बीजेपी के सबसे मजबूत सहयोगी दल के नेता चंद्रबाबू बने सीएम
तेलुगु देशम पार्टी के चीफ चंद्रबाबू नायडू ने आज विजयवाड़ा के पास केसरपल्ली आईटी पार्क में कई हजार लोगों की उपस्थिति में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथ समारोह में बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडु से गले मिल कर उन्हें बधाई दी. समारोह में दक्षिण में लोकप्रिय अभिनेता रजनीकांत, अल्लू अर्जुन, राम चरण, जूनियर एनटीआर, चिरंजीतीवी और मोहन बाबू, भारत पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, कई केंद्रीय मंत्री और पूर्व उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडु उपस्थित थे. रायपाल एस.अब्दुल नज़ीर ने नायडु को पद और गोपनीयता का शपथ दिलाई. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आना था, लेकिन वह किसी कारणवश नहीं आ सके. चंद्रबाबू नायडू चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं. इससे पहले वह दो बार अविभाजित आंध्र प्रदेश के सीएम थे, और एक बार विभाजित आंध्र प्रदेश के सीएम बने थे. नायडु के अलावा TDP, जनसेना और बीजेपी के 24 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. जनसेना पार्टी के अध्यक्ष पवन कल्याण ने नायडु के फौरन बाद शपथ ली. इस बात की अटकलें लगाई जा रही है कि आंध्र प्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी, जो कि चंद्रबाबू नायडू की रिश्तेदार हैं, को लोकसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है, परन्तु अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है. चुनावों से पहले आंध्र प्रदेश में बीजेपी के सामने दो विकल्प थे – बीजेपी या तो चंद्रबाबू नायडू के साथ जाए या जगन मोहन रेड्डी के साथ मिलकर चुनाव लड़े. बीजेपी के अंदर कई नेता चाहते हैं थे कि बीजेपी को जगन मोहन के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहिए लेकिन प्रधानमंत्री का अपना आकलन था कि आंध्र में इस बार चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए. उसके बाद आंध्र प्रदेश में NDA के गठन में पवन कल्याण ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जो नतीजा निकला वो सबके सामने है. आज आंध्र के अलावा टीडीपी केंद्र सरकार में भी बीजेपी का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी दल है. उसके पास लोकसभा में 16 सांसद हैं.
ओडिशा में पहली बीजेपी सरकार
ओडिशा में पहली बार बीजेपी की सरकार बनेगी और उसके मुख्यमंत्री होंगे, आदिवासी नेता मोहन चरण माझी. मुख्यमंत्री के अलावा दो उपमुख्यमंत्री – प्रभाती परिडा और कनकवर्धन सिंहदेव भी बुधवार को अन्य मंत्रियों के साथ शपथ लेंगे. भुवनेश्वर के जनता मैदान में होने वाले इस शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और 9 राज्यों के मुख्य़मंत्री उपस्थित रहेंगे. मोहन चरण माझी को बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया. 52 साल के मोहन माझी एक गरीब परिवार में जन्मे, उनके पिता चौकीदार थे, मोहन माझी ने सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरु किया, बाद में वह सरपंच बने और अब तक चार बार विधायक बन चुके हैं. मोहन माझी पिछली विधानसभा में बीजेपी के मुख्य सचेतक रह चुके हैं. इस बार चुनाव में मोहन माझी ने क्योंझर सीट पर बीजू जनता दल की मीना मांझी को सत्तासी हजार वोट के मार्जिन से हराकर चुनाव जीता था. इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 147 सदस्यों वाली विधानसभा में 78 सीटें मिली हैं, वहीं, पिछले 24 साल से सरकार चला रहे बीजू जनता दल को 51 सीटों पर ही जीत हासिल हुई. 24 साल के बाद ओडिशा में सरकार बदली है. पांच बार मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. उनके चुनाव हारने की वजह उनके निजी सचिव रह चुके वी.के. पंडियन का पार्टी में दखलअंदाजी को बताया जा रहा है. आरोप है कि चुनावों के पहले BJD के नेता पंडियन की वजह से न तो नवीन पटनायक से मिल पाते थे, ना बात कर पाते थे. कैंपेन में भी नवीन बाबू के साथ सिर्फ पंडियन ही दिखाई देते थे. पंडियन को नवीन पटनायक का उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाने लगा. बीजेपी ने इसे ओड़िया अस्मिता के मुद्दे से जोड़ दिया और ये कैंपेन किया कि उड़ीसा को कोई तमिल बाबू नहीं चलाएगा और बीजेपी का ये कैंपेन गेमचेंजर साबित हुआ.
BJP’S STRONGEST ALLY CHANDRABABU TAKES OVER AS CM
Prime Minister Narendra Modi greeted the new Andhra Pradesh chief minister N. Chandrababu Naidu with a warm hug on Wednesday, after the latter was sworn in as Chief Minister at a huge gathering in Medha IT Park in Kesarapalle near Vijayawada. Watched by South matinee idols Rajinikanth, Chiranjeevi, Ram Charan, Allu Arjun, NTR Junior and Mohan Babu, former Chief Justice of India N. V. Ramanna, Home Minister Amit Shah, BJP president J P Nadda and former Vice President M. Venkaiah Naidu, the new AP CM was administered oath by Governor S. Abdul Nazeer. This is the fourth time Naidu has become Chief Minister, twice in undivided Andhra Pradesh and once in residual Andhra Pradesh. Jana Sena Party chief Pawan Kalyan was the next to oath as minister. In all, 24 MLAs from Telugu Desam Party, Jana Sena Party and BJP took oath as ministers. The three parties had jointly fought the assembly and Lok Sabha elections as part of NDA, and swept to power after almost decimating the ruling YSR Congress. Bihar chief minister Nitish Kumar was supposed to attend the ceremony, but he was not present. Speculations are rife about state BJP president D. Purandeshwari, who happens to be Naidu’s relative, being offered the post of Lok Sabha Speaker, but it is yet to be confirmed. Before the Andhra assembly and Lok Sabha elections, there were two options before BJP: either to join hands with Chandrababu Naidu or align with the incumbent CM Y S Jaganmohan Reddy. Several BJP leaders wanted the party to ally with YSR Congress, but Prime Minister Modi’s own assessment was that BJP should ally with Telugu Desam party. Jana Sena Party chief actor Pawan Kalyan played a leading role in forging NDA in Andhra Pradesh. He was described by Modi at the NDA meeting as “Pawan Nahin, Aandhi Hai” (he is not the wind, by a storm). The results are there for all to see. TDP won 16 seats, and is the major ally of NDA government at the Centre.
ODISHA GETS FIRST BJP CM
Odisha will get its first BJP government on Wednesday with Mohan Charan Majhi, a tribal leader, to be sworn in as Chief Minister in Bhubaneswar. Prime Minister Narendra Modi and other senior BJP leaders will be attending the oath-taking ceremony. Two deputy chief ministers, Pravati Parida and Kanak Vardhan Singhdeo will also take oath. Their names were announced on Tuesday at the meeting of BJP legislative party by Defence Minister Rajnath Singh. Mohan Majhi was elected from Keonjhar by a huge margin of 87,000 votes. His father worked as a watchman, while Majhi began his career as a school teacher in Saraswati Sishu Mandir. He later became a sarpanch and was elected MLA four times. Odisha is witnessing a new government after a gap of 24 years of Naveen Patnaik’s uninterrupted rule. Patnaik’s Biju Janata Dal lost the assembly and Lok Sabha elections this time because of the chief minister’s former private secretary V K Pandian. Pandian, a bureaucrat, was handling both the party and state bureaucracy. BJD leaders could not meet Naveen Patnaik directly because of Pandian, who originally hailed from Tamil Nadu and worked in Odisha as a bureaucrat. During the election campaign, Naveen Babu, due to poor health, could not campaign hard, and it was Pandian who was addressing election meetings. At one stage, Pandian was seen as a successor of Naveen Patnaik. BJP made “Odia Asmita” (pride) an issue, and campaigned among voters that Odisha was being run by a Tamil bureaucrat. This ultimately became the gamechanger for BJP in Odisha election. BJP won 20 out of 21 Lok Sabha seats, and secured majority in the 147-member assembly.
मोदी का नया कैबिनेट : निरन्तरता और ज़िम्मेदारी
नए मंत्रिमंडल की शपथ के 24 घंटे के अंदर नरेन्द्र मोदी ने अपने 71 मंत्रियों को उनकी जिम्मेदारियां सौंप दी है. उनके विभाग आवंटित कर दिए गए. खास बात ये है कि नरेन्द्र मोदी ने अपने ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों के विभागों में कोई फेरबदल नहीं किया है. मोदी 3.0 में भी अमित शाह गृह मंत्री औऱ राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री बने रहेंगे. अमित शाह के साथ नित्यानंद राय और बंडी संजय कुमार को गृह राज्य मंत्री बनाया गया है. राजनाथ सिंह के साथ संजय सेठ को रक्षा राज्य मंत्री बनाया गया है. निर्मला सीतारमण भी पहले की तरह वित्त मंत्री बनीं रहेंगी. उनके साथ पंकज चौधरी को वित्त राज्य मंत्री और हर्ष मल्होत्रा को कॉरपोरेट मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया है. विदेश मंत्रालय का जिम्मा भी एस. जयशंकर के पास बना रहेगा. उनके साथ कीर्तिवर्धन सिंह औऱ पवित्र मार्गरेटा को विदेश राज्य मंत्री बनाया गया है. नितिन गडकरी ने पिछले दस साल में सड़कों को लेकर बहुत काम किया है. इसलिए उन्हें इस बार भी परिवहन मंत्री बनाया गया है. उनके साथ अजय टम्टा और हर्ष मल्होत्रा को राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई है. 51 वंदे भारत ट्रेनों की झड़ी लगाने वाले अश्विनी वैष्णव भी रेल मंत्री बने रहेंगे. इसके साथ साथ उनको सूचना और प्रसारण मंत्रालय की भी जिम्मेदारी दी गई है. ये विभाग पिछली सरकार में अनुराग ठाकुर के पास था. रेल मंत्रालय में अश्विनी वैष्णव के साथ वी सोमन्ना औऱ रवनीत सिंह बिट्टू राज्य मंत्री होंगे, जबकि एल. मुरुगन सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री होंगे. धर्मेन्द्र प्रधान भी शिक्षा मंत्री बने रहेंगे. उनके साथ सुकांत मजूमदार को शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है. हरदीप सिंह पुरी पेट्रोलियम मंत्री बने रहेंगे. उनके साथ, केरल से बीजेपी के पहले सांसद सुरेश गोपी को पेट्रोलियम राज्यमंत्री बनाया गया है. पीयूष गोयल वाणिज्य मंत्री बने रहेगे. उनके साथ जितिन प्रसाद राज्य मंत्री होंगे. अर्जुन राम मेघवाल भी कानून मंत्री बने रहेंगे लेकिन नई सरकार में एक बड़ा जिम्मा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मिला है. शिवराज सिंह चौहान को कृषि और किसान कल्याण मंत्री बनाया गया है. शिवराज सिंह के पास एक और मंत्रालय, ग्रामीण विकास, का भी जिम्मा होगा. कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री के तौर पर रामनाथ ठाकुर काम करेंगे. ग्रामीण विकास मंत्रालय में चौहान के साथ टीडीपी के चंद्रशेखर पेम्मासानी और कमलेश पासवान राज्यमंत्री होंगे. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को शहरी विकास और ऊर्जा मंत्री मनाया गया है. शहरी विकास मंत्रालय में खट्टर के साथ तोखन साहू राज्य मंत्री होंगे जबकि श्रीपद यशो नायक ऊर्जा राज्य मंत्री होंगे. बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है. नड्डा के साथ अनुप्रिया पटेल राज्यमंत्री होंगी. गजेन्द्र शेखावत का भी मंत्रालय बदलकर उन्हें संस्कृति मंत्री बनाया गया है और जलशक्ति मंत्री का काम सी. आर. पाटिल को दिया गया है. जलशक्ति विभाग में राज्य मंत्री की जिम्मेदारी राजभूषण चौधरी और वी सोमन्ना के पास होगी. ज्योतिरादित्य सिंधिया को संचार मंत्री बनाया गया है. मनसुख मांडविया को श्रम मंत्री बनाया गया है. साथ ही वो खेल मंत्रालय भी संभालेंगे. रक्षा खडसे खेल राज्य मंत्री होंगी. चिराग पासवान को फूड प्रोसेसिंग की जिम्मेदारी दी गई है. किरन रिजिजू को संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मंत्रालय दिए गए हैं. केरल से आए मोदी सरकार के ईसाई मंत्री जॉर्ज कुरियन अल्पसंख्यक मंत्रालय के राज्य मंत्री होंगे. तेलगु देशम पार्टी के युवा सांसद राम मोहन नायडू नए नागर विमानन मंत्री होंगे. उनके साथ महाराष्ट्र के सांसद मुरलीधर मोहोल राज्य मंत्री होंगे. गिरिराज सिंह को कपड़ा मंत्रालय दिया गया है. अन्नपूर्णा देवी को महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया है. उनके साथ सावित्री ठाकुर राज्यमंत्री होंगी. जयंत चौधरी को कौशल विकास मंत्रालय का स्वतंत्र भार दिया गया है. जेडीयू के ललन सिंह पंचायती राज मंत्री होंगे. एच. डी. कुमार स्वामी भारी उद्योग और इस्तापत मंत्रालय संभालेंगे. जीतन राम मांझी को MSME का विभाग मिला है. पिछली सरकार में संसदीय कार्य मंत्री रहे प्रह्लाद जोशी को इस बार खाद्य और अपभोक्ता मामलों वाले मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई है. जी. किशन रेड्डी कोयला और खनन मंत्री बनाए गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल की सबसे बड़ी बात ये है कि ये लगभग पुराने मंत्रिमंडल जैसा ही है.रक्षा, गृह, वित्त, परिवहन, विदेश, वाणिज्य, शिक्षा, जहाजरानी, रेलवे, पर्वरण और पेट्रोलियम, ये सारे वो मंत्रालय हैं जिसमें जो मंत्री थे वही तीसरी बार में भी मंत्री बने हैं. इस मंत्रिमंडल की दूसरी खास बात ये है कि बीजेपी के जितने भारी भरकम नेताओं को नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में लिया उन्हें जिम्मेदारियां भी भारी भरकम दी गई हैं. जे पी नड्डा, शिवराज सिंह चौहान और मनोहर लाल खट्टर को नई सरकार में बड़ी जिम्मेदारियां दी गई हैं. शिवराज सिंह चौहान की दिलचस्पी हमेशा कृषि में रही है.मध्य प्रदेश को वो कृषि के क्षेत्र में काफी आगे ले गए थे. कृषि के साथ साथ उन्हें ग्रामीण विकास मंत्रालय का भी भार सौंपा गया है. ये काफी बड़ी जिम्मेदारी है. इसी तरह हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को आवास और शहरी मामलों के साथ साथ बिजली मंत्रालय दिया जाना भी उन पर नरेंद्र मोदी के भरोसे का संकेत है. नड्डा ने पार्टी अध्यक्ष के तौर पर बेहतरीन काम किया. वो स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं, तो उन्हें उनकी पसंद के स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा रसायन और उर्वरक का भार भी दिया गया है. मोदी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को संचार मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है. इसी तरह से थोड़े दिन पहले कांग्रेस छोड़कर रवनीत बिट्टू को चुनाव हारने के बावजूद रेल राज्यमंत्री का चार्ज दिया गया है. ये संकेत है, उन सब लोगों को जो कांग्रेस छोड़कर मोदी के साथ काम करने के लिए आए थे. चिराग पासवान को सबसे ज्यादा संतोष होगा इस बात से, कि वो कुछ वैसा ही मंत्रालय संभालेंगे, जैसा एक ज़माने में उनके स्वर्गीय पिता राम विलास पासवान संभालते थे. फूड प्रोसेसिंग नए जमाने का मंत्रालय है. उनके पिता के पास खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय था. इसीलिए चिराग पासवान के लिए यहां काम करने का बड़ा मौका होगा. इसी तरह से तेलगु देशम पार्टी को जो नागर विमानन मंत्रालय दिया गया है, वो पहले भी उनके पास था. बाकी अलायंस पार्टनर्स पर नजर डालें, तो पिछली बार JD-U के RCP सिंह के पास भारी उद्योग मंत्रालय था, इस बार दूसरे अलायंस पार्टनर JD-S के एच डी कुमारस्वामी के पास ही ये मंत्रालय गया है. अपना दल की अनुप्रिया पटेल को इस बार भी वही मंत्रालय मिला, जो पिछली बार उनके पास था. जब जब गठबंधन की सरकार बनती है तो अटकलों का बाजार गर्म रहता है, जिन्हें खबरें कहकर फैलाया जाता है. कुछ बातें ऑन रिकॉर्ड और ज्यादातर बातें ऑफ रिकॉर्ड होती हैं. रिपोर्टर्स के लिए भी समझना मुश्किल हो जाता है कि जो ऑन रिकॉर्ड कहा जा रहा है वो सही है, या जो बात कान में फूंकी जा रही है, वो सही है. इसमें अब एक खेल और भी जुड़ गया है. सरकार का विरोध करने वाले पहले दिन से ही दरार पैदा करने के काम में लगे हुए हैं. किसी ने चंद्रबाबू नायडू को मीडिया के जरिए सलाह दी कि स्पीकर का पद मांग लेना. इससे चाबी हाथ में रहेगी. अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है. फिर खबर उड़ी कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सिर्फ एक मंत्रालय मिलने से खफा हैं. उनके बेटे श्रीकांत शिंदे को बयान जारी करना पड़ा कि कोई नाराजगी नहीं है, हमने पीएम मोदी को बिना शर्त समर्थन दिया है. इसी तरह केरल के अभिनेता सांसद सुरेश गोपी के बारे में खबर उड़ी कि वो मंत्रालय नहीं संभालना चाहते. उन्हें भी बयान जारी करना पड़ा कि ये बात गलत है. मुझे लगता है कि इस तरह की खबरों का दौर चलता रहेगा क्योंकि चुनाव के दौरान भी बहुत सारी बे-सिर-पैर की बातें इतनी ज्यादा प्रचारित हुईं कि लोग उनपर यकीन करने लगे थे. इसीलिए अब खबरें उड़ाने वालों को भी इसमें मजा आने लगा है. ये सू कुछ पटरी में आने में अभी काफी वक्त लगेगा. मोदी ने सोमवार को अपने पीएमओ के अधिकारियों को संबोधित किया, शाम को मंत्रियों की बैठक ली. मोदी का संदेश स्पष्ट है, वो न सरकार चलाने का तरीका बदलेंगे, न तेवर. जो लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि मोदी को गठबंधन की सरकार चलाने का अनुभव नहीं है, ये वैसी ही बात है, जब उनके पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर कहा गया था कि उन्हें विदेश नीति का कोई अनुभव नहीं है. मोदी ने विदेशों में भारत की छवि कैसे चमकाई, ये सबने देखा. आज उनके एक साथी ने कहा कि अगर वो डोनाल्ड ट्रंप और पुतिन जैसे लोगों से दोस्ती कर सकते हैं, उनके साथ personal equation बना सकते हैं, तो फिर यहां अलायंस वाली पार्टियों के नेताओं के साथ व्यक्तिगत संपर्क बनाना कौन सा मुश्किल काम है? अगर वो अमेरिका और रूस के बीच बैलेंस बना सकते हैं, दोनों से अपनी बात मनवा सकते हैं, तो फिर सरकार में शामिल दलों के साथ भी बैलैंस बनाना कौन सा मुश्किल काम है? आने वाले दिनों में ये बैलेंस, ये समन्वय हर रोज़ दिखाई देगा.
MODI’S NEW CABINET : CONTINUITY AND RESPONSIBILITY
Within 24 hours of taking oath, Prime Minister Narendra Modi assigned portfolios to his 71 ministers, and most of them have already started taking charge of their ministries. Modi has opted for continuity. He has not made any big changes in the portfolios of most of his senior cabinet ministers. Amit Shah will continue to be Home Minister and Rajnath Singh will continue to be Defence Minister in Modi 3.0. Nityanand Rai and Bandi Sanjay Kumar have been made ministers of state for Home, while Sanjay Seth will work as MoS in Defence. Nirmala Sitharaman will continue with her Finance and Corporate Affairs portfolio, with Pankaj Choudhary as MoS in Finance and Harsh Malhotra as MoS in Corporate Affairs. S. Jaishankar will continue to handle External Affairs, with Kirtivardhan Singh and Pabitra Margherita as MoS. Nitin Gadkari, who has done monumental work in the last 10 years in building highways, will continue as Road Transport and Highways Minister, with Ajay Tamta and Harsh Malhotra working as MoS with him. Ashwini Vaishnaw, who introduced 51 Vande Bharat trains, will continue as Railway Minister with V. Somanna and Ravneet Singh Bittu as MoS. Vaishnaw will also look after Information and Broadcasting, with L. Murugan as MoS. Dharmendra Pradhan will continue as Education Minister with Sukanta Majumdar as MoS. Hardip Singh Puri will continue handling Petroleum ministry, with Kerala BJP MP Suresh Gopi as MoS. Piyush Goyal will continue as Commerce Minister with Jitin Prasad as MoS. Arjun Ram Meghwal will continue as Law Minister. Former Madhya Pradesh chief minister Shivraj Singh Chouhan is the new entrant, who has been assigned Agriculture and Rural Development ministries. Former Haryana CM Manohar Lal Khattar will be the new Housing and Urbain Affairs and Power Minister. BJP president J P Nadda will work as Health Minister with Anupriya Patel as MoS. Gajendra Shekhawat has been made Culture Minister, while Gujarat’s C R Patil will be the new Jal Shakti Minister. Jyotiraditya Scindia will handle Communication ministry, while Mansukh Mandaviya will look after Labour and Sports ministries. Chirag Paswan has been given charge of Food Processing ministry, while Giriraj Singh will be the Textile Minister. Former Karnataka CM H D Kumaraswamy will look after Heavy Industries and Steel ministries, former Bihar CM Jitan Ram Manjhi has been made MSME Minister, Pralhad Joshi has been made Food, Consumer Affairs and Renewable Energy Minister, and G Kishen Reddy has been given Coal and Mines ministries. JD-U leader Rajiv Ranjan (Lalan) Singh has been made Panchayati Raj, Fisheries, Dairy and Animal Husbandry Minister. Let’s have an overall view. Firstly, the line-up clearly shows continuity in the ministries of Defence, Home, Finance, Transport, External Affairs, Commerce, Education, Railways, Shipping, Petroleum and Environment. Secondly, heavyweight ministers have been given heavy responsibilities, examples J P Nadda, Shivraj Singh Chouhan and Manohar Lal Khattar. Handling both Agriculture and Rural Development will be a tough job for Chouhan, while Khattar will have to handle Housing, Urban Affairs and Power ministries. Nadda, who performed well as BJP president, and who had earlier handled Health portfolio, will again look after Health and Family Welfare, along with Chemicals and Fertilisers. Jyotiraditya Scindia has been given charge of Communication ministry as well as DONER (Development of North Eastern Region). Ravneet Singh Bittu, who left Congress, joined BJP and lost the LS election in Punjab, has been made Railway MoS. This is a message to those who left Congress and joined BJP. Chirag Paswan will be happy handling Food Processing. His father late Ramvilas Paswan was Food and Civil Supplies Minister. Telugu Desam Party leader K. Ram Mohan Naidu has got Civil Aviation ministry. JD-U’s RCP Singh was Heavy Industries Minister in the last government. Now this ministry has gone to another alliance partner JD(S). Apna Dal’s Anupriya Patel retains her Health ministry. Whenever alliance governments are formed, speculations and rumours spread fast. These rumours are often spread as ‘news’. There are some remarks on-record and some are off-record. For reporters, it is difficult to separate the grain from the chaff. One more dimension has been added to this. Since Day One, those opposing the NDA government are busy spreading rumours to create a rift among alliance partners. Some advised Chandrababu Naidu to demand Lok Sabha Speaker post, in order to have an upper hand inside the House. Till now, there is no confirmation has come on this. Rumours were spread that Eknath Shinde is unhappy because his party got only one portfolio. His son Shrikant Shinde had to issue a statement saying there is no resentment and the party has given unconditional support to Prime Minister Modi. Rumours were spread that the solitary BJP MP from Thrissur, Kerala, Malayalam actor Suresh Gopi was unwilling to stay as minister. Gopi had to issue a statement denying such rumours. I think, rumours and speculations will continue, because even during the election campaign, lots of baseless speculations were spread and people started believing them. Those spreading these baseless ‘news’ enjoy doing this. It will take a long time for the dust to settle. One must try to understand what Prime Minister Modi told his PMO bureaucrats and his ministers on Monday. His message was clear. Neither is he going to change the style of working of his government, nor will he change its tone and tenor. Those questioning how Modi will tackle the demands of his NDA alliance partners, since he lacks experience of running a coalition government, must remember this. When Modi first became PM in 2014, it was said that he had no previous experience about foreign policy. The whole world now realizes how Modi handled world leaders and governments with panache. India’s image shines bright, across the world. One of his colleagues said today, if Modi can make friendship and strike personal equations with both Donald Trump and Putin, then where’s the difficulty in doing the same with his alliance leaders? If he can strike a balance between USA and Russia, fighting a proxy war in Ukraine, make their leaders accept his views, then where’s the difficulty in striking a balance with alliance parties? One shall see, in the coming days, this balance and co-ordination, on a daily basis.
मतदाताओं ने कैसे ECI, EVM, लोकतंत्र को खतरा, जैसे मुद्दों को दफ्न कर दिया
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू 9 जून को शाम 7.15 बजे नरेन्द्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाएंगी. मोदी के साथ केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य भी शपथ लेंगे. शुक्रवार और शनिवार को मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर बीजेपी और एनडीए के सबी दलों के नेताओं के बीच बातचीत हुई. मोदी के मंत्रिमंडल का स्वरूप कैसा होगा, कितने मंत्री शपथ लेंगे, किस पार्टी को कितनी हिस्सेदारी मिलेगी, कौन-कौन से मंत्रालय दिए जाएंगे, इन सब बातों पर जेपी नड्डा के घर पर शुक्रवार को NDA के सहयोगियों के साथ बात हुई और शनिवार को प्रधानमंत्री से अमित शाह और जे पी नड्डा की बातचीत हुई. फिलहाल कोई फाइनल फैसला नहीं हुआ, इसलिए अंदाजे लगाना बेकार है. वैसे भी नरेन्द्र मोदी ने एनडीए की मीटिंग में साफ कह दिया कि आखिरी फैसला मुझे ही करना है, इसलिए नेता चर्चाओं, अफवाहों या ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में न पड़े. विरोधी दलों के जो नेता नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू को लेकर शक जता रहे थे, दावे कर रहे थे कि सरकार 6 महीने भी नहीं चलेगी, उन्हें भी जवाब मिल गया. चन्द्रबाबू नायडू ने कहा कि आन्ध्र में उनकी पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत में नरेन्द्र मोदी का बड़ा रोल है, मोदी ने दुनिया में भारत को बड़ी ताकत बनाया है, अब देश और आन्ध्र प्रदेश का विकास मोदी के नेतृत्व में होगा. आज वो लोग निराश होंगे जो चुनाव के दौरान कहते थे, ‘लिखकर ले लो, 4 जून के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे’. वो लोग हताश होंगे जो उम्मीद लगाकर बैठे थे कि NDA में घमासान होगा और मोदी की जगह कोई और पीएम बनेगा. अब वो कह रहे हैं कि मोदी गठबंधन की सरकार कैसे चलाएंगे. इसका जवाब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने दे दिया. उन्होंने कहा की देश के विकास के लिए मोदी सबसे उपयुक्त प्रधानमंत्री हैं और रहेंगे लेकिन जब कांग्रेस के नेता NDA को Naidu Dependant Alliance और Nitish Dependant Alliance बताने लगे, तो मोदी ने याद दिला दिया कि NDA की इस बार जो सरकार बनी है, वो अब तक की किसी भी गठबंधन सरकार में से, सबसे मजबूत सरकार है. नोट करने वाली बात ये है कि जब 2004 में कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई थी, तो कांग्रेस के पास 145 सांसद थे और जब 2009 में कांगेस की सरकार बनी थी तो कांग्रेस के 206 सांसद थे. अब इस alliance सरकार में बीजेपी के 240 सांसद हैं. मोदी ने ये भी साफ कर दिया कि पहले की तरह अटकलों और अफवाहों और बिचौलियों का दौर अब वो नहीं आने देंगे, ना तो मोदी का सरकार चलाने का तरीका बदलेगा, ना तेवर. एक बात और. मोदी के इस बार प्रधानमंत्री बनते ही बहुत सारे मुद्दे खत्म हो जाएंगे. वो मुद्दे जो राहुल गांधी और उनके साथियों ने चुनाव के दौरान उठाए थे. पहला, कि भारत में लोकतंत्र को न कोई खतरा था, ना है और ना कभी हो सकता है. दूसरा, EVM में न कभी कोई गड़बड़ी थी, ना की जा सकती है. तीसरा, चुनाव आयोग न किसी को चुनाव जीता सकता है, न हरा सकता है, वह सिर्फ चुनाव करवा सकता है. और चौथी बात ये कि 10 साल के इंतजार के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता का संवैधानिक पद होगा क्योंकि कांग्रेस के पास इस बार इतनी सीटें हैं कि वो नेता विपक्ष बना सके. मुझे लगता है कि पूरी दुनिया में ये संदेश गया. इसके लिए देश की जनता का आभार मानना चाहिए. अगर इस बार फिर बीजेपी 300 पार कर लेती तो ये सारे शक और शुबहे, सारे सवाल यूं के यूं बरकरार रहते. अब पूरी दुनिया ने देख लिया कि भारत में लोकतंत्र जीवन्त है, भारत में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं, सारे शको-शुबहे अब हमेशा के लिए दफन हो गए और ये लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत है.
HOW VOTERS BURIED ALL DOUBTS ABOUT ECI, EVMs, THREAT TO DEMOCRACY
Discussions are under way over formation of the Narendra Modi government which will be sworn in at Rashtrapati Bhavan on Sunday at 7.15 pm. BJP President J P Nadda and Home Minister Amit Shah met Prime Minister Modi on Saturday and briefed him about the talks with all NDA allies and BJP state leaders regarding portfolios. Modi will be sworn in for the third time as Prime Minister on June 9 along with his council of ministers. All those in the opposition who had predicted that Modi would cease to be Prime Minister after June 4 results, are now disappointed, crestfallen. Those who had predicted that Modi would have to lead a coalition with demanding allies are now silent. Those who had predicted that the NDA would become Naidu Dependent Alliance or Nitish Dependent Alliance, have now got their answers from Chandrababu Naidu himself. Modi told NDA MPs that the government that is going to be formed will be the strongest coalition government in recent history. One must note that in 2004, when Congress formed the UPA government, it had 145 MPs, and in 2009, when it formed the second UPA governemnt, the Congress had 206 MPs. The NDA coalition government that will be formed on Sunday will have the single largest party BJP having 240 MPs. In his speech, Modi clarified that he would not come under pressures from middlemen or rumours of speculations, nor will the style of functioning of his government would change. With Modi becoming PM, several issues will now come to an end. Rahul Gandhi and other opposition leaders had raised these issues during the election campaign. One, there were never any threat to Indian democracy, nor is there a threat now or will there be a threat in near future. Two, EVMs were never tampered, nor can they be tampered. Three, Election Commission can neither make any party win or make any party lose. It can only conduct elections. Four, after a gap of 10 years, Lok Sabha will have a Leader of Opposition because Congress has more than the required number of seats to claim that status. The message on these issues has now gone to the entire world, which has witnessed the strength and resilience of Indian democracy. We should be grateful to the voters of India for this. Had BJP crossed 300 seats this time, all doubts and questions would have remained. All such doubts have been buried for ever now. This is the greatest victory of Indian democracy.
NDA, नरेंद्र, नायडु और नीतीश : अटकलों के लिए कोई गुंजाइश नहीं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आज NDA संसदीय दल का नेता सर्वसम्मति से चुन लिया गया. पुराने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में NDA के सभी सांसदों की बैठक में होगी, जिसमें सभी सहयोगी दलों ने एक स्वर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन किया. इस प्रस्ताव का अनुमोदन गृह मंत्री अमित शाह ने किया, और सहयोगी दलों के नेता चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, एच डी कुमारस्वामी और अन्य ने प्रस्ताव का समर्थन किया. नीतीश कुमार ने यहां तक कहा कि वो चाहते थे कि मोदी आज ही प्रधानमंत्री पद की शपथ ले लें. अपने धन्यवाद भाषण में नरेंद्र मोदी ने NDA की चुनावी जीत को ‘महाविजय’ बताया और कहा कि जनता ने इंडी अलायंस को उसके भ्रष्टाचार के इतिहास के कारण नकार दिया. मोदी ने NDA सांसदों से अपील की कि वे मंत्रालयों के आवंटन के बारे में चल रही अटकलबाज़ी पर भरोसा न करें. उधर, राष्ट्रपति भवन में मोदी के तीसरे शपथ ग्रहण की तैयारियां तेज हो गई है. राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में मेहमानों के लिए कुर्सियां लग गई हैं. मोदी रविवार नौ जून को शपथ लेंगे, जिसमें कई पड़ोसी देशों के राजनेता उपस्थि रहेंगे. इनमें बंगलादेश, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, भूटान जैसे देश शामिल हैं. जहां तक मंत्रालयों को लेकर अटकलों का सवाल है, मुझे 2014 में चुनाव के बाद हुई NDA के सांसदों की पहली मीटिंग में कही गई नरेन्द्र मोदी की बात याद आ रही है. सेन्ट्रल हॉल में हुई उस मीटिंग में मोदी ने कहा था कि अब मंत्रिमंडल को लेकर चर्चा शुरू होगी, तमाम दावे किए जाएंगे, लेकिन ऐसी किसी अफवाह के चक्कर में मत पड़ना, अगर कोई कहे कि वो आपको मंत्री बनवा सकता है, तो भरोसा मत करना. अगर कोई फोन आए कि प्रधानमंत्री कार्यालय से बोल रहा हूं, आपको मंत्री बनाया जा रहा है तो भी यकीन मत करना, एक बार प्रधानमंत्री कार्यालय फोन करके पूछ लेना, क्योंकि फैसला मुझे करना है, और किसी को नहीं. उसके बाद इस तरह की अटकलबाजी बंद हो गई, सत्ता के गलियारों मे घूमने वाले बिचौलियों की दुकानें बंद हो गई. लेकिन इस बार हालात बदले हैं. बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. गठबंधन की सरकार बन रही है. इसलिए फिर उसी दौर की बातें शुरू हो गई हैं. लेकिन शायद लोग ये भूल रहे हैं कि सिर्फ आंकड़े बदले हैं, हालात बदले हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी वही हैं, जो समझौता नहीं करते, दबाव में नहीं आते. ये सही है कि नरेन्द्र मोदी की ये सरकार चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन पर टिकी होगी, इसलिए उनका ख्याल रखना होगा. लेकिन मेरी जानकारी ये है कि चन्द्रबाबू नायडू ने किसी तरह की कोई शर्त नहीं रखी है. चन्द्रबाबू नायडू ने नरेन्द्र मोदी से सिर्फ इतना कहा है कि आप देश की सरकार जैसे चला रहे थे, वैसे ही चलाएं, वह बिना शर्त पूरा समर्थन देंगे और बदले में आन्ध्र प्रदेश के लोगों की भलाई के लिए उन्हें केन्द्र से जो सहयोग चाहिए, वो केन्द्र सरकार से मिले. बस यही शर्त है. इसके अलावा किसी पद को लेकर, मंत्रियों की संख्या को लेकर या मंत्रालयों को लेकर न नीतीश कुमार के साथ कोई बात हुई है, न चन्द्रबाबू नायडू के साथ, और न इन दोनों ने अपनी तरफ से कोई मांग अभी तक रखी है. सरकार में हिस्सेदारी के अलावा कुछ मुद्दे हैं जिनको लेकर बीजेपी TDP, JDU के बीच वैचारिक मतभेद हैं. इसलिए अब उन मुद्दों को हवा दी जा रही है. पूछा जा रहा है कि कॉमन सिविल कोड़ पर JDU और TDP का रूख क्या होगा. क्या ये दोनों पार्टियां बिहार और आन्ध्र को स्पेशल स्टेटस की मांग करेंगी. क्या मोदी पर अग्निवीर स्कीम को वापस लेने के दबाव बनाएंगी. JDU की तरफ से इन सवालों का भी साफ साफ जवाब दिया गया. नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के सांसदों के साथ मीटिंग की. सारे सांसदों को अपनी प्राथमिकताएं समझा दी. ये भी साफ कर दिया कि NDA के साथ थे और NDA के साथ ही रहेंगे. ये सही है कि विरोधी दलों के नेता समान नागरिक संहिता, राज्यों को विशेष दर्जा, जातिगत जनगणना और अग्निवीर स्कीम जैसे मुद्दों पर विवाद पैदा करने की कोशिश करेंगे लेकिन बीजेपी के नेताओं का कहना है कि इन सभी मुद्दों पर सहमति बनाने में मुश्किल नहीं होगी. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पहले ही कह चुके हैं कि अनुभव के आधार पर अग्निवीर स्कीम में जो कमियां सामने आएंगी, उन्हें सरकार दूर करेगी, इस योजना पर पुनर्विचार करने में भी कोई हिचक नहीं होगी. इसलिए अगर इस मामले में सहयोगी दल मांग करेंगे तो अग्निवीर योजना पर सरकार अड़ेगी नहीं. जहां तक जातिगत जनगणना का सवाल है तो बीजेपी ने कभी इसका विरोध नहीं किया. इसलिए हो सकता है कि सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार हो जाए. बीजेपी के नेताओं का कहना है कि UCC के सवाल पर गृह मंत्री अमित शाह साफ कर चुके हैं कि UCC बीजेपी के एजेंडा में हैं लेकिन इसे लागू करना है या नहीं, ये राज्यों पर निर्भर होगा. इसलिए इसमें भी दिक्कत नहीं होगी. थोड़ी बहुत मुश्किल विशेष दर्जा को लेकर होगी क्योंकि नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू दोनों अपने अपने राज्य के लिए विशेष दर्जा मांग रहे हैं. केन्द्र सरकार की मुश्किल ये है कि अगर बिहार और आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है तो दूसरे राज्य भी इसकी मांग करेंगे. नीति आयोग भी इस प्रावधान को खत्म कर चुका है. इसलिए विशेष राज्य का दर्जा देने के बजाए नरेन्द्र मोदी बिहार और आन्ध्र प्रदेश के विकास के लिए अतिरिक्त मदद दे सकते हैं. कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी को भी मालूम है, सरकार गठबंधन की है और नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू भी राजनीति में नए नहीं हैं. उन्हें भी केन्द्र सरकार की सीमाएं मालूम है. इसलिए इस तरह के मुद्दों पर टकराव होगा, इसकी गुंजाइश कम है.
NDA, NARENDRA, NAIDU AND NITISH : NO SCOPE FOR SPECULATIONS
Prime Minister Narendra Modi was on Friday unanimously elected leader of National Democratic Alliance parliamentary party at a meeting held at in the Central Hall of old Parliament building. His election as NDA leader paved the way for him to be sworn in a Prime Minister for a historic third consecutive term on Sunday (June 9). Leaders of all NDA allies, including Telugu Desam Party, Janata Dal(U) and others, came to the rostrum to support a resolution moved by Defence Minister Rajnath Singh and seconded by Home Minister Amit Shah for electing Modi as NDA parliamentary party leader. TDP chief N Chandrababu Naidu, Bihar CM Nitish Kumar and leaders of all NDA parties applauded Modi’s performance and extended their support. In his acceptance speech, Modi described the recent victory as a “Maha Vijay” (grand victory) for NDA. He said, the opposition tried to paint the election results as a defeat , “but we didn’t lose, we never lost and we shall never lose”. On the other hand, Modi said, people have rejected what he called “INDI alliance” which was formed to grab power. Modi said, “though Congress-led UPA changed its name, but people knew them for their corruption. Even after changing their name, the country has not forgiven them and rejected them. Because of their one-point agenda of opposing just one individual, the people of India have made them sit in the Opposition…On the other hand, NDA stands for New India, Developed India, Aspirational India….NDA government has been the strongest alliance government in India’s history.” The President has invited Modi to form his government and already preparations are afoot at the Rashtrapati Bhavan for holding the swearing-in ceremony on Sunday. The ceremony will be attended by leaders from most of the neighbouring countries like Nepal, Bhutan, Bangladesh, Sri Lanka and Maldives. Meanwhile, speculations are still on about the number of portfolios that the NDA allies may seek from BJP. In his acceptance speech today, Modi told NDA MPs not to trust rumours and speculations about distribution of portfolios, which he said were baseless. Chief Ministers of all BJP-ruled states attended Friday’s NDA meeting. These included UP chief minister Yogi Adityanath, Assam CM Himanta Biswa Sarma, Gujarat CM Bhupendra Patel, Uttarakhand CM Pushkar Dhami, Haryana CM Nayab Singh Saini, Rajasthan CM Bhajanlal Sharma, MP CM Mohan Yadav and chief ministers from north-eastern states. About speculations, I remember, in 2014 Modi had told the NDA meeting at that time, not to trust baseless rumours about distribution of portfolios. He told the MPs not to trust any phone calls if somebody claimed that he or she was speaking from PMO. This was how he ended all speculations and powerbrokers were kept at bay. Since the situation this time is changed and BJP has not secured clear majority on its own, speculations are again rife. But people probably forget that the numbers and situation may have changed, but Modi has not changed. He is the same Narendra Modi who never compromises or bows to pressures. It is true that Modi’s government will depend on support from Chandrababu Naidu’s and Nitish Kumar’s party for majority and their views will have to be taken into consideration. As far as I know, Chandrababu Naidu has not kept any pre-conditions. He has only told Modi to run the government as he was running, and he would get his unconditional support. In return, Naidu reportedly told the PM, that he would seek the Centre’s cooperation for ensuring the welfare of the people of Andhra Pradesh. Neither any talks have taken place till now over the number of ministers and portfolios, nor any demands have been made by both Naidu and Nitish Kumar. Of course, some political issues remain. Opposition parties may try to drive a wedge among the NDA allies over issues like Uniform Civil Code, caste survey and Agniveer scheme. BJP leaders are confident there will not be much difficulties in ironing out these issues. Defence Minister Rajnath Singh has already said that the Centre would try to remove shortcomings in the Agniveer scheme and would not hesitate for a relook. As far as caste survey is concerned, BJP never opposed this idea. Probably the Centre may agree for a caste census. On Uniform Civil Code, Home Minister Amit Shah has clearly said that UCC is on BJP’s agenda, but it will depend on state governments whether to implement it or not. On according special status to states like Bihar and Andhra Pradesh, there could be some difficulties. Both Nitish Kumar and Chandrababu Naidu have sought special status for their respective states. The Centre’s problem is that if both these states are given special status, other states would also make similar demands. NITI Aayog has already ended such a provision for according special status. Narendra Modi may opt for giving special assistance to states like Bihar and AP. Overall, Modi knows that he will be running a coalition government, and neither Nitish nor Chandrababu are new in politics. They know the Centre’s limitations. Hence, there is little possibility of any confrontation developing on such issues.
मोदी के पीएम बनने का रास्ता साफ, विपक्ष को इंतज़ार करना पड़ेगा
नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे. बुधवार को सहयोगी दलों की मीटिंग में नरेन्द्र मोदी को NDA का नेता चुन लिया गया. अब NDA के नेता राष्ट्रपति से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे. राष्ट्पति को NDA में शामिल पार्टियों के नेताओं के दस्तखत वाली समर्थन की चिट्ठी सौंप दी जाएगी. इसके साथ ही नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो जाएगा. राष्ट्रपति ने बुधवार शाम को मोदी सरकार के मंत्रियों के सम्मान में विदाई भोज दिया. NDA के पास 292 का आंकड़ा है, बहुमत के लिए 272 चाहिए, इसलिए मोदी की सरकार बनेगी, इसमें कोई संशय नहीं है. बुधवार को INDIA गठबंधन के नेताओं ने भी साफ कर दिया कि फिलहाल वो विपक्ष में ही बैठेंगे, सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे. सुबह संजय राउत कह रहे थे कि बीजेपी के पास तो सिर्फ 240 हैं, जबकि INDIA गठबंधन के पास ढ़ाई सौ सांसद हैं, नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू तो सबके दोस्त हैं लेकिन चन्द्रबाबू नायडू ने दिल्ली पहुंचने से पहले हैदराबाद में ही कह दिया कि वो NDA के साथ हैं, NDA के साथ ही रहेंगे. नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने भी साफ कर दिया कि वह NDA के साथ ही रहेंगे. शाम को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कह दिया कि उनका गठबंधन सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं करेगा. अब सवाल सिर्फ इतना है कि नरेन्द्र मोदी पहली बार ऐसी सरकार का नेतृत्व करेंगे जो सहयोगी दलों के समर्थन पर टिकी होगी. NDA की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, राजनाथ सिंह, अमित शाह, टीडीपी के अध्यक्ष चन्द्रबाबू नायडु, जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार, शिवसेना के एकनाथ शिन्दे, लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान, RLD के जयन्त चौधरी, NCP के प्रफुल्ल पटेल, JD-S से एच डी कुमार स्वामी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चे के जीतनराम मांझी, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के सुदेश महतो, अपना दल की अनुप्रिया पटेल, आंध्र प्रदेश से जनसेना के अध्यक्ष पवन कल्याण, असम गण परिषद के अतुल बोरा, सिक्किम क्रांतिकारी परिषद के इंद्र सुब्बा और नॉर्थ ईस्ट के एलायंस पार्टनर्स के नेता शामिल हुए. सबसे पहले सभी दलों ने नरेंद्र मोदी को NDA का नेता चुन लिया. इसके बाद सभी पार्टियों ने बीजेपी, को समर्थन की चिट्ठी दे दी. अब 7 जून को NDA के सभी सासंदों की मीटिंग होगी जिसमें मोदी को NDA संसदीय दल का नेता चुना जाएगा. उसी दिन NDA की तरफ से सरकार बनाने का दावा पेश किया जाएगा. इस बीच राजनाथ सिंह, अमित शाह, जे पी नड्डा मंत्रिमंडल को लेकर सभी सहयोगी दलों से बात करेंगे. ये फॉर्मूला तय किया गया है कि पांच सांसदों पर एक कैबिनेट मंत्री का पद दिया जाएगा. जैसे चुनाव नतीजों के बाद सबके अपने अपने विश्लेषण हैं, उसी तरह सरकार बनाने को लेकर नेताओं को अपने अपने interpretation हैं. बीजेपी के लिए बुधवार को जश्न का दिन था क्योंकि इस बात में अब कोई शक़ नहीं रहा कि एक बार फिर मोदी सरकार बनेगी. मोदी विरोधी मोर्चे में कई नेता ऐसे हैं जो अभी भी यही सोच सोचकर खुश हैं कि कभी तो चंद्रबाबू या नीतीश कुमार मोदी के लिए समस्या पैदा करेंगे. कांग्रेस के लिए यही बड़ी बात है कि मोदी विरोधी मोर्चे में सबसे ज्यादा सीटें उसे मिली हैं और अब इस मोर्चे का नेतृत्व उसके पास रहेगा. अखिलेश भैया खुश हैं कि 4-4 बार हारने के बाद उन्होंने यूपी में बीजेपी से ज्यादा सीटें हासिल कर लीं. उनकी वजह से बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला. चाचा शरद पवार खुश हैं कि उन्होंने महाराष्ट्र में भतीजे को रोक लिया. ममता दीदी प्रसन्न हैं कि उन्होंने बीजेपी को पैर नहीं फैलाने दिए. जो जीता वो भी खुश, जो हारा वो भी खुश. इसी को कहते हैं सबका साथ सबका विकास. INDIA अलायन्स ने अपनी हार मान ली. गठबंधन की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि फिलहाल गठबंधन विपक्ष में ही बैठेगा, सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं की जाएगी. बैठक में सोनिया गांधी, राहुल गांधी,प्रियंका गांधी के अलावा शरद पवार, एम के स्टालिन, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी, सीताराम येचुरी, उमर अबदुल्ला, संजय राउत, डी राजा, चंपई सोरेन, कल्पना सोरेन, संजय सिंह और राघव चड्ढा समेत 33 नेताओं ने हिस्सा लिया. करीब दो घंटे तक चली मीटिंग में इस बात पर चर्चा हुई कि नंबर न होने के बावजूद क्या सरकार बनाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए. सारे दलों ने तय किया कि विपक्षी गठबंधन सरकार बनाने के लिए सही वक्त का इंतजार करेगा. खरगे ने कहा कि जनता तानाशाही से आजादी चाहती है, गठबंधन सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेगा और सही वक्त आने पर कदम उठाएगा. एनसीपी के संस्थापक शरद पवार इस बात को समझते हैं कि इस समय मोदी को सरकार बनाने से नहीं रोका जा सकता. वो जानते हैं कि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को NDA से अलग करना मुश्किल होगा. ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे जैसे नेता इसीलिए बैठक में नहीं आए क्योंकि उन्हें पता है कि फिलहाल सरकार बनाने के रास्ते तो बंद हैं. लेकिन राहुल गांधी तो अपनी हर चुनाव रैली में कहते थे, लिखकर ले लो, 4 जून के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे. इसीलिए कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी करके मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोका जाना चाहिए. लेकिन आंकड़े ऐसे हैं कि मोदी को तीसरे टर्म से रोक पाना असंभव है. चुनाव के नतीजे आने के बाद भी मोदी विरोधी मोर्चे के कई नेताओं ने कहा था, हमारी सरकार बनेगी, अगर नहीं बनी तो सब कहेंगे कि सब मिलकर लड़े फिर भी मोदी को नहीं रोक पाए. दो घंटे तक जो बैठक हुई, उसमें कई बार ये बात उठी लेकिन फिर एक नेता ने समझाया कि अकेले बीजेपी के पास 240 सांसद हैं, हमारी इतनी पार्टियों को मिलाकर भी 234 सांसद ही हैं, इसीलिए फिलहाल इंतज़ार करो और देखते रहो, के अलावा कोई रास्ता नहीं है.
DECKS CLEARED FOR MODI AS PM : OPPOSITION CAN ONLY WAIT AND WATCH
Decks have been cleared for Narendra Modi to take oath as Prime Minister for the third term, in the presence of several top heads of states. He was elected leader of National Democratic Alliance on Wednesday, which has won 292 seats in the Lok Sabha elections. President Droupadi Murmu hosted a farewell dinner for the outgoing ministers in Rashtrapati Bhavan on Wednesday evening. INDIA bloc leaders attended a meeting at Congress president Mallikarjun Kharge’s residence, where they decided to sit in the opposition for now and adopt a ‘wait and watch’ policy. Telugu Desam Party chief N Chandrababu Naidu said, his party would continue to remain in NDA and there should be no confusion on this issue. JD-U chief Nitish Kumar also said his party would continue to stay in NDA. Both these leaders are presently in the ‘kingmaker’ role. A chance meeting between Nitish Kumar and RJD chief Tejashwi Yadav on the Patna-Delhi flight left tongues wagging in political circles. Both the leader did sit together inside the plane and had a tete-a-tete, but JD-U leaders scotched all speculations about a ‘comeback’. Speculations aside, it was celebration time for BJP on Wednesday, since there are no doubts that Modi would be forming the next government at the Centre. Opposition leaders in INDIA bloc are still nursing hopes about Naidu and Nitish Kumar creating problems for Modi. Overall, the results have brought happiness for all parties. BJP leaders are happy that Modi would be starting his third term, Congress leaders are happy that the party has won the second largest number of seats and it would continue to lead the opposition front. Akhilesh Yadav is happy that his Samajwadi Party won more seats than the BJP, after facing four consecutive defeats. He is happy that his party stopped BJP from getting majority. Uncle Sharad Pawar is happy that he succeeded in stopping his nephew Ajit Pawar in his tracks. Mamata Didi is happy that her party stopped BJP from spreading its wings in Bengal. Everybody is happy: those who won, and those who lost. In a sense, you can call this, ‘Sabka Saath, Sabka Vikaas’. At the INDIA bloc meeting, 33 leaders from various parties attended, but the front has, after all, conceded defeat. Sonia Gandhi, Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi, Sharad Pawar, M K Stalin, Akhilesh Yadav, Tejashwi Yadav, Abhishek Banerjee (Mamata’s nephew), Sitaram Yechury, Omar Abdullah, Sanjay Raut, Champai Soren, Kalpana Soren, Sanjay Singh and Raghav Chadha were among those who attended. The unanimous decision was that the alliance would now wait for the “right time” to strike. NCP founder Sharad Pawar knows, Modi cannot be stopped from forming his government now. He also knows that it would be difficult to snare away Chandrababu Naidu and Nitish Kumar from NDA. This was the reason why heavyweights like Mamata Banerjee and Uddhav Thackeray did not attend Wednesday’s meeting. They know that the roads for government formation are now closed. Rahul Gandhi had been telling at each of his election meetings that he was ready to give in writing that Modi would no more continue as PM after June 4. Even now, some Congress leaders want to prevent Modi from taking over as PM, by hook or by crook, but the numbers are stacked against them. The numbers clearly show that nothing can stop Modi from starting his third term. The opposition front meeting went on for nearly two hours. Some leaders did say that Modi must be stopped at all costs, but one experienced leader among them pointed out that on one hand BJP alone has 240 MPs, while the entire INDIA bloc has only 234 MPs. It would be better for all to wait and watch.
मोदी की हैट्रिक : बीजेपी आत्ममंथन करे
देश के मतदाताओं ने अपना जनादेश सुना दिया है. नयी लोकसभा में 292 सीटों के साथ एनडीए को बहुमत मिला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी हफ्ते अपने तीसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति भवन में शपथ लेने वाले हैं. मोदी ने मंगलवार को कहा कि देश की जनता ने तीसरी बार उन्हें आशीर्वाद दिया है, जनता का ये फैसला लोकतंत्र को मजबूत करेगा, यह विसित भारत के लक्ष्य की तरफ बढने का जनादेश है. बीजेपी को इस बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, उसे 240 लोकसबा सीटों पर जीत हासिल हुई है. अब सवाल है कि जनता ने जो जनादेश दिया, उसका मतलब क्या है? लोगों ने ऐसा जनादेश दिया है जो भारतीय राजनीति के इतिहास में लंबे समय तक याद रखा जाएगा. बीजेपी और NDA को ऐसी जीत दी है, जो हार की फीलिंग देती है. कांग्रेस के अलायंस को ऐसी हार दी है, जो उन्हें जीत की फीलिंग दे रही है. अगर राजनीति के इतिहास से देखा जाए, तो 1962 के बाद ये पहला मौका है, जब ऐसी सरकार जिसने पांच-पांच साल के दो कार्यकाल पूरे कर लिए हों, तीसरी बार फिर सरकार बनाएगी. दूसरी बात, बीजेपी की सीटें जरूर कम हुई हैं लेकिन वोट शेयर लगभग उतना ही है जितना 2014 और 2019 में था. कांग्रेस दो-दो बार चुनाव हारने के बावजूद, सारी मोदी विरोधी पार्टियों से अलायंस करके मैदान में उतरने के बावजूद, मुश्किल से 100 सीटों के आसपास पहुंच पाई. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हुई हैं लेकिन NDA के पास इतनी सीटें हैं कि आराम से सरकार बना सके. लेकिन इस शोरगुल में दो तीन बातें नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती. गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल, दिल्ली, छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी ने लगभग सारी की सारी सीटों पर जीत हासिल की है. एक और दिलचस्प तथ्य ये है कि बीजेपी ओडिशा में अपने दम पर सरकार बनाएगी. सोमवार को ही अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी के साथ मिलकर NDA सत्ता में आई है, लेकिन इस सारे चुनाव का सबसे अच्छा नतीजा रहा कि अब कोई EVM पर सवाल नहीं उठाएगा, अब कोई चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाएगा, अब कोई ये नहीं कहेगा कि जिला कलक्टर यानी रिटर्निंग अफसर पर दबाव डालकर चुनाव के नतीजे बदलवा दिए. और जिस तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं, इसका संदेश पूरी दुनिया में जाएगा. पूरा विश्व देख रहा है कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, यहां के लोग बड़े शांतिपूर्ण तरीके से अपनी सरकार बनाते है. हां, ये ज़रूर है कि हमारे यहां इस बार सारे के सारे एग्जिट पोल फेल हुए, गलत साबित हुए. इसीलिए अब सोचना पड़ेगा कि लाखों रुपये खर्च करके जो एग्जिट पोल कराए जाते हैं, वो कराने भी चाहिए या नहीं. बीजेपी को भी इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि इतना परिश्रम, इतना काम और इतनी कल्याणकारी योजनाओं लागू करने के बाद भी उनकी सीटें कम क्यों हुईं. अब राज्यवार कुछ विश्लेषण.
उत्तर प्रदेश
इस चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा. यूपी के नतीजे अप्रत्याशित हैं. बीजेपी 62 से 33 सीटों पर आ गई और समाजवादी पार्टी पांच से 37 पर पहुंच गई. कांग्रेस को भी छह सीटें मिलीं. बहुजन समाज पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका. राहुल गांधी और शरद पवार ने कहा कि यूपी के लोगों ने कमाल कर दिया. वाकई में यूपी के नतीजे कांग्रेस के लिए बड़ी जीत है. अमेठी में स्मृति ईरानी 1 लाख 67 हजार से ज्यादा वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हारी. कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा ने स्मृति ईरानी को हराया. अमेठी के अलावा रायबरेली सीट से राहुल गांधी 3 लाख 89 हजार से ज्यादा वोटों से जीते. यूपी के ज्यादातर इलाकों में जो बीजेपी के गढ़ माने जाते थे, वहां बीजेपी की हार हुई, पूर्वांचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य यूपी में बीजेपी को झटका लगा. अखिलेश यादव की रणनीति इस बार काम कर गई. बीजेपी के नेताओं को अब तक समझ नहीं आ रहा है कि गलती कहां हुई. इतना बड़ा सदमा कैसे लगा. हालत ये है कि फैजाबाद की सीट, जिसमें अयोध्या आता है, वहां भी बीजेपी हार गई. फैजाबाद में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने बीजेपी की सासंद लल्लू सिंह को 54 हजार से ज्यादा वोटों से हराया. लखीमपुर खीरी में अजय मिश्रा टेनी, सुल्तानपुर में मेनका गांधी, फतेहपुर से मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति हार गए. अखिलेश यादव के परिवार के पांच सदस्य जो चुनाव लड़ रहे थे, जीत गए. बदायूं से शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव, फिरोजाबाद से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव, आजमगढ़ से धर्मेन्द्र यादव, मैनपुरी से डिंपल यादव और कन्नौज से खुद अखिलेश यादव चुनाव जीते हैं. नतीजों को गौर से देखें तो पश्चिमी यूपी, पूर्वांचल, बुंदेलखंड और अवध समेत सभी इलाकों में बीजेपी को नुकसान हुआ है. बीजेपी के इस नुकसान के पीछे बहुजन समाज पार्टी की खराब परफॉर्मेंस भी एक फैक्टर दिखता है. पिछली बार 10 सीटें जीतने वाली मायावती की पार्टी इस बार यूपी में खाता भी नहीं खोल पाई. शुरूआती तौर पर ऐसा लग रहा है कि मायावती का दलित वोट इंडिया अलायंस की तरफ स्विच कर गया जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ. वेस्टर्न यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और पूर्वांचल में राजभर, निषाद पार्टी, अपना दल की परफॉर्मेंस भी बेहद खराब रहा. दूसरी तरफ इंडिया अलायंस की दोनों पार्टियों समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को इसका फायदा हुआ. समाजवादी पार्टी की तरफ OBC वोटर गोलबंद होता दिखा तो दलित वोट भी इस बार उन्हें मिला. महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, संविधान और आरक्षण वाला मुद्दा अखिलेश पिछड़ों दलितों के मन तक पहुंचाने में कामयाब रहे. उत्तर प्रदेश के नतीजे बीजेपी के लिए बहुत बड़ा धक्का है. पिछली बार यूपी में बीजेपी ने 62 सीटें जीती थीं, 50 परसेंट वोट शेयर बीजेपी के पास था, लेकिन यूपी की जनता के मन को इस बार बीजेपी पढ़ने में नाकाम रही. उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर गिरकर 42 परसेंट पर आ गया जबकि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा फायदे में रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 18 परसेंट वोट मिले थे लेकिन इस बार इसमें जबरदस्त इजाफा हुआ. सपा का वोट शेयर बढ़कर 34 परसेंट के आसपास पहुंच गया. कांग्रेस को भी इस बार यूपी में फायदा हुआ. कांग्रेस की सीटें भी बढ़ीं और वोट परसेंट भी. 2019 में कांग्रेस को सिर्फ 6 फीसदी के करीब वोट मिले थे लेकिन इस चुनाव में ये बढ़कर 10 फीसदी के आसपास पहुंच गए. मायावती का बसपा का वोट शेयर 19 से गिरकर 10 परसेंट पर आ गया. लोगों के मन में ये सवाल है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने मेहनत की, कानून व्यवस्था दुरूस्त की, आर्थिक हालत सुधारी, केन्द्र की योजनाओं का बेहतर तरीके से लागू कराया. इसके बाद भी यूपी में बीजेपी को झटका क्यों लगा? इसका जवाब आसान है. बीजेपी ने उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी की, जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा. दूसरी वजह अखिलेश यादव ये संदेश देने में कामयाब रहे कि मायावती बीजेपी की मदद कर रही है, मोदी जीते तो आरक्षण को खत्म कर देंगे. इससे मुसलमानों के साथ साथ दलितों का बड़ा वोट शेयर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को मिला. अखिलेश यादव के गठबंधन ने बेहतर तालमेल के साथ काम किया. सभी जातियों का वोट उन्हें मिला, इसलिए वो जीते. हालांकि अखिलेश यादव यादव अब दावा कर रहे हैं कि लोग मंहगाई और बेरोजगारी से परेशान थे लेकिन सवाल ये है कि मंहगाई और बेरोजगारी तो बिहार में भी थी, लेकिन बिहार के नतीजे बिल्कुल उलट आए.
बिहार
बिहार में तेजस्वी यादव ने मेहनत भी कम नहीं की थी. बिहार में भी RJD, कांग्रेस और लेफ्ट का अलायन्स था. बिहार में एनडीए ने अच्छा प्रदर्शन किया, राज्य की 40 में से बीजेपी-JDU-HAM के एलायंस को 30 सीटें मिली. नीतीश कुमार की JDU को 12, बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली. चिराग़ पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी पांच सीटों पर लड़ी और पांचों जीतीं. जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने एक सीट पर जीत हासिल की. RJD को 4, कांग्रेस को तीन और CPI-ML को 2 सीटें मिलीं. पूर्णिया से निर्दलीय लड़ रहे पप्पू यादव ने जीत हासिल की. आरा से केंद्रीय मंत्री आर के सिंह, और पाटलिपुत्र से बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव चुनाव हार गए. रामकृपाल यादव को लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती ने हराया. बिहार में 12 सीट जीतकर नीतीश कुमार केंद्र की नई सरकार में किंग-मेकर बन गए हैं क्योंकि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं हासिल किया है. तेजस्वी यादव ने ढ़ाई सौ से ज्यादा रैलियां की. उनकी रैलियों में भीड़ भी दिखाई दी, जोश भी था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. अब वो हार के लिए EVM को भी दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि पड़ोस में यूपी है जहां अखिलेश ने अच्छी खासी सफलता हासिल की है. असल में बिहार के चुनाव के नतीजों का सबसे बड़ा संदेश ये है कि नीतीश कुमार नाम का टाइगर अभी जिंदा है, अभी भी बिहार के गरीब लोग नीतीश को अपना नेता मानते हैं. जो लोग कह रहे थे कि बीजेपी ने नीतीश के साथ गठबंधन करके गलती की, उन्हें जनता ने जवाब दे दिया. चूंकि बीजेपी को अपने दम पर जनादेश नहीं मिला है इसीलिए नीतीश कुमार अब NDA में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे.
राजस्थान, हरियाणा
राजस्थान के नतीजों ने भी बीजेपी को हैरान किया. पिछले साल बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की थी. राजस्थान में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं. पिछली बार यहां एनडीए ने क्लीन स्वीप किया था. बीजेपी को 24 सीटें मिली थीं. इस बार बीजेपी को 10 सीटों का नुकसान हुआ. राजस्थान में बीजेपी को सिर्फ 14 सीटें मिली. कांग्रेस को जालौर सीट पर बड़ा झटका लगा. अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बीजेपी के लुंबाराम ने 2 लाख से ज्यादा वोट से हरा दिया. बीजेपी को जयपुर, उदयपुर और राजसमंद में जीत हासिल हुई. जयपुर में बीजेपी की मंजू शर्मा ने कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास को 3 लाख 31 हजार से ज्यादा वोट से हराया. राजस्थान में बीजेपी को आपसी झगड़ों ने हराया. वसुंधरा राजे इस बार पूरी तरह सक्रिय नहीं रही. मुख्यमंत्री नए हैं. कई सीटों पर टिकट काटने से जाट वोटर्स नाराज हुए. कम से कम 4 सीटों में जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा गया. इसी तरह हरियाणा में भी बीजेपी 10 में से केवल 5 सीटें ही जीत पाई. पिछले चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा में सभी दस सीटें जीती थीं. कांग्रेस ने अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत और रोहतक सीट बीजेपी से छीनी.
पिछले चुनाव में कांग्रेस बंटी हुई थी, इस बार हिसाब उल्टा था. कांग्रेस मिलकर लड़ी और बीजेपी के नेता आपस में लड़ते रहे. कांग्रेस के लोग तो कह रहे हैं कि सरकार के खिलाफ anti-incumbency थी. लेकिन सवाल ये हैं कि अगर anti-incumbency इतना बड़ा मसला था तो गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड में ये मुद्दे काम क्यों नहीं आए?
महाराष्ट्र, बंगाल
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी ने महायुति को तगड़ा झटका दिया है. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी कुल 48 में से 29 सीटें जीती जबकि महायुति को सिर्फ 18 सीटें मिलीं. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेस रही. कांग्रेस 17 सीटों पर लडी और उसमें से 13 सीटें जीतीं. शरद पवार की पार्टी ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और वो 8 सीटें जीती, उद्धव ठाकरे की शिवसेना 21 सीटों पर लडी और 9 पर जीती. महाराष्ट्र में दो बातें सामने आईं. एक, उद्धव ठाकरे के प्रति लोगों की सहानुभूति नजर आई. इसका बीजेपी को नुकसान हुआ.शिवसेना के टुकड़े करना लोगों को पसंद नहीं आया. जिस तरह से विधायकों को गुवाहाटी ले जाकर मेहमान बनाकर रखा गया, उससे अच्छा impression नहीं पड़ा. दूसरी बात बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थीं. देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री के तौर पर अच्छा काम किया था. इसके बावजूद सरकार बनने के बाद जब मौका मिला, तो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया गया. इससे बीजेपी के कार्यकर्ता और समर्थक दोनों का मनोबल गिरा. महाराष्ट्र में इससे बीजेपी को नुकसान हुआ. पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी का सिक्का चला. तृणमूल कांग्रेस ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी 18 से घट कर 12 सीटों पर आ गई. ममता बनर्जी ने कहा कि अगर मोदी सत्ता में न होते और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करते, तो उनको जितनी सीटें मिलीं, उससे आधी ही मिलतीं. बंगाल के नतीजों ने सबको चौंकाया. सारे एक्सपर्ट्स फेल हो गए. कुछ दिन पहले मैंने प्रशांत किशोर से बातचीत की. प्रशांत किशोर ने बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता को जिताने के लिए बड़ी मेहनत की थी. उस समय उन्होंने बीजेपी की हार की भविष्यवाणी की थी जो सही साबित हुई. इस बार उन्हें लगता था कि बीजेपी बंगाल में अच्छी खासी जीत हासिल करेगी. बंगाल को लेकर प्रशांत किशोर बिलकुल गलत साबित हुए लेकिन ओडिशा के बारे में जो उन्होंने कहा वो सही साबित हुआ.
ओड़िशा, आंध्र प्रदेश
ओड़िशा में बीजेपी को ऐतिहासिक सफलता मिली. 25 साल से ओडिशा में एकछत्र राज कर रहे नवीन पटनायक की विदाई हो गई. लोकसभा और विधानसभा की ज्यादातर सीटें बीजेपी ने जीत ली. ओड़िशा में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी. 147 सीटों वाली ओडिशा असेंबली में बीजेपी को 78 सीट मिली, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल को 51 ही सीटें मिलीं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओडिशा में 21 सीटों में से 19 पर जीत हासिल की, जबकि बीजेडी और कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट मिली . ओडिशा में बीजेपी की जीत इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 25 साल से नवीन पटनायक सत्ता में थे. वो ओडिया नहीं बोल सकते थे, वह ज्यादा पब्लिक से नहीं मिलते थे और उनका पांच-पांच बार चुनाव जीतना एक चमत्कार था. किसी को नहीं लगता था कि जबतक नवीन बाबू राजनीति में हैं उनको हराया जा सकता है लेकिन बीजेपी ने ये कमाल करके दिखाया क्योंकि ओडिशा में बीजेपी के सारे एकजुट होकर लड़े. आंध्रप्रदेश में बीजेपी चंद्रबाबू नायूड की तेलुगू देशम पार्टी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ मिलकर लड़ी. इस अलायंस को 175 सदस्यों वाली विधानसभा में 163 सीटें मिली है. टीडीपी 134, जनसेना पार्टी 21 और बीजेपी 8 सीटों पर जीती. मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 12 सीट पर सिमटकर रह गई. आंध्रप्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से टीडीपी को 16, बीजेपी को 3 और जनसेना पार्टी को 2 सीट मिली हैं. यानी 25 लोकसभा सीटों में से 21 सीटें इस अलांयस ने जीती हैं. 16 लोकसभा सीटों के साथ अब चंद्रबाबू नायूड की केंद्र सरकार में भी अहम भूमिका हो गई है. NDA में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा सांसद उन्हीं की पार्टी यानी टीडीपी के हैं.
MODI’S HAT-TRICK : BJP NEEDS TO INSTROSPECT
The mandate given by the people of India on Tuesday shall be remembered for a long time in Indian political history. The BJP-led National Democratic Alliance won 292 seats, 20 more than the 272-magic mark, while Congress-led INDIA alliance won 234 seats, 38 short of the majority mark. Though NDA won, yet it gives a feeling of defeat. Though INDIA alliance failed to get majority, it gave a feeling of victory for them. For the first time since BJP led by Narendra Modi swept to power in 2014, it could not secure a majority on its own. BJP won 240 seats, much lower than the record 303 seats that it had won five years ago. Prime Minister Modi, who will take oath for the third time on June 8, will have to depend on the support of his NDA allies. Modi will be equalling Jawaharlal Nehru’s record of taking oath for the third consecutive time as PM. This is the first time since 1962 that a party at the Centre which completed two full five-year terms, will be forming its third consecutive government. Modi, in his third term, will have to depend on the support of his two main allies Telugu Desam Party, which has 16 MPs, and Janata Dal (United), which has 12 MPs. BJP’s seat tally may have declined, but its vote share remained almost the same that it got in 2014 and 2019. Despite losing two general elections consecutively, Congress entered the fray leading a combine of opposition parties, but failed to touch the three-digit mark. Congress won 99 seats. Though BJP’s seat tally is now reduced, its NDA alliance can easily form a coalition government. Two or three points must not be overlooked in the cacophony over the poll results: One, BJP made an almost clean sweep in Madhya Pradesh, Himachal Pradesh, Delhi, Gujarat, Odisha and Chhattisgarh. Another interesting fact is that BJP will be forming a government in Odisha for the first time ending Naveen Patnaik’s 25-year-old reign. It has already swept to power in Arunachal Pradesh on Monday, and will now be sharing power with Telugu Desam Party in Andhra Pradesh. The best outcome from this election is that not a single party has raised any question about tampering of electronic voting machines (EVMs). Nobody can complain that district collector, acting as Returning Officer, were pressurized to change the poll result. Nobody can now question the impartiality of the Election Commission of India. The entire world has seen how free and fair election was conducted in India. The world has seen India’s vibrant democracy in action and how government are formed or thrown out peacefully. Prime Minister Narendra Modi, while addressing party workers at BJP headquarters in Delhi on Tuesday evening said, “Today’s victory is the victory of the world’s largest democracy”. He hailed the Election Commission, its officials and security forces, saying “140 crore Indians should be proud of the credibility of the nation’s election process. I would request our media influencers, opinion makers and others to make the whole world aware of the country’s electoral process, because it has given India a new identity. He praised the Election Commission for showing the mirror to those who had cast doubts about the integrity of polls. Modi promised to root out corruption in all forms during his third term. The election results have proved all exit polls as incorrect, and the time has come to ponder whether it is at all necessary to splurge millions of rupees for conducting exit polls. BJP, as a party, should introspect why despite putting in so much effort and implementing public welfare schemes, its overall seat tally failed to touch the magic mark. Let’s have a look at some major states:
UTTAR PRADESH
The results from UP were unexpected. BJP’s tally from the state fell from 62 to 33, while Samajwadi Party topped the list with 37 seats. Congress won six seats, but BSP failed to open its account. Both Rahul Gandhi and Sharad Pawar said, the voters of UP have done a magic. Union Minister Smriti Irani lost her Amethi seat to Congress candidate Kishori Lal Sharma by a big margin of 1,67,196 votes. Rahul Gandhi won his second LS seat from Rae Bareli by a huge margin of 3,90,030 votes defeating his BJP rival. BJP lost its strongholds in Purvanchal, western UP and central UP. Akhilesh Yadav’s strategy worked. BJP is yet to work out the exact reasons why it lost. It even lost Faizabad seat which covers Ayodhya, where Lord Ram’s temple was consecrated after 500 years. Leaders and ministers like Menaka Gandhi, Ajay Mishra Teni, Sadhvi Niranjan Jyoti, Mahendra Nath Pandey, Sanjeev Balyan lost. All five members of Akhilesh Yadav’s family, including himself, won. Some BJP leaders are saying that poor performance of Bahujan Samaj Party candidates could be the main reasons for the losses. Prima facie it appears that the Dalit vote bank of BSP shifted its allegiance to INDIA alliance, and this hurt BJP’s prospects. OBC voters appeared to consolidate behind Samajwadi Party, because Akhilesh Yadav succeeded in making price rise, unemployment, Agniveer scheme, Constitution and reservation as emotive issues among the voters. BJP was commanding 50 per cent vote share in UP last time, but this time, its leaders failed to read the minds of the people, and its vote share shrunk to 42 per cent. On the other hand, Samajwadi Party’s vote share jumped from 18 pc five years ago to 34 pc this time, while Congress’ vote share increased from six pc last time to 10 pc this time. Mayawati’s BSP had its vote share almost halved from 19 pc five years ago to 10 pc this time. People are asking why despite Chief Minister Yogi Adityanath performed well in improving law and order and economic conditions in the state, BJP suffered a setback. The answer is simple: BJP made mistake in selecting candidates and did not keep caste equations in mind. On the other hand, Akhilesh Yadav worked with his allies with better co-ordination, and got votes from most of the castes.
BIHAR
In Bihar, NDA alliance performed better than INDIA bloc. Both BJP and Janata Dal(U) won 12 seats each, while its ally Chirag Paswan’s LJP (R) won five seats. RJD, the main challenger, could win only four seats, while its allies, Congress and CPI-ML won three and two seats respectively. The BJP-led NDA won 30 out of a total of 40 seats in Bihar. JD-U chief Nitish Kumar has emerged as a kingmaker at the Centre. On his part, RJD leader Tejashwi Yadav toiled hard during the campaign despite suffering from an injured leg. Thousands of people, mostly youths, crowded his election meetings, but this could not be converted into votes. Tejashwi cannot blame EVMs any more, because in neighbouring UP, EVMs functioned perfectly. The biggest message from Bihar results is that “a tiger named Nitish Kumar Abhi Zinda Hai”, and the poor people of Bihar still consider him their leader. Those who had written off Nitish Kumar politically for aligning with BJP were proved wrong and the people have given their mandate. Nitish Kumar will now perform an important role in NDA at the Centre.
RAJASTHAN, HARYANA
Results from Rajasthan were a setback for BJP, which had last year won the assembly elections. Five years ago, BJP had won 24 out of a total of 25 Lok Sabha seats, but this time BJP could win only 14 seats and the Congress won eight. Congress suffered a major loss in Jalore, when former CM Ashok Gehlot’s son Vaibhav Gehlot was defeated by BJP rival Lumbaram by more than 2 lakh votes. BJP won the seats of Jaipur, Udaipur and Rajsamand by big margins. BJP leaders say, infighting in the party cost the party at least ten seats. Caste equations were not kept in mind in at least four seats. Similarly, in Haryana, BJP, which had made a clean sweep of all 10 LS seats five years ago, lost five seats to Congress, which won from Ambala, Hisar, Sirsa, Sonepat and Rohtak. In the last elections, Congress in Haryana was divided, but this time there was infighting in Haryana BJP. Congress leaders claimed anti-incumbency as the reason, but the question arises: Why wasn’t their anti-incumbency factor in Gujarat, MP and Chhattisgarh?
MAHARASHTRA, BENGAL
In the key state of Maharashtra, Congress-led Maha Vikas Aghadi won 29 out of a total of 48 seats, leaving BJP-led Mahayuti to win only 18 seats. Congress was the biggest beneficiary. It contested 17 seats and won 13. NCP(Sharad Pawar) contested 10 and won eight seats. Shiv Sena (UT) contested 21 seats and won nine. Shiv Sena (Eknath Shinde) won only seven seats, while NCP (Ajit Pawar) could win only one seat. Maharashtra voters appeared to be sympathetic towards Uddhav Thackeray, and they did not approve of split in Shiv Sena. Secondly, BJP had more seats, but its leader Devendra Fadnavis was made to work as deputy chief minister and Eknath Shinde was made CM. This demoralized BJP workers and supporters and the results are there for all to see. In West Bengal, Trinamool Congress supremo Mamata Banerjee ruled the root. Her party won 29 out of a total of 42 seats, while BJP’s tally was reduced from 18 to 12. After the results were out, Mamata Banerjee claimed the results would have been far better had Narendra Modi not been in power and if official machinery had not been used against her party. West Bengal’s results shocked most of the people. Almost all the experts failed in predicting Mamata’s victory. Election strategist Prashant Kishore, who had worked with Mamata and helped her win the assembly elections, had predicted that BJP would fare better this time, but his prediction failed.
ODISHA, ANDHRA PRADESH
BJP scored a historic victory in Odisha assembly elections, dislodging Chief Minister Naveen Patnaik’s 25-year-old grip on power. BJP won 78 out of a total of 147 seats and is going to form a government on June 10. Patnaik’s Biju Janata Dal took second position with 51 seats. Naveen Patnaik himself lost from Kantabanjhi seat, and barely managed to win his traditional Hinjili seat. Naveen Patnaik was rarely seen in public, he could not speak Odia language fluently despite being the CM of Odisha for 25 years, and his consecutive win for five terms was nothing short of a magic. He and his party appeared to be invincible, but BJP did the impossible. This was due to unity among all BJP leaders in the state. In Andhra Pradesh, Chandrababu Naidu, who forged an alliance with Pawan Kalyan’s Jana Sena party and BJP, swept the assembly polls. TDP won 135 seats, Jana Sena won 21 and BJP, for the first time, won 8 seats. Chief Minister Y S Jaganmohan Reddy’s YSR Congress was decimated. It could win only 11 seats. In the Lok Sabha elections, Chandrababu has emerged as the kingmaker, with TDP winning 16, BJP three and Jana Sena party winning 2 seats. YSR Congress could win only four LS seats. In NDA, Naidu’s TDP has the largest number of MPs after BJP.