भारतीय जनता पार्टी ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया है और उसकी सीटों की संख्या चार से छलांग लगा कर 48 तक पहुंच गई है. नगर निगम में अब भाजपा दूसरे स्थान पर है। उसने चुनाव में कांग्रेस को लगभग ध्वस्त कर दिया और कांग्रेस की सीटों की संख्या दो पर सिमट कर रह गई है।
बीजेपी ने नगर निगम के इस चुनाव में जिस तरह की ताकत झोंकी वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। पार्टी ने यहां बहुत कुछ दांव पर लगाया। हैदराबाद में चुनाव प्रचार करने के लिए खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा उतरे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी चुनाव प्रचार करने आए और इसका जबरदस्त फायदा बीजेपी को मिला।
मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) भले ही 56 सीटें जीतकर पहले नंबर पर है, लेकिन चुनाव परिणामों से साफ है कि बीजेपी ने टीआरएस के गढ़ में खासी घुसपैठ की है। चुनाव के नतीजे टीआरएस के लिए ही सबसे ज्यादा खतरे की घंटी हैं। पिछले चुनाव में टीआरएस ने 150 में से 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार टीआरएस की 43 सीटें घट गई। यह नतीजा टीआरएस के लिए साफ संदेश है कि पार्टी का जनाधार टूटने लगा है।
बीजेपी की ताकत बढ़ने का सीधा असर केसीआर की राजनीति पर पड़ेगा। 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में बीजेपी और ज्यादा दमखम के साथ मैदान में उतरेगी। हैदराबाद में बीजेपी के उभरने और टीआरएस के कमजोर पड़ने का असर पूरे तेलंगाना पर होगा। ये नतीजे संकेत हैं कि तेलंगाना की राजनीति बदल सकती है। कर्नाटक के बाद तेलंगाना में बीजेपी के लिए दक्षिण भारत में एंट्री का दूसरा दरवाजा खुल गया है। बीजेपी ने तेलंगाना में अपना जनाधार मजबूत किया है और अब उसकी नजरें अगले विधानसभा चुनावों पर टिकी हैं।
पांच साल पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी पांचवें नंबर की पार्टी थी लेकिन अब उसने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है और दूसरे नंबर की पार्टी हो गई है। हैदराबाद में बीजेपी इतनी सीटें जीत ले ये बड़ी बात है। यह राज्य में चल रही परिवर्तन की लहर का साफ संकेत है।
इस चुनाव में ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) ने 51 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती है। अब ओवैसी दावा कर सकते हैं कि वो मुसलमानों के सबसे बड़े नेता हैं। उनकी पार्टी ने उन्हीं इलाकों में चुनाव लड़ा था जहां मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं। ओवैसी की पार्टी ने अपने गढ़ पुराने हैदराबाद के इलाकों में ज्यादातर सीटें जीती है। उधर, टीआरएस चीफ चंद्रशेखर राव के लिए ये नतीजे खतरे की घंटी साबित हो सकते हैं। वो किसी तरह हैदराबाद में अपना मेयर तो बना लेंगे पर बीजेपी का डर अब उन्हें हर रोज सताएगा ।
सबसे बुरी हालत तो कांग्रेस की हो गई है। कांग्रेस ने 150 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ 2 सीटों पर जीत नसीब हुई। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस ये भी नहीं कह सकती कि ईवीएम में गड़बड़ी हुई। क्योंकि यहां चुनाव ईवीएम से नहीं बल्कि बैलट पेपर से हुए थे।
इस चुनाव परिणाम से चार साफ संकेत सामने आए हैं। एक, दक्षिण भारत के इस राज्य में बीजेपी को अपने प्रयोगा का अच्छा नतीजा मिला है। बीजेपी के नेता और कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ गया है और ये दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए एक नई शुरुआत है। दूसरा, बीजेपी ने पहली बार नगर निगम चुनाव में प्रचार के लिए अपने राष्ट्रीय नेताओं को उतारा और एक स्पष्ट रणनीति के साथ चुनाव लड़ा और यह सफल रहा। तीसरा, हैदराबाद के नतीजों ने दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए दूसरा दरवाज़ा खोल दिया हैं। एक तरफ बैंगलुरू है जहां बीजेपी के पैर पहले से जमे हैं वहीं अब दूसरा दरवाजा हैदराबाद में खुला है। चौथा, तेलंगाना में बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है।
बीजेपी ने 2018 के बाद से तेलंगाना में जो रफ्तार पकड़ी है उसे रोकना केसीआर के लिए बहुत मुश्किल होगा। 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 7 प्रतिशत था लेकिन कुछ महीने बाद 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 20 प्रतिशत हो गया। उस समय से लेकर आज तक बीजेपी ने अपनी ताकत लगातार बढाई है।
हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों का एक संदेश असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के नतीजों में छिपा है। यह चुनाव ओवैसी के लिए भी काफी अहम था क्योंकि उनकी परीक्षा उनके अपने घर में हो रही थी। ओवैसी ने इस चुनाव को सधी हुई रणनीति के साथ लड़ा और 150 वॉर्ड वाले हैदराबाद नगर निगम में सिर्फ 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे।
ओवैसी ने उन सीटों पर ताकत लगाई जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद ज्यादा है। ओवैसी की इस रणनीति का एआईएमआईएम को जबरदस्त फायदा हुआ। ओवैसी 51 सीटों पर लड़े और 44 पर जीते। ओवैसी की पार्टी का स्ट्राइक रेट देखें तो यह 84 प्रतिशत के करीब रहा। अगर हैदराबाद में ओवैसी की ताकत कम हो जाती तो उनके लिए बाहर जाकर चुनाव लड़ना मुश्किल हो जाता। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारने की जो प्लानिंग ओवैसी कर रहे हैं,उस पर भी ब्रेक लग जाता। अब वे बंगाल पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करता है।
हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजे ऐसे हैं कि तीनों पार्टियां- टीआरएस, बीजेपी और एआईएमआईएम इसे अपनी जीत बता रही हैं। बीजेपी का कहना है कि हमारी सीटें 4 से बढकर 48 हो गईं और वोट ढाई प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया, इस हिसाब से ये बीजेपी की जीत है। ओवैसी कह रहे हैं कि हमारी स्ट्राइक रेट देखिए, हम 51 सीटों पर लड़े और 44 जीते। इससे बड़ी जीत क्या हो सकती है? टीआरएस 57 सीटों पर जीती जबकि पिछली बार उनके पास 99 सीटें थीं, लेकिन उनके यहां भी जश्न मनाया जा रहा है क्योंकि वो सबसे बड़ी पार्टी है। टीआरएस का कहना है कि हमने बीजेपी को मेयर बनाने से रोक दिया है, ये हमारी जीत है।
इस चुनाव में अगर कोई एक पार्टी है जो न जीत का दावा कर सकती है और न जश्न मना सकती है तो वो कांग्रेस है। कांग्रेस को बड़ी मुश्किल से नगर निगम की दो सीटों पर जीत मिली है। नतीजे सामने आने के बाद पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया और केंद्रीय नेतृत्व अवाक् है। हैदराबाद नगर निगम चुनाव नतीजों का मतलब ये है कि अब तक तेलंगाना में टीआरएस को कांग्रेस चुनौती देती थी लेकिन अब बीजेपी चैलेंजर बन गई है।