वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि ईदगाह और दिल्ली में कुतुब मीनार के आसपास मंदिरों के अस्तित्व पर विवाद चल रहा है। इस बीच मंगलवार को खबर आई कि सरकार देश भर में हेरिटेज साइटों पर स्थित और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित एक हजार से ज्यादा मंदिरों में पूजा की इजाजत देने के लिए 1958 के कानून में संशोधन पर विचार कर रही है।
मौजूदा कानून के तहत पुरातत्व विभाग की देखरेख में आने वाले मंदिरों में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं मिलता और किसी तरह की पूजा-अर्चना पर पाबंदी होती है। प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 साफ तौर पर ASI-संरक्षित स्मारकों के परिसर में मौजूद मंदिरों में पूजा-अर्चना करने पर रोक लगाता है। यह कानून 64 साल पहले राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों को संरक्षित और सुरक्षित करने के लिए बनाया गया था।
इस कानून में संशोधन के लिए संसद के मॉनसून सत्र में एक विधेयक लाया जा सकता है जिसके बाद श्रद्धालुओं को इन प्राचीन मंदिरों में प्रवेश की अनुमति मिल जाएगी और वहां पूजा-अर्चना की जा सकेगी। भारत में लगभग 3,800 एएसआई-संरक्षित स्मारक हैं, जिनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। इनमें से 1,000 से भी ज्यादा प्राचीन हिंदू मंदिर हैं। सरकार इन मंदिरों को पूजा के लिए खोलने पर विचार कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि 1958 का कानून बनाने के पीछे का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ और ऐसे कई पुराने मंदिरों और स्मारकों की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।
चूंकि ASI के संरक्षण वाले स्मारकों में आमतौर पर किसी भी तरह की धार्मिक या मजहबी गतिविधि पर पाबंदी होती है, इसके कारण लोगों का आना जाना कम होता है और रखरखाव पर भी उतना ध्यान नहीं दिया जाता। सरकार को यह सुझाव दिया गया था कि अगर पुराने मंदिरों को पूजा पाठ के लिए खोल दिया जाता है तो इसके 2 फायदे होंगे। पहला, इससे इन मंदिरों में लोगों का आना-जाना बढ़ेगा, और दूसरा इन मंदिरों का रख-रखाव भी ठीक से होगा, और आम लोग भी इसमें भागीदार बनेंगे। संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि किलों और ऐतिहासिक स्मारकों के अंदर स्थित कई हिंदू मंदिर टूट-फूट रहे हैं, और उन्हें संरक्षित करने का एकमात्र तरीका इन मंदिरों में पूजा की इजाजत देना हो सकता है। स्थानीय निवासी इन मंदिरों के नियमित रखरखाव को सुनिश्चित कर सकते हैं, क्योंकि ASI के पास कर्मचारियों की कमी है। इनमें से अधिकांश मंदिरों को जीर्णोद्धार की सख्त जरूरत है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर है। यह मंदिर 2011 में उस वक्त सुर्खियों में आया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने इसके गुप्त तहखानों को खोलने के लिए पर्यवेक्षकों को नियुक्त किया था ताकि अंदर रखी संपत्तियों की एक लिस्ट बनाई जा सके। तब यह दावा किया गया था कि मंदिर के बंद तहखानों में 2 लाख करोड़ रुपये का खजाना छिपा हुआ है, लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और फैसला सुनाया कि मंदिर का प्रशासन और नियंत्रण पहले की तरह ही त्रावणकोर के शाही परिवार के पास होगा। अब इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं, जिससे मंदिर को अच्छी-खासी आय होती है।
इसी तरह एक और उदाहरण उत्तराखंड का का मशहूर शिव मंदिर जागेश्वर धाम है। इस प्राचीन मंदिर में भक्त हर साल बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन इससे मंदिर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा और उसका रखरखाव बेहतर हुआ है। इसे देखते हुए सरकार ने फैसला किया है कि ASI द्वारा संरक्षित और बंद पड़े प्राचीन मंदिरों में पूजा-अर्चना की इजाजत दी जाए, इससे उनके रखरखाव में मदद मिलेगी। ASI के संरक्षण के तहत मंदिरों कि अब कैटिगरी बनाई जा रही है।
कुछ मंदिर ऐसे हैं जो अच्छी हालत में है और इनमें देवी-देवताओं के विग्रह भी मौजूद है। बस इनकी साफ-सफाई करके श्रद्धालुओं के लिए खोला जा सकता है। कुछ ऐसे हैं जिनमें मंदिर का भवन तो है, लेकिन उनकी मूर्तियां खंडित अवस्था में हैं या फिर मूर्तियां हैं ही नहीं। ऐसे मंदिरों का सरकार पहले जीर्णोद्धार करेगी, उसके बाद इन मंदिरों में नई मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। इन मंदिरों को उनके पुराने स्वरूप में वापस लाकर ही पूजा-अर्चना के लिए खोला जाएगा।
तीसरी कैटिगरी उन मंदिरों की है जिनकी न बिल्डिंग पूरी तरह सुरक्षित है और न मूर्तियां, सिर्फ वहां खंडहर बचे हैं। ऐसे मंदिर ASI के संरक्षण में रहेंगे और इन्हें पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जा सकता है। हिंदू शासकों द्वारा बनाए गए किलों के अंदर मंदिर, जिनमें मूर्तियां हैं, प्रार्थना के लिए तुरंत खोले जा सकते हैं। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है और कानून में संशोधन के बाद इन पुराने मंदिरों में पूजा फिर से शुरू हो सकती है। हिंदू शासकों के किलों में कई ऐसे मंदिर मौजूद हैं जिनमें मूर्तियां सही-सलामत हैं और इमारत भी ठीक-ठाक है, इसलिए वहां फौरन पूजा-पाठ की इजाजत दी जा सकती है। इस दिशा में काम शुरू हो गया है और कानून में संशोधन के बाद इन पुराने मंदिरों में पूजा फिर से शुरू हो सकती है।
कुछ दिन पहले जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ASI द्वारा संरक्षित 8वीं सदी के मार्तंड सूर्य मंदिर में पूजा की थी। उन्होंने प्राचीन सूर्य मंदिर में नवग्रह अष्टमंगला पूजा में भाग लिया था। सिन्हा ने इसे ‘दिव्य अनुभव’ बताया था जबकि ASI ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि आयोजन के लिए कोई अनुमति जारी नहीं की गई थी। मार्तंड सूर्य मंदिर को कश्मीर के शाह मिरी वंश के छठे सुल्तान सिकंदर शाह मिरी ने ध्वस्त कर दिया था। बाद में इस मंदिर ने कई भूकंपों को झेला और लगातार खंडहर में तब्दील होता गया। इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया जाएगा और इसे पूजा-पाठ के लिए खोला जा सकता है।
इसी तरह तमिलनाडु के महाबलीपुरम में समुद्र के किनारे महाभारत काल का एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज साइट्स में भी शामिल है लेकिन यहां भी पूजा-पाठ की इजाजत नहीं है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी यहां गए थे। तमिलनाडु के पुदुकोट्टई जिले में विजया चोलेश्वरम मंदिर है, जहां का ‘शिवलिंग’ बहुत पवित्र माना जाता है। यह मंदिर भी अब खंडहर हो चुका है। गुजरात में रुद्र महालय मंदिर है, जो ASI द्वारा संरक्षित होने के बावजूद बेहद खराब हालत में है।
मुझे लगता है कि ASI संरक्षित प्राचीन मंदिरों को श्रद्धालुओं और पूजा-पाठ के लिए खोलना एक स्वागत योग्य कदम है। यह हमारी समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में उठाया गया गंभीर कदम है। ASI 3,800 प्राचीन स्मारकों की देखरेख करता है, लेकिन उन जगहों की क्या हालत है यह सब जानते हैं। दिल्ली में ही आपको तमाम इमारतों के बाहर ASI द्वारा संरक्षित होने का बोर्ड लगा मिल जाएगा, लेकिन उनके रखरखाव का कोई इंतजाम नहीं होता है। तुगलकाबाद के किले या दक्षिणी दिल्ली के बेगमपुर गांव के प्राचीन स्मारकों की हालत देख लीजिए। दिल्ली के हौज खास में भी पुरानी हेरिटेज साइट्स बुरे हाल में हैं।
एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि पुराने स्मारकों की उचित देखभाल में काफी फंड की जरूरत होती है। इस काम के लिए एक्सपर्ट्स चाहिए होते हैं और ASI के पास स्टाफ और फंड की दिक्कत है। मुझे लगता है कि अगर पुराने मंदिरों को, पुरानी इमारतों को खोला जाता है और लोगों की आवाजाही बढ़ती है तो इससे आमदनी भी बढ़ेगी और इन जगहों की उचित देखभाल भी होगी। आगरा के किले और ताजमहल में रोजाना हजारों लोग आते हैं। ऐसी खबरें हैं कि सरकार दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में पुराने एतिहासिक हथियारों का संग्राहलय बनाने पर विचार कर रही है। अगर लाल किले में संग्राहलय बन जाएगा, और लोग आएंगे तो इससे फायदा ही होगा। करतारपुर कॉरिडोर खुलने से दोनों देशों को मदद मिली है। इससे निश्चित रूप से मंदिरों की पवित्रता कम नहीं होगी। हां, यह जरूर है कि इस तरह के फैसले को भी कुछ लोग हिन्दू-मुसलमान से जोड़कर देखेंगे, लेकिन केंद्र को आगे बढ़कर इन प्राचीन मंदिरों को खोलना चाहिए। अदालतें इस तरह के विवादों को सुलझाने में सक्षम हैं।
ऐसे ही एक घटनाक्रम में दिल्ली की साकेत अदालत ने मंगलवार को जैन देवता तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव की ओर से वकील हरिशंकर जैन द्वारा दायर एक याचिका पर अपना आदेश 9 जून के लिए सुरक्षित रख लिया। याचिका में दावा किया गया था कि 27 हिंदू और जैन मंदिरों को सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद उसने हिंदू और जैन मंदिरों के खंभों और अन्य सामग्रियों का इस्तेमाल कर कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया था। ASI ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कुतुब मीनार ‘पूजास्थल नहीं है और स्मारक की मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता।’ ASI के वकील ने कोर्ट को बताया कि ‘भूमि की स्थिति का किसी भी तरह से उल्लंघन करते हुए मौलिक अधिकार का लाभ नहीं उठाया जा सकता।’ ASI ने कहा, ‘ऐसा कोई भी कदम 1958 के अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत होगा।’
अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा ने वादी से सवाल किया कि कोई भी व्यक्ति ऐसी किसी चीज की बहाली के लिए कानूनी अधिकार का दावा कैसे कर सकते हैं, जो 800 साल पहले हुई है। उन्होंने पूछा, ‘कानूनी अधिकार किया है? सवाल यह है कि अगर उपासना का अधिकार एक स्थापित अधिकार है और यदि किसी अधिकार से वंचित किया जाता है, तो आप किस कानूनी उपाय के तहत ऐसी किसी चीज की बहाली के लिए कानूनी अधिकार का दावा कर सकते हैं, जो 800 साल पहले हुई है।’
एक अन्य घटना में दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मंगलवार को ASI को पत्र लिखकर मांग की कि कुव्वतुल मस्जिद में जुमे की नमाज को बहाल किया जाए क्योंकि मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और वहां ‘प्राचीन काल’ से 5 बार नमाज अदा की जा रही थी।
वकील हरिशंकर जैन ने अदालत को कुतुब मीनार के बाहर लगाई गई ASI के शिलापट्ट के बारे में बताया, जिसमें लिखा गया है कि कुव्वतुल मस्जिद 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर और उसके सामान का फिर से इस्तेमाल करके बनाई गई थी। इस दावे में कोई शक नहीं है। लेकिन ASI का कहना है कि जब 1914 में कुतुब मीनार उसके नियंत्रण में आया, तो परिसर में कोई पूजा-पाठ नहीं हो रहा था, और इसलिए स्थिति और चरित्र को बदला नहीं जा सकता। ASI के वकील ने कहा कि उपासना का अधिकार मौलिक अधिकार हो सकता है, लेकिन पूर्ण अधिकार नहीं।
ASI ने अदालत में जो कहा वह सही है, लेकिन इस सच में कुछ और बातें और जोड़ी जानी चाहिए थीं। हकीकत यह है कि कुतुब मीनार परिसर में जो मस्जिद है, उसमें 13 मई तक, यानी कि 12 दिन पहले तक नमाज पढ़ी जा रही थी। असल में कुतुब परिसर में 2 मस्जिदें हैं, एक कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद और दूसरी मुगल मस्जिद। नमाज मुगल मस्जिद में ही पढ़ी जा रही थी। चूंकि ASI को समझ में आया कि यह विवाद बढ़ेगा तो उसने इस मस्जिद में भी नमाज पर पाबंदी लगा दी। इस मुगल मस्जिद में 46 साल से नमाज पढ़वाने का दावा कर रहे इमाम शेर मोहम्मद ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अचानक मस्जिद में नमाज पर पाबंदी क्यों लग गई। यह पूछे जाने पर कि कुव्वतुल मस्जिद के निर्माण में ध्वस्त किए गए 27 हिंदू और जैन मंदिरों की सामग्री का इस्तेमाल क्यों किया गया, इमाम ने काफी दिलचस्प जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मस्जिद बनवाने वालों ने मंदिर नहीं तोड़े, बल्कि उन्होंने मलबा खरीदा और उससे मस्जिद बनवा दी। चूंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा की इजाजत नहीं है, इसलिए जिन खंभों पर मूर्तियां थीं, या नक्काशी थी, उन्हें थोड़ा खुरच दिया गया है।
इमाम चाहे जो कहें, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि कुव्वतुल मस्जिद बनने से पहले 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ा गया था। दिल्ली की एक दीवानी अदालत ने पहले ही कुतुब मीनार परिसर में प्रार्थना की इजाजत मांगने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया था, और अब अतिरिक्त जिला जज द्वारा की गई टिप्पणियों और ASI के रुख को देखते हुए यह निश्चित है कि इस नई याचिका को भी खारिज किया जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे विवाद भी खत्म हो जाएगा। और यह अंतिम विवाद नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा जन्मभूमि ईदगाह विवाद भी अदालतों में हैं।