वक़्फ कानून में बदलाव : इसकी ज़रूरत क्या है?
सरकार ने वक्फ अधिनियम में बदलाव का बिल लोकसभा में पेश कर दिया. इस कानून का असर साढ़े आठ लाख जायदाद की मिल्कियत, प्रबंध और कब्जे पर होगा. बिल को सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है. पता ये लगा है कि तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल-यूनाइटेड और लोकतांत्रिक जनता पार्टी (चिराग) ने बीजेपी के नेताओं से कहा था कि इस बिल को लेकर भ्रम फैलाया गया है. इसलिए इसे जल्दीबाजी में पास कराने के बजाए स्टैंडिंग कमेटी या संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेज दिया जाए. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शरद पवार की एनसीपी, DMK, नेशनल कॉन्फ्रेंस, मुस्लिम लीग और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सब ने मुसलमानों की हिमायत की, वक्फ एक्ट में बदलाव का खुलकर विरोध किया. विपक्ष ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर कहा कि बदलाव के पीछे सरकार की नीयत साफ नहीं हैं, सरकार वक्फ की जायदाद हड़पना चाहती है, इसलिए वक्फ एक्ट में कोई बदलाव मंजूर नहीं होगा. किसी ने इसे संविधान के खिलाफ बताया, किसी ने कहा कि वक्फ एक्ट में बदलाव, सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. सरकार इस तरह का बिल लाकर संघीय ढांचे को तोड़ रही है. किसी ने कहा कि ये हिन्दू राष्ट्र की दिशा में सरकार का अगला कदम है. इस तरह के तमाम आरोप लगाए गए. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने वक्फ बोर्ड को लेकर दो बिल सदन में पेश किए. पहला बिल था वक्फ संशेधन बिल 2024 और दूसरा था, मुसलमान वक्फ रिपील बिल 2024. चर्चा की शुरुआत की कांग्रेस सांसद के सी वेणुगोपाल ने कहा कि जब मंदिरों का प्रबंधन हिन्दू करते हैं, उनके बोर्ड में कोई मुसलमान नहीं होता, तो वक्फ प्रॉपर्टी के मैनेजमेंट में दूसरे धर्मों के लोगों क्यों घुसाया जा रहा है, ये मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि संसद को वक्फ पर कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है, ये बिल संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 25 का उल्लंघन है. ये बिल मनमाना और बांटने वाला है, ये बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और न्यायिक आजादी का उल्लंघन करता है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी कहा कि वक्फ एक्ट में संशोधन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. वो ये बिल नहीं ला सकती क्योंकि जमीन राज्यों का विषय है, और इसका फैसला सिविल कोर्ट ही कर सकती है. कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया कि वक्फ की जायदाद पर कब्जा करने के लिए ये बिल लाया गया है. ममता बनर्जी की पार्टी के नेता कल्याण बनर्जी वकील हैं, उन्हें ये पता है कि वक्फ एक्ट 1954 में संसद ने ही बनाया था, उस वक्त वक्फ बोर्ड के फैसले को सिविल कोर्ट में चैलेंज करने का प्रावधान था लेकिन 1963 में कांग्रेस की सरकार ने ही ये अधिकार खत्म करके वक्फ ट्रिब्यूनल का सिस्टम लागू किया. क्या वो गैरकानूनी था? क्या उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने ये काम मुसलमानों को खुश करने के लिए किया था? ये सवाल NDA के नेताओं ने कांग्रेस और इंडी अलायन्स के नेताओं से पूछे. एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सांसद श्रीकांत शिंदे ने संघीयवाद और सेक्यूलरवाद खत्म करने के आरोप पर कहा कि जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब महाराष्ट्र के कई मंदिरों के प्रशासन में दखलंदाजी की गई लेकिन तब न किसी को संघीयवाद याद आया, न किसी को सेक्यूलरवाद की याद आई. श्रीकांत शिंदे ने कहा कि जो लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं उनका मकसद मुस्लिमों को भलाई नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति है. अखिलेश यादव ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब वक्फ बोर्ड के सदस्य लोकतांत्रिक तरीके तरीके से चुने जाते हैं तो फसमें महिलाओं और पिछड़े मुसलमानों को अलग से मनोनीत करने का क्या औचित्य है. अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी अपने कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए वक्फ बोर्ड को खत्म करना चाहती है. दो बातें समझने वाली हैं. पहली ये कि वक्फ बोर्ड कोई मजहबी संस्था नहीं हैं, ये कानून से बना बोर्ड है जो सिर्फ वक्फ की प्रॉपर्टी की देखरेख और उसकी हिफाजत के लिए है. इसलिए इसे मजहबी मामलों में दखलंदाजी कहना सही नहीं हैं. ये बात जनता दल-यू के नेता लल्लन सिंह ने लोकसभा में कही. लल्लन सिंह ने कहा कि विपक्ष भ्रम फैला रहा है, वक्फ बोर्ड के मौजूदा ढांचे में कई खामियां है, इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड को जवाबदेह और पारदर्शी बनाया जाएगा. बहस के जवाब में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ कानून में संशोधन पहली बार नहीं हो रहा है. 1995 के वक्फ एक्ट में 2013 में भी संशोधन किया गया था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने जो संशोधन किए थे, वो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के उलट थे. के. रहमान खान की अध्यक्षता में बनी JPC के सुझावों के विपरीत थे. किरेन रिजिजू ने कहा कि देश में करीब साढ़े 8 लाख वक्फ प्रॉपर्टीज है, उनका बेजा इस्तेमाल हो रहा है, उसे ठीक करने का कोई सिस्टम नहीं है. इसलिए सरकार मुसलमानों की भलाई के लिए सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रही है. किरेन रिजिजू ने जो बात इशारों में, संक्षेप में कही, वो पूरी बात बताता हूं. असल में वक्फ एक्ट जब से बना है, तब से इसमें सुधार की जरूरत कई बार बताई गई. 1976 में एक कमेटी बनी थी. उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि सारा वक्फ बोर्ड मुतवल्लियों (केयरटेकर) के कब्जे में हैं, इसे दुरूस्त करने की जरूरत है. इसके अलावा वक्फ बोर्ड के अकाउंट्स में भारी गड़बड़ी है, इसके ऑडिट का इंतजाम होना चाहिए. इसके बाद 1995 में कांग्रेस की सरकार ने इस एक्ट में कुछ बदलाव किए. फिर 2005 में सच्चर कमेटी बनाई गई. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि वक्फ के जो 4 लाख 69 हजार प्रॉपर्टीज है. उनसे सिर्फ 162 करोड़ रु. की आमदनी हो रही है, जबकि मार्केट रेट के हिसाब से आमदनी कम से कम 12 हजार करोड़ रु. की होनी चाहिए. ये पैसा कहां जा रहा है, इसकी जांच की जरूरत है. वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टीज को पारदर्शी तरीके से मैनेज करने की जरूरत है. सच्चर कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वक्फ बोर्ड का बेस बढ़ाया जाना चाहिए. सेन्ट्रल और स्टेट वक्फ बोर्ड में कम से कम दो महिलाएं होनी चाहिए. पिछड़े मुसलमानों को भी जगह मिलनी चाहिए और सारी गतिविधियों को कानूनी तरीके से चलाने के लिए बोर्ड में कम से कम एक क्लास वन आफीसर की नियुक्ति होनी चाहिए. फिर कांग्रेस की सरकार के वक्त ही के रहमान खान की अध्यक्षता में JPC का गठन हुआ. उस JPC ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि वक्फ बोर्ड की सारी ताकत मुतवल्ली को नियुक्त करने और हटाने के खेल में ही लग रही है, इसे खत्म करने की जरूरत है. वक्फ प्रॉपर्टी का सर्वे होना चाहिए. इसके लिए एक्सपर्ट्स को बोर्ड में होना चाहिए. वक्फ बोर्ड का कम्प्यूटराइजेशन होना चाहिए. सारा रिकॉर्ड और खर्चे- आमदनी का सारा रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से कंप्यूटर में दर्ज होना चाहिए. JPC ने कहा था कि 1995 के वक्फ एक्ट पर फिर से गौर करने की जरूरत है लेकिन उस वक्त डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने न सच्चर कमेटी की सिफारिश मानी, न JPC की. 2013 में वक्फ एक्ट में बदलाव जरूर किया, लेकिन वक्फ बोर्ड को और ज्यादा अधिकार दे दिए. पहले किरायेदार और लीज़ से जुड़े मामले सिविल कोर्ट से निबटाये जाते थे लेकिन कांग्रेस की सरकार ने वक़्फ़ प्रॉपर्टी विवाद के अलावा वक़्फ़ के किरायेदार से जुड़ा विवाद, वक़्फ़ प्रॉपर्टी के लीज़ से जुड़े विवाद के निबटारे के हक भी वक्फ बोर्ड को दे दिया. पहले वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च वक़्फ़ बोर्ड को देना होता था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने 2013 में कानून में संशोधन करके वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च राज्य सरकार पर डाल दिया गया. 2013 से पहले वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष, सदस्य दूसरे धर्मों के लोग भी हो सकते थे लेकिन 2013 में कांग्रेस की सरकार ने कानून बदल कर ये सुनिश्चित किया गया कि वक्फ बोर्ड के सदस्य सिर्फ मुसलमान ही होंगे. ये सारे कदम सच्चर कमेटी और JPC की सिफारिशों के खिलाफ थे. लेकिन कांग्रेस ने ये कदम उठाए. अब सरकार ने उन्ही गलतियों को दुरुस्त किया है. हालांकि अब ये बिल JPC के पास भेज दिया गया है और सरकार इसके लिए भी इसलिए नहीं मानी कि विरोधी दलों का दबाव था, असल में JD-U, LJP और TDP तीनों पार्टियां ऐसा चाहती थी, इसलिए सरकार इसके लिए तैयार हुई. LJP के अध्यक्ष और केन्द्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि विपक्ष ये भ्रम फैला रहा है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है. इस भ्रम को दूर करने के लिए ही उनकी पार्टी ने बिल को संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी. चिराग पासवान ने कहा कि अब इस बिल पर JPC में चर्चा होगी और सारी गलतफहमियां दूर हो जाएगी. चिराग पासवान भले ही गलतफहमियों की बात कहें लेकिन हकीकत ये है कि JD-U, LJP या TDP, तीनों पार्टियों को मुस्लिम वोट की चिंता है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए नीतीश कुमार और चिराग पासवान की मजबूरी है. दोनों पार्टियों ने बीच का रास्ता निकाला. बिल पेश होने पर उसका समर्थन किया और फिर उसे जेपीसी के पास भेजने की मांग कर दी. सरकार ने भी इसे मान लिया क्योंकि बीजेपी को जो राजनीतिक संदेश देना था, वो तो चला गया, यानि विपक्ष का विरोध भी राजनीतिक है. और सरकार का कदम भी नपा-तुला है. लेकिन मेरा मानना है कि वक्फ एक्ट में जरूरी बदलाव होने चाहिए और जल्दी होने चाहिए. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं. इसकी वजह बताता हूं. कांग्रेस ने 2013 में वक्फ एक्ट में जो बदलाव किए, वक्फ बोर्ड को जो ज्यादा अधिकार दिए, उसका असर ये हुआ कि वक्फ की प्रॉपर्टीज की संख्या चार लाख उन्हत्तर हजार से बढ़कर साढ़े आठ लाख से ज्यादा हो गई. ऐसा कैसे हुआ, ये भी समझ लीजिए. पिछले साल गुजरात में सरकार ने द्वारका में समुद्र के किनारे सरकारी जमीनों पर कब्जों को खाली कराने के लिए बुलडोजर चलाया. उस वक्त जामनगर और द्वारका में कुल 142 प्रॉपर्टीज वक्फ में रजिस्टर थी. एक मजार भीमा नाम के किसान की जमीन पर बनी थी लेकिन उस जमीन को वक्फ की प्रॉपर्टी के तौर पर रजिस्टर कर दिया गया था. कानूनी तौर पर उस पर कार्यवाही नहीं हो सकती थी. इसलिए उस मजार पर बुलडोजर नहीं चला. इसके बाद लोगों ने यही फॉर्मूला अपनाया. पिछले दो सालों में 341 नई प्रॉपर्टीज को वक्फ बोर्ड में रजिस्टर करवा दिया गया जबकि पांच सौ से ज्यादा प्रॉपर्टीज की एप्लीकेशन अभी भी पेंडिंग हैं. इसी तरह लखनऊ में अन्नपूर्णा मंदिर 1962 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में मंदिर के तौर पर दर्ज है लेकिन 2016 में इसे वक्फ प्रॉप्रटी घोषित कर दिया गया. .ऐसे एक नहीं, हजारों मामले हैं और बहुत सारी धार्मिक जगहों पर विवाद मजहबी झगड़े का कारण बनते हैं. इसलिए इस तरह की मनमानी को रोकने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत तो है और सरकार को इस मामले को वोट के चक्कर में लटकाना नहीं चाहिए.
Waqf Act amendment : Why now?
The government on Thursday tabled the Waqf (Amendment) Bill in Lok Sabha and after a brief discussion, agreed to refer it to a joint parliamentary committee for scrutiny. The bill aims to change the Waqf Act drastically, affecting the proprietorship and management of nearly 8.5 lakh Waqf properties in India. NDA allies, particularly Telugu Desam Party, Janata Dal(U) and LJP, told BJP leadership that since a lot of confusion has been spread about this bill among Muslims, it would be better to refer it to a JPC instead of hurriedly passing it in Parliament. Opposition parties led by Congress, Samajwadi party, NCP(Sharad pawar), DMK, National Conference, Indian Union Muslim League and Owaisi’s AIMIM, strongly opposed the bill alleging that it amount to governmental interference in the working of Waqf Boards. The opposition alleged that the government’s motive behind this bill was not bonafide, and it was measure to ensure backdoor acquisition of Waqf properties. Union Minister for Minority Affairs Kiren Rijiju introduced two bills, Waqf Amendment Bill and Mussalman Waqf Repeal Bill in Lok Sabha. AIMIM chief Asaduddin Owaisi said, since the bills violate Articles 14, 15 and 25 of the Constitution, it is an arbitrary step which goes against the basic nature of the Constitution. The bill proposes 40 amendments in the Waqf Act, 1995. One of the major amendments proposed relates to the powers of Waqf Tribunal, whose decisions cannot be challenged in courts. Under the new provision, if a Waqf Board declares a property as Waqf property, it will have to intimate the District Collector, who will initiate probe, get a survey done, and if the documents are found in order, can allow it to be declared as Waqf property. The new provision allows an appellant to go to the High Court to challenge a decision of the Waqf tribunal. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav questioned why the bill provides for inclusion of two women and representatives of backward Muslims on the Waqf Board. He questioned the propriety of nominating these members. Defending the bill, Kiren Rijiju said, this is not the first time Waqf Act is being amended, The Waqf Act of 1995 was amended in 2013, but the amendments made by the then Congress-led UPA government were against the recommendations of Sachhar Committee and the JPC set up under the chairmanship of K. Rahman Khan. Rijiju said, there are nearly 8.5 lakh Waqf properties in India, and there have been frequent reports about misuse of Waqf properties. He said, government does not want to interfere with the religious freedom of Muslims, nor is the bill against the Constitution. The bill has been brought to give more rights to Muslims who are economically weak, he said. Let me elaborate on what Rijiju wanted to convey. Since the time Waqf Act was made, there had been frequent demands for amendments. In 1976, a committee was set up. The committee, in its report said, most of the Waqf properties are under the control of Mutawallis (caretakers) and this needs to be changed. The committee also pointed out to massive irregularities in the Waqf Board accounts, and recommended regular audit. In 1995, the then Congress government made certain amendments. In 2005, the Sachchar Committee was set up, which said there are 4.69 lakh Waqf properties in India, and their earnings amounted to only Rs 162 crore, whereas according to market rates, the earnings should have been at least Rs 12,000 crore. The Sachchar committee wanted a probe into where this money was being channelized. It recommended transparency in the management of Waqf properties, widening the base of Waqf Boards, inclusion of at least two women in Central and State Waqf Boards, representation for backward Muslims in Waqf Boards, and appointment of a Class 1 officer to run the Waqf Board in a proper manner. The JPC headed by K. Rahman Khan, set up during Congress regime, also said that most of the time of Waqf Boards is being spent in appointing or removing Mutawallis (caretakers), and this should end. The JPC also recommended proper survey of all Waqf properties, inclusion of experts in the Boards, computerization of all Waqf properties and income and expenditure accounts of Waqf Board, and a re-look at the Waqf Act, 1995. The then UPA regime, headed by Dr Manmohan Singh, did not accept the recommendations of Sachchar Committee and JPC, and instead in 2013, it gave more powers to the Waqf boards. The then UPA government made it compulsory for inclusion of only Muslims as members of Waqf Boards. All these measures went against the recommendations of Sachchar Committee and JPC. Now that the Modi government has tried to rectify these mistakes by bringing amendments, the bill has been sent to JPC, keeping in mind the views of NDA allies like TDP, JD-U and LJP. LJP chief and Union Minister Chirag Paswan alleged that the opposition parties were spreading confusion that the bill was “anti-Muslim”, and this needs to be countered. Whatever Chirag Paswan may say, the fact remains that TDP, JD-U and LJP are concerned about Muslim votes. Since Bihar assembly elections are due next year, NDA allies like Nitish Kumar and Chirag Paswan are unwilling to take any risks. NDA allies found a middle path. They extended support to the bill during introduction stage, and then opted for sending it to JPC for scrutiny. The government accepted their views. BJP wanted to convey a political message that the opposition’s stand was political in nature and nothing to do with the interests of Muslims. It was a calculated step by the government. I personally feel that the Waqf Act must be amended, the sooner, the better. The main reason is: after the UPA government in 2013 gave more powers to Waqf Boards, the number of Waqf properties has gone up to 4.69 lakhs to more than 8.5 lakhs. Let me cite some examples. Last year, Gujarat administration used bulldozers to remove illegally occupied government land near the Dwarka sea coast. At that time, a total of 142 properties in Jamnagar and Dwarka were registered as Waqf properties. A mazaar was built on a land belonging to a farmer named Bhima, and it was shown as Waqf property in the register. Legally, no action could have been taken under Waqf Act, and the mazaar was saved from bulldozers. When people knew about this, they implemented this formula elsewhere. 341 new properties were registered with the Waqf Board in the last two years, while applications for more than 500 similar properties are pending. In Lucknow, Annapurna temple has been shown as a temple since 1962 in revenue records, but in 2016, it was declared as waqf property. There are thousands of similar cases. In most of the places, these disputes are the main cause behind communal tension. Amending Waqf Act is the need of the hour and the bill must not be kept pending for the sake of votes.
कैसे सौ ग्राम ने एक अरब दिलों को तोड़ा
पेरिस से दिल तोड़ने वाली खबर आई. पूरा देश प्रार्थना कर रहा था कि विनेश फोगाट कुश्ती में भारत के लिए ओलंपिक का पहला गोल्ड मेडल लेकर आए लेकिन बुधवार सुबह ये सपना टूट गया. सौ ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण विनेश को अयोग्य ठहरा कर ओलंपिक से बाहर कर दिया गया. अब उसे कोई मेडल नहीं मिलेगा, न कोई ranking मिलेगी, नियम सख्त है, क्रूर है, पर नियम तो नियम है, हालांकि इंडियन ओलंपिक असोसिएशन की कोशिशें जारी है. असल में मंगलवार रात विनेश ने सेमीफाइनल में सेमीफाइनल में जबरदस्त जीत हासिल की, इसलिए पूरे देश की उम्मीदें और बढ़ गई थीं. सबको यकीन था कि भारत की बेटी भारत के लिए गोल्ड लाएगी. अगर हार भी जाती तो सिल्वर तो पक्का था. भारत की महिला कुश्ती के इतिहास में ये पहली बार होता लेकिन सुबह-सुबह सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. विनेश पचास किलोग्राम वर्ग में खेल रही थी और उनका वजन पचास किलोग्राम से सौ ग्राम ज्यादा निकला. अब पूरा देश सदमे में हैं. विनेश के घर में चैंपियन के स्वागत की तैयारी चल रही थी. अब गम का माहौल है. गुरवार सुबह विनेश ने X पर कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया. विनेश ने लिखा – “माँ कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई. माफ़ करना, आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके. इससे ज़्यादा ताक़त नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा ऋणी रहूँगी. माफी”. बुधवार को विनेश के अयोग्य ठहराये जाने की खबर जैसे ही आई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पेरिस में मौजूद इंडियन ओलंपिक एसोशिएशन की अध्यक्ष पी टी उषा से बात की, कहा कि विनेश के लिए जो भी संभव हो किया जाए, जहां अपील करनी हो तुरंत की जाए. प्रधानमंत्री मोदी ने विनेश का भी हौसला बढ़ाया, कहा कि वो “ चैंपियनों की चैंपियन हैं. निराश होने की जरूरत नहीं हैं. पूरे देश को आप पर गर्व है.” सभी दलों के नेताओं ने, खेल से जुड़े लोगों ने, देश के आम लोगों ने विनेश का हौसला बढाया. लेकिन सबके मन में अभी भी ये सवाल है कि अचानक विनेश का वजन कैसे बढ़ गया. ऐसा क्या हुआ कि जो विनेश फोगाट अब तक सारे मैचों में फिट थीं, उनका वजन कैटेगरी के हिसाब से सही था, कुछ ही घंटों में कैसे बढ़ गया. इसका जवाब पेरिस में भारतीय दल के साथ मौजूद चीफ मेडिकल ऑफिसर दिनशॉ पारदीवाला ने दिया. डॉक्टर पारदीवाला ने खुलासा किया कि कल रात को विनेश फोगाट का वजन सौ, दो सौ ग्राम नहीं, बल्कि दो किलो सात सौ ग्राम ज्यादा था, यानि विनेश का वजन पचास किलो के बजाए 52 किलो सात सौ ग्राम हो गया था. चौदह घंटे में विनेश का वजन ढ़ाई किलो से ज्यादा बढ़ गया. इसके बाद पूरी रात डक्टर्स और फिजियो की टीम विनेश फोगाट का वजन कम करने की कोशिशों में जुटी रही. दो किलो छह सौ ग्राम वजन कम करने में कामयाब हो भी गई लेकिन सौ ग्राम वजन फिर भी ज्यादा था. दिनशॉ पारदीवाला र्मुंबई में कोकिलाबेन अस्पताल में आर्थ्रोस्कोपी और शोल्डर सर्विस के डायरेक्टर हैं और कई बड़े खिलाड़ियों के साथ काम कर चुके हैं. डॉक्टर पारदीवाला ने बताया कि कल रात जैसे ही ये पता लगा कि विनेश का वजन ज्यादा है, उसे ज्यादा वजन के कारण ओलंपिक से अयोग्य ठहराया जा सकता है, तो डॉक्टर्स ने रात भर मेहनत की. चूंकि जिस दिन मुकाबला होता है, उसी दिन सुबह सवा सात बजे और फिर साढ़े सात बजे मुकाबले में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों का वेट लिया जाता है, मंगलवार को विनेश ने भारतीय समय रात करीब पौने ग्यारह बजे सेमीफाइनल जीता था. उस वक्त पेरिस में शाम सवा सात बजे थे. सेमीफाइनल के बाद फिजियो ने विनेश का वेट लिया, वजन पौने तीन किलो ज्यादा था. वजन कम करने के लिए डॉक्टर्स की टीम के पास कुल बारह घंटे का वक्त था. विनेश ने रात भर एक्सरसाइज की, पूरी रात पसीना बहाया, इतनी मेहनत की कि उसके बाद अगर और जोर लगाया जाता तो वो बेहोश होकर गिर हो सकती थी लेकिन बारह घंटे में विनेश ने दो किलो छह सौ ग्राम वजन कम कर लिया. लेकिन फिर भी पचास किलो से सौ ग्राम वजन ज्यादा निकला और सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. पूरी मेहनत बेकार चली गई. डॉक्टर पारदीवाला से पूछा गया कि आखिर चौदह घंटे में किसी का वजन ढ़ाई किलो से ज्यादा कैसे बढ़ सकता है. इसके जबाव में डॉक्टर पारदीवाला ने बताया कि असल में होता ये है कि दुनिया के ज़्यादातर पहलवान अपने असली वजन से कम वाली कैटेगरी में खेलते हैं ताकि उनके जीतने के चांस ज्यादा हों. ये नॉर्मल बात है. हर एथलीट के साथ जो न्यूट्रिशिनिस्ट और सपोर्ट स्टाफ होता है, उन्हें ये पता होता है कि मुकाबले से पहले वजन को कंट्रोल करके कैसे तय सीमा में लाया जाए. इसके लिए डाइट भी वैसी ही होती है. पानी कम पिलाया जाता है. विनेश पहले 53 किलो वर्ग में खेलती थी लेकिन इस बार ओलंपिक से पहले 53 किलो कैटेगरी में अंतिम पंघाल का सिलेक्शन हुआ था. इसलिए विनेश ने इसी साल फऱवरी में पचास किलो वर्ग का विकल्प चुना, सिर्फ पांच महीने में अपना वजन कम किया. इसके लिए कड़ी मेहनत की. आम तौर पर खिलाड़ी अपनी कैटेगरी के हिसाब से अपना वजन एक से डेढ किलो तक कम रखते हैं. जिस जिन मैच होता है, उससे पहले कोई सॉलिड डाइट नहीं लेते, पानी भी ज्यादा नहीं पीते, जिससे वजन काबू में रहे. आमतौर पर एक दिन में एक ही मुकाबला खेलना पड़ता है. इसलिए मैच के बाद पहलवान अच्छी डाइट लेते हैं जिससे उनका इनर्जी लेवल और वजन दोनों मेंटेन रहते हैं. लेकिन विनेश के साथ मंगलवार को एक गड़बड़ी हो गई. एक ही दिन में तीन मैच खेलने पड़े. तीनों मैच मुश्किल थे. मुकाबला वर्ल्ड चैंपियन से थी, डिफेंडिंग ओलंपिंक चैंपियन से था. विनेश ने तीनों मुकाबले जीते. इससे उनका मेडल तो पक्का हो गया. पूरे देश में खुशी का माहौल बन गया लेकिन तीनों मुकाबलों के बाद विनेश का इनर्जी लेबल बहुत ज्यादा डाउन हो गया, वो बुरी तरह डीहाइड्रेट हो गईं. इसलिए मुकाबलों के तुंरत बाद डॉक्टर्स ने उन्हें इनर्जी ड्रिंक्स और काफी पानी पीने की इजाजत दी. अगर ऐसा न किया जाता तो विनेश बेहोश हो सकती थी. डॉक्टर्स को अंदाजा था कि पानी और इनर्जी ड्रिक्स का असर विनेश के वजन पर पड़ेगा क्योंकि शरीर के गठन के हिसाब से ऐसा होता है. डॉक्टर्स को अंदाजा था कि इससे विनेश का वजन डेढ़ किलो तक बढ़ेगा लेकिन विनेश का वजन दो किलो सात सौ ग्राम तक बढ़ गया. इसी से सारी दिक्कत हो गई. इसके बाद विनेश ने बिना खाए, बिना पानी पिए, रात भर पसीना बहाया, रस्सी कूदी, साइकिलिंग की, दूसरी तरह की एक्सरसाइज की, विनेश को steam और sauna में रखा गया, उनके बाल काटे गए, ड्रैस को भी छोटा किया गया. लेकिन लगातार बारह घंटे तक तमाम तरह के उपाय करने के बाद भी हमारी टीम विनेश का वजन दो किलो छह सौ ग्राम कम कर पाई, सुबह सवा सात बजे वजन नैपा गया, और विनेश का वजन पचास किलो से सौ ग्राम ज्यादा निकला. नियमों के हिसाब से विनेश को ओलंपिक से अयोग्य ठहरा दिया गय़ा. विनेश फोगाट हरियाणा की हैं. हरियाणा में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए कांग्रेस ने विनेश को अयोग्य ठहराये जाने को हरियाणा की बेटी के सम्मान से जोडा. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा से लेकर दीपेन्द्र हुड्डा तक सब इस मुद्दे पर बोले. दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार का पूरा ध्यान ये बताने में है कि उसने विनेश पर कितना खर्च किया, जबकि सरकार को ये बताना चाहिए था कि विनेश को अयोग्य ठहराये जाने के बाद उसे इंसाफ दिलाने के लिए सरकार और ओलंपिक एसोसिएशन ने क्या किया. आम आदमी पार्टी की तरफ से पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हरियाणा के चरखी दादारी में विनेश फोगाट के घर पहुंच गए. भगवंत मान ने विनेश के पिता और ताऊ से बात की. पहले तो उन्होंने विनेश के कोच और सपोर्ट स्टाफ को इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार बताया और इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करने लग गए. विरोधी दलों के जो नेता सरकार पर साजिश का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें विनेश के ताऊ और गुरू महावीर फोगाट की बात जरूर सुननी चाहिए. महावीर फोगाट ने कहा कि विनेश का वजन कंट्रोल में रखना उनके डॉक्टर और सपोर्ट स्टाफ का काम था. उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया लेकिन जहां तक विनेश को अयोग्य ठहराये जाने का सवाल है तो विश्ती कुश्ती फेडरेशन के जो नियम है, वो सबके लिए बराबर हैं. महावीर फोगाट ने कहा कि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है, विनेश फिर तैयारी करगी और 2028 के ओलंपिक में मेडल लेकर आएगी. ये सही है कि विनेश चैंपियन रेसलर हैं. एक ही दिन में तीन-तीन मैच जीतकर उन्होंने दिखा दिया कि वो कितनी बड़ी प्लेयर हैं. जब लोगों ने विनेश की हिम्मत, विनेश का जज्बा और विनेश की कुश्ती देखी, तो सब मानकर बैठे थे कि गोल्ड मिलना तो तय है. विनेश अगर हार भी जातीं तो सिल्वर तो मिलना ही था. भारतीय कुश्ती के इतिहास में किसी महिला रेसलर ने ऐसा कमाल पहले कभी नहीं किया. और जब ये विश्वास टूटा, सपना बिखरा, तो दुख हुआ. रिपोर्ट्स देखकर ये भी साफ है कि विनेश ने वजन कम करने के लिए हर तरह की कोशिश की, रात भर वर्कआउट किया, बाल भी काटे, कपड़े भी छोटे किए गए पर 100 ग्राम मेडल पर भारी पड़ गया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है. इसकी टीस लंबे समय तक दिल को चुभती रहेगी पर विनेश को लेकर इतनी बातें क्यों बनीं, इतने सवाल क्यों खड़े हुए, इतनी अफवाहें क्यों फैलाई गईं, इसकी वजह न तो अयोग्यता ठहराये जाने का मुद्दा है, न मेडल छिन जाने की हताशा. इसकी वजह है, विनेश से जुड़ी लोगों की आहत भावनाओं को exploit करने की कोशिश. ये कोई सीक्रेट नहीं है कि विनेश ने बड़ी हिम्मत से कुश्ती में लड़कियों के साथ होने वाले जुल्म का विरोध किया था. बृजभूषण शरण सिंह की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी. इसी प्रोटेस्ट के दौरान विनेश को सड़क पर भी घसीटा गया था. मैंने उस समय भी इसकी कड़ी निंदा की थी. बृजभूषण शरण सिंह को खरी-खरी सुनाई थी. वो बीजेपी के सांसद थे. इसलिए बृजभूषण के अहंकार और दुर्व्यवहार को लेकर, विरोधी दलों को सरकार पर सवाल उठाने का अच्छा खासा मौका मिला था. उन्होंने इसका इस्तेमाल किया. उसमें कुछ गलत नहीं था. उस समय रेसलर्स के हक़ में आवाज उठाना सही था लेकिन आज विनेश के डिसक्वॉलिफिकेशन को साजिश बताना न्यायसंगत नहीं है. विनेश के सपोर्ट स्टाफ से सवाल जरूर पूछे जाने चाहिए. कोच, फिजियो, डॉक्टर ये बताएं कि विनेश का weight management क्यों नहीं कर पाए. ओलंपिक कमेटी से ये पूछा जाना चाहिए कि विनेश को एक ही दिन में तीन तीन मैच क्यों खिलाए. लेकिन इस मामले को खेल तक सीमित रखा जाए, तो बेहतर होगा. इसमें राजनीति घुसाने की जरूरत नहीं है.
How Hundred Grams Broke Billions Of Hearts
At a time when the entire nation was eagerly waiting for Vinesh Phogat to become the first Indian wrestler to win the Olympic gold medal, there was heartbreaking news when she was disqualified for being overweight by 100 grams in the 50 kg category. A crestfallen Vinesh was admitted to hospital due to dehydration and she was later released. She filed an appeal in the Court of Arbitration for Sport (CAS) against her disqualification, but by Thursday morning, Vinesh posted on social media announcing her retirement from wrestling. In the ‘X’ post addressed to her mother, Vinesh wrote, “Mom, wrestling has won, I have lost. Forgive me, because your dream and my courage now lie shattered. I do not have any energy left. Goodbye wrestling 2001-2024. I shall always remain indebted to all of you. Forgive me.” International wrestling rules are strict. If a wrestler weighs more than the category, he or she is immediately disqualified. Vinesh became worried soon after winning her semifinal against the Cuban wrestler, because of overweight. Throughout Tuesday night, all efforts were made by the team staff and the doctor to ensure that her weight remained within the 50 kg limit, but on Wednesday morning, when she was weighed before the final, it was 100 grams more than the limit. As per rules, she was immediately disqualified. Prime Minister Narendra Modi tried to console Vinesh by posting a tweet on ‘X’: “Vinesh, you are a champion among champions! You are India’s pride and an inspiration for each and every Indian. Today’s setback hurts. I wish words could express the sense of despair that I am experiencing. At the same time, I know that you epitomize resilience. It has always been your nature to take challenges head on. Come back stronger! We are all rooting for you.” The Prime Minister spoke to Indian Olympic Association president P. T. Usha, who was in Paris, and asked her to provide whatever help Vinesh needed. It is still a mystery how Vinesh Phogat’s weight suddenly increased above the limit after her semifinal bout. Chief Medical Officer of the Indian Olympic contingent, Dr Dinshaw Pardiwala, revealed that on Tuesday night, after her victory in the semifinal, Vinesh was weighing 2.7 kg more than the 50 kg limit. Throughout the night, all efforts were made to reduce her weight, and she managed to reduce it by 2.6 kg. Dr Pardiwala is the director of Arthoscropy and Shoulder Service at Mumbai’s Kokilaben Dhirubhai Ambani Hospital and is the Head of Centre for Sports Medicine. He said, ‘had we got some more time, we could have managed to reduce her weight below 50 kg’. Asked why Vinesh suddenly gained weight after her semifinal bout, Dr Pardiwala explained that most of the wrestlers in the world play in category which is below their actual weight, in order to improve their chances of winning. They have nutritionists and support staff to keep a watch on their weight. Vinesh used to play in 53 kg category earlier, but before the Paris Olympics, Antim Panghal was selected for this category, and then Vinesh had to opt for 50 kg category. She reduced her weight within five months, toiled hard, abstained from solid diet and water intake. Normally wrestlers play one bout a day, after which they take good diet to maintain both their energy level and weight. But on Tuesday, Vinesh had to play three bouts on a single day. All the three matches were tough, and in the semifinal, she had the defending champion as her rival. Vinesh won all the three games, and ensured a medal for herself, but her energy level fell badly. She suffered from extreme dehydration. Doctors allowed him to take energy drinks and water. Had they not done so, Vinesh could have fainted. The physicians knew that the energy drinks and water could raise Vinesh’s weight, and it happened. Throughout the night, she tried to shed her sweat, by rope skipping, cycling and other exercises. She also undertook steam and sauna bath. Her hair was cut and her dress was shortened, but despite 12 hours of toil, she managed to shed only 2.6 kg weight, and was still 100 gm overweight. Vinesh’s uncle Mahavir Phogat said, he would try to persuade her not to retire and prepare for the 2028 Olympics medal. Vinesh is undoubtedly a champion wrestler. By winning three bouts in a single day, she showed her stamina and skill. People who watched her games were confident that Vinesh would definitely win the gold medal. Had she lost the final, she could have settled for silver. For the first time in history, an Indian female wrestler was going to win an Olympics medal. Now those dreams lie shattered. It is truly sad. Vinesh tried her best by doing workouts late in the night, cut her hair and dress, but she lost by a whisker (100 grams). This loss shall surely rankle for a long time in the minds of millions of Indians. Rumors and conspiracy theories were floated after her disqualification. Some people tried to exploit the situation and play on people’s sentiments. It is no secret that Vinesh Phogat had actively taken part in the protest against sexual harassment of female wrestlers by the then Wrestling Federation of India chief Brij Bhushan Sharan Singh. Vinesh and her friends were forcibly dragged by police at midnight on the streets near Delhi’s Jantar Mantar. I had strongly opposed that act of Delhi Police at that time and had condemned the acts of Brij Bhushan Sharan Singh, who was then a BJP MP. Opposition parties got the opportunity to raise questions about Brij Bhushan’s arrogance and harassment of female wrestlers. There was nothing wrong in that. They raised their voice in support of female wrestlers, but to describe Vinesh’s disqualification as a ‘conspiracy’ is not justified. Vinesh’s support staff must be questioned. Her coach, physio and doctor must explain why they could not carry out proper weight management of the wrestler. International Olympic Committee must be asked why a wrestler was asked to play three games on a single day. It would be better if this is all kept within the limit of sports. There is no need to inject politics in this issue.
Hindus in Bangladesh : Ensure their safety
Lootings and arson continued in several parts of Dhaka and other cities of Bangladesh on Tuesday night, in the absence of police, as anarchy prevails in the neighbouring country. Homes, shops and temples of Hindus have become easy targets for Islamic fundamentalists. An interim government is yet to be formed with Nobel Laureate economist Prof Mohammed Yunus expected to arrive in Dhaka from Dubai on Thursday afternoon. Parliament has been dissolved by the President and former PM Begum Khaleda Zia and 245 leaders of her party have been released from jail. In a major reshuffle, one Major General in the army was sacked and six others were transferred, while new heads have been appointed for other paramilitary outfits. Anti-social elements are on a looting and arson spree, targeting Awami League politicians and their homes. Two Hindu councillors have been killed, four temples have been set on fire and homes and shops of Hindus in 39 districts have been looted and vandalized. The Indian government has expressed concern over the atrocities on Hindus in Bangladesh. The largest organization of minorities in Bangladesh, Hindu Bouddha Christian Oikya Parishad has alleged that incidents of looting and arson in the homes and temples of Hindus are still continuing. The Indian government is worried about safe passage for several thousand Indian citizens stuck in Bangladesh and also for the security of Hindus living in the neighbouring country. Looting, arson and killing of Hindus have been reported from several places in Dhaka, and other cities like Chattogram, Narsinghdi, Meherpur, Khulna, Rajshahi, Barisal and Sylhet. Rioters are going around identifying Hindu homes and shops and setting them on fire after looting. In several cities, Hindu temples were attacked, idols smashed and gold ornaments of idols were looted. Islamic fundamentalist party Jamaat-e-Islami and its students’ wing Islamic Chhatra Shibir are targeting Hindus, while police and security personnel have become mute spectators. Sumohan Das, director of ISKCON temple in Dhaka, said that he has received reports of attacks on several temples in the districts. In Narsinghdi, a Kali temple was attacked by rioters in the presence of police, while in Chattogram city, rioters went around Hazari Goli locality vandalizing homes and shops of Hindus. One Kali temple was set on fire. Hindus, numbering nearly 1.3 crore, account for nearly 8 per cent of the total population in Bangladesh. In 1951 after Partition, Hindus accounted for 22 pc of the population in East Pakistan. Over 1.1 crore Hindus fled Bangladesh due to religious persecution between 1964 and 2013, according to Hindu American Foundation. Rashtriya Swayamsevak Sangh leader Bhaiyyaji Joshi has appealed to the Centre to take immediate steps to ensure safety of Hindus in Bangladesh. Yoga guru Swami Ramdev has asked Indians to remain on vigil because of the deteriorating situation in Bangladesh. He said, law and order has completely collapsed in Bangladesh and all Indians should stand united in solidarity with the Hindu minorities in the neighbouring country. Bageshwar Dham preacher Dhirendra Shastri has appealed to the Centre to open its border to allow safe passage to persecuted Hindus to enter India from Bangladesh. Leader of Opposition in West Bengal Suvendu Adhikari said, it has now become clear that the introduction of Citizenship Amendment Act by Modi government was a step in the right direction for giving citizenship to Hindus who may want to leave Bangladesh because of persecution. There is no doubt that Islamic fundamentalists, particularly Jamaat-e-Islami, are persecuting Hindus in Bangladesh and their supporters are on a spree of loot, arson and murders. Videos of such attacks are really disturbing. The problem now is, Hindus in Bangladesh cannot come out in large numbers to enter India, as rioters are openly moving around in the streets, with no sign of police. Indian politicians who were opposing CAA are now silent. The Centre is in touch with senior army officers of Bangladesh and through diplomatic channels to ensure safety of Hindus. Since there is no government worth the name in Bangladesh at the moment, rioters are on a maddening spree of loot and arson. Army officials in Bangladesh are trying to ensure rule of law in the country, but at the same time, they have to listen to the demands of Jamaat leaders, who have now gained an upper hand after Sheikh Hasina’s sudden departure.
बांग्लादेश में हिन्दू : उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाय
बांग्लादेश में अन्तरिम सरकार के गठन की कोशिशें जारी है, मुख्य सलाहकार अर्थशास्त्री मोहम्मद युनूस गुरुवार को ढाका पहुंचने वाले हैं. राष्ट्रपति ने संसद को भंग कर दिया है, विपक्षी नेता बेगम खालिदा जिया और उनकी पार्टी के 254 नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया है, लेकिन पूरे देश में अभी भी आराजकता का माहौल है. सड़कों, थानों से पुलिसवाले गायब हैं. मंगलवार की रात ढाका के कई इलाकों में दंगाइयों ने लूटपाट और आगज़नी की. सेना के एक मेजर जनरल को बर्खास्त कर दिया गया है. बड़ी बात ये है कि बांग्लादेश में राष्ट्रपति ने हिंसक प्रदर्शन के आरोप में गिरफ्तार किए गए दंगाईयों को भी रिहा करने के आदेश भी दे दिए हैं. प्रदर्शनकारियों की ये बड़ी मांग थी जिसे बांग्लादेश की सेना की सलाह पर राष्ट्रपति ने मान लिया, लेकिन इसके बाद भी हालात बिगड़ रहे हैं. अब चुन-चुनकर शेख हसीना के समर्थकों, उनकी पार्टी के नेताओं और हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है. शेख हसीना की पार्टी के जिला अध्यक्ष के फाइव स्टार होटल को जला दिया गया जिसमें 24 लोग जिंदा जल गए. बांग्लादेश क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मशरफे मुर्तजा का घर आग के हवाले कर दिया गया. कम से कम 34 मंदिरों पर हमला किया गया, 4 मंदिरों को जला दिया गया, 39 जिलों में हिन्दुओं के घरों में लूटपाट की गई. कई घरों में आग लगा दी गई. दो हिन्दू काउंसलर्स की हत्या कर दी गई. भारत सरकार ने इस बात पर सबसे ज्यादा चिंता जताई है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत सरकार डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए बांग्लादेश की सेना के साथ सम्पर्क में हैं, सेना से कहा गया है कि वो जल्दी हालात को काबू में करें और बांग्लादेश में मौजूद भारतीय नागरिकों और बांग्लादेशी हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें. इस वक़्त बांग्लादेश में लगभग 19 हज़ार भारतीय नागरिक रह रहे हैं, जिनमें से 9 हज़ार छात्र हैं. बांग्लादेश में रहने वाले ज़्यादातर भारतीय छात्र भारतीय उच्चायोग की सलाह पर जुलाई महीने में ही अपने देश लौट आए थे. ये बात सही है कि भारत की इस वक्त दो चिंताएं हैं. पहली ये है कि बांग्लादेश में मौजूद भारतीयों और वहां रहने वाले हिन्दुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना और दूसरी बात, बांग्लादेश से भारत आने वाले लोगों को रोकने की कोशिश करना, अपनी सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत करना. सरकार का फोकस अभी इस बात पर नहीं है कि बांग्लादेश में जो हुआ उसके पीछे कौन है. सरकार को चिंता बांग्लादेश में रहने वाले हिन्दुओं की सुरक्षा की है क्योंकि वहां हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए हैं. पिछले 24 घंटों में बांग्लादेश के 39 ज़िलों से हिंदुओं के घरों, दुकानों, मंदिरों पर हमले किए गए, तोड़फोड़ करने और लूट-पाट के साथ आग लगाने की खबरें आई हैं. ढाका और दूसरे बड़े शहर चट्टोग्राम के अलावा नरसिंहपुर, मेहरपुर, नरसिंगदी, खुलना, राजशाही और सिलहट में हिंदुओं पर हमला किया गया, दंगाइयों की भीड़ चुन-चुनकर हिंदुओं को निशाना बना रही है, उन्हें पीटा जा रहा है, उनकी हत्या हो रही है, हिंदुओं के मंदिरों पर हमले हुए हैं, कई जगह से मंदिरों को आग लगाने की ख़बरें आ रही हैं. असल में बांग्लादेश के ज़्यादातर हिंदू, शेख़ हसीना की अवामी लीग के समर्थक रहे हैं, इसलिए कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र शिबिर के कारकून हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं. पुलिस हिंदुओं पर हमले करने वालों को रोक पाने में नाकाम रही है. खुलना डिविज़न के मेहरपुर क़स्बे में दंगाइयों ने इस्कॉन मंदिर को निशाना बनाया. मूर्तियां तोड़ीं और फिर मंदिर में आग लगा दी. ढाका में इस्कॉन टेंपल के निदेशक सुमोहन दास ने बताया कि उनको कई ज़िलों से मंदिरों पर हमले की ख़बर मिली है, हिन्दू महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है. सुमोहन दास ने बताया कि बांग्लादेश में वैसे तो 1971 के बाद से हिंदू कभी भी सुरक्षित नहीं रहे, लेकिन, इस बार शेख़ हसीना के सत्ता से हटते ही मानो हिंदुओं पर क़यामत टूट पड़ी है. बांग्लादेश के नरसिंगदी ज़िले के एक काली मंदिर पर उपद्रवियों ने हमला कियास मंदिर में तोड़-फोड़ की. मौके पर पुलिस मौजूद थी लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया. बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े शहर चट्टोग्राम के हिंदूबहुल मुहल्ले हज़ारी गली में दंगाईयों की भीड़ घुस गई, कई मंदिरों पर पथराव किया गया, इसके बाद एक मंदिर के बाहर आग लगा दी गई. दंगाइयों ने चट्टोग्राम के हज़ारी गली मुहल्ले की ज्यादातर दुकानें लूट ली. बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तकरीबन एक करकरोड़ 30 लाख है, जो कुल आबादी का करीब 8 प्रतिशत है. भारत विभाजन के बाद 1951 में बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी 22 प्रतिशत थी. लेकिन, कट्टरपंथियों के हमलों की वजह से एक करोड़ से ज्यादा हिंदू बांग्लादेश से भागकर भारत आ गए. अब एक बार फिर से ऐसा ही ख़तरा मंडरा रहा है. बांग्लादेश में बरीशाल डिवीज़न के फिरोज़पुर ज़िले में दंगाइयों ने हिंदू बस्ती पर हमला किया, हिन्दुओं के घरों पर पथराव हुआ, लूटपाट हुई और फिर कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया. लोग जान बचाने के लिए अपने घर छोड़कर भागे. इसी तरह के तमाम वीडियो बांग्लादेश से आ रहे हैं. इसीलिए हिन्दुओं की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई जा रही है. योग गुरू स्वामी रामदेव ने कहा कि बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं के मंदिरों और घरों को निशाना बनाया जा रहा है, उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गंभीरता से लेना चाहिए. स्वामी रामदेव ने कहा कि भारत को पूरी ताकत से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे ज़ुल्म का विरोध करना चाहिए, उनकी हिफ़ाज़त के लिए ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए. RSS की अखिल भारतीय कार्य़कारिणी के सदस्य भैयाजी जोशी ने भी सरकार से अपील की है कि वो बांग्लादेश में हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए ज़रूरी क़दम उठाए. भैयाजी जोशी ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की जो ख़बरें आ रही हैं, वो चिंताजनक हैं. उन्हें उम्मीद है कि सरकार हिंदुओं की रक्षा के लिए क़दम ज़रूर उठाएगी. संघ की चिंता जायज़ है. स्वामी रामदेव की बात सही है कि बांग्लादेश में जो हालात है, उससे सतर्क रहने की जरूरत है. सबको एक साथ मिलकर बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए खड़े होने की जरूरत है क्योंकि बांग्लादेश में इस वक्त कानून और व्यवस्था पूरी तरह ठप हो चुका है. विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है, उससे ऐसा लगता है कि इसके पीछे पाकिस्तान की ISI हो सकती है. आलोक कुमार ने कहा कि भारत सरकार, बांग्लादेश में हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए हर मुमकिन क़दम उठाए. बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री ने भी भारत सरकार से अपील की है कि वो बांग्लादेश के प्रताड़ित हिंदुओं की रक्षा के लिए ज़रूरी क़दम उठाए और जो हिन्दू बांग्लादेश से भारत आना चाहते हैं, हमारी सरकार उनके लिए दरवाजे खोल दे. बांग्लादेश में इस वक्त हिन्दू खौफ के साये में जी रहे हैं. कट्टरपंथी और जमात-ए-इस्लामी के समर्थक हिन्दुओं पर हमले कर रहे हैं, उनकी संपत्तियों को लूट रहे हैं, मंदिरों को आग लगा रहे हैं, हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं. जो तस्वीरें वहां से आ रही हैं वो वाकई परेशान करने वाली हैं. .मुसीबत ये है कि हिन्दू इस वक्त बांग्लादेश से भागकर भारत भी नहीं आ सकते क्योंकि हर तरफ सड़कों पर खून के प्यासे दंगाई घूम रहे हैं. अब वे लोग खामोश हैं जो पिछले एक साल से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध कर रहे थे. हालांकि सरकार ने बांग्लादेश के फौजी अफसरों से संपर्क किया है, डिप्लोमैटिक चैनल्स के जरिए हिन्दुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है लेकिन मुश्किल ये है कि बांग्लादेश में फिलहाल न तो कोई सरकार है, पुलिस नाम की कोई चीज नहीं है. क्योंकि दंगाईयों ने तमाम पुलिस थाने फूंक डाले हैं. पुलिस वाले या तो खुद जान बचाकर भाग रहे हैं या फिर दंगाईयों की भीड़ में शामिल हो गए हैं. सेना के अफसरों को समझ नहीं आ रहा है कि वो करें तो क्या करें क्योंकि एक तरफ अंतरिम सरकार के गठन का रास्ता निकालना है, दूसरी तरफ कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी की मांगें भी सुननी है, जो उन अफसरों को हटाने की मांग कर रही है, जिन्हें शेख हसीना का करीबी माना जाता है. बहरहाल हमारे देश में लोगों की और सरकर की एक ही प्राथमिकता है, वहाँ रहने वाले हिन्दू भाई बहनों की जान कैसे बचाई जाए.
बांग्लादेश के तख्तापलट के पीछे पाकिस्तानी ISI का हाथ
बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. शेख हसीना और उनकी बहन बांग्लादेश की सेना के विमान से ढाका से निकल कर दिल्ली पहुंची. पता ये लगा है कि शेख हसीना भारत होते हुए लंदन जाना चाहती थीं लेकिन ब्रिटेन ने शेख हसीना को राजनीतिक शरण देने से इंकार कर दिया है. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने सोमवार रात को ऐलान किया कि संसद को भंग कर देशव्यापी चुनाव कराये जाएंगे, और तब तक एक अन्तरिम सरकार रहेगी. राष्ट्रपति ने जेल में बंद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया को फौरन रिहा करने का आदेश जारी कर दिया. खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान, जो इस वक्त ब्रिटेन में है, बांग्लादेश लौटने वाले हैं. आंदोलकारी छात्र नेताओं ने मांग की है कि कोई भी अन्तरिम सरकार नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ. मुहम्मद युनुस की देखरेख में बनायी जानी चाहिए. छात्रों ने मोहम्मद युनुस को मुख्य सलाहकार बनाने की मांग की है. बांग्लादेश के थल सेनाध्यक्ष जनरल वकार उज्जमां ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की लेकिन सोमवार देर रात तक समूचे देश में आगजनी , हत्या और हमलों की घटनाएं हुई. ढाका के कई थानों में आग लगा दी गई, पुलिस वाले दीवार फांद कर भाग गए. सोमवार को सुबह से ही लाखों लोग ढाका की सड़कों पर निकल आए और शाहबाग की तरफ जाने लगे. हजारों छात्रों ने प्रधानमंत्री के निवास पर हमला कर दिया और सारे कीमती सामान लूट कर भाग गए. प्रदर्शनकारी संसद भवन में भी घुस गए. थल सेनाध्यक्ष ने राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई और अन्तरिम सरकार बनाने के बारे में बातचीत की. जनरल वकार उज-ज़मां ने लोगों से संयम बनाए रखने की अपील की है और प्रदर्शनकारियों से अपने अपने घर लौटने को कहा. मंगलवार सुबह ढाका में शांति रही, सरकारी दफ्तर, दुकानें और अदालतें खुली, लेकिन जिलों में हिन्दुओं के घरों और मंदिरों में तोडफोड और आगज़नी की घटनाएं हुई. बांग्लादेश में हो रही हिंसा में अब तक चार सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. प्रशासन नाम की चीज नही हैं. सेना की कोई सुन नहीं रहा. इसलिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि बांग्लादेश में अब क्या होगा और वहां जो हालात हैं, उनका हमारे देश पर क्या असर हो सकता है. शेख हसीना ने इसी साल जनवरी में लगातार चौथी बार भारी बहुमत से सरकार बनाई थी लेकिन छह महीने के भीतर ही अपने देश से भागना पड़ा. ढाका की सड़कों पर शेख़ मुजीब की मूर्तियों पर हथौड़ा और बुलडोज़र चलाते चलाते प्रदर्शनकारियों की भीड़ प्रधानमंत्री आवास गण भवन में दाखिल हो गई. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास में लूट-पाट शुरू कर दी. ढाका में वही मंज़र दोहराया जाने लगा जैसा हमने श्रीलंका में देखा था. बांग्लादेश में इन विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत पिछले महीने से हुई थी जब सरकारी नौकरियों में आज़ादी की लड़ाई के नायकों की तीसरी पीढ़ी को आरक्षण देने का विरोध शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत ढाका विश्वविद्यालय से हुई थी. बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति युद्ध में लड़ने वालों को नौकरी में आरक्षण मिलता था. फिर मुक्ति योद्धाओं के बेटे-बेटियों को भी आरक्षण मिला. अब बांग्लादेश में मुक्ति योद्धाओं के पोते पोतियों के लिए भी एक तिहाई से ज़्यादा सरकारी पद आरक्षित हैं. छात्रों का विरोध इसी बात को लेकर था. बहुत जल्दी ही आरक्षण विरोध का ये आंदोलन, शेख़ हसीना सरकार के ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया. इसके बाद शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता छात्रों के विरोध में उतरे. हिंसा ढाका से शुरू हुई और धीरे धीरे पूरे देश में फैल गई. पिछले 15 साल से सत्ता पर क़ाबिज़ शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ छात्रों के इस आंदोलन को प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी ने हाईजैक कर लिया क्योंकि शेख़ हसीना की सरकार ने पाकिस्तान का साथ देने वाले जमात के कई नेताओं को फांसी की सज़ा दिलाई थी और जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी भी लगा दी थी. जब सुप्रीम कोर्ट ने मुक्ति योद्धाओं की तीसरी पीढ़ी को रिज़र्वेशन देने पर रोक लगाई तो विरोध प्रदर्शन कुछ दिनों के लिए रुके लेकिन, पिछले एक हफ़्ते से पूरे बांग्लादेश में सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन फिर से शुरू हो गए थे. पूर्व विदेश सचिव, और बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रह चुके हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि शेख़ हसीना की तख़्तापलट के पीछे जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के अलावा, कुछ विदेशी ताक़तों का भी हाथ हो सकता है. बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शन करने वाला कटट्टरपंथी हैं. इसलिए अब वहां रहने वाले हिन्दुओं पर खतरा है. बांग्लादेश के कम से कम 27 नगरों में हिंदुओं के घरों और मंदिरों पर हमले की ख़बरें आई हैं. हिंदू नेताओं ने बताया कि दंगाइयों ने हिंदुओं के मंदिरों में घुसकर तोड़-फोड़ की. ढाका में भारत की मदद से बनाए गए इंदिरा गांधी कल्चरल सेंटर में भी दंगाइयों ने तोड़-फोड़ की. पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने तो ये दावा कर दिया कि बांग्लादेश में जो हालात हैं, उसकी वजह से क़रीब एक करोड़ बांग्लादेशी हिंदू पनाह लेने के लिए भारत का रुख़ कर सकते हैं और बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले ज़िलों में इसकी तैयारी कर लेनी चाहिए. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार बांग्लादेश के बारे में जो भी केंद्र सरकार का निर्देश होगा, उसका पालन करेंगी. ममता बनर्जी ने सभी नेताओं से अपील की कि वो ऐसे बयान न दें जिससे माहौल बिगड़े. ममता की ये बात सही है कि मामला अंतरराष्ट्रीय है, संवेदनशील है, बांग्लादेश में हिन्दुओं पर खतरा है, इसलिए आगे क्या करना है, इसका फैसला केन्द्र सरकार को ही करना है.मंगलवार को एक सर्वदलीय बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सभी नेताओं को वहां के हालात के बारे में जानकारी दी और बाद में संसद में बयान भी दिया. बांग्लादेश के सियासी हालात का असर हमारे देश पर होगा, इसमें कोई शक नहीं हैं क्योंकि बांग्लादेश कभी भारत का ही हिस्सा था. वहां लाखों हिन्दूं परिवारों के नाते रिश्ते भारत में हैं. भारत बांग्लादेश का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. शेख हसीना को भारत का करीबी माना जाता है. उनकी पार्टी उदारवादी है जबकि जो संगठन इस वक्त बांग्लादेश में हंगामा कर रहे हैं, वो इस्लामी कट्टरपंथी हैं, और भारत विरोधी माने जाते हैं. इसलिए हमारे देश पर बांग्लादेश के हालात का असर तो होगा. बांग्लादेश में भारत के जो करीब आठ हजार छात्र फंसे हैं, उनकी सुरक्षा की चिंता भी भारत सरकार को है. इसीलिए सरकार को बहुत सोच-समझकर फैसला करना है. सबसे बड़ा सवाल ये है कि शेख हसीना को इस्तीफा क्यों देना पड़ा? अपना मुल्क छोड़कर इस तरह क्यों भागना पड़ा ? ऊपर से तो यही दिखाई देता है कि छात्र आदोलन की वजह से हालात खराब होते जा रहे थे, ये आंदोलन आरक्षण के नाम पर हुआ और शेख हसीना ने इस आंदोलन को दबाने के लिए जो भी प्रयास किए वो नाकाम साबित हुए. लेकिन इस आंदोलन और शेख हसीना के इस्तीफे के पीछे की कहानी, इससे कहीं बड़ी है. इस पूरे आंदोलन के पीछे इस्लामिक कठमुल्लावादी ताकतें है. इसके पीछे जमात-ए-इस्लामी है..जमात की पॉलिसी और मकसद बांग्लादेश को इस्लामिक तरीके से चलाना है..वहां इस्लामिक रूल लागू करना है…और शेख हसीना इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई थीं..शेख हसीना ने जमात-ए-इस्लामी के खिलाफ एक्शन लिया लेकिन जमात ने छात्र नेताओं को सामने कर दिया. इन सारे छात्र नेताओं के तार कट्टर इस्लामिक संगठन जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हैं. इन संगठनों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पैसे देती है. शेख हसीना ने बांग्लादेश के कट्टरपंथियों पर लगाम लगाने की कोशिश की. नतीजा ये हुआ कि जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन शेख हसीना को किसी भी कीमत पर हटाने के काम में जुट गए. इसमें ISI का भी बड़ा रोल है. इसीलिए ये आंदोलन इतना बड़ा बना. लेकिन बांग्लादेश में एक बहुत बड़ा तबका है जो शेख हसीना का समर्थन करता है लेकिन इस बार आगजनी, हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाओं के सामने ये लोग खामोश हो गए. इस्लामिक कट्टरपंथियों के शक्तिशाली होने से बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. दंगाईयों ने सोमवार को बहुत सी जगहों हिंदुओं के घर जलाए, मंदिरों में तोडफोड़ की. भारत सरकार को सबसे ज्यादा चिंता ऐसे ही लोगों की है. इसीलिए एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखा जा रहा है.
Pakistani ISI hand behind Bangladesh turmoil
As millions came out on the streets of Dhaka on Monday, the longest serving Prime Minister of Bangladesh Sheikh Hasina, facing a tough crisis, submitted her resignation to President Mohammed Shahabuddin and flew to India with her sister Sheikh Rehana. A Bangladesh Air Force transport plane, carrying them, landed at IAF Hindon air base near Delhi, and National Security Adviser Ajit Doval had a one-on-one meeting with Sheikh Hasina. The army transport plane returned to Bangladesh on Tuesday. In Delhi, all major opposition parties extended full support to the Modi government in dealing with the situation evolving in the neighbouring country. There are reports that Sheikh Hasina wanted to leave for London, but UK authorities are yet to decide about granting her political asylum. In Dhaka, thousands of demonstrators ransacked the official residence of the Prime Minister and Parliament, and looted costly items. Bangladesh Army Chief Gen Waqer-uz-Zaman appealed for peace, after holding consultation with political parties and civil society leaders. Police personnel vanished from the streets and there was nightlong arson and ransacking in most of the police stations of Dhaka. Homes of Awami League leaders in Dhaka and other cities were set on fire. By Monday night, the President announced that the Parliament would be dissolved, and fresh general elections will be held. The President announced that opposition leader Begum Khaleda Zia would be released from jail and an interim government would be set up. Agitating student leaders have demanded that Nobel Prize winning economist Dr Muhammad Yunus be made the principal adviser while setting up the interim government. Temples and homes of many Hindus were attacked and vandalized in several cities of Bangladesh. The situation has become complicated with the police withdrawing from law and order duties. In Dhaka, thousands of people “celebrated” the downfall of Sheikh Hasina’s government, even as pitched battles were going on outside several police stations. More than 400 people have died in violence during the current turmoil after students took to the cities demanding resignation of Sheikh Hasina. In Dhaka, a large statue of Bangabandhu Sheikh Mujibur Rahman was demolished with a JCB machine, while Bangabandhu Memorial Museum was set on fire. Indira Gandhi Cultural Centre was also ransacked by demonstrators. The student agitation against “discrimination in jobs” has now gone out of control with anti-social elements resorting to arson and looting. Army, though deployed in the capital and district headquarters, is yet to take any major action against the arsonists. India’s former foreign secretary Harshvardhan Shringla, who had earlier worked as High Commissioner in Dhaka, said that the hand of some foreign powers behind the agitation could not be ruled out. He said, the agitation was being openly supported by Bangladesh Nationalist Party and Jamaat-e-Islami. Bengal BJP leader Suvendu Adhikari warned that nearly one crore Hindus living in Bangladesh could be forced to cross the border into India if violence against minorities continues. Chief Minister Mamata Banerjee appealed to all parties not to create tension by making inciting remarks. Banerjee said, the state government will follow the Centre’s directives while keeping a close watch on the evolving situation in Bangladesh. I think, Mamata Banerjee is right. The issue is quite sensitive. Hindus in Bangladesh are at risk, and it is for the Centre to decide about the future course of action. On Monday night, the Cabinet Committee on Security met in Delhi under the chairmanship of Prime Minister Narendra Modi to discuss the situation. The Director General of Border Security Force on Tuesday visited border check posts in West Bengal. A general alert has been sounded on India-Bangladesh border. There is not an iota of doubt that the political crisis in Bangladesh is going to have its repercussions in India too. Bangladesh was part of undivided India before Partition and there are several lakhs Hindu families who have relatives living across the border. India is the largest trading partner of Bangladesh. Sheikh Hasina was always viewed as a true friend of India, and her party, Awami League, was considered liberal. Opposition parties like BNP and Jamaat-e-Islami, which are out on the streets, have been following anti-India line since several decades. The Indian government is trying to secure the safe passage of several thousand Indian students presently living in Bangladesh. The Centre will have to take a careful and balanced path. The issue is: Why was Sheikh Hasina forced to resign and flee from her country? On the face of it, one can say that the situation had deteriorated due to the ongoing student agitation on the job reservation “quota” issue, and Hasina’s government failed to tackle the situation deftly. But the story behind this agitation is quite different. Islamic fundamentalist forces like Jamaat-e-Islami have put their might behind this student agitation. They want to introduce Islamic laws in Bangladesh, and Sheikh Hasina was the biggest obstacle in their path. Sheikh Hasina took action against Jamaat-e-Islami and banned the party. The Jamaat activated its students’ wing Islamic Chhatra Shibir to go to the streets. Many of these student outfits get funds from Pakistan’s spy agency ISI. Sheikh Hasina tried to put the Islamic fundamentalists on leash, and this was the reason why her government had to face a terrible backlash from Islamic forces. But there is a large section of people in Bangladesh which supports Sheikh Hasina, her father Late Sheikh Mujibur Rahman and Awami League. Hasina’s party remained silent when these Islamic forces went on rampage. Hindus living in Bangladesh now face an uncertain future as incidents of attacks and arson continue. The Indian government is worried about the safety of Hindus, and the government is taking steps with utmost care and consideration.
अग्निवीर : सेना युद्ध सक्षम बनना चाहती है
कारगिल विजय को 25 साल हो गये. जंग के मैदान में तोपों की गूंज अभी तक याद है. पाकिस्तान का धोखे से किया गया एक-एक वार याद है. और याद है हमारे बहादुर योद्धा जो वीरगति को प्राप्त हुए. उनका अमर बलिदान हमें हमेशा प्रेरणा देता रहगा, हमारे अमर शहीदों को, वीर जवानों को नमन. मोदी ने सरहद पर खड़े होकर कड़े लहजे में, साफ लफ्ज़ों में संदेश दिया कि अगर पाकिस्तान नहीं सुधरा, अगर उसने घुसपैठ और आतंकवाद की हरकतें बंद नहीं की, तो उसे सबक सिखाया जाएगा. मोदी ने कहा कि पाकिस्तान इससे पहले कई बार मुंह की खा चुका है, हमारे जवानों ने पाकिस्तान की फौज को धूल चटाई है लेकिन पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं सीखा. इसलिए अब पाकिस्तान कान खोलकर सुन ले, पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के आका समझ लें कि भारत छोड़ेगा नहीं. प्रधानमंत्री ने अग्निपथ स्कीम को लेकर राजनीति कर रहे, अफवाहें फैला रहे राजनीतिक दलों को भी जवाब दिया. मोदी ने कहा कि अग्निपथ स्कीम सेना की मांग पर लागू की गई, ताकि सेना के जवानों की औसत आयु को कम रखा जा सके. दो बातों पर मोदी का संदेश स्पष्ट है. पहला, सीमा पर अब आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कार्रवाई होगी, दूसरा – अग्निपथ स्कीम जारी रहेगी. पाकिस्तान को ऐसे सख्त संदेश की बहुत जरूरत थी. पिछले पांच सालों में अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर घाटी में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है, ज्यादातर दहशतगर्द मारे जा चुके हैं. इससे परेशान पाकिस्तानी फौज अब जम्मू क्षेत्र में आतंकी हमले करवा रही है. LOC पर घुसपैठ की कम से कम पांच कोशिशों को नाकाम किया गया है. करीब एक दर्जन घुसपैठिए मारे गए हैं .पिछले एक महीने में जम्मू के डोडा में सेना के काफिलों पर हमले भी हुए हैं. अब डोडा के जंगलों में पिछले एक हफ्ते से ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया जा रहा है. थल सेना, वायु सेना, CRPF और जम्मू कश्मीर पुलिस के करीब सात हजार जवान जंगल में चप्पे चप्पे को छान रहे हैं. सुरक्षा बलों से कहा गया है कि एक भी दहशतगर्द बचना नहीं चाहिए और हो सकता है अगले कुछ दिनों में डोडा से बड़ी तादाद में आतंकवादियों की सफाये की खबर आए. खुफिया एजेंसियों का कहना है कि डोडा के जंगलों का फायदा उठाकर सौ से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकवादी इस इलाके में छुपे हुए हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान अपनी पुरानी गलतियों से सीखना नहीं चाहता, लेकिन भारत उसे सबक सिखाकर रहेगा. इसके अलावा मोदी ने पहली बार अग्निवीर योजना पर खुलकर बात की. मोदी ने कहा कि अग्निपथ योजना का लक्ष्य सेना में जवानों की औसतन आयु को कम करना है. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में सेना ये मांग पिछले पचास साल से कर रही है, पिछली सरकारों की तमाम कमेटियों ने इस योजना पर विचार किया लेकिन इसे लागू करने की इच्छा शक्ति नहीं दिखा पाईं. प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके लिए दल से बड़ा देश है, इसलिए उन्होंने सेना की मांग पर सेना को युद्ध के लिए हमेशा सक्षम बनाए रखने की नियत से अग्निपथ योजना लागू की है. अग्निपथ योजना को लेकर विपक्ष का सबसे बड़ा इल्जाम ये है कि जो अग्निवीर चार साल बाद रिटायर हो जाएंगे, उनका क्या होगा. इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि सेना से रिटायर होने वाले अग्निवीरों को अर्धसैनिक बलों और राज्यों की पुलिस की भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी. लगभग सभी बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने अग्निवीरों के लिए पुलिस की भर्ती में आरक्षण देने और आयु सीमा में छूट देने का फैसला किया है. विपक्ष का दूसरा आरोप ये है कि सेना के जवानों को पेंशन न देनी पड़े, इसलिए सरकार अग्निपथ स्कीम लाई है, जिसमें जवान चार साल बाद रिटायर हो जाएंगे, उन्हें कोई पेंशन नहीं देनी पड़ेगी. इस पर मोदी ने कहा कि जो सैनिक आज भर्ती होगा, उसे पेंशन देने की बात तीस साल बाद आएगी. मोदी ने कहा कि जो मुद्दा तीस साल के बाद आना है,उस पर मोदी अभी गाली क्यों खाता है. इसलिए उन्हें तो इस तरह की बातें करने वाले विरोधी दलों के नेताओं की समझ पर हैरानी होती है. मोदी की ये बात विरोधी दलों के नेताओं को बुरी लगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री को कारगिल विजय दिवस के मौके पर इस तरह की राजनीतिक बात नहीं करनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री की य़े बात गलत है कि अग्निवीर योजना की मांग सेना ने की थी, ये सरकार का फैसला था. इसे सेना की इच्छा के खिलाफ मोदी सरकार ने लागू किया. कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की झूठ बोलने की आदत है, मोदी पहले गलत फैसले लेते हैं औऱ फिर उसे सही ठहराने के लिए बेबुनियाद दलील देते हैं. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री को ये बताना चाहिए क्या कारगिल में पाकिस्तानी फौज को मार भगाने वाले सैनिक युवा नहीं थे? क्या वो बहादुर नहीं थे? विपक्ष की तरफ से इस तरह के तमाम बयानों की लाइन लैंथ और टोन एक जैसी ही थी. प्रमोद तिवारी हों या संजय सिंह, दोनों ने मुद्दे को घुमाने की कोशिश की. मोदी ने कहा कि अग्निपथ स्कीम सेना के जवानों की औसत आयु कम करने की कोशिश है लेकिन विरोधी दलों ने इसे कारगिल के शहीदों और सेना के जवानों की बहादुर और साहस से जोड़ने की कोशिश की. ये ठीक नहीं है. हकीकत ये है कि 1977 से लेकर सेना के जवानों की औसत आयु को लेकर तमाम कमेटियां चिंता जााहिर कर चुकी हैं. कारगिल युद्ध के बाद जो सुब्रहमण्यम कमेटी बनी थी, उसने भी अपनी रिपोर्ट में ये बात कही थी. इस वक्त हमारी सेना के जवानों की औसतन आयु 32 साल है, जबकि अमेरिका में फौज की औसतन आयु 29 साल है. Israel में जवानों की औसतन आयु 21 साल है, ब्रिटेन के सैनिकों की औसतन आयु 30 साल है. इन देशों में भी सेना में काम करने के कुछ साल के बाद जवानों को रिटायर दिया जाता है. दुनिया में सभी देशों की सेनाओं की औसतन आयु की बात की जाए तो ये 26 साल है., और सभी देशों का मकसद अपनी फौज को युवा और चुस्त रखना है. इसीलिए हमारी सेना की मांग पर सरकार ने अग्निपथ स्कीम लागू की. स्कीम लागू करने से पहले 135 देशों की फौज की स्टडी की गई. इसमें गलत क्या है? जहां तक सेना से चार साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीरों के भविष्य और उनके रोजगार का सवाल है तो BSF, CRPF, CISF, असम राइफल्स, RPF जैसे सुरक्षा बलों में अग्निवीरों को आरक्षण देने और आयु सीमा में छूट देने का पहले ही एलान कर दिया. तमाम राज्य सरकारों ने अपनी पुलिस फोर्स में अग्निवीरों को आरक्षण देने का फैसला किया है. अग्निवीर को लेकर सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या उनकी सर्विस सिर्फ 4 साल की होगी? जो अग्निवीर फौज में ऱखे नहीं जा सकेंगे, क्या वो 4 साल बाद बेरोजगार हो जाएंगे? आज इन सवालों का जवाब मिला. अब तक करीब करीब सारे बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें ये एलान कर चुकी हैं कि वो अपने यहां पुलिस फोर्स में अग्निवीरों को आरक्षण देंगी. हर साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होगी जिसमें से 25 परसेंट को सेना अपनी सेवा में रखेगी, यानि हर साल 34 हजार 500 अग्निवीर रिटायर होंगे और जब राज्यों की पुलिस फोर्स और केंद्रीय अर्धसैनित बलों में अग्निवीरों को आरक्षण मिलेगा तो इतने 34 हजार 500 अग्निवीरों को आसानी से पुलिस फोर्स में लिया जा सकेगा. सेना से रिटायर होने तक फंड मिलाकर अग्निवीरों को करीब 23 लाख रूपए मिलेंगे और नौकरी भी करीब करीब पक्की होगी. इसलिए ये कहना कि सरकार ने अग्निवीरों के भविष्य की चिन्ता नहीं की है, ये गलत लगता है. विपक्ष अग्निवीरों को लेकर बेवजह एक गलत नरेटिव पैदा करने की कोशिश कर रहा है.
Agniveer: Army wants to keep it combat-ready
Addressing a meeting on Kargil Vijay Diwas in Drass on Friday to mark the 25th anniverary of India’s victory in the Kargil conflict, Prime Minister Narendra Modi warned Pakistan that its nefarious designs in fuelling cross-border terrorism will be crushed with full force. The Prime Minister said, “Pakistan has not learnt any lessons from its past defeats and has continued to wage war in the garb of terrorism and proxy war to stay relevant….Today I am speaking from a place where the patrons of terrorism can hear my voice. I want to tell them that their nefarious aims will never succeed. Our brave soldiers will crush them with full force. The enemy will get a befitting reply.” Modi saluted the brave jawans and officers who made the supreme sacrifice to protect the motherland. The Prime Minister justified the Agnipath scheme saying that short-term recruitment of young soldiers as Agniveers was necessary for keeping the armed forces young and combat ready at all times. He rubbished the allegations made by opposition leaders that the Agnipath scheme was rolled out in June 2022 to save money being spent on pension for retired armed forces personnel. This was Modi’s first public response on the issue of Agniveer. He alleged that the opposition was misguiding youth about the Agnipath scheme. Modi’s speech in Drass has made two points quite clear: One, there will be all-out action against terrorists, and Two, Agnipath scheme will stay. During the last five years, the backbone of terrorist groups has been broken in Kashmir Valley and many terrorists have been eliminated. Pakistan is desperate and is trying to carry out attacks in Jammu region by infiltrating terrorists. Attacks have been made by terrorists in Doda, Rajouri and other places. Nearly a dozen terrorists have been eliminated. “Operation Sarp Vinash” is being carried out by armed forces in the forests of Doda to flush out terrorists hiding in the jungle. Nearly 7,000 jawans of Army, Air Force, CRPF and state police are carrying out this operation. Intelligence reports say more than 100 infiltrators pushed by Pakistan are hiding in the forest. It was in this context that the Prime Minister said that Pakistan has not learnt any lesson from the mistakes it committed in the past. On the Agnipath issue, Modi made the Centre’s position quite clear. On the other hand, Congress President Mallikarjun Kharge alleged that it was Modi government which had pushed the scheme despite what he called, objections from Army officials. Kharge alleged that Modi was misleading by making the remark that it was the Army which wanted the Agnipath scheme. AAP MP Sanjay Singh said, Modi must clarify whether Army jawans who won the Kargil conflict were not brave or young enough. The line and length of the remarks of Opposition leaders are almsot the same. They are trying to dilute the issue. What Modi said was that the government wanted to reduce the average age of Army soldiers by introducing the Agnipath scheme, and make it younger, but the Opposition tried to link it with the bravery and courage of Kargil martyrs. Several committees since 1977 had expressed concern over the ageing army. The Subramanian committee set up after Kargil conflict, had also recommended that the average age of army jawans should be reduced. Presently, the average age of our army is 32 years, while in the United States, it is 29, in Israel it is 21, and in Britain, it is 30 years. Soldiers working in the armies of these countries are retired at a young age. The average age of the armies across the world is 26 years. Most of the countries of the world want their armies to be lean and young. It was in this context, that the government introduced the Agnipath scheme at the request of the army. The decision was taken after making a study of armies of 135 countries. There is nothing wrong in this. As far as giving jobs to Agniveers after four years of Army service is concerned, most of the BJP-ruled states like UP, MP, Odisha, have already announced that they would reserve police jobs for Agniveers, and relax their maximum age limit. Central paramilitary forces like CRPF and CISF have also announced reservation for Agniveers. Every year, nearly 46,000 Agniveers will be absorbed in state police forces, while Army will retain 25 per cent of the Agniveers in regular service. In other words, 34,500 Agniveers will retire every year and they can be easily given jobs in police forces. Agniveers retired from armed forces will get Rs 23 lakh each. So, to say that Agniveers retiring from army will have an uncertain future is incorrect. Opposition is trying to create a fake narrative on the Agniveer issue.
एक खालिस्तान समर्थक पर चन्नी की टिप्पणी कभी स्वीकार्य नहीं
संसद में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और जालंधर से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह का समर्थन करके अपनी पार्टी को खासी परेशानी में डाल दिया, सबको चौंका दिया. चन्नी ने कहा कि अमृतपाल सिंह को जेल में रखना, उसके बोलने पर पांबदी लगाने की कोशिश करना, संविधान के खिलाफ है. चन्नी ने कहा कि देश में अघोषित इमरजेंसी जैसे हालात हैं, लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी अमृतपाल सिंह को जेल में रखा जा रहा है, उसे संसद में आने से रोका जा रहा है, ये जनादेश का अपमान है. अमृतपाल सिंह पिछले एक साल से असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं क्योंकि उसने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश की, अजनाला थाने पर हमला किया, अलग खालिस्तान की मांग उठाई, हथियारों के साथ पुलिस फोर्स पर हमला बोला. अमृतपाल सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) समेत तमाम संगीन धाराओं में 12 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. वो खुलेआम खालिस्तान की बात करता है, लोगों को भड़काता है. इसके बाद भी चन्नी ने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की संसद में खड़े होकर हिमायत की. इस पर बीजेपी ने कांग्रेस से सवाल पूछे और इसपर कांग्रेस के नेताओं का जवाब देना मुश्किल हो गया. शाम को कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक वाक्य का ये बयान जारी किया कि चन्नी ने अमृतपाल सिंह के बारे में जो कुछ कहा है, वो उनकी निजी राय है और ये कांग्रेस पार्टी का स्टैंड नहीं है. चन्नी ने आज एक नहीं बल्कि कई विवाद खड़े किए. उन्होंने इल्जाम लगा दिया कि सरकार ने किसानों के खिलाफ NSA लगा उन्हें जेल में डाल दिया, लेकिन जब उनसे किसानों के नाम बताने को कहा गया तो चन्नी के पास जवाब नहीं था. इसके बाद चन्नी की केन्द्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू से तीखी झड़प हो गई. दरअसल लोकसभा में बजट पर चर्चा हो रही थी. चन्नी बजट को गरीब विरोधी, किसान विरोधी, पंजाब विरोधी बता रहे थे. यहां तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद चन्नी बहक गए. पहले उन्होंने कहा कि सरकार ने एजेंसियों को विरोधी दलों के नेताओं के पीछे लगा दिया, देश में अघोषित इमरजेंसी जैसे हालात हैं और अपनी बात को साबित करने के लिए चन्नी ने अमृतपाल सिंह का जिक्र कर दिया. चन्नी ने कहा कि ये भी तो इमरजेंसी है कि जिस व्यक्ति को चार लाख लोगों ने चुना, उसको NSA लगाकर जेल में रखा गया, उसके बोलने की आजादी छीनी गई . जैसे ही चन्नी ने खालिस्तानी अमृतपाल सिंह का समर्थन किया, तो कांग्रेस के नेता उनका मुंह ताकते रह गए लेकिन चन्नी रुके नहीं. चन्नी ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को लेकर गलत कमेंट किया. बेअंत सिंह की हत्या खालिस्तानी आतंकवादियों ने 1995 में उस वक्त की थी, जब वो पंजाब के मुख्यमंत्री थे. .बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू पहले कांग्रेस में थे, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गये , चुनाव हार गए, लेकिन अब केन्द्र सरकार में मंत्री हैं. जब चन्नी ने मोदी सरकार की तुलना अंग्रेजों की हुकूमत से की, तो बिट्टू ने इसका विरोध किया. इससे नाराज चन्नी ने बिट्टू पर उनके दादा बेअंत सिंह की शहादत को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की, इसके बाद सदन में हंगामा हो गया और कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. बिट्टू ने जबाव देने में देर नहीं की. बिट्टू ने भी चन्नी को पंजाब का सबसे भ्रष्ट नेता बताया. बीजेपी ने खालिस्तानी अमृतपाल के समर्थन को बड़ा मुद्दा बना दिया. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पूछा, क्या कांग्रेस के नेता ये भूल गए कि इंदिरा गांधी की हत्या खालिस्तानियों ने की थी? क्या खालिस्तानियों को लेकर अब कांग्रेस का स्टैंड बदल गया है? कांग्रेस के नेता चरणजीत सिंह चन्नी के बयान से कन्नी काट रहे हैं, कोई उनके बयान को उनकी निजी राय बताकर किनारा कर रहे हैं, तो कोई कह रहा है कि उन्होंने चन्नी का बात सुनी ही नहीं. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि चन्नी को जो बोलना था, बोल दिया, लेकिन सवाल ये है कि क्या कांग्रेस का यही स्टैंड है? ये बात कांग्रेस पार्टी को साफ करनी चाहिए.
सवाल है कि चरणजीत सिंह चन्नी ने अमृतपाल का समर्थन क्यों किया? ये समझने के लिए इन दोनों की पृष्ठभूमि समझना जरूरी है.पिछला लोकसभा चुनाव अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब से करीब दो लाख मतों के अन्तर से जीता. कांग्रेस को हराया और आम आदमी पार्टी और अकाली उम्मीदवारों के तीसरे और चौथे स्थान पर पहुंचा दिया. इस जीत ने पंजाब के लोगों को चौंका दिया क्योंकि वो साल भर पहले विदेश से भारत आया था और अचानक उसने पंजाब में हथियार उठा लिए. पूरे देश ने टीवी पर देखा कि पिछले साल 18 मार्च को अमृतपाल ने सरेआम हथियारों से लैस होकर अपने समर्थकों के साथ अजनाला थाने पर हमला किया. अमृतपाल पर पंजाब में आर्म्स एक्ट की धाराओं में 7 मामले दर्ज हुए थे. फिर उसने खुलकर खालिस्तान की मांग का समर्थन किया. उस पर देशद्रोह के आरोप लगे, पंजाब की पूरी पुलिस फोर्स उसे ढूंढती रही, एक महीने की तलाशी के बाद वो पकड़ा गया. उस वक्त उसका विदेशों में बैठे खालिस्तानियों ने समर्थन किया, भारत सरकार के खिलाफ धमकियों भरे वीडियो जारी किए. अमृतपाल पिछले एक साल से असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद है. उसके खिलाफ NSA लगाया गया है. इस पृष्ठभूमि की वजह से पंजाब में मुख्कोयधारा वाली कोई राजनीतिक पार्टी अमृतपाल का समर्थन नहीं करतीना, ही उसकी गिरफ्तारी पर किसी ने सवाल उठाए. इसीलिए जब चन्नी ने संसद में अमृतपाल के प्रति सहानुभूति जाहिर की तो सब चौंक गए. अब चन्नी की पृष्ठभूमि को समझें. चन्नी कांग्रेस में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के विश्वासपात्र हैं. सोनिया गांधी ने कैप्टन अमरिन्दर सिंह को हटाकर चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था. चन्नी की अगुआई में कांग्रेस विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी. इसके बाद भी राहुल गांधी ने चन्नी को पार्टी के नेताओं के विरोध के बाद भी जालंधर से टिकट दिया. वो पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने. इसीलिए अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या खालिस्तानियों को लेकर कांग्रेस का स्टेंड बदल गया है? पंजाब में मैंने आंतकवादियों के तांडव देखा है. पंजाब के आंतकवाद को मैंने एक रिपोर्टर के तौर पर कवर किया है. इसीलिए मुझे हैरानी हुई कि चन्नी आतंकवाद के उस दौर को कैसे भूल गए? वो कैसे भूल गए कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पंजाब के आतंकवाद का नतीजा थी. सरदार बेअंत सिंह को भी आतंकवादियों ने मारा था. पंजाब को आतंकवाद के दौर से निकालने के लिए हमारी सशस्त्र सेनाओं के हजारों जवानों ने कुर्बानियां दीं. इसीलिए कोई भी अगर पंजाब को उस खतरनाक दौर में ले जाने की कोशिश करेगा तो पूरा देश मिलकर उसका विरोध करेगा. मुझे लगता है चन्नी ने जो कहा, उससे कांग्रेस सहमत नहीं होगी. ये कांग्रेस की सोच नहीं हो सकती. हालांकि आज ऐसा लगा कि चन्नी ये तय करके आए थे कि उन्हें किसी भी कीमत पर, कुछ भी कहकर सिर्फ सरकार को कोसना है. इसीलिए उन्होंने खालिस्तान का नाम लेकर किसानों के मुद्दे पर भी ऐसी बात कह दी जो बिल्कुल गलत थी.
Channi’s remarks on ‘Khalistan supporter’ not acceptable
Former Punjab Chief Minister and Congress MP from Jalandhar Charanjit Singh Channi on Thursday caused a huge embarassment for his party, when he came out in support of pro-Khalistan Sikh preacher Amritpal Singh, who is presently in Assam’s Dibrugarh jail. Amritpal Singh was recently elected to Lok Sabha from Khadoor Sahib. Speaking on the Union Budget in Lok Sabha, Channi alleged that that there was “undeclared emergency” in the country. He did not name Amritpal Singh, but made clear mention about his election. Channi said, “They (BJP) speak about 1975 Emergency every day, but what about undeclared emergency today? This too is Emergency, where a man who was elected MP by 20 lakh voters in Punjab is behind bars under National Security Act. He is unable to voice the views of the people of his constituency in this House. This is Emergency.” Channi alleged that Amritpal Singh, head of ‘ Waris Punjab De’, was not being allowed to come to Parliament and speak. “This is a curb on his freedom of speech”, he said. It may be mentioned here that Amritpal Singh was arrested under NSA on April 23 last year and kept in Dibrugarh jail along with some of his associates. He was raising a private militia called Anandpur Khalsa Fauj, with help from Pakistan’s spy agency ISI, and was openly speaking in favour of Khalistan. In February last year, Amritpal Singh, with his supporters armed with automatic weapons, stormed the Ajnala police station and injured several policemen and burnt police vehicles, forcing police to free his accomplice Loepreet Singh Toofan. In March last year, in a major crackdown, Amritpal’s associates were arrested on charges of attempted murder and other serious crimes. Amritpal Singh, after going into hiding, was arrested after 35 days, and he was whisked to Dibrugarh jail. Amritpal Singh contested Lok Sabha elections from Khadoor Sahib, won and took oath as MP on July 5, under strict security. Since the court had granted him a brief parole, he was taken back to prison. On Thursday, Congress leaders were put in a tight spot after Channi raised Amritpal’s detention issue. In the evening, Congress leader Jairam Ramesh issued a terse statement on X saying, “The views expressed by Charanjit Singh Channi, MP, on Amritpal Singh are his own, and do not reflect in any way the position of the Indian National Congress.” Channi also made an objectionable remark about former Punjab CM Beant Singh, who was assassinated by Khalistani terrorists in a suicide bombing in 1995. Seventeen persons, including 3 commandos, were killed in that blast. Beant Singh’s grandson Ravneet Singh Bittu, who was in Congress joined BJP before the Lok Sabha elections, lost from Ludhiana and is now a Union Minister of State. Bittu was listening to Channi’s speech, and a verbal duel began, when Channi made an objectionable remark about Beant Singh. Bittu responded by alleging that Channi was the”most corrupt leader of Punjab and has amassed several thousand crores worth properties.” The proceedings of the House had to be adjourned. BJP strongly objected to Channi’s remarks. Union Minister Giriraj Singh asked whether Congress leaders have forgotten that Indira Gandhi was assassinated by Khalistanis. Congress leader Sukhjinder Singh Randhawa said, what Channi said was his personal opinion. Punjab chief minister Bhagwant Mann demanded that the Congress party must clarify its position about Amritpal Singh. The moot question is, why a former chief minister like Channi supported a Khalistan supporter like Amritpal Singh? One must understand the margin of victory secured by Amritpal Singh. People of Punjab were surprised to find a Sikh youth returning from abroad and defeating his nearest Congress rival by a margin of nearly 2 lakh votes, while AAP and Akali candidates trailed in third and fourth positions. The entire country watched on TV how Amritpal Singh with his associates, brandishing automatic rifles, attacked Ajnala police station. Seven cases under Arms Act were filed against him, and he was charged with sedition. Amritpal Singh was openly supported by pro-Khalistan outfits based in Canada, USA and UK. Because of his radical background, no mainstream political party is supporting Amritpal Singh, nor any party is questioning his detention. When Channi expressed sympathy for Amritpal Singh, leaders from different parties sitting inside the House were surprised. Charanjit Singh Channi was made the Chief Minister by Sonia Gandhi, after removing Capt Amarinder Singh. The Congress party lost badly in the assembly polls that took place when Channi was CM. Rahul Gandhi, instead of ignoring Channi, gave him the party ticket from Jalandhar to contest the LS polls. The question now is, whether Congress has changed its stand about Khalistan sympathizers. As a reporter, I have myself seen the mayhem created by terrorists during the Eighties in Punjab. How can Congress leaders forget that terrorists had killed Prime Minister Indira Gandhi and Chief Minister Beant Singh? Thousands of our men in the armed forces gave their supreme sacrifice while fighting terrorists. If anyone wants to take Punjab back to those dark days, the entire nation will stand as one to oppose him. I know Congress will never agree with what Channi spoke about Amritpal Singh. This can never by part of Congress party’s ideology. It was Channi who had come to the House to lash out at the government on Thursday. He also made factual errors when he alleged that farmer leaders were arrested under NSA, but when his contention was challenged inside the House, he had no answer.