Rajat Sharma

My Opinion

डॉक्टर की रेप-हत्या: गुनहगारों को कौन बचा रहा है?

akb कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कल आधी रात के आसपास तकरीबन एक हज़ार लोगों की भीड़ फाटकों को तोड़ते हुए अस्पताल में जबरन घुस गई और पुरुष और महिला इमरजेंसी वॉर्ड को तहस-नहस कर दिया. भीड़ ने कीमती मशीनें, दवाएं, कम्प्यूटर, सीसीटीवी कैमरे नष्ट कर दिए और डॉक्टरों के रेस्टरूम और पुलिस बैरक में भी तोड़फोड़ की. भीड़ ने पुलिस वाहनों में आग लगा दी और डॉक्टरों के धरनास्थल को तहस -नहस कर दिया. दरअसल बुधवार की रात को कई हज़ार लोग आंदोलनकारी डॉक्टरों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए धरनास्थल पर पहुंचे थे, और उपद्रवियों ने इसी का फायदा उठाया. कोलकाता पुलिस को आंसू गैस छोड़नी पड़ी और लाठीचार्ज करना पड़ा. सुबह कोलकाता पुलिस के कमिशनर विनीत गोयल ने आरोप लगाया कि मीडिया पुलिस के खिलाफ झूठा और सुनियोजित कैम्पेन चला रहा है और ये घटना उसी का नतीजा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी ने कोलकाता पुलिस के आग्रह किया कि वो 24 घंटे के अंदर उपद्रवियों को पकड़े, चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हो. बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में आरोप लगाया कि इस उपद्रव के पीछे तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का हाथ था और ये सब कुछ ममता बनर्जी के इशारे पर हुआ. घटनास्थल पर मौजूद आंदोलनकारी डाक्टरों का आरोप था कि ये उपद्रवी उपरी मंज़िल पर सेमीनार हॉल में जाकर तोड़फोड़ करना चाहते थे, चहां महिला डॉक्टर के साथ 9 अगस्त को बलात्कार हुआ था और उसके बाद निर्ममता से उनकी हत्या हुई थी. इस नृशंस हत्या को लेकर ममता बनर्जी की अपनी पार्टी में भी आवाज उठी. तृणमूल कांग्रेस के सासंद सुखेन्दु शेखर राय, डॉक्टर की बर्बर हत्या के विरोध में हुए प्रोटेस्ट में शामिल हुए. सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि कोलकाता पुलिस किसी काम की नहीं हैं, पुलिस ने इस केस में लापरवाही की, सबूतों के साथ छेड़छाड़ की. राय ने कहा कि जो पुलिस तीन दिन के बाद घटनास्थल पर डॉग स्क्वायड के साथ पहुंची हो, उस पुलिस से क्या उम्मीद की जाए. डॉक्टर की हत्या के विरोध में इस वक्त भी पूरे देश में प्रदर्शन जारी हैं. डॉक्टर्स ने कई राज्यों में कैंडल मार्च निकाला, राजनीतिक दलों ने प्रोटेस्ट किया. अब सबसे ज्यादा नाराजगी इस बात को लेकर है कि अब तक ममता बनर्जी ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष के खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया. कोलकाता पुलिस ने संदीप घोष से पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा. पश्चिम बंगाल की सरकार ने संदीप घोष के हटाने के बजाए उसका ट्रांसफर करके नेशनल मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया था. इससे नाराज छात्रों ने नेशनल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के घर और ऑफिस में ताला डाल दिया. अब राजनीतिक दल और प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर डॉक्टर संदीप घोष की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. हालांकि सीबीआई ने इस केस की जांच शुरू कर दी है, डॉक्टर की हत्या के आरोपी संजय रॉय को अपनी हिरासत में ले लिया, मेडिकल कॉलेज के सेमीनार हॉल से सबूत इकट्ठे किए. अब सीबीआई उन सारे लोगों से पूछताछ करेगी जो उस रात हॉस्पिटल में मौजूद थे,जब डॉक्टर की हत्या हुई. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ममता की पुलिस ने इस जघन्य हत्या को पहले आत्महत्या , फिर un-natural death क्यों कहा, पुलिस ने सबूतों को मिटाने की कोशिश क्यों की, ममता की सरकार में वो कौन है जो प्रिंसिपल संदीप घोष को बचाने की कोशिश कर रहा है. संदीप घोष ऐसा कौन सा राज़ जानते हैं जिसके कारण तमाम केसों में शिकायत होने के बाद भी डॉक्टर घोष के खिलाफ एक्शन नहीं हुआ. संदीप घोष पर सवाल उठने की एक नहीं, कई वजहें हैं. पहली तो ये कि मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के तौर पर इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश की, हत्या को आत्महत्या का रंग देने की कोशिश की. दूसरा, डॉक्टर संदीप घोष का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड भी काफी गड़बड़ है लेकिन अपनी राजनीतिक पहुंच के कारण संदीप घोष के खिलाफ कभी कोई एक्शन नहीं हुआ. संदीप घोष पेशे से आर्थोपेडिक डॉक्टर हैं और जिस वक्त ये घटना हुई, उस समय वो आर जी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल थे. वो 4 साल से इस पद पर थे और इन चार सालों में उनके खिलाफ कई बार शिकायतें हुई. मामला विजिलेंस विभाग तक गया. दो बार उनका ट्रांसफर हुआ लेकिन कुछ ही दिन बाद उन्हें फिर से इसी मेडिकल कॉलेज में प्रिंसिपल के तौर पर बहाल कर दिया गया. इससे उनके रसूख और राजनीतिक कनेक्शन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. डॉक्टर संदीप घोष पर भ्रष्टाचार के कई इल्जाम लग चुके हैं. उन पर गलत तरीके से बायो-मेडिकल कचरा बेचने का आरोप है, अस्पताल की पार्किंग में घोटाले का इल्जाम है और तमाम टेंडरों में रिश्वत लेने का आरोप है. आरजी कर मेडिकल कॉलेज में काम कर चुके डॉक्टर अख्तर अली ने कहा कि संदीप घोष हॉस्पिटल में कमीशनखोरी का रैकेट चलाते थे, टेंडरों में 20 परसेंट कमीशन लेते थे और अगर कोई उनके खिलाफ आवाज उठाए तो जूनियर डॉक्टर्स को फेल करने की धमकी देते थे और अपने काम के लिए जूनियर डॉक्टर्स को गेस्ट हाउस में बुलाकर शराब पिलाते थे. बुधवार को इस मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि कोलकाता में लेडी डॉक्टर की वीभत्स हत्या से पूरा देश स्तब्ध है, पीडिता को न्याय दिलाने की, आरोपियों को बचाने की कोशिश अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. राहुल गांधी ने लिखा कि इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मेडिकल कॉलेज जैसी जगह पर डॉक्टर्स सुरक्षित नहीं हैं तो किस भरोसे अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें? राहुल का पोस्ट आने के बाद ममता बनर्जी ने जवाब दिया. ममता ने कहा कि कांग्रेस और सीपीएम के लोग उन पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन इन पार्टियों के नेताओं को बताना चाहिए जब उनके राज्यों में महिलाओं पर अत्याचार हुए, तब उन्होंने क्या किया. ममता ने कहा कि वह सभी राजनीतिक दलों से कहना चाहती हैं कि इस तरह के मामलों में सियासत न करें.. ममता बनर्जी ने कहा कि जब उन्हें कोलकाता में लेडी डॉक्टर की हत्या की खबर मिली, उस वक्त वो झाड़ग्राम में थी. उन्होंने उसी वक्त पुलिस कमिश्नर से बात की, तुरंत मौके पर जाकर जांच करने और सभी अपराधियों को पकड़ने का निर्देश दिया. ममता ने कहा कि उन्होंने लेडी डॉक्टर के मां-बाप से बात की, उन्हें सांत्वना दी, न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया. ये बात हैरान करने वाली है कि जिस मेडिकल कॉलेज में इतना जघन्य अपराध हुआ, उसके प्रिंसिपल से पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की. प्रिंसिपल को हटाने के बजाए उसे दूसरे कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया गया. कौन है वो जो संदीप घोष को संरक्षण दे रहा है? क्या संदीप घोष का किसी पर इतना एहसान है ? क्या उसके सीने में छुपा हुआ कोई राज़ है? मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर बेटी के साथ जो जुल्म हुआ वो कितना वहशियाना, कितना भयानक था, इसका पता मंगलवार को मुझे इस केस में पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के डिटेल्स बताते समया महसूस हुआ. एक बार को रूह कांप उठी. पोस्टमॉर्टम का जिक्र आया तो कलेजा मुंह को आ गया. ये सोचकर दिल रोता है कि उस बेकसूर लड़की के माता पिता पर क्या बीत रही होगी? ये केस बहुत गंभीर है, ऐसे मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, न किसी को बचाने की कोशिश होनी चाहिए. सभी संवेदनशील लोगों को मिलकर सोचना चाहिए कि ऐसा क्या करें कि ऐसी दरिंदगी, ऐसी हैवानियत फिर कभी न हो.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

akb

Kolkata doctor’s rape-murder : Who is shielding the culprits?

AKBThere was mayhem at Kolkata’s R G Kar Medical College and Hospital on Wednesday midnight, as a mob of nearly 1,000 unidentified persons attacked the dais on which doctors were protesting, forcibly entered the hospital by breaking the gates and vandalized both the male and female emergency wards, emergency CCU and observation wing. They destroyed costly machines, medicine stocks, computers and cctv cameras. They also ransacked doctors’ changing room and police barracks. The violent mob also set fire to police vehicles. This sudden attack took place even as a huge crowd had gathered at night to join in a solidarity protest with the agitating doctors. Several protesters toppled police barricades set outside the hospital, and police had to fire tear gas shells and resort to lathicharge. Later, Kolkata Police commissioner Vineet Goyal accused the media of “running an incorrect, motivated and malicious campaign against the police”. The police chief claimed that his force was not trying to “save any person”. Trinamool Congress leader and Mamata Banerjee’s nephew Abhishek Banerjee demanded that police must bring to book all those responsible for the midnight attack within 24 hours, “regardless of which party they belonged to”. BJP’s Leader of Opposition Suvendu Adhikari alleged that there were “Trinamool goons” among the mob that vandalized the hospital. Adhikari wrote on social media: “Mamata Banerjee has sent her TMC goons to the apolitical protest rally near R G Kar Medical College and Hospital. She thinks that she is the most shrewd person in the whole world and people won’t be able to figure out the cunnig plan that her goons appears as protesters would mix with the crowd and carry out vandalism inside the hospital. They were given safe passage by the police, who either ran away or looked the other way, so that these lumpens would enter the hospital premises and destroy areas containing crucial evidence so that it doesn’t get picked up by CBI. As they were dumb TMC hooligans, they couldn’t execute the plan well and revealed their identity when they vandalised the Dharna Manch of the Resident Doctors, PGTs and interns. Why would someone who has come to show solidary would destroy the epicentre of the protests? Lastly, the protests happened peacefully across the sate. Why violence erupted at RG Kar only?” The brutal rape-murder of the PG resident doctor that took place on August 9 has now become a major political controversy in West Bengal, with Trinamool Congress MP Sukhendu Sekhar Roy alleging that police was trying to cover-up by fudging records and evidence. Questions are being raised why the state government took no action against the medical college principal Dr Sandip Ghosh and transferred him to another college. Questions are also being raised why police did not question the college principal and brought its dog squad to the crime spot three days after the incident. Already, doctors, having access to the autopsy report, have alleged that this brutal act was in fact a gang rape, and there was involvement of others apart from Sanjay Roy, arrested by police till now. After the High Court intervened and ordered a CBI probe, investigators have taken the accused into custody and are now collecting evidence. Protesting doctors say that it could be difficult for the CBI to nail the perpetrators because already many of the crucial evidence have been destroyed in connivance with the college principal. Questions are being raised as to who is trying to shield the principal. Doctors are demanding immediate arrest of the principal Dr Sandip Ghosh. The college principal, by profession an orthopaedic, has a questionable track record and there are reports that he has “political connections”. He was transferred twice after vigilance probe into corruption charges, but was again reverted to his original post. The corruption charges range from sale of bio-medical waste, car parking contracts and other tenders. One of the doctors Dr Akhtar Ali alleged that 20 per cent commission racket was going on in R G Kar Hospital. BJP leader Suvendu Adhikari has demanded the arrest of Dr Sandip Ghosh and all those officials who destroyed crucial evidence. State BJP chief and Union Minister Sukanta Majumdar alleged that Dr Sandip Ghosh had powerful connections with Chief Minister Mamata Banerjee and he was being shielded in this case. Congress leader Rahul Gandhi on Tuesday tweeted: “The entire nation is shocked over the gruesome rape and murder of a junior doctor in Kolkata. As details of this cruel and inhuman act are being unravelled, a sense of insecurity has gripped the medical fraternity and working women. Instead of ensuring justice to the victim, efforts are being made to shield the accused, and these raise serious questions about the hospital and local administration.” In response, Chief Minister Mamata Banerjee appealed to all parties not to politicize this crime. She told a meeting that she immediately phoned Kolkata Police chief when she came to know about the murder and directed him to arrest the culprits. She claimed that one of the accused was arrested within 12 hours, but “in cases like this, probe takes time”. She said, she had given police time to complete its probe by Sunday, but by that time the High Court had handed over the probe to CBI. “I want CBI to complete its probe by Sunday and hang the culprits responsible for the doctor’s murder”, she said. Whatever Mamata Baneree might say, it is strange that the medical college principal has not been questioned till date. Instead of removing the principal, he was transferred to another medical college in Kolkata. The question is: Who are the people trying to shield Dr Sandip Ghosh? Is someone in the higher echelons very much obliged to Dr Sandip Ghosh? Does he know mysterious facts that he could spill out? Normally, nobody in Mamata Banerjee’s party has the courage to raise voice against her leadership, and yet a veteran leader like Sukhendu Sekhar Roy raised his voice. While revealing gruesome details about the doctor’s murder from the autopsy report in my ‘Aaj Ki Baat’ show, I felt a deep sense of unease. My heart cries out for the parents who are missing their daughter. This case is serious and there must be no politics. Nor should anybody try to shield the culprits. It is now time for all right-thinking people to ponder over what measures to take so that such inhuman and gruesome act never takes place in future.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

डॉक्टर की नृशंस हत्या : दरिंदों को ऐसी सज़ा मिले कि सबकी रूह कांप उठे

AKB ममता बनर्जी को कलकत्ता हाईकोर्ट से बहुत ज़ोर का झटका लगा. डॉक्टर की रेप के बाद हत्या के केस को हाईकोर्ट ने CBI के हवाले कर दिया. कोलकाता पुलिस को आदेश दिया है कि वो क इस केस से जुड़े सारे कागज़ात CBI को फौरन सौंप दे. CBI ने बिना देर किए इस दिल दहलाने वाले केस की जांच शुरू कर दी है. हाईकोर्ट का ये फैसला सिर्फ इसलिए ममता बनर्जी की सरकार के लिए झटका नहीं है कि इस केस की जांच CBI के हवाले कर दी. ममता बनर्जी के लिए ये इसलिए ज्यादा बड़ी परेशानी है क्योंकि हाईकोर्ट ने ये संदेह भी जाहिर किया कि जिस तरह से कोलकाता पुलिस जांच कर रही है, उससे सबूतों के नष्ट होने का खतरा है. कोर्ट को तमाम सवालों का ममता की पुलिस के पास कोई जवाब नहीं था. कोर्ट ने पूछा कि आखिर पुलिस ने शुरू में इसे आत्महत्या का मामला किस आधार पर कहा? कोर्ट ने पूछा कि पुलिस ने एक आरोपी को पकड़ कर कैसे मान लिया कि लड़की के साथ दरिंदगी करने वाला, हत्या करने वाला एक ही शख्श था? पुलिस तमाम लोगों से पूछताछ करती रही, लेकिन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल से पूछताछ क्यों नहीं की? हाईकोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने जन आक्रोश के कारण इस्तीफा दिया तो बिना देर किए उसी दिन सरकार ने उसे दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल कैसे बना दिया? कोर्ट ममता बनर्जी की सरकार से इस कदर खफा था कि उसे कहना पड़ा कि अगर अगले दो घंटे के अंदर प्रिंसिपल को छुट्टी पर नहीं भेजा गया, तो अदालत को ये काम करना पड़ेगा. रेप-हत्या की शिकार डॉक्टर के माता-पिता ने इस जघन्य हत्याकांड में अपनी इकलौती बेटी को खोया है. उन्होने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की थी. इस मामले में कई PIL भी दायर की गई थीं. हाईकोर्ट में सारी अर्जियों पर एक साथ सुनवाई की. कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस T S शिवज्ञानम् की खंडपीठ ने कहा कि पुलिस पांच दिनों से इस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची. कोलकाता पुलिस ने कहा कि एक शख्स की गिरफ्तारी की है, 35 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए हैं. लेकिन कोर्ट ने पूछा क्या इन 35 लोगों में मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का बयान लिया गया है? क्या पुलिस ने प्रिंसिपल संदीप घोष को पूछताछ के लिए बुलाया? जबाव था, नहीं. कोर्ट ने कहा कि जिस कॉलेज में लड़की के साथ रेप के बाद हत्या हुई, उस कॉलेज के प्रिंसिपल से ही पुलिस ने पूछताछ नहीं की तो जांच कैसी हो रही है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं हैं. हैरानी की बात ये है कि कोर्ट ने पुलिस से केस डायरी मांगी तो पुलिस वो भी नहीं दे पाई. अदालत ने पूछा कि लड़की के शरीर पर चोट के निशान थे, खून निकल रहा था, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला क्यों कहा? इस पर पुलिस के पास कोई जवाब नहीं था. अदालत ने कहा कि अगर अब ये केस पुलिस के पास रहा तो इस बात की पूरी संभावना है कि सबूत मिटा दिए जाएंगे, इसलिए ये मामला तुरंत सीबीआई को ट्रांसफर किया जाना चाहिए. कोर्ट ने आदेश दिया कि पुलिस शाम तक इस मामले की केस डायरी सीबीआई को सौंपे और बुधवार तक केस के सभी जरूरी कागज़ात सीबीआई को दे. हाईकोर्ट ने कहा मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया. जन आक्रोश के कारण डॉक्टर संदीप घोष ने इस्तीफा दिया लेकिन उसके फौरन बाद सरकार ने उन्हें दूसरे मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल बना दिया. ये फैसला करके सरकार क्या संदेश देना चाहती है? कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर संदीप घोष को फौरन छुट्टी पर भेजा जाए. अगर अगले दो घंटे में उन्हें छुट्टी पर नहीं भेजा जाता. तो अदालत इसके लिए आदेश जारी करेगी. हाईकोर्ट ने कहा कि कोलकाता पुलिस का जो रवैया है, उसे देख कर लगता है कि सबूत नष्ट हो सकते हैं. हाईकोर्ट ने ये शक क्यों जाहिर किया, इसका सबूत भी मंगलवार को मिल गया. जैसे ही हाईकोर्ट का फैसला आया, उसके कुछ ही देर के बाद आर जी कर मेडिकल कॉलेज से हैरान करने वाली तस्वीरें आईं. जिस सेमीनार हॉल में डॉक्टर की हत्या हुई, उसके पास ही दीवारों को तोड़ने का काम शुरू हो गया. सेमीनार हॉल के करीब डॉक्टर्स के लिए टॉयलेट बना है. उसके बगल में रेजीडेंस्ट डॉक्टर्स के लिए रेस्ट रूम है. इसी रूम की दीवारों पर मंगलवार को हथौड़ा चला दिया गया. चूंकि सेमीनार हॉल में लेडी डॉक्टर की लाश मिली थी, लाश पर खरौंच के निशान थे, मुंह और नाक से खून निकल रहा था, इसलिए इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि टॉयलेट में भी कुछ सबूत हों. वैसे भी क्राइम स्पॉट को जांच पूरी होने तक सील किया जाता है लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने मंगलवार को आनन फानन में हथौड़ा चलवा दिया. इसीलिए अब ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि ये सीबीआई के पहुंचने से पहले ही सबूतों को नष्ट करने की कोशिश हो सकती हैं. कोर्ट ने पूछा, पुलिस इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंची कि इस जघन्य हत्याकांड को सिर्फ एक व्यक्ति ने अंजाम दिया. ये सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि लाश जिस हालत में मिली थी, उसे देखकर कोई भी व्यक्ति बता सकता था कि ये आत्महत्या का नहीं, हत्या का केस है. जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई है, उसे पढ़ कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं. रेजीडेंट डॉक्टर के गले पर कट का निशान था. उसकी रेप के बाद गला दबा कर हत्या की गई थी. डॉक्टर की गर्दन की हड्डी टूटी हुई थी. उसके मुंह पर जोरदार हमला किया था जिसके कारण उसके मुंह और नाक से खून निकला और पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद डॉक्टर सुवर्णो गोस्वामी ने जो दावा किया गया, वो इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि डॉक्टर के साथ हैविनयत करने वाला एक नहीं, एक से ज्यादा अपराधी शामिल थे. डॉक्टर सुवर्णो गोस्वामी ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लेडी डॉक्टर की बॉडी से एक से ज्यादा व्यक्तियों का सीमेन (वीर्य) मिला है. हाईकोर्ट के फैसले पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने संतोष जाहिर किया है. IMA की टीम ने स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा से मुलाकात कर पूरे देश में डॉक्टरों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया. मंत्री की अपील के बाद डॉक्टरों ने अपनी देशव्यापी हड़ताल खत्म कर दी. कोलकाता में डॉक्टर के साथ जो हैवानियत हुई, जिस तरह की दरिंदगी हुई, उसके बाद पुलिस से उम्मीद की जा रही थी कि वो ऐसे केस के अपराधी को पकड़ने में जान लगा देगी. ऐसा जुल्म, ऐसा पाप देखकर, जिसका खून ना खौले, वो खून नहीं, पानी है. लेकिन हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद लगा कि कोलकाता पुलिस इस केस को सुलझाने के बजाये उलझाने में लगी है. पहले इसे आत्महत्या का मामला साबित करने की कोशिश की, फिर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया. सारा केस एक ही अपराधी के इर्द गिर्द बनाने की कोशिश हुई. जबकि पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर का कहना है कि एक से ज्यादा लोग इस अपराध में शामिल थे. इस केस में ये भी लगा कि मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को बचाने की कोशिश हुई. बाकी बातें तो पुलिस की लापरवाही और पुलिस की असंवेदना मानी जा सकती है, लेकिन प्रिंसिपल का ट्रांसफर पुलिस का फैसला नहीं हो सकता. ज़ाहिर है ये एक राजनीतिक निर्णय था. इसीलिए ममता बनर्जी की सरकार पर भी सवाल उठे. बेहचर होगा कि राजनीतिक दल अब इस मामले में राजनीति ना करके CBI की जांच का इंतजार करना चाहिए. बस जरूरत इस बात की है कि CBI इस केस को युद्ध स्तर पर सुलझाए, डॉक्टर बेटी को इंसाफ मिले, दरिंदों को ऐसी सजा मिले कि देखने-सुनने वालों की रूह कांप जाए. यही इंसानियत का तकाज़ा है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Kolkata doctor’s rape and murder : Perpetrators must be given exemplary punishment

AKB The gruesome rape and murder of a post-graduate trainee doctor in Kolkata’s state-run R G Kar Medical College Hospital has turned murkier with a doctor having access to the autopsy report, alleging there could be more than one person involved in the rape-cum-murder. Already, CBI, on directions of Calcutta High Court, has begun its preliminary probe amidst allegations that circumstantial evidence were sought to be removed by carrying out urgent renovation of the room where the sordid act took place. On Tuesday, the High Court division bench of Chief Justice T S Sivagnanam and Justice Hiranmay Bhattacharya transferred the probe from Kolkata Police to CBI saying there was possibility of destruction of evidence. The high court said, “when the deceased victim was a doctor working in the hospital, it is rather surprising as to why the Principal/hospital did not lodge a formal complaint. This, in our view, was a serious lapse, giving room for suspicion.” The court asked Dr Sandip Ghosh, the principal of the medical college, to go on leave immediately and said he shall not be permitted to hold the post of Principal of National Medical College and Hospital, Calcutta until further directions. Lashing out at the state government and Kolkata Police, the high court said, “we are convinced to say so because even after a lapse of five days there appears to be no significant progress in the investigation, which ought to have happened by now and by further loss of time, we would be well-justified in accepting the plea raised by the writ petitioners, more particularly, the parents of the victim that there is every possibility that the evidence will be destroyed and the witnesses will be influenced etc.” The high court referred to nationwide protests by doctors and women organizations over the incident and said, ” it has become imperative and necessary for this Court to exercise its jurisdiction failing which the confidence in the public mind would be shattered and the public confidence will also be jeopardized.” The high court directed the CBI to file its first report on the probe after three weeks, when the next hearing shall take place. For Chief Minister Mamata Banerjee, the incident and the High Court’s stern order have become a big political embarrassment. The court questioned why police in the earlier stage described the incident as a suicide, and how police, after arresting an accused, assumed that he was the only one who committed the inhuman act. The court also questioned why the college principal was not questioned by police and why the principal, who resigned on “moral grounds” was hurriedly appointed as principal of another medical college. The court ordered Kolkata Police to hand over all documents related to the case to CBI immediately. CBI has sent its team of forensic and crime experts to initiate the probe. Meanwhile, a doctor having access to the post-mortem report alleged that semen of more than one person has been found on the body of the victim, and that there was a strong possibility of more than one person involved in the rape. On Tuesday night, the Federation of Resident Doctors Association, after a meeting with Union Health Minister J P Nadda, decided to call off its indefinite strike. The minister has assured the doctors that adequate security will be provided to doctors in all government hospitals. There can be no two opinions on the issue that the brutal rape and murder of the trainee doctor was sought to be downplayed by police in the initial stage. One expected Kolkata police to delve deep into the circumstances of the murder, but after watching the hearing in Calcutta High Court on Tuesday, one can surely say that police tried to muddle things instead of solving the mystery. Police first tried to describe the death of the doctor as suicide, without waiting for the autopsy report. Police tried to pin the blame on a single person for the act, while doctors involved with post-mortem have said that there could be more than one person involved. Efforts were made by authorities to shield the principal of the medical college by transferring him hurriedly. One can understand lapses in probe could be the result of negligence on part of police, but transfer of the college principal was a political decision. Fingers are now being pointed at Mamata Banerjee’s government. I would request political parties to desist from politicizing this horrendous act and wait for the CBI to complete its probe on a war footing. The family of the lady doctor who was raped and murdered must get justice. The perpetrators of this brutal crime must be punished in a manner so that criminals in future might tremble in fear. This, in the least, is what humanity can do for the unfortunate victim.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

बांग्लादेश में हसीना, हिन्दू और साज़िशी हाथ

AKBबांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है. इस तरह की खबरें अक्सर आती रहती हैं, लेकिन इस बार हिन्दुओं पर साज़िश के तहत सुनियोजित हमले हो रहे हैं. बांग्लादेश से हिन्दुओं को खत्म करने की साजिश हो रही है और बहाना बनाया जा रहा है कि शेख हसीना के तख्ता पलट का. चूंकि बांग्लादेश में ज्यादातर हिन्दू आबादी शेख हसीना की पार्टी के समर्थक हैं, क्योंकि शेख हसीना कट्टरपंथ के खिलाफ है, हिन्दुओं को बराबरी का हक देने की बात कहती है, ये बात कट्टरपंथियों को अच्छी नहीं लगती. इसीलिए जैसे ही शेख हसीना ने देश छोड़ा,तो कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाना शुरू कर दिया. बांग्लादेश में हिन्दुओं के कत्लेआम की तस्वीरों ने पूरी दुनिया को चौंका दिया, देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए. हिंदुओं के इस नरसंहार के खिलाफ पूरी दुनिया में प्रदर्शन हुए. वाशिंगटन, टोरंटो, मॉंट्रियल, लंदन और कई अन्य शहरों में हिन्दुओं ने न्याय की मांग करते हुए प्रदर्शन किए. पहली बार बांग्लादेश के नाराज हिन्दू एकजुट होकर लाखों की संख्या में सड़कों पर उतरे. इस वक्त भी ढाका की सड़कों पर हजारों प्रदर्शनकारी बैठे हैं. ये सब हिंदुओं पर हुए जुल्म से आहत हैं, इंसाफ की मांग कर रहे हैं, आपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं. ढाका, चट्टोग्राम, राजशाही, खुलना, सिलहट, बरीशाल, मैमनसिंह, नारायणगंज और जैसोर में बेगुनाह हिन्दुओं के घरों, दुकानों और मंदिरों पर हमले हुए, ये लोग उसका विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए. बांग्लादेश की अन्तरिम सरकार में गृह मामलों के सलाहकार रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद सखावत हुसैन ने हिन्दुओं से हाथ जोड़कर माफी मांगी. कहा कि बांग्लादेश की सरकार, पुलिस, प्रशासन और सेना हिन्दुओं की रक्षा करने में नाकाम रही, इसके लिए वह हिन्दुओं से माफी मांगते हैं. सखावत हुसैन ने कहा कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि हिन्दुओं पर हो रहे हमलों को रोका जाए क्योंकि इससे पूरे दुनिया में बांग्लादेश की छवि खराब हुई है. अंतरिम सरकार के प्रधान सलाहकार मोहम्मद युनूस मंगलवार को ढाका के सुप्रसिद्ध ढाकेश्वरी मंदिर पहुंचे और हिन्दू नेताओं से बात की. इधर, हिन्दुओं ने भी एलान कर दिया है कि बांग्लादेश उनका भी मुल्क है, इस मुल्क के लिए हिन्दुओं ने भी कुर्बानियां दी है, इसलिए हिन्दू इस्लामी कट्टरपंथियों से डरकर भागेंगे नहीं, देश छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे, अपने हक़ के लिए लड़ेंगे या फिर बांग्लादेश में ही मर जाएंगे. राहत की बात ये है कि बांग्लादेश में अब पुलिस काम पर लौट आई है, जो पुलिसवाले थाने पर भीड़ के हमलों के कारण भाग गए थे, वो सेना की मदद के लिए ड्यूटी पर लौट आए हैं. लेकिन बांग्लादेश के हिन्दुओं के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि शेख हसीना ने इतनी जल्दी हार कैसे मान ली? उन्होंने अपने विरोधियों को काउंटर क्यों नहीं किया? बांग्लादेश के कुछ जानकारों से मेरी बात हुई. उन्होंने बताया कि छात्र आंदोलन पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी ने कब्जा कर लिया था. बाहर के मुल्कों से हसीना विरोधी यू-ट्यूबर्स ने झूठी सूचनाओं का कैंपेन इतनी तेजी से चलाया कि बात हाथ से निकल गई. हसीना सरकार समझ ही नहीं पाई कि इसे कैसे हैंडल करें. दूसरी बात इन जानकारों ने बताई कि हसीना ने सबसे बड़ी गलती ये कि कि उन्होंने थल सेनाध्यक्ष को अपना समझा और उनपर पूरी तरह भरोसा किया. जिस दिन हसीना ने इस्तीफा दिया, उससे एक दिन पहले रविवार को, अवामी लीग ने ढाका में 25 लाख लोगों को इकट्ठा करने का प्लान बनाया था. ये शक्ति प्रदर्शन हो सकता था और शेख हसीना को एक बार फिर ‘आयरन लेडी’ साबित कर देता. पर शुक्रवार को थल सेनाध्यक्ष जनरल वकार उज़-ज़मां पीएम हाउस पहुंचे. उन्होंने हसीना को सलाह दी कि वो दूसरे शहरों से अपने समर्थकों को ढाका न बुलाएं. आर्मी चीफ ने तर्क दिया कि अगर आपने अपने समर्थकों को बुलाया तो BNP और जमात-ए-इस्लामी के लोगों को सेना नहीं रोक पाएगी. उन्होंने कहा कि अभी मैंने उन लोगों को शहर में घुसने से रोका हुआ है. पर इन्ही जानकारों का कहना है कि आर्मी चीफ ने शेख हसीना को डबल क्रॉस किया, जब उन पर यकीन करके शेख हसीना ने अपनी रैली कैंसिल कर दी. उसके बाद सेना ने जमात-ए-इस्लामी के लोगों को शहर में एंट्री दे दी. सोमवार को सुबह-सुबह आर्मी चीफ ने हसीना को सूचना दी कि एयरपोर्ट के पीछे की तरफ से हजारों BNP और जमात-ए-इस्लामी के लोग शहर में प्रवेश कर गए हैं. थोड़ी देर बाद वो फिर पीएम हाउस आए. और हसीना से कहा कि जितनी जल्दी वो ढाका छोड़ दें, उनके लिए बेहतर होगा. अवामी लीग के लोगों को लगता है कि आर्मी चीफ ने उनकी नेता को धोखा दिया. जो कहा, उसका बिलकुल उल्टा किया. इसीलिए नई सरकार बनने के बाद बाकी सबको हटा दिया गया, पर आर्मी चीफ अभी भी अपनी जगह बने हुए हैं.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Hasina, Hindus and Hidden Hand in Bangladesh

AKBIncidents of loot, rape and murder of Hindus and attacks on Hindu temples are not new in Bangladesh, but this time, after Prime Minister Sheikh Hasina was removed from power, attacks on Hindu homes and temples are being made systematically in a premeditated manner on a large scale. Visuals of Hindus being lynched and murdered, and Hindu women being abducted by Islamic fundamentalist mobs are blood-curdling. Lakhs of Hindus have been staging protests in Dhaka and other cities of Bangladesh, while Hindus in London, Toronto, Montreal, Washington and other world cities have also come out in protest demanding justice. The interim adviser for Home Affairs Brig. Gen (Retd) Mohammed Sakhawat Hossain on Monday apologised to Hindus with folded hands for atrocities committed on Hindu community by ‘jihadis’. Shops and homes of Hindus were looted and burnt, while Hindu temples were ransacked and idols broken in Dhaka, Chattogram, Rajshahi, Khulna, Sylhet, Barisal, Mymensingh, Narayanganj and Jessore, rendering thousands of Hindus homeless. The adviser for Home Affairs promised to ensure that such targeted attacks on Hindus will not happen in future. Hindu leaders have said, they are not going to leave the country out of fear of Islamic fundamentalists, and will fight for justice. The chief adviser of interim government Mohammed Yunus visited Dhakeshwari temple in Dhaka on Tuesday. A day before, he spoke to leaders of Hindu organisations and promised action. Police personnel have now returned to work, days after police stations were attacked and burnt by mobs. India TV correspondent Shoaib Raza and cameraperson Farman visited Dhaka and met Hindus who were subjected to targeted attacks. Homes of many Hindus in Baruapada and Lakhipada localities of Panchgarh district of Banglaesh have been burnt by jihadi mobs. There appears to be a calculated plan by jihadi Islamic outfits to finish off most of the Hindus living in Bangladesh, by taking advantage of the current anarchy that prevails after the overthrow of Sheikh Hasina regime. Most of the Hindus have been supporters of Sheikh Hasina’s Awami League, and the former PM had taken strong steps to root out fundamentalists, but now jihadis are out to settle scores. Hindus are still wondering why Sheikh Hasina left the country all of a sudden leaving the minorities to face targeted mayhem. I spoke to several experts on Bangladesh politics. They said, the largest opposition party Bangladesh Nationalist Party of Khaleda Zia, which had been out of power since 2006, and Islamic extremist party Jamaat-e-Islami, had infiltrated and taken control of the students’ movement. Anti-Hasina YouTubers acted as force multipliers by peddling misinformation about the students’ movement, and the situation went out of control. Sheikh Hasina could not comprehend how to handle the situation with tact. The second mistake that Sheikh Hasina committed was to repose her full trust in Army Chief Gen Waqer Uz Zaman, who happened to be her distant relative. A day before Hasina was forced to resign, Hasina’s Awami League had planned to mobilize on Sunday nearly 25 lakh supporters in Dhaka to counter the movement. This could have been a show of strength and it could have projected Sheikh Hasina as an Iron Lady. But, on Friday, Gen Waqer Uz Zaman reached the Prime Minister’s House and advised Hasina to desist from asking her supporters to come to Dhaka. The Army Chief gave the logic that if Awami League supporters were asked to assemble in Dhaka, the army would not be able to stop BNP and Jamaat-e-Islami from coming out on the streets. Experts revealed that the Army Chief played a double-cross game with the Prime Minister. Soon after Hasina agreed to cancel the Awami League rally, the army allowed BNP and Jamaat-e-Islami supporters to enter Dhaka. On Monday morning, the army chief informed Hasina that thousands of BNP and Jamaat supporters had entered the city from the suburban areas adjoining the airport, and they would soon reach the PM’s House. The army chief advised Hasina to leave Dhaka at the earliest. Awami League leaders believe that the Army Chief played a double-cross game with their leader, and allowed the opposition supporters to converge in Dhaka. This appears to be the reason why senior bureaucrats, the Chief Justice and other top functionaries were removed from their posts after the interim government was formed, but the army chief continues to be in his post.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

सिसोदिया की रिहाई : केजरीवाल को फायदा

AKB30 17 महीने तक जेल में रहने के बाद, शराब घोटाले के आरोपी और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शुक्रवार को तिहाड़ जेल से रिहा हो गए. सुबह उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी थी. जेल से छूटते ही मनीष सिसोदिया ने नारे लगवाए ‘जेल के ताले टूटेंगे, अरविन्द केजरीवाल छूटेंगे’, ‘भ्रष्टाचार का एक ही काल, केजरीवाल केजरीवाल’. मनीष सिसोदिया ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के शुक्रगुजार हैं क्योंकि तानाशाही के तहत उन्हें जेल में डाला गया और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर.गवई और के.वी.विश्वनाथन की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि केस की सुनवाई में देरी हो रही है, जांच एजेंसियां इस केस से जुड़े दस्तावेज जब्त कर चुकी हैं, गवाहों के बयान हो गए हैं, आरोपियों की गिरफ्तारी हो गई है, इसलिए अब इस केस में सबूतों से छेड़छाड़ की गुंजाइश नहीं हैं. अदालत ने कहा कि मामले में 493 गवाह हैं, एक लाख पन्नों से ज्यादा के दस्तावेज हैं, इसलिए मुकदमा लंबा चलेगा और किसी को अनिश्चिकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता, इसलिए मनीष सिसोदिया जमानत के हकदार हैं. हालांकि कोर्ट ने जमानत के फैसले में केस की मैरिट पर कुछ नहीं कहा लेकिन आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया को मिली जमानत को सच्चाई की जीत बताया. कहा, बीजेपी ने साजिश के तहत झूठे केस में फंसा कर आम आदमी पार्टी के नेताओं को जेल में डाला है, जल्दी ही अरविन्द केजरीवाल भी जेल से बाहर आएंगे. मनीष सिसोदिया के जेल से बाहर आने से पहले ही आम आदमी पार्टी के भीतर सियासत शुरू हो गई. आम आदमी पार्टी की बागी सांसद स्वाति मालीवाल ने कहा कि वो मनीष सिसोदिया की जमानत से खुश हैं, अब वो दिल्ली सरकार की कमान संभालेंगे, यानि मनीष सिसोदिया को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की जबकि मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सिसोदिया फिर से वही विभाग संभालेंगे, जो उनके पास पहले से थे यानि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा. तिहाड़ जेल से निकलकर सिसोदिया सीधे अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचे और उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और उनके माता-पिता से मिले. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सिसोदिया के स्पीडी ट्रायल के अधिकार का हनन हुआ है, वो पिछले 17 महीने से जेल में हैं और मुक़दमे की सुनवाई के जल्द आसार नहीं दिख रहे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट इस बुनियादी नियम को भूल गए हैं कि बेल रूल है, जेल नहीं और किसी की ज़मानत रोककर उसको सज़ा नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनीष सिसोदिया के भागने की कोई आशंका नहीं और सबूतों से छेड़-छाड़ का भी कोई डर नहीं है क्योंकि जांच एजेंसी ने सारे सबूत रिकॉर्ड के तौर पर कोर्ट में जमा करा दिए हैं. इसलिए मनीष सिसोदिया को जेल में रखना ठीक नहीं होगा.. जस्टिस गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने कहा अगर ट्रायल में देर हो रही है, तो इसके लिए आरोपी ज़िम्मेदार नहीं है और मुक़दमा पूरा होने तक आरोपी को जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के ख़िलाफ़ है. इसलिए सिसोदिया को ज़मानत दी जाती है. कोर्ट ने फैसले में कहा सिसोदिया अपना पासपोर्ट कोर्ट में जमा कराना होगा, और सप्ताह में दो बार थाने में जांच अधिकारी के सामने हाजिरी लगाएं. शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया को पिछले साल 26 फरवरी को CBI ने गिरफ़्तार किया था. इसके बाद 9 मार्च को उसी केस में ED ने भी उन्हें गिरफ्तार किया था. इन 17 महीनों में सिसोदिया ने ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जमानत की अर्जियां लगाई लेकिन जमानत की उनकी सात अर्जियां खारिज हुई. अब जाकर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है. इसलिए कार्यकर्ता को खुश होना तो लाजिमी है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि सिसोदिया के जेल से बाहर आने के बाद पार्टी और सरकार में उनकी क्या भूमिका होगी? क्या उन्हें पहले की तरह दोबारा उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा? चूंकि केजरीवाल जेल में हैं, इसलिए क्या मनीष सिसोदिया अब फिलहाल पार्टी के सर्वेसर्वा होंगे? इसको लेकर तमाम क़यास लगाए जा रहे हैं. सिसोदिया को जमानत मिलना, उनका जेल से बाहर आना, ये आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ी बात है. अब आम आदमी पार्टी के नेताओं को ये उम्मीद बंधी है कि इसी आधार पर अरविन्द केजरीवाल भी बाहर आ सकते हैं. मनीष सिसोदिया ने जेल से बाहर आने के बाद यही नारा लगवाया कि ‘जेल के ताले टूटेंगे, केजरीवाल छूंटेंगे, भ्रष्टाचार का एक ही काल, केजरीवाल केजरीवाल’. ये नारा सिसोदिया ने कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने के लिए नहीं लगाया, उन्होंने अपनी स्थिति साफ करने के लिए लगाया. असल में राजनीति पर अफवाहों का, चर्चाओं का बड़ा असर होता है. पहले भी ये बात फैलाई गई थी कि केजरीवाल ने ED के सामने कबूल किया है कि उन्होंने मनीष सिसोदिया के कहने पर शराब नीति को मंजूरी दी थी. इसके बाद से ही ये चर्चा शुरू हो गई थी कि केजरीवाल और सिसोदिया के बीच मनमुटाव है, सिसोदिया केजरीवाल के खिलाफ जा सकते हैं. इसीलिए केजरीवाल ने कोर्ट में अपना पक्ष साफ किया था. और अब सिसोदिया ने केजरीवाल के पक्ष में नारा लगवाकर, जेल से निकलकर सीधे केजरीवनाल के घर जाकर, अपनी स्थिति साफ की है. दूसरी बात, जो लोग ये कह रहे हैं कि मनीष सिसोदिया को अरविन्द केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री बना सकते है, मुझे लगता है कि इसकी संभावना न के बराबर है क्योंकि केजरीवाल दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पर अपना नियंत्रण रखना चाहेंगे. हां, ये हो सकता है कि केजरीवाल सिसोदिया को फिर से डिप्टी सीएम बनाएं और अपनी जगह कैबिनेट की मीटिंग की अध्यक्षता करने का हक दे दें. इससे कैबिनेट की मीटिंग हो सकेगी. मनीष सिसोदिया अरविन्द केजरीवाल और पार्टी के बीच पुल का काम करेंगे. सिसोदिया को जमानत मिलने का असर दिल्ली की सियासत पर पड़ेगा. आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा, बीजेपी के नेता डिफेन्सिव पर होंगे. जहां तक शराब घोटाले में ED और CBI के केस का सवाल है तो जमानत मिलने से कानूनी तौर पर केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Sisodia out on bail : Advantage Kejriwal

AKB30 Former Delhi deputy chief minister and senior Aam Aadmi Party leader Manish Sisodia walked out of Tihar jail on Friday evening after remaining incarcerated for 17 months. The bench of Supreme Court Justice B R Gavai and Justice K V Vishwanathan, while granting him bail in the corruption and money laundering cases, said, “In our view, keeping the appellant behind bars for an unlimited period of time in the hope of speedy completion of trial would deprive him of his fundamental right to liberty under Article 21 of the Constitution. …Prolonged incarceration before being pronounced guilty of an offence should not be permitted to become punishment without trial.” The bench said, “In the present case, in the ED matter as well as the CBI matter, 493 witnesses have been named. The case involves thousands of pages of documents and over a lakh pages of digitised documents. It is this clear that there is not even the remotest possibility of the trial being concluded in the near future.” Sisodia was arrested by CBI on February 6, 2023 and was subsequently taken into custody by Enforcement Directorate on March 9. The apex court directed Sisodia to surrender his passport and report to the investigating officer on Mondays and Thursdays, while furnishing bail bond for Rs 10 lakh with two sureties of like amount. Soon after his release, Sisodia was taken in a procession by AAP supporters with slogans “Jail ke Taale Tootengey, Arvind Kejriwal Chhotengey,”,’Bharashtachar Ka Ek Hi Kaal, Kejriwal Kejriwal”. Sisodia went straight to Kejriwal’s residence and met his wife Sunita Kejriwal. Though the apex court did not comment on the merits of the case, AAP took the bail order as “a triumph of truth”. AAP leaders are now expecting Kejriwal to come out on bail soon. There appears to be confusion among AAP leaders, with minister Saurabh Bhardwaj saying that Sisodia would rejoin the cabinet and take up the same portfolios that he was handling. Rebel AAP MP Swati Maliwal, who has been campaigning against Kejriwal, welcomed Sisodia’s release and said, she expected Sisodia to take over as chief minister. BJP MP Bansuri Swaraj pointed out that Sisodia has been granted bail on grounds that the trial was being delayed, and that he has not been acquitted. She said, it is the judiciary which will take the final call about Sisodia’s innocence. For Aam Aadmi Party, Sisodia coming out of jail on bail is a big relief. AAP leaders expect that chief minister Arvind Kejriwal would also be released on bail soon. The slogans “Jail Ke Taaley tootengey, Kejriwal Chhootengey”, “Bhrashtachar Ka Ek Hi Kaal, Kejriwal Kejriwal”, are loaded with political meanings. These slogans were raised not to boost Sisodia’s enthusiasm, but to make it clear to him that it is Kejriwal who will be calling the shots in the party and government. Rumours and speculations play a big role in politics. Firstly, rumours were floated that Kejriwal had told his ED interrogators that he had cleared the liquor excise policy on the recommendation of Sisodia.. These rumours led to speculations about a possible rift between Kejriwal and Sisodia, and that the two could soon part ways. It was Kejriwal who made the position clear in court that he was misquoted. Sisodia, by getting pro-Kejriwal slogans raised and going to Kejriwal’s house straight from jail, made his position clear. Secondly, I feel that there is little possibility about Sisodia replacing Kejriwal as Delhi chief minister in the near future. Kejriwal wants to keep both the party and Delhi government under his control. Sisodia may be reinstalled as deputy chief minister of Delhi and preside over cabinet meetings. In this situation, Sisodia can work as a bridge between Kejriwal and his party. Kejriwal’s bail will certainly have political consequences. The morale of AAP workers will get a fillip and BJP leaders in Delhi will remain on the defensive. As far as ED and CBI cases in Delhi liquor excise policy are concerned, this bail order will have pracitcally no legal ramifications.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

वक़्फ कानून में बदलाव : इसकी ज़रूरत क्या है?

AKB सरकार ने वक्फ अधिनियम में बदलाव का बिल लोकसभा में पेश कर दिया. इस कानून का असर साढ़े आठ लाख जायदाद की मिल्कियत, प्रबंध और कब्जे पर होगा. बिल को सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है. पता ये लगा है कि तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल-यूनाइटेड और लोकतांत्रिक जनता पार्टी (चिराग) ने बीजेपी के नेताओं से कहा था कि इस बिल को लेकर भ्रम फैलाया गया है. इसलिए इसे जल्दीबाजी में पास कराने के बजाए स्टैंडिंग कमेटी या संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेज दिया जाए. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शरद पवार की एनसीपी, DMK, नेशनल कॉन्फ्रेंस, मुस्लिम लीग और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सब ने मुसलमानों की हिमायत की, वक्फ एक्ट में बदलाव का खुलकर विरोध किया. विपक्ष ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर कहा कि बदलाव के पीछे सरकार की नीयत साफ नहीं हैं, सरकार वक्फ की जायदाद हड़पना चाहती है, इसलिए वक्फ एक्ट में कोई बदलाव मंजूर नहीं होगा. किसी ने इसे संविधान के खिलाफ बताया, किसी ने कहा कि वक्फ एक्ट में बदलाव, सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. सरकार इस तरह का बिल लाकर संघीय ढांचे को तोड़ रही है. किसी ने कहा कि ये हिन्दू राष्ट्र की दिशा में सरकार का अगला कदम है. इस तरह के तमाम आरोप लगाए गए. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने वक्फ बोर्ड को लेकर दो बिल सदन में पेश किए. पहला बिल था वक्फ संशेधन बिल 2024 और दूसरा था, मुसलमान वक्फ रिपील बिल 2024. चर्चा की शुरुआत की कांग्रेस सांसद के सी वेणुगोपाल ने कहा कि जब मंदिरों का प्रबंधन हिन्दू करते हैं, उनके बोर्ड में कोई मुसलमान नहीं होता, तो वक्फ प्रॉपर्टी के मैनेजमेंट में दूसरे धर्मों के लोगों क्यों घुसाया जा रहा है, ये मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि संसद को वक्फ पर कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है, ये बिल संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 25 का उल्लंघन है. ये बिल मनमाना और बांटने वाला है, ये बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और न्यायिक आजादी का उल्लंघन करता है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी कहा कि वक्फ एक्ट में संशोधन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. वो ये बिल नहीं ला सकती क्योंकि जमीन राज्यों का विषय है, और इसका फैसला सिविल कोर्ट ही कर सकती है. कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया कि वक्फ की जायदाद पर कब्जा करने के लिए ये बिल लाया गया है. ममता बनर्जी की पार्टी के नेता कल्याण बनर्जी वकील हैं, उन्हें ये पता है कि वक्फ एक्ट 1954 में संसद ने ही बनाया था, उस वक्त वक्फ बोर्ड के फैसले को सिविल कोर्ट में चैलेंज करने का प्रावधान था लेकिन 1963 में कांग्रेस की सरकार ने ही ये अधिकार खत्म करके वक्फ ट्रिब्यूनल का सिस्टम लागू किया. क्या वो गैरकानूनी था? क्या उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने ये काम मुसलमानों को खुश करने के लिए किया था? ये सवाल NDA के नेताओं ने कांग्रेस और इंडी अलायन्स के नेताओं से पूछे. एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सांसद श्रीकांत शिंदे ने संघीयवाद और सेक्यूलरवाद खत्म करने के आरोप पर कहा कि जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब महाराष्ट्र के कई मंदिरों के प्रशासन में दखलंदाजी की गई लेकिन तब न किसी को संघीयवाद याद आया, न किसी को सेक्यूलरवाद की याद आई. श्रीकांत शिंदे ने कहा कि जो लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं उनका मकसद मुस्लिमों को भलाई नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति है. अखिलेश यादव ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब वक्फ बोर्ड के सदस्य लोकतांत्रिक तरीके तरीके से चुने जाते हैं तो फसमें महिलाओं और पिछड़े मुसलमानों को अलग से मनोनीत करने का क्या औचित्य है. अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी अपने कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए वक्फ बोर्ड को खत्म करना चाहती है. दो बातें समझने वाली हैं. पहली ये कि वक्फ बोर्ड कोई मजहबी संस्था नहीं हैं, ये कानून से बना बोर्ड है जो सिर्फ वक्फ की प्रॉपर्टी की देखरेख और उसकी हिफाजत के लिए है. इसलिए इसे मजहबी मामलों में दखलंदाजी कहना सही नहीं हैं. ये बात जनता दल-यू के नेता लल्लन सिंह ने लोकसभा में कही. लल्लन सिंह ने कहा कि विपक्ष भ्रम फैला रहा है, वक्फ बोर्ड के मौजूदा ढांचे में कई खामियां है, इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड को जवाबदेह और पारदर्शी बनाया जाएगा. बहस के जवाब में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ कानून में संशोधन पहली बार नहीं हो रहा है. 1995 के वक्फ एक्ट में 2013 में भी संशोधन किया गया था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने जो संशोधन किए थे, वो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के उलट थे. के. रहमान खान की अध्यक्षता में बनी JPC के सुझावों के विपरीत थे. किरेन रिजिजू ने कहा कि देश में करीब साढ़े 8 लाख वक्फ प्रॉपर्टीज है, उनका बेजा इस्तेमाल हो रहा है, उसे ठीक करने का कोई सिस्टम नहीं है. इसलिए सरकार मुसलमानों की भलाई के लिए सिस्टम को ठीक करने की कोशिश कर रही है. किरेन रिजिजू ने जो बात इशारों में, संक्षेप में कही, वो पूरी बात बताता हूं. असल में वक्फ एक्ट जब से बना है, तब से इसमें सुधार की जरूरत कई बार बताई गई. 1976 में एक कमेटी बनी थी. उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि सारा वक्फ बोर्ड मुतवल्लियों (केयरटेकर) के कब्जे में हैं, इसे दुरूस्त करने की जरूरत है. इसके अलावा वक्फ बोर्ड के अकाउंट्स में भारी गड़बड़ी है, इसके ऑडिट का इंतजाम होना चाहिए. इसके बाद 1995 में कांग्रेस की सरकार ने इस एक्ट में कुछ बदलाव किए. फिर 2005 में सच्चर कमेटी बनाई गई. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि वक्फ के जो 4 लाख 69 हजार प्रॉपर्टीज है. उनसे सिर्फ 162 करोड़ रु. की आमदनी हो रही है, जबकि मार्केट रेट के हिसाब से आमदनी कम से कम 12 हजार करोड़ रु. की होनी चाहिए. ये पैसा कहां जा रहा है, इसकी जांच की जरूरत है. वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टीज को पारदर्शी तरीके से मैनेज करने की जरूरत है. सच्चर कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा था कि वक्फ बोर्ड का बेस बढ़ाया जाना चाहिए. सेन्ट्रल और स्टेट वक्फ बोर्ड में कम से कम दो महिलाएं होनी चाहिए. पिछड़े मुसलमानों को भी जगह मिलनी चाहिए और सारी गतिविधियों को कानूनी तरीके से चलाने के लिए बोर्ड में कम से कम एक क्लास वन आफीसर की नियुक्ति होनी चाहिए. फिर कांग्रेस की सरकार के वक्त ही के रहमान खान की अध्यक्षता में JPC का गठन हुआ. उस JPC ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि वक्फ बोर्ड की सारी ताकत मुतवल्ली को नियुक्त करने और हटाने के खेल में ही लग रही है, इसे खत्म करने की जरूरत है. वक्फ प्रॉपर्टी का सर्वे होना चाहिए. इसके लिए एक्सपर्ट्स को बोर्ड में होना चाहिए. वक्फ बोर्ड का कम्प्यूटराइजेशन होना चाहिए. सारा रिकॉर्ड और खर्चे- आमदनी का सारा रिकॉर्ड पारदर्शी तरीके से कंप्यूटर में दर्ज होना चाहिए. JPC ने कहा था कि 1995 के वक्फ एक्ट पर फिर से गौर करने की जरूरत है लेकिन उस वक्त डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने न सच्चर कमेटी की सिफारिश मानी, न JPC की. 2013 में वक्फ एक्ट में बदलाव जरूर किया, लेकिन वक्फ बोर्ड को और ज्यादा अधिकार दे दिए. पहले किरायेदार और लीज़ से जुड़े मामले सिविल कोर्ट से निबटाये जाते थे लेकिन कांग्रेस की सरकार ने वक़्फ़ प्रॉपर्टी विवाद के अलावा वक़्फ़ के किरायेदार से जुड़ा विवाद, वक़्फ़ प्रॉपर्टी के लीज़ से जुड़े विवाद के निबटारे के हक भी वक्फ बोर्ड को दे दिया. पहले वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च वक़्फ़ बोर्ड को देना होता था लेकिन कांग्रेस की सरकार ने 2013 में कानून में संशोधन करके वक़्फ़ प्रॉपर्टी के सर्वे का खर्च राज्य सरकार पर डाल दिया गया. 2013 से पहले वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष, सदस्य दूसरे धर्मों के लोग भी हो सकते थे लेकिन 2013 में कांग्रेस की सरकार ने कानून बदल कर ये सुनिश्चित किया गया कि वक्फ बोर्ड के सदस्य सिर्फ मुसलमान ही होंगे. ये सारे कदम सच्चर कमेटी और JPC की सिफारिशों के खिलाफ थे. लेकिन कांग्रेस ने ये कदम उठाए. अब सरकार ने उन्ही गलतियों को दुरुस्त किया है. हालांकि अब ये बिल JPC के पास भेज दिया गया है और सरकार इसके लिए भी इसलिए नहीं मानी कि विरोधी दलों का दबाव था, असल में JD-U, LJP और TDP तीनों पार्टियां ऐसा चाहती थी, इसलिए सरकार इसके लिए तैयार हुई. LJP के अध्यक्ष और केन्द्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि विपक्ष ये भ्रम फैला रहा है कि ये बिल मुसलमान विरोधी है. इस भ्रम को दूर करने के लिए ही उनकी पार्टी ने बिल को संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी. चिराग पासवान ने कहा कि अब इस बिल पर JPC में चर्चा होगी और सारी गलतफहमियां दूर हो जाएगी. चिराग पासवान भले ही गलतफहमियों की बात कहें लेकिन हकीकत ये है कि JD-U, LJP या TDP, तीनों पार्टियों को मुस्लिम वोट की चिंता है. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए नीतीश कुमार और चिराग पासवान की मजबूरी है. दोनों पार्टियों ने बीच का रास्ता निकाला. बिल पेश होने पर उसका समर्थन किया और फिर उसे जेपीसी के पास भेजने की मांग कर दी. सरकार ने भी इसे मान लिया क्योंकि बीजेपी को जो राजनीतिक संदेश देना था, वो तो चला गया, यानि विपक्ष का विरोध भी राजनीतिक है. और सरकार का कदम भी नपा-तुला है. लेकिन मेरा मानना है कि वक्फ एक्ट में जरूरी बदलाव होने चाहिए और जल्दी होने चाहिए. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं. इसकी वजह बताता हूं. कांग्रेस ने 2013 में वक्फ एक्ट में जो बदलाव किए, वक्फ बोर्ड को जो ज्यादा अधिकार दिए, उसका असर ये हुआ कि वक्फ की प्रॉपर्टीज की संख्या चार लाख उन्हत्तर हजार से बढ़कर साढ़े आठ लाख से ज्यादा हो गई. ऐसा कैसे हुआ, ये भी समझ लीजिए. पिछले साल गुजरात में सरकार ने द्वारका में समुद्र के किनारे सरकारी जमीनों पर कब्जों को खाली कराने के लिए बुलडोजर चलाया. उस वक्त जामनगर और द्वारका में कुल 142 प्रॉपर्टीज वक्फ में रजिस्टर थी. एक मजार भीमा नाम के किसान की जमीन पर बनी थी लेकिन उस जमीन को वक्फ की प्रॉपर्टी के तौर पर रजिस्टर कर दिया गया था. कानूनी तौर पर उस पर कार्यवाही नहीं हो सकती थी. इसलिए उस मजार पर बुलडोजर नहीं चला. इसके बाद लोगों ने यही फॉर्मूला अपनाया. पिछले दो सालों में 341 नई प्रॉपर्टीज को वक्फ बोर्ड में रजिस्टर करवा दिया गया जबकि पांच सौ से ज्यादा प्रॉपर्टीज की एप्लीकेशन अभी भी पेंडिंग हैं. इसी तरह लखनऊ में अन्नपूर्णा मंदिर 1962 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में मंदिर के तौर पर दर्ज है लेकिन 2016 में इसे वक्फ प्रॉप्रटी घोषित कर दिया गया. .ऐसे एक नहीं, हजारों मामले हैं और बहुत सारी धार्मिक जगहों पर विवाद मजहबी झगड़े का कारण बनते हैं. इसलिए इस तरह की मनमानी को रोकने के लिए कानून में बदलाव की जरूरत तो है और सरकार को इस मामले को वोट के चक्कर में लटकाना नहीं चाहिए.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Waqf Act amendment : Why now?

AKB The government on Thursday tabled the Waqf (Amendment) Bill in Lok Sabha and after a brief discussion, agreed to refer it to a joint parliamentary committee for scrutiny. The bill aims to change the Waqf Act drastically, affecting the proprietorship and management of nearly 8.5 lakh Waqf properties in India. NDA allies, particularly Telugu Desam Party, Janata Dal(U) and LJP, told BJP leadership that since a lot of confusion has been spread about this bill among Muslims, it would be better to refer it to a JPC instead of hurriedly passing it in Parliament. Opposition parties led by Congress, Samajwadi party, NCP(Sharad pawar), DMK, National Conference, Indian Union Muslim League and Owaisi’s AIMIM, strongly opposed the bill alleging that it amount to governmental interference in the working of Waqf Boards. The opposition alleged that the government’s motive behind this bill was not bonafide, and it was measure to ensure backdoor acquisition of Waqf properties. Union Minister for Minority Affairs Kiren Rijiju introduced two bills, Waqf Amendment Bill and Mussalman Waqf Repeal Bill in Lok Sabha. AIMIM chief Asaduddin Owaisi said, since the bills violate Articles 14, 15 and 25 of the Constitution, it is an arbitrary step which goes against the basic nature of the Constitution. The bill proposes 40 amendments in the Waqf Act, 1995. One of the major amendments proposed relates to the powers of Waqf Tribunal, whose decisions cannot be challenged in courts. Under the new provision, if a Waqf Board declares a property as Waqf property, it will have to intimate the District Collector, who will initiate probe, get a survey done, and if the documents are found in order, can allow it to be declared as Waqf property. The new provision allows an appellant to go to the High Court to challenge a decision of the Waqf tribunal. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav questioned why the bill provides for inclusion of two women and representatives of backward Muslims on the Waqf Board. He questioned the propriety of nominating these members. Defending the bill, Kiren Rijiju said, this is not the first time Waqf Act is being amended, The Waqf Act of 1995 was amended in 2013, but the amendments made by the then Congress-led UPA government were against the recommendations of Sachhar Committee and the JPC set up under the chairmanship of K. Rahman Khan. Rijiju said, there are nearly 8.5 lakh Waqf properties in India, and there have been frequent reports about misuse of Waqf properties. He said, government does not want to interfere with the religious freedom of Muslims, nor is the bill against the Constitution. The bill has been brought to give more rights to Muslims who are economically weak, he said. Let me elaborate on what Rijiju wanted to convey. Since the time Waqf Act was made, there had been frequent demands for amendments. In 1976, a committee was set up. The committee, in its report said, most of the Waqf properties are under the control of Mutawallis (caretakers) and this needs to be changed. The committee also pointed out to massive irregularities in the Waqf Board accounts, and recommended regular audit. In 1995, the then Congress government made certain amendments. In 2005, the Sachchar Committee was set up, which said there are 4.69 lakh Waqf properties in India, and their earnings amounted to only Rs 162 crore, whereas according to market rates, the earnings should have been at least Rs 12,000 crore. The Sachchar committee wanted a probe into where this money was being channelized. It recommended transparency in the management of Waqf properties, widening the base of Waqf Boards, inclusion of at least two women in Central and State Waqf Boards, representation for backward Muslims in Waqf Boards, and appointment of a Class 1 officer to run the Waqf Board in a proper manner. The JPC headed by K. Rahman Khan, set up during Congress regime, also said that most of the time of Waqf Boards is being spent in appointing or removing Mutawallis (caretakers), and this should end. The JPC also recommended proper survey of all Waqf properties, inclusion of experts in the Boards, computerization of all Waqf properties and income and expenditure accounts of Waqf Board, and a re-look at the Waqf Act, 1995. The then UPA regime, headed by Dr Manmohan Singh, did not accept the recommendations of Sachchar Committee and JPC, and instead in 2013, it gave more powers to the Waqf boards. The then UPA government made it compulsory for inclusion of only Muslims as members of Waqf Boards. All these measures went against the recommendations of Sachchar Committee and JPC. Now that the Modi government has tried to rectify these mistakes by bringing amendments, the bill has been sent to JPC, keeping in mind the views of NDA allies like TDP, JD-U and LJP. LJP chief and Union Minister Chirag Paswan alleged that the opposition parties were spreading confusion that the bill was “anti-Muslim”, and this needs to be countered. Whatever Chirag Paswan may say, the fact remains that TDP, JD-U and LJP are concerned about Muslim votes. Since Bihar assembly elections are due next year, NDA allies like Nitish Kumar and Chirag Paswan are unwilling to take any risks. NDA allies found a middle path. They extended support to the bill during introduction stage, and then opted for sending it to JPC for scrutiny. The government accepted their views. BJP wanted to convey a political message that the opposition’s stand was political in nature and nothing to do with the interests of Muslims. It was a calculated step by the government. I personally feel that the Waqf Act must be amended, the sooner, the better. The main reason is: after the UPA government in 2013 gave more powers to Waqf Boards, the number of Waqf properties has gone up to 4.69 lakhs to more than 8.5 lakhs. Let me cite some examples. Last year, Gujarat administration used bulldozers to remove illegally occupied government land near the Dwarka sea coast. At that time, a total of 142 properties in Jamnagar and Dwarka were registered as Waqf properties. A mazaar was built on a land belonging to a farmer named Bhima, and it was shown as Waqf property in the register. Legally, no action could have been taken under Waqf Act, and the mazaar was saved from bulldozers. When people knew about this, they implemented this formula elsewhere. 341 new properties were registered with the Waqf Board in the last two years, while applications for more than 500 similar properties are pending. In Lucknow, Annapurna temple has been shown as a temple since 1962 in revenue records, but in 2016, it was declared as waqf property. There are thousands of similar cases. In most of the places, these disputes are the main cause behind communal tension. Amending Waqf Act is the need of the hour and the bill must not be kept pending for the sake of votes.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

कैसे सौ ग्राम ने एक अरब दिलों को तोड़ा

AKB पेरिस से दिल तोड़ने वाली खबर आई. पूरा देश प्रार्थना कर रहा था कि विनेश फोगाट कुश्ती में भारत के लिए ओलंपिक का पहला गोल्ड मेडल लेकर आए लेकिन बुधवार सुबह ये सपना टूट गया. सौ ग्राम वजन ज्यादा होने के कारण विनेश को अयोग्य ठहरा कर ओलंपिक से बाहर कर दिया गया. अब उसे कोई मेडल नहीं मिलेगा, न कोई ranking मिलेगी, नियम सख्त है, क्रूर है, पर नियम तो नियम है, हालांकि इंडियन ओलंपिक असोसिएशन की कोशिशें जारी है. असल में मंगलवार रात विनेश ने सेमीफाइनल में सेमीफाइनल में जबरदस्त जीत हासिल की, इसलिए पूरे देश की उम्मीदें और बढ़ गई थीं. सबको यकीन था कि भारत की बेटी भारत के लिए गोल्ड लाएगी. अगर हार भी जाती तो सिल्वर तो पक्का था. भारत की महिला कुश्ती के इतिहास में ये पहली बार होता लेकिन सुबह-सुबह सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. विनेश पचास किलोग्राम वर्ग में खेल रही थी और उनका वजन पचास किलोग्राम से सौ ग्राम ज्यादा निकला. अब पूरा देश सदमे में हैं. विनेश के घर में चैंपियन के स्वागत की तैयारी चल रही थी. अब गम का माहौल है. गुरवार सुबह विनेश ने X पर कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया. विनेश ने लिखा – “माँ कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई. माफ़ करना, आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके. इससे ज़्यादा ताक़त नहीं रही अब. अलविदा कुश्ती 2001-2024. आप सबकी हमेशा ऋणी रहूँगी. माफी”. बुधवार को विनेश के अयोग्य ठहराये जाने की खबर जैसे ही आई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पेरिस में मौजूद इंडियन ओलंपिक एसोशिएशन की अध्यक्ष पी टी उषा से बात की, कहा कि विनेश के लिए जो भी संभव हो किया जाए, जहां अपील करनी हो तुरंत की जाए. प्रधानमंत्री मोदी ने विनेश का भी हौसला बढ़ाया, कहा कि वो “ चैंपियनों की चैंपियन हैं. निराश होने की जरूरत नहीं हैं. पूरे देश को आप पर गर्व है.” सभी दलों के नेताओं ने, खेल से जुड़े लोगों ने, देश के आम लोगों ने विनेश का हौसला बढाया. लेकिन सबके मन में अभी भी ये सवाल है कि अचानक विनेश का वजन कैसे बढ़ गया. ऐसा क्या हुआ कि जो विनेश फोगाट अब तक सारे मैचों में फिट थीं, उनका वजन कैटेगरी के हिसाब से सही था, कुछ ही घंटों में कैसे बढ़ गया. इसका जवाब पेरिस में भारतीय दल के साथ मौजूद चीफ मेडिकल ऑफिसर दिनशॉ पारदीवाला ने दिया. डॉक्टर पारदीवाला ने खुलासा किया कि कल रात को विनेश फोगाट का वजन सौ, दो सौ ग्राम नहीं, बल्कि दो किलो सात सौ ग्राम ज्यादा था, यानि विनेश का वजन पचास किलो के बजाए 52 किलो सात सौ ग्राम हो गया था. चौदह घंटे में विनेश का वजन ढ़ाई किलो से ज्यादा बढ़ गया. इसके बाद पूरी रात डक्टर्स और फिजियो की टीम विनेश फोगाट का वजन कम करने की कोशिशों में जुटी रही. दो किलो छह सौ ग्राम वजन कम करने में कामयाब हो भी गई लेकिन सौ ग्राम वजन फिर भी ज्यादा था. दिनशॉ पारदीवाला र्मुंबई में कोकिलाबेन अस्पताल में आर्थ्रोस्कोपी और शोल्डर सर्विस के डायरेक्टर हैं और कई बड़े खिलाड़ियों के साथ काम कर चुके हैं. डॉक्टर पारदीवाला ने बताया कि कल रात जैसे ही ये पता लगा कि विनेश का वजन ज्यादा है, उसे ज्यादा वजन के कारण ओलंपिक से अयोग्य ठहराया जा सकता है, तो डॉक्टर्स ने रात भर मेहनत की. चूंकि जिस दिन मुकाबला होता है, उसी दिन सुबह सवा सात बजे और फिर साढ़े सात बजे मुकाबले में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों का वेट लिया जाता है, मंगलवार को विनेश ने भारतीय समय रात करीब पौने ग्यारह बजे सेमीफाइनल जीता था. उस वक्त पेरिस में शाम सवा सात बजे थे. सेमीफाइनल के बाद फिजियो ने विनेश का वेट लिया, वजन पौने तीन किलो ज्यादा था. वजन कम करने के लिए डॉक्टर्स की टीम के पास कुल बारह घंटे का वक्त था. विनेश ने रात भर एक्सरसाइज की, पूरी रात पसीना बहाया, इतनी मेहनत की कि उसके बाद अगर और जोर लगाया जाता तो वो बेहोश होकर गिर हो सकती थी लेकिन बारह घंटे में विनेश ने दो किलो छह सौ ग्राम वजन कम कर लिया. लेकिन फिर भी पचास किलो से सौ ग्राम वजन ज्यादा निकला और सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. पूरी मेहनत बेकार चली गई. डॉक्टर पारदीवाला से पूछा गया कि आखिर चौदह घंटे में किसी का वजन ढ़ाई किलो से ज्यादा कैसे बढ़ सकता है. इसके जबाव में डॉक्टर पारदीवाला ने बताया कि असल में होता ये है कि दुनिया के ज़्यादातर पहलवान अपने असली वजन से कम वाली कैटेगरी में खेलते हैं ताकि उनके जीतने के चांस ज्यादा हों. ये नॉर्मल बात है. हर एथलीट के साथ जो न्यूट्रिशिनिस्ट और सपोर्ट स्टाफ होता है, उन्हें ये पता होता है कि मुकाबले से पहले वजन को कंट्रोल करके कैसे तय सीमा में लाया जाए. इसके लिए डाइट भी वैसी ही होती है. पानी कम पिलाया जाता है. विनेश पहले 53 किलो वर्ग में खेलती थी लेकिन इस बार ओलंपिक से पहले 53 किलो कैटेगरी में अंतिम पंघाल का सिलेक्शन हुआ था. इसलिए विनेश ने इसी साल फऱवरी में पचास किलो वर्ग का विकल्प चुना, सिर्फ पांच महीने में अपना वजन कम किया. इसके लिए कड़ी मेहनत की. आम तौर पर खिलाड़ी अपनी कैटेगरी के हिसाब से अपना वजन एक से डेढ किलो तक कम रखते हैं. जिस जिन मैच होता है, उससे पहले कोई सॉलिड डाइट नहीं लेते, पानी भी ज्यादा नहीं पीते, जिससे वजन काबू में रहे. आमतौर पर एक दिन में एक ही मुकाबला खेलना पड़ता है. इसलिए मैच के बाद पहलवान अच्छी डाइट लेते हैं जिससे उनका इनर्जी लेवल और वजन दोनों मेंटेन रहते हैं. लेकिन विनेश के साथ मंगलवार को एक गड़बड़ी हो गई. एक ही दिन में तीन मैच खेलने पड़े. तीनों मैच मुश्किल थे. मुकाबला वर्ल्ड चैंपियन से थी, डिफेंडिंग ओलंपिंक चैंपियन से था. विनेश ने तीनों मुकाबले जीते. इससे उनका मेडल तो पक्का हो गया. पूरे देश में खुशी का माहौल बन गया लेकिन तीनों मुकाबलों के बाद विनेश का इनर्जी लेबल बहुत ज्यादा डाउन हो गया, वो बुरी तरह डीहाइड्रेट हो गईं. इसलिए मुकाबलों के तुंरत बाद डॉक्टर्स ने उन्हें इनर्जी ड्रिंक्स और काफी पानी पीने की इजाजत दी. अगर ऐसा न किया जाता तो विनेश बेहोश हो सकती थी. डॉक्टर्स को अंदाजा था कि पानी और इनर्जी ड्रिक्स का असर विनेश के वजन पर पड़ेगा क्योंकि शरीर के गठन के हिसाब से ऐसा होता है. डॉक्टर्स को अंदाजा था कि इससे विनेश का वजन डेढ़ किलो तक बढ़ेगा लेकिन विनेश का वजन दो किलो सात सौ ग्राम तक बढ़ गया. इसी से सारी दिक्कत हो गई. इसके बाद विनेश ने बिना खाए, बिना पानी पिए, रात भर पसीना बहाया, रस्सी कूदी, साइकिलिंग की, दूसरी तरह की एक्सरसाइज की, विनेश को steam और sauna में रखा गया, उनके बाल काटे गए, ड्रैस को भी छोटा किया गया. लेकिन लगातार बारह घंटे तक तमाम तरह के उपाय करने के बाद भी हमारी टीम विनेश का वजन दो किलो छह सौ ग्राम कम कर पाई, सुबह सवा सात बजे वजन नैपा गया, और विनेश का वजन पचास किलो से सौ ग्राम ज्यादा निकला. नियमों के हिसाब से विनेश को ओलंपिक से अयोग्य ठहरा दिया गय़ा. विनेश फोगाट हरियाणा की हैं. हरियाणा में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए कांग्रेस ने विनेश को अयोग्य ठहराये जाने को हरियाणा की बेटी के सम्मान से जोडा. भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी शैलजा से लेकर दीपेन्द्र हुड्डा तक सब इस मुद्दे पर बोले. दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार का पूरा ध्यान ये बताने में है कि उसने विनेश पर कितना खर्च किया, जबकि सरकार को ये बताना चाहिए था कि विनेश को अयोग्य ठहराये जाने के बाद उसे इंसाफ दिलाने के लिए सरकार और ओलंपिक एसोसिएशन ने क्या किया. आम आदमी पार्टी की तरफ से पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हरियाणा के चरखी दादारी में विनेश फोगाट के घर पहुंच गए. भगवंत मान ने विनेश के पिता और ताऊ से बात की. पहले तो उन्होंने विनेश के कोच और सपोर्ट स्टाफ को इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार बताया और इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करने लग गए. विरोधी दलों के जो नेता सरकार पर साजिश का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें विनेश के ताऊ और गुरू महावीर फोगाट की बात जरूर सुननी चाहिए. महावीर फोगाट ने कहा कि विनेश का वजन कंट्रोल में रखना उनके डॉक्टर और सपोर्ट स्टाफ का काम था. उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया लेकिन जहां तक विनेश को अयोग्य ठहराये जाने का सवाल है तो विश्ती कुश्ती फेडरेशन के जो नियम है, वो सबके लिए बराबर हैं. महावीर फोगाट ने कहा कि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है, विनेश फिर तैयारी करगी और 2028 के ओलंपिक में मेडल लेकर आएगी. ये सही है कि विनेश चैंपियन रेसलर हैं. एक ही दिन में तीन-तीन मैच जीतकर उन्होंने दिखा दिया कि वो कितनी बड़ी प्लेयर हैं. जब लोगों ने विनेश की हिम्मत, विनेश का जज्बा और विनेश की कुश्ती देखी, तो सब मानकर बैठे थे कि गोल्ड मिलना तो तय है. विनेश अगर हार भी जातीं तो सिल्वर तो मिलना ही था. भारतीय कुश्ती के इतिहास में किसी महिला रेसलर ने ऐसा कमाल पहले कभी नहीं किया. और जब ये विश्वास टूटा, सपना बिखरा, तो दुख हुआ. रिपोर्ट्स देखकर ये भी साफ है कि विनेश ने वजन कम करने के लिए हर तरह की कोशिश की, रात भर वर्कआउट किया, बाल भी काटे, कपड़े भी छोटे किए गए पर 100 ग्राम मेडल पर भारी पड़ गया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है. इसकी टीस लंबे समय तक दिल को चुभती रहेगी पर विनेश को लेकर इतनी बातें क्यों बनीं, इतने सवाल क्यों खड़े हुए, इतनी अफवाहें क्यों फैलाई गईं, इसकी वजह न तो अयोग्यता ठहराये जाने का मुद्दा है, न मेडल छिन जाने की हताशा. इसकी वजह है, विनेश से जुड़ी लोगों की आहत भावनाओं को exploit करने की कोशिश. ये कोई सीक्रेट नहीं है कि विनेश ने बड़ी हिम्मत से कुश्ती में लड़कियों के साथ होने वाले जुल्म का विरोध किया था. बृजभूषण शरण सिंह की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी. इसी प्रोटेस्ट के दौरान विनेश को सड़क पर भी घसीटा गया था. मैंने उस समय भी इसकी कड़ी निंदा की थी. बृजभूषण शरण सिंह को खरी-खरी सुनाई थी. वो बीजेपी के सांसद थे. इसलिए बृजभूषण के अहंकार और दुर्व्यवहार को लेकर, विरोधी दलों को सरकार पर सवाल उठाने का अच्छा खासा मौका मिला था. उन्होंने इसका इस्तेमाल किया. उसमें कुछ गलत नहीं था. उस समय रेसलर्स के हक़ में आवाज उठाना सही था लेकिन आज विनेश के डिसक्वॉलिफिकेशन को साजिश बताना न्यायसंगत नहीं है. विनेश के सपोर्ट स्टाफ से सवाल जरूर पूछे जाने चाहिए. कोच, फिजियो, डॉक्टर ये बताएं कि विनेश का weight management क्यों नहीं कर पाए. ओलंपिक कमेटी से ये पूछा जाना चाहिए कि विनेश को एक ही दिन में तीन तीन मैच क्यों खिलाए. लेकिन इस मामले को खेल तक सीमित रखा जाए, तो बेहतर होगा. इसमें राजनीति घुसाने की जरूरत नहीं है.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

How Hundred Grams Broke Billions Of Hearts

AKB At a time when the entire nation was eagerly waiting for Vinesh Phogat to become the first Indian wrestler to win the Olympic gold medal, there was heartbreaking news when she was disqualified for being overweight by 100 grams in the 50 kg category. A crestfallen Vinesh was admitted to hospital due to dehydration and she was later released. She filed an appeal in the Court of Arbitration for Sport (CAS) against her disqualification, but by Thursday morning, Vinesh posted on social media announcing her retirement from wrestling. In the ‘X’ post addressed to her mother, Vinesh wrote, “Mom, wrestling has won, I have lost. Forgive me, because your dream and my courage now lie shattered. I do not have any energy left. Goodbye wrestling 2001-2024. I shall always remain indebted to all of you. Forgive me.” International wrestling rules are strict. If a wrestler weighs more than the category, he or she is immediately disqualified. Vinesh became worried soon after winning her semifinal against the Cuban wrestler, because of overweight. Throughout Tuesday night, all efforts were made by the team staff and the doctor to ensure that her weight remained within the 50 kg limit, but on Wednesday morning, when she was weighed before the final, it was 100 grams more than the limit. As per rules, she was immediately disqualified. Prime Minister Narendra Modi tried to console Vinesh by posting a tweet on ‘X’: “Vinesh, you are a champion among champions! You are India’s pride and an inspiration for each and every Indian. Today’s setback hurts. I wish words could express the sense of despair that I am experiencing. At the same time, I know that you epitomize resilience. It has always been your nature to take challenges head on. Come back stronger! We are all rooting for you.” The Prime Minister spoke to Indian Olympic Association president P. T. Usha, who was in Paris, and asked her to provide whatever help Vinesh needed. It is still a mystery how Vinesh Phogat’s weight suddenly increased above the limit after her semifinal bout. Chief Medical Officer of the Indian Olympic contingent, Dr Dinshaw Pardiwala, revealed that on Tuesday night, after her victory in the semifinal, Vinesh was weighing 2.7 kg more than the 50 kg limit. Throughout the night, all efforts were made to reduce her weight, and she managed to reduce it by 2.6 kg. Dr Pardiwala is the director of Arthoscropy and Shoulder Service at Mumbai’s Kokilaben Dhirubhai Ambani Hospital and is the Head of Centre for Sports Medicine. He said, ‘had we got some more time, we could have managed to reduce her weight below 50 kg’. Asked why Vinesh suddenly gained weight after her semifinal bout, Dr Pardiwala explained that most of the wrestlers in the world play in category which is below their actual weight, in order to improve their chances of winning. They have nutritionists and support staff to keep a watch on their weight. Vinesh used to play in 53 kg category earlier, but before the Paris Olympics, Antim Panghal was selected for this category, and then Vinesh had to opt for 50 kg category. She reduced her weight within five months, toiled hard, abstained from solid diet and water intake. Normally wrestlers play one bout a day, after which they take good diet to maintain both their energy level and weight. But on Tuesday, Vinesh had to play three bouts on a single day. All the three matches were tough, and in the semifinal, she had the defending champion as her rival. Vinesh won all the three games, and ensured a medal for herself, but her energy level fell badly. She suffered from extreme dehydration. Doctors allowed him to take energy drinks and water. Had they not done so, Vinesh could have fainted. The physicians knew that the energy drinks and water could raise Vinesh’s weight, and it happened. Throughout the night, she tried to shed her sweat, by rope skipping, cycling and other exercises. She also undertook steam and sauna bath. Her hair was cut and her dress was shortened, but despite 12 hours of toil, she managed to shed only 2.6 kg weight, and was still 100 gm overweight. Vinesh’s uncle Mahavir Phogat said, he would try to persuade her not to retire and prepare for the 2028 Olympics medal. Vinesh is undoubtedly a champion wrestler. By winning three bouts in a single day, she showed her stamina and skill. People who watched her games were confident that Vinesh would definitely win the gold medal. Had she lost the final, she could have settled for silver. For the first time in history, an Indian female wrestler was going to win an Olympics medal. Now those dreams lie shattered. It is truly sad. Vinesh tried her best by doing workouts late in the night, cut her hair and dress, but she lost by a whisker (100 grams). This loss shall surely rankle for a long time in the minds of millions of Indians. Rumors and conspiracy theories were floated after her disqualification. Some people tried to exploit the situation and play on people’s sentiments. It is no secret that Vinesh Phogat had actively taken part in the protest against sexual harassment of female wrestlers by the then Wrestling Federation of India chief Brij Bhushan Sharan Singh. Vinesh and her friends were forcibly dragged by police at midnight on the streets near Delhi’s Jantar Mantar. I had strongly opposed that act of Delhi Police at that time and had condemned the acts of Brij Bhushan Sharan Singh, who was then a BJP MP. Opposition parties got the opportunity to raise questions about Brij Bhushan’s arrogance and harassment of female wrestlers. There was nothing wrong in that. They raised their voice in support of female wrestlers, but to describe Vinesh’s disqualification as a ‘conspiracy’ is not justified. Vinesh’s support staff must be questioned. Her coach, physio and doctor must explain why they could not carry out proper weight management of the wrestler. International Olympic Committee must be asked why a wrestler was asked to play three games on a single day. It would be better if this is all kept within the limit of sports. There is no need to inject politics in this issue.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook