भारत की सुरक्षा को लेकर कई बड़े खुलासे हुए. पहली खबर ये कि DRDO ने गुरुवार को अग्नि प्राइम मिसाइल का टेस्ट किया जो रेल की पटरियों से लॉन्च की जा सकती है. अग्नि प्राइम 2000 किलोमीटर की दूरी पर मार कर सकती है. पाकिस्तान का कोना-कोना इसकी मार के दायरे में है.
दूसरी खबर, भारत और रूस मिलकर हमारे देश में ही सुखोई-57 फाइटर जेट बनाएंगे. ये 5th जेनरेशन फाइटर प्लेन्स दुनिया के सबसे खतरनाक फायटर जेट्स में से एक हैं.
तीसरी खबर है कि भारत और रूस मिलकर दुनिया का सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम S-500 air defence system भारत में ही बनाएंगे. ये एयर डिफेंस सिस्टम भारतीय वायुसेना का सुदर्शन चक्र होगा जिसे कोई भेद नहीं पाएगा.
चौथी खबर ये कि हमारे देश में बने तेजस फाइटर प्लेन बनकर तैयार हैं. रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के साथ तेजस फाइटर बनाने के लिए 62 हजार 370 करोड़ रुपये का समझौता किया है.
पांचवीं खबर ये कि अमेठी की फैक्ट्री में भारत और रूस मिलकर AK-203 रायफल्स बनाना शुरू कर चुके हैं. शेर नाम की ये रायफल इस साल की आखिर तक पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बनेगी. ये दुनिया की सबसे एडवांस्ड रायफल है जिसकी टेक्नोलॉजी रूस ने भारत को ट्रांसफर की है.
अग्नि प्रइम मिसाइल को भारत में कहीं भी ले जाया जा सकता है, जहां रेल लाइन है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुवाहाटी से गुजरात तक फैला रेलवे का विशाल नेटवर्क अब अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए न तो लॉन्चर्स को ज़मीन के नीचे छुपाने की ज़रूरत रहेगी, न आनन-फानन में लॉन्च प्लेटफॉर्म तैयार करना होगा.
रेलवे प्लेटफॉर्म से बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता फिलहाल सिर्फ़ रूस, चीन और अमेरिका के पास मौजूद है. नॉर्थ कोरिया भी बैलिस्टिक मिसाइल को रेलवे मोबाइल प्लेटफॉर्म से लॉन्च करने की कोशिश कर रहा है.
रेलवे प्लेटफॉर्म से बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च करने की क्षमता क्यों महत्वपूर्ण है, उसका एक उदाहरण देना चाहता हूं. इस साल जून में जब ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिनों का युद्ध हुआ था, तब इज़राइल की वायु सेना बार-बार ईरान के मिसाइल लॉन्चर्स को टारगेट कर रही थीं. जब भी ईरान की सेना लॉन्चर्स को खुले में ले आते, तब तक इज़राइल की वायु नेसा सैटेलाइट से उसकी लोकेशन का पता लगा कर लॉन्चर्स को हवाई हमले में तबाह कर देती थी. इसी वजह से ईरान को अपनी मिसाइल्स और लॉन्चर्स का ठिकाना बार-बार बदलना पड़ रहा था. सम्बी दूरी की मिसाइल्स होने के बावजूद ईरान इज़राइल का कोई खास नुकसान नहीं कर पाया.
अब भारत के पास 2000 किलोमीटर रेंज वाली अग्नि प्राइम मिसाइल है जो एटम बम ले जा सकती है और इस मिसाइल को कहीं से भी लॉन्च किया जा सकता है. इसलिए अग्नि प्राइम अब और भी घातक हो गई है. दिल्ली से पाकिस्तानी फ़ौज का हेडक्वार्टर रावलपिंडी और उसकी वायु सेना का सबसे बड़ा बेस नूर ख़ान सिर्फ़ साढ़े सात सौ किलोमीटर दूर हैं. ऐसे में भारत पटना में रेलवे की पटरी से से भी रावलपिंडी, लाहौर और इस्लामाबाद को अग्नि प्राइम मिसाइल से टारगेट कर सकता है.
भारत जल्द ही रूस के साथ सुखोई-57 फाइटर jets के साझा उत्पादन के लिए समझौता कर सकते हैं. सुखोई-57 fifth generation का stealth फाइटर प्लेन है. ये रेडार की पकड़ में नहीं आता. जब अमेरिका ने भारत को F-35 फाइटर जेट बेचने का ऑफ़र दिया था, उसके बाद ही रूस ने भारत को सुखोई-57 के ज्वाइंट प्रोडक्शन का प्रस्ताव दिया था.
सुखोई-57 के साथ ही रूस ने अपने S-70B कॉम्बैट ड्रोन के ज्वाइंट प्रोडक्शन का ऑफ़र दिया है. रूस की सुखोई कंपनी इस ड्रोन को सुखोई-57 फाइटर जेट के साथ अटैक के लिए डेवेलप कर रही है. ये ड्रोन दुश्मन के रडार और एयर डिफेंस पर हमला करेगा, और फाइटर जेट दुश्मन के ठिकानों को तबाह करेगा.
रूस चाहता है कि सुखोई-57 फाइटर जेट के अलावा, भारत रूस के लेटेस्ट एयर डिफेंस सिस्टम S-500 का भी ज्वांइन्ट प्रोडक्शन करे.
S-500 प्रोमेथियस दुनिया के सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस सिस्टम्स में से एक है. ये एयर डिफेंस सिस्टम दुश्मन की बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों को भी हवा में ही मार सकता है. रूस ने S-500 एयर डिफेंस सिस्टम क्राइमिया में यूक्रेन के ख़िलाफ़ तैनात किया है. S-500 इतना शक्तिशाली है कि ये दुश्मन के stealth fighter jets और low earth orbit सैटेलाइट्स तक भी गिरा सकता है.
दिसंबर में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन भारत आएंगे. उम्मीद है उसी दौरान समझौतों पर दस्तखत होंगे.
भारत रूस के साथ पहले ही ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का उत्पादन कर रहा है जिसके तीनों version भारत की तीनों सेनाओं के पास हैं. इसके अलावा रूस की AK-203 राइफलों का भी ज्वाइंट प्रोडक्शन भारत में शुरू हो चुका है.
AK-203 राइफलें बनाने की फैक्ट्री, उत्तर प्रदेश के अमेठी में है. इस ज्वाइंट प्रोजेक्ट के लिए Indo-Russian Rifles Private Limited के नाम से एक अलग कंपनी बनाई गई है जिसकी कमान थल सेना के मेजर जनरल एस के शर्मा के पास है.
मेजर जनरल SK शर्मा ने बताया कि पिछले 18 महीनों में इस फैक्ट्री में बनी 18 हज़ार राइफल्स सेना को सौंपी जा चुकी हैं. इस साल दिसंबर तक 22 हज़ार और राइफलें सेना को सौंप दी जाएंगी. अमेठी की फैक्ट्री को दस साल में 6 लाख से ज़्यादा AK-203 राइफलें बनाने का ठेका मिला है.
वायु सेना की ताक़त बढ़ाने के लिए गुरुवार को रक्षा मंत्रालय ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ तेजस मार्क-1 स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ख़रीदने के समझौते पर दस्तखत किए. 62 हज़ार 370 करोड़ रुपए के इस समझौते के तहत वायु सेना को 68 सिंगल seater तेजस फाइटर जेट और 29 twin seater trainer विमान मिलेंगे. वायु सेना को तेजस fighter jets की डिलिवरी 2027-28 से शुरू होगी और अगले छह साल में पूरी की जाएगी.
ये गर्व की बात है कि आज हम अपने देश में Fighter Jets बना रहे हैं और Air Defence System बनाने की तैयारी कर रहे हैं. नए जमाने में सुरक्षा के लिहाज से ये जरूरी है कि जितना हो सके हथियार अपने देश में बनें, हथियारों की पूरी technology transfer की जाए ताकि युद्ध के दौरान किसी का मुंह ना देखना पड़े.
ऑपरेशन सिंदूर के वक्त ये जरूरत महसूस हुई. ऑपरेशन सिंदूर ने ये भी साबित कर दिया कि भारत में बनी Missiles किसी से कम नहीं हैं. इस छोटी सी जंग में ब्रह्मोस ने जो कमाल दिखाया, उसकी चर्चा पूरी दुनिया में है.
आजादी के बाद 60-65 साल तक किसी ने नहीं सोचा कि हम अपने देश में हथियार बनाएं. सारा ध्यान करोड़ों रुपये के हथियारों के आयात पर होता था. हर रक्षा सौदे में दलाली खाए जाने की खबरें आती थीं.
नरेंद्र मोदी ने इस सोच को बदला. मोदी ने नीति बनाई कि भारत को अपनी रक्षा के लिए हथियार अपने यहां बनाने चाहिए, technology transfer पूरी तरह होना चाहिए. इसकी शुरुआत हो चुकी है लेकिन रक्षा की जरूरतें बहुत बड़ी होती है. इसीलिए हम पूरी तरह आत्मनिर्भर हो पाएं, इसमें समय लगेगा. अंग्रेजी में एक कहावत है, Well begun is half done और भारत में जिस तरह की मिसाइल, जिस तरह की राइफल, जिस तरह के फाइटर जेट बन रहे हैं, वह एक शुभ संकेत हैं.
लद्दाख को राज्य का दर्ज़ा : बातचीत शुरु हो
लेह और कारगिल में इस समय शांति है और दोनों जगहों पर सुरक्षा बल गश्त लगा रहे हैं. बुधवार को जो हिंसा और आगजनी हुई, उसके बाद तनाव तो है, पर हालात शांत है.
गृह मंत्रालय ने 10 बिंदुओं वाला एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि लद्दाख में हुई हिंसा राजनीतिक साजिश का नतीजा थी और इसके लिए कुछ हद तक सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक भी जिम्मेदार है.
बयान में कहा गया कि वांगुचक ने अपने भाषण में अरब स्प्रिंग स्टाइल के प्रोटेस्ट और नेपाल के GEN-Z आंदोलन का ज़िक्र किया. इसी से प्रभावित होकर नौजवानों ने लद्दाख में आगज़नी की.
गृह मंत्रालय ने कहा है कि सरकार High Powered Committee और Sub-committees के ज़रिए अलग-अलग पार्टियों औऱ नेताओं के साथ बातचीत कर रही है. लद्दाख की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को 45 से बढ़ाकर 84 फीसद कर दिया गया है. 1800 पदों पर भर्ती शुरू की गई है. लोकल काउंसिल में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण दिया गया है. सरकार ने भोती और पुर्गी को official language का दर्जा भी दे दिया है.
सोनम वांगचुक का कहना है कि सरकार उन्हें बलि का बकरा बना रही है, उनका इस हिंसा से कोई लेना देना नहीं हैं. लेह में जो हुआ, उसकी वजह से उन्होंने अपना अनशन खत्म किया जिससे हालात ठीक हों.
वांगचुक ने कहा कि GEN-Z शब्द का इस्तेमाल उन्होंने किसी दूसरे संदर्भ में किया था, लेकिन उनकी बात का गलत मतलब निकाला गया.
सोनम वांगचुक कुछ भी कहें लेकिन जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे लगता है कि उनकी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
सरकार ने वांगचुक के NGO “स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख” का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया है. FCRA का लाइसेंस रद्द होने के बाद वांगचुक विदेशों से चंदा नहीं ले पाएंगे.
जांच में पता ये चला है कि वांगचुक के NGO ने FCRA का लाइसेंस मिलने से पहले ही विदेशों से चंदा लेना शुरू कर दिया था और विदेशों से मिले पैसे को दूसरे काम में लगाया गया.
इसके अलावा सोनम वांगचुक की संस्था हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग को दी गई 1,076 कनाल ज़मीन की 40 साल की लीज भी रद्द कर दी गई है.
लेह में जो दुखद मौतें हुईं, जिस तरह से हिंसा हुई, उससे सबक सीखने की जरूरत है.
हो सकता है कि सोनम वांगचुक ने लोगों को भड़काया हो, हो सकता है इसके पीछे कोई बड़ी साजिश हो, ये भी माना जा सकता है कि वांगचुक ने license मिलने से पहले विदेशियों से चंदे लिए हों, पर इन सब बातों की वजह से असली मसले को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
अगर लद्दाख के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा मांग रहे हैं, तो उनसे बात की जानी चाहिए थी. लोग नौकरियों की मांग कर रहे हों. अगर भर्ती शुरू हो गई, तो ये बात लोगों को समझाने की जरूरत थी.
अब भी देर नहीं हुई है. हालात काबू में हैं. लद्दाख के लोग अपने हैं, शांतिप्रिय हैं, लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं. उनको विश्वास में लेकर बात करने में अब देर नहीं करनी चाहिए. उनको ये यकीन दिलाने की जरूरत है कि सरकार उनकी सारी बातों पर सहानुभूति से विचार करेगी और रास्ता निकालेगी.
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