Rajat Sharma

My Opinion

डीजीपी से फिर पूछा जाए कि करौली हिंसा के पीछे किसका हाथ है!

rajat-sirराजस्थान के करौली शहर में हिंदू नववर्ष के मौके पर हिंदुओं ने 2 अप्रैल को एक बाइक रैली निकाली थी। उनका जुलूस आगे बढ़ ही रहा था कि इसी दौरान भीड़ ने पथराव और आगजनी कर दी, और बाद में दंगा होने लगा। करौली शहर को हिलाकर रख देने वाली इस घटना ने अब एक दिलचस्प मोड़ ले लिया है। राजस्थान के DGP एमएल लाठर ने दंगाइयों और स्थानीय कांग्रेस पार्षद मतलूब अहमद को क्लीन चिट देने की कोशिश करते हुए कहा कि यह घटना हिंदू नौजवानों द्वारा भड़काऊ नारे लगाने का नतीजा थी। उन्होंने कहा, ‘उस दिन जो कुछ भी हुआ वह हिंदू संगठनों की वजह से हुआ। उनके भड़काऊ नारे लगाने के बाद हिंसा भड़की।’

डीजीपी लाठर ने यह भी आरोप लगाया कि हिंदू संगठनों ने मुसलमानों के इलाके से गुजरते हुए बगैर इजाजत डीजे बजाया था। उन्होंने कहा कि इसकी वजह से स्थानीय लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। डीजीपी ने अपने बयान में यह भी कहा कि जो हुआ था वह ‘ऐक्शन का रिऐक्शन’ था।

डीजीपी गलतबयानी कर रहे हैं। पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR में साफ लिखा है कि उसने बाइक रैली की इजाजत देने से पहले रूट की जांच की थी और पुलिस की गाड़ियां बाइक रैली के आगे-आगे चल रही थीं। FIR में लिखा है कि पुलिसवाले शांति के साथ निकल रही बाइक रैली की वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहे थे। इस दौरान किसी तरह की भड़काऊ बातें नहीं कही गई थीं, ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लग रहे थे। जुलूस में शामिल कुछ लोग ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगा रहे थे। पुलिस की तरफ से दर्ज FIR में लिखा है कि शाम के 4 बजे करीब 200 बाइक सवारों ने रैली की शुरुआत की थी और आगे-आगे एक पिकअप गाड़ी में डीजे बज रहा था।

शाम करीब 5 बजे के आसपास बाइक रैली हडवाड़ा बाजार में स्थित मस्जिद के पास पहुंची, तो अचानक इलाके के पार्षद मतलूब अहमद के घर की छत से पत्थर चलने लगे। कुछ देर बाद ही आसपास के मकानों से पत्थरबाजी शुरू हो गई। पुलिस की FIR के मुताबिक, इसी दौरान मस्जिद के आसपास के घरों की छतों से भी अंधाधुंध पथराव शुरू हो गया, जिसके बाद रैली में शामिल लोगों में भगदड़ मच गई। जिम सेंटर और आसपास के घरों से 100-150 की संख्या में लोग हाथों में लाठी-डंडे लेकर निकले, और पूरी प्लानिंग के साथ रैली में शामिल लोगों पर जानलेवा हमला किया, उनके साथ मारपीट की।

इससे पता चलता है कि या तो DGP ने अपनी पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR नहीं पढ़ी या वह गलतबयानी कर रहे थे। उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के पार्षद मतलूब अहमद को क्लीन चिट देने की कोशिश की। DGP ने कहा कि मतलूब अहमद को पुलिस ने इलाके में व्यवस्था की बहाली में मदद करने के लिए बुलाया था। अब सवाल यह उठता है कि अगर पुलिस ने मतलूब को शांति बहाल करने में मदद के लिए बुलाया था, तो FIR में उसका नाम आरोपी के तौर पर क्यों लिखा गया है? पुलिस मतलूब को क्यों खोज रही है?

हमारे जयपुर संवाददाता मनीष भट्टाचार्य ने 3 दिन पहले एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें दिखाया गया था कि करौली में मतलूब और उसके आसपास के घरों की छतों पर किस तरह से पत्थर इक्कठा करके रखे गए थे। क्या लोगों को पहले से मालूम था कि हिंदू संगठनों का जुलूस निकलेगा जिसमें वे भड़काऊ नारे लगाएंगे, उसके बाद पत्थरबाजी और आगजनी करनी पड़ेगी?

DGP गुमराह कर रहे हैं। मतलूब दंगाई भीड़ का नेतृत्व कर रहा था और यह शुक्रवार को सामने आए एक वीडियो में साफ नजर आ रहा है। वीडियो में सभी दंगाइयों के चेहरे साफ-साफ दिख रहे हैं और उनको कांग्रेस पार्षद मतलूब अहमद लीड कर रहा था। वह बाकी के दंगाइयों को फोन पर ऑर्डर दे रहा था और उन्हें हिंसा के लिए उकसा रहा था। वीडियो में भीड़ हाथों में लाठियां और हथियार लेकर दुकानों, घरों और गाड़ियों में तोड़फोड़ करती दिखाई दे रही है। FIR में नामजद 4 मुख्य आरोपियों को इस वीडियो में देखा जा सकता है। मतलूब अहमद इन सबको लीड कर रहा था जो पिछले एक हफ्ते से फरार है।

वीडियो में मतलूब का भाई मुश्ताक पुलिस के साथ उलझते हुए आ रहा है। इस दौरान एक अन्य आरोपी फहीम और उसका भाई अंशी भी उसके साथ नजर आ रहा है। 2 अप्रैल को हिंदू संगठनों की बाइक रैली करौली के हाथीघटा से शुरू होकर गुलाब बाग सर्कल, हिंडौन गेट, फूटाकोट होते हुए हडवाड़ा बाजार पहुंची थी। यह शहर का घना इलाका है। पुलिस ने FIR में जो लिखा, वही बात स्थानीय लोग भी कह रहे हैं। वे बता रहे हैं कि मतलूब अहमद के घर से पत्थर चले। मस्जिद की छत से भी पत्थरबाजी हुई। दंगाई तलवारों और लाठियों से लैस थे।

हिंसा में घायल हुए लोगों में शामिल केशवदास शर्मा ने कहा कि उन्हें दुख इस बात का है कि जो मुस्लिम उनके दोस्त थे, जो उनके बचपन के साथी थे, उन्ही लोगों ने हमला किया और उनमें मतलूब भी शामिल था। घटना में 10वीं में पढ़ने वाला अंशु भी घायल हुआ था। बाइक रैली में गए अंशु का एक हाथ बुरी तरह टूट गया है। अंशु ने बताया कि उस पर उन लड़कों ने ही हमला किया, जो उसके साथ स्कूल में पढ़ते हैं। जिस जगह पर पथराव और हिंसा हुई, वहां एक तरफ मस्जिद है और दूसरी तरफ मंदिर को रास्ता जाता है। मंदिर से सटी दुकानें हिंदुओं की हैं, और इस इलाके के दुकानदार अब दहशत में हैं। बीजेपी ने करौली हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की है।

कांग्रेस सरकार ने शुक्रवार को गृह सचिव कैलाश चंद्र मीणा को जांच कर 15 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। इस बीच, विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के उपनेता राजेंद्र राठौर के नेतृत्व में एक 7 सदस्यीय समिति ने 2 दिन करौली के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके एक रिपोर्ट पहले ही तैयार की है। राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पुनिया ने शुक्रवार को दिल्ली में पार्टी नेताओं को यह रिपोर्ट सौंपी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से प्लान किया गया यह दंगा पुलिस की लापरवाही के कारण हुआ। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दंगों से एक दिन पहले 1 अप्रैल को कुछ स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने बाइक रैली रोकने की बात कही थी, और रैली निकालने पर नतीजे भुगतने की धमकी दी थी, लेकिन पुलिस ने कोई एहतियाती कदम नहीं उठाया। बीजेपी की जांच समिति की रिपोर्ट में पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक को लिखी गई एक चिट्ठी का भी जिक्र है।

बीजेपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस दिंन दंगा हुआ उस दिन इस इलाके में मुसलमानों के ऑटोरिक्शा, रिक्शा और ठेले सड़कों से नदारद थे, और दुकानें बंद थीं। इससे यह संदेह होता है कि क्या किसी समुदाय विशेष के लोगों को दंगों के बारे में पहले से पता था। कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने निष्पक्ष जांच का वादा किया और कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने शुक्रवार को करौली शहर का दौरा किया, दंगा पीड़ितों से मुलाकात की और आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार अपने पार्षद मतलूब अहमद को बचाने की कोशिश कर रही है।

मैं डीजीपी लाठर के बयानों से हैरान हूं। ऐसे समय में जब जांच चल रही है, सूबे के पुलिस चीफ नतीजा कैसे बता सकते हैं? वह कैसे कह सकते हैं कि दंगे भड़काऊ नारों की वजह से भड़के? जिस आदमी को पुलिस खोज रही है, उसे पुलिस चीफ बेगुनाह कैसे कह सकता है? डीजीपी ने जो कहा उस पर सवाल बहुत सारे हैं।

अगर हिंसा हिन्दू संगठनों की नारेबाजी से भड़की, माहौल नारेबाजी से खराब हुआ तो PFI ने 2 दिन पहले लिखी चिट्ठी में जुलूस की इजाजत को रद्द करने की मांग क्यों की थी? PFI ने सरकार को पहले ही चिट्ठी लिखकर हिंसा की आशंका कैसे जता दी थी? अगर हिन्दू संगठनों को बाइक रैली में डीजे बजाने की इजाजत नहीं थी, तो फिर जुलूस के साथ चल रहे पुलिस अफसरों ने डीजे लेकर चल रही गाड़ी को रोका क्यों नहीं?

अगर पुलिस ने मतलूब को मदद के लिए बुलाया, तो उसे आरोपी क्यों बना दिया, और वह अचानक अंडरग्राउंड क्यों हो गया? मुझे लगता है कि DGP जैसे बड़े पद पर बैठे अफसर को दंगों पर बयान देते हुए बहुत सोच-समझकर बोलना चाहिए, क्योंकि उनकी बातों का गंभीर असर होता है। समाज में नफरत पैदा करने वाले, माहौल को खराब करने वाले लोगों का मजहब से कोई लेना-देना नहीं होता।

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Who’s behind Karauli violence: Ask DGP again!

rajat-sirThe violence that shook the town of Karauli in Rajasthan on April 2, when a mob stoned a bike rally taken out by Hindus during Hindu New Year celebrations and then indulged in arson and riots, has now taken an interesting turn. The Director General of Rajasthan Police M L Lather sought to give rioters a clean chit to local Congress councillor Matloob Ahmed, by saying that the incident was provoked by Hindu youths shouting inflammatory slogans. “Whatever happened on that day was due to Hindu outfits who shouted provocative slogans leading to violence”, he said.

The DGP also alleged that the Hindu outfit started playing DJ music without seeking prior permission, while passing through a Muslim locality. This, he said, led to stoning from local residents. The DGP also remarked this was a reaction to an action that had taken place.

The DGP is misleading. The FIR filed by police clearly states that police had checked the route of the bike rally, before granting permission, there were police vehicles leading the bike rally, and policemen were video recording the peaceful bike rally. There were no provocative slogans except ‘Vande Mataram’ and ‘Bharat Mata Ki Jai’, while some were shouting ‘Jai Shri Ram’ slogans. The FIR states that at around 4 pm, nearly 200 bikers started the rally with a pickup vehicle in front playing DJ music.

At around 5 pm, when the rally reached a mosque in Hatwara bazaar, stones were pelted from the roof of local Congress councillor Matloob Ahmed’s house. Soon more stones were thrown from nearby buildings causing a stampede. The FIR also clearly states that nearly 100-150 people armed with lathis came out from a gym centre and nearby buildings, and in a pre-planned manner attacked the bikers.

This shows that the DGP either did not go through the FIR filed by his police or was trying to mislead. He was trying to give a clean chit to the ruling party councillor Matloob Ahmed. The DGP said, the councillor was called by police to the locality to help in restoring order. The question now arises: if police had called Matloob to help in restoring peace, why was he named in the FIR as an accused? Why is Matloob Ahmed hiding and police is on his lookout?

Our Jaipur correspondent Manish Bhattacharya had sent a report three days ago, which said, stones were collected on the roofs of Matloob’s and several other adjoining buildings in advance. Did local residents know that a bike rally would pass through their locality, that they would chant provocative slogans leading to stoning?

The DGP is misleading. The rioter was leading the mob and it is clearly established in a video that has surfaced on Friday. The video clearly shows the faces of all the rioters and they were being led by Congress councillor Matloob Ahmed. He was directing other rioters on phone and inciting them for violence. The video shows the mob ransacking shops, homes and vehicles, by carrying lathis and weapons in hand. Four main accused, named in the FIR, can be seen in this video, and they were being led by Matloob Ahmed, who is now hiding from police for the last one week.

The video shows Matloob’s brother Mushtaq arguing with police, and two others Faheem and his brother Anshi. On April 2, the bike rally began from Hathighata in Karauli, and passed through Gulab Bagh Circle, Hindaun Gate, Phoota Kot and Hatwara Bazaar, which is a densely populated area. The facts stated in the FIR have been corroborated by local residents who said, stones started raining from the roof of councillor Matloob Ahmed’s house. Stones were also thrown from the roof of the mosque. The rioters were armed with swords and lathis.

One of the injured, Keshavdas Sharma said, he was extremely sad to find his Muslim neighbours, who were his friends since childhood, were among the rioters, and they included Matloob. Another injured Anshu, a Class 10 student, who was part of the bike rally, suffered severe fracture in his hand. He described how he was attacked by youths who studied with him in school. The place where stoning and violence took place, has a mosque and a road that leads to a temple. Shops adjoining the temple belong to Hindus, who are now in fear. BJP has demanded a judicial probe into the Karauli violence.

On Friday, the Congress government directed the Home Secretary Kailash Chandra Meena to probe and submit his report within 15 days. Meanwhile, a seven-man committee led by Deputy Leader of BJP in Assembly Rajendra Rathore, has already given its report after visiting the areas for two days. Rajasthan state BJP chief Satish Punia submitted this report to party leaders in Delhi on Friday.

The report says, the riots, which were pre-planned, took place due to sheer negligence on part of police. The report also says that on April 1, a day before the riots, some local Muslim leaders had spoken about stopping the bike rally and had threatened consequences, but police did not take precautionary measures. The BJP inquiry committee report also mentioned a letter from People’s Front of India written to the Chief Minister and Director General of Police.

The report pointed out that on the day of violence, Muslims plying autos, rickshaws, and handcarts were off the roads, leading to suspicions whether people of a particular community knew about the riots taking place in advance. Congress leader Sachin Pilot promised an impartial inquiry and said, culprits will not be spared. BJP MP Kirori Lal Meena visited Karauli town on Friday, met riot victims and alleged that the Congress government was trying to shield its councillor Matloob Ahmed.

I am surprised over DGP Lather’s remarks. At a time when the inquiry is in progress, how can the state police chief disclose its conclusion? How can he say that the riots took place because of provocative slogans? How can the man who has gone underground be described as innocent by the police chief? Several questions arise about the remarks made by the police chief.

If riots take place because of provocative slogans, then why did PFI wrote a letter two days before the bike rally that the permission should be cancelled? How could the PFI write a letter in advance expressing apprehension about riots? If the remark by police chief that no permission for use of DJ music was given, that how was the police accompanying the pick-up vehicle that was blaring DJ music? Why was the DJ vehicle not stopped?

If police had called Matloob to the locality to help in restoring order, how come he suddenly went underground, and was made an accused in the FIR? I think a senior police officer holding the rank of DGP must be careful while making remarks about riots, because such remarks can have serious repercussions. Those who sow seeds of hatred in society and try to disturb peace have nothing to do with religion per se.

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पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का फैसला: इमरान की ‘आखिरी बॉल’

rajat-sirपाकिस्तान में सियासी उथल-पुथल के बीच प्रधानमंत्री इमरान खान को जबरदस्त झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार की रात नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर की रूलिंग को गैरकानूनी करार दिया। डिप्टी स्पीकर ने इमरान सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को रद्द कर दिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल असेंबली को भंग करने के फैसले को भी गलत बताते हुए उसे रद्द कर दिया और स्पीकर असद कैसर को हुक्म दिया कि वह 9 अप्रैल को सुबह 10.30 बजे नेशनल असेंबली की बैठक बुलाकर मतदान कराएं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर फैसला हुए बिना सत्र का समापन नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार ‘असेंबली सत्र में नेशनल असेंबली के किसी भी सदस्य की भागीदारी में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।’

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर जहां विपक्षी दलों ने खुशी जताई वहीं इमरान खान ने कहा कि वह ‘आखिरी गेंद तक पाकिस्तान के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इस केस पर अपना फैसला दिया। कोर्ट ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा- ‘राष्ट्रपति के आदेश को प्रभावी बनाने के लिए अब तक जो भी कार्यवाही हुई है या शुरू की गई है, उनका अब कोई कानूनी प्रभाव नहीं है और उन्हें निरस्त किया जाता है।’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘डिप्टी स्पीकर का फैसला संविधान और कानून के विपरीत है और इसका कोई कानूनी प्रभाव नहीं है, इसे रद्द किया जाता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की नेशनल असेंबली को भंग करने की घोषणा भी ‘संविधान और कानून के विपरीत है और इनका कोई कानूनी प्रभाव नहीं है… आगे यह घोषणा की जाती है कि (नेशनल) असेंबली हर समय अस्तित्व में थी और आगे भी बनी रहेगी ।’ सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि प्रधानमंत्री और सभी संघीय मंत्रियों, राज्य मंत्रियों, सलाहकारों और सरकार के अन्य पदाधिकारियों को 03 अप्रैल 2022 के प्रभाव से संबंधित दफ्तरों में बहाल किया जाए।

विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा, ‘इस फैसले ने निश्चित तौर पर जनता की अपेक्षाओं को पूरा किया है।’ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख बिलावल भुट्टो ने इसे ‘लोकतंत्र और संविधान की जीत बताया है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा, ‘देश को बर्बाद करनेवाले ऐसे शख्स से छुटकारा पाने के लिए पाकिस्तान के लोगों को बधाई। उन्होंने आम जनता को भूखा रखा। आज डॉलर 200 रुपए के स्तर तक पहुंच गया है और लोग महंगाई से हताश हैं।’ नवाज शरीफ इन दिनों लंदन में हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष ने इमरान खान पर जीत दर्ज की है। अब अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना है या इस्तीफा देना है, यह फैसला इमरान खान को लेना है। सुप्रीम कोर्ट के सभी पांच जजों का मत था कि अर्थव्यवस्था में मंदी है और जनता महंगाई से पीड़ित है, ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को एक मजूबत और स्थिर सरकार की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों का मत था कि चुनाव होने चाहिए लेकिन यह नेशनल असेंबली को तय करना है कि चुनाव में कब जाना है, और चुनाव की तारीखों का फैसला चुनाव आयोग को करना है। पाकिस्तान चुनाव आयोग के सचिव को सुप्रीम कोर्ट में तलब किया गया था। चुनाव आयोग ने कहा कि देश में अक्टूबर से पहले चुनाव नहीं हो सकते क्योंकि निर्वाचन क्षेत्रों को परिसीमन करना जरूरी है।

इमरान खान जानते थे कि नेशनल असेंबली का गणित और उनके सहयोगी दल उनके खिलाफ हैं। उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने बहुमत खो दिया है। उनके अपने 22 सांसद भी उनके खिलाफ हैं। पाकिस्तान की आर्मी उनके खिलाफ है। महंगाई के कारण आवाम भी उनसे नाराज है। विपक्ष के सारे नेता उनके खिलाफ एकजुट हैं।

इमरान खान को आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से रही होगी। उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जाएगी। लेकिन इमरान खान की हर चाल को सुप्रीम कोर्ट ने बेनकाब कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर और राष्ट्रपति द्वारा नेशनल असेंबली को भंग करने के फैसले को निरस्त कर दिया।

सीधे शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट विपक्ष के इस आरोप से सहमत था कि इमरान खान ने तमाम नियमों और कानूनों को हवा में उड़ाकर संविधान का मजाक बनाया है। दूसरे शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान और सलाहकारों द्वारा किए गए विश्वासघात का पर्दाफाश कर दिया है।

इमरान खान ने अमेरिका का नाम लेकर और विपक्ष के साथ मिलकर उनकी सरकार को गिराने की साजिश का आरोप लगाकर जनता की सहानुभूति लेने की कोशिश की। उन्होंने विपक्षी नेताओं को मीर जाफर बताया (मीर जाफर ने 18 वीं शताब्दी में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ विश्वासघात किया था और भारत पर ब्रिटिश कब्जे के लिए रास्ता खोल दिया था)।

इमरान खान जानते थे कि उन्होंने संसद में बहुमत खो दिया है। उन्होंने अपनी पार्टी छोड़कर जाने वाले सदस्यों को डराने-धमकाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं डरे। अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर उन्होंने गठबंधन छोड़नेवाले अपने सहयोगियों को बदनाम करने की कोशिश की लेकिन वो भी नहीं माने। इसके बाद इमरान ने जनसभा बुलाई और वहां एक चिट्ठी लहराई। उन्होंने विदेशी ताकतों की साजिश की बात की लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ। फिर उन्होंने नेशनल टेलीकास्ट में अमेरिका पर उनकी सरकार गिराने की सजिश का इल्जाम लगाया और विरोध करने वाले नेताओं को अमेरिका का पिट्ठू बताया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

जब इमरान को लगा कि बाजी हाथ से जाने वाली है तो उन्होंने विपक्ष से डील करने और फौज को बीच में डालने की कोशिश की। इमरान कुर्सी छोड़ने को तैयार हो गए लेकिन इस शर्त पर कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव वापस ले और पाकिस्तान में चुनाव कराए जाएं।

जब विपक्ष ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और यहां भी बात नहीं बनी तो इमरान खान ने नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव खारिज करवा दिया। नेशनल असेंबली भंग कर चुनाव की घोषणा करवा दी। इमरान खान को लगा कि उन्होंने मास्टर स्ट्रोक खेला है। उन्हें लगा कि अब वह चुनाव में आक्रामक रहेंगे। अमेरिका पर साजिश का इल्जाम लगाकर हीरो बन जाएंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इमरान की इस चाल को भी नाकाम कर दिया।

इमरान खान को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत अब संसद में अविश्वास मत का सामना करना पड़ेगा। नेशनल असेंबली में उनकी हार तय मानी जा रही है। ऐसे में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा। ऐसी स्थिति में नई सरकार बनेगी। विपक्ष पहले ही एकजुट होकर प्रधानमंत्री पद के लिए शहबाज शरीफ को अपना उम्मीदवार बनाने पर सहमत हो गया है। नई सरकार के गठन के बाद चुनाव आयोग चुनाव की तारीखों का एलान करेगा। अब तक तो इमरान खान कह रहे थे कि ‘आखिरी बॉल तक खेलेंगे’। अब बेहतर यही होगा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘आखिरी बॉल’ मान लें।

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Pak Supreme Court’s verdict: Imran’s “last ball”

akb fullIn a big jolt to Prime Minister Imran Khan, a five-judge bench of Pakistan Supreme Court on Thursday night set aside the Deputy Speaker’s ruling as unconstitutional, restored the dissolved National Assembly and directed Speaker Asad Qaiser to summon the assembly session and get the voting on no-confidence motion done, not later than 10.30 am(Pakistan Time) on Saturday.

The apex court said the session shall not be prorogued without the conclusion of the no-confidence motion against Prime Minister Imran Khan. It also said the government “cannot interfere in the participation of any member of National Assembly in the assembly session.”

While the main opposition parties rejoiced over the SC verdict, Imran Khan said, he would “continue to fight for Pakistan till the last ball”. In its unanimous 5-0 verdict, the Supreme Court in its brief order said, “all actions, acts or proceedings initiated, done or taken, by reason of, or to give effect to the President’s order, are of no legal effect, and are hereby quashed”.

The apex court said, the deputy speaker’s ruling was “contrary to the Constitution and the law and of no legal effect, and the same are hereby set aside.” The apex court said President Arif Alvi’s proclamation dissolving the National Assembly was also “contrary to the Constitution and the law and of no legal effect….It is further declared that the (National) Assembly was in existence at all times, and continues to remain to be so”. The Supreme Court ordered that the Prime Minister and all federal ministers, ministers of state, advisers, and other functionaries of the government be restored to their respective offices as on April 3, 2022.”

Leader of the opposition Shehbaz Sharif welcomed the apex court order and said, it has “definitely fulfilled the expectations of the people”. Pakistan People’s Party chief Bilawal Bhutto described it as “a victory for democracy and Constitution”. From London, former PM Nawaz Sharif, who is in self-exile, said, congratulated the people of Pakistan for “getting rid of such a person who ruined the country. He made common people starve. Dollar has reached 200 rupees today and people are frustration with inflation in the country.”

There is not an iota of doubt that the combined opposition has scored a victory over Imran Khan in the Supreme Court. It is up to Imran Khan to decide whether to face the no-confidence motion or resign. All the five judges of Supreme Court were of the view that that the country needed a strong and stable government as the economy was in doldrums and people were suffering because of inflation.

The judges were of the view that elections should take place, but it was up to the National Assembly to decide when to go in for elections, and for the Election Commission to decide about the dates. The secretary of Pakistan Election Commission was summoned to the apex court. The Election Commission has said that elections cannot be held before October because delimitation of constituencies required to be done.

Imran Khan knew that his game was up, as his party Pakistan Tehreek-e-Insaaf(PTI) had lost majority inside the National Assembly. His allies broke away and 22 of his MPs also defected to the opposition camp. He knew, both the parliament and the army were against him, and the people of Pakistan were unhappy with him because of his government’s failure in curbing inflation.

Imran Khan had his last hope pinned on the Supreme Court, from where he expected some sort of relief, but the apex court completely upset his cart by quashing all steps taken by the deputy speaker and the President that had led to the dissolution of the National Assembly.

In plain words, the Supreme Court agreed with the opposition’s charges that Imran Khan has made a mockery of the Constitution by throwing all precedents and rules to the winds. In other winds, the Supreme Court exposed the treachery committed by Imran Khan and his advisers.

Imran Khan tried to gain sympathy from the common voters by naming America as the devil which, he said, was “conspiring with the opposition” to topple his government. He described the opposition leaders as Mir Jafar, the army commander who in the 18th century had commited treachery against Nawab Sirajuddaulah of Bengal and opened the path for British occupation of India.

Imran Khan knew that he had lost majority in parliament, and yet he tried to intimidate his party MNAs who had crossed over to the opposition camp. He also discredited his allies who left the alliance when the no-trust motion came up. Imran then called a public meeting, where he took out a paper from his coat pocket, brandished it before the people and alleged that there was “a foreign hand behind the conspiracy” to topple his government. He then went on national television to blame the US for trying to dislodge his government. In his nationwide televised address, he described the top three opposition leaders as “stooges” of the US.

When Imran Khan found that his opinion had no takers, he tried to bring in the army to play a mediatory role between him and the opposition. He agreed to resign, but on condition that the opposition should first withdraw its no-trust motion and agree to fresh elections.

When the opposition rejected his offer and dared him to come before parliament to face the no-trust vote, Imran Khan conspired with the Speaker and Deputy Speaker and got the no-trust motion notice rejected. He got the President to dissolve the National Assembly and order fresh elections. Imran Khan considered this as his “masterstroke”. He felt that he would now go on the offensive, and project himself before the people as a hero or martyr, and name America as the main conspirator which toppled his government. But on Thursday night, the Supreme Court nipped his plans in the bud.

Imran Khan, under orders from Supreme Court, will now have to face no-confidence vote in Parliament, and if he loses, which appears to be a certainty, he will have to resign, and the House will elect a leader who will become the new Prime Minister. The combined opposition has already agreed to field Shehbaz Sharif as its candidate for prime minister post. It will then be up to the Election Commission to fix dates for fresh parliamentary elections.

Imran Khan is still claiming that he will play “till the last ball”. It could be an honourable exit for him if he agrees to the Supreme Court verdict as “the last ball”.

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गर्मियों में पानी की कमी से बचने के लिए कैसे करें जल संरक्षण

rajat-sirअप्रैल के पहले हफ्ते में ही उत्तरी, पश्चिमी, पूर्वी और मध्य भारत के अधिकांश हिस्से भीषण गर्मी से तप रहे हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड जैसे कई राज्यों के गांवों में सूखे जैसे हालात दिखने लगे हैं। विदर्भ इलाके में भी हालात परेशान करने वाले हैं। महिलाओं को पानी लेने के लिए काफी दूर तक चलना पड़ रहा है क्योंकि ज्यादातर कुएं सूख चुके हैं और पानी का स्तर नीचे चला गया है।

बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने महाराष्ट्र में नासिक जिले में पड़ने वाले त्रयंबकेश्वर के पास मेटघर गांव की हालत दिखाई, जहां पानी का एकमात्र स्रोत एक कुआं है, और महिलाएं हर रोज पानी लेने के लिए उस कुएं में 50 फीट की गहराई तक उतरती हैं। चूंकि कुएं में इतना पानी नहीं है कि रस्सी से बाल्टी डालकर पानी खींचा जा सके, इसलिए रोजाना गांव की कोई एक महिला इसी तरह कुएं में उतरती है ताकि वह दूसरे लोगों की बाल्टी भी भर सके। 35 फीट गहरे इस कुएं में उतरना इनकी मजबूरी है और यह कुआं भी गांव से 2 किलोमीटर दूर है।

वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि महिलाएं पानी इकट्ठा करने के लिए कुएं की छोटी-छोटी सीढ़ियों से उतरते हुए अपनी जान जोखिम में डाल रही हैं। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि मेटघर गांव में और उसके आसपास 3 कुएं हैं, लेकिन गांव के लोग सिर्फ एक ही कुएं से पानी ले रहे हैं और बाकी के 2 कुओं पर नहीं जा रहे हैं। नासिक जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी लीना बन्सोड ने कहा कि जल संकट का समाधान जल्द कर लिया जाएगा।

नासिक कोई कम बारिश वाला इलाका नहीं है। शहर के पास बहने वाली गोदावरी नदी में पिछले 10 सालों में कम से कम 4-5 बार बाढ़ आ चुकी है और पिछले साल इस इलाके में 476 मिलीमीटर बारिश हुई थी। महाराष्ट्र के जल आपूर्ति मंत्री संजय बन्सोड ने इंडिया टीवी को बताया कि कुएं में उतरकर पानी भरती महिलाओं की तस्वीरें उन्होंने भी देखी हैं। उन्होंने कहा कि गांव में पानी के टैंकर भेजे जाएंगे और वादा किया कि समस्या का स्थायी समाधान किया जाएगा।

जल आपूर्ति मंत्री ने दावा किया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 55 लीटर पानी उपलब्ध कराने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। कड़वी जमीनी हकीकत यह है कि लोगों को रोजाना 2 लीटर पीने का साफ पानी भी मुश्किल से मिल पाता है।

विदर्भ में भी हालात काफी खराब हैं। नागपुर के पास रहने वाले ग्रामीणों ने पानी की भारी किल्लत की शिकायत की है। इंडिया टीवी की रिपोर्टर ने नागपुर से 15 किलोमीटर दूर गोधनी गांव का दौरा किया। इस गांव की आबादी करीब 17,000 है। रिपोर्टर से मिले अधिकांश ग्रामीणों ने पानी की कमी की शिकायत की। हालत यह है कि गांव वालों ने एक कुएं में 50 से 60 पाइप डालकर खुद ही घर तक पानी सप्लाई का इंतजाम किया है।

स्थानीय अधिकारियों ने 4-5 ‘Water ATMs’ लगाए हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर ने लगभग 10 महीने तक पानी दिया और इसके बाद काम करना बंद कर दिया। ये ‘वॉटर एटीएम’ अब महज शोपीस बनकर रह गए हैं। गांव वालों का कहना है कि जब सरकार को इनकी देखभाल नहीं करनी थी तो फिर ‘Water ATMs’ पर करोड़ों रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी।

दिक्कत की बात यह है कि जब भी गंभीर जल संकट होता है, तो स्थानीय नौकरशाह एक ही समाधान बताते हैं और वह है जल संरक्षण। नागपुर जिला परिषद के एग्जेक्यूटिव इंजीनियर ने कहा कि जल स्तर को ऊपर बनाए रखने के लिए वॉटर कंजर्वेशन शाफ्ट डाले जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तक राज्य सरकार और स्थानीय ग्रामीण जल संरक्षण के लिए साथ नहीं आएंगे, तब तक कोई ठोस नतीजा नहीं मिल सकता।

महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा बीते कई दशकों से पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इन इलाकों में बारिश कम होती है जिससे अधिकांश क्षेत्रों में जल स्तर नीचे चला गया है। कई छोटे बांध बनाए गए हैं लेकिन पानी की कमी के कारण वे भी सूख गए हैं। ज्यादातर पानी का इस्तेमाल खेतों की सिंचाई के लिए होता है जिससे घरेलू इस्तेमाल के लिए कम पानी बचता है।

झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसे ही हालात हैं। झारखंड की राजधानी रांची के पास स्थि एक गांव चिरुडीह ऊपरटोला के लोग तो पहाड़ी नाले का पानी को पीने को मजबूर हैं। जल संकट इतना गहरा है कि हथेलियों या फिर थाली और कटोरी की मदद से पानी को बाल्टी में भरा जा रहा है। कहने को तो सरकार की तरफ से यहां हैंडपंप और जल मीनार भी लगाए गए हैं, लेकिन वे किसी काम के नहीं हैं। गांव के मुखिया ने पानी की समस्या के लिए गांव वालों को दोषी ठहराते हुए कहा कि वे जल मीनार के रखरखाव के लिए पैसा नहीं देते, जिससे वह खराब पड़ा है।

पानी की कमी से जूझ रहे लोगों को मध्य प्रदेश के देवास से सीख लेनी चाहिए, जहां कुछ साल पहले पानी का स्तर 800 फीट से भी नीचे चला गया था, लेकिन अब 50 फीट पर आ गया है। कई साल पहले भारत की पहली ‘वॉटर ट्रेन’ लातूर (महाराष्ट्र) से देवास (मध्य प्रदेश) तक चलाई गई थी, जो उस समय जल संकट का सामना कर रहा था। लेकिन अब हालात पहले से बेहतर हो गए हैं।

यह करिश्मा एक आईएएस अफसर उमाकांत उमराव के कारण हो पाया जिन्होने जल संरक्षण के लिए अथक प्रयास किये। उमाकांत उमराव को ‘वाटर क्रूसेडर'(जल योद्धा) के रूप में जाना जाता है। वे 2006 से 2007 तक देवास मे जिला कलेक्टर थे। उसी समय उन्होंने ‘जल अर्थशास्त्र’ नामक एक आंदोलन शुरू किया और ग्रामीणों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया।

‘रेवा सागर भगीरथ कृषक अभियान’ के तहत किसानों ने अपने खेतों में छोटे छोटे तालाब बनवाए और उनका नाम ‘रेवा सागर’ रखा। रेवा नर्मदा नदी का स्थानीय नाम है। भगीरथ का पुराणों में ज़िक्र है जो वह गंगा को धरती पर लाए थे। पहले साल के दौरान अकेले देवास जिले में सैकड़ों ‘रेवा सागर’ बनाए गए और जल्द ही यह अभियान मध्य प्रदेश के सीहोर, शाजापुर, उज्जैन, हरदा, खंडवा, रायसेन, धार, विदिशा, भोपाल और होशंगाबाद में फैल गया।

उमाकांत उमराव ने बैंकों को किसानों को तालाब बनाने के लिए कर्ज देने के लिए राजी किया और बाद में किसानों ने ये कर्ज चुका भी दिए । तालाबों में इकट्ठा किए गए बारिश के पानी में भूजल की तुलना में कहीं ज्यादा घुलनशील नाइट्रोजन था। यह पानी रबी की फसल उगाने के लिए अच्छा था और पैदावार बढ़ने की वजह से स्थानीय किसान समृद्ध हुए।

जब ये तालाब गर्मियों में सूख जाते थे तो उपजाऊ मिट्टी को इकट्ठा किया जाता था और उसे खेतों में डाल कर फसल उगाई जाती थी। फसल की कटाई के बाद मिट्टी को फिर से तालाबों में इस्तेमाल किया जाता था। इससे जमीन की पैदावार बढ़ी और मिट्टी का कटाव कम हुआ। संक्षेप में कहें तो रेवा सागर योजना मूल रूप से सतही जल भंडारण पर आधारित थी और इससे गर्मियों में किसानों की काफी मदद हुई।

उमाकांत उमराव अब मध्य प्रदेश सरकार के पंचायत और ग्रामीण विकास सचिव हैं। अन्य राज्यों को भी इस प्रयोग से सीखना चाहिए और जल संरक्षण की दिशा में काम करना चाहिए ताकि लोगों को जल संकट का सामना न करना पड़े।

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How to conserve water and avoid water crisis during summer

rajat-sirAs most parts of northern, western, eastern and central India face scorching heat due to an early onset of summer in the first week of April, villages in many states like Maharashtra, Madhya Pradesh, Rajasthan and Jharkhand are facing acute shortage of water. The water scarcity situation is acute in Vidarbha region also. Women are walking long distances to collect water as most of the wells have dried up and the water table has gone down.

In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed visuals from Metghar village near Tryambakeshwar near Nashik in Maharashtra, where the only water source is a well, and every day, women descend 50 feet deep into this well to collect water. Since the water table has gone down, women are using long ropes tied to pails to collect water. Many women in this village walk two kilometre distance daily to fetch water from another well that is 35 feet deep.

The video clearly shows women risking their lives by clinging on to tiny steps to enter the well and collect drinking water. When India TV reporter contacted local authorities, they said there were three wells in and around Metghar village, but villagers were collecting water only from one well, and are not going to the other two wells. Leena Bansode, chief executive officer of Nashik Zilla Parishad said, the water crisis will be resolved soon.

Nashik is not an arid region. In the last ten years, the Godavari river flowing near the city was flooded at least four to five times and last year there was 476 millimetres rainfall in this area. Maharashtra water supply minister Sanjay Bansode told India TV that he had seen the video of women entering well to collect water. He promised to bring a permanent solution to the water problem and as a short-term measure, he said, water tankers will be sent to the village.

The water supply minister claimed that Chief Minister Uddhav Thackeray’s government is trying to achieve its target to provide 55 litres of water daily to every individual in rural areas. The bitter ground reality is that people are hardly able to get even two litres of water every day.

The situation is acute in Vidarbha region too. Villagers living near Nagpur have complained of acute water scarcity. India TV report visited Godhni village, 15 km from Nagpur where the population is nearly 17,000. Most of the villagers the reporter met complained of water scarcity. In one well, villagers have inserted 50 to 60 pipes to collect water.

Local authorities have set up four to five ‘water ATMs’, but most of them have become defunct after providing water for roughly 10 months. These ‘water ATMs’ have now become mere showpieces and are locked. Local villagers are questioning why government spent crores of rupees on these ‘water ATMs’ which are now defunct.

The problem is, whenever acute water crisis occurs, local bureaucrats parrot the same arguments about water conservation. The executive engineer of Nagpur Zilla Parishad said, water conservation shafts are being installed to ensure that the water table stays on a higher level. Scientists say, unless the state government and local villagers join hands for water conservation, no tangible result can emerge.

Vidarbha and Marathwada regions of Maharashtra have been facing water scarcity for several decades. There is less rainfall and the water table has gone down in most of the areas. Several small dams have been built but they are now dry due to lack of water. Most of the water is being used for irrigation, leaving less quantity of water for domestic consumption.

The scene is the same in Jharkhand, MP and Rajasthan. People living in Chirudih Upertola near Ranchi, the capital of Jharkhand, are being forced to drink hilly ‘nullah’ (drain) water. Due to scanty water, most of which is dirty, people are using ‘thali’(plate) and ‘katori’ to collect water in pails. Hand pumps and ‘jal minar’ installed in this area are now defunct. The local village Pradhan blamed villagers for not giving money for maintenance of ‘jal minar’ (water storage).

People facing water water scarcity should learn from Dewas in Madhya Pradesh, where the water table which had dropped below 800 feet several years ago, has now come up to 50 feet. Several years ago, India’s first ‘water train’ was run from Latur (Maharashtra) to Dewas (MP) which was then facing water crisis. But now the situation has changed, for the better.

This was possible due to the untiring efforts towards water conservation by Unakant Umrao, an IAS officer who is popularly known as a ‘water crusader’. When he became the Dewas district collector from 2006 till 2007, he motivated villagers to conserve water by launching a movement called “Economics of Water”.

Under the Reva Sagar Bhagirath Krishak Abhiyan, farmers built ponds in their fields and named them ‘Reva Sagar’. Reva is a local name for river Narmada. The name Bhagirath stands for the mythological man who brought Ganga to the plains. Hundreds of ‘Reva Sagars’ were built in Dewas district alone during the first year and soon it spread to Sihore, Shajapur, Ujjain, Harda, Khandwa, Raisen, Dhar, Vidisha, Bhopal and Hoshangabad, all in Madhya Pradesh.

Banks were persuaded to give loans to farmers to build ponds and these loans were later repaid. Rainwater collected in ponds had more soluble nitrogen compared to ground water. This water was good for growing rabi crops and local farmers prospered due to increased production.

When the ponds went dry during summer, the fertile soil was collected for growing crops, and after the crops were harvested, the soil was again used in the ponds. By this, soil fertility increased and there was less land erosion. In short, Reva Sagar scheme was basically storage of surface water, and it helped farmers during summer.

Umakant Umrao is now the Panchayat and Rural Development secretary of MP government. Other states should learn from this experiment and work towards water conservation so that people must not suffer from water scarcity.

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नवरात्रि और रमजान के नाम पर सियासत कौन कर रहा है?

AKBमहाराष्ट्र और कर्नाटक में अज़ान के वक्त मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकरों पर हनुमान चालीसा बजाने पर उपजा विवाद देश के बाकी इलाकों में भी दूसरे रूप में फैलता नजर आ रहा है। कांग्रेस शासित राजस्थान में बिजली देने वाली कंपनी जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ने सभी 10 जिलों के इंजीनियरों को एक आदेश जारी कर रमजान के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों में चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है, लेकिन जब सियासी बवाल मचा तो मंगलवार को इसे हड़बड़ी में वापस ले लिया गया।

इसी तरह, आम आदमी पार्टी द्वारा संचालित दिल्ली जल बोर्ड ने मुस्लिम कर्मचारियों को 3 अप्रैल से 2 मई तक रमजान के दौरान ड्यूटी का टाइम खत्म होने से 2 घंटे पहले छुट्टी की इजाजत देने वाला आदेश दिया लेकिन बवाल मचने के बाद इसे मंगलवार को वापस ले लिया। दक्षिण दिल्ली के भाजपा शासित निगम के महापौर ने नवरात्रि और रामनवमी के दौरान 10 अप्रैल तक मीट और चिकन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की बात कही है।

अब मैं इन मुद्दों पर एक-एक करके बात करता हूं। जोधपुर विद्युत वितरण निगम के सहायक प्रबंध निदेशक द्वारा 1 अप्रैल को जारी आदेश में सभी सुप्रिटेंडिंग इंजीनियरों से कहा गया है कि वे अपने अपने जिलों में रमजान के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करें। इसमें लिखा था: ‘रमजान का महीना 4 अप्रैल से शुरू हो रहा है। इस दौरान शट डाउन न करें और मुस्लिम बहुल इलाकों में निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करें ताकि रोज़ा रखने वालों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े।’

यह आदेश संभवत: राजस्थान की राज्य मंत्री ज़ाहिदा खान के कहने पर जारी किया गया था, जिन्होंने ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी को लिखे पत्र में रमजान के दौरान मुस्लिम बहुल इलाकों में चौबीसों घंटे बिजली आपूर्ति की मांग की थी। बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि हिंदू भी नवरात्रि के दौरान उपवास रखते हैं, लेकिन राज्य सरकार तुष्टीकरण की राजनीति में लिप्त है।

वसुंधरा राजे ने सवाल किया, ‘राज्य सरकार को सिर्फ रमजान मनाने वालों की ही फिक्र क्यों है? बाकी लोगों की क्यों नहीं? यह तुष्टिकरण और वोट की राजनीति नहीं तो और क्या है? राज्य सरकार को धर्म से ऊपर उठकर सभी राजस्थानियों के कल्याण के लिए काम करना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय के हों।’

जोधपुर विद्युत वितरण निगम के प्रबंध निदेशक प्रमोद टाक ने कहा कि होली, दिवाली जैसे हर त्योहार के वक्त भी इसी तरह के आदेश जारी किए जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘चूंकि रमज़ान के वक्त इस साल चिलचिलाती गर्मी है, इसलिए हमने मानवीय आधार पर यह आदेश जारी किया था।’ सोशल मीडिया पर विवाद के बाद निगम ने अपना यह आदेश वापस ले लिया।

रमज़ान के दौरान मुसलमानों को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसका प्रबंध करने पर किसी को ऐतराज़ नहीं है, लेकिन सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों में चौबीसों घंटे बिजली सप्लाई का आदेश जारी करना साफ तौर पर धार्मिक भेदभाव है।

अब तक यही होता आया है कि रमजान के दौरान चौबीसों घंटे बिजली की सप्लाई दी जाती थी, बकरीद पर पानी की पूरी सप्लाई होती थी और मंत्री और नेता सरकारी खजाने से ‘इफ्तार’ की दावत देते थे। अगर कोई ये कहे कि हिंदू त्योहारों पर सरकार इस तरह के आदेश जारी क्यों नहीं करती, तो उसे मुस्लिम विरोधी घोषित किया जाता है। इन्हीं हरकतों के कारण समाज में दूरियां बढ़ती हैं, क्योंकि लोग मजहब के आधार पर भेदभाव होते हुए खुद देखते हैं और महसूस करते हैं। एक तरफ कांग्रेस राजस्थान में रमजान के दौरान मुस्लिम इलाकों में चौबीस घंटे बिजली सप्लाई का आदेश दे रही है, तो दूसरी तरफ वही पार्टी दक्षिण दिल्ली के मेयर द्वारा नवरात्रि के समय मीट की दुकानों को बंद करने के आह्वान को मुस्लिम विरोधी बता रही है।

महाराष्ट्र और पड़ोसी राज्य कर्नाटक में एक अलग तरह का धार्मिक विवाद चल रहा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे खुद को बालासाहेब ठाकरे का एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित करने में जुटे हुए हैं। राज ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं से अज़ान के वक्त मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाने का निर्देश दिया है।

मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने मुंबई के पास कल्याण में एक मस्जिद के बाहर लाउडस्पीकर पर तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाए जाने की तस्वीरें दिखाई। पास में कोई हनुमान मंदिर नहीं था, लेकिन एमएनएस के कार्यकर्ता लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजा रहे थे।

इसी तरह की घटनाएं मुंबई और ठाणे में मस्जिदों के बाहर हुईं। मुंबई के कुर्ला में पुलिस ने लाउडस्पीकर पर एमएनएस कार्यकर्ताओं द्वारा हनुमान चालीसा बजाने की कोशिश को नाकाम कर दिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। शिवसेना नेताओं का आरोप है कि महाराष्ट्र में बीजेपी लाउडस्पीकर के मुद्दे पर मनसे को मौन समर्थन दे रही है। दूसरी ओर, राज ठाकरे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला दे रहे हैं जिनके मुताबिक लाउडस्पीकरों पर धार्मिक भजन बजाने पर रोक है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने जुलाई 2005 के आदेश में रिहायशी इलाकों में रहने वाले लोगों पर ध्वनि प्रदूषण के गंभीर असर का हवाला देते हुए, इमरजेंसी को छोड़कर, सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर और म्यूजिक सिस्टम्स के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, अक्टूबर 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सिर्फ तीज-त्योहारों के मौकों पर लाउडस्पीकरों को एक साल में 15 दिन के लिए आधी रात तक बजाने की इजाजत दी जा सकती है। शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया है कि राज्य सरकारों को लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल के लिए अन्य अधिकारियों को प्रतिबंध में छूट देने का अधिकार नहीं होगा।

अगस्त 2016 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने साफ कहा था कि धार्मिक स्थलों द्वारा लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा था कि कोई भी धर्म या संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता कि लाउडस्पीकर या पब्लिक अड्रेस सिस्टम का इस्तेमाल करना मौलिक अधिकार है । संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत भारत के हर नागरिक को मौलिक अधिकार की यह गारंटी दी गई है कि वह किसी भी धर्म का अनुयायी बन सकता है, अपने धर्म के प्रचार कर सकता है और अपने धर्म का पालन कर सकता है। हाई कोर्ट ने कहा, किसी भी धार्मिक स्थल को बिना अनुमति के लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती ।

सितंबर 2018 में, कर्नाटक हाई कोर्ट ने रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था और निर्देश दिया था कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए कि कहीं तय स्तर से ज्यादा शोर तो नहीं हो रहा। इसी तरह, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने जुलाई 2019 में, बिना पूर्व अनुमति के धार्मिक स्थलों द्वारा लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। मई 2020 में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ‘अजान’ किसी भी पब्लिक अड्रेस सिस्टम का इस्तेमाल किए बिना सिर्फ ‘मुअज्जिन’ द्वारा मस्जिद की मीनार से अपनी आवाज में सुनाई जा सकती है।

बीएमसी चुनाव तेजी से करीब आ रहे हैं, ऐसे में राज ठाकरे ने लाउडस्पीकर पर ‘अजान’ बजाने को एक मुद्दा बना दिया है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि पीए सिस्टम पर हनुमान चालीसा का पाठ करके इसका मुकाबला करें। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने अपने समर्थकों से कहा कि हनुमान चालीसा बजाने वाले मनसे कार्यकर्ताओं को इसके बदले में शरबत और पानी पिलाएं।

न तो अबू आजमी दूध के धुले हैं और न ही राज ठाकरे की नीयत साफ है। हनुमान चालीसा पढ़ने वाले भी हनुमान भक्त नहीं हैं, और हनुमान चालीसा पढ़ने वाले एमएनएस कार्यकर्ताओं को शरबत पिलाने वाले भी कोई इंसानियत के पुजारी नहीं है। सबका अपना-अपना खेल है, अपना-अपना गणित है। जब शिवसेना बीजेपी के साथ थी तो खुद को बीजेपी से बड़ी हिंदुत्ववादी पार्टी बताती थी। अब वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार में हैं तो शिवसेना खुद को इन दोनों से बड़ा सेक्युलर साबित करने में लगी है।

‘अजान’ पर उठा विवाद पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भी फैल गया है जहां हिंदू संगठनों ने लाउडस्पीकर से ‘अजान’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इन संगठनों के समर्थकों ने लाउडस्पीकरों पर ‘हनुमान चालीसा’ और ‘बजरंग बाण’ बजाना शुरू कर दिया है। श्री राम सेना, हिंदू जनजागृति समिति जैसे संगठनों और कलिकंबा मंदिर के प्रमुख ने लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाने के लिए सरकार से इजाजत मांगी है।

चूंकि अगले साल मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए राजनीतिक दल अब सक्रिय हो गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने कहा, बीजेपी को छोड़कर किसी को भी मस्जिदों में लाउडस्पीकर बजने से कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम समाज को बांटने वाले कदमों का विरोध करते हैं।’

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध सिर्फ मस्जिदों के लिए नहीं, सभी धार्मिक स्थलों के लिए है। उन्होंने कहा, ‘हम सभी पक्षों से बात करेंगे ताकि अदालत का आदेश लागू हो। यह दबाव की बात नहीं है, बल्कि समझा-बुझाकर करने का काम है। कोर्ट का आदेश सिर्फ ‘अजान’ के लिए नहीं बल्कि सभी धार्मिक गतिविधियों के लिए हैं।… वे (कांग्रेस नेता) लोग बड़े पाखंडी हैं। पहले उन्होंने ‘हिजाब’ का मुद्दा उठाया और फिर ‘हिजाब’ का विरोध करने वाले लोगों का विरोध किया। उन्होंने कोर्ट के आदेश का उल्लंघन क्यों किया? वे उस वक्त क्यों खामोश रहे थे? असल में यह कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति है जिससे सारा विवाद खड़ा हुआ है।’

बोम्मई की बात सही है कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लिए लोगों को समझा बुझाकर राजी किया जाना चाहिए। लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने एक अलग ही रूप धारण किया है। पूर्व मुख्यमंत्री और इस वक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सभी जिलों के पार्टी प्रमुखों को पत्र भेजकर 10 अप्रैल को रामनवमी के मौके पर ‘राम कथा’ आयोजित करने और 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के मौके पर हनुमान चालीसा और सुंदर कांड का पाठ करने के लिए कहा है। कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा कि पार्टी को ‘बीजेपी की नकल नहीं करनी चाहिए। अगर पार्टी रामनवमी और हनुमान जयंती पर पूजा-पाठ की प्लानिंग कर रही है, तो इसी तरह के आयोजन रमजान पर भी होने चाहिए।’

कांग्रेस में आजकल दो तरह की सोच है। कई नेताओं को लगता है कि कांग्रेस को हिंदुओं की बात करनी चाहिए और मुस्लिम तुष्टिकरण से बचना चाहिए। कमलनाथ ने शायद यही सोचकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड की बात की। कमलनाथ खुद भी बड़े हनुमान भक्त हैं। उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक विशाल हनुमान मंदिर बनवाया है।

लेकिन इसी कांग्रेस में बहुत सारे लोगों की सोच यह है कि पार्टी को अपनी सेक्यूलर छवि से कोई समझौता नहीं करना चाहिए, और जब भी मौका मिले मुस्लिम समाज का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में कई बार कांग्रेस के नेता काफी आगे बढ़ जाते हैं जैसा कि मैंने इस ब्लॉग की शुरुआत में जिक्र किया है कि कैसे जोधपुर के मुस्लिम बहुल इलाकों में 24 घंटे बिजली की सप्लाई का आदेश जारी किया गया था।

राजस्थान में राज्य मंत्री के स्तर का एक मुस्लिम नेता इतना प्रभावशाली नहीं हो सकता कि इस तरह का आदेश जारी कर सके। जाहिर है कि कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने उनसे ऐसा कहा होगा और डिस्कॉम कंपनी के एमडी ने आदेश जारी कर दिया। जोधपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का निर्वाचन क्षेत्र है।

जोधपुर से बीजेपी सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत, जो केंद्रीय जल शक्ति मंत्री हैं, ने मंगलवार को अपने ट्वीट में गहलोत पर निशाना साधा। शेखावत ने कहा: ‘गहलोत सरकार के इशारे पर दिए गए आदेश को पढ़कर कांग्रेसी सोच से घृणा बढ़ जाती है। जोधपुर क्षेत्र में रमजान के दौरान बिजली कटौती न किए जाने का तुगलकी फरमान वोट बैंक की राजनीति के चलते दिया गया है। इस तरह के हथकंडे सामाजिक वैमनस्य का कारण बनते हैं। गहलोत जी सत्ता आपकी है। आप सद्भाव के नाम पर एक को सेलेक्ट और दूसरे को नेगलेक्ट नहीं कर सकते। करौली में आपने अपना खेल कर लिया! हाथ जोड़कर निवेदन है कि कृपया मेरे जोधपुर को अपनी सांप्रदायिक साजिश से दूर रखें। गहलोत जी, काश नवरात्रि को लेकर भी थोड़ी चिंता कर ली होती!’

इस साल नवरात्रि और रमजान, दोनों साथ साथ आए हैं। दोनों ही पवित्र त्योहार हैं, दोनों आपसी भाईचारे और प्यार से रहने का संदेश देते हैं। लेकिन नवरात्रि और रमजान के नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह बिल्कुल उल्टा है।

अगर सरकार को इबादत के लिए छुट्टी देनी है, तो हिंदू और मुसलमान में फर्क कैसे हो सकता है? अगर बिजली देनी है तो रमजान और नवरात्रि में भेदभाव कैसे हो सकता है? अगर अज़ान के लिए लाउडस्पीकर की आवाज से परेशानी है, तो लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने से इसका इलाज कैसे हो सकता है?

ज़ोर-ज़बरदस्ती से किसी का भला नहीं हो सकता। बातचीत से ही रास्ता निकाला जा सकता है। इसी तरह मीट की सारी दुकानें बंद करने की मांग करने का भी कोई औचित्य नहीं है। मैंने कई हिंदू दुकानदारों की बात सुनी है जो कहते हैं कि वे भी देवी के भक्त हैं, नवरात्रि मनाते हैं, पर अचानक मीट बेचने पर पाबंदी लगने से उनका काफी नुकसान होगा।

यह एक कड़वा सच है कि नवरात्रि और रमजान के नाम पर सियासत हो रही है। सियासत करने वाले इधर भी हैं और उधर भी, और जब तक ये लोग नहीं चाहेंगे, तब तक माहौल नहीं बदल सकता।

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Who is playing politics in the name of Navratri and Ramzan?

akb fullThe controversy over playing of Hanuman Chalisa on loudspeakers outside mosques during ‘Azaan’ prayers in Maharashtra and Karnataka seems to be escalating to other spheres too. The Jodhpur Vidyut Vitaran Nigam Ltd, the power distribution company in Congress-ruled Rajasthan, issued an order directing engineers of all ten districts to ensure round-the-clock power supply to Muslim-dominated localities during Ramzan, but it was hurriedly withdrawn on Tuesday after a political row erupted.

Similarly, Aam Aadmi Party-run Delhi Jal Board on Tuesday withdrew its order allowing Muslim employees to leave two hours before the end of their duty timings during Ramzan, from April 3 to May 2. In BJP-ruled South Delhi Municipal Corporation, the Mayor has called for imposing ban on sale of meat and chicken during Navratri and Ramnavami till April 10.

Let me go through these issues one by one. The April 1 order by the assistant managing director of Jodhpur Vidyut Vitaran Nam Ltd directing superintending engineers to ensure 24-hour power supply to Muslim-dominated areas during Ramzan reads: “The month of Ramzan is beginning from April 4. Do not go for shut down and ensure uninterrupted power supply in Muslim-dominated areas so that those observing Roza do not face any inconvenience”.

This order was issued probably at the behest of a Rajasthan minister of state Zahida Khan, who, in a letter to Energy Minister Bhanwar Singh Bhati had sought round-the-clock power supply to Muslim-dominated localities during Ramzan. BJP leader and former chief minister Vasundhara Raje pointed out that Hindus were also observing fast during Navratri, but the state government was indulging in appeasement politics.

Vasundhara Raje asked, “why is the state government concerned only about those observing Ramzan? Why not for the rest of the people? If this is not appeasement and vote politics, that what else is it? The state government should rise above religion and work for the welfare of all Rajasthanis, irrespective of religion, caste or community.”

Pramod Tak, the managing director of Jodhpur Vidyut Vitaran Nigam, said, such orders are issued during every festival, like Holi, Diwali. “Since Ramzan is falling during scorching heat unlike previous years, we issued this order on humanitarian grounds”, he said. After a row erupted on social media, the corporation withdrew its earlier order.

It is alright if any government takes steps to ensure that Muslims observing Ramzan fast do not face inconvenience, but by issuing an order for round-the-clock power supply to Muslim-dominated localities only, is a clear act of religious discrimination.

This has been the pattern over the years till now: round-the-clock power supply during Ramzan, full water supply during Bakrid festival, and holding of ‘iftar’ parties by ministers and leaders at cost to exchequer. If anybody questions this and demands why no such facilities are given during Hindu festivals, he or she will be dubbed as anti-Muslim. Such acts widen the divide between communities. People may begin to feel that there is discrimination on religious grounds. On one hand, Congress government is giving such orders, but, on the other hand, the party is opposing South Delhi Mayor’s call for closure of meat shops during Navratri festival.

A different sort of religious controversy is brewing in Maharashtra and neighbouring Karnataka. Maharashtra Navnirman Sena chief Raj Thackeray, claiming himself to be the sole political heir of Balasaheb Thackeray, has given a call to his workers to play Hanuman Chalisa on loudspeakers outside mosques, when ‘azaan’ (call to prayer) is played.

In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed visuals of Hanuman Chalisa being played on loudspeakers at loud decibels outside a mosque in Kalyan, near Mumbai. There was no Hanuman temple nearby, but local MNS workers had come with louspeakers to blare out hymns from Hanuman Chalisa, as the ‘azaan’ was being played from the mosque.

Similar incidents took place outside mosques in Mumbai and Thane. In Kurla, Mumbai, police foiled an attempt by MNS workers to play Hanuman Chalisa on loudspeaker and rounded up those activists. Shiv Sena leaders allege that BJP in Maharashtra is giving silent support to MNS on loudspeaker issue. On the other hand, Raj Thackeray is citing Supreme Court and High Court orders which bar playing of religious hymns on loudspeakers.

The Supreme Court, in its July 2005 order, had banned use of loudspeakers and music systems in public places, from 10 pm to 6 am, except in case of emergencies, citing serious effects of noise pollution on people living in residential areas. However, in October 2005, the Supreme Court ruled that loudspeakers can be permitted for use till midnight only on festive occasions for 15 days in a year. The apex court ruling said that state governments will not have the power to delegate relaxation on ban to other authorities for use of loudspeakers.

In August, 2016, Bombay High Court clearly said that use of loudspeakers by religious shrines cannot be termed as a fundamental right. It said no religion or sect can claim that the right to use a loudspeaker or a public address system is a fundamental right conferred under Article 25 of the Constitution that guarantees freedom to profess, practice and propagate religion. The high court said, no religious shrine can be allowed to use loudspeaker without obtaining permission.

In September, 2018, Karnataka High Court banned use of loudspeakers after 10 pm and directed that the guidelines prepared by Supreme Court specifying permissible sound levels must be followed. Similarly, Punjab and Haryana High Court, in July 2019, banned use of loudspeakers by religious shrines without prior permission. In May, 2020, Allahabad High Court ruled that ‘azaan’ can be recited by a ‘muezzin’ only from the minaret of a mosque in his own voice without using any public address system.

With the BMC municipal elections fast approaching, Raj Thackeray has made the playing of ‘azaan’ on loudspeaker an issue and has asked his workers to counter this by reciting Hanuman Chalisa on PA system. Samajwadi Party leader Abu Azmi asked his supporters to respond by sending ‘sharbat’ and water to MNS workers playing Hanuman Chalisa.

Abu Azmi is not sincere and Raj Thackeray’s intentions are not honest. Those reciting Hanuman Chalisa in Maharashtra are not ‘bhakts’ (devotees) of Lord Hanuman. Those offering ‘sharbat’ to MNS workers are not humanists. Political parties are playing this game for their own advantage. When Shiv Sena was an ally of BJP, it used to project itself as a bigger proponent of Hindutva. After allying with NCP and Congress, Shiv Sena is now projecting itself as more “secular than thou”.

The ‘azaan’ controversy has spread to neighbouring Karnataka where Hindu outfits have demanded ban on playing of ‘azaan’ from loudspeakers. Supporters of these outfits have also started playing ‘Hanuman Chalisa’ and ‘Bajrang Baan’ on loudspeakers. Outfits like Shri Ram Sene, Hindu Janajagruti Samiti, and the chief of Kalikamba temple have sought government’s permission to play Hanuman Chalisa on loudspeakers.

Since Karnataka assembly polls are due in May next year, political parties have now become active. Former chief minister and Congress leader Siddaramaiah said, nobody except the BJP has problems with loudspeakers playing from mosques. “We oppose such moves that are meant to divide society”, he said.

Karnataka chief minister Basavaraj Bommai responded by saying that the ban on loudspeakers by High Court and Supreme Court relates not only to mosques but to all religious places. “We will speak to all stakeholders and ensure that the court orders are implemented. All this cannot be done under pressure, but through persuasion. The court orders are not only for ‘azaan’ but for all religious activities. They (Congress leaders) are hypocrites. They raised the ‘hijaab’ issue, and then opposed when people opposed ‘hijaab’. Why did they violate court orders? Why were they silent then? Actually, all these controversies are occurring due to Congress’ vote bank politics”, Bommai said.

Bommai is right when he says that his government will speak to all sides and settle the issue amicably. But in Madhya Pradesh, the Congress has adopted a different ‘avataar’. Former CM Kamal Nath, now the state Congress chief in Madhya Pradesh, has sent letters to all district party chiefs to organize ‘Ram Katha’ on April 10 to observe Ramnavami, and to hold recital of Hanuman Chalisa and Sunder Kand on April 16 to observe Hanuman Jayanti. Congress MLA Arif Masood opposed this move and said that the party should not “copy BJP”. “If the party is organizing these during Ramnavami and Hanuman Jayanti, similar events should be held during Ramzan too”, he added.

There are two lines of thought running concurrently in Congress presently. A section of Congress leaders feel that the party should also speak about Hindus and refrain from appeasement of minorities. Kamal Nath’s letter was sent as part of that narrative. Kamal Nath himself is an ardent devotee of Lord Hanuman. He built a huge Hanuman temple in his constituency.

Congress leaders, who follow the other line, believe that the party must not compromise its image of being a secular party and should try to win the support of Muslim community too. But Congress leaders, in their zeal for Muslim appeasement, go several steps ahead as I have mentioned in the beginning of this blog, on how an order was issued to supply 24-hour power to Muslim-dominated areas of Jodhpur.

A Muslim leader of Minister of State rank in Rajasthan cannot exert such influence in getting such an order issued. Obviously, a senior Congress leader must have intervened and the MD of the discom company issued the order. Jodhpur happens to be Chief Minister Ashok Gehlot’s constituency.

BJP MP from Jodhpur Gajendra Singh Shekhawat, who is Union Jal Shakti Minister, lashed out at Gehlot in his tweet on Tuesday. Shekhawat said: “This order issued at the behest of Gehlot government has increased my hatred towards Congress line of thinking. The order to refrain from power cut in Jodhpur is a Tughlaqi firman given as part of votebank politics. Such acts create more disharmony. Gehlot Ji, you have power in your hands, but in the name of harmony, you cannot select one and neglect the other. You played your game in Karauli. I appeal to you with folded hands to keep my Jodhpur free from communal conspiracy. Gehlot Ji, you could have at least given some thought to Navratri too.”

This year, both Ramzan and Navratri took place at the same time. Both the festivals are sacred to both communities, and these festivals spread the message of communal harmony. But whatever that is happening in the name of Navratri and Ramzan is totally different.

If a government wants to give leave to its employees belonging to a particular religion during a festival, how can it differentiate in the name of religion? If people are unhappy over playing of ‘azaan’ on loudspeakers from mosques, how can playing of Hanuman Chalisa on loudspeakers be a solution?

Arm-twisting or use of force cannot resolve problems. You can bring harmony only through dialogue. Enforcing closure of all meat shops during a festival cannot be deemed as a right step. I have heard several Hindu shopkeepers saying that they too are devotees of Devi Mata, and observe Navratri, but by enforcing closure of shops, they would also suffer.

It is a bitter truth that too much politics is going on in the name of Navratri and Ramzan. Those indulging in politics are on both sides. And till the time both sides agree, the atmosphere cannot be changed for the better.

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गोरखनाथ मंदिर हमला : अब्बासी को उकसाने वाले हैंडलर्स का पता लगाएं

akb full_frame_60183उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध गोरखपीठ मंदिर में हमला करने की कोशिश को नाकाम कर दिया गया। दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है, क्योंकि गोरक्षपीठ के महंत खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। इससे भी ज्यादा हैरान करनेवाली बात यह है कि हमलावर कोई साधारण युवक नहीं, बल्कि पेशे से केमिकल इंजीनियर है। 29 साल के इस हमलावर का नाम अहमद मुर्तजा अब्बासी है। उसने 2015 में आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग पास की । नौकरी छोड़ने से पहले उसने दो बड़ी भारतीय कंपनियों में काम किया था। मुर्तजा ने मंदिर की सुरक्षा में तैनात पीएसी के दो जवानों पर दरांती से हमला कर दिया। उसने पीएसी के जवान से उसकी राइफल छीनने की भी कोशिश की लेकिन उसे पकड़ लिया गया।

उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि रविवार शाम गोरखनाथ मंदिर के बाहर हमला एक बड़ी आतंकी साजिश का हिस्सा हो सकता है।

सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद गोरखपुर बीआरडी अस्पताल पहुंच गए जहां वे हमले में घायल पुलिसकर्मियों गोपाल गौड़ और अनिल पासवान से मिले। इन जवानों ने हमलावर के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हमले के दौरान इनके हाथ और पांव में गहरे जख्म लगे हैं। सीएम योगी ने इन जवानों के साहस और पराक्रम की मुक्त कंठ से सराहना की। साथ ही आश्वस्त किया कि उनके इलाज की सारी जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। पीएसी के इन पुलिसकर्मियों और नागरिक पुलिस के सिपाही अनुराग राजपूत के लिए पांच लाख रुपये के इनाम की घोषणा मुख्यमंत्री ने की है।

उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक प्रशांत कुमार ने बताया कि रविवार शाम को करीब 7 बजे गोरखनाथ मंदिर आम दिनों की तरह खुला था और बड़ी संख्या में लोग नवरात्रि के कारण दर्शन और पूजा के लिए जा रहे थे। इसी दौरान अहमद अब्बास मुर्तजा मंदिर के उत्तर और पूर्वी गेट को पार करके तेजी से आगे बढ़ा। उसने मेन गेट पर तैनात पीएसी जवान गोपाल गौड़ से उसकी राइफल छीनने की कोशिश की। गोपाल कुछ समझ पाता इससे पहले अब्बासी ने उसकी पीठ पर दरांती से वार कर दिया। हमले में गोपाल बुरी तरह जख्मी हो गया लेकिन तब तक दूसरे जवान अलर्ट हो गए। गोपाल का साथी जवान अनिल पासवान मदद के लिए दौड़ा लेकिन उसे भी मुर्तजा ने दरांती से जख्मी कर दिया। पुलिस के मुताबिक जिस वक्त उसे पुलिस के जवान और स्थानीय लोगों ने काबू में किया वह ‘अल्लाहू अकबर’ के नारे लगा रहा था। मुर्तजा को 14 दिन के लिए गोरखपुर जेल भेज दिया गया है।

इस हमले के चश्मदीद थे, मंदिर के बाहर मौजूद दुकानदार। उन्होने कहा कि जैसे ही हमला हुआ तुरंत मंदिर के मुख्य द्वार को बंद कर दिया गया। मुर्तजा ने दरांती से पीएसी जवानों पर वार किए। वह मेन गेट की ओर भागा और पत्थर फेंकने लगा। स्थानीय लोगों ने मुर्तजा को काबू में लाने के लिए उसपर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। मुर्तजा जमीन पर गिर पड़ा और लोगों ने उसे पकड़ लिया। हमले के वीडियो से जाहिर है कि मुर्तज़ा मंदिर के अंदर मौजूद श्रद्धालुओं पर हमला करने के इरादे से आया था।

एडीजी (कानून और व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा- ‘यह हमला एक बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकता है और जो सबूत अभी तक मिले हैं उसके आधार पर इसे आतंकी घटना कहा जा सकता है।’ हमलावर के पास से एक लैपटॉप, आईडी कार्ड, सेलफोन और धारदार हथियार बरामद किए गये हैं। मामले की जांच यूपी एटीएस को सौंप दी गई है और वह स्पेशल टॉस्क फोर्स के साथ जांच को आगे बढ़ाएगी।

मुर्तजा अब्बासी के पिता मुनीर अहमद मुंबई में कई कंपनियों के लिए कानूनी सलाहकार के तौर पर काम करने के बाद रिटायर हो गये थे और वो गोरखपुर में रह रहे हैं। मुनीर अहमद ने पुलिस को बताया कि उनका बेटा 2017 से मानसिक रूप से बीमार है और वह आत्महत्या करना चाहता था। वो कब क्या कर बैठे कुछ नहीं कहा जा सकता। मुर्तजा के पिता ने पुलिस को यह भी बताया कि वह पढ़ाई में अच्छा था और मुंबई में उसका इलाज भी हुआ था।

अहमद मुर्तजा शादीशुदा है लेकिन कुछ गंभीर मनमुटाव के बाद पत्नी ने उसे छोड़ दिया था। मुर्तजा मुंबई में एक प्राइवेट फर्म में काम कर रहा था लेकिन वहां उसकी नौकरी चली गई। पिछले साल वह गोरखपुर के सिविल लाइंस स्थित अपने घर लौट आया। यूपी पुलिस अहमद मुर्तजा के बारे में और ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश कर रही है। इस संबंध में मुंबई पुलिस से भी संपर्क किया गया है। हमलावर मुर्तजा के चाचा डॉक्टर हैं और वे गोरखपुर के अब्बासी हॉस्पिटल के मालिक हैं।

यूपी पुलिस को कुछ ऐसे सुराग हाथ लगे हैं जिससे पता चलता है कि अहमद मुर्तजा को यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए कट्टरपंथी बनाया जा रहा था। मुतर्जा से बरामद लैपटॉप और सेलफोन से साफ है कि वह कट्टरपंथी इस्लामी उपदेशक ज़ाकिर नाइक को फॉलो करता था। ज़ाकिर नाइक गिरफ्तारी से बचने के लिए इन दिनों विदेश में छिपा हुआ है। मुर्तजा के पेनड्राइव से भी कई जिहादी वीडियो मिले हैं। जांच एजेंसियां उसके सेलफोन में सेव किये गये सभी नंबरों की जांच कर रही है।

मामले की जांच करनेवाले इस बात को खारिज कर रहे हैं कि मुर्तजा ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि वह मानसिक रूप से बीमार था। पुलिस का कहना है कि रविवार शाम का हमला किसी बड़े आतंकी साजिश का हिस्सा हो सकता है। जांच एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश में जुटी हैं कि अहमद मुर्तजा के आका कौन हैं जिन्होंने उसे इस्लामिक कट्टरपंथ की राह पर जाने के लिए उसका ब्रेनवॉश किया। इस हमले को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

इस हमले को गंभीरता से लेने के तीन मुख्य कारण हैं। पहला, अहमद मुर्तजा अब्बासी गोरखपुर के एक पढ़े-लिखे मुस्लिम परिवार से है। दूसरा, गोरखपुर का स्थानीय नागरिक होने के कारण उसे इस हमले का महत्व पता था, और तीसरा कारण यह है कि मुर्तजा यह भी जानता था कि उसके पकड़े जाने का नतीजा क्या होगा। इस काम के लिए अब्बासी का ब्रेनवॉश किया गया ताकि अन्य इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच एक संदेश दिया जा सके और उत्तर प्रदेश समेत देश के बाकी हिस्सों में माहौल को बिगाड़ा जा सके। इस मामले की गहराई से जांच करने की जरूरत है।

गोरखपुर मंदिर में हमले की कोशिश को लेकर तमाम नेताओं के बयान आए हैं। लेकिन मैं इस बहस में पड़ना नहीं चाहता। मुझे लगता है कि यह मसला न तो सियासत का है, न हिन्दू मुसलमान का, यह मुद्दा आंतरिक सुरक्षा का है, देश के अमन-चैन का है। इसलिए इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।

मुर्तजा के पिता से सबको सहानुभूति है जो अपने बेटे की मानसिक हालत को लेकर चिंतित हैं। एक पिता जिसने बेटे को मेहनत से पढ़ा लिखाकर इंजीनियर बनाया और वो बेटा मंदिर पर हमला कर दे, जिहादी नारे लगाने लगे तो उस पिता पर क्या बीतेगी उसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

लेकिन यह भी सच है कि रूस की पर्ल हुए हमले का मामला हो या फिर लंदन के चर्च पर हमले का केस, हर बार आरोपी के बचाव में यही दलील दी गई कि वो मानसिक तौर पर बीमार है, लेकिन बाद में ये घटनाएं आतंकवादी घटनाएं साबित हुई। चूंकि गोरखनाथ मंदिर में हुए हमले का मामला सुरक्षा से जुड़ा है और मुर्तजा ने जो किया वह गुनाह बहुत बड़ा है। इससे देश का माहौल खराब हो सकता था इसलिए इसकी गहराई से जांच तो होनी चाहिए। यह पता लगना ही चाहिए कि एक पढ़े-लिखे इंजीनियर लड़के के दिमाग में नफरत का जहर भरने वाले कौन हैं? मुर्तजा को मौत बांटने के लिए और मौत के मुंह में भेजने वाले कौन है?

मैं तो उन सुरक्षाकर्मियों की तारीफ करूंगा जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर मुर्तजा को मंदिर में घुसने से रोका। सुरक्षाकर्मियों ने संयम से काम लिया और हथियारबंद मुर्तजा पर गोली नहीं चलाई, उसे सही सलामत पकड़ा। क्योंकि अगर मुर्तजा को कुछ हो जाता तो उन लोगों के नाम कभी सामने नहीं आते जो पढ़े-लिखे मुस्लिम नौजवानों को बरगला रहे हैं, उन्हें गुमराह कर रहे हैं। इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच नफरत की खाई पैदा करके देश के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। उम्मीद करनी चाहिए यूपी पुलिस जल्दी से जल्दी अहमद मुर्तजा अब्बासी के आकाओं के चेहरे बेकनाब करेगी और उन्हें कानून के सामने हाजिर करेगी। यह जितना जल्दी होगा, उतना बेहतर।

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Gorakhnath temple attack: Trace the handlers who instigated Abbasi

rajat-sirThe attack on policemen guarding the famous Gorakhnath temple in UP, seat of Chief Minister Yogi Adityanath’s Gorakshapeeth, has stunned people across India. More so, because the assailant Ahmed Murtaza Abbasi, 29, is a chemical engineer who graduated from the Indian Institute of Technology (IIT), Mumbai in 2015, and worked in two top Indian companies before he left his job. He was caught while snatching a self-loading rifle from a PAC jawan. The assailant stabbed policemen with his machete before he was overpowered.

Senior UP police officials have said that this could be the tip of an iceberg. Sunday evening attack outside the temple could be part of a major terror conspiracy, they said.

On Monday, Chief Minister Yogi Adityanath visited the Gorakhpur B.R.D. hospital to meet the two injured policemen, Gopal Gaur and Anil Paswan, who had suffered stab injuries in their hands and legs. Yogi Adityanath announced Rs 5 lakh reward for both the PAC jawans and another civil defence personnel Anurag Rajput, for displaying courage in overpowering the assailant, thus preventing a major terror strike.

Describing the sequence of events, Additional Director General of UP Police Prashant Kumar said, there was a rush of worshippers on Sunday evening at around 7 pm at Gorakhnath temple, when Ahmed Abbas Murtaza entered the temple premises from the direction of northern and eastern gates, ran towards PAC jawan Gopal Gaur and tried to snatch his rifle. He stabbed Gopal in his back with his weapon. Soon another PAC jawan Anil Paswan rushed to help his colleague, and the assailant also stabbed him. The assailant, police said, was shouting ‘Allahu Akbar’ when he was overpowered by jawans and local people. He was remanded in judicial custody for 14 days and sent to Gorakhpur jail.

Shopkeepers outside the temple, who were eyewitnesses to this attack, said, the main gate of the temple was immediately closed, when Ahmed Murtaza brandished his weapon and attacked PAC jawans. Ahmed was then rushing towards the main gate, and pelting stones. When locals threw stones at him and snatched the weapon from his hand, he fell on the ground and was soon overpowered. Videos of the attack show how the assailant had come with an intent to attack worshippers who were inside the temple.

ADG (Law and Order) Prashant Kumar, said, “the attack could be part of a bigger conspiracy and on the basis of collected evidence, it could be termed as a terror incident”. A laptop, ID cards, cellphone and the sharp-edged weapon were recovered from the assailant. The investigation has been transferred to UP Anti-Terrorist Squad (ATS), which will take assistance from Special Task Force (STF).

Abbasi’s father Muneer Ahmed, who is now retired after working as legal consultant to several companies, told police that his son was suffering from mental depression since 2017, and he wanted to commit suicide. His father also told police that Ahmed was good in studies and had undergone treatment in Mumbai.

Ahmed was married, but his wife left him due to serious differences. He was working in a private firm in Mumbai, but lost his job and returned to his home in Civil Lines, Gorakhpur last year. UP police is trying to collect more information about the assailant from Mumbai police. The assailant’s uncle is a doctor who owns Abbasi Hospital in Gorakhpur.

UP police has found clues which show that Ahmed Murtaza was being radicalized through social media platforms like YouTube. Laptop and cellphone seized from the assailant clearly show he was following the radical Islamic preacher Zakir Naik, who is abroad and evading arrest from Indian authorities. Several jihadi videos were also found from the pendrive. Investigators are going through all the phone numbers saved in his cellphone.

Investigators discount the theory that the assailant did this because he was mentally unstable. The Sunday evening attack could be part of a larger terror conspiracy, police official said. Investigators are trying to find out who were the handlers who brainwashed Ahmed Murtaza Abbasi towards Islamic radicalism. This attack cannot be taken lightly.

There are three main reasons why this attack should be taken seriously. One, Ahmed Murtaza Abbasi belonged to an educated Muslim family of Gorakhpur, Two, he know the significance of carrying out an attack on Gorakhnath shrine, being a local person, and Three, he also knew the consequences that would take place if he was caught in the act. Abbasi was brainwashed to commit this act so that a message could be conveyed to other Islamic radicals, and the cordial atmosphere in UP and the rest of the country could be disturbed. This matter needs to be thoroughly investigated.

Several political parties have reacted to this attack to suit their own convenience. I am not joining this debate. I think, this matter must not be politicized, and the Hindu-Muslim communal angle should be kept away from this. This matter relates to internal security and maintenance of communal peace. It should be taken seriously.

People have sympathy towards Ahmed Murtaza Abbasi’s father, who is worried about his son’s mental condition. He toiled hard to make his son a chemical engineer from IIT, and yet, he attacked a religious shrine and shouted jihadi slogans during the attack. One can easily understand the mental agony that his father may be going through.

Attacks on religious shrines, whether temples, mosques or churches, need to be condemned unequivocally. The sources of religious fanaticism must be traced. It must be probed how an IIT graduate in chemical engineering, underwent religious brainwashing through social media. Who are the people who are spreading poison on social media and inciting Muslim youths through hate speeches?

People who are imparting religious radicalism are not only doing a disservice to humanity but also acting against national interests. They are trying to create religious divide between Hindus and Muslims. I hope UP police will soon find out the handlers who provoked Abbasi to carry out this heinous attack. Such handlers should be brought before law. The sooner the better.

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क्या मोदी रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करेंगे ?

AKBआज सारी दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं। दुनिया भारत को इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर देख रही है। शुक्रवार को रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का 38 वां दिन था और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। मोदी ने लावरोव से कहा कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशों में हर तरह के योगदान के लिए तैयार है। लावरोव मोदी के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खास संदेश लेकर आए थे।

जहां एक ओर रूस चाहता है कि भारत यूक्रेन संकट के मामले में मध्यस्थता करे, वहीं अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूर रहे और पुतिन के विरोध में पश्चिमी गुट में शामिल हो जाए। ब्रिटेन भी चाहता है कि भारत को यूरोपीय देशों के साथ खड़े होना चाहिए जो रूस के आक्रमण का विरोध कर रहे हैं। चीन भी भारत के साथ शांति चाहता है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी अचानक दिल्ली के दौरे पर पहुंचे थे। उधर, पाकिस्तान में एक बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहे प्रधानमंत्री इमरान खान भी बार-बार भारत की आज़ाद विदेश नीति की तारीफ कर रहे हैं और यह चाहते हैं कि उनका देश भी भारत की तरह किसी बाहरी दबाव में न आए।

रूस के विदेश मंत्री ने दिल्ली में कहा, ‘भारत की अपनी आजाद विदेश नीति है और यह सही मायने में आजाद और अपने हितों को सबसे ऊपर रखने वाली है…अगर भारत रूस से कुछ भी खरीदना चाहता है तो हम इस पर चर्चा के लिए तैयार हैं।’

लावरोव की यह टिप्पणी अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह की भारत, रूस और चीन के बारे में की गई विवादास्पद टिप्पणी के मद्देनजर आई है।

अमेरिकी डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने भारत को आंख दिखाने की कोशिश की। दलीप सिंह को बायडेन प्रशासन ने रूस के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय पाबंदियों को लागू कराने के लिए नियुक्त किया है। भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से मुलाकात के बाद दलीप सिंह ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा था, ‘ चीन रऊस से जितना ज्यादा फायदा उटाएगा, उतना ही यह भारत के लिए कम अनुकूल होगा। मुझे नहीं लगता कि कोई भी इस बात पर यकीन करेगा कि अगर चीन ने एक बार फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया तो रूस भारत की रक्षा के लिए दौड़ा आएगा।’ राजनयिक हलकों में इस तरह की टिप्पणी को परोक्ष रूप से धमकी माना जाती है।

भारत ने शुक्रवार को इस संबंध में अमेरिका को स्पष्ट संदेश दे दिया, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लावरोव से मुलाकात की और इस मुलाकात के बाद लावरोव ने पीएम मोदी से मुलाकात की। कूटनीतिक भाषा और लहज़े में इससे ज्यादा साफ संकेत और कुछ नहीं हो सकता था। भारत ने बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे डिपलोमैसी की भाषा में अमेरिका को कड़ा संदेश दे दिया। भारत का संदेश था- जहां तक विदेश नीति का संबंध है, हमें डराया नहीं जा सकता। पीएम मोदी के शब्दों में-‘भारत न किसी से आंख उठाकर बात करेगा, न किसी से आंख झुका कर बात करेगा, भारत आंख में आंख डाल कर बात करेगा।’

अमेरिका भारत को यह डर दिखाने की कोशिश कर रहा है कि जैसे रूस ने यूक्रेन की सीमा का अतिक्रमण किया वैसे ही चीन भी भारत की सीमा का अतिक्रमण कर सकता है। लेकिन अमेरिका यह भूल गया कि भारत, यूक्रेन नहीं है। यह बात चीन भी समझता है और अमेरिका को भी समझनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण स्पष्ट है, नीयत साफ है और नीति भी साफ है। हम वही करेंगे जिसमें भारत का फायदा है। न किसी पर दबाव डालेंगे और न किसी के दबाव में आएंगे।

अमेरिका के डिप्टी एनएसए ने शायद यह सोचा था कि भारत इस तरह की धमकी से डर जाएगा और वह रूस के साथ अपनी दोस्ती से पैर पीछे खींच लेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारत के साथ तेल के सौदे पर रूस के विदेश मंत्री ने कहा- ‘हम भारत को किसी भी तरह के सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार रहेंगे जो भारत खरीदना चाहता है.. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि अवैध और एकतरफा प्रतिबंध लगाकर पश्चिम द्वारा बनाई गई कृत्रिम बाधाओं को दूर करने का कोई रास्ता निकाला जाएगा।’

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है । 24 फरवरी को रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया, तब से लेकर अब तक भारत स्पॉट टेंडर के जरिए डिसकाउंट पर रूस से तेल खरीद रहा है। उस समय से लेकर अभी तक भारत ने भारी डिस्काउंट के साथ 1 करोड 30 लाख बैरल रूसी तेल खरीदा है। तुलना कीजिए, वर्ष 2021 की पूरी अवधि में भारत ने रूस से कुल 1 करोड़ 60 लाख बैरल तेल की खरीद की थी।

रूस के खिलाफ अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के कारण अन्य देश रूस से तेल नहीं खरीद सकते । अमेरिकी प्रशासन के एक सीनियर अधिकारी ने हाल ही में कहा था कि रूस से तेल खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि होने पर ही भारत खुद को जोखिम से घिरा पा सकता है… भारत द्वारा रूस से तेल खरीदे, इस पर अमेरिका को कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते वह पिछले वर्षों की तुलना में अपनी खरीद में कोई ज्यादा बढ़ोत्तरी न करे ।”

अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस भारत के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाना चाहता है। लावरोव ने शुक्रवार को कहा कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए अब भारत और रूस रुबल और रूपए में व्यापार करने पर बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के साथ रूबल-रुपये का व्यापार वर्षों पहले शुरू हुआ था और अब पश्चिमी के पेमेंट सिस्टम को दरकिनार करने के प्रयास तेज किए जाएंगे।

कुल मिलाकर संक्षेप में कहें तो भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखते हुए अपनी विदेश नीति पर चलेगा। बाहरी ताकतों के धमकाने या डराने का कोई असर नहीं होनेवाला है। अपनी ओर से भारत ने रूस से कहा है कि यूक्रेन में युद्ध खत्म कर जल्द से जल्द शांति बहाली के उपाय किए जाने चाहिए। वहीं लावरोव ने कहा-‘भारत एक महत्वपूर्ण देश और उन्हें इस बात का पूरा यकीन है कि भारत यूक्रेन के साथ रूस के विवाद को सुलझाने में निष्पक्ष और न्यायसंगत भूमिका निभा सकता है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के लिए एक न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाया है और वह इस तरह की (शांति) प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है।

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Will Modi mediate in Russia-Ukraine crisis?

rajat-sirThe entire world is watching India at a crucial juncture in history. The war between Russia and Ukraine has entered the 38th day and on Friday, Russian Foreign Minister Sergei Lavrov met Prime Minister Narendra Modi in Delhi. Modi told Lavrov that India was ready to contribute in any way towards peace efforts between Russia and Ukraine. Lavrov had brought a special message from Russian President Vladimir Putin for Modi.

While Russia wants India should mediate in the Ukrainian crisis, the US wants India to stay away from Russia and join the western bloc in opposing Putin. Britain also wants India should stand with European countries who are opposing Russian invasion. China, whose foreign minister Wang Yi dropped in on a sudden visit to Delhi, wants peace with India. Neighbouring Pakistan’s beleaguered Prime Minister Imran Khan is repeatedly praising India’s ‘independent’ foreign policy and wants his own country, like India, should not come under any external pressure.

The Russian foreign minister said in Delhi, “Indian foreign policies are characterized by independence and the concentration on real national legitimate interests…If India wants to buy anything from Russia, we are ready to discuss it”.

Lavrov’s comments come in the wake of US Deputy National Security Adviser for International Economics, Daleep Singh’s controversial remarks about India, Russia and China.

Daleep Singh, who is the point person for Biden administration on international sanctions, had told reporters in Delhi after meeting Indian Foreign Secretary Harsh Vardhan Shringla that “…the more leverage that China gains over Russia, the less favourable that is for India. I don’t think that anyone would believe that if China once again breaches the Line of Actual Control, Russia would come running to India’s defence”. In diplomatic circles, such remarks are not considered polite, it is outright a threat.

On Friday, India sent a clear message to US, when External Affairs Minister S. Jaishankar met Lavrov, who also called on Prime Minister Modi. There could be no stronger message in diplomatic language and nuances than this. India’s message was: We will not be browbeaten as far as its foreign policy is concerned. To repeat PM Modi’s phrase, “we will not look up at anybody, nor will we lower our eyes while meeting anybody. We will look into the eye and speak.”

While speaking about possible Chinese transgression on LAC, America tried to instil fear in India’s mind, by comparing the Russian-Ukraine crisis with India-China border issue. The American official probably forgot that India is not Ukraine, and China knows this, and it would be better if the US realizes this. Prime Minister Modi’s vision, intent and policies are clear. India will act only to its own advantage and will not come under any external pressure.

The American deputy NSA who made the remarks probably thought India would be cowed down and it would desist from being friendly with Russia, but India did not budge from its stand. On the oil deal with India, the Russian FM said, “we will be ready to supply to India any goods which India wants to buy….I have no doubt that a way would be found out to bypass artificial impediments created by the West by imposing illegal and unilateral sanctions.”

India is the world’s third biggest oil importer and consumer, and it had been buying Russian oil through spot tenders since the Russia-Ukraine war broke out on February 24. Since that date, India has purchased at least 13 million barrels of Russian oil at huge discount, compared to 16 million barrels that it brought during the whole year from Russia in 2021.

While the current US and Western sanctions against Russia do not prevent other countries from buying Russian oil, a senior US administration official recently said that “India could be exposing itself to great risk if there is a significant increase in Russian oil purchase…The US has no objection to India buying Russian oil provided it buys at discount, without significantly increasing its purchases compared to previous years.”

Russia, on its part, wants to intensify its bilateral trade with India, because of US and Western sanctions. Lavrov said on Friday that Russia is moving towards conduction ruble-rupee trade with India to bypass western sanctions. He said the ruble-rupee trade with India began years ago and now efforts to bypass western payment systems will now be intensified.

To sum up, India will pursue its foreign policy keeping its national interests as supreme. No amount of bullying or browbeating by external forces will work. On its part, India has also told Russia that early cessation of hostilities in Ukraine would help in restoring peace. Lavrov said, “India is an important country, and if India seeks to play the role for resolution of (Ukraine) crisis, it can. India has adopted a just and rational approach to international problems, and it can support such a (peace) process.”

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