
बिहार चुनाव के नतीजे आ गए. NDA की ऐतिहासिक जीत हुई. महागठबंधन की ऐतिहासिक हार हुई. नरेन्द्र मोदी का मैजिक चला, नीतीश कुमार का नेतृत्व जीता.
90 परसेंट ट्राइक रेट के साथ बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. जनता दल यूनाइटेड ने 85 सीटों पर परचम लहराया. चिराग पासवान ने 19 सीटें जीत कर कमाल कर दिया.
दूसरी तरफ महागठबंधन में जिस तरह का बिखराव कैंपेन के वक्त दिख रहा था, वैसा ही बिखराव नतीजों में दिखा. कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा. RJD सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई. Son of Mallah मुकेश सहनी की नैय्या पूरी तरह डूब गई. उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला. कांग्रेस सिर्फ 6 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन तो असदुद्दीन ओबैसी की पार्टी ने किया. AIMIM ने पांच सीटें जीतीं.
हार के बाद कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव आयोग पर हमले शुरू कर दिए, लेकिन नीतीश कुमार ने दिखा दिया की टाइगर न सिर्फ जिंदा है, बल्कि ताकतवर भी है.
ये तो तय है कि नीतीश कुमार दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे. बिहार चुनाव के नतीजों का सियासी मतलब क्या है, जीतने वालों के संदेश और हारने वालों के लिए सबक क्या हैं, बिहार के नतीजों का देश की सियासत पर क्या असर होगा, ये सब समझने की ज़रूरत है.
दिल्ली में बीजेपी पार्टी मुख्यालय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस एतिहासिक जीत के लिए बिहार के लोगों को धन्यवाद दिया. मोदी ने कांग्रेस को परजीवी, मुस्लिम माओवादी कांग्रेस कहा और यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में जल्द विभाजन हो सकता है क्योंकि बहुत से नेता पार्टी के नेतृत्व से खुश नही है.
मोदी ने साफ कह दिया कि उनका अगला लक्ष्य बंगाल को जीतना है. मोदी ने कहा कि गंगा बिहार से जाकर बंगाल में बहती है और इस बार बंगाल से जंगलराज को उखाड़ कर फेंका जाएगा.
मोदी ने कहा कि इस बार बिहार की जनता ने गर्दा उड़ा दिया, बिहार के लोगों ने मतदान के सारे रिकॉर्ड़ तोड़ दिये, बिहार के युवाओं ने जंगलराज वालों के पुराने और साम्प्रदायिक तुष्टीकरण वाले MY फॉर्मूले को ध्वस्त कर दिया. इसकी जगह नया सकारात्मक MY फ़ार्मूला, महिला और युवा, अपना लिया. मोदी ने कहा कि अब बिहार में “कट्टा सरकार कभी नहीं लौटेगी.” मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने डंके की चोट पर कह दिया है कि वो ज़मानत पर चलने वाले लोगों का साथ नहीं देगी.
प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज में नीतीश कुमार के नेतृत्व की तारीफ की, बिहार में विजय के लिए नीतीश कुमार को पूरा श्रेय दिया, उसके बाद विरोधी दलों के उन नेताओं के मन से भी ये भ्रम निकल गया होगा कि बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा.
नीतीश पिछली बार जब मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त उनकी पार्टी की सिर्फ 43 सीटें थी, लेकिन इसे बार जेडीयू ने दोगुनी सीटें जीती हैं. 85 सीट जीतकर जेडीयू ने अपने इतिहास की दूसरी सबसे श्रेष्ठ परफॉर्मेंस दी है. जेडीयू नेता ललन सिंह ने कहा कि अब सबको पता चल गया है कि बिहार के असली टाइगर नीतीश कुमार ही हैं.
इस बात में तो कोई शक नहीं है कि नीतीश कुमार ही बिहार के टाइगर साबित हुए. उन्होंने खामोशी से अपना दमखम दिखा दिया. चुनाव नतीजे देखने के बाद एक बात साफ है, इस जीत के पीछे नरेन्द्र मोदी के प्रति भरोसा और नीतीश कुमार के नेतृत्व के साथ साथ NDA की एकजुटता बड़ी वजह है. NDA पांडवों की तरफ एकजुट होकर लड़ा और विपक्ष बिखरा रहा. नतीजा वही हुआ, जो महाभारत का हुआ था.
बिहार में NDA में शामिल सभी पांचों दल यानी BJP, JDU, LJP, HUM और RLM के बीच गज़ब का तालमेल रहा. एक भी सीट पर फ्रेंडली फाइट की नौबत नहीं आई, सीट शेयरिंग से लेकर चुनाव प्रचार में शानदार सिनर्जी रही.
चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने इस बार शानदार प्रदर्शन किया. सिर्फ 28 सीटों पर लड़ने के बाद वो बिहार में चौथे नंबर की पार्टी बनकर उभरी. तेजस्वी चिराग पासवान को राजनीति का नया खिलाड़ी बता रहे थे, पर उन्होने ने नतीजों के जरिए तेजस्वी को जवाब दे दिया.
RJD 143 पर लड़कर सिर्फ 25 सीटें जीत पाई लेकिन चिराग पासवान की पार्टी के 28 में से 19 उम्मीदवार जीते. नतीजे आने के बाद चिराग पासवान ने तेजस्वी यादव को आईना दिखाया.चिराग ने कहा कि तेजस्वी का घमंड उन्हें ले डूबा.
बिहार के चुनाव नतीजों में अगर किसी ने सबसे ज्यादा चौंकाया, तो वो हैं, असदुद्दीन ओवैसी. पिछली बार की तरह इस बार भी ओवैसी बिहार चुनाव के X फैक्टर साबित हुए.
ओवैसी सीमांचल के मुसलमान वोटर्स को ये समझाने में कामयाब रहे कि आरजेडी और कांग्रेस के लोग उनका वोट तो लेंगे लेकिन सत्ता मिलने के बाद मुसलमानों को सिर्फ दरी बिछाने का काम मिलेगा. ओवैसी का ये दांव चल गया.
सीमांचल में महागठबंधन साफ हो गया. ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की. पिछली बार भी ओवैसी की पार्टी के पांच उम्मीदवार जीते थे, लेकिन जीतने के बाद चार ने पार्टी छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया.
ओवैसी ने इस बार उसका बदला पूरा कर लिया. उनकी पार्टी के उम्मीदवार पिछली बार की तुलना में ज्यादा अन्तर से जीते. ओवैसी की पार्टी जिन पांच सीटों पर जीती है, वहां जीत के अन्तर की औसत 27 हज़ार वोट से ज्यादा है.
महागठबंधन ने 31 मुसलमानों को टिकट दिया था और जीते सिर्फ चार. स्ट्राइक रेट रहा 12 परसेंट. ये भी इस बात का साफ संकेत है कि महागठबंधन से मुसलमानों का मोहभंग हो रहा है.
बड़ी बात ये है कि NDA ने 5 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और एक को कामयाबी मिली. ये इस बात का संकेत है कि अब बीजेपी से मुसलमानों को डराने का फॉर्मूला भी नाकाम हो रहा है. विकास के मुद्दे पर मुस्लिम भी NDA का समर्थन कर रहे हैं.
महागठबंधन में मायूसी है. मुकेश सहनी जो खुद को सन ऑफ मल्लाह बताकर डिप्टी सीएम बनने का ख्वाब देख रहे, वह ज़ीरो पर आउट हो गए. कांग्रेस सिंगल डिजिट पर सिमट गई. बिहार में पांचवे नंबर की पार्टी बन गई. RJD को 25 सीट मिली हैं. पिछली बार से 54 सीट कम.
कांग्रेस का हाल तो और भी बुरा हुआ है. महागठबंधन में सबसे ज़्यादा सिर-फुटौव्वल कांग्रेस की वजह से हुई. कांग्रेस ने तेजस्वी पर दबाव डाल कर 61 सीटें तो ले ली, लेकिन सिर्फ 6 सीट जीत सकी.स्ट्राइक रेट 10 परसेंट से भी कम. पिछली बार कांग्रेस 70 सीट पर लड़ी थी, 19 पर जीती और स्ट्राइक रेट था करीब 30 परसेंट, लेकिन कांग्रेस इस बार खुद भी डूबी, RJD को भी ले डूबी.
सबसे ज्यादा दुर्गति मुकेश सहनी की हुई. उनकी पार्टी 12 सीटों पर लड़ी लेकिन खाता भी नहीं खुला. मुकेश सहनी ने बिहार की जनता के ईमान पर ही सवाल उठा दिए. मुकेश सहनी ने कहा कि बीजेपी ने महिलाओं को सरकारी खजाने से दस दस हजार रूपए बांटकर वोट खरीद लिए. अगर महिलाओं के खातों में पैसा न जाता, तो नतीजे कुछ और होते.
मुकेश सहनी अब हार के कुछ भी बहाने बनाएं लेकिन हकीकत तो यही है कि महागठबंधन में जिस तरह की खींचतान चल रही थी, उसका असर वोटर्स पर हुआ. हालात ये थे कि वोटिंग से एक दिन पहले गोरा बोराम सीट पर अपने भाई को मैदान से हटाना पडा, फिर भी 11 सीटों पर फ्रेंडली फाइट हुई. चुनाव प्रचार में भी महागठबंधन में कोई तालमेल नहीं था. इसके बाद NDA ने बिहार के लोगों को लालू के जंगलराज की याद दिलाई.
मोदी, अमित शाह, योगी, एनडीए के हर नेता ने जंगलराज और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर महागठबंधन को घेरा. हालत ये हो गई कि तेजस्वी यादव ने लालू यादव को कैंपेन से दूर रखा लेकिन फिर भी जंगलराज की काली छाया से नहीं निकल पाए.
इस चुनाव में सबसे ज़्यादा दुर्गति कांग्रेस की हुई. 61 सीटों पर लड़ी, सिर्फ 6 सीटें जीत पायी, बिहार में पांचवे नंबर की पार्टी हो गई.चिराग पासवान की पार्टी को कांग्रेस से तीन गुना ज्यादा सीटें मिलीं. ओवैसी और जीतनराम मांझी का परफॉर्मेंस भी कांग्रेस से बेहतर रहा, लेकिन इतनी करारी हार से भी राहुल गांधी ने कोई सबक नहीं सीखा.
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा – बिहार का यह परिणाम वाकई चौंकाने वाला है। हम एक ऐसे चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सके, जो शुरू से ही निष्पक्ष नहीं था.
नतीजे आने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने भी चुनाव आयोग को निशाना बनाया. अशोक गहलोत से लेकर भूपेश बघेल तक सब ने कहा कि एनडीए जनता के समर्थन से नहीं, चुनाव आयोग के समर्थन से जीता है.
बिहार में NDA की ज़बरदस्त जीत कैसे हुई, इसे अगर कुछ वाक्यों में समझना हो, तो ये हैं:
— NDA ने मिल कर चुनाव लड़ा. MGB वाले आपस में लड़े.
— मोदी ने नीतीश को मान दिया, राहुल ने तेजस्वी का अपमान किया.
— मोदी का “मेरा बूथ सबसे मजबूत” गेमचेंजर बना. बीजेपी के तमाम मुख्यमंत्रियों, नेताओं, सांसदों और विधायकों ने कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर यह सुनिश्चित किया कि जनता एनडीए को वोट दे.
— इसी तरह प्रधानमंत्री को चोर कहना राहुल गांधी को उल्टा पड़ा. राहुल गांधी जब भी नरेंद्र मोदी पर पसर्नल अटैक करते हैं, जनता उसे स्वीकार नहीं करती. आपको याद होगा, 2019 में राहुल गांधी ने “चौकीदार चोर है” का नारा दिया था. उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा था.
— इसी तरह, मोदी को MY (महिलाओं -युवाओं) का वोट मिला, जबकि तेजस्वी यादव का MY (मुसलमान-यादव) वोट बंट गया. बिहार के लोगों ने मौसम बदल दिया.
राहुल गांधी ने बिहार के नतीजों के बारे में सोशल मीडिया के जरिए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है.
जो ये नहीं समझ पा रहे हैं कि वो बार-बार चुनाव क्यों हारते हैं, जिनका diagnosis ही गलत है, वो मर्ज़ कैसे ठीक करेंगे. अब यही कहना पड़ेगा, “उम्र भर वो नेता यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पे थी, वो आइना साफ़ करता रहा”.
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