Rajat Sharma

My Opinion

गुजरात एवं हिमाचल चुनाव : एक नज़र

AKBगुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी सहित अधिकतर वरिष्ठ नेताओं के चुनावी दौड़ से बाहर होने के बाद, भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को विधानसभा चुनावों के लिए अपने 160 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी ।

इस सूची में घाटलोडिया से मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, माजुरा से गृह मंत्री हर्ष सांघवी, वीरमगाम से पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और जामनगर उत्तर से क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा शामिल हैं। कई कैबिनेट मंत्री जैसे जीतू वघानी, रुशिकेश पटेल, जगदीश विश्वकर्मा, कनू देसाई, पूर्णेश मोदी और किरीटसिंह राणा को उम्मीदवारों की सूची में बरकरार रखा गया है।

घोषित 160 उम्मीदवारों की सूची में से 84 उम्मीदवार पहले चरण में 1 दिसंबर को चुनावी मैदान में होंगे, वहीं 76 उम्मीदवार 5 दिसंबर को दूसरे चरण में मतदान का सामना करेंगे। शेष 22 सीटों पर निर्णय बाद में भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति करेगी। इस बार 69 मौजूदा विधायकों को टिकट मिला है, जबकि 38 विधायकों की जगह नए चेहरों को शामिल किया गया है।

इन 69 मौजूदा विधायकों में से 17 वे हैं जो पिछले दस वर्षों में भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें तलाला के भगवानभाई बराड़ भी हैं, जिन्होंने बुधवार को कांग्रेस से इस्तीफा दिया और उसी दिन भाजपा में शामिल हो गए । इससे पहले मंगलवार को अपने दो बेटों के साथ बीजेपी में शामिल हुए कांग्रेसी नेता मोहनसिंह राठवा अपने बेटे राजेंद्र सिंह को छोटा उदयपुर सीट से टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं।

बीजेपी में शामिल ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को अभी टिकट नहीं मिला है। सूची में अहमदाबाद के ग्यारह मौजूदा विधायकों और राजकोट शहर के सभी चार विधायकों के टिकट काटे गये हैं। मोरवी में पुल गिरने की भयावह घटना के बाद चर्चा में आए वहां के स्थानीय भाजपा विधायक बृजेश मेरजा को इस बार टिकट नहीं दिया गया । पुल गिरने के बाद लोगों को बचाने की कोशिश में माछू नदी में छलांग लगाने वाले पूर्व विधायक कांतिलाल अमृतिया को टिकट दिया गया है।

मंगलवार की शाम जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में जा रहे थे, तभी अहमदाबाद से खबर आई कि पूर्व सीएम विजय रूपानी, पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल, पूर्व मंत्री और नौ बार के विधायक भूपेंद्रसिंह चुडासमा, प्रदीप सिंह जडेजा, आरसी फालदू, सौरभ पटेल, कौशिक पटेल और योगेश पटेल ने चुनावी दौड़ से बाहर रहने की घोषणा की और कहा कि वे अब पार्टी के लिए काम करेंगे।

इन वरिष्ठ नेताओं ने कहा, कि अब दूसरों को मौका दिया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, पार्टी नेतृत्व ने इन नेताओं को सम्मानजनक तरीके से विदाई देने का फैसला किया है। चुडासमा ने कहा, वह पांच बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं और वृद्धावस्था को देखते हुए उन्होंने युवा कार्यकर्ताओं को मौका देने का फैसला किया है। हालांकि उन्होंने कहा, वह राजनीति से रिटायर नहीं हुए हैं, और वह संगठन के लिए काम करेंगे। कुछ इसी प्रकार का बयान नितिन पटेल की ओर से भी आया, उन्होंने कहा, युवा नेताओं को अब मौका मिलना चाहिए।

संदेश साफ है: बीजेपी नेतृत्व अब नए और युवा चेहरों को मौका देना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, वे हर निर्वाचन क्षेत्र की पृष्ठभूमि जानते हैं। उन्हें पता है कि गुजरात में किसको मैदान में उतारना है और कैसे चुनाव जीतना है। राज्य के लोगों को मोदी पर पूरा भरोसा है, और उन्होंने इसी विश्वास के चलते भाजपा को वोट दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है। देश में आज कोई दूसरा नेता नहीं है जो वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद से हटाने और फिर उन्हें चुनाव न लड़ने की सलाह देने की हिम्मत रखता हो।

कुछ लोग पूछ सकते हैं, चूंकि ये नेता कई बार चुनाव जीतते रहे हैं, और अगर वे बगावत करते हैं और बीजेपी को नुकसान पहुंचाते हैं, तब क्या होगा?

इसका जवाब यह है कि पहला, गुजरात बीजेपी में मोदी के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है, और दूसरा, हर जिले में पार्टी का संगठन इतना मजबूत है कि कोई नेता बगावत करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता । यही कारण है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे चुनावी दौड़ से बाहर रहेंगे । अब यह मोदी को तय करना है कि चुनाव खत्म होने के बाद इन वरिष्ठ नेताओं को कहां समायोजित किया जाए।

इस बीच गुजरात के आदिवासी इलाकों से बीजेपी के लिए अच्छी खबर आई है। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के नेता छोटूभाई बसावा ने घोषणा की कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपने बेटे को मैदान में उतारेंगे। छोटूभाई बसावा की भरूच और नर्मदा जिलों में अच्छी पकड़ है और वह 1990 के बाद से सात बार चुनाव जीत चुके हैं। वे एक लोकप्रिय आदिवासी नेता हैं, और यहां उनकी छवि रॉबिन हुड की है।

2017 के चुनावों में, बीटीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, और वह छोटूभाई बसावा का ही अति महत्वपूर्ण वोट था जिसने कांग्रेस नेता स्वर्गीय अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव जीतने में मदद की थी। हाल ही में, बसावा ने कांग्रेस से दूरी बनाए रखी , ऐसे में यह बात अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद कर सकती है। दूसरी ओर, एक और विधायक भगवानभाई बराड के भाजपा में शामिल होने के बाद, कांग्रेस से पलायन का क्रम जारी है। मंगलवार को दस बार के कांग्रेस विधायक और आदिवासी नेता मोहनसिंह राठवा ने भी इस्तीफा दे दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए।

हिमाचल प्रदेश

बुधवार को दिल्ली में सीईसी की बैठक में भाग लेने से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और हमीरपुर में दो चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। दोनों ही रैलियों में, मोदी ने कांग्रेस पर जबर्दस्त हमला बोला और कहा, “कांग्रेस अस्थिरता, भ्रष्टाचार और घोटालों की गारंटी है”।

मोदी ने मतदाताओं से कहा कि कांग्रेस अब केवल दो राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) पर शासन कर रही है, जबकि तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, यूपी और गुजरात जैसे राज्यों ने बीते कई दशकों से कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है। मोदी ने कहा, “लोगों ने इतने दशकों तक कांग्रेस को इसलिए सत्ता से बाहर रखा है क्योंकि उनमें पार्टी के खिलाफ बहुत गुस्सा है।”

मोदी ने हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं से भी ऐसा ही करने और कांग्रेस को सत्ता में वापस नहीं आने देने को कहा। दोनों रैलियों में भारी भीड़ देखने को मिली थी। कांगड़ा और हमीरपुर जिले में कुल 21 सीटें हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी दो रैलियों को संबोधित किया, जहां उन्होंने पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का वादा किया। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी पार्टी की रैलियों को संबोधित किया।

गहलोत ने आरोप लगाया कि बेरोजगारी बढ़ रही है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया है। उन्होंने वादा किया कि कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी और हिमाचल में एक लाख नौकरियां दी जाएंगी।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, मोदी बेरोजगार युवाओं को दी गई नौकरियों की संख्या के बारे में कुछ नहीं बोल रहे थे। खड़गे ने कहा, “भाजपा बेरोजगारी की गारंटी है”। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे भारत में लगभग 14 लाख सरकारी पद खाली हैं , जिसमें से हिमाचल प्रदेश में लगभग 65,000 पद खाली हैं, लेकिन युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है।

हमें यह समझना चाहिए कि मोदी ने अपनी रैलियों में कांग्रेस पर इतना अधिक ध्यान क्यों दिया । कांग्रेस हिमाचल में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही है । इंडिया टीवी पर ताजा ओपिनियन पोल से साफ पता चलता है कि इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला है। इंडिया टीवी ओपिनियन पोल ने भविष्यवाणी की है कि भाजपा को 38 से 43 सीटें मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस को 24 से 29 सीटें मिल सकती हैं, वहीं अन्य पार्टियों को केवल एक से तीन सीटें मिल सकती हैं।

ओपिनियन पोल स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि आम आदमी पार्टी राज्य में कोई सेंध लगाने में विफल दिख रही है। कई अन्य ओपिनियन पोल भी हैं, जिन्होंने भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी की है। अगर कांग्रेस नेतृत्व कुछ और प्रयास करता, तो पार्टी चुनावी दौड़ में आगे बढ़ सकती थी। ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व कड़ी टक्कर देने के मूड में नहीं है।

राहुल गांधी एक स्टार प्रचारक हैं, परन्तु हिमाचल के चुनावी परिदृश्य में वह कहीं नहीं दिखाई दिये। वह दक्षिण भारत में अपनी ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा में व्यस्त थे। कांग्रेस के एक भी वरिष्ठ नेता के पास इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं है कि राहुल ने हिमाचल प्रदेश से अपनी यात्रा क्यों शुरू नहीं की।

कांग्रेस के कई शीर्ष नेता हिमाचल प्रदेश आए और रैलियों को संबोधित किया, लेकिन कुल मिलाकर कांग्रेस का पूरा अभियान नीरस और थका हुआ लग रहा था। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का अच्छा आधार है और पार्टी के पास हर ब्लॉक और जिले में अपने कार्यकर्ता हैं। अगर पार्टी कड़ी टक्कर देने में विफल रहती है तो पार्टी नेतृत्व को ढेर सारे जवाब देने पड़ेंगे। हिमाचल प्रदेश में शनिवार, 12 नवंबर को मतदान है और जनता तय करेगी कि भाजपा को एक बार फिर मौका देना है या कांग्रेस को चुनना है।

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Gujarat and Himachal polls: An overview

akbWith most of the senior leaders including former Gujarat CM Vijay Rupani opting out of the electoral race, Bharatiya Janata Party on Thursday released its first list of 160 candidates for the assembly elections.

The list includes chief minister Bhupendra Patel, from Ghatlodiya, home minister Harsh Sanghavi from Majura, Patidar leader Hardik Patel from Viramgam and cricketer Ravindra Jadeja’s wife Rivaba from Jamnagar North. Several cabinet ministers Jitu Vaghani, Rushikesh Patel, Jagdish Vishwakarma, Kanu Desai, Purnesh Modi and Kiritsinh Rana have been retained in the list.

Out of the 160 candidates, 84 will be facing polls on December 1 in the first phase, while 76 candidates will face polls in the second phase on December 5. Decision on remaining 22 seats will be taken later by the BJP Central Election Committee. 69 sitting MLAs have got tickets this time, while 38 MLAs have been replaced with new faces.

Out of these 69 sitting MLAs, 17 are those who have joined BJP in the last ten years. They include Bhagwanbhai Barad from Talala, who resigned from Congress and joined BJP on Wednesday. Congressman Mohansinh Rathwa, who joined BJP along with his two sons on Tuesday, has got a ticket for his son Rajendrasinh from Chhota Udepur seat.

OBC leader Alpesh Thakor, who had joined BJP, is yet to get a ticket. Eleven sitting MLAs from Ahmedabad and all four MLAs from Rajkot city have been denied tickets. Brijesh Merja, the BJP MLA from Morbi, where the hanging bridge collapse incident killed 135 people, has been denied ticket this time. The ticket has been given to Kantilal Amrutia, former MLA, who jumped into the Machhu river in order to rescue people after the bridge collapse.

On Tuesday evening, as Prime Minister Narendra Modi, Home Minister Amit Shah, BJP President J P Nadda joined the Central Election Committee meeting to finalize the list of candidates, news came from Ahmedabad that former CM Vijay Rupani, former deputy CM Nitin Patel, former ministers nine times winner Bhupendrasinh Chudasama, Pradip Singh Jadeja, R C Faldu, Saurabh Patel, Kaushik Patel and Yogesh Patel announced that they have opted out of the electoral race and would work for the party.

These senior leaders said, ‘others should be given a chance’. In other words, the party leadership has decided to give these leaders a graceful exit. Chudasama said, he had been cabinet minister for five terms, and due to old age, he has decided that young workers should get the chance. He however said, he has not ‘retired’ but would work for the organization. Similar statement came from Nitin Patel who said, younger leaders should now get a chance.

The message is clear: BJP leadership wants to give chance to new and younger faces. Prime Minister Narendra Modi, who has been the chief minister of Gujarat for 13 years, knows the background of each and every constituency. He knows whom to field and how to win elections in Gujarat.

The people of Gujarat trust Modi deeply, and they cast their votes for BJP because of this sense of trust. It does not matter which candidate is fielded. There is no other leader in the country today who has the courage to remove senior leaders from ministerial posts, and then advise them not to contest election.

Some people may ask, since these senior leaders have been winning elections for several terms, what if they revolt and cause damage to BJP?

The answer is: One, there is no other leader of the stature of Modi in Gujarat BJP, Two, the party organization in every district is so strong that no leader can even dare to revolt. This is the reason why senior leaders of the party publicly declared that they are opting out of the electoral race. It is now up to Modi to decide where to adjust these senior leaders after the elections are over.

Meanwhile, good news has come for BJP from Gujarat’s tribal areas. Bharatiya Tribal Party (BTP) leader Chhotubhai Basava announced that he would not contest elections, and he would field his son. Chhotubhai Basava has a good base in Bharuch and Narmada districts and he has won elections seven times since 1990. A popular tribal leader, his image is that of a Robin Hood.

In the 2017 elections, BTP had allied with Congress, and it was Chhotubhai Basava’s crucial vote that helped Congress leader Late Ahmed Patel win the Rajya Sabha election. Of late, Basava has maintained a distance from Congress, and this could indirectly help the BJP. On the other hand, with one more MLA Bhagwanbhai Barad quitting and joining BJP, Congress is staring at an exodus. On Tuesday, ten-time Congress MLA and tribal leader Mohansinh Rathva resigned and joined BJP.

HIMACHAL PRADESH

Before attending the CEC meeting in Delhi on Wednesday, Prime Minister Narendra Modi addressed two election rallies at Kangra and Hamirpur in Himachal Pradesh. In both the rallies, he attacked the Congress and said, “Congress is the guarantee for instability, corruption and scams”.

Modi told voters that the Congress is now ruling in only two states (Rajasthan and Chhattisgarh), while states like Tamil Nadu, Odisha, West Bengal, UP and Gujarat have discarded Congress since decades. “People have kept Congress out of power for so many decades because they have so much anger against the party”, Modi said.

Modi asked the voters of Himachal Pradesh to do the same and not allow Congress to return to power. There were huge crowds in both the rallies. Kangra and Hamirpur districts account for 21 seats together.

Congress President Mallikarjun Kharge also addressed two rallies, where he promised to reintroduce the old pension scheme. Rajasthan CM Ashok Gehlot and Chhattisgarh CM Bhupesh Baghel also addressed party rallies.

Gehlot alleged that unemployment was increasing and on the other hand, BJP government has abolished the old pension scheme. He promised that the old pension scheme will be implemented, and one lakh jobs will be given, if Congress returned to power.

Mallikarjun Kharge said, Modi was not speaking about the number of jobs that have been given to unemployed youths. Khadge said, “BJP is the guarantee for unemployment”. He alleged that there were nearly 14 lakh posts vacant across India and nearly 65,000 jobs vacant in HP, but youths are not getting jobs.

One must understand why Modi focussed too much on Congress at his rallies. Congress is giving a tough fight to BJP and the latest opinion poll on India TV clearly shows there is a straight contest between both the parties. India TV opinion poll has predicted that BJP may get between 38 to 43 seats, while Congress may get 24 to 29 seats, while other parties may get only one to three seats.

The opinion poll clearly shows that Aam Aadmi Party has failed to make any headway in the state. Other opinion polls have also forecasted a close fight between BJP and Congress. Had the Congress leadership put some more efforts, the party could have forged ahead in the electoral race. It appears that the Congress leadership is not in a mood to give a strong fight in Himachal Pradesh.

Rahul Gandhi, who is the star campaigner for Congress, was nowhere to be seen in the Himachal electoral scene. He was busy walking in his ‘Bharat Jodo’ padayatra in the South. Not a single senior Congress leader had no cogent reply to the query as to why Rahul did not start his Yatra from Himachal Pradesh.

Several top Congress leaders came to Himachal Pradesh and addressed rallies, but the overall campaign was lacklustre and appeared to be jaded and tired. Congress has a good base in Himachal Pradesh and the party has active workers in each block and district. The Congress leadership will have much to answer for, if it fails to put up a good fight. Polling in Himachal Pradesh is on Saturday, November 12, and the people will decide whether to retain BJP for the next five years or opt for Congress.

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हिंदू नेताओं की ज़िंदगी के साथ मज़ाक बंद करें भगवंत मान

rajat-sirपंजाब पुलिस ने 3 हिंदू नेताओं, अमित अरोड़ा, योगेश बख्शी और निशांत शर्मा को जान का खतरा देखते हुए अपने घरों से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी है। पुलिस ने उन्हें फोन नंबर बदलने की भी सलाह दी है। पुलिसकर्मियों ने इन नेताओं के घरों पर जाकर उन्हें मुफ्त बुलेटप्रूफ जैकेट दिए हैं।

पंजाब में हिंदू नेताओं को कनाडा और पाकिस्तान से बार-बार धमकी भरे फोन कॉल्स आ रहे हैं। पहले पंजाब पुलिस इन धमकियों को हल्के में लेती थी, लेकिन 4 नवंबर को शिवसेना (टकसाली) के अध्यक्ष सुधीर सूरी की हत्या के बाद पुलिस हरकत में आ गई है। सुधीर सूरी को ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी, और हत्या के समय उनके सुरक्षा गार्ड मौजूद थे। अब पुलिस ने ज्यादातर हिंदू नेताओं को अपने घरों से बाहर न निकलने की सलाह दी है।

शिवसेना हिंद के अध्यक्ष निशांत शर्मा ने इंडिया टीवी को बताया कि सुधीर सूरी की हत्या के बाद उन्हें कई धमकी भरे फोन आए हैं और उन्होंने मोहाली के खरड़ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है। जब इंडिया टीवी के संवाददाता पुनीत परिंजा निशांत शर्मा से बात कर रहे थे, तो उन्हें एक अनजान व्यक्ति का फोन आया। उस आदमी ने शर्मा से कहा, ‘अपने परिवार को तैयार रहने के लिए कहो, क्योंकि तुम भी जाओगे। सुधीर सूरी भी कहता था कि उसे कोई मार नहीं सकता, लेकिन हमने उसके सीने में गोली मारी। हम जानते हैं कि तुम भी अपने गनमैन के साथ आओगे।’

पंजाब के एक और हिंदू नेता अमित अरोड़ा आतंकियों के निशाने पर हैं। वो कहते हैं, ‘मुझे कनाडा स्थित सिख फॉर जस्टिस संगठन से कई बार धमकी भरे फोन आए और पंजाब पुलिस ने मुझे बुलेटप्रूफ जैकेट दी है। मैं इस जैकेट का क्या करूंगा? सुधीर सूरी के साथ सुरक्षाकर्मी थे, फिर भी उनकी हत्या कर दी गई। हम चाहते हैं कि पंजाब सरकार को खालिस्तान समर्थक संगठनों के खिलाफ फौरन कार्रवाई करनी चाहिए।’

हिंदू नेताओं का डर जायज है। एक अन्य हिंदू नेता नीरज भारद्वाज ने कहा, ‘ये बुलेटप्रूफ जैकेट सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए जैकेट दे रही हैं।’

पंजाब पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि सुधीर सूरी की हत्या के पीछे अभी तक कोई गैंगस्टर कनेक्शन नहीं मिला है, जबकि कनाडा के गैंगस्टर लखबीर सिंह उर्फ लांडा हरिके ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। पुलिस का कहना है कि लांडा ने ये जिम्मेदारी केवल इसलिए ली क्योंकि वह अपने रंगदारी रैकेट को चलाने के लिए सिर्फ डर फैलाना चाहता था । पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सूरी की हत्या ज़ाहिर तौर पर एक ‘हेट क्राइम’ है क्योंकि हत्यारा संदीप सिंह उर्फ सन्नी से पूछताछ के बाद कोई गैंगस्टर कनेक्शन नहीं मिला है। सूरी की हत्या के बाद सन्नी गिरफ्तार किया गया था। कातिल सन्नी सात दिन की पुलिस रिमांड में है।

सच्चाई यह है कि पंजाब पुलिस ने पिछले डेढ़ साल के दौरान राज्य में हुए कई बड़े अपराधों के पीछे गैंगस्टर लखबीर सिंह लांडा और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी हरविंदर सिंह रिंदा के मॉड्यूल की संलिप्तता पाई है । इन अपराधों में मोहाली स्थित पंजाब पुलिस के खुफिया मुख्यालय पर रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से हमला भी शामिल है। हालही में एक वीडियो सामने आया था जिसमें आईएसआई के संरक्षण में पाकिस्तान में रह रहे खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला ने सूरी के हत्यारे को बधाई दी और अमित अरोड़ा, निशांत शर्मा और किसान नेता गुरसिमरन सिंह मंड को जान से मारने की धमकी दी।

हिंदू नेता पंजाब पुलिस के दावों से सहमत नहीं हैं । हिंदू नेता अमित अरोड़ा कहते हैं, ‘मैं 2016 और 2020 में हुए हमलों में बच गया लेकिन पंजाब पुलिस हमें दी जा रही धमकियों पर ध्यान नहीं दे रही है। सुधीर सूरी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। हिंदू नेताओं को रोजाना धमकियां मिल रही हैं। पाकिस्तान स्थित आतंकी गोपाल सिंह चावला मुझे और दो अन्य नेताओं को धमकियां दे रहा है। मुझे हजारों कॉलें आई हैं। मैं धमकियों के कारण फोन नहीं उठा रहा हूं, फिर भी सरकार सो रही है। पंजाब सरकार को बताना चाहिए कि पंजाब में हिंदू शांति से रह सकते हैं या नहीं।’

जहां कुछ लोग इसे हिंदू-सिख टकराव के प्रयास के रूप में देख रहे हैं, वहीं उम्मीद की किरण यह है कि हिंदू नेता साफ कह रहे हैं कि दुनिया की कोई भी ताकत हिन्दुओं और सिखों के बीच भाईचारे को बांट नहीं सकती। हिंदू नेता कहते हैं कि हिंदू और सिख एक मां के दो बेटे हैं, लेकिन वे दुखी इस बात से हैं कि पंजाब सरकार खालिस्तान समर्थकों से निपटने में पूरी तरह से उदासीनता दिखा रही है।

मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर पंजाब पुलिस का रवैया काफी अजीब है। एक हिंदू नेता को पुलिस की मौजूदगी में मारा गया और अब पुलिस खुद को इतनी असहाय पाती है कि वह हिंदू नेताओं को अपने घरों से बाहर न निकलने की सलाह दे रही है और उन्हें बुलेटप्रूफ जैकेट मुहैया करा रही है। पुलिस की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती है। क्या पंजाब पुलिस ने हिंदू नेताओं को भगवान के सहारे छोड़ दिया है?

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को इन सवालों का जवाब देना चाहिए। उन्हें यह बताना होगा कि पुलिस की जिम्मेदारी कहां से शुरू होती है और कहां खत्म होती है। या, वो ये कहेंगे, बुलेटप्रूफ जैकेट पर भगवान हनुमान की तस्वीर चिपकाएं और बजरंगबली आपकी रक्षा करेंगे? पंजाब में हिंदू नेताओं की जिंदगी के साथ ऐसा मज़ाक बंद होना चाहिए।

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Bhagwant Mann must stop mockery with the lives of Hindu leaders

AKB30 In a worrying development, Punjab Police has advised three Hindu leaders, Amit Arora, Yogesh Bakshi and Nishant Sharma not to move out of their homes in view of threats to their life. Police have also advised them to change their phone numbers. Policemen have gone to the homes of these leaders and have given them free bulletproof jackets for protection.

Hindu leaders in Punjab have been frequently getting threatening calls from Canada and Pakistan. Earlier, Punjab Police used to take these threats lightly, but after the murder of Shiv Sena (Taksali) president Sudhir Suri on November 4, police has sprung into action. Sudhir Suri was given ‘Y’ category security, and at the time of murder, his security guards were present. Police have now advised most of the Hindu leaders not to move out in public places.

Shiv Sena Hind president Nishant Sharma told India TV that he has got several threatening calls after Sudhir Suri’s murder, and has lodged a complaint in Kharar police station of Mohali. When India TV correspondent Puneet Parinja was speaking to Nishant Sharma, he got a threatening telephone call from an unknown person. The man told Sharma “tell your family to remain prepared, because you will also go. Even Sudhir Suri used to say, nobody can kill him, but we shot him in the chest. We know you will come with your gunman.”

Another Punjab Hindu leader Amit Arora is on the radar of terrorists. He says, “I got threatening calls from Canada-based Sikh For Justice outfit several times, and Punjab Police has given me a bulletproof jacket. What will I do with this jacket? Sudhir Suri had securitymen with him, yet he was murdered. What we want is, Punjab government must take quick action against pro-Khalistan outfits.”

The fears of Hindu leaders are justified. Another Hindu leader Neeraj Bhardwaj said “these bulletproof jackets have been given not for security, but for police to shirk responsibility.”

Punjab Police officials say, no gangster connection has yet been found behind Sudhir Suri’s murder, despite the fact that Canada-based gangster Lakhbir Singh alias Landa Harike had claimed responsibility. Police says, Landa has claimed responsibility only to “spread fear” for running his extortion racket. Police officials say, Suri’s murder is apparently a “hate crime” because no gangster connection has been found after interrogation of Sandeep Singh alias Sunny, who was arrested for killing Suri. The murderer Sunny is in police remand for seven days.

The fact is: Punjab Police during the last year and a half has found the involvement of gangster Lakhbir Singh Landa and Pakistan-based terrorist Harwinder Singh Rinda’s module behind major crimes, which includes RPG attack on Punjab Police Intelligence headquarters in Mohali. Recently a video surfaced in which Gopal Singh Chawla, who is living in Pakistan under ISI protection, congratulated the killer of Suri and threatened to kill Amit Arora, Nishant Sharma and farmer leader Gursimran Singh Mand.

Hindu leaders do not agree with Punjab Police’s claims. Hindu leader Amit Arora says, “I survived an attack in 2016. In 2020, I survived another terror attack. Punjab police is not paying heed to the threats. Sudhir Suri was murdered in broad daylight. Hindu leaders are getting threats daily. Pakistan-based terrorist Gopal Singh Chawla is issuing threats against me and two other leaders. …I have received thousands of calls. I am not picking up calls because of threats, and yet, the government is sleeping. Punjab government must say whether Hindus can live peacefully in Punjab or not.”

While some people are looking at this as attempts to create Hindu-Sikh divide, the silver lining in the cloud is that Hindu leaders think nobody can create such a divide. Hindu leaders say, Hindus and Sikhs are two sons of a great mother, but they are unhappy because Punjab government is showing complete apathy in tackling pro-Khalistan supporters.

I feel, Punjab Police’s approach to this issue is quite strange. A Hindu leader was gunned down in the presence of police, and now police finds itself so helpless that it is advising Hindu leaders not to come out of their homes. It is offering bulletproof jackets to them. Police responsibility does not end with this. Has Punjab Police left Hindu leaders to their fate?

Punjab chief minister Bhagwant Mann must answer these questions. He must explain where police responsibility begins and where it ends. Or, will he say, paste picture of Lord Hanuman on bulletproof jacket and Bajrangbali will protect you? Such a mockery with the lives of Hindu leaders in Punjab must end.

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ग़रीब सवर्णों के कोटे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक सियासी असर होगा

AKBसुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें 3:2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को बरकरार रखा गया । इस संशोधन में यह प्रावधान है कि शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरी के लिए जनरल कैटेगरी में आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण होगा ।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी माना कि इंदिरा साहनी मामले में 50 प्रतिशत आरक्षण की जो अधिकतम सीमा पहले से निर्धारित थी, उसका यह उल्लंघन नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एडमिशन और सरकारी नौकरियों में कुल आरक्षण बढ़कर 59.5 प्रतिशत हो जाएगा।

पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को टीवी और सोशल मीडिया पर लाइव देखा, जिसमें जजों ने अपना फैसला सुनाया। सोमवार को चीफ जस्टिस यू यू ललित के कार्यकाल का आखिरी दिन भी था और उन्होंने पद छोड़ने से पहले सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू किया।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने तीन पमुख्य सवाल थे – (1) क्या गरीब सवर्णों को आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है? (2) क्या प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में गरीब सवर्णों को आरक्षण देना संविधान के खिलाफ होगा? और (3) क्या पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित और अनूसूचित जनजाति के लोगों को आर्थिक आधार पर दिए जा रहे आरक्षण से दूर रखना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ तो नहीं हैं?

इस मामले पर जजों की राय बंटी हुई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट ने इस मामले पर असहमति जताई, वहीं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया। सामान्य वर्ग से ईडब्ल्यूएस कोटा का समर्थन करते हुए, न्यायाधीशों ने कहा कि कोटा प्रणाली को अनिश्चित काल तक चलने की अनुमति नहीं दी जा सकती और जातिविहीन और वर्गहीन समाज का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक समय सीमा तय होनी चाहिए।

जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि आरक्षण प्रणाली को कुछ समय बाद खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि संविधान के निर्माता चाहते थे कि आरक्षण के उद्देश्यों को संविधान को अपनाने के 50 साल के भीतर हासिल किया जाए, लेकिन यह आज तक हासिल नहीं हुआ है, और हमारी आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा, ‘ इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत में सदियों से प्रचलित जाति व्यवस्था के कारण ही देश में आरक्षण प्रणाली लागू करनी पड़ी । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गो के साथ होने वाले ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने और उन्हें सवर्णों के साथ प्रतिस्पर्धा में एक समान मैदान देने के लिए रक्षण को लागू किया गया था । आजादी के 75 साल बाद समाज के व्यापक हित में हमें आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।’

जस्टिस पारदीवाला ने कहा, ‘आरक्षण कोई लक्ष्य नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने का एक साधन है और इसे निहित स्वार्थ का रूप नहीं दिया जाना चाहिए। बड़ी संख्या में पिछड़े वर्ग के सदस्यों ने शिक्षा और रोजगार के स्वीकार्य मानकों को हासिल कर लिया है और ऐसे लोगों को पिछड़ी श्रेणियों से हटा दिया जाना चाहिए, ताकि उन वर्गों पर ध्यान दिया जा सके, जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है।’

जस्टिस माहेश्वरी ने अपने फैसले में कहा, ‘ गरीब सवर्णों के मिलने वाले आरक्षण से संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं होता और 50 प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा कोई अटल नहीं है।’

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा, ‘ गरीब सवर्णों को एक अलग वर्ग के रूप में मान्यता देना एक तर्कसंगत वर्गीकरण है । जैसे समान के साथ असमान व्यवहार नहीं किया जा सकता, वैसे ही असमान के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है। असमानों के साथ समान व्यवहार करना संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन है।’

दूसरी ओर, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस भट ने कहा, ‘ गरीबों के आरक्षण कोटे से एससी/एसटी/ओबीसी के गरीबों को अलग रखना एक तरह से भेदभाव है ,जो कि संविधान के तहत निषिद्ध है । हमारा संविधान अपवाद की अनुमति नहीं देता और यह संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने को कमजोर करता है और इसी तरह मूल संरचना को भी।’

चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि आरक्षण के लिए आर्थिक आधार तय करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। आरक्षण के लिए एक अलग वर्ग बनाना भी संविधान के खिलाफ है और इससे संविधान के मूल ढांचे से खिलवाड़ होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी, और इसी उद्देश्य के लिए, संसद ने 103वां संविधान संशोधन पारित किया था । ये संशोधन इसलिए लाया गया था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरक्षणों पर 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा लगा दी थी, और संविधान में संशोधन की ज़रूरत थी। इसी के तहत एससी, एसटी और ओबीसी के अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की एक अलग श्रेणी बनाई गई।

इस फैसले का कई संगठनों ने विरोध किया था और इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। गरीब सवर्णों की श्रेणी में वही आएंगे जिसकी सालाना पारिवारिक आय 8 लाख रुपए से कम हो, जिनके पास खेती लायक जमीन पांच एकड़ से कम हो या जिनके पास 200 वर्ग मीटर से कम वाला रिहाइशी प्लॉट हो।

मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के बहुमत का फैसला कई पहलुओं से ऐतिहासिक है । पहली बात ये है कि इस फैसले को लाइव दिखाया गया और पूरे देश ने जजों को अपने फैसले पढ़े देखा। जजों ने स्पष्ट तर्क दिए, और कहा कि आजादी के समय एक जातिविहीन और वर्गहीन समाज बनने का लक्ष्य तय हुआ था, जिसे अभी तक हासिल नहीं किया जा सका है । दूसरी बात ये है कि जजों ने सभी को समान अधिकार देने और संसाधनों की कमी वाले परिवारों की मदद करने के लिए सरकार को उसकी जिम्मेदारियों की याद दिलाई । तीसरी बात ये कि जजों ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को केवल इसलिए आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे सवर्ण हैं।

मोदी सरकार का घोषित उद्देश्य है: “सबका साथ, सबका विकास”। पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि जातियों के नाम पर कई राज्यों में आरक्षण दिये जा रहे थे, जैसे राजस्थान में गुर्जरों को, और महाराष्ट्र में मराठों के लिए कोटा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी को खारिज कर दिया क्योंकि 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा पहले से लागू थी।

समस्या की शुरुआत तब हुई, जब सवर्णों ने भी मांग की कि उन्हें एससी, एसटी या ओबीसी में शामिल किया जाए। इससे जातियों के बीच वैमनस्य पैदा हो रहा था । इसे रोकना जरूरी था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा कर दी । इससे उन लाखों गरीब सवर्णों को मदद मिलेगी, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं । मोदी ने एससी, एसटी या ओबीसी का कोटा कम नहीं किया। उन्होंने गरीब सवर्णों के लिए अतिरिक्त 10 प्रतिशत कोटा दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही राजनीतिक दल हरकत में आ गए। कांग्रेस के नेताओं ने फैसले का स्वागत किया और इसका त्रेय ये कह कर लेने की कोशिश की कि यूपीए -1 के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जो प्रक्रिया शुरु की थी, यह उसी का परिणाम है । लेकिन एक अन्य कांग्रेसी नेता उदित राज की प्रतिक्रिया ने विवाद खड़ा कर दिया। उदित राज ने सुप्रीम कोर्ट को ‘जातिवादी’ बता दिया। उन्होंने सवाल किया कि इंदिरा साहनी मामले के फैसले के बाद पिछले 30 साल से 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा जब लागू थी, तो सुप्रीम कोर्ट ने अचानक अपना रुख क्यों बदल दिया।

भाजपा के नेताओं ने फैसले की सराहना की और कहा कि यह गरीबों को सामाजिक न्याय दिलाने के मिशन का दिशा में प्रधानमंत्री मोदी की जीत है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, ‘ गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी उन निहित स्वार्थी दलों के चेहरे पर एक तमाचा है, जिन्होंने दुष्प्रचार करके लोगों के बीच झगड़े लगाने की कोशिश की ।’

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पिछले सौ साल से चल रहे सामाजिक न्याय संघर्ष के लिए एक झटका है । उन्होंने सभी समान विचारधारा वाले दलों और संगठनों से अपील की कि वे सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए एक साथ आगे आएं।

कांग्रेस द्वारा गरीब सवर्णों का कोटा लागू करने का श्रेय लेने की कोशिश पर मैं कुछ तथ्य बताना चाहता हूं । जनवरी, 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने गरीब सवर्णों की मदद के लिए तौर-तरीके खोजने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने 2010 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें शिक्षण संस्थानों में एडमिशन और सरकारी नौकरियों में कोटा लागू करने की सिफारिश की गयी थी । मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस रिपोर्ट पर काम शुरू कर दिया, और कानूनी बाधाओं को दूर करने के बारे में पता लगाया । 2019 में, 103 वां संविधान संशोधन विधेयक संसद में पारित किया गया , लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई ।

अब जबकि उच्चतम न्यायालय ने गरीब सवर्णों के कोटे को वैध घोषित कर दिया है, कांग्रेस नेता इसका श्रेय लेने की होड़ में लग गये हैं। पर सवाल ये है कि यूपीए सरकार ने चार साल तक रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की । इस सवाल का कांग्रेस नेताओं के पास कोई जवाब नहीं है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका कोई सार्वजनिक रूप से विरोध नहीं करना चाहता, लेकिन बाधा डालने की जरूर कोशिश करता है।

यह लालू यादव की आरजेडी थी जिसने संसद में 10 प्रतिशत गरीब सवर्ण कोटा कानून का विरोध किया था। आरजेडी ने तब आरोप लगाया था कि इस कोटे से एससी/एसटी/ओबीसी के लाभ कम होंगे। जबकि हकीकत ये है कि बिहार में लालू यादव ओबीसी के नेता के रूप में उभरे, रामविलास पासवान दलितों के नेता के रूप में उभरे, और नीतीश कुमार ने उनके राजनीतिक स्पेस पर हमला करने के लिए महादलित और अति पिछड़ा वर्ग बना दिया, लेकिन गरीब सवर्णों की बात किसी ने नहीं की। सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत कोटा अब लालू यादव और नीतीश कुमार, दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती होगी, क्योंकि भाजपा को भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत समुदायों का व्यापक समर्थन मिल सकता है।

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SC verdict on EWS quota will have major political ramifications

akb fullIn a historic 3:2 judgement, a five-judge Constitution Bench of Supreme Court on Monday upheld the validity of the 103rd amendment of Constitution, which provided for 10 per cent reservation for economically weaker sections from general category in admission to educational institutions and in government jobs.

The apex court also held that the 50 per cent cap on reservations, laid by Supreme Court earlier in Indira Sawhney case, is not inviolable. As a result of the Supreme Court verdict, total reservations in admissions and government jobs will now go up to 59.5 per cent

For the first time, people across India saw the Supreme Court proceedings, in which the judges read out their judgements, live on television and social media. Monday was the last working day of Chief Justice U.U. Lalit, and he introduced this live telecasting of Supreme Court proceedings before demitting office.

There were three main points before the Constitution Bench, One: Is special quota for EWS from upper castes against the basic structure of the Constitution? Two: Is EWS quota for upper castes in private educational institutes against the Constitution? Three: Is the decision to keep SC/ST/OBC away from the purview of EWS quota, discriminatory and does it go against the Constitution?

The opinions of judges were divided on these issues. Chief Justice of India U. U. Lalit and Justice S. Ravindra Bhat gave dissenting judgements, while Justice Dinesh Maheshwari, Justice Bela Trivedi and Justice J. B. Pardiwala gave judgements in favour of EWS reservation. While supporting quota for EWS in general category, the judges pointed out that quota system must not be allowed to go on for an indefinite period and a time limit must be fixed to pave the way for a casteless and classless society.

Justice Bela Trivedi and Justice Pardiwala said, reservation system must be done away with after some time. They said in their judgements that the framers of the Constitution wanted the objectives of reservation to be achieved within 50 years of the adoption of the Constitution, but it has not been achieved even till this day, that is the completion of 75 years of our Independence.

Justice Bela Trivedi said in her judgement: “It cannot be gainsaid that the age-old caste system in India was responsible for the origination of the reservation system in the country. It was introduced to correct the historical injustice faced by the persons belong to the SCs and STs and other backward classes, and to provide them a level playing field to compete with persons belonging to forward classes. However, at the end of 75 years of our independence, we need to revisit the system of reservation in the larger interest of the society as a whole, as a step forward towards transformative constitutionalism.”

Justice Pardiwala said, “reservation is not an end, but a means to secure social and economic justice and it should not be allowed to become a vested interest…Large number of backward class members have attained acceptable standards of education and employment and they should be removed from the backward categories so that attenction can be paid toward those classes which genuinely need help.”

Justice Maheshwari in his judgement said, “reservation for economically weaker section does not violate the basic structure of the Constitution on account of 50 per cent ceiling, because the ceiling limit is not inflexible”. Justice Bela Trivedi said, “treating economically weaker section as a separate class would be a reasonable classification. Just as equals cannot be treated unequally, unequals cannot be treated equally. Treating unequals equally violates the right to equality given in the Constitution”.

On the other hand, Chief Justice U U Lalit and Justice Bhat said, “By excluding the poor among SC/ST/OBC, the amendment practises constitutionally prohibited forms of discrimination. Our constitution does not permit exclusion and this amendment undermines the fabric of social justice and thereby the basic structure….The exclusionary clause that keeps them out from the benefits of economic reservation, backward classes and SC/STs, therefore, strikes a death knell to the quality and fraternal principle which permeates the equality code and non-discrimination principle.”

Prime Minister Narendra Modi’s government had announced 10 per cent reservation in admission to educational institutions and in government jobs for economically weaker sections from General category, and, for this purpose, the 103rd Constitutional amendment was passed by Parliament. The amendment was brought because the Supreme Court had put a 50 per cent cap on all reservations, and the Constitution needed to be amended. Through this step, a separate category of Economically Weaker Sections was created apart from SC, ST and OBC categories.

This decision was opposed from several quarters and the amendment was challenged in Supreme Court. The eligibility for EWS category set was annual income not less than Rs 8 lakhs, cultivable land less than five acres, residential plot not bigger than 200 sq. metres.

I feel the Supreme Court majority verdict is historic from several aspects. One, the verdicts were announced live and watched by the entire country, clear arguments were given by the judges, who said the aim at the time of Independence was a casteless and classless society which could not be achieved. Two, the judges reminded the executive of its responsibilities to provide equal rights to all and help those families who lack resources. Three, they said such economically weaker sections cannot be deprived of reservation only because they belong to upper castes.

Modi’s government has its declared objective: “Sabka Saath, Sabka Vikas”. What we have seen in the past few years is that reservations were being given in the name of castes, like quotas for Gujjars in Rajasthan, quotas for Marathas in Maharashtra, but the Supreme Court set them all aside because the 50 per cent cap had already been put.

The problem began when entire upper castes demanded that they be included in SC, ST or OBC, thereby causing inter-caste rivalries in society. It was necessary to stop this and Prime Minister Narendra Modi announced 10 pc reservation to economically weaker sections. This will help millions of people from upper castes, who are poor and economically weaker. Modi did not reduce the quotas of either SC, ST or OBCs. He gave extra 10 pc quota for poor people from upper castes.

Soon after the Supreme Court verdict came, political parties sprang into action. Congress leaders welcomed the verdict and sought to claim credit by saying it was “ the result of a process initiated by former Prime Minister Dr Manmohan Singh during UPA-1”. But another Congress leader Udit Raj’s reaction caused a controversy. Udit Raj blamed the Supreme Court as ‘casteist’. He questioned, why the Supreme Court ,which had stuck to the 50 per cent quota limit for the last 30 years after the Indira Sawhney case judgement, suddenly changed its stand.

BJP leaders hailed the verdict and said it was a victory for Prime Minister Modi in his mission to provide social justice to the poor. “Supreme Court’s nod to uphold 10 pc reservation for EWS is a slap on the face of parties with vested interests who have tried to sow discord amongst citizens with their propaganda”, said Education Minister Dharmendra Pradhan.

Tamil Nadu chief minister M K Stalin said, the Supreme Court verdict is “a setback to the century-long social justice struggle”. He called on all like-minded parties and organisations to come together to protect social justice.

On Congress trying to take credit for upper caste quota, let me state some facts. In January, 2005, the then PM Dr Manmohan Singh’s government had set up a commission to find ways and means to help poor people from upper castes. The Commission gave its report in 2010 and recommended quota in admission and jobs. Dr Manmohan Singh’s UPA government could not take any action on this report. When Narendra Modi became Prime Minister, he started work on this report to find out about legal obstacles that could arise. In 2019, the 103rd Constitutional Amendment Bill was brought and passed by Parliament, but it was challenged in Supreme Court.

Now that the apex court has upheld the EWS quota, Congress leaders have come forward to claim credit. But the question is, why UPA government did not take any action on the report for four years. Congress leaders do not have any answer to this question. It is an issue which nobody wants to oppose in public, but try to put hurdles.

It was Lalu Yadav’s RJD which opposed the 10 pc EWS quota bill in Parliament. RJD had then alleged that the “rights” of SC/ST/OBC would be affected because of this quota. The fact is, in Bihar, Lalu Yadav emerged as the leader of OBCs, Ramvilas Paswan emerged as the leader of Dalits, and Nitish Kumar created Mahadalit and Very Backward Class to attack their political space, but nobody spoke about poor upper castes. The 10 per cent EWS quota for upper castes will now pose a serious challenge to both Lalu Yadav and Nitish Kumar, because BJP can gain support from Bhumihar, Brahmin and Rajput communities.

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दिल्ली वायु प्रदूषण: बचाव की मुद्रा में केजरीवाल

AKBराष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में शनिवार को वायु प्रदूषण लगातार तीसरे दिन ‘गंभीर’ श्रेणी में रहा। राजधानी में धुंध के बादल छाए रहने से दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स शनिवार को 431 और शुक्रवार को 447 रहा। हालांकि एक मजबूत दक्षिण-पश्चिमी हवा से आंशिक राहत मिलने की उम्मीद है और अगले एक या दो दिनों में एयर क्वालिटी ‘गंभीर’ से ‘बहुत खराब’ तक थोड़ी सुधर सकती है।

शुक्रवार को हवा में फेफड़े को नुकसान पहुंचाने वाले कण 2.5 पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) थे, जो 270 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ऊपर थे। ये प्रति क्यूबिक मीटर माइक्रोग्राम की सुरक्षित सीमा से 8 गुना अधिक हैं।

दिल्ली में शनिवार सुबह कई जगहों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स दर्ज किया गया। ये जहांगीरपुरी में 456, आईजीआई एयरपोर्ट में 397, आईटीओ में 411, ओखला में 425, पूसा में 416, वजीरपुर में 449, आरके पुरम में 446 और विवेक नगर में 440 रहा। नोएडा में यह 529, गुरुग्राम में 478, गाजियाबाद में 361 और फरीदाबाद में 400 दर्ज किया गया।

लोग सांस लेने में गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं और दिल्ली के सभी प्राथमिक स्कूलों को अगले मंगलवार तक के लिए बंद कर दिया गया है। शुक्रवार को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब में उनके समकक्ष भगवंत मान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में हाथ जोड़कर ये माना कि वह पंजाब में पराली के जलने को नहीं रोक पाए। दोनों लोगों ने ये वादा किया है कि वह अगले साल तक हालात को बदल देंगे।

केजरीवाल ने कहा, उनकी पार्टी आप पंजाब में केवल 6 महीने पहले ही आई है और इसलिए पराली के धुंए पर काबू के लिए पर्याप्त समय नहीं था। उन्होंने ये भी कहा कि पराली जलाने के लिए केवल पंजाब पर आरोप लगाना ठीक नहीं होगा।

वह यूपी, बिहार, राजस्थान के तमाम शहरों की लिस्ट लेकर आए, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स दिल्ली की तुलना में अधिक गंभीर था। उन्होंने सवाल किया, ‘बिहार, यूपी और राजस्थान में धान की पराली नहीं जलाई जा रही, फिर भी यहां एयर क्वालिटी गंभीर क्यों है? क्यों लोग केवल दिल्ली के वायु प्रदूषण की बात करते हैं?’

ये वही केजरीवाल थे, जिन्होंने बीते साल ये आरोप लगाया था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की मुख्य वजह पंजाब में जलाई जाने वाली पराली है, लेकिन शुक्रवार को वह अलग ही राग अलाप रहे थे। ये वही केजरीवाल थे, जिन्होंने ये वादा किया था कि अगर वह पंजाब में सत्ता में आए तो प्रदूषण की समस्या का समाधान करेंगे।

शुक्रवार को भगवंत मान ने कहा कि वह किसानों को धान की जगह सरसों और बाजरा जैसी अन्य फसलें बोने के लिए कहकर परमानेंट समाधान देंगे। इससे पानी भी बचेगा और पराली की समस्या भी खत्म हो जाएगी।

वहीं बीजेपी नेताओं ने केजरीवाल और मान पर वायु प्रदूषण को ना रोक पाने की वजह से निशाना साधा है। बीजेपी नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने एक बिलबोर्ड पोस्ट किया, जिसमें केजरीवाल और एडोल्फ हिटलर दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि
केजरीवाल दूसरे शासक हैं, जिन्होंने अपने शहर को गैस चैंबर में बदल दिया। हिटलर पहला ऐसा शासक था।

बीजेपी नेता संबित पात्रा ने कहा कि पंजाब में आप सरकार कम से कम पराली की आग की घटनाओं को कम कर सकती थी, लेकिन स्थिति बिल्कुल इसके उलट हुई। पिछले साल के मुकाबले इस साल पंजाब में 34 परसेंट ज्यादा पराली जली। केंद्र सरकार ने पराली की समस्या खत्म करने के लिए जो पैसे दिए, पंजाब सरकार ने उसमें से ज्यादातर फंड का इस्तेमाल ही नहीं किया। पराली को खत्म करने के लिए जो मशीनें खरीदीं गईं, उसमें से भी कुछ मशीन चोरी हो गईं।

सच तो यही है कि पराली के मुद्दे पर केजरीवाल पहले इतना बोल चुके हैं कि आज उनसे जवाब देते नहीं बन रहा है। 2 साल पहले, 4 नवंबर 2020 को उन्होंने ट्वीट किया था कि दिल्ली के खेतों में बायो डिकंपोजर की तकनीक कामयाब रही और पराली, खाद में बदल गई। इससे दिल्ली का किसान संतुष्ट भी है और खुश भी है। हमारे किसान पराली नहीं जलाना चाहते। हमने उन्हें समाधान भी दे दिया है और सुविधा भी दी है। अब दूसरे राज्यों को भी बहाने छोड़कर अपने राज्य के किसानों को ये सुविधा देनी चाहिए।

लेकिन हालात अब बदल गए हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन केजरीवाल पंजाब के किसानों को सुविधा देने की बजाए ये बहाना बना रहे हैं कि प्रदूषण की समस्या तो यूपी और बिहार जैसे दूसरे राज्यों में भी है। बीजेपी नेता संबित पात्रा ने कहा कि केजरीवाल तो पराली को सोना बता रहे थे। अब उसी सोने की लंका जल रही है तो केजरीवाल हाथ खड़े करके भाग रहे हैं।

जब केजरीवाल और मान शुक्रवार को बहाने बनाने में व्यस्त थे, तभी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने समस्या का वैज्ञानिक समाधान खोजने के लिए केंद्र और राज्यों दोनों के सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि धान की पराली के प्रबंधन पर चर्चा राजनीतिक बहस से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

तोमर ने कहा, ‘समस्या गंभीर है और आरोप-प्रत्यारोप लगाना उचित नहीं है। IARI (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) द्वारा विकसित डीकंपोजर न केवल यह सुनिश्चित करेगा कि मिट्टी सुरक्षित है, बल्कि प्रदूषण भी कम करेगा।’

तोमर ने कहा, ‘यूपी में 26 लाख एकड़, पंजाब में 5 लाख एकड़, हरियाणा में 3.5 लाख एकड़ और दिल्ली में 10,000 एकड़ में पूसा धान डीकंपोजर का इस्तेमाल हुआ और इनके अच्छे परिणाम मिले हैं। उन्होंने कहा, राज्यों को पराली प्रबंधन के लिए 2,07,000 मशीनें दी गई हैं और उन सभी का अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए। तोमर ने कहा कि आईएआरआई द्वारा विकसित पूसा डीकंपोजर के उपयोग से खेती योग्य भूमि की उर्वरता बढ़ेगी और वायु प्रदूषण कम होगा।

पूरे एनसीआर में अब स्थिति भयावह है। दिल्ली सरकार के 50 प्रतिशत कर्मचारियों को अब घर से काम करने के लिए कहा गया है, और प्राइवेट ऑफिसों में भी ऐसा करने की सलाह दी गई है। राजधानी में ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और वाहन मालिकों को बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4 डीजल कारों को सड़कों से हटाने के लिए कहा गया है। स्कूलों में छात्रों की सभी प्राइमरी क्लासों और बाहरी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है।

केजरीवाल अब तक पराली के मुद्दे पर खामोश थे। दो दिन पहले उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया और इसके बाद शुक्रवार को कहा कि प्रदूषण तो हर राज्य में है। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार को पूरे देश में प्रदूषण को खत्म करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

केजरीवाल को लग रहा था कि पंजाब में पराली 2 हफ्ते और जलेगी, फिर बुआई हो जाएगी, पराली का धुंआ खत्म हो जाएगा और उसके बाद दिल्ली में प्रदूषण का मुद्दा भी ठंडा हो जाएगा। लेकिन केजरीवाल को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस दौरान MCD के चुनाव की तारीख आ जाएगी।

शुक्रवार को जब MCD चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया तो केजरीवाल के कान खड़े हो गए। वह समझ गए कि पराली का धुंआ उनकी पार्टी की चुनावी संभावनाओं को ले डूबेगा। उन्होंने पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ एक ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की और इस बात को स्वीकार किया कि वे पराली की आग को रोकने में नाकाम रहे। वह समझ गए कि गलती को मान लेने में ही भलाई है। क्या दिल्ली की जनता मानेगी?

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Delhi air pollution: Kejriwal on the defensive

AKBThe national capital region continued to reel under highly toxic ‘severe’ category of air pollution for the third straight day on Saturday. The overall Air Quality Index in Delhi stood at 431 on Saturday and 447 on Friday, as a cloud of haze hung over the capital. A strong southwesterly wind is expected to bring partial relief and the air quality may improve slightly from ‘severe’ to ‘very poor’ in the next day or two.

Lung damaging 2.5 PM (particulate matter) in the air were above 270 micrograms per cubic metre on Friday, that is eight times over the safe limit of micrograms per cubic metre.

Air Quality Index recorded on Saturday morning in different parts of Delhi were: Jahangirpuri 456, IGI airport 397, ITO 411, Okhla 425, Pusa 416, Wazirpur 449, R K Puram 446 and Vivek Nagar 440. Neighbouring Noida recorded 529, Gurugram 478, Ghaziabad 361 and Faridabad recorded 400.

People are suffering from severe breathing problems, and all primary schools in Delhi have been closed till next Tuesday. On Friday, Delhi chief minister Arvind Kejriwal, along with Punjab counterpart Bhagwant Mann folded their hands at a press conference and admitted their inability in preventing farm stubble fires. Both of them promised to change the situation next year.

Kejriwal said, his party AAP came to power in Punjab only six months ago and there was not enough time to curb stubble fire smoke. He however said, that it would be incorrect to blame Punjab alone for stubble fires.

He came out with a list of cities in UP, Bihar and Rajasthan where the Air Quality Index was more severe compared to Delhi. He questioned: “Paddy stubble is not being burnt in Bihar, UP and Rajasthan, then why is the air quality severe there? Why are people only speaking about Delhi’s air pollution?”

This was the same Kejriwal who had last year blamed stubble fires in Punjab as the main cause of air pollution in Delhi, but on Friday, he was speaking in a different tune. It was Kejriwal who had promised to solve stubble fire problem, if it came to power in Punjab.

On Friday, Bhagwant Mann said, he would prefer a permanent solution by asking farmers to sow other crops like mustard and millet, in place of paddy. “This will also save water consumption and ‘parali’ (stubble fire) problem will be solved”, he added.

BJP leaders hit out at Kejriwal and Mann for failing to prevent air pollution. BJP leader Tajinder Pal Singh Bagga posted a billboard showing Kejriwal and Adolf Hitler, saying, “Kejriwal is second ruler, who converted his city into a Gas Chamber. Hitler was First.”

BJP leader Sambit Patra said, the least AAP government in Punjab could have done was to lower the incidence of stubble fires, but the reverse happened. The numbers of farm fire incidents increased by 34 per cent. He also blamed Punjab government for not utilising Central funds given for tackling air pollution. He also alleged that several seeding machines sent by the Centre to Punjab were stolen.

Clearly, Kejriwal is finding no fresh excuses for failing to stop air pollution. Two years ago, on November 4, 2020, he had tweeted that “bio-decomposers used by farmers in Delhi were a success and paddy stubble was converted into fertilizers. The farmers of Delhi are happy and satisfied. Our farmers do not want to burn parali (stubble). We provided them the solution and facilities too. Other states should also stop giving lame excuses and give similar facilities to farmers.”

The situation is now reversed. AAP is now in power in Punjab, and instead of providing facilities to farmers in Punjab, Kejriwal is giving excuses by saying other states like Bihar and UP too are facing air pollution. BJP leader Sambit Patra said, “Kejriwal was describing paddy stubble as gold, but today this golden Lanka is burning, and Kejriwal is fleeing from his responsibility.”

While Kejriwal and Mann were busy giving excuses on Friday, Union Agriculture Minister Narendra Singh Tomar called for collective efforts by both Centre and states to find a scientific solution to the problem. He said a discussion on managing paddy straw is more important than a political debate.

“The problem is serious and levelling charges and counter-allegations is not justified. The decomposer developed by IARI (Indian Agricultural Research Institute) will not only ensure that the soil is safe, but pollution will also be reduced”, Tomar said.

Tomar said, Pusa paddy decomposers were used in 26 lakh acres in UP, five lakh acres in Punjab, 3.5 lakh acres in Haryana and 10,000 acres in Delhi and these have given good results. He said, 2,07,000 machines were given to states for stubble management and all of them must be utilized to the optimum. Using Pusa decomposers developed by IARI will increase the fertility of cultivable land and reduce air pollution, Tomar said.

The overall situation in NCR is now scary. Fifty per cent of Delhi government staff have now been asked to work from home, and private offices have also been advised to do the same. Entry of trucks into the capital has been banned, and owners have been asked to take BS-3 petrol and BS-4 diesel cars off the roads. All primary classes and outdoor activities by students in schools have been suspended.

Arvind Kejriwal was silent till now on the issue of paddy stubble. Two days ago, he had held the Centre reponsible and on Friday, he alleged that air pollution was prevalent in other states too.

Kejriwal expected the air pollution issue to blow away once the stubble fires in Punjab are over and wheat sowing season starts. But he did not expect the state chief electoral officer would announced MCD elections so soon.

On Friday, when the MCD election dates were announced, Kejriwal became alert and he soon realized that the stubble burning issue would sink his party’s electoral prospects. He brought Punjab CM Bhagwant Mann to a joint press conference and admitted that they failed to stop stubble fires. Both of them thought, admitting mistake was the best way out. Will the people of Delhi accept?

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इमरान खान पर हमला : पाकिस्तान में बिगड़ सकते हैं हालात

AKBपाकिस्तान में तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने जुमे की नमाज के बाद देशव्यापी प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हुए जानलेवा हमले के विरोध में किया गया। इस हमले में इमरान बाल-बाल बच गए। पूर्व क्रिकेटर इमरान खान के दोनों पैरों में गोलियां लगी हैं। इस्लामाबाद से करीब 200 किमी दूर वजीराबाद के अल्लाह वाला चौक पर गुरुवार दोपहर एक बंदूकधारी ने इमरान और उनके समर्थकों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी।

इमरान खान कंटेनर ट्रकों और अन्य वाहनों के एक बड़े काफिले के साथ ‘लॉन्ग मार्च’ पर इस्लामाबाद की ओर जा रहे थे। वह कंटेनर की छत पर खड़े होकर अपने समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे, तभी अचानक गोलियां चलने लगीं। दरअसल, इमरान खान और उनकी पार्टी जल्द से जल्द संसदीय चुनाव कराने की मांग कर रही है।

हमला करनेवाले शख्स मोहम्मद नावेद को इमरान खान के समर्थकों ने अपने काबू में ले लिया और पुलिस के हवाले कर दिया। बाद में उसने कैमरे पर बताया कि वह केवल इमरान खान को मारना चाहता है। उसने इमरान को निशाना बनाकर फायरिंग की तभी भीड़ में मौजूद एक इमरान समर्थक ने उसे पीछे से पकड़ लिया। इस बीच हाथापाई के दौरान स्वचालित पिस्टल से कई राउंड गोलियां चल गईं। फायरिंग में मुअज्जम नवाज नाम के व्यक्ति की मौत हो गई जबकि इमरान समेत 7 लोग घायल हो गए। घायलों में सांसद फैसल जावेद, सिंध के पूर्व गवर्नर इमरान इस्माइल, अहमद चट्ठा और उमर डार भी शामिल हैं। ये सभी पीटीआई के नेता हैं।

हमला होते ही पीटीआई चीफ इमरान खान को तुरंत सुरक्षा गार्ड्स ने चारों तरफ से घेर लिया। उनके पैर में पट्टी बांधी गई और बुलेट प्रूफ कार में उन्हें लाहौर के शौकत खानम अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनके पैर का ऑपरेशन किया गया। डॉक्टर फैसल सुल्तान के मुताबिक उनके पैरों में गोलियों के टुकड़े थे और उनकी टांग की टिबिया शिन (Tibia Shin) हड्डी में गोली का एक टुकड़ा फंसा था। गोली के टुकड़े को निकालने उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया। वह अब खतरे से बाहर हैं। पीटीआई नेता सीमी बोखारी ने कहा-‘ इमरान खान का हौसला बुलंद है और वे पूरी तरह से अच्छा महसूस कर रहे हैं। उन्हें जल्द छुट्टी दे दे जाएगी।’

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इमरान खान पर हमला करनेवाला शख्स नशे का आदी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने 9 एमएम ऑटोमैटिक पिस्टल के साथ 46 गोलियां खरीदी। उसने पहले एक मस्जिद की छत का इस्तेमाल करने की कोशिश की लेकिन असर की नमाज के चलते पुलिस ने उसे रोक दिया। इसके बाद वह मौके पर पहुंचा और फायरिंग से पहले उसने इमरान के समर्थकों से लाउडस्पीकरों की आवाज को बंद करने को कहा। इन लाउडस्पीकर्स पर इमरान की पार्टी का एंथम बज रहा था। समर्थक इमरान खान पर फूल बरसा रहे थे। इसी बीच हमलावर ने निशाना बनाकर फायरिंग करने की कोशिश की। लेकिन भीड़ में मौजूद इमरान के अलर्ट समर्थकों ने उसे काबू में कर लिया। इस बीच जिस ट्रक पर लगे कंटेनर पर इमरान लॉन्ग मार्च निकाल रहे थे वह वजीराबाद में घटनास्थल पर ही खड़ा रहा।

पंजाब के मुख्यमंत्री चौधरी परवेज इलाही ने संबंधित थाने के एसएचओ और सभी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसी थाने में हमले के तुरंत बाद हमलावर के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और मीडिया को सर्कुलेट किया गया था। मुख्यमंत्री परवेज इलाही ने राज्य के आईजी से फायरिंग की घटना की जांच के लिए संयुक्त जांच दल गठित करने को कहा। निलंबित पुलिसकर्मियों के सभी मोबाइल फोन फॉरेंसिक ऑडिट के लिए जब्त कर लिए गए हैं।

फायरिंग की इस घटना ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। सभी प्रमुख शहरों और कस्बों में पीटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा स्वत:स्फूर्त विरोध प्रदर्शन किया गया। इमरान खान ने आरोप लगाया कि हत्या के प्रयास की प्लानिंग प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृह मंत्री (आंतरिक मामलों के मंत्री ) राणा सनाउल्लाह और आईएसआई के एक शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल फैसल ने बनाई थी। इमरान खान ने अपनी पार्टी के नेता के माध्यम से एक संदेश जारी करते हुए कहा, ‘ अगर तीनों तीनों को नहीं हटाया गया तो जो भी परिणाम होंगे उसके लिए सरकार जिम्मेदारी होगी’। वहीं शुक्रवार को गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने साजिश के आरोपों को खारिज किया कहा, हम इमरान खान को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखते हैं, दुश्मन के रूप में नहीं। वो तो इमरान खान ही हैं जो अपने राजनीतिक विरोधियों को भी दुश्मन के रूप में देखते हैं।

बृहस्पतिवार की रात लाहौर, पेशावर, रावलपिंडी, मुल्तान और अन्य शहरों में पीटीआई समर्थकों द्वारा आगजनी और सड़क जाम करने की घटनाएं हुईं। पीटीआई नेता फवाद चौधरी ने कहा, पाकिस्तान के इतिहास में हत्याओं के काले इतिहास को गुरुवार को दोहराने की कोशिश की गई। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे पूर्व पीएम लियाकत अली खान, जुल्फिकार अली भुट्टो और बेनजीर भुट्टो को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। एक अन्य पीटीआई नेता और पूर्व मंत्री शेख रशीद ने आरोप लगाया कि यह पाकिस्तान में गृहयुद्ध शुरू करने की साजिश प्रतीत होती है। उन्होंने गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह को ‘मास्टरमाइंड’ बताया।

इमरान खान पर हुआ यह हमला कायराना है। यह जम्हूरियत पर हमला है, इसकी जितनी निंदा की जाए वो कम है। इस कातिलाना हमले का असर आने वाले दिनों में पाकिस्तान की सियासत पर दिखाई देगा। यह एक नए खतरे का संकेत है। इस मामले में जिस तरह की बयानबाजी हो रही है वो और भी खतरनाक है। इमरान खान ने प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और फौज पर हमले का इल्जाम लगाया है।

मेरा आकलन है कि अब पाकिस्तान में हालात और खराब होंगे। क्योंकि इमरान खान ने कह दिया है कि अगर शहबाज शरीफ को नहीं हटाया गया तो बिगड़े हालात के लिए सरकार और सेना जिम्मेदार होगी। यानि इमरान ने अपने समर्थकों को इशारा कर दिया है कि क्या करना है। इमरान के समर्थक कह रहे हैं कि इमरान खान पाकिस्तान की मौजूदा सरकार के लिए खतरा बन गए थे। इसलिए उनकी हत्या कराने की कोशिश की गई। कुछ लोगों ने कहा कि इमरान खान ने फौज को एक्सपोज़ किया, ISI को चैलेंज किया, इसलिए इन लोगों ने इमरान को खत्म करने की कोशिश की। वहीं जो लोग सरकार के साथ हैं उनका कहना है कि इमरान पर हमले से शहबाज शरीफ को क्या फायदा हो सकता था। उनके मुताबिक इस हमले से फायदा तो इमरान खान को होगा। इसलिए इमरान ने अपने ऊपर हमले का ड्रामा करवाया।

मुझे लगता है कि इस तरह की बयानबाजी से पाकिस्तान में हालात और भी खराब होंगे। टकराव और बढ़ेगा। ऐसा नहीं है कि ये पाकिस्तान में कोई पहली बार हुआ। मुझे याद है कि बेनजीर भुट्टो की इसी तरह हत्या से हुई थी। 27 दिसम्बर 2007 की बात है, वह भी गुरुवार का दिन था। बेनजीर भी कैम्पैन कर रही थीं, वो भी गाड़ी पर सवार थी। उन पर भी पीछे से गोली चली और वो गिर गईं। बेनजीर के हमलावर ने फायरिंग के बाद खुद को विस्फोट में उड़ा लिया। बेनजीर के अलावा 22 अन्य लोगों की मौत हो गई थी। बिल्कुल उसी से मिलता-जुलता मंजर था। बेनजीर की हमले में मौत हो गई थी लेकिन भगवान का शुक्र है कि इमरान खान की जान बच गई।

हैरानी की बात ये है कि बेनजीर की हत्या के बाद भी पाकिस्तान ने सबक नहीं सीखा। अब पूरे पाकिस्तान में विरोध-प्रदर्शन से हालात बिगड़ रहे हैं। इमरान खान के समर्थक जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं और तोडफोड़ हो रही है। हालात सरकार और सेना के हाथ से निकल रहे हैं। इसके लिए कोई और नहीं पाकिस्तान की सरकार, वहां की फौज और वहां की सियासी पार्टियां जिम्मेदार हैं। जब मुल्क की आवाम को अपने लीडरान पर यकीन नहीं होता, जब मुल्क भ्रष्टाचार में डूबा होता है, जब सिस्टम फेल हो जाता है तो इसी तरह के हालात बनते हैं। चूंकि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है इसलिए इस वक्त भारत को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है।

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Attack on Imran: Conditions in Pakistan may deteriorate

akb fullThere were nationwide protests by Pakistan Tehreek-e-Insaaf (PTI) supporters, after Jumma prayers, across the country on Friday. Tension mounted after former PM Imran Khan survived an assassination attempt. The former cricket star was wounded in his legs, when a gunman opened fire at him and his supporters at Allah Wala Chowk in Wazirabad, nearly 200 km away from Islamabad on Thursday afternoon.

Imran Khan was traveling in a large convoy of container trucks and vehicles, heading for Islamabad on a ‘long march’. He was standing on the roof of the container, and waving to his supporters, when the gunfire took place. Imran Khan and his party has been demanding holding of early parliamentary elections.

The assailant, Mohammed Naved, was overpowered by Imran Khan’s supporters and handed over to police. He later told on camera that he wanted to kill Imran Khan only. His aim was deflected by an alert supporter who caught him from behind, and, in the melee, the automatic pistol burst several rounds of fire killing one person named Muazzam Nawaz and injuring seven others, including Imran Khan. Among those injured were Senator Faisal Javed, former Sindh Governor Imran Ismail, Ahmed Chatha and Umar Dar, all PTI leaders.

The PTI chief was immediately surrounded by his guards and, with his foot bandaged, rushed in a bulletproof car to Shaukat Khanam Hospital in Lahore where his leg was operated upon. According to Dr Faisal Sultan, there were fragments of bullets in his legs and a chip in his tibia shin bone. He was moved to the operation theatre for removal of bullet fragments. He is now out of danger. “Imran Khan is in high spirits, he is feeling perfectly well. The doctors are allowing him to move, and he will be discharged soon”, said Seemi Bokhari, a PTI leader.

Media reports said, the assailant who fired at Imran Khan, is a drug addict. According to reports, he purchased 46 bullets with an automatic 9 mm pistol. He first tried to use the roof of a mosque, but police did not allow him due to Asr prayers. He reached the crime of scene, and before firing, he asked some of the supporters to stop the blaring of loudspeakers playing the party anthem. As supporters were showering flower petals on Imran Khan, the assailant tried to take aim and fire, before he was overpowered. Meanwhile, the truck-mounted container, in which Imran was travelling, remained parked at the scene of crime in Wazirabad.

Punjab chief minister Chaudhary Pervez Elahi has suspended the SHO and all staff of the police station, where the assailant’s statement was recorded on video and passed on to media soon after the attack. He asked the state IG to form a joint investigation team to probe the firing incident. All mobile phones of suspended police staff have been confiscated for forensic audit.

The firing incident shook Pakistan. There were spontaneous protests by PTI workers in all major cities and towns. Imran Khan alleged that the assassination attempt was planned by none other than Prime Minister Shehbaz Sharif, Interior Minister Rana Sanaullah and a top ISI officer Major General Faisal. Imran Khan released a message through his party leader saying, “if the three are not removed, the government will be responsible for the consequences”. On Friday, Interior Minister Rana Sanaullah rejected charges of conspiracy and said: “We see Imran Khan as our political opponent, not an enemy. It is Imran Khan who looks at his political opponents as enemies.”

On Thursday night, there were incidents of arson and roadblocks by PTI supporters in Lahore, Rawalpindi, Peshawar, Multan and other cities. PTI leader Fawad Chaudhry said, the black history of assassinations in Pakistan’s history was sought to be repeated on Thursday. He reminded how former PMs Liaquat Ali Khan, Zulfiqar Ali Bhutto and Benazir Bhutto had to lose their lives. Another PTI leader and former minister Sheikh Rasheed alleged that there seems to be a conspiracy to start a civil war in Pakistan through this failed assassination attempt. He named Interior Minister Rana Sanaullah as “the mastermind”.

The attack on Imran Khan is cowardly. It is an attack on democracy and must be condemned by all. The effects of this failed assassination attempt will be seen in the coming days in Pakistan politics. It signals a new danger. The manner in which harsh remarks and statements are being made by politicians from all sides, is all the more dangerous. Imran Khan has named the PM, Interior Minister and the Army for this attempt.

My assessment is that conditions could deteriorate in the coming weeks and months in Pakistan. Imran Khan has already sent a warning message saying if Prime Minister Shehbaz Sharif is not removed, it will be the government which shall be held responsible. In other words, Imran Khan is signalling to his supporters what to do next. His supporters are openly saying that the Pakistan Army is trying to target Imran. Those in the government question the manner in which this attack took place. They are indirectly signalling that it was the PTI which arranged this failed attempt drama in order to garner nationwide sympathy for its leader.

Such allegations and counter-allegations can only worsen the situation in Pakistan. Remember how Benazir Bhutto was killed. It was a Thursday and the date was December 27, 2007. Benazir was campaigning, and she was shot from the back. Benazir’s assailant after firing at her, blew himself up killing her along with 22 others. What happened to Imran seems to be a repeat of what happened to Benazir. Benazir lost her life, but with the blessings of Almighty, Imran survived the attempt.

It is strange why Pakistan did not learn from Benazir’s assassination. With protests going on across Pakistan, the situation seems to be getting out of hand. The government, army and major political parties are responsible for this sorry state of affairs. When people lose faith in their leaders, when a country becomes mired in the cesspit of corruption, and the entire system fails, such conditions happen. Since Pakistan is our neighbour, we in India must remain alert.

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केजरीवाल बताएं, दिल्ली का दम क्यों घुट रहा है?

AKb (1)बुधवार (2 नवंबर) की सुबह दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 360 (बहुत खराब) से 481 (अति गंभीर) के बीच था और लगभग पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र धुंध की चादर से ढंका हुआ था। पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं (13,873) में 33.5 प्रतिशत की खतरनाक बढ़ोत्तरी की खबरों के बीच NCR सुबह के वक्त एक ‘गैस चैंबर’ जैसा नज़र आ रहा था।

हवा की गुणवत्ता में गिरावट आने के साथ ही दिल्ली सरकार ने अगले आदेश तक राजधानी में सभी निर्माण और ध्वस्तीकरण कार्यों को बंद करने का निर्देश दिया है। इससे पहले GRAP (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) स्टेज 3 (गंभीर वायु गुणवत्ता) को अमल में लाया जा चुका है। गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद और NCR के अन्य शहर में लोग ज़हरीली हवा में सांस ले रहे हैं। दिल्ली NCR में बड़ी संख्या में लोग सर्दी, खांसी और सांस की तकलीफ से पीड़ित हैं, इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। डॉक्टरों ने लोगों को आगाह किया है कि वे सुबह की धुंध में मॉर्निंग वॉक न करें । धुंध के कारण सुबह लोग हेडलाइड ऑन करके गाड़ी चला रहे हैं।

लेकिन 20 दिन पहले ऐसा नहीं था। 10 अक्टूबर को दिल्ली में हवा बिल्कुल साफ थी और AQI 44 पर था। सिर्फ इन 3 हफ्तों में ऐसा क्या हो गया कि दिल्ली के लोगों का दम घुटने लगा? दिल्ली में अधिकारी और मंत्री तो ये दावा कर रहे थे कि राजधानी को प्रदूषण से बचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम हो रहा है। दावा ये किया जा रहा था कि दिल्ली सरकार ने एक ऐसा रसायन तैयार किया है जो पराली को जमीन में ही गला देगा और उसे जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

केंद्र ने अपनी फसल पराली प्रबंधन योजना (Crop Residue Management Scheme) के जरिए चालू वर्ष सहित पिछले 5 सालों में पंजाब सरकार को 1347 करोड़ रुपये दिए थे। इस योजना के तहत पंजाब में धान की पराली के निपटान के लिए कृषि मशीनरी उपलब्ध कराई जानी थी। पंजाब में 1.2 लाख से ज्यादा मशीनें उपलब्ध कराई गईं, फिर भी पराली जलाने के मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली। पंजाब में पराली के निपटान के लिए कृषि मशीनरी पहुंचाने हेतु 13,900 से ज्यादा कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किए गए, लेकिन इन मशीनों की क्वॉलिटी काफी खराब थी और ढेर सारी मशीनें यूं ही पड़ी रह गईं।

पश्चिमी यूपी और दिल्ली में धान की पराली से निजात पाने के लिए बायो-डीकंपोजर का इस्तेमाल काफी सफल रहा, लेकिन केंद्र सरकार के मुताबिक, धान की पराली के निपटान के लिए इस असरदार तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए पंजाब सरकार ने कोशिश ही नहीं की। अन्य कामों में पराली के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए और पंजाब से चारे की कमी वाले इलाकों में इसकी सप्लाई के लिए भी कोई कोशिश नहीं की गई।

केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को फरवरी 2022 में ही परानी के बारे में आगाह कर दिया था। धान की बुआई के सीजन से पहले भी पंजाब सरकार से कहा गया था कि पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम के लिए पूरी ताकत लगाई जाए, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। केंद्रीय कृषि और पर्यावरण मंत्रियों ने पंजाब सरकार के मंत्रियों के साथ बैठकें की , लेकिन कार्रवाई में कोई तेजी नहीं आई।

केंद्र ने पंजाब सरकार द्वारा पराली जलाने के खिलाफ बने नियमों को लागू करने में गंभीर खामियां पाई हैं और इस नाकामी के लिए राज्य सरकार को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है। पंजाब सरकार की निष्क्रियता के कारण ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि NCR में रहने वाले लोगों को ज़हरीली हवा में सांस लेना पड़ रहा है, और इससे उनकी स्वास्थ्य को खतरा पहुंच रहा है।

सवाल यह है कि पैसे भी दिये गये, मशीनें भी खरीदी गईं, तो ये मशीनें कहां चली गईं? ये मशीनें किसानों तक क्यों नहीं पहुंचीं? पंजाब में रोजाना बड़े पैमाने पर पराली जलाने का सिलसिला जारी है।

मैंने इंडिया टीवी के संवाददाताओं से पंजाब के अलग-अलग जिलों में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट भेजने को कहा। अफसोस के समय मुझे कहना पड़ रहा है कि पंजाब सरकार की निष्क्रियता के कारण अने वाले हफ्तों में भी दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता में किसी तरह के सुधार की कोई संभावना नहीं दिख रही है। NCR के लोगों को आने वाले हफ्तों में जहरीली हवा में सांस लेना होगा।

आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं । पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर में पंजाब में लगभग 33.5 फीसदी ज्यादा पराली जलाई गई है। 15 सितंबर से लेकर 28 अक्टूबर के बीच के आंकड़े मेरे पास है। इस दौरान पंजाब में पराली जलाने की 10,214 घटनाएं दर्ज की गईं। वहीं पिछले साल इसी दौरान पंजाब में पराली जलाने के 7,648 मामले रिकॉर्ड किए गए थे।

पंजाब के 7 जिलों, मोहाली, मोगा, गुरदासपुर, बठिंडा, फिरोजपुर, जालंधर और तरनतारन में पराली जलाने की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही हैं। पराली जलाने के 71 फीसदी मामले इन्हीं जिलों से सामने आए हैं। ये ऐसे ‘हॉट स्पॉट’ हैं जहां हर साल धान की पराली जलाई जाती है। पिछले 7 दिनों में खेतों में लगाई गई आग (7,100) में लगभग 69 प्रतिशत की बड़ी बढ़ोत्तरी देखी गई। इससे पूरे NCR में धुंध छा गई। यह हाल तब है जब पंजाब में अभी सिर्फ 45 से 50 फीसदी फसल की कटाई हुई है।

वहीं, पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में करीब 24.5 फीसदी की कमी आई है। 15 सितंबर से 28 अक्टूबर तक हरियाणा में पराली जलाने की 1,702 घटनाएं दर्ज हुईं, जबकि पिछले साल इनकी तादाद 2,252 थी। पश्चिमी यूपी में पराली जलाने के मामलों की संख्या पिछले साल के 43 से घटकर इस साल 30 पर पहुंच गई है। केंद्र ने पंजाब, हरियाणा और यूपी में आग जलाने की घटनाओं के नक्शे तैयार किए हैं। नक्शों में साफ नजर आता है कि पंजाब के खेतों में बड़े पैमाने पर आग लगाई गई है, जिससे NCR धुंध की चादर में लिपट गया है।

पंजाब सरकार ने केंद्र द्वारा भेजी गई 1,20,000 पराली प्रबंधन मशीनरी का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? केंद्र ने जब इस बारे में पंजाब सरकार से पूछा तो उसने आनन-फानन में इन मशीनों को किसानों को भेजना शुरू कर दिया।

जब पंजाब के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण मंत्री गुरमीत सिंह मीत हायर से पराली जलाने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया: ‘यह एक पुरानी समस्या है। इसे हल करने में समय लगेगा। AAP सरकार पूरी कोशिश कर रही है। पराली को डिकंपोज होने में समय लगेगा। पराली जलाने के मामलों में कमी आई है।’

एक तरफ तो पंजाब में AAP के मंत्री ये बात कह रहे हैं, लेकिन अरविन्द केजरीवाल तो डिकंपोजर को पराली का सबसे बड़ा दुश्मन और किसानों का सबसे बड़ा दोस्त बता रहे थे। वह इसे पराली की समस्या का रामबाण इलाज बता रहे थे।

हमारे संवाददाता जब दिल्ली के किसानों के पास पहुंचे तो एक अलग तरह का समस्या सामने आई। पता लगा कि दिल्ली के किसानों ने डिकंपोजर का इंतजार किया, सरकारी अफसरों के चक्कर लगाये लेकिन उन्हें यह वक्त पर नहीं मिला । एक किसान ने कहा, ‘पिछले साल अधिकारी आए थे, एक एकड़ में केमिकल डाला और कागजों पर दिखा दिया कि 10 एकड़ पर डाल दिया है।’ एक दूसरे किसान ने कहा कि एक खेत की फसल कटने के बाद जब वह दोबारा अधिकारियों के पास गए तो अफसरों ने कह दिया कि दवा डालने का टाइम अब खत्म हो गया।

दिल्ली में बीजेपी के विधायक ओ. पी. शर्मा ने आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने डिकंपोजर के प्रचार और विज्ञापनों पर 7.5 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, जबकि इसे खरीदने में सिर्फ 3.5 लाख रुपये खर्च किये।

राहत की बात सिर्फ इतनी सी है कि पराली जलाने की घटनाएं हरियाणा में कम हुई हैं । पिछले साल के मुकाबले हरियाणा में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में करीब 25 फीसदी की कमी आई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि उन्होंने पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद नीति अपनायी । उनके अधिकारियों ने पराली का निपटारा करने में किसानों को मदद भी की और खेत में पराली जलाने वालों पर जुर्माना भी लगाया।

सारी बातें सुनने के बाद यह तो साफ है कि पंजाब में पराली को जलने से रोकने के लिए पंजाब की AAP सरकार ने कोई ठोस प्रयास नहीं किए । न मशीनें किसानों तक पहुंचाने की कोशिश की गई और न ही पराली गलाने का रसायन काम आया । यह भी साफ है कि पंजाब में पराली जलाये जाने से आने वाले दिनों में NCR की हवा और भी ज़हरीली होगी और दिल्ली के लोगों को खतरनाक हवा में सांस लेना होगा।

अगर पंजाब में कांग्रेस या बीजेपी की सरकार होती तो केजरीवाल फौरन कह देते कि ये दोनों पार्टियां दिल्ली के लोगों से नफरत करती हैं। वह कहते कि ये पार्टियां दिल्ली के लोगों को जान से मार डालना चाहती हैं क्योंकि वे आम आदमी पार्टी को वोट देते हैं। लेकिन अब केजरीवाल की मुसीबत यह है कि दिल्ली और पंजाब दोनों जगह उनकी सरकार है। पराली जलाने के लिए दोष दें तो किसको दें।

मंगलवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक नया शग़ूफा छोड़ा । सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में सारा प्रदूषण कूड़े की वजह से होता है, और कूड़ा साफ करने की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम की है, जिस पर बीजेपी का कब्ज़ा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो उनके मुताबिक दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए बीजेपी जिम्मेदार है।

सच तो यह है कि केजरीवाल ने दिल्ली में अपने पिछले 8 साल के शासनकाल में प्रदूषण को रोकने की सिर्फ बातें ही की हैं, दूसरों पर दोषारोपण किया है, परन्तु कोई ठोस काम नहीं किया । कभी उन्होनें गाड़ियों के लिए ऑड-ईवन रूल की बात की, कभी स्मॉग टावर लगाए, दिवाली पर पटाखों पर बैन लगाया, फैक्टरियों और ईंट के भट्टों को जलने से रोका, पर सब कुछ दिखावा साबित हुआ ।

दिल्ली में रहने वाले भी इंसान हैं। वे भी टैक्स देते हैं। उनको भी जीने का हक़ है। उन्होंने क्या कसूर किया कि वे ज़हरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं? उन्होंने क्या गुनाह किया कि दिल्ली में रहने वालों की उम्र 10 साल कम हो गई है? इसका जवाब केजरीवाल को देना होगा ।

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Why is Delhi choking? Kejriwal must answer

AKBOn Wednesday (November 2) morning, the Qir Quality Index (AQI) in Delhi ranged from 360(Very Poor) to 481 (Severe Plus) as almost the entire National Capital Region was covered in a layer of haze. The national capital in the morning appeared to be a ‘gas chamber’, as reports came of an alarming 33.5 per cent rise in stubble burning incidents (13,873) in Punjab.

With the air quality worsening, Delhi government has directed closure of all construction and demolition activities in the capital, till further orders. Already, GRAP (Graded Response Action Plan) Stage 3 (severe air quality) has been put into action. Gurugram, Noida, Faridabad and other satellite towns in NCR are facing a severe dip in air quality. The number of people suffering from cold, cough and breathing issues is on the rise in Delhi NCR. Doctors have advised people to remain indoors when there is a haze in the morning. Early morning motorists drove their vehicles with the headlights on due to low visibility.

Nearly 20 days ago, on October 10, Delhi’s air was clean and the average AQI was only 44. What happened in these three weeks that the clean air vanished and the people of NCR are choking? It was being claimed by ministers and officials in Delhi that work was going on a war footing to protect Delhi from air pollution. Claims were made about a chemical being prepared which will mix the paddy stubble with the soil and there will be no need to burn them.

The Centre had, through its Crop Residue Management scheme, made Rs 1347 crore available to Punjab government in the last five financial years, including the current year. Under this scheme, farm machinery was to be made available for management of paddy stubble in Punjab. More than 1.2 lakh machines were made available in Punjab, and yet the number of stubble burning cases rose. More than 13,900 custom hiring centres were set up in Punjab to facilitate farm machinery for crop residue management in Punjab, but the use of these machines was very poor, and a large number of machines were allowed to remain idle.

Use of bio-decomposers for managing paddy stubble in western UP and Delhi national capital territory was very successful, but, according to central government, no efforts were made by Punjab government for using this effective technique for disposing paddy stubble. No efforts were made for increasing the use of straw for other applications, and for supply of fodder to fodder-deficient areas from Punjab.

Since early February this year, the Centre had been regularly telling the Punjab government, to sensitize its administrative machinery to prevent farm fire incidents, but no effective action was taken. Meetings were held by the Union Agriculture and Environment ministers with their counterparts in Punjab government, but no action was expeditiously taken.

The Centre has noted serious lapses in implementation of farm fire control laws by the Punjab government and has held the latter solely responsible for the failure, thereby creating a situation where the people of NCR are now breathing highly polluted air, adversely affecting their health.

The question is: Funds were allocated, machines were purchased, but where did these machines go? Why didn’t these machines reach the farmers? Large-scale burning of paddy stubble is going on daily in Punjab.

I asked India TV reporters to go to different districts of Punjab and send ground reports. Sadly, these seems to be no possibility of an improvement in air quality in the near future due to inaction on part of Punjab government. People in National Capital Region will have to breathe air filled with poisonous particles in the coming weeks.

A look at the facts. This year in October, the number of stubble burning cases in Punjab increased by 33.5 per cent. From September 15 till October 28, 10,214 paddy residue burning cases were registered in Punjab. Last year, this number was 7,648 only during the same period.

Nearly 71 per cent farm fires in Punjab have been reported only from seven districts, Amritsar, Sangrur, Firozpur, Gurdaspur, Kapurthala, Patiala and Tarn Taran. These are the traditional ‘hot spot areas’ where paddy stubble is burnt every year. A steep rise of about 69 per cent in farm fires (7,100) was noted in the last seven days, thereby causing a haze in the entire National Capital Region. This is the situation when only 45 to 50 per cent of sown area in Punjab has been harvested.

In neighbouring Haryana, cases of stubble burning has shown a decline of nearly 24.5 per cent. From September 15 to October 28, only 1,701 stubble burning cases were reported in Haryana this year, compared to 2,252 last year. In western UP, the number of far fires declined from 43 last year to 30 this year till now. The Centre has prepared maps of farm fire incidents in the states of Punjab, Haryana and UP (adjoining NCR). The maps clearly show that farm fire incidents have taken place in Punjab on a large scale, causing layer of haze in the National Capital Region.

Why didn’t Punjab government use 1,20,000 stubble management machineries sent by the Centre? When Centre asked Punjab government about this, it hurriedly started sending these machines to the farmers.

When Punjab science, technology and environment minister Gurmeet Singh Meet Hayer was asked about stubble burning, he replied: “It is an old problem. It will take time to solve. AAP government is trying its best. Decomposing stubble will take time. Number of stubble burning cases is now low.”

On one hand, the AAP minister in Punjab is saying this, while his party chief Delhi CM Arvind Kejriwal is describing decomposers as the best method for managing stubble. India TV reporter met farmers in Delhi and found another type of problem. Several farmers said they made several requests to officials for decomposers, but failed to get them in time. One farmer said, “an official came last year, he got decomposer chemical sprayed on one acre, but, on paper, he should chemical was sprayed on 10 acres of farmland.” Another farmer said, when he went to local officials for decomposer chemical spraying, after harvest, he was told that the time for spraying is now over.

Delhi BJP MLA O.P. Sharma alleged that Kejriwal government spent Rs 7.5 crore on publicity and ads, and in comparison, it spent only Rs 3.5 lakhs on buying decomposer chemical spray.

The only silver lining is from neighbouring Haryana, where stubble burning cases have declined by nearly 25 per cent. Haryana chief minister Manohar Lal Khattar adopted a carrot-and-stick method. His officials helped farmers in swiftly disposing paddy stubble, and also fined farmers who burnt stubble in the field.

There is no doubt that the approach of AAP government in Punjab on paddy stubble management was weak, and it lacked decisiveness. Neither the seeder machines reached farmers in time, nor decomposer chemical spray was distributed. In the days to come, more stubble burning incidents will take place in Punjab, and it will surely play havoc with the air quality in NCR. The air that the people of Delhi breather will become lethal.

Had there been a Congress or BJP government in Punjab, Kejriwal would have lost no time in alleging that both these parties hate the people of Delhi. He would have alleged saying these parties want to poison the people of Delhi because they support AAP. But now, Kejriwal’s problem is that his party is in power in both Delhi and Punjab, and he has nobody to pick as target.

On Tuesday, Delhi deputy CM Manish Sisodia came with a new idea. Sisodia said, the major cause of pollution in Delhi is the three large hills of garbage that exist, and disposal of garbage is the responsibility of Municipal Corporation of Delhi, ruled by BJP. In other words, according to him, it is BJP which is responsible for Delhi’s air pollution.

The hard fact is that Kejriwal, during his eight-year-long rule in Delhi, has only mouthed platitudes, but did not take any concrete action. He implemented “Odd Even” rule for vehicles in Delhi, set up smog towers, banned use of firecrackers on Diwali night, stopped work in factories and brick kilns, but all these steps were merely cosmetic.

The people of Delhi are, after all, human beings. They pay taxes. They have the right to life. Why are they being forced to breathe polluted air? What sins have the people of Delhi committed that their age will decline by ten years, if they continue to breathe polluted air? Kejriwal must reply.

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