Rajat Sharma

बिहार विधानसभा चुनाव: मोदी बने गेम चेंजर

akbबिहार विधानसभा चुनाव के पहले दौर के लिए बुधवार को जब वोट डाले जा रहे थे उसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद मोदी मुजफ्फरपुर, पटना और दरभंगा में तीन चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे थे। मोदी ने अपने भाषण में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव पर निशाना साधा। हालांकि उन्होंने अपने भाषण में तेजस्वी का नाम नहीं लिया लेकिन ‘जंगलराज का युवराज’ कहकर यह स्पष्ट कर दिया कि उनका इशारा तेजस्वी की ओर है।

मोदी ने बिहार में आरजेडी के 15 साल के शासन के दौरान अराजकता के दौर का जिक्र किया। उन्होंने लोगों को वो बातें दिलाई, वो वक्त याद दिलाया, वो मुद्दे याद दिलाए जिसे बिहार की जनता भूलना चाहती है। मोदी ने बार-बार अपहरण, भ्रष्टाचार और अपराधियों के जमाने की य़ाद दिलाई और बिहार के लोगों को चेतावनी दी, उन्हें सावधान किया। मोदी हर रैली में पहले वाली रैली से अलग नजर आए, इलाके के हिसाब से, जनता के मूड के हिसाब से उन्होंने मुद्दे उठाए। लेकिन जंगलराज की बात हर जगह की और प्रमुखता से की। मोदी ने अपने भाषण में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी को ‘युवराज’ बताया। लालू इन दिनों चारा घोटाले के मामले में जेल में सजा काट रहे हैं। तेजस्वी को आरजेडी की अगुवाई वाले गठबंधन ने सीएम उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारा है।

मोदी ने मतदाताओं को वोट डालते वक्त सावधान रहने की अपील की। उन्होंने लोगों से कहा-‘ अगर वे बिहार में विकास को इसी रफ्तार से आगे बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें जंगलराज की वापसी को रोकना होगा। अगर जंगलराज वाले लोग सत्ता में आ गए तो फिर से बिहार ‘लालटेन’ (आरजेडी का चुनाव चिन्ह) के अंधेरे युग में चला जाएगा। बिहार फिर से अपहरण का बाजार बन जाएगा। यह फिर से बीमारू राज्य हो जाएगा। जो लोग नौकरी का वादा कर रहे हैं, असल में वो अपने लिए नौकरी का इंतजाम करने में लगे हैं। ये लोग सत्ता में आ गए तो ‘पैसा हजम और परियोजना खतम’।“ दरभंगा की रैली में तो मोदी ने साफ-साफ कहा कि ये मौका है जब बिहार के लोग राज्य को फिर से बीमारू होने से बचा सकते हैं।

बुधवार को मोदी का वो रंग दिखा जिसके कारण उन्हें चुनाव का रूख पलटने वाला प्रचारक कहा जाता है, उन्हें गेम चेंजर कहा जाता है। उन्होंने अपने भाषण में विपक्षी दलों पर कड़ा प्रहार किया। एनडीए के प्रचार अभियान में मोदी के इस भाषण को गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा है। अपनी हर रैली में मोदी ने ये बताया कि बिहार के लिए उनकी सरकार ने क्या किया। नीतीश कुमार की सरकार ने कौन से काम किए। डबल इंजन की सरकार से बिहार को कितना फायदा हुआ और फिर याद दिलाया अगर इस वक्त चूक हो गई तो कितना नुकसान हो जाएगा और इसके बाद मोदी ने विस्तार से जंगलराज की बात की। नीतीश कुमार और लालू यादव के वक्त का फर्क समझाया।

मोदी ने हर वो बात कही जो बिहार के लोग सुनना चाहते हैं, बीजेपी और जेडीयू के नेता कहना चाहते हैं, लेकिन मैसेज भी चला जाए और बात भी कह दी जाए और मर्यादा भी बनी रहे, ये एक कला है, जो सबके बस की बात नहीं है। अधिकतर नेता इसमें मात खा जाते हैं और व्यक्तिगत टीका-टिप्पणियों में ज्यादा उलझ जाते हैं। मोदी ने लालू यादव के बारे में, तेजस्वी यादव के चुनाव प्रचार के बारे में हर बात कही, लेकिन एक भी शब्द ऐसा नहीं कहा जिस पर विरोधी सवाल उठा सकें, किसी तरह का इल्जाम लगा सकें। पहली बार प्रधानमंत्री ने बिना नाम लिए तेजस्वी यादव पर हमले किए। नाम नहीं लिया लेकिन जैसे ही मोदी अपने भाषण में बोलते थे ‘जंगलराज के युवराज’, तो रैली में मौजूद हजारों लोग समझ जाते थे कि तीर लालटेन की तरफ चलाया गया है। कुल मिलाकर पीएम मोदी ने जबरदस्त प्रचारक का रोल अदा किया। बिहार के लोगों को समझाया, पढ़ाया और थोड़ा-थोडा डराया भी।

तेजस्वी पर सीधा हमला मंगलवार को नीतीश कुमार ने भी किया था। लेकिन मुद्दा गलत चुना। लालू के नौ बच्चों (सात बेटी, दो बेटे) की बात कर दी और तेजस्वी को जवाब देने का मौका मिल गया। लेकिन बुधवार को मोदी ने जो कहा उससे आरजेडी के नेताओं को, तेजस्वी को दर्द तो बहुत हुआ होगा, लेकिन इस दर्द की कोई दवा नहीं है। तेजस्वी पिछले कई हफ्तों से अपने भाषणों में ‘जंगलराज’ को लेकर किसी भी तरह के पलटवार या टिप्पणी से बचने की कोशिश कर रहे थे। वे चाह रहे थे कि उन दिनों की बातों से छुटकारा मिले, लेकिन मोदी ने उन स्याह दिनों को एक बार फिर चुनावी बिसात पर ला दिया है। पीएम मोदी ने अपनी तीनों रैली में जंगलराज की बात की और जनता को उन बीते दिनों की याद दिलाई।

दिलचस्प बात ये है कि बुधवार को बिहार में राहुल गांधी ने भी चुनाव प्रचार किया। राहुल गांधी के भाषण को मैंने गौर से सुना, ये सोचकर कि शायद कोई नई बात मिले। कोई ऐसा मुद्दा तो मिले जिससे बिहार के चुनाव को जोड़ा जा सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राहुल ने पंजाब की बात की, दशहरे की बात की, 2014 के लोकसभा चुनाव में किए गए मोदी के वादों की बात की, कोरोना के दौरान मोदी के भाषणों की बात की और वोट बिहार के लोगों से मांगा। राहुल ने रोजगार का मुद्दा उठाया तो इसमें भी नीतीश कुमार को नहीं, मोदी को ही निशाना बनाया। राहुल गांधी के भाषणों पर ध्यान दीजिए। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए वोट मांग रहे हैं या फिर लोकसभा चुनाव का प्रचार कर रहे हैं।

मैं राहुल के भाषणों पर पिछले तीन साल से गौर कर रहा हूं। राहुल गांधी के मुद्दे तो छोड़िए, डायलॉग भी नहीं बदले हैं। बस जगह बदल जाती है, चुनाव बदल जाता है। इसकी वजह ये है कि चुनाव कोई भी हो, जगह कोई भी हो, राहुल गांधी के दिलों दिमाग में सिर्फ नरेन्द्र मोदी छाए रहते हैं। इसके चक्कर में वह सब भूल जाते हैं। और हकीकत ये है कि राहुल नरेन्द्र मोदी को जितना कोसते हैं, बीजपी को उतना फायदा होता है। समय है कि राहुल गांधी को अपने भाषण का सुर बदल लेना चाहिए। हमेशा मोदी पर एक सुर में बोलने की बजाय उन मतदाताओं से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा बोलना चाहिए जो उन्हें सुनने आते हैं।

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