महाराष्ट्र, झारखंड : क्या इस बार एग्जिट पोल सही साबित होंगे ?
महाराष्ट्र, झारखंड में विधानसभा चुनाव, 5 राज्यों की 15 सीटों पर उपचुनाव और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए वोट डाले गए। चुनाव आयोग ने बताया कि महाराष्ट्र में 65.08 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि झारखंड में 68.45 प्रतिशत वोट डाले गए। आयोग ने कहा कि इनमें पोस्टल बैलट शामिल नहीं हैं, और कई मतदान केंद्रों से पूरे आंकड़े नहीं आये हैं। दोनों राज्यों में माहौल गर्म था लेकिन वोटिंग शान्तिपूर्ण तरीके से हुई। कहीं से किसी तरह की हिंसा या तनाव की खबर नहीं आई। किसी भी चुनाव में मतदान के बाद लोगों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी ये जानने में होती है कि लोगों ने किसको वोट दिया? कौन जीतेगा? सरकार किसकी बनेगी? ये जानने का एक ही पैमाना है, एग्जिट पोल। लेकिन एग्जिट पोल इतनी बार गलत साबित हो चुके हैं कि कुछ कहना मुश्किल है।
कई एजेंसीज के एग्जिट पोल सामने आए हैं। मोटे तौर पर सारे एग्जिट पोल इस बात पर एकमत हैं कि महाराष्ट्र और झारखंड में दोनों जगह NDA की सरकारें बनेगी। दोनों राज्यों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। असलियत तो 23 नवम्बर को ही पता चलेगी। आजकल एग्जिट पोल की विश्वसनीयता काफी कम है। हमारे देश में लोकसभा चुनाव और हरियाणा चुनाव में दोनों जगह एग्जिट पोल गलत साबित हुए। अमेरिका में भी ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर दिखा रहे थे। सब गलत साबित हुए। ट्रंप ने जबरदस्त जीत हासिल की लेकिन तो भी एग्जिट पोल में दर्शकों की दिलचस्पी तो रहती है।
एक्जिट पोल के मुताबिक, महाराष्ट्र में बीजेपी और उसके साथी दलों की सरकार बन सकती है। लोकसभा चुनाव में इसका उल्टा हुआ था। वहां महाविकास अघाड़ी ने ज्यादा सीटें हासिल की थी। इसीलिए जब विधानसभा चुनाव की शुरुआत हुई तो बीजेपी वाले अलायंस की जीत मुश्किल मानी जा रही थी लेकिन शिंदे सरकार ने वेलफेयर स्कीम्स का मेला लगा दिया और फिर लोग कहने लगे कि हवा बदल गई है। अगर महाराष्ट्र के एग्जिट पोल सही निकले तो ये बात सही साबित हो जाएगी।
इसी तरह झारखंड में जब हेमंत सोरेन को जेल भेजा गया तो लोग कहते थे, ये बीजेपी ने बड़ी गलती कर दी। विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन को सहानुभूति वाला वोट मिलेगा पर ये एग्जिट पोल में दिख नहीं रहा। अगर एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो लगेगा कि लोग हेमंत सोरेन सरकार से नाराज थे, उनके खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर ने काम किया। दूसरी बात ये है कि इस बार बीजेपी ने मजबूत गठबंधन बनाया, मिलकर चुनाव लड़ा। हो सकता है इसका फायदा मिला हो, लेकिन ये सब अटकलें हैं, अनुमान हैं, 23 नवम्बर को पता चलेगा कौन जीता, कौन हारा, किसकी सरकार बनी, किसकी सरकार गई।
Maharashtra, Jharkhand : Will exit polls prove right this time?
Maharashtra recorded 62.05 per cent polling, while Jharkhand, in its second phase, recorded 68.01 per cent voting on Wednesday, according to Election Commission of India, which described these figures as “approximate trend”.
The Commission said, this “approximate trend” does not include data of postal ballot voting, and that the trends were approximate because data from some polling stations take time to reach. EC said, final data for each polling station is shared in Form 17C with all polling agents.
There were no reports of violence in both these states.
All eyes were on exit polls from Maharashtra and Jharkhand, which hinted at advantage for BJP-led NDA in both the states, while some pollsters predicted neck-and-neck contests. The results will be known on Saturday November 23 (Counting Day).
Credibility of exit polls has taken a nose dive after pollsters were proved wrong during the Lok Sabha and Haryana assembly elections. In the United States too, while most exit polls had predicted a tough contest between Donald Trump and Kamala Harris, the pollsters were proved wrong, and Trump recorded an emphatic win, even in the swing states.
Exit polls for Lok Sabha elections in Maharashtra were proved wrong because Congress-led Maha Vikas Aghadi won more seats than the NDA. When electioneering began for assembly polls, BJP leaders were worried about the trends, but Eknath Shinde’s government brought in welfare schemes to change the wind in its favour. If the results go in favour of NDA, the pollsters may be proved right this time.
In Jharkhand, chief minister Hemant Soren was sent to jail and this led to experts predicting that BJP took a wrong step, because Soren would be getting sympathy votes. But this has not been reflected in Wednesday’s exit polls.
If exit polls are proved right this time, then it will be established that the anti-incumbency factor against JMM government worked. Secondly, BJP forged a strong alliance in Jharkhand and all the constituent parties fought together. The results may prove this right, but all these are speculations. On Counting Day, people will know who won and lose.
क्या दिल्ली में नक़ली बारिश हो सकती है ?
दिल्ली-NCR में तमाम कोशिशों के बावजूद भीषण वायु प्रदूषण कम नहीं हो रहा है. पिछले तीन दिन से दिल्ली में Air Quality Index Severe-Plus category में है. दिल्ली के बहुत से इलाकों में AQI 500 से ऊपर था. दिल्ली के कई इलाकों में एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया गया, पानी का छिड़काव किया गया. ग्रैप-4 के तहत तमाम पाबंदियों को सख्ती से लागू कराया जा रहा है लेकिन इन सबका कोई खास असर नहीं दिख रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही हाल रहा, अगर आसमान में धुंध की मोटी चादर छाई रही, तो अगले दो हफ्ते तक तो दिल्ली वालों को ज़हरीली हवा में ही सांस लेनी पड़ेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि सर्दी बढ़ रही है, तापमान गिरेगा, ऐसे में अगर हवा की रफ्तार न बढ़ी, बारिश न हुई तो दिल्ली वालों को फरवरी तक वायु प्रदूषण की मुसीबत झेलनी होगी.
दिल्ली में सबसे ज्यादा परेशानी आसमान में छाए धुंध की वजह से हो रही है और उसके दो ही उपाय हैं – या तो बहुत तेज़ हवा चले या फिर बारिश हो जाए. इसलिए अब दिल्ली में नकली बारिश कराने की चर्चा शुरू हो गई है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को चिट्ठी लिख कर सुझाव दिया है कि नकली बारिश पर फैसला लेने के लिए केंद्र सरकार तुरंत एक मीटिंग बुलाए. गोपाल राय ने कहा कि वो केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को इससे पहले भी तीन बार चिट्ठी लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया. इसलिए अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में दखल देना चाहिए.
नेता चाहें कितनी ही बातें कर लें, एक दूसरे पर चाहें जितने भी आरोप लगा लें, किसी के पास दिल्ली के वायु प्रदूषण का कोई ठोस हल नहीं है. मोटी सी बात है कि अगर तेज़ हवा चलेगी, तो प्रदूषण कम हो जाएगा. अगर बारिश होगी तो प्रदूषण खत्म हो जाएगा.
हवा चलाना किसी के बस में नहीं हैं. लेकिन कुछ लोग नकली बारिश की बात करते हैं. बनावटी बारिश cloud seeding के जरिए की जाती है. कई लोगों ने पूछा कि अगर दुबई में cloud seeding के जरिए बारिश कराई जा सकती है तो ये दिल्ली में क्यों नहीं हो सकता?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 और 2021 में artificial rain की कोशिश की गई थी पर नाकाम रही. इसका कारण ये है कि cloud seeding के लिए थोड़े बहुत बादल होना जरूरी है. हवा में नमी का होना ज़रूरी है, पर सर्दियों में दिल्ली की हवा ठंडी और सूखी होती है..cloud seeding या नकली बारिश का प्रोसेस हवा में नमी को बारिश में कन्वर्ट करता है. अगर बादल होते, हवा में नमी होती, तो कृत्रिम दबाव बनाकर बरसात कराई जा सकती थी लेकिन जानकार कहते हैं कि दिल्ली में इस समय तो ये संभव नहीं.
Artificial Rain in Delhi: Is it possible?
Air pollution in Delhi-National Capital Region has touched ‘severe-plus’ category for the third consecutive day, with people in the capital gasping for breath. Delhi government has asked 50 pc of its staff to work from home.
As early morning smog covered the capital, visibility at Delhi airport was 800 meters on Tuesday at 7 am. Since Monday morning, GRAP (Graded Response Action Plan) Stage 4 is in force, with all schools and colleges of Delhi University closed. Blanket ban has been imposed on construction/demolition activities, while entry of diesel trucks into Delhi has been prohibited.
Despite all-out efforts, air quality index is not improving. Experts say, if the situation continues, people in the capital region will be forced to inhale poisonous air. Everything now depends on wind speed and light rain, which can improve the air quality index.
Delhi Environment Minister Gopal Rai has requested Union Environment Minister Bhupendra Yadav to convene an urgent meeting to explore carrying out of artificial rain through seeded clouds as an emergency measure.
Leaders of different political parties are presently engaged in blame game, but the only solution available is this: If strong winds blow in the capital, or if there is sudden rain, the air quality index will improve dramatically. Blowing of wind cannot be controlled artificially, but artificial rain is being projected as one of the solutions.
Some people have suggested that if Dubai can carry out artificial rain through cloud seeding, why can’t Delhi? According to one report, efforts were made to bring artificial rain in Delhi in 2019 and 2021, but proved futile.
For cloud seeding, one needs clouds in the sky and a bit of moisture in the air. In winter, air in Delhi is usually cold and dry. Cloud seeding process can only convert moisture in the air into rain drops. Had there been clouds in Delhi’s sky and a bit of humidity in air, artificial rain was possible. Experts are ruling out this option for the moment.
महाराष्ट्र : शांतता, खेल चालू आहे
महाराष्ट्र के चुनाव में प्रचार खत्म हुआ. दिनभर ज़बरदस्त जुबानी जंग देखने को मिली. जहर भरे तीर चलाए गए. ऐसे ऐसे डायलॉग सुनाई दिए कि आप भी सुनकर चौंक जाएंगे. उद्धव ठाकरे ने कहा कि जो महाराष्ट्र को काटेगा, हम उसको काटेंगे, गद्दारों को जेल में डालेंगे. जवाब में एकनाथ शिन्दे ने कहा कि गद्दार तो वो हैं जिसने कुर्सी के लालच में बाला साहेब के विचार को छोड़ दिया, उसे जनता ज़रूर सज़ा देगी.
शरद पवार ने कहा कि सबसे पंगा लेना, लेकिन शरद पवार से नहीं, क्योंकि शरद पवार हिसाब बराबर करता है. जवाब में अजित पवार ने कहा कि पवार साहब बड़े है, लेकिन हिसाब तो जनता करती है. मल्लिकार्जुन खरगे ने बीजेपी और RSS को जहरीला सांप बता दिया. राहुल गांधी तो एक तिजोरी लेकर आ गए. तिजोरी दिखाकर कहा,अडानी मोदी एक हैं, इसीलिए सेफ हैं. विनोद तावड़े ने कहा..राहुल गांधी फेक हैं, धारावी के शेख हैं.
आज जो नेता एक दूसरे को ज़हरीला सांप और गद्दार कह रहे हैं, वो 23 नवम्बर के बाद एक दूसरे का दामन पकड़े दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होगा.
महाराष्ट्र की राजनीति के पिछले पांच साल छल-कपट और धोखे की सियासत के साथ थे. शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. महाराष्ट्र की जनता ने फडणवीस की सरकार के नाम पर वोट दिया पर चुनाव जीतने के बाद उद्धव ठाकरे ने धोखा दिया. मुख्यमंत्री बनने की शर्त रख दी. शरद पवार मैदान में आए. उन्होंने रातों रात बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्लान बनाया. अमित शाह के साथ मीटिंग हुई. फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार डिप्टी सीएम बने. लेकिन ये शरद पवार का फरेब था. उन्होंने सरकार गिरा दी. फिर उद्धव और कांग्रेस को बीजेपी का डर दिखाकर नई सरकार बनाई जो उनके काबू में थी.
उद्धव मुख्यमंत्री बने पर उनके अपने एकनाथ शिंदे ने उद्धव के नीचे से कुर्सी खींच ली. शिवसेना तोड़ दी. बीजेपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन गए. उद्धव से बदला पूरा हो गया लेकिन शरद पवार से हिसाब चुकाना बाकी था.
इस बार अजित दादा ने चाचा पवार के नीचे से पार्टी खींच ली. चुनाव निशान पर कब्जा कर लिया.
पांच साल में सबने एक दूसरे को धोखा दिया और ये सिलसिला आज भी जारी है. चुनाव के बाद क्या होगा, कौन किसके साथ जाएगा, कोई नहीं कह सकता. उद्धव बीजेपी के साथ आ सकते हैं, अजित फिर शरद पवार के घर जा सकते हैं. शिंदे मातोश्री में शरण ले सकते हैं, कुछ भी हो सकता है.
सच तो ये है कि पिछले पांच साल में जनता ने महाराष्ट्र की राजनीति में इतना बिखराव, इतनी तोड़फोड़, इतनी जोड़तोड़ देखी है कि अब किसी पर भरोसा करना मुश्किल है. प्रचार तो खत्म हो गया, पर छल-कपट और धोखे की राजनीति का दौर अभी बाकी है. मतदान खत्म होने के बाद सब बदल जाएंगे. ना कोई गद्दार होगा, ना ज़हरीला सांप, ना कोई किसी को डाकू कहेगा, ना चोर.
‘तू चल, मैं आया’ का खेल शुरू होगा. दरवाजे खुल जाएंगे. दरबार सज जाएंगे. सब एक दूसरे के करीब आ जाएंगे. इसीलिए कौन सा ऊंट किस करवट बैठेगा आज कहना मुश्किल है.
Maharashtra : Behind the scene, game is on
As the curtain fell on high decibel electioneering in Maharashtra, top leaders used cuss words and threats against their rivals, but it is the common voter which will take the last call on November 20. On the last day of campaigning, Uddhav Thackeray threatened to put “traitors” in jails who have cheated Maharashtra. In response, CM Eknath Shinde said, “traitors” were those who abandoned Balasaheb Thackeray’s ideology in order to grab the throne of power.
Sharad Pawar reminded rivals that he never forgets those who betrayed him, but his nephew Ajit Pawar said, it is the “janata which will do hisaab baraabar” (square up the account). Mallikarjun Kharge labelled BJP-RSS as “a poisonous snake”, while Rahul Gandhi brought a safe at a press conference to explain his view about Modi’s slogan “Hum Ek Hain Toh Safe Hain”. In response, BJP leader Sambit Patra dubbed Rahul as a “Chhota Popat”.
Let me explain in a nutshell what I think about these jibes and counter-attacks.
I will not be surprised if leaders who describe others as ‘snakes’ or ‘traitors’, may seek the help of the same political rivals after November 23 (Counting Day). The last five years of Maharashtra politics have witnessed several instances of treachery, tricks and backstabbings.
BJP fought the assembly elections in alliance with undivided Shiv Sena five years ago. The people of Maharashtra voted for Devendra Fadnavis to lead the new government, but soon after the results were out, Uddhav Thackeray ditched BJP and insisted that he be made the CM.
Sharad Pawar entered the scene, and a late night meeting was held with BJP, with Amit Shah attending. Fadnavis was sworn as CM and Ajit Pawar as Deputy CM, but it was a cunning move by Sharad Pawar, who later pulled out. He showed the BJP bogey and convinced Congress and Shiv Sena to ally with his party NCP.
The new government led by Uddhav was now under his remote control. Uddhav became the CM, but his trusted confidante Eknath Shinde brought the government down, after breaking away with his MLAs. Shinde became the CM in alliance with BJP. The revenge against Uddhav was complete and now it was time for teaching Sharad Pawar a lesson. Ajit ‘Dada’ was roped in to grab the party from uncle Pawar’s control. Ajit ‘Dada’ got the NCP symbol.
For five years, almost all the top politicians of Maharashtra were engaged in deceiving one another. The trend continues even today. Nobody knows what will happen after the election results are out. Nobody can say definitely who will go with whom after the elections. Uddhav may join hands with BJP, Ajit may do a homecoming. Shinde can go and take shelter in Matoshree. Anything can happen.
The sad truth is that Maharashtra politics, during the last five years, witnessed splits, treachery, deceit, political cut-and-thrust, on a massive scale. It is now difficult to trust any top politician in this state. The electioneering may have ended, but the rounds of treachery and deceit will continue.
Everything will change after the votes are cast. There will no “traitors” left, no “poisonous snakes” left, no “dakus” left, no “chor” left. It will be a “you go ahead, I will follow” (Tu Chal, Main Aaya) routine. The doors will reopen. As the political durbar begins, leaders may be drawn to one another like magnets. In Hindi, there is a proverb “Oont Kis Karwat Baithega” (which way the wind will blow), nobody knows. It is really difficult to predict.
बांग्लादेश में मौलाना हिन्दुओं का सर कलम करने की धमकी क्यों दे रहे हैं ?
बांग्लादेश में कट्टरपंथियों ने एक बार फिर हिन्दुओं को मारने काटने की सरेआम धमकी दी. कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश के इस्कॉन मंदिरों को ज़मींदोज़ करने की धमकी दी है. सड़कों पर उतरी हज़ारों की भीड़ ने नारे लगाए, इस्कॉन वालों को पकड़ों, उनकी गर्दनें काट दो, इस्कॉन को मिटा दो. बांग्लादेश के हिन्दुओं को ‘मोदी का दलाल’ कहा, हिन्दुओं के नरसंहार की धमकी दी गई.
हैरानी की बात ये है कि इस तरह के नारे सरेआम लगाए गए. मौलानाओं ने ज़हरीली तकरीरों में हिन्दुओं की गर्दन काट कर, यज्ञकुंड में डालने की धमकियां खुलेआम दी लेकिन बांग्लादेश की सरकार ने कट्टरपंथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. उनके खिलाफ एक बयान तक नहीं दिया. इसलिए बांग्लादेश के हिन्दू डरे हुए हैं. इस्कॉन ने भारत सरकार से दखल देने की मांग की है.
राजधानी ढाका में, कामचलाऊ सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनूस के घर के करीब कट्टरपंथियों ने प्रदर्शन किया. मौलानाओं ने हिन्दुओं के खिलाफ तकरीरें की. हिन्दुओं को खुलेआम मारने, हिन्दुओं का गला काटने की धमकियां दी. हिन्दुओं के खिलाफ ये रैली उलेमा ऐक्य (एकता) परिषद ने आयोजित की थी.
इस रैली में ढाका के बड़े-बड़े उलेमा शामिल हुए. सबसे पहले बांग्लादेश सचिवालय के आसपास इंसानी ज़जीर बनाकर इस्कॉन पर पाबंदी लगाने की मांग की गई. इस्कॉन को आतंकवादियों की जमात बताया गया. इस्कॉन मंदिरों को काफिर दहशतगर्दों का अड्डा बताया गया. इसके बाद मौलानाओं की तकरीरें हुई.
मौलानाओं ने कहा कि अगर सरकार इस्कॉन पर पांबदी नहीं लगाती तो बांग्लादेश के मुसलमान खुद इस्कॉन का खात्मा करेंगे, इस्कॉन के लोगों का सर कलम करेंगे. ढाका उलेमा परिषद ने इल्ज़ाम लगाया कि इस्कॉन, बांग्लादेश में भारत के एजेंट के तौर पर काम कर रहा है.
इस्कॉन के ख़िलाफ़ इस मुहिम की शुरुआत दो हफ़्ते पहले बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े शहर चट्टग्राम से हुई थी. चट्टग्राम में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस्कॉन पर बैन लगाने की मांग की थी जिसका इस्कॉन ने विरोध किया. वहीं के हिंदुओं ने जिहादियों का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करने का विरोध किया, जिसके बाद बांग्लादेश की पुलिस और सेना ने हिंदुओं के मुहल्ले में जमकर तांडव किया था. हिंदुओं को घर से घसीट-घसीटकर मारा-पीटा गया था. विश्व हिंदू परिषद ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे ज़ुल्म की निंदा की है.
बांग्लादेश के हिन्दुओं पर जुल्म के खिलाफ हमारे देश के मुस्लिम नेताओं ने भी आवाज़ उठाई है. समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा कि भारत सरकार को बांग्लादेश के हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए, बांग्लादेश की सरकार से बात करनी चाहिए और अगर फिर भी हिन्दुओं पर अत्याचार बंद न हों तो बांग्लादेश के हिन्दुओं को हिन्दुस्तान में पनाह देनी चाहिए.
प्रधानमंत्री मोदी गुरुवार को महाराष्ट्र के रायगड में इस्कॉन के साधु संतों से मिले थे. बाद में प्रधानमंत्री ने इस्कॉन के साधु संतों से बांग्लादेश के हालात को लेकर भी चर्चा की थी और उन्हें हर तरह से मदद का भरोसा दिया था.
असल में इस्कॉन ऐसा संगठन नहीं है कि इससे किसी को डरने की जरूरत हो. यह संगठन भगवान कृष्ण के भजन गाने, भगवद्गीता का प्रचार प्रसार करने वाले लोगों का हैं. ये कोई भारत का संगठन भी नहीं है और न ही इस्कॉन को कोई राजनीतिक झुकाव है.
मुझे लगता है कि बांग्लादेश में इस्कॉन तो बहाना है.असल में हिंदू समाज निशाना है, बांग्लादेश में हिंदुओं को डराने की कोशिश हो रही है, उनपर जुल्म हो रहा है, उनका जीना दूभर हो गया है क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथियों में कुछ लोग ऐसे हैं जो बांग्लादेश को पूरी तरह इस्लामी मुल्क बनाना चाहते हैं. वहां तालिबानी तरीकों वाली सरकार चलाना चाहते हैं.
वैसे तो ये बांग्लादेश का मूल चरित्र नहीं है लेकिन इस समय की बांग्लादेश की सरकार इन्हीं कट्टरपंथियों के कब्जे में है. उन्हें किसी को भी धमकाने, मारने, काटने का लाइसेंस मिला हुआ है और हिंदुओं के पास एकजुट रहने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है. हालांकि बांग्लादेश को जानने समझने वालों को लगता है कि कट्टरपंथियों की मनमानी अब ज्यादा दिन नहीं चल पाएगी.
Why Maulanas in Bangladesh are giving death threats to Hindus?
Islamic radical elements have now started giving threats to kill Hindus in Bangladesh and destroy all ISKCON (International Society For Krishna Consciousness) temples. Several thousand Jihadi protesters came out on the streets chanting slogans for beheading all ISKCON devotees. They have blamed Bangladeshi Hindus as pro-Modi ‘dalaals’ (brokers).
The interim government of Bangladesh headed by economist Chief Adviser Mohammed Yunus has not taken any action against the Islamic radicals and has chosen to remain a mute spectator. The top legal officer of Bangladesh government Attorney General Mohammed Asaduzzaman has already given a call to remove the word “secularism” from the Constitution, citing the reason that more than 90 per cent population is now Muslim. Hindus comprise only 8 per cent of Bangladesh’s 17 crore population.
There have been more than 2,000 attacks on Hindus and on their properties and temples in Bangladesh since August 4. ISKCON has appealed to the Indian government to intervene.
Top Islamic clerics addressed a rally held by Ulema Oikya (Unity) Parishad in Dhaka demanding immediate ban on ISKCON. The maulanas described ISKCON as a “terrorist group” and their temples as “dens of terrorists”.
Several maulanas alleged that ISKCON devotees are working as “agents of India” and are trying to defame Bangladesh.
The agitation against ISKCON began from Chittagong, where some Islamic radicals had demanded ban on this group of Krishna devotees. This led to counter-protests from Hindus, and Bangladesh army soldiers along with police dragged Hindus out of their homes and brutally beat them up.
Vishwa Hindu Parishad has condemned the atrocities on Hindus in Bangladesh. Samajwadi Party MP Mohibullah Nadvi has demanded that the Indian government should take steps to protecgt Hindus in Bangladesh. A delegation of ISKCON sadhus met Prime Minister Narendra Modi in Raigad, Maharashtra and discussed the situation in Bangladesh.
Contrary to jihadist views, the fact is ISKCON is an organization of Lord Krishna’s devotees founded by Bhaktivedanta Swami Prabhupada. It propagates the teachings of Bhagwad Gita among people. It is not an Indian organization. ISKCON has its branches in many countries and it has no political leanings.
I believe, Islamic radicals are only using the plea for ban on ISKCON as an excuse, and their real targets are Hindus living in Bangladesh. Since the ouster of Sheikh Hasina’s regime, Islamic radicals are openly using intimidatory tactics against Hindus to achieve their aim of making Bangladesh an Islamic state. They want a Taliban-type rule in Bangladesh and the present interim government is being remotely controlled by Islamic radicals led by Jamaat-e-Islami.
Islamic radicals seem to have got a licence to carry out violence against Hindus and other minorities. Hindus living in Bangladesh have now no other means but to remain solidly united to face these Islamic bigots. Those who understand Bangladesh politics and its governance feel that the arbitrary tactics of Islamic radicals will not last long.
Quota Within Quota : The Secret Weapon !
Prime Minister Narendra Modi is doing his best to explain to voters of Jharkhand and Maharashtra the exact meaning of his slogan, “Ek Hain, Toh Safe Hain”. On Thursday, at his rallies in Sambhaji Nagar, Raigadh and Mumbai, Modi read out the names of different backward and scheduled castes, and alleged that Congress wants to pit castes like Maani against Ghamandi, Luhar against Sutar, Sonar against Kumbhar, etc. “We must remain united, then only we can remain safe”, Modi said.
Caste reservation has emerged as a big issue in Maharashtra. It has emotional overtones. Already, Maratha and Dhankar communities have been agitating for reservation. But the question is: Why did Modi today read out the names of castes?
One must understand the background. Scheduled castes and scheduled tribes have their fixed reservation quota in government jobs. Some leaders have been complaining that some particular castes are cornering most of the reservation benefits, while other castes lag behind. The issue came up before the Supreme Court recently, and the apex court in August ruled by a 6:1 majority judgement that sub-classification within the scheduled castes and scheduled tribes was permissible.
The Supreme Court ruled that there was need for identifying creamy lawyer in SC/STs. By giving this verdict, the Supreme Court has changed the 20-year-old SC-ST reservation system. It said, those castes who need reservation more must be given benefits within the quota.
The SC ruling had come before the Haryana assembly elections. BJP had promised deprived castes that it would implement the apex court order. In the Haryana assembly on Wednesday, Chief Minister Nayab Singh Saini said, his cabinet has decided to notify sub-classification of scheduled castes for reservation in government jobs, which shall come into effect immediately.
Under the new sub-classification, 10 pc quota for “deprived” scheduled castes and remaining 10 pc quota for other scheduled castes will be implemented. Fifteen castes have been kept in the “other scheduled castes” and 66 castes have been kept in “deprived scheduled castes” lists. Haryana will become the first state which will implement “quota within quota” for scheduled castes.
If one goes through Modi’s remarks about caste reservation at his rallies in Maharashtra, one can easily understand what he wants to convey and what he wants to do. There are several scheduled castes in Maharashtra, which get less benefits from reservation. If “quota within quota” system is implemented in Maharashtra, it will benefit a large number of scheduled castes and tribes, who have been hitherto deprived of the benefits of reservation. No need to explain, who is going to benefit during the Maharashtra assembly election.
कोटे में कोटा : जीत का छुपा मंत्र
महाराष्ट्र में नरेन्द्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के नारे का मतलब समझाया. मोदी ने कहा कि कांग्रेस आरक्षण को खत्म करने का मंसूबा पाल रही है. मोदी ने कहा कि इस साजिश का पहला कदम है, आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग को जातियों में बांटों, फिर जातियों को आपस में लड़वाओ, इसके बाद जब समाज के ये वर्ग और कमजोर हो जाएं, तो आरक्षण को खत्म कर दो. महाराष्ट्र की रैलियों में मोदी ने कहा इसीलिए वो आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को सावधान कर रहे हैं, बार-बार कह रहे हैं, ‘एक रहेंगे, तो सेफ रहेंगे’.
संभाजी नगर, रायगढ और मुंबई की तीनों रैलियों में मोदी ने पहली बार जातियों के नाम गिनाए. अब तक रैलियों में मोदी ये कहते थे कि कांग्रेस आरक्षण विरोधी हैं, आरक्षण को खत्म करना चाहती है लेकिन आज पहली बार मोदी ने जातियों के नाम गिनाकर कहा कि कांग्रेस की साजिश क्या है, कांग्रेस चाहती क्या है, आरक्षण को खत्म करने के लिए कांग्रेस क्या क्या चालें चल रही है?
महाराष्ट्र के चुनाव में आरक्षण बड़ा मुद्दा है, जज़्बों से जुड़ा मुद्दा है. मराठा और धनकर समाज के लोग सड़कों पर है और चुनाव का वक्त है. इसलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों हालात को अपने पक्ष में करने के लिए ताकत लगा रही हैं. लेकिन आज मोदी ने जातियों के नाम क्यों गिनाए?
इसकी पृष्ठभूमि को समझने की जरूरत है. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था है, जिसका सब सम्मान करते हैं, पालन करते हैं. कुछ लोगों की शिकायत थी कि कुछ जातियों को आरक्षण का लाभ ज्यादा मिलता है और कुछ जातियां पीछे रह जाती हैं. ये मामला कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के सामने आया. सुप्रीम कोर्ट ने सबकी बात सुनने के बाद कोटे में कोटे की व्यवस्था कर दी. सबसे बड़ी अदालत ने कहा की SC-ST के आरक्षण में अलग से उपवर्गीकरण (sub-classification) किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुरानी व्यवस्था को बदल दिया. कहा, ज्यादा जरूरत वाले वंचित लोगों को आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला हरियाणा के चुनाव से पहले आया था. बीजेपी ने लोगों से वादा किया कि वो इसे लागू करेगी. बुधवार को ही हरियाणा की विधानसभा ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने ऐलान कर दिया कि उनके मंत्रिमंडल ने कोटे में कोटा की व्यवस्था लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है.
इसके तहत सरकारी नौकरियों में 10 परसेंट कोटा वंचित अनुसूचित जातियों के लिए और 10 परसेंट अन्य अनुसूचित जातियों के लिए होगा. अन्य अनुसूचित जातियों की श्रेणी में 15 जातियां और वंचित अनुसूचित जातियों की श्रेणी में 66 जातियां शामिल की गई हैं. इसका लाभ सबसे वंचित अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल 66 जातियों को मिलेगा. हरियाणा ऐसा पहला राज्य बन गया जिसने दलितों के आरक्षण में भी आरक्षण की व्यवस्था को लागू कर दिया.
इस संदर्भ में आप मोदी की बात सुनेंगे तो समझ जाएंगे कि वो क्या कहना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं. महाराष्ट्र में कुछ ऐसी जातियां हैं जिन्हें आरक्षण का लाभ कम मिलता है. अगर महाराष्ट्र में भी कोटे में कोटा का सिस्टम लागू किया गया तो उसका लाभ अनुसूचित जातियों और जनजातियों के एक बड़े वर्ग को मिलेगा. अब ये बताने की जरूरत नहीं कि चुनाव में इसका फायदा किसको होगा.
बाबा का बुलडोज़र : दम ना होगा कम
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोज़र कार्रवाई पर सख्त दिशानिर्देश बना दिए. दिल्ली नगर निगम के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिन्द की अर्ज़ी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि बुलडोज़र चल सकता है लेकिन क़ानून में तय प्रक्रिया का पालन किए बगैर किसी के घर या जायदाद पर बुलडोजर चलाना असंवैधानिक और गैरकानूनी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी एक व्यक्ति के अपराध की सजा उसके पूरे परिवार को नहीं दी जा सकती. ये अमानवीय है. इस मामले में अफसरों की मनमानी नहीं चल सकती. कोर्ट ने कहा कि अगर किसी घर या संपत्ति को गिराना है, तो उसके मालिक को कम से कम 15 दिन का नोटिस देना जरूरी है. मकान मालिक को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका देना होगा. पेशी के जरिए सुनवाई करनी होगी. फिर ये बताना होगा कि उसके जवाब में कमी क्या है और किस आधार पर बुलडोज़र चलाना ही एकमात्र विकल्प है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि नोटिस देने के बाद घर गिराने तक की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, बुलडोजर एक्शन की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि अगर कोई अफसर दिशानिर्देशों की अनदेखी करता है तो उसके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएगी. दोषी पाए जाने पर अधिकारी को अपने खर्चे पर गिराए गए घर को दोबारा बनाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आज सख्त लहजे का इस्तेमाल किया. जो दिशानिर्देश बनाए गए, वो बिल्कुल स्पष्ट हैं, सारी प्रक्रिया तय कर दी है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दो मुख्य बातें समझने वाली है. पहली, कोर्ट ने बुलडोज़र एक्शन पर रोक नहीं लगाई है. सिर्फ गाइडलाइन्स जारी की हैं. दूसरी बात, बुलडोजर एक्शन के लिए 15 दिन के नोटिस का प्रावधान पहले भी था. पहले भी आरोपी को सुनवाई का मौका दिया जाता था. अपील का अधिकार था. सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ ये तय करने की कोशिश की है कि बुलडोज़र एक्शन जल्दबाजी में न हो, जो निर्धारित प्रक्रिया है, उसके तहत कार्रवाई हो और वह पारदर्शी हो.
इसका असर ये होगा कि अगर कहीं आज कोई अपराध हुआ, तो आरोपी के घर पर कल बुलडोज़र नहीं चल पाएगा. बुलडोज़र पहुंचने में पन्द्रह दिन लगेंगे. जहां तक आज से पहले हुए बुलडोजर एक्शन का सवाल है, मेरे पास कुछ आंकड़े हैं. उसके मुताबिक, 2017 के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे सात राज्यों में दो हजार से ज्यादा बुलडोज़र एक्शन हुए. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा योगी आदित्यनाथ के राज में हुए एक्शन की हुई. क्योंकि योगी ने माफिया और दंगाईयों की संपत्ति को पूरी दंबगई से ज़मींदोज़ किया. मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, विकास दुबे, विजय मिश्रा जैसे तमाम माफिया की अवैध प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चलाकर उस जमीन पर गरीबों के लिए घर बनवा दिए.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार से कोई लेना देना नहीं हैं. जिन अर्ज़ियों पर कोर्ट का फैसला आया है, उसमें यूपी सरकार पक्षकार नहीं थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने ये केस दिल्ली नगर निगम के खिलाफ फाइल किया था लेकिन जब राजनीति बयानबाजी हुई, तो शाम को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. यूपी सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि इस फैसले से माफिया और पेशेवर अपराधियों पर लगाम लगाने में आसानी होगी. मतलब ये है कि योगी के तेवर नर्म नहीं होंगे.
Bulldozer and Baba: Action to continue
The Supreme Court, in its landmark judgement on “instant bulldozder justice”, has framed strict pan-India guidelines for demolition of properties. The guidelines say, no demolition of any alleged structure will be carried out without 15-day prior notice to the owner, both by registered post and pasting it on the outer walls of the property. The time period will tick from the date of receipt of notice by the owner. Notice shall delineate nature of unauthorised construction, specify violations, grounds of demolition and fix a date for personal hearing for the owner before a designated authority. The final order for demolition will not be implemented for 15 days to allow the aggrieved person to approach the courts.
Demolition must be videographed and the authorities will have to send a report to the civic authorities. Violations of guidelines will lead to initiation of contempt proceedings in addition to prosecution. Officers concerned will be asked to restore the demolished structure to its original state at their personal cost and they will also be liable to pay damages.
One must understand two major points relating to the judgement. One, the apex court has not imposed a “ban” on use of bulldozers for razing illegal properties. Only guidelines have been issued that must be followed strictly. Two, provision for giving 15-day prior notice was already there in the rule book. There was also provision to hear the accused and they had the right to appeal. What the apex court on Wednesday decided was to ensure that the bulldozers are not used in a hurry, and a transparent procedure must be followed.
The implications now will be that if any heinous crime takes place, bulldozers will not be used to raze the properties of the criminal immediately. Fifteen days’ time has been given. As far as bulldozer actions prior to the apex court verdict are concerned, I have some data. These data say, there were more than 2,000 bulldozer actions since 2017 in the states of Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan, Haryana, Maharashtra and Gujarat. But the biggest hue and cry was raised over demolitions done during UP CM Yogi Adityanath’s rule.
This was because Yogi’s administration had razed the ill-acquired properties of top gangster leaders and rioters like Mukhtar Ansari, Atiq Ahmed, Vikas Dubey, Vijay Mishra and others. Ill-gotten properties of mafia dons were razed and homes were built for the poor on those plots. The Supreme Court verdict has nothing to do with Yogi Adityanath’s government. UP government was not a party to the case which was before the Supreme Court. The apex court was hearing a petition filed by Jamiat Ulama-e- Hind against North Delhi Municipal Corporation and others. But when political leaders started reacting to the Supreme Court verdict, the UP government had to respond.
A spokesperson from UP government welcomed the verdict as a significant step forward and said, “this ruling will increase criminals’ fear of the aw, and it will make easier for the administration to keep a leash on mafia elements and organised professional criminals. The first requirement of good governance is rule of law. The rule of law applies to everyone.” The implication is quite clear. Yogi’s government is not going to tone down its drive against gangsters, rioters and criminal elements.