Rajat Sharma

महाकुंभ : भारतीय रेलवे ने अकल्पनीय को कैसे संभव बनाया

AKBआजकल हर जगह महाकुंभ की चर्चा है. जो मिलता है, वह या तो महाकुंभ में स्नान करके आया है या वहां जाने की तैयारी कर रहा है. संगम में डुबकी लगाने को लेकर लोगों में कमाल का उत्साह है.

महाकुंभ में स्नान करने वालों का आंकड़ा अब तक 55 करोड़ पार कर चुका है. महाकुंभ के 36 दिन बीत चुके हैं, अभी 9 दिन बाकी है और श्रद्धालुओं के जोश को देखते हुए लग रहा है कि इस बार महाकुंभ में पहुंचने वाले भक्तों की संख्या साठ करोड़ के पार जा सकती है.

देश के हर कोने से श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं. सबसे ज्यादा दबाव भारतीय रेलवे पर है. रेल आम आदमी की सवारी है, सस्ती और सुगम है. रेलवे ने महाकुंभ के दौरान 13 हजार से ज्यादा स्पेशल ट्रेन चलाने का इंतजाम किया था लेकिन भक्तों के उत्साह के सामने सारी तैयारियां नाकाफी साबित हो रही हैं. रेलवे स्टेशनों पर ज़बरदस्त भीड़ है. भीड़ के प्रबंधन के लिए रेलवे को रोज नए नए उपाय खोजने पड़ रहे हैं.

मैं रेल मंत्रालय के वॉर रूम में सोमवार को गया जहां महाकुंभ को जाने वाली हर ट्रेन को मॉनिटर किया जा रहा है. ये वॉर रूम चौबीसों घंटे काम कर रहा है. मुझे ये देखकर आश्चर्य हुआ कि वॉर रूम में रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सतीश कुमार खुद मौजूद थे. वो एक ज़माने में प्रयागराज और लखनऊ में जनरल मैनेजर रह चुके हैं. इन इलाकों की रेल लाइन के चप्पे-चप्पे को जानते हैं. रेसवे सुरक्षा बल के महानिदेशक मनोज यादव जैसे बड़े अधिकारी भी खुद हालात को मॉनिटर कर रहे हैं.

रेलवे ने महाकुंभ के लिए ढाई साल पहले तैयारी शुरू कर दी थी. प्रयागराज में बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचा खड़ा किया गया लेकिन ये कल्पना किसी ने नहीं की थी कि महाकुंभ में 50 करोड़ से ज्यादा लोग आएंगे. इसीलिए रणनीति को पूरी तरह से बदलना पड़ा.

सोमवार को महाकुंभ में एक करोड़ 35 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई. आमतौर पर ये माना जाता है कि माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद महाकुंभ की रौनक खत्म हो जाती है. 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा थी. उसके बाद कल्पवासी और अखाड़ों के साधू संत लौट चुके हैं लेकिन इसके बाद भी महाकुंभ में पहुंचने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. महाकुंभ शिवरात्रि तक चलेगा. शिवरात्रि के अमृत स्नान के साथ ही महाकुंभ का औपचारिक समापन होगा. मेला प्रशासन को उम्मीद है कि जो आठ दिन बचे हैं, उसमें भक्तों का जोश इसी तरह बरकरार रहेगा और 26 फरवरी तक महाकुभ में श्रद्धालुओं का आंकड़ा साठ करोड़ को पार कर जाएगा,

प्रयागराज शहर में बाहरी वाहनों का प्रवेश बंद है. स्टेशन, बस स्टॉप और पार्किंग से संगम क्षेत्र की तरफ आने जाने वाली सड़कों को सिर्फ पैदल चलने वाले भक्तों के लिए खाली रखा गया है. सड़कों पर भक्तों की भीड़ तो है लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ प्रयागराज के इर्द गिर्द आठ स्टेशनों पर है. लाखों श्रद्धालु ट्रेनों से प्रयागराज पहुंच रहे हैं. उन्हें संगम तक पहुंचाना और संगम से लौटने के बाद सही प्लेटफॉर्म तक, सही ट्रेन तक सुरक्षित पहुंचाना, यह रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.

सोमवार को प्रयागराज से 366 स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं. हर जगह होल्डिंग एरिया बनाया गया है. कलर कोडिंग लागू की गई हैं. अलग अलग दिशाओं में जाने वाली ट्रेनों के लिए अलग अलग रंग की टिकट दी जा रही है. जिस रंग की टिकट है, होल्डिंग एरिया को उसी रंग में रंगा गया है ताकि यात्रियों को किसी तरह का कोई भ्रम न हो. यात्रियों की मदद के लिए खड़े रेलवे पुलिस के जवान भी टिकट का रंग देखकर आसानी से लोगों को गाइड कर रहे हैं.

अगर किसी को प्रयागराज से कानुपर, दिल्ली, लुधियाना, चंडीगढ़ या जम्मू की तरफ जाना है, तो उसे हरे रंग का टिकट दिया गया है. वाराणसी, अयोध्या, जौनपुर, प्रतापगढ़ और उसके आसपास के इलाकों के लिए जिन लोगों को ट्रेन पकड़नी है, उन्हें लाल रंग वाला टिकट दिया जा रहा है. नीले रंग की कोडिंग वाले टिकट उन्हीं लोगों को मिलेगा जो बिहार, बंगाल या ओडिशा की तरफ जा रहे हैं. पीले रंग के कोड वाला टिकट मध्य प्रदेश और आसपास के इलाकों में जाने वाले यात्रियों को दिया जा रहा है.

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव खुद चौबीसों घंटे काम पर लगे हैं. प्रयागराज के सभी रेलवे स्टेशनों पर मिनी कंट्रोल रूम बनाए गए हैं. सोमवार को उत्तर प्रदेश से जो तस्वीरें आईं, वो अलग थीं. काशी, अयोध्या, मिर्जापुर, चंदौली हर जगह महाकुंभ जाने वालों की भीड़ तो दिखी लेकिन इन सभी स्टेशनों पर भीड़ काबू में थी.

चूंकि अखिलेश यादव लगातार महाकुंभ में क्राउड मैनेजमेंट पर सवाल खड़ कर रहे हैं, इसलिए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 2013 के कुंभ में 12 करोड़ श्रद्धालु आए थे, आयोजन 55 दिन का था, 2019 में अर्धकुंभ था, उस दौरान 24 करोड़ लोग आए थे, इस बार अब तक 45 दिन के कुल आयोजन में अभी 36 दिन हुए हैं और 36 दिन में 55 करोड़ श्रद्धालु आए.

योगी ने याद दिलाया कि “अतीत में हमने आस्था को केवल ये मान लिया कि इसमें कोई ताकत नहीं है, उसका दुष्परिणाम हमें भुगतना पड़ा, हम भारतीयों के मन में गुलामी के कालखंड में ये जो बात डाल दी गई कि जो भारतीय है उसे कमतर आंको, हमें बताया गया जो भारत का है, इसका कोई महत्व नहीं है और जो भारत के बाहर का है उसका महत्व है. दुष्परिणाम भी हमारे सामने थे. मोदी जी ने पहली बार अहसास कराया भारतवासियों को कि नहीं, हमें एक भारतीय के रूप में भारत से जुड़े हुए जीवन मूल्यों को, आस्था को महत्व देकर जीवन की महत्ता को बढ़ा सकते हैं.”

योगी आदित्यनाथ की ये बात सही है कि महाकुंभ ने भारतवासियों को अपने सनातन को, अपनी विरासत को, अपनी आस्था को एक नए स्वरूप में देखने, पहचानने का अवसर दिया है. इतने बड़े पैमाने पर आयोजन करना कोई आसान काम नहीं था.

महाकुंभ के आयोजन के दो तरीके हो सकते थे. एक तो ये कि 10-12 करोड़ लोग आएं, सबकुछ ठीक-ठाक हो जाए, और दूसरा रास्ता ये कि 50 करोड़ लोग आएं, इनके लिए प्रबंध करने में जान लगानी पड़े, सबके लिए स्नान, ध्यान, खाने पीने का प्रबंध हो. पहले वाले रास्ते में जोखिम नहीं था और दूसरा रास्ता चुनौती से भरा था.

योगी आदित्यनाथ ने दूसरा रास्ता चुना. यह एक मुश्किल काम था. इस पूरे अभियान में लोगों को महाकुंभ तक पहुंचाने में रेलवे का एक बड़ा रोल था. एक दिन में 300 से 350 तक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं. पटरियां वही है, स्टाफ वही है, लेकिन करोड़ों लोगों के आने जाने का इंतजाम हुआ. ये अपने आप में अकल्पनीय है.

अश्विनी वैष्णव ने रेलवे के इतिहास में अबतक के सबसे बड़े यात्री आवागमन को एक बड़ी चुनौती की तरह स्वीकार किया. ढाई साल तक तैयारियां कीं. खुद दिन-रात कुंभ की तरफ हो रहे आवागमन को मॉनिटर किया, तब जाकर यह संभव हो पाया. अच्छी बात ये है कि 55 करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्नान किया, भक्तिभाव से मां गंगा को नमन किया. ये अपने आप में सिर्फ एक रिकॉर्ड नहीं है, रिसर्च का विषय है.

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