Rajat Sharma

बिहार में जंग शुरू : टिकट बाँटना पहली चुनौती

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बिहार में बीजेपी के नेताओं ने चिराग पासवान को मना लिया. NDA में सीटों के बंटवारे की बात करीब करीब फाइनल हो गई है. अगले हफ्ते सभी पार्टियां एकसाथ बैठकर इसका ऐलान करेंगी.
महागठबंधन में सीटों का बंटवारा तो नहीं हो पाया है, हालांकि खबर ये है कि कांग्रेस को 12 सीटें कम लड़ने पर मना लिया जाएगा.
तेजस्वी यादव ने एक बड़ा चुनावी दांव चला, ऐलान किया कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो शपथ लेने के बीस दिन के भीतर कानून बनाकर बिहार के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देंगे.
कांग्रेस के नेताओं ने हां में हां मिलाई, कहा कि सारा गुणा गणित करने के बाद ये फैसला हुआ है, रोडमैप तैयार है. बस नतीजा आने की देर है, बिहार में सरकारी नौकरियों की बरसात होगी.
प्रशान्त किशोर ने कहा कि इस तरह का वादा करने वाले तेजस्वी या तो खुद मूर्ख हैं या फिर बिहार के लोगों को मूर्ख समझते हैं.
इधर खबर है कि चिराग पासवान को 24 से 26 सीटें मिल सकती है. पूरी स्थिति जल्द साफ हो जाएगी. सीटों के बंटवारे का झंझट प्रशान्त किशोर के साथ नहीं हैं. प्रशान्त किशोर की पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है. सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे. गुरुवार को उन्होंने 51 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री RCP सिंह की बेटी लता सिंह अस्थावां सीट से लड़ेंगी, समस्तीपुर की मोरवा सीट से कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर उम्मीदवार हैं. इनके अलावा करगहर से भोजपुरी गायक रितेश पांडे को टिकट मिला है.
नोट करने वाली बात ये है कि प्रशान्त किशोर भले ही बिहार से जाति धर्म की राजनीति को खत्म करने का दावा करते हों लेकिन चुनाव में उन्हें भी जातिगत समीकरणों का ख्याल रखना पड़ा. पार्टी के 51 उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा अति पिछड़ा वर्ग के 17, पिछड़े वर्ग से 11, SC-ST वर्ग से 7 और 9 मुसलमानों को टिकट दिए गए हैं. सामान्य वर्ग के सिर्फ 7 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं.
उधर, तेजस्वी ने एलान किया कि अगर बिहार में उनकी सरकार बनती है, तो हर घर से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देंगे, सरकार बनने के 20 दिनों के भीतर कानून बनाया जाएगा और 20 महीने के अंदर हर परिवार को सरकारी नौकरी दी जाएगी.
तेजस्वी यादव के हर परिवार को नौकरी देने के वादे पर किसी को अचरज नहीं होना चाहिए. चुनाव के मौके पर ऐसे वादे तो होते हैं लेकिन बीजेपी का ये सवाल भी सही है कि बिहार में दो करोड़ 70 लाख परिवार हैं. हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी कैसे दी जा सकती है ?
लेकिन इस समय सारी पार्टियों का मुख्य फोकस उम्मीदवार चुनने पर है और NDA और महागठबंधन दोनों को साथी दलों को मनाने में काफी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.
चिराग पासवान को मनाने में बीजेपी के नेताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ी. पिछली बार चिराग ने नीतीश कुमार को भारी नुकसान पहुंचाया था. उनकी वजह से बीजेपी को JDU के मुकाबले कहीं ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन बीजेपी इस बार ऐसा नहीं होने देगी.
इसी तरह कांग्रेस को कम सीटों पर मनाने में तेजस्वी के पसीने छूट गए. लगता है कि कांग्रेस पिछली बार से 12 सीटें कम पर मान जाएगी. पिछली बार कांग्रेस 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीत पाई थी. इसका नुकसान तेजस्वी के गठबंधन को हुआ था.
प्रशांत किशोर मज़े में हैं. उन्होंने अपनी जो सूची जारी की है, उसमें गायक, गणितज्ञ और कर्पूरी ठाकुर और RCP सिंह के परिवार के लोग हैं. प्रशांत किशोर के उम्मीदवार परंपरागत प्रत्याशिय़ों से थोड़े अलग हैं. इसका उन्हें फायदा मिल सकता है.

मायावती : बहुत दम है BSP में

लंबे वक्त के बाद आज मायावती सार्वजनिक तौर पर नजर आईं. लखनऊ में मायावती ने एक बार फिर अपनी पार्टी की ताकत दिखाई. बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की जयंती के मौके पर मायावती ने कांशीराम पार्क में बड़ी रैली की जिसमें लाखों कार्यकर्ता जुटे.
मायावती ने इस रैली में योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद दिया, उनका आभार जताया और अखिलेश यादव को सबसे बड़ा दलित विरोधी बताया.
मायावती ने योगी आदित्यनाथ को दलित महापुरुषों के स्मारकों की देखभाल के लिए धन्यवाद दिया.
मायावती की रैली में जबरदस्त भीड़ दिखाई दी क्योंकि उनका अपना solid support base है. पिछले कुछ साल से ऐसा लगता था कि मायावती ने अपने समर्थकों को taken for granted ले लिया था. वह घर से बाहर कम निकलती थीं, सिर्फ Media के सामने आकर लिखे हुए बयान पढ़कर अपना काम चला लेती थीं, पार्टी की विरासत को लेकर भी अपने भतीजे के नाम पर मायावती flip flop करती रहीं.
नतीजा ये हुआ कि पिछले कई चुनाव में मायावती को हार का सामना करना पड़ा. आज ऐसा लगा कि मायावती ने अपनी पार्टी में फिर से जान फूंकने की रणनीति बनाई है. जिस अंदाज में मायावती ने अखिलेश और कांग्रेस पर वार किया, उसमें पहले वाली आक्रामक मायावती की झलक दिखाई दी.
आज मायावती के पास चाहे उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक MLA हो पर BSP का एक बड़ा जनाधार है जो कांशीराम ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था. इसीलिए उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता..

मुनीर और शहबाज़ : क्या मुसलमानों को धोखा दिया?

गज़ा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्लान का पहला फेज लागू हो गया. हमास ने शांति प्लान को मंजूर कर लिया. अब गजा में शान्ति है लेकिन पाकिस्तान में खून खराबा शुरू हो गया.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की पुलिस अपने ही लोगों पर गोलियां बरसा रही है. बुधवार रात से ही लाहौर में फायरिंग हो रही है, खून बह रहा है, दर्जनों लोग मारे गए हैं.
असल में पाकिस्तान के मौलानाओं ने इस शांति प्लान का समर्थन करने वाली शहबाज शरीफ की हुकूमत और जनरल आसिम मुनीर के खिलाफ बगावत कर दी है. मौलानाओं ने शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर पर मुसलमानों को धोखा देने का इल्जाम लगाया और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएल.पी) के मुखिया मौलाना साद रिज़वी ने इस्लामबाद में अमेरिकी दूतावास के घेराव की कॉल दे दी. इसके बाद शहबाज शरीफ की पुलिस ने आधी रात के बाद लाहौर में तहरीक-ए-लब्बैक के मुख्यालय को घेर लिया और मौलाना साद रिज़वी को गिरफ्तार करने की कोशिश की.
तहरीक-ए-लब्बैक के समर्थकों और पुलिस के बीच जबरदस्त झड़प हुई, पुलिस ने फायरिंग की.
तहरीक-ए-लब्बैक के कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर पलटवार किया, कई बार पुलिस को पीछे हटना पड़ा.
चूंकि ये कार्यकर्ता देश के अलग-अलग हिस्सों से आए थे, जगह-जगह बिखरे हुए थे, इसलिए उन्होंने हर तरफ से पुलिस पर हमला किया जिसके बाद पुलिस के कदम वापस खींचने पड़े.
लाहौर की पुलिस ने मरने वालों का आंकड़ा जारी नहीं किया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक TLP के कम से कम तीन कार्यकर्ता मारे गए हैं.
तहरीक-ए-लब्बैक के नेताओं का कहना है कि ट्रंप ने ग़ाज़ा के लिए जो Peace Plan बनाया है, उसके बाद फिलस्तीन का वजूद खत्म हो जाएगा. उनका इल्ज़ाम है कि शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर इस प्रस्ताव को मानकर दुनिया भर के मुसलमानों की पीठ में छुरा घोंपा है, इसे कोई पाकिस्तानी बर्दाश्त नहीं करेगा.
पाकिस्तान के लोगों को साफ दिखाई देता है कि मुनीर और शहबाज शरीफ ने अपनी दुकान चलाने के लिए ट्रंप के सामने सरेंडर कर दिया है.
पाकिस्तान हमेशा फिलिस्तीन के साथ खड़ा रहा है. अब ट्रंप को खुश करने के चक्कर में मुनीर और शहबाज ने U-turn ले लिया. इसका गुस्सा पाकिस्तान की सड़कों पर दिखाई दे रहा है.
दूसरी तरफ ट्रंप इजरायल और हमास के बीच शांति योजना करवाने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं और इसे नोबेल शांति पुरस्कार पाने की दिशा में बड़ा कदम बता रहे हैं. लेकिन शुक्रवार को नोबेल शांति पुरस्कार वेनेज़ुएला की विपक्ष की नेता को देने का ऐलान कर दिया गया.
पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने के लिए नामांकन भेजा था, पर ये कोई काम नहीं आया. ट्रंप का दावा है कि उन्हने सात जंगें रुकवा दी और वही नोबेल शांति पुरस्कार के असली हक़दार हैं.
लेकिन Nobel Peace Prize Committee केगले उनकी बात नहीं उतरी.
सवाल ये है कि दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्क के राष्ट्रपति को Nobel Peace Prize की इतनी तलब क्यों है?
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