Rajat Sharma

कांग्रेस के बारे में अरुण जेटली का कथन कैसे अक्षरश: सही साबित हो रहा है

अरुण जेटली कांग्रेस के कट्टर विरोधी थे, लेकिन कांग्रेसियों के दुश्मन नहीं थे। वे कांग्रेस के विचार का विरोध करते थे। जेटली ने कांग्रेस के नेताओं को कभी अपना राजनीतिक दुश्मन नहीं माना बल्कि उन्हें अपना राजनीतिक विरोधी मानते रहे। कांग्रेस के कई बड़े-बड़े नेताओं ने कई बार मुझसे कहा कि आज अरुण जी होते तो राजनीति में इतनी कड़वाहट न होती। सब पूछते हैं कि अब अगर बीजेपी में बात करनी हो तो किसके पास जाएं? किससे बात करें? कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जो अरुण जी के व्यक्तिगत दोस्त थे और उनसे दिल खोलकर बातें करते थे।

AKB_frame_402भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता अरुण जेटली ने अपनी मृत्यु से ठीक 18 दिन पहले 6 अगस्त 2019 को अपने फेसबुक पेज पर कांग्रेस के बारे में लिखा था। जेटली ने लिखा था, ‘कांग्रेस पार्टी एक हेडलेस चिकन की तरह है जो देश के लोगों से अब और भी दूर होती जा रही है। नया भारत बदल चुका है। केवल कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पा रही है। लगता है कि कांग्रेस का नेतृत्व इस बात को लेकर कृतसंकल्प है कि वह अधोगति की ओर दौड़ में प्रथम आकर रहेगा। ‘

‘आकांक्षाओं से भरे भारतवासियों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे विकास चाहते हैं और एक ऐसा नेतृत्व चाहते हैं जो देश को सर्वोपरि मानता हो और जनता के लिए अथक प्रयास भी करता हो।‘ – लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद 23 मई, 2019 को अरुण जेटली ने फेसबुक पर लिखा, ‘एस्पिरेशनल इंडिया राजसी, वंशवादी और जाति आधारित पार्टियों को स्वीकार नहीं करता । यहां नकली मुद्दे काम नहीं करते। अंतिम परिणाम उसी दिशा की ओर इशारा कर रहे हैं जो एग्जिट पोल के नतीजे बता रहें हैं। उन लोगों की जवाबदेही क्या है जिन्होने VVPAT मसले को उछालकर भारत के लोकतंत्र को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया? ”

20 मई 2019 को अरुण जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘जाति से ऊपर उठकर और अपने परफॉर्मेंस से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली को मतदाताओं के बीच कहीं ज्यादा स्वीकार्यता मिली है। मैं अतीत में कही गयी अपनी इस बात पर ज़ोर देकर फिर से कहना चाहूंगा कि कांग्रेस का ‘प्रथम परिवार’ पार्टी की पुश्तैनी थाती न रह कर गले में लटका पत्थर बनता जा रहा है।’

ये मेरे परम मित्र अरुण जेटली के शब्द थे। हम सबके अजीज अरुण जेटली को अलविदा कहे एक साल पूरा हो गया। पिछले साल जेटली हम सबको छोड़कर इस दुनिया से दूर चले गए। लेकिन करोड़ों लोगों के दिल में वो जैसे पहले रहते थे, वैसे आज भी हैं। मुझे तो आज भी यकीन नहीं होता कि अरूण जेटली अब हमारे बीच नहीं हैं। आज भी कई बार लगता है कि अभी फोन आएगा और दूसरी तरफ से आवाज आएगी…. पंडित जी कहां हो? कितने दिन हो गए….कोई खबर नहीं….क्या कहा जाए….कितना भी याद किया जाए…जाने वाले फिर कहां लौटकर आते हैं। उनके काम…उनकी बातें…उनकी आवाज….रह जाती हैं….जिसे लोग याद करते हैं। लोगों से, दोस्तों से, और यहां तक कि राजनीतिक विरोधियों से भी बर्ताव करने का उनका स्टाइल बिल्कुल अलग था।

अरुण जेटली कांग्रेस के कट्टर विरोधी थे, लेकिन कांग्रेसियों के दुश्मन नहीं थे। वे कांग्रेस के विचार का विरोध करते थे। जेटली ने कांग्रेस के नेताओं को कभी अपना राजनीतिक दुश्मन नहीं माना बल्कि उन्हें अपना राजनीतिक विरोधी मानते रहे। कांग्रेस के कई बड़े-बड़े नेताओं ने कई बार मुझसे कहा कि आज अरुण जी होते तो राजनीति में इतनी कड़वाहट न होती। सब पूछते हैं कि अब अगर बीजेपी में बात करनी हो तो किसके पास जाएं? किससे बात करें? कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जो अरुण जी के व्यक्तिगत दोस्त थे और उनसे दिल खोलकर बातें करते थे।

अरुण जेटली अक्सर कहते थे कि कांग्रेस अतीत के बोझ से दबी है, इतिहास से सबक नहीं लेती है और इस चक्कर में इतिहास बन जाएगी। सोमवार को कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच जो कुछ भी राजनीतिक ड्रामेबाजी हुई उसे देखकर अरुण जेटली की बातें याद आती हैं। मुझे याद आ रहा है कि मेरे फ्रेंड अरुण जेटली के शब्द कैसे भविष्यवाणी करते थे। इस ब्लॉग के शुरुआत में मैंने उनकी लिखी बातों का उल्लेख किया है जो उन्होंने इस दुनिया से विदा लेने से कुछ दिनों पहले लिखा था।

अरुण जी की पहली पुण्यतिथि के दिन सोमवार को कांग्रेस के अंदर पार्टी अध्यक्ष के मुद्दे पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच जमकर घमासान मचा। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष का पद छोड़ने की पेशकश की लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह, एके एंटनी और अहमद पटेल जैसे सीनियर नेताओं ने उनसे अंतरिम अध्यक्ष पद पर बने रहने और आवश्यक बदलाव लाने का आग्रह किया। इस बैठक में गांधी परिवार के वफादारों ने उन ‘ ग्रुप ऑफ 23′ पर निशाना साधा जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर चिट्ठी लिखी थी। गांधी परिवार के वफादारों का कहना था कि इन लोगों ने सोनिया गांधी के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता भी नहीं बरती। राहुल गांधी ने बैठक में कहा कि उन्हें इस चिट्ठी से काफी दुख पहुंचा। उन्होंने कहा, क्योंकि वह मेरी मां भी हैं और आपने हमला करने के लिए एक कमजोर वक्त को चुना। राहुल का कहना था कि सोनिया गांधी के अस्पताल में भर्ती होने के समय ही पार्टी नेतृत्व को लेकर पत्र क्यों भेजा गया था?

अब सवाल उठता है कि उस चिट्ठी में क्या लिखा था जिसे ‘ग्रुप ऑफ 23′, जिसपर जिसमें गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, वीरप्पा मोइली, भूपिंदर सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, शशि थरूर, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, और अन्य ने साइन किया था। इन लोगों ने लिखा था कि पार्टी गिरावट की ओर जा रही और तत्काल सुधार की जरूरत है। इस चिट्ठी में फुल टाइम और एक्टिव अध्यक्ष बनाने की मांग की गई। एक ऐसा अध्यक्ष जो क्षेत्र के साथ ही राष्ट्रीय और राज्य पार्टी मुख्यालय स्तर पर भी एक्टिव रहे। पार्टी ऑर्गनाइजेशन में ऊपर से नीचे तक बदलाव की मांग भी की गई। चिट्ठी में CWC समेत सभी स्तरों पर पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने और पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए कई योजनाएं बनाने की भी मांग की गई।

पार्टी के लिए नए पूर्णकालिक और हमेशा उपलब्ध रहनेवाले अध्यक्ष के चुनाव की मांग एक तरह से राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए खुल्लमखुल्ला चुनौती थी । लेकिन ‘ग्रुप ऑफ 23′ की इस मांग को खारिज करके पार्टी आला कमान ने गांधी परिवार के खिलाफ बगावत को पनपने से पहले की कुचल कर रख दिया।

कांग्रेस कार्यसमिति ने सात घंटे तक इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद अंतत: एक कड़े संदेश के साथ सोनिया-राहुल के नेतृत्व के साये में चलने का फैसला किया। कार्यसमिति का स्पष्ट संदेश था-‘किसी को भी पार्टी और उसके नेतृत्व को कमजोर करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। जब तक नए अध्यक्ष का फैसला नहीं हो जाता तब तक सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी।‘ सोनिया गांधी ने भी अपने समापन भाषण में कहा- चिट्ठी लिखने वालों के प्रति उनके हृदय में कोई बैर भाव नहीं है। ‘मैं आहत हूं, लेकिन वे मेरे सहकर्मी हैं, बातें बीत गईं, हमें साथ मिलकर काम करना है।’

कार्यसमिति की बैठक में डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा लाए गए प्रस्ताव में कहा गया, ‘ CWC ने सर्वसम्मति से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथों को हर संभव तरीके से मजबूत बनाने का संकल्प लिया है।’ पार्टी ने अगले 6 महीने में AICC का सत्र बुलाकर नए पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होने तक सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला किया।

जिस समय कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक चल रही थी उसी समय सोशल मीडिया पर भी यह मामला गर्माया हुआ था। जैसे ही राहुल द्वारा ‘बीजेपी से मिलीभगत’ करने के आरोपों की खबरें सामने आईं उसके तुरंत बाद कपिल सिब्बल ने विरोध में ट्वीट किया और शाम को गुलाम नबी आजाद की प्रतिक्रिया भी सामने आई। यह कहा गया कि अगर राहुल ‘बीजेपी के साथ उनकी मिलीभगत’ साबित कर दें तो वे पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे देंगे। गुलाम नबी आजाद ने तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हो रही CWC की मीटिंग में ये बात कही, लेकिन कपिल सिब्बल ने यही बात जमाने के सामने कह दी और सीधे-सीधे राहुल गांधी का नाम लेकर कही। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा ‘राजस्‍थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी को सफलतापूर्वक डिफेंड किया’। मणिपुर में बीजेपी सरकार गिराने में पार्टी का बचाव किया। पिछले 30 साल में किसी मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया लेकिन फिर भी हम ‘बीजेपी के साथ मिलीभगत कर रहे हैं?’ इसके बाद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तुरंत ट्वीट करके कहा कि राहुल ने ऐसी कोई बात नहीं कही लेकिन ये जरूरी है कि पार्टी में सब मिलकर चलें, मिलकर बीजेपी से लड़ें। इसके बाद कपिल सिब्बल ने एक और ट्वीट किया और लिखा कि राहुल गांधी ने खुद उन्हें बताया कि उन्होंने वो बात कभी नहीं कही, जो कही जा रही है। इसलिए मैं अपना ट्वीट वापस ले रहा हूं।

हालांकि बाद में गुलाम नबी आजाद ने पूरे मामले में अपनी तरफ से सफाई दी। आजाद ने कहा, ‘मीडिया में कहा जा रहा है कि CWC की मीटिंग में मैंने राहुल गांधी से कहा कि वो साबित करें कि जो पत्र हमने लिखा…वो बीजेपी की सांठगांठ से लिखा है। मैं साफ करना चाहता हूं कि राहुल गांधी ने न CWC की मीटिंग में और न ही बाहर ये कहा कि यह पत्र बीजेपी के इशारे पर लिखा गया है। कांग्रेस के कुछ लोगों ने कल लिखा था कि हम बीजेपी के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं। यह बात उस संदर्भ में कही गई और मैंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि CWC के बाहर हमारे कुछ सहयोगी इतना तक कह गए कि पत्र बीजेपी के इशारे पर भेजा गया था। ”

गुलाम नबी आजाद कोई आज के नेता नहीं हैं। इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री थे, राजीव गांधी की सरकार, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहे। कांग्रेस को देखने और समझने का उनको बहुत अनुभव है। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि राहुल गांधी उम्र और अनुभव में गुलाम नबी आजाद के सामने बच्चे हैं। कांग्रेस को जानने-समझने में और हर लिहाज से गुलाम नबी आजाद राहुल गांधी से मीलों आगे हैं।

गुलाम नबी आजाद आमतौर पर बहुत संभल कर बोलते हैं। कोई बात कहने से पहले कई बार सोचते हैं। इसलिए अगर गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी और पार्टी की भावना से अवगत कराया तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। अगर सोनिया गांधी कुछ कहती हैं तो समझा जा सकता है, लेकिन अगर राहुल गांधी चिट्ठी लिखने के लिए गुलाम नबी आजाद पर बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लगाएंगे, तो ये बात किसी के गले नहीं उतरेगी। गुलाम नबी आजाद की डिग्निटी और उनकी कमिटमेंट पर शक नहीं किया जा सकता। गुलाम नबी आजाद की तारीफ करनी पड़ेगी कि इतना सबकुछ होने के बाद भी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पार्टी के झगड़े को छुपाने की कोशिश की। ये उनका बड़प्पन है।

एक साल में कांग्रेस नया अध्यक्ष नहीं खोज पाई। हालत ऐसी है कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता अब राहुल गांधी की सरपरस्ती में काम करने को तैयार नहीं हैं। उनका साफ-साफ कहना है कि बहुत हो गया अब और एक्सपेरीमेंट नहीं चलेंगे। या तो सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष के तौर पर बने रहें या फिर चुनाव के जरिए नया अध्यक्ष चुना जाए। क्योंकि अंतरिम व्यवस्था से पार्टी को नुकसान हो रहा है। हालांकि इन लोगों की आवाज सोमवार को उस वक्त दब गई जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ तीन मुख्यमंत्रियों कैप्टन अमरिंदर सिंह, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल ने खुलेआम मांग की कि पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी को सौंप दिया जाए।

सोमवार को दिन भर चले ड्रामे से एक बात सामने आई कि कांग्रेस के सीनियर और अनुभवी नेताओं को राहुल गांधी की कार्यशैली को लेकर शिकायत है। यह बात अब छिपी नहीं रह गई है। क्योंकि पिछले कई महीनों से और आज भी कांग्रेस के नेता सार्वजनिक रूप से इस बात को बोलने से डरते हैं।
आज भी कितने सारे कांग्रेस के नेता हैं जो कैमरे के बाहर कहते हैं कि राहुल के साथ काम करने में वे अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहे हैं लेकिन ऊपर से उन्हें कहना पड़ता है कि राहुल गांधी को एक बार फिर से पार्टी का अध्यक्ष बन जाना चाहिए। उन्हें कहना पड़ता है कि सोनिया और राहुल गांधी के अलावा पार्टी को कई बचा नहीं सकता। जबकि मन में वो जानते हैं कि ये ठीक नहीं है। जिन 23 बड़े-बड़े नेताओं ने चिट्ठी लिखकर कह दिया कि पार्टी को निर्णायक नेतृत्व की जरुरत है, क्योंकि इन नेताओं को लगता है जिस तरह से राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी पर हमला करते हैं, आधा सच आधा झूठ बोलते हैं, उससे कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ है। लेकिन राहुल गांधी को किसी पर भरोसा नही है। उन्होंने कह दिया कि ये चिट्ठी बीजेपी के इशारे पर लिखी गई है।

पिछली CWC की मीटिंग में राहुल गांधी ने ये कह दिया कि पार्टी के कुछ नेता डरपोक हैं और वे नरेंद्र मोदी की आलोचना करने से डरते हैं। राहुल गांधी ने कहा कि वो अकेले ऐसे हैं जो नरेन्द्र मोदी से नहीं डरते। इस बात ने भी कांग्रेस के नेताओं को अंदर तक चोट पहुंचाई थी और इसके बाद ही पानी सिर से ऊपर हुआ। पिछली बार तो कांग्रेस के नेता कुछ नहीं बोले थे लेकिन इस बार कपिल सिब्बल ने करारा जवाब दिया। उन्होंने राहुल गांधी को गिनवा दिया कि उन्होंने कब -कब और कहां- कहां स्टैंड लिया है बीजेपी के खिलाफ। गुलाम नबी आजाद ने भी बीजेपी वाली बात पर नाराजगी जताई। ये अलग बात है कि राहुल गांधी ने इन नेताओं को फोन करके सफाई दी तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ। आज किसी तरह बगावत की आग को ठंडा कर दिया गया। लेकिन मुझे लगता है कि इस गर्म राख के नीचे अभी चिंगारियां दबी हुई हैं।

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