Self-appointed agents of integrity should be challenged!
The unnecessary controversy raised by some opposition parties over Prime Minister Narendra Modi attending the Ganapati Puja at the residence of Chief Justice of India Y. V. Chandrachud is worrisome. More than 30 hours of political sabre-rattling took place over a merely 30-second video and a mountain was sought to be made out of a molehill. It is surprising that some opposition leaders have questioned the neutrality and integrity of the Chief Justice of India. A courtesy visit of the PM to the Chief Justice’s residence was sought to be made a topic of controversy and the question of judicial independence was raised.
The first party to raise the flag was Uddhav Thackeray’s Shiv Sena, because its case is pending in Supreme Court. Is a mere courtesy visit of the PM going to make our Chief Justice biased?
Kapil Sibal, himself a politician and also the president of Supreme Court Bar Association, first praised the CJI describing him as “a man of great personal integrity”, but in the same breath, he remarked that “no public functionary should publicize a private event…if there is a gossip around it, it is not fair to the institution.”
BJP leaders reminded how when Dr Manmohan Singh was Prime Minister, the then CJI used to visit the PM’s iftar parties. Bar Council of India chairman and BJP MP Manan Kumar Mishra said, there are some lawyers who always try to create controversies out of nothing. Let me make one thing clear. All those who have questioned the Prime Minister’s visit to the Chief Justice’s residence to attend the Ganapati Puja, are doing great injustice to Chief Justice Chandrachud. Those slyly alleging that PM Narendra Modi has done some “setting” with the CJI, or has told him something secret, probably do not know that the Prime Minister need not wait for an opportunity to attend a Puja in order to speak to the CJI.
There are several such opportunities when the PM and Chief Justice attend public functions together. On the question, why the Prime Minister made the video public, I can only say that had the PM not made the video public, there would have been a hue and cry about a secret meeting with the CJI. The same persons would have then asked why the PM did not make any video public, when he makes every video of his interaction public.
Is it Constitutionally or legally unacceptable for the Chief Justice of India to invite the Prime Minister to his residence? Was it a midnight secret rendezvous over which much hue and cry is being made. Those trying to create an issue over this courtesy visit are actually trying to exert pressure on the Chief Justice. These people know that the Chief Justice will not comment on this issue because he has to uphold the dignity of his chair.
The Prime Minister is not going to react because he has his limitations. On the other hand, these people had a field day on social media. But look at their history. Almost every Chief Justice used to do this. These are the people who used to label the Chief Election Commissioner as pliable, and question the reliability of EVMs, even before the LS election results were announced.
The same people had questioned the claims of our Armed Forces. These are the people who repeatedly try to discredit the media. These are the persons who portray themselves as self-appointed agents of integrity and try to defame and intimidate others. Time has come to give such people a strong reply instead of ignoring them.
खालिस्तानी पन्नू की राहुल की तारीफ पर कांग्रेस चुप क्यों ?
राहुल गांधी ने वॉशिंगटन डीसी में सिखों के बारे में जो कहा, उससे देश भर में सिख समाज में नाराज़गी है, लेकिन अचरज की बात ये है कि राहुल गांधी की खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तारीफ कर दी. राहुल गांधी ने कहा था कि वो अल्पसंख्यकों को उनका हक़ दिलाने और उनको बैखौफ होकर जीने की आजादी दिलाने के लिए लड़ रहे हैं, उनकी लड़ाई इस बात की है कि भारत में सिखों को पगड़ी बांधने में डर न लगे, कड़ा पहनने से कोई न रोके, वे गुरुद्वारों में बेखौफ होकर जा सकें. इसके बाद खालिस्तानी आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने राहुल गांधी के बयान को बिल्कुल सही बताया. जो बात राहुल गांधी कह रहे हैं, वो बात पन्नू भी मानता है. राहुल और उसकी लाइन एक है. पन्नू ने एक बयान जारी करके कहा कि राहुल गांधी ने सिखों के बारे में जो कुछ बोला, उसमें खालिस्तान समर्थक संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ की बात का समर्थन है. सिख फॉर जस्टिस संगठन की यही मांग है कि अलग खालिस्तान देश बनाया जाए, राहुल गांधी का बयान उसकी इस मांग को न्यायोचित ठहराता है. पन्नू ने ये भी कहा कि राहुल गांधी ने जो बयान दिया है, वो इस बात का सबूत है कि भारत में सिखों पर अत्याचार हो रहे है. राहुल गांधी ने सिखों के बारे में जो बयान दिया, तकरीबन वही बात वॉशिंगटन के नेशनल प्रेस क्लब में कही. यहां राहुल ने बिल्कुल वही बात तो नहीं दोहराई, लेकिन दूसरे शब्दों में फिर कहा कि भारत में सभी धर्म के लोगों को, अल्पसंख्यकों को, हर तरह की आज़ादी मिलनी चाहिए, अधिकार मिलने चाहिए, इसी को लेकर बीजेपी और RSS से उनके मतभेद हैं और वह इसी की लड़ाई लड़ रहे हैं. गुरपतवंत सिंह पन्नू अमेरिका में बैठकर भारत के खिलाफ साजिशें रचता है. उसने ब्रिटेन में भारतीय दूतावास पर हमला करवाया, कनाडा में भारतीयों पर हमले करवाए. पन्नू भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखता है, पूरी दुनिया में सिखों को बदनाम करता है और राहुल गांधी अमेरिका में जाकर वही बात कहते हैं, जो खालिस्तानी आतंकवादी पन्नू को रास आती है. इसीलिए जैसे ही पन्नू का बयान आया, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के तमाम नेताओं ने राहुल गांधी को घेरा. अमित शाह ने कहा कि देश विरोधी बातें करना और देश को तोड़ने वाली ताकतों के साथ खड़े होना, राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की फितरत बन गई है. राजनाथ सिंह ने कहा कि सिखों को लेकर राहुल ने जो बातें कहीं, वो सरासर झूठ, बेबुनियाद है. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राहुल भारत-विरोधी अलगाववादी समूह के नेता बनने की तरफ बढ़ रहे हैं, वह राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न करके देश को गृह युद्ध की तरफ धकेलना चाहते हैं. दिल्ली में सिखों ने सोनिया गांधी के घर के बाहर प्रदर्शन किया, और मांग की कि राहुल सिखों के बारे में झूठी बातें कहने के लिए माफी मांगें. प्रदर्शनकारी सिखों ने पूछा कि राहुल ने देश में कहां देखा कि सिखों को पगड़ी पहनने से रोका गया गया है? कौन से गुरूद्वारे में सिख डर कर जाते हैं? सिखों को कड़ा पहनने से किसने रोका? सिख समाज के लोगों ने कहा कि जब कांग्रेस की सरकार थी तब इटली में सिखों को पगड़ी पहनने पर पाबंदी थी. राहुल गांधी की UPA सरकार उसे नहीं हटवा पाई, वो पाबंदी 2014 के बाद हटी, इसलिए बेहतर होगा राहुल अपनी पार्टी का इतिहास देखें और सिखों को बदनाम न करें. बड़ी बात ये है कि राहुल गांधी की बात को उस सिख नौजवान भलिंदर सिंह ने भी गलत बताया जिसका नाम पूछ कर वॉशिंगटन में राहुल ने भारत में सिखों की स्थिति के बारे में गलतबयानी की थी. भलिंदर सिंह विरमानी ने खुद सोशल मीडिया पर अपना वीडियो पोस्ट करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने कल उनका नाम पूछकर सिखों को लेकर जो कमेंट किया, वो पूरी तरह गलत था. भलिंदर सिंह ने कहा कि वो खुद भारतीय हैं, कुछ दिनों के लिए अमेरिका आए हैं, उन्होंने भारत में कभी नहीं देखा कि किसी सिख को पगड़ी पहनने या कड़ा पहनने से रोका गया हो या किसी को गुरुद्वारे जाने में कोई दिक्कत हुई हो. वॉशिंगटन डीसी में राहुल गांधी ने दुनिया भर में भारत-विरोधी प्रचार करने वाली अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाकात की. राहुल गांधी अमेरिकी सांसदों के जिस प्रतिनिधिमंडल से मिले, उसमें इल्हान उमर को खासतौर पर बुलाया गया था. इल्हान उमर डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं, वो खुले तौर पर पाकिस्तान की हिमायती हैं, हर मंच पर भारत का विरोध करती हैं. इल्हान उमर वही हैं, जिन्होंने 2022 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जाकर कहा था कि कश्मीर पर भारत का कोई हक़ नहीं है, भारत को कश्मीर छोड़ना ही पड़ेगा. जब नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 हटाया, तो इल्हान उमर ने कहा था कि मोदी सरकार ने 370 को खत्म करके गैरकानूनी काम किया है, पूरी दुनिया को इसका विरोध करना चाहिए. ये वही इल्हान उमर है जिन्होंने ये कहकर अमेरिकी संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन का बायकॉट किय़ा था कि मोदी सरकार भारत में मुसलमानों पर जुल्म ढा रही है. जून 2023 में इल्हान उमर अमेरिका की संसद में भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव लेकर आई थीं जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्रालय से अपील की गई थी कि वह भारत को एक ऐसा देश घोषित करे जहां पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है, जहां मुसलमान सुरक्षित नहीं है. चूंकि इल्हान उमर का भारत-विरोधी एजेंडा किसी से छुपा नहीं है, इसके बाद भी भारत के नेता, प्रतिपक्ष राहुल गांधी का इल्हान उमर से मिलना हैरानी की बात है. आज बीजेपी के तमाम नेताओं ने राहुल गांधी के इस कदम की आलोचना की. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो न जाने कहां-कहां, कितने देशों में कांग्रेस के खिलाफ अनाप-शनाप बातें कहीं, राहुल गांधी को अपशब्द कहे, अब वही बीजेपी के लोग हमें पाठ पढ़ा रहे हैं कि राहुल गांधी को ऐसा नहीं बोलना चाहिए, ये सही बात नहीं है. मैं हैरान हूं कि अब तक कांग्रेस के नेताओं ने खालिस्तानी पन्नू के समर्थन को क्यों नहीं ठुकराया. पन्नू के खिलाफ बयान क्यों नहीं दिया? मल्लिकार्जुन खरगे पुराने नेता हैं, वह तो कांग्रेस का इतिहास जानते हैं. 1984 के कत्लेआम के बाद चाहे सिख समाज कांग्रेस से कितना भी नाराज़ रहा हो, कांग्रेस ने कभी भी खालिस्तान का समर्थन करने वालों को इसका फायदा नहीं उठाने दिया. कांग्रेस ने कभी खालिस्तान की मांग करने वालों को सिर नहीं उठाने दिया. तो फिर खरगे गोलमोल बात क्यों कर रहे हैं? वह पन्नू को अपना एजेंडा चलाने की इजाज़त क्यों दे रहे हैं? क्या अध्यक्ष जी राहुल गांधी की गलती को छिपाने के लिए मजबूर हैं ? कांग्रेस के नेताओं के पास इस बात का भी जवाब नहीं है कि राहुल गांधी पाकितान समर्थक इल्हान उमर से क्यों मिले? इलहान तो हमेशा से भारत के खिलाफ रही हैं. ये तो कांग्रेस की नीति नहीं हो सकती. कांग्रेस के किसी एकाध नेता ने कभी इधर उधर की बात कर दी हो वो अलग है, लेकिन मूल रूप से कांग्रेस एक राष्ट्रवादी संगठन है. कांग्रेस ने हमेशा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग माना है. कांग्रेस ने तो अनुच्छेद 370 हटाए जाने का भी समर्थन किया था. कांग्रेस ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के ज़माने में कभी भारत-विरोधी एजेंडा चलाने वालों से हाथ नहीं मिलाया, पाकिस्तान की हिमायत करने वालों को गले नहीं लगाया. क्या अब कांग्रेस की नीति बदल गई है? या राहुल गांधी कांग्रेस की दुकान में कुछ नया माल लेकर आए हैं? ये हसरत, ये नई इबारत, ये मुलाकात, भारत के लोगों को पसंद नहीं आएगी.
Why is Congress silent on Khalistani Pannu praising Rahul?
I am surprised why Congress leaders have not yet rejected the support extended to Rahul Gandhi’s remarks on Sikhs by pro-Khalistan activist Gurpatwant Singh Pannu, and why not a single reaction has emanated from the Congress party about Pannu. Congress President Mallikarjun Kharge is an experienced leader and he knows the history of his party.
After the 1984 anti-Sikh riots, despite deep-rooted anger among the Sikhs about Congress role, the party never allowed Khalistan supporters to take advantage of the situation. Congress never allowed those demanding separate Khalistan to rear their heads. Then why is Kharge trying to obfuscate? Pannu has described Rahul’s statement about ‘existential threat to Sikhs in India’ as ‘bold and pioneering’. Why is Kharge allowing Pannu to carry on with his agenda taking advantage of Rahul’s remarks? My question: Is the Congress President under compulsion to hide Rahul Gandhi’s mistake?
Similarly, Congress leaders have nothing to say about why Rahul Gandhi met Pakistan supporter US lawmaker Ilhan Omar. She has always spoken against India in public. This cannot be Congress party’s policy. Had any other Congress leader did the same and made certain remarks, it could have been a different matter altogether.
Congress is basically a nationalist organization. The party still considers Pakistan Occupied Kashmir as an integral part of India. Congress had even supported removal of Article 370. During Indira Gandhi’s and Rajiv Gandhi’s time, Congress never joined hands with those who worked on anti-India agenda. The party never supported those advocating the nefarious objectives of Pakistan.
Have the policies of Congress party undergone a change? Or has Rahul Gandhi brought some new commodity in his party’s shop? In Urdu there is a phrase loaded with meanings, “Yeh Hasrat, Yeh Nayi Ibaarat, Yeh Mulaaqaat” (Literal meaning: this desire, this new language, this rendezvous). The people of India will never like it.
राहुल नेता विपक्ष हैं : ज़िम्मेदारी समझ कर बोलें
राहुल गांधी आजकल अमेरिका में हैं. वहां उन्होंने हमारे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए . चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर शक का इज़हार किया. वाशिंगटन डीसी में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के छात्रों बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि उनकी नज़र में 2024 का लोकसभा चुनाव निष्पक्ष नहीं था. उन्होंने चुनाव आयोग को बीजेपी द्वारा नियंत्रित आयोग बता दिया. राहुल गांधी ने कहा कि चुनाव पूरी तरह से बीजेपी के, नरेंद्र मोदी के पक्ष में कराए गए थे, बीजेपी के पास अपार धन था, प्रशासन की ताक़त थी, चुनाव आयोग का रवैया बीजेपी के पक्ष में था जबकि कांग्रेस के तो बैंक खाते ही फ्रीज कर दिए गए थे. अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो बीजेपी 240 सीटें जीत ही नहीं सकती थी. अमेरिका की धरती पर खड़े होकर राहुल ने कहा कि बीजेपी चुनाव इसीलिए जीती क्योंकि उसके पास पैसा है, सत्ता है, चुनाव आयोग है, मीडिया है और सारी एजेंसियों पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है. लेकिन राहुल गांधी से कोई ये पूछे कि जब 2014 में चुनाव हुआ था तो कांग्रेस के पास पैसा था, सत्ता थी, ED, CBI जैसी सारी एजेंसियां कांग्रेस के हाथ में थीं, फिर कांग्रेस क्यों नहीं जीत पाई? तब नरेन्द्र मोदी को बहुमत कैसे मिला? क्या उस वक्त भी चुनाव आयोग ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया था ? ये बात बचकानी लगती है. मैं एक और बात आपको याद दिलाता हूं. मैंने 1977 का चुनाव देखा है. उस वक्त इंदिरा गांधी जैसी ताक़तवर नेता प्रधानमंत्री थीं. चुनाव होने से पहले 19 महीने तक देश में इमरजेंसी थी, विरोधी दलों के सारे नेता जेल में थे, सारी एजेंसियां बिना किसी रोक-टोक के सरकार के लिए काम कर रही थीं. न्यायपालिका को डराकर रखा गया था और मीडिया पर सेंसरशिप थी. इंदिरा गांधी के विरोध में कोई चूं भी नहीं कर सकता था. उसके बावजूद जब चुनाव हुए तो इंदिरा गाधी बुरी तरह हारीं, जनता पार्टी की सरकार बनी. इसका मतलब साफ है कि अगर जनता आपके खिलाफ हो तो आपके पास चाहे कितनी भी ताक़त हो, चाहे कितना भी पैसा हो, आप चुनाव नहीं जीत सकते. इमरजेंसी के बाद देश ने सबसे खराब समय 1984 में देखा, जब इंदिरा जी की हत्या कर दी गई. हत्या करने वाले उनके अपने सिक्योरिटी गार्ड थे और फिर देश भर में सिख विरोधी दंगे हुए. हजारों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. वो पहला और आखिरी वक्त था जब सिख समाज ने ऐसा डर, ऐसा खौफ देखा था. इस घटना को 40 साल हो गए.. आज इस बात का जिक्र मैंने इसीलिए किया कि राहुल गांधी ने अमेरिका में खड़े होकर सिखों को संबोधित किया और कहा कि वो चाहते हैं कि भारत में सिख बिना किसी डर के पगड़ी पहन सकें, कड़ा पहन सकें, बिना किसी डर के गुरुद्वारा जा सकें.
राहुल गांधी के इन बयानों पर केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने इल्ज़ाम लगाया कि राहुल गांधी दुनिया में एक ख़तरनाक नैरेटिव बनाना चाहते हैं कि भारत में सिखों को अपना धर्म मानने की आज़ादी नहीं. हरदीप पुरी ने राहुल गांधी को याद दिलाया कि भारत के इतिहास में सिर्फ़ एक बार 1984 में ऐसा हुआ था, जब सिखों को पगड़ी बांधने और कड़ा पहनने में डर लगा था, जब तीन हज़ार से ज़्यादा बेगुनाह मासूम सिखों को जिंदा जला दिया गया था. राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी की मुखालफत करें, उनकी आलोचना करें, ये विपक्ष के नेता के तौर पर उनका हक है. इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन राहुल गांधी विदेश जाकर हमारी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश करें, हमारे देश के सांप्रदायिक सदभाव के खिलाफ बोलें, ये अच्छा नहीं हैं. मुझे लगता है कि राहुल गांधी को बचपना छोड़ना चाहिए, वो अब प्रतिपक्ष के नेता हैं, उन्हें ज़िम्मेदारी से अपनी बात कहनी चाहिए. संवैधानिक संस्थाओं का अपमान करने के बजाए, जनता कि ताकत को, जनादेश को स्वीकार करना चाहिए. वो कब तक इस बात की सफाई देते रहेंगे कि वो तीसरी बार चुनाव क्यों हारे?
LOP Rahul should speak with responsibility
Congress leader Rahul Gandhi is presently in the US and addressing Indian diaspora, the media and university students. At Georgetown University in Washington DC, he questioned the credibility of our Election Commission and raised doubts about the EC’s neutrality. Rahul gave the impression that the 2024 Lok Sabha elections were not held in a free and fair manner. He went to the extent of saying that the EC is a BJP-controlled election commission, which tilted in favour of Prime Minister Narendra Modi’s BJP. These are some of his remarks: “I don’t see it as a free election. I see it as a heavily controlled election…. I don’t believe that in a fair election, the BJP would come anywhere near 240 seats. ….BJP had a huge financial advantage…. The Election Commission was doing what they wanted. The entire campaign was structured so that Mr Modi could carry out his agenda across the country, with different designs for different states…The Congress party fought the elections with their bank accounts frozen and has basically destroyed the idea of Modi. You can see it because when you see the prime minister now in Parliament…he is psychologically trapped, and he basically cannot come to terms, he cannot understand how this has happened.” At an Indian diaspora event in Virginia, Rahul Gandhi asked a Sikh Indian present in the audience about his name and religion, and said, “The fight is about whether he, as a Sikh, is going to be allowed to wear a turban in India; or whether, he, as a Sikh, will be allowed to wear a kada in India; or whether he, as a Sikh, is allowed to go to a Gurudwara. That’s what the fight is about, and not just for him, but for all religions”. Naturally, Rahul’s remarks about Sikhs drew immediate condemnations in India, with Petroleum Minister Hardeep Singh Puri reminding him of what happened to Sikhs during 1984 under Congress rule. Rahul Gandhi has every right to criticize and oppose Narendra Modi. It is his right as Leader of Opposition. Nobody should have any objection to it, but trying to discredit our Constitutional institutions on foreign soil is not acceptable. Speaking about communal disharmony is not a good sign. I think, Rahul Gandhi should avoid childishness and speak with responsibility as a Leader of Opposition. Instead of insulting Constitutional institutions, he should accept the power of the people and the mandate given by the voters. For how long will he continue giving explanation about why he lost his third bid for power?
रेलवे दुर्घटनाएँ कराने की साज़िश के पीछे कौन ?
रविवार को कानपुर और अजमेर में रेलगाड़ियों को पटरी से उतारने की कोशिश की दो बड़ी घटनाएं सामने आई. कानपुर के पास एक बार फिर भीषण रेल हादसा होते होते बचा. प्रयागराज से भिवानी जा रही कालिंदी एक्सप्रेस पटरी पर एक भरे हुए गैस सिलेंडर से टकराई. लोको पायलट ने तुरंत ब्रेक लगाई. पटरी के पास सिलेंडर के अलावा, बारूद से भरा थैला, पेट्रोल की बोतल और माचिसें रखी पाई गई. ड्राइवर की सावधानी ने बड़ा हादसा होने से बचा लिया. इसी तरह अजमेर के पास रविवार को रेल पटरी पर 70-70 किलो वजन के पत्थर रखे ऐन वक्त पर पाये गये और Western Dedicated Freight Corridor पर एक मालगाड़ी पटरी से उतरने से बच गई. ट्रेन को पटरी से उतारने की, रेल हादसा करवाने की जो कोशिशें हो रही है, उसे आप एक isolated घटना के रूप में देखेंगे तो ये आपको शरारत नज़र आएगी, किसी बदमाश की करतूत दिखाई देगी, लेकिन पिछले कुछ महीनों मे हुई सारी घटनाओं को अगर आप मिलाकर देखेंगे तो इसके पीछे की मंशा और नापाक इरादे नज़र आएंगे. कानपुर के पास रेलवे ट्रैक पर सिलेंडर रखा गया, इससे पहले 17 अगस्त को कानपुर में ही रेलवे ट्रैक पर भारी बोल्डर रखकर साबरमती एक्सप्रैस को पटरी से उतारा गया था. 20 अगस्त को अलीगढ़ में रेलवे ट्रैक पर अलॉय व्हील्स रखे गए थे. 27 अगस्त को फर्रूखाबाद में रेल पटरी पर लकड़ी के बड़े-बड़े बोल्डर रखे गए थे. 23 अगस्त को राजस्थान के पाली में रेलवे ट्रैक पर सीमेंट के गार्डर रखकर वंदे भारत एक्सप्रेस को डिरेल करने की कोशिश हुई. पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा रेल पटरी से उतरने की घटनाएं हुई. ये सब घटनाएं न तो शरारत है, न सिर्फ संयोग है, ये साज़िश के तहत किए जा रहे प्रयोग हैं. हर जगह मॉडस ऑपरेंडी एक जैसी है. इससे साफ पता चलता है कि ये बड़े रेल हादसे कराने को कोशिश है, रेलवे को बदनाम करने की साजिश है, क्योंकि रेलवे में अच्छा काम हुआ है, इससे सरकार की छवि बेहतर हुई है. रेलवे में हुआ बदलाव लोगों को नज़र आता है, इसीलिए बहुत सोच-समझकर रेलवे के खिलाफ साज़िश रची जा रही है. और इसके पीछे कौन हैं, ये पता लगाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है. लेकिन इसके प्रति सबको सावधान रहने की ज़रूरत है..
Who is conspiring to derail Indian Railways?
Recently, there has been a spate in deliberate multiple sabotage attempts to derail Indian Railways trains, with two attempts made on Sunday alone. In Shivrajpur, 50 km from Kanpur, a deliberate attempt was made to derail the Kalindi Express by placing a gas cylinder on the route. A major accident was averted after the loco pilot heard the sound of train hitting the cylinder, and applied emergency brakes. Authorities recovered a gas cylinder, glass bottles, a matchbox, and a packet containing explosives near the rail track. In Ajmer, Rajasthan, on Sunday, two cement blocks weighing 70 kg each were found placed on rail tracks to derail a goods train on the Western Dedicated Freight Corridor.
The two foiled attempts took place less than a month after 20 coaches of Ahmedabad-bound Sabarmati Express were derailed on August 17 near Govindpuri in Kanpur after the engine hit an object placed on the track. On August 20, alloy wheels were found placed on rail tracks near Aligarh, while on August 27, big wooden boulders were found placed on rail tracks near Farrukhabad. On August 23, big cement girder was placed on rail track near Pali, Rajasthan in a bid to derail Vande Bharat Express.
In the last one month, more than six derailments have taken place in West Bengal, Assam and Jharkhand. All such attempts to derail trains should not be seen in isolation, as if some local miscreants did this. If you look at all these incidents, you can find a chain behind some diabolical conspiracy. These are not acts by miscreants or simply a coincidence, but appear to be part of a chain of ‘experiments’ being carried out as part of a bigger conspiracy. The modus operandi in all these incidents is the same. There are forces which are trying to defame Indian Railways by causing such derailments.
In the last ten years, Indian Railways had done a tremendously good job and the image of the government has improved. The common people have started noticing the huge changes that have come in Indian Railways. There seems to be a clear well-orchestrated conspiracy to defame the railways. It is for the security agencies to take up the challenge to find out who are behind this conspiracy. It is a big challenge. Till then, all of us need to be on our toes and be alert.

सियासी दंगल में पहलवान : नये अखाड़े में विनेश का स्वागत है!
अब विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया राजनीति के अखाड़े में नजर आएंगे. विनेश और बजरंग कांग्रेस में शामिल हो गए, विनेश कांग्रेस के टिकट पर जींद की जुलाना सीट से चुनाव लड़ेंगी. बजरंग पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. ओलंपियन रेसलर विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जब राहुल गांधी से मिले थे, उसी वक्त ये साफ हो गया था कि दोनों कांग्रेस में शामिल होंगे. अब दोनों राजनीति के दंगल में क़िस्मत आज़माएंगे. कांग्रेस में शामिल होने से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद विनेश फोगाट ने कहा कि जब वो बेटियों की इज़्ज़त की लड़ाई लड़ रही थीं, तो कांग्रेस ने पूरी मज़बूती से उनका साथ दिया और उस वक्त BJP ने उनको बदनाम करने की मुहिम चलाई थी. लेकिन उन्होंने ख़ुद को सही साबित करने के लिए नेशनल चैंपियनशिप खेली, ओलंपिक के लिए ट्रायल दिया, फाइनल तक पहुंचीं, पर लगता है कि ईश्वर ने उनके लिए कुछ अलग सोच रखा था. विनेश ने कहा कि बेटियों के सम्मान की लड़ाई जारी रहेगी और इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिए उन्हें जिस ताक़त की ज़रूरत है, वो उनको कांग्रेस से मिलेगी. लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ संघर्ष में जम कर लड़ने वाली साक्षी मलिक विनेश और बजरंग के कांग्रेस में शामिल होने से दुखी हैं. साक्षी मलिक ने बडी मायूसी से कहा कि विनेश और बजरंग पूनिया ने अपनी निजी हैसियत से फ़ैसला लिया है, उनसे सलाह मशविरा नहीं किया. साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता. विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें लेकिन वह रेसलिंग फेडरेशन में सुधार के लिए लड़ाई जारी रखेंगी. बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा में विनेश और बजरंग पर कटाक्ष किया. कहा, वो जो बात शुरू से कह रहे थे, वह आज सच साबित हो गई, पूरा देश जान गया कि जंतर मंतर के आंदोलन के पीछे कौन था. हरियाणा के बीजेपी नेता अनिल विज ने कहा कि वह चैंपियन बेटी के तौर पर विनेश का हमेशा सम्मान करेंगे लेकिन विनेश अब तक देश की बेटी थीं, अब वो कांग्रेस की बेटी बनना चाहती हैं, तो भला बीजेपी को क्या ऐतराज़ हो सकता है, आज एक बात साफ हो गई कि पहलवानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस थी. जवाब में बजरंग पूनिया ने कहा कि जब वो जंतर मंतर पर धरना दे रहे थे, तब उन्होंने बीजेपी की महिला सांसदों को चिट्ठी लिखी थी और समर्थन मांगा था, लेकिन तब बीजेपी ने उनका साथ देने के बजाए उन्हें बदनाम किया, इसलिए वो कांग्रेस में आए ताकि इंसाफ़ की लड़ाई को जारी रख सकें. विनेश और बजरंग के बारे में बृजभूषण शरण सिंह को बोलने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हीं की हरकतों की वजह से पहलवानों को सड़क पर उतरना पड़ा. उन्हीं की धमकियों की वजह से पहलवान बेटियों को संघर्ष करना पड़ा. बृजभूषण के हटने के बाद भी रेसलिंग फेडरेशन का रवैया नहीं बदला, पहलवानों ने कोर्ट में केस भी किया लेकिन वहां भी बृजभूषण ने उन्हें कानूनी दांव पेंच मे फंसा दिया, वो कब तक लड़ते ? उन्हें सियासी अखाड़े में उतरना पड़ा. राजनीति के मैदान में आना और चुनाव लड़ना उनकी choice कम और मजबूरी ज्यादा है क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह जैसे लोगों ने उनके सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा. बजरंग और विनेश ने कुश्ती के मैदान में देश का नाम रौशन किया, देश के लिए मेडल जीते, इसलिए उनके फैसले का सम्मान होना चाहिए. विनेश ने जिस हिम्मत के साथ बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ी , फिर सड़क से उठकर पेरिस में ओलंपिक के फाइनल तक का सफर तय किया. इसने उनको youth icon बना दिया. अगर चुनाव लड़कर विनेश अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहती हैं तो ये उनका अधिकार है. इस पर कम से कम वो तो खामोश रहें जिनका लोक सभा का टिकट पार्टी ने काट दिया था.

From wrestling ring to political arena : Respect Vinesh’s decision
Wrestlers Vinesh Phogat and Bajrang Punia will now be seen in the political ring. On Friday, both of them joined the Congress. Vinesh Phogat will contest the Haryana Assembly election from Julana in Jind. Bajrang Punia was appointed the working chairman of All India Kisan Congress. Indications of joining Congress party were clear when both of them met Congress leader Rahul Gandhi. Both quit their jobs in Northern Railways hours before joining the Congress. Vinesh Phogat said it was the Congress which stood by the female wrestlers when they were fighting for their dignity.
She alleged, it was the BJP which orchestrated efforts to defame the wrestlers. Vinesh said, her fight against Brij Bhushan Sharan Singh and his cohorts in Wrestling Federation, for the honour of daughters will continue.
However, another female wrestler Sakshi Malik, who was part of the protest against Brij Bhushan, said both Vinesh and Bajrang Punia have taken personal decisions without consulting her, and it would have been better if they had stayed away from politics. Brij Bhushan Sharan Singh, while speaking in Gonda, UP, said, he has been proved right and the entire nation now knows who was behind the Jantar Mantar wrestlers’ protest. Haryana BJP leader Anil Vij said, he always respected Vinesh for being a ‘champion daughter’, but now that she has opted to become “Congress’ daughter”, it is now clear Congress was behind the wrestlers’ protest. In reply, Bajrang Punia said, the wrestlers during their Jantar Mantar protest, had written letters to all women MPs of BJP seeking their support, but BJP, instead of extending support, defamed them.
I think, Brij Bhushan Sharan Singh has no right to speak about Vinesh Phogat and Bajrang Punia. It was because of his questionable behaviour and threats that the wrestlers had to hit the streets to stage protest. Even after Brij Bhushan’s removal, the attitude of Wrestling Federation office-bearers has not changed. The wrestlers even went to court, but Brij Bhushan got them in a legal tangle. Ultimately, the wrestlers had to enter the political arena. I think, for the wrestlers, entering the political ring is less of a choice and more of a compulsion, because a heavyweight politician like Brij Bhushan did not leave them with any other options.
Both Bajrang Punia and Vinesh Phogat brought laurels to the nation in the field of wrestling, they won medals and their decision to join politics must be respected. The courage displayed by Vinesh in fighting for the honour of daughters, the manner in which she rose from the streets and reached the semi-finals at Paris Olympics, has made her a youth icon. If Vinesh wants to fulfill her political ambitions by contesting elections, it is her right. At least those leaders should keep their mouth shut, who had to lose their Lok Sabha tickets because of the female wrestlers’ protest.
शिमला में बाहर से कौन आया, क्यों आया, कैसे आया?
शिमला में गुरुवार को पहली बार मज़हबी झगड़े की आग दिखाई दी. पहली बार हजारों लोग सड़कों पर उतरे. सबकी मांग एक थी कि शिमला में आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर किया जाए. सबकी शिकायत एक थी कि ये लोग शिमला में शान्ति और भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं. ये बात इसलिए बड़ी बन गई क्योंकि हिमाचल की कांग्रेस सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह भी इस प्रोटेस्ट में शामिल हुए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों की मांग को जायज़ बताया. अनिरूद्ध सिंह ने विधानसभा में भी मुख्यमंत्री से विनती की. कहा कि इस बात की जांच कराई जाए कि अचानक शिमला में बाहरी मुसलमानों की संख्या कैसे बढ़ गई, रेहड़ी पटरी और बाजारों पर रोहिंग्या मुसलमानों का कब्जा कैसे हो गया. जब अनिरुद्ध सिंह हिन्दू संगठनों के प्रोटेस्ट में शामिल हुए, तो मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू को कहना पड़ा कि मंत्रियों, विधायकों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए. शिमला के लोगों ने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि दो दिन के भीतर शिमला में सरकारी जमीन पर बनी गैर क़ानूनी मस्जिद को गिराया जाए. आरोप है कि ये मस्जिद बाहरी मुसलमानों की पनाहगाह बन गई है, सारी गड़बडियों का केंद्र यही मस्जिद है, अगर सरकार मस्जिद नहीं गिराती है तो हिन्दू ये काम खुद करेंगे. मामला बढ़ा तो इस विवाद में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद इमरान मसूद जैसे नेता भी कूद पड़े. उन्होने कहा कि ये पुरानी मस्जिद है, और मामला कोर्ट में है, इसलिए इसे गिराने का सवाल पैदा नहीं होता. आमतौर पर शिमला शान्त रहता है. सैलानियों से भरा रहता है लेकिन गुरुवार को शिमला की सड़कों पर नारे लगाते हुए हजारों लोगों का हुजूम पहुंचा. चौड़ा मैदान में हिन्दुओं को इकट्ठा होने की अपील देवभूमि क्षत्रिय संगठन की तरफ से की गई थी. मस्जिद का विरोध तो सिर्फ एक छोटा कारण था. लोगों की ज्यादा नाराजगी की मुख्य वजह शिमला में आए दिन होने वाली लूटपाट, चोरी, और छेड़खानी की घटनाएं थी और ज़्यादातर मामलों में इस तरह की हरकतें करने वाले बाहरी मुसलमान हैं. लोगों का इल्ज़ाम है कि संजौली मस्जिद इस तरह के लोगों की पनाहगाह बनी हुई है. जिस मस्जिद में पहले सिर्फ एक मंजिल थी, अब चार मंजिलें बन गई हैं, जहां पहले सिर्फ दो चार लोग रहते थे, अब वहां तीन सौ से ज्यादा लोग मस्जिद में आते जाते रहते हैं. लोगों का कहना है कि मस्जिद गैर क़ानूनी है क्योंकि सरकारी ज़मीन पर बनी है. शिमला में ढाई मंजिल से ज्यादा ऊंचा इमारत बनाने पर पाबंदी है. प्रदर्शनकारियों ने ये भी साफ कर दिया कि उन्हें शिमला में रहने वाले हिमाचली मुसलमानों से कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन बाहर से आए रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान भाईचारे के लिए खतरा बन गए हैं. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने कहा कि शिमला की सड़कों पर लगने वाली दुकानों पर रेहड़ी पटरी पर, रोहिंग्या मुसलमानों ने क़ब्ज़ा कर लिया है, वे हिन्दुओं को दुकान नहीं लगाने देते, सड़क पर बहन बेटियों को छेड़ते हैं, विरोध करने पर ख़ून ख़राबे पर उतर आते हैं. विधानसभा में मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि 2007 में मस्जिद बननी शुरू हुई, 2010 में इसकी शिकायत की गई, मुकदमा कोर्ट में गया लेकिन मस्जिद का काम जारी रहा और अब मस्जिद चार मंजिल की हो गई हैं. अनिरूद्ध सिंह ने इस बात पर हैरानी जताई कि 14 सालों तक मुक़दमा चलता रहा, मस्जिद भी बनती रही और प्रशासन सोता रहा. शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि संजौली मस्जिद का मसला कोर्ट में है, 44 पेशियां हो चुकी हैं, और कोर्ट का जो भी फ़ैसला होगा, उसका पालन सरकार कराएगी. उन्होने माना कि मस्जिद में अवैध निर्माण किया गया था. AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी विवाद में कूद पड़े. राहुल गांधी से पूछा कि मुहब्बत की दुकान में इतनी नफ़रत कैसे भर गई, मस्जिद का मुक़दमा कोर्ट में है और हिंदूवादी उसे गिराने की मांग कर रहे हैं तो कांग्रेस के मंत्री उनका समर्थन कर रहे हैं, देश के नागरिकों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या कह रहे हैं. यूपी से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि अनिरुद्ध सिंह लव जिहाद और रोहिंग्या घुसपैठियों जैसे जुमलों का इस्तेमाल करके बीजेपी की ज़ुबान बोल रहे हैं, जो ठीक नहीं है, वो ये मामला आला कमान के सामने उठाएंगे. हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने कहा कि मंत्रियों को सांप्रदायिक बयान नहीं देने चाहिए, किसी को भी क़ानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद उनकी सरकार ज़रूरी क़दम उठाएगी. शिमला के लोगों की नाराज़गी देखकर, इतनी भारी संख्या में प्रोटेस्टर्स को देखकर ये तो साफ है कि मस्जिद का विवाद सिर्फ ट्रिगर प्वाइंट है. असली दिक्कत ये है कि अचानक बाहर से आकर लोग शिमला में बस गए हैं. जो शिमला महिलाओं के लिए सुरक्षित था, वहां आए दिन छेड़खानी होने लगी हैं. जो शिमला हमेशा शांत रहता था, वहां आए दिन झगड़े और लूटपाट की घटनाएं होने लगी हैं. शिमला में लोग पीढ़ियों से मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहते रहे हैं. बड़ी संख्या में बाहर से आए बांग्लादेशी और रोहिंग्या आकर तहखानों में रहने लगे. उनकी न कोई पहचान है, न उनपर कोई रोक. .दूसरी बात, जो बाहरी मुसलमान शिमला में बसे हैं, उन्हें मस्जिद में पनाह मिलती है, जुमे के दिन मस्जिद में सैकड़ों लोग जुटते हैं, कई बार मारपीट की घटनाएं हुई हैं जो शिमला के लिए बड़ी असामान्य घटना है. सबसे बड़ी बात ये कि शिमला में ढ़ाई फ्लोर से ज्यादा के निर्माण की इजाजत नहीं हैं, फिर चार मंजिला मस्जिद कैसे बन गई? नोट करने वाली बात ये है कि ये अवैध निर्माण कुछ महीनों में नहीं हुआ, इसमें बरसों लगे, इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें रहीं. पर किसी ने एक्शन नहीं लिया. अगर ये मसला किसी बीजेपी के नेता ने उठाया होता तो इसे RSS का रंग दे दिया गया होता. पर ये सवाल कांग्रेस के स्थानीय MLA ने उठाया, जो सुक्खू की सरकार में मंत्री हैं. अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में जो कहा वो चेतावनी है. मुख्यमंत्री ने कानून की बात कही पर उन्हें शिमला के लोगों की संवेदनाओं को समझना होगा. सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद भी शिमला वाले हैं, वो लोगों की भावनाओं को समझते हैं. उन्हें इस समस्य़ा के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
Outsiders in Shimla : CM must take a larger view
Shimla, for the first time, witnessed communal tension, with several thousand protesters, belonging to BJP and various Hindu organizations, demanding demolition of a mosque. The protesters, on Thursday, also demanded identification and removal of all illegal Bangladeshi settlers, particularly Rohingya Muslims, who have entered Himachal Pradesh. The protest took political overtones, when Rural Development Minister Aniruddh Singh joined the protest and later appealed to the Chief Minister in the Assembly that a survey should be conducted for verification of all outsider vendors in Shimla. He alleged that the number of Muslim street vendors in Shimla has already jumped from 190 to 1,900, and that street vending rights should be given only to Himachalis. Local Shimla residents have given a two days’ ultimatum to authorities to demolish the “illegal” mosque. Shimla is, otherwise, a peaceful hill town, but on Thursday, thousands of Hindu protesters came to the streets at the call of Devbhoomi Kshatriya Sangathan. The protesters alleged that Sanjauli Masjid has become a shelter for outsider migrants. They alleged there has been a jump in the number of crimes like theft, snatchings and eve-teasing. They also alleged that earlier hardly two or four people used to stay in Sanjauli Masjid, but now the number has risen to more than 300. They have also alleged that the mosque has now four floors, bypassing municipal building laws. In Shimla, nobody is allowed to construct any building of more than two and a half floors. The Sanjauli Masjid is being constructed since last 14 years and the matter is pending in court. Hindu leaders allege that there is a conspiracy afoot to change the demography of Himachal Pradesh. AIMIM chief Asaduddin Owaisi, taking a dig at Congress party, asked, “why there is so much hatred towards Muslims in ‘muhabbat ki dukaan’? The matter is in court and Hindu outfits are demanding demolition of the mosque. Congress ministers are speaking the lingo of BJP leaders.” Congress MP from Uttar Pradesh Imran Masood objected to the Himachal Congress minister’s remarks and said he would raise the issue before the party high command. Masood said, Sanjauli Masjid has been there since 1947, and the matter of illegal construction is now pending in court. Looking at the anger of local residents in Shimla, one thing is clear: the mosque issue is only a trigger point. The main issue relates to people who have started settling from outside. Shimla town was always regarded as a safe city for women, but incidents of eve-teasing and snatchings have now increased. People have been living in Shimla since generations in an atmosphere of brotherhood. Over the years, Bangladeshis and Rohingya Muslims came and started living in basements of buildings. They have not been properly identified, nor action taken. Had a BJP leader raised this issue, the Congress could have blamed RSS hand behind the protest. The issue has been raised by a local Congress MLA who is a minister in Chief Minister Sukhvinder Singh Sukhu’s government. What minister Aniruddh Singh said in the Assembly should be taken as a warning. The Chief Minister has spoken about upholding rule of law, but he must understand the sentiments of the people of Shimla. Sukhu himself belongs to Shimla and he understands public sentiments. He should take a larger view of this problem.
योगी और अखिलेश के बीच ज़ुबानी जंग क्यों?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफ कह दिया कि माफिया, दंगाई और अपराधियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलता रहेगा, कानून के दायरे में रहकर पहले भी एक्शन हो रहा था, आगे भी होता रहेगा. जवाब में अखिलेश यादव ने कहा कि 2027 में जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी, बुलडोज़र का रूख गोरखपुर की तरफ मोड़ा जाएगा. इसके जवाब में योगी ने कहा कि टीपू फिर सुल्तान बनने का ख्वाब देख रहा है लेकिन मुंगेरी लाल के हसीन सपने पूरे नहीं होंगे. वैसे तो यूपी में सिर्फ दस विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं, लेकिन यूपी में सियासी माहौल जम्मू कश्मीर और हरियाणा से भी ज्यादा गर्म है. योगी और अखिलेश के बीच ज़बरदस्त जुबानी जंग हो रही है. बुधवार को योगी ने कहा कि बुलडोजर चलाने के लिए मजबूत दिल और साफ दिमाग चाहिए. जवाब में अखिलेश ने कहा कि बुलडोजर में दिल-दिमाग नहीं होता, स्टियरिंग होती है. योगी ने कहा कि स्टियरिंग संभालने के लिए भी हिम्मत चाहिए, जो माफिया के सामने नाक रगड़ने वालों में कभी नहीं आ सकती. योगी ने कहा कि यूपी में अब पूरी पारदर्शिता के साथ आरक्षण के नियमों का पालन करते हुए लाखों नौजवानों को नौकरियां दी जा रही हैं, लेकिन 2017 से पहले नौकरियों की लूट होती थी, चाचा-भतीजा लूट का माल बांटते थे. जवाब में फिर अखिलेश ने कहा योगी की कुर्सी खतरे में है, इसीलिए बाबा जी का ब्लडप्रैशर हाई है और कुछ भी बोल रहे हैं. योगी ने कहा कि समाजवादी पार्टी के DNA में ही जातिवाद, तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार है. एक बार फिर जवाब में अखिलेश ने कहा कि योगी DNA का फुल फॉर्म बता दें, इसके बाद DNA की बात करें. बुधवार को दिन भर योगी और अखिलेश के बीच एक दूसरे पर कटाक्ष का खेल चलता रहा. योगी ने लखनऊ और प्रयागराज में नौजवानों को नियुक्ति पत्र बांटे और अखिलेश यादव ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मीटिंग ली. योगी पर हमले की शुरूआत अखिलेश ने की. अखिलेश ने कहा कि बीजेपी के शासन में हर वर्ग परेशान है, यूपी बदहाल है, नौजवानों का भविष्य अंधेरे में है, समाजवादी पार्टी के PDA पर लोगों का भरोसा बढ़ा है, 2027 के विधआनसभा चुनाव में बीजेपी का सफाया होगा, समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी और तब यूपी के सारे बुलडोजरों का रूख गोरखपुर की तरफ होगा. योगी ने जवाब देने में देर नहीं की. लखनऊ में 1,300 से ज्यादा नौजवानों को नौकरी का नियुक्ति पत्र देने के बाद योगी ने कहा कि यूपी में अब पारदर्शी तरीके से भर्ती हो रही है, सभी जिलों और सभी जातियों के नौजवानों को नौकरी दी जा रही है, आरक्षण के मानकों का पालन हो रहा है, किसी के साथ भेदभाव नहीं हो रहा है. लेकिन अखिलेश ने युवाओं के भविष्य को अंधेरे में डाल दिया था. योगी ने अखिलेश के 2027 में सरकार बनाने के दावे पर तंज़ कसा. योगी ने कहा कि अखिलेश मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहे हैं, टीपू सुल्तान बनना चाहते हैं लेकिन उनका ये सपना कभी पूरा होने वाला नहीं है. योगी ने कहा कि अखिलेश सरकार के समय जब भर्ती निकलती थी तब चाचा और भतीजे में वसूली की होड़ लगती थी. यादव परिवार में वसूली के लिए एरिया बांटे जाते थे. योगी ने यादव परिवार की तुलना आदमखोर भेड़ियों से की. उन्होंने कहा कि जैसा आतंक आजकल बहराइच में भेड़ियों का है, 2017 से पहले उसी तरह का खौफ यादव परिवार का था. योगी ने कहा कि लूट-खसोट करने वाले ऐसे लोगों पर यूपी की जनता अब भरोसा नहीं करेगी. अखिलेश ने कहा कि योगी को लोकसभा चुनाव की हार का सदमा लग गया है, उनकी कुर्सी खतरे में है इसलिए वो कुछ भी बोल रहे हैं, भ्रम फैला रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर उनके राज में भर्तियों में गड़बड़ी हुई तो योगी सरकार ने अब तक एक्शन क्यों नहीं लिया? क्या योगी भी इसमें शामिल थे? अखिलेश ने कहा कि आज भी यूपी में वही अफसर काम कर रहे हैं जो उनकी सरकार में काम कर रहे थे, योगी उनकी सरकार पर आरोप लगाकर परोक्ष रूप से उन अफसरों पर भी आरोप लगा रहे हैं, इसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए. योगी ने कहा कि उनकी सरकार का बुलडोज़र कानून के दायरे में चला, बुलडोज़र चलाने के लिए हिम्मत और दृढ इच्छाशक्ति चाहिए, एक वक्त था जब यूपी में दंगा होता था, माफियाओं का आतंक था, यूपी का विकास रुक गया था क्योंकि दंगाईयों और माफिया के आगे घुटने टेकने वाले लोग बुलडोज़र नहीं चला सकते. अखिलेश ने कहा कि बीजेपी राजनीतिक विरोधियों से बुलडोजर के ज़रिए बदला ले रही है. अगर नक्शे पास नहीं है, तो बुलडोजर चला दिया, योगी बताएं क्या मुख्यमंत्री आवास का नक्शा पास है, बुलडोज़र दिल-दिमाग से नहीं स्टियरिंग से कंट्रोल होता है और जनता कल किसी और के हाथ में बुलडोज़र की स्टियरिंग दे सकती है. फूलपुर में 10 हजार युवाओं को स्मार्ट फोन और टैबलेट, और 5 हजार नौजवानों को नियुक्ति पत्र, और उद्योग शुरू करने वाले युवाओं को 600 करोड़ रुपये के लोन अप्रूवल पत्र देने के बाद योगी ने कहा ये उनके बुलडोजर मॉडल का ही असर है कि अब यूपी में दंगा नहीं होता, अखिलेश और उनकी सरकार माफिया को पालती थी, उनके इशारों पर काम करती थी लेकिन 2017 के बाद से सारे माफिया मिट्टी में मिल गए, अब दंगा करने वाले बुलडोजर से डरे हुए हैं.
वार-पलटवार यहीं खत्म नहीं हुआ. अखिलेश ने ट्विटर पर लिखा कि अगर आपका बुलडोजर मॉडल इतना ही कामयाब है तो अलग पार्टी बनाकर बुलडोजर निशान पर चुनाव लड़ लें, आपका भ्रम भी टूट जाएगा और घमंड भी, वैसे भी आपके जो हालात हैं, उसमें आप बीजेपी में होते हुए भी नहीं के बराबर ही हैं, अलग पार्टी तो आपको आज नहीं तो कल बनानी ही पड़ेगी. योगी और अखिलेश ने जो कहा, उनकी हर बात के पीछे एक कहानी है. जैसे टीपू अखिलेश यादव के घर का नाम है, मुलायम सिंह उन्हें इसी नाम से बुलाते थे और बुलडोजर बाबा योगी आदित्यनाथ का नाम है. यूपी में लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते हैं. जब अखिलेश बुलडोजर गोरखपुर की तरफ मोड़ने की बात कहते हैं तो इनका इशारा योगी के मठ की तरफ होता है और जब योगी माफिया के आगे घुटने टेकने वालों का जिक्र करते हैं, तो उनका निशाना अखिलेश पर होता है. अखिलेश जब कहते हैं कि योगी की कुर्सी खतरे में है तो वो बीजेपी में अंदरुनी लड़ाई की तरफ संकेत करते हैं. योगी जब कहते हैं कि पहले चाचा भतीजा माल लूटते थे तो उनका इशारा अखिलेश और शिवपाल की तरफ होता है. आजकल ये जंग इसीलिए इतनी ज्यादा तेज़ है क्योंकि यूपी में 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. योगी और अखिलेश दोनों इन उपचुनावों से यूपी में अपना वर्चस्व साबित करना चाहते हैं..