नीतीश कुमार ने सोमवार को 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। पटना में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 12 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली। इनमें बीजेपी और जेडीयू से 5-5 मंत्री थे, जबकि एक-एक मंत्री HAM और VIP से थे। बड़ी बात यह है कि इस टीम को कैप्टन ने खुद नहीं चुना है, बल्कि यह टीम उन्हें चुनकर दी गई है।
ऊपर से तो सबकुछ ठीक-ठाक दिखाई दिया, लेकिन अंदर ही अंदर बहुत सारे सवाल उठाए गए। सबसे पहला सवाल तो यही था कि हर बार नीतीश कुमार की सरकार में उपमुख्यमंत्री रहने वाले सुशील कुमार मोदी को इस बार मंत्रिमंडल से बाहर क्यों रखा गया? उनके भविष्य को लेकर अटकलें अभी भी तेज हैं। बिहार की सरकार में बीजेपी पहली बार सीनियर पार्टनर के रूप में उभरी है और नीतीश कुमार की जेडीयू जूनियर पार्टनर बन गई है। इसलिए पूछा जा रहा है कि क्या नीतीश कुमार पर पहले से ज्यादा बंधन लगाए जाएंगे।
बीजेपी ने एक को छोड़कर बाकी नए लोगों को मंत्री बनाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी के पुराने अनुभवी नेताओं का क्या होगा? नीतीश कुमार ने जेडीयू के ज्यादातर पुराने और अनुभवी नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी है, तो सवाल यह है कि जेडीयू के नए नेताओं का क्या होगा?
69 साल के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में यह आखिरी पारी होगी। सोमवार को सभी की निगाहें भारतीय जनता पार्टी के दो उपमुख्यमंत्रियों तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी पर टिकी थीं, जो कि मंच पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अगल-बगल बैठे थे। इन दोनों ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जगह ली, जो नीतीश कुमार के विश्वासपात्र थे। सुशील कुमार मोदी बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच तालमेल का काम भी करते थे। जब नीतीश कुमार से शपथ ग्रहण के बाद पूछा गया कि क्या इस बार उन्हें मुश्किल होगी, तो उनका जवाब था, ‘जनता ने हमें जिम्मेदारी दी है, निभाएंगे।’
नीतीश कुमार कम बोलते हैं और हमेशा बहुत सोच-समझकर और नाप-तोलकर बोलते हैं। उन्होंने सुशील मोदी के सवाल पर कुछ नहीं कहा। बीजेपी नेतृत्व ने भले ही इस बार सुशील मोदी को सरकार से दूर रखा है, लेकिन बिहार के दोनों नए उपमुख्यमंत्री उनकी पसंद के बताए जा रहे हैं। 64 साल के तारकिशोर प्रसाद उसी वैश्य जाति से ताल्लुक रखते हैं जिससे सुशील मोदी आते हैं। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने वफादार हैं, और कटिहार विधानसभा से 4 बार विधायक रह चुके हैं। तारकिशोर प्रसाद बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता है और उनकी सीमांचल के कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जिलों में मजबूत पकड़ है, जो कि पश्चिम बंगाल से सटे हैं। जाहिर है कि पार्टी नेतृत्व के दिमाग में अगले साल होने वाले बंगाल के चुनाव भी हैं।
पूर्व बीमा एजेंट रेणु देवी नोनिया जाति से हैं, जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग में आती है। जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोककर उन्हें समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया था, उस समय 1991 में रेणु देवी विश्व हिंदू परिषद की दुर्गा वाहिनी में शामिल हो गईं। बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को जॉइन किया और अग्रणी महिला नेताओं में से एक बन गईं। उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी नेतृत्व उन महिला मतदाताओं को धन्यवाद देना चाहता है जिन्होंने इस बार एनडीए का समर्थन किया है।
संदेश स्पष्ट है: बीजेपी बिहार में सुशील मोदी की जगह एक नया नेतृत्व विकसित करना चाहती है। चूंकि नीतीश कुमार पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है, इसलिए बीजेपी यह बात अच्छी तरह जानती है कि उसे 2025 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ना होगा। बीजेपी के केंद्रीय नेता चाहते हैं कि पार्टी की राज्य इकाई इन 5 सालों का इस्तेमाल एक नया नेतृत्व तैयार करने के लिए करे। दूसरी बात ये है कि नीतीश कुमार की पार्टी में उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, ये भी अगले 5 साल में तय होना है। इसीलिए नीतीश ने अपने सबसे करीबी और सबसे वफादार लोगों को मंत्रिमंडल में लेते हुए जातियों के समीकरण का भी ख्याल रखा है। नीतीश के इन करीबियों में विजय चौधरी, अशोक चौधरी और मेवालाल चौधरी शामिल हैं।
नीतीश कुमार के सबसे करीबी विश्वासपात्रों में से एक विजय चौधरी भूमिहार हैं और पिछली विधानसभा में स्पीकर थे। अशोक चौधरी जिन्होंने JDU में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी, वह दलित (पासी जाति) हैं और नीतीश कुमार के दाहिने हाथ हैं। मेवालाल चौधरी पिछड़े वर्ग से हैं और कुशवाहा जाति से आते हैं। मेवालाल चौधरी को उपेंद्र कुशवाहा के अपनी पार्टी समेत अलग होने के बाद आगे लाया गया है। कुशवाहा की पार्टी का इन चुनावों में प्रदर्शन खराब रहा है। शीला मंडल, जो पिछले साल तक एक हाउसवाइफ थीं, को पहली बार पार्टी का टिकट दिया गया और चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्री भी बना दिया गया। उन्हें मंत्री बनाकर नीतीश उन महिला मतदाताओं को धन्यवाद देना चाहते हैं, जिन्होंने राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए उनका समर्थन किया।
बीजेपी और जेडीयू दोनों ही अगले 5 सालों में राज्य में अपने भविष्य के नेतृत्व को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह तेजस्वी यादव की आरजेडी के बिल्कुल उलट है, जो सिर्फ एक शख्स और उसके परिवार पर भरोसा कर रही है। तेजस्वी, उनकी पार्टी और महागठबंधन के अन्य सभी सहयोगियों ने रविवार को शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया, और आरोप लगाया कि NDA ने जनादेश के साथ विश्वासघात किया है, और उसे धोखे से बदल दिया है।’ मेरे ख्याल से तेजस्वी यादव को शपथ ग्रहण समारोह का बॉयकॉट नहीं करना चाहिए था। उन्हें थोड़ी मैच्यॉरिटी दिखानी चाहिए थी, बड़ा दिल दिखाना चाहिए था। लोकतंत्र में जीत और हार होती रहती है, पर रिश्तों में ऐसी कड़वाहट नहीं आनी चाहिए कि मामला व्यक्तिगत दुश्मनी तक पहुंच जाए।
विधानसभा में 110 विधायकों वाले एक मजबूत महागठबंधन के नेता के रूप में तेजस्वी यादव के सामने एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। विपक्ष के नेता के रूप में तेजस्वी को सरकार के कामकाज और उसकी नीतियों में खामियों को पकड़ना होगा, उनकी आलोचना करनी होगी। इसलिए उनको अपनी सोच बड़ी रखनी होगी। तेजस्वी अभी सिर्फ 31 साल के हैं और उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है। उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में अपनी भूमिका को बड़ी गंभीरता से लेना होगा। उन्हें उन नेताओं से भी सबक लेना चाहिए जो विपक्ष में हैं, लेकिन अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं लेते हैं। राहुल गांधी उनमें से एक हैं।