Rajat Sharma

शहरों से लेकर गांवों तक कैसे फैल रही है कोरोना महामारी

AKBसबसे पहले आपको एक अच्छी खबर बता दूं कि कोरोना की दूसरी लहर में कमी के आसार दिख रहे हैं। लगातार दूसरे दिन संक्रमण के नए मामले 3.5 लाख (3,48,371) से नीचे रहे और मार्च के बाद पहली बार लगातार तीसरे दिन एक्टिव मामलों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। एक्टिव मामलों में 4 हजार की कमी आई है और कुल आंकड़ा 3.7 लाख हो गया है। वहीं कोरोना संक्रमण से होनेवाली मौत का आंकड़ा बढ़ गया है। मंगलवार को कुल 4205 लोगों की कोरोना से मौत हो गई जो अबतक एक दिन में सबसे ज्यादा है। इस महामारी की शुरुआत के बाद से मंगलवार तक देशभर में कोरोना से कुल ढाई लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

अब कई लोग ये कह सकते हैं कि चूंकि कई जगह RTPCR रिपोर्ट आने में देर हो रही है, कुछ जगहों पर टेस्टिंग भी कम हो रही है, इसलिए हो सकता है कि ये फैक्ट सही तस्वीर ना दिखाएं। वैसे ये बात तो सही है कि कुछ जगहों पर कोरोना की रिपोर्ट देरी से आ रही है। दरअसल तथ्य ये है कि रोजाना 15 लाख से 18 लाख के बीच टेस्ट हो रहे हैं और इसमें कोई कमी नहीं आई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश के 18 राज्यों में एक ठहराव सा नजर आ रहा है। इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा और उत्तराखंड के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली शामिल हैं, जो महामारी के कारण पिछले दो महीनों से बुरी तरह झुलस रहे थे। फिर भी 26 राज्य ऐसे है जहां पॉजिटिविटी रेट 15 प्रतिशत से ज्यादा है।

कर्नाटक में कोरोना के नए मामलों में तेज उछाल देखने को मिल रहा है। बेंगलुरु ने संक्रमण के मामलों में पुणे को पीछे छोड़ दिया है। मुंबई, नागपुर, पुणे जो पहले कोरोना के हॉटस्पॉट हुआ करते थे और जहां से रोजाना 10,000 से ज्यादा नए मामले आते थे, लेकिन अब इन शहरों मे संक्रमण के मामलों में गिरावट आई है। कल मुंबई से केवल 1,717 मामले आए, नागपुर से 2,243 मामले सामने आए, जबकि पुणे में पॉजिटिविटी रेट 42 फीसदी से घटकर 23 फीसदी हो गई है।

केंद्र सरकार ने कहा कि जिस तरह मुंबई और पुणे के प्रशासन ने काम किया वो दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण है। अब ये मुंबई मॉडल क्या है? दो करोड़ की आबादी वाला मुंबई शहर एक महीने पहले तक कोरोना का केंद्र था, लेकिन आज यहां 2000 से भी कम मामले आ रहे हैं। मुंबई में जब कोरोना के मामले बढ़े तो वहां लोगों को दिल्ली की तरह बेड और ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ा। मुंबई में जैसे ही कोरोना के केस बढ़ने लगे तो पूरी मुंबई को 24 वार्ड्स में बांट दिया गया। हर वॉर्ड का एक कोरोना कंट्रोल रूम बनाया गया। हर कंट्रोल रूम में डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस तैनात किए गए। सैकड़ों एसयूवी को एंबुलेंस में बदला गया। हर वॉर्ड के कंट्रोल रूम में मरीज़ों के टेस्ट रिपोर्ट भेजे जाते थे। हर कंट्रोल रूम को ये पता रहता था कि उनके वॉर्ड में कितने केस बढ़े। कंट्रोल रूम में बैठे डॉक्टर मरीज़ों के संपर्क में रहते थे और उन्हें गाइड करते थे। जिसे हॉस्पिटल बेड या ऑक्सीजन बेड की जरूरत पड़ती थी उसे भर्ती कराने में मदद करते थे। इसलिए मुंबई में आईसीयू बेड और ऑक्सीजन के लिए उतनी चीख-पुकार नहीं मची। अच्छी प्लानिंग का ही नतीजा है कि मुंबई में हालात काबू में आते दिखाई दे रहे हैं।

देश के बड़े शहरों में तो हालात सुधर रहे हैं लेकिन अब असली चिंता गांवों की है, क्योंकि गांव में कोरोना तेजी से फैल रहा है। ऐसे 13 राज्य हैं जहां शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में कोरोना के मामलों की संख्या ज्यादा है। इनमें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। इस बात की आशंका है कि दूर-दराज गांवों से कोरोना के मामले सामने नहीं आ रहे हैं क्योंकि टेस्टिंग उस स्तर पर नहीं हो पा रही है, लोग भी उतने जागरूक नहीं है। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात और उत्तर पूर्व के मिज़ोरम, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा सहित 11 राज्यों में कोरोना के जो नए मामले आ रहे हैं, उनमें ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से हैं।

मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे झोलछाप डॉक्टर मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में खुले मैदान में पेड़ों के नीचे कोरोना से संक्रमित ग्रामीणों का इलाज कर रहा था। किसी को बदन दर्द की शिकायत थी, किसी को खांसी बुखार आ रहा था। यानी ज्यादातर ऐसे मरीज़ थे जिन्हें कोरोना के लक्षण थे। झोलछाप डॉक्टर ग्रामीणों को बुखार और मल्टीविटामिन कैप्सूल देकर इलाज कर रहा था। इस झोलाछाप डॉक्टर के पिता के पास रजिस्टर्ड डॉक्टर की डिग्री थी लेकिन उसके पास कोई डिग्री नहीं थी। उसने पिता के साथ काम करके अनुभव से सारी चीजें सीखी थी।

मध्य प्रदेश के रतलाम में तो हालत और खराब नजर आई। यहां के मेडिकल कॉलेज का हाल ये था कि मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के लिए बेड उपलब्ध नहीं थे। सारे बेड्स फुल हो चुके थे,इसीलिए जो लोग कोरोना के लक्षण लेकर अस्पताल पहुंच रहे थे, उनको कॉरिडोर में ही मेकशिफ्ट अरेंजमेंट करके लिटा दिया गया। यहां लाइन से कोरोना के संदिग्ध मरीज थे। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया था।

मध्य प्रदेश के गांवों जैसा हाल यूपी में भी है। यूपी के गांवों में भी कोरोना महामारी अपना प्रकोप दिखा रही है। उन्नाव, कानपुर, बाराबंकी और आगरा सहित कई जिलों के गांवों से कोरोना फैलने की खबर आ रही है। आगरा के कुरगवां गांव में पिछले 20 दिन में 14 लोगों की मौत से हड़कंप मच गया है। गांववाले डर गए हैं। कुरगवां गांव में 15 अप्रैल के बाद से लोगों में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए। लेकिन लोगों ने इन लक्षणों को हल्के में लिया और ये लापरवाही काफी भारी पड़ी। स्वास्थ्य विभाग की टीम को कुरगवां भेजा गया। स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर चेकअप कर रही है। अब तक 22 लोगों की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है। गांव के कुछ लोगों ने बताया कि कुरगवां में कोरोना इंफेक्शन फैलने की बड़ी वजह लापरवाही है। बीमार लोगों ने सावधानी नहीं बरती।

कमोबेश यही हालेत पड़ोसी राज्य राजस्थान में भी है। इंडिया टीवी रिपोर्टर ने दौसा के जोड़ा गांव का दौरा किया। इस गांव में करीब 45 लोग कोरोना पॉजिटिव हैं। कई लोग ऐसे हैं जिनका टेस्ट भी नहीं हुआ है। कोरोना का ऐसा खौफ है कि लोग घरों में बंद हैं। कुछ लोग तो खेतों में बनी झोपड़ियों में रह रहे हैं। गांव में कई लोग ऐसे हैं जो खांसी, जुकाम और बुखार से पीड़ित हैं लेकिन टेस्ट नहीं होने की वजह से साफ नहीं हो पा रहा है कि वो कोरोना पॉजिटिव हैं या नहीं। इस गांव में पिछले10 दिन में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

गांवों में महामारी का खतरा ज्यादा इसलिए है क्योंकि वहां बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा की कमी है। देश में करीब 6 लाख से ज्यादा गांव हैं, जिनमें करीब 80-85 करोड़ लोग रहते हैं। यहां लोग टेस्ट करने से डरते हैं, उन्हें लगता है टेस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव आईे तो गांव वाले बहिष्कार कर देंगे, अछूत समझा जाएगा। लोग सरकारी अस्पताल में जाने से कतराते हैं, गांव मे रहकर ही इलाज कराना चाहते हैं। इसलिए राज्य सरकारों को चाहिए कि गांवों में रैपिड एंटीजेन टेस्ट की संख्या बढ़ाए और कोरोना के लक्षण दिखते ही लोगों को आइसोलेट किया जाए। ये बड़ी चुनौती है लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है। क्योंकि अगर गांवों में कोरोना फैला तो उसे कंट्रोल करने में बहुत वक्त लग जाएगा।

ग्रामीण इलाकों में महामारी के खतरे अधिक हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। पूरे भारत में 6 लाख से अधिक गांवों में 80 से 85 करोड़ लोग रहते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधा दुर्लभ है। राज्य सरकारों को गांवों में बड़े पैमाने पर रैपिड एंटीजन टेस्ट करवाने चाहिए और जिन लोगों का पॉजिटिव टेस्ट किया जाता है, उन्हें महामारी फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया जाए। यदि वायरस ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फैलता है, तो सरकारों के लिए यह बहुत मुश्किल काम होगा।

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