Rajat Sharma

My Opinion

Baba Ka Bulldozer : Illegal portions of mosque razed

akbFive bulldozers were used to demolish illegal constructions made at Noori Jama Masjid in Fatehpur district of Uttar Pradesh on Tuesday. There was no stoning, no firing nor lathicharge. There were no protests. The demolition was done peacefully in the presence of district magistrate, SP, SDM and Tehsildar. The portions of the 185-year-old mosque which were built after encroaching on government land were demolished. Local Muslim residents said, the original mosque was smaller, but over the years there were encroachments to build ‘minars’ and shops.

According to the local administration, bulldozers were used as per recent guidelines given by the Supreme Court. Noori Masjid was built in 1839. Over the years, more additions were made by encroaching upon government land. Four months ago, on August 17, the state Public Works Department issued notices to 139 persons, including the Noori Masjid Management Committee and directed them to remove illegal encroachments within 45 days. Several shopkeepers removed their shops, but the Masjid Committee sought more time.

The Masjid Committee filed a petition in Allahabad High Court, but the High Court refused to stay demolition. Masjid Committee members alleged that the High Court had adjourned the hearing to December 13, but the administration decided to demolish.

Three points are clear from this demolition. One, the original historic structure of the mosque remains intact and only the shops and ‘minars’ that were built on government land were demolished. Two, sufficient time was given by issuing notices. Three, the High Court did not give any relief to the Masjid Committee nor did it stay the demolition.

On the allegation that heavens would not have fallen if the administration had given some more time, it can be said that the constructions were illegal, government land was encroached upon and therefore demolished. Because of these illegal constructions, work on building the state highway had come to a standstill.

I think the Masjid Committee should have come forward on its own and removed the illegal structures. The state highway is going to benefit all sections of society. Use of bulldozers could have been avoided. Whenever demolition takes place near mosques, baseless rumours make the rounds on social media. The manner in which the local administration dealt with the issue is a right one. All the facts were laid before the parties and there was no dispute.

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बाबा का बुलडोज़र चला: पुरानी मस्जिद का गैरकानूनी हिस्सा गिरा

akbउत्तर प्रदेश में बाबा का बुलडोज़र फिर चला. फतेहपुर में 185 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद के अवैध हिस्से को जमींदोज़ कर दिया गया लेकिन न पत्थर चले, न गोलियां चलीं, न लाठीचार्ज हुआ, न विरोध प्रदर्शन हुआ. पूरे शहर में शान्ति रही. पांच बुलडोजर पहुंचे, DM, SP, SDM, तहसीलदार समेत सारे अफसर मुस्तैद थे. पूरी पैमाइश हुई. मस्जिद का जो हिस्सा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया था, उसे तोड़ दिया गया. बड़ी बात ये है कि इलाके के मुस्लिम भाइयों ने भी कहा कि पहले छोटी मस्जिद थी, धीरे धीरे बढ़ती गई, मस्जिद का नया हिस्सा सरकारी जमीन पर बना था, इसीलिए उसे तोड़ा गया.
हालांकि कुछ लोगों ने ये भी कहा कि मस्जिद कमेटी की तरफ से हाईकोर्ट में अपील की गई थी लेकिन प्रशासन ने अदालत का फैसला आने से पहले ही बुलडोजर चला दिया, ये ठीक नहीं हैं. मंगलवार को जब बुलडोज़र चले, तो उस इलाके में पुलिस का जबरदस्त बंदोबस्त था. पुलिस की सख्ती के कारण लोगों ने दुकाने नहीं खोलीं. करीब पांच घंटे की कार्रवाई के बाद मस्जिद के अवैध हिस्से को गिराने का काम पूरा हो गया. नूरी मस्जिद के अवैध हिस्से सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाये गए थे.
पहले इस इलाके में जंगल था, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन अब यहां स्टेट हाइवे बन रहा है और नूरी मस्जिद का अवैध हिस्सा उसी जमीन में पड़ रहा है जहां से हाइवे को गुजरना है, इसीलिए मस्जिद कमेटी को अगस्त में मस्जिद के अवैध हिस्से को हटाने के लिए नोटिस दिया गया लेकिन मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में अपील कर दी. कमेटी को लोअर कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली तो सितंबर में प्रशासन ने मस्जिद के आसपास जो दुकाने बनाई गई थी उन्हें गिरा दिया. इसी बीच मस्जिद कमेटी ने हाईकोर्ट में अर्जी दी, जिस पर 13 दिसंबर को सुनवाई होनी थी.
प्रशासन का कहना है कि फतेहपुर में बुलडोजर एक्शन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का पालन करते हुए लिया गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कोई अवहेलना नहीं हुई है. लेकिन नूरी मस्जिद कमेटी का इल्ज़ाम है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तोड़ा है.
फतेहपुर में जो बुलडोजर चला, उसमें तीन बातें साफ हैं. पहली, मस्जिद के मूल ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, वो पहले की तरह बरकरार है. दो, जिन दुकानों और मीनारों को तोड़ा गया, वो सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाई गई थी. तीन, मस्जिद कमेटी को पर्याप्त नोटिस दिया गया था. हाई कोर्ट से भी मस्जिद कमेटी को राहत नहींमिली. कोर्ट ने डिमोलिशन पर स्टे नहीं दिया था. अब विवाद सिर्फ इस बात पर है कि प्रशासन थोड़ा और वक्त दे देता, तो कौन-सा पहाड़ टूट जाता? लेकिन निर्माण गैरकानूनी था, सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाया गया था, तोड़ा इसीलिए गया क्योंकि इसकी वजह से हाईवे बनाने का काम रुक रहा था.
मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थिति में मस्जिद कमेटी को खुद आगे आकर गैरकानूनी निर्माणों को तोड़ना चाहिए था. हाइवे बनेगा तो इसका फायदा सभी लोगों को होगा. बुलडोजर चलाने की नौबत ना आती तो बेहतर होता क्योंकि जहां मामला मस्जिद से जुड़ा होता है, वहां अफवाहें फैलने का मौका होता है. लेकिन इस बार अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने सावधानी से काम लिया. सारी बातें खुलकर लोगों के सामने रखीं, इसीलिए विवाद ज्यादा नहीं हुआ.

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सोनिया, राहुल पर वार : सोरोस बने हथियार

AKBनौ दिसम्बर को सोनिया गांधी का जन्मदिन था. उसी दिन बीजेपी ने संसद में सोनिया गांधी पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया. बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने राज्यसभा में आरोप लगाया कि सोनिया गांधी के अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के संगठन से करीबी रिश्ते हैं. नड्डा ने कहा कि कारोबारी जॉर्ज सोरोस कांग्रेस के साथ मिलकर खुलेआम भारत विरोधी एजेंडा चलाते हैं, सोरोस कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते. वह मोदी सरकार को हटाने और भारत में अस्थिरता पैदा करने का काम करते हैं.
बीजेपी ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी जॉर्ज सोरोस से जुड़े संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष है. बीजेपी ने मांग की कि कांग्रेस के सोरोस के फाउंडेशन के साथ रिश्तों की जांच के लिए JPC का गठन होनी चाहिए और संसद में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए.
बीजेपी के नेताओं ने बार बार ये मांग उठाई तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत कांग्रेस के सारे नेता उत्तेजित हो गए. .सोनिया गांधी पर लगे आरोपों से कांग्रेस के नेता इतने नाराज हो गए कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ पर पक्षपात का इल्जाम लगा दिया. फिर सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया.
सवाल ये है कि आखिर जॉर्ज सोरोस के नाम से कांग्रेस के नेता इतने परंशान क्यों हो गए?

जॉर्ज सोरोस अरबपति अमेरिकी कारोबारी हैं, दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में उनका संगठन काम करता है. फोरम फॉर डेमोक्रेडिट लीडर्स फाउंडेशन को जॉर्ज सोरोस से फंडिग मिलती है. इस संगठन के चार सह-अध्यक्ष हैं जिनमें राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी भी एक हैं. फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन का एजेंडा भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक रहा है.
बीजेपी प्रवक्ता सुधाशुं त्रिवेदी ने आरोप लगाया कि कि जॉर्ज सोरोस के संगठन से जुड़े लोग राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल थे. अब कांग्रेस को साफ करना पड़ेगा कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी भारत में जॉर्ज सोरोस के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स की स्थापना तीस साल पहले दिसंबर 1994 में साउथ कोरिया की राजधानी सियोल में की गई. इसका गठन साउथ कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति किम डेई जंग की पहल पर हुआ, जो अब भी इसके चार सह-अध्यक्षों में से एक हैं.सोनिया गांधी 1994 में राजनीति में नहीं आई थी लेकिन उस वक्त वो राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष थी, इसीलिए सोनिया गंधी को फोरम फॉर डेमोक्रेटिक लीडर्स का सह-अध्यक्ष बनाया गया. जॉर्ज सोरोस की तरफ से राजीव गांधी फाउंडेशन को फंड भी दिए गए.
जॉर्ज सोरोस कश्मीर में जनमतसंग्रह की मांग का समर्थन करते हैं, वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते, नरेन्द्र मोदी को तानाशाह बताते हैं, इसीलिए सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के संगठन के साथ सोनिया गांधी के रिश्तों पर कांग्रेस को सफाई देनी पड़ेगी क्योंकि ये रिश्ता देशद्रोह जैसा है.
हंगेरी में जन्मे अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस अपने आप को किसी एक देश का नागरिक नहीं मानते. वो अपने आप को stateless कहते हैं. वह पिछले कई साल से भारत के अस्थिर बनाने का एजेंडा चला रहे हैं. खास तौर पर नरेंद्र मोदी हमेशा उनके निशाने पर रहते हैं. भारत में चुनाव के मौके पर वह सूचना जगत से जुड़े कई ऐसे बम फोड़ते हैं जिनसे मोदी को नुकसान हो. संसद के सत्र से पहले उनका पूरा सिस्टम ऐसी खबरें रिलीज करता है जिससे सरकार के खिलाफ माहौल बने.
सवाल ये है कि इन सारी बातों से सोनिया गांधी का क्या कनेक्शन है? और आज बार बार सोरोस के कनेक्शन में सोनिया गांधी का नाम क्यों आया? असल में सोनिया गांधी भारत विरोधी संगठन फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स फाउंडेशन एशिया पैसिफिक की सह-अध्यक्ष हैं. इसीलिए सोनिया गांधी से बार बार पूछा गया कि उनका इस संगठन से क्या कनेक्शन है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया.
दूसरी तरफ राहुल गांधी को लेकर बीजेपी का आरोप है कि वह सोरोस के साथ मिलकर भारत विरोधी साजिश करते हैं. सोरोस राहुल को अग्रिम सूचना देते हैं. उसके आधार पर वो संसद के अंदर और बाहर मोदी के खिलाफ कैंपेन चलाते हैं.
इस पृष्ठभूमि में दो बातें साफ है. सोनिया और राहुल का सोरोस से, उसके फाउंडेशन से, उसके सिस्टम से पूरा-पूरा संबंध है और सोरोस मोदी के खिलाफ हैं. खुलकर ये बात कहते हैं और मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं.अब सवाल ये है कि सारे मामले में गौतम अडानी का जिक्र क्यों आया ?
राहुल का नया इल्जाम ये है कि सोरोस और उसके संगठनों ने अडानी को एक्सपोज किया और मोदी अडानी का बचाव कर रहे हैं. लेकिन इस पूरे मामले में जॉर्ज सोरोस का रोल बहुत दिलचस्प है.
लंदन के आखबार ‘फायनेंशियल टाइम्स’ से जॉर्ज सोरोस का कनेक्शन है, चार साल पहले 2020 में ‘फायनेंशियल टाइम्स’ ने लिखा अगर मोदी को कमजोर करना है तो गौतम अडानी को टारगेट करना होगा. राहुल गांधी बिलकुल इसी राह पर चलते हैं और इसकी कई मिसाल हैं – G20 समिट से पहले राहुल ने अडानी का नाम लेकर मोदी पर हमला किया. उसके बाद चाहे हिंडनबर्ग रिपोर्ट हो या अमेरिका में अडानी के खिलाफ जांच की खबर, सोरोस खबर बनाते हैं और राहुल मोदी के खिलाफ उसका पूरा पूरा इस्तेमाल करते हैं.
कहा तो ये भी जाता है कि राहुल गांधी जब इंग्लैंड या अमेरिका जाते हैं तो उनकी यात्रा की प्लानिंग सोरोस के सिस्टम द्वारा की जाती है. राहुल गांधी ने इस बात पर न कभी जवाब दिया, न कभी सफाई दी.
राहुल ये तो कहते हैं कि अडानी मोदी एक हैं. वह ये तो कहते हैं कि मोदी अडानी के लिए काम करते हैं लेकिन राहुल गांधी ने बीजेपी के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि अगर अडानी इतने भ्रष्ट हैं तो कांग्रेस की सरकारों ने अडानी को प्रोजेक्ट्स क्यों दिए? तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी ने, राजस्थान में अशोक गहलोत ने बतौर मुख्यमंत्री अडानी को गले क्यों लगाया? अडानी को लेकर राहुल का ये डबल रोल, सोरोस से उनका कनेक्शन शरद पवार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव बखूबी समझते हैं. इसीलिए उन्होंने भी इस मसले को लेकर राहुल से दूरी बनाई.

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Why BJP fired Soros missile at Sonia, Rahul Gandhi ?

AKBIn its first sharpest attack on Congress leader Sonia Gandhi, coincidentally on her birthday (December 9), BJP President J P Nadda alleged in Rajya Sabha that a top Congress leader had close links with institutions funded by American billionaire investor George Soros. Nadda alleged that Soros wanted to destablize India, that he does not accept Kashmir as part of India and that he was working on anti-Indian agenda in collusion with Congress.

Without naming Sonia Gandhi, Nadda alleged, “the link between Forum of Democratic Leaders in Asia-Pacific (FDL-AP) and George Soros is a matter of concern. The co-president of this forum is a member of this House”. He alleged that FDL-AP sees Jammu & Kashmir as a separate entity and it gets financial support from Rajiv Gandhi Foundation.

Nadda alleged that “this outfit has been maligning India’s image and it raises concern about our national security. People are worried over the manner in which Congress is playing with national security”. BJP demanded that a Joint Parliamentary Committee be set up to probe the links of George Soros-funded institution with Congress and that there should be a discussion on this issue in Parliament.

In the Rajya Sabha, Leader of Opposition Mallikarjun Kharge strongly opposed the allegations made by Nadda. Kharge alleged that the Chairman Jagdeep Dhankhar was being partial towards the ruling party. Congress leaders threatened to bring a no-confidence motion against the RS Chairman.

Outside the House, BJP spokesperson Sudhanshu Trivedi named Sonia Gandhi and alleged that as co-president of FDL-AP, she had close links with George Soros. Trivedi pointed out that Soros had, in the past, claimed that he was ready to give funds to the tune of one billion dollars to destabilize Modi’s government.

George Soros-funded Forum For Democratic Leaders is active in more than 100 countries and it has four co-presidents, one of whom is Sonia Gandhi, as chairperson of Rajiv Gandhi Foundation. Trivedi alleged that persons linked to Soros-funded outfits had joined Rahul Gandhi’s Bharat Jodo Yatra. He demanded that the Congress must clarify its links with George Soros.

Forum For Democratic Leaders was set up in 1994 in Seoul at the initiative of then South Korean President Kim Dae Jung. Sonia Gandhi was not in active politics at that time, but as chairperson of Rajiv Gandhi Foundation she was appointed one of the four co-presidents of FDL. George Soros had also given funds to Rajiv Gandhi Foundation. Soros had been openly advocating holding of referendum on J&K and he considers Narendra Modi an authoritarian leader.

George Soros is an Hungarian-born American billionaire, but he considers himself a stateless person. For the last several years, he had been working on an agenda to destabilize the Indian government led by Narendra Modi.

During elections in India, institutions connected with Soros deliberately explode information bombs, meant to cause damage to Modi’s party. On the eve of Parliament sessions too, Soros’ eco-system had been releasing news reports meant to create an atmosphere against Modi government.

The question now is, what is Sonia Gandhi’s connection with George Soros? It is a fact that she is one of the co-presidents of Forum of Democratic Leaders for Asia-Pacific. This is an anti-Indian forum which advocates separation of Jammu & Kashmir from India. Questions are being asked about Sonia’s connections with this forum, but, till now, the Congress had not come forward with any response.

Secondly, BJP has alleged that Rahul Gandhi, in collusion with George Soros, has been part of anti-India conspiracies. Rahul had been making vitriolic attacks on Modi inside and outside Parliament, after getting advance news from Soros-funded institutions.

Two things are clear: One, Sonia and Rahul Gandhi have connections with Soros-funded institutions, and Two, Soros is anti-Modi and he wants to destabilize the government. The question now arises about how Gautam Adani comes into the picture?

For the last several days, Congress MPs have been staging protests outside Parliament chanting slogans against Modi and Adani. Rahul Gandhi’s latest allegation is that George Soros and his outfits have exposed Gautam Adani, and that Modi was shielding Adani.

George Soros’ role in this matter is very interesting. He has connections with Financial Times, London. Four years ago, in 2020, Financial Times had commented that if Modi was to be weakened, Gautam Adani should be targeted.

Rahul Gandhi is going ahead on these lines. There are several examples. On the eve of G20 summit in India last year, Rahul had attacked Modi on Adani issue on Hindenburg report. He had also raised the issue of US FBI probe against Adani group. Soros manufactures news, and Rahul uses that news to target Modi.

It has also been alleged that whenever Rahul visits UK or US, the entire planning is done by the eco-system funded by Soros. Rahul Gandhi never replied to such allegations. He has been repeatedly alleging that Modi was trying to shield Adani, but he never replies to this argument that if Adani is corrupt, why are Congress governments giving big ticket projects to Adani group? As chief ministers Revanth Reddy and Ashok Gehlot shook hands with Gautam Adani and gave big projects to his group.

Rahul Gandhi’s double standards on Adani and his connections with George Soros are known to other INDIA bloc leaders like Sharad Pawar, Mamata Banerjee and Akhilesh Yadav. These leaders and their parties have kept themselves away from Rahul Gandhi on Adani issue.

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संसद में नोटों की गड्डी : जांच करो, पर नाम न लो

AKB30 पांच सौ रुपये के नोटों की एक गड्डी सियासत का बड़ा मुद्दा बन गई. नोटों की गड्डी पर राज्यसभा में हंगामा हुआ. कांग्रेस के नेताओं और बीजेपी के नेताओं के बीच तीखी नोंकझोंक हुई .और आखिरकार सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित हो गई.
अब इस बात की जांच हो रही है कि आखिर सदन में मिले पांच सौ के नोट असली है या नकली, अगर असली हैं, तो नोटों की ये गड्डी किसकी है, अगर ये नोट सदन में गलती से छूटे, तो कोई इसे क्लेम करने क्यों नहीं आया. सभापति जगदीप धनकड़ ने अब इन सारे सवालों के जबाव खोजने के लिए जांच बैठा दी है, लेकिन जब उन्होंने इसकी जानकारी सदन को दी, कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया.
कांग्रेस को सभापति की बात बुरी लगी. हुआ यूं कि सभापति जगदीप धनकड़ ने कहा कि पांच सौ के नोटों का बंडल सीट नंबर 222 पर मिला है और ये सीट कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी के नाम पर आवंटित है. विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बयान पर आपत्ति जताई. कहा कि अगर सभापति ने जांच के आदेश दे दिए हैं तो फिर जांच पूरी होने से पहले किसी सदस्य का नाम लेने की क्या जरूरत है. अभिषेक मनु सिंघवी का नाम क्यों लिया. संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि सभापति ने सिर्फ उस सीट के बारे में बात की है जिस पर नोटों का बंडल मिला है, इसमें गलत क्या है, इस पर इतनी हायतौबा क्यों मचाई जा रही है.
सदन के नेता जे पी नड्डा ने कहा कि सदन में नोटों की गड्डी मिलना बेहद गंभीर मामला है. इसको हल्के में नहीं लिया जा सकता, इसलिए इसकी जांच तो होनी ही चाहिए लेकिन विपक्ष जिस तरह से सदन में हंगामा कर रहा है, उससे शक पैदा होता है.
कांग्रेस के तर्क को केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने पकड़ लिया. गोयल ने कहा कि अगर कांग्रेस तैयार हो तो ये नियम बना दिया जाए कि अगर किसी मामले में जांच चल रही है तो उस मामले में किसी का नाम नहीं लिया जा सकता. पीयूष गोयल ने कहा कि कांग्रेस के नेता तो विदेशी अखवारों में छपी खबरों को उठाकर रोज सदन में हंगामा करते हैं,क्या वो सब ठीक है.
गोयल ने कहा कि अडानी के मामले में भी जांच चल रही है, फिर भी कांग्रेस दिन रात अडानी के नाम की माला जपती है. अगर जांच से पहले सिंघवी का नाम लेना गलत है तो जांच पूरी होने से पहले अडानी का नाम लेना ठीक कैसे हो सकता है.
कांग्रेस का सवाल जायज़ है, जबतक जांच नहीं होती, किसी का नाम कैसे लिया जा सकता है. अभिषेक मनु सिंघवी कह रहे हैं कि नोटों का बंडल उनका नहीं है तो फिर उनका नाम क्यों लिया गया. जांच पूरी होने का इंतजार क्यों नहीं किया गया.
कांग्रेस की ये बात बीजेपी के नेताओं को बहुत पसंद आई.उन्होंने पूछा कि अगर बिना जांच के नाम नहीं लिया जाना चाहिए तो फिर राहुल गांधी रोज रोज अडानी का नाम लेकर हंगामा क्यों करते हैं.
दूसरी बात, अडानी भी कहते हैं कि उनपर लगे आरोप फर्जी हैं. तो उनके मामले में कांग्रेस जांच पूरी होने का इंतजार क्यों नहीं करती. कांग्रेस अपने जाल में फंस गई.जब पीयूष गोयल ने सुझाव दिया कि इस बात पर सहमति बनाई जाए जबतक जांच पूरी हीं हो जाती, किसी का नाम नहीं लिया जाए, तो कांग्रेस के नेता इस बात के लिए तैयार नहीं थे.
अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के नेताओं के लिए नियम अलग होने चाहिए. क्या कांग्रेस को बिना जांच के किसी पर भी आरोप लगाने का लाइसेंस है. आज कांग्रेस के नेताओं के लिए इसका जवाब देना मुश्किल हो गया.

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Who left Currency Notes in Parliament: To name or not to name?

AKB30 A wad of Rs 500 currency notes was found on the seat of Congress MP Abhishek Manu Singhvi in Rajya Sabha. This sparked a row after the Chairman Jagdeep Dhankhar announced that the currency notes were found on seat number 222 allotted to Singhvi, on Thursday evening after the House proceedings were over. The guards were conducting their regular security check inside the Rajya Sabha.

While BJP and its allies demanded a probe, Singhvi said, this was “bizarre” because he always carried one Rs 500 currency note whenever he goes to the House.

Singhvi said, he went inside the House at 12.57 pm on Thursday and the House was adjourned at 1 pm. He said, he then sat in the canteen till 1.30 pm and left Parliament. “There should be an inquiry as to how people can come and put anything anwhere, on any seat. Each seat should be locked so that the member can carry the key home. If anybody puts something on my seat and then levels allegations, it is not only tragic and serious, but comic”, Singhvi said.

Dhankar said he has ordered a probe since no member has come forward to claim the wad of currency notes. Leader of Opposition in Rajya Sabha Mallkarjun Kharge said, the chair should not have named the MP as an inquiry was already underway. Parliamentary Affairs Minister Kiren Rijiju said, the chairman has done the right thing in mentioning the seat number and there was nothing wrong in it. Leader of the House J P Nadda described it as an “extraordinary and serious” incident.

Commerce Minister Piyush Goyal raised an interesting point. He said, if Congress had objection to revealing the name of the MP even while the probe was on, then why were Opposition MPs staging daily protest about reports (relating to Adani) published in foreign newspapers? Goyal said, the Adani issue was still under investigation, but Congress MPs were raising the issue again and again.

Later, Singhvi met the Chairman and said the wad of currency notes does not belong to him.

The question raised by Congress is justified. Congress leaders are saying, how can anybody be named even when the inquiry is in progress. Singhvi has been claiming that the wad of notes does not belong to him, then why was his name mentioned? Why nobody waited till the inquiry was over?

BJP took the cue and countered saying why was Rahul Gandhi raising Adani’s name almost daily even while the probe was on. Adani says, all the allegations against him are baseless and false, then why can’t Congress wait for the probe to be over?

Congress has been caught in its own net. When Piyush Goyal suggested that all parties must reach a consensus not to name anybody in the House unless the probe was over, Congress leaders remained silent.

The question now is; Should there be separate rules for Congress? Should Congress be given a free licence to name anybody without completion of any probe? Congress leaders are finding it difficult to reply to this argument.

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सुखबीर बादल पर हमला : इसके पीछे किसका हाथ?

AKB30 अमृतसर में एक बड़ी अनहोनी टल गई. पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल को जान से मारने की कोशिश हुई लेकिन सुरक्षा कर्मियों की मुस्तैदी की वजह से बादल बाल-बाल बच गए.

सुखबीर बादल श्री अकाल तख्त साहिब के हुक्म के मुताबिक स्वर्ण मंदिर के द्वार पर चौकीदारी कर रहे थे. चूंकि बादल के पैर में फ्रैक्चर है, इसलिए वह व्हीलचेयर पर बैठकर दरबान की ड्यूटी दे रहे थे. इसी दौरान एक शख़्स श्रद्धालु के भेष में स्वर्ण मंदिर के गेट पर आया. वह सुखबीर बादल के क़रीब पहुंचा और उसने पिस्तौल निकालकर गोली चलाने की कोशिश की लेकिन सादे लिबास में तैनात एक सुरक्षकर्मी ASI जसबीर सिंह हमलावर को पिस्तौल निकालते हुए देखते ही उस पर टूट पड़ा. सुरक्षाकर्मियों ने हमलावर को वहीं दबोच लिया.

हमलावर ने पिस्तोल से गोली दाग़ दी, गोली किसी को लगी नहीं, स्वर्ण मंदिर की दीवार से टकराई. इसी दौरान आस-पास तैनात कई और पुलिसवालों ने मिलकर हमलावर को शिकंजे में ले लिया.
अमृतसर के पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि हमलावर नारायण सिंह चौड़ा एक दिन पहले स्वर्ण मंदिर आया था, उसने पूरे इलाक़े की रेकी की थी.

नारायण सिंह चौड़ा, गुरदासपुर ज़िले के डेरा बाबा नानक का रहने वाला है. उसके खालिस्तानी संगठनों से पुराने रिश्ते रहे हैं. नारायण सिंह चौड़ा खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और अकाल फेडरेशन के साथ जुड़ा हुआ था.

नारायण सिंह के ख़िलाफ़, अमृतसर, रोपड़, लुधियाना और तरनतारन ज़िलों में 21 मामले दर्ज हैं. उसे 2013 में गिरफ़्तार किया गया था और उसकी निशानदेही पर हथियारों और गोला-बारूद का बड़ा ज़खीरा भी बरामद हुआ था. नारायण सिंह चौड़ा ट्रेनिंग लेने के लिए 1984 में पाकिस्तान भी गया था. वो 2004 की बुड़ैल जेलब्रेक वारदात में भी शामिल था. उस वक्त पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे चंडीगढ़ की जेल से सुरंग खोदकर भाग निकले थे. नारायण सिंह चौड़ा ने “कॉन्सपिरेसी अगेंस्ट खालिस्तान” नाम की एक किताब भी लिखी है. वह 2018 में ज़मानत पर जेल से रिहा हुआ था.

सुखबीर बादल पर हमले की जितनी निंदा की जाए, वह कम है. दरबार साहिब में, भगवान के घर में, सेवा करते व्यक्ति पर गोली चलाना गंभीर जुर्म है, पाप है. हमला करने वाले ने सिर्फ इस बात का फायदा उठाया कि दरबार साहिब की मर्यादा के मुताबिक वहां जाने वालों की चेकिंग नहीं की जाती. अगर सुखबीर के सिक्योरिटी वाले सावधान न होते, तो एक बड़ी दुर्घटना हो सकती थी.

जहां तक इस मामले में राजनीति का सवाल है, यह तो अपेक्षित था कि अकाली दल के नेता सीएम भगवंत सिंह मान को दोषी ठहराएंगे और कांग्रेस पर भी आरोप लगाएंगे. कांग्रेस से भी यही उम्मीद थी कि वो पंजाब सरकार को जिम्मेदार बताएगी. लेकिन अकाली दल के नेता विक्रमजीत सिंह मजीठिया ने इस हमले के पीछे कांग्रेस का हाथ बताया और कहा कि हमलावर कांग्रेस सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा का करीबी है. बीजेपी ने इस घटना के पीछे खालिस्तानियों का हाथ बताया.

अब जिम्मेदारी पंजाब पुलिस की है कि वह इस मामले की तह तक जाए, अपराधी के पीछे कौन है इसका पता लगाए और जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक बाकी पार्टियां इधर-उधर की बयानबाज़ी न करें तो बेहतर होगा.

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Attack on Sukhbir Badal: Who is behind it?

AKB30 A major assassination bid was averted at Golden Temple, Amritsar on Wednesday when an ex-terrorist fired at Shiromani Akali Dal leader Sukhbir Singh Badal, who was performing sewadar duty at the temple as part of his penance rites. An alert Punjab Police ASI, Jasbir Singh, in plainclothes, pounced upon the assailant Narain Singh Chaura when he pulled out a 9 mm pistol from his pocket. The assailant fired but missed his target. He was arrested on the spot.

Narain Singh Chaura, a former terrorist and pro-Khalistan activist is facing over 20 cases. He had gone to Pakistan and had smuggled weapons during the initial militancy days. He helped alleged assassins of former Punjab CM Beant Singh, Jagtar Singh Hawara and Paramjit Singh Beora in the 2004 Burail jailbreak case, police said.

Amritsar Police chief Gurpreet Singh Bhullar said, the assailant had done a recce of the Golden Temple a day before, to find out about the timings of Sukhbir Badal, who used to perform guard duty and washed utensils at the langar.

Undeterred by the assassination bid, Sukhbir Badal on Thursday performed sewadar duty outside Takht Keshgarh Sahib in Punjab amidst tight security.

Charges and counter-charges began to fly after the failed assassination bid. Congress, SGPC and Akali Dal blamed the state AAP government for lax security arrangements. Akali leader Bikram Singh Majithia alleged that the assailant had close links with Congress leader Sukhjinder Singh Randhawa. Randhawa replied that the assailant’s brother was known to him for the last 27 years, while Narain Singh’s past record was known to all. Punjab CM Bhagwant Singh Mann promised a fast probe and stringent punishment for the accused. State BJP chief Sunil Jakhar said, the assailant was linked to Khalistan Liberation Force. He alleged that Arvind Kejriwal had once stayed at the home of an KLF leader.

The assassination bid is condemnable. The act took place at the holiest shrine of Sikhs, Golden Temple, and the shot was fired at a person who was performing sewadar duty. This is a serious crime, a sin. The assailant tried to take advantage of the fact that none of the devotees who go to the Golden Temple is frisked. Had Sukhbir Badal’s personal security man not been alert, a tragedy could have taken place.

As far as politicizing this matter is concerned, it was on expected lines. Akali leaders blamed CM Mann and Congress, while Congress blamed the AAP government. BJP has alleged Khalistani hand behind this assassination bid.

It is now the responsibility of Punjab Police to probe the matter and find out who were the real conspirators. Till the time the probe is not over, it would be better if political parties desist from making unnecessary statements.

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महाराष्ट्र का बॉस कौन?

AKBमहाराष्ट्र में सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया. आखिरी स्पीड ब्रेकर भी खत्म हो गया. एकनाथ शिन्दे ने कहा “सब चांगला आहे” (सब ठीकठाक है). शिन्दे ठीक हो गए, उनकी सेहत भी ठीक है, और मूड भी. देवेन्द्र फडणवीस ने ‘वर्षा’ बंगले पर जाकर एकनाथ शिन्दे से मुलाकात की. सारी बातें तय हो गईं. गुरुवार को फडणवीस का शपथग्रहण होगा. एकनाथ शिन्दे और अजित पवार डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ लेंगे. आजाद मैदान में शपथ ग्रहण की तैयारियां हो रही हैं.

अभी तक जो तय हुआ है उसके मुताबिक, बीजेपी अपने पास गृह, राजस्व विभाग रखेगी. एकनाथ शिन्दे की शिवसेना को शहरी विकास विभाग मिलेगा और अजित पवार के पास वित्त रहेगा. जो फॉर्मूला अभी तक तय है, उसमें बीजेपी के पास 21 से 22, शिवसेना को 12 और अजीत पवार की एनसीपी को 9 से 10 विभाग मिलेंगे.

5 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह समेत केंद्र सरकार के कई मंत्री, एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री समेत कुल 70 नेता शामिल होंगे. इसके अलावा 400 से ज्यादा साधु संतों को भी न्योता भेजा गया है.

महाराष्ट्र में जितनी जबरदस्त जीत हुई थी, सरकार बनाने में देरी ने उसकी चमक उतनी ही कम कर दी. शिंदे ने जो नखरे दिखाए, उसकी वजह से जो हारकर हताश बैठ गए थे, उन्हें कमेंट करने का मौका मिला. किसी ने कहा, दिल्ली वाले डमरु बजा रहे हैं और महायुति वाले नाच रहे हैं, किसी ने कहा, बारात आ चुकी है. पर दूल्हा कौन है अभी तक पता नहीं. लेकिन आज ये सारी बातें बेमानी हो गईं. दूल्हा कौन हैं, ये भी पता चल गया. बारात में कौन कौन आएगा, इसका ऐलान भी हो गया और नाराज़ फूफाजी भी मिलने के लिए मान गए.

राजनीति के दांवपेंच के लिहाज से देखें तो अजित पवार दिल्ली आकर बैठ गए थे, शिंदे भी अमित शाह के फोन का इंतजार कर रहे थे. इसे समझने की जरूरत है. शिंदे और अजित दादा सीधे दिल्ली से बात करना चाहते थे. वो फडणवीस को बायपास करने के चक्कर में थे लेकिन उन्हें समझा दिया गया कि महाराष्ट्र की सरकार बनाने और चलाने का जिम्मा देवेंद्र फडणवीस को सौंप दिया जाएगा. तीनों पार्टियों में से किसके कितने मंत्री बनेंगे, ये फडणवीस से बात करके तय करना होगा. शिवसेना और NCP में से कौन-कौन मंत्री बनेगा, ये शिंदे और अजित पवार को तय करना होगा. लेकिन किसको कौन सा मंत्रालय दिया जाएगा, इसके लिए उन्हें फडणवीस से बात करनी होगी. मोटा भाई का मोटा सा मैसेज ये है कि अब महाराष्ट्र की सरकार दिल्ली से नहीं चलेगी. फैसले मुंबई में लिए जाएंगे. और देवेंद्र फडणवीस को फ्री हैंड दिया जाएगा. सब कहेंगे, जय महाराष्ट्र!

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Maharashtra : Who is the Boss ?

AKBThe last speed-breaker in the path of Devendra Fadnavis taking over as Chief Minister of Maharashtra was removed on Tuesday after the outgoing caretaker CM Eknath Shinde met him at his residence. Shinde along with NCP leader Ajit Pawar will be sworn in as Deputy CM on Thursday at Azad Maidan, where preparations for the ceremony are under way.

Shinde, who had been sulking for the last few days and was citing health reasons for not attending meetings with alliance partners, at last, agreed to meet Fadnavis to sort out the issue. It was decided that BJP would keep Home and Revenue portfolios, while Urban Affairs portfolio will be given to Shinde’s Shiv Sena and Finance to Ajit Pawar. Nearly 21 to 22 portfolios will be handled by BJP, 12 portfolios will go to Shiv Sena and 9 to 10 portfolios will be given to NCP, reports said.

The grand swearing-in ceremony will be attended by Prime Minister Narendra Modi, several NDA chief ministers and top BJP leaders. Needless to say that with Shinde sulking for several days resulting in delay in government formation, the shine was taken off from the sweeping victory of Mahayuti in Maharashtra. Shinde displayed tantrums and it was because of this that those leaders who were defeated at the hustings, got the chance to make snide remarks like, “People sitting in Delhi are playing ‘damru’ (pellet drum) and Mahayuti leaders are dancing to their tune”. Some remarked that the “wedding procession is ready, but nobody knows who will be the bridegroom”.

All these snide comments have now stopped after it was decided who will lead the “wedding procession”. The unhappy, sulking “Phoopha Ji” (uncle), alluding to Shinde, has at last agreed to join the procession. The political suspense on Maharashtra was palpable. Ajit Pawar stayed put in Delhi, while Shinde was waiting for Amit Shah’s phone call. One must understand the political nuances. Both Ajit Dada and Shinde wanted to negotiate directly with Delhi and wanted to bypass Fadnavis. Both were clearly told that the task of forming and running the government has been given completely to Devendra Fadnavis and there shall be no outside interference. Both the leaders were told to talk with Fadnavis and decide who will become ministers from Shiv Sena and NCP in the new government. Fadnavis will have the discretion to decide about portfolios of all ministers and both the leaders should speak to him only.

The message was clear from Mota Bhai: the government in Maharashtra will not run from Delhi. All the decisions will be taken in Mumbai and Devendra Fadnavis will be given a free hand. Everybody must stand up and say, Jai Maharashtra!

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फड़णवीस का राज तिलक : शिंदे बने नाराज़ ‘फूफाजी’

AKB30 महाराष्ट्र में 5 दिसंबर को नई सरकार का गठन होगा. देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. 4 दिसंबर को बीजेपी विधायक दल फड़णवीस को अपना नेता चुनेगा. लेकिन नई सरकार में एकनाथ शिन्दे किस रोल में होंगे, ये फिलहाल तय नहीं है क्योंकि शिन्दे नाराज़ बताए जा रहे हैं. उन्होंने सेहत ठीक न होने को वजह बता कर सोमवार को सारी मीटिंग्स रद्द कर दी, इसीलिए चर्चाओं का दौर शुरू हुआ.
एकनाथ शिन्दे के बेटे श्रीकांत शिन्दे ने अपने बारे में साफ किया कि वो न डिप्टी सीएम बनने जा रहे हैं और न ही उन्होंने केन्द्र सरकार में कोई पद मांगा है. उन्होंने अपने पिता के नाराज़ होने की खबरों को निराधार बताया.
विभागों के बंटवारे पर फैसला करने के लिए अमित शाह ने देवेन्द्र फडनवीस, अजित पवार और एकनाथ शिन्दे को दिल्ली बुलाया था लेकिन शिन्दे ने तबियत खराब होने की बात कहकर दिल्ली आने से इंकार कर दिया. खबर है के शिंदे डिप्टी सीएम बनने के साथ साथ गृह विभाग चाहते हैं, पर इसके लिए बीजेपी नेतृत्व तैयार नहीं है. उन्हें शहरी विकास विभाग देने की पेशकश की गई है.
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ट्रेंड सा हो गया है. जब भी मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले, वर्षा, के लिए कोई बारात निकलती है तो एक न एक फूफाजी नाराज़ जरूर हो जाते हैं. पिछली बार उद्धव मुंह फुलाकर बैठ गए थे.सारे रिश्ते नाते तोड़कर फडणवीस की घोड़ी भगाकर ले गए थे और फिर दूसरी बारात में शामिल हो गए.
इस बार शिंदे नाराज फूफा जी बनकर बैठे हैं. बस से नीचे उतरने को तैयार नहीं हैं. उन्हें दुल्हा नहीं बनाया, घोड़ी पर नहीं चढ़ाया, इसीलिए नाराज हैं. लेकिन इस बार फडणवीस का कवच अभेद्य है. उनकी सेना भी बड़ी है. इसीलिए शिंदे थोड़े बहुत नखरे कर सकते हैं पर अन्ततोगत्वा उन्हें मानना ही पड़ेगा. इस बार जनता का आदेश ऐसा है. इसके आगे शिंदे को झुकना ही पड़ेगा. इस बात को वे जितनी जल्दी समझ जाएं, उतना बेहतर होगा.

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Sulking Shinde : Against People’s Will

AKB30 A new government led by Devendra Fadnavis will be sworn in on December 5 with NCP leader Ajit Pawar as Deputy CM. Prime Minister Narendra Modi is expected to be present at the oath taking ceremony. On December 4, BJP legislative party is expected to elect Fadnavis as its leader in the presence of central observers, Nirmala Sitharaman and Vijay Rupani.

The role of outgoing CM Eknath Shinde in the new government is not yet clear. Shinde has cancelled all his meetings citing health reasons, while his son Shrikant Shinde has described reports about his joining as Deputy CM as ‘baseless’. Shrikant Shinde clarified, he had neither sought any portfolio at the Centre, nor was he going to become the Deputy CM.

Eknath Shinde has not yet reacted to the ongoing political developments. There are reports that he is unhappy because his demand for Home portfolio was not accepted by the BJP leadership. Instead, he was offered Urban Development portfolio.

Home Minister Amit Shah had requested Fadnavis, Ajit Pawar and Eknath Shinde to come to Delhi for talks, but Shinde, citing health reasons, did not go.

In recent years, it has almost become a trend in Maharashtra politics, for any one of the top leaders in the ruling combination, sulking when a new government is formed. In North India, there is a popular saying about “the uncle (phoopha) who always sulks at the wedding”.

Five years ago, when BJP-Shiv Sena alliance won, Shiv Sena chief Uddhav Thackeray started sulking. He called off his alliance with BJP and joined hands with Congress and Sharad Pawar to become the CM. He ditched Fadnavis’ ‘baaraat’ to head another ‘baaraat’ (bridegroom procession).

This time, too, Eknath Shinde has become the sulking “phoopha”. He is unwilling to leave the bridegroom procession bus, only because he was not made the bridegroom.

But, this time Devendra Fadnavis’ ‘kavach’ (armour) is invincible. Shinde may indulge in tantrums, but ultimately he will have to accept. The people’s mandate for BJP is quite clear and he has to bow before the people’s will. The sooner he realizes this, the better.

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