मोदी देंगे करोड़ों को रोज़गार : क्या ये कुर्सी बचाओ बजट है ?
नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार का पहला बजट आया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के इस बजट में लोकसभा चुनाव के नतीजों के असर दिखाई दिए. नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू के समर्थन का फायदा बिहार और आन्ध्र प्रदेश को मिला. बजट में इन दोनों राज्यों के लिए दिल खोलकर पैसा दिया गया. हालांकि बिहार या आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला लेकिन बजट के जरिए दोनों राज्यों को करीब पचहत्तर हज़ार करोड़ की योजनाएं दी गईं. इसके अलावा जिन मुद्दों पर विपक्ष नरेन्द्र मोदी की सरकार को घेर रहा था, उन मुद्दों को भी चतुराई से निपटाया गया. रोजगार के नए मौके पैदा करने के लिए MSME सैक्टर को मजबूती दी गई है, पांच साल में चार करोड़ नौजवानों को नौकरी देने, पहली सैलरी सरकार की तरफ से दिए जाने का एलान हुआ, पीएफ में पहला अंशदान सरकारी खजाने से दिया जाएगा. सरकार एक करोड़ नौजवानों को देश की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में एक साल तक इंटर्नशिप कराएगी, युवाओं के रोजगार के लिए सरकार ने दो लाख करोड़ रु. का बजट रखा गया, गरीबों के लिए सरकार तीन करोड़ नए घर बनाएगी, 48.2 लाख करोड़ रुपए के इस बजट में ग़रीब, किसान, मिडिल क्लास, MSME और उद्योग क्षेत्र, यानी देश की अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख अंगों के लिए बड़े एलान किए गए हैं. विपक्ष ने निर्मला सीतारण के इस बजट को कुर्सी बचाओ बजट करार दिया. कल ही सरकार ने साफ कर दिया था कि मौजूदा नियमों के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता लेकिन निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में बिहार के लिए कई बड़ी घोषणाएं करके विशेष दर्जा की कमी को पूरा कर दिया. बिहार में सड़क निर्माण के लिए 26 हज़ार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस रक़म से पटना-पूर्णिया एक्सप्रेस-वे, बक्सर-भागलपुर एक्सप्रेस-वे, बोधगया-राजगीर-वैशाली और दरभंगा स्पर्श प्रोजेक्ट बनाए जाएंगे. बिहार को बाढ़ नियंत्रण के लिए 11 हज़ार 500 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसके अलावा भागलपुर में बिजली घर लगाने के लिए 21 हज़ार 400 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में हैं. बक्सर में गंगा नदी पर दो लेन का नया पुल बनाया जाएगा. निर्मला सीतारमण ने बताया कि गया में विष्णुपद कॉरिडोर बनाया जाएगा, नए मेडिकल कॉलेज और एयरपोर्ट बनाने और पर्यटन के विकास के लिए बजट में प्रावधान किए गए हैं. बजट में बिहार और आन्ध्र प्रदेश को महत्व दिए जाने से विपक्ष के नेता परेशान हैं. राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने इस बजट को कुर्सी बचाओ बजट क़रार दिया. मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि मोदी ने कुर्सी के लिए अपने दो दोस्तों को खुश किया लेकिन बाकी सभी राज्यों को भूल गए. यहां तक कि बीजेपी शासित राज्यों को भी बजट में पैसा नहीं मिला.
वित्त मंत्री ने कहा कि जो लोग बजट को कुर्सी बचाने वाला बता रहे हैं, उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि उनका 37 पार्टियों का गठबंधन 230 सीटें ही जीत पाया जबकि अकेले बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं. बजट से सबसे ज्यादा खुश चन्द्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार नजर आए. नायडू ने आन्ध्र प्रदेश की जनता का ख्याल रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद कहा जबकि नीतीश कुमार ने कहा कि वो तो बिहार के विशेष दर्जा के लिए बीस साल से लड़ रहे हैं लेकिन जब सरकार ने बता दिया कि विशेष दर्जा नहीं मिल सकता तो उन्होंने केन्द्र सरकार से बिहार को विसेष आर्थिक मदद की मांग की थी जिसे सरकार ने माना और बजट में अपना वादा पूरा किया. इससे बिहार को निश्चित तौर पर फायदा होगा. इसमें कोई शक नहीं कि बजट में बिहार की समस्याओं का हल निकालने का प्रयास किया गया है और बिहार की राजनीति को भी साधने का काम हुआ है . बिहार को विशेष दर्जा मिलने से जो कुछ प्राप्त हो सकता था, उससे कहीं ज्यादा बजट में दे दिया गया. बिहार को सबसे ज्यादा मिला. उदाहरण के तौर पर, बिहार में सड़कों की बुरी हालत है, बिहार में एयरपोर्ट्स का हाल भी बुरा है. नए आधुनिक एयरपोर्ट की सौगात आज मिल गई. बिहार में बिजली उत्पादन कम है तो पीरपैंती में पावर प्लांट दे दिया गया. बिहार में उद्योग नहीं पनप पाए, इसका समाधान इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के जरिए निकाला गया. बिहार में शिक्षा का हाल खस्ता है, नए कालेजों का प्रावधान किया गया, डॉक्टर्स की कमी है, तो नए मेडिकल कॉलेज बनाए जाएंगे. बजट में जो प्रावाधान किए गए हैं उनसे बिहार की जनता का लाभ होगा और राजनीति के लिहाज JDU और BJP दोनों फायदे में रहेंगे. आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती के विकास के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपए का स्पेशल पैकेज घोषित किया गया. आंध्र प्रदेश की पोलावरम सिंचाई परियोजना को पूरा करने में पूरा सहयोग करने का वादा किया गया. विशाखापत्तनम और चेन्नई के बीच इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने के लिए भी स्पेशल पैकेज का ऐलान हुआ. विपक्ष ने जब आंध्र और बिहार के स्पेशल पैकेज को कुर्सी बचाओ मुहिम कहा तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जो लोग इसे कुर्सी बचाओ बजट कह रहे हैं, वो सब मिलकर भी इतनी सीटें नहीं ले आए, जितनी अकेले बीजेपी के पास हैं, ऐसे लोग किस मुंह से इसे कुर्सी बचाओ बजट कह रहे हैं. आंध्र प्रदेश को बजट में तरजीह मिलने से तेलंगाना, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल के मुख्यमंत्री खफा हैं. तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है इसलिए मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को अपना विरोध दर्ज कराने का पूरा हक है लेकिन जहां तक आन्ध्र प्रदेश का सवाल है, यूपीए के शासन के समय जब आन्ध्र प्रदेश का बंटवारा करके तेलंगाना बना था, उस वक्त आन्ध्र प्रदेश को स्पेशल पैकेज देने का वादा किया गया था, नई राजधानी अमरावती के विकास के लिए केंद्र की तरफ से मदद का भरोसा दिया गया था. मोदी सरकार ने वही वादा पूरा किया है. ये अच्छी बात है. ये सही है कि बजट में बिहार और आन्ध्र प्रदेश के लिए विशेष प्रावधान रखे गए हैं. उसकी वजह नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू का समर्थन भी है. अगर मोदी ने अपनी सरकार को समर्थन देने वालों को खुश किया तो इसमें बुराई क्या है? क्या कोई अपनी सरकार को समर्थन देने वालों को नाराज करने का प्रयास करेगा ? क्योंकि जहां तक विरोधी दलों का सवाल है,उनसे तो ये अपेक्षा नहीं की जा सकती की वो इस बजट का समर्थन करेंगे. असल में केंद्र सरकार के बजट को राज्यो के हिसाब से बांटकर देखना ठीक नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं उनका लाभ तो सबको मिलता है. लेकिन ममता बनर्जी हों, रेवंत रेड्डी हों, भगवन्त मान हों, सिद्धा रमैया हों., सुखविन्दर सिंह सुक्खू, एमके स्टालिन, या हेमंत सोरेन हों, इन सबसे इस बात की उम्मीद करना बेकार है कि वो ये कहेंगे कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उनके राज्य के लिए बहुत कुछ दिया. ये विरोधी दलों के नेता हैं. जहां जहां विरोधी दलों की सरकारें हैं, वहां वे मोदी सरकार के खिलाफ ही बोलेंगे .इससे पहले जब बीजेपी विपक्ष में थी तो बीजेपी के नेता यही करते थे. इसमें कोई नई बात नहीं हैं. वैसे भी केन्द्र में जो भी सरकार होती है, वो बजट के जरिए अपने राजनीतिक हितों का भी ध्यान रखती है. नरेन्द्र मोदी ने बिहार और आन्ध्र प्रदेश का ख्याल रखकर वही किया लेकिन ये देखना भी जरूरी है कि नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ सहयोगियों को खुश नहीं किया बल्कि लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी जैसे मुद्दों का नुकसान बीजेपी को हुआ था, उनको सुधारने की कोशिश भी बजट में की गई है. युवाओं को बड़ी कंपनियों में रोजगार देने की योजनाएं बनी है. सरकार इसके लिए नये कर्मचारियों और उनके मालिकों को सहायता देगी. कांग्रेस को सरकार का ये एलान भी पसंद नहीं आया. मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार के बजट को कांग्रेस के घोषणपत्र का कॉपी पेस्ट बता दिया. खरगे ने कहा कि मोदी सरकार के पास न अपनी कोई सोच न है, न दृष्टि है, सरकार ने कांग्रेस के घोषणापत्र की बातें चुरा कर बजट में पेश कर दी. इस बात को समझना जरूरी है कि भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है. स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में एक बड़ा एलान किया. छोटी कंपनियों के पूंजी जुटाने पर लगने वाले एंजेल टैक्स को खत्म कर दिया गया है. सरकार 12 नए इंडस्ट्रियल पार्क बनाएगी. 14 बड़े शहरों के लिए ट्रांज़िट प्लान बनेंगे. इन सबसे देश में आर्थिक विकास के नए केंद्र बनेंगे. सरकार ने इस बार इनकम टैक्स के स्लैब में थोड़ा बदलाव किया है और स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ा दी है. लेकिन इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव का फ़ायदा सिर्फ उन लोगों को ही मिलेगा जिन्होंने नई इनकम टैक्स प्रणाली को चुना है. जो पुरानी टैक्स प्रणाली के हिसाब से टैक्स दे रहे हैं, उनके लिए इस बजट में कोई एलान नहीं किया गया है. बजट में किसानों के लिए भी बड़े एलान किए गए. कृषि और उससे जुड़े सेक्टर्स के लिए बजट में डेढ़ लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का प्रावधान है. सरकार का ज़ोर पैदावार बढ़ाने, प्रकृचिक खेती को बढ़ावा देने और दलहन तिलहन उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर है. इसके अलावा सब्ज़ियों की क़ीमतों पर क़ाबू पाने के लिए देश में जगह जगह सब्ज़ियां उगाने के क्लस्टर डेवेलप किए जाएंग. अगले दो सालों में एक करोड़ किसानों को नेचुरल फार्मिंग सिखाई जाएगी. लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसानों के लिए जो स्कीम्स लाई गई हैं उससे किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट को फायदा होगा. राकेश टिकैत ने जो बात कही वो किसानों की कम, राजनीति की ज्यादा है. जहां तक बजट को लेकर राजनीति का सवाल है. कांग्रेस एक तरफ तो कह रही है कि निर्मला सीतारमण ने उनके घोषणापत्र को कॉपी पेस्ट कर लिया . अगर बजट में उनके घोषणापत्र की बातों को शामिल कर लिया गया तो फिर आप ये कैसे कह सकते हैं कि बजट में कुछ नहीं है? ये बजट बेकार का है? एक बात ये कही गई कि ये बजट कुर्सी बचाने का बजट है, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जो लिखा था, राहुल गांधी ने चुनाव के दौरान जो खटाखट कैश ट्रांसफर के वादे किए थे, वो भी तो कुर्सी पाने के लिए थे या नहीं ? अगर बीजेपी ने जनता की भलाई के साथ साथ अपने राजनीतिक हितों का ख्याल रखा, तो इसमें गलत क्या है?
Modi to give jobs to millions : Is it Kursi Bachao Budget?
The first budget of Narendra Modi 3.0 government presented in Parliament on Tuesday by Finance Minister Nirmala Sitharaman clearly reflects the after-effects of Lok Sabha elections, with Nitish Kumar’s Bihar and N. Chandrababu Naidu’s Andhra Pradesh getting financial bonanza. Though both these chief ministers were demanding Special Status for their states, it was not granted. Both the states got nearly Rs 75,000 crore worth projects in the budget. Narendra Modi cleverly addressed the core issue of jobs that the Opposition had been raising. The Centre will implement five schemes under ‘Employment-Linked Incentive’ as part of Prime Minister’s package. In the first scheme, one-month wage to all first-time employees, in all formal sectors, registered in EPFO, will be given through direct benefit transfer up to Rs 15,000, in three instalments. Centre will provide one-month wage to all persons newly entering the workforce in all formal sectors. The direct benefit transfer of one-month salary in 3 instalments to first-time employees, as registered in the EPFO, will be up to Rs 15,000. The eligibility limit will be a salary of upto Rs 1 lakh per month. The scheme is expected to benefit 2.1 crore youth. The second scheme will provide incentive, at specified scales, directly to employee and employer with respect to their EPFO contribution in the first four years of employment, and this scheme is expected to benefit 30 lakh youth entering employment. In the third scheme, the Centre will reimburse to employers up to Rs 3,000 per month for two years towards their EPFO contribution for each additional employee, and this is expected to incentivize additional employment of 50 lakh persons. In the fourth scheme under PM’s package, 20 lakh youth will be skilled over a 5-year period, and 1,000 Industrial Training Institutes will be upgraded. In MSMEs, the limit of Mudra loans will be raised from Rs 10 lakh currently to Rs 20 lakh for entrepreneurs who have successfully repaid previous loans under ‘Tarun’ category. In the fifth scheme under PM’s package, an internship allowance of Rs 5,000 per month along with a a one-time assistance of Rs 6,000 will be given to those who will get internship opportunities in 500 top companies. The aim is to provide internship to one crore youth in five years, and it will provide exposure for one year to youth in real-life business environment in varied professions. Companies will bear the training cost and 10 per cent of intership cost from their CSR funds. While announcing special assistance for Bihar and AP, Sitharaman said, Centre will formulate Purvodaya plan for development of eastern region covering Bihar, Jharkhand, West Bengal, Odisha and AP. This will cover human resource development, infra projects and generation of economic opportunities. For Bihar, Centre will support development of an industrial note in Gaya on the Amritsar-Kolkata Industrial Corridor, and also support road connectivity projects, namely Patna-Purnea Expressway, Buxar-Bhagalpur Expressway, Bodhgaya, Rajgir, Vaishali and Darbhanga spurs, and addition bridge over Ganga at Buxar, at a total cost of Rs 26,000 crore. A new 2400 MW power plant at a cost of Rs 21,400 crore will be set up in Pirpainti, Bihar. For Andhra Pradesh, Sitharaman announced special financial support for the new capital, Amravati, through foreign development agencies. Rs 15,000 crore will be arranged in the current financial year. The Centre will also provide finance for early completion of Polavaram irrigation project, apart from providing funds for water, power, railways and roads on Vishakhapatnam-Chennai Industrial Corridor and Bangalore-Hyderabad Industrial Corridor. Additional grants for backward regions of Rayalaseema, Prakasam and North Coast Andhra will also be provided. Soon after the Budget was presented, opposition leaders including Rahul Gandhi, Mamata Banerjee, Akhilesh Yadav and Uddhav Thackeray described as ‘Kursi Bachao Budget’, since JD(U) and TDP are the major allies in NDA government. Welcoming the Budget, Prime Minister Modi said, “This budget empowers every segment of society..It provides new strength to the middle class…By focusing on manufacturing and infrastructure, the budget will invigorate economic development and sustain its momentum…Employment Linked Incentive scheme will create crores of new jobs across the country.. this will enable young people from villages and impoverished backgrounds to work in top companies, opening new doors of possibility for them.” Responding to criticism from Opposition, Nirmala Sitharaman said, those who are describing this as ‘Kursi Bachao Budget’ must not forget that their 37-party-alliance managed to win only 230 Lok Sabha seats, whereas BJP alone has won 240 LS seats. Chandrababu Naidu and Nitish Kumar thanked Modi for providing special assistance to their states. It cannot be denied that the Budget seeks to find solutions to Bihar’s economic problems, though Special Status was not granted. Bihar got more assistance than it could have got if Special Status had been granted. Bihar suffers from road and air connectivity, power shortage and lack of big industries. The Budget addresses all these concerns of the people of Bihar. BIhar’s education sector is in a mess and the Budget has provided for new medical colleges and educational institutions. I hope, the people of Bihar will benefit from these projects, and from political point of view, both BJP and its ally JD-U may get advantage too. With Andhra getting special assistance, four southern states, Kerala, Tamil Nadu, Karnataka and Telangana, ruled by opposition parties, are unhappy. Telangana’s Congress CM Revanth Reddy has the right to register his protest, but he cannot disagree that it was his party, Congress, which had promised a special package for AP, when the state was being bifurcated. The Centre had promised assistance for setting up its new capital in Amravati. It is the Modi government which is now fulfilling that promise. It is true that AP and Bihar have got special budgetary assistance because Modi government has got support to his NDA from Nitish Kumar and Chandrababu Naidu. If Modi tries to help his allies, what is wrong about that? Will any government try to keep its allies unhappy? It will not be correct to analyze the Centre’s budget on the basis of allocation to states. All states get the benefit of Centrally-sponsored schemes, whether they are ruled by Mamata Banerjee or Revanth Reddy or Bhagwant Mann or Siddaramaiah or Sukhwinder Singh Sukhu or M K Stalin or Hemant Soren. It will be of no use to expect these leaders to say that Modi government has given them adequate assistance. They belong to the opposition and they will naturally oppose the Budget. When BJP was in the opposition, their leaders use to say the same about UPA government’s budgets. There is nothing new in this. Any government at the Centre always keeps its political interests in mind whenever a Budget is prepared. Modi did the same for Bihar and AP, but he did not stop at that. The issue of jobs, which hit BJP hard during the recent general elections, was also taken care of in the Budget. Apart from incentivizing manufacturing industry and top companies, which will hire new workers, one must remember that India has the world’s third largest startup eco-system, and Modi’s budget has abolished Angel Tax that was being levied on investors. Twelve industrial parks under National Industrial Corridor Development Programme will be sanctioned, and 14 cities having a population of more than 30 lakh people, will get transit oriented development plans. For personal Income Tax, some changes have been made in IT slabs only for new IT regime, and standard deduction limit has been raised. For agriculture and allied sectors, Rs 1.52 lakh crore have been provided, with major focus on achieving self-sufficiency in oilseeds like mustard, groundnut, sesame, soyabean and sunflower. In the next two years, one crore farmers will be initiated into natural farming. Agriculture Minister Shivraj Singh Chouhan has promised to encourage farmers to grow more cash crops, while the Centre would ensure that farmers get full remuneration for their crops. Farmer leader Rakesh Tikait disagrees. He says, the government is more interested in benefiting corporates in the farm sector. If one goes through the Budget speech, it will be clear that the Centre wants to raise farmers’ income, by carrying out full review of agri-research setup to focus on raising productivity and developing climate resilient varieties. New 109 high-yielding and climate-resilient varities of 32 field and horticulture crops will be released for cultivation by farmers. Congress leaders have claimed that Sitharaman has done a “copy paste job” by drawing job incentivization scheme from the Congress manifesto. If one accepts this argument, then how can anybody say that there is nothing new in the budget? Those who say it is a ‘Kursi Bachao Budget’ must realize that Rahul Gandhi had made promises of ‘khataakhat’ cash transfers to youth and women during the poll campaign. Was it not meant to get ‘kursi’ (power)? If BJP, keeping its political interests in mind, plans to provide jobs to millions of youth, how can anybody say that this approach is wrong?
PM की आवाज़ को दबाने की कोशिश : क्या यह लोकतांत्रिक है ?
संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को सीधा और साफ संदेश दिया. मोदी ने कहा कि आज सावन का पहला सोमवार है, शुभ दिन है, इस शुभ मौके पर मॉनसून सत्र शुरू हो रहा है और उन्हें उम्मीद है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सार्थक चर्चा होगी और देश की तरक़्क़ी के लिए दोनों पक्ष मिलकर काम करेंगे. मोदी ने कहा, ” पिछली बार ढाई घंटे तक देश के प्रधानमंत्री का गला घोंटने सा, उनकी आवाज़ को रोकने का, उनकी आवाज़ को दबाने का प्रयास किया गया, लोकतांत्रिक परम्पराओं में इसका कोई स्थान नहीं को सकता. और इन सब को लेकर (विपक्ष के मन में) पश्चाताप तक नहीं है, दिल में दर्द तक नहीं है. ” मोदी ने कहा कि पिछले छह हीनों में चुनाव के दौरान जिसको जो कहना था कह लिया, जो नैरेटिव बनाना था बना लिया, अब जनता ने अपना फैसला सुना दिया, इसलिए अब मिलकर काम करने का वक्त है. मोदी ने कहा कि चुनाव के वक्त हम सब ने अपने दलों के लिए जितनी लड़ाई लड़नी थी, लड़ली, अब आने वाले साढ़े चार साल के लिए हमें देश के लिए मिल कर लड़ना है, और देश के लिए समर्पित होकर संसद के गरिमापूर्ण मंच का हम उपयोग करें. मोदी जिस भाषण में उनकी आवाज़ दबाने का इल्ज़ाम लगा रहे थे, वह था राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान उनका जवाब. मोदी की टिप्पणी के बाद कांग्रेस के सांसदों ने कहा कि मोदी को जनता ने हराया है, मोदी विपक्ष पर इल्जाम लगाकर अपनी हार की हताशा को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं. RJD सांसद मनोज झा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने तो पूरे देश का गला घोंट दिया था, विरोध की हर आवाज़ को कुचला और अब वो इमोशनल ड्रामा कर रहे हैं. लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा, मोदी कैसे इस तरह की बातें कर सकते हैं, संसद में तो सरकार पिछले कई साल से विपक्ष की आवाज़ दबा रही है. गोगोई ने कहा कि पिछली बार विपक्षी दल नीट पेपर लीक पर चर्चा की मांग कर रहा था लेकिन सरकार ने विपक्ष की बात तक नहीं मानी और अब मोदी गला घोंटने की बात कर रहे हैं. आज मोदी की बात सुनकर पता चला कि पिछली लोकसभा में विपक्ष ने जो हंगामा किया था, उससे वो कितने आहत हैं. दो जुलाई को लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी करीब 133 मिनट तक बोले, लेकिन इस दौरान विपक्षी दलों के नेता चिल्लाते रहे. वेल में आकर शोर मचाते रहे. टीवी पर मोदी को देखने वाले हैरान थे कि वो इतने शोर शराबे में बिना रुके अपनी बात कैसे कहते रहे. आज पता चला कि मोदी डिस्टर्ब तो हुए थे, परेशान तो थे लेकिन उन्होंने अपना भाषण पूरा किया, विपक्ष की रणनीति को विफल किया और आज बजट सेशन के पहले दिन अपना दर्द जाहिर किया. ये बात सही है कि संसद चर्चा, बहस के लिए है, कभी कभी हंगामा हो सकता है, प्रोटेस्ट हो सकता है लेकिन देश की जनता के चुने हुए प्रधानमंत्री को बोलने न दिया जाए, लगातार डिस्टर्ब किया जाए, ये गला घोंटना नहीं तो और क्या है? ये आवाज को दबाने का प्रयास नहीं तो और क्या है?
Throttling the PM’s voice : Is it democratic?
On the first day of monsoon session of Parliament, Prime Minister Narendra Modi sounded a note of caution for the Opposition. Outside Parliament, Modi said, “The nation witnessed how an undemocratic effort was made to muzzle the voice of a democratically elected government inside Parliament. For over two and a half hours, an effort was made (by the Opposition) to suffocate the Prime Minister of the country and suppress his voice. This has no place in our democratic traditions. This is a negative mindset.” The Prime Minister was referring to the constant heckling and slogan-shouting by Opposition MPs during his reply to the debate on Motion of Thanks to the President in Lok Sabha. Modi said, “This House is for the whole country, it is not for furthering the interests of political parties. The House is meant to serve 140 crore people of India, and not MPs alone….I want to tell all MPs that we have already fought a full battle since January, we told the people whatever he had to tell. Some tried to show the way, some tried to mislead. But that phase is now over and the people have given their mandate. It is the duty of all elected MPs, to join hands and fight for our country. Let us rise above party lines, dedicate ourselves to the nation and use this hallowed platform of Parliament for the next four and a half years.” Modi also said, “the negative tactics of many MPs in the last session deprived many other MPs of the valuable opportunity to raise the concerns of their constituencies.” Soon after the Prime Minister’s remarks, Congress MPs said, “Modi and his party has been defeated by the people this time and he is trying to hide his frustration by levelling charges against the Opposition”. RJD MP Manoj Jha said, “it was Modi who has throttled the voice of the opposition both inside and outside Parliament, and is now enacting an emotional drama”. Deputy Leader of Congress in Lok Sabha Gaurav Gogoi alleged, “for the last several years, the government has been throttling the voice of Opposition in parliament.. We were demanding debate on NEET paper leak, but the government did not accept our demand, and now the Prime Minister is saying his voice is being throttled”. istening to what Prime Minister Modi said on Monday, one can understand his pain. The Prime Minister spoke for nearly 133 minutes, and throughout his reply, the Opposition MPs continued to shout slogans in the well. Those watching the proceedings live on television were surprised how Modi continued to speak non-stop during the bedlam. After watching his remarks, one can understand that the PM was really disturbed and worried in the face of consistent heckling and sloganeering. But he finished his speech patiently and foiled the opposition’s strategy. Parliament is meant for debates and discussions. Pandemoniums do take place occasionally. Protests also take place, but to consistently shout slogans and prevent the Prime Minister from speaking inside the House cannot be described a democratic act. If this is not throttling the Prime Minister’s voice, then what else?
अजमेर दरगाह का खादिम बरी : क्या पुलिस ने केस को कमज़ोर किया?
राजस्थान में इस वक्त मुद्दा उठा है, अजमेर में ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवाने वाले अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम गौहर चिश्ती समेत सभी छह आरोपी बरी कैसे हो गए? गौहर चिश्ती सहित छह लोगों को अजमेर की अदालत ने मंगलवार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था. गौहर चिश्ती शुक्रवार को जेल से रिहा हो गए. अजमेर की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस आरोपों को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाई. बरी होने के बाद गौहर चिश्ती ने कहा कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया था,लेकिन अदालत ने उनके साथ इंसाफ किया. गौहर चिश्ती के खिलाफ समाज में नफरत फैलाने, लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इल्जाम एक वीडियो के आधार पर लगा था. ये वीडियो 17 जून 2022 का है. उस दिन गोहर चिश्ती ने अजमेर शरीफ दरगाह के मुख्य द्वार पर तकरीबन 20 हजार लोगों की एक भीड़ को संबोधित किया था. इस वीडियो में गौहर चिश्ती मंच पर खड़े होकर भीड़ से ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवाते हुए साफ सुनाई दे रहे थे. ये वीडियो पुलिस वाले ने शूट किया था. आठ दिन बाद 25 जून को एक पुलिस कांस्टेबल जय नारायण की तरफ से शिकायत दर्ज करवाई गई थी. इसमें तो कोई शक नहीं है कि सिर तन से जुदा के नारे लगाए गए. पुलिस की तरफ से इस इल्जाम को साबित करने के लिए कोर्ट में 22 गवाह पेश किए गए लेकिन इनमें कोई आम व्यक्ति नहीं था. सारे के सारे पुलिस वाले थे. पुलिस ने वीडियो अदालत में पेश किया लेकिन इसकी फॉरेन्सिंक जांच नहीं करवाई. उस पुलिस कांस्टेबल का फोन भी जब्त नहीं किया जिससे ये वीडियो बनाया गया था. इसीलिए अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. चूंकि ये मामला उस वक्त का है जब राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार थी इसीलिए बीजेपी के नेताओं ने इल्जाम लगाया है कि सरकार के इशारे पर पुलिस ने जानबूझकर केस कमजोर किया. गौहर चिश्ती की रिहाई को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी नाराज हैं. मुख्यमंत्री ने जांच में ढिलाई बरतने पर अजमेर प्रशासन को फटकार लगाई है, हांलाकि सरकारी वकील जांच पर सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं. सरकारी वकील वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि गौहर चिश्ती के खिलाफ सारे सबूत थे, वीडियो में वो सर तन से जुदा का नारा लगाते साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन अदालत ने उनकी दलीलों को नहीं माना. राठौड़ ने कहा कि इस फैसले के खिलाफ अब वो हाईकोर्ट जाएंगे. घटना के बाद गौहर चिश्ती फरार हो गया था. पुलिस ने उसे हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया था. हैदराबाद में गौहर चिश्ती को पनाह देकर छिपाने वाला नासिर भी इस मामले में आरोपी है लेकिन पुलिस उसका गुनाह भी साबित नहीं कर पाई. गौहर चिश्ती दावा कर रहा है कि वो भागा नहीं था, वो हैदराबाद घूमने गया था. दिलचस्प बात ये है कि नासिर के साथ गौहर चिश्ती की तस्वीर भी पुलिस के पास थी लेकिन कोर्ट ने उसे भी सबूत नहीं माना.इस मामले में नासिर को भी बरी कर दिया गया है. इस बात में कोई शक नहीं है कि राजस्थान पुलिस ने इस केस की जांच में लापरवाही की, जानबूझकर सबूत गायब किए, केस को कमजोर किया. पुलिस को ये बताने की जरूरत नहीं होती कि जिस मोबाइल फोन से वीडियो शूट किया गया हो उसे फॉरेन्सिक जांच के लिए जब्त किया जाता है.पुलिस ने ऐसा करने के बजाए वीडियो को CD पर ट्रांसफर लिया और फोन से वीडियो डिलीट कर दिया गया. अदालत ने जब सरकारी वकील से पूछा कि ऑरीजनल वीडियो कहां है तो बताया गया कि डिलीट हो गया. कोर्ट ने पूछा कि पुलिस वाले ने जिस फोन में वीडियो शूट किया था, वो फोन कहां है, तो कहा गया कि फोन खऱाब हो गया था, खो गया. कोर्ट ने पूछा, नारे भीड के सामने लगे थे लेकिन सारे गवाह पुलिस वाले ही क्यों है, पुलिस एक भी इंडिपेंडेंट गवाह क्यों नहीं खोज पाई, तो कोई जबाव नहीं था. इसीलिए कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अब ये जानना जरूरी है कि पुलिस ने जो किया, वो स्थानीय पुलिस ने अपने स्तर पर किया या उसे ऊपर से इस केस को कमजोर करने के लिए निर्देश दिए गए. ये भी पता लगना चाहिए कि क्या ये पुलिस की नाकामी है या एक सोचा समझा राजनीतिक फैसला, जिसके लिए पुलिस के कंधे का सहारा लिया गया.
Ajmer Khadim acquitted : Did police botch up the case?
A session court on Tuesday (July 16) acquitted the ‘khadim'(servitor) of Ajmer Sharif dargah, Gauhar Chishti and five others accused of inciting a mob on June 17, 2022 at the main gate of the shrine, by raising the provocative slogan ‘Gustakh-e-Nabi Ki Ek Hi Sazaa, Sar Tan Se Juda, Sar Tan Se Juda’ slogan against suspended BJP leader Nupur Sharma. The former BJP leader had earlier made certain derogatory remarks against Prophet Mohammad. As many as 22 witnesses appeared before the court and 32 documents were placed during the trial, that went on for over two years. In his judgement, the sessions court judge pointed to critical lapses in the investigation by police, which was working under the then Congress government led by Chief Minister Ashok Gehlot. The session court said that police failed to place concrete evidence to substantiate its charges. Gauhar Chishti, who was released from jail on Friday, claimed that he was “framed as part of a conspiracy” and that he has got justice from the court. But tthe court’s judgement says otherwise. It points out several technical lapses in police investigation. The complainant, Constable Jai Narayan, who had shot the video of Gauhar Chishti giving a provocative speech on his mobile phone, kept the cell phone with him from June 17 till June 25, but did not deposit it with the invetigating officer. Jai Narayan says, he showed the video to two witnesses, Banwari Lal and Dalbir Singh. The court said that the very fact that no action was taken despite showing the video to two witnesses, “makes the prosecution’s story doubtful”. In 2023, Jai Narayan told the court that his cell phone had broken down, but a CD of the video was made on June 30, 2022. The court said, the date when the CD was created and the condition of the cell phone clearly raise questions about the reliability of the evidence. The judge pointed out that all the 22 witnesses who were heard in court, belonged to the police, and were not common citizens. The court said, the video was placed before the court, but no forensic test was carried out, nor was the policeman’s cell phone seized. In view of all these, the court acquitted all the six accused for want of concrete evidence. Since Ashok Gehlot was chief minister of Rajasthan at that time, BJP leaders have alleged that police deliberately weakened the case due to political pressures. The present BJP chief minister Bhajanlal Sharma is unhappy and he has reprimanded the Ajmer prosecution department. Prosecution lawyer Virendra Singh Rathore said, there were evidences about Gauhar Chishti’s hate speech, and in the video, he was clearly heard shouting the provocative slogan, but the court did not accept this as evidence. He promised to go into appeal before the High Court. It may be recalled that Gauhar Chishti had fled to Hyderabad after giving the hate speech. Nasir, who gave him shelter in Hyderabad, was also made an accused, but police could not prove his complicity in this case. Gauhar Chishti claimed before the court that he did not escape, but had gone to Hyderabad for a visit. The interesting part is that police had photographs of Gauhar Chishti with Nasir, but the court did not accept this as evidence. There is not an iota of doubt that Rajasthan Police displayed negligence and deliberately removed concrete evidence, thus making the prosecution case weak. There is no need for the court to tell the police that the device with which the video was recorded, is always sent for forensic test. Instead of conducting a forensic test, the mobile phone video was transferred to a CD, and the original video in the constable’s phone was deleted. When the court asked the prosecution lawyer about the original video, it was told that the video has been deleted. When the court asked where was the police constable’s phone now, it was told that the cell phone failed to work, and it was now missing. The court asked, since the slogans were chanted in front of a big crowd, why were all the witnesses in this case policemen only. The prosecution had no answer. When the court asked why police could not find a single independent witness, the prosecution side had no cogent reply. On the basis of all these circumstances, the sessions court acquitted all the six accused including Gauhar Chishti. It would now be interesting to find out whether police did all this at the local level, or whether there were instructions from above to weaken the prosecution’s case. It also needs to be probed whether it was a case of police negligence or it was a calculated political decision taking advantage of a pliable police.
कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेम प्लेट : किसकी समस्या? और क्यों ?
22 जुलाई से शुरू होने जा रही कांवड यात्रा को लेकर बड़ा विवाद पैदा हो गया है. अखिलेश यादव से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक विपक्ष के तमाम नेताओं ने योगी आदित्यनाथ को मुसलमानों का दुश्मन बता दिया. विवाद मुजफ्फरनगर प्रशासन के एक फैसले की वजह से हुआ. मुजफ्फर नगर पुलिस ने कांवड यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले सभी होटलों, ढाबों और दुकानों के सामने उनके मालिक का नाम लिखने का आदेश दिया है. शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि पूरे उत्तर प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर खाने पीने की दुकानों पर मालिकों की ‘ नेमप्लेट’ लगानी होगी, दुकानों पर संचालक, मालिक का नाम और पहचान लिखना होगा. कहा गया कि कांवड़ यात्रियों की आस्था की शुचिता बनाए रखने के लिए ये फैसला किया गया है. उत्तराखंड के हरिद्वार में भी पुलिस ने सभी होटलों और ढाबों के लिए मालिकों की नेमप्लेट लगाना अनिवार्य घोषित कर दिया. कई मौलाना और विरोधी दलों के नेता इसे मुसलमानों के खिलाफ योगी सरकार की साजिश बता रहे हैं, उनका आरोप है कि मुसलमानों की रोजी रोटी खत्म करने का षडयंत्र हो रहा है. मुजफ्फरनगर में कुल 240 किलोमीटर का रूट कांवड़ यात्रा में पड़ता है. पुलिस का कहना है कि इस तरह के आदेश के पीछे दो वजहें हैं. एक, पुलिस के साथ-साथ आम लोगों को भी इस बात की जानकारी रहेगी कि कांवड़ यात्रा के रूट में किस-किस की दुकानें हैं और कांवड़ यात्रा में शामिल बहुत भक्तों को दूसरे धर्म के लोगों से खाने पीने की चीजें लेने से परहेज होता है, इसलिए अगर दुकान पर दुकानदार का नाम होगा, तो बाद में किसी तरह का झगड़ा या विवाद की स्थिति पैदा नहीं होगी. सहारनपुर के डीआईजी अजय कुमार साहनी ने कहा कि कई बार दुकानदार दूसरे नामों से अपनी दुकान, ढाबे और होटल चलाते हैं, बाद में जब असलियत का पता चलता है तो विवाद हो जाता है, लड़ाई-झगड़ा होता है,ऐसा न हो, इसलिए ये कदम उठाया गया है. विरोधी दलों ने इस मुद्दे को और ज्यादा हवा दी और योगी आदित्यनाथ को मुसलमानों का दुश्मन घोषित कर दिया. अखिलेश यादव, मायावती , इमरान मसूद, मनोझ झा, एस टी हसन से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक सारे नेताओं ने योगी को घेरा. सबसे तीखा हमला असदुद्दीन ओवैसी ने किया.ओवैसी ने कहा कि लगता है कि योगी के अंदर हिटलर की आत्मा घुस गई है, योगी सरकार मुसलमानों को अलग-थलग करके उनकी रोजी-रोटी को भी खत्म करने की कोशिश कर रही है. बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने कहा कि आदेश ठीक नहीं है, ये गलत परंपरा की शुरूआत है जो सामाजिक एकता के खिलाफ होगी.अखिलेश यादव ने कहा कि अदालत को इस तरह के आदेश का संज्ञान लेकर एक्शन लेना चाहिए क्योंकि ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द और शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं. पहली बात तो ये समझने की है कि पुलिस ने मुजफ्फरनगर में दुकानदारों को नाम लिखने का आदेश क्यों दिया? दरअसल कांवड़ यात्रा के दौरान बहुत से लोग उन दुकानों में खाना नहीं खाते जहां मीट बिकता हो. इस तरह की दुकानों से सामान नहीं खरीदते जिससे उन्हें अपना धर्म भ्रष्ट होने का खतरा हो. पुलिस की दिक्कत ये है कि कई बार इस तरह के मामले सामने आए हैं जब अचानक ये पता चलता है कि दुकानदार मुसलमान है तो विवाद खड़ा हो जाता है. कई बार झगड़े हो जाते हैं. इसीलिए पुलिस की नीयत खराब नहीं है. पुलिस को लगता है, अगर दुकान पर नाम लिखा होगा तो इस तरह का टकराव नहीं होगा.अब सवाल ये है कि इससे मुसलमान दुकानदारों को क्या समस्या है? मुसलमानों को लगता है कि अगर दुकानों पर उनका नाम लिखा होगा तो कांवड यात्रा में जल लेकर आ रहे भक्त उनकी दुकान से सामान नहीं खरीदेंगे, फल नहीं लेंगे, चाय नहीं पिएंगे. तो इससे मुस्लिम दुकानदारों को नुकसान होगा, उनकी रोजी रोटी पर असर पड़ेगा. अब सवाल ये है कि क्या इस विवाद से नेताओं को सियासत करने का मौका कैसे मिला? असल में पुलिस की नीयत चाहे जो भी हो, मुजफ्फरनगर प्रशासन का ये आदेश राजनीति का मुद्दा तो बन गया. अखिलेश यादव और ओवैसी जैसे नेताओं को ये कहने का मौका मिल गया कि इससे मुजफ्फरनगर के मुसलमान दुकानदारों को रोजी रोटी का नुकसान होगा. हालांकि पुलिस ने ये साफ कर दिय़ा है कि ये आदेश सिर्फ कांवड यात्रा पूरी होने तक के लिए है. इसलिए मुझे लगता है कि इस विवाद को और हवा देने से कोई फायदा नहीं होगा.
Names Display on Kanwar Yatra Route: Who has a problem? And Why?
Ahead of the ‘Kanwar Yatra’ starting July 22, the Uttar Pradesh government on Friday ordered all eateries located on the ‘kanwar yatra’ routes throughout the state to display names of their owners. This order will also be implemented for all tea stalls, dhabas and fruit carts. UP chief minister Yogi Adityanath said, the decision has been taken to “preserve the sanctity of Kanwar pilgrims”. During the holy month of Shrawan, lakhs of Shiva devotees walk on foot carrying pots to collect Ganga water for offering them at their local temples. They abstain from consuming even onion and garlic, apart from non-veg food items. In Uttarakhand, the SSP of Haridwar police Pramod Singh Dobhal said, “All those who run hotels, dhabas or steet food stalls have been directed to display their proprietors’ names, QR code and mobile numbers at their establishments.” He threatened punitive action against those who fail to comply, saying their stalls would be removed from the Kanwar Yatra routes. The name display order, originally issued by Muzaffarnagar police, clearly says that all eateries, dhabas, hotels and fruit sellers must display the names of their owners in large letters, so that Kanwar devotees can decide where to have their refreshments. Nearly 240 km of Kanwar Yatra route falls within Muzaffarnagar district. Police officials say that this order will help in removing confusion from the minds of Kanwar Yatra devotees about the eateries where they normally stop to have food. The UP government’s order has been opposed by Samajwadi Party, BSP, All India Majlis Ittehadul Muslimeen and Jamiat Ulama-e-Hind. Jamiat state chief Maulana Qari Zakir alleged that the BJP was deliberately trying to create tension. He said, Kanwar Yatras have been going on in UP since centuries, and such an order for eateries was never issued by any government. He said, such an order will definitely create an abyss between the two communities. Saharanpur divisional police DIG Ajay Kumar Sahni said, every year during Kanwar Yatra, there are quarrels at eateries when the devotees find that the owner is a Muslim. “This order has been issued to remove all confusion”, he said. AIMIM chief Asaduddin Owaisi went to the extent of saying that “the soul of Hitler seems to have entered Yogi’s body”. Owaisi said, Yogi government was trying to deprive Muslim shopkeepers of their daily earnings. BSP supremo Mayawati described the order as unjustified and said, this will create a wrong precedent, which will go against social unity. SP chief Akhilesh Yadav demanded that the courts must take suo moto cognizance, since the police order, he said, “is a social crime, aimed at vitiating social atmosphere”. BJP MP Sudhanshu Trivedi said, there should be no objection to such an order, and eatery owners should not conceal their names for the benefit of customers. One must understand why UP and Uttarkhand police issued such orders during Kanwar Yatra. During the holy month of Shrawan, lakhs of Shiva devotees avoid eateries which sell non-veg food. They do not consumed food at eateries, which they feel can spoil the sanctity of their penance. The problem faced by police is that often during Kanwar Yatras, quarrels take place when it is found that the owner of an eatery is a Muslim and the customer is a Shiva devotee, who has been walking on foot for hundreds of miles. One must not doubt the motive of police. Police officials say that quarrels can easily be avoided if owners of eateries display their names in bold letters, so that the devotee can take a conscious choice on where to eat, and which eatery to avoid. The problem with Muslim shopkeepers is that they feel their earnings would take a hit, if their names are prominently displayed and if devotees, in thousands, start avoiding their tea stalls and eateries. Though UP police has made it clear that this order about display of names of owners shall remain in force till the Kanwar Yatra is over, politicians from opposition parties are trying to score brownie points. I personally feel that it would be better for all sides not to stoke this controversy, otherwise it can cause harm to social unity.
योगी के लिए चुनौती : जीत का सिलसिला कैसे लौटे
उत्तर प्रदेश में ज़बरदस्त सियासी हलचल दिखाई दी. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक रणनीति बनाने के लिए बैठकों का दौर चलता रहा. दिल्ली में यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. इससे पहले भूपेन्द्र चौधरी और केशव प्रसाद मौर्य से बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्ढा ने अलग अलग मीटिंग की थी. पार्टी हाईकमान ने साफ पैग़ाम दे दिया – फिलहाल यूपी सरकार में कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं होगा, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहेंगें, उनके नेतृत्व को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी. दूसरी बात,यूपी में बीजेपी के संगठन में बदलाव हो सकता है, लेकिन दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव के बाद. तीसरी बात, यूपी में पहला लक्ष्य उपचुनाव में दस की दस सीटें जीतना है. इसके लिए सबको एकजुट होकर काम करने को कहा गया है. उधर लखनऊ में योगी आदित्यनाथ उपचुनाव की तैयारियों में लग गए हैं. योगी ने दस सीटों के उपचुनाव में अपने तीस मंत्रियों की ड्यूटी लगाई है. इनमें 13 कैबिनेट और 17 राज्य मंत्री हैं. योगी ने आज इन मंत्रियों की मीटिंग बुलाकर सबको उनकी जिम्मेदारी समझा दी. योगी ने मंत्रियों को हिदायत दी है कि वो चुनाव क्षेत्र में जाएं और हफ्ते में कम से कम दो दिन वहीं रुकें, ज़मीनी स्तर पर काम करें, जनता की समस्याएं सुनें, कार्यकर्ताओं की परेशानियों को दूर करें औऱ हर बूथ को मजबूत करें.. मंत्रियों ने भी योगी को अपने सुझाव दिए. कहा गया कि बाकी सब तो ठीक है, बस उम्मीदवारों का चयन सही होना चाहिए, उसके बाद जीत पक्की है. एक तरफ जहां दिल्ली और लखनऊ में संगठन को लेकर बातें चल रही है, योगी आदित्यनाथ का फोकस सिर्फ और सिर्फ दस विधानसभा सीटों पर है. योगी ने उन मंत्रियों के साथ लंबी मीटिंग की, जिनकी ड्यूटी इन दस सीटों पर लगाई गई है. इनमें सूर्य प्रताप शाही, सुरेश खन्ना, स्वतंत्र देव सिंह, संजय निषाद, दयाशंकर सिंह, राजीव सचान, लक्ष्मी नारायण चौधरी, अनिल कुमार और अनिल राजभर समेत 29 मंत्री शामिल हुए. इस मीटिंग में मंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ को अपना फीडबैक भी दिया. मंत्रियों ने बताया कि ग्राउंड लेवल पर ये बात तो दिख रही है कि कुछ अधिकारी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं की अनदेखी करते हैं, उनकी बात नहीं सुनते. दूसरा सुझाव ये दिया गया कि इस बार उम्मीदवारों का चय़न सावधानी से होना चाहिए. कुछ नेताओं ने तो ये भी कहा कि मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी को मुस्लिम उम्मीदवार उतारने पर विचार करना चाहिए. तर्क ये दिया गया कि जब बीजेपी की केन्द्र सरकार में, राज्य सरकारों में मुस्लिम मंत्री हो सकते हैं, तो उम्मीदवार क्यों नहीं हो सकते? मंत्रियों ने कहा कि ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवार का चयन सिफारिश के आधार पर नहीं, ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर हो. बैठक मे इस बात पर विचार किया गया कि लोकसभा चुनाव में जो गलतियां हुई, जिसका फायदा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को हुआ, उन गलतियों को कैसे सुधारा जाए. असल में यूपी में जिन दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वो बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल सीटें हैं. क्योंकि पिछले चुनावों में इन दस में से पांच सीटें पांच समाजवादी पार्टी ने जीतीं थी, तीन बीजेपी ने और एक-एक सीटें निषाद पार्टी और RLD ने जीती थीं. इन सीटों में अखिलेश यादव की करहल सीट है जो 1993 से समाजवादी पार्टी के पास रही है. अयोध्या की मिल्कीपुर से 9 बार के विधायक अवधेश प्रसाद सिंह फैजाबाद से सांसद बन गए हैं, इसलिए ये सीट खाली हुई है. इन सीटों में मुरादाबाद की कुंदरकी सीट भी है, जो बीजेपी ने पिछली बार इक्तीस साल पहले 1993 में जीती थी. इस सीट पर 65 परसेंट वोट मुसलमानों के हैं, हिन्दू सिर्फ 35 परसेंट है. इसलिए बीजेपी के लिए चुनौती तो बड़ी है. मिर्ज़ापुर की मझवां सीट पर भी उप-चुनाव होना हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से निषाद पार्टी के विनोद बिंद जीते थे. अब वो भदोही से सांसद बन गए हैं. 2017 में मझवां सीट बीजेपी ने जीती थी, इसलिए, बीजेपी यहां से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है लेकिन निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने आज बड़े ही कायदे से कह दिया कि बीजेपी सहयोगी दलों का पूरा सम्मान करती है, जो जिस सीट पर जीता हो, वो सीट उसी को मिलती है. इसलिए कम से कम एक सीट तो निषाद पार्टी को मिलेगी. लोकसभा चुनावों में सबसे बड़ा उलटफेर यूपी में हुआ, बीजेपी को सबसे तगड़ा झटका लगा और समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ. इसलिए लोकसभा चुनाव के नतीजों का सबसे ज्यादा असर यूपी में ही दिख रहा है .पिछले एक महीने से लगातार ये हवा बनाई जा रही थी कि अब योगी की कुर्सी जाएगी लेकिन आज बीजेपी हाई कमान ने ये संकेत दे दिए कि यूपी में योगी का कोई विकल्प नहीं है, यूपी को योगी ही चलाएंगे, यूपी में योगी को अब पहले से ज्यादा फ्री हैंड दिया जाएगा, उम्मीदवारों का चयन भी योगी करेंगे, उपचुनाव की रणनीति भी योगी बनाएंगे. जे पी नड्डा ने केशव प्रसाद मौर्य को भी बता दिया है कि संगठन ही सबसे बड़ा है, संगठन में ही शक्ति है, ये सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा, इसका पालन भी करना होगा, सबको मिलकर, सबको साथ लेकर चलना होगा, इसलिए कोई नेता ऐसी बयानबाज़ी न करें जिससे कार्यकर्ताओं में किसी तरह की गलतफहमी पैदा हो. जहां तक उपचुनाव का सवाल है, दस सीटों के चुनाव बीजेपी के लिए जितनी बड़ी चुनौती है, उससे कम अखिलेश यादव के लिए भी नहीं है, क्योंकि जिन सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से पांच सीटें तो समाजवादी पार्टी जीती थी. बीजेपी ने 2022 में इनमें से सिर्फ तीन सीटें जीती थीं. करहल सीट अखिलेश यादव की अपनी सीट है. तीस साल से ये सीट समाजवादी पार्टी के पास है, इसलिए इस सीट को बचाना अखिलेश के लिए चुनौती है. चूंकि इस बार बीजेपी फैजाबाद अयोध्या में लोकसभा चुनाव हारी है, फैजाबाद से जीते अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव पोस्टर ब्वॉय बना रहे है, इसलिए अयोध्या जनपद में पड़ने वाली अवधेश प्रसाद पासी की मिल्कीपुर सीट को जीतकर बीजेपी अयोध्या में हार का बदला लेना चाहती है. ये योगी के लिए बड़ी चुनौती है, और योगी ने यह चुनौती स्वीकार कर ली है.
Challenge before Yogi: Revive Party’s Winning Streak
A flurry of meetings have taken place in BJP circles in Lucknow and Delhi after UP Deputy CM Keshav Prasad Maurya told the state BJP executive meeting on Sunday that “organisation must remain more powerful than the government, and all MLAs, ministers and public representatives must accord respect to the party workers.” Later, Maurya went to Delhi and had a long discussion with party chief J P Nadda. UP BJP chief Bhupendra Chaudhary on Wednesday went to Delhi and met Prime Minister Narendra Modi and Nadda. There are reports that the BJP high command has given a clear message to state party leaders that there would be no change of leadership in UP, and Yogi Adityanath would continue to remain the Chief Minister. The high command has reportedly told the state leaders that there shall be no more discussion about the state leadership. Secondly, the high command has given hints about making changes in the state party organisation, but this would be done after the byelections for 10 assembly seats are over. Thirdly, the party high command has clearly said that the foremost aim now was to win all the 10 assembly seats at stake by working unitedly. On Wednesday, in Lucknow, CM Yogi Adityanath held meetings with 13 ca binet ministers and 17 ministers of state, who have been given charge of these 10 byelections. Yogi told the ministers to visit these 10 constituencies, stay there for the night for at least two days in a week, work at the ground level, listen to public grievances and resolve the problems of party workers at the booth level. The ministers promised to work hard, but at the same time, told Yogi that there must be careful and proper selection of candidates. The ministers told Yogi that on the ground level, some bureaucrats were ignoring BJP workers and leaders and are not paying attention to their problems. The ministers also told the CM that the selection of candidates must not be on the basis of recommendations but on the basis of real ground reports. The ten assembly byelections are a bit tough for the BJP to win. In the last elections, Samajwadi Party had won five seats, BJP had won three, and Nishad Party and RLD had won one seat each. The seats include Karhal, which has been with Samajwadi Party since 1993. Samajwadi Party’s Awadhesh Prasad who won from Milkipur near Ayodhya nine times, is now the MP from Faizabad. Kundarki seat in Moradabad was won last by BJP in 1993. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav is also worried about retaining his party’s seats. He is banking on his PDA (Pichhda, Dalit, Alpasankhyak) formula. It was under Akhilesh Yadav’s leadership that the Samajwadi Party-Congress combination gave a big setback to BJP in the Lok Sabha elections from UP. BJP’s LS tally from UP was reduced from 62 in 2019 to 33 this time. This seems to be the primary reason behind the convulsions that have gripped the state BJP now. For the last one month, there have been media speculations about the possibility of Yogi losing his chief ministership, but the BJP high command has firmly taken a stand not to repalce him as CM. The high command has firmly told the state leaders that there was no alternative to Yogi at present, and the chief minister will continue to run the government. The party high command has also decided to give a free hand to Yogi. The chief minister will have a big say in selection of candidates and preparation of strategy for byelections. Party chief J P Nadda has clearly told K P Maurya that merely mouthing remarks like “organisation is bigger than government” won’t do. He was told that the organisation is, of course, bigger, but all party workers and leaders must remain united and work in a cohesive manner. State leaders have been asked to refrain from making such remarks, because it can create confusion among the rank and file. As far as byelections are concerned, winning all the 10 assembly seats is a big challenge, both for BJP and Akhilesh Yadav. Out of the 10 seats, SP had won five, and in 2022, BJP had won only three out of these ten seats. Karhal assembly seat was vacated by Akhilesh Yadav. Both Late Mulayam Singh Yadav and Akhilesh won this seat in the past. For Akhilesh, it will be a tough challenge to retain this seat now. Similarly, BJP lost Faizabad Lok Sabha seat to Samajwadi Party’s Awadhesh Prasad Passi, who has become the party’s poster boy for Ayodhya. But, the Milkipur assembly seat that Awadesh Prasad has vacated, is now being eyed by BJP, to extract revenge for its defeat in LS polls. Winning these seats is a big challenge for Yogi, and the chief minister has accepted the challenge.
एक्शन में योगी : लखनऊ में बुलडोज़र, शिक्षकों की डिजिटल हाज़िरी पर रोक
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने पब्लिक की डिमांड पर कई बड़े फैसले किए. लखनऊ में नदी के फ्लड जोन में बने मकानों पर बुलडोजर नहीं चलेगा क्योंकि जिस जमीन पर मकान बने हैं, उनकी रजिस्ट्री लोगों के पास हैं, म्यूटेशन है, बिजली के कनेक्शन हैं, हाउस टैक्स जमा है. अब सरकार इस बात की जांच कराएगी कि नदी के फ्लड जोन में घर बने कैसे? ज़मीन बिकी कैसे? कौन से अधिकारी इसके लिए दोषी हैं? असल में लखनऊ के कुछ इलाकों के लोगों में बुलडोजर चलने के डर से जबरदस्त टेंशन थी. कुकरैल नहर के आसपास बसे कुछ इलाकों के घरों में मार्किंग कर दी गई थी जबकि लोगों के पास अपनी जमीन के कानूनी कागजात थे. सरकारी बिजली, पानी और सीवर का कनैक्शन था लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही थी. इलाके के लोग प्रदर्शन कर रहे थे. मंगलवार को योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के पंतनगर, खुर्रमनगर, अबरार नगर, रहीम नगर और इंद्रप्रस्थ नगर के लोगों को बातचीत के लिए बुलाया, अफसरों को सामने बैठाया. लोगों ने बताया कि अफसर कह रहे हैं कि कुकरैल नहर के आसपास के इन इलाकों के करीब 2 हजार मकान फ्लड प्लेन जोन में हैं, इन घरों पर बुलडोजर चलेगा, कई मकानों की मार्किंग की गई है. इन लोगों ने योगी को बताया कि उन्होंने प्राइवेट जमीन खरीदी, रजिस्ट्री करवाई, नक्शा पास करवाया, हाउस टैक्स जमा किया और अब बीस बीस साल के बाद अचानक उनके घर को अवैध बताया जा रहा है, वो कहां जाएं ? लोगों की बात सुनने के बाद योगी ने ऑन द स्पॉट ही लोगों की समस्या का निराकरण कर दिया. सामने बैठे अफसरों से कहा कि अगर कागजात पक्के हैं, वैध हैं, तो फिर घरों पर लाल निशान किसके आदेश पर लगाए गए? घर पर बुलडोजर चलाने की बात किसके आदेश पर कही? योगी ने लोगों से कहा कि किसी के घर पर बुलडोजर नहीं चलेगा, पंतनगर हो या इंद्रप्रस्थ नगर, हर निवासी की सुरक्षा और संतुष्टि सरकार की जिम्मेदारी है. योगी ने कहा कि जिन अफसरों की वजह से लोग परेशान हुए, उनमे भ्रम फैला, दहशत फैली, उनकी जवाबदेही तय की जाएगी. योगी ने कहा कि जो लाल निशान घरों पर लगाए गए हैं, उन्हें भी मिटाया जाएगा. योगी ने प्रभावित परिवारों से कहा कि वो निश्चिंत और खुश होकर घर जाएं. जैसे ही ये खबर इन मोहल्लों में पहुंची तो वहां भी जश्न शुरू हो गया, आतिशबाजी हुई, मिठाइयां बंटी. कुकरैल के किनारे बसे इन इलाकों के निवासियों की सांसें पिछले एक महीने से अटकी हुई थीं. इनके घर पर बुलडोजर चलने की नौबत क्यों आई? ये भी समझ लीजिए. असल में सिंचाई विभाग ने 14 जून को एक रिपोर्ट दी. इसके मुताबिक 28 किलोमीटर लंबी कुकरैल नदी के दोनों किनारों के 50-50 मीटर इलाके को फ्लड प्लेन जोन घोषित किया गया है. अबरार नगर, पंत नगर, रहीम नगर और इंद्रप्रस्थ नगर के सैकड़ों मकान फ्लड प्लेन ज़ोन के दायरे में हैं. इस रिपोर्ट के बाद करीब दो हजार घरों पर लाल निशान लगा दिए गए. लोगों ने इसका विरोध किया. जमीन के कागजात अपने अपने घरों के बाहर चिपका दिए. लोगों ने कहा कि उन्होंने जमीन किसानों से पच्चीस साल पहले खरीदी है, सरकारी रिकॉर्ड देखकर खरीदी लेकिन सिंचाई विभाग कह रहा है कि यहां 1983 से कब्जा है. तो सवाल ये है कि सिंचाई विभाग के अफसर अब तक कहां सो रहे थे? बुलडोजर चलाने की नौबत क्यों आई ? ये सब कुछ बेलगाम अफसरों की गलती के नतीजे हैं. चूंकि यूपी में योगी आदित्यनाथ ने सरकारी जमीनों पर कब्जे हटाने के लिए बुलडोजर चलाने की छूट दी, माफिया गुंडों की संपत्ति पर बुलडोजर चलवाया. इसकी आड़ में कुछ अफसरों ने मनमाने ढंग से जनता को परेशान करना शुरू दिया. अब योगी ने ऐसे अफसरों पर लगाम कसने की शुरूआत की है. ये अच्छी बात है. लोगों के ये सवाल जायज हैं कि जब उन्होंने सरकार को टैक्स देकर जमीन खरीदी, रजिस्ट्री करवाई, म्यूटेशन करवाया, तब सिंचाई विभाग के अधिकारी कहां सोते रहे? अफसरों की गलती की सजा आम लोगों को क्यों दी जाए? ये बात समझने में योगी को देर नहीं लगी. इसीलिए उन्होंने जो आदेश जारी किया है, उसमें साफ साफ कहा है कि अफसरों की भी जिम्मेदारी तय होगी और उन अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी, जिन्होंने लोगों के घरों पर लाल निशान लगाए, लोगों को डराया. ये फैसला इसलिए हो पाया क्योंकि योगी ने सीधे लोगों से बात की, न नेताओं की सुनी, न अफसरों की. सीधा संवाद का यही फायदा होता है. इसका फायदा आंदोलन कर रहे यूपी के प्राथमिक शिक्षकों को भी मिला. प्राथमिक स्कूलों में फिलहाल ऑनलाइन अटेंडेंस लागू करने का आदेश वापस ले लिया गया. शिक्षक संघ के नेताओं के साथ मुख्य सचिव की बैठक में ये फैसला किया गया कि पहले शिक्षकों से बात की जाएगी, उनकी समस्याओं का समाधान होगा, उसके बाद ऑनलाइन अटेंडेंस पर फैसला होगा. पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे सरकारी प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों की नाराजगी को देखते हुए योगी ने सोमवार रात को ही इस मामले की पूरी जानकारी ली. अधिकारियों से पूछा कि अचानक ऑनलाइन अटैंडेंस को लागू क्यों किया? शिक्षकों को नेताओं से बात क्यों नहीं की गई ? इसका असर तुरंत दिखाई दिया. मंगलवार को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने प्राइमरी शिक्षक संघ के नेताओं से मुलाकात की और फैसला किया गया कि एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाएगा. कमेटी सभी जिलों में सरकारी शिक्षकों से बात करेगी, उनकी परेशानियों के समझने की कोशिश करेगी. सबकी बात सुनने के बाद ही ऑनलाइन अटेंडेंस पर कोई फाइनल फैसला होगा. अगले दो महीने तक ये आदेश स्थगित रहेगा. असल में ये मुद्दा भी इसीलिए बड़ा हो गया क्योंकि अफसरों ने बिना सोचे समझे, ज़मीनी वास्तविकता को जाने बगैर ऑनलाइन अटेंडेंस का आदेश जारी कर दिया. स्कूलों में कनैक्टीविटी का इश्यू है, इंटरनैट कनैक्टीविटी नहीं हैं, टीचर्स की पढ़ाने के अलावा दूसरे सरकारी कामों में भी लगाया जाता है. कई बार सरकारी ऐप काम ही नहीं करता. ऐसे में शिक्षक ऑनलाइन अटेंडेंस कैसे भर सकते हैं? योगी के दखल के बाद जैसे ही मुख्य सचिव ने शिकक्ष नेताओं से बात की, तो ग्राउंड रियलिटी समझ में आ गई और मसले का हल का रास्ता निकल आया. कुल मिलाकर मुद्दा सीधे संवाद का है. सरकार और जनता के बीच अफसर पुल का काम करते हैं. अगर अफसर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं तभी इस तरह की समस्याएं सामने आती हैं. इसीलिए अब योगी ने अफसरों पर सख्ती की है.इसका एक उदाहरण अलीगढ में भी मिला. उत्तर प्रदेश सरकार अब सरकारी जमीनों के पट्टों की जांच कराएगी. अगर गलत तरीके से पट्टे किए गए हैं तो ऐसा करने वाले अफसरों के खिलाफ एक्शन होगा. इस मामले में पहली गाज IAS अफसर देवी शरण उपाध्याय के ऊपर गिरी. अलीगढ़ में सरकारी जमीनों के पट्टों में गड़बड़ी के आरोप में देवी शरण उपाध्याय को सस्पेंड किया गया है. योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश सरकार के अफसरों को हिदायत दी है कि वो नियम कानून के दायरे में रहकर काम करें, जनता में भय और भ्रम फैलाने की कोशिश न करें. योगी ने अधिकारियों से कहा है कि सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हटाना जरूरी है लेकिन अगर कहीं कोई बस्ती बसी है, जमीन के कागजात है, सरकारी नियमों के तहत जमीन खरीदी गई है, तो सीधे बुलडोजर लेकर पहुंचना ठीक नहीं हैं.
Yogi in action : Stays Lucknow demolitions, teachers’ digital attendance
Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath on Tuesday took two important decisions on public demand. He ordered a stay on demolition of all houses built in river flood zone across Lucknow and also put a hold on implementation of digital attendance for thousands of basic school teachers for the next two months. Officials of state irrigation department had put red markings on houses built in Pant Nagar, Abrar Nagar, Indraprastha Nagar and Rahim Nagar in Lucknow, saying these were meant for demolition by bulldozers. Yogi told residents of these colonies that there would be no demolition, but accountability will be fixed against officials who allowed these colonies to be built on floodplain zone in the first place. These buildings fall within the 50-metre floodplain area of Kukrail canal, where no construction is allowed. The owners of these buildings had their properties registered with local authorities, were paying house tax to the Muncipal Corporation, and had valid electricity connections. The houseowners had formed a Trans-Gomati Niwasi Sangharsh Samiti and had been resisting demolition. Yogi appealed to officers not to create confusion and fear in the minds of people. There were celebrations in the colonies of Lucknow which had been spared from demolitions. State minister Sanjay Nishad welcomed Yogi’s decision. He mentioned the incident of June 30 in Jaunpur, when bulldozer was used to demolished 50 trees in the garden of a woman named Lilawati, after she refused to vote in favour of the village pradhan. Lilawati had met Nishad in Lucknow, when the village pradhan’s son, in collusion with local officials, used bulldozer to demolish the trees. Timely intervention by chief minsiter Yogi Adityanath saved the home of Lilawati which was about to be demolished. Whether it is the incident in Jaunpur or in Lucknow, a section of bureacrats in UP have started taking law into their hands by indiscriminately using bulldozers to demolish properties. Yogi had ordered use of bulldozers to demolish illegally acquired properties of local mafia dons and gangsters, but some bureaucrats, using this as a facade, started harassing people by threatening use of bulldozers. Yogi has now started reining in these ‘Dirty Harrys’. This is a welcome step. The demands of people living in Lucknow are also justified. They have been saying that they legally bought land by paying stamp duties to the government, got them registered, got the mutation process done, but irrigation department officials were then sleeping. Nobody from that department objected. These people have been saying why they should be punished for the mistakes of some bureacrats? Yogi on Tuesday clearly said that the accountability of bureaucrats will be fixed and action will be taken against those officers who put red markings on the buildings, meant for demolition in the flood zone. In another decision, the UP government on Tuesday postponed its decision to implement online digital attendance for teachers, after statewide protests. The state chief secretary told a delegation of teachers that an experts’ committee will be set up to review the decision to digitise all 12 types of registers in schools across the state and also take up other teachers’ issues. Earlier, on Monday night, Yogi Adityanath took a meeting of primary education department officials and asked them how such a decision was taken in a hurry, without taking the teachers into confidence. The chief secretary met the leaders of teachers’ union, and promised to set up a committee to review the decision. Till that time, the decision for digital attendance will be kept in abeyance. It is a fact that the officials issued the order without checking whether there was digital internet connectivity in each and every primary school in the state or not. Teachers are also used for other government work like census, survey, election, etc. Most of the time state government app does not work, and the teachers were finding themselves in a quandary as to how to mark their attendance digitally. It was only after Yogi intervened that the state government met the teachers’ union leaders, the ground reality was realized and the matter was sorted out. In a third decision, Yogi government has decided to review all government land leases afresh, and take action against officials who will be found responsible for giving government land on lease illegally. IAS officer Devi Sharan Upadhyay was suspended on Tuesday on charge of irregularities in giving government land on lease in Aligarh. In governance, the main problem is: lack of direction communication. Yogi directly listened to the pleas of commoners, bypassing bureaucrats and politicians. Such a direct communication has its own benefit. Bureaucrats work as a bridge between the government and the people. Such problems arise when some bureaucrats do not discharge their tasks effectively. Yogi has already started wielding the stick, beginning with senior IAS officer Devi Sharan Upadhyay, who has been suspended.