, because inciting youths will not help. The city of Ayodhya is already gearing up for the consecration ceremony of Ram Lala idol on January 22.
ललन ने झूठ क्यों बोला, मीडिया पर दोष क्यों मढ़ा?
नीतीश कुमार ने जनता दल (यूनाइटेड) को पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में ले लिया. नीतीश कुमार JD-U के अध्यक्ष और राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह JD-U के पूर्व अध्यक्ष हो गए. दिल्ली में JD-U की राष्ट्रीय परिषद की दो दिन तक चली बैठक का लक्ष्य ही था, ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाकर नीतीश कुमार को बनाना था. हालांकि कहने को ललन सिंह ने खुद अपने पद से इस्तीफे का प्रस्ताव रखा, फिर नीतीश को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भी ललन सिंह का ही था और दोनों प्रस्तावों को नीतीश कुमार ने ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया. ललन सिंह की स्क्रिप्ट भी वही थी. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान वह अपने क्षेत्र में व्यस्त रहेंगे, पार्टी को वक्त नहीं दे पाएंगे इसलिए पद छोड़ना चाहते हैं. कुल मिलाकर हुआ वही, जो पहले से तय था. सवाल सिर्फ इतना है कि जब कुछ तय हो गया था, जब सारी दुनिया को पता था, तो किस बात की गोपनीयता रखी जा रही थी. जो बात जगज़ाहिर थी, वो खबर बताने के लिए मीडिया पर इल्जाम लगाने की क्या जरूरत थी.? बार बार झूठ बोलने की क्या वजह थी.? ललन सिंह, तेजस्वी यादव, के सी त्यागी, विजय चौधरी .जैसे नेता, कल किस तरह झूठ बोल रहे थे और आज उन्होंने पलटी मारी. JD-U में क्या होने वाला है, इसकी ख़बर सबको थी. सबको मालूम था कि ललन सिंह की कुर्सी जाने वाली है. नीतीश कुमार JD-U के अध्यक्ष बनने वाले हैं. सिर्फ JD-U के नेता इससे इनकार कर रहे थे. नीतीश कुमार ने पूरी स्क्रिप्ट कई दिन पहले तैयार कर ली थी. पांच दिन पहले ललन सिंह को अपना प्लान बता दिया था लेकिन नीतीश को ललन सिंह पर भरोसा नहीं था., इसीलिए जब तक ललन सिंह इस्तीफा नहीं दे देते,तब तक कोई कुछ नहीं कहेगा, ये हिदायत JD-U के नेताओं को दी गई थी. शुक्रवार को ललन सिंह JD-U के पूर्व अध्यक्ष हो गए तो कुछ नहीं बोले, लेकिन गुरुवार तक जब पार्टी के अध्यक्ष थे तो खूब बोल रहे थे. वो भी मीडिया को कोस रहे थे. ललन सिंह ने कहा था कि जब अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का विचार आएगा तो पहले पत्रकारों को बुलाकर पूछंगे, .जब पत्रकार कह देंगे , तो इस्तीफे में क्या लिखना है ये भी रिपोर्टर्स से पूछेंगे. फिर जब पत्रकार बीजेपी के दफ्तर से इस्तीफे के ड्राफ्ट को मंजूरी दिला लाएंगे, तब इस्तीफा देंगे लेकिन शुक3वार को ललन सिंह ने ये नहीं बताया कि उन्होंने इस्तीफे का फैसला, क्या रात भर में कर लिया. फिर इस्तीफे का ड्राफ्ट भी खुद ही तैयार कर लिया या किसी और से लिखवाया. ऐसे बहुत से नेता है जो एक ज़माने में नीतीश के करीबी थे., नीतीश ने उन्हें आगे बढ़ाया, फिर उनका वही हाल हुआ जो आज ललन सिंह का हुआ . ऐसे कई नेता शुक्रवार को खुलकर बोले. JD-U के पूर्व उपाध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई. क्योंकि ललन सिंह लालू यादव के कहने पर चल रहे थे, इसलिए नीतीश ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अब नीतीश कुछ भी कर लें, JD-U को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकेगा. उपेन्द्र कुशवाहा की तरह जीतनराम मांझी भी दूध के जले हैं. मांझी को तो नीतीश ने अपनी जगह मुख्यमंत्री बनाया, फिर बेइज्जत करके हटाया और कुछ हफ्ते पहले विधानसभा में यहां तक कह दिया कि इस गधे को मुख्यमंत्री बनाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी. .उन्हीं जीतनराम मांझी ने शुक्रवार को खुलासा किया कि वो कुछ दिन पहले नीतीश कुमार से मिले थे और उन्हें बताया था कि RJD में क्या खिचड़ी पक रही है, इसलिए तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाकर दूसरी बार बड़ी गलती मत करिएगा. मांझी ने कहा कि कुछ दिन पहले, ललन सिंह और JDU के 12-13 विधायक तेजस्वी को CM बनाने का प्रस्ताव लेकर नीतीश के पास गए भी थे, इसके बाद ही नीतीश को समझ आ गया कि उनके खिलाफ साज़िश हो रही है, इसीलिए उन्होंने ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटाने का फ़ैसला किया. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि सब लालू का खेल है, जिसमें नीतीश फंस गए हैं, अब छपटपटा रहे हैं. गिरिराज ने कहा लालू यादव किसी भी तरह तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और नीतीश कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं, इसलिए, बहुत जल्दी लालू स्पीकर से मिलकर नीतीश के साथ खेला करेंगे. शुक्रवार को तेजस्वी यादव ने कहा कि JD-U के नेतृत्व में बदलाव हुआ है, ये पार्टी का आंतरिक मसला है, इससे RJD-JDU के रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तेजस्वी ने फिर मीडिया पर तोहमत लगाने की कोशिश की, कहा कि मीडिया बीजेपी के इशारे पर चलता है. आज ये सच सामने आ गया कि ललन सिंह एक दिन पहले तक खुलेआम झूठ बोल रहे थे और रिपोर्टर्स को झूठा करार दे रहे थे. तेजस्वी यादव मीडिया की जिन खबरों को बकवास कह रहे थे वो शत प्रतिशत सच साबित हुई .मुझे इस बात को लेकर कोई गिला नहीं कि ललन ने झूठ बोला या तेजस्वी ने गलत बयानी की, जनता जानती है कि इस तरह की बातें करना इन सबकी आदत है. मेरी शिकायत इस बात से है कि इन दोनों ने पत्रकारों पर लांछन लगाया. इन्होंने अखबारों और मीडिया चैनल्स पर निहायत ही घटिया आरोप लगया. ललन सिंह ने रिपोर्टर्स से कहा कि आप बीजेपी की लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं. आज सच सामने आया, पूरी दुनिया को पता चल गया कि स्क्रिप्ट नीतीश कुमार और ललन सिंह ने मिलकर लिखी थी. तेजस्वी यादव को भी असलियत का पता था लेकिन ये सारे लोग जानते बूझते असत्य बोल रहे थे. आजकल ये फैशन हो गया है कि नेता सच जानते हैं, पर छुपाते हैं. अगर मीडिया उनकी पोल खोल दे तो मीडिया पर उल्टे सीधे आरोप लगाते हैं. ये समस्या ललन सिंह और तेजस्वी यादव से लेकर राहुल गांधी और अखिलेश यादव तक सब में दिखाई देती है. सब मीडिया से कहते हैं, आप सरकार से डरते हैं, मोदी से डरते हैं, असलियत ये है कि डरते तो ये सब नेता हैं. पलटी तो ये नेता मारते हैं. आपस में एक दूसरे को धोखा तो ये नेता देते हैं और जब मन करता है तो मीडिया को दोष देते हैं. अब इस बात की क्या गारंटी है कि ललन सिंह नीतीश कुमार की पीठ में छुरा नहीं घोपेंगे? इस बात की क्या गारंटी है कि लालू और तेजस्वी नीतीश के नीचे से उनकी कुर्सी नहीं खींचेंगे? और क्या गारंटी है कि नीतीश कुमार पलटी नहीं मारेंगे? लालू को धोखा नहीं देंगे? मेरा कहना है कि ये नेता आपस में जो चाहे कहें, जितनी मर्जी पलटी मारें, पर अपने कर्मों के लिए, चुनाव में अपनी हार के लिए मीडिया को दोष न दें. हमारे रिपोर्टर्स को अपना काम करने दें और संपादकों के कमेंट्स पर मुंह फुलाना बंद करें. मैं इन झूठ बोलने वालों को मशहूर शायर कृशन बिहारी शर्मा ‘नूर’ का एक शेर सुनना चाहता हूँ – “सच घटे या बढ़े, तो सच न रहे, झूठ की कोई इंतहा ही नहीं … चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो, आईना झूठ बोलता ही नहीं” .
WHY DID LALAN LIE AND BLAME MEDIA?
Bihar Chief Minister Nitish Kumar took full control over his party Janata Dal (United) on Friday, after Lalan Singh resigned as party president . Lalan Singh proposed the name of Nitish Kumar for the post of party president at the two day meeting of the national council in Delhi. He said, he would be busy in his constituency during the forthcoming Lok Sabha election and would be unable to carry on with the responsibility of party chief. For the last three days, Lalan Singh, Tejashwi Yadav, K C Tyagi and Vijay Chowdhary had been trying their best to shroud this development in secrecy and were openly telling lies on camera. They were blaming the media for speculating on a development that ultimately took place, but for several days, they were consistently denying any such possibility. At the national council meeting of JD(U), all the leaders present knew what was going to happen. Nitish Kumar had told Lalan Singh about his plan for change of guard five days ago in Patna. Yet he did not trust him fully. There were strict instructions to the leaders not to reveal anything to the media till the time Lalan announced his resignation. Nitish Kumar had hectic consultations with Lalan Singh, and on Friday, he took him in his car to attend the meting. At the meeting, Nitish “humbly accepted” the responsibility of party chief and left with Lalan Singh. In Patna, Upendra Kushwaha, who was once JD-U vice president, and broke away from the party early this year to form his Rashtriya Lok Janata Dal said, he was not surprised over the development. He alleged that Lalan Singh was following instructions from RJD supremo Lalu Prasad Yadav, because of which Nitish removed him from the post of party president. Another former JD-U leader Jitan Ram Manjhi, who was unceremoniously removed as chief minister by Nitish Kumar, and was recently described as an “ass” by the chief minister inside the assembly, disclosed that he had met Nitish a few days ago and had warned him not to make the mistake of appointing Lalu’s son Tejashwi Yadav as the chief minister. Manjhi revealed that Lalan Singh had taken 12 to 13 MLAs a few days ago and had told Nitish to make Tejashwi the new CM,. Nitish immediately smelled a conspiracy and made up his mind to remove Lalan Singh from party chief post. Union Minister and BJP leader Giriraj Singh described the entire development as “Lalu’s game”. He said, Nitish has been caught in the spider’s web. Singh said, Lalu has decided to anoint his son Tejashwi as CM, but Nitish is unwilling to quit. In Patna, Tejashwi Yadav described the change of guard in JD(U) as an internal matter of that party and said it would have no impact on RJD-JD(U) relations. He blamed BJP for floating conspiracy theories. Now that the cat is out of the bag, it is pertinent to point out how JD(U) leaders were blaming media for spreading lies during the last few days. On Thursday, Tejashwi Yadav was describing media reports about Lalan’s ouster as “baseless speculation”, but these proved true on the very next day. I have no complaints about Lalan Singh telling lies, or Tejashwi making false statements. The common people know that leaders do tell lies in public. My only complaint is that both these leaders blamed journalists for reporting the truth, and used foul words against some newspapers and news channels. Lalan Singh had alleged that reporters were reading from scripts prepared by BJP. But the truth was out on Friday. The script for change of guard in JD(U) was jointly written by Nitish Kumar and Lalan Singh. Tejashwi Yadav knew the truth, but these leaders were deliberately speaking untruths in public. It has now become a fashion for most leaders, who, in order to hide the truth, blame media for spreading untruths. Not only Lalan Singh and Tejashwi Yadav, but also leaders like Rahul Gandhi and Akhilesh Yadav blame the media whenever they find it convenient. They openly say in public meetings that the media is “afraid” of Modi and his government. The fact is, these leaders are themselves afraid, they make political somersaults and deceive each other, but they blame media for spreading “lies”. Where is the guarantee that Lalan Singh will not stab Nitish Kumar in his back? Where is the guarantee that Lala and Tejashwi will not pull Nitish down? Where is the guarantee that Nitish Kumar will not make another somersault as ‘paltu Chacha’ and deceive Lalu again? My view is: whatever these leaders may say or do in politics, or make somersaults, they should desist from blaming media for their problems and electoral defeats. Leaders should allow reporters to do their jobs fearlessly and they should stop being angry over the comments made by editors. For such leaders, I want to quote an Urdu couplet of Krishna Bihari Sharma ‘Noor”: “Sach Ghate Ya Badhe, Toh Sach Na Rahe, Jhooth Ki Koi Inteha Hi Nahin…..Chahe Sone Ke Frame Mein Jad Do, Aaina Jhooth Bolta Hi Nahin”. (Literal meaning: Truth never remains so, if you add or subtract, there is no limit to lies…. even if fixed inside a gold frame, the mirror never lies).
मोदी की कूटनीति : क़तर में कैसे 8 भारतीयों की फांसी की सज़ा क़ैद में तबदील हुई
क़तर की कोर्ट ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसरों की मौत की सज़ा को कैद में तब्दील कर दिया है. इन पूर्व अफसरों को जासूसी के इल्जाम में मौत की सजा सुनाई गई थी लेकिन भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयासों को पहली और बड़ी कामयाबी मिली. कतर के कोर्ट ऑफ अपील्स ने उनकी मौत की सजा को कैद में तब्दील कर दिया. विदेश मंत्रालय ने बताया कि कतर की कोर्ट ऑफ़ अपील्स में जिस वक्त सुनवाई हुई उस वक्त 8 भारतीय नागरिकों के परिवार वालों के साथ साथ, क़तर में भारत के राजदूत और इंडियन मिशन के कई अफसर कोर्ट में मौजूद थे. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अभी फैसले का ब्यौरा सामने नहीं आया है, और चूंकि मामला नाज़ुक है इसलिए फिलहाल इस पर ज्यादा जानकारी नहीं दी जा सकती. क़तर की कोर्ट ऑफ अपील्स का विस्तृत फ़ैसला मिलने के बाद इन 8 भारतीयों के परिवारों के साथ मिलकर आगे की रणनीति तय की जाएगी. कतर की कोर्ट ऑफ अपील्स का फैसला राहत देने वाला है. सरकार ने पिछले दो महीनों में कतर सरकार के साथ हर स्तर पर मुद्दे को उठाया, कोर्ट में जबरदस्त पैरवी की और इसका नतीजा देश के सामने हैं. विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि सरकार इस मामले को यही नहीं खत्म नहीं करेगी. नौसेना के पूर्व अधिकारियों की सजा को और कम कैसे करवाया जा सकता है या उन्हें भारत कैसे लाया जा सकता है, इस रणनीति पर काम जारी रहेगा. क़तर की गुप्तचर एजेंसी स्टेट सिक्यूरिटी ब्यूरो ने पिछले साल अगस्त में कतर की एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे नौसेना के आठ पूर्व अफसरों को जासूसी के इल्जाम में गिरफ्तार किया था, कोर्ट में गुपचुप चरीके से सुनवाई हुई और दो महीने पहले अक्टूबर में सभी को सजा-ए-मौत सुनाई गई. जैसे ही भारतीय नागरिकों को मौत की सजा की खबर आई, तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने बिना देर किए कतर की सरकार से संपर्क किया. वहां की न्यायिक प्रणाली के तहत कदम उठाए, सजा के खिलाफ अपील की, मजबूती से अपना पक्ष रखा और आज बड़ी कामयाबी हासिल की. राजनयिकों और रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अरब मुल्कों में मौत की सजा पा चुके किसी भी व्यक्ति को छुड़वाना या उसकी सजा को कम करवाना बहुत ही पेचीदा काम होता है, भारत सरकार इसमें कामयाब हुई है, ये छोटी बात नहीं है. भारतीय नौसेना के जो 8 पूर्व अधिकारी कतर की कंपनी में काम करते समय गिरफ्तार हुए थे, उनके नाम हैं – कैप्टन (रि.)नवतेज सिंह गिल, कैप्टन (रि.)सौरभ वशिष्ठ, कमांडर (रि.)पूर्णेंदु तिवारी, कमांडर (रि.)अमित नागपाल, कमांडर (रि.)बी के वर्मा, कमांडर (रि.)सुगनकर पकाला, कमांडर (रि.)एस के गुप्ता और सेलर (रि.)रागेश. भारत सरकार के पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बड़ी अहम बात कही. उनका कहना है कि कई भारत विरोधी मुल्क खाज़ी के क्षेत्र में सक्रिय हैं. वो चाहते हैं कि भारत और खाडी के मुल्कों के बीच रिश्ते बिगड़ें, मोदी सरकार की छवि ख़राब हो, क्योंकि 2014 के में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी खाड़ी के मुल्कों के साथ भारत के रिश्ते बेहतर बनाने पर ज़ोर देते रहे हैं. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, ओमान और क़तर जैसे देशों के साथ भारत के संबंध काफ़ी बेहतर हुए हैं. इसलिए अब क़तर की अदालत के इस फ़ैसले ने भारत के दुश्मन देशों की साज़िशों पर पानी फेर दिया है. विदेश मंत्रालय की तरफ़ से सबसे पहले सारे भारतीयों के लिए कॉन्सुलर एक्सेस मांगा गया. कॉन्सुलर एक्सेस मिलने के बाद भारतीय दूतावास के अधिकारी इन आठ भारतीयों से जेल में मिले, उनसे पूरे मामले की जानकारी ली, परिवारों के लोग भी जेल जाकर उनसे मिले, इसके बाद इस मामले को कतर में सर्वोच्च स्तर पर उठाया गया. ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी सक्रिय हुए. इसी महीने मोदी जब COP28 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने दुबई गए थे, तो वहां उन्होंने क़तर के अमीर, शेख़ तमीम बिन हमाद अल थानी से मुलाक़ात की. बातचीत के दौरान मोदी ने भारतीय पूर्व नौसैनिकों को मौत की सज़ा का मुद्दा उठाया. इसके बाद भारतीय राजनयिकों ने मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ क़तर की अदालत में अपील करने में परिजनों की मदद की और अब ये राहत भरी ख़बर आई है. विदेशी मामलों के जानकार मानते हैं कि आगे चलकर, क़तर में क़ैद इन 8 भारतीयों को वापस लाने के दो विकल्प हो सकते हैं. एक तो क़तर के अमीर हर साल अपने देश की जेलों में बंद लोगों की सज़ाएं माफ़ करते हैं. हो सकता है वो इन भारतीयों की सज़ा को माफ़ करके उन्हें भारत लौटने की छूट दे दें, या फिर ये भी हो सकता है कि दोनों देशों की सरकारों के बीच ये समझौता हो जाए कि ये आठों रिटायर अधिकारियों को बाक़ी की सज़ा, भारत की जेल में काटने की इजाज़त दे दी जाए. रिटायर्ड वाइस एडमिरल अनिल चावला ने उम्मीद जताई कि बहुत जल्द ये आठों भारतीय नागरिक भारत देश लौट आएंगे क्योंकि 2015 में भारत और क़तर के बीच एक समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत क़तर में सज़ा काटने वाले भारतीय नागरिकों और भारत की जेलों में बंद क़तर के नागरिकों को सज़ा काटने के लिए उनके देश भेजने का प्रावधान है. नौसेना के 8 रिटार्यड अफसरों की किस्मत का आखिरी फैसला कतर के अमीर के हाथ में होगा. अमीर के पास किसी भी अपराधी की सजा माफ करने का अधिकार है, परंपरा के मुताबिक क़तर के अमीर रमादान के दौरान सजा माफ करते हैं. सजा माफ करने का एक और मौका कतर का राष्ट्रीय दिवस होता है, जो 18 दिसंबर को पड़ता है. इसीलिए इस बार राष्ट्रीय दिवस का विकल्प तो सामने नही हैं और रमादान के महीने का इंतजार करना पड़ेगा. कतर में अमीर द्वारा सजा की माफी तभी होती है जब कानूनी प्रक्रिया द्वारा अपील करने के बाकी सारे विकल्प खत्म हो जाते हैं. इसीलिए एक तरफ तो हमारे रिटायर्ड नेवी अफसरों के लिए बड़ी राहत की बात है कि उनकी सजा-ए-मौत उम्र कैद में तबदील कर दी गई है और दूसरी राहत की बात ये है कि उन्हें रिहा करने के कई विकल्प अभी खुले हैं. क़तर और भारत के संबंध हमेशा अच्छे रहे हैं. जब जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ शरारत की तो क़तर ने हमेशा भारत का समर्थन किया. इसीलिए उम्मीद है कि इस बार भी क़तर हमारे नागरिकों के साथ उदार रवैया दिखाएंगा.
MODI DIPLOMACY : HOW DEATH PENALTY FOR INDIANS WAS COMMUTED IN QATAR
The Court of Appeal in Qatar has commuted the death sentence given to eight former Indian Navy personnel on charges of alleged espionage. India’s diplomatic efforts achieved a big breakthrough on Thursday, when the appellate court commuted the death penalty given to all the eight accused. A statement from India’s Ministry of External Affairs said: “We have noted the verdict today of the Court of Appeal of Qatar in the Dahra Global case, in which the sentences have been reduced. The detailed judgement is awaited. We are in close touch with the legal team as well as the family members to decide on the next steps.” Family members of the eight convicted Indians, the Indian Ambassador and several officers of the Indian embassy were present, when the court commuted the death penalty. Thursday’s verdict has come as a relief to family members and well wishers of the former Indian Navy personnel. The Indian government had raised the issue with the Qatari government for the last two months at different levels. The result is there for all to see. The eight former Navy personnel, Captain Navtej Singh Gill, Captain Saurabh Vashisht, Commander Purnendu Tiwari, Captain Birendra Kumar Verma, Commander Sugunakar Pakala, Commander Sanjeev Gupta, Commander Amit Nagpal and Sailer Ragesh were working in Qatar for a defence services prover company named Al Dahra Global Technologies and Consultancy Services. In August, 2022, Qatari intelligence agency State Security Bureau arrested them on charges of “spying”, while working for Dahra Global. This company was engaged in training Qatari military personnel and was also working on induction of Italian small stealth submarines U2I2 for Qatari Emiri Naval Force. Retd Commander Purnendu Tiwari was the managing director of the company and the former Navy personnel had been working in the company for the last four to six years. In jail, the former Navy personnel were kept in solitary confinement and had limited access to their relatives over phone. In March this year, the last of their several bail pleas was rejected, the trial began in the same month and on October 26, the court handed them the death sentence, creating shock waves in India. External Affairs Minister S Jaishankar met the relatives of the convicted ex-Navy personnel and assured them full assistance. In November, an appeal was filed, and on December 3, the Indian Ambassador met them in jail. This consular access came two days after Prime Minister Narendra Modi met the Emir of Qatar Sheikh Tamim bin Hamad Al-Thani on the sidelines of COP28 summit in Dubai. The External Affairs Ministry is now working on options to further reduce the jail sentence and ensure that the ex-Navy personnel are brought back to India. Former Indian diplomats and defence experts say that seeking acquittal or release of persons given death sentence in Gulf countries is a complicated exercise, and Indian government has managed to avert the death penalty, which speaks for itself. Former Foreign Secretary Shashank said, there are several countries active in the Gulf region to tarnish Prime Minister Modi’s image and spoil India’s friendly relations with Gulf countries. Prime Minister Modi has been tirelessly working on deepening friendship bonds with Gulf countries like UAE, Oman, Bahrain, Kuwait, Qatar and Saudi Arabia since coming to power in 2014. The Qatari appellate court’s Thursday order has foiled the conspiracy hatched by enemies of India in the Gulf. The main credit goes to Prime Minister Modi, who took personal interest in the case and raised the matter at the highest level with Qatar. There are options now available for release of the Indians from Qatari jail. They can file mercy pleas with the Emir, who is known to grant pardon to convicts at the time of Eid or Ramadan or on Qatari National Day (December 18). Retd Vice-Admiral Anil Chawla said, the eight ex-Navy personnel may soon return to their homeland because India and Qatar had signed a bilateral agreement in 2015 under which Indian or Qatari prisoners serving time in jails can be sent to their respective countries. The final decision rests with the Emir of Qatar, who has the powers to grant pardon to convicts. The family members of the former Navy personnel can now heave a sigh of relief. Relations between India and Qatar had always been friendly. Qatar had supported India every time Pakistan did some mischief. Let us hope Qatar will adopt a liberal attitude for our citizens.
A GRAND RAM TEMPLE IN AYODHYA : THE GAMECHANGER
The sanctum sanctorum of Lord Ram Temple in Ayodhya is almost ready. In the next 72 hours, one out of the three idols of Ram Lala, made by sculptors, will be selected for installation. All the five mandaps of Ram Temple have been built, while work on the first floor is almost complete. Installation of exquisite statuettes and carving of temple wall is complete. At present, work is going on for gold plating the doors of the sanctum sanctorum and the throne on which the idol will be installed. The temple’s structure can now be seen from the sky and the contours of the temple are fast taking a final shape. Work is going on 21 acres out of a total of 70 acres of the vast temple complex, with more than two-third area kept reserved for greenery. The temple has been built on only 2.7 acres of land. Prime Minister Narendra Modi will perform the ‘Pran Prathistha’ (statue installation) pooja on January 22 in the presence of a big gathering of sadhus and other personalities. Devotees can enter the temple from the South Gate after ascending 32 steps of staircase. There are three main gates of the temple – Lion Gate, Elephant Gate and Hanuman Gate. Devotees can rease the basement by passing through these gates. Five mandaps – Nritya Mandap, Rang Mandap, Prarthana Mandap , Sabha Mandap and Kirtan Mandap – have been built for devotees to sit and worship. The walls of these mandaps have been beautifully carved, with statuettes of Hindu gods and goddesses set in the walls. The sanctum sanctorum (Garbha griha) of the temple is square shaped with each side 20 feet long and the height is 161 feet. The sanctum sanctorum’s floor has been laid with white Makrana marble brought from Rajasthan. The temple structure has been erected in such a manner that it will remain strong for nearly a thousand years. Nripendra Mishra, retired bureaucrat and the chairman of Ram Mandir Nirman Samiti said, the earlier plan prepared before the Supreme Court verdict was to build a small Ram temple, but after the apex court allowed the construction, the original design was changed. The Ram Lala statue presently being worshipped at the makeshift temple, will be installed in the ’garbha griha’, but it is too small, and devotees may find it difficult to watch it from a distance. In its place, a 51 inch tall new idol of Ram Lala will be installed. The idol is of a five-year-old child, matching the description of Lord Ram’s childhood figure, as described in Valmiki’s Ramayana. Three idols, two black and one white, have been sculpted, out of which one idol will be chosen on December 29 by the committee. The announcement about the selected idol will be made in the first week of January by Shri Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra Trust. The selected idol will be installed on a throne, 3 feet high and eight feet wide. The idol will be placed in such a manner so that the rays of the Sun will touch its forehead every year on Ram Navami (birthday of Lord Rama). The 140 sq. ft. throne is presently being readied with copper wires which will be gold plated. The sanctum sanctorum will be surrounded from four directions with idols of the Sun God, Lord Shiva, Devi Bhagwati and Ganpati (Lord Ganesh). The Ram temple will have a total of 118 doors, all being made in Secunderabad, Telangana, by a private timber company, which specializes in using teak wood for this purpose. More than 100 carpenters and artisans from Tamil Nadu are busy making the temple doors, which will not have a single nut-bolt. The main doors of sanctum sanctorum will be 8 feet high and 12 feet wide. The doors will be five inch thick and will be gold plated. After the idol installation of Ram Lala idol on January 22, the temple will be thrown open to general public the next day. Entry will be from Singh Dwar (Lion Gate) on the eastern side. A huge statue of Jatayu, the demi-god in the form of an eagle, who vainly tried to save Sita from being abducted by the demon king Ravana, will be erected in the temple premises. With hardly 25 days left, round-the-clock work is going on, in three shifts daily, by nearly 4,000 workers. Building the Ram temple was not easy, said Nripendra Mishra. At the very first meeting of the Trust, it was found that the ground on which the temple was supposed to be built was not hard, because, the Saryu river used to flow on that land and the base was not solid. Millions of devotees of Lord Ram are eagerly waiting to visit the temple and watch the beautiful and magnificent temple with their own eyes. It will be the nerve centre of faith for millions of devotees of Lord Ram. It will reflect the centuries-old rich traditions of Sanatan Dharma. Already, gifts from faraway countries like Cambodia, Sri Lanka, Mauritius, Surinam, Nepal and Bhutan have started pouring in. The people of Janakpur in Nepal, considered the birthplace of Goddess Sita, have sent clothes, ornaments, dry fruits and water from 30 holy rivers for bathing the idol of Ram Lala. The chief priest of Ram Janaki temple said, the Nepalese town of Janakpur will celebrate the idol installation on January 22 by lighting earthen lamps. Donors have sent desi ghee from Jodhpur, and turmeric from Cambodia for the ‘yagya’ that will take place during idol installation in Ayodhya. Women from Pune are busy making beautiful clothes embroidered with golden thread for Ram Lala. I remember, in 1992, when Kar Seva began, people started sending bricks called ‘Ram Sheela’ (Ram bricks) from across the country for erecting the shrine. I find the same enthusiasm and involvement of devotees this time too. But there has been a sea change in the environment, then and now. In 1992, it marked the beginning of a movement, there was uncertainty, the atmosphere was hot with hate and enmity. Millions of devotees were angry at that point of time. Today it is the culmination of that movement. A time for charting a new beginning, without hate or rancour, with the air filled with devotion, peace and mutual understanding. This is the main difference between the situation, then an now. People at that time were also filled with devotion, as they are now. People in the South making teakwood doors, artisans and architect from Gujarat, sculptors from the East and West, marble from Rajasthan. It looks as if the entire nation wants to contribute its mite in building the temple. Even Muslim brothers have donated for the temple. This is evidence of the universality of Lord Ram. The Ram temple in Ayodhya will be a shining example of national unity. I expect politicians and thinkers from all hues to view it in this spirit. Sadly, there are still some people who are yet to imbibe this spirit. One of them is Sam Pitroda, chief of Indian Overseas Congress, the overseas wing of Congress party. Pitroda is unhappy over why Prime Minister Modi is spending more time on temples and less on “national agenda” like unemployment, inflation and development. During the late Eighties, Sam Pitroda used to be a close associate of Late Rajiv Gandhi. Today he seems to be the mentor and adviser to Rahul Gandhi. Pitroda arranges Rahul’s foreign trips to Europe and the US. Actually, for Pitroda, the problem is not Ram temple. His main problem is why Narendra Modi is cornering all the credit for building Ram temple. Sam Pitroda has probably forgotten that it was Rajiv Gandhi who had ordered the opening of locks at Ram Janmasthan in 1984 and he had got the credit for this. Now, with Modi’s effort, the holy town of Ayodhya is getting a grand Ram temple, and it is bound to reap political dividends for him during the elections. Somebody should ask Sam Pitroda: Will India’s development come to halt by visiting temples? If visiting temples is a sin, then why did Rahul Gandhi wear ‘janeu’(sacred thread) while visiting temples? This is not the first time that Sam created problems for the Congress. In one interview, when he was asked about 1984 anti-Sikh riots, his reply was: “hua so hua” (what happened, happened). The Congress was caught in a bind, and Sam had to apologize. When India carried out air strike on Balakot after Pulwama terror attack, Sam had said, the air strike was not justified and it is not right to hold Pakistan responsible for the Pulwama attack. Sam Pitroda had even given a clean chit to Pakistan for 26/11 Mumbai terror attacks. And now, Sam is raising question about Ram temple, and PM’s devotion to Lord Ram. I think, this is nothing but sheer foolishness and imprudence. Sam is unable to feel the pulse of India and the Indian people. He is unable to recognize the power of faith and religious devotion among Indians. This could be the reason why he made such remarks about Lord Ram and the Ram temple. The silence of Congress leaders on his remark can prove costly for the party.