Rajat Sharma

गंगा में तैरती लाशों के बारे में विदेशी मीडिया ने कैसे फैलाया आधा सच, आधा झूठ!

AKBकोरोना की रफ्तार अब देश के लगभग हर हिस्से में कम होती जा रही है, लेकिन यूपी के विधानसभा चुनावों में गंगा नदी में तैरती लाशों का जिक्र बार-बार हो रहा है। सोमवार को हमारे हाथ कुछ ऐसे वीडियो लगे जिन्होंने गंगा में तैरती लाशों के बारे में फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश कर दिया। यहां तक कि द न्यूयॉर्क टाइम्स और द वॉशिंगटन पोस्ट ने भी पिछले साल गंगा नदी में तैरती लाशों की तस्वीरें छापी थीं, लेकिन सोमवार को हमें जो विजुअल्स मिले, उनसे साफ हो गया कि पिछले साल गंगा के पास लाशों को दफनाने को लेकर झूठी कहानी रची गई थी।

यूपी विधानसभा चुनाव में कोरोना को बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है। अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी, ओमप्रकाश राजभर जैसे तमाम नेता कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में बह रही लाशों की याद दिला रहे हैं। चुनावी सभाओं में वे प्रयागराज में गंगा के किनारे दफन लाशों का जिक्र कर रहे हैं।

पिछले साल अप्रैल-मई में गंगा नदी के किनारे दफनाई गई लाशों की विचलित करने वाली तस्वीरें और वीडियो अब विपक्ष और निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं। विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार कोरोना से हुई मौतों की संख्या के वास्तविक आंकड़े छिपा रही है।

जब 8 फरवरी को तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए चुनाव प्रचार करने लखनऊ आईं तो उन्होंने भी कहा था कि कोरोना काल के दौरान योगी सरकार नाकाम रही। ममता बनर्जी ने तो यहां तक दावा किया कि उत्तर प्रदेश में गंगा में बहाई गई लाशें पश्चिम बंगाल तक पहुंच गईं और उन्होंने इन शवों को निकालकर रीति-रिवाज के उनका अंतिम संस्कार करवाया।

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को वर्चुअल मोड के जरिए रायबरेली के मतदाताओं को संबोधित करते हुए याद दिलाया कि कैसे यूपी में लोगों को कोरोना के पीक के दौरान मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था, और अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवाओं और यहां तक कि बिस्तर की भी किल्लत थी जिसके चलते कई लोगों को अपनों को खोना पड़ा था। उन्होंने आरोप लगाया कि योगी सरकार ने महामारी के दौरान लोगों की तकलीफ को कम करने की कोशिश तक नहीं की।

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव लगातार कोरोना से जान गंवाने वालों की प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे दबीं लाशों की तस्वीरों का जिक्र करते रहते हैं। पिछले साल अप्रैल-मई के दौरान रेत में दफन इन लाशों की तस्वीरें वाकई में विचलित कर देती हैं।

विदेशी मीडिया ने इन तस्वीरों को तुरंत उठा लिया और इन्हें भारत में कोरोना से हुई दुर्दशा के सबूत के तौर पर दिखाया। उस वक्त बीबीसी की हेडलाइन थी ‘India’s Holiest River swollen with Bodies’, न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि ‘The Ganges Is Returning The Dead, It Does Not Lie’, द वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट को ‘The mystery of hundreds of bodies found in India’s Ganges river’ हेडलाइन दी तो द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट की हेडलाइन थी ‘India Has Undercounted Covid-19 Deaths By Hundreds Of Thousands, Families And Experts Say’ जबकि द न्यूयॉर्क पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट को ‘Indian Cops Put Nets over Ganges River To Prevent Dumping Of COVID Victims’ हेडलाइन दी।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की ज्यादातर रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया था कि गंगा के किनारे इस तरह का मंजर पहले कभी नहीं देखा गया था। रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कोरोना से मरने वालों की संख्या छिपाने के लिए प्रशासन लाशों को गंगा में बहा रहा है, रेत में दफना रहा है।

इंडिया टीवी के संवाददाता मनीष भट्टाचार्य चुनावों की कवरेज के सिलसिले में प्रयागराज में थे। मैंने उन्हें गंगा किनारे उसी जगह जाने को कहा जहां कोरोना की दूसरी लहर की पीक के दौरान 10 महीने पहले लाशें दफन की गई थीं। उन्होंने जो तस्वीरें भेजीं वे चौंकाने वाली थीं। उस जगह आज भी सैकड़ों ताजी कब्रें हैं, सैकड़ों लाशें दफन हैं।

करीब 2 से 3 किलोमीटर तक हाल ही में दफनाई गई लाशों की कब्रें नजर आ रही थीं। मनीष ने वहां मौजूद लोगों से बात की जिन्होंने उन्हें बताया कि गंगा नदी के किनारे शवों को दफनाना कोई नई बात नहीं है। स्थानीय निवासियों ने कहा कि हिंदू धर्म में समाज के कुछ वर्गों में शव को गंगा में बहाने की परंपरा थी, लेकिन चूंकि जिला प्रशासन ने पर्यावरणीय कारणों से गंगा में शव बहाने पर पाबंदी लगा दी है, इसलिए इन समुदायों के लोग अब शव को गंगा के किनारे रेत में दफन करने लगे हैं।

स्थानीय निवासियों ने मनीष को बताया कि रोजाना औसतन 10 से 15 लाशें रेत में दफनाई जाती हैं। मनीष वहां देवी लाल प्रसाद नाम के एक शख्स से मिले, जो शवों को दफनाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा, यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। देवी लाल प्रसाद ने कहा, कोरोना काल में काम बढ़ गया था तो उनका बेटा भी इस काम में हाथ बंटाने लगा। उन्होंने कहा कि हर महीने औसतन 250 से 300 शव नदी के किनारे दफनाए जाते हैं।

जब हमारे एक रिपोर्टर ने इस पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा की प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने थोड़ा तल्ख अंदाज में जवाब दिया, ‘मैंने जो कहा था उस पर आज भी कायम हूं।’

यूपी के मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जो कि इसी इलाके के रहने वाले हैं, ने कहा, ‘मैं प्रयागराज का रहने वाला हूं, इसलिए मैं स्थानीय परंपराओं के बारे में जानता हूं। ये बीजेपी के खिलाफ किसी भी विषय का तिल से ताड़ बना देंगे। यूपी और देश में कोरोना संक्रमण को लेकर जितना शानदार प्रबंधन हुआ, वैसे दुनिया के बड़े-बड़े संपन्न देशों में भी नहीं हुआ। लेकिन यूपी को कैसे बदनाम किया जाए, देश को कैसे बदनाम किया जाए, ये एक सूत्री एजेंडा लेकर विपक्ष काम करता है। वे केरल से तुलना क्यों नहीं करते, जहां कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या यूपी के मुकाबले ज्यादा है।’

पिछले साल मई में कोरोना के पीक के दौरान यूपी में कोविड के रोज 40 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आ रहे थे। स्वाभाविक रूप से, अन्य राज्यों की तरह, महामारी से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा थी। पिछले 24 घंटों के दौरान यूपी में कोरोना के करीब 600 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 7 लोगों की जान गई है। हालांकि प्रयागराज में आज भी गंगा के किनारे उतनी ही लाशें दफन हैं, जितनी पिछले साल मई में थीं। लेकिन अब न न्यूयॉर्क टाइम्स कुछ लिख रहा है, न वॉशिंगटन पोस्ट का कैमरा प्रयागराज तक पहुंच रहा है, न वॉल स्ट्रीट जर्नल को प्रयागराज में लाशें दिखाई दे रही हैं। लेकिन पिछले साल मई में जब विदेशी मीडिया ने इस तरह की तस्वीरें दिखाईं, गंगा किनारे दबीं लाशों के बारे में खबरें छापीं, तो भारत में अधिकांश लोगों ने इसे सच मान लिया। भारत को बदनाम किया जा रहा था, और हमारे देश सीधे-सादे लोगों ने ऐसी खबरों पर यकीन कर लिया था।

असल में सवाल मानसिकता का है, सोच का है। हम आज भी यह मानते हैं कि यदि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कुछ लिखा है तो सही ही लिखा होगा, वॉशिंगटन पोस्ट में कुछ छपा है तो सच ही होगा। सोमवार की रात ‘आज की बात’ में मैंने आपको कल ही ली गईं तस्वीरें दिखाईं। यही अंतिम सत्य है। यही वास्तविकता है, जो आज भी प्रयागराज में नजर आती है। लेकिन विदेशी मीडिया ने बिना सबूत के, बिना जांच पड़ताल के, बिना रिश्तेदारों से बात किए, आधा सच, आधा झूठ लिख दिया। पिछले साल मई में गंगा के किनारे दफन लाशों को कोरोना से हुई मौतें बता दिया गया, लेकिन अब कोई भी यह जानने से लिए प्रयागराज नहीं आया कि क्यों आज भी हर महीने 250 से 300 लाशें गंगा किनारें दफनाई जा रही हैं, जबकि महामारी कमजोर पड़ चुकी है।

न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट अपने पत्रकारों और कैमरापर्सन को अब प्रयागराज में उसी जगह पर क्यों नहीं भेजते? कारण साफ है। पिछले कई दशकों से, ये अखबार हमेशा भारत को बदनाम करने की कोशिश करते रहे हैं। इन अखबारों ने भारत को हमेशा गरीबी से त्रस्त, अविकसित, सपेरों के देश के रूप में दिखाने की कोशिश की है। पश्चिम में भारत की यही छवि बिकती है। मुश्किल यह है कि भारत में भी अधिकांश लोग बिना सोचे-समझे विदेशी मीडिया पर भरोसा कर लेते हैं।

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