राजस्थान कांग्रेस में आज ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ का तीसरा दिन है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट गुट के विधायक अपने-अपने नेताओं के साथ पूरी वफादारी दिखाते हुए वार-पलटवार कर रहे हैं। कांग्रेस के सामने इस वक्त एक बड़ा संकट मुंह बाए खड़ा है।
हाईकमान को तय करना होगा कि पार्टी अध्यक्ष किसे चुना जाए। सोनिया और राहुल गांधी की पहली पसंद अशोक गहलोत का पार्टी अध्यक्ष बनना लगभग तय था, लेकिन अब हाईकमान के सिपहसालार किसी दूसरे विकल्प की तलाश में हैं। सोमवार को मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ का नाम सामने आया, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें ‘कोई दिलचस्पी नहीं है।’ अध्यक्ष पद के लिए दिग्विजय सिंह, मुकुल वासनिक और मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम भी उछाले जा रहे हैं।
ऐसी खबरें हैं कि गांधी परिवार अशोक गहलोत से नाराज है क्योंकि रविवार को उनके समर्थक विधायकों ने पूरी दुनिया के सामने ‘बगावत’ कर दी थी। गहलोत के वफादार विधायकों ने न सिर्फ केंद्रीय पर्यवेक्षकों से मिलने से इनकार कर दिया, बल्कि अपना इस्तीफा देने के लिए सीधे स्पीकर के घर पहुंच गए। सीएम पद के लिए सोनिया और राहुल गांधी की पहली पसंद सचिन पायलट थे, लेकिन फिलहाल उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना कम ही नजर आ रही है। 92 विधायक सचिन पायलट के खिलाफ हैं। गहलोत के समर्थकों ने जिस तरह से खुलेआम अपनी राय रखी, उससे यह बिल्कुल साफ हो जाता है कि गहलोत यदि चाहें तो मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं, और अगर उन्हें हटाने के लिए कोई कदम उठाया गया तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिर भी सकती है।
अब सवाल उठता है कि गांधी परिवार पार्टी अध्यक्ष पद के लिये किसे उम्मीदवार बनाएगा? क्या गहलोत और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी? सचिन पायलट का क्या होगा? पार्टी पर्यवेक्षक अजय माकन ने सोमवार की रात को जो बयान दिया उससे साफ है कि संकट काफी बड़ा है। माकन ने कहा, उन्हें और खड़गे को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि ज्यादातर विधायक पर्यवेक्षकों से मिलने से इनकार कर देंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में आज तक कभी भी नेता के चुनाव को लेकर कोई प्रस्ताव शर्तों के साथ पारित नहीं हुआ ।
दोनों पर्यवेक्षक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने और उनकी जगह सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के आलाकमान के फरमान पर विधायकों की मुहर लगवाने गए थे, लेकिन गहलोत के वफादार विधायक मिलने ही नहीं आए। इस खेमे की तरफ से साफ संदेश दिया गया कि सचिन पायलट को बतौर मुख्यमंत्री बर्दाश्त नहीं करेंगे। पार्टी आलाकमान अब सोच रहा है कि इस फैले हुए रायते को कैसे समेटा जाए। रविवार को जयपुर में जो हुआ, वह कांग्रेस के इतिहास में कभी नहीं हुआ था।
गहलोत के वफादार विधायक मुख्यमंत्री के खासमखास शांति धारीवाल के आवास पर मिले और उन्होंने केंद्रीय पर्यवेक्षकों को अपनी तीन मांगों के बारे में बताया, (1) राजस्थान में गहलोत के उत्तराधिकारी का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का नतीजा आने के बाद तय हो (2) पर्यवेक्षक या ऑब्जर्वर विधायकों से अलग-अलग नहीं बल्कि ग्रुप में बात करें (3) गहलोत का उत्तराधिकारी उन्हीं 102 विधायकों में से हो जो उनके खेमे के हैं।
ये तीनों बातें कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस आदेश के खिलाफ थीं जिसे लेकर अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे जयपुर गए थे। सोनिया गांधी का साफ निर्देश था कि पर्यवेक्षक विधायकों से अलग-अलग बात करें और पता लगायें कि वे क्या चाहते हैं, लेकिन गहलोत के वफादार विधायक इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसके बाद अजय माकन और खड़गे को खाली हाथ दिल्ली लौटना पड़ा। अजय माकन ने मांग की कि बगावत का नेतृत्व करने वाले दो मंत्रियों, शांति धारीवाल और प्रताप सिंह खाचरियावास के खिलाफ हाईकमान को कार्रवाई करनी चाहिए।
जयपुर में शांति धारीवाल ने अजय माकन के बयान का जवाब दिया। धारीवाल ने कहा, ‘अजय माकन हाईकमान की तरफ से ऑब्जर्वर के तौर पर नहीं, सचिन पायलट के लिए कैन्वेसिंग करने वाले नेता के तौर पर जयपुर आए थे। वह सचिन पायलट के पक्ष में विधायकों का समर्थन इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे थे। हमने कभी अनुशासनहीनता नहीं की। अजय माकन सिर्फ एक लाइन का प्रस्ताव पारित कराना चाहते थे कि विधायकों ने गहलोत के उत्तराधिकारी को चुनने का फैसला सर्वसम्मति से कांग्रेस अध्यक्ष पर छोड़ दिया है, लेकिन हमारे विधायक नहीं माने। सोनिया गांधी के फैसले को कोई चुनौती नहीं देगा, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री तो उन्हीं विधायकों में से चुनना होगा जो पार्टी के वफादार हैं, और बगावत करने वालों के साथ नहीं हैं। गद्दारों को इनाम देना सही नहीं होगा। सचिन पायलट या उनके किसी सपोर्टर को मुख्यमंत्री बनाना मंजूर नहीं होगा।’
अशोक गहलोत की जादूगरी ने सोनिया गांधी का प्लान चौपट कर दिया। 48 घंटे में फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट बदल गई। कहां तो कांग्रेस पार्टी नए अध्यक्ष की तलाश कर रही थी, और कहां अब राजस्थान में सरकार बचाने के लाले पड़ रहे हैं। अशोक गहलोत, सोनिया गांधी के तमाम सिपहसालारों से ज्यादा चतुर निकले। पहले वह सोनिया गांधी की आंखों के तारे थे, अब आंख की किरकिरी बन गए। अब खबर यह है कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में नहीं हैं, और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी के लिए नए सिरे से तलाश शुरू हो गई है।
अब दो बातें तो बिल्कुल साफ हो गई हैं। पहली, राजस्थान में कांग्रेस के अधिकांश विधायक अशोक गहलोत के साथ हैं, और दूसरी, गहलोत के समर्थन में उतरे विधायक अब पार्टी हाईकमान की धमकियों से भी नहीं डर रहे। हाईकमान अगर सचिन पायलट को सीएम बनाने की जिद पर अड़ा तो कांग्रेस टूट सकती है।
अशोक गहलोत खुद खामोश हैं, हालांकि उनकी तरफ से उनके करीबी प्रताप सिंह खाचरियावास, महेश जोशी, शांति धारीवाल और राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा बोल रहे हैं, जमकर बयान दे रहे हैं। ये नेता साफ-साफ कह रहे हैं कि होगा वही जो विधायक चाहेंगे। नंबर गेम में गहलोत खेमा साफ तौर पर आगे है। 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं, जिनमें से गहलोत खेमा 92 सदस्यों के समर्थन का दावा कर रहा है। कहा जा रहा है कि सचिन पायलट गुट के पास सिर्फ 6 विधायकों का समर्थन है, जबकि करीब 10 विधायक ऐसे हैं जो वक्त देखकर फैसला लेंगे।
यह गहलोत ही थे जिन्होंने बसपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाया और अपनी सरकार को अच्छी तरह से चलाया। कांग्रेस हाईकमान के बड़े-बड़े नेताओं के सामने अशोक गहलोत हर मामले में भारी पड़ रहे हैं। यह संभावना बन सकती थी कि आलाकमान खुद गहलोत से इस्तीफा मांग ले, तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ता। इसीलिए गहलोत ने अपने सभी समर्थक विधायकों से इस्तीफे की चिटठी लिखवाकर स्पीकर सीपी जोशी के पास भिजवा दी। मतलब अगर गहलोत जाएंगे तो पार्टी के ज्यादातर विधायक भी इस्तीफा दे देंगे।
सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस में जो हो रहा है, वह गुपचुप तरीके से नहीं बल्कि खुलेआम हो रहा है। यानी अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी की लीडरशिप को कांग्रेस के नेता खुली चुनौती दे रहे हैं। गहलोत कैंप के विधायक जोश में हैं, जबकि पायलट के समर्थक थोड़े निराश लग रहे हैं।
राजस्थान की बगावत का एक असर तो यह हुआ कि अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव खुल गया है। रविवार तक यह लग रहा था कि अध्यक्ष के चुनाव में अशोक गहलोत गांधी परिवार के वफादार हैं, सोनिया गांधी के नॉमिनी हैं, इसलिए वही कांग्रेस के अगले अध्यक्ष बनेंगे। लेकिन रविवार को जयपुर में जो हुआ उसके बाद लग रहा है कि गहलोत पार्टी अध्यक्ष पद के लिए शायद नॉमिनेशन ही फाइल न करें। सोमवार की रात कमलनाथ ने सोनिया गांधी से मुलाकात की, लेकिन बाहर आने के बाद उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष पद में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मैं सोनिया गांधी को नवरात्रि की शुभकामनाएं देने आया था।’
साफ है कि गांधी परिवार को पता ही नहीं चला कि जमीन पर क्या हो रहा है। उन्हें तो यकीन था कि उनके एक इशारे पर राजस्थान का मुख्यमंत्री बदला जा सकता है। MLA क्या चाहते हैं, क्या कहते हैं, इसका कोई मतलब नहीं होता। यही सोचकर जुबानी हुकुमनामा जारी कर दिया गया था कि अशोक गहलोत कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा।
जो हालात पैदा हुए हैं उनसे साफ पता चलता है कि सोनिया और राहुल गांधी जमीनी हकीकत से कितने दूर हैं। दो दिन पहले तक जो अशोक गहलोत गांधी परिवार के आंखों के तारे थे, रातों रात आंखों की किरकिरी बन गए। गहलोत इतने वफादार थे कि पार्टी उन्हें सौंपी जा रही थी, और जयपुर में उनके समर्थकों ने जो किया उसके बाद पलक झपकते ही उन्हें गद्दार करार दे दिया गया। यह तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन वफादार है और कौन गद्दार?
दो साल पहले सचिन पायलट ने बगावत करके पार्टी की नाक में दम किया था, और अब अशोक गहलोत ने अपनी ताकत दिखाकर बता दिया कि वही हाई हैं, वही कमान हैं। हैरानी की बात है कि गांधी परिवार ने पिछले दिनों के अनुभव से कुछ नहीं सीखा।
पंजाब में भी रातों रात सिद्धू को सपना दिखाया, कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाया और चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया। नतीजा यह हुआ कि पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सूबे से पूरी तरह साफ हो गई।
कांग्रेस के पुराने नेताओं को डर है कि अगर राजस्थान के मामले में भी मनमानी करने की कोशिश हुई तो कहीं पंजाब वाला हाल न हो जाए। कांग्रेस में जो हो रहा है उसे देखकर पार्टी के कार्यकर्ता हैरान हैं, परेशान हैं। जिन लोगों ने गुलाम नबी आजाद, कैप्टन अमरिंदर सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं को पार्टी छोड़कर जाते देखा है, उन्हें हताशा जरुर हुई होगी। अब वे अशोक गहलोत की तरफ देखने लगे थे। उन्हें लगा था कि अशोक गहलोत पुराने, अनुभवी और वफादार नेता हैं, नैया पार लगाएंगे लेकिन अब वह भी शक के दायरे में आ गए।
कांग्रेस के कुछ नेता अब पूछ रहे हैं कि पार्टी की जो लीडरशिप अपनों को साथ नहीं रख पाई, वह शरद पवार, लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कैसे बनाएगी?