बिहार में कानून और व्यवस्था क्यों खराब हुई है ?
बिहार में भागलपुर के पास नवगछिया में पारिवारिक विवाद में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के भांजे विश्वजीत आनंद की हत्या हो गई. विश्वजीत को उसके सगे भाई जयजीत आनंद ने गोली मारी. भाईयों के झगड़े में बीच बचाव करते समय उनकी मां घायल हुई. सुबह घर के बाहर लगे हैंडपंप से पानी भरने को लेकर झगड़ा शुरू हुआ, हाथापाई हुई, फिर दोनों भाइयों ने पिस्तौल निकाल ली. जयजीत ने विश्वजीत पर गोली दागी, विश्वजीत ने भी फायरिंग की. दोनों भाई घायल हुए. विश्वजीत आनंद की मौत हो गई. जयजीत की हालत अभी गंभीर है. फायरिंग में इस्तेमाल हुए हथियार अवैध थे. मामला केंद्रीय गृहराज्यमंत्री के परिवार से जुड़ा है. इसलिए इस पर राजनीति शुरू हो गई. कांग्रेस और आरजेडी ने कानून और व्यवस्था का सवाल उठाया. विधान परिषद में राबड़ी देवी ने मुद्दा उठाया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भड़क उठे. उन्होंने एक बार फिर राबड़ी देवी पर व्यक्तिगत हमले किए. नीतीश ने कहा कि आपसी झगड़े के कारण ये घटना हुई. नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी को लालू यादव के वक्त की य़ाद दिलाई. भागलपुर की घटना में सरकार ये कहकर खुद को बचाने की कोशिश कर रही है कि ये मामला आपसी झगड़े का है. इसलिए इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा बनाना ठीक नहीं हैं. लेकिन सवाल ये है कि दोनों भाइयों के पास अवैध हथियार कहां से आए? दूसरा सवाल जब फायरिंग करने वाले एक शख्स की मौत हो गई, दूसरा शख्स अस्पताल में है, तो वो हथियार कहां गायब हो गए जिनसे फायरिंग हुई? पुलिस अब तक हथियार बरामद क्यों नहीं कर पाई? क्या बिहार में इतनी आसानी से हथियार मिल रहे हैं और किसी वारदात के बाद इतनी आसानी से हथियार गायब हो जाते हैं? क्या ये पुलिस की नाकामी नहीं है? हकीकत यही है कि बिहार में कानून व्यवस्था खराब हुई है. अपराधियों के हौसले बढ़े हैं और इसीलिए विपक्ष को बार-बार सरकार पर हमला करने का मौका मिलता है. नीतीश कुमार हर बार राबड़ी देवी पर व्यक्तिगत हमला करके नहीं बच सकते. वह सदन में जिस तरह से उत्तेजित हो जाते हैं, जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, वो भी अच्छे लक्षण नहीं है.
पंजाब सरकार ने किसानों को बॉर्डर से क्यों खदेड़ा ?
तेरह महीने बाद पंजाब और हरियाणा के शंभू और खनौरी बॉर्डर पर ट्रैफिक शुरू हो गया. पंजाब पुलिस ने फरवरी से चल रहे किसान संगठनों के धरने को खत्म करवा दिया, तंबू उखाड़ कर फेंक दिए, सड़कों पर लगे कॉन्करीट के बोल्डर्स को खोद कर हटा दिया, बैरिकेडिंग को किनारे कर दिया. सबके मन में यही सवाल है कि आखिर आम आदमी पार्टी की सरकार ने किसानों के खिलाफ अचानक एक्शन क्यों लिया? धोखे से उनके तंबू क्यों उखाड़े ? असल में भगवंत मान पर पंजाब के व्यापारियों और उद्योगपतियों का दवाब था. बॉर्डर बंद होने से पंजाब के उद्योगों को हर महीने करीब 1500 करोड़ रुपयों का नुकसान हो रहा था. जब भगवंत मान ने किसानों को ये समझाने की कोशिश की तो किसान नेताओं ने टका-सा जवाब दे दिया. साफ कह दिया कि धरना जारी रहेगा, वो बॉर्डर से नहीं हटेंगे. भगवंत मान उसी दिन से नाराज थे. बाद में उद्योगपतियों ने केजरीवाल से भी शिकायत की. केजरीवाल और भगवंत मान को लगा कि जो मसला केद्र और किसानों के बीच का है, वो पंजाब सरकार के गले पड़ गया है. बॉर्डर तो खुल गए. उद्योगपति खुश हो गए पर आम आदमी पार्टी के दोहरे मापदंड भी सामने आ गए. जो आम आदमी पार्टी एक जमाने में शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों को खाना देती थी, उनके लिए पानी-बिजली का इंतजाम करती थी, किसानों की सेवा को अपना धर्म बताती थी, उसी पार्टी की सरकार ने किसानों के तंबूओं पर बुलडोजर चलवा दिए. ये फैसला पंजाब सरकार को महंगा पड़ेगा.
विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन नहीं होना चाहिए
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि औरंगज़ेब और सालार मसूद गाज़ी जैसे आक्रमणकारियों की शान में कसीदे नया भारत बर्दाश्त नहीं करेगा. योगी ने बहराइच में कहा कि सनातन को खत्म करने की कोशिश करने वालों का, आस्था को रौंदने वालों का महिमामंडन करना देशद्रोह है. जिन आक्रांताओं ने भारत में जुल्म किए हों, उनका गुणगान नए भारत के लोगों को स्वीकार्य नहीं है. यूपी में आजकल सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले को लेकर विवाद चल रहा है. संभल में नेजा मेले की अनुमति नहीं दी गई, लेकिन सालार मसूद गाजी की याद में सबसे बड़ा मेला बहराइच में लगता है. इस मेले का भी विरोध हो रहा है. योगी ने कहा कि सन् 1034 में बहराइच में महाराजा सुहेलदेव ने चित्तौरा झील के किनारे सालार मसूद गाजी को युद्ध में मार गिराया था. सालार मसूद की कब्र भी बहराइच में ही है. हर साल लाखों लोग सालार मसूद की मजार पर आते हैं. योगी ने कहा कि महाराजा सुहेलदेव बहराइच की पहचान हैं, ऋषि बालार्क के नाम पर बहराइच का नाम है, यहां किसी आक्रांता के लिए कोई जगह नहीं है, बहराइच में किसी की चर्चा होनी चाहिए तो वो महाराजा सुहेलदेव की होना चाहिए, जिन्होंने एक विदेशी आक्रांता को ऐसी धूल चटाई कि डेढ़ सौ साल तक किसी ने भारत की तरफ आंख उठाने की हिम्मत तक नहीं की. विश्व हिन्दू परिषद ने जिला प्रशासन से बहराइच मेले को इजाज़त न देने की मांग की है. परिषद का कहना है लोगों को ये भ्रम है कि उनकी मन्नत, उनकी बीमारियां सालार मसूद गाज़ी के चमत्कार की वजह से ठीक होती हैं, लेकिन सच ये है कि जिस जगह ये दरगाह बनी है, वहां सूर्य मंदिर था, सूर्य कुंड था, जिसमें स्नान करने से बीमारियां ठीक होती थीं. 12वीं सदी में फिरोज़ शाह तुगलक ने मंदिर को तोड़ दिया था. इसलिए बहराइच में फिर से सूर्य मंदिर स्थापित होना चाहिए. योगी आदित्यनाथ की बात सही है कि विदेशी आक्रमणकारियों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए. इस देश की विरासत सबकी है. इस देश की संस्कृति पूरे समाज की है. जिसने इस विरासत को मिटाने की कोशिश की, संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की, उसका महिमामंडन कैसे हो सकता है ?
भगवंत मान ने किसानों पर बुलडोज़र क्यों चलाया?
पंजाब पुलिस ने शंभू और खनौरी बॉर्डर पर धरना दे रहे किसानों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करतु हुए बुधवार रात को उनके सारे टैंट और रहने के ठिकानों को बुलडोज़र से नष्ट कर दिया. शंभू और खनौरी बॉर्डर पर लगे किसानों के टेंट उखाड़ कर फेंक दिए. एक साल से धरने पर बैठे किसान संगठनों के नेताओं को पंजाब पुलिस ने हिरासत में ले लिया. चार महीने से भूख हड़ताल कर रहे जगजीत सिंह डल्लेवाल के अलावा सरवन सिंह पंढेर, अभिमन्यु कोहार, काका सिंह कोटरा और मंजीत सिंह राय जैसे तमाम किसान नेताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जबकि किसान नेतओं ओर तकरीबन साढे चार सौ किसानों को मैरेज हाल और गेस्ट हाउस में रखा गया है. ये कार्रवाई बुधवार शाम को तब हुई जब किसान नेता चंडीगढ़ में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से लंबी मीटिंग करने के बाद लौट रहे थे. दोनों मंत्रियों ने तीन घंटे से ज्यादा देर तक किसान नेताओं की बात सुनी. फैसला ये हुआ कि चार मई को अगली मीटिंग होगी. उसमें सरकार किसान नेताओं के सुझावों पर विचार करने के बाद अपना पक्ष रखेगी. मीटिंग खत्म होने के बाद अचानक पंजाब पुलिस का एक्शन शुरू हो गया. अकाली दल नेता हरसिमरत कौर बादल ने मुख्यमंत्री भगवंत मान पर निशाना साधा और कहा कि ये वही लोग हैं, जिन्होंने चुनाव के समय किसानों के पैर छूकर वोट मांगे थे. इससे आम आदमी पार्टी का असली चेहरा सामने आ गया है. मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि किसानों का पूरा आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ है और इसमें पंजाब सरकार शुरू से किसानों के साथ थी लेकिन चूंकि खनौरी और शंभू बॉर्डर लंबे समय से बंद है, किसानों ने उसे जाम कर रखा है, इसलिए पंजाब सरकार को ये एक्शन लेना पड़ा. दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान नेताओं की अच्छे माहौल में मीटिंग हुई, कोई विवाद नहीं हुआ, शंभू बॉर्डर पर भी शान्ति थी. इसके बाद भी अचानक पंजाब सरकार ने किसानों के साथ सख्ती की, ये बात हैरान करने वाली है. एक महीने पहले तक भगवन्त मान किसान संगठनों के धरने का समर्थन कर रहे थे लेकिन जब किसानों ने पंजाब सरकार को उसके वादे याद दिलाए, भगवन्त मान से वादों को पूरा करने की मांग की तो मान नाराज हो गए. पिछले महीने जब मान किसानों के सीथ हुई मीटिंग को बीच में छोड़कर चले गए थे और साफ कहा था कि किसान संगठनों के सामने वो नहीं झुकेंगे, सरकारी ताकत का एहसास कराएंगे. लगता है कि केन्द्र के साथ किसान नेताओं की बातचीत से मान और नाराज हो गए. इसीलिए इधर मीटिंग खत्म हुई, उधर भगवंत मान ने पुलिस भेजकर किसान संगठनों के तंबू उखाड़ कर फिकवा दिए.
नागपुर दंगे : अफवाहों ने भड़काया
नागपुर में अब शान्ति है, लेकिन हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा. पुलिस ने दंगा फैलाने के आरोप में 57 लोगों को गिरफ्तार किया है जिनमें सात नाबालिग हैं. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के आठ लोगों ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. प्रशासन अब दंगे के दौरान हुए नुकसान का जायजा ले रहा है और नुकसान की भरपाई दंगाइयों से कराई जाएगी. पुलिस को इस बात के सबूत मिले हैं कि दंगा सोची समझी साजिश का नतीजा था. ये भी खुलासा हुआ कि दंगाइयों ने महिला पुलिसकर्मियों के साथ बदसलूकी भी की. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि बजरंग दल के प्रदर्शन में जिस हरे रंग के कपड़े में आग लगाई गई थी, उसमें धार्मिक आयतें नहीं लिखीं हुईं थीं, बल्कि वो हरे रंग की साड़ी थी. लेकिन जान बूझकर ये अफवाह फैलाई गई कि आयतें जलाई गईं हैं. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए इस अफवाह को फैलाया, उनके खिलाफ भी एक्शन होगा. फहीम खान नाम का जो शख्स दंगे का मास्टरमाइंड था, उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिय़ा है. उसके खिलाफ पहले से तीन केस दर्ज हैं. वह माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी का स्थानीय नेता है. फहीम ने नागपुर से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन उसकी जमानत जब्त हो गई थी. उसे 1,073 वोट मिले और गडकरी को 6 लाख 55 हजार से ज्यादा वोट मिले. लेकिन लोगों की भावनाएं भड़का कर उन्हें उकसाने के लिए ज्यादा वोट की जरूरत नहीं होती. फहीम खान ने इसी का फायदा उठाया. वह जानता था कि आयतें जलाने की बात लोगों को तीर की तरह चुभेगी, हिंसा भड़काना आसान होगा. इसीलिए हिंदू हों या मुसलमान, सोशल मीडिया पर फैलाई गई बातों का, वॉट्सएप पर मिले मैसेजे का, बिना सोचे-समझे यकीन नहीं करना चाहिए.
सुनीता विलियम्स : स्वस्थ होने में वक्त लगेगा
पूरी दुनिया ने सुकून देने वाली तस्वीरें देखीं जिनका इंतजार नौ महीने से किया जा रहा था. भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स समेत चार अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर लौटे. स्पेस कैप्सूल से बाहर निकलते वक्त सुनीता के चेहरे पर मुस्कान थी और उन्होंने वहां मौजूद लोगों का हाथ हिला कर अभिवादन भी किया. लेकिन नोट करने वाली बात ये है कि ड्रैगन कैप्सूल से बाहर निकलने पर सुनीता और दूसरे यात्री खुद खड़े नहीं हो पाए. उन्हें सहारा देकर व्हील चेयर पर बैठाया गया. इसकी वजह ये है कि नौ महीने तक अन्तरिक्ष में रहने के दौरान यात्रियों का गुरुत्वाकर्षण के प्रति सेंस खत्म हो जाता है. चूंकि स्पेस स्टेशन में जीरो ग्रेविटी होती है, उसके भीतर यात्री हवा में तैरते हैं, इसलिए ग्रेविटी जोन में आने पर उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में दिक्कत होती है. आपको जानकार हैरानी होगी कि स्पेस स्टेशन की दूरी धरती से सिर्फ 408 किलोमीटर है लेकिन 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रहे ड्रैगन कैप्सूल को स्पेस स्टेशन तक पहुंचने में 17 घंटे का वक्त लग गया. इसकी वजह ये है कि कोई भी स्पेस क्राफ्ट जब अंतरिक्ष से धरती की तरफ आता है तो उसकी मूवमेंट आर्बिटल होती है. वो धरती के चक्कर लगाता हुआ धीरे धीरे नीचे की तरफ बढ़ता है. सबसे चुनौती भरा वक्त तब होता है जब स्पेस क्राफ्ट धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है. उस वक्त घर्षण के कारण जबरदस्त गर्मी पैदा होती है और तापमान इतना बढ़ जाता है कि कोई भी चीज सीधे भाप बन सकती है. ड्रैगन कैप्सूल ने जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, उस वक्त कैप्सूल की स्पीड करीब 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटा थी और स्पेस क्राफ्ट के प्लाज़्मा शील्ड का तामपान 1927 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. पूरा ड्रैगन कैप्सूल आग के गोले की तरह दिख रहा था. इस दौरान पृछ्वी से संचार बंद हो गया. करीब 25 मिनट तक नासा के वैज्ञानिक सांसे थामे बैठे रहे. भारतीय समय तीन बजकर बीस मिनट पर ड्रैगन कैप्सूल ऑटो पायलट मोड में आ गया, संचार संपर्क एक्टिव हो गया. कैप्सूल में चारों एस्ट्रोनॉट सुरक्षित और मुस्कुराते हुए दिखे. तब सबकी जान में जान आई. सुनीता विलियम्स लौट आईं लेकिन उन्हें सामान्य सेहत हासिल करने में अभी वक्त लगेगा. सुनीता अपने पैरों पर चल नहीं पा रही थी. सुनीता को एक complete recovery procedure से गुज़रना होगा. बहुत समय तक अंतरिक्ष में रहने से माइक्रोग्रेविटी में मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं, शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और बॉडी में fluid शिफ़्ट होने लगते हैं. जब यात्री माइक्रोग्रेविटी में होते हैं तो वो हवा में तैरते हैं, उनकी मांसपेशियों का इस्तेमाल नहीं होता और वो कमज़ोर होने लगती हैं. जीरो ग्रेविटी में यात्रिय़ों की हड्डियों की mineral density हर महीने एक से डेढ़ परसेंट कम हो जाती हैं. माइक्रोग्रेविटी में ब्लड और दूसरे body fluid नीचे से ऊपर शिफ्ट होने लगते हैं. इससे आंख और दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. हड्डियों में mineral density कम होने से सीधा चलने, सीधा खड़े होने और शरीर का संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना हर दिन करना होता है. 9 महीने में सुनीता विलियम्स ने करीब 270 एक्स-रे के बराबर रेडिएशन का सामना किया. लंबे समय तक इस रेडिएशन के संपर्क में आने से शरीर में प्रतिरोध क्षमता कमजोर हो सकती है, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. पृथ्वी पर लौटने के बाद Bone Density पूरी तरह से ठीक होने में कई साल लग जाते हैं. कुल मिलाकर हमें ये समझना चाहिए कि लंबे समय तक स्पेस में रहने के लिए बहुत हिम्मत और बहुत कंट्रोल की जरूरत होती है, जो सुनीता विलियम्स ने करके दिखाया.
Why Bhagwant Mann ordered crackdown on farmers?
Haryana Police removed all cemented barricades from Shambhu border on Thursday morning, a day after Punjab Police, in a major crackdown, evicted protesting farmers from both Shambhu and Khanauri border. Punjab police uprooted all tents and structures erected by farmers since February 13 last year, and detained top farmer leaders including Jagjit Singh Dallewal, Sarvan Singh Pandher, Abhimanyu Kohar, Kaka Singh Kotra and Manjeet Singh Rai, moments after they returned from a meeting in Chandigarh with Agriculture Minister Shivraj Singh Chouhan and Commerce Minister Piyush Goyal. The farmer leaders have been shifted to a PWD guest house. Dallewal has been admitted to a hospital in Jalandhar. The Centre has fixed May 4 for the next round of talks with farmer leaders. Soon after the talks with Centre ended, Punjab Police started a crackdown and forcibly evicted farmers. Heavy police deployment was made at all entry points near Shambhu and Khanauri border. Bulldozers were used to raze semi-permanent structures erected by farmers. More than 250 farmers from Khanauri and 110 famers from Shambhu border have been detained. The detained farmers have been shifted to a marriage hall. Akali Dal leader Harsimrat Kaur Badal targeted Chief Minister Bhagwant Singh Mann saying , “the real face of Aam Aadmi Party now stands exposed”. AAP minister Harpal Singh Cheema said that since the farmers’ agitation was against the Centre, and the two borders had remained closed for long, the state police had to take action. One must note that the the three-hour-long talks between farmer leaders and the Union Ministers had ended on a promising note and there was peace on Shambhu border. Yet Punjab’s AAP government suddenly took action. This is surprising. Bhagwant Mann had been supporting the farmers’ agitation till a month ago, but when farmers started reminding him of his government’s promises, Mann took umbrage. At his last meeting with farmer leaders last month, Mann left in a huff and said he would not bow to their demands. It seems Mann became angry when farmer leaders came to Chandigarh for direct talks with two Central ministers. The moment the meeting ended, Mann sent police to evict the squatting farmers.
Nagpur riots : Provoked by rumour mongering
The arrest of a local small-time politician in Nagpur by police for being the mastermind behind Monday’s communal violence raises serious concerns. Faheem Khan is not a popular leader. In last year’s Lok Sabha elections, he contested against Union Minister Nitin Gadkari from Nagpur and got only 1,073 votes, while Gadkari got more than 6,55,000 votes. This shows, it does not require much mass-based support to incite feelings. Faheem Khan took advantage of this. He knew that by spreading false rumours about the burning of a green colored chadar on which holy ‘aayats’ (verses) had reportedly been written, he could incite mobs to indulge in violence. The fact is opposite. It was only a green-coloured saree and not a chadar on which holy verses had been written. The false rumour was spread through social media including WhatsApp and mobs came to the streets, armed with weapons and stones. Now, peace prevails in Nagpur, though curfew has been imposed in 10 police station areas as a precautionary measure. 57 persons, including seven teenagers, have been arrested, while eight activitists of Vishwa Hindu Parishad and Bajrang Dal have surrendered to police. The riot appears to be part of a pre-meditated plot. The rioters, according to FIR, went to the extent of misbehaving and manhandling female police personnel. Social media is being used as a tool by mischief makers to incite passions. In Burhanpur, MP, a youth posted an objectionable remark against Islam on Instagram. The screenshot was immediately circulated on social media, and several thousand people came out on the streets shouting slogans in Loharmandi. They surrounded the police station. Timely action by the local collector and SP defused tension. The youth was detained by police.
Sunita Williams : A long recovery ahead
People heaved a sign of relief when NASA astronauts Sunita Williams and Butch Wilmore returned to Earth on Wednesday morning after waiting in space for nine months. World leaders thanked Elon Musk, his SpaceX team and NASA staff for the safe return of the astronauts. Sunita Williams will take a lot of time to recover. Both the astronauts had to be lifted on to gurneys as they could not walk. Astronauts face health related complications after they return from space. Since they cannot walk inside the space station, and have to live in micro-gravity conditions, their legs become baby feet. Sunita Williams will undergo a complex recovery procedure. Living in micro-gravity conditions weakens human muscle, the body loses its balance and body fluids start shifting. In zero gravity, the mineral density of the bones of astronauts reduce by 1 to 1.5 per cent every month. In micro-gravity conditions, blood and other body fluid shift from bottom upwards and it affects the eyes and brain. Due to less mineral density of bones, it is a challenge to walk straight, stand erect and to maintain body balance. During her nine-month sojourn, Sunita Williams faced radiation equivalent to nearly 270 x-rays. This causes the body’s resistance power to decline, and carcinogenic risks can arise. It takes several months for bone density to recover after return to Earth. In brief, a human being requires utmost courage and control to remain in space for a long time. Sunita Williams showed this is possible.
Sunita Williams Returns: India Celebrates!
Indians watched in jubilation as NASA astronaut Sunita Williams, along with colleague Butch Wilmore returned to Earth after nine months’ stay in the International Space Station. Their eight-day sojourn in space had stretched to nine months due to glitch in their Boeing spacecraft. President Droupadi Murmu welcomed Sunita Williams, saying “India’s daughter and her fellow astronauts have inspired everyone with their perseverance, dedication and never-say-die spirit.” Prime Minister Narendra Modi described Sunita Williams as “a trailblazer and an icon”, and said “Theirs has been a test of grit, courage and boundless human spirit. Their unwavering determination in the fast of the vast unknown will forever inspire millions.” Modi was joined by celebrities and politicians who welcomed 59-year-old former US Navy captain Sunita, who was born to a Gujarati father Deepak Pandya hailing from Mehsana district and Slovenian mother Ursuline. NASA astronauts Sunita Williams, Nick Hague and Butch Wilmore and Russian cosmonaut Aleksandr Gorbunov returned on board SpaceX’s Dragon spacecraft which splashed down in the sea off the coast of Florida. There was celebration in Sunita’s ancestral Jhulasan village of Gujarat with people beating drums, firecrackers bursting and school children dancing, after her spacecraft made a perfect splashdown. The SpaceX capsule parachuted into the sea bringing the odyssey to an end, just hours after leaving the International Space Station. There were tense, nail-biting moments when the capsule, travelling at speed going up to 28,800 km per hour, caused friction as it re-entered the Earth’s atmosphere, and the capsule’s outer casing had to face heat to about 1,600 degrees Celsius, with heat shields protecting the capsule in which the occupants sat. The spacecraft turned into a ball of fire after entering the atmosphere and with parachutes open, splashed into the sea. A day earlier, Prime Minister Narendra Modi wrote an emotional letter to the “illustrious daughter of India” inviting her to visit India after her return. The NASA astronauts will now undergo standard protocol to mitigate physical challenges posed by prolonged weightlessness in space. The astronauts have been sent to Johnson Space Center, Houston, where they will undergo recovery and return to normal life after some days.
Aurangzeb: No Glorification
Nagpur Police has arrested Fahim Shamim Khan, the key mastermind behind the arson and violence that took place on Monday. He is a local leader of little-known Minorities Democratic Party and had delivered an inflammatory speech before a mob which went on a violent spree. Police said, it was his provocative speech that escalated tension, triggering communal clashes. Maharashtra CM Devendra Fadnavis and Deputy CM Eknath Shinde have said there was a big conspiracy behind the violence and it was done after full preparations. Thirty-three policemen, including three police officers have been injured. Dozens of vehicles were burnt, and homes were stoned. Over 50 people have been arrested and police officials are reviewing CCTV footage and social media posts to identify the real culprits. A false rumour was spread that a holy book was burnt during protests by Bajrang Dal while demanding removal of Aurangzeb’s grave from Maharashtra. Curfew continues in 10 police station limits of Nagpur. The violence that took place in Nagpur is condemnable and it cannot be condoned. The entire matter should be viewed from a perspective. It was SP leader Abu Asim Azmi who incited feelings by praising Aurangzeb, and then minister Nitesh Rane added oil to fire by making inflammatory remarks. At that time, the movie ‘Chhava’ based on the life of Sambhaji Maharaj was released in theatres and it had a big effect on the hearts and minds of viewers. Several Muslim organisations described it as a part of “anti-Muslim campaign” and they tried to project Emperor Aurangzeb as a hero and “justice loving ruler”. Bajrang Dal and Vishwa Hindu Parishad joined the controversy and started burning symbolic tombs of Aurangzeb. This gave Muslim leaders a handle and on the night of violence, baseless rumours were spread among Muslims in a planned manner. Soon, the matter went out of control. Nagpur, a city that mostly remains peaceful, witnessed flames of communal violence. Chief Minister Devendra Fadnavis handled the matter tactfully. He said, since Aurangzeb’s tomb is an ASI-protected monument, it cannot be demolished. Secondly, he said, no one can be allowed to glorify Aurangzeb. I think, emotions could have been kept under control and the flames of violence would not have risen, had the matter been viewed in this perspective. Both Hindu and Muslim organisations must listen to Fadnavis’ views and peace must prevail.
Sambhal Mela: Why was it stopped?
Another controversy has arisen in UP’s Sambhal, similar to that of Aurangzeb controversy in Maharashtra. The administration has refused to grant permission to the annual Neja Mela that takes place after Holi in Sambhal in memory of Syed Salar Masood Ghazi. Masood Ghazi was the nephew of Muslim invader Mahmud Ghaznavi, who had looted Gujarat’s Somnath temple and carried out massacres. Masood Ghazi, as commander, carried out massacres of Hindus on a large scale in western UP from Sambhal to Bahraich. Hindu organizations have opposed holding of Neja Mela in Sambhal on March 25, 26 and 27. After the administration refused to grant permission, the controversy has taken communal overtones. Shopkeepers in Sambhal complained that Muslims are being deprived of their earnings by disallowing Neja Mela. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has questioned the ban on Neja Mela. He alleged that BJP government in UP is deliberately creating such controversies to divert people’s attention from other pressing issues. UP minister Kapil Dev Agrawal responded saying Akhilesh Yadav was siding with those who had massacred Hindus. The Sambhal issue is similar to that of Aurangzeb controversy and Samajwadi Party is involved in both. Abu Azmi has praised Aurangzeb, and now SP leaders in UP have supported this Mela held in memory of Mahmud Ghaznavi’s nephew. Muslims say, this Mela is organized every year, while Hindus say, glorification of looters and murderers must stop. Akhilesh Yadav has added fuel to the fire by comparing Neja Mela with Maha Kumbh. I think, rulers like Aurangazeb and invaders like Ghaznavi must not be seen through the lens of Hindus and Muslims. Those who looted this nation, demolished temples cannot belong to our country. Who will want to remember such invaders? The problem starts when people start glorifying invaders and bigoted rulers. Rumour mills work overtime, emotions build up and violence takes place. We should learn from history. We should respect our ‘virasat’ (legacy) and should abstain from glorifying looters and killers.
सुनीता विलियम्स लौटीं : इंडिया खुश हुआ !
करोड़ों भारतीयों ने NASA अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और तीन अन्य यात्रियों को आज सुबह पृथ्वी पर उतरते देखा. सुनीता और उनके साथी बुच विलमोर 9 महीने अन्तरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में फंसे रहने के बाद Dragon X capsule से दो अन्य यात्रियों के साथ अमेरिका के फ्लोरिडा तट से दूर समुद्र में उतरे. सुनीता और बुच 8 दिन के लिए अन्तरिक्ष केंद्र में गये थे, लेकिन बोइंग कैप्सूल में खराबी आने के कारण पृथ्वी पर 9 महीने तक नहीं लौट पाये थे. राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने ‘भारत की बेटी’ कह कर सुनीता की वापसी पर उनका स्वागत किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुनीता को ‘icon और trailblazer’ बताया और उनके साहस और जिजीविषा की प्रशंसा की. वापसी से एक दिन पहले मोदी ने सुनीता विलियम्स को एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होने कहा कि ‘भले ही आप हजारों मील दूर हों, लेकिन आप हमारे दिलों के करीब हैं’. गुजरात के महेसाणा जिले के झूलासन गांव में लोगों ने नगाड़े बजा कर और पटाखे चला कर सुनीता की वापसी पर जश्न मनाया. पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय वो चंद पल काफी तनावपूर्ण थे, जब ड्रैगन कैप्सूल 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से काफी घट कर 1,600 डिग्री सेल्सियस के तापमान को झेलते हुए आ रहा था. कैप्सूल पर लगे हीटशील्ड के कारण अंदर बैठे चारों अंतरिक्षयात्री सुरक्षित लौटे और पैराशूट के सहारे फ्लोरिडा तट से दूर सागर में उतरे. सभी को तत्काल जॉनसन स्पेस सेंटर, ह्यूस्टन ले जाया गया, जहां नियमों के मुताबिक, उनकी सेहत पर निगरानी रखी जाएगी क्योंकि अंतरिक्ष में लम्बे समय तक भारहीनता का शरीर के अंगों पर असर पड़ता है. सुनीता विलियम्स अमेरिकी नौसेना में कैप्टन रह चुकी हैं. उनके पिता दीपक पंड्या गुजराती हैं.
औरंगज़ेब : महिमामंडन क्यों किया ?
नागपुर पुलिस ने सोमवार की हिंसा के मास्टरमाइंड फहीम शमीम खान को गिरफ्तार कर लिया है. वह Minorities Democratic Party के एक स्थानीय नेता हैं और उसने सोमवार की रात एक उग्र भीड के सामने भडकाऊ भाषण दिया था जिसके बाद आगजनी और पथराव की घटनाएं हुई. अभी तक 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है और पुलिस के अधिकारी सीसीटीवी फुटेज और सोशल मीडिया पोस्ट खंगाल रहे हैं ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों का पता लग सके. महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि यह एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है. अभी तक नागपुर के 10 थाना इलाकों में कर्फ्यू लागू है. नागपुर में जो हिंसा हुई, वह निंदनीय है. दंगा, आगजनी, पुलिस पर हमला किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. इस पूरे मामले को एक perspective में देखने की जरूरत है. सबसे पहले अबू आजमी ने औरंगजेब का महिमामंडन करके भावनाएं भड़काईं. फिर नीतेश राणे ने बयानबाजी करके आग में घी डालने का काम किया. इसी दौरान संभाजी महाराज की शौर्य गाथा बताने वाली फिल्म छावा रिलीज हुई. इसका भी लोगों के दिलोदिमाग पर असर हुआ. इसके बाद कई मुस्लिम संगठनों ने इस पूरे प्रकरण को मुस्लिम विरोधी कैंपेन करार दिया, औरंगजेब को हीरो बताने लगे, उसे इंसाफपसंद बादशाह के रूप में पेश किया गया. फिर बजरंग दल और विश्न हिंदू परिषद के लोग बीच में कूद पड़े. उन्होंने प्रतीकात्मक कब्र जलाई. इससे मुस्लिम नेताओं को बहाना मिला. पूरी प्लानिंग के साथ आयत को जलाने की अफवाह फैलाई गई. इनसे ये मामला काबू से बाहर हो गया. हमेशा शांत रहने वाले नागपुर में आग की लपटें भड़क उठीं. इस मामले में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने समझदारी से काम लिया. एक तरफ तो उन्होंने कहा कि औरंगजेब की कब्र ASI का प्रोटेक्टेड monument है, इसे नहीं तोड़ा जा सकता. दूसरी तरफ उन्होंने कहा कि किसी को भी औरंगजेब को महिमामंडित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. मुझे लगता है कि पूरे मामले को अगर इस नजरिए से देखा जाता तो न भावनाएं भड़कती, न आग लगती. अब एक बार फिर हिंदू और मुस्लिम संगठनों को मुख्यमंत्री की बात सुननी चाहिए और इस मामले को यहीं शांत करना चाहिए.
संभल नेजा मेला : रोकने की क्या ज़रूरत ?
संभल में प्रशासन ने इस साल नेजा मेले की इजाज़त देने से इंकार कर दिया है. इससे मुस्लिम संगठनों में नाराज़गी है. प्रशासन ने साफ कर दिया है कि एक लुटेरे और हत्यारे की याद में किसी मेले की अनुमति नहीं दी जाएगी. संभल में हर साल होली के बाद नेजा मेला लगता है. सैय्यद सालार मसूद गाज़ी की याद में धार्मिक नगर नेजा कमेटी इस मेले का आयोजन करती है. मसूद गाज़ी महमूद गज़नवी का भांजा था, उसका सेनापति था. महमूद गज़नवी ने सोमनाथ मंदिर को लूटा था, कत्लेआम किया था. मसूद गाज़ी ने भी भारत में जमकर लूटपाट की, हिन्दुओं का नरसंहार किया, इसलिए हिन्दू संगठनों ने मसूद की याद में होने वाले नेजा मेले का विरोध किया है. संभल के हिन्दुओं ने प्रशासन के फैसले का स्वागत किया है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि योगी आदित्यनाथ महाकुंभ मेले की हर रोज़ तारीफ करते हैं लेकिन मुसलमानों के मेले पर उन्हें ऐतराज़ है. अखिलेश ने कहा कि बीजेपी सरकार इस तरह का विवाद इसलिए खड़े करती है ताकि लोग असल मुद्दों की तरफ ध्यान न दें. संभल का मामला भी महाराष्ट्र के औरंगज़ेब के मसले जैसा ही है. दिलचस्प बात ये है कि दोनों से समाजवादी पार्टी के नेता जुड़े हुए हैं. अबू आजमी ने औरंगजेब को इंसाफपसंद बताकर उसकी तारीफ की. यहां समाजवादी पार्टी के नेताओं ने महमूद गज़नवी के सेनापति की याद में मेला लगाने की वकालत की. और ये मामला हिंदू और मुसलमान का हो गया. मुसलमानों का कहना है कि ये मेला कई साल से लगता रहा है. हिंदुओं का कहना है, लुटेरों और हत्यारों का जितना महिमामंडन होना था, हो गया, अब ये बंद होना चाहिए. बची-खुची कसर अखिलेश यादव ने इस मेले की तुलना महाकुंभ से करके पूरी कर दी. मुझे लगता है कि औरंगजेब और गज़नवी को हिंदू-मुसलमान के नज़र से नहीं देखना चाहिए. जिसने देश को लूटा, वो किसी का नहीं हो सकता. जिसने मंदिरों को तोड़ा, उसे हमारे देश में कौन याद करना चाहेगा? ऐसे लोगों का महिमामंडन करने से ही सारी समस्या पैदा हुई है. ऐसी बातों से ही अफवाहें फैलती हैं, भावनाएं भड़कती हैं. इसीलिए इतिहास को समझना चाहिए, विरासत का मान करना चाहिए और देश को लूटने वालों का महिमामंडन किसी को नहीं करना चाहिए.
Who is afraid of Waqf Amendment Bill?
All India Muslim Personal Law Board has declared an all-out war against the Waqf Amendment Bill, which is expected to be passed by Parliament in the ongoing Budget session. Several mainstream opposition parties including Congress, Samajwadi Party, Trinamool Congress, NCP, Muslim League, AIMIM and Left Front joined a protest held in Delhi on Monday by AIMPLB. Muslim leaders present at the protest called for “boycott” of all those parties like TDP, JD-U and others which are supporting this Bill. AIMPLB leaders alleged that the Bill has been brought to “usurp Waqf properties and this was a direct attack on Muslims…Waqf law grants Muslims the same rights that other religions enjoy for their institution. But now, Muslims are being singled out.” Union Minority Affairs Minister Kiren Rijiju said, most of the leaders opposing this move have not read the bill in full and are trying to mislead Muslims. One thing is clear. All parties and outfits have their self-interests in mind. None of the leaders are bothered about the provisions of this bill. Most of them have not even read the bill, because the bill in its amended form is yet to be made public. The facts are: there are more than 9 lakh Waqf properties throughout India. After Railway and Defence, Waqf Board comes third in the list having the largest number of properties in India. The worth of Waqf properties runs into Rs 1.5 lakh crores, but only Rs 1.25 crore is earned by Waqf Boards from these properties. Actually, the Boards should have earned at least Rs 12.5 thousand crores annually. Muslims must ponder, who are the people pocketing the massive sum of Rs 12.5 thousand crores? Who are the ultimate losers? If Waqf Boards earn money, it can be used for the social and economic progress of Muslims. Then why this hullaballoo? The ground reality is, the regulation of these Waqf properties lies with the Waqf Boards, on which a handful of people have full arbitrary control. If the amendment bill is passed, these people will have to close their shops. This is the sole reason behind the uproar. As far as political parties are concerned, Muslims constitute a major chunk of their vote banks. That is why they are supporting AIMPLB. But the government at the Centre enjoys majority in both Houses, and most of the Muslim organisations, Islamic scholars and Maulanas are supporting this bill. The Centre is surely going to get this bill passed in Parliament.
Why VHP, Bajrang Dal demanding removal of Aurangzeb’s grave?
There was arson and stone-pelting in Nagpur, and more than 50 people were arrested in a large-scale crackdown in Nagpur on Monday night. Violent clashes broke out during protests demanding removal of Mughal emperor Aurangzeb’s tomb from Khuldabad. Violent mobs set fire to two bulldozers and 40 vehicles, including police vans. The clashes took place after baseless rumours were spread about a religious shrine. There were also protests in Chhatrapati Sambhaji Nagar, Nagpur, Nashik, Kolhapur, Pune and Mumbai, after Vishwa Hindu Parishad and Bajrang Dal staged protests demanding removal of Aurangzeb’s grave. Security has been tightened around Aurangzeb’s tomb, presently under protection of Archaeological Survey of India. VHP and Bajrang Dal activists have threatened to launch “Babri-type Kar Seva” to remove the tomb. Maharashtra CM Devendra Fadnavis asked people not to listen to rumours. Fadnavis said, “it is unfortunate that the government is duty bound to protect Aurangzeb’s grave despite his history of persecution, because it is a protected site of ASI. He however warned that anyone trying to glorify or promote the ideologies of tyrant Aurangzeb will have to face legal action”. What Fadnavis said befits the dignity of the Constitutional post that he holds presently. He has understood the government’s duty and has also taken care of popular feelings. Indians’ blood boil when they see the grave of the bigoted Emperor Aurangzeb. More so, for Maharashtrians, because Aurangzeb executed Chhatrapati Shivaji’s son, while fighting deadly battles against the Maratha army. Maharashtrians also feel sad when they find that while government spends only Rs 6,000 on maintenance of Raj Rajeshwar temple of Chhatrapati Shivaji. Rs 6.5 lakhs are spent annually on maintenance of Aurangzeb’s grave. They are asking: Why so much respect is being given to a cruel ruler? As far as politics is concerned, this controversy suits BJP fine, but Uddhav Thackeray’s Shiv Sena has surprised everybody by demanding protection for the tyrant’s tomb. Uddhav Thackeray, who worships Chhatrapati Shivaji Maharaj, has surprised people by describing Aurangzeb’s tomb as the symbol of Maratha valour. It seems Uddhav, while trying to oppose Fadnavis, has taken a wrong move by seeking protection for Aurangzeb’s grave.
Anti-eve teasing squads in Delhi : A good move
Delhi Police has decided to set up an anti-eve teasing force named “Shistachar Squad”. Two such squads will be deployed in every police district, consisting of an inspector, a sub-inspector, a head constable and 8 constables, including 4 women constables. This ‘Shishtachar Squad’ members, in plainclothes, will conduct surprise checks in public transport and public places, and detain ruffians who indulge in ever-teasing. The members of this force have been given powers to take quick action against those causing nuisance in public places. They have been asked to avoid doing “moral policing”. Setting up an anti-Romeo Squad is a good idea. Eve-teasers must be taught a lesson. Police must strike fear in the minds of such anti-socials, so that our sisters and daughters can live in peace in Delhi. I hope, Delhi Police will carry out its responsibility seriously.
वक्फ बिल से किन लोगों को डर है ?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ आर-पार की जंग का ऐलान कर दिया. ज्यादातर विरोधी दलों जैसे कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, मुसलिम लीग, एनसीपी, AIMIM, Left Front ने बोर्ड का साथ दिया. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सरकार इस बिल के जरिए मुसलमानों की जायदाद छीनना चाहती है, मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाना चाहती है और वो इस साजिश को कामयाब नहीं होने देंगे. जंतर मंतर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदर्शन में सब ने एक सुर में कहा कि जो पार्टियां वक्फ बिल का समर्थन कर रही हैं, वे मुस्लिम विरोधी हैं, बीजेपी के साथ हैं, इसलिए मुसलमानों को ऐसी पार्टियों का बॉयकॉट करना चाहिए. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू को वो सेक्युलर मानते हैं, लेकिन उन्हें इस बात पर हैरानी है कि ये नेता भी नरेन्द्र मोदी के मुस्लिम विरोधी एजेंडे का समर्थन कर रहे हैं. कांग्रेस की तरफ से सलमान खुर्शीद, गौरव गोगोई और इमरान मसूद इस धरने में पहुंचे. सलमान खुर्शीद ने कहा कि वक्फ प्रॉपर्टी के प्रबंध में अगर कमियां हैं तो वक्फ बोर्ड इन खामियों को खुद दूर करेगा. गौरव गोगोई ने कहा कि वह जेपीसी में थे लेकिन विपक्ष की बात नहीं सुनी गई, इसलिए आंदोलन का रास्ता बचा है. इस बीच केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि जो लोग सरकार पर इल्जाम लगा रहे हैं, असल में उन्होने बिल पढ़ा ही नहीं हैं, ये लोग मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं. विपक्षी नेताओं और मौलानाओं की बातों से ये तो स्पष्ट है कि सबके अपने अपने हित हैं. वक्फ बिल से किसी को मतलब नहीं हैं. किसी को इससे फर्क नहीं पड़ता कि वक्फ बिल में है क्या, इसके प्रावधान क्या है, ये बिल किसी ने पढ़ा नहीं है क्योंकि ये अभी सामने आया ही नहीं है. ये तो सबको पता है कि देशभर में नौ लाख से ज्यादा प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड के पास हैं. रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि देशभर में वक्फ बोर्ड की सवा लाख करोड़ रु. की प्रॉपर्टीज हैं और सवा लाख करोड़ की प्रॉपर्टी से साल भर में सवा करोड़ रूपए की आमदनी हुई जबकि इतनी प्रॉपर्टी से कम से कम साढ़े बारह हजार करोड़ रु. की इनकम होनी चाहिए. अब मुस्लिम भाईयों-बहनों को सोचना है कि ये साढ़े बारह हजार करोड़ रु. किसकी जेब में जा रहे हैं? नुकसान किसका हो रहा है? अगर वक्फ की संपत्ति से आय होगी तो वो पैसा मुसलमानों के विकास के कामों में ही लगेगा. अब सवाल ये है कि फिर इतनी हायतौबा क्यों मची है? हकीकत ये है कि अभी तक वक्फ प्रॉपर्टीज का रेगुलेशन वक्फ बोर्ड के हाथ में है, वक्फ बोर्ड्स पर गिने चुने लोगों का कब्जा है, उनकी मनमानी चलती है. अगर वक्फ कानून में संशोधन हो गया तो इन लोगों की दुकानदारी खत्म हो जाएगी. इसीलिए इतना शोर मचाया जा रहा है. जहां तक राजनीतिक दलों के नेताओं का सवाल है, तो इनमें विरोधी दलों का वोट बैंक है, इसलिए वो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़े हैं. लेकिन सरकार के पास बहुमत है. बहुत से मुस्लिम संगठन, उलेमा और मौलाना वक्फ बिल के पक्ष में है. इसलिए सरकार इस बिल को संसद में लाएगी और पास करवाएगी.
VHP, बजरंग दल औरंगज़ेब की कब्र को हटाने की मांग क्यों कर रहे हैं ?
नागपुर में सोमवार की रात आगजनी और पथराव की घटनाएं हुई. उग्र भीड़ ने 2 बुलडोज़र और 40 गोड़ियों को फूंक दिय़ा. देर रात तक 50 लोगों को गिरफ्तार किया गय़ा. एक धार्मिक स्थल को लेकर निराधार अफवाह फैसले के बाद ये हिंसा हुई. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सभी से शांति बनाये रखने की अपील की. मुख्यमंत्री देवेंद3 फनडनवीस ने लोगों से कहा कि वो निराधार अफवाहों पर ध्यान न दें. महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर ज़बरदस्त सियासत हो रही है. संभाजी नगर से औरंगज़ेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने पूरे राज्य में प्रदर्शन किया. संभाजी नगर, नागपुर, नासिक, कोल्हापुर, पुणे, मुंबई समेत कई शहरों में विश्व हिन्दू परिषद-बजरंग दल के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे और फडणवीस सरकार से महाराष्ट्र की धरती से औरंगज़ेब की निशानियों को मिटाने की मांग की. औरंगजेब की कब्र संभाजी नगर के खुल्दाबाद में है. यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है. प्रशासन ने ओरंगजेब के मकबरे की सुरक्षा बढ़ा दी. मकबरे की तरफ जाने वाले सारे रास्तों पर बैरिकेडिंग की गई. असल में ये सारा विवाद अबु आज़मी के औरंगज़ेब को हीरो बताने के बाद शुरू हुआ. हिन्दू संगठनों का कहना है कि जब तक महाराष्ट्र में औरंगज़ेब की कब्र रहेगी तब तक उसका महिमामंडन करने वाले लोग आते रहेंगे. मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि वो भी मानते हैं कि महाराष्ट्र में औरंगज़ेब की कब्र नहीं होनी चाहिए लेकिन वह क्या कर सकते हैं, 50 साल पहले कांग्रेस सरकार ने औरंगजेब की कब्र को संरक्षित घोषित कर दिया, अब उस कब्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है. फडणवीस ने कहा कि कानूनी मजबूरियों के चक्कर में सरकार औरंगजेब की कब्र की हिफाजत करेगी लेकिन वो वादा करते हैं कि महाराष्ट्र में औरंगज़ेब का महिमामंडन करने की छूट किसी को नहीं दी जाएगी, जो भी ऐसा करेगा उसकी जगह जेल में होगी. देवेन्द्र फडणवीस ने पद की गरिमा के हिसाब से बात की, सरकारी दायित्व भी समझा और जनभावनाओं का भी ख्याल रखा. औरंगजेब की कब्र को देखकर भारतवासियों का खून खौलता है. महाराष्ट्र के लोगों को ये जानकर और बुरा लगता है कि छत्रपति शिवाजी के राज राजेश्वर मंदिर के रखरखाव पर सालाना सिर्फ छह हजार रूपए खर्च होते हैं जबकि औरंगजेब की कब्र के रखरखाव पर साढ़े छह लाख रूपए खर्च होता है. एक क्रूर शासक के लिए इतना सम्मान क्यों ? जहां तक सियासत का सवाल है, बीजेपी को तो ये विवाद सूट करता है. लेकिन उद्धव ठाकरे ने औरंगजेब की कब्र को संरक्षण देने की मांग करके अचरज में डाल दिया. छत्रपति शिवाजी की आराधना करने वाले उद्धव ने औरंगजेब की कब्र को मराठा शौर्य का प्रतीक बताकर चौंका दिया. लगता है कि फडणवीस का विरोध करने के चक्कर में उद्धव गलत चाल चल गए, औरंगजेब की कब्र की हिफाजत की बात कर गए.
दिल्ली पुलिस का एक अच्छा कदम
दिल्ली पुलिस ने महिलाओं के साथ छेड़खानी रोकने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. उत्तर प्रदेश पुलिस के एंटी रोमियो स्क्वॉड की तर्ज़ पर अब दिल्ली में शिष्टाचार स्क्वॉड बनेगे. दिल्ली के हर पुलिस जिले में ऐसे 2 स्क्वॉड तैनात होंगे जिसमें एक इंस्पेक्टर, एक सब-इंस्पेक्टर, एक हेड कांस्टेबल और 8 कांस्टेबल होंगे. इन 8 पुलिसकर्मियों में चार महिला कांस्टेबल्स भी होंगी. शिष्टाचार स्क्वॉड पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अचानक चेकिंग करेगा. सार्वजनिक स्थानों पर शिष्टाचार स्क्वॉड के जवान सादे लिबास में तैनात रहेंगे. अगर कोई बहन-बेटियों के साथ गलत हरकत करेगा तो उसे तुरंत पकड़ेंगे. .बड़ी बात ये है कि शिष्टाचार स्क्वॉड में शामिल जवानों को ये हिदायत दी गई कि अगर कोई सार्वजनिक स्थानों पर गलत काम करेगा, तो उसके खिलाफ तुरंत एक्शन लें, लेकिन मोरल पुलिसिंग बिल्कुल न करें. दिल्ली में एंटी रोमियो स्क्वॉड एक अच्छा कदम है. छेड़खानी करने वालों को सबक सिखाना ही चाहिए. गुंडागर्दी करने वालों के दिल में पुलिस का डर होना ही चाहिए. दिल्ली में रहने वाली बहन-बेटियां सुरक्षित महसूस करें, ये पुलिस की जिम्मेदारी है. ये पूरी होनी ही चाहिए.
How Yogi ensured a peaceful Holi during Ramzan
The vibrant colourful festival of Holi was celebrated with gusto across India, with special focus on Mathura, Vrindavan and Barsana in UP, the land of Lord Krishna. In Gorakhpur, UP chief minister Yogi Adityanath led the traditional Narsingh Shobhayatra and said,”no country in the world has such a diverse and rich tradition as Sanatan Dharma, which is the soul of Bharat”. For the first time, Holi was celebrated on Thursday by students of Aligarh Muslim University, even as Muslims performed their Ramzaan fast. In ten districts of UP, prominent mosques were covered with tarpaulin to prevent miscreants from throwing colours. In Sambhal, UP, Holi was played in Kartikeya Mahadev temple inside a Muslim-dominated locality after a lapse of 46 years. In 1978, more than 200 people were killed during communal riots that took place in Sambhal after the murder of an Islamic cleric. Hindus had fled the locality and after four decades, this temple, which was lying unused, was reopened. On Friday, Holi was played till 2 pm and at around 2:30 pm Muslims performed their Ramzan prayers. Holi is not only a festival of colours. The festival promotes friendship. Anybody having enmity can bury differences at the time of Holi festival, by applying colours and hugging each other. UP chief minister Yogi Adityanath’s appeal to Hindus to observe Holi with restraint and respect the feelings of others has worked. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav tried to add political colour by alleging that BJP wants to divide society on communal lines. At a time when the dates of Holi and Ramzan Friday prayers have clashed, leaders should refrain from making political capital out of it.
Stalin stumped on Rupee issue : Designer Tamilian, Award Presenter Tamilian
The Dravida Munnetra Kazhagam led by Chief Minister M K Stalin has launched a new battle against the Centre by refusing the use the Indian rupee symbol ₹ in its Budget this year. Finance Minister Thangam Thennarasu presented the Annual Budget today in the assembly. In the Budget documents, in place of the rupee symbol ( ₹ ), the Tamil alphabet Roo ரூ , which signifies Roobai, in Tamil for Rupee, has been used. In a series of tweets on X, Union Finance Minister Nirmala Sitharaman termed this move as a “completely avoidable example of language and regional chauvinism”. Sitharaman pointed out, the Indian Rupee symbol was designed by IIT Professor D. Uday Kumar, son of former DMK MLA N. Dharmalingam. She questioned why DMK, which was a part of UPA government, did not protest when the Indian Rupee symbol was adopted in 2010. She wrote, “DMK is not only rejecting a national symbol but also utterly disregarding the creative contribution of a Tamil youth”. What Stalin’s government has done appears to be its next step on the issue of language policy, on which it is now at loggerheads with the Centre. Stalin is trying to link the Rupee symbol based on Devnagari script with Tamil language. He is trying to create a new issue of Tamil pride. But by doing so, he forgot to fact check. The Rupee symbol was designed by none other than a Tamilian, and he is the son of a former DMK MLA. Secondly, when the Rupee symbol was adopted in 2010, Congress-led UPA government was in power at the Centre and DMK was in power in Tamil Nadu. At that time, Stalin did not object. Let me point out a third point of embarassment for Stalin. When the award for designing Rupee symbol was handed over to D. Udaykumar, the presenter was also a Tamilian. He was P. Chidambaram. Surprisingly, Congress is silent on this issue.
योगी ने कैसे रमज़ान पर शांतिपूर्ण तरीके से होली कराई
पूरे देश में आज रंगों का उत्सव मनाया गया. मुख्य उत्सव भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा, वृंदावन और बरसाना में मनाया गया. देश के तमाम बड़े शहरों में लाखों लोगों ने होली मनाई. गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगवान नरसिंह की शोभायात्रा निकाली. योगी ने कहा, सनातन धर्म सत्य और विजय का प्रतीक है, विश्व में ऐसा कोई धर्म नहीं, जो सनातन धर्म की तरह विविधताओं से भरा हो. पूरे उत्तर प्रदेश में आज रमज़ान के जुमे की नमाज होनी थी, साथ में होली भी. दस जिलों में मस्जिदें तिरपाल से ढकी हुई थी, ताकि कोई उपद्रवी रंग न फेंक सके. योगी ने खास तरह से होली मनाने वालों से अपील की कि वो दूसरों पर रंग डालते समय संयम बरतें. योगी की अपील काम आई. योगी ने कहा कि होली आपसी भाईचारे को बढ़ाने, पुराने मतभेदों को भुलाने, सबको गले लगाने का त्योहार है. योगी ने लोगों को नसीहत दी कि होली का मतलब हुल्लड़बाजी नहीं है, होली की मस्ती में अनुशासन भी जरूरी है, अगर कोई बीमार है या किसी दूसरे कारण से होली नहीं खेलना चाहता,तो किसी के साथ जबरदस्ती न की जाय. पूरे प्रदेश में प्रशासन अलर्ट पर था. संभल में जम कर रंग गुलाल उड़ा. वहां 46 साल बाद कार्तिकेय महादेव मंदिर में होली मनाई गई. 1978 के दंगों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद उस इलाके से हिंदुओं का पलायन हुआ था और अब चार दशक बाद इस मंदिर में होली मनाई गई. अलीगढ मुसलिम विश्वविद्यलाय में भी पहली बार छात्रों ने होली मनाई. रमज़ान का दूसरा जुमा और होली एक साथ पड़ने की वजह से यूपी के तमाम शहरों, जैसे बरेली, शाहजहांपुर, बाराबंकी, मुरादाबाद और बनारस में मस्जिदों की दीवारों को ढक दिया गया. होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है. ये आपसी बैर भूलकर दोस्ती करने का त्योहार है. पुरानी दुश्मनियां भुलाकर सबको गले लगाने का त्योहार है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सबको होली की शुभकामनाएं दी. कहा कि होली सद्भाव का पर्व है, भाईचारे का त्योहार है लेकिन उनका आरोप था कि बीजेपी लोगों को बांटना चाहती है, आपस में लड़ाना चाहती है, इसलिए वो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैला रही हैं. होली के मौके पर बेहतर होता अगर राजनीतिक नेता रंगों के इस उत्सव को सियासी जामा ना पहनाते.
रुपया चिह्न : डिज़ाइनर तमिलियन, अवॉर्ड देने वाला तमिलियन
तमिलनाडु सरकार का बजट आज विधानसभा में पेश हुआ. बजट के कागज़ात में स्टालिन सरकार ने रूपए के सिंबल ₹ की जगह तमिल अक्षर रू में जारी किया. रूपए के सिंबल ₹ को भारत सरकार ने 2010 में जारी किया था. इस सिंबल को तमिलनाडु के ही IIT प्रोफ़ेसर उदय कुमार धर्मलिंगम ने डिज़ाइन किया था, जो DMK के पूर्व विधायक के बेटे हैं… इतने साल तक रुपए का सिंबल इस्तेमाल करने के बाद, अब अचानक स्टालिन सरकार ने रूपए का सिंबल तमिल में बना दिया है. इसे स्टालिन की भाषा राजनीति का अगला कदम माना जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने X पर अपने पोस्ट में लिखा कि ये साफ तौर पर भाषाई और प्रांतीय संकीर्णतावाद का उदाहरण है. सीतारामन ने याद दिलाया कि 20 10में रुपया सिंबल का डिजाइन तमिलनाडु के ही एक व्यक्ति ने तैयार किया था. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने Rupee के सिंबल का सवाल तो उठा दिया, उसमें तमिल तो जोड़ दिया और इसे तमिल गौरव का मुद्दा बनाने की कोशिश की. लेकिन ये सब करते समय वो फैक्ट चेक करना भूल गए. Rupee का सिंबल एक तमिलियन उदय कुमार धर्मालिंगम ने डिजाइन किया था और वो एक पूर्व DMK MLA के बेटे हैं. दूसरी बात, इस सिंबल को 2010 में भारत सरकार ने अपनाया था, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और तमिलनाडु में DMK की सरकार थी. उस समय स्टालिन ने इसका कोई विरोध नहीं किया था. स्टालिन के लिए एक और परेशानी की बात आपको बता दूं . जिस समय डॉ. उदय कुमार धर्मालिंगम का डिजाइन फाइनल हुआ और उन्हें इसके लिए सम्मान दिया गया, तो सम्मान देने वाले भी एक तमिलियन थे और ये तमिलियन थे पी. चिदंबरम. इसीलिए कांग्रेस इस मसले पर अब तक खामोश है..
बलूचिस्तान पाकिस्तान से क्यों आज़ाद होना चाहता है?
पाकिस्तान से हैरान करने वाली खबर आई. बलोच लिबरेशन आर्मी ने पूरी ट्रेन को हाईजैक कर लिया. इस ट्रेन में पाकिस्तानी फौज के 182 जवान और अफसर यात्रा कर रहे थे. फौज के ये लोग छुट्टी पर पेशावर जा रहे थे. ट्रेन में सवार पाकिस्तानी सेना के 20 जवानों को BLA ने मारने का दावा किया है. BLA ने कहा है कि अगर फौज ने बलूस्चितान में बलूचों के खिलाफ हो रहे जुल्म को तुंरत बंद नहीं किया तो वो बाकी फौजियों को मारना शुरु कर देंगे. इस घटना से पाकिस्तान सरकार और फौज के हाथ पांव फूल गए हैं. फौज ने क्वेटा से एक ट्रेन रवाना की है, जिसमें सैनिकों के साथ डॉक्टर्स की टीम भी गई है. रेडियो पाकिस्तान के मुताबिक, 27 बलोच बागी मारे गए और 155 यात्री सुरक्षित निकल आए हैं. ट्रेन में तकरीबन 500 लोग सवार थे. हाईजैकर्स ने बलूच लोगों को उनके आईकार्ड देखने के बाद रिहा कर दिया, औरतों और बच्चों को भी छोड़ दिया लेकिन फौज के जवानों और उनके सिविलियन इनफॉर्मर्स को BLA ने बंधक बनाया हुआ है. बलोचिस्तान में BLA का ये कोई पहला हमला नहीं है. इससे पहले भी वहां यात्रियों से भरी दो बसों पर हमला किया गया था. पिछले साल नवंबर में बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी के उग्रवादियों ने बस पर हमला करके 26 लोगों को मार डाला था. क्वेटा से पेशावर की रेलवे लाइन को भी कई बार निशाना बनाया जा चुका है. पाकिस्तान रेलवे ने क्वेटा से पेशावर के बीच ट्रेन सेवा बंद कर दी थी लेकिन पिछले साल अक्टूबर में यह सेवा फिर शुरू हुई थी. किसी भी फौज के लिए ये निहायत शर्मनाक है कि उसके 182 सैनिक बंधक बना लिए जाएं, पूरी ट्रेन हाईजैक हो जाए और फौज को कुछ पता ही न हो. जब तक पाकिस्तानी सेना की नींद खुली तब तक बलोच लिबरेशन आर्मी के लोग फौज के 20 जवानों को मौत के घाट उतार चुके थे. ऐसा लगा कि पाकिस्तानी फौज सदमे में है. कई घंटों तक वो तय ही नहीं कर पाए कि घटनास्थल तक पहुंचें कैसे. ट्रेन को अगवा करने की ये वारदात पाकिस्तानी फौज के जुल्म और ज्यादतियों का नतीजा है. बलोच लोग अपने लिए अलग मुल्क की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि बलोचिस्तान में सबसे ज्यादा प्रकृतिक संसाधन हैं, और पाकिस्तानी हुकूमत बलोचिस्तान के संसाधन लूट रही है. बलोचिस्तान की सरहद अफगानिस्तान और ईरान से लगती है. ये दोनों मुल्क बलोचों की मदद करते हैं. इसलिए अब बलोचिस्तान में लगी आग को दबाना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं होगा. बस हैरानी की बात इतनी है कि बलोचिस्तान में ट्रेन अगवा हुई और पाकिस्तानी हुकूमत ने अब तक इसका इल्जाम भारत पर नहीं लगाया है.
मोदी ने क्यों कहा, हमारे लिए मॉरीशस परिवार है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मारीशस सरकार ने देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाज़ा है. मोदी ने यह सम्मान सात पीढ़ी पहले भारत से गिरमिटिया मज़दूर होकर मारीशस गये पुरखों को अर्पित किया और कहा कि यह भारत के 140 करोड़ लोगों का सम्मान है. मॉरीशस की धरती पर मोदी ने प्रभु राम और रामचरित मानस की बात की, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का जिक्र किया, महाकुंभ में मॉरीशस के लोगों के शामिल होने की बात की. मोदी ने कहा कि जो लोग महाकुंभ में नहीं पहुंच पाए, उनके लिए वो महाकुंभ का त्रिवेणी का गंगाजल लेकर आए हैं जिसे मारीशसकी राजधानी के गंगा तालाब में समर्पित किया जाएगा. मॉरीशस में 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग भारतीय मूल के हैं. भारतीयों ने मॉरीशस की आजादी की लड़ाई लड़ी. अब भारतीयों की सातवीं पीढ़ी मॉरीशस के विकास में जुटी है. भारत और मॉरीशस का रिश्ता तो खून पसीने का रिश्ता है. मोदी ने मारीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम और उनकी पत्नी को OCI कार्ड दिए. मोदी ने भोजपुरी में समारोह को संबोधित किया. मोदी ने कहा कि मॉरीशस का भारत के साथ रिश्ता पार्टनर का नहीं, परिवार का है. तकरीबन दो सौ साल पहले अंग्रेज उपनिवेशवादी हुक्मरान ने गिरमिटिया मजदूर के रूप में बिहार और पूर्वांचल के लोगों को मारीशस के बागानों में काम करने के लिए भेजा था. उस वक्त लोग रामचरितमानस अपने साथ ले गए थे. मोदी ने मॉरीशस के लोगों को याद दिलाया कि रामचरितमानस ही उस वक्त लोगों का संबल बनी, प्रभु राम ही भारतीयों के तारणहार बने. इसके बाद मोदी ने राम मंदिर निर्माण का जिक्र किया. प्राण प्रतिष्ठा के दिन मॉरीशस सरकार ने आधे दिन की छुट्टी का एलान किया था. उसके लिए शुक्रिया कहा. फिर कुछ दिन पहले खत्म हुए महाकुंभ की बात की. मोदी ने कहा कि मॉरीशस से भी लोग महाकुंभ में स्नान करने प्रयागराज गए थे लेकिन जो लोग नहीं पहुंच पाए, उनके लिए वो प्रयागराज से गंगाजल लेकर आए हैं. मॉरीशस के लोगों ने अपने भारतीय मूल की विरासत को काफ़ी संभाल कर रखा है जिसकी झलक मोदी के स्वागत में दिखी. चूंकि मारीशस में आधे से ज्यादा लोग आज भी भोजपुरी में बात करते हैं इसीलिए मोदी ने अपने भाषण की शुरूआत भोजपुरी में की. इसके बाद बिहार के साथ मॉरीशस के रिश्तों की बात की, नालंदा यूनीवर्सिटी की बात की. चूंकि बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसीलिए विरोधी दलों के नेता यही कहेंगे कि मोदी ने मॉरीशस से बिहार का इलैक्शन कैंपेन लॉच कर दिया. लेकिन ये बात सच है कि इस तरह की नयी सोच, इस तरह की प्लानिंग में मोदी का कोई मुकालबला नहीं हैं. मोदी मौके पर चौका मारना जानते हैं.
म्यांमार में cyber gangs के चंगुल में फंसे भारतीय कैसे वतन लौटे?
म्यांमार और थाईलैंड में फंसे 283 भारतीयों को भारतीय वायु सेना के विमान में सुरक्षित वापस लाया गया. बुधवार को 255 और भारतीयों को वायु सेना के विमान से दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस लाया जाएगा. इन लोगों को अच्छे वेतन का वादा करके म्यानमार बुलाया गया था. लेकिन म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में इन लोगों को बंधक बनाकर इनसे साइबर फ्रॉड करवाया जा रहा था. साइबर क्राइम में लगे गिरोहों ने म्यामार और थाईलैंड में कॉल सैंटर्स बनाए थे, जहां से दुनिया भर के लोगों के साथ ठगी का धंधा हो रहा था. एक महीने पहले कुछ भारतीयों ने अपने वीडियो शेयर करके आपबीती सुनाई थी और भारत सरकार से मदद मांगी थी. विदेश मंत्रालय ने म्यांमार और थाईलैंड की सरकार के साथ संपर्क करके साइबर ठगी के धंधे में लगे गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई की शुरूआत की. इतनी बड़ी तादाद में इन गिरोहों के चक्कर में फंसे भारतीयों को मुक्त कराया. चूंकि इन भारतीय नागरिकों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लोग ज्यादा थे, इसलिए तेलंगाना बीजेपी के नेता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री बंडी संजय कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ की और कहा कि भारत सरकार अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए कृतसंकल्प है. ऑफिशियल डेटा ये बताता है कि करीब 30 हजार भारतीय नागरिक कम्बोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम गए थे, जो वापस नहीं आए. उनमें से करीब आधे लोग 20 से 39 साल के उम्र के हैं. इन लोगों को नौकरी का वादा करके अच्छी तनख्वाह का सब्ज़ बाग दिखा कर इन देशों में ले जाया गया लेकिन उन्हें साइबर क्राइम के काम में झोंक दिया गया. गृह मंत्रालय में जो साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर है, उसने दक्षिण पूर्व एशिया से होने वाले सायबर क्राइम को analyse किया तो पता चला कि इसमें बड़ी संख्या में भारतीयों को टारगेट किया जा रहा था. करीब एक लाख लोगों ने साइबर सैल से शिकायत की है. ये क्राइम कराने के लिए कम्बोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और वियतनाम में गए भारतीयों को Cyber slaves के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था. जब ये बात सामने आई है तो भारत सरकार ने कोशिश शुरू की ताकि वहां फंसे भारतीय नागरिकों को वापस वतन लाया जाए. आज जो हुआ, वह इसकी शुरुआत है.
Will Balochistan break away from Pakistan?
Separatist Baloch rebels held an entire train hostage in Pakistan’s restive Balochistan province and gave 48-hour ultimatum threatening to execute all hostages if Baloch prisoners are not released. According to Radio Pakistan, 27 rebels have been killed and 155 passengers have been rescued till now. Balochistan Liberation Army, which claimed responsibility for this hijack, claimed they have killed 30 Pakistani soldiers and taken 214 passengers, including many soldiers, hostages. The entire hijack was planned meticulously by BLA, and Pakistani spy agency ISI and army had no whiff of this plot. The rebels first blew up the rail track, forcing the driver to stop the Jaffar Express. The train driver was injured in firing. The hijack took place in remote hilly terrain, while the train was on its way to Peshawar from Quetta. There are 17 tunnels on the route, and the rebels struck at tunnel number 8. This is not the first rebel attack. In November last year, BLA rebels attacked a passenger bus killing 26 people. The Quetta-Peshawar railway line has been attacked several times in the past. Pakistan Railway had stopped train services on this route, but in October last year, the service was resumed. A train hijack of this sort is really a matter of shame for any army, particularly when 182 soldiers were taken hostages. Naturally, top Pakistani army officials were unaware of the plot and they woke up only when an entire train was taken hostage. An attack by rebels of this sort is clearly the consequence of atrocities committed by the army over the past two decades in Balochistan. The Baloch people are demanding a separate sovereign country. They allege that Pakistan government is looting their region’s abundant natural resources. Balochistan borders Iran and Afghanistan, and both these countries have been helping Baloch rebels. For Pakistan, dousing the fire of separatism in Balochistan has become a tough job. The only consolation for us is that Pakistan government and its army has, till now, not blamed India for this train hijack. Pakistan is presently facing a crisis of existence. People in Balochistan and Khyber Pakhtoonkhwa provinces have revolted against the Islamabad government. There have been anti-army protests in Pak Occupied Kashmir too.
Modi says, ‘For India, Mauritius is family’
Prime Minister Narendra Modi was conferred with the highest national honour of Mauritius, ‘Order of the Star and Key of Indian Ocean’ on its National Day in Port Louis on Wednesday. Modi dedicated this honour to the ancestors of the people of this island nation. Addressing an event on Tuesday, Modi said, “for India, Mauritius is not just a partner country. For us, Mauritius is family. This bond is deep and strongly rooted in history, heritage and the human spirit.” Modi handed over OCI (Overseas Citizens of India) cards to Mauritius Prime Minister Navinchandra Ramgoolam and his wife Veena. Modi gifted Mauritius President Dharam Gokhool and First Lady Vrinda Ganga water collected from Prayagraj during the recently concluded Maha Kumbh. At a reception, Modi mentioned Lord Shri Ram and Ramcharitmanas and described how the construction of Ram Lala temple in Ayodhya has made the people of Mauritius happy. Nearly 70 per cent population in Mauritius are of Indian origin, since more than half of them are descendants of indentured labourers (girmitiya mazdoor) who were sent to plantations in Mauritius by the then British colonial rulers from the states of Bihar and UP. Modi spoke in Bhojpuri to the delight of Mauritians present at the function. Since assembly elections are going to be held in Bihar later this year, opposition leaders will naturally say that Modi has begun his election campaign from the soil of Mauritius. One must admit that Modi is unmatched when planning such events. Modi knows when to hit a four when opportunity arises.
Indians trapped by cyber gangs in Myanmar rescued
An Indian Air Force C-17 transport aircraft evacuated 283 Indian nationals who were trapped through fake job offers by cyber fraud gangs, largely run by Chinese operators. These gangs are active in Myawaddy region on Myanmar-Thailand border. The Indians were forced to work in fraudulent call centres and were asked to indulge in cybercrime and other online frauds. The next batch of 255 Indian nationals is scheduled to land in another IAF aircraft at Hindon air base on Wednesday. Some of these Indians had shared videos seeking help from Indian government, which contacted authorities in both Myanmar and Thailand to carry out a joint operation. Official data show, nearly 30,000 Indian nationals who had gone to Cambodia, Thailand, Myanmar and Vietnam in search of good jobs, have not yet returned. More than half of them are in the 20-39 years age group. The Cyber Crime Coordination Centre in Ministry of Home Affairs, which analyzed cyber crimes being committed from South East Asia, found that a large number of Indians were targeted. Nearly one lakh Indians had complained to Cyber Crime Control cell. This is an ongoing operation and more Indian nationals trapped in southeast Asian countries by cyber fraud gangs will be rescued in the coming weeks.

चैम्पिन्स ट्रॉफी के जश्न के वक्त किसने दंगे करवाये ?
चैंपियन्स ट्रॉफी लेकर हमारे चैंपियन क्रिकेटर स्वदेश लौट आए हैं. मुंबई एयरपोर्ट पर खिलाडियों का शानदार स्वागत हुआ. देश भर में चैंपियन्स की वाहवाही हो रही है, लेकिन हैरानी की बात है कि मध्य प्रदेश के महू में ट्रॉफी जीतने के कुछ ही मिनट बाद दंगा हुआ. कई दुकान, गाड़ियां फूंक दी गई, पथराव हुआ. महू में क्रिकेट फैन्स ने तिरंगा लेकर विजय जुलूस निकाला था, आतिशबाजी की थी, ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’ के नारे लगा कर सड़कों पर निकले थे. लेकिन जामा मस्जिद रोड पर अचानक माहौल बदला. मस्जिद में तरावीह नमाज़ का वक्त था. कुछ लोग मस्जिद से निकले और जुलूस को वापस लौटने को कहा. मारपीट, पत्थरबाज़ी शुरु हुई. पथराव करने वाले पूरी तैयारी के साथ आए थे. उनके हाथों में पत्थर और डंडे थे, मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ था, दंगाइयों ने पेट्रोल बम फेंके. सड़क पर खड़ी बाइक्स को जलाया, दुकानों और वाहनों को आग के हवाले किया. मुझे नहीं लगता कि महू में ये हिंसा इसीलिए हुई कि टीम इंडिया की जीत से किसी को मिर्ची लगी. चैंपियंस ट्रॉफी का जश्न तो बहाना था. महू में टकराव का माहौल पहले से बनाया गया था और इसमें दोष किसी एक पक्ष का नहीं है. जीत का जश्न मनाने वाले ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे. ये बात मस्जिद में मौजूद लोगों को बुरी लगी. उन्होंने इसे अपनी तौहीन समझा. नाराज हो गए, भीड़ इकट्ठी की और हिंदुओं पर हमला कर दिया. भावनाओं से भड़की हुई भीड़ जब दंगा करती है तो वो बेकाबू हो जाती है. फिर कोई उसे रोक नहीं पाता. इसीलिए लोग घायल हुए, दुकानें जलीं, गाड़ियां फूंक दी गईं. फिर दूसरे पक्ष ने भी जवाब देने की कोशिश की. अच्छी बात ये कि पुलिस ने समझदारी से काम लिया. बात को बढ़ने नहीं दिया. हिंदुओं को टकराव करने से रोका और दोनों तरफ के लोगों को शांत किया. मैं महू के लोगों को जानता हूं. यहां ज्यादातर लोग शांति से रहना चाहते हैं पर गिने-चुने लोग ऐसे हैं जिनकी दुकान दंगों से चलती है. ऐसे लोगों को पहचानने की जरूरत है. अलग-थलग करने की जरूरत है. अब टीम इंडिया भारत लौट आई है तो महू में भी सबको मिलकर खिलाडियों का स्वागत करना चाहिए. जीत का जश्न सबको मिलकर मनाना चाहिए. कुछ दिन पहले तक जो लोग टीम इंडिया के खिलाडियों को निशाना बना रहे थे, चैंपियन्स ट्रॉफी जीतने के बाद वो भी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने कैप्टन रोहित शर्मा को मोटा और सबसे Un-Impressive कैप्टन बताया था लेकिन जीत के बाद टीम इंडिया को उन्होंने बधाई दी, खासतौर पर रोहित शर्मा की 76 रनों की शानदार पारी की तारीफ की. ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने तो चैंपियन्स ट्रॉफी में मैच के दौरान रोज़ा न रखने पर मोहम्मद शमी को जमकर कोसा था, इस्लाम से खारिज करने की बात कही थी लेकिन उन्हीं मौलाना ने मोहम्मद शमी को देश का नाम ऊंचा करने वाला बताया, और कहा कि टीम इंडिया ने शानदार प्रदर्शन किया, अब मोहम्मद शमी जब घर लौटें तो रमजान के दौरान जो रोज़े छूट गए हैं उनकी भरपाई कर लें. सोशल मीडिया पर बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो टीम इंडिया में हिंदू और मुसलमान देखते हैं. किसी प्लेयर में ब्राह्मण, तो किसी में सिख नजर आता है. ऐसे विभाजनकारी लोगों का बायकॉट करना चाहिए. उन्हें वो तस्वीर दिखानी चाहिए, जब जीत के बाद विराट कोहली ने मोहम्मद शमी की मां के पैर छुए. उन्हें वो तस्वीर दिखानी चाहिए जब ऋषभ पंत ने शुभमन गिल के पिता के साथ डांस किया. उन्हें वो तस्वीर भी दिखानी चाहिए जब सुनील गावस्कर झूमकर नाच उठे. जैसे शमा मोहम्मद ने रोहित की तारीफ की, जैसे मौलाना बरेलवी शमी के मामले में पलट गए, वैसे ही अगर किसी के मन में दुर्भावना है, तो उसे भूलकर जीत का जश्न मनाना चाहिए. अगर किसी को पुरानी दुश्मनी मिटाने का बहाना चाहिए, तो चार दिन बाद होली का त्योहार है. इस बार की होली पर सबको मिलकर चैंपियंस ट्रॉफी की जीत को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना चाहिए.
RJD को बागेश्वर धाम बाबा से डर क्यों लगता है ?
बिहार में बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पांच दिन की कथा में लाखों श्रद्धालु आए. गोपालगंज में सोमवार को धीरेंद्र शास्त्री की कथा का आखिरी दिन था. पिछले दो दिन में कथा में भारी भीड़ जुटी, लाखों लोग कथा सुनने पहुंच गए. खुद धीरेन्द्र शास्त्री को वीडियो जारी करके भक्तों से अपील करनी पड़ी कि वो कथा में न आएं, घर पर बैठकर टीवी पर उनकी कथा सुनें क्योंकि इतनी भारी भीड़ के इंतजाम नहीं हैं. धीरेन्द्र शास्त्री की अपील के बावजूद लाखों लोग सोमवार को उनकी कथा में पहुंचे. लोगों का उत्साह देखकर धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि वो दिन दूर नहीं जब भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा और बिहार पहला राज्य होगा जो हिंदू राज्य बनकर उभरेगा. धीरेंद्र शास्त्री ने वादा किया कि वो बहुत जल्द फिर बिहार आएंगे. लेकिन आरजेडी, सीपीएम और कांग्रेस के नेताओं ने धीरेन्द्र शास्त्री की कथा का विरोध किया. वे बाबा को बीजेपी का एजेंट बता रहे हैं. लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने कहा कि बीजेपी चाहे जितना जोर लगा ले, कितने भी स्वयंभू चोलाधारी बाबाओं को उतार दे, लेकिन बिहार में धार्मिक सौहार्द्र बिगाड़ने का उसका मंसूबा कामयाब नहीं होगा. नोट करने वाली बात ये है कि जब रोहिणी आचार्य का ये ट्वीट आया, उस वक्त उनके मामा सुभाष यादव के बेटे रणधीर यादव और बेटी अलका यादव बाबा बागेश्वर का आशीर्वाद ले रहे थे. सुभाष यादव के बेटा-बेटी तो बाबा का आशीर्वाद लेकर चुपचाप निकल गए लेकिन पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने धीरेंद्र शास्त्री को नटवरलाल, फ्रॉड, पाखंडी कह दिया. पप्पू यादव ने कहा कि बाबा चुनाव से पहले नफरत की दुकान लगाने आए हैं, अगर उनका बस चलता तो ऐसे बाबाओं को जेल भेज देते. आज के ज़माने में जब नेता भीड़ जुटाने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं, बागेश्वर धाम वाले बाबा की कथा सुनने के लिए लाखों लोग अपने आप आ रहे हैं, ये वाकई हैरान करने वाली बात है. नेता तो रिक्वेस्ट करके भीड़ को बुलाते हैं और ये बाबा भीड़ से रिक्वेस्ट कर रहे हैं कि वो घर वापस चले जाएं, क्योंकि जगह कम पड़ गई है. ये चमत्कार से कम नहीं है. अब सवाल ये है कि जिसके प्रति लोगों का इतना आकर्षण है, RJD के नेता उन पंडित धीरेंद्र शास्त्री का विरोध क्यों कर रहे हैं? ये समझना भी कोई रॉकेट साइंस नहीं है. RJD की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक एक बड़ी जगह है और बाबा बागेश्वर हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं. इसीलिए उनका विरोध करना RJD की राजनीति को सूट करता है. बिहार में चुनाव आने वाले हैं. कोई भी पक्ष इन बातों को हल्के से नहीं ले सकता. इसीलिए जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे, ये स्वर और तीखे होते जाएंगे.
राज ठाकरे को गंगाजल क्यों गंदा लगा ?
महाराष्ट्र में महाकुंभ और गंगाजल पर सियासत हो रही है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने महाकुंभ में गंगाजल पीने वालों का मज़ाक़ उड़ाया था. पुणे में अपनी पार्टी के 19वें स्थापना दिवस के अवसर पर राज ठाकरे ने कहा कि गंगा जल साफ़ नहीं, पीने लायक़ नहीं है. राज ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी के नेता बाला नंदगांवकर महाकुंभ गए थे, वहां से गंगाजल लाए और उन्हें पीने के लिए कहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया. राज ठाकरे ने कहा कि लोगों को अंधश्रद्धा से बचना चाहिए, इससे नुक़सान होता है. राज्य के मंत्री नीतेश राणे ने राज ठाकरे के बयान को हिंदुओं की आस्था का अपमान बताया.नीतेश राणे ने कहा कि राज ठाकरे में हिम्मत है, तो किसी और मज़हब के बारे में इस तरह की बात बोलकर दिखाएं. गंगाजल से जुड़ी नई बात आपको बता दूं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट आई है. ये रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल को भेजी गई है. इसमें कहा गया है कि गंगा का पानी महाकुंभ के दौरान नहाने के लिए योग्य था. अब ऐसा लगता है कि राज ठाकरे ने जोश में आकर गंगा का पानी दूषित होने की बात कह तो दी, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि गलती हो गई क्योंकि ये मामला लोगों की श्रद्धा से जुड़ा है. मां गंगा का जल लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ा है और जब उद्धव ठाकरे की तरफ से प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि वो प्रयागराज गईं थीं, उन्हें तो पानी से दिक्कत नहीं हुई और जब रोहित पवार ने कहा कि उन्होंने भी महाकुंभ में डुबकी लगाई है और वो गंगाजल लेकर आए, तब जाकर राज ठाकरे को समझ में आया कि दांव उल्टा पड़ गया और उन्होंने अपनी पार्टी के प्रवक्ता से सफाई दिलवाई कि उनका इरादा किसी के अपमान का नहीं था. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. तीर कमान से निकल चुका था. राज ठाकरे को इसका नुकसान तो होगा.