Rajat Sharma

यूपी के चुनावी दंगल में अपराधियों की कैसे हुई वापसी?

rajat-sir बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को यह बता दिया कि बीजेपी के चुनाव प्रचार का फोकस क्या होगा। उन्होंने बाहुबली और अपराधिक चरित्र के नेताओं पर जमकर निशाना साधा। योगी ने कहा कि विधानसभा चुनाव के लिए जारी की गई समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट, इस पार्टी के ‘दंगा प्रेमी’ और ‘तमंचावादी’ होने का सबूत है। उन्होंने कहा-‘उत्तर प्रदेश की जनता पलायन नहीं, प्रगति चाहती है। जनता दंगे और अपराधियों से मुक्त प्रदेश चाहती है।’

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि पिछले 5 साल में दंगाई और पेशेवर अपराधी या तो राज्य छोड़कर भाग गए थे या जेल में चले गए थे। लेकिन अब उनमें से कई को अखिलेश यादव ने टिकट दिया है। योगी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में ही सहारनपुर और मुज़फ़्फ़रनगर के दंगाई, कैराना में हिन्दुओं के पलायन के ज़िम्मेदार लोगों को टिकट देकर अपनी मानसिकता साफ कर दी है।

मैंने इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स से इन तमाम विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि खंगालने को कहा। इन उम्मीदवारों के एफिडेविट चेक किए गए और हमारे रिपोर्टर्स ने इन उम्मीदवारों से बात की। इन उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि और इनके मुकदमों की लिस्ट देखेंगे तो आप चकित रह जाएंगे।

सबसे पहले कैराना की बात करते हैं। यहां से समाजवादी पार्टी ने नाहिद हसन को उम्मीदवार बनाया है। जब नाहिद हसन को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया था उस वक्त वो फरार चल रहा था। लेकिन जब नाहिद पर्चा दाखिल करने गया तो पुलिस ने उसे दबोच लिया। अदालत ने नाहिद हसन को 14 दिन की कस्टडी में जेल भेज दिया है।

नाहिद का जब पुराना रिकॉर्ड खंगाला गया तो पता चला कि उसपर अभी कुल 17 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें हत्या की कोशिश, बलवा, दंगा करने, लोगों पर हमला करने, धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और समाज में वैमनस्यता पैदा करने के मामले हैं। नाहिद के खिलाफ गुंडा एक्ट और गैंगस्टर एक्ट भी लगा है। एक साल पहले स्थानीय अदालत ने नाहिद हसन को भगोड़ा घोषित कर दिया था। लेकिन जैसे ही समाजवादी पार्टी ने उसे उम्मीदवार बनाया उसके अगले ही दिन वह नमांकन दाखिल करने पहुंच गया। लेकिन नामांकन दाखिल करने से पहले ही पुलिस ने नाहिद को पकड़ लिया। नाहिद को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। चूंकि जमानत की उम्मीद कम है इसलिए बैकअप के तौर पर नाहिद हसन की बहन इकरा हसन ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। नामांकन दाखिल करने के बाद इकरा हसन ने कहा कि उनके भाई पर जितने भी मामले चल रहे हैं वो फर्जी हैं। जबकि सच्चाई ये है नाहिद पर दर्ज कुल 17 मामलों में से ज्यादातर मामले योगी के सत्ता में आने से पहले दर्ज हो चुके थे।

उधर, हापुड़ के धौलाना सीट से समाजवादी पार्टी ने असलम चौधरी को टिकट दिया है। असलम चौधरी पर 10 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें दफा 307 यानी हत्या की कोशिश, जान से मारने की धमकी, जमीनों पर जबरन कब्जे और गैंगस्टर एक्ट के तहत मामले चल रहे हैं। असलम चौधरी दंगे की साजिश करने, भड़काऊ बयान देकर बलवा कराने के मामले में भी आरोपी हैं। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने जब असलम चौधरी से उनपर चल रहे मुकदमों के बारे में पूछा तो उन्होंने ज्यादातर मुकदमों को झूठा और फर्जी बताया। हर मुकदमे की एक कहानी सुना दी। इसके बाद उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा मुकदमे तो योगी के खिलाफ थे, तो योगी साधु और हम अपराधी कैसे हो गए?असलम चौधरी बीएसपी के विधायक थे और कुछ दिन पहले ही समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं। असलम चौधरी ने अपने हलफनामे में 10 मुकदमों का जिक्र किया है लेकिन पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके खिलाफ कुल 21 केस लंबित हैं।

मेरठ शहर विधानसभा सीट से रफीक अंसारी सपा के उम्मीदवार हैं। रफीक अंसारी का दावा है कि उनपर हत्या की कोशिश का सिर्फ एक केस चल रहा है। यह मामला वर्ष 2007 का है। इस मामले में कोर्ट ने रफीक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था जिस पर उन्होंने हाईकोर्ट से स्टे ले रखा है। रफीक अंसारी समाजवादी के मौजूदा विधायक हैं।

हाजी यूनुस बुलंदशहर सीट से राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के उम्मीदवार हैं। उनके खिलाफ हत्या की कोशिश का केस चल रहा है। यह केस समाजवादी पार्टी की सरकार के वक्त दर्ज हुआ था। लेकिन जनाब का कहना है कि यह झूठा मामला है। वे इस मुकदमे को लड़ाई-झगड़े का मामला बता रहे हैं। हाजी यूनुस के खिलाफ सात मुक़दमे चल रहे हैं। इनमें रेप, हत्या की कोशिश, जान से मारने की धमकी और मारपीट जैसे संगीन मुकदमे हैं। हालांकि हाजी यूनुस कह रहे हैं कि उनपर कोई गंभीर केस नहीं है और जो भी मामले हैं वो पारिवारिक विवादों से जुड़े हैं। हाजी यूनुस ने कहा कि अगर हमारी सरकार बन गई और उनके नेता मुख्यमंत्री बन गए तो उनके मुकदमे भी एक घंटे में खत्म हो जाएंगे।

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की लिस्ट लंबी है। मदन सिंह कसाना ऊर्फ मदन भैया को आरएलडी ने लोनी सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। लोनी इलाके में उनका खौफ है, उनकी छवि एक बाहुबली नेता की है। कुछ दिन पहले जब सीएम योगी आदित्यनाथ नोएडा में चुनाव प्रचार के लिए आए थे तब उन्होंने मदन भैया का नाम लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना भी साधा था। मदन भैया ने शुक्रवार को अपने राजनीतिक विरोधियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे हद में रहकर चुनावी बातें करें, वरना याद रखें कि उनका नाम मदन भैया है। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने मदन भैया से कहा कि यह तो धमकी वाला अंदाज है, इसीलिए लोग आपको बाहुबली कहते हैं। इस पर मदन भैया ने कहा-‘बाहुबली होना बुरा नहीं है, बाहुबली तो बजरंगबली भी हैं।’ मदन भैया ने कहा, उनके खिलाफ केवल दो मामले लंबित हैं और दोनों राजनीति से प्रेरित हैं।

एक बात तो हम सबने देखी कि यूपी में योगी सरकार ने अपने पांच साल के शासन में अपराधियों, गैंगस्टर्स और असामाजिक तत्वों के खिलाफ जबरदस्त एक्शन लिया। उनकी प्रॉपर्टी जब्त की, सरकारी जमीनों से कब्जे को हटाया। करीब 1500 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वसूली। योगी सरकार आने से पहले किसी ने ऐसा नज़ारा नहीं देखा था कि अपराधी हाथ जोड़कर, गले में तख्ती लटकाकर थाने में पहुंचे और कहे कि जेल भेज दो वरना पुलिस ठोक देगी। क्या पहले कभी किसी ने देखा कि अदालत में अपराधी अपनी जमानत को रद्द करवाने के लिए आवेदन दे और कहे कि उसे जेल जाना है। जेल में वो ज्यादा सुरक्षित है। जेल से बाहर पुलिस एनकाउंटर कर देगी।

यह सही है कि योगी ने अपराधियों के दिल में कानून, पुलिस और प्रशासन का खौफ तो पैदा किया है। इसमें कोई दो राय नहीं है। योगी के राजनीतिक विरोधी भी इस बात को मानते हैं। लेकिन राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीति में आना आज भी जारी है। इसे रोकने के लिए कानून भी बनाए गए लेकिन अपराधी उससे बचने का रास्ता ढूंढ लेते हैं। कानून यह है कि अगर किसी को दो साल से ज्यादा की सजा होती है तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता। लेकिन सजा होने में 20 साल लग जाते हैं, तब तक वो कई बार चुनाव लड़ चुका होता है और कई बार तो मंत्री भी बन चुका होता है। दूसरी बात यह है कि अपराधियों के खिलाफ कितने केस चल रहे हैं, इसकी जानकारी जनता को नहीं होती।

इस बार चुनाव आयोग ने यह नियम बनाया था कि उम्मीदवारों को अपने आपराधिक रिकॉर्ड का पूरा ब्यौरा अखबारों में छपवाना होगा। जनता को बताना होगा। साथ ही राजनीतिक दल जिन लोगों को टिकट देंगे उनके खिलाफ चल रहे मामलों की जानकारी वेबसाइट पर डालनी होगी। अब यह नियम तो बन गया लेकिन जब हमारे रिपोर्टर्स ने समाजवादी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट देखी तो पता चला कि ब्यौरा तो अपलोड किया गया है लेकिन उसे देखकर कोई समझ ही नहीं सकता कि किसके खिलाफ कौन से अपराध का केस चल रहा है। वेबसाइट पर तमाम धाराएं लिख दी गई हैं जिससे आम आदमी यह नहीं समझ पाता कि अपराधी कितना बड़ा है और उस पर किस अपराध के लिए केस दर्ज हुआ है। चुनाव आयोग को इस कमी पर ध्यान देना चाहिए।

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