Rajat Sharma

लद्दाख में हिंसा : साज़िश या जनाक्रोश?

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लद्दाख की राजधानी लेह में कर्फ्यू लागू है जबकि कारगिल में भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 के तहत 5 से ज्यादा लोगों के इकट्ठे होने पर पाबंदी लगाई गई है.
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले हिंसा पर उतर आए. लेह में CRPF और पुलिस की गाड़ियों को जला दिया गया. BJP के कार्यालय में आग लगा दी गई. लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय परिषद के दफ़्तर में तोड़-फोड़ की गई. पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिसमें चार लोग मारे गए. हिसंका में करीब 90 लोग घायल हैं.
लेह में CRPF की सात कंपनियां पहले से ही तैनात हैं. CRPF की चार और कंपनियों को कश्मीर से लद्दाख भेजा गया हैं. Indo-Tibetan Border Police को भी लेह में तैनात किया गया है.
लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठवीं अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने की मांग को लेकर कई संगठन अनशन कर रहे थे. पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 15 दिन से भूख हड़ताल पर थे.
मंगलवार को अनशन में शामिल दो लोगों की तबीयत ख़राब हो गई. इसके बाद बुधवार को हजारों लोग सड़क पर आ गए, पथराव और आगजनी शुरू हो गई. भीड़ ने सबसे पहले लद्दाख स्वायत्त परिषद के कार्यालय में तोड़फोड़ की. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. जब लाठीचार्ज हुआ तो नाराज़ लोगों ने पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया.
बीजेपी का आरोप है कि लेह में हिंसा और आगजनी कांग्रेस के एक पार्षद के इशारे पर हुई. बीजेपी IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक वीडियो शेयर करके दावा किया कि भीड़ ने कांग्रेस पार्षद स्टानज़िन सेपॉग के उकसावे पर बीजेपी दफ़्तर पर हमला किया.
चूंकि इस आंदोलन की अगुवाई सोनम वांगचुक कर रहे हैं, इसलिए जैसे ही हिंसा की खबर आई तो उन्होने अपना अनशन खत्म करने का ऐलान कर दिया और शान्ति की अपील की. वांगचुक ने कहा कि न उनका इस हिंसा से कोई लेना देना हैं और न कांग्रेस के किसी नेता में इतनी ताकत है कि वो लेह में हजारों नौजवानों को सड़क पर ला सके.
वांगुचक ने कहा कि लद्दाख के लोग पिछले पांच साल से अपने हक़ के लिए शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन कर रहे थे, सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी, इसलिए हताश होकर कुछ लोग सड़क पर आ गए.
लद्दाख के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा चाहते हैं. उनकी मांग है कि कारगिल और लेह को अलग-अलग लोकसभा सीट बनाया जाए. लद्दाख की अपनी विधानसभा हो, सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की भर्ती हो.
लद्दाख में आंदोलन करने वालों के साथ उच्चस्तरीय समिति की बातचीत के लिए केंद्र सरकार ने कई दिन पहले 6 अक्टूबर की तारीख तय की थी, अनौपचारिक बातचीत 26 सितंबर को होनी थी. उसके बावजूद लेह में तोड़फोड़ और आगजनी हुई. इसका logic समझना मुश्किल है.
सवाल ये है कि क्या ये सब कुछ पर्वनियोजित साज़िश थी ? क्या नौजवानों को किसी ने भड़काया ? अपनी मांगें मनवाने का ये तरीका ठीक नहीं है. लोकतंत्र में हिंसा करने का हक किसी को नहीं है. बीजेपी वाले कह रहे हैं कि ये कांग्रेस ने करवाया क्योंकि कांग्रेस भारत में नेपाल जैसे हालात पैदा करना चाहती है.
सोनम वांगचुक का दावा है कि लेह लद्दाख में कांग्रेस में इतना दम ही नहीं है कि वो ये करवा पाए. वांगचुक ने हिंसा की निंदा की है पर साथ-साथ लोगों के गुस्से को जायज ठहराया.
कुछ लोगों ने इसका मतलब ये निकाला कि वांगचुक ने पहले तोड़फोड़ करने वालों को भड़काया और बाद में उनसे शांति कायम करने की अपील की. तो क्या बात वांगचुक के काबू से बाहर निकल गई थी ? वो चाहकर भी हिंसा को नहीं रोक पाए या फिर इसके पीछे कोई बड़ी साजिश थी. चाहे जो भी हो, जिन लोगों ने ये किया, वो पकड़े भी जाएंगे और उनके पीछे कौन है, ये भी जल्द सामने आएगा.

बिहार में मुस्लिम, अति पिछड़ा वोटों के लिए रस्साकशी शुरू

बिहार में ज़बरदस्त सियासी हलचल जारी है. पटना में 85 साल के बाद, आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई. महागठबंधन के नेताओं ने अति पिछड़ा सम्मेलन किया. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों ने मिलकर अति पिछड़ों के लिए दस सूत्री कार्यक्रम शुरु किया. असदुद्दीन ओवैसी की बिहार में छह रैलियां हुईं. जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशान्त किशोर ने सीमांचल में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ संवाद किया. बीजेपी ने बिहार के 26 जिलों के नेताओं के साथ विचार विमर्श किया. दिल्ली में NDA के नेताओं की सीट शेयरिंग पर बात हुई.
सब काम पर लगे हैं लेकिन असली लड़ाई मुस्लिम वोटों को लेकर दिखाई दी. ओवैसी ने साफ कह दिया कि तेजस्वी यादव उनकी पार्टी को छह सीटें भी देने को तैयार नहीं हैं, इसीलिए AIMIM सीमांचल में पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ेगी और RJD को हराएगी.
नीतीश कुमार ने दावा किया कि मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी तो वो हैं, उनकी सरकार ने मदरसों की बेहतरी से लेकर कब्रिस्तानों की देखरेख तक मुसलमानों के लिए तमाम काम किए हैं.
प्रशान्त किशोर ने कहा कि अकेले वो हैं जो मुसलमानों को उनका हक देना चाहते हैं जबकि RJD, कांग्रेस या ओवैसी, ये सब बीजेपी का डर दिखाकर मुसलमानों का वोट लेना चाहते हैं.
सीमांचल में सीटें तो सिर्फ 24 हैं, लेकिन RJD, JD-U, कांग्रेस, प्रशान्त किशोर या ओवैसी, सबका फोकस सीमांचल पर है.
ओवैसी अपनी हर रैली में कह रहे हैं कि बीजेपी तो ऑपरेशन लोटस करती है, लेकिन बिहार में RJD ने ऑपरेशन लालटेन कर दिया, उनकी पार्टी के चार विधायकों को अपने खेमे में कर लिया लेकिन उनकी पार्टी इस बार फिर RJD के उम्मीदवारों को हराएगी.
मजे की बात ये है कि मुस्लिम वोटों की उम्मीद नीतीश कुमार को भी है. नीतीश कुमार भी आजकल मुस्लिम इलाकों में घूम रहे हैं, मुसलमानों को बता रहे हैं कि पिछले बीस साल में उन्होंने मुसलमानों के लिए क्या-क्या काम किए.
बिहार में जब भी चुनाव होते हैं, तो ये मान लिया जाता है कि मुसलमानों के वोट बीजेपी को तो नहीं मिलेंगे. दूसरी बात ये मानी जाती है कि इसका ज्यादातर हिस्सा वहां जाएगा जहां लालू यादव होंगे.
पिछले विधानसभा चुनाव में सीमांचल में ओवैसी ने पांच सीटें जीत कर इस धारणा को गलत साबित कर दिया था. ये अलग बात है कि RJD ने ओवैसी के पांच में 4 MLA’s तोड़ लिए. इसके बावजूद इस बार ओवैसी RJD के दरवाजे पर खड़े हैं, 6 सीटें मांग रहे हैं. उसकी वजह ये है कि वह नहीं चाहते, उन्हें बीजेपी की B-टीम कहा जाए.
RJD के लोग ओवैसी की पार्टी को वोट काटकर बीजेपी की परोक्ष रूप से मदद करने वाली पार्टी बताते हैं. ओवैसी अपने ऊपर लगे इस tag को हटाना चाहते हैं.
इस बार प्रशांत किशोर के रूप में एक नया factor भी है. प्रशांत किशोर मुसलमानों को 40 टिकट देने का ऐलान कर चुके हैं. अगर थोड़े बहुत मुस्लिम वोट भी उनके साथ जाते हैं तो अब तक के स्थापित समीकरण बदल जाएंगे.
RJD और कांग्रेस को लगता है कि मुसलमानों के पास कोई विकल्प नहीं है. .मुसलमानों के वोट महागठबंधन को ही मिलेंगे. इसलिए अब महागठबंधन का फोकस दलितों और पिछड़ों के वोट पर है. चूंकि पिछड़ों में सत्तर फीसद से ज्यादा आबादी अति पिछड़े वर्ग की है, इसलिए महागठबंधन ने पटना में अतिपछड़ा न्याय सम्मेलन किया और उनके लिए न्याय संकल्प पत्र जारी किया.
बिहार के अति पिछड़ा वोटर के बारे में धारणा ये है कि ऐसे वोटरों का बहुमत नीतीश कुमार के साथ है. इसीलिए नीतीश कुमार जिस गठबंधन का हिस्सा होते हैं उसकी जीत पक्की कर देते हैं. इसीलिए राहुल गांधी और तेजस्वी अति पिछड़ों पर डोरे डालने में लगे हैं. लेकिन बिहार में नीतीश कुमार की पकड़ गजब की है. चाहे जो हो जाए, उनके समर्थक उनका साथ नहीं छोड़ते. इसीलिए नीतीश कुमार 20 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
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