आज मैं आपसे एक ऐसी बीमारी के बारे में बात करना चाहता हूं जिसने लोगों को बहुत डरा दिया है। यह घातक बीमारी है ब्लैक फंगस, जिसे म्यूकोरमाइकोसिस के नाम से जाना जाता है। यह देश के कई राज्यों में तेजी से फैल रही है। इसके मरीजों की संख्या अब हजारों में पहुंच चुकी है। कई राज्यों और शहरों से इसके केस सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र में डेढ़ हजार से ज्यादा और गुजरात में एक हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। केंद्र सरकार के पास भी अभी इसे लेकर सही आंकड़ा नहीं हैं कि पूरे देश में ब्लैक फंगस के कितने मामले सामने आए हैं। केंद्र सरकार को राज्यों से प्राप्त आंकड़ों का अभी आकलन करना है। राजस्थान और तेलंगाना की सरकारों ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया है। ब्लैक फंगस के मामले उन मरीजों में पाए जा रहे हैं जो कोरोना से संक्रमित हुए थे और उन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया था। यह बीमारी उन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है जो डायबिटीज और कैंसर के मरीज हैं।
बुधवार की रात एम्स (AIIMS) के राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक स्टडीज ने एम्स कोविड वॉर्ड में इस बीमारी का जल्द पता लगाने और इसकी रोकथाम के लिए गाइडलाइंस जारी किए। मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को इस बीमारी के शुरुआती लक्षण या संकेतों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए। एम्स की गाइलडाइंस के मुताबिक: हाई रिस्क कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को इन मरीजों की पहचान करने के लिए कहा गया है (1) अनियंत्रित डायबिटीज, डायबिटिज केटोएसिडोसिस वाले रोगी और डायबिटीज के वैसे रोगी जिन्हें स्टेरॉयड या टोसीलिज़ुमैब दिया गया (2) ऐसे रोगी जो इम्यून-सप्रेसैंट्स ले रहे हों कैंसर का इलाज करा रहे हैं, और पुरानी बीमारी से पीड़ित हों (3) हाई डोज वाले स्टेरॉयड या लंबे समय तक स्टेरॉयड या टोसीलिज़ुमैब का इस्तेमाल करनेवाले रोगी (4) कोरोना से पीड़ित मरीज और (5) ऐसे मरीज जो ऑक्सीजन मास्क या वेंटिलेटर के जरिये ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।
मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को खतरे के इन संकेतों पर नजर रखनी चाहिए: (1) नाक से काला पदार्थ निकलना, पपड़ी जमना या खून बहना (2) नाक का बंद होना (3) सिरदर्द या आंखों में दर्द (4) आंखों के आसपास सूजन, लाली, अचानक कम दिखना, आंख बंद करने में कठिनाई, आंख खोलने में असमर्थता (5) चेहरे का सुन्न होना या झुनझुनी सनसनी, चबाने या मुंह खोलने में परेशानी।
मरीजों को भी ये सलाह दी गई है कि वे नियमित तौर पर खुद पर नजर रखें और अलर्ट रहें। (1) खुद को अच्छी रोशनी में चेक करें कि चेहरे के किसी हिस्से में सूजन तो नहीं है, खासतौर से नाक, गाल, आंखों के आसपास, कहीं कुछ काला जैसा तो नहीं दिख रहा, कुछ सख्त तो नहीं हो रहा और छूने पर दर्द तो नहीं। इसके साथ ही (2) मुंह या नाक के अंदर कालापन और सूजन का पता लगाने के लिए टॉर्च का इस्तेमाल करें। अगर किसी रोगी को इनमें से किसी भी लक्षण का पता चलता है तो उसे तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ या ईएनटी विशेषज्ञ से संपर्क कर उनकी सलाह लेनी चाहिए। कभी भी बिना डॉक्टर की सलाह लिए स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक या एंटी-फंगल दवाएं नहीं लेनी चाहिए।
दिल्ली में भी म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस तेजी से फैल रहा है। बुधवार तक एम्स में 80 से 100 मरीज, सर गंगाराम अस्पताल में करीब 50 (16 भर्ती के लिए इंतजार कर रहे थे), मैक्स अस्पताल में 25 मरीज, लेडी हार्डिंग अस्पताल में 12, आरएमएल अस्पताल में 5, अपोलो अस्पताल में 10 मरीज और आकाश अस्पताल में 20 मरीज भर्ती थे। डॉक्टरों का कहना है कि यह रोग घातक है, और सर्जरी के बाद चेहरे की गंभीर विकृति पैदा कर सकता है। रोगी अपनी दृष्टि खो सकते हैं। हरियाणा के सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में म्यूकोरमाइकोसिस के लिए अलग वॉर्ड बनाए गए हैं।
जो कोरोना की बीमारी को हराकर अपने घर लौटे थे, वे अब फंगल इंफेक्शन के शिकार हो गए है। आंखों की दृष्टि कमजोर हो गई, धुंधला दिखने लगा। किसी की नाक से खून निकलने लगा या फिर किसी को सीने में दर्द और बुखार की शिकायत हुई। ये सारे लक्षण ब्लैक फंगस के हैं। दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में तो ब्लैक फंगस की वजह से एक मरीज की मौत भी हो गई। एम्स में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ. पद्मा श्रीवास्तव का कहना है कि इस बीमारी से निपटने के लिए एम्स ट्रामा सेंटर और एम्स झज्जर में अलग से वॉर्ड भी बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों में एम्स में हर दिन 20 से ज्यादा ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि चिंता की बात ये है कि अब ऐसे नौजवानों में भी ब्लैक फंगस के लक्षण दिखने लगे हैं जो डायबिटिक नहीं है, जिनकी डायबिटीज की कोई हिस्ट्री नहीं है। जिन्हें ऑक्सीजन नहीं लगा, जो होम आइसोलेशन में थे, उन्हें भी ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले रहा है।
देश में ब्लैक फंगस से प्रभावित राज्यों की लिस्ट में इस वक्त सबसे ऊपर महाराष्ट्र है। यहां ब्लैक फंगस के सबसे ज्यादा मरीज़ मिले है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि राज्य में अब तक म्यूकरोमाइकोसिस के 1500 मरीज मिले हैं। इऩमें से 500 लोग ठीक भी हो चुके हैं, लेकिन 850 से ज्यादा ऐसे मरीज हैं जिनका इलाज अब भी चल रहा है। इस संक्रमण से अबतक 90 लोगों की मौत हुई है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बीमारी के इलाज के लिए जिस दवा एम्फोटेरेसिन बी की जरूरत होती है, उसकी अब कमी होने लगी है। ये दवा देश में पहले से बनाई जाती है लेकिन पहले इतने मामले सामने नहीं आए थे इसलिए डिमांड ज्यादा नहीं थी। महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उन्हें रोजाना कम से कम 6000 वायल्स की जरूरत है और इसका प्रोडक्शन करनेवाली कंपनी को 1.9 लाख इंजेक्शन का ऑर्डर दे दिया गया है। वहीं दिल्ली सरकार ने 1 लाख इंजेक्शन वायल्स का ऑर्डर दिया है।
राजस्थान सरकार ने तो ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है। राज्य में बुधवार तक ब्लैक फंगस के 750 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके है। अकेले जयपुर में 100 से ज्यादा केस मिले हैं। जोधपुर में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या 50 से ज्यादा है। हालात को देखते हुए राजस्थान सरकार ने जयपुर के सवाई मानसिह अस्पताल में ब्लैक फंगस की विशेष ओपीडी शुरू की है। इन मरीजों के लिए अलग वॉर्ड शुरू किया गया है। ब्लैक फंगस को सरकार ने चिरंजीवी बीमा योजना में शामिल कर लिया है और इसके तहत अब राजस्थान के लोगों को ब्लैक फंगस के इलाज के लिए 5 लाख तक का कवर मिल सकेगा। राजस्थान सरकार ने इस बीमारी के इलाज के लिए केंद्र सरकार से एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन की 50 हजार डोज की मांग की है।
ब्लैक फंगस की दवा के रूप में जो लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जाता है उसका प्रोडक्शन देश में सिर्फ नौ कंपनियां करती हैं। इसकी डोज मरीज के वजन के हिसाब से तय होती है। आमतौर पर एक मरीज को साठ से अस्सी इंजेक्शन और कई बार को सौ से ज्यादा इन्जेक्शन की जरूरत पड़ती है। अब चूंकि अचानक मरीजों की संख्या हजारों में पहुंच गई है इसलिए दवा की किल्लत स्वाभाविक है। सिप्ला, सनफार्मा, भारत सीरम, रैनबैक्सी, लाइफ केयर, इंटास और क्रिटिकल केयर जैसी कंपनियां इस इंजेक्शन को बनाती हैं लेकिन उन्हें भी इसका प्रोडक्शन बढ़ाने में कम से कम दस से पंद्रह दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि इस दवा को बनाने में जिस साल्ट की जरूरत होती है उसको इंपोर्ट करने में वक्त लगेगा।
ब्लैक फंगस की दवा के रूप में जो लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जाता है उसका प्रोडक्शन देश में सिर्फ नौ कंपनियां करती हैं। इसकी डोज मरीज के वजन के हिसाब से तय होती है। आमतौर पर एक मरीज को साठ से अस्सी इंजेक्शन और कई बार को सौ से ज्यादा इन्जेक्शन की जरूरत पड़ती है। अब चूंकि अचानक मरीजों की संख्या हजारों में पहुंच गई है इसलिए दवा की किल्लत स्वाभाविक है। सिप्ला, सनफार्मा, भारत सीरम, रैनबैक्सी, लाइफ केयर, इंटास और क्रिटिकल केयर जैसी कंपनियां इस इंजेक्शन को बनाती हैं लेकिन उन्हें भी इसका प्रोडक्शन बढ़ाने में कम से कम दस से पंद्रह दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि इस दवा को बनाने में जिस साल्ट की जरूरत होती है उसको इंपोर्ट करने में वक्त लगेगा।
कुल मिलाकर कहें तो ब्लैक फंगस से डरने की नहीं बल्कि लड़ने की जरूरत है। हर शख्स को इससे सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही ब्लैक फंगस के बारे में कुछ बातें जान लेना जरूरी है। एक तो डॉक्टर्स ये बताते हैं कि कोरोना के सीरियस पेशेंट्स को इलाज के दौरान जो स्टेरॉयड दिए जाते हैं, उनसे शुगर लेवल बढ़ता है और अगर कोई डायबिटिक है तो उसे ब्लैक फंगस का खतरा सबसे ज्यादा होता है। मैंने पहले ही इस ब्लॉग की शुरुआत में एम्स की गाइडलाइंस के बारे में बता दिया है। इसलिए लोगों को एकदम सावधान रहना चाहिए। अगर आप उन लक्षणों को नोटिस करते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर्स भी इसे लेकर हैरान हैं। वो ये पता लगाने में लगे हैं कि कहीं ये कोरोना वायरस का नया रूप या कोई नया म्यूटेंट तो नहीं है।
मैंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अधिकारियों से बात की,उन्होंने बताया कि DCGI (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने कई इंडियन फार्मा कंपनियों को एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन बनाने की इजाजत दी थी और ये कंपनियां दवा के लिए जरूरी साल्ट इम्पोर्ट कर पिछले साल तक दवा का निर्माण कर रही थीं लेकिन फिर इस अनुमति को वापस ले लिया गया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से कहा है कि ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इस इंजेक्शन को इमरजेंसी शॉर्ट टर्म उत्पादन की अनुमति दे देनी चाहिए ताकि इसे अपने देश में प्रोड्यूस किया जा सके और ब्लैक फंगस से लड़ा जा सके।