Rajat Sharma

My Opinion

दिल्ली में अभूतपूर्व बाढ़

akb fullहिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाद अब दिल्ली में बाढ़ आई है. इस बार की बाढ़ अभूतपूर्व है. यमुना खतरे के निशान से काफी ऊपर बह रही है. पैंतालीस साल का रिकॉर्ड टूट गया है. 1978 में इस तरह की बाढ़ आई थी, जब यमुना का जलस्तर 207.49 मीटर तक पहुंचा था….लेकिन इस वक्त यमुना का जलस्तर 208.62 मीटर पर है. चिंता की बात ये है कि हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है, जिसके कारण दिल्ली में बाढ़ आ गई है. लाल किले के पास रिंग रोड पर, आई टी ओ पर, और यमुना के आसपास तमाम इलाकों में पानी भर गया है. मुख्यमंत्री निवास सिविल लाइन्स में है और वहां भी बाढ का पानी पहुंच गया है. यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया गया है. दिल्ली में स्कूल-कॉलेज रविवार तक बंद कर दिये गये हैं. दिल्ली में यमुना का स्ट्रेच करीब 22 किलोमीटर का है, इसलिए यमुना के आसपास बसे इलाके, जैसे, यमुना बाजार, मॉनेस्ट्री मार्केट, उस्मानपुर, यमुना खादर, ISBT, मयूर विहार, गढ़ी मांडू, ओखला, वजीराबाद, मजनूं का टीला और पूर्वी दिल्ली में यमुना के किनारे बसे तमाम गांव डूब चुके हैं. कई जगह घरों में कमर तक पानी भरा है, कहीं कहीं दस फीट तक पानी है. सवाल ये है कि देश की राजधानी में ऐसे हालात कैसे बने? क्या सिर्फ हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर सिस्टम की कमियों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है? ये अच्छी बात है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल आपसी समन्वय के साथ काम कर रहे हैं. केन्द्र और दिल्ली सरकार मिलकर काम कर रही है, लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली में यमुना का जल स्तर हर साल खतरे के निशान को पार करता है, हर साल हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़ा जाता है, फिर इस समस्या से निपटने के पुख्ता और स्थायी इंतजाम क्यों नहीं किए जाते? ये सही है कि इस बार हिमाचल में ज्यादा बारिश हुई है, उसकी वजह से भी यमुना में भी ज्यादा पानी आया, लेकिन यमुना खादर, यमुना बाजार से लेकर ओखला बैराज तक पानी तो हर साल भरता है. इसकी एक ही वजह है – नालों की सफाई न होना, यमुना की डीसिल्टिंग न होना, यमुना की गंदगी को साफ न करना. अगर नदी की डीसिल्टिंग की जाती तो यमुना की जल वहन क्षमता बढ़ती. नदी का पानी आसपास के इलाकों में न जाता. इस मुद्दे पर दावे हर साल होते हैं. 1993 में यमुना एक्शन प्लान बना था, जिसे 2003 में पूरा होना था. नहीं हुआ. फिर 2003 में यमुना एक्शन प्लान का फेज टू आ गया, जिसे 2020 में पूरा होना था. वो भी नहीं हुआ. पहले बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर इल्जाम लगाते रहते थे, फिर केजरीवाल आए. उन्होंने पांच साल में यमुना को साफ करने, डीसिल्टिंग करने का वादा किया, लेकिन वो भी बार बार समय सीमा बढ़ाते रहे. इसी चक्कर में दिल्ली में यमुना के आसपास रहने वालों को हर साल बाढ़ की मुसीबत का सामना करना पड़ता है.

हिमाचल, उत्तराखंड में खतरा अभी टला नहीं

हिमाचल प्रदेश के शिमला, कुल्लू और सोलन में मौसम विभाग ने फिर भारी बारिश का रेड एलर्ट जारी किया है, जिसके कारण लोगों में दहशत है. कई इलाकों में हल्की हल्की बारिश अभी भी हो रही है लेकिन अब नदियों का पानी उतर गया है. राज्य सरकार का कहना है कि अब तक 88 लोगों की जानें गई, 16 लोग अभी भी लापता हैं, 873 सड़कें अभी भी बंद हैं, 1193 रूटस पर सरकारी बस सेवा बंद है. चूंकि नदियों का जलस्तर कम हो गया है, इसलिए अब तबाही के निशान साफ दिख रहे हैं. कई-कई किलोमीटर तक सड़क गायब है. मनाली को जोडने वाली सड़क नदी के दोनों तरफ से बह गई है, इसलिए न कोई शहर से बाहर आ सकता है, न कोई शहर में जा सकता है. लोग एक पुराने लकड़ी के पुल के जरिए अपनी जान खतरे में डालकर मनाली से निकल रहे हैं. लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले तीन दिन में जो कुछ झेला, वो किसी बुरे सपने जैसा था. हमारे संवाददाता पवन नारा टीचर्स के एक ग्रुप से मिले. ये लोग अपने होटल में फंस गए, तीन दिन के बाद बुधवार को निकल पाए तो राहत की सांस ली. इन टीचर्स ने बताया कि वहां न बिजली है, न खाना है, न पानी है, और सबसे बड़ी बात, इन लोगों के पास पैसे भी नहीं है. .इन लोगों ने कहा कि कुदरत ने जरूर इम्तेहान लिया, लेकिन मनाली के लोगों ने सैलानियों की जिस तरह मदद की, उसे वे जिंदगी भर नहीं भूलेंगे. होटल वाले ने किराया नहीं लिया, आस पास के लोगों ने खाने पीने का इंतजाम किया और चलते वक्त रास्ते के लिए होटल वाले ने बीस हजार रूपए भी दिए . लाहौल-स्पीति जिले के चंद्रताल में अभी भी 300 लोग फंसे हैं, यहां तीन से चार फीट बर्फ है, प्रशासन ने 12 किलोमीटर का रास्ता तो क्लीयर कर लिया है, लेकिन जहां टूरिस्ट के कैंप हैं, उसमें अभी 25 किलोमीटर का फासला है. मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने हवाई सर्वे किया. चन्द्रताल में बर्फ के बीच टूरिस्ट के टैंट आसमान दिख रहे हैं, लेकिन मौसम खराब होने के कारण उन्हें एयरलिफ्ट नहीं किया जा सकता. प्रशासन इन लोगों तक खाने पीने का सामान और गर्म कपड़े पहुंचा रहा है, लेकिन इन टूरिस्ट को वहं से हटाने में अभी वक्त लगेगा. उत्तराखंड में बीते 24 घंटे में कुल 341 सड़कें बंद हुई हैं। इनमें से 193 सड़कें एक दिन पहले से बंद थीं, जबकि 148 सड़कें सोमवार को बंद हुईं। रविवार देर शाम तक 68 सड़कों को खोला जा सका था, जबकि 273 सड़कें अब भी बंद हैं।
26 राज्य मार्ग बंद हैं … इससे यात्री जगह-जगह फंसे हुए बताए जा रहे हैं। मौसम विभाग ने 13 जुलाई का ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है, कई जगह भूस्खलन और भूधंसाव की वजह से मार्ग बंद हो गए हैं। उत्तराखंड के 11 जिलों में भारी बारिश की आशंका जताई गई है। इनमें रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, उत्तराकाशी, टिहरी, नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार समेत जिलों में अलर्ट जारी किया गया है। सुखविन्दर सिंह सुक्खू का दावा है कि सरकार मुश्किल में लोगों की मदद कर रही है, लेकिन हर टूरिस्ट ने कहा कि हिमाचल में प्रशासन नाम की चीज नहीं दिखी, कोई सरकारी मदद नहीं मिली, लेकिन इन्ही लोगों ने हिमाचल के आम लोगों की तारीफ की. कहा, आम लोगों ने उन्हें सिर छुपाने की जगह दी, खाना पीना दिया, और सबसे बड़ी बात मुश्किल वक्त में हौसला दिया. ये हिमाचल की सरकार के लिए शर्मनाक है. मैं हिमाचल के लोगों के जज्बे की तारीफ करना चाहता हूं क्योंकि जो काम सरकार का था, वो आम लोगों ने करके दिखाया, इंसानियत की मिसाल पेश की. उत्तराखंड में हालात अभी भी ठीक नहीं हैं. कई इलाकों में जोरदार बारिश हो रही है, भूस्खलन का खतरा बना हुआ है. अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है. भारी बारिश की वजह से पहले ही कई नदियां और पहाड़ी नाले उफान पर हैं, टौंस और यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. हरिद्वार में सोलानी नदी के खतरे के निशान से ऊपर पहुंचते ही कई गांवों में पानी घुस गया. धौली और काली नदी का बहाव इतना तेज है, इसका अंदाज़ा पिथौरागढ़ के धारचूला से आई तस्वीरों को देखकर लगाया जा सकता है. उत्तराखंड में 341 सड़कें बंद हैं, इसकी वजह से जगह-जगह टूरिस्ट फंसे हुए हैं. लोग जान जोखिम में डालकर वहां से गुजर रहे हैं क्योंकि वो जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहते हैं.

वैज्ञानिकों की चेतावनी

अब सवाल ये है कि इतनी भारी बारिश क्यों हुई? क्या ये सिलसिला हर साल होगा? क्या इस बारिश का ग्रीन हाउस इफैक्ट से कोई लेना देना है? क्या ये मौसम में हो रहे बदलाव का सबूत है? ये सवाल हमारे संवाददाता निर्णय कपूर ने IIT गांधीनगर के वैज्ञानिकों से पूछे. प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा कि IIT गांधीनगर ने इस विषय पर शोध किया है. नतीजा ये आया कि इस तरह के extreme weather conditions के लिए अब देश के लोगों को तैयार रहना चाहिए. ये हर साल होगा, बार बार होगा. विमल मिश्रा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से बचने के लिए दुनिया भर के मुल्क मिलकर कोशिश कर रहे हैं, कदम उठा रहे हैं, लेकिन उनका असर तीस चालीस साल के बाद दिखेगा. इसलिए अभी कई सालों तक तो इसी तरह की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की आदत डालनी होगी. सरल भाषा में समझे तो वैज्ञानिक ये कह रहे हैं कि अब गर्मी में बहुत ज्यादा गर्मी होगी और बारिश में बहुत ज्यादा बारिश होगी. सर्दी भी ज्यादा पड़ेगी. इसका मतलब ये हुआ कि गर्मी में सूखा और बारिश में बाढ का सामना करना होगा. ये बात सुनने में छोटी लग सकती है लेकिन ये खतरा बहुत बड़ा है क्योंकि इससे फसलों का चक्र गड़बड़ाएगा, न रबी की फसल होगी, न खरीफ की. इससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर होगा, खाने का संकट होगा, बीमारियां बढ़ेंगी. इसलिए वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कुदरत तो बार बार संदेश दे रही है, संभल जाओ, अगर पूरी दुनिया ने मिलकर कदम न उठाए, तो कुदरत का क़हर सहने के लिए तैयार रहना पड़ेगा ….

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UNPRECEDENTED FLOOD IN DELHI

AKBDelhi is witnessing unprecedented flood with the river Yamuna flowing at a historic high level of 208.62 metres, surpassing the 1978 record of 207.47 metrs. Ring Road near ITO was flooded on Thursday, even as water flowed on the main road in the posh Civil Lines of Old Delhi. Yamuna water level continued to rise as more water was released from Hathnikund barrage in Haryana. One side of GT Karnal Road has been flooded and only one carriageway is being used for traffic. Flood water reached the Delhi Chief Minister’s residence on Thursday morning. Yamuna Bank Metro station had to be closed, while schools and colleges have been closed till Sunday. Thousands of people living near the Yamuna banks have been rendered homeless. Several teams of NDRF are working round-the-clock to evacuate people. The localities worse affected are: Yamuna Bazar, Monastery Market, Usmanpur, Yamuna Khadar, ISBT, Mayur Vihar, Garhi Mandu, Okhla, Wazirabad, Majnun Ka Tila and several parts of East and South-East Delhi. It is good that both the Lt. Governor and Delhi government are working in coordination and they are on the same page. The question arises: if Yamuna water level rises every year because of release of water from Hathni Kund barrage in Haryana, why solid, permanent measures were not taken? It is true the Yamuna is in spate because of heavy rains in Himachal Pradesh and Uttarakhand, but the question arises, why river bank areas like Yamuna Bazar and Yamuna Khadar are flooded every year? The answer: lack of proper desilting of Yamuna river and its drains. Had there been proper desilting, it could have enhanced the water carrying capacity of the river, and water would not have entered adjoining localities. Every year, tall claims are made. The Yamuna Action Plan was prepared in 1993. It was supposed to be implemented fully by 2003. It did not happen. In 2003, Phase 2 of Yamuna Action Plan was implemented. It was supposed to be complete by 2020, but it did not happen. Earlier, Congress and BJP used to level allegations at each other. Kejriwal came to power and he promised complete desilting of Yamuna in the next five years. The deadline was extended time and again. This is the reason why people living in the vicinity of Yamuna river face the brunt of flood fury every year.

NATURE’S FURY IN HP, UTTARAKHAND

With the met department issuing a red alert about possible heavy rains in Shimla, Kullu and Solan, people in Himachal Pradesh are living in fear. The state government has confirmed the deaths of 88 persons, with 16 others missing, 873 roads blocked and bus services suspended on 1,193 routes. There is widespread devastation caused by floods and landslides. The road connecting the tourist spot Manali has been washed away. NDRF teams fixed zip lines to evacuate stranded people wearing safety harness over the swollen river Beas. Nearly 50,000 people stranded in Kullu district have been evacuated, claimed chief minister Sukhvinder Singh Sukhu. Nearly 300 people, mostly tourists, stuck near Chandratal Lake in Lahaul and Spiti district, at a height of 14,100 feet, are facing evacuation challenges. Relief teams are working in sub-zero temperature, in three to four feet of snow to repair the road leading to Chandratal Lake. India TV reporter Pawan Nara met a group of teachers who had gone to Manali for a seminar. They were stranded in their hotel, and heaved a sigh of relief after three days of staying without water, electricity and food. The hotel owner did not take money from them, and instead gave them Rs 20,000 for their safe return, the teachers said. Tourists are leaving Manali in groups, but those stranded in Mandi are facing problems. In Uttarakhand, 341 roads were blocked in the last 24 hours. 68 roads were reopened for traffic on Sunday night, but 273 roads are still blocked. Met department has issued an orange alert for Thursday. So far, 15 people have died due to rains and flood in Uttarakhand. I thank the people of Himachal Pradesh for helping stranded tourists, despite the chief minister Sukhvinder Singh Sukhu’s claim that government is trying to reach out to them. Most of the stranded tourists complained that the state government did not come to the rescue of stranded people.

BE PREPARED, WARN SCIENTISTS

The question now is, why such a heavy downpour in northern India? Will this be an annual phenomenon? Has the downpour got to do anything with Greenhouse Effect? Is it a sign of climate change? Our reporter Nirnay Kapoor spoke to IIT, Gandhinagar scientists. One of them, Prof. Bimal Mishra referred to a research done by IIT on this topic. The conclusion reached was: people in India must be prepared to face extreme weather conditions, which may occur almost every year, frequently. Prof. Mishra said, countries across the world are doing their bit to save the Earth from global warming, but its effect will be noticeable only after 30-40 years. For the next one or two decades, people will have to be prepared to face natural calamities. In layman’s language, scientists want to convey that it will be too hot in summer, too much rains during monsoon, and severe, biting cold during winter. Situations may arise when people will have to face severe drought during summer, and flash floods during monsoon. It may seem simple, but the danger is big. These extreme weather conditions may result in change in our crop cycles, like rabi and kharif crops. This will affect world economy, may cause food shortage, cause epidemics. Scientists say, nature is giving us messages constantly: Be on alert, if the world fails to act unitedly, people should be ready to face nature’s fury.

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सड़क हादसों को रोकने के लिए कड़े कानून बने

akb full_frame_60183मंगलवार की सुबह एक बुरी खबर आई. जिसने भी वीडियो देखा, उसके मुंह से आह निकल गई. दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर एक ड्राइवर उल्टी दिशा में 8 किलोमीटर तक तेजी से बस भगाते हुए आया, सामने से आती महिन्द्रा टीयूवी बस से टकराई और देखते ही देखते छह बेगुनाह लोगों की मौत हो गई. दो लोग अस्पताल में में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. इस परिवार की कोई गलती नहीं थी, न ओवर स्पीडिंग कर रहे थे, न लेन चेंज कर रहे थे, न रॉंन्ग साइड पर चल रहे थे, लेकिन अचानक रॉंन्ग साइड से एक बस आ गई. कार चलाने वाला कुछ कर पाता, इससे पहले हादसा हो गया और पूरा परिवार तबाह हो गया. बस का ड्राइवर सिर्फ पांच मिनट बचाने के चक्कर में एक्सप्रेस वे पर रॉन्ग साइड से गाड़ी ले गया. ये सिर्फ एक सड़क दुर्घटना का मामला नहीं है, दुर्घटनाएं तो रोज़ होती हैं, लेकिन मंगलवार की सुबह जो हुआ उसने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए. एक्सप्रेस वे पर कैमरे लगे हैं, हर वक्त मॉनिटरिंग का दावा किया जाता है, पैट्रोलिंग होती है, फिर एक ड्राइवर आठ किलोमीटर तक रॉंन्ग साइड पर बस चलाता रहा तो उसे रोका क्यों नहीं गया? उसे गलत दिशा मे आते समय पकड़ा क्यों नहीं गया? सवाल ये भी है कि क्या इस तरह की गलती करने वाला, दूसरों की जिंदगी को खतरे में डालने वाला सिर्फ गैर-इरादतन हत्या, ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन जैसे मामले में थोड़े दिन जेल में रह कर छूट जाएगा? क्या इतनी सजा काफी है? जिस परिवार के छह लोगों की मौत हुई, वे मेरठ के रहने वाले थे और राजस्थान में भगवान का दर्शन करने मंदिर जा रहे थे. दुर्घटना के बाद पुलिस ने गैस कटर से काट कर शवों को बाहर निकाला. मेरठ निवासी दो भाई, नरेंद्र और धर्मेन्द्र अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम जी के दर्शन करने जा रहे थे. उन्हें मेरठ से गुड़गांव जाना था, वहां से अपनी बहन को साथ लेना था और फिर खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए जाना था. नरेंन्द्र की पत्नी अनीता, दो बेटे हिमांशु और दीपांशु, नरेंद्र के छोटे भाई धर्मेन्द्र, धर्मेन्द्र की पत्नी बबिता, उनके दो बच्चे, बेटी वंशिका और 8 साल का बेटा गाड़ी में थे. हादसे में नरेंद्र और उनके पूरे परिवार की मौत हो गई. धर्मेन्द्र की पत्नी और बेटी की मौत हो गई. धर्मेन्द्र और उनके बेटे गंभीर रूप से घायल हैं. अब सवाल ये उठता है कि इस त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या सिर्फ ड्राइवर की गलती है? क्या टोल नाके पर बैठे कर्माचरियों की, पैट्रोलिंग टीम की, .सीसीटीवी मॉनिटरिंग टीम की कोई जिम्मेदारी नहीं है? नरेंद्र के रिश्तेदारों का कहना है कि इस हादसे के लिए हाइवे पर टोल वसूलने वाली कंपनी और प्रशासन ज़िम्मेदार है, क्योंकि ये बस अक्सर रॉन्ग साइड से गुज़रती थी, अगर किसी ने पहले इसे रोका होता, एक्शन लिया होता, तो शायद 6 जानें बच सकती थी. ये बात तो सही है कि क्या टोल पर बैठे कर्मचारियों का काम सिर्फ टोल वसूलना है? क्या रॉन्ग साइड पर आने वाली गाडियों को रोकने की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है? पता लगा कि जिस बस की वजह से हादसा हुआ, वह एक टूर ऐंड ट्रैवल्स कंपनी की है. पहले ये एक स्कूल बस थी, अभी एक प्राइवेट कंपनी के कर्मचारियों को लाने-ले जाने का काम कर रही थी. पुलिस को पता लगा कि इस बस का 18 बार पहले भी चालान हो चुका था, कभी ओवर स्पीडिंग, कभी सही ट्रैफिक लेन में नहीं चलने की वजह से, और कभी ख़तरनाक तरीक़े से ड्राइविंग करने के लिए. 18 बार चालान के बावजूद इस बस को सड़क पर चलने दिया गया. हमारे देश में हाइवे और एक्सप्रेस वे बन रहे हैं, जितनी अच्छी सड़कें बन रही है, हादसे भी उतने ज्यादा बढ़ रहे हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि हमारे देश में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की जान सड़क हादसों में चली जाती है. दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं. मैंने ‘आप की अदालत’ में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी से एक बार इसी विषय पर पूछा था. गडकरी ने बताया कि उन्हें ये मानने में कोई संकोच नहीं कि 8-9 साल से मंत्री रहने के बावजूद वे सड़क हादसों की संख्या कम नहीं करा पाए. उन्होने मूलत: 4 बातें बताई. एक, रोड इंजीनियरिंग के जडरिये उन ब्लैक स्पॉट्स का पता लगाना, जहां अक्सर हादसे होतें हैं, और वहां अंडरपास और पुल बनाना, (2) कार इंजीनियरिंग के ज़रिए सबी वहानों में 6 एयर बैग लगाने की अनिवार्यता लागू कराना, और पीछे की सीठ पर भी सेट बेलट की अनिवार्यता लागू कराना (3) सख्त ट्रैफिक कानून बनाना, ताकि लोगों को बिना थ्योरी और प्रैक्टिकल टेस्ट के ड्राइविंग लाइसेंस न देना, और (4) अपने अपने लेन में गाड़ी चलाने के बारे में जागरूकता पैदा करना. गड़करी ने कहा कि भारत के 3 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान सड़क हादसों की वजह से होता है. गड़करी ने मुझे एक और हैरान करने वाली बता बताई. उन्होंने कहा कि एक बार उन्होंने महाराष्ट्र में सरकारी बसों के ड्राइवर्क की आंखों की जांच करवाई. पता लगा कि चालीस परशेंट बस ड्राइवर्स ठीक से देख नहीं देख सकते थे. ज्यादातर को कैटरेक्ट (मोतियाबिंद) की बीमारी थी. कुछ तो एक आंख से पूरे तरह अंधे थे. उस वक्त एक मंत्री की गाड़ी का ड्राइवर एक आंख से अंधा था. उसे दिखाई नहीं देता था, वो अंदाजे से गाड़ी चला रहा था. गडकरी का कहना था कि हालात आज भी नहीं बदले हैं अब सोचिए, जिस देश में सरकारी गाडियों के ड्राइवर्स का ये हाल हो, वहां सड़क पर चलने वालों की जिंदगी भगवान भरोसे ही होगी. गड़करी की ये बात सही है कि हमारे देश में आसानी से ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाता है और उसके बाद ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा भी बहुंत ज्यादा नहीं होती, हजार सौ रूपए देकर छूट जाते हैं. जबकि दूसरे देशों में ट्रैफिक नियम सख्त हैं और सजा भी ज्यादा है. नॉर्वे में गति सीमा से ज्य़ादा तेज़ चलाने पर 65 हज़ार रुपए तक का जुर्माना है , शराब पीकर गाड़ी चलाने और रेड लाइट जंप करने पर लाखों का जुर्माना है. कनाडा के ओंटैरियो में अगर दो साल के भीतर किसी ड्राइवर का दो बार चलान होता है, तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस दो महीने के लिए निलंबित कर दिया जाता है. अगर कोई पांच बार रॉन्ग साइड पर गाड़ी ड्राइव करता हुआ पकड़ा जाता है, तो लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है. ब्रिटेन में ट्रैफिक नियम तोड़ने पर अगर तीन साल के अंदर अगर किसी के ऊपर 12 पेनाल्टी लगती है, तो उसका लाइसेंस छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है. बार बार ओवरस्पीडिंग करने पर लाइसेंस छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है. ब्रिटेन में शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले को जेल भेज दिया जाता है. अमेरिका में भी ट्रैफिक नियम तोड़ने पर 15 से 25 हज़ार रुपए का जुर्माना होता है, और अगर कोई गति सीमा से ज़्यादा तेज़ गाड़ी चलाता है, तो उस पर पेनाल्टी लगती जाती है. 12 प्वाइंट होने पर लाइसेंस सस्पेंड कर दिया जाता है. क्रोएशिया, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और चीन में ड्राइविंग लाइसेंस से पहले लर्नर लाइसेंस दिया जाता है और ड्राइविंग लाइसेंस तभी कन्फर्म होता है, जब कोई ड्राइवर 100 से 200 घंटे की ड्राइविंग पूरी कर ले. मुझे लगता है कि हमारे देश में भी ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनने चाहिए और इन कानूनों का ईमानदारी से पालन करवाने की जरूरत है, तभी इस तरह के हादसों पर रोक लग सकती है.

बृज भूषण : न्याय होना ही चाहिए

दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने पहलवान बेटियों के यौनशोषण के आरोपों में जो चार्जशीट फाइल की है, उससे भारतीय कुश्ती फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की मुश्किलें बढ़ गई है. दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में कहा गया है कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन शोषण के इल्जाम में केस चलाने के लिए पर्याप्त आधार है. बृजभूषण के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है. बृजभूषण का अपराध सजा के काबिल है. चार्जशीट में 108 लोगों के बयान दर्ज हैं, 21 लोगों ने पीड़ित महिला पहलवानों के पक्ष में गवाही दी है, इसमें 6 लोगों ने 164 के तहत अपनी गवाही दर्ज कराई है. गवाही देने वालों में पहलवानों के परिवार के लोग भी शामिल हैं. बृजभूषण के खिलाफ 13 जून को दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी. एक हजार पन्नों की चार्जशीट में यौन उत्पीड़न, महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला करना या बल प्रयोग करना और बुरे इरादे से महिला का पीछा करने जैसी संगीन धाराएं लगाई गईं हैं. चार्जशीट के आधार पर कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह को 18 जुलाई को पेश होने का समन पहले ही जारी कर दिया था. कांग्रेस ने मांग की है कि बृजभूषण को उनके पद से और पार्टी से तुरंत हटाया जाय और उन्हें गिरफ्तार किय़ा जाय. बृजभूषण के केस में ये कहा जा सकता है कि ये तो होना ही था. उनपर जो आरोप लगे हैं वो बेहद संगीन हैं, लेकिन बृजभूषण ने कभी भी इन आरोपों की परवाह नहीं की. उनका जो रवैया रहा है, वो गैरजिम्मेदाराना, ज़िद्दी और अपनी छवि के मुताबिक बाहुबली जैसा रहा है. इससे सरकार की छवि खराब हुई, भारतीय कुश्ती का नाम खराब हुआ. मैडल जीतने वाली, देश का नाम रौशन करने वाली पहलवान बेटियों को प्रताड़ना झेलनी पड़ी. इसलिए बृजभूषण के खिलाफ केस तो चलना ही चाहिए था, लेकिन इस मामले में न्याय हो इतना ही काफी नहीं है, न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए, क्योंकि इस केस की एक-एक बात सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है. इस मामले में दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए गए थे, लेकिन चार्जशीट देखकर ये लगता है कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले की तहकीकात ठीक से की, और गवाहों के बयान इतने पुख्ता हैं कि अब बृज भूषण शरण सिंह का बचना मुश्किल होगा.

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ROAD ACCIDENTS : BRING STRINGENT TRAFFIC LAWS

AKBThe horrific crash that took place on Tuesday morning on Delhi-Meerut Expressway should ring an alarming bell for all drivers and for the entire traffic management system. Six members of a family died and two are battling for life after a private bus, that came from the wrong side for nearly eight kilometres, crashed into a Mahindra TUV vehicle. The Meerut-based family was going to Sikar, Rajasthan to visit a temple. The crash took place near Ghaziabad. The bus driver, coming from the wrong side, tried to swerve to the right, but ended up crashing into the TUV, because the car driver too steered to his left. Road accidents occur in India daily, but this crash raises questions about our system. CCTV cameras were installed on the expressway, the authorities claimed that vehicles are monitored round-the-clock on cameras, apart from patrolling, but a bus driver travelled on the wrong side for nearly 8 km, but nobody stopped him. Question has been raised whether the driver, Prem Pal, who committed this grave traffic violation, would walk out of the jail. Indian Penal Code says, “whoever causes the death of any person by doing any rash or negligent act, not amounting to culpable homicide shall be punished with imprisonment up to two years, or with fine, or both”. Is the punishment adequate? Those who died in the crash included Narendra, his wife Anita, their two sons Himanshu and Deepanshu, his brother Dharmendra’s wife Babita and her daughter Vanshika. Dharmendra and his son are battling for life. Gas cutter was used to cut open the mangled vehicle to bring out the corpses. Narendra’s relatives say, it was the toll company which is responsible for this crash, because the bus driver used to regularly take the wrong side daily. Had he been stopped earlier, the lives of six persons could have been saved. Is the work of toll company staff only to collect toll? Is it not the responsibility of administration to stop vehicles travelling from the wrong side? The bus, belonging to a private transport company, used to ferry school children, but of late, it was ferrying employees of a private firm. Police said, the bus was challaned 18 times, for dangerous driving, overspeeding and other traffic violations. At a time when India is witnessing a spectacular growth in road infrastructure, with new expressways being built across the country, you will surprised to know that more than 1.5 lakh people lose their lives in road accidents annually. India tops the world’s list of countries where road accidents occur. Wrong-side driving, after overspeeding, is the second biggest cause of road accident deaths in India. About 43,000 lives were lost between 2017 and 2021 in India due to wrong side driving. I had asked Union Road Transport Minister Nitin Gadkari in my show ‘Aap Ki Adalat’ about how road accidents can be prevented. Gadkari said, “I have no hesitation in accepting that I could not lower the number of road accidents during the last 8-9 years of my tenure”. He gave four main reasons: (1) road engineering, by identifying ‘black spots’ and building underpass, overbridges, (2) automobile engineering, by making 6 airbags in vehicles mandatory, and seat belt fastening on rear seats mandatory, (3) making theoretical and practical tests mandatory for all driving license applicants and (4) creating awareness about sticking to road lanes by taking support from celebrities like Amitabh Bachchan and Akshay Kumar. Gadkari also revealed a surprising incident. Once, he ordered eyesight check for drivers of all government buses in Maharashtra, and found that at least 40 per cent drivers could not see properly, with most of them suffering from cataract. Some bus drivers could not see at all from one eye. He told me, one driver of a minister’s car could not see from one eye, and yet he used to drive the vehicle using his sixth sense. Gadkari said, the situation has still not improved till now. In a country where drivers of government vehicles have failing eyesight, what will be the fate of passengers and others? Gadkari is right when he says, in India, one gets a driving license easily without undergoing strict tests. Secondly, punishments for serious traffic rule violations are not severe. In western countries, traffic rules are stringent and the punishments are severe. In Norway, overspeeding can result in fines up to Rs 65,000, drunken driving and jumping red lights invite fines in several lakhs of rupees. In Ontario, Canada, if a driver is challaned twice in two years, his license is cancelled for the next two months. Any driver caught driving on the wrong side five times, will invite cancellation of license. In Britain, if any driver gets penalties twelve times in three years, his license is suspended for six months. Frequent overspeeding results in suspension of license for six months. Those caught for drunken driving are sent to prison. In the US, traffic violations invite fines ranging from Rs 15,000 to Rs 25,000, overspeeding invites penalty points, and after getting 12 points, the driver’s license is suspended. In Croatia, Japan, Singapore, Australia and China, a driver is first given learner’s license, and his license is confirmed only after he completes 100 to 200 hours of driving. Time has come for enforcing stringent traffic rules in India to prevent major road accidents.

BRIJ BHUSHAN : JUSTICE MUST BE DONE

Delhi Police chargesheet filed in Rouse Avenue court against former president of Wrestling Federation of India Brij Bhushan Sharan Singh clearly shows his involvement in sexual harassment of female wrestlers. The chargesheet says, Singh is “liable to be prosecuted and punished for offences of sexual harassment, molestation and stalking” under Sections 506 (criminal initimidation), 354 (outraging modesty of a woman, 354 A (sexual harassment) and 354 D (stalking) of Indian Penal Code. The chargesheet includes ‘technical evidence’ that includes two photographs allegedly showing him making advances towards a complainant, his phone location matching another wrestler’s testimony, a set of photos that confirm his presence at a event when an incident of sexual harassment took place. The chargesheet includes statements of 108 persons, out of which 21 persons have given testimonies in favour of the victims. Six of them have given their testimony under Section 164 of CrPC. Among the witnesses are relatives of female werstlers. Police had filed more than 1,000 pages of chargesheet on June 13, and Singh has been summoned to appear in court on July 18. Congress leaders have demanded that Singh should be expelled from BJP and he must be arrested. The chargesheet substantiates the allegations made by women wrestlers against the ex-chief of WFI. This was bound to happen. The charges are serious. But Brij Bhushan never cared for these allegations and his conduct was irresponsible, adamant and he projected his image of a ‘Bahubali’. Brij Bhushan’s action has brought disrepute to the government’s image. Women wrestlers who brought fame for India by winning medals, had to face atrocities. The case must now be taken to its logical conclusion. ‘Justice must not only be done, but must be seen to be done’. Each of the incidents mentioned in the chargesheet are in public domain. Questions were raised about partiality on part of Delhi Police, but the chargesheet clearly shows, Delhi Police has done its investigation astutely. The testimonies of witnesses are so solid that it may be difficult for Brij Bhushan Sharan Singh to wiggle out.

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कुदरत का क़हर : बचने के उपाय

akb fullदेश के कई हिस्सों से बारिश से हुई तबाही की जो तस्वीरें आईं, वो दिल दहलाने वाली हैं. प्रकृति का सबसे ज्यादा क़हर हिमाचल में दिखाई दिया. हिमाचल प्रदेश में पिछले सत्तर साल में इतनी बारिश कभी नहीं हुई, यहां भयंकर बारिश, बादल फटने की घटनाएं, भूस्खलन और बाढ़ के कारण बेइंतहा तबाही हुई है. दिल्ली का भी बुरा हाल है, यहाँ पिछले चालीस साल में इतनी बारिश कभी नहीं हुई, जितना पानी मॉनसून के पूरे मौसम में बरसता है, उतनी बारिश सिर्फ 12 घंटे में हो गई. यमुना खतरे के निशान को पार कर गई है. हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है, इसलिए आने वाले दिनों में दिल्ली के हालात और खऱाब होने के आसार है. दिल्ली के इंडिया गेट और कनॉट प्लेस जैसे इलाकों में पानी भर गया. मंत्री और सांसदों के घरों में भी तीन-तीन फीट पानी भर गया. प्रगति मैदान पर जो नई टनल बनी है उसमें इतना पानी भर गया कि उसे बंद करना पड़ा. दिल्ली के अलावा कई ऐसे शहर, जैसे चंडीगढ़, मोहाली, गुड़गांव में भी चारों तरफ पानी भर गया. लोगों का जीना मुश्किल हो गया. चंडीगढ़ में BMW और मर्सिडीज कारें पानी में तैरती दिखाई दी. उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी भारी बारिश मुसीबतों की बाढ़ लेकर आई. चिंता की बात ये है कि मौसम विभाग ने हिमाचल प्रदेश में अगले 48 घंटे में भारी बारिश का रेड एलर्ट जारी किया है. चम्बा, कुल्लू, शिमला, सिरमौर, सोलन और मंडी ज़िलों में तूफ़ानी बारिश और बाढ़ की चेतावनी दी गई है. हिमाचल प्रदेश की सभी नदियां लोगों के लिए मुसीबत बन गई हैं. ऐसा लग रहा है कि सतलुज, रावी और ब्यास अपने आसपास की हर चीज को बहाकर ले जाना चाहती हैं. ये हालात इसलिए पैदा हुए क्योंकि हिमाचल में पिछले दो दिनों में इतनी बारिश हो चुकी है, जितनी लोगों ने कभी नहीं देखी. सोलन ज़िले में तो बारिश ने पिछले 52 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. रविवार को सोलन ज़िले में 135 मिलीमीटर बारिश हुई थी. इससे पहले सोलन ज़िले में 1971 में एक दिन में 105 मिलीमीटर बारिश का रिकॉर्ड बना था. कुछ घंटों की रिकॉर्ड बारिश से सोलन ज़िले में ऐसा सैलाब आया कि बहुत सी सड़कें और पुल बह गए. पूरा पहाड़ कीचड़ की शक्ल में पूरे इलाके में आ गया और हर चीज तिनके की तरह बह गई. पानी के तेज़ बहाव में बड़ी-बड़ी गाड़ियां खिलौनों की तरह बहने लगीं. सवाल ये है कि पूरी दुनिया में और खास तौर पर हमारे देश में इतना पानी क्यों बरस रहा है, जो पिछले 40 साल में या कहीं 70 साल में कभी नहीं बरसा ? बारिश से इतनी तबाही क्यों हो रही है? इसके 2 मेन कारण हैं -पहला क्लाईमेट चेंज, यानी जलवायु परिवर्तन, और दूसरा- शहरों में अनियंत्रित निर्माण. पिछले 10 साल से वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं, रेड अलर्ट का सिग्नल दे रहे हैं कि सबको मिलकर ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने की कोशिश करनी चाहिए, पर कम लोग उनकी बात सुनते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर गर्मी बढे़गी तो ज्यादा बारिश होगी, बाढ़ आएगी और तबाही होगी. वो समझाते हैं कि अगर एक परसेंट टेम्परेचर बढ़ता है तो समुद्र का 7 परसेंट ज्यादा पानी भाप बनकर निकलता है. बादल बनकर बरसता है, अगर समंदर पर तापमान 2-3 परसेंट बढ़ता है तो पानी 15-20 परसेंट ज्यादा भाप बन जाता है, और जब बादल बनेंगे तो कहीं न कहीं तो बरसेंगे ही. आजकल पहाड़ में इतनी ज्यादा बारिश इसलिए हो रही है क्योंकि वहां हर वक्त हवा चलती रहती है, ये हवा जब पहाड़ से टकराती है तो बादल बरसते हैं, कभी-कभी बादल फटते हैं, इसलिए हिमालय की तलहटी, वेस्टर्न घाट की तलहटी में आजकल इतनी जबरदस्त बारिश हो रही है. इसीलिए हिमाचल और उत्तराखंड में इतनी ज्यादा बाढ़ आई है. इसी तरह के हालात असम और पूर्वोत्तर राज्यों में भी हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खतरा और बढ़ेगा, आने वाले साल में बादल और बरसेंगे और बाढ़ आएगी, ये खतरा इसलिए है क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से कार्बन डाइ ऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन बढ़ रहा है. आज इस वक्त का जो अनुमान है, उसके मुताबिक सन् 2050 तक दक्षिण एशिया में आज के मुकाबले 14 गुना ज्यादा गर्मी की लहर का सामना करना पड़ेगा. आप सोच सकते हैं कि अगर गर्मी 14 गुना ज्यादा बढ़ जाएगी, तो आज जितनी बाढ़ आ रही है, उससे ढाई से तीन गुना ज्यादा ज्यादा बाढ़ आएगी. आज जितने तूफान आते हैं, उससे चार से पांच गुना ज्यादा तूफानी हालात का सामना करना पड़ सकता है. खतरा बड़ा है, इससे बचाने का काम सिर्फ सरकारें नहीं कर सकती, हम सबको इस खतरे को समझना होगा और ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए अपना योगदान करना होगा. इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है. हम कितने पेड़ काटते हैं, कितने पेड़ लगाते हैं, हम कितना प्लास्टिक का इस्तेमाल करते हैं, हम कितना पानी बर्बाद करते हैं, हम कॉन्क्रीट के कितने जंगल खड़े करते हैं, ये सारी बातें इस खतरे को बढ़ाती हैं. अगर इससे बचना है, तो सावधानी तो बरतनी पड़ेगी.

हिंसा : बंगाल की छवि के लिए ठीक नहीं

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा के बाद सोमवार को 697 पोलिंग बूथ्स पर दोबारा वोट डाले गए. मंगलवार को वोटों की गिनती शुरू हुई, और शुरुआती रुझानों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस सबसे आगे हैं, और बीजेपी दूसरे स्थान पर है. चुनावों में अब तक 41 लोगों की मौत हो चुकी है. बीजेपी ने पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा के लिए ममता बनर्जी की सरकार को जिम्मेदार ठहराया है, तृणमूल कांग्रेस पर खून खऱाबे का इल्जाम लगाया. बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर छह हजार पोलिंग बूथ्स पर रीपोल कराने की मांग की है. शुभेन्दु अधिकारी ने कहा कि बंगाल में जिस तरह के हालात हैं, उसके बाद केन्द्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शासन लगाने की चेतावनी देनी चाहिए. बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने रविशंकर प्रसाद की अगुवाई में चार सदस्यों की तथ्यान्वेषी कमेटी को बंगाल भेजने का फैसला किया है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि बंगाल को बदनाम करने के लिए बीजेपी ही हिंसा करवाती है और उसके बाद शोर भी मचाती है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल के आई जी से कहा है कि वह सुरक्षा बलों की तैनाती के बारे में रिपोर्ट पेश करें. बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने हाई कोर्ट से आग्रह किया है कि मारे गये लोगों को मुआवज़ा दिया जाय और एक हाई कोर्ट जज की अध्यक्षता में हिंसा की घटनाओं की न्यायिक जांच करायी जाय. राज्यपाल सी वी आनन्द बोस ने सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की और बाद में घुमा फिरा कर केवल इतना कहा कि जब अंधेरा घना होता है तो समझो सुबह होने वाली है. ऐसा नहीं है कि पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा में सिर्फ बीजेपी के कार्यकर्ताओं की मौत हुई. हिंसा के शिकार तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और लेफ्ट के कार्यकर्ता भी हुए हैं. इसलिए नाराजगी तो सभी पार्टियों में हैं. जांच की मांग सभी कर रहे हैं. ये बात तो सही है कि बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा होगी, ये सब जानते थे. इसलिए इसे रोकने के कदम तो उठाए जाने चाहिए थे. सवाल ये भी है कि तमाम रिपोर्ट्स और पुराना रिकॉर्ड सामने होने के बाद भी सेन्ट्रल फोर्सेस की तैनाती वक्त रहते क्यों नहीं की गई? इसके लिए भी कोर्ट को दखल देना पड़ा. फिर जब तैनाती हुई तो उन इलाकों में ठीक से नहीं हुई, जिनमें हिंसा की आशंका ज्यादा थी. नतीजा ये हुआ कि कई सालों के बाद देश ने पोलिंग बूथ लुटते हुए देखे, लोग बूथ में मतपेटियां छीनकर मत पत्रों पर धड़ाधड़ अपनी पार्टी का ठप्पा लगाते हुए दिखे. इसीलिए राज्य चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. मुझे लगता है कि बंगाल में चुनाव चाहे पंचायत का हो, नगर निगम का हो, विधानसभा का हो, लोकसभा का हो, हर बार हिंसा की खबरें आती हैं, गोली चलती है, बम चलते हैं, हत्याएं होती है, ये न लोकतन्त्र के लिए अच्छा है, और न बंगाल की छवि के लिए. ममता बनर्जी को सोचना चाहिए कि वो वामपंथी शासन के खिलाफ लड़कर आईं. इसी तरह की हिंसा से बंगाल को मुक्त करने का वादा करके मुख्यमंत्री बनीं. कम से कम उन्हें बंगाल के लोगों से किए गए वादे को तो याद करना चाहिए

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NATURE’S FURY : HOW TO PREVENT

AKBThe onslaught of heavy rains, landslides and floods in northern India has taken a heavy toll of lives and properties with vast areas inundated both in the hills and plains. The worst-hit is Himachal Pradesh, where army and NDRF are engaged in rescue and relief work. Uttarakhand, Punjab, Haryana, Gujarat, UP, Delhi and Rajasthan are facing devastation with rivers like Beas, Sutlej, Ghaghar, Yamuna and Ganga in spate. Thousands of people living near Yamuna banks in Delhi have been moved as the river crossed the danger mark. Highways, vast areas of agricultural land, residential localities in cities have faced the wrath of nature’s fury caused by the combined might of the monsoon and western disturbance. The question is, why this sudden and heavy downpour, which has broken 40 to 70 year old records? I find two main reasons. One: climate change, and Two: unplanned urban development. Scientists have been warning since the last ten years, sending red signals, and appealing to countries to join hands to prevent global warming. Most of their appeals have fallen on deaf years, on the ground. Scientists had warned that too much global warming can also cause heavy rains and cloudbursts. They say, one per cent rise in global temperature can lead to at least seven per cent of our oceans released vapour into the atmosphere, resulting in heavy precipitation and rains. A two to three per cent rise in ocean temperature can lead to 15 to 20 per cent more water evaporation, resulting in huge clouds forming in the atmosphere. Naturally, these clouds will surely cause heavy downpour. The hills are the worse affected because there are strong winds blowing in hilly areas. When strong winds hit the hills, there are bound to be cloudbursts. The foothills of Himalayas and Western Ghat have been witnessing heavy rains in recent weeks. Himachal Pradesh and Uttarakhand are facing the brunt of cloudbursts, floods and landslides. A similar situation exists in Assam and other northeastern states. Scientists warn that this danger may increase in coming years leading to more cloudbursts, floods and landslides. The danger is due to rise in carbon dioxide and methane gas emission caused by climate change. Present estimates predict that South Asia, by 2050, will face heat wave 14 times more than it is occurring presently. Just imagine: If heat level increases 14 times, floods will occur at least two and a half to three times more. Cyclones in the near future will be four to five times stronger compared to the present cyclones. The danger is big and serious. Only governments cannot save us from this danger. We must all realize the danger and contribute our mite towards preventing global warming. There is no way out. Rampant deforestation is going on, we waste huge amounts of water, there is widespread use of plastic, and concrete jungles are being erected in cities and hilly areas to house people. All these developments point towards the bigger danger. If we want to save ourselves, we must exercise caution.

VIOLENCE : NOT GOOD FOR BENGAL’S IMAGE

As counting continued in West Bengal for panchayat elections on Tuesday, with ruling Trinamool Congress taking the lead, and BJP following at No. 2 position, questions have been raised by almost all opposition parties in the state over the manner in which the polls were conducted. BJP chief J P Nadda has sent his fact-finding committee, while state Congress chief Adhir Ranjan Chowdhury has knocked the doors of Calcutta High Court, which has directed the Border Security Force IG to file a ground report on force deployment on the day of polling when there was widespread violence. West Bengal governor C V Ananda Bose met Home Minister Amit Shah in Delhi and made a cryptic comment while quoting English poet Shelley, ‘the darkest hour is just before dawn’. A total of 41 people lost their lives in Bengal panchayat elections, with hundreds of BJP supporters fleeing the state and taking refuge in neighbouring Assam. It is not that only BJP supporters were killed in violence. Supporters of Trinamool Congress, Congress and Left parties were also killed. All the parties except TMC are demanding inquiry. Adhir Ranjan Chowdhury demanded compensation for those killed and a judicial inquiry into violence by a sitting judge of High Court. He alleged that the state government knew violence will take place, but no preventive steps were taken. Questions have been raised on why central paramilitary forces were not deployed at polling stations in time. After several years, TV viewers in India watched polling booths being plundered, ballot boxes being thrown into a pond, ballot papers being torn, and booth capturing taking place. The State Election Commission’s role is being questioned. I think, whether it is panchayat election, or urban local bodies or assembly or Lok Sabha elections, every time we get reports of murders, firing and bomb blasts from West Bengal. This is not good for democracy, nor is it good for West Bengal’s image. Mamata Banerjee must ponder. She came to power after fighting decades of Left Front rule. She became chief minister after promising the people to free them from the scourge of violence. At least, she must remember the promises that she made to the people of Bengal.

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राहुल ने खेद प्रकट क्यों नहीं किया ?

akb शुक्रवार को राहुल गांधी को गुजरात हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा. मानहानि के केस में सूरत सेशन्स कोर्ट से मिली दो साल कैद की सज़ा पर रोक लगाने से गुजरात हाईकोर्ट ने इंकार कर दिया. राहुल ने 2019 में कर्नाटक की एक चुनाव रैली में कहा था, ‘सारे चोर मोदी क्यों होते हैं’. हाईकोर्ट ने सेशन्स कोर्ट द्वारा सुनाई गई सज़ा को रद्द करने से इंकार कर दिया. हाईकोर्ट के जज जस्टिस हेमंत प्रच्छक ने अपने फैसले में कहा कि इस केस के अलावा राहुल गांधी के खिलाफ इसी तरह के 10 मुकदमे लम्बित हैं, कई मामले तो ऐसे हैं, जो इस केस के बाद भी राहुल गांधी के खिलाफ दर्ज हुए हैं, इसलिए राहत देने का कोई औचित्य नहीं है. अदालत ने कहा कि आज राजनीति में शुचिता वक्त की जरूरत है, नेता स्वच्छ छवि वाले और बेदाग होने चाहिए, मानहानि बहुत गंभीर मामला है, इसलिए राहुल की अर्जी को खारिज करना उनके साथ अन्याय नहीं होगा. जैसे ही कोर्ट का फैसला आया तो राहुल ने एक बार फिर ये दिखाने की कोशिश की कि इस फैसले का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वो जेल जाएंगे, लेकिन माफी नहीं मानेंगे. देश के तमाम हिस्सों में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र , गुजरात, राजस्थान से लेकर तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन होने लगे. कांग्रेस ने हाईकोर्ट के फैसले को राजनीतिक दुश्मनी का नतीजा बताया. प्रियंका गांधी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता लिख कर कहा कि सरकार कितना भी जुल्म कर ले, लेकिन राहुल की आवाज बंद नहीं कर पाएगी, राहुल आम लोगों की आवाज उठाते रहेंगे. वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि निचले कोर्ट के फैसले में कई गलतियां थी, उसी तरह हाईकोर्ट के फैसले पर भी कई सवाल उठते हैं. सिंघवी ने कहा कि आजादी के बाद आज तक किसी व्यक्ति को एक बयान को लेकर मानहानि के केस में अधिकतम सज़ा नहीं दी गई है, राहुल गांधी के केस में ऐसा क्यों हुआ? उन केसेज़ को आधार बनाकर राहुल की सजा को बरकरार रखा गया, जिसमें उन्हें अभी तक दोषी भी नहीं ठहराया गया है. राहुल के खिलाफ बीजेपी के नेता ने केस किया, इसलिए ये राजनीति से प्रेरित मामला था और फैसला भी उसी लाइन पर हैं. सिंघवी ने कहा कि उन्हें तो पहले से इसी तरह के फैसले की आशंका थी, उन्हें पूरा यकीन है कि राहुल को सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलेगा. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस को कोर्ट पर हमला करने के बजाए राहुल गांधी को समझाना चाहिए कि वो इस तरह के बयान देने से बचें, जो बाद में मुसीबत बन जाते हैं. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अगर राहुल माफी मांग लेते, अपना बयान वापस ले लेते तो ये मौका ही न आता, लेकिन राहुल अंहकारी हैं, वो खुद को कानून से ऊपर मानते हैं, इसलिए उन्हें आज ये दिन देखना पड़ रहा है, इससे न सरकार का कोई लेना देना है, न बीजेपी का. ये बात सही है कि राहुल गांधी को मानहानि के केस में अधिकतम सज़ा दी गई है, इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि मानहानि के ज्यादातर मामलों में लोग अपना बयान वापस ले लेते हैं, खेद जताते हैं, माफी मांग लेते हैं, इसलिए केस खत्म हो जाता है. अरविन्द केजरीवाल ने तीन मामलों में माफी मांगी, उन्हें सजा नहीं हुई. राहुल गांधी ने खुद राफेल के केस में सुप्रीम कोर्ट से गलत बयानी के लिए लिखित माफी मांगी. गलती सब से होती है. इस केस में राहुल को सेशन्स कोर्ट ने ये ऑप्शन दिया था, कहा था कि वो बयान वापस ले लें, माफी मांग लें या फिर मुकदमे का सामना करें. राहुल जिद पर अड़े रहे. कह दिया, जेल चला जाऊंगा, पर न बयान वापस लूंगा, न माफी मांगूंगा, और फिर जब सेशन्स कोर्ट का फैसला आया, सजा हो गई तो कहा, कि वो सावरकर नहीं हैं जो माफी मांग लें, वो गांधी हैं, गांधी कभी माफी नहीं मांगता. राहुल की इसी जिद के कारण ये मामला इतना बड़ा बना. कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने उन्हें समझाया कि इस तरह के मामलों में खेद व्यक्त करने से काम बन जाता है, मामला खत्म हो जाता है, लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे, किसी की नहीं सुनी. उनके चक्कर में मुसीबत कांग्रेस को झेलनी पड़ी.

छत्तीसगढ़ में मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को छत्तीसगढ़ में थे. रायपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि विपक्ष के कुछ नेता कहते हैं कि वे मोदी की कब्र खोदेंगे, मैं कहना चाहता हूं कि जो डर जाए, वो मोदी हो ही नहीं सकता. मोदी ने कहा, विरोधी दल मिलकर उन्हें डराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो ये जान लें जिन-जिन लोगों ने देश का पैसा खाया है, उनमे से किसी को बख्शा नहीं जाएगा. मोदी ने बताया कि कांग्रेस का पंजा कैसे छत्तीसगढ़ के लोगों के हक पर डाका डाल रहा है. उन्होंने कांग्रेस की गारंटियों का जिक्र किया, फिर चुनाव से पहले किए वादे याद दिलाए, पूछा, कितने वादे पूरे हो गए? छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने शराबबंदी लागू करने का वादा किया था. मोदी ने कहा कि सत्ता में आने के बाद शराबबंदी करने के बजाए कांग्रेस ने शराब के सिंडिकेट को और मजबूत कर दिया, उसे काली कमाई का स्रोत बना दिया. मोदी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में शराब के जरिए जो पैसा आया, वो कांग्रेस के नेताओं की जेब में गया, इतने बड़े पैमाने पर पैसा बनाया गया और इसी चक्कर में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाला फॉर्मूला छत्तीसगढ़ में लागू नहीं हो पाया. नरेन्द्र मोदी दूसरे नेताओं की तरह नहीं हैं, जहां जाते हैं, पूरा होमवर्क करके जाते हैं, कौन से मुद्दे उठाना है, कहां वार करना है, उन्हें अच्छी तरह पता होता है, इसीलिए उन्होंने रायपुर में शराब घोटाले का जिक्र बार- बार किया. शराब घोटाले के केस में कई अफसर और नेता ED के शिकंजे में हैं. मोदी ने कहा कि करप्शन कांग्रेस की गारंटी है, लेकिन उनकी गारंटी है कि भ्रष्टाचार करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.जिस वक्त मोदी रायपुर में बोल रहे थे, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस के तमाम नेता राहुल गांधी के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे थे. भूपेश बघेल ने कहा, मोदी हर बात पर झूठ बोल कर गए हैं, झूठ बोलना, लोगों को गुमराह करना मोदी की आदत है. उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव कहा कि अगर कांग्रेस भ्रष्टाचार कर रही है, तो कार्रवाई करने से किसने रोका है, मोदी जांच करा लें, अब तक किसी मामले की जांच क्यों नहीं करवाई? कांग्रेस के नेताओं की बातों से एक बात साफ है कि उनके पास मोदी के आरोपों का जवाब नहीं हैं. और जवाब इसलिए नहीं है क्योंकि मोदी हवा में नहीं बोलते, पहले पूरा होम वर्क करते हैं, फिर आईना दिखाते हैं. भूपेश बघेल ने कहा कि मोदी ने जिन योजनाओं का उद्घाटन किया, वो 17 साल पहले मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त मंजूर हुई थी, इसलिए मोदी को श्रेय नहीं लेना चाहिए, लेकिन बीजेपी के नेता पूछ रहे हैं कि कांग्रेस के जमाने में यही तो दिक्कत थी, योजनाएं बनती थी, फिर मंजूर होती थी, शिलान्यास होता था, लेकिन कभी पूरी नहीं होती थी. शुक्रवार को जिन परियोजनाओं का उद्घाटन हुआ, उनमें से कुछ मनमोहन सिंह के जमाने में बनी थी, उसके बाद आठ साल तक मनमोहन सिंह की सरकार रही, फिर ये योजनाएं पूरी क्यों नहीं हुई? अगर मोदी ने उन्हें पूरा किया तो क्या उनका श्रेय मोदी को नहीं मिलना चाहिए? जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, तो छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले और कोयला घोटाले की चर्चा खूब हो रही है. कई लोग जेल में हैं, मोदी ने उसका जिक्र कियाा लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने इसकी बात नहीं की. मोदी के भाषण से लगा कि बीजेपी छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार को ही बड़ा मुद्दा बनाएगी.

बंगाल में चुनावी हिंसा
बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान शनिवार को हुई वोटिंग में बारह लोगों के मारे जाने की खबर है. बड़े पैमाने पर पोलिंग बूथ और उसके आसपास हिंसा हुई, मतपत्रों को लूटा गया, मतपेटियों को लूटा गया, तालाब में फेंक गया, मतपत्रों में आग लगा दी गई. मृतकों में तृणमूल कांग्रेस के 5 समर्थक, और बीजेपी, कांग्रेस, सीपीएम और एक निर्दलीय उम्मीदवार का एक-एक समर्थक शामिल है. आज करीब 5 करोड़ 76 लाख लोगों को 2 लाख 6 हजार उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करना था. 22 जिला परिषद , 9,730 पंचायत समिति सीट और 63,229 ग्राम पंचायत सीटों के लिए वोटिंग होनी थी. लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिंसा होने की आशंका किसी को नहीं थी. विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि ये चुनाव नहीं, मौत है. कांग्रेस के एक नेता ने कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से गुहार लगाई कि पंचायत चुनाव को फौरन अवैध घोषित कर दिया जाय.पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस हिंसा प्रभावित इलाकों में गए. बहुत से मतादाताओं ने आरोप लगाया कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों के जवानों को मतदान केंद्रों पर तैनात ही नहीं किया गया था. राज्यपाल आनंद बोस से कहा कि हिंसा के शिकार लोगों से मिलने को अगर कोई प्रचार समझ रहा है, तो समझे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, वो अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये बुलेट और बैलट की लड़ाई है, और लोगों को तय करना है कि जीत बैलट की ही होनी चाहिए. चुनाव के एलान के बाद से अब तक 31 लोगों की मौत हो चुकी है, ये चिंता की बात है. इससे भी ज्यादा हैरानी इस बात पर है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि इतनी हिंसा कोई बड़ी बात नहीं है, बीजेपी बेकार में हायतौबा मचा रही है. मुझे लगता है कि राज्यपाल की ये बात सही है कि लोकतंत्र में बुलेट की नहीं, बैलट की जीत होनी चाहिए.

WHY DIDN’T RAHUL EXPRESS REGRET?

AKB30 Congress leader Rahul Gandhi suffered a setback on Friday when Gujarat High Court refused to stay his conviction in a defamation case filed against him for casting slur on the surname Modi at a rally four years ago in Karnataka. Justice H M Prachchak said, “as many as 10 criminal cases are pending (against him).. The present conviction is a serious matter affecting a large segment of society and needs to be viewed by this court with the gravity and significance it demands.” The judge also said, Rahul Gandhi belongs to the oldest political party in India….being a public personality, he is vested with the duty to exercise the vast power at his disposal with caution..” While BJP hailed the high court ruling and described Rahul as a “chronic offender”, Congress described the ruling as “disappointing but not unexpected”. Rahul Gandhi will now file appeal before the Supreme Court. It is correct that Rahul Gandhi has been given maximum punishment in this defamation case which is unprecedented, but one must not forget that in most of the defamation cases, the accused withdraw their offending remarks and tender apology, and the case is put at rest. Delhi chief minister Arvind Kejriwal tendered apology in three such defamation cases and was not punished. Rahul Gandhi himself tendered apology before the Supreme Court in writing for making allegations in Rafale case. Everybody makes mistakes. In this case, the sessions court in Surat had given Rahul the option to withdraw his remarks and apologize, or face trial. Rahul remained adamant and said he was willing to go to jail but will not withdraw his remark that “people with the surname Modi are all thieves”. When the sessions court sentenced him to two years’ imprisonment after convicting him, Rahul said, ‘I am not Savarkar who will apologize, I am a Gandhi, and Gandhis never apologize’. Because of Rahul’s obdurate stand, the matter has now lingered on. Some senior Congress leaders advised him saying that by withdrawing his remark and tendering apology, the matter can end, but Rahul dug in his heels. As a result, the entire Congress party is now bearing the burden of his mistake.

MODI IN CHHATTISGARH

Prime Minister Narendra Modi visited Chhattisgarh and eastern UP on Friday. At a rally in Raipur, Modi lashed out at the Congress alleging that “corruption is its biggest ideology”. Modi said, “if Congress can guarantee corruption, I can give the guarantee that I will crack down on corruption.” Modi alleged that “for the Congress, Chhattisgarh has become an ATM”. Modi reminded voters that Congress had promised to implement prohibition in Chhattisgarh, but instead it strengthened the liquor syndicate active here. The PM alleged that Congress leaders made money from liquor scam. While Modi was busy addressing his rally, Congress chief minister Bhupesh Baghel was busy in a rally to support Rahul Gandhi Later, Baghel denied allegations and said, Modi was telling lies and it was his habit to mislead people. Deputy CM T S Singhdeo said, nobody has stopped Modi from taking action against Congress leaders if they have indulged in corruption. Reactions of Congress leaders make it quite clear that they do not have any logical reply for Modi’s allegations. Modi never speaks hollow, he does his home work and shows the mirror to his rivals. While CM Baghel claimed that the foundation stone for projects inaugurated on Friday, were laid 17 years ago during the then PM Dr Manmohan Singh’s rule, and Modi should not take credit. BJP leaders said, if the projects were approved and initiated during Congress rule, what stopped them from completing those projects. They say, if Modi has completed those projects, he deserves to take credit. As far as corruption charges are concerned, liquor scam and coal scam have been in the news in Chhattisgarh. Several accused are in jail and Modi mentioned those scams. Congress leaders, while reacting, did not say anything about those scams. From Modi’s tone and tenor in Raipur rally, one thing is clear: BJP is going to make corruption a big issue in the forthcoming assembly elections.

VIOLENCE MARS BENGAL PANCHAYAT POLLS

Twelve persons were killed in rampant violence across West Bengal on Saturday during polling for panchayat elections. Among those killed were five supporters of Trinamool Congress, and one each of BJP, Congress , Left and an independent candidate. Nearly 5.76 crore people were supposed to decide the fate of nearly 2.06 lakh candidates for 22 zilla parishads, 9,730 panchayat samitis and 63,229 gram panchayat seats, but violence marred polling in many places. Considered as a litmus test for next year’s Lok Sabha elections, the panchayat polls saw a fierce tussle between Trinamool Congress, BJP and Indian Secular Front consisting of Congress, Left and a Muslim outfit. Reports of looting of ballots came from South Dinajpur, while a ballot box was set on fire in Dinhata, Cooch Behar, and another ballot box was thrown into a pond in Deganga, North 24-Parganas. BJP leader Suvendu Adhikari described the polling as “not election, but death”. He alleged that central forces were not deployed in most of the polling stations. A Congress leader has appealed to the Chief Justice of Calcutta High Court to hold an urgent hearing and declare the entire panchayat election as null and void. It is a matter of concern because so far 31 people have been killed during the entire panchayat election process. Trinamool Congress leaders claim that violence during elections is not a big issue, but I think the West Bengal Governor C V Ananda Bose is right when he says that ballot, not bullet, must win. People expected that deployment of central paramilitary forces could stall violence, but on Saturday, most of the voters alleged that central forces were not deployed in most of the places, giving a free hand to hoodlums.

शिवराज चौहान : एक मुख्यमंत्री ने अपना फ़र्ज़ निभाया

AKBमध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बडा दिल दिखाया, मुख्यमंत्री होने की जिम्मेदारी निभाई, मध्य प्रदेश के उस आदिवासी शख्स के पांव धोकर, गले लगाकर माफी मांगी जिस पर एक हैवान द्वारा पेशाब करने का वीडियो सामने आया था. शिवराज सिंह चौहान ने इस आदिवासी भाई से कहा कि घटना को देखकर उनका सिर शर्म से झुक गया, बहुत दुख हुआ, पीड़ा हुई, अपने दिल पर पड़े बोझ को हल्का करने के लिए वो उसके पांव धोना चाहते हैं, उससे माफी मांगना चाहते हैं क्योंकि उनके शासन में एक गरीब आदिवासी के साथ इस तरह का अमानवीय सलूक हुआ. कुछ लोगों को ये बात साधारण लग सकती है, लेकिन एक मुख्यमंत्री के लिए, पूरे सूबे के मुखिया के लिए, इस तरह कैमरों के सामने गलती मानने के लिए, आदिवासी के चरणों में बैठकर उससे माफी मांगने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए. आदिवासियों, दलितों, गरीबों के साथ इस तरह के जुल्मों की खबरें सभी राज्यों से अक्सर आती हैं. कभी किसी दूल्हे की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी जाती है क्योंकि उसने घोड़ी पर चढ़ने की हिम्मत दिखाई, हैंडपंप से पानी लेने पर एक दलित बच्चे की हत्या कर दी जाती है, थूक कर चटवाया जाता है, पेशाब पीने को मजबूर किया जाता है, दलित को मंदिर में घुसने की जुर्रत करने पर पीटा जाता है, लेकिन मैंने कभी किसी मुख्यमंत्री को इस तरह गलती मानते हुए, प्रायश्चित करते हुए, माफी मांगते हुए नहीं देखा. शिवराज सिंह चौहान ने जो किया, वो बड़ी बात है. दो दिन पहले मैंने जब इस घटना का वीडियो देखा था, तो तस्वीरें देखकर गुस्सा आया, दुख हुआ, ये सोच कर ग्लानि हुई कि हम कैसे समाज में रहते है, लेकिन आज जब शिवराज सिंह के साथ दशमत की तस्वीरें देखीं तो सुकून मिला. सीधी जिले के कुबरी गांव से शमत जब भोपाल में मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचे, तो उनकी अगवानी के लिए खुद मुख्यमंत्री चौहान गेट पर खड़े थे. दशमत को शिवराज हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गए, ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठाया, फिर खुद उसके पैंरो के पास स्टूल पर बैठे. ये सब देखकर दशमत बहुत असहज दिख रहे थे क्योंकि वो तो कभी अपने गांव से बाहर नहीं निकले थे, पहली बार भोपाल आए थे, और सीधे मुख्यमंत्री आवास पहुंचे. मुख्यमंत्री उनके चरणों में बैठे थे, इसलिए दशमत की जो हालत थी, वो किसी की भी हो सकती थी. चौहान ने दशमत के पैर पखारने के लिए थाली मंगवाई, पानी मंगवाया और दशमत के पैर पकड़े, तो उसने संकोचवश पैर पीछे खींच लिए. लेकिन शिवराज ने कहा कि वो प्रायश्चित करना चाहते हैं, पैर आगे करिए, थाली में पैर रखिए. दशमत ने डरते हुए पैर आगे किए, मुख्यमंत्री ने बिना किसी संकोच या दंभ के, पूरी विनम्रता के साथ दशमत के पैर धोए. फिर थाली के पानी को माथे से लगाया. दशमत के पैर पोंछे, उन्हें माला पहनाई, शॉल ओढ़ाया, श्रीफल दिया, कांसे की गणेश प्रतिमा भेंट की, हाथ जोड़ कर माफी मांगी, गले लगाया. फिर उनके बगल में बैठकर दशमत का मुंह मीठा करवाया. बार बार कहा कि दशमत आप मेरे लिए सुदामा जैसे हो, आपके साथ जो हुआ, जिस दिन से वो वीडियो देखा तो मन व्यथित था, दिल पर बोझ था, आज आपके पैर धोकर, प्रायश्चित करके मन हल्का हुआ है, आप मुझे माफ कर दो. शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह दशमत से बार बार माफी मांगी. उनके साथ जो सलूक हुआ, उसके लिए खेद जताया, वो वाकई दिल को छूने वाला था. दशमत के पैर पखारने के बाद, उसका सम्मान करने के बाद शिवराज ने दशमत को विदा नहीं किया, उन्हें अपने साथ डायनिंग रूम में ले गए, दशमत को साथ बैठाकर खाना खिलाया. शुरू में दशमत कुछ डरे डरे लग रहे थे, लेकिन शिवराज सिंह के व्यवहार ने उन्हें सहज कर दिया. उन्होंने खुलकर मुख्यमंत्री के सामने अपने दिल की बात रखी. शिवराज सिंह ने दशमत से पूछा कि अब तो बता दो कि माफी मिली कि नहीं, माफ किया या नहीं, अब गुस्सा तो नहीं हो, दशमत ने कहा, नहीं अब कोई नाराजगी नहीं है, उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी कि वो सरकार के मंत्री से मिलेंगे, मंत्री उनके पैर धोएगा. शिवराज ने कहा कि अब तो वो उनके दोस्त हैं. पूछा, कोई दिक्कत तो नहीं है, क्या करते हो, कितना कमाते हो, खर्चा चल जाता है, कितने बच्चे हैं, किस क्लास में पढ़ते हैं, वजीफा मिलता है या नहीं, सरकारी दुकान से राशन से मिलता है या नहीं. शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सरकार उनके साथ हैं., वो तो उनके दोस्त हैं, इसलिए अगर कभी कोई दिक्कत हो, तो तुरंत बताना. इस पूरी घटना से एक सीख मिलती है. इंसान गरीब हो या अमीर, दलित हो, सवर्ण हो, पिछड़ा हो, हिन्दू हो, मुसलमान हो, कोई भी हो, किसी इंसान के ऊपर कोई पेशाब कैसे कर सकता है? इस तरह की हरकत को सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, इसीलिए सीधी से जो वीडियो आया, उसकी हर किसी ने आलोचना की. शिवराज सिंह चौहान ने भी तुंरत एक्शन लिया. इस तरह की अमानवीय हरकत करने वाले प्रवेश शुक्ला को NSA लगा कर जेल भेजा और उसके घर के गैरकानूनी हिस्से पर बुलडोजर चलवा दिया. आदिवासी दशमत को घर बुलाकर उसके पैर धोकर माफी मांगी. इससे जो संदेश गया, वो साफ है, सरकार गरीबों, आदिवासियों के सम्मान से समझौता नहीं करेगी. इन लोगों पर जुल्म करने वालों को छोड़ेगी नहीं. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तो दो दिन से सीधी की घटना को आदिवासियों के अपमान का मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने आज उनकी मुहिम की हवा भी निकाल दी. इसीलिए वो अब शिवराज के एक्शन को नौटंकी बता रहे हैं, उनकी मजबूरी भी समझी जा सकती है. मध्य प्रदेश में चुनाव है, आदिवासियों का वोट एक करोड 75 लाख से ज्यादा है. कई सीटों पर आदिवासी जीत हार का फैसला करते हैं, इसलिए अब कांग्रेस चुनाव को ध्यान में रखकर शिवराज पर हमला कर रही हैं. मुझे लगता है कि सियासत के लिए मुद्दों की कमी नहीं है, बहुत से मसले हैं, इसलिए इस तरह की घटना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. एक घटना के आधार पर पूरे समाज को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

यूनिफॉर्म सिविल कोड : सभी पक्ष धीरज रखें

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लॉ कमिशन को 74 पन्नों की एक चिट्ठी भेज कर कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के दायरे से न केवल सभी आदिवासी समुदायों को , बल्कि सभी अल्पसंख्यक समुदायों को भी बाहर रखा जाय. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 22 पन्नों की चिट्ठी भेज कर कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के बहाने मुसलमानों को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है, उनके मजहबी रीति-रिवाज़, उनके तौर-तरीकों और उनकी मान्यताओं को बदलने की कोशिश की जा रही है, लेकिन शरियत क़यामत तक लागू रहेगी, मुसलमान किसी कीमत पर उससे छेडछाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे. मु्स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की और उनसे इस मुद्दे पर कांग्रेस का स्टैंड साफ करने को कहा. बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक जटिल मसला है, इस पर जल्दबाजी ठीक नहीं होगी. इसे भारत में लागू करना आसान नहीं है. मैंने पिछले हफ्ते कहा था कि यूनीफॉर्म सिविल कोड पर बिल संसद के मॉनसून सत्र में आने की संभावना न के बराबर है. .इस बात के संकेत तो पहले ही मिल चुके हैं कि अगर ये कानून आया भी, तो इससे आदिवासियों को अलग रखा जाएगा, उनके अधिकारों, उनकी परंपराओं और संस्कृति पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं होगी. जहां तक दूसरे धर्मों और संप्रदायों का सवाल है तो ये भी बताया जा चुका है कि यूनीफॉर्म सिविल कोड का इससे कोई मतलब नहीं है किस धर्म के लोग शादी- ब्याह कैसे करते हैं, अन्तिम संस्कार का तरीका क्या है? दूसरी सामाजिक परंपराओं और रस्मों पर भी इसका कोई असर नहीं होगा. इसमें सिर्फ मोटी-मोटी बातें होंगे, शादी की उम्र सबके लिए बराबर हो, तलाक़ का कानूनी तरीका एक जैसा हो, दो-दो, चार-चार शादियों पर पाबंदी हो. सभी धर्मों में महिलाओं को भी वही हक मिलें जो पुरूषों को मिलते हैं. मुझे लगता है कि उत्तराखंड में यूनीफॉर्म सिविल कोड जल्दी ही लागू होगा, उत्तराखंड के कानून को ही केन्द सरकार आधार बनाएगी. उत्तराखंड में इस कानून के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया को देखगी. इसके बाद सभी दलों, सभी धर्मों के गुरूओं, मौलाना-मौलवी, सिख नेताओं, पादरियों और दूसरी धार्मिक संस्थाओं से सलाह मशविरा करने के बाद ही यूनीफॉर्म सिविल कोड का ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा, इसलिए इस मुद्दे को लेकर अफवाहों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. .लॉ कमीशन की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए, उसके बाद ही ये स्पष्ट होगा कि अगर यूनीफॉर्म सिविल कोड आया तो उसमें क्या प्रावधान होंगे.

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SHIVRAJ CHOUHAN : A CM DOES HIS DUTY

akb fullFor a chief minister to wash the feet of a tribal in his residence, before hugging him and offering him a coconut and shawl while tendering apology, requires immense courage. Madhya Pradesh chief minister Shivraj Singh Chouhan showed his large-heartedness and fulfilled his responsibility as the head of his state. Chouhan told Dashmat Ravat, that he hung his head in shame when he watched the video in which a person urinated on him. “I wanted to take the load of pain off my chest by washing your feet”, Chouhan said. For some, this may be a common thing, a ‘nautanki’, as some opposition leaders said, but for a chief minister who rules a state, it needs courage to apologize to the victim in front of cameras. News about atrocities on tribals, Dalits and weaker sections often come from almost all states, sometimes a Dalit bridegroom is killed because he dares to ride a horse, a Dalit child is killed for drinking water from a hand pump, somebody is forced to lick the spit or drink urine, Dalits are thrashed on entering some temples, but I never saw a chief minister publicly apologizing for this. Two days ago, when we telecast the video of an upper caste man urinating on Dashmat, I felt angry and at the same time there was a tinge of sadness and shame about the society we live in. After watching visuals of Shivraj Singh washing the feet of Dashmat, I heaved a sigh of relief. Dashmat hails from Kubri village of Sidhi district and works as a porter at the local mandi (agricultural market). On Thursday, when he reached the chief minister’s residence in Bhopal, Chouhan was at the gate to receive him. The CM held his hand, took him inside and asked him to sit on the sofa. Chouhan himself sat on a stool near his feet. Dashmat looked uncomfortable. He never ventured outside his village in his entire life. This was his first Bhopal visit. The chief minister then proceeded to wash his feet on a thali. Dashmat hesitated, pulled back his feet, but the CM insisted that he wanted to wash them as part of penance (prayashchit). After washing the feet, Chouhan held the thali of water to his head, garlanded Dashmat, and offered him a coconut, shawl and a small statue of Lord Ganesha made of brass. He hugged Dashmat and told him, “for me, you are like Sudama. I was sad the day I saw your video, and after this act of penance, I now feel better. Please apologize me.” The CM joined him for breakfast, and enquired about the education of his children and whether they get scholarship and ration from PDS shop. Chouhan also spoke to Dashmat’s family members on phone. This act of penance on part of the chief minister gives us a ray of hope. Any human being, rich or poor, Dalit or upper caste or backward or tribal, Hindu or Muslim, should never be subjected to an atrocious act like urination. No civil society can tolerate this. Everybody criticized the act when the video surfaced and Shivraj Singh Chouhan took quick action. Pravesh Shukla, the perpetrator, was arrested and sent to jail under National Security Act, and the illegally built portion of his father’s house was demolished with a bulldozer. The message is clear: the government will not tolerate disrespect to tribals, Dalits or poor people. Those who commit such atrocities will not be spared. Congress leaders Kamal Nath and Digvijaya Singh were trying to make this Sidhi incident an issue of insult meted out to tribals, but Shivraj Singh Chouhan, by apologizing and taking quick action, has taken the wind out of their sails. This was the reason why Kamal Nath described the feet-washing gesture as ‘nautanki’(drama). One can understand his compulsion. Assembly elections are due in Madhya Pradesh, where tribals account for more than 1.75 crore votes. In several constituencies, tribal voters decide the outcome. I think, for the Congress, there are many other issues, and this incident should not be given a political colour. An entire community should not be defamed because of a single incident.

UCC : LET US ALL BE PATIENT

The All India Muslim Personal Law Board has sent a 74-page letter to the Law Commission on Uniform Civil Code demanding that not only tribals, but every religious minority be kept outside the purview of the code. Citing the Law Commission notice inviting suggestions from people as “vague, general and unclear”, the AIMPLB said, it appears the motive behind bringing the UCC was to put an end to Muslim Personal Law, though the Constitution provides for freedom to preach, practice and propagate any religion. Jamiat Ulema-e-Hind led by Maulana Arshad Madani, has sent a 22-page letter saying that enacting the UCC would be harmful for national unity and integrity. On Thursday, a delegation of AIMPLB met Congress President Mallikarjun Kharge and NCP leader Sharad Pawar to discuss the UCC. AIMPLB members requested Congress to make its stand clear on UCC. Last week I had said, the chances of a Uniform Civil Code being introduced in the monsoon session of Parliament are slim. Already, indications have been given that the rights, traditions and culture of tribals will be kept out of the purview of UCC. As far as other religions and communities are concerned, it has been explained that the UCC is not going to enforce rules and traditions for marriage or funeral rites, or other social traditions and customs. It may be confined to ensuring uniform minimum age for marriage, uniform law for divorce, restrictions on polygamy and equal rights for women in matters of succession and property rights. I think Uttarakhand government will initiate the process of enforcing a uniform civil code, and its draft could become the basis for a central code. The Centre may gauge the reactions of people in Uttarakhand first, and only afterwards, all religious heads including maulanas, Sikh leaders, priests and other communities will be consulted before preparing a draft Uniform Civil Code. There is no need to spread rumours, and people must patiently wait for the Law Commission report. Only then, the provisions of draft uniform civil code will become clear.

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SHARAD PAWAR: ‘Kya naam hee kaafi hai ?’

akb fullAjit Pawar outplayed his uncle Sharad Pawar in the battle of nerves in Mumbai on Wednesday, with 32 NCP MLAs supporting him and only 16 MLAs attending Sharad Pawar’s meeting. Ajit Pawar proved that he has the support of most of his MLAs and his partymen, and has the backing of the government. He is hopeful of getting the party name and symbol from the Election Commission. Buoyed by the strength that he derived from his supporters, Ajit Pawar, for the first time, openly spoke about his uncle and exposed his political chicanery. The nephew, in so many words, described his uncle as ‘paltu ram’ (opportunist). Hearing Ajit Pawar’s speech, I felt as if the nephew was suffocating all these years under his uncle’s shadow. His pent-up anger erupted like a volcano during his speech. It was sad to watch Sharad Pawar, the patriarch who ruled Maharashtra politics, listening to what his nephew was saying. But, Sharad Pawar himself is responsible. He overlooked his nephew Ajit Pawar’s political ambition, failed to gauge the aspirations of his MLAs, and continued to ignore the sane advice of his friends. Uncle Pawar was ensconced in his make-believe world thinking nobody can ever dare to stand up against him. Throughout Tuesday night, Pawar Saheb rang up his MLAs asking them to attend the meeting. Even on Wednesday morning, he tried to persuade some of his leaders who had revolted. Only 16 MLAs attended his meeting. It was then that the patriarch realized that the game was up. Had he listened to the advice of his well-wishers like Praful Patel, he would not have seen this day. Politics is a game of numbers. And nobody knows it better than Sharad Pawar. Today, the numbers are with Ajit Pawar and Praful Patel. Today I felt, it would have been better for Pawar Saheb, who was to retire anyhow someday, to opt for an honourable retirement after listening to Ajit Pawar and Praful Patel. But I am not surprised that Sharad Pawar, despite all this, is still adamant. He still thinks it was he who made his MLAs victorious, made them leaders, and he could defeat them in a political battle. I would like to salute Sharad Pawar’s courage that despite health and age acting as obstacles, with all those whom he groomed has leaders leaving him, the patriarch is still ready to enter a new political battle. Though he knows Modi will win in 2024 and BJP-Shiv Sena-NCP alliance will be a sure winner, yet he is unwilling to concede defeat, nor back out from the fight. It is because of his courage that he is known as Sharad Pawar, and Supriya Sule says, his name is enough.

LALU YADAV: ‘Taaqat abhi baaki hai?’

Like Sharad Pawar, Lalu Prasad Yadav is a patriarch who will never concede defeat. On Wednesday, as the trial of strength was going on in Mumbai, Lalu Yadav was addressing his partymen in Patna to celebrate RJD foundation day. Lalu blamed BJP and Modi for “destroying” democracy and “buying” legislators to topple state governments. Lalu was optimistic that a united opposition will defeat Modi in next year’s elections. He said, after the opposition comes to power, they will take revenge for each and every ‘zulm’ (atrocity). BJP leader Sushil Modi reminded Lalu that his party RJD could not win a single Lok Sabha seat in 2019 elections. I am amazed over Lalu’s fighting spirit. After a kidney transplant, he is mostly bed-ridden. He has spent several years in jail, and he is a convict in several cases. New cases are being filed against him and his family. Despite failing to win a single Lok Sabha seat in 2019, Lalu says, opposition must unite to topple Modi. Those who thought that Lalu’s days are over, should watch Lalu speak. Lalu joined hands with his old rival Nitish Kumar to form government. He wants to see his son Tejashwi take over as Bihar chief minister soon. And nobody must undervalue Lalu’s political ability and cleverness. Lalu Yadav can still perform a miracle.

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शरद पवार : क्या नाम ही काफी है ?

akb fullमहाराष्ट्र में बुधवार को शरद पवार और अजित पवार के बीच शक्ति परीक्षण हुआ. परिवार के इस युद्ध में छोटे पवार ने बड़े पवार को मात दे दी. आज के मैच में भतीजे ने चाचा को हरा दिया. पार्टी के ज़्यादातर विधायक और नेता अजित पवार के साथ दिखाई दिए. दूसरी तरफ़ शरद पवार खड़े थे जिनके साथ 16 विधायक थे और बेटी सुप्रिया सुले मोर्चा संभाले हुए थीं. आज की इस लड़ाई में पार्टी से ज़्यादा परिवार टूटने का दर्द दिखाई दिया. दोनों तरफ़ से बरसों से क़ैद शिकायतें और इमोशन बाहर आ गए. अजित पवार ने कहा कि पवार साब की उम्र 83 साल हो गई है, अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए, मार्गदर्शक की भूमिका में आना चाहिए लेकिन वो मानने को तैयार नहीं हैं, इस्तीफा दिया और पलट गए. अजित पवार ने कहा कि पलटी मारना पवार साहब की आदत है, लेकिन अब ये नहीं चल पाएगा, अब उन्हें आराम करना चाहिए और छोटों को आशीर्वाद देना चाहिए. दूसरी तरफ सुप्रिया सुले ने कहा कि आशीर्वाद तो मिलेगा, लेकिन घर तोड़कर आशीर्वाद मांगने वालों को अपनी गिरेबां में झांकना चाहिए. शरद पवार ने अजित पवार और उनके साथ गए लोगों को खोटा सिक्का बता दिया. लेकिन अजित पवार ने पूछा कि क्या उनका कसूर ये था कि वो शरद पवार के बेटे नहीं हैं. इस पर सुप्रिया सुले ने कहा, ऐसा बेटा होना भी नहीं चाहिए. अब बेटी पिता के सम्मान के लिए लड़ेगी. आज अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, सुनील तटकरे, धनंजय मुंडे जैसे तमाम NCP के बड़े नेताओं ने सालों की टीस बाहर निकाल दी. मौक़ा भी था, संख्या बल भी था. अजित पवार के साथ 31 विधायक दिखाई दिए. शरद पवार के साथ 16 विधायक खड़े हुए. हालांकि अजित पवार का दावा है कि उनके साथ 40 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है, और कुछ विधायक जो आज संकोचवश शरद पवार के साथ दिख रहे हैं, कुछ दिनों बाद वे भी अजित पवार के साथ होंगे. कुल मिलाकर संख्या बल के खेल में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार को मात दे दी. अब आंकड़ों के आधार पर अजित पवार ने NCP के नाम और चुनाव निशान पर दावा ठोक दिया है. चुनाव आयोग में अर्जी दे दी है. शरद पवार के खेमे ने चुनाव आयोग में कैविएट फाइल की, जिसमें कहा गया है कि बग़ावत करने वाले नौ विधायकों को NCP से निकाल दिया गया है, इसलिए उनकी अर्जी पर कोई भी फैसला लेने से पहले शरद पवार के खेमे की बात भी सुनी जाए. लेकिन इसके साथ साथ महाराष्ट्र में जो राजनीतिक संदेश गया, वो बड़ी बात है. आज शरद पवार ने बार बार ये साबित करने की कोशिश की कि NCP में बगावत के पीछे बीजेपी है. सत्ता का लालच देकर पवार के परिवार और पार्टी को तोड़ा गया, लेकिन अजित पवार ने साफ साफ दो टूक कह दिया कि इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है, जो हुआ, उसके लिए शरद पवार जिम्मेदार है. अजित पवार ने जबरदस्त इमोशनल स्पीच दी. करीब एक घंटे के भाषण में अजीत पवार ने 1978 से लेकर अब तक का पूरा इतिहास बता दिया. कहा कि शरद पवार ने जब भी जो कहा, उन्होंने वैसा ही किया, हर आदेश माना. कई बार शरद पवार ने उनके कंधे पर रखकर बंदूक चलाई, बाद में पलट गए और बदनाम उन्हें किया. अजित पवार ने कहा कि शरद पवार ने उन्हें विलेन बना दिया, उन्होंने कभी जुबान नहीं खोली लेकिन ये कब तक चलेगा.
अपने भाषण में शरद पवार ने विचारधारा की बात की. कहा, बीजेपी की विचारधारा NCP से अलग है. शरद पवार ने बीजेपी के हिन्दुत्व को विभाजनकारी, बांटने वाला और शिवसेना के हिन्दुत्व को सबको साथ लेकर चलने वाला बताया लेकिन प्रफुल्ल पटेल ने याद दिलाया कि शरद पवार की सबसे ज्यादा आलोचना बाला साहेब ठाकरे ने की थी, शरद पवार को सबसे ज्यादा बुरा भला शिवसेना ने कहा, इसलिए, अगर शरद पवार शिवसेना के साथ जा सकते हैं, तो बीजेपी में क्या बुराई है. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि शरद पवार के मुंह से विचारधारा की बातें अच्छी नहीं लगतीं, अगर उनको विचारधारा की इतनी ही फ़िक्र थी तो शिवसेना के साथ सरकार क्यों बनाई थी. कुल मिला कर अजित पवार ने दिखा दिया, उनके पास विधायकों का समर्थन है, संगठन का सपोर्ट है, सरकार की ताक़त है, पार्टी का नाम और निशान भी उन्हें मिल जाएगा. इस ताक़त के बल पर, आज अजित पवार जीवन में पहली बार खुलकर बोले और शरद पवार की पूरी पोल खोल दी, चाचा को पलटूराम कह दिया. ऐसा लगा कि अजित पवार बरसों से शरद पवार के साये में घुट रहे थे. आज उनके भीतर की आग धधककर बाहर आ गई. ये देखकर दु:ख हुआ कि जिन शरद पवार का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा था, वो आज अपने भतीजे के सामने बेबस खड़े थे, लेकिन, इसके लिए ख़ुद शरद पवार ही ज़िम्मेदार हैं. उन्होंने अजित पवार की महत्वाकांक्षा को नज़रअंदाज़ किया. अपने विधायकों की हसरतों को नहीं समझ पाए, अपने दोस्तों की सलाह की उपेक्षा करते रहे. चाचा पवार ये सोचकर बैठे थे कि किसकी हिम्मत है जो मेरे ख़िलाफ़ खड़ा होगा. कल पूरी रात पवार साहब विधायकों को फ़ोन करके अपने यहां आने के लिए कहते रहे. आज सुबह भी उन्होंने कई नेताओं को मनाने की कोशिश की. आज जब सिर्फ़ 16 विधायक वहां पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अगर वो प्रफुल्ल पटेल जैसे अपने शुभचिंतक की बात सुन लेते, तो आज शायद ये दिन नहीं देखना पड़ता. राजनीति संख्या बल का खेल है, ये शरद पवार से ज़्यादा और कौन जानता है. आज ये आंकड़ा अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल के साथ हैं. आज मुझे लगा पवार साब को एक न एक दिन रिटायर तो होना ही है. अगर अजित और प्रफुल्ल की बात मानकर, सम्मानपूर्वक रिटायर हो जाते, तो अच्छा रहता. लेकिन मुझे इस बात पर आश्चर्य नहीं है कि इतना सब हो जाने के बाद भी शरद पवार ज़िद पर अड़े हैं. वो मानते हैं कि इन विधायकों को चुनाव मैंने जिताया, मैंने इन्हें नेता बनाया. अब मैं इन्हें फिर से हरा सकता हूं. मैं शरद पवार की इस हिम्मत की दाद दूंगा कि स्वास्थ्य उनका साथ नहीं देता, उम्र भी उनकी तरफ़ नहीं है, वो सारे नेता जिन्हें उन्होंने बनाया था साथ छोड़ गए, तो भी वो युद्ध के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. हालांकि वो ये मानते हैं कि 2024 में मोदी की जीत होगी. महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना- NCP का गठबंधन अचूक बन जाएगा, तो भी न वो हार मानने को तैयार हैं, न पीछे हटने के लिए. इसीलिए उनका नाम शरद पवार है. और सुप्रिया सुले कहती हैं कि नाम ही काफ़ी है.

लालू यादव : क्या ताक़त अभी बाकी है ?

शरद पवार की तरह लालू यादव भी हार मानने वालों में नहीं हैं. बुधवार को लालू शरद पवार के समर्थन में उतरे. लालू ने कहा कि नरेन्द्र मोदी लोकतंत्र को खत्म कर रहे हैं, विधायकों को तोड़ कर राज्यों में सरकारें गिरायी जा रही हैं. लालू यादव ने कहा कि मोदी को गरीबों की फिक्र नहीं हैं क्योंकि वो तो विधायक खरीद कर सरकारें बनाने में लगे हैं. लालू ने कहा कि अब मोदी की विदाई तय है, विरोधी दल साथ मिलकर नरेन्द्र मोदी को उखाड़ फेंकेंगे. बुधवार को RJD के स्थापना दिवस के मौके पर पटना में कार्यक्रम हुआ. पार्टी अध्यक्ष के तौर पर लालू यादव ने नेताओं और कार्यकर्ताओं को बताया कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए कैसे तैयारी करनी है. लालू ने कहा कि अब विरोधी दल एक हो गए हैं, 17 पार्टियां मिलकर मोदी को उखाड़ देंगी, उसके बाद एक-एक जुल्म का हिसाब लिया जाएगा. लालू यादव ने कहा कि विपक्ष को डराने के लिए सरकार झूठे केस लगा रही है लेकिन वो डरने वाले नहीं है, मोदी को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि जब वो पद पर नहीं रहेंगे तो उनकी क्या गति होगी. जवाब में बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने कहा कि लालू को मोदी को फिक्र छोड़कर अपनी चिंता करनी चाहिए क्योंकि उनकी पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी. लालू यादव की हिम्मत भी कमाल की है. उनका स्वास्थ्य साथ नहीं देता, उम्र भी ज्यादा है, कई साल जेल में रह चुके हैं. कई मामलों में सजायाफ्ता हैं. उनके खिलाफ नए नए केस दर्ज हो रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी. इसके बावजूद उनका जज्बा ये है कि आने वाले चुनाव में मोदी को उखाड़ फेंकना है. जो लोग सोचते थे लालू यादव का जमाना चला गया, वो खत्म हो गए, वो आजकल लालू यादव के तेवर देखकर हैरान हैं. लालू ने अपने जानी दुश्मन नीतीश के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई. अब वो जल्दी से जल्दी तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालायित हैं और किसी को भी लालू यादव की राजनीतिक क्षमता को, उनकी चतुराई को कम करके नहीं आंकना चाहिए. लालू यादव आज भी चमत्कार कर सकते हैं.

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