Rajat Sharma

क्या उत्तराखंड का समान नागरिक कानून इस्लाम विरोधी है ?

AKBउत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता कानून लाने का वादा पूरा किया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने UCC बिल विधानसभा में पेश किया. जब ये कानून बन जाएगा तो समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा. इस विधेयक के मुताबिक, अब उत्तराखंड में बिना तलाक दिए दूसरी शादी करने पर पूरी तरह पाबंदी होगी. शादी, तलाक और उत्तराधिकार के नियम सबके लिए बराबर होंगे. अभी इन मामलों में अलग अलग धर्मों के लिए अपनी अपनी परंपराएं हैं. मुसलमानों को चार शादियों की इजाज़त है लेकिन समान संहिता लागू होने के बाद ऐसा नहीं होगा. अब सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी और तलाक़ के नियम एक जैसे होंगे और महिलाओं को पति या पिता की संपत्ति में बराबरी का हक होगा. अब मुस्लिम महिलाएं भी बच्चे गोद ले सकेंगी, गोद लेने के नियम भी एक जैसे होंगे. सबसे बड़ी बात ये है कि अब उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप को भी शादी की तरह सामाजिक सुरक्षा दी गई है. लिव-इन कपल्स को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. कांग्रेस ने यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाले इस बिल का विरोध नहीं किया लेकिन पार्टी ने इस विधेयक पर गहराई से विचार करने के लिए मोहलत मांगी. बिल में शादी की न्यूनतम आयु सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सभी धर्मों में शादी के वक्त लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. नियम तो पहले भी यही था लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो रहा था. लेकिन अब उत्तराखंड में रहने वाले हर मजहब के लोगों को इसका सख्ती से पालन करना होगा. ये कानून सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, पवित्र बंधन, आनंद विवाह अधिनियम, स्पेशल मैरिज एक्ट या आर्य विवाह अधिनियम, किसी भी तरह से होने वाली शादी पर लागू होगा. शादी किसी भी रीति रिवाज से हुई हो, लेकिन उसका रजिस्ट्रेशन कराना अब सबके लिए जरूरी होगा. उत्तराखंड का कोई भी निवासी मजहब की आड़ लेकर तलाक नहीं दे सकता. बिल में ये प्रावधान किया गया है कि शादी होने के एक साल तक कोई भी शख्स तलाक़ का आवेदन फाइल नहीं कर सकता. अब तलाक़ के मजहबी तरीके मान्य नहीं होंगे, कानूनी तरीके से ही तलाक़ लेना होगा. तलाक़ के बाद रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी होगा. बिल में बहुविवाह और पुनर्विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. इसके लिए सख्त सज़ा और जुर्माना तय किया गया है. कोई शख्स अगर गैरकानूनी तरीके से तलाक़ देता है तो उसे 6 महीने जेल की सजा होगी और 50 हजार रुपये जुर्माना देना पड़ेगा. एक पत्नी के होते हुए कोई दूसरी शादी करता है तो उसे 3 साल की सजा और 1 लाख रुपये जुर्माना देना होगा. इस बिल में लिव-इन पार्टनर्स के लिए भी नियम बनाए गए हैं. लिव इन में रहने वाले कपल्स को अब रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा. अगर एक महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन के बिना लिव-इन पार्टनर्स साथ रहते हैं तो 10 हजार रुपये जुर्माना या 3 महीने की सजा हो सकती है. लिव इन में रहते समय अगर कोई संतान होती है तो उसे लीगल माना जाएगा. उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी दोनों लिव-इन पार्टनर्स की होगी. इसके अलावा पेरेंट्स की प्रॉपर्टी में भी बच्चे का अधिकार होगा. अगर लिव-इन रिलेशनशिप टूटती है तो दोनों पार्टनर्स को इसकी जानकारी रजिस्ट्रार को देनी होगी. दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी होगा. मुस्लिम संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ साथ बहुत से मौलाना इस कानून को इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ बता रहे हैं. उत्तराखंड इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस ने कहा कि ड्राफ्ट कमेटी ने मुसलमानों की राय को नजरअंदाज़ किया. मुफ्ती रईस ने कहा कि ये कानून सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने के लिए लाया जा रहा है क्योंकि अगर ये कानून सबके लिए है तो फिर इससे अनुसूचित जनजातियों को अलग क्यों रखा गया. मैं याद दिला दूं कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन तलाक़ के खिलाफ कानून बनाया था, उस वक्त भी इसी तरह की बातें कही गईं थी. लेकिन मुस्लिम महिलाओं ने इसका स्वागत किया, मोदी का समर्थन किया तो मौलाना, मौलवी खामोश हो गए. अब UCC को लेकर उसी तरह का विरोध हो रहा है. हालांकि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वो कानून में कमियां नहीं बता रहे हैं. वे सिर्फ दो सवाल उठा रहे हैं. पहला, ये कानून मुसलमानों के खिलाफ है. जो लोग ये बात कह रहे हैं वो ये भी कहते हैं कि इस्लाम में पहले ही महिलाओं को बराबरी का हक दिया गया है, पति की संपत्ति में पत्नी को, पिता का जायदाद में बेटी को हक़ दिया जाता है. बिना किसी कारण के पत्नी को छोड़ना गुनाह है. यही बातें तो इस कानून में कही गई है. फिर ये इस्लाम के खिलाफ कैसे हो गया? दूसरी और बड़ी बात ये है कि आजकल लिव-इन का चलन बढ़ा है. इसके कारण तमाम तरह की दिक्कतें सामने आ रही है. हमने श्रद्धा वालकर जैसे कई केस देखे. इस कानून में अब लिव-इन का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया गया है. माता पिता को इसकी जानकारी देना जरूरी है. इस तरह के प्रावधान से जो लोग अपनी पहचान छुपा कर लड़कियों से संबंध बनाते हैं या परिवार को बिना बताए साथ रहते हैं और बाद में लड़की को छोड़ देते हैं, वे ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि ये लीगली binding होगी. इससे लड़कियों पर होने वाले अत्याचार रूकेंगे. इस कानून में न निकाह का मतलब बदला है, न रिवाज़ बदले हैं, न तलाक़ को गैरकानूनी बनाया गया है, न पुरूषों के हक़ कम किए गए हैं. बस महिलाओं के मिलने वाले अधिकारों को मजबूत बनाया गया है, कानूनी बनाया गया है. इसलिए मुझे लगता है कि यूनीफॉर्म सिविल कोड को इस्लाम के खिलाफ बताना बेमानी है, इस्लामिक शिक्षाओं का अपमान है. हालांकि मुझे लगता है कि इस कानून को जल्दबाजी में पास नहीं करना चाहिए. इस पर खुली बहस होनी चाहिए, सबको अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए. दूसरा, मुसलमानों को ये समझाने का विशेष प्रयास होना चाहिए कि ये कानून उनके फायदे के लिए है, ये उनकी जिंदगी को बेहतर बनाएगा, ये कानून बराबरी के अधिकार के लिए है, किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं.

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