Rajat Sharma

कोरोना महामारी: भारत अभी भी ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना क्यों कर रहा है

aaj ki baatभारत में एकबार फिर से 3.5 लाख से ज्यादा कोरोना के नए मामले सामने आए जिससे देश में कोरोना मामलों का कुल आंकड़ा सोमवार को 2 करोड़ (2,02,82,833) के पार पहुंच गया। वहीं इस दौरान 3,449 मरीजों की मौत हो गई जिससे इस महामारी से मरने वालों की संख्या 2,22,408 पह पहुंच गई है। इस वक्त देश में एक्टिव मामलों की संख्या 34,47,133 है, हालांकि अब स्थिति ये है कि अगर 100 नए मरीज आ रहे हैं तो 82 मरीज ठीक भी हो रहे हैं। पिछले चौबीस घंटों में तीन लाख 68 हजार नए केस आए तो तीन लाख से ज्यादा लोग ठीक भी हुए हैं।

इस बीच, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद से एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि एक नया एपी वेरिएंट, N440K, विशाखापत्तनम और आंध्र प्रदेश के अन्य हिस्सों में कहर मचा रहा है। नया एपी स्ट्रेन 15 गुना तेज़ी से फैलता है और 3-4 दिनों के भीतर रोगी की स्थिति को गंभीर बना देता है। ये नौजवानों को बड़े पैमाने पर संक्रमित कर रहा है। इसके कारण ऑक्सीजन और आईसीयू बेड पर बोझ बढ़ रहा है। कोरोना का ये स्ट्रेन सबसे पहले करनूल में मिला था।

ऑक्सीजन टैंकरों को एयरलिफ्ट करने और रेलवे द्वारा ऑक्सीजन कंटेनर भेजने के लिए देशव्यापी अभियान के बावजूद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और अन्य राज्यों के अस्पतालों को ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली, मेरठ और अन्य शहरों के प्राइवेट हॉस्पिटल्स ऑक्सीजन की इमरजेंसी को लेकर लगातार sos भेजते रहे।

दूसरी तरफ सरकार का दावा है कि देश में ऑक्सीजन का उत्पादन डेढ़ गुना से ज्यादा हो गया है। इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल ऑक्सीजन में बदला गया है, भारतीय वायुसेना और रेलवे युद्ध स्तर पर ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट करने में लगे हैं। अडानी और अंबानी जैसे बड़े ओद्योगिक घरानों ने आक्सिजन का प्रोडक्शन कई गुना बढ़ा दिया है।

सवाल ये है कि इतनी आक्सजीन आ रही है तो जा कहां रही है? दिल्ली-एनसीआर और लखनऊ में लोग बत्तीस बत्तीस घंटे से ऑक्सीजन रीफिलिंग प्लांट के बाहर लाइन में लगे हैं लेकिन नंबर नहीं आया। ऑक्सीजन का सिलेंडर भराने के लिए मरीजों के रिश्तेदारों की शिफ्ट में ड्यूटी लग रही है फिर भी सिलेंडर खाली है। लोग दुखी और बेबस हैं।

सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है लेकिन कोरोना उससे ज्यादा तेज रउतार से बढ़ रहा है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पिछले सात दिन में सिर्फ एक हफ्ते में देशभर में कोरोना के 26 लाख से ज्यादा नए केसेज सामने आ चुके हैं। ये बहुत बड़ी संख्या है इसीलिए सारे रिसोर्सेज कम पड़ रहे हैं, सारी कोशिशें नाकाफ़ी साबित हो रहीं हैं। देश में कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए सरकार ने कुछ बड़े फैसले किए हैं। चूंकि कोरोना के मरीजों की संख्या इतनी तेजी से बढ रही है कि संसाधनों के साथ साथ अब डॉक्टर्स की कमी भी पड़ने लगी है इसलिए आज प्रदानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हालात की समीक्षा करने के बाद फैसला किया है कि अब MBBS के फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स की भी कोरोना ड्यूटी लगाई जाएगी। स्टूडेंट्स और पेरेन्टेश में एक चिंता NEET और PG के एक्जाम्स को लेकर थी। सरकार ने आज इस मुद्दे पर भी फैसला कर लिया। अब NEET और PG एक्जाम्स को चार महीने के लिए टाल दिया गया है। NEET के एक्जाम 31 अगस्त से पहले नहीं होंगे।

कर्नाटक के चामराजनगर से सोमवार को बुरी खबर आई जहां सरकारी हॉस्पिटल में ऑक्सजीन की कमी से 24 मरीजों की मौत हो गई। जिन 24 मरीजों की मौत हुई उनमें से 23 कोरोना पेशेन्ट थे। मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। हालांकि चामराजनगर के डिप्टी कमिश्नर ने इस बात से इनकार किया है कि मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है लेकिन उन्होंने ये बात मानी है कि जिले में ऑक्सीजन की कमी है। प्रशासन का कहना है कि चामराजनगर में ऑक्सीजन की सप्लाई मैसूर से होती है और इस वक्त मैसूर में ही ऑक्सीजन की कमी है इसलिए सप्लाई कम हो रही है। प्रशासन ने इस घटना पर लीपापोती करने की कोशिश की लेकिन जिन 24 लोगं की जान चली गई उनके परिवारों का हाल देखकर दिल भर आता है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि उनका मरीज ठीक हो रहा था, दो चार दिन में घर जाने की बात हो रही थी लेकिन आज सुबह लाश लेकर श्मशान जाना पड़ रहा है।

ये हाल किसी एक राज्य का नहीं हैं, ज्यादातर जगह ऐसे ही हालात हैं। ज्यादातर राज्यों में, ज्यादातर हॉस्पिटल्स में ऑक्सीजन की सिचुएशन टाइट है। मेरठ के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से 5 मरीजों की मौत की खबर आई है। मेरठ के न्यूट्रिमा हॉस्पिटल में 5 मरीजों की जान चली गई और पेशेन्ट्स के परिवार वालों का आरोप है कि ऑक्सीजन की कमी से उनकी मौत हुई है। दिल्ली में भी पिछले करीब दस दिनों से ऑक्सीजन की क्राइसिस है। अरविन्द केजरीवाल का दावा है कि इस वक्त दिल्ली में ऑक्सीजन डिमांड 976 मीट्रिक टन हो चुकी है लेकिन दिल्ली को करीब साढ़े चार सौ टन ऑक्सीजन ही मिल रही है, इसके कारण अब तमाम हॉस्पिटल्स मरीजों के रिश्तेदारों से ही ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करने को कह रहे हैं। गुजरात में मरीजों को बैड मिलना मुश्किल है। अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल की तस्वीरें देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे। ये अस्पताल अहमदाबाद का कोरोना का सबसे बडा सेंटर है। 1200 बेड्स हैं लेकिन सारे बेड्स फुल हैं लेकिन मरीजों के आने का सिलसिला जारी है। अस्पताल के बाहर अब एंबुलेंस की लंबी लाइन नजर आती है। हर एंबुलेंस में कोरोना का पेशेंट हैं।

सरकार का दावा है कि पिछले कुछ हफ्तों में ऑक्सीजन का प्रोडक्शन साढ़े सात हजार मीट्रिक टन से बढ़कर रोजाना 9000 मीट्रिक टन हो गया है। अब इंडस्ट्रियल गैस मैन्युफैक्चरर्स भी मेडिकल ऑक्सीजन बना सकेंगे। उन्ही प्लांट्स के आसपास कोविड केयर सेंटर बवाए जा रहे हैं जिससे ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन में होने वाली दिक्कत और देरी दोनों से बचा जा सके इसीलिए स्टील प्लांट और ऑयल रिफाइनरीज की मदद से जंबो कंटेनर बेस्ड कोविड अस्पताल तैयार किए जा रहे हैं। इसके साथ साथ 50% नाइट्रोजन कैरी करनेवाले टैंकर्स को भी ऑक्सीजन टैंकर में कनवर्ट किया जा चुका है। सरकार ने नाइट्रोजन प्रोड्यूश करने वाले प्लांट्स को ऑक्सीजन प्लांट्स में कन्वर्ट कर रही है। ऐसे 37 प्लांट की पहचान हो चुकी है, इनका कनवर्जन हो रहा है। .यानि सरकार हर संभव कोशिश कर रही है लेकिन दिक्कत ये है कि कोरोना की सेंकेन्ड बेव ज्यादा घातक है और तीस से पचास गुना तक ज्यादा तेज है इसलिए सारी तैयारियां, सारे इंतजाम कम पड़ जाते हैं।

देश के बडे बडे बिजनेसमैन भी इस वक्त ऑक्सीजन सप्लाई में मदद कर रहे हैं। सोमवार को जामनगर से हरियाणा के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से 85 टन ऑक्सीजन भेजी गई है। बडी बात ये है कि अब रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से रोजाना 1000 टन तक मेडिकल ऑक्सीजन का प्रोडक्शऩ हो रहा है। खुद मुकेश अंबानी इसपर नजर बनाए हुए हैं। रिलायंस की तरफ से भी 24 कंटेनर्स इंपोर्ट किए गए हैं। इसी तरह अदानी ग्रुप भी ऑक्सीजन क्राइसिस में आगे आया है। पहले वॉटर रूट के जरिए कंटेनर्स के जरिए सऊदी अरब से 80 टन ऑक्सीजन मंगाई। इसके अलावा सिंगापुर, दुबई, थाईलैंड से क्रायोजैनिक कंटेनर्स मंगाए गए हैं। दुबई से जो 18 क्रायोजैकिन टैंक्स आए उनमें 180 टन ऑक्सीजन अलग अलग राज्यों में पहुंचाई जाएगी।

सराकर और उद्योगपतियों के अलावा मुसीबत की इस घड़ी में दुनिया भर के देश भी भारत की मदद में आगे आए हैं। सोमवार को इटली से दिल्ली एयरपोर्ट पर एक ऑक्सीजन जेनरेटिंग प्लांट और 20 वेटिलेटर्स पहुंचे हैं। इसी तरह इंडियन एयरफोर्स का प्लेन फ्रैंकफर्ट से चार बडे ऑक्सीजन कंटेनर्स लेकर पहुंच चुका है। ब्रिटेन का चौथा कंसाइनमेंट भी दिल्ली आ चुका है। इसमें 60 वेंटिलेटर्स और कई दूसरे मेडिरल इक्विपमेंट्स मौजूद हैं। चाइना से भी आज 700 ऑक्सीजन कंसनट्रेटर्स आए। आज ही ओडिशा से लिक्विड ऑक्सीजन लेकर एक ट्रेन पहुंची है।

हर कोई अपने स्तर पर ऑक्सीजन की किल्लत को खत्म करने में जुटा है। ऑक्सीजन की डिमांड करने वाले मरीज़ों की तादाद जिस रफ्तार से बढ़ रही है उसके आगे दुनिया भर से आई ऑक्सीजन भी कम पड़ जाती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि नए म्यूटेंट में सीधे फेफडों तक पहुंचने की ताकत है। जब तक पता चलता है तब तक ये वायरस फेफड़ों पर हमला कर चुका होता है, तब तक देर हो चुकी होती है। ऐसी हालत में पहली जरुरत ऑक्सीजन सपोर्ट की होती है इसीलिए इतनी ज्यादा ऑक्सीजन की डिमांड हो रही है।

एक और चीज है जिसने इस समस्या को बढ़ा दिया है और वो है लोगों का डर और अपने आप को बचाने का स्वार्थ। आप हैरान होंगे कि कई जगह तो लोगों ने अपने घर में ऑक्सीजन सिलेंडर स्टोर कर रखे हैं। सिर्फ इसलिए घर में ऑक्सीजन का सिलेंडर स्टॉक कर लिया कि शायद किसी दिन वो बीमार पड़ जाएं, भविष्य में ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है। मुझे लगता है ये अन्याय है, जुल्म है और जिन लोगों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हो रही, ये स्टोर करने वाले लोग भी उन मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराए जाएंगे।

बुरी खबरों के बीच कुछ उम्मीद की किरणे भी दिख रही हैं। सरकार की तरफ से कुछ आंकड़े पेश किए गए, उसमें भी अच्छी खबर है। जिन राज्यों में कोरोना बहुत तेजी से बढ़ रहा था, छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तराखंड जैसे राज्यों में नए केसों की संख्या कम हो रही है। रिकवरी रेट भी बढ़ा है लेकिन अभी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, हरियाणा और असम जैसे कई राज्य हैं जिनमें मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। .22 राज्य ऐसे हैं जहां अभी भी पॉजिटिविटी रेट 15 परशेंट से ज्यादा है इसलिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सब मिलकर कोशिश कर रहे हैं और ये कोशिश तब तक जारी रहेगी जब तक कम से कम 70 परसेंट आबादी का वैक्सीनेशन ना हो जाए।

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