राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) इस वक्त महाराष्ट्र के अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की 21 जून को हुई बर्बर हत्या में गिरफ्तार सभी सात आरोपियों से पूछताछ कर रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर ऐसी ऑडियो रिकॉर्डिंग्स सामने आई हैं, जिनसे पता चलता है कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले दर्जनों लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई थी ।
सोमवार को अमरावती की एक अदालत ने सभी सात आरोपियों को NIA की हिरासत में भेज दिया, जबकि अमरावती पुलिस ने उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने और वैमनस्य पैदा करने के नये आरोप जोड़ दिए। NIA ने सभी आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया है और उन्हें 8 जुलाई से पहले मुंबई की एक अदालत में पेश करेगी।
अब तक मिले सबूत साफ तौर यह संकेत देते हैं कि उमेश कोल्हे की हत्या कट्टरपंथी मुसलमानों ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन करने के लिए की थी। नूपुर शर्मा ने पैगंबर मुहम्मद के बारे में विवादित बयान दिया था। कोल्हे ने नूपुर के एक समर्थक के मैसेज को वॉट्सऐप ग्रुप पर फॉरवर्ड किया था। नूपुर शर्मा के समर्थन में मैसेज पोस्ट करने वाले सभी लोगों को धमकी भरे फोन किए गए थे।
चौंकाने वाली बात यह है कि अमरावती पुलिस ने इन सारी धमकियों को हल्के में लिया, और धमकी देने वाले इस्लामिक कट्टरपंथियों पर कार्रवाई नहीं की। अब जो खुलासे हो रहे हैं वे चौंकाने वाले हैं, परेशान करने वाले हैं। ये खुलासे अमरावती पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हैं। अमरावती पुलिस ने उमेश कोल्हे के कातिलों को पकड़ लिया था, लेकिन उसने इस बात को दबाए रखा कि उनकी हत्या नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण की गई। पुलिस ने इसे हत्या का एक रूटीन केस बताया था।
सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि उमेश कोल्हे की हत्या से 2 हफ्ते पहले अमरावती में कई ऐसे लोगों को धमकी भरे फोन आने शुरू हो गए थे, जो सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा का समर्थन कर रहे थे। इन लोगों को धमका कर उनसे माफी के वीडियो बनवाए जा रहे थे। ये वीडियो वायरल किए जा रहे थे, लेकिन अमरावती पुलिस ने इसकी गंभीरता को नहीं समझा।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में, हमने एक इस्लामिक कट्टरपंथी और एक अन्य शख्स के बीच हुई बातचीत की ऑडियो सुनाई। इस ऑडियो में एक व्यक्ति को नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर धमकी दी जा रही थी। एक और परेशान करने वाली बात यह है कि उदयपुर में सिर कलम करने और अमरावती हत्याकांड, दोनों मामलों में हत्या की साजिश रचने वाले मृतकों के करीबी दोस्त थे।
अमरावती में गिरफ्तार सात लोगों में से दो को हत्या के 48 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन पुलिस पिछले 10 दिनों से हत्या के मकसद का पता लगा रही थी। कोल्हे की हत्या से 10 दिन पहले कई अन्य लोगों को भी फोन पर गला काटने की धमकी दी गई थी। ये सारे सबूत अब पब्लिक डोमेन में हैं, फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि अमरावती पुलिस यह नहीं समझ पाई कि उमेश कोल्हे की हत्या का नूपुर शर्मा कनेक्शन है। अब जब NIA ने केस को अपने हाथ में लिया, तब जाकर अमरावती पुलिस हरकत में आई और अब नए सबूत सामने आ रहे हैं।
जो सबूत मुझे मिले हैं, उनसे यह साफ हो जाता है कि अमरावती में कई वॉट्सऐप ग्रुप सक्रिय थे। एक ग्रुप का नाम ‘ब्लैक फ्रीडम’ है, और दूसरे ग्रुप का नाम रहबर है। ऐसे दर्जनों ग्रुप हैं जिन्होंने नूपुर शर्मा का समर्थन करने वालों के वॉट्सऐप स्टैटस और पोस्ट के स्क्रीनशॉट पोस्ट किए थे। इसके तुरंत बाद इन लोगों के पास धमकी भरे फोन आने लगे। ये सिलसिला कई दिनों तक चला, लेकिन स्थानीय पुलिस को इस तरह की गतिविधि के बारे में कोई खबर नहीं हुई।
हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों को धमकी दी जा रही थी, उन्हें धमकाने वाले ज्यादातर जान-पहचान वाले थे। रहबर नाम का NGO चलाने वाला इरफान शेख अपने लोगों के जरिए नूपुर का समर्थन करने वालों को धमका रहा था। रहबर NGO के ऑफिस से फोन करके नूपुर का समर्थन करने वालों से कहा जा रहा था कि मुसलमान, नबी की शान में गुस्ताखी करने वालों की गर्दन काट देते हैं, इसलिए अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
अमरावती के एक शख्स ने 10 जून को नूपुर शर्मा के समर्थन में एक वॉट्सऐप स्टेटस डाला और कुछ ही घंटों में उसे धमकी भरे कॉल आने लगे। उसे अपनी ‘गलती’ के लिए माफी मांगते हुए वीडियो पोस्ट करने के लिए या अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया। सोमवार की रात ‘आज की बात’ में हमने दोनों के बीच हुई बातचीत का ऑडियो चलाया था, जिसमें एक कट्टरपंथी मुसलमान उसकी दुकान पर जाकर ‘देख लेने’ की धमकी दे रहा था, और दूसरा शख्स परेशना होकर कह रहा था कि वह जल्द ही ‘माफी’ की एक वीडियो बनाकर भेज देगा। इसके तुरंत बाद उसने उस नंबर पर हाथ जोड़कर ‘माफी’ मांगने का वीडियो भेजा।
यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है, ऐसा अचानक नहीं हुआ होगा। इसी तरह की दूसरी घटना में अमरावती के एक जाने-माने डॉक्टर को रहबर NGO ग्रुप के किसी शख्स की तरफ से धमकी दी जा रही थी। धमकी देने वाला शख्स डॉक्टर को जानता था, लेकिन साथ ही यह भी कहता है कि इस्लाम के खिलाफ बोलने वाले को सपोर्ट करेंगे तो डॉक्टर साहब को दिक्कत होगी, अंजाम भुगतना होगा।
डॉक्टर फोन पर गिड़गिड़ाते हुए कहते हैं कि नूपुर शर्मा के समर्थन में स्टैटस डालने के पीछे कोई गलत इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि अगर स्टैटस खराब लगा तो हटा देता हूं, लेकिन धमकी देने वाला कह रहा है कि यह स्टैटस उसे अच्छा नहीं लगा और अगर डॉक्टर साहब आगे भी ऐसा करेंगे तो फिर पूरा शहर उनके खिलाफ हो जाएगा। इसके बाद डॉक्टर पूछते हैं तो फिर क्या करें, जिसका जबाव मिलता है माफी का एक वीडियो बनाकर मुझे भेजो।
डॉक्टर ने फौरन माफी का वीडियो बनाकर फोन करने वाले को भेज दिया। वीडियो में डॉक्टर कहत हुए दिख रहे हैं: ‘कल मैंने ‘आई सपोर्ट नूपुर शर्मा’ का स्टैटस लगाया था। इसके पीछे किसी धर्म का, या किसी जाति का, या किसी इंसान का दिल दुखाने का कोई मकसद नहीं था। फिर भी अगर किसी का दिल दुखा होगा तो मैं अपने दिल से उन सबसे माफी मांगता हूं, और आंइदा ऐसी गलती नहीं होगी, इसकी गवाही देता हूं।’
रहबर NGO से लोगों को धमकी देने का काम इस संस्था का उपाध्यक्ष राजिक मिर्जा कर रहा था। इंडिया टीवी के संवाददाता राजेश कुमार ने राजिक मिर्जा से मुलाकात की। मिर्जा ने माना कि उसने डॉक्टर को फोन किया था, लेकिन वह धमकी नहीं दे रहे थे। उसने दावा किया कि वह सिर्फ ‘रिक्वेस्ट’ कर रहा था कि अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो पूरा शहर उनके खिलाफ हो जाएगा। राजिक मिर्जा ने कहा कि वह डॉक्टर को जानता है, उनके पास मरीज भेजता है। उसने कहा कि उसका मतलब यह था कि अगर डॉक्टर माफी नहीं मांगते हैं, तो वह उनके पास मरीज भेजना बंद कर देगा।
मिर्जा जिस शख्स को धमकी दे रहा था, वह एक डॉक्टर था । जब इंडिया टीवी के संवाददाता ने राजिक मिर्जा से कहा कि रहबर वॉट्सऐप ग्रुप में उमेश कोल्हे के स्टैटस का स्क्रीनशॉट पोस्ट किया गया था, उसके बाद ही उनकी हत्या हुई, तो उसने इस बात से इनकार कर दिया। लेकिन वह झूठ बोल रहा था। सच यही है कि उमेश कोल्हे के 16 साल पुराने दोस्त डॉक्टर युसूफ खान ने उमेश कोल्हे के वॉट्सऐप स्टैटस को इस रहबर ग्रुप में शेयर किया था। उमेश कोल्हे की एक मेडिकल शॉप थी, और डॉक्टर युसूफ एक पशु चिकित्सक था। उमेश कोल्हे डॉक्टर युसूफ की मदद किया करते थे।
उमेश कोल्हे ने नूपुर शर्मा के समर्थन में वॉट्ऐसप स्टैटस लगाया था, और धमकी मिलने के बाद उसे डिलीट कर दिया। लेकिन इस दौरान उनके दोस्त डॉक्टर युसूफ ने उसका स्क्रीनशॉट लेकर उसे रहबर वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट कर दिया। इसके बाद रहबर NGO का उपाध्यक्ष शेख इरफान ऐक्टिव हो या और पुलिस के मुताबिक उसी ने उमेश कोल्हे की हत्या की साजिश रची। उमेश कोल्हे की हत्या के बाद से इस ग्रुप में कोई ऐक्टिविटी नहीं हो रही है, हालांकि ग्रुप को डिलीट नहीं किया गया है।
सभी 7 आरोपी अब NIA की हिरासत में हैं, और उनके नाम हैं: यूसुफ खान (32), अब्दुल तौफीक (24), मुदस्सर अहमद (22), शाहरुख पठान (25), शोएब खान (22), आतिब राशिद (22) , और कथित मास्टरमाइंड शेख इरफान शेख रहीम।
मैं एक बात साफ कर दूं कि नूपुर शर्मा ने जो कहा, उसका समर्थन कोई नहीं कर सकता और करना भी नहीं चाहिए, लेकिन अगर किसी ने इसका सपोर्ट कर भी दिया तो उसे धमकी दी जाए, जान से मारने की बात कही जाए, इसे भी ठीक नहीं कहा जा सकता। इसमें कोई शक नहीं है अमरावती में नूपुर शर्मा को सपोर्ट करने वालों को जान से मारने की धमकी दी गई।
अब सवाल यह है कि जब नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर लोगों को 10 जून से ही धमकियां मिल रही थीं तो फिर पुलिस ने इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया? अगर पुलिस जांच करती, धमकी देने वाले रहबर NGO के वाइस-चीफ के खिलाफ 10 जून के बाद ऐक्शन ले लेती तो हो सकता है कि 21 जून को केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या न होती।
जब इंडिया टीवी के संवाददाता राजेश कुमार ने अमरावती की पुलिस कमिश्नर आरती सिंह से यही सवाल पूछा तो उन्होंने यह तो माना कि इस तरह के तीन मामले उनके सामने आए थे, लेकिन यह भी कहा कि 2 मामलों में शिकायत करने से इनकार कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि तीसरे केस में शिकायत की गई थी। पुलिस कमिश्नर ने कहा कि उमेश कोल्हे की हत्या और इन धमकियों के मामले में कोई परस्पर संबंध नहीं दिख रहा है।
हैरानी की बात यह है कि पुलिस कमिश्नर के लेवल का एक IPS अफसर यह कह रहा है कि कोई लिखित शिकायत नहीं मिली थी, इसलिए पुलिस ने जांच नहीं की।
मेरा सवाल है कि क्या सांप्रदायिक दंगा कराने की साजिश की कोई शिकायत करता है? क्या आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने की साजिश की कोई शिकायत करता है? इस तरह के मामलों पर नजर रखना और वक्त रहते ऐक्शन लेना, यह तो पुलिस का काम है। लेकिन अमरावती की पुलिस लिखित शिकायत का इंतजार करती रही।
जिन लोगों ने 10 जून को नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट लिखी थी, उन्होंने माफी का वीडियो बनाकर धमकी देने वालों को भेज दिया। इसके बाद उमेश कोल्हे ने 14 जून को नूपुर के सपोर्ट में वॉट्सऐप स्टेटस लगाया, और 7 दिन बाद 21 जून को उमेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
उमेश की जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई है, उसका ब्यौरा सुनेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उमेश के गले पर 5 इंच चौड़ा, 7 इंच लंबा और 5 इंच गहरा घाव है। हत्यारे उमेश का सिर काटना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी और बेटे के चिल्लाने के कारण भीड़ इकट्ठी हो गई और वे डरकर भाग गए।
ऐसी भी रिपोर्ट्स हैं कि कातिलों ने इससे पहले 19 और 20 जून को भी उमेश को मारने की कोशिश की थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए क्योंकि उमेश जल्दी दुकान बंद करके घर चले गए थे। उमेश की हत्या के बाद भी पुलिस ने 12 दिन तक यह बात दबाए रखी कि उनकी हत्या नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण हुई है।
अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा ने घोर लापरवाही के लिए पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। रवि राणा का कहना है कि जब यह हत्या हुई तब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी की सरकार थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नेता यशोमति ठाकुर, जो कि अमरावती की गार्जियन मिनिस्टर थीं, के कहने पर ही पुलिस ने उमेश की बर्बर हत्या को लूट के लिए किए गए मर्डर का केस बनाने की कोशिश की।
इंडिया टीवी के संवाददाता ने इस बारे में अमरावती की पुलिस कमिश्नर से बात की। उन्होंने कहा, ‘यह एक ब्लाइंड, सेंसिटिव केस था। ऐसे मामलों में बिना ठोस सबूत के कुछ कहना ठीक नहीं होता। FIR में कहीं भी चोरी और लूट की धाराएं नहीं लिखी गई हैं।’ कांग्रेस की पूर्व मंत्री यशोमति ठाकुर का कहना है कि नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘उमेश कोल्हे के साथ जो हुआ वह दुखद है और हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।’
इस बीच सोमवार को अमरावती में उमेश कोल्हे के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोग आए। किसी तरह की गड़बड़ी रोकने के लिए पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त था। श्रद्धांजलि सभा में किसी तरह का हंगामा नहीं हुआ, कोई नारेबाजी नहीं हुई, लेकिन इसमें आए लोगों ने कहा कि इस तरह हत्या करना तालिबानी मानसिकता है। कुछ लिखने या बोलने पर लोगों की हत्या कर दी जाए, लोगों का गला काट दिया जाए, ये सभ्य समाज कैसे सहन करेगा।
यह बात सही है कि जब तक ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं होगी, जब तक समाज ऐसे लोगों का बहिष्कार नहीं करेगा, तब तक इस तरह के मामले नहीं रुकेंगे। अमरावती के बाद सोमवार को नागपुर से भी ऐसी ही खबर आई है। नागपुर में भी 22 साल के एक युवक और उसके परिवार को नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण धमकियां दी जा रही हैं। युवक ने नूपुर शर्मा के समर्थन वाली एक पोस्ट को फॉरवर्ड कर दिया था, जिसके बाद उसे जान से मारने की धमकी दी गई। लड़के ने इस पोस्ट को तुरंत डिलीट कर दिया था। इसके बाद परिवार की ओर से भी कई बार माफी मांगी गई, लेकिन मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने उनके बेटे की तस्वीर को रेड कलर के क्रॉस के साथ कुछ वॉट्सऐप ग्रुप में शेयर किया, जिसका मतलब था कि यह लड़का हमारे निशाने पर है।
इससे डरकर लड़के के परिवार वाले कुछ दिन के लिए नागपुर छोड़कर चले गए। हालांकि अब परिवार तो वापस आ गया है लेकिन पोस्ट फॉरवर्ड करने वाले लड़के को अभी भी अज्ञात स्थान पर रखा गया है। अब नागपुर पुलिस ने इस परिवार को सुरक्षा दिलवाई है, और सीनियर पुलिस अफसरों ने परिवार के लोगों को अपने नंबर भी दिए हैं जिससे कि इमरजेंसी की हालत में वे उन्हें कॉल कर सकें।
एक बात तो साफ है कि अगर अमरावती पुलिस ने लोगों को मिली धमकियों को गंभीरता से लिया होता, तो हो सकता है कि उमेश कोल्हे की जान बच जाती। अगर अमरावती पुलिस ने हत्यारों से पूछताछ में यह पता लगा लिया होता कि उन्होंने सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा को सपोर्ट करने के लिए गला काटा, और इस केस को दबाने की कोशिश न की होती तो शायद उदयपुर में कन्हैयालाल की जान बच जाती, क्योंकि पूरे देश की पुलिस अलर्ट हो जाती।
इन घटनाओं का सीक्वेंस देखने और समझने की जरूरत है। दोनों जगह ‘सिर तन से जुदा’ करने का नारा देने वालों का ग्रुप ऐक्टिव था। पहले अमरावती में लोगों को धमकियां मिलीं, फिर उमेश का गला काट दिया गया। उसके एक हफ्ते बाद उदयपुर में कन्हैयालाल का गला काटने की घटना हुई।
कन्हैयालाल ने पुलिस से शिकायत की थी, जान पर खतरे की आशंका जताई थी, लेकिन पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया । अब जबकि NIA ने दोनों मामलों को अपने हाथ में लेकर जांच शुरू की है तो एक-एक करके सारे सबूत सामने आने लगे हैं। अफसोस की बात यह है कि दो ऐसे बेकसूर लोगों की जानें गई, जिन्हें बचाया जा सकता था।
एक और बात यह सामने आई कि अमरावती में उमेश की हत्या करने वाले उनके अपने जान-पहचान के लोग थे। उदयपुर में भी कन्हैयालाल का गला काटने वालों में उनकी पहचान के लोगों का हाथ था। दोनों जगह दो इंसानों के साथ-साथ दोस्ती का और इंसानियत का कत्ल हुआ।