नए कृषि कानूनों के विरोध में पिछले नौ महीनों से चल रहा किसान आंदोलन गुरुवार को दिल्ली बॉर्डर से जंतर-मंतर शिफ्ट हो गया। दिल्ली पुलिस ने 200 किसानों को कड़ी सुरक्षा के बीच बसों में बिठाकर जंतर-मंतर आने दिया और ‘किसान संसद’ आयोजित करने की इजाजत दी। उधर, संसद परिसर के अंदर राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के नेताओं के साथ गांधी मूर्ति के सामने विरोध प्रदर्शन किया। शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी के सांसदों ने भी कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग को लेकर संसद परिसर के अंदर विरोध-प्रदर्शन किया। चूंकि पंजाब विधानसभा चुनाव अगले साल की शुरुआत में होनेवाले हैं, इनलिए इन तीनों पार्टियों में खुद को किसानों के हितैषी के तौर पर पेश करने की होड़ मची है।
दो सौ किसानों को दिल्ली पुलिस कड़ी सुरक्षा के बीच दो बसों में लेकर जंतर-मंतर पहुंची। इस दौरान कई लेयर की बैरिकेडिंग की गई थी और एक्स्ट्रा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। केवल उन्हीं किसानों को जंतर-मंतर जाने की इजाजत थी जिनके पास संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी पहचान पत्र था। अब 9 अगस्त तक रोजाना ‘किसान संसद’ चलेगी। भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत ने कहा कि दिल्ली बॉर्डर पर किसान अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे। उन्होंने दावा किया, ’25 लाख किसान 26 जनवरी को चार लाख ट्रैक्टर के साथ दिल्ली पहुंचे थे और वे अभी भी यहीं हैं। इन कानूनों को खत्म करने की हमारी मांग केंद्र को मानना होगा। अब शर्तों के साथ कोई बातचीत नहीं होगी।’
मौजूदा गतिरोध इस बात को लेकर है कि किसान संगठन कृषि कानूनों को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र का कहना है कि किसान नेता कानून के उन प्रावधानों को बताएं जिन्हें हटाने या बदलने की जरूरत है, बस यही समस्या की जड़ है जिसकी वजह से गतिरोध बना हुआ है।
संसद भवन से महज 2 किमी दूर जंतर-मंतर पर ‘किसान संसद’ का आयोजन किया गया। 200 किसानों ने ‘किसान संसद’ चलाने के लिए स्पीकर- डिप्टी स्पीकर का चुनाव किया और खुद ही संचालन किया। किसान संसद की कार्यवाही उस वक्त मुख्य मुद्दे से अलग मुड़ गई जब मीनाक्षी लेखी की बात किसान नेताओं तक पहुंची। किसानों ने मीनाक्षी लेखी के बयान की जमकर निंदा की। असल में बीजेपी दफ्तर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान किसान आंदोलन को लेकर मीनाक्षी लेखी से एक सवाल पूछा गया था और जबाब देने के बजाय मीनाक्षी लेखी ने आंदोलनकारी किसानों को ‘मवाली’ कह दिया। मीनाक्षी लेखी ने कहा-‘आप (मीडिया) उन्हें किसान कह रहे हैं। वे मवाली हैं।’ मीनाक्षी लेखी ने यह टिप्पणी तब की जब कुछ मीडियाकर्मियों ने उन्हें जंतर-मंतर की उस घटना के बारे में बताया जब एक किसान समर्थक स्वतंत्र पत्रकार ने एक न्यूज चैनल के कैमरापर्सन पर हमला किया और महिला पत्रकार को गाली दी।
हालांकि बाद में ट्विटर पर मीनाक्षी लेखी ने एक पोस्ट डालकर अपने इस बयान को वापस ले लिया, उन्होंने लिखा-‘मेरे बयान को तोड़ा-मरोड़ा गया है अगर इससे किसी को ठेस पहुंची है तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं ।
अच्छा किया कि मीनाक्षी लेखी ने अपनी बात को क्लेरिफाई कर दिया। लेकिन मैं कहूंगा कि दोनों तरफ के पक्षों से इस तरह की भाषा का इस्तेमाल ना हो तो बेहतर है। इस पूरे मामले की गरिमा बनाए रखना भी जरूरी है। इन्हें ‘मवाली’ या ‘जानवर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
किसान नेताओं की मुख्य समस्या ये है कि उन्होंने तीनों कानूनों की वापसी को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। उन्हें लगता है कि तीनों कानून वापस नहीं हुए तो उनकी बेईज्जती हो जाएगी, अपमान हो जाएगा, सात-आठ महीने से धरने पर बैठे हैं और अगर कानून वापस नहीं हुए तो अपने समर्थकों के बीच क्या मुंह लेकर वापस जाएंगे। इसीलिए किसान नेता दबाव बनाने का हर तरीका इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार के लिए भी ये प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। सरकार को लगता है कि कानून पार्लियामेंट में बने हैं। संसद की दोनों सदनों ने इसे पास किया है, फिर ये कानून सड़क पर वापस कैसे हो सकते हैं। ये बात सही भी है कि अगर कानून को धरने-प्रदर्शन से दबाव में आकर वापस ले लिया जाएगा तो इतना बड़ा देश है कि हर कानून के खिलाफ कोई न कोई सड़क पर उतरेगा। लिहाजा किसान और सरकार दोनों अपनी पोजिशन से पीछे हटने को तैयार नहीं है।
दूसरी बात ये है कि मोदी विरोधी चाहे राजनीतिक नेता हों या गैर राजनीतिक लोग, वे कभी नहीं चाहेंगे कि किसानों और सरकार के बीच का टकराव खत्म हो। जो लोग अपनी कोशिशों से या वोट के दम पर मोदी को हरा नहीं पाए, सत्ता से बेदखल करने में नाकाम रहे, वे अब किसानों के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहे हैं। उन्हें लगता है कि किसान अगर मोदी से नाराज हो गए तो फिर मोदी को घेरना आसान होगा। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि ये एक बड़ी राजनीति का हिस्सा है।