
नेपाल में सेनाध्यक्ष अन्तरिम सरकार बनवाने की तैयारियों में लगे हुए हैं, लेकिन Gen Z आंदोलनकारियों में अन्तरिम पीएम को लेकर सहमति नही बन पा रही है. गुरुवार दोपहर को Gen Z आंदोलनकारियों के कई नेता सेनाध्यक्ष से मिलने पहुंचे. अभी बातचीत जारी है.
     आंदोलनकारियों ने एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिये नये पीएम के बारे में वोट करवाया था. इस polling में पूर्व जस्टिस सुशीला कार्की दूसरों से आगे हैं, जबकि कुलमान घिसिंग दूसरे स्थान पर हैं. काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह खुद दौड़ से बाहर हो गए. हामी नेपाल के नेता सुधन गुरुंग भी दौड़ मे हैं.
       काठमांडु के त्रिभुवन अन्तरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को फिर से खोल दिया गया है. अब तक कुब 34 लोग हिंसा में मारे गये हैं, जबकि अस्पतालों में 1 हजार से ज्यादा घायलों का इलाज चल रहा है. सीमा सशस्त्र बल ने भारत-नेपाल सीमा की कई चौकियों पर 60 कैदियों को गिरफ्तार किया है जो नेपाल की जेलों से भाग कर भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे.
     काठमांडू में हर तरफ बर्बादी के निशान हैं. सड़कों पर सन्नाटा है. फिलहाल कोई सरकार नहीं हैं. प्रधानमंत्री का इस्तीफा हो चुका है, सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता भाग चुके हैं, इसीलिए सेना ने पूरे नेपाल को अपने नियंत्रण में ले लिया है.
      नेपाल में दो दिन की अराजकता के समय  हुई आगजनी, लूट और दंगों की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है. GEN Z के लोग आज कह रहे हैं कि हमने कहीं आग नहीं लगाई, वे इसके लिए राजनीतिक दलों पर दोषारोपण कर रहे हैं. 120 साल पुराने ऐतिहासिक सिंह दरबार में आग लगाई गई, राष्ट्रपति भवन को जला दिया गया, सबसे प्रसिद्ध Hilton hotel से लपटें उठती हुई दिखाई दीं. इन जगहों पर जो लोग protest कर रहे थे, जो आग लगा रहे थे, उनकी बातें सुनकर ये बिलकुल नहीं लगा कि वो किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं. ये तो बेकाबू भीड़ थी जिसे रोकने वाला कोई नहीं था.
    Gen Z का कोई नेता, कोई कार्यकर्ता आग लगाने वालों को रोकता दिखाई नहीं दिया. आग लगाने वालों को नेपाल की विरासत, नेपाल की संस्कृति और नेपाल की अर्थव्यवस्था का कोई ध्यान नहीं था. जो नुकसान उन्होंने पहुंचाया, उसे ठीक करने में बरसों लग जाएंगे.
   जिन के.पी. ओली की वजह से ये सारा आंदोलन खड़ा हुआ, उनके बारे में पता चला कि अब वो दुबई पहुंच गए हैं, Protest करने वालों की पकड़ से बाहर हैं. अब सरकार कौन चलाएगा इसको लेकर असमंजस है. Gen Z की तरफ से Retired Justice सुशीला कार्की का नाम आगे किया गया था पर दूसरे ग्रुप ने इसे veto कर दिया.
   अब सेना के सामने किसी एक नाम पर सहमति बनवा पाने की चुनौती है, जो टेढ़ी खीर लगता है. एक बड़ी चिंता उन पेशेवर अपराधियों को लेकर है जो जेलों से भाग गये. इनमें ज्यादातर लोग अपराधी हैं, राजनीतिक कैदी तो इक्का दुक्का हैं. ये अपराधी भारत के लिए भी चिंता का विषय हैं क्योंकि ये सीमा पार करके इस तरफ आ सकते हैं.
नेपाल का असर : मोदी विरोधियों ने देखे दिन में सपने
     हैरानी की बात ये है कि हमारे देश के कुछ नेता ये उम्मीद पाल कर बैठे हैं कि जो नेपाल में हुआ, वो भारत में भी हो सकता है. संजय राउत, संजय सिंह और तेजस्वी यादव ने ये तो बात खुलकर कह भी दी.
     शिवसेना (यूपीटी) के नेता संजय राउत ने कहा कि नेपाल की तरह भारत में भी अंदर ही अंदर आग धधक रही है, पता नहीं कब नेपाल जैसे हालात बन जाएं, वैसे हमारे देश में अभी भी लोग गांधी जी के सिद्धांत को मानते हैं, इसीलिए शान्ति है वरना हालात तो कभी भी बिगड़ सकते हैं.
    आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा कि जब भी जनता के अधिकारों को छीना जाता है तो वही होता है, जो नेपाल में हुआ है. उन्होंने कहा कि इससे भारत के नेताओं को भी सबक लेना चाहिए.  संजय राउत और संजय सिंह तो खुलकर बोले लेकिन तेजस्वी यादव ने इशारों-इशारों में बड़ी बात कह दी. तेजस्वी से नेपाल के हालात पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी, तो उन्होने कहा कि नेपाल और बिहार ज्यादा दूर नहीं हैं.
   शिंदे की शिवसेना के नेता संजय निरूपम ने कहा कि इंडी अलायंस के नेता हाथों में संविधान की लाल किताब लेकर घूमते हैं, संविधान और लोकतंत्र को बचाने की बात करते हैं, लेकिन आज वो अराजकता के सहारे सत्ता बदलने का सपना देख रहा है, इससे साफ है इन लोगों का संविधान पर भरोसा नहीं है.
    जो लोग तीन-तीन बार मिलकर भी नरेंद्र मोदी को चुनाव में नहीं हरा पाए, उन्हें नेपाल की आग में आशा की लपटें दिखाई देने लगी हैं.
     जब बांग्लादेश में इस तरह की हिंसा और मारकाट हुई थी, तो संजय राउत जैसे लोगों की उम्मीद जागी थी. मैंने ऐसे लोगों को कहते सुना था कि बांग्लादेश में जो हो रहा है वो यहां भी हो सकता है.
   जब श्रीलंका में अराजकता फैली थी तब भी मोदी का विरोध करने वाले कई लोगों की लार टपकती दिखाई दी थी. पांच साल पहले का राहुल गांधी का वो वाक्य भुलाया नहीं जा सकता.
   मैं exact quote आपको बताता हूं. उन्होंने कहा था कि, “ये जो नरेंद्र मोदी अभी भाषण दे रहा है..7-8 महीने बाद ये घर से नहीं निकल पाएगा…हिंदुस्तान के युवा उसको डंडों से मारेंगे”.
   ये विचार, ये मानसिकता लोकतंत्र विरोधी, संविधान विरोधी है. हमारा देश एक system से चलता है. व्यवस्था मजबूत है.
   पिछले 11 साल से जनता की चुनी हुई स्थिर सरकार है. नेपाल में पिछले 17 साल में 14 बार सरकार बदली है. श्रीलंका में पिछले 5 साल में 4 प्रधानमंत्री बदले. भारत में तीन-तीन बार देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत से चुना. इसीलिए ये तो कोई नहीं कह सकता कि जनता मोदी से नाराज है.
   आंतरिक विरोध का मतलब देश की व्यवस्था को कमजोर करना नहीं हो सकता. भारत का लोकतंत्र सशक्त है, संविधान सक्षम है, इसीलिए भारत की तुलना दुनिया के किसी भी और देश से नहीं की जा सकती.
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