Rajat Sharma

सफेद कोट वाले दहशतगर्द

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10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम धमाके को सरकार ने आतंकवादी वारदात माना है. सरकार ने साफ कहा है कि दिल्ली में ब्लास्ट “एक्ट ऑफ टेरर”(आतंकवादी वारदात) था. इसे अंजाम देने वालों और दहशतगर्दों के मददगारों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.
ब्लास्ट को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे भी हुए. जांच एजेंसियों का दावा है कि आतंकवादियों की साज़िश बहुत ही खतरनाक थी. उनका मंसूबा सिर्फ दिल्ली नहीं, अयोध्या, वाराणसी, मुंबई, जयपुर, लखनऊ समेत देश के कई शहरों में एक साथ धमाके करने का था लेकिन सुरक्षा एजेंसियां ऐन वक्त से पहले दहशतगर्दों के नेटवर्क की तह तक पहुंच गई.
इस नेटवर्क में शामिल डॉक्टर्स कुछ कर पाते इससे पहले उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने 2900 किलो विस्फोटक बरामद किए. एक आतंकवादी छिपने में कामयाब हो गया और मौका मिलते ही वो बचा-खुचा विस्फोटक कार में लेकर भागा और लाल किले के पास धमाका कर दिया,
अगर ये दहशतगर्द डॉक्टर अपने असली इरादे में कामयाब हो जाते तो हजारों लोगों की जान जाती.
दूसरा खुलासा ये हुआ कि दहशतगर्दों ने धमाके के लिए दो गाड़ियां खरीदीं थीं. एक कार तो लाल किले के पास हुए धमाके में उड़ गई, दूसरी कार को सुरक्षा एजेंसियों ने फरीदाबाद के एक गांव में लावारिस हालत में बरामद कर लिया.
तीसरा खुलासा ये हुआ कि अब भी इस गिरोह का एक आतंकवादी फरार है. अल फलाह यूनिवर्सिटी का डॉक्टर निसारुल हसन लाल किले के पास हुए ब्लास्ट के बाद से गायब है. निसार उल हसन को देशविरोधी गतिविधियों के कारण श्रीनगर के महाराजा हरिसिंह अस्पताल से बर्खास्त कर दिया गया था लेकिन उसे फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी में नौकरी मिल गई.
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी आतंकवादियों का अड्डा कैसे बन गई? डॉ मुजम्मिल, डॉ. शाहीन, डॉ. उमर और डॉ. निसारुल हसन जैसे राष्ट्रविरोधी तत्वों को अल फलाह यूनिवर्सिटी में किसने नौकरी दी ? उनकी आतंकवादी गतिविधियों के बारे में किसी को पता क्यों नहीं चला ? क्या अल फलाह यूनिवर्सिटी कश्मीरी आतंकवादियों का अड्डा है ? डॉक्टर्स को जिहादी किसने बनाया ? 2900 किलो एक्सप्लोसिव कहां से आया ? कश्मीर से लेकर फरीदाबाद तक फैले आतंकवादियों के नेटवर्क तक पांच राज्यों की पुलिस कैसे पहुंची ?
पहले सिलसिलेवार तरीके से देखते हैं कि मौत की इस कहानी के किरदार कौन-कौन हैं? उनकी कहानी कहां से शुरु हुई और कहां तक पहुंची.
दिल्ली के पास फरीदाबाद में धौज नाम का एक गांव है. यहां ज्यादातर आबादी मुसलमानों की है. .इसी गांव में 76 एकड़ में फैली यूनीवर्सिटी है अल फलाह. डॉक्टर मुजम्मिल पिछले तीन साल से इस यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था. उसकी तन्ख्वाह है नौ लाख रूपए. डॉक्टर मुजम्मिल की गर्लफ्रेंड डॉ. शाहीन भी इसी यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर थी. शाहीन पहले कानपुर में पढ़ाती थी. 2013 में वो अचानक गायब हो गई और फिर दो साल पहले अल फलाह यूनिवर्सिटी में नजर आई.
जांच एजेसियों को शक है कि इन 11 सालों में डॉक्टर शाहीन आतंकवादियों के संपर्क में थी और उसे आतंकवादी बनने के लिए ट्रेन किया गया. डॉक्टर शाहीन को डॉक्टर मुजम्मिल ने अल फलाह यूनीवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किया. इसके बाद ही डॉक्टर मुजम्मिल, डॉ. शाहीन और उनके साथियों ने धीरे धीरे विस्फोटक खरीदना और उन्हें अलग अलग जगहों पर इकट्ठा करना शुरू किया.
एक महीने पहले डॉ. मुजम्मिल ने यूनिवर्सिटी से सिर्फ तीन सौ मीटर दूर मेनरोड पर गांव में तीन कमरे किराए पर लिए. दो मंजिल के इस मकान में कुल सात कमरे हैं. यहां ज्यादातर मजदूर रहते हैं. कमरे किराए पर लेने के तीन दिन बाद डॉ मुजम्मिल ने यहां 358 किलो विस्फोटक ला कर रखा. गांव वालों को जरा भी शक नहीं हुआ. उन्होंने तो बोरियां उठाने में डॉ. मुजम्मिल की मदद की.
इसके बाद डॉक्टर मुजम्मिल ने गांव के हाफिज़ इश्तियाक के मकान का एक कमरा भी किराए पर लिया. ये एक मंजिला मकान यूनिवर्सिटी से तीन किलोमीटर दूर फतेहपुर तागा में है. हाफिज़ इश्तियाक का अल फलाह यूनिवर्सिटी में आना जाना था. वहां पर डॉ. मुजम्मिल से उसकी पहचान हुई. जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि हाफिज़ इश्तियाक और डॉक्टर मुजम्मिल ने मिलकर ही भारी मात्रा में विस्फोटक और बड़ी तादाद में डेटोनेटर इकट्ठे किए ताकि बम बनाए जा सकें.
हाफिज़ इश्तियाक के इस मकाने में धीरे धीरे करके 2 हजार 563 किलो विस्फोटक लाकर रखा गया. ये मकान थोड़ा अंदर जाकर है, जहां चारों तरफ खेत हैं. इसलिए किसी को शक होने की गुंजाइश नहीं थी और ये काम चुपचाप किया गया.
अल फलाह मेडिकल कॉलेज का रूम नंबर 13 आतंकवाद का प्लानिंग सेंटर था, जहां डॉ. मुजम्मिल शकील बैठता था. सारा तालमेल अल फलाह मेडिकल कॉलेज के इसी रूम से होता था. इस कमरे के दरवाजे हमेशा बंद रहते थे. ये लोग टेलीग्राम एप के जरिए एक-दूसरे के संपर्क में रहते थे. मुख्य किरदार डॉ. मुजम्मिल, डॉक्टर शाहीन और हाफिज़ इश्तियाक पुलिस की गिरफ्त में कैसे आए, इसे जानने के लिए ये समझना जरूरी है कि पुलिस कश्मीर से फरीदाबाद तक पहुंची कैसे. इसकी एक अलग चौंकाने वाली कहानी है.
दरअसल 19 अक्टूबर को कश्मीर घाटी में जैश-ए-मोहम्मद का एक पोस्टर लगा. ये पोस्टर कमांडर हंजला भाई की तरफ से जारी किया गया जिसमें लिखा गया था कि अब हम एक्शन करेंगे और जो भारतीय दरिंदों को अपनी दुकानों पर बिठाते हैं, उन्हें सबक सिखाएंगे. इस पोस्टर में सशस्त्र सेनाओं को भी निशाना बनाने की धमकी भी दी गई. नौगाम में इन पोस्टर्स पर पुलिस की नजर पड़ी. 27 अक्टूबर को एक बार फिर इसी तरह के 25 से ज्यादा पोस्टर चिपकाए गए तो सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय हुई. 50 पुलिस अफसरों की टीम बनाई गई. इन अफसरों ने साठ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को दिन-रात बैठकर देखा. दो दिन बाद नौगाम के ही आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद डार नाम के तीन लड़कों को पकड़ा गया.
उनसे पूछताछ में ये पता चला कि उन्होंने इरफान अहमद नाम के एक मौलवी के कहने पर पोस्टर लगाए थे. पता लगा कि मौलवी इरफान अहमद शोपियां का रहने वाला है. वो पहले अनंतनाग के एक मेडिकल कॉलेज में पैरा मेडिकल स्टाफ के तौर पर भी काम करता था. मौलवी इरफान अहमद से पूछताछ में डॉक्टर अदील के बारे में पता चला.
मौलवी इरफान ने पुलिस को बताया कि डॉक्टर अदील भी पोस्टर लगाने वालों में शामिल था. सीसीटीवी फुटेज से इस बात की तस्दीक भी हुई. इस फुटेज में डॉक्टर अदील दिखाई दिया. अदील अहमद अनंतनाग मेडिकल कॉलेज में रेजिडेंट डॉक्टर था. उसी दौरान उसकी पहचान मौलवी इरफान अहमद से हुई.
मौलवी ने पुलिस को बताया कि डॉक्टर अदील सहारनपुर के एक अस्पताल में नौकरी कर रहा है. पुलिस ने डॉक्टर अदील का फोन सर्विलांस पर लगाया. पता लगा कि वो पाकिस्तानी हैंडलर्स के संपर्क में था. इसके बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने यूपी एटीएस की मदद से डॉक्टर अदील को गिरफ्तार किया. उससे पूछताछ में पुलिस को फरीदाबाद में अल फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर मुजम्मिल के बारे में पता चला.
डॉक्टर अदील की निशानदेही पर पुलिस ने अनंतनाग सरकारी मेडिकल कॉलेज से एक AK-56 राइफल और हैंड ग्रेनेड बरामद किए. फिर डॉक्टर मुजम्मिल को पकड़ा गया. मुजम्मिल की निशानदेही पर पुलिस ने फरीदाबाद में एक किराए के मकान से 358 किलो अमोनियम नाइट्रेट बरामद किया. पूछताछ के दौरान डॉक्टर मुजम्मिल ने डॉक्टर शाहीन सईद के बारे में बताया जो लखनऊ की रहने वाली थी और डॉक्टर मुज़म्मिल के साथ अल फलाह यूनिवर्सिटी में नौकरी कर रही थी.
मुजम्मिल ने शाहीन के पास एक AK-47 राइफल छुपाकर रखी है. इसके बाद पुलिस ने डॉक्टर शाहीन को गिरफ्तार किया और उसके कब्जे से AK-47 राइफल बरामद की. डॉ. मुजम्मिल से पूछताछ में ही मेवात के रहने वाले हाजी इश्तियाक का पता चला. पुलिस ने उसे भी धर दबोचा और उसकी निशानदेही पर फरीदाबाद में उसके घर से करीब ढाई हज़ार किलो अमोनियम नाइट्रेट मिला.
इसके बाद पुलिस ने डॉ. अदील, डॉ. मुजम्मिल और डॉ. शाहीन सईद से पूछताछ की तो डॉ. उमर के बारे में पता लगा. डॉक्टर उमर श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मुजम्मिल के साथ पढ़ा था और फिलहाल फरीदाबाद की अल फलाह यूनीवर्सिटी में नौकरी कर रहा था लेकिन इस दौरान डॉ. उमर को अपने साथियों की गिरफ्तारी की भनक लग चुकी थी. इसलिए वो बचे-खुचे विस्फोटक को लेकर भाग गया.
डॉ. उमर सुबह सात बजे फरीदाबाद की अल फलाह यूनीवर्सिटी से निकला, दिल्ली पहुंचा. बदरपुर टोल प्लाजा पर उसकी कार की तस्वीरें दर्ज हुईं. उसके बाद सरिता विहार, मयूर विहार गया. यहां भी उसकी मूवमेंट दर्ज की गई.
जांच एजेंसियों को लगता है कि डॉ उमर भीड़भाड़ वाली जगह तलाश रहा था जिससे धमाका करके ज्यादा से ज्यादा लोगों को निशाना बना सके. करीब तीन बजे वो लाल किले के पास पार्किंग में गया. उसकी कार तीन घंटे तक पार्किंग में रही. डॉ उमर तीन घंटे तक गाड़ी में बैठा रहा. वो एक बार भी गाड़ी से बाहर नहीं निकला. इसके बाद शाम 6.32 पर उसने कार पार्किंग से निकाली. डॉ. उमर ने गाड़ी की स्पीड कम रखी ताकि आसपास ज्यादा से ज्यादा गाड़ियां आ जाएं और ब्लास्ट होने पर नुकसान ज्यादा हो. जैसे ही मौका मिला, उसने ब्लास्ट कर दिया. गाड़ी से जो शरीर के टुकड़े मिले हैं उनकी DNA सैंपलिंग हुई है और इस बात की पुष्टि हुई है कि डॉ. उमर ने खुद को बम से उड़ा दिया.
पहली बात तो ये है कि जैश-ए-मोहम्मद ने बड़ी चालाकी से डॉक्टरों को जिहादी बमाया. असल में अल फलाह यूनिवर्सिटी कश्मीर से आए डाक्टरों का अड्डा बन गई थी. कश्मीर से ये डॉक्टर एक एक करके अल फलाह आते गए. इनमें कई डाक्टर ऐसे थे जो किसी न किसी वजह से नौकरी से निकाले गए थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली को उड़ाने की साजिश पर काम दो साल पहले शुरू हो गया था. दो साल पहले विस्फोटक इकट्ठा करने का काम शुरू हुआ. जब पुलिस ने इन डॉक्टरों को पकड़ा तो उन्हें केस को crack करना मुश्किल काम था. सारे तार जोड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी, समय भी बहुत लगा.
जब डॉ. अदील पकड़ा गया तो उसने डॉ. मुजम्मिल का नाम बताने में कई दिन लगा दिए. मुजम्मिल से पूछताछ कई दिन तक चली. तब जाकर डॉ. शाहीन और इश्तियाक के नाम सामने आए. इस चक्कर में डॉ. उमर को रफूचक्कर होने का मौका मिला. डॉ. मुजम्मिल ने अपनी गर्लफ्रेंड की कार का नम्बर तो बताया लेकिन डॉ. उमर की कार का जिक्र नहीं किया.
एक-एक करके अब सारे secret बाहर आ रहे हैं. फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में आने के बाद डॉ. मुज़म्मिल, अदील और शाहीन का जो ग्रुप बना था, इस ग्रुप ने 26 लाख रूपये जमा करके डॉ. उमर को दिए. ये सारा पैसा उमर को नकद में दिया गया. इस पैसे से डॉ. उमर ने गुरुग्राम और नूंह से धीरे धीरे करके 2600 किलो NPK fertilizer खरीदा, जिससे विस्फोटक भी बनाया जा सकता है. इसी के ज़रिए improvised explosive device यानी IED तैयार की गई.
डॉक्टर उमर ने ही Chemical Powder, Remotes और दूसरी devices खरीदीं और धीरे धीरे ये सारा सामान उमर ने मुज़म्मिल के हवाले कर दिया. जब पुलिस ने इतनी भारी तादाद में विस्फोटक पकड़ा, इन डॉक्टरों के मोबाइल फोन खंगाले, तब जाकर पुलिस को अंदाजा हुआ कि ये कितनी बड़ी आतंकवादी साजिश थी.
अगर ये आतंकवादी डॉक्टर अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते तो एक साथ दिल्ली, अयोध्या, वाराणसी, मुंबई, जयपुर और लखनऊ में Serial Blast होते. ये सारी बात मैंने आपको सिलसिलेवार तरीके से विस्तार से बताई ताकि आपको भी अंदाजा लगे कि देश पर से कितना बड़ा खतरा टल गया.
इसके लिए हमारी पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की मेहनत और तहकीकात की तारीफ की जानी चाहिए.
एक और बात. मुझे लगता है कि आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए देश में centralized database की ज़रूरत है. हर नागरिक का facial recognition वाला identification हो जो verified हो, confidential हो. ये काम बड़ा है, पर आज की digital दुनिया में संभव है.
Artificial intelligence का इस्तेमाल करके अपराधियों को जल्दी trace किया जा सकता है और अगर verified identification होगा तो response time कम होगा.
चीन में Integrated Digital Surveillance, Identity verification system, Real time facial recognition, Resident tracing mechanism है. इसीलिए न तो वहां आतंकवादी घटनाएं होती हैं, न criminal network खड़े होते हैं.
ये सही है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हमारे यहां चीन जैसी तानाशाही नहीं हो सकती लेकिन अगर आतंकवाद से लड़ना है तो digital verified identification तो जरूरी है.
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