Rajat Sharma

नये संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार बेमानी है

AKBविपक्षी दल नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके का इस्तेमाल आपसी एकता दिखाने के लिए करने वाले हैं. कांग्रेस सहित 19 पार्टियों ने एलान कर दिया कि वो रविवार को होने जा रहे समारोह का बॉयकॉट करेंगे. एक साझा बयान में कहा गया है कि चूंकि राष्ट्रपति देश की संवैधानिक प्रमुख हैं, संसद के अभिभाज्य अंग है, इसलिए संसद के नय़े भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए. इन पार्टियों ने कहा, चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उद्घाटन करेंगे, ये राष्ट्रपति का अपमान है, इसलिए 19 विरोधी दलों का कोई नेता इस प्रोग्राम में शामिल नहीं होगा, बीजेपी के नेतृत्व में एन डी ए ने एक साझा बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि इन पार्टियों का ये फैसला अपमानजनक है. यह हमारे महान राष्ट्र के संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक परिपाटी का अपमान है. बीजेपी ने कहा, कांग्रेस के नेताओं ने पहले पार्लियामेंट एनेक्सी और लाइब्रेरी का शिल्नायस किया, तब राष्ट्रपति को नहीं बुलाया. कई विधानसभा भवनों का उद्घाटन किया, तब राज्यपाल को नहीं बुलाया, इसलिए राष्ट्रपति तो बहाना है, मोदी ही निशाना है. कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों को मुख्य रूप से विरोध के पीछे दो तर्क हैं, पहला, नये संसद भवन के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति को न बुलाना राष्ट्रपति के पद का अपमान है, दूसरा, उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को न बुलाना आदिवासियों का अपमान है. इन दो सवालों का जबाव ये है कि जब कांग्रेस की सरकारों में इस तरह के कार्यकमों में राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया तो क्या वो राष्ट्रपति पद का अपमान नहीं था? जब राज्यों में विधानसभा की बिल्डिंग का उद्घाटन मुख्यमंत्री ने किया तो क्या ये राज्यपाल का अपमान नहीं था? बिहार विधानसभा के नये भवन का उद्घाटन खुद नीतीश कुमार ने किया, असम में तरूण गोगोई ने किया, झारखंड में हेमंत सोरेन ने किया, तेलंगाना में के. चन्द्रशेखर राव ने किया, आन्ध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने किया, कहीं भी राज्यपाल को नहीं बुलाया गया, तो क्या ये संवैधानिक पद का अपमान था? मुझे लगता है कि मुख्यमंत्रियों ने विधानसभा का उद्धाटन करके कोई गलत काम नहीं किया, किसी का अपमान नहीं किया. सपा नेता रामगोपल यादव ने दो दिन पहले बिल्कुल सही बात कही थी – लोकतन्त्र में विधायिका का प्रमुख प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ही होता है, इसलिए इस मुद्दे पर ये विवाद फिजूल का है. जहां तक राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को न बुलाकर आदिवासियों के अपमान की बात है तो कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों से ये भी पूछा जाएगा कि जब राष्ट्रपति के चुनाव में द्रोपदी मुर्मू के खिलाफ यशवन्त सिन्हा को मैदान में उतारा था, तो क्या वो आदिवासियों का सम्मान था? उस वक्त कांग्रेस क्या आदिवासियों के खिलाफ थी? मुझे लगता है कि जब मौका बड़ा हो,.बात देश की हो, तो छोटे राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर सोचना चाहिए. मुझे लगता है कि संसद ने नए भवन के उद्घाटन को मुद्दा बनाने की दो बड़ी वजहें हैं. पहली, मोदी विरोध. जो जो पार्टियां मोदी से परेशान हैं, अब 2024 तक हर छोटी बड़ी बात पर, मोदी विरोध के नाम पर, हम साथ साथ हैं, का ऐलान करती रहेंगी. दूसरी बात, इन पार्टियों को राष्ट्रपति से कोई प्रेम नहीं है, वो भी जानते हैं कि एक भवन का उद्घाटन कोई संविधान का सवाल नहीं है, वो भी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने ही एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया है, विरोधी दल राष्ट्रपति का नाम इसलिए ले रहे हैं कि आदिवासी समाज की भावनाओं को थोड़ा बहुत भड़काया जा सके. अगर विपक्ष के नेताओं के बयानों को ध्यान से सुनेंगे, तो पता चलेगा वो ये कह रहे हैं कि मोदी ने वोटों के लिए एक आदिवासी को राष्ट्रपति बनाया, और अब हम वोटों के लिए संसद के उद्घाटन को आदिवासी महिला राष्ट्रपति का अपमान बता रहे हैं. कुल मिलाकर ये सियासत की लड़ाई है. 2024 के चुनाव से पहले मोदी को तरह तरह से घेरने की कोशिश का हिस्सा है. अभी साल भर बाक़ी है. ऐसे स्वर कई बार सुनाई देंगे, लेकिन मुझे लगता है कि सिर्फ़ मोदी विरोध के लिए, सिर्फ़ आदिवासी वोट के लिए पार्लियामेंट के नए भवन के उद्घाटन को बायकॉट करना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. ये देश के लिए ऐतिहासिक मौक़ा है. अच्छा होता कि इस दिन सारे राजनीतिक दल संकल्प लेते कि नई पार्लियामेंट में, नई परंपराएं क़ायम होंगी. यहां सिर्फ़ काम होगा. समय का सदुपयोग होगा, और अब जनता के पैसे की बर्बादी नहीं होगी. शायद, एक साल बाद चुनाव न होता, तो ये संभव था. अब ऐसे संकल्प की उम्मीद कम है.

कर्नाटक में हिजाब पर पाबंदी हटाने की मांग

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनते ही स्कूल-कालेजों में हिजाब पर लगी पाबंदी, गोहत्या प्रतिबंध कानून और धर्मांतरण प्रतिबंध बिल वापस लेने लिए दवाब शुरु हो गए हैं. मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंडिया ने कर्नाटक सरकार से इस बात की अपील की है. एमनेस्टी इंडिया ने कहा है कि इस कानून और बिल के जरिए अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, अल्पसंख्यकों के खिलाफ इन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, इन्हें हटाकर कर्नाटक सरकार इनके अधिकारों की रक्षा करे. हिजाब पर पाबंदी, गोहत्या पाबंदी कानून और धर्मांतरण पाबंदी कानून को लेकर कर्नाटक में लंबा विवाद चला है .इसे लेकर राजनीति भी खूब हुई है. हिजाब पर पाबंदी के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, कर्नाटक हाईकोर्ट इस मामले में बीजेपी की सरकार के पक्ष में फैसला सुना चुका है. ये तीनों मामले बेहद सेंसिटिव हैं. मुख्यमंत्री सिद्धरामैया से जब इस बारे में पूछा गया तो वो कोई जवाब देने से बचते रहे. सिद्धरामैया ने ये जरुर कहा कि उन्होंने राज्य के पुलिस अफसरों से कहा है कि वो मॉरल पुलिसिंग और भगवाकरण बंद करें. कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खरगे ने हिजाब पर पाबंदी हटाने को लेकर तो कुछ साफ साफ नहीं कहा लेकिन इतना जरूर कहा कि ऐसा कोई भी फैसला जिससे मोरल पुलिसिंग होती हो, ऐसे सभी फैसलों पर पुनर्विचार किया जाएगा. प्रियांक खरगे ने कहा कि जो कानून का उल्लंधन करेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई होगी, जाहे वह आर एस एस ही क्यों न हो. उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार से भी यही सवाल पूछा गया. शिवकुमार ने कहा वो इस पर अभी कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि यह नीति संबंधी मसला है. इस पर पार्टी के अंदर बातचीत होगी और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा. वैसे कर्नाटक सरकार इस वक्त पांच गारंटियों को कैसे लागू करें, उसे लेकर ज्यादा चिन्तित है. जनता को तो लगता है सरकार बनते ही वो सब लागू हो जाना चाहिए जिसका वादा चुनाव के दौरान किया गया, लेकिन ये प्रैक्टिकल नहीं है. ये अच्छी बात है कि सिद्धरामैया और डी के शिवकुमार दोनों कह रहे हैं कि सरकार के फैसले सोच विचार कर लिए जाएंगे. सरकार अभी अभी बनी है, मुझे लगता है लोगों को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए.

सिविल सर्विस परीक्षाओं में कैसे बेटियों ने बाज़ी मारी

UPSC के सिविल सर्विसेज़ एग्ज़ामिनेशन में इस बार फिर बेटियों ने बाजी मारी है. टॉप फाइव में इस बार चार लड़कियां हैं, जिन्हें ये कामयाबी मिली है. इनमें सबसे पहला नाम इशिता किशोर का है, जो बिहार की बेटी हैं, लेकिन उनका परिवार ग्रेटर नोएडा में रहता है. मेरिट लिस्ट में दूसरा नाम गरिमा लोहिया का है, ये भी बिहार की हैं, और इनका परिवार बक्सर में रहता है. मेरिट में तीसरा रैंक हासिल करने वाली उमा हरति हैदराबाद, तेलंगाना से आती हैं, और चौथा रैंक मिला है स्मृति मिश्रा को, जो नोएडा में रहती हैं. इन सबने कड़ी मेहनत की, जम कर पढ़ाई की, खुद पर भरोसा बनाए रखा, जिसके बाद इन्हें ये कामयाबी मिली है, और अब वो IAS अफसर बनकर देश की सेवा करने जा रही हैं, लेकिन सबकी कहानी अलग है, सबकी पृष्ठभूमि अलग है. इशिता किशोर एयरफोर्स के अफसर की बेटी हैं, उनके पिता विंग कमांडर संजय किशोर अब इस दुनिया में नहीं हैं. पिता के जाने के बाद मां ने एयरफोर्स में नौकरी की, परिवार की देखभाल की, इशिता को पढ़ाया लिखाया और काबिल बनाया. इशिता किशोर ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से इकनॉमिक्स में बीए ऑनर्स किया, कॉरपोरेट में नौकरी भी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा, इसीलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विसेज़ परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. इशिता किशोर को शुरुआती दो कोशिशों में कामयाबी नहीं मिली. पहली और दूसरी कोशिश में उनका प्रिलिम्स भी नहीं निकला, लेकिन इशिता ने हार नहीं मानी, इशिता कहती हैं कि उन्हें एक बार ये भी लगा कि कहीं उन्होंने कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर गलत फैसला तो नहीं ले लिया, लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि वो वही करेंगी, जो सोचा है. इशिता ने बताया कि उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा, खुद को सुधारा, और उसका नतीजा आज सबके सामने है. IAS के इम्तिहान में देश की बेटियों को बुलंदियों पर देखकर गर्व होता है. इस बार की टॉपर इशिता किशोर से बुधवार को मेरी मुलाकात हुई. इशिता की सोच स्पष्ट है, दूसरों से संवाद की कला कमाल की है. उनका देश सेवा का जज्बा काबिल-ए-तारीफ है. मैंने उन्हें बताया कि जब भी मैं किसी कॉलेज में किसी इंस्टीट्यूट में अवॉर्ड समारोह में जाता हूं, तो पुरस्कार देते समय दिखाई देता है कि अवॉर्ड लेने वालों की लाइन में 70 से 80 परसेंट बेटियां खड़ी हैं. यही जज्बा IAS इम्तिहान में भी बार – बार देखने को मिलता है. इशिता की बातें सुनकर लगा कि हमारे समाज में बेटियों को जिस तरह हर समय चौकन्ना रहना पड़ता है, जिस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसे देखते हुए कामयाबी के ये रिकॉर्ड बहुत बड़ी बात है.

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