Rajat Sharma

कोर्ट को तय करने दें कि ज़ुबैर ने सांप्रदायिक भावनाएं भड़काईं या नहीं

akbसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर दर्ज सभी मामलों में अंतरिम जमानत दे दी। साथ ही यूपी में दर्ज FIRs को जांच के लिए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को ट्रांसफर कर दिया। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यूपी पुलिस द्वारा गठित SIT को भंग कर दिया जाए। बेंच ने मोहम्मद जुबैर को ट्वीट करने से रोकने की याचिका को भी खारिज कर दिया।

मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 27 जून को गिरफ्तार किया था। वह सोशल मीडिया के जरिए अपने ट्वीट्स से नफरत फैलाने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के आरोप में 23 दिनों तक जेल में था। जुबैर के खिलाफ यूपी में 6 FIRs दर्ज की गईं थीं। ये FIRs गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और 2 हाथरस में दर्ज की गईं। जुबैर को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके पर बुधवार रात तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और ए. एस बोपन्ना की पीठ ने कहा, चूंकि उत्तर प्रदेश में दर्ज अधिकांश FIRs के कंटेंट जुबैर के ट्वीट पर आधारित है, और चूंकि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कथित विदेशी फंडिंग के आरोपों सहित उसके अधिकांश ट्वीट्स की व्यापक जांच कर रही है, उसे अलग-अलग FIRs में उलझाए रखना न्यायोचित नहीं होगा।

यूपी सरकार की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट से जुबैर को भविष्य में आपत्तिजनक ट्वीट पोस्ट करने से रोकने का अनुरोध किया, लेकिन बेंच ने उनके अनुरोध को खारिज करते हुए कहा, ‘एक पत्रकार को ट्वीट करने और लिखने से कैसे रोका जा सकता है? यह ऐसा ही जैसे एक वकील से कहा जाए कि वह बहस न करे। अगर वह ट्वीट कर किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उस पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जा सकती है। हर नागरिक सार्वजनिक रूप से जो कहता है उसके लिए जवाबदेह होता है। हम इस तरह की कोई पाबंदी नहीं लगाएंगे। हम यह नहीं कह सकते कि वह दोबारा ट्वीट नहीं करेगा।’

जुबैर को अंतरिम जमानत देते हुए बेंच ने कहा, ‘याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों की गंभीरता उसके द्वारा किए गए ट्वीट से संबंधित है। रिकॉर्ड से पता चला है कि दिल्ली पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता को निरंतर जांच के अधीन रखा गया है, हमें याचिकाकर्ता को उसकी स्वतंत्रता से और अधिक वंचित रखने का कोई कारण या औचित्य नजर नहीं आता।’
अदालत ने आगे कहा, ‘यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि गिरफ्तारी की शक्ति के अस्तित्व को गिरफ्तारी की कवायद से अलग रखा जाना चाहिए और गिरफ्तारी की शक्ति का इस्तेमाल संयम के साथ किया जाना चाहिए।’
इससे पहले यूपी सरकार की अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बेंच को बताया कि जुबैर ने मुसलमानों में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए जानबूझकर अपने ट्वीट में हेरफेर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि जुबैर को उसके ट्वीट के असर के आधार पर पैसे दिए गए। उन्होंने कहा, जुबैर सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए बयानों के साथ पुराने वीडियो पोस्ट करता था। शुक्रवार को मस्जिदों में उसके ट्वीट पर्चे पर छापकर मुसलमानों के बीच बांटे गए और इससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ।

गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को यह भी बताया कि जुबैर ने खुद कबूल किया है कि उसकी कंपनी को विदेशी स्रोतों से 2 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से 12 लाख रुपये आपत्तिजनक ट्वीट पोस्ट करने के लिए मिले। उन्होंने आरोप लगाया कि जुबैर ने नूपुर शर्मा के टीवी कमेंट को काट-छांट कर सोशल मीडिया पर वायरल किया, उन वीडियो को इंटरनेशनल मीडिया तक पहुंचाया। वकील ने आरोप लगाया कि उसके कई ट्वीट निराधार, फर्जी तस्वीरों और वीडियो पर आधारित थे, जिनकी वजह से यूपी के कई शहरों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया और दंगे के हालात बन गए। यूपी सरकार की वकील ने ऐसे सभी ट्वीट, फोटो और वीडियो को सबूत के तौर पर बेंच के सामने रखा।

असल मुद्दे पर आते हुए गरिमा प्रसाद ने कहा, नूपुर शर्मा ने 26 मई को एक टीवी डिबेट में हिस्सा लिया था। उन्होंने इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद साहब के बारे में गलत और गैरजरूरी कमेंट किया। अगले चौबीस घंटे तक किसी ने नूपुर की बात का नोटिस नहीं लिया, और बात आई गई हो गई, लेकिन फिर 27 मई को मुहम्मद ज़ुबैर ने उस टीवी डिबेट के एक हिस्से को काट-छांट कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। इस पोस्ट के साथ बहुत सारे लोगों को टैग किया, रीट्वीट किया। चूंकि जुबैर के ट्विटर पर, दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लाखों फॉलोअर हैं इसलिए नूपुर शर्मा से रिलेटेड उसके ट्वीट बहुत जल्दी वायरल हो गए।

गरिमा प्रासद ने दावा किया कि जुबैर और उसके साथी यहीं नहीं रूके। उन्होंने इंटरनेशनल मीडिया और अरब देशों के प्रभावशाली ट्विटर हैंडल्स को टैग करके नूपुर शर्मा का वीडियो पोस्ट किया जिससे दुनिया भर में, खास तौर से अरब देशों में माहौल बना। गरिमा प्रसाद ने एक और बेहद चौंकाने वाली बात कोर्ट को बताई। उन्होंने कहा कि जुबैर ने सिर्फ इंटरनेशनल लेवल पर इस मुद्दे को हवा नहीं दी, चूंकि नुपुर शर्मा के बयान की आलोचना हो रही थी, दूसरे देश इस मुद्दे पर बोल रहे थे, लेकिन हमारे देश में शान्ति थी और इससे जुबैर परेशान था।

उन्होंने कहा कि इसके बाद 5 और 6 जून को जुबैर ने ट्विटर पर लिखा कि नूपुर शर्मा के बयान के खिलाफ दुनिया भर से आवाज उठ रही है, लेकिन भारत के मुसलमान खामोश हैं। यूपी सरकार की वकील ने कहा कि जुबैर के इस तरह के ट्वीट के बाद ही नूपुर शर्मा के बयान पर जुबैर के ट्वीट को कई मस्जिदों में पैम्फलेट बनाकर बांटा गया। इसका असर ये हुआ कि 10 जून को यूपी के कई शहरों में दंगे हुए और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।

गरिमा प्रसाद ने जो बातें जुबैर के बारे में कहीं, इसी तरह की बात 27 जून को जुबैर को गिरफ्तार करने के बाद, दिल्ली पुलिस की IFSO यूनिट के हेड DCP केपीएस मल्होत्रा ने कही थी। केपीएस मलहोत्रा ने कहा था कि ज़ुबैर अपनी हरकतों से माहौल बिगाड़ने का काम कर रहा था।

हालांकि यूपी सरकार की वकील गरिमा प्रसाद ने मुहम्मद जुबैर के बारे में सुप्रीम कोर्ट को जो बताया, उसका जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने जमकर विरोध किया। वृंदा ग्रोवर ने दावा किया कि जुबैर ने माहौल नहीं बिगाड़ा, उसने देश के खिलाफ, सरकार के विरुद्ध कोई साजिश नहीं की, वह तो पत्रकार की हैसियत से अपना काम कर रहा था। लेकिन यूपी सरकार की वकील ने कहा कि जुबैर अहमद कोई पत्रकार नहीं, वह एक फैक्ट चेकर है जो फैक्ट चेक करने के नाम पर सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने का काम करता है।

मैंने भी जुबैर के ट्विटर एकाउंट की टाइमलाइन को खंगाला। यह बात बिल्कुल सही है कि जुबैर ने सबसे पहले 27 मई 2022 को नूपुर शर्मा की टीवी डिबेट की क्लिप ट्वीट की थी। उसने नूपुर शर्मा पर अनाप-शनाप बातें करने, पैगंबर का अपमान करने के आरोप लगाए थे। नूपुर शर्मा ने इसके जवाब में ट्वीट किया और जुबैर से कहा कि वह पूरी डिबेट की क्लिप डाले, न कि वीडियो को काट-छांटकर पेश करे।

नूपुर ने इस ट्वीट में दिल्ली पुलिस को भी टैग किया था। नूपुर शर्मा के ट्वीट के जवाब में जुबैर ने फिर ट्वीट करके दिल्ली पुलिस से नूपुर के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की। जुबैर के इस ट्वीट के कुछ घंटों के भीतर ही नूपुर शर्मा को जान से मारने की धमकियां मिलने लगी थीं। नूपुर ने ट्विटर पर ज़ुबैर को टैग करके इसकी शिकायत भी की और खुद को धमकी देने वाले ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट भी शेयर किए।

इसके बाद ज़ुबैर ने 5 और 6 जून को अरब देशों में भारतीय प्रोडक्ट के बायकॉट की खबरें ट्विटर हैंडल से शेयर कीं। उसने दावा किया कि कई देशों के स्टोर से भारत के सामान हटा लिए गए हैं। उसके बाद जब भी किसी मुस्लिम देश ने नूपुर शर्मा के कॉमेंट्स पर बयान दिया, प्रेस रिलीज जारी की तो जुबैर ने उसे ट्विटर पर शेयर किया और बताया कि यह सब ऑल्ट न्यूज यानी कि उसके ऑर्गेनाइजेशन की कोशिशों का ही नतीजा है।

गरिमा प्रसाद की यह बात भी सही है कि जुबैर के ट्वीट के बाद माहौल खराब हुआ और प्रयागराज, मुरादाबाद, कानपुर, रांची और सहारनपुर में जुमे की नमाज के बाद हिंसा हुई, दंगे हुए। कई शहरों में ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगे।

गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि जुबैर के संस्थान ऑल्ट न्यूज पर विदेशी फंडिंग लेने के आरोप हैं। इसी वजह से नूपुर शर्मा के बयान से जुड़े विवाद को उसने इंटरनेशनल लेवल पर प्रचारित किया। ब्रिटिश अखबार इंडिपेंडेंट ऑनलाइन ने लिखा था कि नूपुर के बयान को सबसे पहले जुबैर अहमद ने ही मुद्दा बनाया था।

एक ट्विटर यूजर हॉक आई ने बताया था कि किस तरह 3 जून को ट्विटर पर एंटी इंडिया प्रोपेगैंडा की शुरुआत हुई। पाकिस्तान के कुछ ट्विटर हैंडल्स ने नूपुर शर्मा के बयान को मुद्दा बनाकर, पूरी दुनिया में भारत विरोधी माहौल बनाया, बायकॉट इंडियन प्रोडक्ट को ट्रेंड कराया। भारत विरोधी इन ट्वीट्स में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था।

हॉक आई नाम के इस ट्विटर हैंडल ने लिखा था कि ट्विटर पर यह एंटी इंडिया कैंपेन किसी ऐसे प्रोफेशनल का काम है जो भारत की खबरों पर बारीक नजर रखता है, जिससे 5 जून तक यह ट्विटर पर जबरदस्त ट्रेंड करने लगा था। जुबैर ने तो साउथ एशियन इंडेक्स के बायकॉट इंडियन प्रोडक्ट वाला एक ट्वीट शेयर भी किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मुहम्मद ज़ुबैर को जमानत जरूर दे दी है, लेकिन उस पर लगे आरोपों को गलत नहीं ठहराया है, न ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने ज़ुबैर पर दर्ज केस रद्द किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उसके सारे केस दिल्ली ट्रांसफर कर दिए हैं, जिनकी जांच अब दिल्ली पुलिस करेगी।

अब सवाल यह है कि क्या मोहम्मद जुबैर को इसलिए जेल में डाला गया कि वह सरकार के खिलाफ लिखता था? क्या उसे इसलिए सलाखों के पीछे रहना पड़ा क्योंकि वह बीजेपी के विचारधारा के खिलाफ है? उसके खिलाफ लिखी गई FIR’s में, पुलिस की रिपोर्ट्स में, कोर्ट के सामने दी गई दलीलों में यह बात कहीं नहीं है।

मोहम्मद जुबैर पर आरोप तो ये हैं कि उसने नूपुर शर्मा के बयान को इश्यू बनाया, प्लानिंग करके फैलाया और लोगों की भावनाओं को भड़काया। उसने लोगों से उकसाया था कि वे प्रदर्शन करने आगे क्यों नहीं आ रहे। लेकिन तो भी अगर एक ही अपराध के लिए अलग-अलग FIR दर्ज की गई हैं तो यह ज्यादती है, इन्हें एक साथ जोड़ा जाना चाहिए। जब इल्जाम एक है तो अलग-अलग जांच और अलग-अलग केस का कोई औचित्य नहीं है।

जहां तक अपनी राय रखने की आजादी का सवाल है, वह मोहम्मद जुबैर का हक़ है, और वह हक़ उतना ही है जितना किसी और नागरिक का। लेकिन अगर कोई इस आजादी का इस्तेमाल लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए करे तो संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता। मैं अभिव्यक्ति की आजादी का पक्षधर हूं, मैंने बोलने और लिखने की आजादी के लिए जेल काटी है। इमरजेंसी के जमाने में मैं अडंरग्राउंड अखबार निकालते हुए पकड़ा गया था। लेकिन आज़ादी के साथ-साथ ज़िम्मेदारी भी होनी चाहिए।

नुपुर शर्मा ने पैगंबर साहब के बारे में जो कहा, वह गलत था, गैरज़रूरी था। उसकी निंदा होनी चाहिए थी और हो रही है। लेकिन यह भी सच है कि वह एक घंटे की डिबेट में 20-30 सेंकेन्ड का हिस्सा था। अगर मोहम्मद जुबैर उस क्लिप को जानबूझकर सोशल मीडिया पर पोस्ट न करता, उस क्लिप को इस तरह से वायरल न करता तो शायद समाज में इतना तनाव पैदा न होता।

अगर जुबैर ने यह काम अनजाने में किया होता तो इसे गलती मान कर नज़रअंदाज़ किया जा सकता था। लेकिन इल्जाम तो यही है कि जुबैर ने सोच-समझकर, भड़काने की नीयत से ही वह क्लिप वायरल की। इसलिए इस मामले की जांच तो होनी चाहिए। अब मामला अदालत में है, जांच के बाद सारे तथ्य सामने आएंगे और अदालत फैसला करेगी।

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