Rajat Sharma

अमृतपाल पर काफी पहले ही शिकंजा कसना चाहिए था

akbखालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के लिए पूरे देश में तलाश जारी है। पंजाब पुलिस ने तीन दिन पहले अमृतपाल के संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई की थी जिसके बाद से ही वह गायब है। पुलिस ने अमृतपाल के चाचा हरजीत सिंह, फाइनेंसर दलजीत सिंह कलसी, भगवंत सिंह, गुरमीत सिंह और ‘प्रधानमंत्री’ बाजेका सहित 5 लोगों पर NSA लगा दिया है और ये सभी असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं। मुझे लगता है कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ एक्शन में थोड़ी देरी हुई है, इसलिए उसे सपोर्ट करने वालों के हौसले बढ़े। बेहतर होता इस शख्स के खिलाफ उसी दिन सख्त कार्रवाई होती जिस दिन वह अपने हथियारबंद साथियों के साथ पुलिस स्टेशन पर हमला करने पहुंचा था। खैर, देर आए, दुरूस्त आए। कम से अब एक्शन तो शुरू हुआ है और इसे अंजाम तक जरूर पहुंचना चाहिए। अमृतपाल सिंह सिर्फ 30 साल का है, और पिछले साल अगस्त में ही दुबई से भारत लौटा है। ऐसा कैसे संभव है कि सिर्फ 7 महीने में उसने हथियार भी जमा कर लिए, अपना नेटवर्क भी फैला लिया? उसने करोड़ों रुपये की गाड़ियां कैसे से खरीदी और बुलेटप्रूफ जैकेट कहां से ली? वह सिर्फ 7 महीने में इतना ताकतवर कैसे हो गया कि सरकार को चुनौती देने लगा? अब अमृतपाल के नेटवर्क की पूरी जांच जरूरी है, उसके फंडिंग का सोर्स पता लगना जरूरी है। देश में और देश के बाहर उसके मददगार कौन हैं, उनके नाम सामने आना जरूरी है। लेकिन ये सब तभी पता लगेगा जब अमृतपाल सिंह पुलिस की गिरफ्त में आएगा। केंद्र और राज्य, दोनों की एजेंसियों को प्रभावी ढंग से मिलकर काम करना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अखंडता का मामला है। इसमें न तो क्रेडिट लेने की होड़ मचनी चाहिए और न ही सियासत होनी चाहिए।

एक्शन में योगी का बुलडोजर
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सोमवार को गैंगस्टर अतीक अहमद के शार्पशूटर मोहम्मद गुलाम रसूल के घर पर बुलडोजर चलाकर उसे मिट्टी में मिला दिया गया। गुलाम रसूल अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। उसके सिर पर 5 लाख रुपये का इनाम है। उसने ही उमेश पाल पर दिनदहाड़े फायरिंग की थी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। अब वह अंडरग्राउंड है और उसका पूरा परिवार सड़क पर आ गया है। यह सही है कि उसके अपराध की सजा पूरे परिवार को भुगतनी पड़ रही है। बताया यह गया है कि मुहम्मद गुलाम के इलाज पर अतीक अहमद ने 8 लाख रुपये खर्च किए थे, इसलिए वह उसके एक हुक्म पर किसी की भी जान लेने को तैयार रहता था। मुहम्मद गुलाम को अतीक का अहसान तो याद रहा, लेकिन उसे उस मां का कर्ज याद नहीं आया जिसने उसे जन्म दिया और पाल पोसकर बड़ा किया। कुछ लोग आजकल बुलडोजर एक्शन पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि जो अपराधी दूसरों की जमीन पर, घरों पर कब्जा करते हैं. रंगदारी बसूलते हैं, दहशत फैलाने के लिए खूनखराबा करते हैं, कानून को चुनौती देते हैं, उनके खिलाफ इसी तरह के बुलडोजर एक्शन की जरूरत है। इससे अपराधियों के दिल में कानून की दहशत पैदा होती है और आम लोगों के दिलों से अपराधियों का खौफ खत्म होता है।

संसद में कामकाज ठप
संसद के दोनों सदनों में मंगलवार को भी गतिरोध जारी रहा और कोई कामकाज नहीं हो पाया। विपक्षी सांसदों ने सदन के अंदर और बाहर बैनर और पोस्टर लहराए। इस पूरे मामले में दो बातें बिल्कुल साफ हैं: पहली तो यह कि राहुल गांधी ने लंदन में भारतीय लोकतंत्र के बारे में जो कहा उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। और दूसरी यह कि उनके बयान ने बीजेपी को पलटवार करने का मौका दिया है। कांग्रेस की ये बात ठीक हो सकती है कि अडानी के मुद्दे पर बहस से बचने के लिए राहुल के बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है। कांग्रेस को अब तक तो यह मालूम हो जाना चाहिए था कि अगर बीजेपी को विरोधी दल कोई मौका देंगे तो बीजेपी के नेता उसे छोड़ेंगे नहीं। वे उस मौके का पूरा इस्तेमाल करेंगे। जिम्मेदार जो भी हो, संसद का काम न चलने से नुकसान जनता का होता है, नुकसान लोकतंत्र का होता है। लोकसभा अध्यक्ष को कोशिश करनी चाहिए कि सभी पार्टियों के नेताओं को साथ बिठाकर इस गतिरोध को तोड़ा जाए। कई विरोधी दल चाहते हैं कि हंगामा खत्म हो, संसद चले ताकि वे अपने मुद्दे उठा सकें और सरकार से जवाब मांग सकें। शिरोमणि अकाली दल के सांसद तो रोज संसद में तख्तियां लेकर आते हैं जिन पर लिखा होता है ‘सदन में काम होने दो’। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी चाहती है कि सदन में चर्चा शुरू हो। तृणमूल के नेता कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी पार्टियों की बैठकों में भी हिस्सा नहीं लेते।

राहुल को क्यों पसंद नहीं करतीं ममता
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा है कि ‘राहुल गांधी मोदी की सबसे बड़ी टीआरपी’ हैं। उन्होंने बीजेपी पर ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी को हीरो बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस द्वारा उनके उम्मीदवार को हराए जाने के बाद से वह बौखलाई हुई हैं। अखिलेश यादव के साथ अपनी मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी ने बिल्कुल साफ कर दिया कि मोदी के खिलाफ विरोधी दलों की एकता के केंद्र राहुल गांधी नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी चुनावों में जीत नहीं दिला सकते। वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस साफ कह चुकी है कि उसके बिना विरोधी दलों की एकता बेमानी है। इस बात में भी कोई शक नहीं है कि जो राहुल गांधी का विरोध करेगा, कांग्रेस उससे कोई नाता नहीं रखेगी। मजे की बात यह है कि ममता बनर्जी कह रहीं हैं कि बीजेपी ने राहुल को हीरो बनाया इसीलिए संसद ठप हुई, और दूसरी तरफ कांग्रेस कह रही है कि ममता और मोदी ने राहुल को तबाह करने के लिए समझौता किया है। अगर दोनों पार्टियों की लाइन इतनी क्लियर है तो फिर 2024 के चुनावों से पहले विपक्षी दलों की एकता दूर की कौड़ी ही नजर आती है।

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.