Rajat Sharma

My Opinion

बांग्लादेश में हिंदुओं पर ज़ुल्म : क्या यूनुस सरकार जिहादियों से डरती है ?

AKB30 जुमे की नमाज़ के बाद शुक्रवार को बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जम कर हिंसा हुई. बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े शहर चटगांव में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने ख़ूब उत्पात मचाया. जुमे की नमाज़ के बाद हिज़्बुत तहरीर, हिफ़ाज़ते इस्लाम और जमाते इस्लामी के कार्यकर्ता चटगांव के हिन्दू बहुल ठाकुरगांव, कोतवाली और टाइगर पास मुहल्लों में घुस गए.
कट्टरपंथियों ने पहले इस्कॉन के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की, इसके बाद इस्लामिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हिंदुओं की दुकानों और घरों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. हिंदुओं के साथ मार-पीट शुरू कर दी. तीन बड़े मंदिरों में तोड़फोड़ की. मौक़े पर पुलिस मौजूद थी लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया. पुलिस तमाशा देखती रही. इसके बाद जब हालात बेक़ाबू हो गए तो, चटगांव में फौज को तैनात कर दिया गया.
राजधानी ढाका में इस्कॉन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. ढाका की बैतुल मुकर्रम मस्जिद में जुमे की नमाज़ के बाद, हिफ़ाज़ते इस्लाम संगठन के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने इस्कॉन के ख़िलाफ़ मार्च किया. इस्कॉन पर पाबंदी लगाने की मांग की. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इस्कॉन एक आतंकवादी हिंदू संगठन है, उस पर बैन लगना चाहिए और इस्कॉन के कार्यकर्ताओं को जेल में डाल देना चाहिए.
बांग्लादेश सरकार ने इस्कॉन के 17 सदस्यों के बैंक खाते 30 दिन तक फ्रीज़ कर दिए हैं. इनमें इस्कॉन के गिरफ़्तार चिन्मय दास का भी बैंक खाता है. कोलकाता में इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने कहा कि खाते फ्रीज़ होने से इस्कॉन के सदस्यों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ कोलकाता में प्रदर्शन हुए. इंडियन सेक्यूलर फ्रंट के वर्कर्स ने बांग्लादेश के डिप्टी हाई कमिशन के बाहर प्रोटेस्ट किया. इंडियन सेक्यूलर फ्रंट, फुरफुरा शरीफ़ के मौलाना अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी है. विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने भी बंगाल में प्रदर्शन किया.
ब्रिटेन की संसद में कंज़रवेटिव पार्टी के सांसद, बॉब ब्लैकमैन ने सरकार से इस मामले में दख़ल देने की मांग की. बॉब ब्लैकमैन ने कहा कि इस्कॉन जैसे शांतिप्रिय संगठन को आतंकवादी संगठन बताकर लोगों को मारा जा रहा है, हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है, उनकी जायदाद लूटी जा रही हैं.
लोक सभा में में विदेश मंत्री जयशंकर ने एक लिखित उत्तर में बताया कि भारत सरकार ने हिन्दुओं की स्थिति पर बांग्लादेश की सरकार से बात की है और हिंदुओं को पूरी सुरक्षा देने को कहा है. जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के जान-माल की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी वहां की अंतरिम सरकार की है और सरकार को उम्मीद है कि बांग्लादेश की सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाएगी.
शनिवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने एक बयान में भारत सरकार से अपील की कि वह बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए विश्व जनमत बनाना शुरु कर दे. होसबाले ने इस्कॉन के गिरफ्तार साधू चिन्मय दास को जेल से तुरंत रिहा करने की मांग की.
ये बात सही है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर भारत सरकार चिंतित है. गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बैठक हुई. लेकिन मामला पड़ोसी मुल्क का है. इसलिए सिर्फ डिप्लोमेटिक चैनल्स का सहारा लिया जा सकता है.सिर्फ बांग्लादेश की सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है.
समस्या यह है कि बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार कट्टरपंथियों के दबाव में है, उनसे डरती है. जिस तरह से हिंसा पर उतारू भीड़ ने शेख हसीना को हटाया, उसके बाद सब भीड़ से डरते हैं.
अब सरकार पर नियंत्रण होने के बाद जमात-ए-इस्लामी और हिफाज़त-ए-इस्लाम जैसे संगठन हिंसा पर उतारू हैं. उन्हें न पुलिस का डर है, न फौज का, न ही उन्हें बांग्लादेश की छवि की परवाह है. इसलिए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे जुल्म को रोकने में वक्त लगेगा.

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Atrocities on Bangladesh Hindus : Does Yunus govt fear fundamentalists ?

AKB30 Islamic fundamentalist groups, chanting anti-Hindu slogans, vandalized and threw brickbats at three Hindu temples, Santaneshwari Matri Temple, Shani Temple and Santaneshwari Kali Temple, in Chattogram city of Bangladesh on Friday. They broke the gates and structures of the temples. Islamic jihadists then attacked shops and homes of Hindus in Thakurgaon, Kotwali and Tiger Pass localities of Chattogram. They beat up Hindus, but policemen remained mute spectators. Later army was deployed to maintain peace.

In Dhaka, thousands of jihadists came out on the streets demanding ban on ISKCON. The rally was organized by Hefazat-e-Islam, Hizbut Tahrir and Jamaat-e-Islami. The rally began from Baitul Muqarram, the largest mosque, after Jumma prayers.

Meanwhile, Bangladesh government’s Financial Intelligence Unit has frozen bank accounts of 17 people for 30 days. These include jailed monk Chinmoy Krishna Das, all linked to ISKCON. In Kolkata, ISKCON vice-president Radha Raman Das said, their outfit members are having problems in looking after their daily needs.

The developments had their effects in neighbouring West Bengal. In Kolkata, Indian Secular Front workers staged a protest outside Bangladesh Deputy High Commission demanding a stop to atrocities on Hindus. Indian Secular Front is led by Maulana Abbas Siddiqui of Furfura Sharif shrine. Vishwa Hindu Parishad supporters all staged protests in Kolkata.

In the House of Commons, British Conservative Party MP Bob Blackman demanded that the UK government should intervene. He alleged that innocent peaceloving members of ISKCON are being targeted by Islamic jihadists and Hindus are being subjected to atrocities. Their properties are being looted and this must end, he added.

In Indian Parliament, External Affairs Minister S. Jaishankar, in a written reply, said Indian government has spoken to Bangladesh authorities to ensure protection for Hindus and other minorities. MEA spokesperson Randhir Jaiswal said, Indian government was worried about the developments in Bangladesh since the ouster of PM Sheikh Hasina. He expressed hope that Bangladesh courts will ensure justice for jailed ISKCON monk Chinmoy Das.

RSS Sarkaryavah Dattatreya Hosabale in a statement on Saturday demanded immediate halt to atrocities on Hindus in Bangladesh and release of ISKCON monk Chinmoy Das from jail. Hosabale appealed to Indian government to rouse world opinion in order to pressurise Bangladesh government to ensure protection for Hindus.

It is a fact that the government of India is very much concerned about the conditions of Hindus living in Bangladesh. A top-level meeting between Home Minister Amit Shah, External Affairs Minister S. Jaishankar and National Security Adviser Ajit Doval took place on Thursday to decide about measures to be taken. Since the issue relates to a neighbouring country, diplomatic channels are being used to put pressure on the Bangladesh interim government.

The problem is: Mohammad Yunus, who heads the interim government, is under intense pressure from Islamic fundamentalists and fears them. After mobs indulged in violence to unseat Sheikh Hasina from power, other parties and leaders have started fearing mobs. Jamaat-e-Islami and Hefazat-e-Islam, after gaining control on the interim government, are now resorting to violence. Their workers fear neither the police, nor the army. They do not bother about Bangladesh’s world image. It seems that putting a stop to atrocities on Hindus in Bangladesh may take time.

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उद्धव से हाथ का साथ छोड़ने को किसने कहा?

AKB महाविकास अघाड़ी में हार के असर खुल कर दिखने लगे हैं. उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी के नेताओं ने महाविकास अघाड़ी से बाहर आने का सुझाव दिया है. पता ये लगा है कि उद्धव ने कल जब पार्टीेेे के उम्मीदवारों के साथ मीटिंग की थी, जिसमें पार्टी के नेताओं, विधायकों और हारे हुए उम्मीदवारों ने उद्धव को ये सलाह दी कि दूसरों के भरोसे चुनाव लड़ना ठीक नहीं है, जो होना था हो गया, अब BMC के साथ साथ महाराष्ट्र के कुल चौदह नगर निगमों के चुनाव होने हैं, स्थानीय निकाय चुनाव उद्धव के गुट को अपने दम पर लड़ना चाहिए, कांग्रेस और शरद पवार की NCP का साथ छोड़ना चाहिए..
उद्धव की शिवसेना के सीनियर लीडर अंबादास दानवे भी इस मीटिंग में मौजूद थे. दानवे ने कहा कि पार्टी के नेताओं को लगता है कि अगर महाराष्ट्र की 288 सीटों पर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उनकी सीटें ज्यादा आतीं. दानवे ये बोलने से बचते रहे कि उद्धव MVA से अलग होकर लड़ेंगे लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि अगर पूरे महाराष्ट्र में पार्टी अपना संगठन मजबूत करने के लिए ऐसा फैसला लेती है तो इसमें क्या गलत है.
MVA से अलग होने का फैसला उद्धव ठाकरे को लेना है लेकिन अंबादास दानवे ने कहा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ मंहगा पड़ गया. दानवे ने खुलकर कहा कि लोकसभा चुनाव में मिली जीत का अतिविश्वास हरियाणा में कांग्रेस को ले डूबा, यही अतिविश्वास महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की हार की वजह बना.
दानवे के बयान को बीजेपी ने मुद्दा बना दिया तो डैमेज कंट्रोल के लिए संजय राउत सामने आए. संजय राउत ने कहा कि मीटिंग में उद्धव ठाकरे को कुछ नेताओं ने अकेले लड़ने की सलाह जरूर दी,लेकिन ये उनकी निजी राय है, पार्टी ऐसा नहीं सोचती, इस चुनाव में हार की वजह EVM है.
उद्धव ठाकरे की पार्टी में कांग्रेस से पीछा छुड़ाने की बात उठना स्वभाविक है. शिवसेना और कांग्रेस का DNA अलग है.
बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना को हिंदुत्व के लिए लड़ने वाली शक्ति के तौर पर खड़ा किया था, इसीलिए शिवसेना बीजेपी की natural ally थी. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में रास्ता बदल लिया. इसका नुकसान हुआ.
शिंदे ने शिवसैनिकों की भावना को समझा, अपनी लाइन नहीं बदली. विधानसभा चुनाव में उन्होंने खुलकर बाला साहेब के हिंदुत्व की बात की. नरेंद्र मोदी ने चुनाव में उद्धव को ये कहकर छेड़ा कि वो राहुल गांधी से एक बार हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब कहलवाकर दिखाएं.
उद्धव इस बात का बचाव नहीं कर पाए कि वह उस कांग्रेस के साथ खड़े हैं, जो वीर सावरकर की देशभक्ति पर सवाल उठाती है. इसीलिए उद्धव के साथी अब उन्हें समझा रहे हैं. अगर राजनीति में अस्तित्व बरकरार रखना है तो बाला साहेब ठाकरे के रास्ते पर चलना पड़ेगा और उसकी पहली शर्त ये है कि कांग्रेस से दूर रहना होगा.

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Who is pressuring Uddhav to break off ties with Congress?

AKBThe after-effects of Maha Vikas Aghadi’s disastrous electoral defeat in Maharashtra assembly elections are showing. Senior leaders of Shiv Sena (UBT) have advised their party chief Uddhav Thackeray to come out of the Aghadi (alliance).

Reports say, when Uddhav was in a meeting with all MLAs and defeated candidates on Wednesday, several of them told him that it would not be wise to contest elections relying on alliance partners. They said, the party should now go alone in the Brihanmumbai Municipal Corporation elections and in polls to 14 other city corporations and local bodies.

These leaders told Uddhav Thackeray to cut off ties with Sharad Pawar’s NCP and Congress. They told him that had the party contested the assembly polls alone, it would have won more seats. The most vocal among these leaders was Ambadas Danve. He said, the alliance with the two other parties has proved costly and the alliance lost because of “too much overconfidence” after the Lok Sabha elections.

Shiv Sena (UBT) spokesperson Sanjay Raut tried to control the damage caused by Danve’s remarks, and said the defeat was due to EVM tampering. He said, the three parties would remain united in the local body polls too.

For Uddhav Thackeray’s party leaders seeking to cut off ties with Congress is natural. The DNAs of Shiv Sena and Congress are quite different. Late Balasaheb Thackeray had forged his party, Shiv Sena, as a big Hindutva force, and it was because of this that Shiv Sena was the natural ally of BJP for several decades. In his quest to become the Chief Minister, Uddhav Thackeray changed direction and this has hurt the party badly.

On the other hand, Eknath Shinde gauged the feelings of Shiv Sainiks correctly and did not change his ideological line. He spoke of Balasaheb’s Hindutva ideology openly during the recent assembly polls. Prime Minister Narendra Modi took a dig at Uddhav Thackeray during his campaign and challenged him to make Rahul Gandhi described Balasaheb Thackeray as “Hindu Hriday Samrat”.

Uddhav Thackeray could not explain to Shiv Sainiks why Shiv Sena joined hands with Congress, a party that questions Veer Savarkar’s patriotism. Uddhav’s colleagues are now trying to persuade him to go back to the Hindutva line. They are bluntly telling Uddhav that if Shiv Sena has to continue its existence in Maharashtra politics, it has to carry on with Balasaheb’s ideology. The first condition for this is to break off its relationship with the Congress.

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“Right if we win, Wrong if we lose!”

AKB Maha Vikas Aghadi parties are not ready to accept the recent electoral mandate in Maharashtra. MVA leaders are now planning anti-EVM protests to demand replacing Electronic Voting Machines (EVMs) with ballots. NCP founder Sharad Pawar and Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray met all defeated candidates on Wednesday and instructed them to file election petitions for matching EVM results with those of VVPATs. Plans are afoot to set up legal teams in the state and in Delhi.

Congress President Mallikarjun Kharge has already demanded that all EVMs should be replaced with ballots, with BJP leaders accusing that the Congress is now desperate and should rather replace Rahul Gandhi as its leader. Congress leaders argue that in June this year, MVA had won 30 out of 48 Lok Sabha seats in Maharashtra, but five months later, MVA won only 48 out of 288 assembly seats. How can this be possible, they ask.

Probably Congress leaders forgot that in June, 2019, BJP had won all 7 Lok Sabha seats in Delhi, but eight months later, BJP could win only eight out of a total 70 assembly seats in Delhi. If we go backwards, in 2014, BJP had won all seven Lok Sabha seats in Delhi by a huge margin, but a few months later, when assembly elections were held, Arvind Kejriwal’s Aam Aadmi Party registered a historic landslide win (67 out of 70 seats).

How voters can change their minds after such a short time gap can be illustrated from this year’s Lok Sabha results. BJP’s tally was 240 in this year’s Lok Sabha election. At that time, for the Congress, EVM was a boon. Nobody questioned about EVM battery, nor demanded matching with VVPAT results. Had BJP crossed the 300-mark, Congress would then have blamed its defeat on EVMs. Rahul Gandhi would, by now, have started his ‘Bring Ballots’ Padyatra.

Questions began to be raised after BJP’s victory in this year’s Haryana assembly election. Questions were raised about EVM batteries that were displaying 99 per cent charging. The Election Commission responded with a 1,500-page long reply. When questions were raised about VVPATs, EC replied that nearly 4 crore votes were matched with VVPAT results, and not a single result was found incorrect.

One interesting point to note is that, when the first complaints were raised about EVMs, Election Commission organized a Hackathon challenging anybody to come forward and hack an EVM. None came forward.

The issue was raised several times in the Supreme Court and every time, the apex court dismissed every petition. Anybody having any concrete proof or genuine grounds, can file petitions. Those who went to courts without any solid proof and put forth arguments based on surmises, had to return empty-handed.

To argue that EVMs worked correctly in Jharkhand and were fudged in Maharashtra is not a good thing for democracy. Seeding baseless doubts in the minds of people about the electoral process can create a situation as is being witnessed in neighbouring Pakistan.

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“हम जीते तो सही, हारे तो ग़लत”

AKB महाराष्ट्र में कांग्रेस, उद्धव की शिवसेना और शरद पवार की NCP अभी भी अपनी हार स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. महाविकास अघाड़ी के नेता अब EVM के खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं.
उद्धव ठाकरे ने अपनी पार्टी के हारे हुए उम्मीदवारों के साथ बैठक की, उन्हें निर्देश दिया है कि जहां जहां EVM पर शक है, उन विधानसभा क्षेत्रों में 5 परसेंट EVMs का VVPAT से मिलान कराने की पिटीशन फाइल करें.चूंकि ये नियम है कि काउंटिंग के पांच दिन बाद तक किसी भी असैंबली सेगमेंट में कोई उम्मीदवार वोटिंग मशीनों के रिजल्ट को VVPAT से मैच कराने की गुजारिश कर सकता है.
चूंकि महाराष्ट्र में 23 नवंबर को काउंटिंग हुई थी, VVPAT से मिलान कराने की पिटीशन फाइल करने का आखिरी दिन गुरुवार है. इसलिए हो सकता है ज्यादातर असेंबली सीटों पर उद्धव की पार्टी के नेता कल इस तरह की पिटीशन फाइल करें.
शरद पवार भी अपनी पार्टी के हारे हुए उम्मीदवारों को EVM के जरिए गड़बड़ी के सबूत इकट्ठा करने का निर्देश दे चुके हैं.. इसके बाद नाना पटोले ने भी एलान कर दिया कि कांग्रेस EVM के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में सिग्नेचर कैंपेन चलाएगी. पटोले ने कहा कि महाराष्ट्र में लोगों का वोट चुराया गया इसलिए कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में EVM की जगह बैलेट से वोट कराने की लड़ाई भी लडेगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे पहले की मांग कर चुके हैं कि अब ईवीएम की जगह बैलट का इस्तेमाल किया जाय.
महाराष्ट्र के चुनाव को लेकर कांग्रेस की दलील ये है..कि लोकसभा चुनाव में उनके गठबंधन ने 48 में से 30 सीटें जीतीं थीं. पांच महीने बाद विधानसभा में 288 में से सिर्फ 48 सीटें कैसे आ सकती हैं?
कांग्रेस के नेता भूल गए कि दिल्ली में जून 2019 में लोकसभा की 7 की 7 सीटें बीजेपी ने जीती थी. 8 महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए..बीजेपी को 70 में से सिर्फ 8 सीटें मिलीं.
इससे थोड़ा पहले चले जाएं. दिल्ली में 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सातों सीटें जबरदस्त मार्जिन से जीती थीं लेकिन कुछ महीने बाद जब चुनाव हुए तो केजरीवाल ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, 70 में से 67 सीटें हासिल की. तो मतदाता कुछ महीनों में अपना मन कैसे बदल लेता है?
इसका सबूत तो हमारे सामने है. लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी 240 पर अटकी तो कांग्रेस के लिए EVM महान थी, ना बैटरी पर सवाल उठाया, ना VVPAT मिलवाया. अगर उस समय बीजेपी 300 सीटें पार कर जाती तो कांग्रेस जरूर कहती कि EVM में गड़बड़ की गई. राहुल गांधी अबतक बैलेट यात्रा निकाल चुके होते.
हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस ने EVM पर सवाल उठाए. मशीनों की 99 परसेंट बैटरी का जिक्र किया. चुनाव आयोग ने 1500 पेज का जवाब भेजा. जब VVPAT के मिलान पर सवाल पूछा गया तो चुनाव आयोग ने बताया कि 4 करोड़ वोटों का VVPAT से मिलान किया गया और एक भी गलती नहीं निकली.
एक और दिलचस्प बात ये है कि जब पहली बार EVM की शिकायतें आईं तो चुनाव आयोग ने एक Hackathon आयोजित किया. कहा, जिसको भी शिकायत है आए hack करके दिखाए लेकिन कोई नहीं आया.
सुप्रीम कोर्ट में बार बार EVM को लेकर सवाल उठाए गए हैं. हर पीटिशन को कोर्ट ने खारिज किया है तो भी अगर किसी के पास कोई सबूत है, कोई genuine ग्राउंड है तो वो जरूर शिकायत कर सकता है, लेकिन बिना सबूतों के हवा-हवाई बात करना, जिन सवालों के जवाब दिए जा चुके हैं, उन्हें बार बार उठाना ठीक नहीं है.
झारखंड में EVM सही और महाराष्ट्र में गलत बताना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. क्योंकि जब चुनाव प्रक्रिया के प्रति लोगों के मन में आशंका होती है, तो हालात वैसे ही बनते हैं, जैसे हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के हो गए हैं.

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पाकिस्तान, इमरान और अवाम: शरीफ की मुसीबत

AKB इस्लामाबाद से मंगलवार को जो तस्वीरें आईं, वो दिल दहलाने वाली है. वहां की सड़कों पर खून बह रहा है. फौज आम जनता पर फायरिंग कर रही है.
इस्लामाबाद को इमरान खान के लाखों समर्थकों ने सोमवार और मंगलवार को घेरा हुआ था. पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात हैं. सुरक्षा बलों और इमरान खान के समर्थकों के बीच टकराव जारी है. पाकिस्तानी फोर्स के चार रेंजर्स मारे गए. तहरीके इंसाफ के तीन वर्कर्स की मौत हो गई, दर्जनों लोग घायल हुए हैं. इमरान खान के समर्थक उनकी रिहाई की मांग को लेकर इस्लामाबाद पहुंचे थे.
शहबाज़ शरीफ की सरकार ने इस्लामाबाद में घुसने के सारे रास्तों को कंटेनर की तीन तीन लेयर लगाकर बंद किया था. तीस फीट ऊंची बैरीकेड्स की दीवार खड़ी की गई थी. हालात बिगड़ने पर इस्लामाबाद में फौज तैनात कर दी गई. मंगलवार की रात देश भर में फौज ने इमरान के समर्थकों की व्यापक घरपकड़ की जिसके बाद इमरान की पार्टी ने प्रोटेस्ट स्थगित कर दिया है.
मंगलवार को कंटेनर के ऊपर हथियारों से लैस जवान पोजिशन लिए हुए खड़े थे. इसके बाद भी तहरीके इंसाफ के हजारों वर्कर इस्लामाबाद में दाखिल होने में कामयाब हो गए.
हालात ये है कि अब पाकिस्तानी फौज अपने ही लोगों पर हेलिकॉप्टर से गोलियां बरसा रही थी.
इस्लामाबाद में जो प्रोटेस्ट देखने को मिला, उसकी कॉल जेल में बंद इमरान खान ने दी थी. इमरान ने लोगों को 24 नवंबर की तारीख दी थी. कहा था, ये गुलामी की जंजीरें तोड़ने का दिन है. इमरान ने पाकिस्तान के लोगों से कहा कि उन्हें तय करना है कि वो बहादुर शाह जफर जैसी कैद चाहते हैं या टीपू सुल्तान की तरह आजादी का ताज चाहते हैं.
इमरान खान ने अपना संदेश लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बुशरा बीबी को दी और वही इस सारे प्रोटेस्ट को लीड कर रही थी. मांग ये है कि इमरान खान को जेल से रिहा किया जाए. लाखों लोग, जो सड़कों पर उतरे.
उनकी उम्मीद की दो वजहें हैं..एक तो पाकिस्तान की कोर्ट ने ज्यादातर मामलों में इमरान खान को बरी कर दिया है या जमानत दे दी है. दूसरी तरफ, अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद इमरान के समर्थकों को वहां से मदद मिलने की भी उम्मीद है लेकिन शहबाज शरीफ की सरकार जरा भी झुकने को तैयार नहीं है. वो फौज के बल पर इमरान के प्रोटेस्ट को कुचलना चाहती हैं.
सच बात है कि आज पाकिस्तान में ना संविधान है, ना सुरक्षा है, ना मानवाधिकार हैं, ना दो वक्त खाने के लिए रोटी है.इसीलिए लोग नाराज़ होकर फौज के सामने सीना तानकर खड़े थे. अपनी जान देने को तैयार थे.
पाकिस्तान के ये हालात भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है. जब किसी मुल्क में इस तरह की अराजकता होती है, हालात बेकाबू हो जाते हैं, तो पड़ोसी मुल्क पर आतंकवाद का खतरा बढ़ जाता है.

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Public Support for Imran : Challenge to Sharif

AKB Former Pakistan Prime Minister Imran Khan’s party Tehreek-i-Insaf on Tuesday night called off its protests in Islamabad after army launched a midnight crackdown on his supporters. Hundreds of supporters have been rounded up. On Tuesday, jailed former PM Imran Khan’s wife Bushra Bibi led a convoy of vehicles carrying thousands of supporters, who were engaged in pitched battles with security forces. Several persons were reportedly killed in violence and Army had to take over control of key installations in Islamabad.

Imran Khan, presently incarcerated in a jail in Rawalpindi, had given a call to “break the shackles of slavery” to his supporters. In a message to the people, he asked them to choose between Bahadur Shah Zafar, the last Mughal emperor who surrendered and died in Rangoon in British custody, and Tipu Sultan of Mysore, who died fighting the British. Imran Khan had entrusted his wife Bushra Bibi the responsibility of conveying his message to the people. PTI’s demand is that Imran Khan should be released from prison immediately. Since most of the courts in Pakistan have acquitted Imran Khan in several cases, his supporters have been demanding his immediate release. Secondly, after the victory of Donald Trump as President of USA, supporters of Imran Khan are hopeful of getting assistance from the US in dislodging Prime Minister Shahbaz Sharif’s government. But Shahbaz Sharif is unwilling to be cowed down. He wants to crush the protests with the help of the army.

One can say bluntly that there is no Constitution worth the name at the moment in Pakistan, nor is there any sense of security among the common people. Human rights laws have been given the go-by and people hailing from middle and lower middle classes are facing serious financial problems due to inflation and food shortage. It is in this context that people came out on the streets of Islamabad on Monday and Tuesday to face the security forces. They are ready to lay down their lives. Upheaval in Pakistan is not good news for its big neighbour India. When situation spirals out of control in a neighbouring country, terrorist forces come to the fore and the risks can spread.

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Stop Temple Mosque Disputes: Enough Is Enough!

akbThe death of four persons due to violence in Sambhal, Uttar Pradesh, is sad and unfortunate. It appears there was mischief at almost all levels, and at every stage. First, the court’s survey order came in a hurried manner, the survey was started hurriedly, rumours were then spread among communities about the survey, and while photography was being done at the mosque, rumour was spread that excavation has begun. Based on these rumours, a violent mob gathered, armed with stones and weapons. Locals say that several masked persons were brought from outside. Several people incited the angry crowd, and the mob surrounded the police force and attacked policemen. Police officials say, police took action in self-defence.

Had the local administration exercised utmost caution after the court order, a mob would not have gathered at the spot and the crowd would not have been instigated in the name of religion. The survey work, as per court order, could have been carried out peacefully. The order could have been contested in higher courts. What happened was the opposite. Already, communal tension is spreading to other places of UP. 25 people have been arrested, and seven FIRs filed against more than a thousand unidentified persons. They include the MP from Sambhal Ziaur Rahman Barq and local MLA Iqbal Mehmood’s son Sohail Iqbal.

Now, the investigation will take place, rioters will be identified, instigators will be arrested and will have to face court cases, but the lives of four youths will not return. This is the most shocking aspect. Leaders from both communities are now levelling charges and counter-charges. Nobody is going to listen even if they are shown concrete evidence or statements. Both sides will remain adamant and stick to their stands. Both sides will blame each other.

I think, all such dispues about temples and mosques, that are being raised almost daily, must stop. Nobody will benefit from confrontation. Solutions come out only through mutual dialogue. Years ago, the great Hindi poet Harivanshrai Bachchan wrote, “Bair Badhaate Mandir Masjid…” (temples, mosques can lead to enmity). Even the RSS chief Mohan Bhagwat had recently said, it would not be proper to find Shiv Lingams under every mosque. Our laws are quite clear. The laws underline the point that there is no need to create fresh disputes about religious shrines that have already been built.

One must not forget that when people fight in the name of religion, they go the extent of killing one another. Leaders try to grind their political axes in such crises. It is the public which suffered because of whatever happened in Sambhal. And political parties are now trying to score gains.

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बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद: ये झगड़े बंद करो !

akbइस वक्त उत्तर प्रदेश के संभल में जबरदस्त तनाव है. जामा मस्जिद के सर्वे के विरोध में रविवार को जो हिंसा हुई, उसमें चार नौजवानों की मौत हो चुकी है. पुलिस ने 25 लोगों को गिरफ्तार किया है. एक हज़ार से ज्यादा अज्ञात लोगों के खिलाफ सात मुकदमे दर्ज किए गए हैं. संभल के सांसद ज़िया उर रहमान बर्क और संभल के विधायक इक़बाल महमूद के बेटे सोहेल इक़बाल समेत कुल 15 लोगों के खिलाफ नामज़द FIR दर्ज हुई है. 24 पुलिसवाले घायल हुए हैं.
संभल में 4 लोगों की मौत दुखद है, दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसा लगता है इस मामले में हर स्तर पर, हर मोड़ पर शरारत हुई.
पहले तो सर्वे का ऑर्डर जल्दबाजी में आया. फिर सर्वे भी जल्दबाज़ी में शुरु हुआ. फिर सर्वे को लेकर अफवाह फैलाई गई. मस्जिद में जहां सिर्फ फोटोग्राफी हो रही थी, वहां खुदाई की बात फैलाई गई. अफवाह की वजह से पत्थर और हथियार लेकर भीड़ इकट्ठा हुई. इलाके के लोग कहते हैं कि ये नकाबपोश बाहर से आए थे. कुछ लोगों ने इस भीड़ को भड़काया. भीड़ ने पुलिस को घेरकर हमला किया और पुलिस का दावा है कि उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए एक्शन लिया.
अगर प्रशासन ने सावधानी बरती होती, तो इतनी भीड़ इकट्ठी नहीं होती और भीड़ को मज़हब के नाम पर भड़काया न गया होता, तो वो पुलिस पर हमला न करती. सर्वे का काम शांति से हो सकता था. उस पर जंग अदालत में लड़ी जा सकती थी, पर जो हुआ वो बिलकुल उसका उल्टा था.
अब जांच हो जाएगी. दंगा करने वालों की पहचान हो जाएगी. भड़काने वालों को पकड़ा जा सकता है. उन पर केस भी चलाया जा सकता है लेकिन जिन 4 नौजवानों की मौत हुई, उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता .ये इस मामले का सबसे शॉकिंग पहलू है.
अब दोनों तरफ के लोग एक दूसरे पर साजिश के इल्जाम लगा रहे हैं. इन्हें कितने भी सबूत दिखा दिए जाएं, कितने भी बयान सुनवा दिए जाएं, कोई नहीं मानेगा. दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहेंगे. दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराएंगे.
मेरा तो ये कहना है कि मंदिर, मस्जिद के नाम पर रोज़ रोज़ के ये झगड़े बंद होने चाहिए. टकराव से कभी किसी का भला नहीं हुआ. जब भी रास्ता निकला है तो आपसी बातचीत से निकला है.
बरसों पहले डॉ हरिवंशराय बच्चन ने लिखा था, “बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद…”. धार्मिक स्थलों के विवाद से किसी का उपकार नहीं होता. R S S प्रमुख मोहन भागवत ने थोड़े दिन पहले कहा था “हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूंढना उचित नहीं है “. हमारा कानून भी यही कहता है कि जो धार्मिक स्थल बन चुके हैं, उनको लेकर नये सिरे से विवाद उठाने की ज़रूरत नहीं.
जब मज़हब के नाम पर लोग लड़ते हैं, एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, तो नेताओं को अपनी लीडरी चमकाने का मौका मिलता है. संभल में जो कुछ हुआ, उसका नुकसान आम जनता को हुआ और राजनीतिक दलों ने उसका पूरा पूरा फायदा उठाया.

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अडानी बहाना, मोदी निशाना : संयोग या प्रयोग ?

AKB एक बार फिर गौतम अडानी राजनीति का मुद्दा बन गए. राहुल गांधी ने एक बार फिर गौतम अडानी का नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला किया. राहुल गांधी ने इस बार बहाना बनाया अमेरिका के कोर्ट में गौतम अडानी पर लगे इल्जाम का.
अमेरिका की एक कोर्ट में FBI ने आरोप लगाया है कि गौतम अडानी ने भारत में सौर बिजली के वितरण का ठेका दिलवाने के लिए एक अमेरिकन कंपनी से की राज्य सरकारों के अफसरों को रिश्वत दिलवाने की कोशिश की. छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओड़िशा के अफसरों को दो हजार करोड़ रु. से ज्यादा की रिश्वत ऑफर करवाई..
FBI का कहना है कि गौतम अडानी ने अमेरिका में बॉन्ड्स के जरिए लोगों से पूंजी ली, लेकिन रिश्वत की बात निवेशकों से छुपाई. फेडरल कोर्ट ने इसे निवेशकों के साथ धोखा मानकर इसकी जांच का आदेश दिया. इस आधार पर गौतम अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी और कंपनी के डायरेक्टर विनीत जैन समेत सात लोगों पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा.
अमेरिका में देर रात ये हुआ और सुबह सूरज निकलने से पहले विपक्ष के नेता सक्रिय हो गए. राहुल गांधी ने राशन पानी लेकर नरेन्द्र मोदी पर हमला बोल दिया. इसके बाद अखिलेश यादव, संजय राउत, फारुक़ अब्दुल्ला समेत तमाम नेताओं ने मोदी सरकार पर हमला बोला.
राहुल गांधी ने कहा कि वो लिखकर दे सकते हैं कि गौतम अडानी गिरफ्तार नहीं होंगे क्योंकि अडानी बीजेपी की फंडिग का स्रोत हैं, नरेन्द्र मोदी अडानी के कब्जे में हैं.
न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में FBI ने ये आरोप लगाया है कि 2020 से 2024 के बीच गौतम अडानी और उनकी कंपनी के अधिकारियों ने सोलर एनर्जी का प्लांट लगाने और प्लांट में बनी बिजली को बेचने के ठेकों के लिए सरकारी अफसरों को 2029 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की.
FBI का कहना है कि गौतम अडानी ने अमेरिकी निवेशकों से करीब पौने दो हजार करोड़ रूपए इन्वेस्ट कराए , लेकिन इस रिश्वत की जानकारी निवेशकों को नहीं दी. इसलिए ये धोखाधड़ी का मामला बनता है.
FBI ने अदालत में दावा किया कि अडानी ने जो ठेका हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को घूस ऑफर की, उस कॉन्ट्रैक्ट से अडानी ग्रुप को अगले 20 साल में करीब 17 हजार करोड़ रु. का मुनाफ़ा होने वाला था. इसके बाद अमेरिका के सिक्योरिटीज़ ऐंड एक्सचेंज कमीशन ने भी गौतम अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी के अलावा सीरिल कैबनीज़ के ख़िलाफ़ सिविल सूट दाख़िल किया.
अमेरिका में अडानी के खिलाफ इल्जाम लगे. पहला असर शेयर बाज़ार पर हुआ. अडानी ग्रुप के शेयर्स में 10 से 20 परसेंट तक की गिरावट आई, जिसके कारण निवेशकों के करीब ढाई लाख करोड़ रुपए डूब गए.
दूसरा असर ये हुआ कि अडानी ग्रीन कंपनी ने अमेरिका में शेयर मार्केट से पैसे जुटाने के लिए 60 करोड़ डॉलर का जो बॉन्ड जारी किया था, उसको वापस ले लिया गया.
अडानी ग्रुप ने अपने बयान में ग्रुप पर लगाए गए सारे इल्ज़ामात को ग़लत और बेबुनियाद बताया. बयान में कहा गया कि अडानी ग्रुप क़ानून का पालन करता है, जो आरोप लगाए गए हैं, उनका जवाब कानूनन दिया जाएगा.
अडानी के मामले के दो पहलू हैं. एक राजनीतिक, दूसरा वित्तीय. राहुल गांधी पिछले 10 साल से गौतम अडानी को नरेन्द्र मोदी पर हमला करने का हथियार बनाए हुए हैं. अडानी बहाना, मोदी निशाना, लेकिन राहुल इसमें ज्यादा कामयाब नहीं हो पाए. आज भी जिन राज्यों में अफसरों को रिश्वत देने का इल्जाम लगा, उनमें कहीं बीजेपी की सरकार नहीं है. इसमें कोई मोदी कनेक्शन नहीं मिला. इसीलिए मोदी की इमेज पर तो चोट नहीं पहुंची लेकिन शेयर मार्केट में अडानी के शेयरों में पैसे लगाने वालों को भारी नुकसान हुआ.
ये भी एक पैटर्न है. केस उस वक्त आया जब अमेरिका में अडानी की कंपनी का 600 मिलियन डॉलर का बॉन्ड मार्केट में था. इस खबर के बाद अडानी को बॉन्ड वापस लेना पड़ा.मार्केट में अडानी के शेयर बहुत बुरी तरह गिरे.
पिछली बार जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी, उस वक्त भी अडानी 20 हजार करोड़ का FPO लाने वाले थे.उस वक्त भी उन्हें शेयर मार्केट में नुकसान हुआ था.
तो क्या ये महज संयोग है? पिछली बार जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी. उस वक्त संसद का सत्र शुरू होने वाला था और पूरा सत्र हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर हंगामे की भेंट चढ़ गया.
इस बार भी जब अमेरिका से अडानी के खिलाफ चार्जशीट की खबर आई तो तीन दिन बाद संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है और आज राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया कि विपक्ष अडानी के मुद्दे पर सरकार को घेरेगी, यानी फिर संसद में हंगामा होगा. क्या ये भी एक संयोग है? या सोचा समझा प्रयोग है?

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Adani and Modi: Coincidence or Conspiracy?

AKB The indictment of billionaire Gautam Adani by US prosecutors in a New York court has become a hot political issue in India. Taking a cue, Leader of Opposition in Lok Sabha Rahul Gandhi launched an attack on Prime Minister Narendra Modi and demanded Adani’s arrest and interrogation. US Department of Justice charged Gautam Adani, his nephew Sagar Adani and few others for giving $265 million bribery to secure solar power supply contracts in India.

Separately, US Securities Exchange Commission (SEC) charged Gautam and Sagar Adani and fomer Azure director Cyril Cabanes with Freign Corruption Prevention Act (FCPA) violations. SEC accused them of raising money from US investors through bonds by giving “false and misleading statements” that they were not involved in bribery.

These development took place in the US on Wednesday night, and by early Thursday dawn, Rahul Gandhi, Shiv Sena (UBT) leader Sanjay Rout, SP supremo Akhilesh Yadav, National Conference leader Dr Farooq Abdullah and others began launching attacks on Narendra Modi. Rahul Gandhi said, he was ready to give it in writing that Gautam Adani would not be arrested by Indian government because he alleged that Adani was “source of funding” for BJP.

In its statement, Adani Group dismissed bribery allegations as “baseless”. The Adani Group said, “As stated by the Department of Justice itself, charges in the indictment are allegations and the defendants are presumed innocent unless and until proved guilty. All possible legal recourse will be sought…..The Adani Group has always upheld and is steadfastly committed to maintaining the highest standards of governance, transparency and regulatory compliace across all jurisdictions of its operations.”

There are two aspects, political and financial, to this Adani issue. For the last ten years, Rahul Gandhi has been using Gautam Adani as his tool to attack Narendra Modi. For him, Adani was the issue, and Modi continues to be the target (Adani Bahaana, Modi Nishaana). Rahul could not make his allegations stick. Even today, the FBI’s bribery charges do not mention any state government where BJP is in power.

According to FBI, Rs 2029 crore were promised as bribes to officials, following which Tamil Nadu, Odisha, Jammu & Kashmir, Chhattisgarh and Andhra Pradesh signed power sharing agreements with central public sector undertaking, SECI, between July 2021 and February 2022. Tamil Nadu is ruled by DMK, Odisha was then ruled by Biju Janata Dal, Chhattisgarh was ruled by Bhupesh Baghel’s Congress government and Andhra Pradesh was ruled by YSRCP chief Jagan Mohan Reddy. There was no “Modi connection” in any of these deals. Modi’s image is not going to be dented because of this indictment. But Indian stock exchanges were hit badly on Thursday.

This is part of a pattern. The indictment was done at a time when Adani Group was going to raise $600 million in the US bond market. The group had to withdraw itself from the US bond market, and Adani group shares were hit badly at the stock exchanges. Earlier, when the Hindenburg report came, Adani group was going to come with Rs 20,000 crore FPO. At that time too, Adani group shares were badly hit at the stock exchanges.

Are both these developments a coincidence (‘sanyog’)? When the Hindenburg report came, Parliament session was going to begin and the entire session was stalled due to continuous pandemonium.

This time too, the indictment came three days before Parliament session was to begin. On Thursday, Rahul Gandhi said, the opposition would launch attacks on the government inside the House. In other words, Parliament proceedings will be stalled. Is it also a coincidence (sanyog)? or, an experiment (prayog)?

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