Can Nitish Kumar unite all opposition parties ?
Janata Dal (United) chief and Bihar chief minister Nitish Kumar is meeting opposition leaders of all hues in his efforts to bring about unity among all non-BJP parties, with an eye on 2024 Lok Sabha elections.
On August 31, Telangana Rashtra Samiti chief and Telangana CM K. Chandrashekhar Rao met Nitish Kumar in Patna to discuss ways and means to forge opposition unity. There were media reports that the talks failed to make headway after KCR insisted on keeping the Congress out of any front, while Nitish Kumar insisted that there cannot be opposition unity without the inclusion of Congress and Left parties.
At the joint press conference in Patna, their body language was easily discernible. Nitish Kumar stood up to leave, when reporters asked questions about the probable PM candidate. KCR persuaded Nitish Kumar several times saying ‘Baithiye’, while Nitish refused to take the questions, and persuaded KCR to leave, by telling him ‘Chaliye’.
On Monday, Nitish Kumar met RJD supremo Lalu Prasad Yadav in Patna to seek his advice, before emplaning for New Delhi. He called on the ailing RJD leader, who is staying in the official residence of his wife Rabri Devi. Reports said, Lalu Prasad explained to Nitish Kumar about the nitty-gritties on how to tackle obstacles in the path of opposition unity. Lalu’s son and deputy CM Tejashwi Yadav was present at the meeting. Asked by reporters about the talks, Nitish Kumar evaded and said, “Lalu ji is like my elder brother. I had come to seek his blessings. Both of us have the same thoughts.”
What Nitish Kumar declined to reveal, was spelt out by his deputy CM Tejashwi Yadav. He said, “Nitish Kumar has been assigned the task to mobilize all opposition parties. If all opposition parties unite, the 2024 elections will be tough for BJP.”
In Delhi, Nitish Kumar met Congress leader Rahul Gandhi for one hour at the latter’s residence. Later, speaking to reporters, Nitish Kumar emphatically said, “I have no intention of pitching myself as the prime ministerial candidate. BJP is trying to weaken regional parties and my effort is to unite opposition parties before the general elections.”
Asked by a reporter whether he would agree to become the PM candidate, if all the parties agree on his name, Nitish Kumar was non-committal. He said, “I have not thought about it. I only think about myself”. This remark has kept the field open for different interpretations.
Nitish Kumar on Monday also met Janata Dal (Secular) chief H.D.Kumaraswamy and discussed efforts for opposition unity. It may be recalled that Kumaraswamy, after the fall of his government in Karnataka, had broken his alliance with Congress in the state.
On Tuesday, Nitish Kumar met CPI(M) general secretary Sitaram Yechury and CPI leader D. Raja. Asked by reporters about the prime ministerial candidate, Nitish Kumar again said, “I am not even the claimant (for PM candidature). I don’t even desire it….Our entire focus is to unite all regional parties, the Left parties and the Congress. It can be a big development if all these parties come together.”
Nitish Kumar’s meetings with opposition leaders have raised some hopes among the Left leaders. On Monday, Yechury said, “Nitish Kumar has admitted that he made a mistake by aligning with the BJP. Opposition parties will surely welcome him back. As far as the question of PM candidature is concerned, Nitish Kumar has all the qualities to become the PM, but this is not the time to discuss such issue.”
Nitish Kumar, on Sunday, had publicly admitted in his party national executive that he made a big mistake in aligning with BJP in 2017. “I will not make this mistake again”. The same day, former Bihar deputy CM and BJP leader Sushil Modi replied, by saying “Nitish Kumar has admitted his mistakes several times in the past. In 2013 too, he had admitted his mistake in aligning with BJP. In 2017, he had publicly vowed never to align with RJD again, and now he is saying again, he made a mistake by aligning with BJP. That is why Lalu Yadav gave him the title ‘Palturam’ ”.
On Tuesday, Nitish Kumar called on Delhi CM and Aam Aadmi Party chief Arvind Kejriwal. He will also meet Nationalist Congress Party supremo Sharad Pawar, Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav and INLD party chief Om Prakash Chautala to discuss ways and means for achieving opposition unity.
Overall, I find, there is not a single opposition leader who is staking claim for the post of PM. Almost all of them have been saying in public that they have no such intention. After from Nitish Kumar, Rahul Gandhi, Arvind Kejriwal, KCR and Mamata Banerjee have also been saying that they have no intention of becoming PM. But the ground reality is that that the fight is over the PM’s chair. All the discussions become futile when the issue of candidature for PM crops up. In the past, there had been several efforts to unite the opposition against Narendra Modi.
As far as Nitish Kumar is concerned, several top leaders of both RJD and JD(U) have disclosed that Lalu Prasad agreed to support Nitish for the post of Bihar CM, only on the condition that the latter will remain chief minister for now, and before the 2024 general elections, Nitish Kumar should involve himself in national politics, and leave the chief minister’s throne for Tejashwi Yadav. This is the reason, why Nitish Kumar is desperately trying to persuade opposition parties of all hues to form an anti-Modi front. Nitish has already started preparations for 2024 elections.
आईएनएस विक्रांत आत्मनिर्भर भारत का जीता-जागता प्रतीक
2 सितंबर 2022, हर हिन्दुस्तानी के लिए गर्व का दिन है। इस दिन भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया जिनके पास एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का हुनर, हौसला, ताकत और काबिलियत है। इस नेवी को देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर मिल गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र को समर्पित कर दिया। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस के बाद भारत छठा देश है, जिसने स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया है। दूसरी बात ये रही कि भारतीय नौसेना के झंडे से गुलामी के एक बोझ को हटा दिया गया। नौसेना के झंडे से औपनिवेशिक शासन का प्रतीक सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाकर उसकी जगह मराठा सम्राट शिवाजी महाराज से प्रेरित नौसेना के नए झंडे का अनावरण किया गया।
आईएनएस विक्रांत को 20 हजार करोड़ की लागत से 13 वर्षों में तैयार किया गया है। इसके निर्माण में स्वदेशी सामग्री और कौशल का इस्तेमाल किया गया है। यह प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत का एक शानदार प्रमाण है। यह भारत के उभरते रक्षा क्षेत्र की ताकत और क्षमता को प्रदर्शित करता है। इसमें मिलिट्री ग्रेड स्टील का उपयोग किया गया है। इस एयरक्राफ्ट कैरियर में 76 प्रतिशत सामान ऐसा लगा है जो भारत में ही बना है। विक्रांत को बनाने में बड़ी कंपनियों के अलावा सौ से भी ज़्यादा छोटी भारतीय कंपनियों ने भी अपनी भूमिका अदा की है।
आईएनएस विक्रांत पर एक वक्त में 20 फाइटर जेट्स, 10 हेलीकॉप्टर, 32 मिसाइलें और 4 AK-320 तोपें तैनात रहेंगी। यह समुद्र में दूर-दूर तक दुश्मन पर निशाना साधने में सक्षम होंगी। इस एयरक्राफ्ट कैरियर पर मिग-29K के साथ-साथ, MH-60 और कामोव-31 हेलीकॉप्टर भी तैनात रहेंगे। यह एयरक्राफ्ट सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स द्वारा विकसित अत्याधुनिक संचार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम से लैस है।
आईएनएस विक्रांत समंदर में तैरता हवाई अड्डा है। इसकी लंबाई 262 मीटर, चौड़ाई 62 मीटर और ऊंचाई 59 मीटर है। भारतीय नौसेना के बेड़े में सबसे जटिल एकीकृत प्लेटफार्म प्रबंधन प्रणाली (आईपीएमएस) विक्रांत के पास है। आईएनएस विक्रांत का हैंगर बे फुटबाल के दो मैदानों के बराबर है। इसके डेक पर 12 फाइटर जेट और 6 हेलिकॉप्टर पार्क किए जा सकते हैं। यह एयरक्राफ्ट कैरियर समुद्र में 400 किमी तक के दायरे में पैनी नजर रख सकता है। यह विमान भेदी तोपों और मिसाइलों से पूरी तरह लैस है। इसमें कुल 2300 कंपार्टमेंट हैं जिसमें एक वक़्त में 1700 नौसैनिक और अधिकारी रह सकते हैं। दरअसल यह अपने आप में तैरता हुआ एक मिलिट्री बेस है जो एंटी सबमरीन और एंटी सरफेस वारफेयर सिस्टम से लैस है।
टेक ऑफ और लैंडिंग के लिए विक्रांत के डेक पर दो रनवे है। एक रनवे लंबा है जबकि दूसरा छोटा है। 16 बेड का हॉस्पिटल है और तीन किचन हैं जहां कम से 5000 लोगों का भोजन हर रोज बनाया जा सकता है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बीएचईएल (भेल), हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड, मिश्र धातु निगम, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स, केल्ट्रोन, लार्सन एंड टुब्रो, वार्टसिला इंडिया, जॉनसन कंट्रोल्स इंडिया और किर्लोस्कर ने इस स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण में भागीदारी की।
वहीं अमेरिका के पास दुनिया का सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस जेराल्ड आर. फोर्ड है। यह 337 मीटर लंबा और 78 मीटर चौड़ा है। एक लाख टन वज़न वाले इस एयरक्राफ्ट कैरियर पर एक वक़्त में साढ़े चार हज़ार से ज्यादा सैनिक और 80 फाइटर प्लेन तैनात होते हैं। इसकी तुलना में चीन का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर फुजियान 316 मीटर लंबा और 76 मीटर चौड़ा है। इसका वज़न 80 हज़ार टन से ज़्यादा है। चीन ने इस एयरक्राफ्ट कैरियर को जून में लॉन्च किया था। फिलहाल इस एयरक्राफ्ट कैरियर की फिटिंग की जा रही है। चीन के इस एयरक्राफ्ट कैरियर पर एक वक़्त में 40 से ज़्यादा फाइटर प्लेन तैनात किए जा सकेंगे।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, विक्रांत विशाल है, विराट है, विहंगम है। यह आजादी के अमृत महोत्सव का अतुलनीय अमृत है। यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भारत की दृढ़ इच्छा शक्ति को दर्शाता है। मोदी ने कहा-‘यह विश्व क्षितिज पर भारत के बुलंद होते हौसलों की हुंकार है। हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के सपने को साकार कर रहे हैं, जिन्होंने एक सक्षम और मजबूत भारत की कल्पना की थी। विक्रांत हमारे सामने आने वाली चुनौतियों को भारत का जवाब है।’
पीएम मोदी ने गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया और डेक से हेलिकॉप्टरों के फ्लाइ पास्ट को देखा। इसमें कोई संदेह नहीं कि आईएनएस विक्रांत के भारतीय नौसेना में शामिल होने से उसकी ताकत और क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ेगा। विक्रांत दुश्मन को डुबाने में बहुत बड़ी शक्ति साबित होगा। यही वजह है कि शुक्रवार को मोदी ने कहा, ‘आज भारत के लिए कोई भी चुनौती बहुत कठिन नहीं है। विक्रांत ने हमें एक नए आत्मविश्वास से भर दिया है।’
मोदी ने नेवी के लिए भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण के बारे में भी बताया। मोदी ने कहा, ‘हम एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक में विश्वास करते हैं। जैसे-जैसे भारत तेजी से 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेगा, वैश्विक व्यापार में हमारी हिस्सेदारी बढ़ेगी। वैश्विक व्यापार का एक बड़ा हिस्सा समुद्री मार्गों के माध्यम से होगा। ऐसी स्थिति में आईएनएस विक्रांत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यह हमारी सुरक्षा करने के साथ ही आर्थिक हितों की भी रक्षा करेगा। एक मजबूत भारत एक शांतिपूर्ण दुनिया का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।’
पीएम मोदी ने भारतीय नौसेना के नए झंडे का अनावरण किया जो आकार में अष्टकोणीय है। यह छत्रपति शिवाजी महाराज के शाही प्रतीक चिन्ह से प्रेरित है। इस तरह आधिकारिक तौर पर पहली बार स्वीकार किया गया कि शिवाजी आधुनिक भारतीय नौसेना के जनक थे। शिवाजी ने 1658-59 में अपनी नौसेना के लिए जहाजी बेड़ों का निर्माण किया।उन्होंने पुर्तगाली और स्थानीय विशेषज्ञों की मदद से 50 से अधिक लड़ाकू जहाजों का निर्माण किया था। ये गनबोट हल्की-फुल्की और तेज गति वाली नावें थीं। 1674 में उनके राज्याभिषेक के समय, उनके बेड़े में लगभग 700 जहाज थे।
नौसेना के नए ध्वज का अनावरण करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘भारतीय नौसेना के झंडे पर अब तक गुलामी की पहचान बनी हुई थी। लेकिन आज से छत्रपति शिवाजी से प्रेरित होकर नौसेना का नया झंडा समुद्र और आसमान में लहराएगा।’ लाल रंग का सेंट जॉर्ज क्रॉस आजादी के बाद से ही भारतीय नौसेना के झंडे का हिस्सा रहा है। इसे अब हटा दिया गया है। 2001 में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया था लेकिन तीन साल बाद जब यूपीए सरकार सत्ता में आई तब उस समय के प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सेंट जॉर्ज क्रॉस को वापस झंडे में शामिल कर लिया था। आखिरकार शुक्रवार को नरेंद्र मोदी ने इसे इतिहास के डिब्बे में डाल दिया।
जरा सोचिए, नौसेना को अंग्रेजों की निशानी से निजात दिलाने में 75 साल लग गए। नए अष्टकोणीय आकार का नीला रंग का झंडा छत्रपति शिवाजी महाराज के राज चिन्ह से प्रेरणा लेकर बनाया गया है। इसमें एक और नई चीज जोड़ी गई है वो है नौसेना का आदर्श वाक्य-श नो वरुण: । इसका अर्थ है ‘जल के देवता हमारे लिए शुभ हों।’
सेंट जॉर्ज क्रॉस भारत में औपनिवेशिक या गुलामी के शासन के प्रतीकों में से एक था। अंग्रेजों ने 200 साल हमारे देश पर राज किया। हमें आपस में लड़वाया और हमारे इतिहास को मिटाने की कोशिश की। अपनी शिक्षा नीति के जरिए गुलाम बनाने की कोशिश की। ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ कहने वालों पर दमन चक्र चलाया लेकिन न तो वे भारत को मिटा पाए और न ही भारतीयता को।
लेकिन एक कड़वा सच है यह भी है कि हमने अंग्रेजों से लड़कर आज़ादी तो हासिल कर ली पर बरसों के अंग्रेजों के शासन के कुछ निशान आज भी बाकी हैं। आजादी के 75 साल बाद भी गुलामी के बहुत सारे प्रतीक मौजूद हैं और सबसे बड़ा प्रतीक है अंग्रेजों की दी हुई मानसिकता।
मैं नरेंद्र मोदी की इस बात के लिए तारीफ करूंगा कि उन्होंने बार-बार लोगों को याद दिलाया कि हमें अंग्रेजों की दी हुई इस मानसिकता से मुक्ति पानी है। हमें अपने आप पर, अपनी विरासत पर और अपनी संस्कृति पर गर्व करना है इसीलिए ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे नारों की जरूरत पड़ी। इसलिए सेंट जॉर्ज क्रॉस का हटाया जाना गुलामी की मानसिकता को तोड़ने की तरफ एक कदम है। शुक्रवार को जब शिवाजी का प्रतीक लहराया तो सबको इस पर मान होना चाहिए था। मुझे ये देखकर हैरानी हुई कि हमेशा शिवाजी का नाम लेने वाले एनसीपी सुप्रीमो शरद राव पवार और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने भी नौसेना के नए झंडे में छत्रपति शिवाजी महाराज के शिवमुद्रा निशान को लेकर कुछ नहीं कहा।
आईएनएस विक्रांत का समुद्र में उतरना भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यही आत्मनिर्भरता भारत को आत्मगौरव की तरफ ले जाएगी और बिना आत्मगौरव के कोई भी देश दुनिया की महाशक्ति नहीं बन सकता।
INS Vikrant is a shining symbol of Atmanirbhar Bharat
September 2, 2022 was a day of pride for every Indian. After Prime Minister Narendra Modi commissioned India’s first indigenous aircraft carrier INS Vikrant in Kochi, India joined the select club of nations that build their own aircraft carriers. India is the sixth country after US, UK, Russia, China and France, which have built indigenous aircraft carriers. Secondly, the last vestige of colonial rule (St. George’s Cross) was removed from the ensign of Indian Navy. It was replaced by a new ensign inspired by the seal of Maratha emperor Shivaji Maharaj.
INS Vikrant, built at a cost of Rs 20,000 crore in 13 years, with fully indigenous material and skill, is a glowing testimonial to Prime Minister Modi’s push towards Atmanirbhar Bharat. It showcases the might and capability of the emerging Indian defence sector. Using military grade steel, nearly 76 per cent of the components of the carrier have been developed in India by defence public sector units, top private companies and over 100 medium and small scale units.
INS Vikrant can operate 20 aircraft like Mig-29K fighter jets, Kamov-31 and MH-60R multi-role helicopters, apart from advanced light helicopters. It has state-of-the-art communication and electronic warfare systems developed by public sector company Bharat Heavy Electricals.
Vikrant has the most complex Integrated Platform Management System (IPMS) in the entire Indian naval fleet. It is 262 metre long, 59 metre tall and 62 metre wide and its hangar bay is the size of two large football fields. 12 fighter jets and six helicopters can be parked on the carrier’s deck. The aircraft carrier can keep an eagle’s eye on a radius of nearly 400 km on high seas. It is fitted with anti-aircraft guns and missiles. There are 2,300 compartments in the ship which can house nearly 1,700 officers and other ranks of the Navy. The carrier can operate 20 fighter jets, 10 helicopters, 32 missiles, and is equipped with 4 AK-320 anti-aircraft guns. It is practically a floating military base equipped with anti-submarine warfare system and anti-surface warfare systems.
There are two runways, one long and the other short, on the deck for takeoff and landing. It has a 16-bed hospital and three galleys where at least 5,000 meals can be made every day with electrical appliances. Bharat Electronics Ltd, BHEL, Hindustan Aeronautics Ltd, Garden Reach Shipbuilders and Engineers, Cochin Shipyard Ltd, Mishra Dhatu Nigam, Tata Advanced Systems, Keltron, Larsen & Toubro, Wartsila India, Johnson Controls India and Kirloskar took part in building this indigenous aircraft carrier.
In comparison, USS Gerald R. Ford is presently the word’s biggest aircraft carrier, 337 m long and 78 m wide, weighing 1 lakh tonne and carrying more than 40,000 marines and 80 fighter planes. China’s biggest aircraft carrier is Fujian, which is 316 m long and 76 m wide, weighs more than 80,000 tonnes. It was launched in June and is presently undergoing fitting process. It can carry more than 40 fighter planes.
In his address, Prime Minister Modi said, Vikrant is massive, distinguished and special, it is the nectar (amrit) of our Amrit Mahotsav, it is reflects India’s strong will power to achieve its objectives. “It is a tribute to the rising spirits of India on the global horizon. We are realizing the dream of our freedom fighters, who envisioned a capable and strong India. Vikrant is India’s answer to the challenges that we face”, Modi said.
Modi inspected guard of honour and watched a fly past by helicopters from the deck. Undoubtedly, the induction of INS Vikrant will act as a force multiplier for the strength and capability of Indian navy. India can seek dominance in Indo-Pacific region and the carrier can act as a big deterrent for our enemies. That is why, Modi said on Friday, “No challenge is too difficult for India today. Vikrant has filled us with a new confidence”.
Modi also outlined India’s strategic vision for its blue water navy. “We believe in a free, open and inclusive Indo-Pacific. As India moves rapidly towards a $5 trillion economy, our share in global trade will increase. A large part of it will inevitably be through maritime routes. In such a situation, INS Vikrant will be crucial as it will safeguard our security and economic interests…A strong India will also pave the way for a peaceful world”, Modi said.
Modi unveiled Indian Navy’s new ensign that is octagonal in shape. It is inspired by the royal insignia of Chhatrapati Shivaji Maharaj, and it officially acknowledges for the first time that Shivaji was the progenitor of the idea of a modern Indian navy. Shivaji built his fleet of naval vessels in 1658-59, and at the peak of his power, he had built more than 50 combat vessels, with the help of Portuguese and local experts. These were gun boats, and lightly-built, but speedy boats. At the time of his coronation in 1674, he had around 700 vessels in his fleet, counting the number of trade vessels.
While unveiling the new ensign, Modi said, “Till now, the identity of slavery remained on the flag of Indian Navy. But from today onwards, inspired by Chhatrapati Shivaji, the new Navy flag will fly in the sea and in the sky.” The red coloured St George’s cross had been part of the ensign of Indian Navy since independence. This has now been done away with. In 2001, Prime Minister Atal Bihari Vajpayee had removed the St. George’s Cross, but three years later, the UPA government’s Prime Minister Dr Manmohan Singh brought back the Cross. It was finally consigned to the bin of history on Friday by Narendra Modi.
It took 75 years to remove the last vestige of colonial rule. The new octagonal shaped blue coloured ensign is inspired from Shivaji’s ceremonial insignia, and the Indian Navy’s motto “Sha No Varunah” has been added to the ensign. It means, “May the God of Seas be auspicious for us”.
St. George’s Cross was one of the symbols of colonial rule in India. St George was a Christian crusader in Europe. For nearly two centuries, the British ruled India, they pursued the policy of ‘divide and rule’ and enslaved us. They tried to make changes in our history, culture and education system. They used the instrument of Macaulay’s education policy to enslave us in mind and spirit. They oppressed those who chanted the slogans of ‘Vande Mataram’ and ‘Bharat Mata Ki Jai’. But they could not stamp out our culture, nor our Indian identity.
It is also a bitter truth that though we won freedom after a long struggle, we did not get rid of all the vestiges of colonial rule during the last 75 years. There are still many symbols of slavery present in India. The biggest vestige of slavery still left is the mindset that the British rulers had given us.
I would like to applaud Narendra Modi for telling the people of India to get rid of this mental slavery. We must have pride in our great heritage, our culture and our traditions. It was Modi who gave us the slogans ‘Vocal for Local’ and ‘Atmanirbharta’. I was surprised why NCP supremo Sharad Pawar and Shiv Sena chief Uddhav Thackeray did not say a word on Friday, when the ‘Shiva Mudra’ (seal of Shivaji) was adopted as inspiration for the new naval ensign.
The commissioning of INS Vikrant is a big symbol of India’s march towards ‘Atmanirbharta’. It is through self-reliance that we can gain ‘Atma Gourav’ (self-pride). Without Atma Gourav, India can never become a super power.
मुस्लिम नेता मदरसों के सर्वे का विरोध क्यों कर रहे हैं?
उत्तर प्रदेश के सभी गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने के राज्य सरकार के निर्देश पर कई मुस्लिम नेताओं ने आपत्ति जताई है। इस कदम का मकसद छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की संख्या, सिलेबस और किसी भी गैर सरकारी संगठन के साथ इन मदरसों के लिंक के बारे में जानकारी जुटाना है।
यह सर्वे 5 अक्टूबर तक पूरा हो जाएगा। यह सर्वे SDM, बेसिक शिक्षा अधिकारी और जिला-स्तरीय अल्पसंख्यक मामलों के अधिकारी की टीमों द्वारा किया जाएगा। टीमें अपनी सर्वे रिपोर्ट ADM को सौंपेंगी, जो बाद में इसे DM को भेजेंगे। निर्देश में कहा गया है कि जिलाधिकारी को 25 अक्टूबर तक सर्वे रिपोर्ट सरकार को देनी होगी।
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस सर्वे को कराने के पांच मकसद बताए हैं।
पहला, सरकार यह पता लगाना चाहती है कि पूर् प्रदेश में कितने ऐसे मदरसे हैं, जिन्हें सरकारी मान्यता नहीं मिली है। दूसरा, इन मदरसों में कितने बच्चे पढ़ रहे हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं या नहीं। तीसरा, मदरसे में छात्रों की संख्या के लिहाज से जरूरी कक्षाएं और शिक्षक हैं या नहीं और बच्चों के बैठने का पूरा इंतजाम किया गया है या नहीं। चौथा, मदरसों के छात्रों को क्या पढ़ाया जा रहा है, किस सिलेबस के तहत पढ़ाई हो रही है और बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक और मौलाना पढ़ाने के योग्य हैं या नहीं। पांचवा, मदरसों का ख़र्च कैसे चलता है, उनकी आमदनी का क्या जरिया है और उनका खर्चा कितना है। इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को बेहतर और आधुनिक शिक्षा देने में सरकार की मदद करने के लिए ये डेटा एकत्र किया जा रहा है।
यह सर्वे सभी मदरसों की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सक्रिय दृष्टिकोण का हिस्सा है। अल्पसंख्यक मामलों और मुस्लिम वक्फ मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा, इन मदरसों में कार्यरत महिला कर्मचारियों को माध्यमिक शिक्षा विभाग और बेसिक शिक्षा विभाग में लागू नियमों के अनुरूप मातृत्व अवकाश और बाल्य देखभाल अवकाश भी मिलेगा। यह सर्वे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की अपेक्षा के मुताबिक किया जाएगा, जो मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर चिंतित है।
AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने इस निर्देश पर आपत्ति जताई और इसे ‘मिनी-NRC’ करार दे दिया। ओवैसी ने आरोप लगाया कि यूपी सरकार सूबे में मुसलमानों को परेशान कर रही है। उन्होंने कहा कि कुछ मदरसे यूपी मदरसा बोर्ड के अंतर्गत आते हैं और संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। ओवैसी ने कहा, ‘बीजेपी मुसलमानों से नफरत करती है। वह हम पर नमाज अदा करने पर पाबंदी लगाना चाहती है, हमें कुरान पढ़ने से रोकना चाहती है। यही वजह है कि मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है। देश में मिनी-NRC शुरू हो गया है।’
हालांकि, NCPCR के चेयरमैन प्रियंक कानूनगो ने ओवैसी के तर्क को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘ओवैसी झूठ बोल रहे हैं और अल्पसंख्यकों को गुमराह कर रहे हैं। वह बच्चों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। सरकार को गैर मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की हालत जानने का पूरा हक है। पूरे भारत में 1.1 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम बच्चे गैर-मानचित्रित और गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हैं। अनुच्छेद 30 यहां लागू नहीं होता है क्योंकि सरकार उन बच्चों के अधिकारों की संरक्षक है जो स्कूलों में नहीं पढ़ रहे। यूपी सरकार को गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के आंकड़े जुटाने का पूरा अधिकार है।’
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि ऐसा सर्वे तो देश के सभी मदरसों का होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मोदी जी मदरसों को आधुनिक बनाना चाहते हैं, लेकिन ओवैसी जैसे नेता इसके खिलाफ हैं। वे चाहते हैं कि मुसलमानों के बच्चे आधुनिक शिक्षा से दूर रहें, वे सिर्फ इस्लामी तालीम लें और उनकी गुलामी करें।’
ओवैसी ने कहा कि मुसलमान मदरसों की वजह से नहीं, सरकारी उपेक्षा की वजह से पिछड़े रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मदरसों में तो बच्चों को इंसान बनाया जाता है। सरकार उन मदरसों का सर्वे करे जो सरकारी मदद से चलते हैं। वह प्राइवेट मदरसों का सर्वे क्यों कर रही है? एक तरफ तो यूपी के सरकारी स्कूलों में टीचर नहीं हैं, बिल्डिंग्स की हालत खराब है, टीचर्स को वक्त पर सैलरी नहीं मिल रही है और सरकार इन सारे मुद्दों को छोड़कर सिर्फ मदरसों के पीछे पड़ी है।’
यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिकार अहमद जावेद ने इसका जवाब देते हुए कहा, ‘अगर सरकार मदरसों की हालत सुधारना चाहती है तो उसमें बुराई क्या है? मोदी जी चाहते हैं कि हर मुस्लिम बच्चे के एक हाथ में कंप्यूटर हो और दूसरे हाथ में कुरान हो।’
मुंबई में इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन रजा एकेडमी के प्रमुख मौलाना सईद नूरी ने सर्वे पर आपत्ति जताते हुए कहा, ‘अगर सरकार सभी मदरसों को मान्यता देना चाहती है तो ठीक है, लेकिन हकीकत यह है कि सरकार मदरसों का भला नहीं करना चाहती। वह तो मदरसों की आड़ में माहौल को सांप्रदायिक बनाना चाहती है।’
देवबंद के दारुल उलूम के मौलाना मसूद मदनी ने कहा कि सरकार इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, ‘सरकार गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे के नाम पर गरीब मुसलमानों के बच्चों को पढ़ने से रोकना चाहती है।’
लखनऊ में शैखुल आलम साबरिया चिश्तिया मदरसा के प्रिंसिपल मौलाना इश्तियाक अहमद कादरी ने कहा, ‘मुसलमान तो आज के दौर में राजनीति के फुटबॉल बन गए हैं। कोई उनके विरोध की राजनीति कर रहा है तो कोई उनके समर्थन में खड़ा होकर अपनी सियासत चमका रहा है। अगर सर्वे के बाद मदरसों की परेशानियां दूर की जाएं तो ठीक, वरना अभी तो यह सियासी कदम ही लगता है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके अपने मदरसे ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं, लेकिन मान्यता नहीं मिली। उन्होंने कहा, ‘हम 8 साल से इंतजार कर रहे हैं, और सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बावजूद हमें अभी तक मान्यता नहीं मिली है।’
इंडिया टीवी की रिपोर्टर रुचि कुमार ने लखनऊ के एक मदरसे में कुछ छात्रों और शिक्षकों से मुलाकात की। उनमें से अधिकांश ने सर्वे के फैसले का स्वागत किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2017 में सत्ता में आने के बाद मदरसों के आधुनिकीकरण की पहल की थी। उन्होंने 2017 में एक पोर्टल बनाया था जिसमें सभी मदरसों को रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने की इजाजत दी गई थी। अब तक 16,513 मदरसों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है, जिनमें से 558 मदरसों को सरकारी अनुदान मिल रहा है। योगी सरकार ने उनके सिलेबस में NCERT की किताबों को शामिल किया, मदरसे के छात्रों के लिए एक लर्निंग ऐप लॉन्च किया, मदरसों में परीक्षा के दौरान नकल रोकने के लिए वेब कैम लगवाए और सबसे ज्यादा नंबर पाने वाले छात्रों को 1 लाख रुपये और टैबलेट दिए।
यह बात सही है कि ज्यादातर मदरसों में गरीब मुसलमानों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए अगर यूपी सरकार सर्वे करवा कर प्राइवेट मदरसों की हालत पता करवाकर उनकी मदद करती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ओवैसी को चाहिए कि सरकारी मदद से चल रहे मदरसों में जाएं और पता करें कि क्या वहां मैथ्स, साइंस, कंप्यूटर और इंग्लिश पढ़ने वाले बच्चों ने कुरान और नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
यह सिर्फ बहकाने वाली बात है और इसे लेकर लोगों को भड़काना नहीं चाहिए। योगी सरकार अगर अच्छी नीयत से मदरसों का सर्वे करवा रही है तो उसका समर्थन करना चाहिए। यूपी में 16,513 मदरसे हैं जिनमें से अगर सिर्फ 558 को सरकारी मदद मिल रही है तो यह हैरानी की बात है। सरकारी मदद पाने वाले मदरसों की संख्या बढ़नी चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि सरकारी मान्यता के लिए नियम कड़े होते हैं। मदरसे एरिया डिफाइन होता है, क्लासरूम का साइज तय होता है, सुविधाएं तय होती हैं। जो मदरसे 2-2 कमरों में चल रहे होते हैं, वे मान्यता की शर्तों को पूरा नहीं कर पाते। इसलिए सरकार को मान्यता प्रप्ता करने की शर्तों में भी ढील देने पर विचार करना चाहिए।
और भी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। असम सरकार ने हाल ही में गोवालपारा, बरपेटा और बोंगाईगांव में 3 मदरसों पर बुलडोजर चलवा दिया था। इन मदरसों में काम करने वाले 37 लोगों को AQIS (भारतीय उप-महाद्वीप में अल कायदा) और बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला के साथ संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था। मदरसे चलाने की आड़ में ये लोग देश विरोधी गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थे। उनमें से कुछ मदरसों में मुस्लिम छात्रों को बतौर मौलवी पढ़ा रहे थे।
असम के मुख्यमंत्री हिमन्त विश्व शर्मा ने कहा कि उनकी सरकार किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है, लेकिन अगर मदरसे आतंकवादी तत्वों की मदद करते पाए गए तो सरकार वहां बुलडोजर चलाएगी। शर्मा ने कहा, ‘हमारा इरादा सिर्फ यह है कि जिहादी तत्व मदरसों का इस्तेमाल न करने पाएं। जब मदरसों का इस्तेमाल जिहादी गतिविधियां चलाने या जिहादी विचारधारा के प्रचार के लिए नहीं होगा तो उन्हें गिराया ही क्यों जाएगा?’
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के नेता बदरुद्दीन अजमल ने कहा, अगर किसी मदरसे में कोई गड़बड़ आदमी मिलता है तो सरकार उसे पकड़ ले, पूरे मदरसे को गिराने की क्या जरूरत है। उन्होंने पूछा, ‘सरकार सबको सजा क्यों दे रही है?’
हिमन्त विश्व शर्मा शुरू से ही मदरसों को लेकर सख्त रुख अपनाते रहे हैं। 2020 में जब वह शिक्षा मंत्री थे तो उन्होंने विधानसभा से कानून पास कराकर असम के सभी सरकारी मदरसे बंद कर दिए थे। गुरुवार को उन्होंने कहा, ‘हम सिर्फ उन्हीं मदरसों के खिलाफ ऐक्शन ले रहे हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे थे। मैं मदरसों में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चों से मिला हूं। उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे दीन की, इस्लाम की तालीम ही नहीं लेना चाहते। वे सब या तो डॉक्टर बनना चाहते हैं या इंजीनियर।’
अगर किसी मदरसे को चलाने वाले के लिंक दहशतगर्दों के साथ पाए जाएं तो उस मदरसे पर बुलडोजर चलाने पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। अगर किसी मदरसे में आतंकवाद की तालीम दी जाती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होना ही चाहिए। लेकिन सरकार इस बात का ध्यान रखे कि बेकसूर बच्चों की पढ़ाई का हर्ज ना हो। अगर मदरसों में दीनी तालीम के साथ कंप्यूटर की पढ़ाई हो, आधुनिक शिक्षा दी जाए तो इससे फायदा छात्रों का ही होगा और वे भी इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर सकेंगे।
Why Muslim leaders are opposing survey of madrassas
Several Muslim leaders have raised objections over the UP government’s directive for conducting a survey of all unrecognized madrassas in the state. The move is aimed at collecting information about the number of students, teachers and staff, curriculum and the affiliation of these madrassas with any NGO.
The survey will be completed by October 5 and it will be carried out by teams comprising of sub-divisional magistrate, Basic Shiksha Adhikari and district-level minority affairs officer. The teams will submit their survey reports to the additional district magistrate, who, in turn, will forward it to the district magistrate. The district magistrate will have to submit the survey report to the government by October 25, the directive said.
Yogi Adityanath’s government has stated five objectives about this survey.
One, to find out how many madrassas in UP are yet to get government recognition, Two, how many children are studying in these madrassas and whether they are being provided adequate facilities, Three, whether the numbers of class rooms and teachers are adequate compared to the number of students, so that children get adequate space to sit down in classrooms and study, Four, the curriculum that is being followed for imparting education, whether the teachers and maulanas are themselves qualified for teaching or not, and Five, the source of income of these madrassas, and the expenditure that is being incurred. These data are being collected to help the government in providing better and modern education to students studying in these madrassas.
The survey to be conducted is part of Chief Minister Yogi Adityanath’s pro-active approach towards improving the education system in all madrassas. Danish Azad Ansari, UP minister for minority affairs and Muslim Waqf, said, maternity leave and child care leave will be given to female employees working in these madrassas in accordance with the rules prepared by Department of Secondary Education and Basic Education. The survey will be carried out as required by the National Commissioner for Protection of Child Rights (NCPCR) which is concerned about availability of basic facilities to children studying in madrassas.
AIMIM chief Asaduddin Owaisi objected to the directive and described it as a “mini-NRC(National Register of Citizens)”. Owaisi alleged that the UP government was harassing Muslims in the state. He said, some madrassas are under the UP Madrassa Board, and under Article 30 of the Constitution, the government cannot interfere with the rights of minorities. Owaisi said, “BJP hates Muslims. They want to impose restrictions on us for offering namaaz prayers, they want to restrict us from reading the Holy Quran. That is why madrassas are being targeted. This is nothing but a mini-NRC.”
However, NCPCR chairman Priyank Kanoongo rebutted Owaisi’s argument. He said, “Owaisi is lying and misleading minorities. He is playing with the rights of children. Government has every right to find out the conditions of children studying in unrecognized madrassas. Over 1.1 crore Muslim children are studying in unmapped and unrecognized madrassas across India. Article 30 is not applicable here because government is the custodian of the rights of children who are out of school. UP government has every right to collect data on children studying in unrecognized madrassas”.
Union Minister Giriraj Singh said, such a survey of madrassas should be carried out in the whole of India. “Modiji wants to modernize education in madrassas, but leaders like Owaisi are creating obstacles. These leaders want Muslim children to stay away from modern education, study Islamic scriptures only and continue to be their slaves”, Singh said.
Owaisi said, Muslims have remained backward not because of madrassas but because of neglect and indifference on part of the government over the years. “In madrassas, we try to make our children responsible citizens. Let the government conduct survey of only those madrassas which get assistance from the state. Why is it surveying private madrassas? On one hand, there are no teachers in government schools, and the buildings are in a dilapidated condition, teachers do not get salaries on time, but the UP government, instead of focussing on such issues, is trying to harass madrassas”, Owaisi said.
UP Madrassa Board chief Iftikhar Ahmed Javed reacted: ‘What is there to object if the government wants to improve the conditions of madrassas? Modiji wants every Muslim child to have a computer in one hand and the Quran in the other”, Javed said.
In Mumbai, the Islamic radical outfit Raza Academy’s chief Maulana Saeed Noori objected to the survey, saying “if the government wants to give recognition to all madrassas, let it do so, but the fact is that the government does not want to help the madrassas. It wants to communalize the atmosphere”.
Maulana Masood Madni of Darul Uloom, Deoband, said the government is trying to communalize the issue. “In the name of surveying unrecognized madrassas, they want to prevent poor Muslim children from getting education”, he said.
In Lucknow, Maulana Ishtiaq Ahmed Qadri, principal of Sheikhul Alam Sabria Chishtia Madrassa said, “Muslim community is being made a football, both by Muslim-haters and those who want to do politics by supporting them. If the survey proves beneficial for madrassas, let it happen, but, for now, it appears to be a political move”. He alleged that his own madrassa had completed all formalities for securing recognition for government. “We have been waiting since eight years, and are yet to get recognition, despite fulfilling all requirements”, he said.
India TV reporter Ruchi Kumar met some students and teachers in a madrassa in Lucknow. Most of them welcomed the survey. Chief Minister Yogi Adityanath had initiated modernization of madrassas after coming to power in 2017. He created a portal in 2017 allowing all madrassas to apply for registration. Till date, 16,513 madrassas have registered themselves, out of which 558 madrassas are getting government grants. Yogi government added NCERT books in their curriculum, launched a learning app for madrassa students, installed web cams to stop cheating during exam inside madrassas and gave Rs 1 lakh and tablet to students who got the highest marks.
Most of the Muslim students in madrassas come from poorer sections of society, and there is nothing wrong if the UP government conducts a survey to collect information about their conditions. I would rather want Owaisi to go to those madrassas that are being run with government assistance, and find out whether Muslim students studying maths, science, computer and English, have stopped reading Quran or offering namaaz.
There is no point in inciting people on a non-issue. Yogi government’s intentions are good, and we should support this move. If only 558 out of 16,513 madrassas in UP are getting government aid, it is a serious issue. This number must increase. The parameters for recognition set by the UP government are strict. The area of madrassa is defined, the size of each classroom is fixed, the number of facilities provided are clearly mentioned. The fact is, madrassas which run in only two rooms, fail to fulfil the conditions for recognition. The state government, after taking note of this, must relax these norms so that more madrassas can get recognition.
There are other issues too, which need to be taken care of. The Assam government recently demolished three madrassas, in Goalpara, Barpeta and Bongaigaon, after 37 persons working in these madrassas were arrested for links with AQIS (Al Qaeda in Indian Sub-continent) and Ansarullah Bangla, a Bangladeshi terror outfit. These people, in the garb of running madrassas, were actively involved in anti-national activities. Some of them, in the garb of moulvis, were teaching Muslim students in madrassas.
Assam chief minister Himanta Biswa Sarma has said, his government is not against any community, but if madrassas are found helping terrorist elements, they will be demolished with the help of bulldozers. “Our government wants that jihadi elements must not enter madrassas. If any madrassa does not support terror and jihadi forces, there is no need to demolish them”, Sarma said.
All India United Democratic Front (AIUDF) chief Badruddin Ajmal said, the entire madrassa cannot be punished for the anti-national activities of a few individuals. “Why is the government punishing all”, he asked.
Himanta Biswa Sarma is a tough leader. In 2020, when he was Education Minister, he had got a law passed in Assembly, ordering closure of all madrassas in the state. On Thursday, he said, ‘we are acting only against those madrassas which were encouraging terrorism. “I have met Muslim students in madrassas. Most of them said, they do not want to study religious scriptures, they want modern education and become doctors or engineers”, Sarma said.
No patriotic Indian will ever tolerate any terror activity inside a madrassa. If any moulvi is found teaching terrorist ideology to students in a madrassa, stringent action must be taken. But the government must also ensure that the education of innocent students must not suffer. Children must be allowed to pursue modern education and fulfil their dreams to become doctors or engineers.
शर्मनाक: छात्रों ने अपने शिक्षक को पेड़ से बांधकर पीटा
झारखंड के दुमका से एक शर्मसार कर देने वाली खबर सामने आई है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे एक अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय के आदिवासी छात्रों ने सोमवार को कक्षा 9 की प्रैक्टिकल परीक्षा में कम नंबर देने के लिए अपने गणित के टीचर और एक क्लर्क की पेड़ से बांधकर पिटाई की।
इसके बाद छात्रों ने पूरी घटना के वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। वीडियो के वायरल होने के बाद स्थानीय अधिकारियों ने मामले का संज्ञान लिया। कक्षा में 32 छात्रों में से 11 को ग्रेड डीडी (डबल डी) मिला था, जिसे फेल होने के बराबर माना जाता है। झारखंड एकेडमिक काउंसिल (JAC) की ओर से शनिवार को नतीजे घोषित किए गए थे।
स्कूल टीचर कुमार सुमन की पिटाई को मोबाइल फोन में रिकॉर्ड किया गया और सोशल मीडिया पर लाइव दिखाया गया। छात्रों ने अपने गुरू को अपने इरादों की भनक तक नहीं लगने दी। उन्होंने टीचर और क्लर्क से कहा कि वे उनसे पढ़ाई में बेहतर करने के तरीकों के बारे में पूछना चाहते हैं और इसीलिए उन्हें बुला रहे हैं। क्लर्क ने छात्रों को उनका नंबर बताने से इनकार कर दिया था।
टीचर और क्लर्क जैसे ही मौके पर पहुंचे, छात्रों ने उन्हें एक पेड़ से बांध दिया और लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। दोनों की पिटाई करते हुए छात्रों ने खुलेआम कहा कि वे इस वीडियो को सोशल मीडिया पर लाइव पोस्ट करेंगे। घायल टीचर का अभी अस्पताल में इलाज चल रहा है।
इंडिया टीवी को अपनी आपबीती बताते हुए अध्यापक ने कहा कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके छात्र उनके साथ इस तरह का व्यवहार करेंगे। कुमार सुमन ने कहा, प्रैक्टिकल एग्जाम में नंबर देने में उनका कोई हाथ नहीं था। मामले की जांच स्थानीय शिक्षा विभाग कर रहा है। विभाग के 3 अधिकारियों ने स्कूल का दौरा किया, हेडमास्टर और बाकी के अध्यापकों से बात की और आवासीय स्कूल में की गई तलाशी के दौरान कई मोबाइल फोन जब्त किए गए। इस स्कूल में मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पाबंदी है।
गोपीकांदर के प्रखंड शिक्षा अधिकारी सुरेंद्र हेम्ब्रम ने आरोप लगाया कि कुमार सुमन ने कुछ समय पहले कुछ छात्रों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था और उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला भी दर्ज हुआ है।
गोपीकांदर के खंड विकास अधिकारी अनंत झा ने कहा कि आवासीय विद्यालय में लगभग 200 छात्र पढ़ते हैं और इनमें से अधिकांश ने शिक्षक और क्लर्क की पिटाई की घटना में शामिल थे। झा ने कहा कि पिटने वाले अध्यापक पहले प्रधानाध्यापक थे, लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से उन्हें हटा दिया गया था। नए प्रधानाध्यापक रामदेव केसरी हैं। झा ने इशारा किया कि यह शिक्षकों के बीच आपसी तकरार का नतीजा हो सकता है।
कक्षाएं 9 और 10 सस्पेंड कर दी गई हैं और सभी छात्रों को उनके गांव वापस भेज दिया गया है। कुछ छात्रों ने आरोप लगाया कि अध्यापक ने उन्हें कम नंबर दिए और क्लर्क सोनेराम चौरे ने उन्हें JAC की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया।
बीडीओ ने कहा कि स्कूल के वर्तमान हेडमास्टर ने गणित की प्रायोगिक परीक्षा के अंक और जिस तारीख को ये अंक ऑनलाइन अपलोड किए गए थे, उसे बता नहीं पाए । उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि छात्रों ने महज अफवाह के आधार पर शिक्षक और क्लर्क की पिटाई की है।
स्थानीय थाना प्रभारी नित्यानंद भोक्ता ने कहा कि उन्होंने स्कूल प्रबंधन से शिकायत दर्ज कराने को कहा था, लेकिन उन्होंने मना करते हुए कहा कि इससे छात्रों का कॅरियर बर्बाद हो सकता है। पुलिस ने कहा कि न तो प्राथमिकी दर्ज की गई और न ही स्कूल प्रबंधन की ओर से कोई शिकायत दर्ज कराई गई है।
एक अध्यापक को पेड़ से बांधना और फिर उसे लाठियों से पीटना, यह इस बात का एक शर्मनाक उदाहरण है कि हमारे ग्रामीण इलाकों में शिक्षा प्रणाली किस हद तक गिर गई है। अध्यापकों की पिटाई के इस वीडियो में कई सारे शर्मनाक चेहरे उजागर होते हैं, और हर चेहरे ने शर्मनाक काम किया है।
शर्म आनी चाहिए उन छात्रों को जिन्होंने अपने अध्यापकों की पिटाई की, गुरुजनों का अपमान किया। शर्म आनी चाहिए उन अध्यापकों को जिन्होंने आपसी रंजिश के लिए, बदला निकालने के लिए छात्रों का इस्तेमाल किया। यह घटना दिखाती है कि आजकल स्मार्टफोन का, सोशल मीडिया का दुरुपयोग किस तरह ब्लैकमेल और अपमानित करने के लिए किया जाता है। स्कूल में न कोई अनुशासन है, न अध्यापकों का सम्मान और ना ही पुलिस का डर।
यह घटना परेशान करने वाली है, चिंता में डालने वाली है। कौन कहेगा कि ये उस देश के छात्र और अध्यापक हैं जहां गुरु को भगवान के ऊपर का दर्जा दिया गया है। यह कौन सी संस्कृति है जिसमें छात्र अपने अध्यापक को पेड़ पर बांधकर उनकी पिटाई करें और अपमानित करने के लिए सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करें। इसके बारे में पूरे समाज को बार-बार सोचना चाहिए।
Shameful: Students beat up a teacher after tying him to a tree
In a shameful incident in Dumka, Jharkhand, tribal students of a government-run scheduled tribe residential school on Monday beat up their Maths teacher and a clerk, after tying them to a tree, for giving them poor marks in Class 9 practical examination.
The students then uploaded the video on social media forcing local authorities to sit up and take notice. Eleven out of 32 students in the class got Grade DD (double D), that is considered equivalent to failed. The results were declared on Saturday by Jharkhand Academic Council(JAC).
The beating up of the school teacher, Kumar Suman, was recorded on mobile phones and shown live on social media. The students did not give any hint of their plan to the teacher. They first requested the teacher and clerk to come to them and explain how to improve their performance. The clerk had refused to disclose the marks to the students.
As soon as the teacher and the clerk reached the spot, the students tied them to a tree and started beating them with lathis. While beating both, the students openly said they would post the video live on social media. The injured teacher is now undergoing treatment in hospital.
Narrating his ordeal to India TV, the teacher said he had no inkling that his students would behave like this. Kumar Suman said, he had no hand in giving marks for practical exam. The matter is now being investigated by the local education department. Three officers of the department visited the school, spoke to the headmaster and other teachers, and during a search carried out in the residential school, several cell phones were seized. Use of cell phones in the school is banned.
The block education officer of Gopikandar, Surendra Hembram alleged that Kumar Suman had in the past used casteist slurs against some students and a case has already been registered against him under SC-ST Act.
Anant Jha, the block development officer of Gopikandar, said majority of the nearly 200 students of the residential school took part in beating up the teacher and the clerk. The teacher was earlier the Headmaster, but was later removed for reasons not known, Jha said. The new headmaster is Ramdev Keshari. Jha hinted that it could be a case of rivalry between teachers.
Both Classes 9 and 10 have been suspended and all the students have been sent back to their villages. Some of the students alleged that the teacher gave them low marks, and the clerk Soneram Chure uploaded them on the JAC website.
The BDO said, that the present school headmaster failed to show the marks for Maths practical exam and the date on which these marks were uploaded online. He added, prima facie it seems the students thrashed the teacher and clerk on the basis of rumour.
Local police station in-charge Nityanand Bhokta said, that he had requested the school management to lodge a complaint, but it declined saying that it could spoil the career of the students. No FIR was lodged, nor a complaint was lodged by the school management, police said.
Tying up a teacher at a tree and then beating him up with lathis, is a shameful example of the depth to which the education system in rural areas has descended to. The main characters in this drama have behaved in a sordid manner.
Shame on those students who beat up their teacher with lathis and insulted him. Shame on those teachers, who, because of personal rivalry, got one of them beaten up by misguiding students. Such an incident also indicates how smart phones are being misused in social media, to insult a person and blackmail him. There was no discipline in school, nor respect was shown by students to the teachers, nor were they afraid of police.
This trend is truly worrying. Our society should ponder about the debasement of our culture, where students beat up their teacher and post the videos on social media. This incident requires serious introspection.