Rajat Sharma

My Opinion

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दिल्ली में जलभराव : दोषी कौन ?

AKBदिल्ली में शुक्रवार को मॉनसून की पहली बारिश हुई और पहले ही दिन 88 साल का रिकॉर्ड टूट गया. राजधानी बारिश के पानी में डूब गई, रास्तों पर जाम लगे..लोग कई कई घंटों तक ट्रैफ़िक में फंसे रहे, लेकिन कोई क्या कर सकता है. दिल्ली में बारिश ने 88 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया. जितनी बारिश पूरे मॉनसून सीजन में होती है, उसका 25 परसेंट पहली बारिश में ही सिर्फ चार घंटे के दौरान हो गई. तेज़ बारिश और तूफानी हवाएं बुरी खबरें लेकर आई. सबसे भयानक हादसा दिल्ली एयरपोर्ट पर हुआ. इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट में टर्मिनल-1 के डिपार्चर गेट के पास बने शेड की छत गिर गई. इस हादसे में एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई, और 6 लोग घायल हो गए. जो शेड गिरा उसके नीचे बहुत सी गाड़ियां खड़ी थी, चार गाडियां इस शेड के मलबे के नीचे दब गईं. लोहे के बड़े-बड़े गार्डर कारों के ऊपर गिरे. जिसमें दबकर रमेश कुमार नाम के कैब ड्राइवर की मौत हो गई. हादसे के बाद टर्मिनल-1 पर फ्लाइट ऑपरेशन्स बंद कर दिए गए. नागर विमानन मंत्री राममोहन नायडू तुंरत एयपोर्ट पहुंचे, रेसक्यू ऑपरेशन का जाय़जा लिया. मृतक के परिवार को 20 लाख रूपये सहायता देने का ऐलान हुआ. घायलों को तीन लाख रुपये दिए जाएंगे. जांच के लिए टैक्नीकल टीम्स गठित कर दी गई है. इस मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई. विरोधी दलों के नेताओं ने इस हादसे के लिए भी नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया. प्रियंका गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि प्रधानमंत्री जी आपने इसी साल मार्च में दिल्ली एयरपोर्ट के जिस टर्मिनल-1 का उद्घाटन किया था, उसकी छत गिर गई, जिसमें एक कैब ड्राइवर की मौत हो गई. विपक्ष के दूसरे नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार काम की क्वालिटी के बजाए सिर्फ काम का प्रचार करती है,इसीलिए ये हादसा हुआ लेकिन नागर विमानन मंत्री ने कहा कि ये वक्त सियासत का नहीं हैं, हकीकत ये है कि जो कैनोपी गिरी है, उसका उद्घाटन 2009 में हुआ था और उस वक्त यूपीए की सरकार थी. हालांकि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिस जगह हादसा हुआ, उसका उद्घाटन किसकी सरकार के वक्त हुआ था लेकिन हादसे की बजाय इसी बात को मुद्दा बनाया जा रहा है. विपक्ष के आरोपों पर जब राममोहन नायडू ने तथ्य बता दिया तो विपक्ष के सुर बदले. मनमोहन सिंह की सरकार में उस वक्त प्रफुल्ल पटेल नागर विमानन मंत्री थे, वो अब NDA में हैं. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि जिस कंपनी ने उस वक्त एयरपोर्ट का ये हिस्सा बनाया था, वो दुनिया की बड़ी कंपनी है, उसी ने भारत के ज्यादातर एयरपोर्ट बनाए हैं. इसलिए ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि हादसा क्यों हुआ, किसकी गलती से हुआ, लेकिन ये राजनीति का मुद्दा नहीं है. इसी तरह का हादसा जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट पर भी हुआ. जबलपुर में एयरपोर्ट की कैनोपी का एक हिस्सा भारी बारिश की वजह से गिर गया. छत का सारा मलबा वहां खड़ी इनकम टैक्स अफसर की कार के ऊपर गिरा. राहत की बात ये रही कि उस वक्त कार में कोई नहीं था. इस एयरपोर्ट का उद्घाटन तीन महीने पहले ही हुआ था. अब एयरपोर्ट अथॉरिटी इस बात की जांच गिर रही है कि आखिर तीन पहले ही जिस एयरपोर्ट का उद्घाटन हुआ था, वहां ये हादसा कैसे हो गया. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने इस तरह के तमाम हादसों की लिस्ट गिना कर दावा कर दिया कि नरेन्द्र मोदी की सरकार में जो-जो काम हुए हैं, उनका यही हाल है. और वजह एक ही है, सरकार का फोकस काम की बजाय प्रचार पर है. ये ठीक है कि जबलपुर हो या दिल्ली, एयरपोर्ट पर जो हादसे हुए वो गंभीर है, ये चिंता की बात है. मसला ये नहीं है कि उद्घाटन किसके कार्यकाल में हुआ, मसला है मेंटेनेंस का है और इसकी ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए. दोषियों पर एक्शन भी होना चाहिए क्योंकि एयरपोर्ट अथॉरिटी हवाई अड्डों के रखरखाव के लिए भी यात्रियों से पैसा वसूलती है. लेकिन हर बात में मोदी का नाम लेने का क्या मतलब ? दिल्ली में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई, लेकिन ये बारिश मोदी ने तो नहीं करवाई. ये सही है कि एयरपोर्ट की canopy टूटी लेकिन ये canopy मोदी ने तो नहीं बनवाई. असल में हर बात में सियासत करने से, हर बात में मोदी का नाम घसीटने से, आरोप लगाने वालों की बात का वज़न कम होता है, जैसे संजय सिंह ने कमाल कर दिया, बहुत सारे केस गिना दिए, उनमें कुछ सही थे, कुछ ग़लत, और सबके लिए मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया, लेकिन जब दिल्ली में सड़कों पर पानी भरने का मसला उठा, जब दिल्ली में लोगों के घरों में पानी भरा, तो संजय सिंह ने कहा कि ये तो हर साल होता है, हर बारिश में होता है, इसके लिए उन्होंने अपनी पार्टी की सरकार को दोषी नहीं ठहराया. दिल्ली में पिछले 24 घंटे में 228 मिलीमीटर बारिश हुई. जून के महीने में 1936 के बाद ये पहला मौका है, जब इतनी बारिश हुई. मॉनसून की पहली बारिश में दिल्ली के कई इलाके डूब गए. बाढ़ जैसे हालात बन गए. सड़कों पर बोट चलने लगी, मकानों में पानी भर गया, अंडरपास जलमग्न हो गए. हजारों गाड़ियां फंस गईं. लोग फंस गए, कारें डूब गईं, बाइक बहने लगीं, घर गिर गए. पानी भर जाने की वजह से सड़कें गायब हो गईं. ऐसा लगा जैसे तालाब के बीच में कुछ गाड़ियां फंसी हुई हैं और कुछ लोग तालाब पार करने की कोशिश कर रहे हों. बारिश के कारण नेताओं के घरों में पानी भर गया. कांग्रेस के नेता शशि थरूर, सपा नेता राम गोपाल यादव और मनोज तिवारी के घरं में पानी भर गया. रामगोपाल य़ादव को उनके घर के कर्मचारी कंधे पर उठाकर गेट तक लाए और गाड़ी में बैठाया. दिलचस्प बात ये है कि दिल्ली में पानी की किल्लत को लेकर चार दिन पहले तक अनशन कर रही दिल्ली की मंत्री आतिशी के घर में भी पानी भर गया. दिल्ली में पानी की कमी हो या दिल्ली में पानी भर जाए, आम आदमी पार्टी के नेताओं का एक ही जवाब होता है, इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार है. और बीजेपी, दिल्ली वालों की मुसीबत के लिए केजरीवाल की पार्टी को दोषी बता देती है. लेकिन हकीकत अलग है. आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में नालों की कुल लम्बाई 3314.54 किलोमीटर है और कुल 201 natural drains हैं. दिल्ली की मुश्किल ये है कि ड्रेनेज सिस्टम की सफाई और मेंटेनेंस की जिम्मेदारी अलग अलग इलाकों में सिंचाई और बाढ नियंत्रण विभाग, लोक निर्माण विभाग, दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगरपालिका कौंसिल और दिल्ली विकास प्राधिकरण जैसी कई संस्थाओं के पास है. सारी एजेंसियां दिल्ली के लोगों की बेहतरी के काम करती है लेकिन किसी का आपस में तालमेल नहीं हैं. दिल्ली में केन्द्र सरकार, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल तीनों का दखल है. केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच झगड़ा किसी से छुपा नहीं हैं. जब कोई मुश्किल आती है, तो सब एक दूसरे पर आरोप लगाकर पल्ला झाड़ लेते हैं और दिल्ली वाले हर साल इसी तरह परेशान होते हैं, चाहे पानी का संकट हो या बाढ़.

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DELHI WATERLOGGING : WHO IS TO BLAME?

AKB The first monsoon rains caused a deluge in the capital on Friday, breaking an eight-decades-old record. 228 mm of rains in a span of only four hours recorded the highest June day rainfall in 88 years, leaving five people died and causing waterlogging across the capital. Vehicles were stranded in traffic nightmare for hours, and most of the localities and roads were waterlogged. The civic authorities appeared helpless, as strong winds accompanied by heavy showers uprooted trees and blew away roofs. The most alarming mishap took place at Indira Gandhi International Airport, where the canopy of the forecourt of Terminal One departure gates, crashed on to vehicles, leaving a cab driver Ramesh Kumar dead and eight others injured. Huge iron girders fell on vehicles parked below the canopy. Flight operations at T1 were immediately suspended, and shifted to T2 and T3. Nearly 128 flights were cancelled. The new Civil Aviation Minister Ram Mohan Naidu went to the airport and coordinated rescue operations. The Centre has ordered nationwide audit of all airports by undertaking detailed structural inspections, so that all safety standards are met. Political blamegame soon began, with BJP leaders pointing out that the canopy was built in 2009 during UPA regime, while Congress leaders alleged that the Prime Minister Narendra Modi had inaugurated the new Terminal One in March this year. Praful Patel, who was Civil Aviation Minister in 2009, claimed that one of the world’s top companies had built the roof canopy of Delhi airport’s Terminal One, and only a thorough inquiry can pinpoint the exact cause of the mishap. A similar mishap took place on Friday at Jabalpur airport, where a part of the canopy crashed down after heavy downpour. Whether it is Delhi or Jabalpur, such mishaps should be a reason for worry. The question is not about when these roofs were built under which regime. The question relates to regular maintenance, accountability must be fixed and the guilty should be punished. Airports Authority charges hefty fees from flyers for maintenance of airports. Political parties should avoid making political capital from tragedies. It would be unfair to blame Prime Minsiter Modi for such mishaps.

WATERLOGGING

The roads and main arteries of Delhi were flooded after the heavy downpour. In some localities, people had to use boats, while homes and underpasses were flooded. Thousands of vehicles were stranded in long traffic jams. Houses collapsed in many localities. The residences of some MPs like Shashi Tharoor, Manoj Tewari and Ram Gopal Yadav in VIP Lutyens’ Zone were flooded. Yadav had to be carried on shoulders to his car, as he had to attend the Parliament session. In a strange coincidence, the residence of Delhi Minister Atishi, who had sat on 4-day-long fast demanding more water for the capital, was also flooded. An emergency meeting of Delhi ministers and bureaucrats was called, a control room was set up, and measures were put in place to clear the drainage system. The blamegame began. BJP leaders alleged that Delhi government did not take adequate measures and drains were not cleared resulting in waterlogging. Minister Atishi said, Delhi’s drainage system is equipped to face only 50 mm rainfall, and Friday’s rainfall was four times that figure. BJP MP Manoj Tiwari alleged that since AAP controlled both Delhi government and Municipal Corporation of Delhi, it was to blame for not taking timely measures. Whether it is shortage of water or a deluge, AAP leaders blame it on BJP, while BJP leaders blame Kejriwal’s party for Delhi’s woes. The ground reality is quite different. You may be surprised to know that the total length of Delhi’s drains in 3314.54 km, and there are 201 natural drains. The main problem is that the responsibility of cleaning and maintenance of drainage system in different localities is with various agencies, like Irrigation and Flood Control department, PWD, Municipal Corporation, New Delhi Municipal Council and Delhi Development Authority. All these agencies are supposed to work for the betterment of the people of Delhi, but there is clear lack of coordination between them. The Centre, Delhi government and Lt. Governor have powers to interfere in Delhi’s civic matters, and frequent quarrels between the Centre and AAP govt are an open secret. Whenever there is any calamity, both sides try to blame the other, and the ordinary Delhiite faces woes every year, water or no water.

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राष्ट्रपति के भाषण में दिये गए संदेश को समझें

AKB30 राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने गुरुवार को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित किया. उनके भाषण से सरकार का इरादा पता चला, आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री मोदी के एक्शन प्लान के संकेत मिले. मैं इसकी कुछ ख़ास ख़ास बातें आपको बता देता हूं. पहली बात, आने वाले बजट में सरकार के बड़े और ऐतिहासिक फ़ैसले देखने को मिलेंगे. आगामी बजट सरकार की दूरगामी नीतियों और भावी दिशाओं का एक प्रभावी दस्तावेज़ होगा. राष्ट्रपति ने दूसरी ख़ास बात संचार माध्यमों के दुरूपयोग को लेकर कही. अफ़वाहें फैलाने में सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर चिंता ज़ाहिर की. द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि देश विरोधी ताकतें संचार टैकनोलोजी का इस्तेमाल लोकतन्त्र को कमज़ोर करने और समाज में दरार पैदा करने के लिए कर रही हैं, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स और दूसरे कम्युनिकेशन टूल्स का इस्तेमाल करके देश के ख़िलाफ़ साज़िश की जा रही है. द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि हम विकसित भारत की दिशा में सही रास्ते पर हैं लेकिन जिस तरह से से जनता को गुमराह करने में तमाम तरह की अफ़वाहें फैलाने में, गलत सूचनाओं का सहारा लिया जा रहा है, वह गंभीर चिंता का विषय है. राष्ट्रपति ने कहा कि इस तरह की हरकतों को बेरोकटोक नहीं चलने दिया जा सकता, सरकार इसे रोकने के रास्ते खोजेगी. राष्ट्रपति ने विस्तार में बताया कि दस साल में सरकार ने कौन कौन से बड़े काम किए हैं, किस तरह से जनहित की योजनाओं को लागू किया है, नौजवानों, महिलाओं, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के हितों की रक्षा करने वाले फ़ैसले लिए हैं, देश वैश्विक स्तर पर कहां से कहां पहुंचा है, दुनिया में भारत की छवि कैसे बदली है. इन सारी बातों की ज़िक्र राष्ट्रपति के अभिभाषण में हुआ. आगे सरकार क्या करेगी, अगले पांच साल के लिए कौन कौन से लक्ष्य रखे गए हैं, सरकार की दिशा कैसी होगी, इसका अंदाज़ा भी राष्ट्रपति के अभिभाषण से मिला. लेकिन सबसे पहले बात करूंगा संचार टैक्नोलॉजी के दुरुपयोग को लेकर. राष्ट्रपति ने कहा, “आज की संचार क्रांति के युग में विघटनकारी ताकतें, लोकतंत्र को कमजोर करने और समाज में दरारें डालने की साजिशें रच रही हैं. ये ताकतें देश के भीतर भी हैं और देश के बाहर से भी संचालित हो रही हैं. इनके द्वारा अफवाह फैलाने का, जनता को भ्रम में डालने का, misinformation का सहारा लिया जा रहा है. इस स्थिति को ऐसे ही बेरोक-टोक नहीं चलने दिया जा सकता. आज के समय में टेक्नॉलॉजी हर दिन और उन्नत हो रही है. ऐसे में मानवता के विरुद्ध इनका गलत उपयोग बहुत घातक है. भारत ने विश्व मंच पर भी इन चिंताओं को प्रकट किया है और एक ग्लोबल फ्रेमवर्क की वकालत की है. हम सभी का दायित्व है कि इस प्रवृत्ति को रोकें, इस चुनौती से निपटने के लिए नए रास्ते खोजें.” राष्ट्रपति ने इस बात के भी संकेत मिले कि मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट कैसा होगा. हालांकि अभी ये तय नहीं है कि बजट किस दिन पेश किया जाएगा. चूंकि संसद का मॉनसून सेशन 22 जुलाई से शुरू होने वाला है और उम्मीद है कि 23 या 24 जुलाई को बजट आ सकता है. राष्ट्रपति ने कहा कि आने वाले में बजट में सरकार कुछ बड़े और एतिहासिक फैसले करेगी. जैसे ही राष्ट्रपति ने इमरजेंसी का जिक्र किया तो कांग्रेस के सांसदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. राष्ट्रपति ने कहा कि 25 जून 1975 को लागू हुआ आपातकाल, संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय था. तब पूरे देश में हाहाकार मच गया था, लेकिन देश की जनता ने संविधान को कुचलने वाली ताकतों को हराया, देश में फिर संविधान का राज स्थापित किया. राष्ट्रपति के भाषण को गहराई से समझने की ज़रूरत है. संसद में उन्होंने जो कहा इसका मतलब जानने की ज़रूरत है. राष्ट्रपति ने वो सारी बातें कह दीं जो नरेंद्र मोदी जनता को बताना चाहते हैं. पहली बात तो ये, कि तीसरी बार मोदी सरकार आई है जो कि निरन्तरता का द्योतक है, ये पिछली दो सरकारों का extension है. दूसरी बात, मोदी की तीसरी सरकार पहले की तरह कड़े और कड़वे फ़ैसले लेगी, आने वाले कुछ दिनों में इन फ़ैसलों का असर नज़र आएगा. तीसरी बात परोक्ष रूप से कही गई, कि डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल झूठ फ़ैलाने और पब्लिक ओपिनियन को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है. इसमें घरेलू और विदेशी ताकतें दोनों शामिल हैं, और ये एक साज़िश है. ये बात चुनाव के संदर्भ में कही गई क्योंकि बीजेपी के नेता मानते हैं कि चुनाव के दौरान डिजिटल मीडिया के ज़रिए संविधान, डाक्टर अंबेडकर, आरक्षण, जातिगत जनगणना इन सबको मिलाकर एक फ़ेक नैरेटिव फैलाया गया जिसका बीजेपी को उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में ख़ासा नुक़सान हुआ. जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में बहस होगी तो ये बातें और खुलकर सामने आएंगी. राष्ट्रपति के भाषण में एक और बात थी जो कांग्रेस को काफ़ी चुभी. वो था इमरजेंसी का ज़िक्र. इमरजेंसी कांग्रेस के शासनकाल के दौरान लगी थी, संविधान, न्यायपालिका और मीडिया का गला घोंट दिया गया था और कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब नहीं है. इसीलिए कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि इमरजेंसी के उन काले दिनों को लोग भूल जाएं, इस पर बात ना हो. लेकिन आजकल कांग्रेस की तरफ़ से लोकतंत्र की हत्या की बात तो की जाती है, संविधान को ख़त्म करने की बात भी होती है, अघोषित इमरजेंसी का ज़िक्र होता है, तो फ़िर 50 साल पहले के काले दिनों को याद करने में क्या आपत्ति है? ये ठीक है कि इमरजेंसी का काला अध्याय कांग्रेस की दुखती रग़ है, लेकिन कोई भी देश इतिहास में हुई ग़लतियों से सीखता है. इसीलिए उसे याद करने की ज़रूरत तो है.

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MESSAGE IN PRESIDENT MURMU’S ADDRESS

AKB30 President Droupadi Murmu’s address to the joint session of Parliament on Thursday clearly reflects the intent of Narendra Modi 3.0 goernment in the months to come. Firstly, she said ,some big and historic decisions will be taken in the forthcoming Union Budget, and the budget will be an effective document showcasing the futuristic vision and long-term policies of the government. Secondly, the President spoke about the misuse of communication medium by disruptive forces. Murmu said, “In this era of communication revolution, disruptive forces are conspiring to weaken democracy and create fissures in the society. These forces resort to rumourmongering, misleading the people and misinformation. This situation cannot be allowed to continue unchecked.” The President said, at a time when India is trying to attain its objective of Viksit Bharat, forces inside and outside the country are spreading misinformation and rumours to create divisions in society, which is a matter for worry. The government, she said, will not allow this to continue. She said, misue of latest technology in communication against humanity is dangerous, and India has already expressed its concerns on global platforms. India has called for a global framework, and it is our responsibility to stop these tendencies, and find new ways to tackle these challenges, she said. While outlining the achievements made in the fields of social welfare schemes and infrastructure projects, the President indicated that the next Union Budget will reflect some important decisions. Though the dates of Parliament’s monsoon session have not been decided, but sources say, the session may begin from July 22, and the Union Budget may be introduced either on July 23 or 24. The President also mentioned the 1975 Emergency, and amidst shouts from Congress MPs, described it as a “black chapter” in India’s history. The people of India, she said, defeated the forces which were trying to crush the Constitution and re-established the rule of Constitution. “It is our responsibility to ensure that such a situation is never repeated again”, she said. One needs to understand the meaning of the President’s address in depth and figure out what she was trying to convey. The President referred to points which Narendra Modi wants to convey to the people. Firstly, this is the third Modi government, in continuity, and it is an extension of the previous two governments. Secondly, the third Modi government will take strong and tough decisions, as it took in the past. The effect of such decisions will be seen in the coming days. Thirdly, it was indirectly conveyed that digital media is being misused to spread lies and sway public opinion. Both internal and external forces are involved in this conspiracy. This remark was made in the context of recent elections. Top BJP leaders feel that the digital media was misused during the recent elections to create a fake narrative around the Constitution, Ambedkar, caste reservation and caste based census. This resulted in large-scale poll reverses for the BJP in states like UP and Maharashtra. This issue is going to be surely debated during the discussion that will take place on the Motion of Thanks for the President in both Houses. The point that hit the Congress hard in the President’s speech was her remark about 1975 Emergency. The then Congress Prime Minister Indira Gandhi had imposed Emergency to save her throne, and Constitution, judiciary and media were trampled upon by the then autocratic government. The present Congress leadership has no reply to this attack. Congress leaders want that the dark days of Emergency are best forgotten and there should be no discussion on this issue. But the point here is that the Congress itself is leading the opposition in alleging that democracy is being crushed and the Constitution is being weakend. The opposition leaders have been alleging about “undeclared emergency”. Then how can the same leaders object when BJP members remind people about the Emergency that was imposed 50 years ago? The dark chapter of Emergency has always been a sore point for the Congress, but one must remember: A nation must learn from mistakes that were committed in the past.

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स्पीकर का चुनाव : NDA एकजुट, विपक्ष में दरार के कारण हुई हार

AKB30 ओम बिरला ध्वनि मत से 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुन लिए गए. दस साल बाद कांग्रेस को प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी मिल गई. राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बन गए. स्पीकर के चुनाव में वोटिंग की नौबत ही नहीं आई. विपक्ष ने ओम बिरला के खिलाफ के. सुरेश को मैदान में उतारा था लेकिन ऐन वक्त पर क़दम पीछे खींच लिए, वोटों की गिनती की मांग नहीं की. इसलिए ओम बिरला को ध्वनि मत से चुन लिया गया. ओम बिरला आजादी के बाद छठे ऐसे अध्यक्ष हैं जो लगातार दूसरी बार इस कुर्सी पर बैठे हैं. बड़ी बात ये है कि अध्यक्ष के चुनाव के दौरान पूरा NDA न सिर्फ एक एकजुट रहा बल्कि सरकार के उम्मीदवार को जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस और अकाली दल जैसी पार्टिय़ों से भी समर्थन मिला. इस दौरान विपक्षी गठबंधन में साफ तौर पर फूट पड़ती नज़र आई. तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि वो वोटों की गिनती चाहती थी लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने उसकी मांग को अनसुना कर दिया. कांग्रेस ने वोटिंग न करवाने का फैसला तृणमूल कांग्रेस से बात किए बगैर लिया. कांग्रेस के नेताओं ने कह दिया कि हर पार्टी की अपनी अपनी राय है. कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतार कर जो संदेश देना था, दे दिया लेकिन कांग्रेस तो सर्वसम्मति से अध्यक्ष के चुनाव की परंपरा को कायम रखना चाहती थी, इसलिए वोटिंग से पीछे हटी. विपक्षी गठबंधन में शामिल JMM की महुआ मांझी ने कहा कि बहुमत तो सरकार के पास है, हमारे पास संख्या नहीं थी, तो फिर हारने के लिए वोटिंग की मांग क्यों करते? विपक्ष की तरफ से इस तरह के तमाम अलग अलग बयान आए. प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर लोकसभा में राहुल गांधी का पहला दिन था. राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी पर बैठे लेकिन विपक्ष के नेता के तौर पर पहला ही दिन राहुल के लिए चुनौतियों से भरा साबित हुआ. विपक्षी गठबंधन की एकता तार-तार हो गई. असल में अध्यक्ष के चुनाव में उम्मीदवार के नाम का एलान कांग्रेस ने ममता बनर्जी से पूछे बग़ैर किया था, इसलिए तृणमूल कांग्रेस के नेता नाराज थे. राहुल गांधी ने सदन में आने से पहले ममता बनर्जी से फोन पर बात की थी, उन्हें मनाने की कोशिश की, इसके बाद ममता बनर्जी ने अपने पार्टी के सांसदों से बात की लेकिन उनके कान में ऐसा मंत्र फूंक दिया जो कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए परेशान की सबब बन गया. लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओम बिरला को अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव रखा, जबकि विपक्ष की तरफ से शिव सेना (उद्धव) के अरविन्द सावंत ने के. सुरेश को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा. प्रोटेम स्पीकर ने प्रधानमंत्री के प्रस्ताव को ध्वनिमत के लिए रखा और प्रस्ताव पारित हो गया. कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने इस पर वोटिंग की मांग नहीं की. लेकिन प्रस्ताव पारित होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के कुछ सासदों ने वोटिंग की मांग की जिसे प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने खारिज कर दिया और ओम बिरला को अध्यक्ष घोषित कर दिया. अध्यक्ष का चुनाव तो हो गया लेकिन यहां से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की तनातनी बढ़ गई. ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने साफ़ कहा कि वो स्पीकर के चुनाव में वोटिंग चाहते थे लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने उनकी बात नहीं सुनी, ये संसदीय परंपरा और नियमों के खिलाफ है. लेकिन कांग्रेस ने इसके ठीक उलट बात कही. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि के. सुरेश को उम्मीदवार बनाने का मकसद सिर्फ सरकार की तानाशाही पर विरोध जताना था जो पर्चा भरने के साथ पूरा हो गया. इसके बाद वोटिंग की ज़रूरत नहीं थी. प्रमोद तिवारी ने कहा कि अध्यक्ष को सर्वसम्मति से चुने जाने की परंपरा को कांग्रेस निभाना चाहती थी इसीलिए पार्टी के सांसदों ने वोटिंग की मांग नहीं की. तारिक अनवर ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा जरूर है लेकिन वो एक अलग पार्टी है, उसकी अपनी राय है. तारिक़ अनवर ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस वोटिंग कराना चाहती है, ये कांग्रेस को मालूम नहीं था. मजे की बात ये है कि कांग्रेस के सांसद के सुरेश को स्पीकर चुने जाने का प्रस्ताव उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद अरविन्द सावंत ने रखा था लेकिन उद्धव ठाकरे की पार्टी ने भी वोटिंग की मांग नहीं की. संजय राउत ने कहा कि कहा कि ओम बिरला का विरोध सांकेतिक था और परंपराओं का ख़याल करते हुए विपक्ष ने मत विभाजन नहीं कराया. लेकिन असली बात JMM की सासंद महुआ माझी ने कही. महुआ माझी ने कहा कि बहुमत सरकार के पास है, विपक्ष के पास जीतने लायक़ वोट नहीं थे, इसलिए मत विभाजन नहीं कराया गया. राहुल गांधी की एक बात ज़बरदस्त है. हार में भी जीत खोज लेते हैं. चुनाव से पहले दावा कर रहे थे, हम जीतेंगे, मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे. अध्यक्ष के चुनाव से पहले कहा कि विपक्ष को डिप्टी स्पीकर की कुर्सी दे, तभी स्पीकर के पद के लिए ओम बिरला का समर्थन करेंगे. सरकार ने शर्त नहीं मानी तो के. सुरेश को मैदान में उतार दिया. जब संख्या बल में हार साफ दिखी तो वोटिंग कराने से पीछे हट गए. और कहने लगे कि सर्वसम्मति से स्पीकर चुना जाए इस परंपरा को बचाने के लिए वोटिंग नहीं कराई. अब कोई पूछे कि परंपरा का इतना ही ख्याल था तो उम्मीदवार मैदान में उतारा क्यों ? दूसरी बात अध्यक्ष का चुनाव प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर राहुल का पहला इम्तिहान था. इसमें भी राहुल फेल हो गए. वो विपक्ष को एकजुट नहीं रख पाए. पहले कहा कि सभी पार्टियों से बात करके के. सुरेश को मैदान में उतारा है, लेकिन अब साफ हो गया कि कांग्रेस का ये फैसला इकतरफा था. ममता से इस बारे में कोई बात नहीं की गई. आज पहला दिन था, पहला मुद्दा था, पहले ही दिन फूट पड़ गई. और तृणमूल कांग्रेस का जो रुख़ है, उससे लगता है कि वक्त वक्त पर ममता बनर्जी, राहुल को इस तरह के झटके देती रहेंगी. ओम बिरला के चुने जाने के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने जो कहा, वो सुनने लायक है. राहुल ने कहा कि इस बार विपक्ष ज़्यादा ताक़तवर है, विपक्ष के पास पिछली लोकसभा से ज़्यादा सांसद हैं, इसलिए स्पीकर को उनको भी बराबर का मौक़ा देना चाहिए, विपक्ष भी देश की जनता की आवाज़ है, इसलिए वो उम्मीद करते हैं कि स्पीकर विपक्ष की आवाज़ को दबाएंगे नहीं. अखिलेश यादव ने राहुल की लाइन को अलग अंदाज में आगे बढ़ाया. अखिलेश यादव ने कहा कि ओम बिरला के पिछले कार्यकाल में विपक्ष के 150 सांसद एक साथ सस्पेंड कर दिए गए थे, ऐसा फिर नहीं होना चाहिए, स्पीकर सिर्फ़ विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के सांसदों पर भी अंकुश लगाएं. संसद में विरोधी दलों की तकरार अब रोज़ दिखाई देगी. असल में जिस दिन से नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं, विरोधी दलों के नेता ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि मोदी को जनता ने फिर से चुन लिया. वो फिर से प्रधानमन्त्री बन गए. चुनाव के दौरान राहुल गांधी कहते थे… ‘लिख कर ले लो..4 जून के बाद मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे’ . चुनाव के नतीजे आए, NDA ने बहुमत हासिल किया. लेकिन राहुल गांधी कहते रहे कि देश की जनता ने मोदी को नकार दिया है. फिर विरोधी दलों ने कहा नीतीश कुमार पलट जाएंगे, चंद्रबाबू साथ छोड़ जाएंगे, मोदी सरकार नहीं बना पाएंगे. जब ये तय हो गया कि मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे, NDA की सरकार बनेगी, तो कहा कि अब मंत्रालय पर झगड़ा होगा, चंद्रबाबू ने 10 मंत्रालय मांगे हैं, नीतीश कुमार ने डिप्टी पीएम का पद मांगा है. लेकिन ये सब बातें बेकार की साबित हुईं. फिर कहा गया कि चंद्रबाबू नायडू स्पीकर के पद के लिए अड़ गए हैं. ये बात भी कोरी अफ़वाह निकली. मोदी की सरकार बन गई. बड़े आराम से बन गई. जिस दिन सरकार बनी, मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि ये सरकार गलती से बन गई, कभी भी गिर सकती है. लेकिन आज जिस अंदाज़ में स्पीकर का चुनाव हुआ, उसने इस तरह के बयान देने वालों को करारा जवाब दे दिया. स्पीकर के चुनाव ने साबित कर दिया कि पूरा NDA मोदी के साथ है. मोदी की सरकार मज़बूत है और सिर्फ़ NDA नहीं, कम से कम दो पार्टियां जिन्होंने NDA के साथ चुनाव नहीं लड़ा था – YSR काँग्रेस और अकाली दल ने मोदी का समर्थन किया. दूसरी तरफ विरोधी दलों में स्पीकर के लिए वोटिंग के सवाल पर दरार दिखाई दी. और फिर जब इमरजेंसी के खिलाफ प्रस्ताव पास करने की बात आई. तो भी अलग अलग स्वर सुनाई दिए.

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SPEAKER’S ELECTION : UNITED NDA BEATS DIVIDED OPPOSITION

AKB30 Om Birla was elected for the second time as Lok Sabha Speaker on Wednesday, by voice vote. After a 10 years’ wait, Congress got the chair of Leader of Opposition and Rahul took over as LOP. The opposition INDIA bloc had fielded K. Suresh in the Speaker’s election, but at the last moment, it did not press for voting. Om Birla was declared elected by pro-tem Speaker Bhartruhari Mahtab. Since independence, Om Birla is the sixth person to occupy the chair of Speaker for the second time. The most significant point to note in this election is that while on one hand, NDA remained solidly united, and managed to gain support from Jagan Mohan Reddy’s YSR Congress and Shiromani Akali Dal, on the other hand, fissures were clearly visible in the INDIA opposition bloc. Congress reportedly took the decision not to press for division without taking allies into confidence. The result was, when Trinamool Congress members pressed for division, it was overruled by the pro-tem Speaker since no prior notice was given. Congress claimed, it wanted to maintain the tradition of maintaining unanimity in the election of Speaker and therefore, did not press for division. The secret was however spilled out by JMM member Mahua Majhi, who said, since the ruling alliance had a upper hand in the numbers game, the opposition did not press for division. For Rahul Gandhi, it was his first day as Leader of Opposition, which proved to be quite challenging. Unity among INDIA bloc parties was nowhere to be seen. The Congress had declared K. Suresh as its candidate for Speaker, without consulting Trinamool chief Mamata Banerjee. TMC members were unhappy, and Rahul Gandhi had to speak to Mamata over phone before reaching the House. Mamata spoke to her MPs, but the advice that she gave later proved to be embarrassing for Congress and Rahul Gandhi. While Leader of the House Narendra Modi moved the motion for electing Om Birla as Speaker, Arvind Sawant of Shiv Sena (UBT) moved the motion in favour of K. Suresh. After Om Birla was declared elected by voice vote, Mamata’s nephew Abhishek Banerjee questioned why no voting was done. Congress leader Pramod Tiwari said, K. Suresh was fielded only as a token of protest against the government’s ‘autocratic’ actions, and the main purpose was served by filing of nomination. There was no need for division of votes and Congress wanted to maintain the tradition of electing the Speaker unanimously, he said. Another Congress leader Tariq Anwar said, TMC may be part of INDIA bloc, but it is a separate party and it may have its own view. Congress did not know that TMC wanted division of votes, Anwar said. Shiv Sena (UBT) leader Sanjay Raut said, fielding of candidate against Om Birla was only ‘symbolic’ and that is why, no voting was demanded. Rahul Gandhi has this amazing capability of discovering victory in defeats. When last month election campaign was in full swing across the country, Rahul Gandhi used to tell voters that “We will win, Modi will no more be the Prime Minister”. Before the Speaker election, he laid condition that Congress would support Birla for Speaker, only if his party was given the Deputy Speaker post. The government refused to accept his condition, and K. Suresh was fielded as candidate. When it became clear that the opposition candidate would lose in the numbers game, it decided not to press for a vote, and gave the alibi that it has been a tradition of electing a Speaker unanimously. One can ask Rahul Gandhi why K. Suresh was fielded in the first place, if his party respected this tradition. Secondly, the Speaker’s election was Rahul’s first test as Leader of Opposition, in which he clearly failed. He could not keep the opposition ranks united. It was initially claimed that K. Suresh was fielded after keeping all the allies in the loop, but it was now clear that it was a unilateral decision taken by Congress, and Mamata Banerjee was not taken into confidence. So on Day One, on the very first issue, there appeared a rift in opposition. Looking at the tone and tenor of Trinamool members, it appears Mamata Banerjee may continue to give jolts to Rahul Gandhi again. One should notice what Rahul Gandhi and Akhilesh Yadav said while welcoming Om Birla as Speaker. Rahul Gandhi said, the Speaker should give equal time and opportunity to the opposition, because the opposition also reflects the voice of the people, and he hoped the Speaker would not stifle the opposition’s voice. Akhilesh Yadav took a slightly different line. He reminded how Om Birla in the last Lok Sabha had suspended 150 opposition MPs, and this should not happen again. One must be prepared to watch more scenes of opposition MPs flexing their muscles inside the House, given their present strength. Since the day Narendra Modi took over as Prime Minister for the third time, the opposition leaders were unwilling to accept that the people have re-elected Modi as PM. During his poll campaign, Rahul Gandhi used to tell voters, “Take it from me in writing, Modi will not remain PM after June 4”. When the election results came, and NDA got majority, Rahul Gandhi continued to say that the people of India have rejected Modi. Opposition leaders predicted that Nitish Kumar might change sides, TDP chief Chandrababu Naidu might leave the NDA and Modi could fail to form a coalition government. When the government did take oath, it was predicted that there would be quarrels over ministries and portfolios. There were speculations that Naidu might demand at least 10 top ministries, and Nitish Kumar might demand the post of Deputy Prime Minister. All these speculations proved baseless. Another hoax circulated was, Naidu has demanded Speaker’s post, but it later turned out to be untrue. Modi 3.0 government took over and work went on smoothly. The day the new government was formed, Congress President Mallikarjun Kharge said, this government has come in place by default, and may fall anytime. But the smooth manner in which the Speaker’s election took place through voice vote has disappointed all naysayers. The election of Om Birla has Speaker has proved beyond doubt that the entire NDA is with Modi, and Modi government is presently on a strong footing. Two more non-NDA parties threw their support behind the NDA during the Speaker’s election. On the other hand, rifts appeared among opposition parties on whether to have voting on Speaker’s election or not. The same was evident when Om Birla read out the resolution denouncing Congress and Indira Gandhi for the 1975 Emergency. Only Congress members opposed, but Samajwadi Party, TMC and other opposition parties did not oppose. Their members stood in two minutes’ silence after the resolution was adopted. Clearly, there were discordant voices rising from the Opposition over the Emergency issue.

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आपातकाल : लोकतंत्र के काले दिन

AKB30 18वीं लोकसभा का अध्यक्ष ध्वनिमत से चुने जाने के बाद ओम बिरला ने बुधवार को सदन में याद दिलाया कि कैसे 1975 में 25 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्र इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू कर लोगों की बुनियादी आज़ादी को खत्म कर दिया था और सारे विरोधी दलों के नेताओं को जेलों में डाल दिया था. स्पीकर ओम बिरला ने इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया, और सदस्यों ने दो मिनट का मौन भी रखा. कांग्रेस के सांसदों ने इस पर शोर मचाया, और सदन को गुरुवार तक के लिए स्थगित करना पड़ा. स्पीकर ओम बिरला ने प्रस्ताव में कहा कि ये सदन 1975 में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायितव निभाया. भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उन दिन को हमेशा एक साले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था. भारत की पहचान पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के तौर पर है. भारत में हमेशा लोतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया. ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गल घोंट दिया गया. ..ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था. तब की तानाशाह सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थी और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया गया था. इमरजेंसी का वो समय हमारे देश के इतिहास में एक अन्याय काल था, एक काला कालखंड था…. हम ये भी मानते हैं कि हमारी युवा पीढी को लोकतंत्र के इस काले अध्याय के बारे में जरूर जानना चाहिए. ..इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी. इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गांवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं.” 18वीं लोकसभा के पहले दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को याद दिलाया था कि कैसे इंदिरा गांधी ने देश में 1975 में इमरजेंसी लगाई थी और संविधान को ध्वस्त किया था. मैं यहां बता दूं कि इमरजेंसी की उस काली रात का मैं गवाह हूं. उस दौर के जुल्म और सितम का शिकार रहा हूं. आज से ठीक 50 साल पहले 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी लगाई गई थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहें, इसके लिए देश के नागरिकों की आजादी छीन ली गई थी. रातों रात इंदिरा जी का विरोध करने वाले सारे नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था. इनमें जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल जैसे तमाम नेता शामिल थे. देश भर में उस जमाने के जितने छात्र नेता थे, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे अनगिनत छात्र नेता थे, उनके घर रात को पुलिस ने दस्तक दी, कुछ पकड़े गए, कुछ अंडरग्राउंड हो गए, जनता को कुछ खबर नहीं थी, रात को अखबारों की बिजली काट दी गई थी, उस समय सिर्फ दूरदर्शन एकमात्र टीवी चैनल था जो सिर्फ सरकार द्वारा स्वीकृत खबरें दिखाता था, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, किसी को खुलकर बोलने की आजादी नहीं थी, पुलिस को देखते ही गोली मारने का अधिकार दे दिया गया था. मैंने उस दौर को करीब से देखा है. उस दम घोंटने वाले वातावरण को जिया है. मेरी उम्र सिर्फ 17 साल की थी. मैं जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का हिस्सा था. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा हुआ था. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, बोलने और लिखने की आजादी के लिए, मैंने एक अखबार निकाला. पकड़े जाने पर पुलिस की मार खाई. थाने में टॉर्चर सहा, कई महीने जेल में रहा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. इसीलिए वो दिन कभी भूल नहीं सकता. वो दिन जब मीडिया पर पहरा लगा दिया गया, विरोधी दलों के सारे नेताओं की आवाज को दबा दिया गया, न्यायपालिका पर सरकार ने कब्जा कर लिया, संविधान को गिरवी रख दिया गया, लोकतंत्र की हत्या कर दी गई. 50 साल बीत चुके हैं. ज्यादातर लोगों को वो ज़माना याद नहीं है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, उस संघर्ष को उस लड़ाई को जानना और समझना जरूरी है. कभी अवसर होगा तो मैं विस्तार में बताऊंगा कि उस जमाने में ये क्यों हुआ? किसके लिए हुआ? और कैसे 19 महीने बाद देश की जनता ने लोकतंत्र को बचाने के लिए, संसद की परंपरा को खत्म करने वाली सरकार को उखाड़ फेंका.

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EMERGENCY : DARK DAYS OF DEMOCRACY

AKB30 The Lok Sabha was adjourned for the day on Wednesday after opposition Congress members created uproar and objected to the newly elected Speaker Om Birla reading out a resolution on the 1975 Emergency, labelling it as “a dark chapter in India’s history”. Ruling BJP and other NDA members came out of the House, shouted slogans against Emergency and displayed placards. In the resolution, Speaker Om Birla said, “This House strongly condemns the decision to impose Emergency in 1975. Along with this, we applaud the determination of all those who opposed the Emergency, fought tyranny and discharged their responsibility of protecting democracy in India. 25th June, 1975, shall always be known as a black chapter in the history of India. On this day, the then Prime Minister Indira Gandhi imposed Emergency in the country and attacked the Constitution made by Babasaheb Ambedkar. India is known all over the world as the Mother of Democracy. Democratic values and debates have always been protected and encouraged in India. Dictatorship was imposed on India on that day by Indira Gandhi. Our democratic values were crushed and our freedom of expression was strangled”, Speaker Om Birla said. Opposition members shouted slogans “Band Karo, Band Karo” as Speaker Om Birla read out the resolution. It may be recalled that on the first day of 18th Lok Sabha, Prime Minister Narendra Modi paid homage to those great men and women who resisted Emergency in 1975 and reminded people of how Congress under Indira Gandhi subverted basic liberties and trampled over the Constitution. “The mindset which led to the imposition of Emergency in 1975 is very much alive in the same party that imposed it. They hide their disdain for the Constitution through tokenism but the people of India have seen through their antics, and that is why that party has been rejected by the people time and again”, Modi had said. Nearly half a century ago, on June 25, 1975, the then Prime Minister Indira Gandhi imposed Emergency. I was a close witness to that dark night and had been a victim of atrocities unleashed by the then government. The liberties of Indian citizens were taken away in order to keep Indira Gandhi on her throne as Prime Minister. Overnight, all major opposition leaders like Lok Nayak Jayaprakash Narayan, Morarji Desai, Atal Bihari Vajpayee, Chaudhary Charan Singh, Parkash Singh Badal, George Fernandes, L K Advani, were thrown into jail. Student leaders at that time like Arun Jaitley, Lalu Prasad Yadav, Nitish Kumar, Ramvilas Paswan, and thousands of other students were arrested from their homes and hideouts and thrown into jails. Hundreds of student leaders went underground. People of India had no knowledge about the manner in which opposition activists were being rounded up. Power supply to newspaper offices was disconnected. At that time, the government-run Doordarshan was the only TV channel available, which showed only news approved by the government. Draconian censorship was imposed on the press. The liberty to speak up in the open was taken away. Police officers were given powers to shoot. I have seen those dark days of Emergency and have lived in that stifling environment. At that time, I was 17 years old. I was part of JP’s movement and was linked with Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad. I published a small newspaper to tell people about the actual happenings that were going on in political circles. I was later arrested by police, tortured inside a police station, and had to remain in jail for several months. But I never lost courage. I shall never forget those dark days. The media, in those days, was under strict surveillance and censorship. The voice of opposition leaders was crushed. The government gained control over judiciary. The Constitution was made a hostage, Democracy was murdered in broad daylight. Fifty years have passed. Most of the people do not remember those dark days. It is necessary for all of us to remain aware about how the struggle was waged to regain freedom of expression. Some day I shall narrate my experiences in detail. I will describe the circumstances under which Emergency was imposed, for whose benefit it was imposed, and how the people of India, after 19 months, threw out that autocratic government through ballots.

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दिल्ली जल संकट पर राजनीति बंद करें

AKB दिल्ली में पानी की किल्लत को लेकर पिछले तीन हफ्ते से शोर मचाय़ा जा रहा है. दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियों, अनधिकृत कॉलोनियों को तो छोड़िए अब Lutyens’ Zone में रहने वाले वीआईपी लोगों को भी पानी खरीदना पड़ रहा है. दिल्ली के वीवीआईपी इलाकों में संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट, राष्ट्रपति भवन, मंत्रियों, अफसरों, सांसदों के बंगले और फ्लैट, यहां तक कि राम मनोहर लोहिया, लेडी हार्डिंग और कलावती शरण जैसे सरकारी अस्पताल भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मंगलवार को 2 टैंकर्स से पानी की सप्लाई हुई. महाराष्ट्र सदन में एक टैंकर पानी भेजा गया. मंत्रियों, सांसदों के घरों से पानी की मांग आ रही है. NDMC में आने वाले दिल्ली के पॉश इलाके गोल मार्केट, जोरबाग, बंगाली मार्केट, खान मार्केट के बंगलों और बाजारों में पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है. दरअसल NDMC एरिया को दिल्ली जल बोर्ड ही पानी की सप्लाई करता है. इस इलाके में रोजाना 125 मिलियन लीटर दैनिक पानी की सप्लाई होती है जो अब घटकर 70 से 75 एमएलडी पर आ गई है. NDMC अपने रिजर्वायर्स से पानी की सप्लाई करने की कोशिश कर रहा है लेकिन दिल्ली जल बोर्ड की तरफ से उसे पानी की सप्लाई नहीं मिल पा रही है. NDMC के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि 10 साल में अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में पानी की सप्लाई को दुरूस्त करने के लिए कुछ नहीं किया, हर साल गर्मी में पानी की समस्या होती है और आम आदमी पार्टी के नेता इसका दोष हरियाणा की सरकार पर थोप देते हैं और जनता परेशानी झेलती है. NDMC एरिया को दिल्ली के तीन वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स से पानी मिलता है – वजीराबाद प्लांट से संसद भवन, लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल, राम मनोहर लोहिया और कलावती हॉस्पिटल को पानी सप्लाई होता है, चंद्रावल प्लांट से राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, मंत्रियों के घरों औऱ दूतावासों के इलाके में पानी जाता है, सोनिया विहार प्लांट से खान मार्केट और NDMC की दूसरी मार्केट्स में पानी की सप्लाई होती है. वजीराबाद प्लांट से पिछले दो दिनों से पानी की सप्लाई नहीं हुई है जिसकी वजह से तीन अस्पतालों में पानी की सप्लाई प्रभावित हुई हैं. संसद भवन में भी सप्लाई कम हुई है. गौर करने वाली बात ये है कि अभी संसद का सत्र शुरु नहीं हुआ है, 24 जून से सत्र शुरु होगा, उस वक्त यहां पानी का जरूरत ज्यादा होगी. एनडीएमसी का दावा है कि संसद भवन को पानी की कमी नहीं होने दी जाएगी. एनडीएमसी बोर्ड के सदस्य कुलदीप चहल ने कहा कि अगर केजरीवाल सरकार पहले से प्लानिंग करती तो ऐसे हालात न बनते. अशोक रोड, जनपथ, बंगाली मार्केट, खान मार्केट, तिलक मार्ग, जोर बाग में बड़े बड़े बंगले, दफ्तर और मार्केट हैं. इंडिया टीवी के संवाददाता ने मंगलवार को इन इलाकों में बड़े बड़े बंगलों के सामने लोगों को पानी के टैंकर का इंतजार करते देखा. इन इलाकों में एक ही समय पानी की सप्लाई हो रही थी, लेकिन अब वो भी बंद हो गई है.कई घरों और मार्केट्स में पानी खत्म हो गया है. लोग बाजार से पानी खरीदकर काम चला रहे हैं. एनडीएमसी से पानी भेजने की गुहार कर रहे हैं. लंबे इंतजार के बाद पानी के टैंकर के जरिए घरों की टंकियां भरी जा रही हैं. मार्केट एरिया में तो हालात और बदतर हैं. दिल्ली और आसपास के इलाक़ो में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है. दिन का तापमान 45 डिग्री तक पहुंच जाता है. रात को भी 40 डिग्री तक गर्मी होती है. ऐसे में पानी की कमी जानलेवा हो सकती है. इसीलिए लोग एक एक बाल्टी पानी के लिए मरने मारने को तैयार हो जाते हैं और ये हालात कई दिन से हैं. लेकिन आज सबसे बड़ी चिंता ये हुई कि अस्पतालों में जहां मरीज होते हैं और हॉस्टल्स में जहां विद्यार्थी होते हैं, वहां से पानी की कमी की खबरें आईं. ये सच है कि सरकार को पहले से पता था कि गर्मी पड़ेगी, पानी की कमी होगी, लेकिन कोई प्लानिंग नहीं की गई. दिल्ली की सरकार हरियाणा को जिम्मेदार बताती रही, हरियाणा की सरकार सफाई देती रही. इसका नतीजा ये है कि आज दिल्ली के लोग परेशान है, बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने को मजबूर हैं और दुख की बात ये है कि ये सब देखकर भी नेताओं ने पानी के सवाल पर राजनीति करना नहीं छोड़ा. दिल्ली जल संकट पर नेता राजनीति न करें तो बेहतर रहेगा.

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STOP POLITICIZING DELHI WATER CRISIS ISSUE

akb Delhi and most parts of northern India are experiencing a scorching heat wave, but the problem has been worse confounded in the capital with severe water crisis in most parts of the city. Acute water crisis has now affected large parts of VVIP Lutyens’ Zone area, with New Delhi Municipal Council reporting supply of only 70 to 80 MLD (million litres a day) water compared to the daily normal supply of 125 MLD water. NDMC gets water from Delhi Jal Board water treatment plants at Wazirabad, Sonia Vihar and Chandrawal plants, but the supply has been reduced by almost half on Tuesday. Parliament complex, Delhi High Court, Supreme Court, top government hospitals like RML Hospital, Lady Hardige and Kalavati Sharan hospitals, Chanakyapuri, Rashtrapati Bhavan, MP and ministers’ bungalows and flats have been hit by water supply disruption. NDMC vice-chairperson Satish Upadhyay said, water supplied from the three DJB plants is collected in 27 reservoirs and supplied to Lutyens’ Zone, but now only around 60 per cent of regular water supply is being made. VIPs and government hospitals in this zone are being supplied water through water tankers. Upadhyay alleged that Arvind Kejriwal’s government did nothing significant to improve water supply in the capital during the last 8 years, leading to water crisis during summer. Parliament session is yet to begin and MPs are going to arrive next week, but already the entire area is facing acute water shortage. NDMC member Kuldip Chahal said, a contingency plan is being kept ready to meet the crisis. Ashoka Road, Janpath, Bengali Market, Khan Market, Tilak Marg, Jor Bagh are posh localities housing swanky residences, shops, institutions and markets. India TV reporter on Tuesday found queues of people near water tankers outside posh bungalows. People living in Delhi and neighbouring towns are sweltering in temperature which is more than 45 deg Celsisus, and night time temperature has almost touched 40 deg C. Shortage of drinking water in such a situation, can be calamitious. People are fighting over even a pail of water. For the last three weeks, Delhi has been facing tremendous water shortage, but this was mostly confined to unauthorised colonies and jhuggi areas. Now, the shortage has hit big hospitals, where patients, doctors and other hospital staff require water for day-to-day operations. The government knew about a big heat wave coming, and and it knew that tthis could lead to a big water crisis. No timely planning was made. Delhi government ministers blamed Haryana government for supplying less water and went to the Supreme Court. Haryana government ministers gave their own explanations. Nearly two and a half crore people living in the national capital are facing the consequences of this negligence. The saddest part is that leaders from all political parties have not stopped their bickerings and are still engaging in trying to score brownie points. Politics on water shortage must stop.

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EVMs : FREE, FAIR AND FAST POLLING

AKB The electronic voting machine issue has been raised again, two weeks after the announcement of Lok Sabha election results by the opposition. It is based on a tweet by Elon Musk, CEO of Tesla and SpaceX. In a post on his social media platform X, Musk wrote: “We should eliminate electronic voting machines. The risk of being hacked by humans or AI, while small, is still too high.” Musk was reacting to alleged irregularities discovered in EVMs during the primary elections in Puerto Rico. He was reacting to a tweet by Robert F. Kennedy Jr, an independent candidate in US presidential elections, in which Kennedy had referred to irregularities in EVMs. Kennedy Jr wrote: “Puerto Rico’s primary elections just experienced hundreds of voting irregularities related to electronic voting machines, according to the Associated Press. Luckily, there was a paper trail so the problem was identified and vote tallies corrected. What happens in jurisdictions, where there is no paper trail? US citizens need to know that every one of their votes were counted, and that their elections cannot be hacked. We need to return to paper ballots to avoid electronic interference with elections. My administration will require paper ballots and we will guarantee honest and fair elections.” Elon Musk’s reaction to Kennedy Jr. did not raise a storm in the USA, but it did in India. Congress leader Rahul Gandhi described EVM as a ‘black box’, and Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav demanded re-introduction of ballot paper system. Rahul Gandhi wrote on X: “When democratic institutions are captured, the only safeguard lies in electoral processes that are transparent to the public. EVM is currently a black box. EC must either ensure complete transparency of the machines and processes, or abolish them.” BJP leader and former Minister of State for Electronics, Rajeev Chandrasekhar reacted saying, Elon Musk’s suggestion about all EVMs being hackable is factually wrong. He said, “To claim that there cannot be a secure digital product in the world is to then say that every Tesla car can be hacked….A calculator or a toaster cannot be hacked. There is a limit in terms of where this paradigm of hacking can extend. Elon Musk has not understood what the Indian EVM is. Indian EVM do not lend itself to be hacked because it is precisely a very limited intelligence device.” Rajeev Chandrasekhar said, one can explain this to Elon Musk, but it is impossible to explain this to Rahul Gandhi and other opposition leaders, who consider themselves as technical experts. Congress spokesperson Pawan Khera said, the opposition has been raising the EVM issue since last several years, but neither the BJP nor the Election Commission is ready to discuss. Khera said, “now that Elon Musk has questioned the EVM, the entire government is now trying to defend. This means, there is something doubtful (daal mein kaala).” Janata Dal-U leader K C Tyagi said, LS election results came on June 4, but the opposition did not speak a word about EVM for 13 days, but now they are trying to find faults in the machine and creating doubts about the results. Congress leader Nana Patole said, there are 165 LS seats, where the winner’s margin was barely between 200 and 2,000. He said, people have lost confidence in EVMs and ECI should now reintroduce ballot paper system. To me, the entire EVM issue is one in which one goes on raising doubts and questions, and telling lies, and the sole objective seems to create doubts in the minds of people. The funny part here is, Elon Musk raised questions about EVMs being used in a primary election in Puerto Rico, USA. He did not speak of any other country, but our leaders have jumped in the fray. The Supreme Court has already observed that the ECI has given proofs more than a hundred times to explain the working of EVMs, and yet some leaders are raising doubts. Rahul Gandhi won from two LS constituencies on the basis of the same EVMs. These were the EVMs which reduced BJP’s Lok Sabha tally, and yet the parties that won scores of seats are not ready to accept the EVMs. They are unwilling to listen to ECI’s explanations. Look at the line of thinking of anti-Modi front. In Maharashtra, the opposition front lost one LS seat, and alleged that the entire EVM system was faulty, it was a fraud on electorate, and the Election Commission is biased. This exposes nothing but negative mindset. If any candidate thinks he has been cheated, he can go to court for relief and file an election petition. As far as EVMs are concerned, there is a vast difference between Indian EVMs and the machines used in other countries. We should be proud of our electoral process. EVM is a shining symbol of the efficacy and transparency of our electoral system. It will not be good to lay blame at the doors of EVM, because of remarks on social media. Nowadays, hit-and-run tactic appears to be the norm on social media. One attacks an institution or a system by peddling half-truths, and decamps, and it is left to the institution to explain the truth. It is a good thing that courts are now taking cognisance of such ‘hit-and-run’ tactics being used on social media against individuals and institutions.

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ईवीएम : स्वंतत्र, निष्पक्ष और तेज़ मतदान

AKB एक बार फिर EVM पर सवाल उठाए गए हैं. चुनाव नतीजे आने के करीब दो हफ्ते के बाद टेस्ला कंपनी के मालिक एलन मस्क के ट्वीट को आधार बना कर विरोधी दलों ने EVM के बजाए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठाई. असल में एलन मस्क ने ट्विटर पर लिखा कि EVM को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि EVM को आर्टीफिशियल इंटैलीजेंस या ह्यूमैन इंटरवेंशन के जरिए हैक किया जा सकता है. एलन मस्क ने ये ट्विट भारत के संदर्भ में नहीं, अमेरिका के संदर्भ में किया था. मस्क ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर के एक ट्वीट के जवाब में लिखी थी. कैनेडी ने अपने पोस्ट में प्यूर्टो रिको में हुई वोटिंग में अनियमितताओं के बारे में ये ट्वीट पोस्ट किया था.मस्क इसी का जवाब दे रहे थे. .एलन मस्क के इस ट्विट पर अमेरिका में तो कोई खास चर्चा नहीं हुई लेकिन हमारे देश में एलन मस्क के ट्वीट को विरोधी दलों ने हाथों हाथों लिया. राहुल गांधी ने लिखा कि जब संवैधानिक संस्थाएं बंधक बन जाएं तो चुनाव प्रक्रिया को सिर्फ जनता ही पारदर्शी बना सकती है.. EVM एक ब्लैक बॉक्स की तरह है..चुनाव आयोग या तो मशीन और इसकी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए या फिर इसे खत्म कर दे. अखिलेश यादव ने भी राहुल की लाइन पकड़ी और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की. एलन मस्क ने EVM पर सवाल उठाया तो पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के साथ उनकी इस मुद्दे को लेकर X पर ही बहस हुई. राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारत की EVM दुनिया की बाकी देशों की EVM से पूरी तरह अलग है. इन्हें हैक नहीं किया जा सकता. राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि ये बात उन्होंने इलॉन मस्क को तो समझा दी लेकिन राहुल गांधी और विपक्ष के नेताओं को ये समझा पाना नामुमकिन है क्योंकि वो खुद से बड़ा टेक्निकल एक्सपर्ट किसी को समझते ही नहीं हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि पूरा विपक्ष इतने सालों से EVM का मुद्दा उठा रहा है लेकिन न तो बीजेपी का कोई नेता और न ही चुनाव आयोग इस पर कोई बात करने को राज़ी है…अब एलन मस्क ने EVM पर सवाल उठाए तो पूरी सरकार सफाई देने में जुट गई…इसका मतलब दाल में कुछ तो काला है. समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि जब अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में बैलेट पेपर से चुनाव हो सकते हैं, इन देशों ने EVM को नकार दिया है तो फिर भारत में EVM को लेकर ज़िद क्यों की जा रही है. JD-U के नेता के सी त्यागी ने कहा कि एलन मस्क के बयान पर भारत में विवाद की जरूरत नहीं हैं क्योंकि चुनाव हो गया, नतीजे आ गए, सरकार बन गई.अब तक तो विपक्ष के किसी नेता ने EVM पर सवाल नहीं उठाए,तो अब इसकी क्या जरूरत है. केसी त्यागी ने बहुत कम शब्दों में बड़ी बात कह दी…चुनाव के नतीजे 4 जून को आए थे.13 दिन से विपक्ष ने एक बार भी EVM की बात नहीं की. लेकिन अब विपक्ष के नेताओं को EVM में खोट नजर आ रहा है..वो नतीजों पर शक जताने लगे हैं..गड़बड़ी की आशंका जता रहे हैं.. कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा कि इस चुनाव में 165 सीटें ऐसी हैं जहां जीत का मार्जिन 200 से 2000 के बीच है..ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पटोले ने कहा कि देश की जनता को अब EVM पर भरोसा नहीं रह गया है.इसलिए मोदी सरकार अब बैलेट से चुनाव करवाए. EVM का मामला ऐसा हो गया है कि बार बार झूठ बोलो, तरह तरह से सवाल उठाओ, ताकि लोगों के मन में शंका पैदा हो जाए. और इस बार तो कमाल ये है EVM पर सवाल एलन मस्क ने उठाए, अमेरिका में उठाए, किसी दूसरे देश के चुनाव के बारे में comment किया, लेकिन हमारे लोग मैदान में उतर गए. सुप्रीम कोर्ट कह चुका है, चुनाव आयोग 100 बार सबूत देकर समझा चुका है लेकिन कुछ लोग EVM पर सवाल उठाने पर आमादा हैं. उसी EVM पर, जिससे राहुल गांधी दो-दो इलाकों से चुनाव जीतकर आए. उसी EVM पर, जिससे निकले वोटों से बीजेपी की सीटें कम हुईं. जिन पार्टियों ने evm से बीसीयों चुनाव जीते, वो EVM को सही मानने को तैयार नहीं. चुनाव आयोग की बात समझने को तैयार नहीं. मोदी विरोधी मोर्चे की सोच देखिए. महाराष्ट्र में एक सीट पर चुनाव हार गए, इसलिए सारा सिस्टम खराब है, इसलिए EVM फ्रॉड है, इसलिए चुनाव आयोग पक्षपात करता हे, ये बिलकुल नकारात्मक सोच है. अगर किसी को लगता है कि चुनाव में गड़बड़ हुई तो इसके लिए कोर्ट जाना चाहिए. पिटिशन फाइल करना चाहिए. जहां तक EVM का सवाल है, हमारे देश के EVM में और बाकी देशों के सिस्टम में जमीन आसमान का फर्क है. हमें अपनी चुनाव प्रक्रिया पर गर्व होना चाहिए. जो EVM हमारी चुनाव व्यवस्था की कुशलता का प्रतीक है, हमें उसे दोष ना दें तो अच्छा होगा. सोशल मीडिया के कारण आजकल हिट एंड रन बड़ी नॉर्मल सी बात हो गई है. कोई भी किसी संस्था के बारे में , किसी व्यवस्था के बारे आधा सच, आधा झूठ बोलकर भाग जाता है. फिर संस्थान सफाई देते रहें, अच्छी बात ये है कि आजकल कोर्ट ऐसा झूठ बोलने वालों की खूब खबर लेता है.

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