ख्वाजा के नाम पर मुसलमानों को एकजुट होकर इस खतरनाक ट्रेंड को रोकना होगा
राजस्थान पुलिस ने अजमेर शरीफ की मशहूर दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती को गिरफ्तार कर लिया है। सलमान पर आरोप हैं कि उसने पैगंबर साहब के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने के लिए नूपुर शर्मा का सिर कलम करने वाले को इनाम देने का ऐलान किया था। पुलिस ने कहा कि दरगाह थाने में सलमान चिश्ती एक ‘हिस्ट्री-शीटर’ है, और उसके खिलाफ लूट, धमकी, दंगा और हत्या के प्रयास के आरोपों सहित 14 मामले दर्ज हैं। पुलिस एक और खादिम गौहर चिश्ती की भी तलाश कर रही है, जिसने नूपुर शर्मा को इसी तरह की धमकी दी है।
अजमेर के एडिशनल एस.पी. विकास सांगवान ने बताया कि सलमान चिश्ती को मंगलवार रात खादिम मोहल्ला स्थित उनके घर से पकड़ा गया। सांगवान ने कहा, प्रथमदृष्टया आपत्तिजनक वीडियो तब बनाया गया था जब सलमान चिश्ती नशे की हालत में था। उन्होंने कहा कि उससे पूछताछ की जा रही है।
28 जून से पहले शूट किए गए और बाद में लीक हुए वीडियो में सलमान चिश्ती यह कहते हुए नजर आ रहा है, ‘मुझे कसम है मेरे रब की, जिसने पैदा किया उस मां की, मैं उसे सरेआम गोली मार देता। मेरे बच्चों की कसम, मैं गोली मार देता। आज भी सीना ठोक कर कहता हूं, जो नूपुर शर्मा की गर्दन लाएगा, मैं उसे अपना ये घर दे दूंगा। यह वादा करता है सलमान, ख्वाजा का गुलाम। सादात घराने से हूं, अहले बैत घराने से हूं। और मुझे नाज है, फख्र है। जो मेरे रसूल की शान में बोलेंगे, उसे जिंदा रहने का हक नहीं है। यह घर उसके नाम कर दूंगा, इसके अलावा एक जमीन है, वह भी दे दूंगा। सब कुछ कुर्बान मेरे रसूल की शान में। हुजूर ख्वाजा बाबा के दरबार से मैसेज है। जब उनकी इज्जत नहीं रही तो हमारी कहां से इज्जत रह गई? ये लिबास, ये शान, ये शौकत, ये ऐशो अराम किसी काम के नहीं हैं।’
अजमेर शरीफ की मशहूर दरगाह का निर्माण 13वीं शताब्दी में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की याद में किया गया था। सुल्तान अल्तमश के शासनकाल में ख्वाजा ईरान से भारत आए थे। ख्वाजा का सन् 1236 में निधन हो गया, और तब दरगाह का निर्माण किया गया। मुगल बादशाह अकबर अपने शासनकाल में कम से कम 14 बार इस दरगाह पर ज़ियारत करने गए थे। मुगल बादशाह जहांगीर और शाहजहां ने कई बार दरगाह का पुनर्निर्माण करवाया था। बड़ौदा के महाराजा ने सन् 1800 में मकबरे के ऊपर एक भव्य छतरी का निर्माण कराया थ। दुनियाभर से लाखों मुसलमान ख्वाजा की दरगाह पर आते हैं। ख्वाजा को ‘गरीब नवाज़’ के नाम से जाना जाता है। कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दुनिया भर से बहुत से नेता इस दरगाह में ‘चादर’ चढ़ाते आए हैं।
अजमेर शरीफ के खादिम चिश्ती खानदान से हैं। अजमेर शरीफ में 175 हुजरे हैं। हुजरे का मतलब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंश की अलग-अलग शाखाएं। हर हुजरे को अंजुमन कमेटी दरगाह में गद्दी नंबर अलॉट करती है। हर हुजरे के खादिम अपनी गद्दी पर बैठते हैं। सलमान चिश्ती की गद्दी का नंबर 119 है। चूंकि खादिम ‘जियारत’ में मदद करते हैं, इसलिए मुस्लिमों में उनकी काफी इज्जत है। उनकी बात को बहुत तवज्जो दी जाती है। इसलिए किसी को एक खादिम से ऐसे अल्फाज की उम्मीद नहीं थी।
सलमान चिश्ती ने अपने घर पर बैठकर वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। दरगाह पर इबादत करने वाले लोगों के लिए एक ‘खादिम’ के ये तीखे अल्फाज बेहद चौंकाने वाले थे।
एक दूसरा खादिम गौहर चिश्ती एक आपत्तिजनक वीडियो में कहते हुए नजर आ रहा है, ‘अगर कोई हमारे हुजूर की शान में गुस्ताखी करेगा तो हम इसको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेंगे। गुस्ताखे रसूल की एक ही सज़ा, सिर तन से जुदा..सिर तन से जुदा। आका की नामूस (इज़्ज़त) के लिए हम सिर भी कटाने को तैयार हैं। उसने हमारी आका की शान में गुस्ताखी की है, इसलिए नूपुर शर्मा को जीने का कोई हक नहीं है। नूपुर शर्मा मुर्दाबाद।’
ये यकीन करना मुश्किल है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के दो खादिम एक शख्स के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं और लोगों से उसका सिर कलम करने की अपील कर रहे हैं। ख्वाजा को अमन और भाईचारे के पैग़ाम के लिए जाना जाता है। इस दरगाह का कोई खादिम ऐसी आपत्तिजनक बातें कैसे कह सकता है?
नूपुर शर्मा का गला काटने वाले को अपना घर इनाम में देने का ऐलान करते वक्त सलमान चिश्ती नशे में था या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर नशे में भी कोई इस तरह की बात कहता है तो उसे पकड़कर जेल में डालना चाहिए। सवाल ये है कि गरीब नवाज़ की दरगाह के खादिम की इतनी हिम्मत कैसे हुई कि वह किसी की गला काटने की बात कैमरे पर कहे और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दे।
अजमेर शरीफ दरगाह के एक और खादिम गौहर चिश्ती ने 17 जून को ही ऐसे एक वीडियो में लोगों से नूपुर शर्मा का सिर काटने की बात कही थी। उसने अजमेर शरीफ दरगाह के निज़ाम गेट के पास भीड़ के सामने तकरीर की थी, और नारे लगवाए थे, ‘गुस्ताखे रसूल की एक सज़ा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा।’
17 जून को गौहर चिश्ती ने ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवाए, और 28 जून को उदयपुर में कन्हैयालाल का गला काट दिया गया। गला काटने वाले मोहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद वारदात के बाद अजमेर की तरफ ही जा रहे थे, उन्हें रास्ते में पकड़ा गया।
राजस्थान पुलिस ने गौहर चिश्ती के खिलाफ 25 जून को केस दर्ज किया था, लेकिन उसको आज तक नहीं पकड़ पाई है और वह अभी भी फरार है। ऐसी खबरें हैं कि गौहर चिश्ती के PFI यानी पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया के साथ करीबी रिश्ते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठन दावत-ए-इस्लामी से भी जुड़ा हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि उदयपुर में कन्हैया का गला काटने वाले मोहम्मद रियाज़ और गौस मोहम्मद भी दावत-ए-इस्लामी से जुड़े थे, और दोनों ने पाकिस्तान में ट्रेनिंग ली थी।
अब इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात सुनिए। गौहर चिश्ती अजमेर शरीफ दरगाह का कोई मामूली खादिम नहीं है। अजमेर शरीफ दरगाह की अंजुमन कमेटी के सेक्रेट्री सरवर चिश्ती उसके चाचा हैं। अंजुमन कमेटी के सेक्रेट्री का ओहदा एक CEO की तरह हैं, यानी दरगाह कमेटी में सारे अहम फैसले सरवर चिश्ती की रजामंदी से ही होंगे। पिछले ही महीने 14 जून को अंजुमन कमेटी के इलेक्शन हुए, जिसमें 175 हुजरों के खादिमों ने अपने वोट डाले थे। खादिमों के समर्थन से सरवर चिश्ती को जीत मिली। चुनाव जीतने के बाद दरगाह परिसर में ही सरवर चिश्ती ने लोगों से कहा था कि नूपुर शर्मा ने जो कहा उसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘हम पुलिस के पास दो आंखें लेकर जाएंगे, एक आंख मिलाने के लिये, और दूसरी आंख दिखाने के लिए । हम चुप बैठने वाले नहीं है। हम हिंदुस्तान को हिला कर रख देंगे।’
सरवर चिश्ती ने 14 जून को अजमेर शरीफ दरगाह में खड़े होकर कहा था,‘हिंदुस्तान हिला देंगे’, और 28 जून को हिंदुस्तान हिल गया, जब दर्जी कन्हैयालाल का गला काट दिया गया। कातिलों ने हत्या का वीडियो बनाया, फिर हाथ में खून से सना खंजर लेकर वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया।
जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने सरवर चिश्ती से बात की, तो उन्होंने तुरंत बात बदल दी। उन्होंने कहा, ‘हिंदुस्तान तो नूपुर शर्मा ने हिला रखा है। रसूल की शान में गुस्ताखी किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।’ जब उनसे पूछा गया कि गौहर चिश्ती तो ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगवा रहा था, सरवर चिश्ती ने कहा, ‘वो क्या कर रहा था, क्या कह रहा था, इससे मुझे क्या मतलब। कोई अपनी पर्सनल कैपेसिटी में कुछ भी करे, उसके लिए अंजुमन कमेटी थोड़े जिम्मेदार है।’
सरवर चिश्ती मामूली खादिम नहीं हैं, वह खादिमों के नेता हैं, इसलिए नेताओं जैसी बात कर रहे हैं। वह ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारों की मुखालफत नहीं कर रहे हैं। उन्होंने अपने भतीजे खादिम गौहर चिश्ती के बयान से किनारा करने की कोशिश की, फिर उसे जस्टिफाई भी करने लगे। लेकिन जब सलमान चिश्ती का वीडियो सामने आ गया तो सरवर चिश्ती सामने आए और कहा, ‘सलमान चिश्ती ने जो कहा उसे दरगाह से जोड़ना ठीक नहीं है। सलमान ने घर में बैठकर बयान दिया है, इससे दरगाह का क्या लेना-देना। सलमान ने जो कहा अंजुमन कमेटी उसकी कड़े शब्दों में निंदा करती है।’ लेकिन इसके बाद सरवर चिश्ती की टोन बदल गई और उन्होंने कहा, ‘जो लोग मुसलमानों के खिलाफ नारे लगाते हैं, इस्लाम के खिलाफ बोलते हैं, उनको क्यों नहीं रोका जाता?’
सरवर चिश्ती के तेवरों से ऐसा कहीं नहीं लग रहा कि उन्हें ‘हिंदुस्तान को हिला देंगे’ वाले अपने बयान पर किसी तरह का अफसोस है। सरवर चिश्ती जिस अजमेर शरीफ की दरगाह को चलाने वाली कमेटी के सरबराह बने हैं, उस दरगाह में मुसलमानों के साथ-साथ बड़ी तादाद में हिंदू भी जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई बड़े फिल्मी सितारे वहां चादर चढ़ाते हैं। उसी दरगाह का इंतजाम देखने वाली अंजुमन कमेटी को चलाने वाले अगर यह कहें कि वे हिंदुस्तान को हिलाकर रख देंगे, तो ये अफसोसनाक बात है। इससे लोगों में गलत संदेश जाता है।
हालांकि मैं ये भी जोड़ना चाहूंगा कि ख्वाजा मोइनुद्दन चिश्ती की दरगाह के सभी खादिम ऐसे नहीं है। ज्यादातर खादिम इंसानियत, प्रेम, भाईचारे की बात करते हैं। वे हिंसा के लिए उकसाने वालों के खिलाफ ऐक्शन की बात करते हैं। सलमान चिश्ती के वीडियो के चक्कर में अजमेर शरीफ दरगाह के एक दूसरे खादिम के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई। दरअसल इस खादिम का नाम भी सलमान चिश्ती है, और इन्होंने कोई बयान नहीं दिया था।
जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ‘दूसरे’ सलमान चिश्ती से मिले तो उन्होंने कहा कि उन्हें तमाम मैसेज और फोन कॉल्स आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह मजहबी तकरीरों के लिए अक्सर विदेश भी जाते रहते हैं। दो दिन पहले ही वह पेरिस से लौटे हैं। मुस्लिम जगत में उनके काफी अनुयायी हैं। लेकिन जब ‘पहले वाले’ सलमान चिश्ती का भड़काऊ बयान वायरल हुआ तो कई लोग कन्फ्यूज हो गए और उन्होंने उनसे ही सवाल पूछे शुरू कर दिए। ‘दूसरे’ सलमान चिश्ती ने कहा कि दरगाह भाईचारे का पैगाम देती है। हिंसा की बात करने वाले ख्वाजा के खादिम नहीं हो सकते। उन्होंने कहा, सरकारी एजेंसियों को इस बात का पता लगाना चाहिए कि ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे अचानक वायरल क्यों हो रहे हैं, और इन नारों के लिए कौन भड़का रहा है।
एक सलमान चिश्ती नूपुर शर्मा की गर्दन काटने वाले को घर देने की बात कह रहा है। दूसरे सलमान चिश्ती भाईचारे का पैगाम दे रहे हैं। दोनों का नाम सलमान चिश्ती है, दोनों अजमेर शरीफ दरगाह में खादिम हैं, लेकिन बातों में और विचारों में कितना फर्क है। कुछ लोग हैं जो नफरत फैला रहे हैं, लेकिन सारे मुसलमान ऐसे नहीं हैं। ज्यादातर मुस्लिम भाईचारे से रहना चाहते हैं, लेकिन चिंता की बात यह है कि जब अजमेर शरीफ की अंजुमन कमेटी के सेक्रेट्री ही हिंदुस्तान हिलाने की बात कह रहे हों, और उसे जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे हों, तो फिर क्या कहा जाए।
मंगलवार को अंजुमन कमेटी की तरफ से एक अपील जारी की गई जिसमें कहा गया कि अजमेर शरीफ की दरगाह का इस्तेमाल कोई नफरत फैलाने में न करें। दरगाह परिसर में बैठकर, परिसर के सामने खड़े होकर कोई ऐसी बात न कहे जिससे समाज में दूरियां पैदा हों। अंजुमन कमेटी का यह प्रस्ताव दो साल पुराना है। इसे 8 अगस्त 2020 को पास किया गया था। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि दरगाह परिसर का इस्तेमाल देशविरोधी बयानों और बैठकों के लिए न किया जाए। दरगाह शरीफ पाक जगह है और इसका इस्तेमाल मजहबी कामों के लिए ही किया जाए। मुझे लगता है कि इस तरह के रस्मी कदमों से कुछ नहीं होगा। जो लोग भड़काऊ बातें कहते हैं, उनके खिलाफ ऐक्शन हो क्योंकि जब अजमेर शरीफ जैसी पाक जगह से इस तरह के बयान आते हैं तो दूसरे कट्टरपंथी तत्वों की हिम्मत बढ़ती है।
मैं बूंदी (राजस्थान) के एक मौलवी मौलाना मुफ्ती नदीम, जो कि एक YouTube चैनल चलाता है, के एक भड़काऊ भाषण के बारे में बताना चाहता हूं। मौलाना के भड़काऊ भाषण को राजस्थान पुलिस ने उस समय गंभीरता से नहीं लिया, और उसका वीडियो खूब वायरल हुआ। इस वीडियो में मौलाना पैगंबर की शान में गुस्ताखी करने वालों के हाथ काटने, जुबान काटने और आंखें निकाल लेने की बात चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है। उस वक्त राजस्थान पुलिस ने इस मौलाना के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया, और 28 जून को कन्हैयालाल का सिर कलम कर दिया गया।
मौलाना मुफ्ती नदीम को 1 जुलाई को गिरफ्तार किया गया, लेकिन केस इतना कमजोर बनाया गया कि उसे अगले ही दिन, यानी कि 2 जुलाई को जमानत भी मिल गई। इतना ही नहीं, मौलाना को रिसीव करने के लिए जेल के बाहर गाड़ियों का काफिला पहुंचा। इसके बाद मस्जिद में मौलाना का जबरदस्त स्वागत हुआ, उसे फूल मालाएं पहनाई गईं।
इसी तरह, अजमेर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे एक कश्मीरी छात्र वहीद ने कन्हैयालाल के बेरहमी से हुए कत्ल की तस्वीर वॉट्सऐप पर पोस्ट की, जिसमें नीचे कैप्शन दिया था ‘बस 15 मिनट’ और उसके बाद स्माइली वाली इमोजी लगाई थी। यह दिखाता है कि वहीद कन्हैया की हत्या से खुश था। पुलिस ने उसकी लोकेशन जम्मू में ट्रेस कर ली है और अब उसे पकड़ने की कोशिश कर रही है।
राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के नेता इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह मुद्दा सियासत का नहीं है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मंत्री प्रताप सिंह खचरियावास की यह बात सही है कि कुछ लोग मुस्लिम समाज में हीरो बनने के लिए इस तरह के वीडियो बना रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की सरकार को यह सोचना होगा कि इस तरह की घटनाएं राजस्थान से ही क्यों शुरू हुईं। क्या दहशत का खेल खेलने वालों को यह तो नहीं लगता कि राजस्थान की पुलिस उनके खिलाफ ऐक्शन नहीं लेगी?
दूसरी बात यह कि पाकिस्तान का दावत-ए-इस्लामी हो या हिंदुस्तान का PFI हो, कत्ल करने वाले हों या कातिलों को भड़काने वाले, इन सबके तार एक दूसरे से जुड़े हैं। ये लोग इस्लाम का भी इस्तेमाल करते हैं और अपने मुसलमान होने का भी फायदा उठाते हैं, लेकिन न तो इस्लाम में कत्ल-ओ-गारत की बात कही गई है, और न ही ज्यादतर मुसलमान ऐसी बातों को सपोर्ट करते हैं। लेकिन दिकक्त यह है कि इस्लाम को मानने वाले ऐसे लोगों को अलग करने की कोशिश नहीं करते, ऐसे लोगों को समाज से बाहर करने की कोशिश नहीं करते।
मुस्लिम समाज को यह देखना होगा कि ऐसे लोग ये सोच भी कैसे सकते हैं कि ‘सर तन से जुदा’ करने की बात करके ये मुस्लिम समाज के हीरो बन सकते हैं। इससे खराब बात क्या हो सकती है कि सर तन से जुदा करने वाली बातें अजमेर शरीफ में बैठ कर कही गईं। गरीब नवाज़ की दरगाह का इतिहास 800 साल पुराना है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती सर्वधर्म समभाव के प्रतीक माने जाते हैं। मान्यता है कि हिंदू हो या मुसलमान, गरीब हो या अमीर, राजा हो या रंक, कोई ख्वाजा की चौखट से खाली हाथ नहीं लौटा।
अब अंजुमन कमेटी को आगे आना चाहिए और पूरे मुल्क को एक बार फिर से गरीब नवाज़ का संदेश देना चाहिए। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले वे अपने यहां बैठे ऐसे लोगों को बाहर करें, जो ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की तालीम को, उनके पैग़ाम को मानने से इनकार करते हैं। ये काम पूरे मुस्लिम समाज को करना होगा वरना ऐसी घटनाओं को कोई रोक नहीं पाएगा। उदयपुर में दर्जी का सिर कलम करने की घटना इसका एक बड़ा उदाहरण है, और इसे किसी भी कीमत पर दोहराया नहीं जाना चाहिए।
In the name of Khwaja, Muslims must unite and stop this dangerous trend
Rajasthan Police has arrested Salman Chishti, the ‘khadim’ of famous Ajmer Sharif shrine, for publicly offering a reward to the person who beheads Nupur Sharma for her objectionable remark against Prophet Mohammad.
Police said, Salman Chishti is a ‘history-sheeter’ at Dargah police station, and he had 14 criminal cases, including charges of robbery, intimidation, rioting and attempt to murder, against him. Police is also on the lookout for another ‘khadim’ Gauhar Chishti, who has also made similar threats against Nupur Sharma.
Assistant SP of Ajmer, Vikas Sangwan said, Salman Chishti was nabbed on Tuesday night from his residence in Khadim mohalla. Sangwan said, prima facie the objectionable video was made when Salman Chishti was in an inebriated condition. He is being interrogated, he added.
In the video allegedly shot before June 28 and leaked later, Salman Chishti is shown saying: “ I vow in the name of Almighty Allah who made my mother give birth to me, I would have shot her publicly. I vow in the name of my children, I would have shot her. Even today, I openly declare, whosoever brings Nupur Sharma’s head to me, I will gift him my house. This is the promise of Salman, slave of Khwaja. I belong to the clan of Sadaat, Ahle Beit, I am proud of my clan. Whosoever insults our Prophet, must be beheaded, and I will gift my home and my land to that man. I will sacrifice everything I own to protect the veneration of our Prophet. This is the message from Huzur Khwaja Baba ka durbar. If He loses respect, what respect remains for us to lose? All these clothes and wealth are of no use.”
The famous Ajmer Sharif shrine was built in the 13th century in memory of the revered Sufi saint Khwaja Moinuddin Chishti, who came from Iran to India during the reign of Sultan Iltutmish. The Khwaja passed away in 1236, and the shrine was built at his tomb. Mughal emperor Akbar visited the shrine no less than 14 times during his reign. The shrine was rebuilt several times by Mughal emperors Jehangir and Shahjehan, and the Maharaja of Baroda built a beautiful covering over the tomb in 1800. Lakhs of Muslims from across the world visit this shrine to pay respects to Khwaja, popularly known as ‘Garib Nawaaz’. Presidents, prime ministers and other world leaders offer ‘chaadar’ at this shrine.
The ’khadims’ (custodians) of the shrine had been keeping the keys of the holy shrine and the ‘toshak khana’ in their custody since centuries. Only ‘khadims’ are entitled to take pilgrims to this shrine for ‘ziyarat’ (pilgrimage) and they have the right to accept all offerings from pilgrims. The ‘khadims’ belong to the Chishti clan. There are 175 branches of Khwaja’s clan in Ajmer Sharif, and every branch (‘hujare’) is allotted a ‘gaddi’(cushioned seat) at the dargah. The ‘khadim’ Salman Chishti and his family sits on ‘gaddi number 119’. Since ‘khadims’ assist pilgrims in ‘ziyarat’, they command respect among lakhs of Muslims. No one ever imagined that a ‘khadim’ would make such objectionable comments.
Reports say, Salman Chishti made the video sitting in his residence, and uploaded it on social media. It was stunning for people, who revere the shrine, hearing objectionable remarks from a ‘khadim’.
There is another objectionable video made by another ‘khadim’ Gauhar Chishti, in which he is shown as saying, “If anybody insults our Prophet, we will never tolerate. The only punishment for insulting our Rasool is ‘sar tan se juda’ (beheading). We are ready to offer our head to protect the veneration of our Lord, and we are ready to behead who insults Him. Nupur Sharma has insulted our Prophet, and she does not deserve to live. Nupur Sharma Murdabad.”
It is difficult to believe, two ‘khadims’ of Khwaja Moinuddin Chisti dargah spouting venom against an individual and appealing to people to behead her. Khwaja is known for his message of universal peace and brotherhood. How can a khadim of this shrine make such objectionable remarks?
It does not matter whether Salman Chishti was making this death threat when he was in an inebriated condition. Even if somebody gives a death threat under the influence of alcohol, he should be sent to jail. The question is, how did a ‘khadim’ of Ajmer shrine get the courage to call for beheading a lady, make a video and then uploaded it on social media. There was another ‘khadim’ Gauhar Chishti who made a similar video on June 17 calling people to behead Nupur Sharma. He was addressing a crowd near Nizam Gate of Ajmer Sharif shrine, and prodding people to chant slogans “Gustaak-e-Rasool ki ek sazaa, Sar tan se juda, Sar tan se juda.”
On June 17, Gauhar Chishti chanted this slogan for beheading, and on June 28, tailor Kanhaiyalal was beheaded by two killers in Udaipur, Mohammed Riaz and Ghaus Mohammed. Both the killers were moving towards Ajmer after committing the horrific act, and were arrested on the way.
Rajasthan Police had filed a case against Gauhar Chishti on June 25, but he is yet to be apprehended. There are reports that Gauhar Chishti had close contacts with PFI (People’s Front of India), a radical Islamist outfit. There are reports that he had also links with Daawat-e-Islami, a militant Pakistani outfit. Point to note, both Mohammed Riaz and Ghaus Mohammad, killers of Kanhaiyalal had received training from Daawat-e-Islami in Pakistan.
One more surprising point. Gauhar Chishti is not an ordinary ‘khadim’. His uncle, Sarwar Chishti is the secretary of the powerful Anjuman Committee of Ajmer Sharif dargah. The secretary functions as a CEO, who takes vital decisions relating to the shrine. In the election for Anjuman Committee on June 14, ‘khadims’ from 175 branches cast their votes. Sarwar Chishti won the election. At that time, he had told people that the remarks made by Nupur Sharma against the Prophet will never be tolerated. “We will take two eyes to the police, we will stare and we will also dare. We will not sit quiet. We will shake Hindustan”, he said.
Sarwar Chishti made this speech at Ajmer Sharif shrine on June 14, and on June 28, India was shaken, when a tailor Kanhaiyalal was beheaded. The killers made a video of the beheading, and then posted it on social media with their blood-stained hands holding the ‘khanjar’ (big knife).
When India TV reporter Manish Bhattacharya met Sarwar Chishti in Ajmer, he tried to give a spin to his remarks. He said, “it was Nupur Sharma whose remark has shaken Hindustan. We will not tolerate any insult to our Rasool (Prophet).” Asked about his nephew Gauhar Chishti calling for ‘sar tan se juda’ (beheading), Sarwar Chishti replied: “I am not concerned with what he said or what he was doing. Let him do whatever he wants in his personal capacity. Anjuman Committee is not responsible for this.”
These were the remarks of Sarwar Chishti, a leader of ‘khadims’. He was not opposing ‘sar tan se juda’ (beheading) threats. He was indirectly justifying what his nephew had done. When his remarks were aired on television, Sarwar Chishti came again as said, “It is unfair to link what Salman Chishti said with the shrine. Salman made this remark in his home and the shrine has nothing to do with it. Anjuman Committee strongly condemns what Salman said.” He then changed his tone and asked: “When people chant slogans against Muslims and Islam, why are they not prevented?”
Looking at the tone and tenor of his remarks, it does not appear Sarwar Chishti had any regret about “Hindustan ko hila dengey” remark. The shrine where he heads the powerful Anjuman Committee, is revered by Hindus too. From Prime Minister Narendra Modi to top film celebrities, all of them offer ‘chaadar’ at the shrine. And if the secretary of the shrine committee makes such a remark, it is highly regrettable. He was sending a wrong message to people.
I would also like to add that not all ‘khadims’ at Ajmer Sharif shrine do not have such radical views. They speak about the message of love, humanity and brotherhood. They speak against those who incite violence. Coincidentally, there is another namesake Salman Chishti, a ‘khadim’ at the shrine. When India TV reporter met the ‘second’ Salman Chishti, he said, he has been getting numerous messages and phone calls. He regularly visits foreign countries to spread the message of brotherhood. He had returned from Paris two days ago. He has a large following among Muslims. But when the ‘first’ Salman Chishti’s objectionable video went viral, many Muslims were confused and started asking him questions. The ‘second’ Salman Chishti said, the famous Ajmer Sharif dargah gives the message of brotherhood and love. Those who speak of violence cannot be true ‘khadims’. He said, government agencies must investigate who is spreading this message of ‘sar tan se juda’ (beheading).
It is really a paradox. Both are khadims and are named Salman Chishti. One calls for beheading, and the other speaks of love and brotherhood. Only a handful of people are spreading hate, and not all Muslims believe in hate. They believe in love and brotherhood. But when the secretary of Anjuman Committee speaks of shaking up Hindustan, and then tries to justify it, nothing can be said further.
On Tuesday, a resolution from Anjuman Committee was circulated appealed to people not to use the shrine to spread hate and refrain from spreading hate while sitting inside the shrine. This resolution is however two years old. It was passed on August 8, 2020. The resolution says, the shrine must not be used for anti-national statements and meetings, since it is a sacred dargah, and it should be used for religious purpose only. I think this is only a routine step. Action must be taken against those who call for beheading and violence. When such objectionable statements emanate from the famous Sufi shrine, other radical elements muster courage.
I would like to point out to a hate speech made by a cleric from Boondi (Rajasthan), Maulana Mufti Nadeem, who runs a YouTube channel. His hate speech was not taken seriously by Rajasthan police, and the hate video got viral. In this video, the Maulana is asking people to cut off the hands and tongue, and gouge out the eyes of those who insult the Prophet. Rajasthan Police failed to take any step against this cleric, and on June 28, Kanhaiyalal was beheaded. Maulana Mufti Nadeem was arrested on July 1, but the case prepared by police was so weak, that he came out on bail the next day. The maulana was received a big cavalcade of cars outside the jail. The maulana was garlanded and given a hero’s welcome.
Similarly, a Kashmiri student, Waheed, studying engineering in Ajmer, posted on WhatsApp the picture of Kanhaiyalal’s murder with a caption “Bas 15 minute” alongwith a smiley emoji. It indicate he was happy with the beheading. Police traced his location in Jammu and is now trying to nab him.
Already Congress and BJP leaders in Rajasthan are taking pot shots at one another over this issue, but I feel, this is not a political issue. The statement of Rajasthan’s Congress minister Pratap Singh Khachariyawas is correct that some people are posting hate videos in order to project themselves as heroes among Muslims. But the Congress government must ponder why such incidents are originating from Rajasthan. Are those spreading terror and hate feeling that no action would be taken against them by Rajasthan police?
Secondly, whether it is PFI in India or Dawat-e-Islami in Pakistan, they seem to have links with the killers or those inciting violence. These outfits are using the name of Islam, but Islam, as I know it, does not encourage violence. Majority of Muslims do not support beheading or violence. But the problem is that, there seems to be no effort in the community to isolate such radical elements, nor are such elements boycotted by the community.
Muslim community must introspect how these elements can even think that they can become heroes if they speak about beheading others. It is really very said that the calls for beheading came from one of the most venerated Muslim shrines in Ajmer Sharif. This shrine has a 800-year-old illustrious history. The dargah of Khwaja Moinuddin Chishti is considered the symbol of ‘sarva-dharma-sambhav’. There are legends of how kings and commoners, Hindus and Muslims went to this shrine seeking blessings and never returned empty-handed.
The Anjuman Committee must come forward and give the message of love and brotherhood of Garib Nawaz to the entire country. But first, the committee must expel those who, by giving calls for beheading, are negating the very message of Khwaja Moinuddin Chishti. The entire Muslim community must collectively do this work, otherwise it will be difficult to stop this dangerous trend. The beheading that took place in Udaipur is an example, that must never be repeated.
उदयपुर, अमरावती में हुई बर्बर हत्याओं को टाला जा सकता था
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) इस वक्त महाराष्ट्र के अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की 21 जून को हुई बर्बर हत्या में गिरफ्तार सभी सात आरोपियों से पूछताछ कर रही है। इस बीच सोशल मीडिया पर ऐसी ऑडियो रिकॉर्डिंग्स सामने आई हैं, जिनसे पता चलता है कि नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले दर्जनों लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई थी ।
सोमवार को अमरावती की एक अदालत ने सभी सात आरोपियों को NIA की हिरासत में भेज दिया, जबकि अमरावती पुलिस ने उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने और वैमनस्य पैदा करने के नये आरोप जोड़ दिए। NIA ने सभी आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया है और उन्हें 8 जुलाई से पहले मुंबई की एक अदालत में पेश करेगी।
अब तक मिले सबूत साफ तौर यह संकेत देते हैं कि उमेश कोल्हे की हत्या कट्टरपंथी मुसलमानों ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन करने के लिए की थी। नूपुर शर्मा ने पैगंबर मुहम्मद के बारे में विवादित बयान दिया था। कोल्हे ने नूपुर के एक समर्थक के मैसेज को वॉट्सऐप ग्रुप पर फॉरवर्ड किया था। नूपुर शर्मा के समर्थन में मैसेज पोस्ट करने वाले सभी लोगों को धमकी भरे फोन किए गए थे।
चौंकाने वाली बात यह है कि अमरावती पुलिस ने इन सारी धमकियों को हल्के में लिया, और धमकी देने वाले इस्लामिक कट्टरपंथियों पर कार्रवाई नहीं की। अब जो खुलासे हो रहे हैं वे चौंकाने वाले हैं, परेशान करने वाले हैं। ये खुलासे अमरावती पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हैं। अमरावती पुलिस ने उमेश कोल्हे के कातिलों को पकड़ लिया था, लेकिन उसने इस बात को दबाए रखा कि उनकी हत्या नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण की गई। पुलिस ने इसे हत्या का एक रूटीन केस बताया था।
सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि उमेश कोल्हे की हत्या से 2 हफ्ते पहले अमरावती में कई ऐसे लोगों को धमकी भरे फोन आने शुरू हो गए थे, जो सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा का समर्थन कर रहे थे। इन लोगों को धमका कर उनसे माफी के वीडियो बनवाए जा रहे थे। ये वीडियो वायरल किए जा रहे थे, लेकिन अमरावती पुलिस ने इसकी गंभीरता को नहीं समझा।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में, हमने एक इस्लामिक कट्टरपंथी और एक अन्य शख्स के बीच हुई बातचीत की ऑडियो सुनाई। इस ऑडियो में एक व्यक्ति को नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर धमकी दी जा रही थी। एक और परेशान करने वाली बात यह है कि उदयपुर में सिर कलम करने और अमरावती हत्याकांड, दोनों मामलों में हत्या की साजिश रचने वाले मृतकों के करीबी दोस्त थे।
अमरावती में गिरफ्तार सात लोगों में से दो को हत्या के 48 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन पुलिस पिछले 10 दिनों से हत्या के मकसद का पता लगा रही थी। कोल्हे की हत्या से 10 दिन पहले कई अन्य लोगों को भी फोन पर गला काटने की धमकी दी गई थी। ये सारे सबूत अब पब्लिक डोमेन में हैं, फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि अमरावती पुलिस यह नहीं समझ पाई कि उमेश कोल्हे की हत्या का नूपुर शर्मा कनेक्शन है। अब जब NIA ने केस को अपने हाथ में लिया, तब जाकर अमरावती पुलिस हरकत में आई और अब नए सबूत सामने आ रहे हैं।
जो सबूत मुझे मिले हैं, उनसे यह साफ हो जाता है कि अमरावती में कई वॉट्सऐप ग्रुप सक्रिय थे। एक ग्रुप का नाम ‘ब्लैक फ्रीडम’ है, और दूसरे ग्रुप का नाम रहबर है। ऐसे दर्जनों ग्रुप हैं जिन्होंने नूपुर शर्मा का समर्थन करने वालों के वॉट्सऐप स्टैटस और पोस्ट के स्क्रीनशॉट पोस्ट किए थे। इसके तुरंत बाद इन लोगों के पास धमकी भरे फोन आने लगे। ये सिलसिला कई दिनों तक चला, लेकिन स्थानीय पुलिस को इस तरह की गतिविधि के बारे में कोई खबर नहीं हुई।
हैरानी की बात यह है कि जिन लोगों को धमकी दी जा रही थी, उन्हें धमकाने वाले ज्यादातर जान-पहचान वाले थे। रहबर नाम का NGO चलाने वाला इरफान शेख अपने लोगों के जरिए नूपुर का समर्थन करने वालों को धमका रहा था। रहबर NGO के ऑफिस से फोन करके नूपुर का समर्थन करने वालों से कहा जा रहा था कि मुसलमान, नबी की शान में गुस्ताखी करने वालों की गर्दन काट देते हैं, इसलिए अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
अमरावती के एक शख्स ने 10 जून को नूपुर शर्मा के समर्थन में एक वॉट्सऐप स्टेटस डाला और कुछ ही घंटों में उसे धमकी भरे कॉल आने लगे। उसे अपनी ‘गलती’ के लिए माफी मांगते हुए वीडियो पोस्ट करने के लिए या अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया। सोमवार की रात ‘आज की बात’ में हमने दोनों के बीच हुई बातचीत का ऑडियो चलाया था, जिसमें एक कट्टरपंथी मुसलमान उसकी दुकान पर जाकर ‘देख लेने’ की धमकी दे रहा था, और दूसरा शख्स परेशना होकर कह रहा था कि वह जल्द ही ‘माफी’ की एक वीडियो बनाकर भेज देगा। इसके तुरंत बाद उसने उस नंबर पर हाथ जोड़कर ‘माफी’ मांगने का वीडियो भेजा।
यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है, ऐसा अचानक नहीं हुआ होगा। इसी तरह की दूसरी घटना में अमरावती के एक जाने-माने डॉक्टर को रहबर NGO ग्रुप के किसी शख्स की तरफ से धमकी दी जा रही थी। धमकी देने वाला शख्स डॉक्टर को जानता था, लेकिन साथ ही यह भी कहता है कि इस्लाम के खिलाफ बोलने वाले को सपोर्ट करेंगे तो डॉक्टर साहब को दिक्कत होगी, अंजाम भुगतना होगा।
डॉक्टर फोन पर गिड़गिड़ाते हुए कहते हैं कि नूपुर शर्मा के समर्थन में स्टैटस डालने के पीछे कोई गलत इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि अगर स्टैटस खराब लगा तो हटा देता हूं, लेकिन धमकी देने वाला कह रहा है कि यह स्टैटस उसे अच्छा नहीं लगा और अगर डॉक्टर साहब आगे भी ऐसा करेंगे तो फिर पूरा शहर उनके खिलाफ हो जाएगा। इसके बाद डॉक्टर पूछते हैं तो फिर क्या करें, जिसका जबाव मिलता है माफी का एक वीडियो बनाकर मुझे भेजो।
डॉक्टर ने फौरन माफी का वीडियो बनाकर फोन करने वाले को भेज दिया। वीडियो में डॉक्टर कहत हुए दिख रहे हैं: ‘कल मैंने ‘आई सपोर्ट नूपुर शर्मा’ का स्टैटस लगाया था। इसके पीछे किसी धर्म का, या किसी जाति का, या किसी इंसान का दिल दुखाने का कोई मकसद नहीं था। फिर भी अगर किसी का दिल दुखा होगा तो मैं अपने दिल से उन सबसे माफी मांगता हूं, और आंइदा ऐसी गलती नहीं होगी, इसकी गवाही देता हूं।’
रहबर NGO से लोगों को धमकी देने का काम इस संस्था का उपाध्यक्ष राजिक मिर्जा कर रहा था। इंडिया टीवी के संवाददाता राजेश कुमार ने राजिक मिर्जा से मुलाकात की। मिर्जा ने माना कि उसने डॉक्टर को फोन किया था, लेकिन वह धमकी नहीं दे रहे थे। उसने दावा किया कि वह सिर्फ ‘रिक्वेस्ट’ कर रहा था कि अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो पूरा शहर उनके खिलाफ हो जाएगा। राजिक मिर्जा ने कहा कि वह डॉक्टर को जानता है, उनके पास मरीज भेजता है। उसने कहा कि उसका मतलब यह था कि अगर डॉक्टर माफी नहीं मांगते हैं, तो वह उनके पास मरीज भेजना बंद कर देगा।
मिर्जा जिस शख्स को धमकी दे रहा था, वह एक डॉक्टर था । जब इंडिया टीवी के संवाददाता ने राजिक मिर्जा से कहा कि रहबर वॉट्सऐप ग्रुप में उमेश कोल्हे के स्टैटस का स्क्रीनशॉट पोस्ट किया गया था, उसके बाद ही उनकी हत्या हुई, तो उसने इस बात से इनकार कर दिया। लेकिन वह झूठ बोल रहा था। सच यही है कि उमेश कोल्हे के 16 साल पुराने दोस्त डॉक्टर युसूफ खान ने उमेश कोल्हे के वॉट्सऐप स्टैटस को इस रहबर ग्रुप में शेयर किया था। उमेश कोल्हे की एक मेडिकल शॉप थी, और डॉक्टर युसूफ एक पशु चिकित्सक था। उमेश कोल्हे डॉक्टर युसूफ की मदद किया करते थे।
उमेश कोल्हे ने नूपुर शर्मा के समर्थन में वॉट्ऐसप स्टैटस लगाया था, और धमकी मिलने के बाद उसे डिलीट कर दिया। लेकिन इस दौरान उनके दोस्त डॉक्टर युसूफ ने उसका स्क्रीनशॉट लेकर उसे रहबर वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट कर दिया। इसके बाद रहबर NGO का उपाध्यक्ष शेख इरफान ऐक्टिव हो या और पुलिस के मुताबिक उसी ने उमेश कोल्हे की हत्या की साजिश रची। उमेश कोल्हे की हत्या के बाद से इस ग्रुप में कोई ऐक्टिविटी नहीं हो रही है, हालांकि ग्रुप को डिलीट नहीं किया गया है।
सभी 7 आरोपी अब NIA की हिरासत में हैं, और उनके नाम हैं: यूसुफ खान (32), अब्दुल तौफीक (24), मुदस्सर अहमद (22), शाहरुख पठान (25), शोएब खान (22), आतिब राशिद (22) , और कथित मास्टरमाइंड शेख इरफान शेख रहीम।
मैं एक बात साफ कर दूं कि नूपुर शर्मा ने जो कहा, उसका समर्थन कोई नहीं कर सकता और करना भी नहीं चाहिए, लेकिन अगर किसी ने इसका सपोर्ट कर भी दिया तो उसे धमकी दी जाए, जान से मारने की बात कही जाए, इसे भी ठीक नहीं कहा जा सकता। इसमें कोई शक नहीं है अमरावती में नूपुर शर्मा को सपोर्ट करने वालों को जान से मारने की धमकी दी गई।
अब सवाल यह है कि जब नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर लोगों को 10 जून से ही धमकियां मिल रही थीं तो फिर पुलिस ने इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया? अगर पुलिस जांच करती, धमकी देने वाले रहबर NGO के वाइस-चीफ के खिलाफ 10 जून के बाद ऐक्शन ले लेती तो हो सकता है कि 21 जून को केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या न होती।
जब इंडिया टीवी के संवाददाता राजेश कुमार ने अमरावती की पुलिस कमिश्नर आरती सिंह से यही सवाल पूछा तो उन्होंने यह तो माना कि इस तरह के तीन मामले उनके सामने आए थे, लेकिन यह भी कहा कि 2 मामलों में शिकायत करने से इनकार कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि तीसरे केस में शिकायत की गई थी। पुलिस कमिश्नर ने कहा कि उमेश कोल्हे की हत्या और इन धमकियों के मामले में कोई परस्पर संबंध नहीं दिख रहा है।
हैरानी की बात यह है कि पुलिस कमिश्नर के लेवल का एक IPS अफसर यह कह रहा है कि कोई लिखित शिकायत नहीं मिली थी, इसलिए पुलिस ने जांच नहीं की।
मेरा सवाल है कि क्या सांप्रदायिक दंगा कराने की साजिश की कोई शिकायत करता है? क्या आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने की साजिश की कोई शिकायत करता है? इस तरह के मामलों पर नजर रखना और वक्त रहते ऐक्शन लेना, यह तो पुलिस का काम है। लेकिन अमरावती की पुलिस लिखित शिकायत का इंतजार करती रही।
जिन लोगों ने 10 जून को नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट लिखी थी, उन्होंने माफी का वीडियो बनाकर धमकी देने वालों को भेज दिया। इसके बाद उमेश कोल्हे ने 14 जून को नूपुर के सपोर्ट में वॉट्सऐप स्टेटस लगाया, और 7 दिन बाद 21 जून को उमेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
उमेश की जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई है, उसका ब्यौरा सुनेंगे तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उमेश के गले पर 5 इंच चौड़ा, 7 इंच लंबा और 5 इंच गहरा घाव है। हत्यारे उमेश का सिर काटना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी और बेटे के चिल्लाने के कारण भीड़ इकट्ठी हो गई और वे डरकर भाग गए।
ऐसी भी रिपोर्ट्स हैं कि कातिलों ने इससे पहले 19 और 20 जून को भी उमेश को मारने की कोशिश की थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए क्योंकि उमेश जल्दी दुकान बंद करके घर चले गए थे। उमेश की हत्या के बाद भी पुलिस ने 12 दिन तक यह बात दबाए रखी कि उनकी हत्या नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण हुई है।
अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा ने घोर लापरवाही के लिए पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। रवि राणा का कहना है कि जब यह हत्या हुई तब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी की सरकार थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस की नेता यशोमति ठाकुर, जो कि अमरावती की गार्जियन मिनिस्टर थीं, के कहने पर ही पुलिस ने उमेश की बर्बर हत्या को लूट के लिए किए गए मर्डर का केस बनाने की कोशिश की।
इंडिया टीवी के संवाददाता ने इस बारे में अमरावती की पुलिस कमिश्नर से बात की। उन्होंने कहा, ‘यह एक ब्लाइंड, सेंसिटिव केस था। ऐसे मामलों में बिना ठोस सबूत के कुछ कहना ठीक नहीं होता। FIR में कहीं भी चोरी और लूट की धाराएं नहीं लिखी गई हैं।’ कांग्रेस की पूर्व मंत्री यशोमति ठाकुर का कहना है कि नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘उमेश कोल्हे के साथ जो हुआ वह दुखद है और हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।’
इस बीच सोमवार को अमरावती में उमेश कोल्हे के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोग आए। किसी तरह की गड़बड़ी रोकने के लिए पुलिस का तगड़ा बंदोबस्त था। श्रद्धांजलि सभा में किसी तरह का हंगामा नहीं हुआ, कोई नारेबाजी नहीं हुई, लेकिन इसमें आए लोगों ने कहा कि इस तरह हत्या करना तालिबानी मानसिकता है। कुछ लिखने या बोलने पर लोगों की हत्या कर दी जाए, लोगों का गला काट दिया जाए, ये सभ्य समाज कैसे सहन करेगा।
यह बात सही है कि जब तक ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं होगी, जब तक समाज ऐसे लोगों का बहिष्कार नहीं करेगा, तब तक इस तरह के मामले नहीं रुकेंगे। अमरावती के बाद सोमवार को नागपुर से भी ऐसी ही खबर आई है। नागपुर में भी 22 साल के एक युवक और उसके परिवार को नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण धमकियां दी जा रही हैं। युवक ने नूपुर शर्मा के समर्थन वाली एक पोस्ट को फॉरवर्ड कर दिया था, जिसके बाद उसे जान से मारने की धमकी दी गई। लड़के ने इस पोस्ट को तुरंत डिलीट कर दिया था। इसके बाद परिवार की ओर से भी कई बार माफी मांगी गई, लेकिन मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने उनके बेटे की तस्वीर को रेड कलर के क्रॉस के साथ कुछ वॉट्सऐप ग्रुप में शेयर किया, जिसका मतलब था कि यह लड़का हमारे निशाने पर है।
इससे डरकर लड़के के परिवार वाले कुछ दिन के लिए नागपुर छोड़कर चले गए। हालांकि अब परिवार तो वापस आ गया है लेकिन पोस्ट फॉरवर्ड करने वाले लड़के को अभी भी अज्ञात स्थान पर रखा गया है। अब नागपुर पुलिस ने इस परिवार को सुरक्षा दिलवाई है, और सीनियर पुलिस अफसरों ने परिवार के लोगों को अपने नंबर भी दिए हैं जिससे कि इमरजेंसी की हालत में वे उन्हें कॉल कर सकें।
एक बात तो साफ है कि अगर अमरावती पुलिस ने लोगों को मिली धमकियों को गंभीरता से लिया होता, तो हो सकता है कि उमेश कोल्हे की जान बच जाती। अगर अमरावती पुलिस ने हत्यारों से पूछताछ में यह पता लगा लिया होता कि उन्होंने सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा को सपोर्ट करने के लिए गला काटा, और इस केस को दबाने की कोशिश न की होती तो शायद उदयपुर में कन्हैयालाल की जान बच जाती, क्योंकि पूरे देश की पुलिस अलर्ट हो जाती।
इन घटनाओं का सीक्वेंस देखने और समझने की जरूरत है। दोनों जगह ‘सिर तन से जुदा’ करने का नारा देने वालों का ग्रुप ऐक्टिव था। पहले अमरावती में लोगों को धमकियां मिलीं, फिर उमेश का गला काट दिया गया। उसके एक हफ्ते बाद उदयपुर में कन्हैयालाल का गला काटने की घटना हुई।
कन्हैयालाल ने पुलिस से शिकायत की थी, जान पर खतरे की आशंका जताई थी, लेकिन पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया । अब जबकि NIA ने दोनों मामलों को अपने हाथ में लेकर जांच शुरू की है तो एक-एक करके सारे सबूत सामने आने लगे हैं। अफसोस की बात यह है कि दो ऐसे बेकसूर लोगों की जानें गई, जिन्हें बचाया जा सकता था।
एक और बात यह सामने आई कि अमरावती में उमेश की हत्या करने वाले उनके अपने जान-पहचान के लोग थे। उदयपुर में भी कन्हैयालाल का गला काटने वालों में उनकी पहचान के लोगों का हाथ था। दोनों जगह दो इंसानों के साथ-साथ दोस्ती का और इंसानियत का कत्ल हुआ।
Beheadings in Udaipur, Amravati could have been prevented
Even as the National Investigation Agency (NIA) is grilling all the seven accused arrested in the gruesome June 21 murder of chemist Umesh Kolhe in Amravati, Maharashtra, audio recordings have surfaced about death threats given to dozens of people for supporting Nupur Sharma on social media.
On Monday, an Amravati court gave the custody of all seven accused t the NIA, while Amravati police slapped additional charges of hurting religious sentiments and fomenting disharmony against them under the Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA). NIA has taken all the accused on transit remand and will produce them in a Mumbai court before July 8.
Evidences found so far clearly show that Umesh Kolhe was murdered by radical Islamists for extending support to former BJP spokesperson Nupur Sharma, who had made a blasphemous remark against Prophet Mohammad. Kolhe had forwarded a supporter’s message on WhatsApp group. Threatening phone calls were made to all those who had posted messages in support of Nupur Sharma.
The surprising part is that Amravati police took these threats lightly and did not take action against the Islamic radicals who were threatening people. These revelations are both surprising and worrying. They raise questions over the role of Amravati police, which had initially arrested the killers of Kolhe but suppressed the fact that he was murdered for supporting Nupur Sharma. Initially, Amrvati police had described it as routine murder.
The most worrying part is that two weeks before Kohle was brutally murdered, several people, who had supported Nupur Sharma on social media, got threatening calls on phone. They were intimidated to make videos seeking apology for supporting her. These videos were made viral, but Amravati police did not take up this matter seriously.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed audio conversation between an Islamic radical and another person, who was being threatened for supporting Nupur Sharma. Another worrying point is that in both the Udaipur beheading and Amravati murder cases, those who conspired the killings were close friends of the victims.
Out of seven persons arrested in Amravati, two were arrested within 48 hours of the murder, but local police was exploring the motive of murder for ten days. Several others were also threatened with beheading on phone, 10 days before Kolhe was murdered. All these evidence are now in public domain, and there seems to be no logical reason to accept Amravati police’s plea that it could not establish Nupur Sharma links with Kohle’s murder. Now that the NIA has taken up the case, Amravati police has sprung into action and fresh evidence are surfacing.
On the basis of evidence that I have received, it is clear that there were several WhatsApp groups active in Amravati. One of the groups is named Black Freedom, and the other group is named Rahbar. There are dozens of such groups that had posted screen shots of the WhatsApp status and posts of those who had supported Nupur Sharma. Soon after, threatening calls started coming to these supporters. This continued for several days, but local police had no inkling of such activity.
The surprising part is that those who were threatening people knew each other. One of them Irfan Sheikh, who runs an NGO called Rahbar, was dialling up Nupur Sharma’s supporters and threatening them. He was telling them in plain words that Muslims behead those who insult the Prophet. He also told them that if they refused to apologize, they will have to face serious consequences.
One resident in Amravati put up a WhatsApp status in support of Nupur Sharma on June 10, and within hours, he started getting threatening calls. He was asked to post video apologizing for his ‘mistake’, otherwise he should be prepared to face consequences. In ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we ran the audio conversation between the two, in which the radical Islamist was threatening to go to his shop and take action, and the other person, appearing worried, was saying he would soon send a video seeking apology. Soon after, he sent a video of ‘apology’ with folded hands on that number.
All this appears to be part of a coordinated strategy, and not a spontaneous action. In another incident, a well-known doctor in Amravati was threatened from somebody from Rahbar NGO group. The person who was threatening on phone knew the doctor, but at the same time, was telling him that those who speak against the religion will have to face consequences.
The doctor was pleading on phone that he had no malafide intention while posting a status in support of Nupur Sharma. He offered to delete the status, but the person threatening the doctor said, if he continued to do this, the entire city would go against him. When the doctor asked about a way out, the man said, make a video of apology and send it to me.
The doctor quickly made a video of apology and sent it to the caller. In the video, the doctor was shown saying: “Yesterday I had put a status supporting Nupur Sharma. I had no intention to hurt the sentiments of any religion, caste or individual. If I have hurt the feelings of anybody, I am withdrawing my status, and I apologize for my act. I promise never to repeat this in future.”
The man who was threatening people from the NGO Rahbar is its vice-president Razik Mirza. India TV reporter Rajesh Kumar met Razik Mirza, who admitted that he had rang up the doctor, but he did not threaten him. He claimed, he was only ‘requesting’ by saying that if he did not tender apology, the entire city would go against him. Asked further, Razik Mirza said, he knew the doctor and used to refer patients to him. What he meant was that if the doctor did not apologize, he would stop sending patients to him.
The person whom he was threatening was a doctor. When India TV reporter told Razik Mirza that it was Yusuf Khan who had posted the screen shot of Umesh Kohle’s status on social media, and soon after Kolhe was murdered, Razik denied it. But he was clearly lying. Yusuf Khan had shared Kohle’s WhatsApp status in his Rahbar group. Umesh Kolhe owned a pharmacy and Dr Yusuf Khan was a veterinary doctor. Umesh Kohle used to help the vet doctor.
Kolhe had put up his WhatsApp status supporting Nupur Sharma, but after getting threats, he had deleted it, but, by then, Dr Yusuf Khan had posted the screen shot on Rahbar WhatsApp group. Soon after, NGO vice-president Irfan Sheikh became active, and, according to police, he planned the murder of Umesh Kolhe. All activity of this NGO Rahbar has now ended after Kolhe’s murder, but the WhatsApp group has not been deleted.
The names of all the seven accused, now in NIA custody, are: Yusuf Khan (32), Abdul Taufiq (24), Mudassar Ahmad (22), Shahrukh Pathan (25), Shoaid Khan (22), Atib Rashid (22), and alleged mastermind Sheikh Irfan Sheikh Rahim.
Let me make it clear that Nupur Sharma’s remark against the Prophet cannot and must not be supported, but if anybody comes forward to extend support to Nupur Sharma, and that person gets a death threat, it cannot be described as a step that can be justified. There is no doubt that those who supported Nupur Sharma in Amravati were being given death threats.
The logical question arises: Why didn’t Amravati police taken corrective steps immediately? Had the local police taken action against the Rahbar group vice-chief after June 10, it could have prevented the brutal killing of chemist Umesh Kolhe on June 21.
When India TV reporter Rajesh Kumar asked Amravati Police Commissioner Aarti Singh about this, she admitted that there were three such cases, but in two cases, those who were threatened refused to file complaints. There was a complaint in the third case. The police commissioner said, there can be no correlation between Umesh Kolhe’s murder and these threatening calls.
The surprising part is that an IPS officer of the rank of police commissioner is saying that since there were no written complaints, the police did not start probe.
क्या उदयपुर हत्याकांड के लिए नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराना जायज है?
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के खिलाफ पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा वाले बयान के लिए बेहद सख्त टिप्पणी की। जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की वैकेशन बेंच ने देश में उनके खिलाफ दर्ज सभी FIRs को एक साथ जोड़ने संबंधी नूपुर शर्मा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और उनके वकील मनिंदर सिंह से कहा, ‘यह आपको तय करना है कि आप याचिका वापस लेकर संबंधित हाई कोर्ट जाना चाहते हैं या नहीं। यह ऐसा केस है जिसमें राहत नहीं दी जा सकती। हमारी अंतरात्मा संतुष्ट नहीं है।’ वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली।
नूपुर शर्मा की याचिका पर कि उनके लिए विभिन्न राज्यों की यात्रा करना सुरक्षित नहीं होगा, वैकेशन बेंच ने टिप्पणी की: ‘उनकी सुरक्षा को खतरा है या वह देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं? और दिल्ली पुलिस ने क्या किया है? कृपया हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। जब वह किसी के खिलाफ शिकायत करती हैं तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन उनके खिलाफ FIR होने के बावजूद उन्हें छुआ तक नहीं गया। कोई आपको छूने की हिम्मत भी नहीं कर सकता। यही वह ताकत है जिसका आप फायदा उठाती हैं।’
पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ नूपुर शर्मा के ईशनिंदा वाले बयान पर बेंच ने टिप्पणी की: ‘जिस तरह से उसने पूरे देश को आग में झोंक दिया है, फिर भी उसमें संबंधित हाई कोर्ट या निचली अदालतों में जाने की बजाय राहत मांगने के लिए इस अदालत में आने की हिम्मत और साहस है। यह महिला अकेले ही देश भर में आग लगाने के लिए जिम्मेदार है।’
जब नूपुर शर्मा के वकील ने दलील दी कि उन्होंने अपने बयान को वापस ले लिया है और इसके लिए माफी मांग ली है, तब जस्टिस सूर्य कांत और जे. बी. पारदीवाला की ने कहा, ‘उन्होंने बहुत देर से माफी मांगी और अपना बयान भी शर्तों के साथ वापस लिया। ये वे लोग हैं जो किसी धर्म का सम्मान नहीं करते। धार्मिक व्यक्ति के मन में दूसरे धर्मों के लिए भी आदर होता है। ये टिप्पणियां या तो सस्ता प्रचार पाने के लिए की गईं अथवा किसी राजनीतिक एजेंडे या घृणित गतिविधि के तहत की गईं।’
बेंच ने कहा: ‘उनकी याचिका से अहंकार की बू आती है और लगता है कि वह देश के मजिस्ट्रेट को अपने सामने बहुत तुच्छ समझती हैं। उनका अपनी जुबान पर काबू नहीं है, और उन्होंने गैर-जिम्मेदाराना बयान दिए हैं, लेकिन फिर भी वह (इस अदालत के समक्ष) 10 साल से वकील होने का दावा करती हैं।’
बेंच ने कहा कि उनका मामला 2020 के अर्नब गोस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बिल्कुल अलग है, जब अलग-अलग FIRs को एक साथ जोड़ा गया था। कोर्ट ने कहा: ‘किसी पत्रकार द्वारा किसी विशेष मुद्दे पर अपना अधिकार व्यक्त करने का मामला एक राजनीतिक दल की ऐसी प्रवक्ता के मामले से अलग है, जो परिणामों के बारे में सोचे बिना गैर-जिम्मेदाराना बयानों से दूसरों को निशाना बना रही हैं। यदि आप किसी राजनीतिक दल की प्रवक्ता हैं, तो आपको इस तरह की बातें करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। कभी-कभी सत्ता सिर पर चढ़ जाती है और लोग सोचते हैं कि ‘हां, मेरे पास बैकअप है, इसलिए मैं किसी भी तरह का बयान दे सकती हूं और आसानी से छूट भी सकती हूं। यह बेहद गलत है।’
ध्यान देने वाली बात यह है कि बेंच की ये सभी तीखे कॉमेंट 4 लाइन के उस छोटे से आदेश का हिस्सा नहीं हैं जिसमें याचिकाकर्ता को अपनी याचिका वापस लेने की इजाजत दी गई थी। इसका मतलब है कि नूपुर शर्मा राहत के लिए हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं। हालांकि, वैकेशन बेंच ने जो तीखे कॉमेंट किए, वे हैरान करने वाले हैं।
बेंच ने सबसे ज्यादा हैरान करने वाला कॉमेंट यह था कि बेंच ने ज्ञानवापी जैसे अदालत में विचाराधीन मामले को लेकर टीवी डिबेट पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘यह बहुत परेशान करने वाला है। इसके नतीजे में उदयपुर जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।’ दूसरे शब्दों में, शीर्ष अदालत ने नूपुर की ईशनिंदा वाली टिप्पणी को उदयपुर में 2 मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा एक दर्जी का सिर कलम करने से सीधे तौर पर जोड़ दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज रिटायर्ड जस्टिस एस. एन. ढींगरा ने शनिवार को एक इंटरव्यू में इंडिया टीवी को बताया कि वैकेशन बेंच की यह टिप्पणी कि नूपुर शर्मा के बयान के चलते उदयपुर में दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, ‘गैर-जिम्मेदाराना’ थी।
रिटायर्ड जज ने कहा, ‘यह इसलिए गैर जिम्मेदाराना है क्योंकि इसने सभी अधीनस्थ अदालतों में नूपुर शर्मा के मामले को पूर्वाग्रहित कर दिया है। बिना किसी जांच के, बिना गवाहों की सुनवाई के या बिना नूपुर शर्मा की दलीलें सुने इस तरह का ऑब्जर्वेशन देना न केवल अवैध है, बल्कि अनुचित भी है।’
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट भी कानून से ऊपर नहीं है। किसी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी करने से पहले, सामान्य प्रक्रिया यह है कि आरोप तय किए जाने चाहिए थे और अभियोजन और प्रतिवादी दोनों को अपनी बात रखने की इजाजत दी जानी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने एक फैससे में कहा था कि जजों को अपने समक्ष आए मामले पर टिके रहना चाहिए और अनुचित टिप्पणी करने से बचना चाहिए। इधर, नूपुर शर्मा ने दलील दी थी कि उनके खिलाफ करीब 50 FIRs की गई हैं जिन्हें एक साथ जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि अदालत में पेश होने पर उनकी जान को खतरा हो सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अखबार और मीडिया में आई खबरों के आधार पर उनके खिलाफ कड़ी टिप्पणी की, जो जायज नहीं था।’
सुप्रीम कोर्ट के कॉमेंट के बाद विपक्ष के नेता राशन पानी लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने लगे। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा, ‘नूपुर शर्मा ने नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी, अमित शाह, बीजेपी और आरएसएस ने देश में नफरत का यह माहौल बनाया है। यह जो गुस्से और नफरत का माहौल है, वह राष्ट्र विरोधी है, यह भारत के हितों के खिलाफ है। आज हम देश में जो हालात देख रहे हैं, वह हमारी विचारधारा के बिल्कुल खिलाफ है।’ AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि पीएम मोदी नूपुर शर्मा के बयान पर कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं। ओवैसी ने कहा, ‘देश के प्रधानमंत्री को समझना चाहिए कि निलंबित करना कई सजा नहीं है। आप देश के 133 करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री हैं, जिनमें 20 करोड़ मुसलमान भी हैं। नूपुर शर्मा को गिरफ्तार होना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि BJP उनको बचाने की कोशिश कर रही है।’
नेताओं की नूरा-कुश्ती की तुलना में सबसे अच्छी बात दारुल उलूम देवबंद के मौलाना याकूब बुलंदशहरी ने कही। मौलाना याकूब ने कहा कि चूंकि नूपुर शर्मा ने माफी मांग ली है और अपने बयान को वापस ले लिया है, इसलिए उन्हें माफ कर देना चाहिए और पूरे मामले को यहीं खत्म करना चाहिए।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच ने जो कहा उससे उन लोगों में भरोसा पैदा हुआ जिन्हें लग रहा था कि नूपुर शर्मा के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं होगा, लेकिन यह भी सही है कि सुनवाई के दौरान जज साहिबान ने जो कॉमेंट किए, उनको लेकर कुछ लोगों को निराशा हुई। कई लोगों ने कहा कि उदयपुर में 2 मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा एक दर्जी की निर्मम हत्या के लिए, इस तालिबानी सोच के लिए सिर्फ नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराना न्यायसंगत नहीं है। उदयपुर में हत्या करने वाले दहशगर्दों की जेहादी सोच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी निर्दोष का सिर कलम करने के लिए कोई भी बहाना नहीं बनाया जा सकता।
Is it fair to hold Nupur Sharma responsible for beheading in Udaipur?
The Supreme Court on Friday made strong and caustic observations against former BJP spokesperson Nupur Sharma for making blasphemous comment against Prophet Mohammad. The vacation bench of Justices Surya Kant and J B Pardiwala refused to entertain Nupur Sharma’s plea to club all FIRs lodged against her in the country and told her counsel Maninder Singh, “It is for you to decide whether you want to withdraw and go before the High Courts concerned…It is a fit case for declining relief. Our conscience is not satisfied.” The counsel withdrew his petition.
On Nupur Sharma’s plea that it would not be safe for her to travel to different states, the vacation bench remarked: “She faces a security threat or she has become a threat to the security of the nation? And what has the Delhi Police done? Please don’t compel us to open our mouths. When she makes a complaint, the person is arrested, but, even when there is an FIR against her, she is not touched. Nobody dares to touch you. That is the clout you enjoy.”
On Nupur Sharma’s blasphemous remark against Prophet Mohammad, the bench remarked: “ The way she has ignited the whole country , still she has the cheek and courage to come to this court to ask for relief, instead of approaching the respective high courts and trial courts. This lady is single-handedly responsible for setting fire across the country.”
When Nupur Sharma’s counsel said she had already withdrawn her blasphemous remark and has tendered her apology, Justices Surya Kant and J.B. Pardiwala said: “It was too late in the day to withdraw, but that withdrawal is also conditional…These are the people who have no respect for any religion. A person who is religious will have respect for other religions also. It is all to gain cheap popularity and just to advance some political or nefarious agenda that such statements are made.”
The bench said: “The petitioner also shows her obstinate character and her arrogance that the courts are too small fr her to go and appear…..The lady makes completely loose-tongued comments..all irresponsible statements, and now (before this court) she claims to be a lawyer with ten years’ standing.”
The bench pointed out, her case was completely different from the Supreme court ruling in Arnab Goswami case of 2020, when different FIRs were clubbed together. It remarked: “That was a case of a journalist where his right to express opinion on an issue legitimately was taken into consideration. That is on a different pedestal compared to a citizen or spokesperson, who goes to a channel and starts lambasting the others, makes irresponsible statements without even thinking of the ramifications and how seriously it would disturb the fabric of the society….If you are a spokesperson, it is not a licence to make such kind of statements. Sometimes power goes into the head and people think that ‘yes, I have backup, therefore I can make any kind of statement and go scot free’. That is very wrong”.
The point to note is that all these caustic remarks by the bench are not part of the brief four-line order in which the petitioner was allowed to withdraw her petition. It means that Nupur Sharma can approach high courts and trial courts for relief. The sharp observations made by the vacation bench are however surprising.
The most surprising observation was that the bench while disapproving TV debates on a sub-judice matter like Gyanvapi said, “It is so disturbing. The outcome is what unfortunately happened in Udaipur.” In other words, the apex court directly linked Nupur’s blasphemous comment to the beheading of a tailor by two Muslim fanatics in Udaipur.
Former Delhi High Court judge retired Justice S. N. Dhingra told India TV in an interview on Saturday that the observation made by the vacation bench that Nupur Sharma’s comment resulted in the outcome of the unfortunate incident in Udaipur was “irresponsible”.
The retired judge said, “it is irresponsible because it has prejudiced the case of Nupur Sharma in all subordinate courts… Making such an observation without any probe, or hearing of witnesses or hearing Nupur Sharma’s arguments is not only illegal, but also improper”, retd Justice Dhingra said.
He said, “even the Supreme Court is not above law. Before making such observation against a person, the normal procedure is that charges should have been framed and both the prosecution and defendant should have been allowed to have their say. Supreme Court in the past had given rulings that judges should stick to the case before them and refrain from making undue observations. Here, Nupur Sharma had pleaded that there were nearly 50 FIRs pending against her that needed to be clubbed, because appearing in court could be a threat of life to her. But the Supreme Court made strong observations against her, based on newspaper and media reports, which was unfair.”
The apex court’s observations became cannon fodder for the opposition in targeting Prime Minister Narendra Modi. Congress leader Rahul Gandhi said, “Instead of Nupur Sharma, it is Narendra Modi, Amit Shah, BJP and RSS, who have created this atmosphere of hate in the country. This is anti-national and goes against India’s interests and its people. The situation that we found today goes completely against our ethos and ideology.” AIMIM chief Asaduddin Owaisi asked, why PM Modi is not saying a word about Nupur Sharma’s remark. “The Prime Minister should understand that mere suspension is not a punishment. He is the prime minister for 133 crore Indians, which include 20 crore Muslims. Nupur Sharma should be arrested, but the fact is, BJP is trying to shield her.”
Compared to the shadow-boxing by political leaders, the best comment came from a cleric of Deoband seminary, Maulana Yaqoob Bulandshahri, who said that since Nupur Sharma has apologized and withdrawn her blasphemous remark, she should be pardoned and the entire issue should now be closed.
Friday’s observations by the vacation bench of the Supreme Court have instilled confidence in the minds of those who were assuming that no action would be taken against Nupur Sharma, but it is also a fact that the Hon’ble judges, in course of the hearing, made observations which has caused upset for some people. Some of these people said that it would be unjustified to blame Nupur Sharma for the barbaric beheading of a tailor by two Muslim fanatics in Udaipur. The ‘jihadi’ (fundamentalist) mindset of the terrorists in Udaipur cannot be ignored. There can be no excuse for beheading an innocent person
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक
महाराष्ट्र में नौ दिनों तक चले सियासी घमासान के अन्त में बीजेपी के दो झटकों ने सबको हैरान करके रख दिया। किसी ने ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि सूबे के सियासी ड्रामे का क्लाइमैक्स कुछ ऐसा होगा। पहला झटका: बीजेपी ने शिवसैनिक एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया। अब महाराष्ट्र में शिंदे की सरकार होगी और उसे बीजेपी के विधायकों का सपोर्ट होगा।
झटका नंबर 2: पार्टी के निर्देश पर देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। गुरुवार शाम 4:30 बजे तक महाराष्ट्र में हुए इस उलटफेर की भनक किसी को नहीं थी। फडणवीस ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू की तो कयास इस बात के लगाए जा रहे थे कि वह गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे या शुक्रवार को।
जब देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे तो पहली बार में वहां मौजूद पत्रकारों को यकीन ही नहीं हुआ। ज्यादातर लोग इस बात पर हैरान थे कि शिवसेना के 40 और 10 निर्दलीय विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे और 120 विधायकों के समर्थन वाली बीजेपी उनकी सरकार को सपोर्ट करेगी।
कई लोगों ये सवाल पूछ सकते हैं कि जब बीजेपी को एक शिवसैनिक को ही मुख्यमंत्री बनाना था, तो उसने 2019 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ऐसा क्यों नहीं किया? बीजेपी अगर ऐसा करती तो शिवसेना के साथ उसका गठबंधन बरकरार रहता। लेकिन मुझे लगता है कि बीजेपी ने ढाई साल सरकार चलाने के लिए एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला नहीं किया है। यह फैसला अगले 25 साल की लम्बी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
एकनाथ शिंदे पुराने शिवसैनिक हैं, और वह शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के करीबी रहे हैं। शिंदे हिंदुत्व के नाम पर सत्ता में आए हैं। चूंकि नई सरकार का नेतृत्व एक शिवसैनिक के हाथों में है, इसलिए इस एक फैसले ने उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य ठाकरे, संजय राउत और अरविंद सावंत के मुंह पर ताला लगा दिया है। अब उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है।
उद्धव ठाकरे कहा करते थे कि अगर बीजेपी ने किसी शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाया होता तो वह बीजेपी के साथ ही रहते। बालासाहेब ठाकरे का सपना था कि एक शिवसैनिक के नेतृत्व में शिवसेना की सरकार बने। अब जबकि बीजेपी ने एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बना दिया है और बालासाहेब के सपनों को पूरा कर दिया है, उसके विरोधियों के पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं। अपने पोते को गोद में लेकर शपथ ग्रहण समारोह में आए एकनाथ शिंदे ने बालासाहेब ठाकरे के नाम से शपथ ली।
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनता देख उद्धव ठाकरे के पास अब बीजेपी के खिलाफ बोलने के लिए कोई डायलॉग नहीं बचा। उद्धव ने अपने शिवसैनिकों का समर्थन भी खो दिया है, अब उनके पास शिवसेना सिर्फ नाम के लिए बची है। शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही सबसे बड़ी हार उद्धव की हुई है, जबकि देवेंद्र फडणवीस सबसे बड़े गेम चेंजर के रूप में उभरे हैं। बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) की अहम चुनावी लड़ाई से पहले एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करना शिवसेना के मनोबल के लिए एक तगड़ा झटका है।
इस पूरे खेल के हीरो रहे, देवेंद्र फडणवीस । यह बात खुद एकनाथ शिंदे ने जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही। शिंदे ने कहा, ‘बीजेपी के पास 120 विधायकों का समर्थन होने के बावजूद बालासाहब के एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री का पद देना देवेंद्र फडणवीस के बड़े दिल को दिखाता है।’
प्रेस कॉन्फ्रेंस में फडणवीस ने कहा था कि वह सरकार से बाहर रहेंगे। लेकिन इसके तुरंत बाद बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने फडणवीस से डिप्टी सीएम के रूप में कार्यभार संभालने की अपील की, और वह मान गए। शपथ लेने के बाद शिंदे और फडणवीस कार्यभार संभालने के लिए मंत्रालय गए। रविवार और सोमवार को होने वाले विधानसभा सत्र में सदन के पटल पर बहुमत साबित करने के बाद नई कैबिनेट का गठन होगा।
इस बात में कोई शक नहीं कि शिंदे का मुख्यमंत्री बनना देवेंद्र फडणवीस के लिए एक सेटबैक है। उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं रही होगी कि पार्टी उन्हें पहले शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने को कहेगी और फिर उनसे उपमुख्यमंत्री बनने को कहेगी। देवेंद्र फडणवीस पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं और उन्होंने इस फैसले को स्वीकार किया। इसके लिए उनकी तारीफ करनी चाहिए। लेकिन यह फैसला देवेंद्र फडणवीस के लिए कितना मुश्किल रहा होगा, इसे समझने के लिए उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के बारे में जानना जरूरी है।
फडणवीस पांच साल मुख्यमंत्री रहे और उनके काम की हर जगह तारीफ हुई। 2019 का विधानसभा चुनाव बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर लड़ा था। उद्धव ठाकरे जब ढाई साल तक मुख्यमंत्री रहे तो बीजेपी यही कहती थी कि शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव फडणवीस को सीएम बनाने के लिए लड़ा गया था। फडणवीस ने भी विधानसभा में एक शेर कहा था, ‘पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समंदर हूं, लौट कर आऊंगा।’
पिछले दिनों पहले राज्यसभा और फिर विधान परिषद के चुनावों में बीजेपी की आश्चर्यजनक जीत और महा विकास आघाडी की करारी हार सुनिश्चित करा कर फडणवीस ने ये साबित कर दिया कि वह महाराष्ट्र की राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं। एकनाथ शिंदे कई साल से उनके करीबी हैं, और उनके साथ मिलकर उद्धव ठाकरे की सरकार उखाड़ने का जो ऑपरेशन हुआ उसमें फडणवीस की अहम भूमिका थी। इस लड़ाई में फडणवीस ने शरद पवार जैसे चतुर, चालाक और अनुभवी राजनेता को मात दी।
एकनाथ शिंदे भी हैरान थे कि आखिरकार बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बना दिया? शिंदे ने पांच साल तक फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया, लेकिन अब यह उल्टा हो गया है। फडणवीस को शिंदे के अधीन काम करना होगा, लेकिन बीजेपी को आने वाले वक्त में इसका राजनीतिक लाभ मिल सकता है। फडणवीस भविष्य में समंदर की तरह लौटकर आएंगे।
Making Eknath Shinde the CM was BJP’s masterstroke
After nine days of political turmoil in Maharashtra, it was the BJP’s turn to shock everybody with a dramatic twist. Nobody could have dreamt the climax that was kept as a secret. Shiv Sainik Eknath Shinde was offered the post of Chief Minister by the BJP. Shinde will run his government with support from the largest party, BJP.
Shock number 2: On the party’s directive, Devendra Fadnavis took oath as Deputy Chief Minister. Till 4.30 pm on Thursday, nobody had an inkling about this dramatic twist in Maharashtra. When Fadnavis started his press conference, it was speculated whether he would take oath as the CM on Thursday or Friday.
When Fadnavis dropped the bombshell by announcing that Eknath Shinde will take oath as the Chief Minister, the reporters present could not believe their ears. Most of them were surprised how a leader of 40 Shiv Sena MLAs and 10 independents could become the chief minister, with support from BJP camp that commanded support of 120 MLAs.
There are many who could be asking if BJP had to make a Shiv Sainik as CM, it could have done so in 2019 when the assembly poll results were out. The SS-BJP alliance could have stayed intact. But I think, BJP’s decision to offer the CM post to a Shiv Sainik is not about forming a government for two and a half years. This decision could be part of a 25-year-long strategy.
Eknath Shinde is a Shiv Sainik, a close associate of his party founder Balasaheb Thackeray. Shinde has come to power in the name of Hindutva. Since the new government is headed by a Shiv Sainik, this single decision has shut off the mouths of Uddhav Thackeray, his son Aditya Thackeray, Sanjay Raut and Arvind Sawant. They have nothing to say now.
It was Uddhav Thackeray who had been saying that had BJP made a Shiv Sainik as CM, he would have stayed with the BJP. It was Balasaheb Thackeray’s dream to have a Shiv Sena government headed by a Shiv Sainik. Now that BJP has made a Shiv Sainik as CM and has fulfilled Balasaheb’s dreams, its opponents have no brownie points to score. Eknath Shinde, who had come to his oath ceremony, carrying his grandson in his lap, took the oath in the name of Balasaheb Thackeray.
By watching Eknath Shinde taking over as CM, Uddhav Thackeray has run out of catchy anti-BJP dialogues. Uddhav has lost the support of his Shiv Sainiks, though he has the Shiv Sena with him, only in name. With Shinde taking over as CM, Uddhav has become the biggest loser, while Devendra Fadnavis has become the biggest game changer.
Eknath Shinde taking over as CM has come as a big blow to Shiv Sena’s morale ahead of the crucial BMC (Brihanmumbai Municipal Corporation) electoral battle.
The hero in the entire drama was Devendra Fadnavis. It was none other than Eknath Shinde who articulated this at the joint press conference. Shinde said, “It is the large-heartedness of Devendra Fadnavis to give up the chief minister’s post for one of Balasaheb’s Shiv Sainiks, although BJP has the support of 120 MLAs”.
At the press conference, Fadnavis said, he would stay out of government. But soon afterwards, BJP president J P Nadda appealed to Fadnavis to take over as Deputy CM, and the latter agreed. After taking oath, both Shinde and Fadnavis went to Mantralaya to take charge. With the Assembly scheduled on Saturday and Sunday, the formation of the new Council of Ministers will take place after the new coalition proves its majority on the floor of the House.
Politically, it is undoubtedly a setback for Fadnavis by accepting Shinde as the CM. He never accepted that the party would ask him to announce Shinde’s name as CM and then appeal to him to become the Deputy CM. Fadnavis is a disciplined party worker and he accepted the party directive. He should be praised for his large heartedness. To understand why accepting this scenario was difficult for a leader like Fadnavis, one has to go through his political background.
Fadnavis was CM for five years, and his competence was praised by all. The 2019 assembly poll was contested by SS-BJP alliance while projecting Fadnavis as the chief ministerial candidate. For the last two and a half years, when Uddhav was the CM, BJP leaders used to point this out to him that Shiv Sena had fought the elections in the name of Fadnavis. It was Fadnavis who recited this Urdu couplet in the assembly, “Paani Utarta Dekh Kinaare Par Ghar Mat Bana Lena, Main Samandar hoon, lout kar aaonga.” (Do not build house on my river bank by watching the water recede, I am the sea, and I shall come back)
During the recent Rajya Sabha and Legislative Council elections, Fadnavis proved that he was a master strategist by ensuring BJP’s surprise wins and inflicting losses on Maha Vikas Aghadi. Eknath Shinde has been his close associate for many years, and Fadnavis had played a major role in the operate to topple Uddhav Thackeray’s government. Fadnavis inflicted defeat on a clever and experienced leader like Sharad Pawar. Even Eknath Shinde was surprised, when BJP ceded the CM post to him. Shinde worked as cabinet minister in Fadnavis-led government for five years, but now the tables have been turned. Fadnavis will have to work under Shinde, but for BJP, in the long run, this is going to yield political dividends. Fadnavis will make a comeback, like the sea waves.