गुजरात की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में 38 मुजरिमों को शुक्रवार को सजा-ए-मौत और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनायी। आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी एक केस में अदालत ने इतनी बड़ी संख्या में मुजरिमों को मौत की सजा सुनाई है। इससे पहले 1998 में राजीव गांधी की हत्या के मामले में एक TADA अदालत ने सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।
14 साल पहले, 26 जुलाई 2008 को सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 20 से ज्यादा बम ब्लास्ट को अंजाम दिया था जिसमें 56 बेगुनाह लोगों की मौत हो गई थी और 200 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे।
स्पेशल जज एआर पटेल ने 7,000 से अधिक पन्नो के अपने फैसले में लिखा, ‘अगर ऐसे लोगों को समाज का हिस्सा बनने दिया जाता है, तो यह मासूम लोगों के बीच आदमखोर तेंदुओं को खुला छोड़ने के बराबर होगा।’ स्पेशल जज ने कहा, ‘चूंकि उन्होंने मासूमों पर कोई दया नहीं दिखाई, इसलिए इस अदालत के पास उनके ऊपर दया दिखाने का कोई कारण नहीं है।’
सजा पाने वाले सभी 49 मुजरिम फिलहाल 6 शहरों जयपुर, अहमदाबाद, गया, तलोजा, भोपाल और बेंगलुरु की जेलों में बंद हैं। अपने फैसले में, स्पेशल जज ने जिहाद और आतंकवाद के बीच अंतर करने के लिए कुरान का हवाला दिया और धार्मिक संगठनों से इन आतंकवादी संगठनों का बहिष्कार करने की अपील की। जज ने कहा कि मुजरिमों का मकसद गोधरा के बाद हुए दंगों के दौरान हुई हत्याओं का बदला लेना था। इसीलिए उन्होंने धमाके करने के लिए अहमदाबाद के हिंदू आबादी वाले इलाकों को चुना। जज ने कहा कि आतंकवादियों ने धमाके करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में प्लानिंग की और ट्रेनिंग कैंप आयोजित किए।
स्पेशल जज ने कहा कि यह मामला इसलिए रेयरेस्ट ऑफ रेयर है क्योंकि मुजरिमों ने न सिर्फ ब्लास्ट किए, बल्कि ब्लास्ट के बाद जो लोग अस्पताल लाए गए, उन्हें भी टारगेट किया क्योंकि आतंकवादियों को पता था कि जख्मी लोग अस्पताल लाए जाएंगे तो उनके परिजन, अधिकारी और मंत्री भी अस्पताल पहुंचेंगे।
स्पेशल जज ए. आर. पटेल ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि आतंकवादियों के निसाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह और स्थानीय बीजेपी विधायक प्रतापसिंह जाडेजा भी थे। यह तो नरेंद्र मोदी का नसीब था कि वह इन धमाकों का निशाना बनने से बच गए। यानी मुजरिमों का टारगेट आम जनता ही नहीं, राज्य की हुकूमत भी थी। जज ने कहा, आतंकवादियों का इरादा उपद्रव और अराजकता पैदा करके इस्लामिक राज कायम करने का था। जज ने कहा, ‘अगर ऐसे लोग देश में रहकर, राष्ट्र विरोधी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं, तो ऐसे लोगों को उम्र कैद की सजा देकर, जेल में रखकर पालने की जरूरत नहीं है, और सजा-ए मौत ही एकलौता रास्ता है।’
स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सुधीर ब्रह्मभट्ट ने फैसले को मील का पत्थर बताया, जो देश में आतंकवादी हमलों को रोकने में मददगार होगा। गुजरात के पुलिस महानिदेशक आशीष भाटिया 2008 में धमाकों के वक्त अहमदाबाद पुलिस में संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) थे। अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट की जांच उन्हीं की निगरानी में हुई थी। स्पेशल जज ने अपने फैसले में आतंकियों और धमाकों की साजिश रचने वालों को शिकंजे में लेने के लिए तारीफ की।
गुजरात की पुलिस ने जिस तरह से इस मामले की जांच की, उसने पूरे भारत में फैले इंडियन मुजाहिदीन के नेटवर्क का पर्दाफाश कर दिया। मामले की जांच करने वाली टीम ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह की निगरानी में काम किया। सरकारी वकील सुधीर ब्रह्मभट्ट ने भी इस केस की कामयाबी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रोल की तारीफ की।
जब अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे उस समय आईपीएस अभय चूड़ासमा, अहमदाबाद पुलिस में डीजीपी क्राइम थे। उन्होंने इस केस की जांच में अहम भूमिका निभाई थी। चूड़ासमा इस वक्त गांधीनगर रेंज के IG हैं। उन्होंने इंडिया टीवी से कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सीरियल ब्लास्ट पर आया यह फैसला एक मिसाल बनेगा।
अहमदाबाद की अदालत फैसला निश्चित रूप से गुजरात पुलिस की जांच और लीगल टीम की मेहनत का नतीजा है. लेकिन इसका क्रेडिट गुजरात की उस वक्त की सरकार को, उस वक्त के राजनीतिक नेतृत्व को भी देना चाहिए। अहमदाबाद में सीरियल ब्लास्ट नरेंद्र मोदी के लिए डायरेक्ट चैलेंज था। वह उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे जबकि अमित शाह सूबे के गृह मंत्री थे। अहमदाबाद में एक के बाद एक 20 से ज्यादा धमाके करके आतंकवादियों ने लीडरशिप को बड़ी चुनौती दी थी। मोदी ब्लास्ट के फौरन बाद अहमदाबाद पहुंचे और अधिकारियों से बात करके लेटेस्ट अपडेट लिया। इसके बाद तुरंत ही मोदी घटनास्थल पर भी जाना चाहते थे। वह अस्पताल जाकर घायलों से भी मिलना चाहते थे, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि अधिकांश इलाके सुरक्षित नहीं थे और ब्लास्ट हो रहे थे। पहले ब्लास्ट के 2 घंटे बाद अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी जोरदार धमाका हो चुका था।
नरेंद्र मोदी अधिकारियों की चेतावनी के बाद भी नहीं रूके, घटनास्थल का दौरा किया और अस्पताल जाकर मरीजों से भी मिले। इस तरह मोदी ने अपनी स्ट्रॉन्ग लीडरशिप से गुजरात की जनता को एक बड़ा मैसेज दिया कि दुख की इस घड़ी में सरकार उनके साथ है, मुख्यमंत्री उनके बीच हैं। इसके साथ-साथ मोदी ने पुलिस अधिकारियों को भी निर्देश दिया कि वे जल्द से जल्द इन धमाकों के मुजरिमों को कानून की गिरफ्त में लें।
इस बात का जिक्र 13 साल पहले, 4 अप्रैल 2009 को ‘आप की अदालत’ शो में भी हुआ था। नरेंद्र मोदी ने तब बताया था कि किस तरह गुजरात की पुलिस ने अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट की जांच को एक मिसाल बना दिया, और कैसे उनकी सरकार की आतंकवाद विरोधी नीति को देश के दूसरे राज्यों ने भी अपनाया।
नरेंद्र मोदी से लोगों के लाख मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। आतंकवाद का मुकाबला करने का जो जज्बा नरेंद्र मोदी में है, उस पर किसी को शक नहीं होना चाहिए। स्पेशल कोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया है कि कैसे नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य में आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ा। मोदी ने अपनी इच्छाशक्ति से आतंकवादियों और उनके सरगनाओं को उनके अंजाम तक पहुंचाया।
शुक्रवार की रात अपने ‘आज की बात’ शो में मैंने ‘आप की अदालत’ शो की जो वीडियो क्लिप दिखाई थी, वह इस बात का सबूत है कि मोदी जब मुख्यमंत्री थे तभी से वह दहशतगर्दी को जड़ से खत्म करने का इरादा रखते थे। ‘आप की अदालत’ शो में मैंने मोदी से पूछा था कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के वक्त अगर वह प्रधानमंत्री होते तो क्या करते।
मुझे मोदी का जवाब अभी भी याद है। उन्होंने कहा था, ‘हमें पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। ये लव लेटर लिखना बंद करना चाहिए और अमेरिका के सामने पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर रोना बंद होना चाहिए।’ प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया। उन्होंने हमारी फौज को खुली छूट दे दी और हमारे जांबाज बहादुर फौजियों ने 2-2 बार पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा।
मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री की इस इच्छाशक्ति का हम सबको सम्मान करना चाहिए। राजनीतिक दलों के नेता घरेलू मुद्दों पर आपस में लड़ सकते हैं, एक-दूसरे का विरोध कर सकते हैं, लेकिन जब बात आतंकवाद की आए, उसे फलने-फूलने में मदद करने वाले पाकिस्तान की आए, तो सभी राजनीतिक दलों और पूरे देश को एकजुट खड़े होना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सबको एक होना चाहिए।