Rajat Sharma

डॉक्टर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने वाले पुलिसवालों पर चले मुकदमा

AKBराजस्थान के दौसा में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या ने न केवल मेडिकल बिरादरी को, बल्कि इंसानियत में भरोसा करने वाले सभी लोगों को झकझोर कर रख दिया है। डॉक्टर अर्चना शर्मा ने जो इमोशनल सुसाइड नोट छोड़ा है, वह किसी को भी रुला सकता है।

बुधवार को मैंने कई वरिष्ठ डॉक्टरों से बात की। उन्होंने न केवल दुख व्यक्त किया, बल्कि इस बात पर नाराजगी भी जताई कि कैसे एक डॉक्टर को एक गर्भवती मरीज आशा बैरवा की प्रसव के दौरान हुई मौत के बाद इतना डराया-धमकाया गया कि उसने घबराकर फांसी लगा ली।

आशा बैरवा नाम की गर्भवती महिला को गंभीर हालत में दौसा के लालसोट में स्थित आनंद अस्पताल में लाया गया। मरीज की हालत इतनी खराब थी कि दो अस्पताल पहले ही हाथ खड़े कर चुके थे। डॉक्टर अर्चना शर्मा ने मरीज के परिजनों की गुजारिश पर आशा को ऐडमिट कर लिया। बड़ी जद्दोजहद के बाद डॉक्टर अर्चना शर्मा ने नवजात बच्चे की सकुशल डिलीवरी तो करवा ली, लेकिन कुछ देर के बाद आशा को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगी। यह डिलीवरी के बाद होने वाली ब्लीडिंग (postpartum haemorrhage) का मामला था। इससे पहले भी डॉक्टर अर्चना ने आशा की डिलीवरी कराई थी और सिजेरियन से उसके जुड़वां बच्चे पैदा हुए थे। इस बार भी बच्चा तो बच गया लेकिन ज्यादा ब्लीडिंग के चलते आशा ने दम तोड़ दिया।

मरीज का मजदूर पति लालूराम बैरवा और उसके रिश्तेदार पहले शव को अपने गांव ले गए, लेकिन स्थानीय नेताओं के दबाव में वे शव लेकर वापस आए और डॉक्टर की गिरफ्तारी की मांग करते हुए अस्पताल के बाहर हंगामा करने लगे। डॉ. अर्चना शर्मा ने अपने बचाव में पुलिस को इलाज के पूरे तौर तरीके के बारे में समझाया और उन्हें मेडिकल फाइल भी दिखाई। लेकिन हंगामा बढ़ने पर पुलिस ने पति की शिकायत के आधार पर डॉक्टर दंपति के खिलाफ धारा 302 (हत्या) के तहत FIR दर्ज कर ली। बाद में, लालूराम बैरवा ने कहा कि किसी ने उसे एक लिखित शिकायत दी थी, जिस पर उसने गुस्से में बिना पढ़े दस्तखत कर दिया था।

डॉ अर्चना शर्मा एक गोल्ड मेडलिस्ट और जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं। वह दो बच्चों की मां थी, लेकिन अपने खिलाफ हत्या के आरोप में FIR दर्ज होने के बाद, वह नाउम्मीद हो चुकी थीं।

डॉ. अर्चना शर्मा ने जो सुसाइड नोट छोड़ा है, वह उस मानसिक उथल-पुथल के बारे में बताता है जिससे उन्हें दो चार होना पड़ा था। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा, ‘मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूं। कृपया मेरे मरने के बाद इन्हें परेशान न करना। मैंने कोई गलती नहीं की, मैंने किसी को नहीं मारा। PPH एक बड़ा कॉम्प्लिकेशन है। इसके लिए डॉक्टरों को प्रताड़ित करना बंद करो। मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे। कृपया बेगुनाह डॉक्टरों को परेशान न करें। सुनीत, मैं तुमसे प्यार करती हूं, मेरे बच्चों को उनकी माँ की कमी महसूस नहीं होने देना।’

डॉ. अर्चना शर्मा और उनके पति डॉ. सुनीत उपाध्याय आनंद अस्पताल चलाते थे। इंडिया टीवी से बात करते हुए डॉ. सुनीत उपाध्याय ने पूछा कि पुलिस किसी डॉक्टर के खिलाफ हत्या की FIR कैसे दर्ज कर सकती है। उन्होंने कहा, एक डॉक्टर पर चिकित्सा में लापरवाही का आरोप तो लगाया जा सकता है, लेकिन हत्या का नहीं। डॉ. सुनीत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस बारे में फैसला दे चुका है कि अगर किसी मरीज की इलाज के दौरान मौत हो जाती है तो किसी डॉक्टर पर हत्या का आरोप नहीं लगाया जा सकता ।

डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के बाद, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के परचम तले पूरे राजस्थान में डॉक्टर सड़कों पर उतरे, और डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर 24 घंटे के बंद का आह्वान किया। फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे पत्र में उन परिस्थितियों की पूरी जांच कराने की मांग की, जिनके कारण FIR दर्ज की गई और एक डॉक्टर को खुदकुशी के लिए मजबूर होना पड़ा।

बुधवार को AIIMS समेत भारत के तमाम बड़े अस्पतालों के डॉक्टरों ने अपने हाथों पर काली पट्टी बांधकर काम किया। डॉक्टरों ने कहा, डॉ. अर्चना शर्मा के साथ जो कुछ भी हुआ वह पूरी व्यवस्था के मुंह पर कालिख है। उन्होंने कहा, अगर हजारों लोगों की जान बचाने वाला डॉक्टर किसी मरीज को न बचा पाए तो उसे हत्यारा घोषित कर देना कहां का इंसाफ है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया, ‘दौसा में डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या की घटना बेहद दुखद है। हम सभी डॉक्टरों को भगवान का दर्जा देते हैं। हर डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करता है, लेकिन कोई भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होते ही डॉक्टर पर आरोप लगाना न्यायोचित नहीं है। अगर इस तरह डॉक्टरों को डराया जाएगा तो वे निश्चिन्त होकर अपना काम कैसे कर पाएंगे? इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है एवं दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।’

मुख्यमंत्री ने डिविजनल कमिश्नर दिनेश कुमार यादव को प्रशासनिक जांच करने और आत्महत्या के लिए उकसाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया। दौसा के एसपी अनिल कुमार का ट्रांसफर कर दिया गया है और लालसोट थाने के SHO अंकेश कुमार को सस्पेंड कर दिया गया है। गहलोत ने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक सुझाव देने हेतु अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) की अध्यक्षता में वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति का गठन किया है। भारतीय जनता पार्टी के एक स्थानीय नेता जितेंद्र गोठवाल और एक अन्य व्यक्ति राम मनोहर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

डॉ अर्चना शर्मा की मौत खुदकुशी का मामला हो सकती है, लेकिन मैं इसे एक डॉक्टर की जानबूझकर की गई हत्या कहना चाहूंगा। यह भारत के हर काबिल डॉक्टर के दिल और दिमाग पर की गई भारी चोट है। 2 साल पहले, कोविड संकट के दौरान, मोदी सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों, उनकी संपत्ति और उनके कार्यस्थलों पर हमले को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बना दिया था। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करने पर 3 महीने से लेकर 5 साल तक की कैद और 50,000 रुपये से 2 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया। अगर हमलावर कोई गंभीर चोट पहुंचाते हैं, तो उन्हें 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि इलाज के दौरान अगर कोई अनहोनी होती है तो डॉक्टर को सीधे हत्यारा घोषित नहीं किया जा सकता। यह ठीक है लेकिन अगर इलाज के दौरान किसी मरीज की मौत हो जाती है तो हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? डॉक्टर मरीजों का इलाज करेंगे या कोर्ट में केस लड़ेंगे? क्या हम डॉक्टर अर्चना से ये उम्मीद करते कि बिना कसूर के पहले पुलिस उन्हें जेल में डाल दे, और फिर उनके डॉक्टर पति उनकी जमानत करवाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते। और क्या इसके बाद जब जमानत मिल जाए तो फिर बरसों तक अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए कोर्ट में केस लड़ते रहें?

डॉ. अर्चना शर्मा ने कोई गुनाह नहीं किया था, लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो उन्हें गुनहगार साबित करने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें हत्यारा कहा जा रहा था। उनका परेशान होना, उनके अच्छा इंसान होने, उनके बेगुनाह होने का सबूत है। सबसे ज्यादा दुख की बात ये है कि उन्हें अपनी जान देकर अपनी बेगुनाही का सबूत देना पड़ा। डॉ. अर्चना की मौत पूरे सिस्टम के लिए, पूरे समाज के लिए, पूरे देश के लिए कलंक है। उनके परिवार को इंसाफ मिलना ही चाहिए। उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने वाले पुलिसवालों पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा चलना चाहिए।

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