
चुनाव आयोग ने ऐलान कर दिया कि बिहार के बाद पूरे देश में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटैसिव रिवीजन होगा. इसकी शुरूआत 12 राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों से होगी. इसके बाद बाकी राज्यों में ये प्रक्रिया होगी.
   मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि 9 राज्यों और 3 केंद्रशासित क्षेत्रों की मतदाता सूचियां सोमवार रात 12 बजे फ्रीज़ कर दी जाएगी. इसके बाद गुजरात, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, गोवा, लक्षद्वीप, पुडुच्चेरी और अंडमान-निकोबार में मतदाताओं का वैरीफिकेशन किया जाएगा.  7 फरवरी  को अंतिम सूची प्रकाशित कर दी जाएगी. जिन मतादाताओं के नाम या उनके माता-पिता के नाम 2002 की वोटर लिस्ट में है, उन्हें कोई दस्तावेज देने की ज़रूरत नहीं होगी.
    जिन राज्यों में SIR (special intensive revision) का ऐलान किया गया, वहां अगले साल से लेकर 2028 तक विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन खास बात ये है कि इसमें असम का नाम नहीं है, जबकि वहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
   ज्ञानेश कुमार ने कहा कि असम में नागरिकता के लिए अलग नियम है, इसलिए असम में नागरिकता तय करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में पूरी होगी.
  चुनाव आयोग के फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है. तमिलनाडु के मुक्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि मतदाता पुनरीक्षण बीजेपी की साजिश है लेकिन वो ये साजिश को अपने राज्य में कामयाब नहीं होने देंगे. स्टालिन ने आरोप लगाया कि लोगों से मतदान का अधिकार छीनने का काम बीजेपी बिहार में कर चुकी है,इसलिए DMK तमिलनाडु में लोगों को SIR के खिलाफ जागरूक करेगी.
   केरल सरकार ने भी चुनाव आयोग के फैसले का विरोध किया है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि बीजेपी के इशारे पर हो रहे SIR को वाम लोकतांत्रिक मोर्चा कभी मंजूर नहीं करेगा.
    पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो कई महीनों से लगातार कह रही हैं कि वो बंगाल में किसी का नाम वोटर लिस्ट से नहीं कटने देंगी. चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस से कुछ क्षण पहले ममता बनर्जी ने दस जिलों के जिला कलक्टर समेत 61 IAS अफसरों और पश्चिम बंगाल लोक सेवा के 145 अधिकारियों का तबादला कर दिया.
      इसमें तो कोई शक नहीं कि voter list revise होनी चाहिए. जो लोग दुनिया छोड़ गए या दूसरे शहर में shift हो गए, जिनके नाम पर कई वोट बने हैं, उनके नाम काटे जाने चाहिए, नए voters के नाम जोड़े जाने चाहिए.
     बिहार में हुए special revision ने साबित कर दिया कि इस प्रक्रिया से मतदाताओं को कोई शिकायत नहीं है. चुनाव आयोग को न के बराबर शिकायतें मिलीं, इसीलिए voter list के revision का विरोध करने वालों के स्वर बदले हैं.
    ये ज़रूरी है कि list revise करने की प्रक्रिया पारदर्शी हो. अगर किसी को ऐतराज हो तो बिना बाधा के उसकी सुनवाई हो. एक भी genuine voter से उसका वोट देने का अधिकार न छिने और एक भी फर्जी voter को वोट देने का अधिकार न मिले.
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