29 जुलाई का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक था। यह तारीख एक ऐसी घटना की गवाह बनी जिसने हर भारतीय के सीने को गर्व से चौड़ा कर दिया। बुधवार को फ्रांस से आए 5 रफेल फाइटर जेट अंबाला एयरबेस पर शान से उतरे और उनका वहां इंडियन एयरफोर्स ने जोरदार स्वागत किया। कुल मिलाकर भारत ने 36 रफेल फाइटर जेट्स का ऑर्डर दिया है और डसॉल्ट एविएशन ने उन्हें जल्द से जल्द डिलीवर करने का वादा किया है। यह हमारे इंडियन एयरफोर्स के लड़ाकों की वीरता का जश्न मनाने का दिन था, हमारे दुश्मनों के लिए चिंता का दिन था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, खासकर राहुल गांधी के लिए आत्मचिंतन का दिन था।
भारतीय वायुसेना को पिछले 21 सालों से इन लड़ाकू विमानों का इंतजार था, लेकिन पूरी प्रक्रिया नौकरशाहों और नेताओं द्वारा टालमटोल की रणनीति में उलझकर रह गई थी। इस दौरान कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन रफेल लड़ाकू विमानों को लेकर वायुसेना की मांग फाइलों में ही दबी रही। आज देश को इन 5 रफेल जेट विमानों को आसमान का सीना चीर कर अंबाला के एयरबेस पर शान से लैंड करते हुए देखने का मौका मिला। ये विमान 8,500 किलोमीटर की दूरी तय कर भारत पहुंचे थे और बीच में कुछ समय के लिए अबू धाबी में रुके थे। ऐसा इसलिए मुमकिन हो सका क्योंकि आज देश के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत नेता है, जो कभी भी राष्ट्रहित में साहसिक फैसले लेने में नहीं हिचकिचाता। इन जंगी जहाजों का वक्त से पहले भारत पहुंचना नरेंद्र मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति, मजबूत इरादों और दूरदर्शिता का सबूत है।
लड़ाकू विमानों के भारत पहुंचने के कुछ देर बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृत का एक लोकप्रिय श्लोक ट्वीट किया- राष्ट्ररक्षासमं पुण्यं, राष्ट्ररक्षासमं व्रतम्, राष्ट्ररक्षासमं यज्ञो, दृष्टो नैव च नैव च। इसका मतलब है कि राष्ट्र रक्षा के समान कोई पुण्य नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई व्रत नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई यज्ञ नहीं। उन्होंने ‘नभः स्पृशं दीप्तम्’ लिखते हुए अपना ट्वीट खत्म किया जो भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य है और इसका अर्थ होता है ‘गौरव के साथ आकाश को छूएं।’
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट करते हुए इन विमानों के आने पर खुशी जताई। उन्होंने लिखा, ‘जो हमारी अखंडता को चुनौती देने की मंशा रखते हैं, उन्हें भारतीय वायुसेना की इस नयी क्षमता से चिंतित होना चाहिये। रफेल जेट्स का आना सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की वजह से मुमकिन हो सका। प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस की सरकार के साथ रफेल को लेकर इंटर गवर्मेंटल एग्रीमेंट का बिल्कुल सही फैसला किया, क्योंकि काफी वक्त से ये डील लटकी हुई थी। मैं उनके साहस और निर्णायकता के लिए धन्यवाद देता हूं।’
राजनाथ सिंह की बात सही है। मैंने 43 साल के अपने करियर में नेहरू और शास्त्री जी को छोड़कर बाकी सारे प्रधानमंत्रियों के काम को करीब से देखा। इस देश में सेना के लिए जंगी जहाज तो छोड़ ही दीजिए, जीप खरीदना भी चुनौतीपूर्ण होता था। लेटेस्ट गन्स की तो बात ही छोड़िए, हमारे बाहदुर जवान बुलेटफ्रूफ जैकेट और हेलमेट के लिए तरसते थे। रफेल की जो फाइल 15 साल से एक टेबल से दूसरी टेबल पर सरक रही थी, उस फाइल को नरेंद्र मोदी ने खुद उठाया और अफसरों को काम करने की, फैसले लेने की छूट दी।
इसका नतीजा यह हुआ कि सिर्फ 6 साल के कार्यकाल में न केवल सौदा हुआ, बल्कि आज रफेल जेट भारत पहुंच भी गए। ऐसे में काम की इस तेजी का क्रेडिट नरेंद्र मोदी को मिलना ही चाहिए। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि आज रफेल की शानदार तस्वीरें अगर पूरा हिंदुस्तान देख पाया, अगर आज रफेल फाइटर जेट्स हिंदुस्तान की जमीं पर आ सके तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति उनकी दूरदर्शिता और निर्णय लेने की क्षमता है।
बुधवार को इंडिया टीवी पर भी जितने भी एक्सपर्ट्स आए थे, उन सभी ने एक बात कही कि पिछले 20 सालों से हमारी वायुसेना को एक अडवॉन्स्ड फाइटर जेट की जरूरत थी, खासकर चीन और पाकिस्तान के फाइटर जेट्स से मुकाबला करने के लिए। उन्होंने कहा कि इंडियन एयरफोर्स को स्टेट ऑफ द आर्ट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की जरूरत थी। पिछले दो दशकों से किसी भी सरकार ने डिफेंस डील को क्लीयर करने का साहस नहीं दिखाया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायुसेना की जरूरतों को समझा, मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए नए सिरे से उस डील साइन करने के लिए पेरिस गए जो यूपीए शासन के दौरान 9 सालों से लटकी हुई थी। इसके साथ ही मोदी ने उस डील को 2016 में रीनिगोशियेट किया, और फिर 4 साल के अंदर हमारे पास ये फाइटर जेट्स पहुंचने शुरू हो गए। ऐसा इसलिए भी हो सका क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिफेंस में दलाली की पूरी सप्लाई लाइन ही काट दी।
एक ऐसे समय में जब पूरा देश रफेल विमानों के भारत आने पर गर्व कर रहा है, राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेता एक अलग ही रुख अपनाए हुए हैं। रफेल जेट मिलने पर भारतीय वायुसेना को बधाई देते हुए राहुल गांधी ने ट्वीट करके पूछा: ‘क्या भारत सरकार जवाब देगी कि (1) प्रत्येक विमान की लागत 526 करोड़ रुपये की बजाय 1670 करोड़ रुपये क्यों है? (2) 126 के बदले 36 विमान क्यों खरीदे गए? (3) HAL के बदले दिवालिया अनिल को 30,000 करोड़ रुपये का ठेका क्यों दिया गया? राहुल गांधी पिछले 3 सालों से बार-बार यही पुराने सवाल पूछ रहे हैं। उन्होंने पिछले साल इसे चुनावी मुद्दा बनाया। इस मामले को वह सुप्रीम कोर्ट में ले गए, जिसने सीलबंद लिफाफों में दी गई अति गोपनीय जानकारी का अध्ययन करने के बाद सौदे पर मुहर लगा दी। फिर भी राहुल इसे पिछले साल आम चुनावों के दौरान जनता की अदालत में ले गए।
उनका पूरा चुनाव अभियान रफेल डील पर केंद्रित था। हर मीटिंग में उन्होंने ‘चौकीदार चोर है’ जैसे नारे लगवाए, बार-बार कहा कि नरेंद्र मोदी ने अनिल अंबानी की जेब में तीस हजार करोड़ रुपये डाले। मुझे याद है कि पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पार्लियामेंट में कहा था कि मोदी सरकार ने जो रफेल डील की है, वह कांग्रेस सरकार के जमाने में हुई डील से सस्ती है। यहां तक कि कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि मोदी सरकार द्वारा द्वारा साइन की गई डील पिछले ऑफर की तुलना में 17.08 प्रतिशत सस्ती है। इसके बावजूद राहुल गांधी ने इस मुद्दे को उठाना जारी रखा, अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, और आज भी वह ऐसा ही कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने पिछले साल चुनावी कैंपेन के दौरान राहुल गांधी के आरोपों पर जोरदार जवाब देते हुए कहा कि एक दिन जब हिन्दुस्तान के आसमान में रफेल उड़ान भरेगा तो लोग उसे सलाम करेंगे, और उस दिन इल्जाम लगाने वालों को खुद-ब-खुद जवाब मिल जाएगा। दरअसल, कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने राहुल को मोदी पर व्यक्तिगत हमले न करने की सलाह देने की कोशिश की क्योंकि लोगों में मोदी की ईमानदार छवि के कारण ऐसे आरोप नहीं टिकेंगे और कांग्रेस पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। देश की जनता ने कई बार मतपत्रों के जरिए राहुल गांधी को करारा जबाव दिया। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि रफेल चैप्टर को बंद करने और हमारी वायु सेना का मनोबल बढ़ाने का समय आ गया है। पार्टी को भारतीय वायुसेना में रफेल जेट को शामिल करने का स्वागत करना चाहिए। कांग्रेस को अतीत की गलतियों से भी सबक सीखना चाहिए।
ये कड़वा सच है कि पिछले 30 साल से रक्षा सौदे सेना की जरूरत के मुताबिक नहीं हुए। लगभग हर डिफेंस डील में करप्शन के इल्जाम लगते रहे। जब यूपीए की सरकार थी, तब रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी को अपनी ‘मिस्टर क्लीन’ की इमेज का इतना ख्याल था कि उन्होंने डिफेंस डील पर कोई बड़ा फैसला ही नहीं लिया। यही वजह है कि रफेल डील भी लटक गई। लेकिन वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी को अपनी छवि पर भरोसा था। जब उनकी सरकार बनी तब उन्होंने रक्षा सौदों पर बड़े फैसले लेने शुरू किए। उन्होंने बेदाग छवि वाले नेताओं अरुण जेटली, मनोहर पर्रिकर, निर्मला सीतारमण और अब राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। इन सबकी इमेज ऐसी थी कि कभी कोई उंगली नहीं उठा सका।
नरेंद्र मोदी की ईमानदारी पर, देशभक्ति पर और मेहनत पर तो उनके दुश्मन भी सवाल नहीं उठा सकते। और जिन्होंने उन पर सवाल उठाए, जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया। इसलिए आज राष्ट्र रक्षा के यज्ञ में आहुति देने का दिन है। आज अपनी सेनाओं पर गर्व करने का दिन है, आज ये संकल्प करने का दिन है कि हम अपनी सेना का इतना मजबूत करें कि वे दुश्मन को बड़ी असानी से मात दे सकें। और सबसे जरूरी ये है कि कम से कम रक्षा के मामलों में राजनीति न हो।