द कश्मीर फाइल्स: कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का स्याह सच
32 साल पहले घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के मुद्दे पर बनी 170 मिनट की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने न केवल पूरे भारत में लाखों सिनेप्रेमियों की आत्मा को झकझोरा है, बल्कि देश के बड़े-बड़े नेता भी इसके बारे में बात कर रहे हैं। यह फिल्म बताती है कि कैसे उस समय की ताकतों ने एक स्याह, कड़वी सच्चाई को दबाने की कोशिश की थी। विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म में अनुपम खेर, पल्लवी जोशी और मिथुन चक्रवर्ती ने अदाकारी की है।
मंगलवार को दिल्ली में बीजेपी संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सच्चाई सामने लाने’ के लिए फिल्म निर्माताओं की सराहना की। उन्होंने कहा, ‘मेरा विषय कोई फिल्म नहीं है, मेरा विषय है कि जो सत्य है, उसको सही स्वरूप में देश के सामने लाना, देश की भलाई के लिए होता है। उसके कई पहलू हो सकते हैं, किसी को एक चीज़ नज़र आती है, किसी को दूसरी चीज़ नज़र आएगी।’
इसके बाद मोदी ने इस फिल्म के आलोचकों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘जो लोग हमेशा ‘फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ के झंडे लेकर के घूमते हैं, वो पूरी जमात बौखला गई है पिछले 5-6 दिन से, और फिर तथ्यों के आधार पर, आर्ट के आधार पर उसकी विवेचना करने की बजाय उसको डिसक्रेडिट करने की मुहिम चलायी है। आपने देखा होगा, एक पूरी ईको-सिस्टम, कोई सत्य उजागर करने का साहस करे, उसको जो सत्य लगा, उसको प्रस्तुत करने की कोशिश की, लेकिन उस सत्य को न समझने की तैयारी, न स्वीकारने की तैयारी है, न ही दुनिया इसको देखे इसके लिए ये उनकी मंजूरी है, जिस प्रकार का षड्यंत्र पिछले 5-6 दिन से चल रहा है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जिनको लगता है कि ये फिल्म ठीक नहीं है, वो अपनी फिल्म बनाएं, कौन मना कर रहा है? लेकिन उनको हैरानी हो रही है, कि जिस सत्य को इतने सालों से दबा करके रखा, उसको जब तथ्यों के आधार पर बाहर लाया जा रहा है, और जब कोई मेहनत करके ला रहा है, तो उसको, पूरी ईको-सिस्टम लग गई है, पूरी ईको सिस्टम।’
प्रधानमंत्री ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। इस फिल्म में ऐसा क्या है?
इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा बेगुनाह कश्मीरी पंडितों की पूरी प्लानिंग के साथ की गई नृशंस हत्याओं के बाद लाखों कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन कर गए। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे कुछ कश्मीरी मुसलमानों ने हत्यारों और बलात्कारियों के साथ मिलकर घाटी में उन स्याह दिनों में आतंक का माहौल बनाया।
कश्मीर में 1990 में 75343 कश्मीरी पंडितों के परिवार रहते थे। 1990 से 1992 के दौरान, सिर्फ 2 साल में कश्मीर से 70 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों के परिवारों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। उनके घरों में तोड़फोड़ की गई, उनके घर जला दिए गए, दुकाने लूट ली गईं, जमीनों पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पलायन के दौरान 399 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई। अब हालत यह है कि कश्मीर में सिर्फ 9 हजार कश्मीरी पंडित बचे हैं। 1.5 लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। वे अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं।
अब 2 पीढ़ियां ही ऐसी बची हैं जो जानती हैं कि उनकी जड़ कहां हैं, उनके पुश्तैनी घर, जमीन-जायजाद कहां हैं। 32 सालों से अपनी मातृभूमि से दूर रहने वाले युवा आज अपनी जड़ों के बारे में नहीं जानते। ये युवा कभी-कभार घाटी यह देखने के लिए जाते हैं कि उनकी पुश्तैनी संपत्तियों की हालत क्या है, और उसमें से क्या बचा है। वे देखते हैं कि जो इमारतें कभी उनके पुरखों की हुआ करती थीं, जो सेब के बागान थे, उनपर अब किसी और का कब्जा है।
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की कहानी एक कश्मीरी पंडित पुष्कर नाथ पंडित, जिनका रोल अनुपम खेर ने निभाया है और उनके पोते कृष्णा पंडित, जिनका किरदार दर्शन कुमार ने निभाया है, के इर्द-गिर्द घूमती है। दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र नेता कृष्णा पंडित को पुष्कर नाथ पंडित बताते हैं कि उसके माता-पिता एक हादसे में मारे गए थे, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है।
फिल्म में निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और अभिनेता अनुपम खेर ने जेएनयू के ‘टुकड़े टुकड़े’ गैंग के नारों ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, ले के रहेंगे आजादी’ को कृष्णा पंडित के चरित्र के साथ अच्छी तरह जोड़ा है। बतौर कश्मीरी, कृष्णा इस वामपंथी और अलगाववादी प्रॉपेगेंडा पर यकीन करना शुरू कर देता है कि कश्मीरी दशकों से सरकार की ज्यादतियों के शिकार हैं, लेकिन कश्मीरी पंडितों पर किए गए अत्याचारों की हकीकत के बारे में उसे कुछ पता नहीं होता है।
कृष्णा जेएनयू की प्रोफेसर राधिका मेनन के प्रभाव में है। इस भूमिका को पल्लवी जोशी ने निभाया है। राधिका मेनन ‘कश्मीर की आजादी’ में विश्वास करती है। जब कृष्णा अपने मृत दादा की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए घाटी ले जाते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उसके माता-पिता की मौत किसी दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि आतंकवादियों ने उन्हें बेरहमी से मारा था। कृष्णा के माता-पिता की हत्या की कहानी, बी. के. गंजू की सच्ची घटना पर आधारित है, जिन्हें 1990 में आतंकवादियों ने मार दिया था। कृष्णा को तब पता चलता है कि कैसे उसके दादा घाटी से पलायन कर गए और उसके माता-पिता की सच्चाई को उससे छिपा कर रखा।
कश्मीरी पंडितों की पीड़ा की कहानी इस फिल्म की असली ताकत है। यह फिल्म 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। सिनेमाघरों से बाहर आने वाले लोग ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए देखे गए। सिनेमा हॉल के बाहर तमाम लोग कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की मांग करते हुए, नारे लगाते हुए भी दिखे।
विवेक अग्निहोत्री ने बताया कि दर्शकों ने कैसे उन्हें और अनुपम खेर को अपने बीच देखकर तालियां बजाईं। लोग अनुपम खेर और विवेक अग्निहोत्री को गले लगाकर रोते-बिलखते देखे गए। केरल जैसे राज्यों में, जहां बॉलीवुड के सुपरस्टार्स की फिल्में भी शायद ही बहुत ज्यादा चलती हैं, सिनेप्रेमी ‘द कश्मीर फाइल्स’ की स्क्रीनिंग की मांग को लेकर धरने पर बैठे देखे गए। लोग आंखों में आंसू लिए सिनेमाघरों से बाहर आते देखे गए।
रिलीज होने के सिर्फ 3 दिनों के भीतर ही यह फिल्म चर्चा का विषय बन गई है। इस फिल्म के बारे में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक, और राजनीतिक दलों के नेताओं से लेकर गली-मोहल्लों में आम आदमी तक बातें कर रहे हैं।
फिल्म देख रहे दर्शकों के यह देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि कैसे 19 जनवरी 1990 को घाटी में मस्जिदों के लाउडस्पीकरों ने सभी पंडितों को तुरंत घाटी छोड़ने या अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने का फरमान सुनाया गया। किस तरह महिलाओं और बच्चों का कत्ल हुआ, ये देखकर रूह कांप जाती है।
पहली बार कश्मीरी पंडितों का दर्द बड़े पर्दे पर उतरा है। इस फिल्म को देखने वाले कश्मीरी पंडितों का कहना है कि यह फिल्म काल्पनिक नहीं है, बल्कि उनके जीवन के साथ वास्तव में क्या हुआ है, इसका एक लेखा-जोखा है। यह स्याह सच है, जिसे उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने 3 दशकों से भी ज्यादा समय तक महसूस किया है।
भारत में पहली बार एक आम आदमी ने महसूस किया है कि कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार के बारे में स्याह सच को कुछ ताकतों ने जानबूझकर छिपाया था। अब वह आम आदमी कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की मांग करने लगा है।
‘द कश्मीर फाइल्स’ बताती है कि कैसे JKLF के आतंकवादियों ने आतंकवादी मकबूल भट को मौत की सजा का बदला लेने के लिए 4 नवंबर 1989 को श्रीनगर में हाई कोर्ट के पास एक बाजार में जस्टिस नीलकंठ गंजू की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी।
इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि चावल के ड्रम में छिपे हुए एक टेलीकॉम इंजीनियर बी. के. गंजू को कैसे उनके ही मुस्लिम पड़ोसियों ने धोखा दिया। हत्यारों ने गंजू को ड्रम से बाहर खींचा, उन्हें गोलियां मारी और वहां रखा चावल उनके खून से सन गया। गंजू की पत्नी को अपने पति के खून से सने हुए चावल खाने के लिए मजबूर किया गया।
फिल्म में एक और सच्ची कहानी है एक यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरियन गिरिजा टिक्कू की। गिरिजा अपनी तनख्वाह का चेक लेने गई थीं, और वापस आते समय उन्हें एक बस से खींचकर टैक्सी में डाला गया। टैक्सी में कुल मिलाकर 5 लोग थे, जिनमें उनका एक सहकर्मी भी था। उन सभी ने गिरिजा के साथ बलात्कार किया गया और फिर एक आरी से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
घाटी में कश्मीरी पंडितों के निर्मम नरसंहार को लेकर पिछले 3 दशकों में कोई भी जानकारी ठीक से दर्ज नहीं की गई। मैं कश्मीर में उन स्याह दिनों का गवाह हूं जब श्रीनगर की गलियों में ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है’, ‘कश्मीर में अगर रहना है, तो आजादी के लिए मरना है’ जैसे नारे लगाए जाते थे। उस वक्त कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या की गई, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और उनके टुकड़े किए गए, लेकिन इस तरह की घटनाओं को उस समय की ताकतों ने दबा दिया।
जगन्नाथ पंडित की हत्या करके उनका शव सरेआम लटका दिया गया था। उनके बेटे रविन्द्र पंडित, जो कि अब गाजियाबाद में रहते हैं, ने बताया कि 1990 में वह अपने 2 छोटे भाइयों और एक बड़े भाई के साथ कश्मीर छोड़कर जम्मू आ गए थे। लेकिन उनके पिता जगन्नाथ पंडित कश्मीर के हंदवाड़ा में अपने घर पर ही रुक गए थे। जगन्नाथ पंडित कश्मीर में तहसीलदार थे। रविन्द्र पंडित ने बताया कि 5 आतंकी आए, उन्हें घसीटकर एक खेत में ले गए, उन्हें कंटीले तारों से बांधकर पेड़ से लटका दिया, उन्हें टॉर्चर करते रहे और अंत में उनकी हत्या कर दी। रविन्द्र पंडित ने कहा कि उनके पिता का शव 3 दिन तक पेड़ से लटकता रहा। गांव में उनके अंतिम संस्कार तक की इजाजत नहीं दी गई। आखिर में जगन्नाथ पंडित का शव दूसरे गांव ले जाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
कश्मीरी पंडितों की हत्या का दौर 1989 में ही शुरू हो गया था, जब बीजेपी के एक लोकप्रिय नेता टीका लाल टपलू की श्रीनगर में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। टपलू ने जिहादियों से धमकी मिलने के बाद अपने परिवार को दिल्ली भेज दिया था, लेकिन खुद श्रीनगर लौटने का फैसला किया। कश्मीरी पंडित आज भी 14 सितंबर को शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं।
अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने का दर्द क्या होता है, ये कश्मीरी पंडित जानते हैं। वे जानते हैं कि सरकारी मदद पर निर्वाह करते हुए, एक बेघर का जीवन व्यतीत करते हुए, परिवार किस तरह की तकलीफें झेलते हैं। यह समझना होगा कि कश्मीरी पंडितों का मुद्दा कोई सियासी मुद्दा नहीं है। ये संवेदनाओं से जुड़ा इंसानियत का मुद्दा है। हर भारतीय की भावना कश्मीर पंडितों की तकलीफों के साथ जुड़ी हैं।
32 साल बाद, 1.5 लाख कश्मीरी पंडित अभी भी शिविरों में रह रहे हैं। इस समुदाय की भावनाओं और तकलीफों को आसानी से समझा जा सकता है। बहुत से नौजवान अपने बाप-दादा का घर देखकर आते हैं, लेकिन अब भी किसी की हिम्मत नहीं कि जाकर दूसरों द्वारा हड़पी गई अपनी संपत्तियों अपना हक जता सकें।
सोचिए जिसके पिता को बेरहमी से मारा गया होगा, जिसके दादा को जिंदा जला दिया गया होगा, उस पर क्या बीतती होगी। चूंकि भारत में आम लोगों ने पहली बार पर्दे पर स्याह, छिपे हुए सच को देखा है, इस फिल्म को सभी वर्गों का समर्थन मिल रहा है। यूपी, एमपी, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, त्रिपुरा और उत्तराखंड समेत 8 राज्य सरकारों ने इस फिल्म को एंटरटेनमेंट टैक्स फ्री घोषित किया है।
हालांकि, मुझे दुख होता है जब कांग्रेस के कुछ नेता इसे हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं। सोमवार को, केरल कांग्रेस ने सोशल मीडिया में हंगामे के बाद, इस फिल्म में बताए तथ्यों के जवाब में पोस्ट किए गए ट्वीट्स को डिलीट कर दिया।
डिलीट किए गए उन ट्वीट्स में क्या था? उन ट्वीट्स में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं और पलायन के मुद्दे को यह तर्क देते हुए आंकड़ों में तौलने की कोशिश की गई कि 1990-2007 के दौरान कश्मीर में 399 पंडितों के मुकाबले 15,000 मुस्लिम मारे गए थे।
एक अन्य ट्वीट में यह दावा किया गया था कि भारत के विभाजन के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों (1948) में जम्मू-कश्मीर में एक लाख से ज्यादा मुसलमान मारे गए थे, जबकि किसी कश्मीरी पंडित की जान नहीं गई थी।
डिलीट किए गए ट्वीट में कहा गया कि आतंकी हमलों के बाद कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा मुहैया कराने की बजाय तत्कालीन राज्यपाल और बीजेपी-आरएसएस समर्थक जगमोहन ने निर्देश दिया कि पंडितों को घाटी छोड़ देनी चाहिए। हालांकि, शाम को केरल में कांग्रेस ने ट्वीट किया: ‘हम कश्मीरी पंडितों के मुद्दे के बारे में कल के ट्वीट्स में कहे गए हर एक तथ्य के साथ खड़े हैं। हालांकि, हमने इस थ्रेड के एक हिस्से को हटा दिया है, यह देखते हुए कि बीजेपी नफरत की फैक्ट्री को संदर्भ से बाहर ले जा रही है और अपने सांप्रदायिक प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है। हम सच बोलना जारी रखेंगे।’
मैं आपसे 2 बातें कहना चाहता हूं।
एक तो ये कि कश्मीरी पंडितों पर जो जुल्म हुआ, वह जितना दर्दनाक था, उससे ज्यादा दर्दनाक ये था कि 32 साल से भी ज्यादा समय तक इसके सच को दबाया गया। वह सच कभी भारत लोगों तक पहुंच ही नहीं पाया।
जैसे आज यूक्रेन में छोटे-छोटे बच्चों को, बिलखती महिलाओं को, घर छोड़कर भागना पड़ रहा है, उसकी तस्वीरें हमें दिखाई देती हैं और जेहन में छप जाती हैं। लेकिन जब कश्मीरी पंडितों का खून बहाया गया, वहां जब छोटे-छोटे बच्चों को, बेकसूर महिलाओं को, अपना घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर किया गया तो ये किसी कैमरे में कैद नहीं हुआ। उस जमाने में न तो कैमरे वाले मोबाइल फोन थे, न आज की तरह न्यूज दिखाने वाले टीवी चैनल्स के कैमरे।
इसीलिए जब ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने जब 3 दशकों से जमीन के नीचे दबे दर्द को सामने लाकर खड़ा कर दिया, तो लोग सिहर उठे, उनके रोंगटे ख़ड़े हो गए, उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। आज ही इंडिया टीवी में मेरी एक सहयोगी ने बताया कि वह केमिस्ट के पास दवाई लेने गई थीं, और केमिस्ट ने उनसे पूछा क्या उन्होंने यह फिल्म देखी है। केमिस्ट ने फिर उन्हें बताया कि उसने अपनी दुकान के सारे स्टाफ को छुट्टी दी है और फिल्म देखने के लिए पैसे दिए हैं।
एक दूसरा रिएक्शन ये भी मिला कि फिल्म देखने के बाद किसी ने कहा कि अच्छी फिल्म बनाई है, तो लोग चिल्लाने लगे कि ‘इसे फिल्म न कहो, ये हमारी जिंदगी का सच है, दस्तावेज है।’
दूसरी बात ये कि जब इस फिल्म की बात हुई, कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों का जिक्र हुआ, तो कुछ लोगों ने कहा कि मुसलमानों समेत अन्य लोगों पर भी जुल्म हुआ है। मुझे लगता है कि ये कश्मीरी पंडितों के साथ अन्याय है। उनके दर्द की किसी के साथ तुलना नहीं की जा सकती। उन्हें जिस तरह से कश्मीर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा, उनका घर, प्रॉपर्टी, बैंक बैलेंस सब पीछे छूट गया और उन्हें बरसों तक शिविरों में रहना पड़ा, इस तकलीफ की, इस दर्द की किसी से तुलना नहीं की जानी चाहिए।
मैं पहली बार देख रहा हूं कि बेघर कश्मीरी पंडितों का मुद्दा सोशल मीडिया, न्यूज चैनलों और थिएटर स्क्रीन पर उठाया जा रहा है। विदेशों में रह रहे भारतीय भी कश्मीरी पंडितों की तकलीफ से वाकिफ हुए हैं। हमें उनके दर्द को न कभी भूलना चाहिए और न दूसरों को भूलने देना चाहिए।
The Kashmir Files: The dark truth of atrocities on Kashmiri Pandits
‘The Kashmir Files’, a 170-minute movie on the exodus of Kashmiri Pandits from the Valley 32 years ago, has not only caught the imagination of millions of cinegoers across India, but has also made top politicians sit up and take notice. It is about how a dark, bitter truth was sought to be hushed up the powers-that-be at that time. The movie, written and directed by Vivek Agnihotri, features Anupam Kher, Pallavi Joshi and Mithun Chakraborty, among others.
On Tuesday, while addressing the BJP Parliamentary Party meeting in Delhi, Prime Minister Narendra Modi lauded the film makers for ‘revealing the truth’. He said, “My concern is not only about the film, I believe it will benefit the nation if the truth is brought out before the people in the right manner. It can have many aspects, some may see one side, and others may see something else.”
Modi then lashed out at critics of this movie. He said, “the negative reactions to this film are coming from those who deliberately tried to hide the truth for many years. ..The entire ‘jamaat’ (gang) that has been raising the flag of freedom of expression is furious since the last five to six days. Instead of reviewing this film based on true facts, and from artistic point of view, there is a conspiracy to discredit this movie by attributing motives.”
The Prime Minister said, “Let those who think that this film is not correct, make their own film. Who is stopping them? But they are surprised that the truth that they had kept hidden for so many years, is now coming out. Those why live by truth, must bear the responsibility to stand by the truth at such a time.”
Tough words by the Prime Minister. What is this film all about?
This movie depicts the horrible manner in which lakhs of Kashmiri Pandits fled from the Valley after systematic, brutal killings of innocent Kashmiri Pandits by Pakistan-backed terrorists. The movie also depicts how some sections of Kashmiri Muslims connived with killers and rapists, in creating an atmosphere of terror in the Valley during those dark days.
Till 1990, there were 75,343 Kashmiri Pandit families living in the Valley, but after the exodus that continued for two years, more than 70,000 Kashmiri Pandit families were forced to leave the Valley. Their homes were vandalized and burnt, their shops were looted and their landed properties were forcibly occupied by local people.
Government statistics say, 399 Kashmiri Pandits were killed during the exodus, but the hard fact is: only some 9,000 Kashmiri Pandits are now left in the Valley. More than 1.5 lakh Kashmiri Pandits are still living in camps. They are living like refugees in their own country.
There are two generations left among Kashmiri Pandits, who know about their original roots in the Valley. The younger ones, who have been away from their homeland for 32 long years, are not aware about their roots. The younger ones visit the Valley occasionally to see what has been left of their ancestral properties. These buildings once belonged to their grandparents and there were apple orchards which have now been occupied by others.
The movie “The Kashmir Files” weaves a storyline in which Krishna Pandit, played by Darshan Kumar, a student leader of Delhi’s Jawaharlal Nehru University, was told by his grandfather Pushkar Nath Pandit, played by Anupam Kher, that his parents were killed in an accident, but the bitter truth was something else.
In the movie, director Vivek Agnihotri and actor Anupam Kher have skilfully linked the ‘tukde tukde’ JNU gang slogans, “Bharat tere tukde hongey, le key rahengey azaadi” with Krishna Pandit’s character. Being a Kashmiri, Krishna starts believing the Left and separatist propaganda that Kashmiris have been victims of state excesses for decades, but the actual stories of atrocities committed on Kashmiri Pandits were hidden from him.
Krishna is under the influence of a JNU professor Radhika Menon, played by Pallavi Joshi, who believes in the “Kashmir cause” (read independence of Kashmir). When Krishna takes the ashes of his dead grandfather to the Valley for immersion, he learns that his parents did not die in an accident, but were brutally killed by terrorists. The killings of his parents, is based on the true life incident of B. K. Ganjoo, who was killed by terrorists in 1990. Krishna then comes to know how his grandfather fled the Valley and kept the truth about his parents hidden from him.
The story about the agony of Kashmiri Pandits is the innate strength of this movie. It was released in theatres on March 11. There were scenes of cinegoers coming out of theatres with many shouting ‘Bharat Mata Ki Jai’. Scores of people outside cinema halls were seen shouting slogans demanding justice for Kashmiri Pandits.
Vivek Agnihotri revealed, how cinegoers applauded when they saw him and Anupam Kher among the audience. There were emotional scenes of people hugging Anupam Kher and Agnihotri, and weeping. In states like Kerala, where even Bollywood superstars hardly get top billing, cinegoers were seen sitting on dharna, demanding that ‘The Kashmir Files’ be screened. There were scenes of people coming out of theatres with tears in their eyes.
Within three days of this movie hitting the theatres, it has become the talk of the town, right from the Prime Minister to Chief Ministers and leaders of political parties to the common man in the street.
The viewer inside the theatre sits terrified watching how loudspeakers from mosques in the Valley on January 19, 1990, blared, asking all Pandits to leave the Valley immediately or face the consequences. One is shaken on seeing visuals of women and kids being slaughtered on screen.
For the first time, the agony of Kashmiri Pandits has hit the big screen. Kashmiri Pandits who have seen this movie, insist, this movie is not fiction, but an account of what actually happened to their lives. It’s the dark truth, which they and their family members have experienced for more than three decades.
For the first time in India, the common man on the street has realized that the dark truth about the atrocities on Kashmiri Pandits was deliberately hidden by the powers-that-be, and he has started demanding that Kashmiri Pandits must get justice.
‘The Kashmir Files’ explains how Justice Neelkanth Ganjoo was assassinated by JKLF terrorists on November 4, 1989, at a market near the High Court in Srinagar in broad daylight, to avenge the death sentence to terrorist Maqbool Bhat.
This movie also mentions how a telecom engineer B K Ganjoo was ditched by his own Muslim neighbours, when he was hiding inside a rice bin. The killers dragged him out of the bin, pumped bullets into his body and left him bleeding on rice. Ganjoo’s wife was forced to eat blood-soaked rice on which her husband’s body had fallen.
There is also the true life story of Girija Tickoo, a university librarian, who had gone to collect her salary cheque, and on her way back, she was dragged out from a bus, thrown into a taxi, by five men, including one of her colleagues, tortured, raped and finally her body was cut into pieces by using a carpenter’s saw.
The ruthless pogrom of Kashmiri Pandits in the Valley has not been recorded in a proper manner in the last three decades. I was witness to those dark days in Kashmir when slogans like “Kashmir mey agar rehna hai, Allahu Akbar kehna hai”, “Kashmir me agar rehna hai, toh azaadi ke liye marna hai” used to be chanted in the streets of Srinagar. Kashmiri Pandits were brutally murdered, women were raped and cut into pieces, but such incidents were hushed up by the powers-that-be during that time.
Jagannath Pandit was killed and his body was hanged from a pole in public. His son, Ravindra Pandit, who now lives in Ghaziabad, describes how, along with his three brothers, he fled from Srinagar to Jammu in 1990. But his father Jagannath Pandit, a tehsildar, chose to stay back in Handwara. Five terrorists came, dragged him to a field, tied his body with barbed wire, tortured him and then his body was hanged from a tree. For three days, the body remained hanging from the tree, says his son. Later, the body was taken to another village for last rites.
The killings of Kashmiri Pandits had begun way back in 1989, when a popular BJP leader Tika Lal Taploo was shot dead outside his home in Srinagar. Taploo, after getting threats from jihadists, had sent his family to Delhi, but he chose to return to Srinagar. Kashmiri Pandits still celebrate September 14 as Martyrs’ Day.
Kashmiri Pandits know the agony of living like a refugee in one’s own country. They know how families suffer, while living the life of a homeless, subsisting on government doles. One must realize that the Kashmiri Pandit issue is not a political one, it is an emotional, humanitarian issue. Every Indian citizen wants to relate with the sufferings of Kashmiri Pandits.
Even after 32 years, with 1.5 lakh Kashmiri Pandits still living in camps, one can easily gauge the emotions and sufferings of this community. Their children can only go to the Valley and watch the properties of their parents and grandparents silently, and return. They cannot exert pressure to get back the properties that have been forcibly grabbed by others.
Think about the emotions of young men and women, who know that their parents or grandparents were either brutally killed or burnt to death. Since the common people in India have, for the first time, seen the dark, hidden truth on screen, this movie is getting support from all sections of Indians. Eight state governments, including UP, MP, Gujarat, Karnataka, Goa, Tripura and Uttarakhand have declared this movie as entertainment tax free.
I, however, feel sad when some leaders from the Congress try to make it a Hindu-Muslim issue. On Monday, the Congress in Kerala, after an uproar in social media, deleted a series of tweets which were posted to counter the facts narrated in this movie.
What were the tweets that were deleted? The deleted tweets attempted to project a statistical perspective to the issue of the killings and exodus of the Kashmiri Pandits, arguing that 15,000 Muslims were killed during 1990-2007 against 399 Pandits in Kashmir.
In another tweet, part of a series, it was claimed that over one lakh Muslims were killed in Jammu and Kashmir in the wake of the communal riots (1948) after the partition of India, while no Pandits were killed in retaliation.
In the tweet that was withdrawn, it was stated that after the terrorist attacks, instead of providing security to Kashmiri Pandits, the then Governor and BJP-RSS supporter Jagmohan directed that the Pandits should leave the Valley. However, In the evening, the Congress in Kerala tweeted: “We stand by every single fact in yesterday’s tweet thread about Kashmiri Pandits issue. However, we’ve removed a part of the thread, seeing BJP hate factory taking it out of context and using it for their communal propaganda. We’ll continue to speak out the truth”.
I want to mention two points here.
One, while the brutal atrocities committed on Kashmiri Pandits were indeed painful, the manner in which these facts were hushed up for more than 32 years, were more painful. Two, the truth was prevented from reaching people across India.
Nowadays, we watch visuals of women and kids, fleeing Ukraine, and these visuals leave a permanent imprint on our memory. But, when lakhs of Kashmiri men, women and children fled the Valley in 1990, there were no cameras to record the exodus. There were no smart phones with cameras those days, nor were there cameras from TV news channels, to record the migration of Pandits.
When the makers of the movie ‘The Kashmir Files’ dug up the dark truth that had been covered up for three decades, people sat up and took notice in horror. The common man wept on seeing such horrific visuals on the wide screen. A colleague of mine said, how a local chemist in Delhi asked her whether she has seen this movie. The chemist told her that he had paid money to his staff to go and watch the film.
There was another type of reaction. When a cinegoer said, this was a good movie, Kashmiri Pandits sitting around him said loudly, ‘do not say this is a movie, it is the truth of our life, it has been documented.’
There are some other people, who say that there had been atrocities on Muslims and other communities too, in the past. I think, we will be doing injustice to the agony of Kashmiri Pandits, by drawing comparisons. We must refrain from comparing the plight of Kashmiri Pandits with those of other communities. Thousands of them lost their homes, hearth, orchards and properties, and had to live the life of refugees in their own homeland. Many of them are still living inside tents.
For the first time, I am noticing that the issue of homeless Kashmiri Pandits is being raised in social media, on news channels, and on the wide theatre screen. Indians living abroad have also become aware of the agony of Kashmiri Pandits. We must never forget their agony and must now allow others to forget.
विपक्ष को समझना होगा कि मोदी को क्यों मिलता है मतदाताओं का समर्थन
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में बीजेपी की शानदार जीत के तुरंत बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात की ओर रुख किया है, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। उन्होंने अभी से इसकी तैयारी शुरू कर दी है और पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
चार राज्यों में जीत का जश्न मनाने और दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बाद अगले ही दिन पीएम मोदी अहमदाबाद पहुंचे और वहां रोड शो किया। उन्होंने बीजेपी के सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों और पंचायत महासम्मेलन को भी संबोधित किया। ऐसे समय में जब बाकी नेता यूपी, पंजाब के चुनाव प्रचार की थकान उतारने में लगे हैं, मोदी पूरी ऊर्जा से अपने अगले अभियान में जुट गए।
नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और गुजरात में पिछले 27 साल से बीजेपी की सरकार है। मोदी की जगह कोई और नेता होता तो ऐसे राज्य में चुनाव की ज्यादा चिंता नहीं करता लेकिन मोदी ने अभी से ही गुजरात के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। वे किसी भी चुनौती को हल्के में नहीं लेते।
मोदी की गुजरात यात्रा के दृश्य उनकी ऊर्जा का एक बड़ा प्रमाण है। एयरपोर्ट से बीजेपी ऑफिस तक खुली जीप में सवार होकर उन्होंने मेगा रोड शो किया। दस किलोमीटर लंबे रोड शो के दौरान दोनों ओर जयकारे लगाने वाले समर्थक थे। पार्टी दफ्तर में उन्होंने बीजेपी के सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों और राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों को गुजरात चुनावों के लिए रोडमैप दिया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद के GMDC मैदान में गुजरात पंचायत महासम्मेलन ‘आपनु गाम, आपनु गौरव’ (मेरा गांव, मेरा गौरव) को संबोधित किया। इस सम्मेलन में ग्राम पंचायत के एक लाख से ज्यादा चुने हुए प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। मोदी ने इन पंचायत प्रतिनिधियों के साथ गांवों में विकास को लेकर चर्चा की। शनिवार को मोदी गुजरात के ग्यारहवें खेल महाकुंभ की शुरुआत करेंगे। राज्य के 500 से ज्यादा शहरों और कस्बों में खेल महाकुंभ का आयोजन होगा। इस खेल महाकुंभ के लिए 47 लाख से ज्यादा युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
नरेन्द्र मोदी के विरोधी परेशान हैं कि मोदी थकते नहीं हैं। मोदी 72 साल के होने जा रहे हैं लेकिन उनकी शारीरिक चुस्ती और स्टेमिना ने विरोधियों को हैरान कर दिया है। मोदी चुनाव जीतने के लिए ना सिर्फ मेहनत करते हैं बल्कि एक-एक कदम सोच समझ कर उठाते हैं। उनके अंदर दूरदर्शिता है। मोदी कितनी दूर की सोचते हैं इसका एक उदाहरण अहमदाबाद में नजर आया जब उन्होंने गुजरात के गांव-गांव से एक लाख से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधियों को बुलाया और उनके साथ लंबी बात की। मोदी ने उन्हें गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के कई सुझाव दिए।
अगर आप पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखेंगे तो आपको समझ आएगा कि मोदी ने पंचायत के नेताओं के साथ इतना समय क्यों बिताया। दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में कम वोट मिले थे। कुल 99 सीटें आईं थीं जो बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 7 सीटें ज्यादा हैं। बीजेपी को जिन 16 सीटों का नुकसान हुआ था वो ग्रामीण इलाकों की सीटें थी। कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं थीं जो 2012 में मिली सीटों की तुलना में18 ज्यादा थीं। 2017 में कांग्रेस के वोटों में यह इजाफा ग्रामीण इलाकों में मिले वोटों की वजह से हुआ था। मोदी इस बात को नहीं भूले कि पिछले चुनाव में बीजेपी के हाथ से गुजरात के ग्रामीण इलाकों की 14 सीटें फिसल गई थीं और ये कांग्रेस के खाते में चली गई थीं।
इसलिए मोदी इस कमी को दूर करने की तैयारी में जुट गए हैं। अभी से ही गांवों में बीजेपी को मजबूत करने के लिए रणनीति बना रहे हैं। उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। यही बात मोदी को दूसरे नेताओं से अलग बनाती है।
मोदी यूपी समेत चार राज्यों में चुनाव जीतकर भी अगले चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं पर विरोधी दलों के नेता चुनाव हारकर भी सिर्फ बयानबाजी, ट्वीट करने और ब्लेम गेम में लगे हैं। विपक्ष के नेता न तो हार स्वीकार करने को तैयार हैं और न ही अगली लड़ाई की तैयारी करना चाहते हैं।
सबसे पहले मैं आपको समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का उदाहरण देता हूं। चुनाव के दौरान अखिलेश यादव बहुत आक्रामक नजर आए। ‘अखिलेश आ रहे हैं’ का नारा दिया था। रोज दावा करते थे कि इस बार उनकी सरकार बनने वाली है। 400 सीटें जीतेंगे। अखिलेश कहते थे कि 10 मार्च को योगी आदित्यनाथ वापस गोरखपुर अपने मठ में चले जाएंगे। लेकिन चुनाव में हार के बाद अखिलेश कैमरे के सामने नहीं आए, न ही अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए बाहर आए। शुक्रवार सुबह उन्होंने एक ट्वीट किया-“उप्र की जनता को हमारी सीटें ढाई गुना व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद! हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है। भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा. आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है. बाक़ी कुछ दिनों में हो जाएगा”।
अखिलेश यादव ने यह नहीं बताया कि चुनाव में भारी जीत के उनके दावों का क्या हुआ लेकिन अखिलेश ने जो बात नहीं कही उसे ममता बनर्जी ने कह दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि यूपी में बीजेपी की जीत, सुशासन की नहीं… प्रचार की है । ममता बनर्जी ने सवाल उठाया कि अखिलेश यादव का वोट प्रतिशत बढ़ गया तो फिर बीजेपी कैसे जीत गई ? ममता बनर्जी ने इल्ज़ाम लगाया कि अखिलेश यादव को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में धांधली करके हराया गया।
ममता बनर्जी ने कहा कि अगर विपक्ष को एकजुट होकर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराना है, तो उसे कांग्रेस के भरोसे रहना छोड़ना होगा। शिवसेना नेता संजय राउत ने यूपी में समाजवादी पार्टी की हार के लिए बीएसपी प्रमुख मायावती और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी को जिम्मेदार बताया। वहीं मायावती ने मुस्लिम मतदाताओं पर बीएसपी को वोट नहीं देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा- मुस्लिम मतदाता अपनी इस गलती के लिए आनेवाले समय में पछताएंगे।
ये नेता सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहें लेकिन सच्चाई यह है कि बीजेपी से हारने के बाद भी विपक्षी दल अपनी कमज़ोरियों पर आत्ममंथन करने को तैयार नहीं हैं। वे अपनी ग़लतियां मानने को राज़ी नहीं हैं।
यूपी में बीजेपी की जीत के मुख्य कारणों के बारे में मैं आपको बताता हूं। सात चरणों में हुए इस चुनाव में मोदी और योगी की जोड़ी शुरू से ही इस बात को लेकर स्पष्ट थी कि उन्हें अपने प्रचार को किन बातों पर केंद्रित रखना है। पहले राउंड से ही बीजेपी ने क़ानून व्यवस्था को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया। अपराधियों के ख़िलाफ़ योगी का एक्शन, माफ़िया पर चलाए गए बुल्डोज़र को बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बनाया।
इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं, जैसे- उज्जवला योजना, पीएम आवास योजना, पेयजल, बिजली कनेक्शन, किसान सम्मान निधि के साथ ही कोरोना महामारी के दौरान ग़रीबों को मुफ़्त राशन जैसी योजनाओं का भी उल्लेख किया जिसने ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं को बीजेपी से जोड़ा।
इसके अलावा, योगी आदित्यनाथ ने अपनी हिंदुत्ववादी नेता की छवि को भी लगातार बनाए रखा। अक्सर अयोध्या का दौरा करते रहे और वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पर भी तेजी से काम किया। इससे उनकी हिंदुत्ववादी नेता की छवि और मजबूत हुई। बीजेपी का मज़बूत संगठन भी इस जीत में बहुत काम आया। चुनाव के दौरान पार्टी ने प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए 10 कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया गया। हर बूथ को मज़बूत बनाने का यह नुस्खा कितना कारगर रहा यह यूपी के चुनाव परिणाम से स्पष्ट है।
वहीं दूसरी ओर कमज़ोर विपक्ष ने बीजेपी का काम आसान कर दिया। विपक्ष लगातार नेगेटिव कैंपेन में लगा रहा। चुनाव से पहले विपक्ष के नेता पूरी सीन से नदारद रहे। कोरोना महामारी के दौरान कहीं जमीन पर नजर नहीं आए। यह सब बातें विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ गईं और बीजेपी ने इन्हीं बातों के आधार पर बाज़ी एक बार फिर अपने नाम कर ली। बीजेपी ने चुनाव से पहले जो गठबंधन बनाए वो भी बहुत सफल साबित हुए। बीजेपी की सहयोगी अपना दल 12 सीट जीतकर राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
वहीं बीजेपी की जीत में जाति, धर्म से ऊपर उठकर महिला मतदाताओं ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। महिला मतदाताओं ने खुले तौर पर यह कहा कि कोरोना महामारी के दौरान पिछले दो साल में मोदी और योगी सरकार के मुप्त राशन से उन्हें अपना जीवन यापन करने में बहुत मदद मिली।
आपको याद होगा कि चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के नेता कहते थे कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में बीजेपी साफ हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस लखीमपुर खीरी की घटना ( भाजपा नेता के बेटे के वाहन ने प्रदर्शनकारियों को कुचल दिया था) को लेकर बहुत हंगामा किया गया उस इलाके में बीजेपी सभी आठ सीटों पर जीत गई। फिर यह भी दावा किया जा रहा था कि बीजेपी को छोड़कर अखिलेश के साथ गए ओबीसी नेता (ओपी राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी) योगी को हरा देंगे। हुआ इसका उल्टा। स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी अपनी भी सीट नहीं बचा पाए। ऐसे कितने सारे उदाहरण हैं।
मेरा कहना यह है कि चुनाव में हार-जीत होती रहती है। वोट प्रतिशत घटता-बढ़ता रहता है। लेकिन अगर विरोधी दलों के नेता इसके लिए ईवीएम को दोषी ठहराते रहेंगे और बीजेपी के प्रचार को दोष देते रहेंगे तो फिर वह हार की के सही कारणों को कभी समझ नहीं पाएंगे। और जब तक मोदी की जीत के कारणों को नहीं समझेंगे तो फिर मोदी को कभी हरा नहीं पाएंगे।
Opposition must try to understand why Modi gets voters’ support
Soon after BJP scored spectacular wins in Uttar Pradesh, Uttarakhand, Manipur and Goa, Prime Minister Narendra Modi is now in his home state Gujarat, which is due to go to assembly polls later this year. He is busy chalking out a poll strategy for his party.
A day after addressing his jubilant party workers in Delhi, Modi took out a road show in Ahmedabad, and addressed meetings of party leaders, MPs, MLAs and panchayat chiefs. At a time, when leaders of other political parties are busy taking rest after gruelling campaigns in UP and Punjab, Modi appears to be quite energetic.
Modi was chief minister of the state for 13 years, and for the last 27 years BJP has been ruling Gujarat continuously, without a break. Any other leader in Modi’s position could have been complacent, but Modi belongs to a different breed. He never takes any challenge lightly.
Visuals of Modi’s visit to Gujarat are proof of his energetic role. There were cheering supporters on both sides of the ten km long road show from the airport to the BJP state headquarters in Gandhinagar. At his party office, Modi outlined the road map for party MLAs, MPs and other leaders.
More than a lakh elected gram panchayat representatives attended a big meeting, where Modi patiently explained to panchayat chief how to bring about development in their villages. The Panchayat Mahasammelan had the motto ‘Aapnu Gam, Aapnu Gaurav’ (My Village, My Pride). On Saturday, a massive Khel Mahakumbh will begin in more than 500 cities, towns and villages of Gujarat. More than 47 lakh youths have registered their names for participating in this Mahakumbh.
Modi’s rivals are surprised over his physical agility and stamina, and, that too, when he is going to turn 72 this year. Modi not only works hard during elections, but also meticulously plans each and every step of the campaign. His vision is always far-reaching. One has to understand why Modi convened a meeting of more than a lakh gram panchayat representatives and advised them how to bring self-reliance (atmanirbharta) in their villages.
If you go through the election data of 2017 Gujarat assembly polls, you will find that BJP got fewer votes in rural areas. The party got 99 seats, which was seven more than the number required for a majority. The 16 seats that BJP lost were all in rural areas. Congress won 77 seats, which was 18 more than it had won in 2012 elections. The Congress had got more votes in rural areas of Gujarat in 2017. Modi has not forgotten the fact that his party lost in 14 rural constituencies five years ago, and all these seats went to the Congress kitty.
Modi is, therefore, concentrating now on how to fill this gap in the party’s interact with rural voters. He has already started work on strengthening the party machinery in the villages of Gujarat. It is this ‘first mover’ advantage that puts Modi in a different league compared to other politicians.
After retaining power in four states, including the crucial state of UP, Modi went on to work on states which will go to elections later this year. On one hand, while opposition leaders are using their valuable time in issuing statements, posting tweets and indulging in blame games, they are oblivious of the fresh challenges that are going to come in their way.
To illustrate my point, let me cite the example of Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav. During his campaign, Akhilesh looked aggressive, claimed his party could win 400 out of 403 seats, bragged that Yogi Adityanath will return to his Gorakhpur ‘math’ after March 1, but on the day of reckoning, as results started pouring in, and when it was clear that BJP has recorded a comfortable victory, Akhilesh avoided coming in front of TV cameras. Akhilesh only posted on Twitter: “उप्र की जनता को हमारी सीटें ढाई गुना व मत प्रतिशत डेढ़ गुना बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद! हमने दिखा दिया है कि भाजपा की सीटों को घटाया जा सकता है. भाजपा का ये घटाव निरंतर जारी रहेगा. आधे से ज़्यादा भ्रम और छलावा दूर हो गया है. बाक़ी कुछ दिनों में हो जाएगा”
(My thanks to the people of UP for increasing our seat tally by two and a half times, and vote share by 1.5 times. We showed that we can bring about decline in the number of seats won by BJP. This rate of decline will continue. More than half the deception and deceit is now over, and the rest will be over in a few days)
What Akhilesh did not say, was put on record by West Bengal CM Mamata Banerjee. She alleged that BJP’s win in UP was not a victory of governance, but a victory of propaganda. She questioned, if SP’s voting percentage increased, then why wasn’t there a comparable rise in the number of seats? The TMC supremo alleged that Akhilesh and his party was defeated through malpractices in EVMs (electronic voting machines).
Mamata Banerjee also said that if a united opposition wants to defeat Modi in 2024 Lok Sabha polls, then it should stop relying on Congress. Shiv Sena leader Sanjay Raut blamed Mayawati’s BSP and AIMIM chief Asaduddin Owaisi for Samajwadi Party’s defeat in UP. On her part, Mayawati blamed Muslim voters for not voting for BSP. She said, Muslim voters will rue their mistake in the near future.
Whatever these leaders may say in public, the fact is, opposition leaders are not ready to analyse the reasons that led to BJP’s historic win in UP. They are not ready to admit their mistakes and weaknesses.
Let me explain the main reasons behind Modi and Yogi’s win in UP. Both of them had already chalked out their strategy on which issues to focus as the polling went through seven phases. In the very first phase, they raised the issue of criminal gangs, political mafia, Yogi’s action against mafia by using bulldozers and the arms of law, and satisfactory law and order.
Along with this, both Modi and Yogi mentioned the welfare schemes that helped poor people, like Ujjwala scheme for LPG cylinders, PM Awas Yojana for building houses, drinking water, electricity connections, Kisan Samman Nidhi, and, above all, free rations to poor during the Covid pandemic. This caught the imagination of the ordinary, poor voter, and the voter decided to vote for BJP for its work.
Moreover, Yogi also worked on his pro-Hindutva image by frequently visiting Ayodhya, and speeding up work on Kashi Vishwanath corridor. The party appointed 10 workers for each polling both, who ensured that the voters would vote for BJP. This worked wonders for the party.
On the other hand, the opposition carried on with its negative campaign, its leaders were not visible for a long time, and they could not tell voters why opposition leaders had vanished during the acute phase of Covid pandemic. All these points went against the opposition. BJP’s gambit in allying with smaller parties paid off. Apna Dal, by wining 12 seats, has now become the third largest party in UP.
Women voters, irrespective of caste and religion, played a significant role in BJP’s victory. Women voters openly said, they welcomed the free rations given by Yogi and Modi during the last two years of pandemic.
You may remember, during the election campaign, opposition leaders were predicting that the BJP will be wiped off in western UP due to the farmers’ agitation, but this did not happen. There were dire predictions after the Lakhimpur Kheri incident, in which a vehicle belonging to a BJP leader’s son crushed protesters, but, in that region, BJP won all the eight assembly seats. There were also predictions that leaders like O P Rajbhar, Swami Prasad Maurya, Dharam Singh Saini, who quit BJP, would cause huge losses to the ruling party. The reverse happened. Maurya and Saini lost their seats.
Wins and losses do take place in elections, and voting percentage of parties do fluctuate. But if opposition leaders start blaming EVMs and blame BJP for its propaganda machinery, then I think, they will never be able to realize the true reasons for their defeat. The opposition will never be able to defeat Modi and his party, so long as it is unable to realize why Modi wins because of his connect with the common voter.
चुनाव नतीजे: मोदी ने राजनीति के व्याकरण को ही बदल कर रख दिया
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व, लोकप्रियता और प्रशासनिक क्षमता को एक बार फिर स्थापित कर दिया। उत्तर प्रदेश में मोदी की यह चौथी चुनावी जीत है, जो अपने आप में अद्भुत है। इसी तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त जीत ने उन्हें न सिर्फ उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा नेता बना दिया, बल्कि बीजेपी में उन्हें राष्ट्रीय पटल पर लाकर खड़ा कर दिया।
चुनाव के नतीजों ने बहुत सारे मिथक तोड़ दिए। जो लोग इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि वक्त के साथ मोदी की लोकप्रियता कम हो जाएगी, जो सोचते थे कि कोरोना के बाद महंगाई और बेरोजगारी से मोदी की ताकत कम हो जाएगी, वे गलत साबित हुए। नरेंद्र मोदी पहले से और अधिक शक्तिशाली, पहले से और अधिक लोकप्रिय होकर सामने आए।
उत्तर प्रदेश में जो लोग दावा करते थे कि किसान आंदोलन के छुटभैये नेता योगी आदित्यनाथ को हरा देंगे, वे गलत साबित हुए। जो लोग यकीन करने लगे थे कि अखिलेश यादव की सभाओं में आने वाले भीड़ का उत्साह योगी की विदाई का संकेत हैं, वे औंधे मुंह गिरे। जो सोचने लगे थे कि जातिवाद का गठबंधन योगी पर भारी पड़ेगा, वे भी गलत साबित हुए। जिन्हें लगता था कि परिवारवाद के दम पर, मुस्लिम तुष्टिकरण के बल पर चुनाव जीता जा सकता है, वे फेल हो गए। जो जातियों के नेता दावा करते थे कि वे जिस पार्टी में जाते हैं उत्तर प्रदेश में उसी की जीत होती है, वे अपनी सीट भी नहीं बचा पाए।
संक्षेप में कहें तो नरेंद्र मोदी ने जातिवाद, परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति को ध्वस्त कर दिया है। ये नतीजे साफ दिखाते हैं कि देश में एक बार फिर राष्ट्रवाद, सुशासन और जन-कल्याण की नीतियों को जनता ने वोट दिया है। ये आने वाले समय में देश की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत हैं।
तथ्यों की बात करें तो अकेले यूपी में 2.61 करोड़ शौचालय बनाए गए, सरकारी मदद से गरीबों के लिए 43.5 लाख घर बनाए गए, 1.43 करोड़ गरीब लोगों के घरों को बिजली कनेक्शन दिए गए, 10 करोड़ गरीबों को मेडिकल इंश्योरेंश कवर दिया गया और 15 करोड़ गरीब लोगों को महामारी के दौरान मुफ्त राशन दिया गया।
पहले लोगों का विश्वास था कि जातियों के बड़े नेताओं के काम करो, उन्हें मालामाल करो तो वोट मिलेंगे। पहले परंपरा थी कि ठेकेदारों को, माफिया को, बाहुबलियों को पालो-पोसो तो वोट मिल जाएंगे। एक विचार था कि परिवारवाद और वंशवाद के नाम पर वोटों की ठेकेदारी करो तो चुनाव जीता जा सकता है।
नरेंद्र मोदी ने इस नैरेटिव को बदल दिया, इन सारी अवरणाओं को ध्वस्त कर दिया, राजनीति का व्याकरण ही बदल कर रख दिया। मोदी ने राजनीति को कितना बदल दिया है, ये इस बात से पता चलता है कि अगर गरीब के खाते में डायरेक्ट पैसा जाएगा, शौचालय, आवास, बिजली, स्वास्थ्य और राशन की व्यवस्था होगी, तो चुनाव में भी जीत मिलेगी। बदलाव की इस राजनीति से नरेंद्र मोदी के प्रति निष्ठा बढ़ेगी, और चूंकि इन चुनावों पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की नजर थी, देश से कहीं आगे बढ़कर मोदी की प्रतिष्ठा में विश्व स्तर पर भी इजाफा होगा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों ने योगी आदित्यनाथ ने एक बड़े राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। यूपी का ये चुनाव योगी के नाम पर, और पिछले 5 सालों में किए गए उनके काम पर लड़ा गया। चुनाव से पहले जब मोदी ने योगी के कंधे पर हाथ रखा तो यूपी की जनता को साफ संदेश गया कि पीएम की नजर में योगी ने अपनी काबिलियत साबित कर दी है।
मोदी ने यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में जमकर योगी की तारीफ की। मोदी को किसी और नेता की, अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के किसी उम्मीदवार की, इतनी तारीफ करते मैंने पहले कभी नहीं सुना। मोदी ने योगी को पूरी तरह बैक किया, सपोर्ट दिया, और योगी इन तारीफों के हक़दार भी थे।
योगी का पूरा व्यक्तित्व, उनकी बेदाग छवि, दिन-रात मेहनत करने का उनका जुनून, अपराध और माफिया को बिना किसी दया के कुचलने की उनकी क्षमता, योजनाओं के बारे में नए-नए विचार , प्रशासनिक कुशलता, किसी जाति या किसी नेता के दबाव में न आने की शक्ति, ये सब नरेंद्र मोदी के नैरेटिव में फिट होते हैं। इन्हीं सब बातों ने योगी आदित्यनाथ को मोदी का प्रिय बना दिया है।
लेकिन कोई भी नेता असल में बड़ा तब बनता है जब जनता उसे स्वीकार करती है, और देश के सबसे बड़े राज्य में 5 साल सरकार चलाने के बाद प्रचंड बहुमत हासिल करना योगी को और भी बड़ा बनाता है। योगी आदित्यनाथ से उत्तर प्रदेश की जनता को बहुत अपेक्षाएं हैं। जनता ने अपना काम कर दिया अब योगी को अगले 5 सालों में जनता का कर्ज चुकाना है।
वंशवाद की राजनीति
गुरुवार को आए चुनाव नतीजों ने आखिरकार यूपी और पंजाब दोनों में वंशवादी राजनीति के मिथक को भी ध्वस्त कर दिया है। वंशवाद की राजनीति के दिन अब खत्म होते दिख रहे हैं। अब जनता किसी नेता के परिवार के नाम पर नहीं बल्कि उसके काम के आधार पर वोट देगी। नतीजों ने केंद्र में गांधी-नेहरू परिवार, यूपी में मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह के परिवारों और पंजाब में बादल परिवार को बड़ा झटका दिया है।
इस बार जिन 5 राज्यों में चुनाव हुए, उनमें से किसी भी राज्य में कांग्रेस को जीत नहीं मिली। देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल ने इन चुनावों में बेहद ही खराब प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश में में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कांग्रेस के कैंपेन की कमान संभाली थी, लेकिन इसके बावजूद पार्टी का वोट शेयर घटकर आधे से भी कम रह गया है। सूबे में कांग्रेस केवल 2 सीटें ही जीत सकी और उसका वोट प्रतिशत घटकर 2.3 प्रतिशत रह गया। पार्टी को कुल मिलाकर 21,51,234 वोट मिले, जो कि जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल से 2.85 प्रतिशत (26,30,168 वोट) से भी कम है।
पंजाब में कांग्रेस का वोट शेयर 5 साल में 38.5 फीसदी से घटकर 23.3 फीसदी हो गया। पंजाब में सत्तारूढ़ रही इस पार्टी के पास अब सिर्फ 18 विधायक हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने 92 सीटें जीती हैं। गोवा और मणिपुर की बात करें तो 5 साल पहले इन राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, और अब वोट शेयर में भारी गिरावट के साथ यह दूसरे नंबर पर पहुंच गई है। गोवा फॉरवर्ड पार्टी जैसे दलों, जो कि कांग्रेस की सहयोगी थीं, को भी नुकसान हुआ। गोवा फॉरवर्ड पार्टी के पास 5 साल पहले 3 सीटें थीं, जो कि अब घटकर एक रह गई है।
कांग्रेस की सरकारों का लागातार दूसरी बार चुने जाने में नाकाम होना एक ट्रेंड बनता जा रहा है। 2011 में असम को छोड़कर किसी भी बड़े राज्य में कांग्रेस की कोई भी सरकार दोबारा निर्वाचित नहीं हो सकी है।
पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला राहुल गांधी का था। उन्होंने ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को ऐन चुनाव से पहले हटाकर चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन चन्नी अपनी दोनों सीटों पर चुनाव हार गए। यही नहीं, राहुल गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी की कमान सौंपी थी, लेकिन उन्हें भी करारी हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह उत्तराखंड में भी नाकामी मिली और यहां कांग्रेस तो हारी ही, साथ ही मुखमंत्री पद के दावेदार हरीश रावत भी अपनी सीट नहीं जीत सके।
कांग्रेस के नेताओं ने कहा है कि हम आत्म-मंथन करेंगे। लेकिन ये आत्म मंथन कब तक चलेगा? कांग्रेस को समझना होगा कि आम आदमी पार्टी उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस पार्टी ने पहले दिल्ली और अब पंजाब में कांग्रेस को साफ कर दिया है। गोवा में आम आदमी पार्टी को 7 फीसदी और उत्तराखंड मे 3.5 फीसदी वोट मिले हैं और दोनों ही राज्यों में केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया है। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल को प्रियंका की कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले, और अपना दल को कांग्रेस के मुकाबले 6 गुना ज्यादा सीटें मिलीं।
कांग्रेस को अब आत्म चिंतन नहीं, चिन्ता करनी चाहिए। कांग्रेस आज भी एक राष्ट्रीय पार्टी है, पूरे देश में उसकी एक पहचान है, लेकिन अगर वह इसी तरह हारती रही तो वापस खड़े होना मुश्किल हो जाएगा। मैं यादव और बादल परिवारों के बारे में भी लिखना चाहता था, लेकिन जगह की कमी है, इसलिए अभी इसे टाल रहा हूं।
राजनीति में ऐसे कई परिवार हैं जो राज्यों को, सरकारों को अपनी थाती या विरासत मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से ही ऐसी परिवारवादी राजनीति की मुखालफत करते रहे हैं। उन्होंने पहले बीजेपी में परिवारवाद को पनपने से रोका, फिर चुनाव में इसे मुद्दा बनाया। 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे साफ तौर पर दिखाते हैं कि भारत में अब परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति का अंत होने वाला है।
Election results: How Modi changed India’s political narrative
The remarkable victories of BJP in Uttar Pradesh, Uttarakhand, Manipur and Goa have once again established Prime Minister Narendra Modi’s solid leadership credentials, his rising popularity graph and administrative competence. This is Modi’s fourth consecutive electoral win in UP, which, in itself, is nothing short of a miracle. Simultaneously, Chief Minister Yogi Adityanath’s spectacular win has not only established him as the greatest leader of UP in recent times, but has also underlined BJP’s domination in national politics.
Thursday’s election results have broken several myths. There were sceptics who were expecting Modi’s popularity curve to take a dive, there were naysayers who expected Modi’s power to diminish due to price rise and unemployment after the Covid pandemic. But all of them were proved wrong. Modi has emerged stronger and more popular than before.
Those people in Uttar Pradesh who were expecting small-time ‘kisan’ leaders to defeat Yogi at the hustings, were also proved wrong. There were people, who after watching huge crowds of youths attending Akhilesh Yadav’s rallies and road shows had predicted Yogi’s exit, but they have now been silenced. Those who had expected that the formidable caste combination of Akhilesh-led alliance would crush Yogi’s hopes, were also proved wrong. Those who were dreaming of coming to power riding on dynastic and appeasement politics, had to bite the dust. Those caste leaders who used to claim that any alliance they join always comes to power, could not save their own seats.
In a nutshell, Modi has demolished dynastic, appeasement and caste based politics. The results clearly show that people have voted for nationalism, good governance and public welfare policies. These are signs of major changes that are going to take place in national politics, in the years to come.
The facts are there for all to see and analyse. In UP alone, 2.61 crore toilets were built, 43.5 lakh homes were built for the poor with government assistance, electricity connections were given to 1.43 crore homes of poor people, 10 crore poor were given medical insurance cover, and 15 crore poor people were provided free ration during the pandemic.
Thursday’s assembly poll results clearly indicate how Modi has changed the political lexicon in India during seven years of his rule. Earlier, political parties used to give favours to caste leaders to get votes, parties used to patronize local mafia and contractors to corner votes with the help of muscle power, there were many who assumed that dynastic politics will ensure electoral win.
Modi has changed this narrative and has completely demolished these myths. Modi ensured that direct benefit transfer to the poor for toilets, housing, electricity, health and ration, will, from now on, ensure electoral win. This change in Indian politics is bound to enhance the loyalty base of Modi, and since experts all over the world were also keenly watching the results, it will enhance Modi’s popularity on the world stage too.
The UP election result has clearly established Yogi Adityanath’s credentials as a national level leader. The election was fought in Yogi’s name and his work during the five years. Before the elections, when Modi put his arm around Yogi’s shoulder, a clear message was sent to the people of UP that Yogi has proved his capability in the eyes of the PM.
During the entire election campaign in UP, Modi praised Yogi effusively in his speeches. I have never heard Modi praising any of his parry’s chief ministers in such superlative terms. Modi lent full backing and support to Yogi, which the latter deserved.
On his part, Yogi created a persona that projected him as an honest and sincere leader, who toiled tirelessly for five years, showed to the world how a government can ruthlessly deal with criminals and mafia leaders, who came out with fresh ideas about governance, and ran a government machinery that refused to grant undue favours to particular caste or community.
All these attributes of Yogi Adityanath fitted well within the narrative set by Modi for the elections. This made him a leader dear to Modi. But a leader becomes great, when people accept the individual to be so. Running a government in India’s most populous state for five years, and then returning to power with a clear majority, has made Yogi a great leader. The people of UP have high hopes from Yogi, and he has to repay this debt by fulfilling those aspirations in the next five years.
DYNASTIC POLITICS
Thursday’s election results have finally demolished the myth about dynastic politics, both in UP and Punjab. The days of dynastic politics now seem to be over. The common voter will now vote not in the name of leader’s family, but will vote on the basis of his performance. The results have given a rude jolt to Gandhi-Nehru family at the Centre, Mulayam Singh Yadav’s and Ajit Singh’s families in UP and Badal family in Punjab.
The Congress failed to win in any of the five states that went to polls this time. It was indeed a disastrous electoral performance for the Grand Old Party. Despite Priyanka Gandhi Vadra taking charge of the party in UP, the party’s vote share has dwindled to less than half. Congress could manage to win only two seats, and its vote share has come down to 2.3 per cent. The party got, in all, 21,51,234 votes, even less than Jayant Chaudhary’s Rashtrya Lok Dal at 2.85 per cent (26,30,168 votes).
Congress party’s vote share in Punjab declined from 38.5 pc to 23.3 per cent in five years. From being a ruling party, it now has only 18 MLAs in Punjab, compared to 92 seats won by AAP. Five years ago, Congress was the single largest party in Goa and Manipur, not it is a distant second, with declining vote share. Parties like Goa Forward Party, who were allies of Congress, also suffered. Goa Forward Party had 3 seats five years ago, but now it has dwindled to one.
Congress governments failing to get re-elected has now become a consistent trend. Except in Assam in 2011, no Congress government could get re-elected in any big state.
It was Rahul Gandhi’s decision to remove Capt. Amarinder Singh as CM in Punjab and impose Channi as CM. Channi lost from both the seats that he contested. Rahul made Navjot Singh Sidhu as state party chief, but Sidhu also lost. Similarly, in Uttarakhand, both the party and its chief ministerial candidate Harish Rawat lost.
Congress leaders have said they will do ‘atma-manthan’ (self-introspection). But till how long will they continue this ‘atma-manthan’? They have been doing this for the last seven years. Congress must realize that the AAP has already filled up its space in Delhi and Punjab. In Goa, AAP got 7 per cent votes and in Uttarakhand it got 3.5 pc votes. In both these states, Kejriwal’s party caused big losses to the Congress. In UP, RLD got more votes than Priyanka’s Congress, and Apna Dal got six times more seats than Congress.
Congress should do chinta instead of atm-chintan. The sooner, the better. The Congress is still a national party, and it has an identity of its own. If the party continues to lose, it will be very difficult to stand up and regain its lost space. I wanted to write about Yadav and Badal families too, but am avoiding it due to space constraints.
There are several families in Indian politics, who consider states as their fiefdoms. Prime Minister Narendra Modi had been consistently raising his voice against dynastic politics. He initiated his move against dynastic politics, first inside his own party BJP, then made it an issue during election campaigns. The results of five assembly elections clearly show that dynastic politics seems to be coming to an end in India.
मोदी ने कैसे बचाई सूमी में फंसे करीब 700 भारतीय छात्रों की जान
युद्ध से जर्जर यूक्रेन से मंगलवार को राहत की खबर आई। सूमी में फंसे करीब 700 भारतीय छात्रों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। इन छात्रों को रेड क्रॉस की बसों में निकाला गया। इस बसों का इंतजाम भारतीय दूतावास ने किया था। घमासान लड़ाई के बीच रूसी और यूक्रेनी सेनाओं द्वारा बनाए गए सेफ कॉरिडोर से इन बसों को रास्ता दिया गया। पोल्टोवा पहुंचने के बाद छात्रों को ट्रेन के जरिए यूक्रेन बॉर्डर तक लाया जाएगा और फिर इन्हें विमान से भारत भेजा जाएगा।
ये छात्र पिछले 13 दिन से सूमी में आसमान से बरसते गोलों और जमीन पर चल रही गोलियों के बीच फंसे थे। भीषण लड़ाई के बीच छात्र बंकरों में रहने को मजबूर थे। न बिजली थी और न पानी था। खाना भी खत्म हो चुका था। बर्फ पिघलाकर पानी के साथ बिस्किट खाकर किसी तरह से गुजारा हो रहा था और ऊपर से मिसाइल, बम और गोलों की खौफनाक आवाज़ों ने इन छात्रों को डरा दिया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़े स्तर पर की गई अथक कोशिशों के बाद इन छात्रों को सूमी से निकालने में कामयाबी मिली। मोदी ने रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों से बात की और उनसे चन्द घंटों के लिए सीजफायर का अनुरोध किया था ताकि वहां फंसे हुए भारतीय छात्रों को निकालने के लिए सेफ कॉरिडोर की व्यवस्था की जा सके।
सूमी की लोकेशन ऐसी है कि यहां से भारतीय छात्रों को बचाकर लाना बहुत बड़ी चुनौती थी। सूमी इलाका रूस की सीमा से लगता है। यहां यूक्रेन और रूस की सेना के बीच भीषण लड़ाई चल रही है। इन छात्रों को पोलैंड, हंगरी और रोमानिया के बॉर्डर्स तक सुरक्षित लाना मुश्किल काम था क्योंकि सूमी से इन तीनों देशों के बॉर्डर्स की दूरी करीब 1,200 से 1,500 किमी है। सोमवार को इन छात्रों को बंकर से बाहर आने और बसों में चढ़ने के लिए कहा गया लेकिन उस समय तक युद्धविराम लागू नहीं हुआ था और रूस- यूक्रेन की सेना की तरफ से सेफ कॉरिडोर भी नहीं बन पाया था, लिहाजा छात्रों को वापस बंकर में जाना पड़ा था।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि छात्रों को निकालने के मिशन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मॉनिटर कर रहे थे। मोदी ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय छात्रों को सुरक्षित रास्ता मिले। इसके लिए मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की से बात की। सूमी में फंसे छात्रों को लेकर भारत सरकार ने हर स्तर पर काम किया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी इस मामले को उठाया। इसके बाद रूस और यूक्रेन के बीच सूमी में 12 घंटे के युद्धविराम की सहमति बनी और छात्रों ने राहत की सांस ली।
अगर नरेन्द्र मोदी इसमें व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी न लेते, और पुतिन और जेंलेस्की से बात न करते तो यह उनके लिए ‘मिशन इंपॉसिबल’ था। भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी जिसे अधिकारियों के बीच बेहतर समन्वय के जरिए निपटाया गया।
यूक्रेन से अब तक कुल 18 हजार भारतीयों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। कीव से भारतीयों को बाहर निकालने में थोड़ी बहुत परेशानी हुई लेकिन खारकीव से लोगों को निकालने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि यहां लगातार रूसी मिसाइलों के हमले हो रहे थे। इसके लिए भी मोदी को पुतिन से बात करनी पड़ी थी और रूस ने खारकीव पर कुछ घंटों के लिए बमबारी रोकी। इसके बाद छात्रों को पोलैंड बॉर्डर पर लाया गया जहां से अब वे भारत लौट आए हैं।
‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत कुल 87 स्पेशल फ्लाइट्स के जरिए करीब 18 हजार छात्रों को सुरक्षित निकाला गया। इनमें 75 स्पेशल सिविलयन फ्लाइट्स जबकि भारतीय वायुसेना के 12 फ्लाइट्स शामिल रहीं। इनमें से 28 फ्लाइट हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट से जबकि 21 फ्लाइट रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से आईं, जबकि 9 फ्लाइट्स मॉलडोवा के रास्ते आई हैं। मंगलवार को 410 छात्र दो स्पेशल फ्लाइट्स से देश वापस लौटे। इनमें से कई छात्रों ने रूस और यूक्रेन की सेनाओं के बीच भीषण जंग के बीच की आपबीती सुनाई, साथ ही ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत भारतीय अधिकारियों द्वारा किए गए प्रयासों की भी तारीफ की।
यूक्रेन के डिप्टी पीएम ने कहा कि मंगलवार सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक 12 घंटे के युद्धविराम के दौरान सूमी से करीब 5 हजार नागरिकों को रेड क्रॉस के साथ एक काफिले में निकाला गया। इनमें से ज्यादातर भारतीय, चीनी, जॉर्डन और ट्यूनीशिया के नागरिक थे।
जंग का आज 14वां दिन है। कई मोर्चों पर घमासान लड़ाई हो रही है और दिन बीतने के साथ ही यह और व्यापक रूप लेता जा रहा है। रूस की सेना ने यूक्रेन के कई शहरों पर हमले किए जिसमें 400 से ज्यादा नागरिकों की मौत हो गई है। बुधवार को राजधानी कीव में हवाई हमले के सायरन बजाए गए। ऐसी भी खबरें हैं कि रूस की सेना जल्द ही कीव पर अंतिम और निर्णायक हमले की योजना बना रही है।
मंगलवार की रात रूस की वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने कीव के पश्चिम में खारकीव और ज़ाइटॉमिर के आसपास के रिहायशी इलाकों पर बमबारी की। वहीं रूसी सेना ने राजधानी कीव के आसपास गोलाबारी तेज कर दी है। राजधानी कीव के सभी उपनगर बुचा, होस्टोमेल, इरपेन, विशोरोड और बोरोडियांका में हालात बेहद खराब हो चुके हैं। यहां सड़कों पर शव लावारिस हालत में पड़े हैं। पश्चिमी यूक्रेन के लविव शहर में 2 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। इन्हें स्पोर्ट्स हॉल, स्कूल और अन्य इमारतों में रखा गया है। वहां के मेयर को इन लोगों के खाने-पीने का इंतजाम करने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
अब तक रूसी सेना ने दक्षिणी और तटीय यूक्रेन पर कब्जा कर लिया है, लेकिन राजधानी कीव और कई अन्य शहरों के पास रूसी सेना को रोक दिया गया है। 4 लाख 30 हजार आबादी वाले शहर मोरियुपोल में भीषण लड़ाई चल रही है। सड़कों पर लावारिस लाशें पड़ी हैं। लोग बंकर, बेसमेंट और सबवे में शरण लिए हुए हैं। पानी, बिजली, फोन जैसी सुविधाएं नहीं हैं। मारियुपोल से लोगों को योजनाबद्ध तरीके से निकालने का प्रयास कामयाब नहीं पाया। दरअसल, राहत का सामान लेकर जा रहे एक यूक्रेनी काफिले पर रूसी सेना की ओर से फायरिंग हुई जिसके चलते इस अभियान को रोकना पड़ा। इस काफिले को राहत सामग्री पहुंचाने के बाद वहां फंसे हुए नागरिकों को लेकर लौटना था।
जंग के दौरान अपनी-अपनी सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए दोनों पक्ष दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का दावा करते हैं। यूक्रेन की सेना की तरफ से भी रूस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाने का दावा किया जा रहा है। मंगलवार को यूक्रेन की तरफ से यह दावा किया गया कि उसने अबतक 12 हजार रूसी सैनिकों को मार गिराया है, रूस के 48 विमान, 80 हेलीकॉप्टर, 303 टैंक, 108 आर्टिलरी गन, 1,036 आर्म्ड कॉम्बैट वाहन, 474 जीप और 60 फ्यूल टैंक को नष्ट कर दिया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी दिन में 2-3 बार अपना वीडियो बनाकर उसे रिलीज करते रहते हैं जिससे सेना और आम लोगों का मनोबल ऊंचा रहे। मंगलवार को उन्होंने एक वीडियो जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि न तो वो छिपे हुए हैं, न डरे हुए हैं और न ही वह यूक्रेन छोड़कर जाएंगे। ज़ेलेन्सकी ने कहा कि यह यूक्रेन की आजादी को बरकरार रखने की जंग है और इसे हर हाल में जीतना होगा।
अगर यूक्रेन की सेना के दावे सही भी हों तो भी जमीनी हकीकत यह है कि रूस की सेना दबदबा बनाए हुए है। रूस अब भी फ्रंट फुट पर है। उसने पिछले 12 दिन में यूक्रेन पर बम और मिसाइल बरसाकर उसकी कमर तोड़ दी है। मारियूपोल शहर में सभी अहम रक्षा प्रतिष्ठान, सरकारी इमारतें, तेल डिपो रूस के हवाई हमले में नष्ट हो गए हैं। यूक्रेन के ज्यादातर शहरों का यही हाल है। कीव, खार्किव, इरपिन और ओडेसा में व्यापक नुकसान हुआ है। इन शहरों की कई इमारतें अब खंडहर में बदल चुकी हैं।
पिछले दो हफ्तों में करीब 20 लाख लोगों ने यूक्रेन छोड़कर पड़ोसी देशों में शरण ली है जिनमें करीब 10 लाख बच्चे हैं। 12 लाख महिलाओं और बच्चों ने पड़ोसी देश पोलैंड में शरण ली है। हंगरी में करीब 2 लाख और स्लोवाकिया में 1.5 लाख शरणार्थी हैं। रोमानिया में 85,000 से ज्यादा और मोल्डोवा में करीब 83,000 शरणार्थी हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में यह सबसे बड़ा मानवीय संकट है।
मंगलवार की रात ‘आज की बात’ में हमने यूक्रेन के एक बच्चे का वीडियो दिखाया। इस वीडियो में एक बच्चा फटा कोट पहने रोते हुए जा रहा है। वह एक थैला अपने हाथ में लिए हुए है जिसमें खिलौना है और दूसरे हाथ में कुछ खाने की चीज है और आंखों में आंसू..। लाखों लोगों की तरह यह बच्चा भी युद्ध की मार से बचने के लिए सुरक्षित ठिकाने की तरफ जा रहा है। इसे नहीं पता कि युद्ध क्यों हो रहा है। इसे नहीं पता कि युद्ध कब खत्म होगा। बस इतना पता है कि उससे अपना घर छूट गया है और वह लगातार रोता जा रहा है। कौन ऐसा शख्स होगा जिसकी आंखें इस दृश्य को देखकर नम नहीं हो जाएंगी।
इस युद्ध की सबसे ज्यादा मार बच्चों पर ही पड़ी है। ऐसा ही एक वीडियो यूक्रेन की 10 साल की लड़की अन्नामरिया मास्लोवस्का का है। जो अब बेघर हो चुकी है और यूक्रेन की सीमा से लगे हंगरी के जाहोनी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रही है। लेकिन यह लड़की भाग्यशाली है कि उसका परिवार उसके साथ है। वीडियो में वह बताती कि कैसे वह अपने घर और अपने दोस्तों को याद करती है। उसने बताया कि उसके पास बहुत से खिलौने थे, घर के पास खेलने के लिए अच्छे पार्क थे, लेकिन अब सब कुछ छूट गया है।
हर युद्ध में बड़ी संख्या में लोग हताहत होते हैं लेकिन इसमें सबसे ज्यादा नुकसान युवा पीढ़ी का होता है। युवा पीढ़ी की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। यह जंग जितनी जल्दी खत्म हो, उतना ही बेहतर होगा।
How Modi saved the lives of nearly 700 Indian students trapped in Sumy
From war-torn Ukraine on Tuesday, came good news about nearly 700 Indian students evacuated from Sumy in 12 Red Cross buses arranged by Indian embassy. The convoy of buses made its way through a safe corridor created by Russian and Ukrainian forces for 12 hours in the midst of raging battle. The students, after reaching Poltova, will board trains to the Ukrainian border, for onward evacuation to India by air.
For the last 13 days, these Indian students were huddled inside bunkers with missiles and bombs exploding outside, and firing going on. They had no electricity and water, and most of them were without food. Several students were eating biscuits dipped in water, melted from snow falling outside. All of them were living in a state of terror.
Their escape to freedom was made possible due to strenuous efforts made by Prime Minister Narendra Modi at the highest level. Modi had spoken on telephone to both the Russian and Ukrainian presidents on Monday and had requested them to agree on a ceasefire so that a safe corridor could be arranged for Indian students.
Since Sumy was close to the Russian border, and was the hotbed of conflict between Russian and Ukrainian forces, it was difficult to evacuate them to the western border adjoining Poland, Romania and Hungary, which is 1,200 to 1,500 km away from the city. On Monday, the students were asked to come out of the bunkers and board the buses, but were again asked to go back, as the safe corridor which was expected from both sides, did not materialize. The ceasefire was not operational at that time.
However, on Tuesday, Prime Minister Modi personally monitored the evacuation and ensured that the Indian students got safe passage, said Union Minister Hardeep Singh Puri. While Modi spoke to Putin and Volodmyr Zelenskyy, India raised this humanitarian issue at the UN Security Council too. Soon after, Russia and Ukraine agreed on a 12-hour ceasefire in Sumy and the students heaved a sigh of relief.
It was Mission Impossible for Modi, who had to persuade both Putin and Zelenskyy to agree on a limited ceasefire. For India, it was a big challenge which was overcome through close coordination between officials.
Overall, till now, more than 18,000 Indian nationals have been evacuated. Evacuating Indians from Kiev was easy, but providing safe passage to Indians from Kharkiv, where Russian missiles were being rained, was a big challenge. At that time, too, Modi spoke to Putin, and requested him to order a halt on attacks on Kharkiv, so that Indians could be evacuated. Russian army halted missile attacks, and Indians were brought to Poland border, from where they have now returned to India.
Indian nationals were brought home in 75 special civilian flights, while Indian Air Force carried out 12 flights for evacuation. On Tuesday, 410 Indian students returned home in two special flights. Many of the students narrated their ordeals in the midst of fierce fighting between Russian and Ukrainian forces. In all, 28 flights were organized for evacuation from Hungary, 21 flights from Romania and nine from Moldova. All the evacuees praised the efforts made by Indian officials under ‘Operation Ganga’.
From Sumy, nearly 5,000 civilians were evacuated in convoys accompanied by Red Cross during the 12-hour ceasefire from 9 am till 9 pm on Tuesday, the Ukrainian Deputy PM said. Most of them were Indians, Chinese, and nationals from Jordan and Tunisia.
The war, into its 14th day today, is acquiring menacing proportions with fierce battles raging on several fronts. Russian forces attacked several cities of Ukraine killing more than 400 civilians, while air raid sirens were sounded in capital Kiev on Wednesday. There are reports of the Russian army planning a final assault on Kiev soon.
On Tuesday night, Russian Air Force jets bombed residential areas around Kharkiv, and Zhytomyr, to the west of Kyiv. The Russian army also stepped up shelling on suburbs of capital Kyiv. The situation is worse in Bucha, Hostomel, Irpen, Vyshhorod, and Borodianka, all suburbs of capital Kyiv, where bodies are lying on the streets unclaimed. In the city of Lviv, in western Ukraine, the mayor is struggling to feed nearly 2 lakh homeless people, who have been housed in sports halls, schools and other buildings.
Till now, the Russian army has occupied a swathe of southern and coastal Ukraine, but its advances have been stopped near capital Kyiv and several other cities. In Mariupol, a city of 4,30,000 people, where fierce fighting is raging, there are unclaimed bodies lying on the streets, and several lakhs of people trapped in bunkers, basement shelters and subways inside the city. There is no water, electricity, heat, sanitary facilities and phone service. The planned evacuation of civilians from Mariupol failed, when Russian forces fired at a Ukrainian convoy sent with humanitarian cargo. The convoy was meant to evacuate civilians on its return journey.
During war, both sides inflate their claims about casualties, in order to boost the morale of their armies. On Tuesday, Ukrainian defence claimed that till now nearly 12,000 Russian soldiers have been killed, 48 aircraft, 80 helicopters, 303 tanks, 108 artillery guns, 1,036 armed combat vehicles, 474 jeeps, 60 fuel tanks have been destroyed. President Zelenskyy is releasing his videos at least twice or thrice a day to show that he is in charge. He asks his people and forces to keep up their morale and fight the Russians. On Tuesday, he said in a video, “I am not hiding, nor am I fearing, I will not flee Ukraine”.
Even if Ukrainian army’s claims may be true, the fact on the ground is that the Russian army still has the upper hand. In the last 13 days, it has broken the back of Ukrainian infrastructure. All defence installations, government buildings, fuel depots in Mariupol have been destroyed in Russian aerial attacks. There have been widespread damages in Kyiv, Kharkiv, Irpin and Odessa. Many buildings in these cities are now in ruins.
Two million people, nearly half of them children, have fled Ukraine to neighbouring countries in the past two weeks. Out of them 1.2 million, mostly women and children, have taken refuge in neighbouring Poland. There are nearly 2 lakh refugees in Hungary and 1.5 lakh in Slovakia. There are more than 85,000 refugees in Romania, and nearly 83,000 in Moldova. This is the worst humanitarian crisis engulfing Europe since World War 2.
In ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed the video of a Ukrainian boy, wearing a tattered coat, carrying a bag with his dolls, and another bag containing food, and weeping. This boy does not know why this war broke out, who are fighting against whom. He only knows that he has run away from his home, when the attacks took place. The tears in the eyes of this innocent boy is found to make elderly people weep.
There is another video of a 10-year old homeless Ukrainian girl Annamaria Maslovska at a railway station in Zahony, Hungary, right on the Ukrainian border. The girl is fortunate that her family is with her, but in the video, she is saying, how she is missing her home and her friends. She says, she had a lot of toys, and there were many games to play at the nearby park, but no more.
Every war takes a toll, but, in the process, it ruins the lives of those who belong to the younger generation. For them, the future is bleak. The sooner this war ends, the better.
क्या पुतिन कीव पर करेंगे निर्णायक हमला?
यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध का आज 13वां दिन है। मारियुपोल शहर में करीब 2 लाख लोग फंसे हुए हैं और रेडक्रॉस के अधिकारी निर्दोष नागरिकों की जान बचाने के लिए सेफ कॉरिडोर (सुरक्षित गलियारे) का इंतजार कर रहे हैं। शहर में बिजली, पानी और खाने-पीने का सामान नहीं है, साथ ही मोबाइल फोन का नेटवर्क भी ठप पड़ा है। सोमवार को रूसी सेना ने यूक्रेन के कई अन्य शहरों पर रॉकेट और गोले दागे जिससे बड़े पैमाने पर तबाही हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों से बात की। उन्होंने दोनों नेताओं से यह आग्रह किया कि नागरिकों के लिए सेफ कॉरिडोर बनाने और युद्ध खत्म करने के लिए वे आपस में बात करें।
सोमवार की रात एबीसी न्यूज पर प्रसारित इंटरव्यू में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा- “समस्या यह है कि यूक्रेन का एक सैनिक है तो उसके बराबर रूस के 10 सैनिक हैं। यूक्रेन का एक टैंक है तो उसके बराबर रूस के 50 टैंक खड़े हैं।“ उन्होंने कहा अगर रूसी सेना हमारे सभी शहरों में घुस भी जाती है, तो भी उन्हें जबदस्त विद्रोह का सामना करना पड़ेगा। एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि कई देश इस बात पर विचार कर रहे हैं कि यूक्रेन को लड़ाकू विमान उपलब्ध कराए जाएं, क्योंकि जेलेंस्की बार-बार इसकी गुहार करते रहे हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच तीसरे दौर की वार्ता बेनतीजा रही। इस बातचीत में सबसे ज्यादा जोर सेफ कॉरिडोर पर रहा। राजधानी कीव में रहनेवाले लोगों ने रूसी सेना को रोकने के लिए बैरिकेड्स बनाए हैं। रेत की बोरी, पैक किए गए टायर, भारी कंक्रीट स्लैब और नुकीले केबल से इन बैरिकेड्स को तैयार किया गया है। यूक्रेन के सैनिकों और हथियारों से लैस स्वयंसेवकों ने इन बैरिकेड्स को तैयार किया है। यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में भीषण गोलाबारी हुई। रूसी सेना के गोले से बड़े-बड़े अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स धाराशायी हो गए। कीव में भीषण लड़ाई चल रही है। खासतौर से इरपिन, बुका, होस्टोमेल और वोरज़ेल में दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे को निशाना बना रही हैं।
पड़ोसी देश पोलैंड में 10.27 लाख से ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों ने शरण ली है जबकि 1.8 लाख शरणार्थी सीमा पार कर हंगरी चले गए हैं। 1.28 लाख लोगों ने स्लोवाकिया में शरण ली है। कई लोगों ने मोल्दोवा और रोमानिया में शरण ली है। केंद्रीय मंत्री जनरल (रिटायर्ड) वी.के. सिंह 210 भारतीयों के साथ वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान से हिंडन एयरबेस पहुंचे। उनके साथ भारतीय छात्र हरजोत सिंह भी था जिसे गोली लगी थी । वी.के सिंह ने बताया कि अकेले पोलैंड से 3 हजार भारतीयों को निकाला गया है। भारतीय दूतावास के एक ड्राइवर ने दिलेरी दिखाते हुए घायल हरजोत सिंह को कीव से 700 किमी दूर सीमा पार कराया। गोलाबारी, रोड ब्लॉक और ईंधन की कमी के बावजूद उस बहादुर ड्राइवर ने हिम्मत नहीं हारी।
पीएम मोदी के ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत अकेले सोमवार को यूक्रेन के पड़ोसी देशों से 1,314 भारतीयों को एयरलिफ्ट किया गया। इसके साथ ही यूक्रेन से अब तक 17, 400 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकाला जा चुका है। इनमें से 5,206 लोगों को 73 विशेष असैनिक उड़ानों से वतन वापस लाया गया।
एक सवाल सबके मन में है कि युद्ध कब खत्म होगा? अब तक रूस यूक्रेन पर पूरी तरह से कब्जा क्यों नहीं कर पाया? युद्ध के 12 दिन गुजर चुके हैं और आज 13वां दिन है। हम कई दिनों से सुन रहे हैं कि रूसी सेना कीव से 12 किलोमीटर दूर है लेकिन अभी तक कीव पर कब्जा नहीं कर पाई। रूस की सेना ने बम बरसाए, तबाही मचाई, खौफ पैदा किया लेकिन अभी तक कीव के अंदर दाखिल नहीं हुई है।
सब जानते हैं कि पुतिन की फौज दुनिया की सबसे ताकतवर मिलिटरी पावर्स में से एक है उनके पास अत्याधुनिक हथियार हैं। रूस उन्नत हथियारों, उपकरणों, विमानों और हथियारों का एक प्रमुख निर्यातक है। रूस पूरी दुनिया को हथियार सप्लाई करता है फिर भी कीव अब तक उसके हाथ में क्यों नहीं आया? राष्ट्रपति जेलेंस्की अभी भी यूक्रेन में हैं। उन्होंने सोमवार को कहा-‘मैं कीव में हूं और कहीं छिपा नहीं हूं’। जेलेंस्की जंग को फ्रंट से लीड कर रहे हैं। क्या जेलेंस्की की आर्मी इतनी मजबूत है कि उसने पुतिन की फौज को रोक रखा है? असल में इसकी संभावना कम लगती है। रूस ने शुरुआती हमलों में यूक्रेन की एयर पावर को ध्वस्त कर दिया था और यूक्रेन की फौज की सप्लाई लाइन को भी बाधित कर दिया था। जमीन पर यूक्रेन रूस को नुकसान तो पहुंचा सकता है पर उन्हें रास्ते में रोक नहीं सकता।
इसीलिए ऐसा लगता है कि पुतिन का फिलहाल कीव पर पूरी तरह कब्जा करने का इरादा फिलहाल तो नहीं है। पुतिन की कोशिश है कि दबाव बनाकर यूक्रेन को दो बातों के लिए मजबूर किया जाए। एक तो वह विसैन्यीकरण (डिमिलिटराइजेशन) के लिए तैयार हो और दूसरी बात यह है कि वह वादा करे कि NATO में शामिल नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो पुतिन का मकसद पूरा हो जाएगा। अगर यूक्रेन दबाव में नहीं आया तो फिर पुतिन को फाइनल असॉल्ट लॉंच (अंतिम और निर्णायक हमला ) करना होगा। इस वक्त लगता है कि पुतिन उस हालात से बचना चाहते हैं। ये उनकी रणनीति लगती है।
Will Putin launch a final assault on Kiev?
The war in Ukraine has entered the 13th day, with nearly two lakh people besieged in the city of Mariupol, and Red Cross officials waiting for a safe corridor to save the lives of innocent civilians. The city has no water, electricity and food, and cellphone networks are down. The Russian forces bombarded several other cities of Ukraine with rockets and shells on Monday causing widespread devastation. Prime Minister Narendra Modi spoke to both the Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy and Russian President Vladimir Putin requesting them to at least talk directly to create safe corridors for civilians and end the war.
In an interview to ABC News aired on Monday night, the Ukrainian President said: “The problem is that for one soldier of Ukraine, we have 10 Russian soldiers, and for one Ukrainian tank, we have 50 Russian tanks”. He said, even if Russian forces “come into all our cities”, they will be met with insurgency. A top US official has said that several countries are considering whether to provide fighter aircraft to Ukraine, which Zelenskyy has been pleading for.
The third round of talks between Russia and Ukraine ended inconclusively, with most of the discussions centering around creating safe corridors. The people living in the capital Kyiv have barricaded themselves from a Russian military onslaught with sandbags, packed tyres, heavy concrete slabs and spiked cables put by soldiers and armed volunteers. The second largest city of Kharkiv witnessed heavy shelling with shells destroying huge apartment complexes. Fierce battles continue in Kyiv region, particularly in Irpin, Bucha, Hostomel and Vorzel.
More than 10.27 lakh Ukrainians have taken refuge in neighbouring Poland, while 1.8 lakh refugees have crossed over to Hungary, and 1.28 lakh people have gone to Slovakia. Others have taken refuge in Moldova and Romania. Union Minister Gen (retd) V K Singh returned to Hindon airbase in a C-17 Globemaster IAF aircraft with 210 Indian nationals including Harjot Singh, the Indian national who was injured in firing. Singh said, over 3,000 Indian nationals have been evacuated from Poland alone. An Indian embassy driver displayed bravery by evacuating injured Harjot Singh from war-torn Kyiv to the border, over a distance of more than 700 km, despite shelling, roadblocks and fuel shortage.
Under Prime Minister Modi’s ‘Operation Ganga’, 1,314 Indians were airlifted on Monday alone from several countries. With this, more than 17.400 Indian nationals have been evacuated from Ukraine till date. Out of them, 15,206 Indians were airlifted in 73 special civilian flights.
One question that crops up in the minds of most of the people is: when will the Ukraine-Russia war end? Already 12 days have passed and Russia is yet to take control of most of Ukraine. For more than a week now, we have been hearing that the Russian forces are 12 km away from capital Kyiv, but they are yet to enter the capital and take control. The Russian army bombed most parts of Kiev, but is yet to enter the capital.
Most of us know Putin’s army is one of the biggest armies in the world, and Russia is a major exporter of advanced arms, equipment, aircraft and weapons. The question is: why couldn’t his army enter Kiev? On Monday, Zelenskyy again said, “I am in Kyiv, and I am not hiding”. Zelenskyy is leading the war from the front. Is the Ukrainian army so strong that it can hold the Russian forces in its march? I think, the possibilities of Ukrainian forces stopping the Russian army are few. Already, the Russian forces have destroyed Ukrainian air power, and have disrupted its supply lines. On ground, the Ukrainian army had been causing losses to the Russian forces, but it cannot stop them in their tracks.
All these developments point in one direction: that Putin is yet to decide on occupying Kiev. Putin appears to be exerting pressure on the Kiev government to accept his two main demands: complete demilitarization and refrain from joining NATO. He is still waiting for the Kiev government to come forward with these two commitments. If Zelenskyy and his government agree to these two demands, Putin will have achieved his objective. If Zelenskyy does not bow to pressure, then Putin may be forced to order a final assault. As of now, it seems Putin wants to avoid this situation. It could be part of his overall strategy.
युद्ध कोई समाधान नहीं है, पुतिन को जेलेंस्की से बात करनी चाहिए
रूस के रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को ऐलान किया कि उनकी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव के बाहर लंबे समय तक डेरा डालने के बाद शहर में दाखिल हो गई है। रूसी सेना जेलेंस्की सरकार को हटाने का इरादा लेकर कीव में घुसी है। राजधानी की कई इमारतों में आग लगने की खबर है। नागरिकों को सुरक्षित ठिकानों पर जाने के लिए कहा गया है। रूसी टैंकों और बख्तरबंद वाहनों के 64 किमी लंबे काफिले ने कीव के बाहर डेरा डाला हुआ है, और शहर में लगातार हवाई हमले के सायरन बजाए जा रहे हैं।
जंग शुरू हुए 9 दिन हो चुके हैं, और यूक्रेन के बड़े शहरों पर मिसाइलों और गोला-बारूद की बरसात करने के बाद रूसी सेना ने यूरोप को सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र ज़पोरिशिया पर कब्जा कर लिया है। रूस की गोलाबारी की वजह से परमाणु ऊर्जा संयंत्र में आग लग गई थी, जिससे सुबह-सुबह डर का माहौल बन गया था, लेकिन इसे तुरंत नियंत्रण में कर लिया गया। हमले में सिर्फ एक ट्रेनिंग बिल्डिंग और एक लैब को नुकसान पहुंचा है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निदेशक ने कहा, अब सभी परमाणु उपकरणों की सुरक्षा की गारंटी है। यूक्रेन के विदेश मंत्री ने रूसी सेना से परमाणु संयंत्र पर हमला बंद करने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘अगर इसमें धमाका हुआ तो यह चेर्नोबिल परमाणु आपदा से 10 गुना ज्याद नुकसान पहुंचाएगा।’
अजोव सागर पर स्थित स्ट्रेटिजिक पोर्ट मारियुपोल में भीषण लड़ाई की खबरों के बीच रूसी सेना दक्षिणी यूक्रेन में लगातार आगे बढ़ रही है। रूसी सेना ने पोर्ट सिटी खेरसॉन पर कब्जा कर लिया है, जो इस जंग में रूस के कब्जे में आने वाला पहला शहर है। इस बीच, रूसी और यूक्रेनी अधिकारियों ने गुरुवार को अपनी बातचीत के दौरान सेफ कॉरिडोर बनाने पर सहमति व्यक्त की ताकि नागरिक युद्धग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित निकल सकें।
गुरुवार की रात यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने किले में तब्दील हो चुके अपने दफ्तर की इमारत में पत्रकारों से बात की। एक मिलिट्री टी-शर्ट पहने जेलेंस्की ने पत्रकारों से कहा कि कुछ समझौते हो सकते हैं, हालांकि उन्होंने कुछ साफ नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘कुछ ऐसे मुद्दे हैं जहां हमें एक समझौते तक पहुंचना होगा, ताकि लोगों की जान न जाए, लेकिन ऐसे भी मुद्दे हैं जहां कोई समझौता नहीं हो सकता। हम ये नहीं कह सकते कि ये देश अब आपका हुआ, और यूक्रेन रूस का हिस्सा है।’ पुतिन अपनी 2 मुख्य मांगों पर जोर दे रहे हैं: यूक्रेन अपनी सारी सेना हटाए और एक न्यूट्रल स्टेट बन जाए।
जेलेंस्की, जो अब यूक्रेनी प्रतिरोध का प्रतीक बन गए हैं, ने ‘नो-फ्लाई जोन’ घोषित करने की गुहार लगाई और कहा कि वह मौत से नहीं डरते। जेलेंस्की ने कहा कि उन्हें रात में मुश्किल से 3 घंटे की नींद आती है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि मेरी पुतिन से बात करने की ख्वाहिश है। मेरा पुतिन से बात करना जरूरी है। दुनिया को पुतिन से बात करने की जरूरत है। इस जंग को रोकने का और कोई तरीका नहीं है।’ एक डरावनी तस्वीर दिखाते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर इसे यूक्रेन में नहीं रोका गया तो रूस के हमले का दायरा बढ़ता ही जाएगा। यह एक दु:स्वप्न है। मैं ऐसे शख्स की कल्पना भी नहीं कर सकता जो ऐसे कृत्य करने के बारे में सोच भी सके।’
गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि किस तरह पोर्ट सिटी मारियुपोल पर रूसी सेना की मिसाइलें और रॉकेट बरस रहे हैं। रूस की आर्मी उत्तरी और पूर्वी यूक्रेन में जमीनी लड़ाई पर जोर दे रही है, जबकि उसकी वायुसेना बंदरगाहों पर हमले कर रही है। खेरसॉन पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद रूसी सेना अब ओडेसा पर कब्जा करने के लिए लड़ रही है। यूक्रेन की सारी सप्लाई लाइन को काटने के लिए रूसी सेना ने चेर्निहाइव और सूमी पर हमला किया। ये 2 मुख्य शहर ऐसे हैं जहां से सप्लाई लाइन गुजरती है। रूसी सेना को राजधानी कीव पर कब्जा करने के लिए इन 2 शहरों की घेराबंदी करनी ही होगी। यूक्रेन का सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र खारकीव रूसी सेना की भारी गोलाबारी और मिसाइल हमले से तबाह हो गया है। रूसी सेना ने शहर के मुख्य प्रशासनिक भवन पर कब्जा कर लिया है। राजधानी कीव में भी तबाही का मंजर है और अधिकांश इमारतें खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं।
रूसी सेना ने पूरे यूक्रेन में भारी तबाही मचाई है। रूस, उसके राष्ट्रपति और उसके अधिकारियों और कुलीन वर्गों के खिलाफ सबसे गंभीर आर्थिक प्रतिबंध भी अब तक पुतिन को झुकाने में नाकाम रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ 90 मिनट की टेलीफोन पर हुई बातचीत में पुतिन ने साफ तौर पर कहा, रूस इस जंग को तभी रोकेगा जब उसके मिलिटरी ऑपरेशन का मकसद पूरा हो जाएगा। पुतिन ने यह भी कहा कि अगर यूक्रेन ने रूस की मांगों को मानने से इनकार कर दिया तो वह इस जंग को रोकने के लिए और कड़ी शर्तें लगाएंगे। पुतिन ने मैक्रों से कहा, ‘हमारा मकसद यूक्रेन पर कब्जा करने का नहीं, बल्कि इसकी पूरी सेना हटाने और इसे एक तटस्थ देश बनाने का है।’
स्वाभाविक रूप से पुतिन को डर है कि अगर रूस यूक्रेन युद्ध में अपने मकसद को पूरा करने में नाकाम रहता है, तो उसके पड़ोसी अन्य पूर्व सोवियत राष्ट्र उनके देश के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं। पुतिन कभी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाए कि उनका पड़ोसी यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों की तरह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के रूप में विकसित हो चुका है। वह किसी भी कीमत पर यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होने देना चाहते थे। वह चाहते हैं कि यूक्रेन रूस के अंगूठे के नीचे रहे, और कीव में कठपुतली सरकार बने। युद्ध के मोर्चे पर हालिया घटनाओं को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि पुतिन इस विनाशकारी युद्ध को तब तक जारी रखेंगे, जब तक कि यूक्रेन की सरकार उनकी मांगों को मान नहीं लेती।
पुतिन ने जिस तरह से यूक्रेन की बर्बादी की स्क्रिप्ट लिखी, जिस तरह से अमेरिका और यूरोप के देशों की चेतावनी को नजरअंदाज किया, उसका असर ये हुआ है कि जंग शुरु होने के 9 दिन के अंदर ही पूरी दुनिया रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है। बड़े राष्ट्रों के अधिकांश नेता अब व्लादिमीर पुतिन के कट्टर विरोधी बन गए हैं, और रूस अलग-थलग दिखाई देता है। वह अब संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में रूस की गिनती उत्तर कोरिया और सीरिया जैसे ‘विफल राज्यों’ की श्रेणी में हो रही है।
पुतिन को उम्मीद थी कि संयुक्त राष्ट्र में चीन उनका समर्थन करेगा, लेकिन चीन ने रूस का समर्थन करने की बजाय मतदान से दूर रहने का विकल्प चुना। रूसी आक्रमण का एक और असर यह हुआ है कि आपस में बंटे हुए सभी यूरोपीय देश अब रूस को जंग जारी रखने से रोकने के लिए एकजुट हो गए हैं। ये सारी बातें आने वाले दिनों में राष्ट्रपति पुतिन के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं।
War is no solution : Putin should talk to Zelenskyy
The Russian defence ministry on Friday announced that its army, after a long halt outside the Ukrainian capital Kiev, has entered the city in a bid to dislodge the Zelenskyy government. There were reports of fires raging in several buildings in the capital. Civilians have been asked to move to safer places. The 64-km long convoy of Russian tanks and armoured vehicles has been deployed outside Kiev, where regular air raid sirens are being sounded.
As Russians rained missiles and shells on key Ukrainian cities on the 9th day of war, Russian forces have seized Europe’s largest nuclear power plant in Zaporizhzhia. There was an early morning scare, when fire broke out at the nuclear power plant, due to Russian shelling, but it was immediately brought under control. Only a training building and a lab were affected. The director of the nuclear power plant said, the safety of all nuclear equipment is now guaranteed. The Ukrainian foreign minister appealed to Russian forces to stop attacking the nuclear plant. “If it blows up, it will cause damage 10 times larger than the Chernobyl nuclear disaster”, he said.
Russian forces are gaining ground in southern Ukraine, with reports of heavy fighting in Mariupol, the strategic port sea on Azov Sea. The Russian army has occupied the port city of Kherson, the first major city to fall in the current war. Meanwhile, Russian and Ukrainian authorities during their talks on Thursday agreed on creating safe corridors for civilians to allow them to leave combat zones.
On Thursday night, embattled Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy, looking unshaven and wearing a military T-shirt, spoke to journalists in his office building in Kiev fortified by sandbags. Zelenskyy said there could be some compromises, but he did not clarify. He said, “there are issues where we need to find a compromise, so that people do not die, but there are issues where there cannot be any compromise, we cannot just say, here, it your country now, Ukraine is part of Russia.” Putin is insisting on his two main demands: complete demilitarization and neutral status for Ukraine.
Zelenskyy, who has now become a symbol of Ukrainian resistance, pleaded for a no-fly zone and said he was not afraid of death. Zelenskyy said, he hardly gets three hours of sleep at night, and said, “It’s not that I want to talk to Putin. I need to talk to Putin. The world needs to talk to Putin. There is no other way to stop this war.” In an ominous message, he said, the “Russian aggression will only spread, if it is not stopped in Ukraine. …This is a nightmare. I cannot even imagine the type of man who could plan such acts.”
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed visuals of Russian forces bombarding the port city of Mariupol with missiles and rockets. While the Russian ground forces are concentrating on war in northern and eastern Ukraine, its forces are carrying out attacks on the port cities. With Kherson under control, the Russian forces are now out to occupy Odessa. In order to cut all Ukrainian supply lines, Russian forces have attacked Chernihiv and Sumy, the two key cities through which the supply lines pass. The siege of these two cities is vital to allow Russian army to occupy capital Kiev. The biggest industrial hub of Ukraine, in Kharkiv, now stands devastated after Russian forces occupied the main administrative building following heavy shelling and missile attacks. The capital Kiev is now literally desolate, with most of the buildings in ruins.
The Russian forces have caused widespread devastation across Ukraine. The most severe economic sanctions against Russia, its president and its officials and oligarchs, have failed to bend Putin till now. In a 90-minute telephonic talk with French President Emmanuel Macron, Putin clearly said, we will stop our military operation, only after we achieve our objectives. Putin also said, if Ukraine refuses to accept Russian demands, his government would add fresh demands to its list. “Our objective is not to occupy Ukraine, but to demilitarize it and make it a neutral state”, Putin reportedly told Macron.
Naturally, Putin fears that if Russia fails in its objectives in Ukraine war, other neighbouring ex-Soviet nations may cause problems for his country. Putin could never digest the fact that Ukraine developed into an independent and democratic country, on the lines of other western European nations. He was not willing to accept inclusion of Ukraine in NATO at any cost. He wants Ukraine to remain under Russian control, with a puppet government installed in Kiev. Judging by the latest developments on the war front, it appears that Putin will continue with this devastating war, till the time the Ukrainian government accepts his demands.
The manner in which Putin wrote the script of devastation for Ukraine, ignoring American and European threats, has now brought a situation where most of the world has started condemning the Russian invasion, within nine days of war. Most of the leaders of big nations have now become staunch opponents of Vladimir Putin, and Russia appears isolated, and now stands in the ranks of ‘failed states’ like North Korea and Syria, in the United Nations general assembly and security council.
Putin had expected Chinese support in the United Nations, but the Chinese chose to abstain rather than support Russia. One more outcome of the Russian invasion has been that all the European nations now stand united with an aim to stop Russia from continuing with the war. All these outcomes could prove to be critical for President Putin in the coming days.