Rajat Sharma

My Opinion

अमित शाह ने काँग्रेस को आईना कैसे दिखाया

AKBअमित शाह ने राज्य सभा में कांग्रेस को आईना दिखाया. संविधान पर चर्चा का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस संविधान विरोधी, आरक्षण विरोधी और गरीब विरोधी है. शाह ने कहा, कांग्रेस ने सत्ता का इस्तेमाल सिर्फ एक परिवार के लिए किया, संविधान को सिर्फ एक परिवार की इच्छा के हिसाब से तोड़ा मरोड़ा गया, जबकि नरेन्द्र मोदी ने संविधान में बदलाव, देश के विकास के लिए, गरीबों, दलितों, पिछड़ों को उनका हक़ देने के लिए किए.
अमित ने शाह ने कहा जो लोग आज संविधान की कॉपी लहराते घूम रहे हैं, वो आज भी संविधान की भावना को नहीं समझते. अमित शाह ने उन सारे आरोपों का जवाब दिया जो कांग्रेस के नेताओं ने चर्चा के दौरान लगाए. अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस के नेता आज आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत से ज्यादा बढ़ाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि उनकी असली मंशा धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने की है, लेकिन बीजेपी ऐसा कभी नहीं होने देगी, क्योंकि धर्म के आधार पर आरक्षण संविधान के खिलाफ है.
अमित शाह ने कहा, कांग्रेस ने संविधान में बोलने की आजादी कम करने का संशोधन किया, मौलिक अधिकारों में कटौती के लिए संशोधन किया, चुनाव हारने की आशंका के कारण विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने के लिए संशोधन किया, अपनी कुर्सी बचाने के लिए प्रधानमंत्री के कामों की न्यायिक जांच पर रोक लगाने के लिए संशोधन किया, जबकि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने “एक देश एक टैक्स” (जीएसटी) के लिए संविधान में संशोधन किया, पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया, महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए संशोधन किया, गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संशोधन किया.
अमित शाह ने कहा कि ये सारे उदाहरण देखने के बाद कोई भी समझ सकता है कि संविधान को लेकर कांग्रेस की मंशा और नरेन्द्र मोदी की नीयत में क्या फर्क है. अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस अपनी पुरानी मानसिकता से उबर नहीं पाई है, आज भी वो सामान नागरिक संहिता का विरोध कर रही है लेकिन बीजेपी लोकतांत्रिक तरीके से कॉमन सिविल कोड सभी राज्यों में लाएगी.
अमित शाह के निशाने पर मुख्य रूप से कांग्रेस थी. अमित शाह ने कांग्रेस को चुनाव जीतने का फॉर्मूला बताया. कहा कि अगर कांग्रेस परिवारवाद, तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार को छोड़ दे, तो जनता उसे वापस ला सकती है. ये अमित शाह का कांग्रेस पर अब तक का सबसे करारा हमला था क्योंकि बीजेपी इन्हीं तीन बातों के आधार पर अपने आप को कांग्रेस से अलग बताती है.
अमित शाह ने दूसरा काम ये किया कि उदाहरण देकर, तुलना करके ये बताया कि कांग्रेस ने जब जब संविधान में संशोधन किए तो उसका उद्देश्य कुर्सी बचाना था और जब जब मोदी सरकार ने संशोधन किए तो मकसद गरीबों और पिछड़ों को ज्यादा अधिकार देने का था.
अमित शाह ने जो उदाहरण दिए, उन्हें समझने की जरूरत है. अमित शाह ने गिनाया कि कांग्रेस ने संविधान में जो संशोधन किए, वो अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगाने के लिए थे, आम नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनने के लिए थे. अमित शाह की ये बात सही है और इमरजेंसी के काले दिन इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं.
संविधान को लेकर बीजेपी पर तीन तरह के आरोप लगाए जाते हैं. अमित शाह ने इन तीनों का जवाब दिया.
एक तो राहुल गांधी बार बार संविधान की कॉपी लहराकर कहते हैं कि बीजेपी संविधान को बदलना चाहती है, आरक्षण को खत्म करना चाहती है. अमित शाह ने एक के बाद एक कई उदाहरण गिनाए, बताया कि मोदी सरकार ने पिछड़ों और गरीबों को अधिकार देने के लिए संविधान में कैसे बदलाव किया.
दूसरा आरोप ये लगता है कि बीजेपी वोटबैंक की राजनीति करती है, मुसलमानों को परेशान करती है. इसके जवाब में अमित शाह ने शाह बानो केस और तीन तलाक कानून का उदाहरण दिया. उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं का हक़ छीना और बीजेपी ने मुस्लिम महिलाओं को उनका हक़ दिलाया, तीन तलाक से मुक्ति दिलाई.
तीसरा आरोप बीजेपी पर ये लगाया जाता है कि वो EVM में गड़बड़ी करके चुनाव जीतती है. इसका भी अमित शाह ने स्पष्ट जवाब दिया. अमित शाह ने उदाहरण देकर पूछा, एक ही दिन में दो राज्यों के चुनाव के नतीजे आए, महाराष्ट्र में EVM खराब और झारखंड में EVM अच्छी कैसे हो सकती है? हालांकि अमित शाह के जवाब के बाद भी विपक्ष के नेता ये मुद्दा छोड़ेगें नहीं क्योंकि मंगवार को ही उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में देवेन्द्र फणनवीस की सरकार को EVM की सरकार कह दिया.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

योगी: जो किया वो कहा, जो कहा वो किया

AKB30 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाना न तो सांप्रदायिक है, न ये भड़काऊ है. किसी जगह पर भगवा झंडा लगाना भी कोई गुनाह नहीं हैं. योगी ने कहा कि अगर मुहर्रम का जुलूस कहीं से भी निकल सकता है, तो रामनवमी की शोभायात्रा, हनुमान जयन्ती शोभायात्रा या मूर्ति विसर्जन का जुलूस भी कहीं से गुजर सकता है. ये कहना गलत है कि मस्जिद के सामने से जुलूस क्यों निकाला गया.

योगी ने कहा कि बिना जाति या मजहब देखे सभी नागरिकों को सुरक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन अगर कोई किसी धार्मिक यात्रा पर पत्थर फेंकता है तो एक-एक पत्थरबाज को पकड़ना, उसे सजा दिलवाना भी सरकार का काम है और उनकी सरकार ये काम पूरी प्रतिबद्धता के साथ करेगी.

योगी ने कहा कि ये देश बाबर या ओरंगजेब के रास्ते पर नहीं, राम, कृष्ण और बुद्ध के आदर्शों पर ही चलेगा. योगी ने कहा संभल का सच अब धीरे धीरे बाहर आ रहा है. संभल में 46 साल से बंद पड़ा मंदिर खुल गया है. प्राचीन कुंए अब सामने आ गए हैं. अब संभल में दंगा करने वाले एक भी शख्स को बख्शा नहीं जाएगा.

असल में संभल के बहाने योगी ने विधानसभा में उन सारे सवालों के जबाव दे दिए, जो कहीं भी सांप्रदायिक हिंसा के बाद तथाकथित सेक्युलरवादियों की तरफ से उठाए जाते हैं. बहराइच में दंगा हुआ, रामगोपाल मिश्र की मौत हुई, तो कहा गया कि हिन्दू जुलूस लेकर मस्जिद के सामने से क्यों गुजरे? मुस्लिम बहुल इलाके में क्यों गए? मस्जिद के सामने डीजे क्यों बजाया? मस्जिद के सामने जयश्रीराम के नारे क्यों लगाए? मस्जिद के सामने भगवा झंडा क्यों लहराया? ये सवाल संभल में हुई हिंसा के बाद भी पूछे गए.

सोमवार को योगी ने सारे सवालों के साफ साफ जबाव दिए. लेकिन सवाल ये है कि योगी को इतनी साफ और स्पष्ट बात क्यों कहनी पड़ी? क्या संभल और बहराइच की हिंसा ने योगी को बोलने पर मजबूर किया? समाजवादी पार्टी के नेताओं ने ऐसा क्या कहा जिसके कारण योगी ने कह दिया कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द बाबा साहब अंबेडकर के बनाये संविधान में नहीं था.

योगी ने करीब एक घंटे तक सदन में विपक्ष को करारे जवाब दिए. बिना लाग लपेट के साफ-साफ बात की. योगी ने कहा कि ये देश श्रीराम, कृष्ण और भगवान बुद्ध का देश है, उन्हीं के रास्ते पर चलेगा.

योगी ने पूछा कि ‘जय श्रीराम’ का नारा सांप्रदायिक कब से हो गया? हिन्दू तो जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभु राम का नाम लेते हैं, सुबह से लेकर शाम तक राम-राम करते हैं इसलिए अगर कोई जय श्रीराम के नारे को सुनकर भड़कता है, इसका मतलब है उसकी नीयत खराब है.

योगी ने कहा कि मुसलमानों के मजहबी जुलूस भी मंदिरों के सामने से गुजरते हैं, उनमें मजहबी नारे भी लगते हैं लेकिन तब तो हिंसा नहीं होती. योगी ने कहा कि मंदिरों के सामने से मुसलमानों के मजहबी जुलूस शान्ति से गुजरें और मस्जिद के सामने से कोई यात्रा निकले तो हिंसा हो,इसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है?

योगी ने कहा कि संभल की हकीकत तो अब खुद-ब-खुद सामने आ रही है, मंदिर भी मिल गया है, पुराने कुंए भी मिल रहे हैं, कुंओं से मूर्तियां भी निकल रही हैं. योगी ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमानों भी अपनी जड़ों की तरफ लौट रहे हैं और संभल में जो हुआ, उसके पीछे यही वजह है. योगी ने कहा कि संभल में तुर्क बनाम पठान का खेल चल रहा है.

आम तौर पर हमारे देश के नेता जो कहते हैं, वो करते नहीं हैं. कथनी और करनी में फर्क होता है, लेकिन योगी आदित्यनाथ जो कहते हैं, वो करते हैं, और जो करते हैं, उसे डंके की चोट पर कहते भी हैं. यही बात योगी आदित्यनाथ को दूसरे नेताओं से अलग बनाती है. इसीलिए आज योगी ने उन सारे सवालों के जवाब दिए, जो उनसे बार बार पूछे जाते हैं. जैसे, क्या योगी हिंदुत्व का एजेंडा चलाते हैं? क्या योगी मुसलमानों की संपत्ति पर बुलडोजर चलवाते हैं? क्या हिंदू, मस्जिदों के सामने DJ बजाते हैं और उन्हें कोई कुछ नहीं कहता? क्या हिंदू दंगे करवाते हैं ? क्या जय श्रीराम कहना गुनाह है? क्या भगवा झंडा लहराना अपराध है?

योगी ने हर सवाल का साफ साफ जवाब दिया. अपनी नीति और नीयत दोनों का खुलासा किया. योगी ने कहा कि भारत की परंपरा बाबर और औरंगजेब की नहीं है, राम, कृष्ण और बुद्ध की है.

योगी ने कहा मुसलमानों का जुलूस उन इलाकों से शांतिपूर्ण तरीके से निकलता है,जहां ज्यादा हिंदू रहते हैं, लेकिन जब हिंदुओं की शोभायात्रा मस्जिद के सामने से गुजरती है, तो उसपर पत्थर फेंके जाते हैं. इसलिए शांति और व्यवस्था भंग होती है.

योगी ने ये भी साफ किया कि उत्तर प्रदेश में बुलडोजर की जो भी कार्रवाई होती है, वो सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के आधार पर होती है, उसमें हिंदू मुसलमान में कोई फर्क नहीं किया जाता.

योगी ने बाबरनामा का जिक्र किया, अल्लामा इकबाल की शायरी की बात की. अल्लाहो अकबर के नारे की बात की और कहा कि अब यूपी में बंदूक की नोंक पर कोई अपनी बात नहीं मनवा सकता.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

On Hindutva, riots : Yogi at his vintage best

AKB30 Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath on Monday did not mince words in the Assembly, when he said, ” Chanting of ‘Jai Sri Ram’ is neither communal, nor provocative, but a symbol of faith.” He said, “People in India often greet each other with ‘Ram Ram’, and even during funeral procession, ‘Ram Naam Satya Hai’ is chanted..Nothing can happen in India without Ram. Then how can you (opposition) call ‘Jai Sri Ram’ slogan communal?”

This was vintage Yogi at his best. He raised a basic question. “If a Muharram procession can pass through any locality peacefully, then why can’t a Ramnavami or Hanuman Jayanti procession or idol immersion procession pass through a Muslim locality in peace? It is the duty of the government to provide security to all irrespective of religion. But if people start throwing stones, then it is also the responsibility of our government to catch every stone thrower and give punishment.” Yogi said, “India shall be run by the ideals of Ram, Krishna and Buddha, and not by the paths of Babur and Aurangzeb.”

On the Sambhal riots, Yogi said, truth is now coming out. A temple in Sambhal was reopened after 46 years on Monday and broken idols were found inside a well. Yogi said, “the Muslims of western U.P. now want to go back to their roots. In Sambhal, it is a fight between Muslims of Turkish ancestors and Pathans.”

Normally, I find, politicians in India do not do as they say in public. There is often a difference in what they say in public and what they do. Yogi is a politician of a different mettle. He says what he does, and he does what he says. This makes Yogi stand apart from other politicians. Yogi replied to all questions that have been raised frequently. Like, Is Yogi working on Hindutva agenda? Does Yogi’s government order use of bulldozers against Muslim properties only? Are Hindus deliberately allowed to play DJ music at loud volume outside mosques? Do Hindus have a hand in communal riots? Is chanting of Jai Sri Ram a crime? Is hoisting saffron flag a crime?

Yogi’s answers were quite clear. He made his “neeti”(policy) and “neeyat”(intent) quite clear. He did not mince words to say that India’s culture and traditions do not belong to Babur and Aurangzeb, but to Ram, Krishna and Buddha. He explained how use of bulldozers in UP is being done as per Supreme Court’s guidelines and no differentiation is made between Hindus and Muslims. Yogi quoted Baburnama and Allama Iqbal’s poetry, and said, the days are gone, when people used to force their ideas on others at gunpoint.

On the death of five Muslims in Sambhal violence on November 24, Yogi gave details on how 209 Hindus died in riots in Sambhal from 1948 till 2024. In the 1978 riots in Sambhal, 184 Hindus were killed, but none of the so-called secular parties demanded justice for Hindus. Yogi said, during Samajwadi Party’s rule, there were riots between even Shias and Sunni Muslims, but during BJP’s rule, this has come to an end. The matter in Sambhal has now gone beyond temple-moque dispute. Demographic statistics say, in 1947, there were 45 per cent Hindus in Sambhal, but now hardly 15 per cent Hindus stay in that town. Statistics say, a large number of Hindus migrated from Sabhal after the 1978 riots, and local Muslims bought Hindu properties at throwaway prices. Temples in Hindu locality were demolished. The truth has now tumbled out after broken idols were found from inside the well of a temple that was reopened after 46 years.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

अल्लू अर्जुन की गिरफ्तारी : सुपर स्टार से मिर्ची किस को लगी ?

AKB30 सुपरस्टार अल्लू अर्जुन को जिस तरह गिरफ्तार किया गया, वह चौंकाने वाला है. ‘पुष्पा 2′ के हीरो पर जिस तरह की गैर-जमानती धाराएं लगाई गईं, वो हैरान करने वाली हैं. अल्लू अर्जुन को जेल भेजने में जिस तरह की तेजी दिखाई गई, वो शक पैदा करने वाली है. ऐसा लगा जैसे किसी सुपर पावर की सुपरस्टार से निजी दुश्मनी है.
ये सही है कि जिस थिएटर में ‘पुष्पा 2′ फिल्म दिखाई जा रही थी, वहां एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ, जिसमें एक महिला दर्शक की भगदड़ में मौत हो गई और कई दर्शक ज़ख्मी हो गए.
लेकिनपुलिस तो ऐसे दिखा रही है जैसे अल्लू अर्जुन उस थिएटर की सिक्योरिटी के इंचार्ज थे.
अल्लू अर्जुन का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है. उन्होंने पुलिस से प्रीमियर के लिए अनुमति ली थी. फिर उनके साथ ये क्यों हुआ? ये सवाल गंभीर है.
क्या अल्लू अर्जुन का कसूर ये है कि उनकी फिल्म अब तक की सबसे बड़ी हिट है? क्या उनकी गलती ये है कि ‘पुष्पा 2′ ने 1000 करोड़ रु. का कारोबार किया है? क्या उनका गुनाह ये है कि जब वो थिएटर में दर्शकों का रिएक्शन देखने गए तो वहां ज़बरदस्त भीड़ थी और लोग बेकाबू हो गए? क्या उनका गुनाह ये है कि अल्लू अर्जुन की लोकप्रियता इस समय टॉप पर है?
अगर हाईकोर्ट समय रहते शुक्रवार को अन्तरिम जमानत न देता, तो अल्लू अर्जुन को बिना किसी कसूर के जेल में रहना पड़ता. इसका पब्लिक पर रिएक्शन हो सकता था. अगर उनके फैंस सड़कों पर उतर आते, कानून व्यवस्था बिगड़ जाती तो कौन जिम्मेदार होता?
आम तौर पर लोकप्रिय हस्तियों के मामले में कोई भी सरकार सोच समझकर काम करती है लेकिन अल्लू अर्जुन के मामले में जानबूझकर ऐसा क्यों किया गया, ये एक रहस्य है, जिसका सच सामने आना जरूरी है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Allu Arjun’s arrest is a mystery : Truth must come out

AKB30 The manner in which Telugu superstar Allu Arjun was dramatically arrested, spent the whole night in Hyderabad’s Chanchalguda prison, before being released on Saturday morning on interim bail, is indeed shocking.

Hyderabad Police slapped non-bailable provisions in its FIR against the ‘Pushpa 2′ hero. It should not have done so. The rapid pace in which Allu Arjun was arrested, produced before a local court that sent him to 14 days’ judicial custody, and then whisked away to prison, raises doubts in the minds of people. It appears there was some personal rivalry between a ‘super power’ and a ‘super star’.

The stampede that took place on December 4 at Sandhya theatre at the premier of the movie ‘Pushap 2 : The Rule’, which the star attended, resulted in the death of a 39-year-old female fan, Revathi. On Friday, police arrested Allu Arjun from his residence and took him to a police station.

Hyderabad Police says, it filed a case under BNS section 105 (punishment for culpable homicide not amounting to murder) and 118(1) read with 3(5) (voluntarily causing hurt or grievous hurt) based on the complaint of the family members of Revathi. A senior DCP said, “stringent action as per law will be taken against all persons responsible for the chaotic situation inside the theatre leading to the death of a person and injury to others.”

It was no doubt an unfortunate tragedy, but Hyderabad Police is trying to show as if Allu Arjun was incharge of security at the theatre. Allu Arjun has no past criminal record. He had taken permission in advance from the police for holding the premiere. Then why was he arrested and sent to jail? It is a serious question.

Was it Allu Arjun’s crime that his latest movie was a big hit? Was it is his guilt that ‘Pushpa 2′ movie did Rs 1,000 crore business? Was it his crime that when he went to the theatre to watch the reactions of cinegoers, there was a huge crowd that went out of control? Was it his crime that his popularity rating is right now on top of the charts?

Had the Telangana High Court not taken step at the right time and granted him interim bail on Friday, Allu Arjun would have remained incarcerated for no guilt of his. This could have caused a huge reaction among the public and lakhs of fans would have come out on the streets. Law and order situation would have deteriorated. Who would have then taken the responsibility?

Normally, any government takes well considered steps in cases relating to popular public figures, but it appears, in Allu Arjun case, steps were taken in a hurry. This is a mystery. Truth must come out.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

सभी धार्मिक स्थलों के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की रोक : एक स्वागत योग्य कदम

AKB30 सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में चल रहे मंदिर मस्जिद के मामलों में एक बड़ा आदेश दिया. निचली अदालतें अब मंदिर मस्जिद से जुड़े मामलों में कोई अंतरिम या अंतिम फैसला नहीं सुनाएंगी. कहीं किसी मस्जिद के सर्वे का आदेश नहीं देंगे. फिलहाल मंदिर मस्जिद को लेकर कोई नया केस किसी कोर्ट में शुरू नहीं होगा. जो पुराने केस चल रहे हैं, उनमें निचली अदालत सुनवाई तो कर सकती हैं, लेकिन कोई आदेश नहीं दे सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को लेकर फाइल की गई अर्जियों पर सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार को चार हफ्ते में इस मामले में जवाब देने को कहा है और अगली सुनवाई तक मंदिर मस्जिद के विवादों में निचली अदालतों को कोई आदेश देने से रोक दिया.
हालांकि वादियों ने मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह, धार में भोजशाला विवाद, जौनपुर की अटाला मजिस्द, अजमेर में ख्वाजा की दरगाह में शिवलिंग के विवाद जैसे 18 मामलों में लोअर कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों की कार्रवाई पर रोक लगाने से तो इंकार कर दिया , पर लोअर कोर्ट को आदेश दे दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई तक इस तरह के किसी मामले में कोई प्रभावी आदेश न दें.
अबपूजा स्थल अधिनियम 1991 पर केन्द्र सरकार को चार हफ्तों में अपना पक्ष पेश करना है.. उसके अगले चार हफ्तों में वादियों को केन्द्र सरकार के पक्ष पर जवाब देने का मौक़ा मिलेगा, यानी कम से कम अगले दो महीनों तक मंदिर मस्जिद से जुड़े विवादों पर ब्रेक रहेगा.
मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को अपनी बड़ी जीत बता रहा है. हिन्दू पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ प3क्रिया का अनुपालन किया है, ये आदेश कोई बड़ी बात नहीं है.
वकील सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहे हैं, कानूनी दांव पेंचों की बात कर रहे हैं, लेकिन मोटी बात ये है कि प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट ये कहता है कि 1947 में जिस धार्मिक स्थान का जो करैक्टर था, वो बरकरार रहेगा. उसे बदला नहीं जा सकता, यानि जो मस्जिद थी, वो मस्जिद रहेगी, जो मंदिर था, वो मंदिर रहेगा.
जब से ज्ञानवापी केस में लोअर कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया, उसके बाद अचानक इस तरह के मामलों की बाढ़ सी आ गई. मथुरा के अलावा धार की भोजशाला में सर्वे का आदेश दिया गया. फिर संभल में सर्वे का आदेश अर्जी देने के दो घंटे के भीतर आ गया. इस चक्कर में संभल में हिंसा हुई, पांच लोगों की मौत हो गई.
अजमेर में ख्वाजा की दरगाह को लेकर अर्जी फाइल हो गई. विष्णुशंकर जैन और हरिशंकर जैन ने कह दिया कि उन्होंने ऐसी कम से कम दर्जन फाइलें और तैयार कर रखी हैं. इसीलिए मुस्लिम पक्षकार सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिली.
अब कम से कम जब तक सुप्रीम कोर्ट 1991 के प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधानिकता पर अंतिम फैसला नहीं करता, तब तक तो इस तरह के विवादों पर रोक रहेगी और भरोसा करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा फैसला करेगा जिसके बाद हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने का सिलसिला और मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर सियासी हंगामा हमेशा के लिए बंद होगा.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Supreme Court freeze on all religious disputes is a welcome step

AKB30 In a significant step, the Supreme Court on Thursday stayed filing of fresh lawsuits relating to all places of worship and directed courts not to entertain any fresh suit. The apex court also directed courts not to issue any interim or final order, including orders for survey, relating to any place of worship, till the validity of Places of Worship Act, 1991 is examined.

A bench of Chief Justrice Sanjiv Khanna and Justices Sanjay Kumar and K V Vishwanathan asked the Centre to file an affidavit on this issue with next four weeks. The matter will now be heard on February 17, 2025.

Lower courts can continue hearing in all pending cases but shall not pass any interim or final order, the apex court said. Though the Muslim petitioners had sought stay on 18 cases including those relating to Mathura Krishna Janmasthan, Dhar Bhojshala, Jaunpur Atala mosque and Ajmer Sharif dargah, the apex court in its omnibus stay, put a freeze on all orders relating to all places of worship.

Jamiatul Ulama-e-Hind chief Maulana Arshad Madani welcomed the SC order and expressed hope that the Centre, in its affidavit, would defend the Places of Worship Act passed by Parliament in 1991. Islamic scholar Maulana Khalid Rashid Firangimahali said, this order of Supreme Court will strengthen Hindu-Muslim brotherhood. AIMIM chief Asaduddin Owaisi hoped that no fresh dispute will now arising relating to places of worship till the apex court finally settles the dispute.

Hindu side lawyers said that such a stay was normal and should not be termed as victory for any side.

Lawyers may interpret the Supreme Court order in their own way, but the moot point is that the original character of all places of religious worship, as of August 15, 1947, shall continue to remain intact. Mosques shall continue to function and temples will also continue to exist.

After a lower court in Varanasi ordered survey of Gyanvapi mosque, there had been a spate of similar suits relating to mosques across India. A survey order for Sambhal mosque came from a lower court within two hours of the petition been filed. This resulted in violence and arson in Sambhal resulting in death of five people.

Another petition was filed relating to Ajmer Khwaja Dargah by advocates Vishnu Shankar Jain and Hari Shankar Jain, who claimed that they have filed at least a dozen petition in similar cases. Muslim petitioners then moved the Supreme Court and they got relief on Thursday.

Supreme Court will now have to finally decide the validity of Places of Worship Act, 1991, and till that time, there shall be a freeze on all such disputes. Let us hope that the Supreme Court will give its verdict so that this trend of searching for Shiv Lingams under every mosque must cease.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

अतुल की आत्महत्या का सबक: दहेज कानून में बदलाव

AKBआज मैं आपको बड़े दुखी मन से 34 साल के एक नौजवान की दर्दनाक आत्महत्या के बारे में बताना चाहता हूं. इस सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज किए गए झूठे मामलों और तीन करोड़ रुपये की मांग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली.
ये केस मिसाल है कि हमारा दहेज विरोधी कानून कितना क्रूर है, कैसे इसका दुरुपयोग हो सकता है और कैसे इस अंधे कानून ने एक नौजवान और उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया. वो कोर्ट के चक्कर लगा लगाकर थक गया. पुलिस के आगे हाथ जोड़जोड़ कर रोता रहा और जब इंसाफ की कोई उम्मीद नहीं बची तो उसने फांसी लगाकर जान दे दी.
मौत को गले लगाने से पहले अतुल ने 24 पन्नों का नोट लिखा. फिर डेढ़ घंटे का वीडियो बनाया. अपनी पूरी दास्तां बताई, अपनी आखिरी इच्छा बताई, फिर दीवार पर लिखकर चिपकाया कि Justice Is Due और फांसी लगाकर जान दे दी.
अतुल सुभाष ने अपने सुसाइड नोट में जो लिखा, अपने आखिरी वीडियो में जो कहा, वो आपके रोंगटे खड़े कर देगा. अतुल सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, बेंगलुरु में अच्छी नौकरी थी, अच्छी सैलरी थी, लेकिन पिछले तीन साल में पत्नी से अनबन के चलते बात कोर्ट तक पहुंची. दहेज विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज हुआ. फिर एक के बाद एक नौ केस दर्ज हो गए.
अतुल कोर्ट में पेशी के लिए बैंगलूरू से जौनपुर के चक्कर काट-काट कर परेशान हो गया, माता-पिता और भाई भी मुकदमों में फंस गए. समझौते के लिए पत्नी ने तीन करोड़ रूपए मांगे. अदालत से इंसाफ के बजाय तारीख पर तारीख मिलती रही.
अतुल सिस्टम से इतना परेशान हो गया कि उसने जिंदगी की बजाय मौत को चुना. अब बैंगलुरू पुलिस अतुल की पत्नी और उसके परिवार वालों से पूछताछ करेगी. अतुल को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का केस दर्ज हुआ है. लेकिन इससे क्या होगा? उन बूढ़े मां-बाप का बेटा वापस तो नहीं आएगा, जो उनके बुढ़ापे का सहारा था. आज जिसने भी दहाड़े मार कर रोती हुई, बेहोश होकर गिरती अतुल की मां की तस्वीरें देखीं, उसका कलेजा फट गया.
अतुल की मौत ने फिर दहेज कानून पर सवाल खड़े कर दिए. हमारी न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगा दिए. ये सच है कि जिंदगी से जरूरी कुछ नहीं, मौत किसी समस्या का निदान नहीं. लेकिन अतुल की मौत ने सबको सोचने के लिए मजबूर कर दिया.
अतुल सुभाष के मां-बाप बिहार के समस्तीपुर में रहते हैं. सोमवार की रात बैंगलुरू में उसने ख़ुदकुशी कर ली. आत्महत्या करने से पहले अतुल ने सुसाइड नोट लिखा, अपना वीडियो अपलोड किया, अपने केस से जुड़े ई-मेल अपने जानने वालों को, एक NGO को भेजे. इसके साथ-साथ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी मेल भेजकर अपनी पूरी दास्तां बताई.
अतुल ने लिखा कि वह अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और उनके परिवार से तंग आ गए हैं. कोर्ट से भी न्याय के बजाय तारीख पर तारीख मिल रही है. अतुल ने सुसाइड नोट में लिखा कि उनके खिलाफ मुकदमेबाजी में उनके मां-बाप और भाई भी पिस रहे हैं. इन मुसीबतों से निजात का एक ही रास्ता है, ख़ुदकुशी. अतुल की पत्नी दिल्ली में रहती है, सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. पत्नी ने अतुल के खिलाफ IPC दफा 498 के साथ साथ कई दूसरी धाराओं में अलग अलग नौ केस जौनपुर में फाइल किए.
अतुल ने अपने वीडियो में कहा कि पिछले दो साल में कोर्ट में 120 से भी ज़्यादा तारीखें लग चुकी हैं. उन्हें साल में सिर्फ 23 छुट्टी मिलती है. लेकिन वह कोर्ट में पेशी के लिए बैंगलूरू से जौनपुर के चालीस चक्कर लगा चुका है. हर बार परेशानी और नई तारीख के सिवा कुछ नहीं मिला. अतुल ने कहा कि उनकी पत्नी ने उसके पूरे परिवार को झूठे केस में फंसा दिया है. दहेज प्रताड़ना के अलावा मारपीट, धमकी, और तो और अपने पिता की हत्या का केस भी कर रखा है. अतुल ने कहा कि पत्नी चार साल के बेटे से मिलाने के एवज में भी तीस लाख रुपए की मांग कर रही है. वो न माता-पिता और भाई को कोर्ट के चक्कर लगाते हुए देख सकते हैं, न अपने बच्चे से दूर रह सकते हैं, और न इतना पैसा दे सकते हैं. इसलिए मुक्ति का एक ही रास्ता है कि वो अपनी जान दे दें.
अपने सुसाइड नोट में अतुल ने अपनी सास निशा सिंघानिया के बारे में लिखा है. अतुल ने लिखा है कि उनकी सास ने पूछा कि तुमने अब तक सुसाइड क्यों नहीं किया? इसके जवाब में अतुल ने कहा कि अगर वो मर गए, तो आप लोगों की पार्टी कैसे चलेगी? अतुल ने सुसाइड नोट में लिखा कि इसके बाद उनकी सास ने कहा कि पार्टी तब भी चलेगी, तेरा बाप पैसे देगा, पति के मरने के बाद सब पत्नी का होता है. अपने वीडियो में अतुल ने सास की इसी बात को अपनी आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बताया और कहा कि उनके दिए पैसों से ही सारा खेल चल रहा है. इसलिए सुसाइड कर लेंगे, तो ये मामला भी ख़त्म हो जाएगा.
अतुल ने वीडियो में अपनी आख़िरी इच्छा बताईं. अपने परिवार के लोगों को सलाह दी कि वो उसकी पत्नी निकिता सिंघानिया या उनके परिवार के सदस्यों से कभी भी कैमरे के बग़ैर दो चार लोगों को साथ लिए बिना न मिलें, वरना वो कोई नया इल्ज़ाम लगा देंगे. अतुल ने कहा कि मरने के बाद उनकी पत्नी और उसके परिवार के किसी सदस्य को उनके पार्थिव शरीर के आस-पास भी न आने दिया जाए.
अतुल ने अपने वीडियो में निचले स्तर की न्यायपालिका के काम-काज पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने जिन पांच लोगों को अपनी मौत का ज़िम्मेदार ठहराया, उनमें पहला नाम जौनपुर की फैमिली कोर्ट की लेडी जज का है. अतुल का इल्ज़ाम है कि फैमिली कोर्ट की जज उनको परेशान करने में पत्नी और उसके परिवार का साथ देती हैं. उन्होंने मामला सेटेल करने के बदले में पैसे मांगे थे. कोर्ट के क्लर्क भी पैसे लेकर ऐसी तारीख़ें लगाते थे, जिससे वो परेशान हों. अतुल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कम से कम आत्महत्या के बाद उनके परिवार को इंसाफ़ मिलेगा. अतुल ने अपने आखिरी वीडियो में कहा कि अगर उनकी मौत के बाद भी जज और कोर्ट के भ्रष्ट कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न हो, तो उनकी अस्थियों को कोर्ट के बाहर नाली में बहा दिया जाए.
अतुल का ये कथन हमारे सिस्टम पर करारा प्रहार है. ये संयोग है कि मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने भी दहेज विरोधी क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई. जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह ने कहा कि महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाने के लिए IPC में दफा 498A जोड़ी गई थी, लेकिन, अब इस क़ानून का इस्तेमाल पति के साथ-साथ उसके परिवार को फंसाने के लिए ज़्यादा होने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब घरेलू विवाद बढ़ जाते हैं, तो अक्सर ये देखा जाता है कि पत्नी और उसके परिवार वाले पति के पूरे परिवार के ख़िलाफ़ मुक़दमा कर देते हैं ताकि पति से अपनी मांगें मनवाई जा सकें. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को सलाह दी कि वो दहेज मामलों में बहुत सावधानी से काम लें, पत्नी अगर अपने पति के पूरे परिवार के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाए, तो ऐसे मामलों की बारीक़ी से पड़ताल करें.
अतुल सुभाष की आत्महत्या बहुत सारे सवाल खड़ी करती है. क्या अतुल का कसूर ये था कि उसकी अपनी पत्नी से अनबन हो गई? क्या उसका कसूर ये था कि उसके पास समझौते के लिए तीन करोड़ रुपये नहीं थे? क्या उसका कसूर ये था कि उसने कोर्ट में कुछ लोगों को पैसे नहीं खिलाए? किसी भी इंसान के लिए बैंगलोर से बार-बार केस लड़ने जौनपुर जाना कितना दुखदायी हो सकता है. अदालत से इंसाफ की उम्मीद छूट जाना, कितनी तकलीफ दे सकता है.
अतुल का केस इसका एक ज्वलंत उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट ने दहेज के कानून के बारे में क्या कहा, उसे ध्यान से सुनने और समझने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा दहेज का कानून इसीलिए बनाया गया था कि महिलाओं को दहेज के उत्पीड़न से बचाया जा सके. लेकिन अब किसी भी पारिवारिक विवाद में इस कानून का इस्तेमाल पति और उसके परिवार को फंसाने के लिए होता है. असल में आईपीसी की धारा 498A वो कानून है जिसमें पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती है और इस केस में जमानत नहीं मिलती. बीसियों बार इस तरह के मामले .सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सामने आए हैं और बार-बार अदालतों ने कहा है कि पारिवारिक झगड़े में FIR करने से पहले पुलिस को प्राथमिक जांच करनी चाहिए.
सुलह समझौता कराने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण कमेटी होनी चाहिए, लेकिन कुछ नहीं हुआ. कोर्ट के दो फैसले ऐसे हैं जिन्हें यहां बताने की जरूरत हैं. कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि धारा 498A का दुरुपयोग करके महिलाओं ने ‘लीगल टेरर’ (कानूनी आतंक) मचा रखा है और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि ‘शादी विवाह से जुड़े हर मामले’ दहेज से संबंधित उत्पीड़न के आरोपों के साथ बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए जा रहे हैं. अगर इसका दुरुपयोग ऐसे ही जारी रहा तो ये विवाह संस्था को ‘बिल्कुल ख़त्म’ कर देगा.
अदालतों की इतनी बड़ी चेतावनी के बावजूद आज भी ये कानून जैसा का तैसा है और हजारों परिवार बर्बाद हो चुके हैं. हजारों बूढ़े मां-बाप जेल में बंद हैं. न्याय की कोई उम्मीद नहीं है. अतुल का केस इसी त्रासदी की तरफ इशारा करता है. उसकी मां हाथ जोड़कर इंसाफ मांग रही है लेकिन ये कानून इतना सख्त है कि कोई भी पत्नी इसका इस्तेमाल करके अपने पति को प्रताड़ित कर सकती है, आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर सकती है. और ये राय अदालतों ने बार बार व्यक्त की है.
इसीलिए अगर अतुल सुभाष की मौत से कोई सबक लेना है तो वो यही होगा कि इस कानून को ऐसा बनाया जाए कि कोई इसका दुरुपयोग न कर सके. फिर कोई अतुल झूठे मामलों की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर ना हो. अतुल ने दीवार पर लिखा था इंसाफ मिलना अभी बाकी है. हालांकि अतुल को इंसाफ कब मिलेगा, हमारे नेताओं को दहेज विरोधी कानून पर विचार करने का वक्त मिलेगा, ये अभी कहना मुश्किल है क्योंकि संसद में लोगों की समस्याओं पर विचार करने की बजाय दूसरे विषयों पर हंगामा चल रहा है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Justice for Atul : Amend Anti-Dowry Law soon

AKBThe suicide of a 34-year-old Bengaluru techie Atul Subhash, harassed by his wife and in-laws in legal tangles, has caused pain to millions of people. Atul left behind a 24-page suicide note and an 81-minute video before he committed suicide. In his emotional suicide note, Atul wrote, “Don’t do my ‘Asthi Visarjan’ till my harassers get punished. If the court decides that my wife and other harassers are not guilty, then pour my ashes into some gutter outside the court.” He further wrote, “there shall be no negotiations, settlements and mediations with these evil people and the culprits must be punished. My wife should not be allowed to withdraw cases to escape punishment unless she explicitly accepts that she has filed false cases.”

The techie uploaded his video on internet titled, “This ATM is closed permanently. A legal genocide is happening in India”. The video detailed “abuse and harassment” that he went through from his wife and in-laws. Atul’s wife Nikita Singhania had filed nine cases against him and had demanded Rs 3 crore for settlement. It exposes the dark side of our dowry prohibition law that is being misused by people. The techie after making frequent travels from Bengaluru to Jaunpur, in UP, to attend court hearings, became tired. He pleaded before police and judge with folded hands, but did not get justice. Tired and depressed, Atul wrote the suicide note, recorded the video, wrote “Justice is Due” on the wall of his room and hanged himself.

Atul worked as a software engineer. For the last three years, he had quarrels with his wife and their dispute reached the courts. His parents and brother were also made parties to these legal disputes. Atul was so much exasperated with the system that he decided to choose death over life. His aged parents are now weeping over the loss of their son. This suicide has raised questions about our judicial system and dowry prevention law. I agree that death is no solution to problems, but this suicide has forced all of us to think. Atul’s parents live in Samastipur, Bihar. Before he commited suicide in Bengaluru, he uploaded his video on internet, and forwarded his legal cases to his acquaintanes, an NGO and the High Court and Supreme Court. His wife had filed nine different cases under Section 498 IPC and other sections in Jaunpur. Atul had to attend more than 120 court hearings in the last two years. He used to get 23 days’ holiday in his company every year, and already he had made 40 rounds of Jaunpur from Bengaluru.

Atul’s suicide note is a serious blow to our system. A day before, the Supreme Court had strongly criticized growing misuse of Section 498-A of the Indian Penal Code, commonly known as anti-dowry provision, noting that it is increasingly being exploited to settle ‘personal vendettas’ or exert undue pressure on husbands and their families. The bench of Justices B V Nagarathna and N. Kotiswar Singh, had said, “there has been a growing tendency to use Section 498A as a tool to unleash personal vendetta against the husband and his family members.” The bench said there was need for judicial scrutiny to prevent unwarranted implication of innocent individuals. The apex court advised lower courts to strike a balance between protecting the rights of women and ensure fair treatment for those accused.

The Bengaluru techie’s suicide raises several questions. Was it Atul’s crime that he had quarrels with his wife? Was it his crime that he did not have Rs 3 crore to strike a compromise deal with his wife? Was it his crime that he did not give bribes to lower court staff? For any individual, frequent travels between Bengaluru and Jaunpur are nothing but woes. Yet, he did not get justice from courts. One must go through the Supreme Court’s observations made on Tuesday in a dowry harassment case. Supreme Court has said that the anti-dowry law was made to protect married women from dowry harassment. But to use this provision of Section 498-A IPC in all family dispute cases is nothing but blatant misuse of law.

Under Section 498-A, police has powers to arrest accused without any warrant, and normally bail is not granted in such cases. There had been scores of such cases in which families were unduly harassed under anti-dowry law provisions. Courts had advised formation of Family Welfare Committee in every district to bring compromise between couples. But this did not happen. I would like to mention two more observations from two High Courts. Calcutta High Court had said that misuse of Section 498-A IPC is nothing but “legal terror” unleashed by some women litigants. Allahabad High Court had said that almost every case relating to marriage is being exaggerated as dowry harassment case. The High Court opined that if this misuse continued, the very institution of marriage might come to an end.

Thousands of families in India have been adversely affected due to misuse of this provision. Aged fathers and mothers are spending time in jail, with no sign of justice. Atul’s case points towards this tragedy. His weeping parents are seeking justice with folded hands. But the law is so strict that any married woman can misuse it and harass her husband and can even force the latter to commit suicide. Courts have frequently given their opinions on this matter. We should learn a lesson from Atul’s death. The law must be amended to ensure that no one can misuse its provision. No more Atuls must be forced to commit suicide in future. It is difficult to say when Atul’s family will get justice and when our leaders will get time to do a rethink about anti-dowry law provisions.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Baba Ka Bulldozer : Illegal portions of mosque razed

akbFive bulldozers were used to demolish illegal constructions made at Noori Jama Masjid in Fatehpur district of Uttar Pradesh on Tuesday. There was no stoning, no firing nor lathicharge. There were no protests. The demolition was done peacefully in the presence of district magistrate, SP, SDM and Tehsildar. The portions of the 185-year-old mosque which were built after encroaching on government land were demolished. Local Muslim residents said, the original mosque was smaller, but over the years there were encroachments to build ‘minars’ and shops.

According to the local administration, bulldozers were used as per recent guidelines given by the Supreme Court. Noori Masjid was built in 1839. Over the years, more additions were made by encroaching upon government land. Four months ago, on August 17, the state Public Works Department issued notices to 139 persons, including the Noori Masjid Management Committee and directed them to remove illegal encroachments within 45 days. Several shopkeepers removed their shops, but the Masjid Committee sought more time.

The Masjid Committee filed a petition in Allahabad High Court, but the High Court refused to stay demolition. Masjid Committee members alleged that the High Court had adjourned the hearing to December 13, but the administration decided to demolish.

Three points are clear from this demolition. One, the original historic structure of the mosque remains intact and only the shops and ‘minars’ that were built on government land were demolished. Two, sufficient time was given by issuing notices. Three, the High Court did not give any relief to the Masjid Committee nor did it stay the demolition.

On the allegation that heavens would not have fallen if the administration had given some more time, it can be said that the constructions were illegal, government land was encroached upon and therefore demolished. Because of these illegal constructions, work on building the state highway had come to a standstill.

I think the Masjid Committee should have come forward on its own and removed the illegal structures. The state highway is going to benefit all sections of society. Use of bulldozers could have been avoided. Whenever demolition takes place near mosques, baseless rumours make the rounds on social media. The manner in which the local administration dealt with the issue is a right one. All the facts were laid before the parties and there was no dispute.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

बाबा का बुलडोज़र चला: पुरानी मस्जिद का गैरकानूनी हिस्सा गिरा

akbउत्तर प्रदेश में बाबा का बुलडोज़र फिर चला. फतेहपुर में 185 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद के अवैध हिस्से को जमींदोज़ कर दिया गया लेकिन न पत्थर चले, न गोलियां चलीं, न लाठीचार्ज हुआ, न विरोध प्रदर्शन हुआ. पूरे शहर में शान्ति रही. पांच बुलडोजर पहुंचे, DM, SP, SDM, तहसीलदार समेत सारे अफसर मुस्तैद थे. पूरी पैमाइश हुई. मस्जिद का जो हिस्सा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया था, उसे तोड़ दिया गया. बड़ी बात ये है कि इलाके के मुस्लिम भाइयों ने भी कहा कि पहले छोटी मस्जिद थी, धीरे धीरे बढ़ती गई, मस्जिद का नया हिस्सा सरकारी जमीन पर बना था, इसीलिए उसे तोड़ा गया.
हालांकि कुछ लोगों ने ये भी कहा कि मस्जिद कमेटी की तरफ से हाईकोर्ट में अपील की गई थी लेकिन प्रशासन ने अदालत का फैसला आने से पहले ही बुलडोजर चला दिया, ये ठीक नहीं हैं. मंगलवार को जब बुलडोज़र चले, तो उस इलाके में पुलिस का जबरदस्त बंदोबस्त था. पुलिस की सख्ती के कारण लोगों ने दुकाने नहीं खोलीं. करीब पांच घंटे की कार्रवाई के बाद मस्जिद के अवैध हिस्से को गिराने का काम पूरा हो गया. नूरी मस्जिद के अवैध हिस्से सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाये गए थे.
पहले इस इलाके में जंगल था, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब यहां स्टेट हाइवे बन रहा है और नूरी मस्जिद का अवैध हिस्सा उसी जमीन में पड़ रहा है जहां से हाइवे को गुजरना है, इसीलिए मस्जिद कमेटी को अगस्त में मस्जिद के अवैध हिस्से को हटाने के लिए नोटिस दिया गया लेकिन मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में अपील कर दी. कमेटी को लोअर कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो सितंबर में प्रशासन ने मस्जिद के आसपास जो दुकाने बनाई गई थी उन्हें गिरा दिया. इसी बीच मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में अर्जी दी, जिस पर 13 दिसंबर को सुनवाई होनी थी.
प्रशासन का कहना है कि फतेहपुर में बुलडोजर एक्शन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का पालन करते हुए लिया गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कोई अवहेलना नहीं हुई है. लेकिन नूरी मस्जिद कमेटी का इल्ज़ाम है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तोड़ा है.
फतेहपुर में जो बुलडोजर चला, उसमें तीन बातें साफ हैं. पहली, मस्जिद के मूल ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, वो पहले की तरह बरकरार है. दो, जिन दुकानों और मीनारों को तोड़ा गया, वो सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई थी. तीन, मस्जिद कमेटी को पर्याप्त नोटिस दिया गया था. हाई कोर्ट से भी मस्जिद कमेटी को राहत नहींमिली. कोर्ट ने डिमोलिशन पर स्टे नहीं दिया था. अब विवाद सिर्फ इस बात पर है कि प्रशासन थोड़ा और वक्त दे देता, तो कौन-सा पहाड़ टूट जाता? लेकिन निर्माण गैरकानूनी था, सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाया गया था, तोड़ा इसीलिए गया क्योंकि इसकी वजह से हाईवे बनाने का काम रुक रहा था.
मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थिति में मस्जिद कमेटी को खुद आगे आकर गैरकानूनी निर्माणों को तोड़ना चाहिए था. हाइवे बनेगा तो इसका फायदा सभी लोगों को होगा. बुलडोजर चलाने की नौबत ना आती तो बेहतर होता क्योंकि जहां मामला मस्जिद से जुड़ा होता है, वहां अफवाहें फैलने का मौका होता है. लेकिन इस बार अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने सावधानी से काम लिया. सारी बातें खुलकर लोगों के सामने रखीं, इसीलिए विवाद ज्यादा नहीं हुआ.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

सोनिया, राहुल पर वार : सोरोस बने हथियार

AKBनौ दिसम्बर को सोनिया गांधी का जन्मदिन था. उसी दिन बीजेपी ने संसद में सोनिया गांधी पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया. बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने राज्यसभा में आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के संगठन से करीबी रिश्ते हैं. नड्डा ने कहा कि कारोबारी जॉर्ज सोरोस कांग्रेस के साथ मिलकर खुलेआम भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं, सोरोस कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते. वह मोदी सरकार को हटाने और भारत में अस्थिरता पैदा करने का काम करते हैं.
बीजेपी ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी जॉर्ज सोरोस से जुड़े संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष है. बीजेपी ने मांग की कि कांग्रेस के सोरोस के फाउंडेशन के साथ रिश्तों की जांच के लिए JPC का गठन होनी चाहिए और संसद में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए.
बीजेपी के नेताओं ने बार बार ये मांग उठाई तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत कांग्रेस के सारे नेता उत्तेजित हो गए. .सोनिया गांधी पर लगे आरोपों से कांग्रेस के नेता इतने नाराज हो गए कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ पर पक्षपात का इल्जाम लगा दिया. फिर सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया.
सवाल ये है कि आखिर जॉर्ज सोरोस के नाम से कांग्रेस के नेता इतने परंशान क्यों हो गए?

जॉर्ज सोरोस अरबपति अमेरिकी कारोबारी हैं, दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में उनका संगठन काम करता है. फोरम फॉर डेमोक्रेडिट लीडर्स फाउंडेशन को जॉर्ज सोरोस से फंडिग मिलती है. इस संगठन के चार सह-अध्यक्ष हैं जिनमें राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी भी एक हैं. फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन का एजेंडा भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक रहा है.
बीजेपी प्रवक्ता सुधाशुं त्रिवेदी ने आरोप लगाया कि कि जॉर्ज सोरोस के संगठन से जुड़े लोग राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल थे. अब कांग्रेस को साफ करना पड़ेगा कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी भारत में जॉर्ज सोरोस के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स की स्थापना तीस साल पहले दिसंबर 1994 में साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में की गई. इसका गठन साउथ कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति किम डेई जंग की पहल पर हुआ, जो अब भी इसके चार सह-अध्यक्षों में से एक हैं.सोनिया गांधी 1994 में राजनीति में नहीं आई थी लेकिन उस वक्त वो राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष थी, इसीलिए सोनिया गंधी को फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स का सह-अध्यक्ष बनाया गया. जॉर्ज सोरोस की तरफ से राजीव गांधी फाउंडेशन को फंड भी दिए गए.
जॉर्ज सोरोस कश्मीर में जनमतसंग्रह की मांग का समर्थन करते हैं, वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते, नरेन्द्र मोदी को तानाशाह बताते हैं, इसीलिए सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के संगठन के साथ सोनिया गांधी के रिश्तों पर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ेगी क्योंकि ये रिश्ता देशद्रोह जैसा है.
हंगेरी में जन्मे अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस अपने आप को किसी एक देश का नागरिक नहीं मानते. वो अपने आप को stateless कहते हैं. वह पिछले कई साल से भारत के अस्थिर बनाने का एजेंडा चला रहे हैं. खास तौर पर नरेंद्र मोदी हमेशा उनके निशाने पर रहते हैं. भारत में चुनाव के मौके पर वह सूचना जगत से जुड़े कई ऐसे बम फोड़ते हैं जिनसे मोदी को नुकसान हो. संसद के सत्र से पहले उनका पूरा सिस्टम ऐसी खबरें रिलीज करता है जिससे सरकार के खिलाफ माहौल बने.
सवाल ये है कि इन सारी बातों से सोनिया गांधी का क्या कनेक्शन है? और आज बार बार सोरोस के कनेक्शन में सोनिया गांधी का नाम क्यों आया? असल में सोनिया गांधी भारत विरोधी संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष हैं. इसीलिए सोनिया गांधी से बार बार पूछा गया कि उनका इस संगठन से क्या कनेक्शन है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया.
दूसरी तरफ राहुल गांधी को लेकर बीजेपी का आरोप है कि वह सोरोस के साथ मिलकर भारत विरोधी साजिश करते हैं. सोरोस राहुल को अग्रिम सूचना देते हैं. उसके आधार पर वो संसद के अंदर और बाहर मोदी के खिलाफ कैंपेन चलाते हैं.
इस पृष्ठभूमि में दो बातें साफ है. सोनिया और राहुल का सोरोस से, उसके फाउंडेशन से, उसके सिस्टम से पूरा-पूरा संबंध है और सोरोस मोदी के खिलाफ हैं. खुलकर ये बात कहते हैं और मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं.अब सवाल ये है कि सारे मामले में गौतम अडानी का जिक्र क्यों आया ?
राहुल का नया इल्जाम ये है कि सोरोस और उसके संगठनों ने अडानी को एक्सपोज किया और मोदी अडानी का बचाव कर रहे हैं. लेकिन इस पूरे मामले में जॉर्ज सोरोस का रोल बहुत दिलचस्प है.
लंदन के आखबार ‘फायनेंशियल टाइम्स’ से जॉर्ज सोरोस का कनेक्शन है, चार साल पहले 2020 में ‘फायनेंशियल टाइम्स’ ने लिखा अगर मोदी को कमजोर करना है तो गौतम अडानी को टारगेट करना होगा. राहुल गांधी बिलकुल इसी राह पर चलते हैं और इसकी कई मिसाल हैं – G20 समिट से पहले राहुल ने अडानी का नाम लेकर मोदी पर हमला किया. उसके बाद चाहे हिंडनबर्ग रिपोर्ट हो या अमेरिका में अडानी के खिलाफ जांच की खबर, सोरोस खबर बनाते हैं और राहुल मोदी के खिलाफ उसका पूरा पूरा इस्तेमाल करते हैं.
कहा तो ये भी जाता है कि राहुल गांधी जब इंग्लैंड या अमेरिका जाते हैं तो उनकी यात्रा की प्लानिंग सोरोस के सिस्टम द्वारा की जाती है. राहुल गांधी ने इस बात पर न कभी जवाब दिया, न कभी सफाई दी.
राहुल ये तो कहते हैं कि अडानी मोदी एक हैं. वह ये तो कहते हैं कि मोदी अडानी के लिए काम करते हैं लेकिन राहुल गांधी ने बीजेपी के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि अगर अडानी इतने भ्रष्ट हैं तो कांग्रेस की सरकारों ने अडानी को प्रोजेक्ट्स क्यों दिए? तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने, राजस्थान में अशोक गहलोत ने बतौर मुख्यमंत्री अडानी को गले क्यों लगाया? अडानी को लेकर राहुल का ये डबल रोल, सोरोस से उनका कनेक्शन शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव बखूबी समझते हैं. इसीलिए उन्होंने भी इस मसले को लेकर राहुल से दूरी बनाई.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook