आपातकाल : लोकतंत्र के काले दिन
18वीं लोकसभा का अध्यक्ष ध्वनिमत से चुने जाने के बाद ओम बिरला ने बुधवार को सदन में याद दिलाया कि कैसे 1975 में 25 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्र इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू कर लोगों की बुनियादी आज़ादी को खत्म कर दिया था और सारे विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में डाल दिया था. स्पीकर ओम बिरला ने इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया, और सदस्यों ने दो मिनट का मौन भी रखा. कांग्रेस के सांसदों ने इस पर शोर मचाया, और सदन को गुरुवार तक के लिए स्थगित करना पड़ा. स्पीकर ओम बिरला ने प्रस्ताव में कहा कि ये सदन 1975 में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायितव निभाया. भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उन दिन को हमेशा एक साले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था. भारत की पहचान पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के तौर पर है. भारत में हमेशा लोतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया. ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गल घोंट दिया गया. ..ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था. तब की तानाशाह सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थी और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया गया था. इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक अन्याय काल था, एक काला कालखंड था…. हम ये भी मानते हैं कि हमारी युवा पीढी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए. ..इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी. इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गांवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं.” 18वीं लोकसभा के पहले दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को याद दिलाया था कि कैसे इंदिरा गांधी ने देश में 1975 में इमरजेंसी लगाई थी और संविधान को ध्वस्त किया था. मैं यहां बता दूं कि इमरजेंसी की उस काली रात का मैं गवाह हूं. उस दौर के जुल्म और सितम का शिकार रहा हूं. आज से ठीक 50 साल पहले 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी लगाई गई थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहें, इसके लिए देश के नागरिकों की आजादी छीन ली गई थी. रातों रात इंदिरा जी का विरोध करने वाले सारे नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था. इनमें जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल जैसे तमाम नेता शामिल थे. देश भर में उस जमाने के जितने छात्र नेता थे, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे अनगिनत छात्र नेता थे, उनके घर रात को पुलिस ने दस्तक दी, कुछ पकड़े गए, कुछ अंडरग्राउंड हो गए, जनता को कुछ खबर नहीं थी, रात को अखबारों की बिजली काट दी गई थी, उस समय सिर्फ दूरदर्शन एकमात्र टीवी चैनल था जो सिर्फ सरकार द्वारा स्वीकृत खबरें दिखाता था, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, किसी को खुलकर बोलने की आजादी नहीं थी, पुलिस को देखते ही गोली मारने का अधिकार दे दिया गया था. मैंने उस दौर को करीब से देखा है. उस दम घोंटने वाले वातावरण को जिया है. मेरी उम्र सिर्फ 17 साल की थी. मैं जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का हिस्सा था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा हुआ था. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, बोलने और लिखने की आजादी के लिए, मैंने एक अखबार निकाला. पकड़े जाने पर पुलिस की मार खाई. थाने में टॉर्चर सहा, कई महीने जेल में रहा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. इसीलिए वो दिन कभी भूल नहीं सकता. वो दिन जब मीडिया पर पहरा लगा दिया गया, विरोधी दलों के सारे नेताओं की आवाज को दबा दिया गया, न्यायपालिका पर सरकार ने कब्जा कर लिया, संविधान को गिरवी रख दिया गया, लोकतंत्र की हत्या कर दी गई. 50 साल बीत चुके हैं. ज्यादातर लोगों को वो ज़माना याद नहीं है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, उस संघर्ष को उस लड़ाई को जानना और समझना जरूरी है. कभी अवसर होगा तो मैं विस्तार में बताऊंगा कि उस जमाने में ये क्यों हुआ? किसके लिए हुआ? और कैसे 19 महीने बाद देश की जनता ने लोकतंत्र को बचाने के लिए, संसद की परंपरा को खत्म करने वाली सरकार को उखाड़ फेंका.
EMERGENCY : DARK DAYS OF DEMOCRACY
The Lok Sabha was adjourned for the day on Wednesday after opposition Congress members created uproar and objected to the newly elected Speaker Om Birla reading out a resolution on the 1975 Emergency, labelling it as “a dark chapter in India’s history”. Ruling BJP and other NDA members came out of the House, shouted slogans against Emergency and displayed placards. In the resolution, Speaker Om Birla said, “This House strongly condemns the decision to impose Emergency in 1975. Along with this, we applaud the determination of all those who opposed the Emergency, fought tyranny and discharged their responsibility of protecting democracy in India. 25th June, 1975, shall always be known as a black chapter in the history of India. On this day, the then Prime Minister Indira Gandhi imposed Emergency in the country and attacked the Constitution made by Babasaheb Ambedkar. India is known all over the world as the Mother of Democracy. Democratic values and debates have always been protected and encouraged in India. Dictatorship was imposed on India on that day by Indira Gandhi. Our democratic values were crushed and our freedom of expression was strangled”, Speaker Om Birla said. Opposition members shouted slogans “Band Karo, Band Karo” as Speaker Om Birla read out the resolution. It may be recalled that on the first day of 18th Lok Sabha, Prime Minister Narendra Modi paid homage to those great men and women who resisted Emergency in 1975 and reminded people of how Congress under Indira Gandhi subverted basic liberties and trampled over the Constitution. “The mindset which led to the imposition of Emergency in 1975 is very much alive in the same party that imposed it. They hide their disdain for the Constitution through tokenism but the people of India have seen through their antics, and that is why that party has been rejected by the people time and again”, Modi had said. Nearly half a century ago, on June 25, 1975, the then Prime Minister Indira Gandhi imposed Emergency. I was a close witness to that dark night and had been a victim of atrocities unleashed by the then government. The liberties of Indian citizens were taken away in order to keep Indira Gandhi on her throne as Prime Minister. Overnight, all major opposition leaders like Lok Nayak Jayaprakash Narayan, Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Chaudhary Charan Singh, Parkash Singh Badal, George Fernandes, L K Advani, were thrown into jail. Student leaders at that time like Arun Jaitley, Lalu Prasad Yadav, Nitish Kumar, Ramvilas Paswan, and thousands of other students were arrested from their homes and hideouts and thrown into jails. Hundreds of student leaders went underground. People of India had no knowledge about the manner in which opposition activists were being rounded up. Power supply to newspaper offices was disconnected. At that time, the government-run Doordarshan was the only TV channel available, which showed only news approved by the government. Draconian censorship was imposed on the press. The liberty to speak up in the open was taken away. Police officers were given powers to shoot. I have seen those dark days of Emergency and have lived in that stifling environment. At that time, I was 17 years old. I was part of JP’s movement and was linked with Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad. I published a small newspaper to tell people about the actual happenings that were going on in political circles. I was later arrested by police, tortured inside a police station, and had to remain in jail for several months. But I never lost courage. I shall never forget those dark days. The media, in those days, was under strict surveillance and censorship. The voice of opposition leaders was crushed. The government gained control over judiciary. The Constitution was made a hostage, Democracy was murdered in broad daylight. Fifty years have passed. Most of the people do not remember those dark days. It is necessary for all of us to remain aware about how the struggle was waged to regain freedom of expression. Some day I shall narrate my experiences in detail. I will describe the circumstances under which Emergency was imposed, for whose benefit it was imposed, and how the people of India, after 19 months, threw out that autocratic government through ballots.
दिल्ली जल संकट पर राजनीति बंद करें
दिल्ली में पानी की किल्लत को लेकर पिछले तीन हफ्ते से शोर मचाय़ा जा रहा है. दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियों, अनधिकृत कॉलोनियों को तो छोड़िए अब Lutyens’ Zone में रहने वाले वीआईपी लोगों को भी पानी खरीदना पड़ रहा है. दिल्ली के वीवीआईपी इलाकों में संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट, राष्ट्रपति भवन, मंत्रियों, अफसरों, सांसदों के बंगले और फ्लैट, यहां तक कि राम मनोहर लोहिया, लेडी हार्डिंग और कलावती शरण जैसे सरकारी अस्पताल भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मंगलवार को 2 टैंकर्स से पानी की सप्लाई हुई. महाराष्ट्र सदन में एक टैंकर पानी भेजा गया. मंत्रियों, सांसदों के घरों से पानी की मांग आ रही है. NDMC में आने वाले दिल्ली के पॉश इलाके गोल मार्केट, जोरबाग, बंगाली मार्केट, खान मार्केट के बंगलों और बाजारों में पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है. दरअसल NDMC एरिया को दिल्ली जल बोर्ड ही पानी की सप्लाई करता है. इस इलाके में रोजाना 125 मिलियन लीटर दैनिक पानी की सप्लाई होती है जो अब घटकर 70 से 75 एमएलडी पर आ गई है. NDMC अपने रिजर्वायर्स से पानी की सप्लाई करने की कोशिश कर रहा है लेकिन दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से उसे पानी की सप्लाई नहीं मिल पा रही है. NDMC के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि 10 साल में अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में पानी की सप्लाई को दुरूस्त करने के लिए कुछ नहीं किया, हर साल गर्मी में पानी की समस्या होती है और आम आदमी पार्टी के नेता इसका दोष हरियाणा की सरकार पर थोप देते हैं और जनता परेशानी झेलती है. NDMC एरिया को दिल्ली के तीन वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स से पानी मिलता है – वजीराबाद प्लांट से संसद भवन, लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल, राम मनोहर लोहिया और कलावती हॉस्पिटल को पानी सप्लाई होता है, चंद्रावल प्लांट से राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, मंत्रियों के घरों औऱ दूतावासों के इलाके में पानी जाता है, सोनिया विहार प्लांट से खान मार्केट और NDMC की दूसरी मार्केट्स में पानी की सप्लाई होती है. वजीराबाद प्लांट से पिछले दो दिनों से पानी की सप्लाई नहीं हुई है जिसकी वजह से तीन अस्पतालों में पानी की सप्लाई प्रभावित हुई हैं. संसद भवन में भी सप्लाई कम हुई है. गौर करने वाली बात ये है कि अभी संसद का सत्र शुरु नहीं हुआ है, 24 जून से सत्र शुरु होगा, उस वक्त यहां पानी का जरूरत ज्यादा होगी. एनडीएमसी का दावा है कि संसद भवन को पानी की कमी नहीं होने दी जाएगी. एनडीएमसी बोर्ड के सदस्य कुलदीप चहल ने कहा कि अगर केजरीवाल सरकार पहले से प्लानिंग करती तो ऐसे हालात न बनते. अशोक रोड, जनपथ, बंगाली मार्केट, खान मार्केट, तिलक मार्ग, जोर बाग में बड़े बड़े बंगले, दफ्तर और मार्केट हैं. इंडिया टीवी के संवाददाता ने मंगलवार को इन इलाकों में बड़े बड़े बंगलों के सामने लोगों को पानी के टैंकर का इंतजार करते देखा. इन इलाकों में एक ही समय पानी की सप्लाई हो रही थी, लेकिन अब वो भी बंद हो गई है.कई घरों और मार्केट्स में पानी खत्म हो गया है. लोग बाजार से पानी खरीदकर काम चला रहे हैं. एनडीएमसी से पानी भेजने की गुहार कर रहे हैं. लंबे इंतजार के बाद पानी के टैंकर के जरिए घरों की टंकियां भरी जा रही हैं. मार्केट एरिया में तो हालात और बदतर हैं. दिल्ली और आसपास के इलाक़ो में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है. दिन का तापमान 45 डिग्री तक पहुंच जाता है. रात को भी 40 डिग्री तक गर्मी होती है. ऐसे में पानी की कमी जानलेवा हो सकती है. इसीलिए लोग एक एक बाल्टी पानी के लिए मरने मारने को तैयार हो जाते हैं और ये हालात कई दिन से हैं. लेकिन आज सबसे बड़ी चिंता ये हुई कि अस्पतालों में जहां मरीज होते हैं और हॉस्टल्स में जहां विद्यार्थी होते हैं, वहां से पानी की कमी की खबरें आईं. ये सच है कि सरकार को पहले से पता था कि गर्मी पड़ेगी, पानी की कमी होगी, लेकिन कोई प्लानिंग नहीं की गई. दिल्ली की सरकार हरियाणा को जिम्मेदार बताती रही, हरियाणा की सरकार सफाई देती रही. इसका नतीजा ये है कि आज दिल्ली के लोग परेशान है, बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने को मजबूर हैं और दुख की बात ये है कि ये सब देखकर भी नेताओं ने पानी के सवाल पर राजनीति करना नहीं छोड़ा. दिल्ली जल संकट पर नेता राजनीति न करें तो बेहतर रहेगा.
STOP POLITICIZING DELHI WATER CRISIS ISSUE
Delhi and most parts of northern India are experiencing a scorching heat wave, but the problem has been worse confounded in the capital with severe water crisis in most parts of the city. Acute water crisis has now affected large parts of VVIP Lutyens’ Zone area, with New Delhi Municipal Council reporting supply of only 70 to 80 MLD (million litres a day) water compared to the daily normal supply of 125 MLD water. NDMC gets water from Delhi Jal Board water treatment plants at Wazirabad, Sonia Vihar and Chandrawal plants, but the supply has been reduced by almost half on Tuesday. Parliament complex, Delhi High Court, Supreme Court, top government hospitals like RML Hospital, Lady Hardige and Kalavati Sharan hospitals, Chanakyapuri, Rashtrapati Bhavan, MP and ministers’ bungalows and flats have been hit by water supply disruption. NDMC vice-chairperson Satish Upadhyay said, water supplied from the three DJB plants is collected in 27 reservoirs and supplied to Lutyens’ Zone, but now only around 60 per cent of regular water supply is being made. VIPs and government hospitals in this zone are being supplied water through water tankers. Upadhyay alleged that Arvind Kejriwal’s government did nothing significant to improve water supply in the capital during the last 8 years, leading to water crisis during summer. Parliament session is yet to begin and MPs are going to arrive next week, but already the entire area is facing acute water shortage. NDMC member Kuldip Chahal said, a contingency plan is being kept ready to meet the crisis. Ashoka Road, Janpath, Bengali Market, Khan Market, Tilak Marg, Jor Bagh are posh localities housing swanky residences, shops, institutions and markets. India TV reporter on Tuesday found queues of people near water tankers outside posh bungalows. People living in Delhi and neighbouring towns are sweltering in temperature which is more than 45 deg Celsisus, and night time temperature has almost touched 40 deg C. Shortage of drinking water in such a situation, can be calamitious. People are fighting over even a pail of water. For the last three weeks, Delhi has been facing tremendous water shortage, but this was mostly confined to unauthorised colonies and jhuggi areas. Now, the shortage has hit big hospitals, where patients, doctors and other hospital staff require water for day-to-day operations. The government knew about a big heat wave coming, and and it knew that tthis could lead to a big water crisis. No timely planning was made. Delhi government ministers blamed Haryana government for supplying less water and went to the Supreme Court. Haryana government ministers gave their own explanations. Nearly two and a half crore people living in the national capital are facing the consequences of this negligence. The saddest part is that leaders from all political parties have not stopped their bickerings and are still engaging in trying to score brownie points. Politics on water shortage must stop.
EVMs : FREE, FAIR AND FAST POLLING
The electronic voting machine issue has been raised again, two weeks after the announcement of Lok Sabha election results by the opposition. It is based on a tweet by Elon Musk, CEO of Tesla and SpaceX. In a post on his social media platform X, Musk wrote: “We should eliminate electronic voting machines. The risk of being hacked by humans or AI, while small, is still too high.” Musk was reacting to alleged irregularities discovered in EVMs during the primary elections in Puerto Rico. He was reacting to a tweet by Robert F. Kennedy Jr, an independent candidate in US presidential elections, in which Kennedy had referred to irregularities in EVMs. Kennedy Jr wrote: “Puerto Rico’s primary elections just experienced hundreds of voting irregularities related to electronic voting machines, according to the Associated Press. Luckily, there was a paper trail so the problem was identified and vote tallies corrected. What happens in jurisdictions, where there is no paper trail? US citizens need to know that every one of their votes were counted, and that their elections cannot be hacked. We need to return to paper ballots to avoid electronic interference with elections. My administration will require paper ballots and we will guarantee honest and fair elections.” Elon Musk’s reaction to Kennedy Jr. did not raise a storm in the USA, but it did in India. Congress leader Rahul Gandhi described EVM as a ‘black box’, and Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav demanded re-introduction of ballot paper system. Rahul Gandhi wrote on X: “When democratic institutions are captured, the only safeguard lies in electoral processes that are transparent to the public. EVM is currently a black box. EC must either ensure complete transparency of the machines and processes, or abolish them.” BJP leader and former Minister of State for Electronics, Rajeev Chandrasekhar reacted saying, Elon Musk’s suggestion about all EVMs being hackable is factually wrong. He said, “To claim that there cannot be a secure digital product in the world is to then say that every Tesla car can be hacked….A calculator or a toaster cannot be hacked. There is a limit in terms of where this paradigm of hacking can extend. Elon Musk has not understood what the Indian EVM is. Indian EVM do not lend itself to be hacked because it is precisely a very limited intelligence device.” Rajeev Chandrasekhar said, one can explain this to Elon Musk, but it is impossible to explain this to Rahul Gandhi and other opposition leaders, who consider themselves as technical experts. Congress spokesperson Pawan Khera said, the opposition has been raising the EVM issue since last several years, but neither the BJP nor the Election Commission is ready to discuss. Khera said, “now that Elon Musk has questioned the EVM, the entire government is now trying to defend. This means, there is something doubtful (daal mein kaala).” Janata Dal-U leader K C Tyagi said, LS election results came on June 4, but the opposition did not speak a word about EVM for 13 days, but now they are trying to find faults in the machine and creating doubts about the results. Congress leader Nana Patole said, there are 165 LS seats, where the winner’s margin was barely between 200 and 2,000. He said, people have lost confidence in EVMs and ECI should now reintroduce ballot paper system. To me, the entire EVM issue is one in which one goes on raising doubts and questions, and telling lies, and the sole objective seems to create doubts in the minds of people. The funny part here is, Elon Musk raised questions about EVMs being used in a primary election in Puerto Rico, USA. He did not speak of any other country, but our leaders have jumped in the fray. The Supreme Court has already observed that the ECI has given proofs more than a hundred times to explain the working of EVMs, and yet some leaders are raising doubts. Rahul Gandhi won from two LS constituencies on the basis of the same EVMs. These were the EVMs which reduced BJP’s Lok Sabha tally, and yet the parties that won scores of seats are not ready to accept the EVMs. They are unwilling to listen to ECI’s explanations. Look at the line of thinking of anti-Modi front. In Maharashtra, the opposition front lost one LS seat, and alleged that the entire EVM system was faulty, it was a fraud on electorate, and the Election Commission is biased. This exposes nothing but negative mindset. If any candidate thinks he has been cheated, he can go to court for relief and file an election petition. As far as EVMs are concerned, there is a vast difference between Indian EVMs and the machines used in other countries. We should be proud of our electoral process. EVM is a shining symbol of the efficacy and transparency of our electoral system. It will not be good to lay blame at the doors of EVM, because of remarks on social media. Nowadays, hit-and-run tactic appears to be the norm on social media. One attacks an institution or a system by peddling half-truths, and decamps, and it is left to the institution to explain the truth. It is a good thing that courts are now taking cognisance of such ‘hit-and-run’ tactics being used on social media against individuals and institutions.
ईवीएम : स्वंतत्र, निष्पक्ष और तेज़ मतदान
एक बार फिर EVM पर सवाल उठाए गए हैं. चुनाव नतीजे आने के करीब दो हफ्ते के बाद टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क के ट्वीट को आधार बना कर विरोधी दलों ने EVM के बजाए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठाई. असल में एलन मस्क ने ट्विटर पर लिखा कि EVM को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि EVM को आर्टीफिशियल इंटैलीजेंस या ह्यूमैन इंटरवेंशन के जरिए हैक किया जा सकता है. एलन मस्क ने ये ट्विट भारत के संदर्भ में नहीं, अमेरिका के संदर्भ में किया था. मस्क ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर के एक ट्वीट के जवाब में लिखी थी. कैनेडी ने अपने पोस्ट में प्यूर्टो रिको में हुई वोटिंग में अनियमितताओं के बारे में ये ट्वीट पोस्ट किया था.मस्क इसी का जवाब दे रहे थे. .एलन मस्क के इस ट्विट पर अमेरिका में तो कोई खास चर्चा नहीं हुई लेकिन हमारे देश में एलन मस्क के ट्वीट को विरोधी दलों ने हाथों हाथों लिया. राहुल गांधी ने लिखा कि जब संवैधानिक संस्थाएं बंधक बन जाएं तो चुनाव प्रक्रिया को सिर्फ जनता ही पारदर्शी बना सकती है.. EVM एक ब्लैक बॉक्स की तरह है..चुनाव आयोग या तो मशीन और इसकी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए या फिर इसे खत्म कर दे. अखिलेश यादव ने भी राहुल की लाइन पकड़ी और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की. एलन मस्क ने EVM पर सवाल उठाया तो पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के साथ उनकी इस मुद्दे को लेकर X पर ही बहस हुई. राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारत की EVM दुनिया की बाकी देशों की EVM से पूरी तरह अलग है. इन्हें हैक नहीं किया जा सकता. राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि ये बात उन्होंने इलॉन मस्क को तो समझा दी लेकिन राहुल गांधी और विपक्ष के नेताओं को ये समझा पाना नामुमकिन है क्योंकि वो खुद से बड़ा टेक्निकल एक्सपर्ट किसी को समझते ही नहीं हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि पूरा विपक्ष इतने सालों से EVM का मुद्दा उठा रहा है लेकिन न तो बीजेपी का कोई नेता और न ही चुनाव आयोग इस पर कोई बात करने को राज़ी है…अब एलन मस्क ने EVM पर सवाल उठाए तो पूरी सरकार सफाई देने में जुट गई…इसका मतलब दाल में कुछ तो काला है. समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि जब अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में बैलेट पेपर से चुनाव हो सकते हैं, इन देशों ने EVM को नकार दिया है तो फिर भारत में EVM को लेकर ज़िद क्यों की जा रही है. JD-U के नेता के सी त्यागी ने कहा कि एलन मस्क के बयान पर भारत में विवाद की जरूरत नहीं हैं क्योंकि चुनाव हो गया, नतीजे आ गए, सरकार बन गई.अब तक तो विपक्ष के किसी नेता ने EVM पर सवाल नहीं उठाए,तो अब इसकी क्या जरूरत है. केसी त्यागी ने बहुत कम शब्दों में बड़ी बात कह दी…चुनाव के नतीजे 4 जून को आए थे.13 दिन से विपक्ष ने एक बार भी EVM की बात नहीं की. लेकिन अब विपक्ष के नेताओं को EVM में खोट नजर आ रहा है..वो नतीजों पर शक जताने लगे हैं..गड़बड़ी की आशंका जता रहे हैं.. कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा कि इस चुनाव में 165 सीटें ऐसी हैं जहां जीत का मार्जिन 200 से 2000 के बीच है..ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पटोले ने कहा कि देश की जनता को अब EVM पर भरोसा नहीं रह गया है.इसलिए मोदी सरकार अब बैलेट से चुनाव करवाए. EVM का मामला ऐसा हो गया है कि बार बार झूठ बोलो, तरह तरह से सवाल उठाओ, ताकि लोगों के मन में शंका पैदा हो जाए. और इस बार तो कमाल ये है EVM पर सवाल एलन मस्क ने उठाए, अमेरिका में उठाए, किसी दूसरे देश के चुनाव के बारे में comment किया, लेकिन हमारे लोग मैदान में उतर गए. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है, चुनाव आयोग 100 बार सबूत देकर समझा चुका है लेकिन कुछ लोग EVM पर सवाल उठाने पर आमादा हैं. उसी EVM पर, जिससे राहुल गांधी दो-दो इलाकों से चुनाव जीतकर आए. उसी EVM पर, जिससे निकले वोटों से बीजेपी की सीटें कम हुईं. जिन पार्टियों ने evm से बीसीयों चुनाव जीते, वो EVM को सही मानने को तैयार नहीं. चुनाव आयोग की बात समझने को तैयार नहीं. मोदी विरोधी मोर्चे की सोच देखिए. महाराष्ट्र में एक सीट पर चुनाव हार गए, इसलिए सारा सिस्टम खराब है, इसलिए EVM फ्रॉड है, इसलिए चुनाव आयोग पक्षपात करता हे, ये बिलकुल नकारात्मक सोच है. अगर किसी को लगता है कि चुनाव में गड़बड़ हुई तो इसके लिए कोर्ट जाना चाहिए. पिटिशन फाइल करना चाहिए. जहां तक EVM का सवाल है, हमारे देश के EVM में और बाकी देशों के सिस्टम में जमीन आसमान का फर्क है. हमें अपनी चुनाव प्रक्रिया पर गर्व होना चाहिए. जो EVM हमारी चुनाव व्यवस्था की कुशलता का प्रतीक है, हमें उसे दोष ना दें तो अच्छा होगा. सोशल मीडिया के कारण आजकल हिट एंड रन बड़ी नॉर्मल सी बात हो गई है. कोई भी किसी संस्था के बारे में , किसी व्यवस्था के बारे आधा सच, आधा झूठ बोलकर भाग जाता है. फिर संस्थान सफाई देते रहें, अच्छी बात ये है कि आजकल कोर्ट ऐसा झूठ बोलने वालों की खूब खबर लेता है.
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा में हार के कारणों पर बीजेपी में मंथन
उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन की वजह तलाशने के लिए बीजेपी में पिछले 48 घंटों से मंथन हो रहा है..इस मंथन मे क्या सामने आया. लखनऊ बीजेपी ऑफिस में गुरुवार से अलग-अलग अंचलों के उम्मीदवारों और संगठन के पदाधिकारियों के साथ बैठकें चल रही हैं.. गुरुवार को अवध के नेताओं की बैठक थी.शुक्रवार को कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के उम्मीदवारों और पदाधिकारियों से पार्टी ने रिपोर्ट ली. कानपुर-बुंदेलखंड रीजन की 10 सीटों में बीजेपी सिर्फ 4 सीट ही जीत पाई है…जबकि अवध क्षेत्र की 16 सीटों में बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत मिली है. यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और यूपी बीजेपी संगठन के दूसरे नेता इस मीटिंग में शामिल रहे. पहले उन पदाधिकारियों से बात की गई जिन्हें लोकसभा सीट की जिम्मेदारी संगठन ने दी थी. उसके बाद हारे हुए उम्मीदवारों से अकेले में बात की गईहारे हुए उम्मीदवारों ने पार्टी के सामने खुलकर अपनी बात कही…बांदा से चुनाव हारे बीजेपी उम्मीदवार आर के सिंह पटेल ने कहा कि विपक्ष ने संविधान, आरक्षण वाला जो नैरेटिव खड़ा किया जनता ने उस पर भरोसा कर लिया. पटेल ने इसकी वजह भी बताई. उन्होंने कहा कि केवल विपक्ष अगर ये बातें कहता तो जनता शायद इस पर विश्वास न भी करती लेकिन बीजेपी के कई स्थानीय नेताओं ने विपक्ष के लिए खुलकर कैंपेन किया,उनके एजेंडे पर मुहर लगाई ,पार्टी के साथ विश्वासघात किया.अपनों से ही धोखे का आरोप मोहनलालगंज के बीजेपी उम्मीदवार कौशल किशोर भी लगा रहे हैं…कौशल किशोर 2014 और 2019 में मोहनलालगंज से चुनाव जीतते रहे.केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन इस बार वो भी अपनी सीट नहीं बचा पाए.कौशल किशोर ने कहा कि विपक्ष के संविधान और आरक्षण खत्म करने वाला नैरेटिव जनता पर चिपक गया.बीजेपी लीडरशिप अपनी बात समझाने में कामयाब नहीं हो पाई.उस पर पार्टी के अंदर के ही लोगों ने उन्हें चुनाव हरवाने का काम किया. यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय पाठक ने कहा कि पार्टी इस हार से हताश नहीं है. इसी संगठन ने बीजेपी को यूपी में 10 से 73 तक पहुंचाया था.हार की वजह जानकर..उन्हें दूर करके पार्टी फिर से उत्तर प्रदेश में मजबूत होगी . बीजेपी ने 80 नेताओं की टास्क फोर्स बनाई गई है…दो सदस्यों वाली एक टीम 2 लोकसभा सीटों पर जाकर रिपोर्ट तैयार करेगी….हार की वजह तलाशने के लिए यूपी बीजेपी का संगठन तीन तरह की रिपोर्ट तैयार कर रहा है.पहली रिपोर्ट उम्मीदवार के फीडबैक के आधार पर, दूसरी लोकसभा सीटों पर गई टीम की रिपोर्ट और तीसरी मंडल स्तर पर तैयार करवाई गई रिपोर्ट.इन तीनों रिपोर्ट के आधार पर एक फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी जिसे केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा.पार्टी ने साफ संकेत दिया है कि चुनाव में भितरघात करने वालों पर सख्त एक्शन लिया जाएगा. मीटिंग के बाद यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि यूपी की जनता ने जो फैसला दिया है उसे पार्टी स्वीकार करती है, गलतियों को सुधारा जाएगा.
बीजेपी की सहयोगी पार्टी के नेताओं को भी इस बात की शिकायत है कि बीजेपी की लोकल यूनिट्स ने ठीक से काम नहीं किया, गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया. बलिया में दो दिन पहले ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि बीजेपी के नेता-कार्यकर्ताओं उनके उम्मीदवार को हराने का काम किया. बीजेपी के नेता दिखावा करते रहे…उन्होंने मोदी-योगी के निर्देश को भी नकार दिया. वो सामने से तो समर्थन का दावा करते रहे लेकिन पीछे से विपक्ष के उम्मीदवार का सपोर्ट किया . हांलाकि आज ओम प्रकाश राजभर अपने बयान से पलट गए.उन्होंने कहा कि जो भी खबर चलाई जा रही है वो फेक न्यूज़ है…उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, वो एनडीए के साथ हैं…उन्हें मोदी-योगी पर पूरा भरोसा है…ये सारी अफवाह विपक्ष ने फैलाई है. उत्तर प्रदेश मे बीजेपी की सीटें कम क्यों हुईं..इसका analysis चुनाव विशेषज्ञ कई बार कर चुके हैं..ज्यादातर लोग मानते हैं कि बीजेपी ने..टिकट बांटते समय जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा..अखिलेश यादव ने सिर्फ परिवार के 5 यादव लड़ाए..सिर्फ 4 मुसलमानों को टिकट दिया…और बाकी सीटों पर जाति के आधार पर वोट लेने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए…ये रणनीति काम कर गई..लेकिन आज जो analysis सामने आया…वो बीजेपी के अपने हारने वाले उम्मीदवारों का विश्लेषण है..इसीलिए महत्वपूर्ण है..मोटे तौर पर तीन बातें सामने आई…एक तो यूपी में बीजेपी ने बीजेपी को हराया..पार्टी के अपने नेताओं ने अपने उम्मीदवारों को हरवाया..सबने सोचा 400 पार तो जाने वाले हैं…मोदी के नाम पर जीतने ही वाले हैं..एक दो सीटों पर हार गए तो क्या फर्क पड़ेगा..सबने अपने अपने rivals का हिसाब चुकता किया..नतीजा ये हुआ कि पार्टी की सीटें घटकर 33 पर आ गईं..400 पार के नारे का एक और नुकसान ये हुआ कि इसे..राहुल और अखिलेश ने आरक्षण हटाने की मंशा से जोड़ दिया..बीजेपी के खिलाफ ये नैरेटिव चलाया..ये फेक था..गलत था…लेकिन बीजेपी इसे काउंटर करने में नाकाम रही…बीजेपी के अंदर के विश्लेषण का..एक और पहलू ये है कि योगी आदित्यनाथ ने कम से कम 35 उम्मीदवारों के टिकट बदलने की सिफारिश की थी…लेकिन उसे किसी ने नहीं माना…बीजेपी ने 34 से ज्यादा ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया जो लगातार तीसरी बार या उससे भी ज्यादा बार चुनाव मैदान में उतरे थे..इनमे से 20 चुनाव हार गए..बीजेपी को सबसे बड़ा सैटबैक लगा अयोध्या की सीट हारने का…और पार्टी के इंटरनल discussion में ये बात बार बार आई कि जहां भव्य राम मंदिर बना वो सीट बीजेपी कैसे हार गई…इसका विश्लेषण कोई सीक्रेट नहीं है…ये इन तीनों बातों पर आधारित है जो मैंने अभी अभी आपको बताई…लल्लू सिंह को बदलने की बात की गई थी…अयोध्या के सारे नेता लल्लू सिंह के खिलाफ थे..आपसी झगड़े थे…जातिगत समीकरण बीजेपी के कैंडिडेट के, पूरी तरह खिलाफ थे..और इन सबके ऊपर..आरक्षण को हटाने का नैरेटिव..सबने मिलकर..अयोध्या की सीट भी हरवा दी…तो ये कह सकते हैं कि बीजेपी का जो overall analysis है..अयोध्या की सीट उसका एक बड़ा example है…अब बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज तीन साल बाद होने वाले विधान सभा चुनाव हैं…अखिलेश यादव और उनकी पार्टी उत्साहित है…समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश है..बीजेपी इसे कैसे काउंटर करेगी..इसपर योगी आदित्यनाथ को मंथन करना रहेगा..
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में भी बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा है…2019 में महाराष्ट्र में 23 सीटें जीतने वाली बीजेपी को इस बार चुनाव में सिर्फ 9 सीटें मिली हैं…इसलिए बीजेपी वहां पर भी हार की वजह तलाशने में जुट गई है….आज मुंबई में बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हुई…जिसमें महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस, प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और अन्य नेता शामिल हुए. बावनकुले ने कहा कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वोट शेयर बीजेपी को मिला है.कई जगह जीत-हार का अंतर बहुत कम वोटों का था लेकिन ये सच है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को काफी कम सीटें मिली हैं और उसकी वजह सिर्फ एक ही है, कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी के दूसरे दलों ने लोगों में झूठ फैलाया…कहा कि बीजेपी संविधान बदल देगी, दलितों-आदिवासियों का हक छीन लेगी, ये झूठ लोगों के दिमाग में बैठ गया और बीजेपी को इसी का नुकसान हुआ. महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में तो बस चार महीने का समय बचा है…बीजेपी के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव शिंदे गुट और एनसीपी के साथ मिलकर लड़े या अलग लड़े…सवाल ये भी है कि अगर बीजेपी महायुति बनाकर चुनाव लड़ेगी तो सीटों का बंटवारा क्या होगा…क्योंकि खबर है कि बीजेपी ने उन 106 सीटों पर सर्वे कराना शुरु कर दिया है जहां उसे पिछले चुनावों में जीत मिली थी..अलायंस पार्टनर एकनाथ शिंदे बीजेपी के 400 पार वाले नारे पर सवाल उठा चुके हैं…एनसीपी भी केन्द्र की सरकार में शामिल नहीं हुई है…ये सब इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि आने वाले दो तीन महीने महाराष्ट्र की सियासत में काफी एक्शन पैक्ड होंगेऔर कई नए चुनावी समीकरण देखने को मिल सकते हैं.
हरियाणा
महाराष्ट्र के साथ साथ इस साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होना है… हरियाणा में भी बीजेपी को 2019 के मुक़ाबले इस बार आधी सीटें मिलीं. हरियाणा की दस लोकसभा सीटों में से पांच कांग्रेस ने जीतीं. इनमें अंबाला और सिरसा की सीटें भी शामिल हैं. जो दलितों के लिए आरक्षित हैं. सिरसा की सीट 2019 में बीजेपी की सुनीता दुग्गल ने जीती थीं. सुनीता IRS ऑफ़िसर थीं. 2014 में वो नौकरी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं. और 2019 में चुनाव लड़कर संसद पहुंच गई थीं. हालांकि, इस बार बीजेपी ने उनको टिकट नहीं दिया… सिरसा में इस बार बीजेपी ने सुनीता दुग्गल की जगह कांग्रेस छोड़कर आए अशोक तंवर को टिकट दिया था. अशोक तंवर, कांग्रेस की कुमारी शैलजा से चुनाव हार गए. आज बीजेपी के नेताओं ने रोहतक में चुनाव के नतीजों का एनालिसिस किया. सबसे बड़ा सवाल यही था कि आख़िर अंबाला और सिरसा की रिज़र्व सीटें. बीजेपी के हाथ से कैसे निकल गईं… रिव्यू मीटिंग में शामिल हरियाणा सरकार के मंत्री विश्वम्भर वाल्मीकि ने माना कि BJP से उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी हुई थी. इस लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस सीटों पर बीजेपी का वोट परसेंट करीब 10 परसेंट तक घट गया है…ये बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं है…क्योंकि चुनाव में सिर्फ चार-पांच महीने का वक्त रह गया है….नौ साल तक मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले मनोहर लाल खट्टर केंद्र में मंत्री बन चुके हैं…हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को कुर्सी संभाले चार ही महीने हुए हैं…बीजेपी का गठबंधन भी जेजेपी से टूट चुका है…हरियाणा के जाट वोटर का झुकाव भी कांग्रेस की तरफ दिख रहा है…एक साथ इतने मोर्चं पर लड़ना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती है .
BJP LEADERS ANALYSING LOSSES IN UP, MAHARASHTRA, HARYANA
Top BJP leaders are busy in a brainstorming session for the last 48 years in Lucknow to find out reasons for the poor performance of the party in the Lok Sabha elections. Candidates from different regions are attending meetings with party office-bearers. On Thursday, Awadh region leaders attended the meeting, while on Friday, Kanpur-Bundelkhand region candidates gave their assessments to the party leaders. BJP could win only four out of the ten seats in Kanpur-Bundelkhand region, while in Awadh region, it could win only seven out of 16 seats. UP state chief Bhupendra Chowdhary and other leaders first met those who were in charge of the organisation in their respective seats, and then spoke separately to each of the defeated candidates. R K Singh Patel, the candidate who lost from Banda, told the leaders that the voters reposed trust in a false narrative created by the opposition that the Constitution would be dismantled and reservation would come to an end. He said, even some local BJP leaders openly campaigned for ending reservation, thus stabbing their own candidates in the back. Kaushal Kishore, the Union minister of staet, who lost from Mohanlalganj, said the opposition’s Constitution and reservative narrative remained stuck in the minds of voters, and the BJP leadership failed to explain its stand. He also alleged that some party insiders carried out sabotage. BJP has set up a task force of 80 leaders, with each two-member team preparing report for each of the LS seats that was lost. UP BJP leaders are preparing three type of report: The first report is based on feedback from candidates, second will be the feedback report of the task force team, and the third will be a report based on Mandal level. All these three reports will be combined to prepare a final report which will be sent to the Central leadership. The party has vowed to take action against saboteurs. BJP ally Om Prakash Rajbhar has alleged that local units of BJP did not work to help his party’s candidates, and in some cases, party workers worked to defeat the NDA candidates. Later Rajbhar withdrew his statement saying it was a fake news, and that, he continues to be with NDA and he has full trust in Modi and Yogi. Political pundits have analysed the reasons why BJP lost its seats in UP. Most of them are of the opinion that caste equation was not kept in mind while giving away tickets. Akhilesh Yadav fielded five of his family members in the election, but gave only four tickets to Muslims. Rest of the candidates were given tickets based on caste equations. His strategy worked. The analysis made by defeated BJP candidates is worth examining. Overall, three points have emerged: One, it was the BJP that defeated BJP in Uttar Pradesh. Most of the BJP leaders thought that Modi’s slogan of ‘Ab Ki Baar, 400 Paar’, will cause a wave, and losing one or two seats was irrelevant. These leaders were trying to settle scores with their own party leaders. The result was: BJP’s LS seats from UP declined to 33. Two, one reason for the loss was hyping up the ‘400 Paar’ slogan, and both Rahul and Akhilesh created the narrative that reservation would be abolished, if BJP wins more than 400 seats. BJP failed to counter this fake narrative. Three: Yogi Adityanath had recommended changing of tickets of at least 35 candidates, but his advice was not accepted. BJP gave tickets to 35 candidates who had fought the election thrice or even more. Twenty of them lost the election this time. The biggest setback for BJP in UP was losing the Faizabad (Ayodhya) seat. During internal discussions, party leaders raised the question of how it lost in Ayodhya, where a grand Ram temple was built. The analysis of this is not a secret. Almost all party leaders were against fielding Lallu Singh (who lost) as a candidate in Ayodhya. Caste equations were against the BJP candidate, and moreover, the false narrative about ending reservation. That is how Ayodhya was lost. One can say from the overall analysis that, Ayodhya was a shining example of how not to fight an election. BJP will now face its biggest challenge three years from now in the UP assembly election. The morale of Akhilesh Yadav and his party leaders is now high. It depends on Yogi Adityanath, how to counter the opposition.
MAHARASHTRA
BJP leaders are also unhappy about the Maharashtra LS results. The state party executive met in Mumbai on Friday, which was attended by deputy chief minister Devendra Fadnavis, state chief Chandrashekhar Bawankule, Union minister Piyush Goyal, Raksha Khadse, Vinod Tawre, Sudhir Mungantiwar, Raosaheb Danve, Ashok Chavan and Narayan Rane. Bawankule later said that BJP got the biggest vote share in the state, and in some constituencies the margin was very slim. But the fact remains that the BJP-led Mahayuti won less seats this time. Bawankule said, the party lost because of lies spread by Congress-led Mahavikash Aghadi about changing the Constituion, and snatching away the rights of trivals. This resulted in loss to our party, he said. Now we want to forget the LS elections, and concentrate on state assembly elections to be held later this year, Bawankule said. Mungantiwar, who lost in Chandrapur of Vidarbha region to Congress candidate Pratibha Dhanorkar, said, Congress workers spread lies and the voters forgot the work did by Modi government. This time, BJP lost seats like Jalna, Beed, Bhiwandi. Raosaheb Danve, the former union minister, who contested from Jalna in Marathwada region, lost. BJP leader Kapil Patil, who lost in Bhiwandi, said, Muslim voters trusted the lies peddled out by Mahavikas Aghadi. Only four months are left for assembly elections in Maharashtra, and BJP has to decide whether to contest alone or in alliance with Shiv Sena (Shinde) and NCP. The question of distribution of seats among Mahayuti partners will arise. BJP has already begun survey of 106 assembly seats, where it won last time. Chief Minister Eknath Shinde has already raised question about the slogan “400 Paar”. his party did not join the Union Council of Ministers. Such straws in the wind clearly show that the next two-three months in Maharashtra politics is going to be action-packed. One can see new electoral equations emerging.
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HARYANA
BJP has already started analysing its LS results from Haryana, where it won only five out a total of 10 seats. Haryana will have assembly elections later this year. Among the five seats that Congress won are Ambala and Sirsa, reserved for scheduled castes. Sirsa seat was won in 2014 and 2019 by BJP’s Sunita Duggal, an ex-IRS officer. This time, she was denied a ticket. BJP fielded Ashok Tanwar in her place. Tanwar, who left Congress and joined BJP, lost to Kumari Selja of Congress. In Rohtak, at a review meeting, state minister Vishambhar Valmiki said, there was error in candidate selection. BJP’s vote percentage in 10 seats of Haryan fell by 10 per cent this time. This is not a good sign for the party. Only four to five months are left for the assembly election. Manohar Lal Khattar, who was the chief minister for 9 years, has now joined the Union cabinet. The new CM Nayab Singh Saini has been in power for only four months. BJP’s alliance with JJP is already over. Jat voters on Haryana appear to be bending towards the Congress. It will be a big challenge for BJP to fight on all fronts.
NTA का दावा, NEET का पेपर लीक नहीं हुआ : सच या काल्पनिक ?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और नैशनल टेस्टिंग एजेंसी को नोटिस भेज कर पूछा कि क्या NEET परीक्षा में कथित प्रश्नपत्र लीक या अनियमितताओं की जांच का काम सीबीआई को सौंपा जाय. कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई और बिहार सरकार से भी दो हफ्तों के अंदर जवाब मांगा है. इस याचिका के साथ कई अन्य याचिकाओं पर सुनवाई 8 जुलाई को होगी. रुवार को एनटीए ने कोर्ट को बताया था कि 1,563 छात्रों को ग्रेस मार्क देने का निर्णय निरस्त कर दिया गया है और इन छात्रों को दोबारा परीक्षा देने को कहा गया है. लेकिन छात्रों और उनके अभिभावकों का आरोप है कि देश में कई जगह NEET के पेपर लीक हुए थे इसलिए NEET का पूरा का पूरा इम्तहान दोबारा हो, यही एकमात्र हल है. लेकिन NTA इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि NEET के पेपर लीक हुए थे. इंडिया टीवी की टीम ने इस मामले की फिर से तहकीकात की. हमने ये जानने की कोशिश की कि छात्र पेपर लीक का जो इल्जाम लगा रहे हैं, उसकी असलियत क्या है.पटना और गुजरात में इंडिया टीवी के रिपोर्टरों को पेपर लीक होने के पुख्ता सबूत मिले. पेपर लीक होने के आरोप सिर्फ़ मुंहज़बानी नहीं लगे बल्कि पुलिस ने FIR दर्ज की और आरोपियों को गिफ्तार कर जेल भी भेजा है. परीक्षा वाले दिन पटना के शास्त्री नगर थाने की पुलिस को ख़बर मिली की नीट के एग़्ज़ाम सेंटर के बाहर झारखंड के नंबर वाली एक गाड़ी घूम रही है. चेक करने पर उसमें कई छात्रों के एडमिट कार्ड की कॉपी मिली. परीक्षा के बाद इन चार छात्रों से पूछताछ की गई तो पता चला कि उनको एक दिन पहले पटना के एक घर में ले जाकर NEET के प्रश्नपत्र और उनके उत्तर रटाए गए थे और यही पेपर परीक्षा में भी मिला. ये प्रश्नपत्र 20-25 छात्रों को दिया गया था. पेपर आगे लीक न हो इसलिए परीक्षा से एक दिन पहले सारे छात्रों को पटना में एक किराए के मकान में रखा गया था. पेपर रटाने के बाद सबूत मिटाने के लिए उसको जला दिया गया था. नीट परीक्षा के बाद पुलिस ने आयुष कुमार, अनुराग यादव, शिवनंदन कुमार और अभिषेक कुमार नाम के चार छात्रों को गिरफ्तार कर लिया. उनसे पूछताछ के बाद पेपर लीक करने और उसे सॉल्व करने के इल्ज़ाम में 9 और लोगों को गिरफ्तार किया गया. यानी पटना में पेपर लीक के इल्ज़ाम में कुल 13 लोग गिरफ़्तार हुए. हैरानी की बात ये है कि पटना में NEET का पेपर लीक होने का केस 5 मई को ही परीक्षा वाले दिन दर्ज किया गया था. गिरफ़्तार आरोपियों को कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया. मामले की जांच बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध ईकाई के हवाले कर दी गई पर NTA अभी भी यही दावा कर रही है कि पेपर लीक नहीं हुआ. वहीं NEET देने वाले छात्र पेपर लीक का आरोप लगाकर दोबारा परीक्षा कराने की मांग कर रहे हैं. गुजरात के गोधरा का मामला तो और भी हैरान करने वाला है. यहां परीक्षा से एक दिन पहले ही सोशल मीडिया चैनल टेलीग्राम पर नीट का पेपर लीक होने का आरोप लगाया गया. पुलिस के मुताबिक़, गोधरा में एक स्थानीय बीजेपी नेता ने, एक स्कूल के प्रिंसिपल, और वडोदरा में कोचिंग चलाने वाले शख़्स के साथ मिलकर पेपर लीक कराने की साज़िश रची थी. इसमें एक स्कूल टीचर भी शामिल था, जो NEET परीक्षा का को-ऑर्डिनेटर था. नीट पास कराने का लालच देकर देश के अलग अलग राज्यों के छात्रों को गोधरा बुलाया गया. ओडिशा, झारखंड और कर्नाटक तक के छात्र परीक्षा देने गोधरा पहुंचे थे. ये काम वडोदरा में कोचिंग स्कूल चलाने वाले परशुराम रॉय नाम के एक शख़्स ने किया. उसने पेपर लीक करने के बदले में हर छात्र से 10 लाख रुपए वसूले. गोधरा के जय जलाराम स्कूल में नीट परीक्षा का सेंटर था. इस स्कूल के प्रिंसिपल पुरुषोत्तम शर्मा और टीचर तुषार भट्ट ने छात्रों से कहा कि उनको जिन सवालों के जवाब नहीं पता हों, उनको खाली छोड़ दें, वो आन्सर शीट एग्ज़ाम के बाद तुषार भट्ट को भरनी थी. लेकिन, इससे पहले ही नीट का पेपर लीक होने की ख़बर गोधरा के जिला शिक्षा अधिकारी को मिल गई. उनकी शिकायत पर पुलिस ने गोधरा के जलाराम स्कूल में छापे मारे. स्कूल के बाहर खड़ी गाड़ी में सात लाख रुपए बरामद हुए. पुलिस ने वडोदरा के कोचिंग संचालक परशुराम रॉय, स्कूल प्रिंसिपल पुरुषोत्तम शर्मा, टीचर तुषार भट्ट के अलावा, स्थानीय बीजेपी लीडर आरिफ़ वोहरा को गिरफ़्तार कर लिया. गोधरा के SP हिमांशु सोलंकी का कहना है कि उन्होंने पेपर लीक होने से पहले ही कार्रवाई की और सारे आरोपी पकड़ लिए. NTA के साथ समस्या ये है कि वो बार बार ये दावा करता रहा कि NEET के exam में सब कुछ ठीक-ठाक हुआ , पेपर लीक तो कतई नहीं हुआ लेकिन हमारी तहकीकात में जो तथ्य सामने आए, वो हैरान करने वाले हैं. जैसे पंचमहल के SP ने इस बात के सबूत दे दिए कि NEET परीक्षा पास कराने वाला गैंग कैसे काम कर रहा था. इसी तरह के पटना में 13 लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास आरोपियों का कबूलनामा है कि उनके पास पेपर पहले से मौजूद थे. क्या NTA अब भी यही दावा करेगा कि परीक्षा के आयोजन में कोई गड़बड़ी नहीं हुई? क्या वो अब भी ये कहेगा की पेपर लीक नहीं हुए? कल तक यही NTA ग्रेस मार्क्स को उचित बता रहा था लेकिन आज NTA ने कबूल किया कि ग्रेस मार्क्स देना उसकी गलती थी. क्या NTA इस बात की गारंटी दे सकता है कि उसका exam कंडक्ट कराने का तरीका फूलप्रूफ है? क्या NTA इस बात की गारंटी दे सकता है कि रिजल्ट निकालने का तरीका भी फूलप्रूफ है? हमारी जांच में सामने आया कि NEET का इम्तहान जिस तरह से कंडक्ट किया गया, वो तरीका तो कम से कम फूलप्रूफ तो नहीं है. उसमें गड़बड़ी होने की पूरी पूरी गुंजाइश है. कल हमने 6 टॉपर वाले हरियाणा के झज्झर सेंटर में इस मामले की जांच की थी. आज पटना और गोधरा में भी तहकीकात की और जो सच सामने आए वो चौंकाने वाले हैं. वो NTA के दावों को पूरी तरह निराधार साबित करने वाले हैं. मैं छात्रों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि उनकी इस लड़ाई में मैं उनके साथ हूं. इंडिया टीवी की टीम इस मामले की तहकीकात जारी रखेगी. चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए हमें इंतजार करना चाहिए और सबको सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा करना चाहिए, मुझे पूरा यकीन है कि पेपर लीक से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिलेगा.
NTA’S CLAIM THAT NEET PAPER WAS NOT LEAKED: FACT OR FICTION?
The Supreme Court on Friday sought responses from the Centre and National Testing Agency on a petition seeking a CBI probe into allegations of question paper leak and other irregularities in the NEET-UG exam. The vacation bench of Justice Vikram Nath and Justice Sandeep Mehta, while hearing a PIL filed by Hiten Singh Kashyap, said the petition will be taken up with all other pending petitions on July 8, after the summer vacation was over. On Thursday, the NTA had told the apex court that it has cancelled grace marks given to 1,563 candidates, and they have been asked to appear for retest on June 23. However, parents of protesting NEET candidates said, cancelling grace marks of these students will not solve the problem. They alleged that NEET question paper was leaked in several cities, and the entire exam should be conducted afresh. This seems to be the only solution. But NTA officials are unwilling to admit that there has been any instances of question paper leak. India TV reporters in Bihar and Gujarat investigated complaints of paper leak and found them to be concrete. In my prime time TV show AAJ KI BAAT on India TV, we gave details about two such complaints. In both the cases, the local police have already registered FIRs and have arrested some of the accused. The first case is from Patna’s Shastri Nagar. Police got information about a car with Jharkhand number plate moving near an exam centre. On checking the vehicle, copies of admit cards of some candidates were found. The four candidates were questioned after the exam. It was found that all four of them were shown NEET question paper a day before the exam in a house in Patna, and were asked to memorize the answers. The candidates got the same question paper during the exam. The students said, this question paper was given to 20 to 25 students, and in order to keep the matter secret, all the students were kept confined in a rented house in Patna, a day before the exam. After the students memorized the answers, the leaked question paper was burnt in order to remove all evidences. Patna Police arrested four students Ayush Kumar, Anurag Yadav, Shivnandan Kumar and Abhishek Kumar, and on the basis of interrogation, nine others involved in the paper leak were arrested. In all, 13 persons were arrested in Patna alone on charge of NEET paper leak. The surprising part is that, the case of paper leak was registered on May 5 itself, the day NEET exam was conducted. All the accused were produced in court and sent to jail, and the matter was handed over for investigation to Economic Offences Unit of Bihar Police. And yet, NTA officials claim that the question paper was not leaked. The incident in Godhra, Gujarat, is astonishing. A day before the NEET exam, it was alleged that the question paper has been leaked on Telegram channel. According to police, a local BJP leader in Godhra hatched a conspiracy in connivance with a school principal and a coaching school owner from Vadodara. They took help from a school teacher who was acting as exam coordinator for NEET. Candidates from Odisha, Jharkhand and Karnataka were called to Godhra by the Vadodara coaching school owner. Rs 10 lakh was collected from each candidate for leaking the question paper. At the Jalaram School in Godhra, where the NEET exam was conducted, the school principal Purushottam Sharma and a teacher Tushar Bhatt asked the candidates to leave those questions blank, for which they had no correct answers. Tushar Bhatt was supposed to fill up the answer sheets after the exam, but meanwhile, news leaked out about the question paper leak. The District Education Officer of Godhra called in the police, who recovered Rs 7 lakh cash from a car parked outside the school. Police have arrested the Vadodara coaching school owner Parshuram Rai, the Godhra school principal, teacher and the local BJP leader Arif Vohra. Godhra SP Himanshu Solanki said, police took action before the paper was leaked and all the accused were rounded up. Looking at both these cases, I find it surprising how NTA has been claiming that the NEET exam was conducted in a foolproof manner. India TV investigations tell a different story from two different cities. The Panchmahals SP has given proof of how a gang was working to leak the question paper. Thirteen people were arrested in Patna and sent to jai. Police have their confessional statements. Can NTA still claim that there was no bungling? The same NTA, till Wednesday, was justifying granting of grace marks, but a day later it admitted that granting of grace marks was a mistake. Can NTA give guarantee that its mode of conducting exam was foolproof? Can NTA give guarantee that the manner of declaring results was foolproof? Our investigations clearly show that the conduct of NEET-UG exam by NTA was not foolproof. There was full scope of bungling. Yesterday, I had mentioned how 67 candidates, in one go, obtained 100 per cent marks. All these exposes nail NTA’s claims. I would like to assure all students that India TV will be with them in their fight for justice. India TV shall continue to investigate the matter further. Since the matter is now before the Supreme Court, we should wait for its final verdict. We should repose our trust in the Supreme Court. I am confident that the students would get justice from the apex court.
NEET इम्तहान : गड़बड़झाला या घपला?
केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि NEET-UG परीक्षा में जिन 1,563 छात्रों को ग्रेस मार्क देने का फैसला हुआ था, उसे निरस्त कर दिया गया है, इन सभी छात्रों को 23 जून को दोबारा इम्तहान में बैठना पड़ेगा, जिसका नतीजा 30 जून को जारी कर दिया जाएगा. नैशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के वकील ने सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ को बताया कि जो छात्र दोबारा परीक्षा नहीं देना चाहते, उन्हें बगैर ग्रेस मार्क के स्कोर कार्ड दिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अन्य छात्रों के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया अभी जारी रहेगी. कोर्ट ने आदेश दिया कि सारी याचिकाओं पर एक साथ 8 जुलाई को सुनवाई होगी. इन याचिकाओं में पेपर लीक और कई अन्य अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं. NEET-UG परीक्षा इस साल 5 मई को देश भर में 4,750 परीक्षा केंद्रों पर कराई गई थी, जिसमें करीब 24 लाख छात्रों ने इम्तहान दिया था. परीक्षा के नतीजों का ऐलान 4 जून को किया गया, लेकिन जब ये पता चला कि 67 छात्रों को शत प्रतिशत 720 अंक मिले हैं, तो देश भर में प्रदर्शन हुए. छात्रों और अभिभावकों का आरोप था कि परीक्षा में हेराफेरी हुई है. हरियाणा में फरीदाबाद के एक ही केंद्र में 6 छात्रों को शत प्रतिशत अंक मिले. इसपर एनटीए के महानिदेशक ने कहा कि चूंकि कुछ केंद्र पर प्रश्नपत्रों को बांटने में देरी हुई, इसलिए उन छात्रों को समय की कमी के कारण ग्रेस मार्क दिए गए. एनटीए का यह स्पष्टीकरण लोगों के गले नहीं उतरा. अब लाखों छात्रों का भविष्य़ अधर में लटका हुआ है. इन छात्रों ने डॉक्टर बनने का सपना संजोया था. वही छात्र आज सड़कों पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं. जो छात्र डॉक्टर बनने के लिए कई सालों से मेहनत कर रहे थे, अब कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. याचिका पर याचिका दायर कर रहे हैं. NEET परीक्षा में जिस तरह की गड़बड़ियां हुईं, उसने छात्रों और उनके अभिभावकों को परेशान कर दिया. जहां पिछले चार साल में NEET में शत प्रतिशत अंक लाने वाले मुश्किल से छह-सात छात्र हुआ करते थे, इस साल ऐसे छात्रों की संख्या अचानक 67 हो गई. ये कैसे हुआ, ये एक रहस्य है. लोग पूछ रहे हैं कि इन 67 टॉपर्स में भी 6 टॉपर हरियाणा के एक ही सेंटर से कैसे हो गए. एक ही सीरीज़ के रोल नंबर वाले टॉपर 6 -6 कैसे हो गए. क्या NEET परीक्षा कराने वाली एजेंसी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने परीक्षा आयोजित करने में गड़बड़ी की? या रिजल्ट देते वक्त कुछ सेंटर्स के छात्रों को ग्रेस मार्क्स देने से इतनी बड़ी समस्या पैदा हुई? सवाल ये भी है कि ग्रेस मार्क्स देने की नौबत क्यों आई, जब NEET में पहले कभी ग्रेस मार्क्स नहीं दिए गए? इस साल ऐसा क्या हो गया और ग्रेस मार्क्स दिए भी गए तो कितने मार्क्स दिए गए, किस आधार पर दिए गए? इंडिया टीवी पर बुधवार रात को ‘आज की बात’ शो में मैने इन कारणों पर विस्तार से बताया. एलेन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर बृजेश माहेश्वरी ने कहा कि जब से NTA ने NEET कराना शुरू किया है तब से ही हर परीक्षा में कुछ न कुछ गड़बड़ी हो रही है. बृजेश माहेश्वरी ने कहा कि 2020 से 2023 तक केवल 7 बच्चों को NEET एग्ज़ाम में 100 परसेंट मार्क्स मिले हैं पर इस बार, एक ही सेंटर से इतने स्टूडेंट को नंबर वन रैंक मिलना बहुत हैरान करने वाला है. इस बार के सबसे ज़्यादा चर्चा हरियाणा के झज्जर ज़िले की हो रही है. झज्जर के हरदयाल पब्लिक स्कूल में परीक्षा देने वाले 6 छात्र टॉप रैंक में आए हैं. यानी कुल 67 टॉपर्स में से दस परसेंट. यानी छह ने एक ही सेंटर में बैठकर इम्तिहान दिया, शत प्रतिशत अंक ले आए, 720 में से पूरे 720 अंक हासिल किए और रैंकिंग में टॉप कर गए. झज्जर के इसी सेंटर के दो छात्रों को 718 और 719 नंबर मिले और उनकी सेकेंड टॉप रैंक आई. ऑल इंडिया रैंकिंग में झज्जर के इस सेंटर के छात्र 61 से 69 नंबर पर हैं. आरोप लगे कि इन सारे छात्रों ने एक साथ बैठकर परीक्षा दी और सबको पूरे मार्क्स दे दिए गए. जिनके कम स्कोर थे, उनको ग्रेस मार्क दे दिए गए. इस रैंकिंग को देखकर तो झज्जर के हरदयाल पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल भी हैरान हैं. प्रिंसिपल अंजू यादव ने कहा जिन छात्रों की ऑल इंडिया टॉप रैंकिंग आई है, उन सबने अलग अलग कमरों में बैठकर परीक्षा दी थी, फिर भी सबको एक जैसे अंक कैसे मिल गए, ये उनकी समझ से परे है. जब सवाल उठे तो नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने सफ़ाई दी कि झज्जर के हरदयाल पब्लिक स्कूल और कुछ दूसरे सेंटर्स पर पेपर बांटने में गड़बड़ी और दूसरे कारणों से छात्रों को कम समय मिला था. इसलिए 1563 छात्रों को ग्रेस मार्क दिए गए हैं. इसी वजह से रैंकिंग में दो तीन गुना उछाल आया. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के डायरेक्टर जनरल सुबोध सिंह ने कहा कि ग्रेस मार्क का एक फॉर्मूला NTA ने तय किया है, जिसमें अगर किसी छात्र का समय नष्ट होता है तो उसको ग्रेस मार्क दिए जाते हैं. लेकिन हरदयाल पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल ने एक बड़ी बात बताई. उन्होंने कहा कि परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र को लेकर बहुत कंफ्यूज़न था. पहले कहा गया था कि उनको एक ही बैंक से जाकर पेपर कलेक्ट करने हैं. फिर एग्ज़ाम को-ऑर्डिनेटर ने दो बैंकों से पेपर लेने को कहा. पहले छात्रों को question पेपर के दो सेट बांट दिए गए. फिर NTA से बात करने के बाद एक सेट टेबल से उठा लिया गया और दूसरा सेट छात्रों को सॉल्व करने के लिए छोड़ा गया. यही नहीं हरदयाल पब्लिक स्कूल के सेंटर पर छात्रों ने जिस पेपर पर परीक्षा दी, वो पूरे देश में NEET परीक्षा से अलग प्रश्नपत्र था. अंजू यादव ने बताया कि उन्होंने इसकी शिकायत भी NTA से उसी दिन कर दी थी. इसका मेल भी उन्होंने इंडिया टीवी को दिखाया. दिलचस्प बात ये है कि NTA अपने प्रश्नपत्र की answer key जारी करता है, लेकिन, झज्जर के सेंटर में जिस प्रश्नपत्र पर परीक्षा हुई, उसकी answer key भी NTA ने नहीं रिलीज़ की. ये बड़ा सवाल है कि झज्जर के इस स्कूल में NEET का अलग पेपर कैसे पहुंचा? और क्या इसी वजह से इस सेंटर के 6 छात्रों को शत प्रतिशत अंक मिल गए. ऐसे कुप्रबंध की शिकायतें हमें कई परीक्षा केंद्रों से मिलीं. राजस्थान के सवाई माधोपुर में 5 मई को मानटाउन में एक स्कूल में NEET परीक्षा हो रही थी. जब छात्रों को पेपर बांटे गए, तो हिंदी वालों को अंग्रेज़ी के, और इंग्लिश मीडियम वालों को हिंदी के पेपर दे दिए गए. कुछ पेपर के साथ आंसरशीट भी अटैच थी. छात्रों ने हंगामा किया तो सेंटर के मैनेजमेंट ने कहा कि इसी पेपर से परीक्षा देनी होगी. लेकिन छात्र नहीं माने, वे स्कूल से बाहर आ गए, पुलिस ने लाठीचार्ज किया पर बाद में NTA ने शाम को फिर से परीक्षा कराई. NEET परीक्षा जितनी महत्वपूर्ण है, उसके नतीजे उतने ही रहस्यपूर्ण हैं. एक सेंटर में 8-8 टॉपर, एक सेंटर में 6 छात्रों को शत प्रतिशत अंक, एक सेंटर पर ग्रेस मार्क्स दिए गए, एक सेंटर पर प्रश्नपत्र के दो-दो सेट बांटे गए, ये परीक्षा है या मज़ाक़? इसका मतलब साफ है, कि NEET की परीक्षा प्रणाली मजबूत नहीं है. इसपर लोगों को भरोसा नहीं रहा. परीक्षा कराने वाली NTA के जवाब और भी हैरान करने वाले हैं. NTA का कहना है कि जांच के लिए कमेटी बना दी गई है, ग्रेस मार्क्स भी नियम के मुताबिक दिए गए हैं, ये कहना और भी बड़ा मजाक है. सोचिए इतनी बड़ी परीक्षा जहां 23-34 लाख छात्र होते हैं, वहां इस तरह का ad hoc रवैया. ये आपराधिक लापरवाही से कम नहीं है. जो छात्र दो-तीन साल से दिन रात एक करके मेहनत कर रहे हों, जिन छात्रों के घरवालों ने पाई-पाई जोड़कर महंगी किताबों और कोचिंग की फीस का इंतजाम किया हो, जो परीक्षा सिर्फ छात्रों की नहीं, अभिभावकों की परीक्षा बन गई हो, वहां जब भरोसा टूटता है, वहां जब दाल में काला दिखाई देता है, तो लोगों की भावनाएं आहत होती हैं, गुस्सा आता है, लोग प्रोटेस्ट करते हैं, जो बिलकुल जायज़ है. उम्मीद ये कर सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की गहराई से सुनवाई करेगा, कोई रास्ता निकलेगा.
NEET FIASCO : BUNGLING OR SCAM ?
The Centre on Thursday told the Supreme Court that the decision to give grace marks to 1,563 NEET-UG candidates has been cancelled and they would be given an option to take a re-test on June 23. A vacation bench of Justice Vikram Nath and Justice Sandeep Mehta was told by the counsel for National Testing Agency (NTA) that if those among the 1,563 candidates, who do not wish to appear for re-test, will be given their score cards without grace marks. The results of the re-test will be declared on June 30 and counselling for admission to MBBS, BDS and other courses will begin from July 6. Meanwhile the apex court said, counselling process for other candidates will not be stayed. Taking note of the NTA counsel’s submissions, the vacation bench said, all pleas, including the petition filed by the CEO of an EdTech firm PhysicsWallah over the issue of awarding grace marks, will be taken up for hearing on July 8. Some of the petitioners have sought cancellation of this year’s NEET-UG rankings, alleging question paper leaks and other malpractices. The NEET-UG exam was conducted by NTA on May 5 at 4,750 centres across India and nearly 24 lakh candidates appeared. The results were announced on June 4 in which as many as 67 students scored a perfect 720 marks (100 per cent), unprecedented in NTA’s history. These included six from a single centre in Faridabad, Haryana, raising suspicions about irregularities. There were protests by students in Delhi, UP and Tamil Nadu over the results, and it was alleged that grace marks contributed to 67 students sharing the top rank. The Congress party on Thursday demanded a CBI probe into the conduct of the examination. Cases were filed in seven high courts as well as in the Supreme Court. The question still remains, was there any unethical practice by NEET during conduct of exam? In my ‘Aaj Ki Baat’ show on Wednesday night on India TV, I tried to examine in detail the allegations made by the students. Brajesh Maheshwari, director, Allen Institute, alleged that cases of irregularities have begun since the time NTA begun handling NEET exam. He said, between 2020 and 2023, only 7 candidates scored 100 percent marks in NEET, but this time, it is surprising how candidates from a single centre scored 100 percent marks. Six students who sat at the exam centre in Hardayal Public School in Jhajjhar, Haryana, scored 100 per cent marks, that is 720 out of 720. NTA director general Subodh Kumar Singh explained that candidates at this centre and some other centres got less time to solve the paper due to problems in distribution of question sheets. This was one of the reasons why 1,563 candidates were given grace marks, he said. But the principal of Hardayal Public School Anju Yadav told India TV reporter that there was utter confusion over distribution of question papers. The exam coordinator was asked to collect question paper sets from a single bank, but he was later asked to collect from two banks. Candidates were first given two sets of question papers, and later, on direction from NTA, one set of paper was taken away, and candidates were asked to solve the second set. Not only this, the question paper given at this centre was completely different from the paper distributed at other exam centres. The school principal mailed her complaint to NTA on the same day. The interesting point is that, NTA did not release the answer key for the question paper distributed in her school. Was this irregularity the reason for six candidates scoring 100 per cent marks from that centre? In Sawai Madhopur, Rajasthan, candidates appearing for English medium exam were given Hindi question set, and those appearing for Hindi medium exam were given English question set. Some question papers had answer sheet attached with them. There was commotion and angry students came out of the exam hall. Police had to resort to lathicharge. NTA had to conduct a fresh test the same evening. Such instances have led to many of the students losing their trust in the transparency and efficacy of those conducting the NEET-UG exam. Both NTA and Education Minister Dharmendra Pradhan have ruled out any possibility of a question paper leak. They said, candidates were given grace marks due to loss of time. Since the entire matter is now before the apex court, one will have to wait for a final verdict. There is no doubt that the rankings are mysterious, with eight toppers emerging from a single centre, and six students at a single centre getting 100 per cent marks. In one centre, two sets of question papers were given to each student. Is this an examination or a joke? It shows that the NEET-UG examination sytem is not foolproof. Candidates and their parents have begun losing trust in those who conducted the exam. NTA chief’s explanations are surprising. Though NTA says it has set up a probe committee and that grace marks have been given as per rules, this is rubbing salt into the wounds of candidates. How can one adopt an ad hoc approach to an exam where 23 to 24 lakh students appear on a single day? This is nothing short of criminal negligence. Students who burnt the midnight oil and studied for two to three years at a stretch in order to get admission to a good medical college have found their dreams shattered. Their parents who spent their hard-earned savings for buying costly books and paying exorbitant coaching fees, have lost trust. In Hindi, there is a proverb, Daal Me Kuch Kaala Hai (There is something fishy). When people’s feelings are hurt, anger erupts, people come to the streets to protest. This, of course, is justified. Let us hope that the Supreme Court finds a reasonable way out.