डॉक्टर के खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने वाले पुलिसवालों पर चले मुकदमा
राजस्थान के दौसा में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या ने न केवल मेडिकल बिरादरी को, बल्कि इंसानियत में भरोसा करने वाले सभी लोगों को झकझोर कर रख दिया है। डॉक्टर अर्चना शर्मा ने जो इमोशनल सुसाइड नोट छोड़ा है, वह किसी को भी रुला सकता है।
बुधवार को मैंने कई वरिष्ठ डॉक्टरों से बात की। उन्होंने न केवल दुख व्यक्त किया, बल्कि इस बात पर नाराजगी भी जताई कि कैसे एक डॉक्टर को एक गर्भवती मरीज आशा बैरवा की प्रसव के दौरान हुई मौत के बाद इतना डराया-धमकाया गया कि उसने घबराकर फांसी लगा ली।
आशा बैरवा नाम की गर्भवती महिला को गंभीर हालत में दौसा के लालसोट में स्थित आनंद अस्पताल में लाया गया। मरीज की हालत इतनी खराब थी कि दो अस्पताल पहले ही हाथ खड़े कर चुके थे। डॉक्टर अर्चना शर्मा ने मरीज के परिजनों की गुजारिश पर आशा को ऐडमिट कर लिया। बड़ी जद्दोजहद के बाद डॉक्टर अर्चना शर्मा ने नवजात बच्चे की सकुशल डिलीवरी तो करवा ली, लेकिन कुछ देर के बाद आशा को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगी। यह डिलीवरी के बाद होने वाली ब्लीडिंग (postpartum haemorrhage) का मामला था। इससे पहले भी डॉक्टर अर्चना ने आशा की डिलीवरी कराई थी और सिजेरियन से उसके जुड़वां बच्चे पैदा हुए थे। इस बार भी बच्चा तो बच गया लेकिन ज्यादा ब्लीडिंग के चलते आशा ने दम तोड़ दिया।
मरीज का मजदूर पति लालूराम बैरवा और उसके रिश्तेदार पहले शव को अपने गांव ले गए, लेकिन स्थानीय नेताओं के दबाव में वे शव लेकर वापस आए और डॉक्टर की गिरफ्तारी की मांग करते हुए अस्पताल के बाहर हंगामा करने लगे। डॉ. अर्चना शर्मा ने अपने बचाव में पुलिस को इलाज के पूरे तौर तरीके के बारे में समझाया और उन्हें मेडिकल फाइल भी दिखाई। लेकिन हंगामा बढ़ने पर पुलिस ने पति की शिकायत के आधार पर डॉक्टर दंपति के खिलाफ धारा 302 (हत्या) के तहत FIR दर्ज कर ली। बाद में, लालूराम बैरवा ने कहा कि किसी ने उसे एक लिखित शिकायत दी थी, जिस पर उसने गुस्से में बिना पढ़े दस्तखत कर दिया था।
डॉ अर्चना शर्मा एक गोल्ड मेडलिस्ट और जानी-मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं। वह दो बच्चों की मां थी, लेकिन अपने खिलाफ हत्या के आरोप में FIR दर्ज होने के बाद, वह नाउम्मीद हो चुकी थीं।
डॉ. अर्चना शर्मा ने जो सुसाइड नोट छोड़ा है, वह उस मानसिक उथल-पुथल के बारे में बताता है जिससे उन्हें दो चार होना पड़ा था। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा, ‘मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूं। कृपया मेरे मरने के बाद इन्हें परेशान न करना। मैंने कोई गलती नहीं की, मैंने किसी को नहीं मारा। PPH एक बड़ा कॉम्प्लिकेशन है। इसके लिए डॉक्टरों को प्रताड़ित करना बंद करो। मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे। कृपया बेगुनाह डॉक्टरों को परेशान न करें। सुनीत, मैं तुमसे प्यार करती हूं, मेरे बच्चों को उनकी माँ की कमी महसूस नहीं होने देना।’
डॉ. अर्चना शर्मा और उनके पति डॉ. सुनीत उपाध्याय आनंद अस्पताल चलाते थे। इंडिया टीवी से बात करते हुए डॉ. सुनीत उपाध्याय ने पूछा कि पुलिस किसी डॉक्टर के खिलाफ हत्या की FIR कैसे दर्ज कर सकती है। उन्होंने कहा, एक डॉक्टर पर चिकित्सा में लापरवाही का आरोप तो लगाया जा सकता है, लेकिन हत्या का नहीं। डॉ. सुनीत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस बारे में फैसला दे चुका है कि अगर किसी मरीज की इलाज के दौरान मौत हो जाती है तो किसी डॉक्टर पर हत्या का आरोप नहीं लगाया जा सकता ।
डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के बाद, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के परचम तले पूरे राजस्थान में डॉक्टर सड़कों पर उतरे, और डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर 24 घंटे के बंद का आह्वान किया। फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे पत्र में उन परिस्थितियों की पूरी जांच कराने की मांग की, जिनके कारण FIR दर्ज की गई और एक डॉक्टर को खुदकुशी के लिए मजबूर होना पड़ा।
बुधवार को AIIMS समेत भारत के तमाम बड़े अस्पतालों के डॉक्टरों ने अपने हाथों पर काली पट्टी बांधकर काम किया। डॉक्टरों ने कहा, डॉ. अर्चना शर्मा के साथ जो कुछ भी हुआ वह पूरी व्यवस्था के मुंह पर कालिख है। उन्होंने कहा, अगर हजारों लोगों की जान बचाने वाला डॉक्टर किसी मरीज को न बचा पाए तो उसे हत्यारा घोषित कर देना कहां का इंसाफ है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट किया, ‘दौसा में डॉ. अर्चना शर्मा की आत्महत्या की घटना बेहद दुखद है। हम सभी डॉक्टरों को भगवान का दर्जा देते हैं। हर डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए अपना पूरा प्रयास करता है, लेकिन कोई भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होते ही डॉक्टर पर आरोप लगाना न्यायोचित नहीं है। अगर इस तरह डॉक्टरों को डराया जाएगा तो वे निश्चिन्त होकर अपना काम कैसे कर पाएंगे? इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है एवं दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।’
मुख्यमंत्री ने डिविजनल कमिश्नर दिनेश कुमार यादव को प्रशासनिक जांच करने और आत्महत्या के लिए उकसाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया। दौसा के एसपी अनिल कुमार का ट्रांसफर कर दिया गया है और लालसोट थाने के SHO अंकेश कुमार को सस्पेंड कर दिया गया है। गहलोत ने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आवश्यक सुझाव देने हेतु अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) की अध्यक्षता में वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति का गठन किया है। भारतीय जनता पार्टी के एक स्थानीय नेता जितेंद्र गोठवाल और एक अन्य व्यक्ति राम मनोहर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
डॉ अर्चना शर्मा की मौत खुदकुशी का मामला हो सकती है, लेकिन मैं इसे एक डॉक्टर की जानबूझकर की गई हत्या कहना चाहूंगा। यह भारत के हर काबिल डॉक्टर के दिल और दिमाग पर की गई भारी चोट है। 2 साल पहले, कोविड संकट के दौरान, मोदी सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसने डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों, उनकी संपत्ति और उनके कार्यस्थलों पर हमले को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बना दिया था। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करने पर 3 महीने से लेकर 5 साल तक की कैद और 50,000 रुपये से 2 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया। अगर हमलावर कोई गंभीर चोट पहुंचाते हैं, तो उन्हें 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि इलाज के दौरान अगर कोई अनहोनी होती है तो डॉक्टर को सीधे हत्यारा घोषित नहीं किया जा सकता। यह ठीक है लेकिन अगर इलाज के दौरान किसी मरीज की मौत हो जाती है तो हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? डॉक्टर मरीजों का इलाज करेंगे या कोर्ट में केस लड़ेंगे? क्या हम डॉक्टर अर्चना से ये उम्मीद करते कि बिना कसूर के पहले पुलिस उन्हें जेल में डाल दे, और फिर उनके डॉक्टर पति उनकी जमानत करवाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते। और क्या इसके बाद जब जमानत मिल जाए तो फिर बरसों तक अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए कोर्ट में केस लड़ते रहें?
डॉ. अर्चना शर्मा ने कोई गुनाह नहीं किया था, लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो उन्हें गुनहगार साबित करने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें हत्यारा कहा जा रहा था। उनका परेशान होना, उनके अच्छा इंसान होने, उनके बेगुनाह होने का सबूत है। सबसे ज्यादा दुख की बात ये है कि उन्हें अपनी जान देकर अपनी बेगुनाही का सबूत देना पड़ा। डॉ. अर्चना की मौत पूरे सिस्टम के लिए, पूरे समाज के लिए, पूरे देश के लिए कलंक है। उनके परिवार को इंसाफ मिलना ही चाहिए। उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने वाले पुलिसवालों पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा चलना चाहिए।
Murder FIR against Doctor: Policemen must face abetment to suicide charge
The unfortunate suicide of a lady gynaecologist Dr Archana Sharma in Dausa, Rajasthan, has not only shocked the medical fraternity but also all right-thinking people who believe in humanistic approach. The emotional suicide note that Dr Archana Sharma left behind can move anybody to tears.
On Wednesday, I spoke to several senior doctors. They not only expressed sadness but also anger over how a doctor had to go to the extreme and hang herself after she faced threats and intimidation following the death of a pregnant patient, Asha Bairwa, during childbirth.
Let me explain the case in details. The pregnant woman Asha Bairwa was brought to Anand hospital, Lalsot, Dausa, in a critical condition after two other hospitals declined to treat her. Dr Archana Sharma tried her best to ensure that Asha could give birth to the child, and she did, but in the process, she started bleeding excessively. It was a case of postpartum haemorrhage. Dr Archana Sharma had earlier arranged the birth of twins for Asha through Caesarean section. This time, the newborn survived but Asha succumbed due to excessive bleeding.
The patient’s husband Laluram Bairwa, a labourer, and her relatives first took the body to their village, but under pressure from local political leaders, they came back with the body and staged a demonstration outside the hospital, demanding the doctor’s arrest. In her defence, Dr Archana Sharma explained to police officers about the line of treatment, and showed them the medical file. But as the protest intensified, police, on the basis of the husband’s complaint, registered an FIR against the doctor couple under Section 302 (murder). Later, Laluram Bairwa said that somebody had given him a written complaint, which he had signed in a fit of anger, without reading it.
Dr Archana Sharma was a gold medallist and a gynaecologist of repute. She was a mother of two, but after the FIR with murder charge was filed against her, she lost all hopes.
The suicide note that she left behind speaks volumes about the mental turmoil that a doctor had to go through. In her suicide note, she wrote: “I love my husband and children very much. Please do not harass my husband and children after my death. I did not commit any mistake and did not kill anyone. My death will prove my innocence. PPH (postpartum haemorrhage) is a severe complication. DON’T HARASS INNOCENT DOCTORS, please. Suneet, I love you, don’t let my kids feel the absence of their mother”.
Dr Archana Sharma and her husband Dr Suneet Upadhyay, were running Anand hospital. Speaking to India TV, Dr Suneet Upadhyay questioned how police could fire a murder FIR against any doctor. He said, a doctor can be charged of medical negligence, but not murder. He said, the Supreme Court had already given a ruling that no doctors can be charged of murder if a patient dies during treatment.
After Dr Archana Sharma committed suicide, doctors across Rajasthan under the aegis of Indian Medical Association, went to the streets, and gave a 24-hour bandh call demanding arrest of those guilty for Dr Archana Sharma’s suicide. The Federation of Resident Doctors Associations (FORDA) in a letter to Rajasthan chief minister Ashok Gehlot demanded a full probe into the circumstances that led to the filing of FIR and the doctor’s suicide.
On Wednesday, doctors in AIIMS and all other major hospitals in India worked wearing black band on their arms. Doctors said, whatever happened to Dr Archana Sharma is a black blot on the face of society. They said, doctors save the lives of thousands of people daily, but they cannot be charged of murder if a patient dies during treatment.
Chief Minister Ashok Gehlot tweeted: “The incident of Dr Archana Sharma’s suicide in Dausa is very sad. We give the status of God to all doctors. Every doctors tries his best to save the life of patients. It is not justified to accuse the doctor when any unfortunate incident occurs. If doctors will be intimidated like this, then how will they be able to work with confidence? The entire matter is being investigated seriously and those guilty will not be spared.”
The chief minister directed the divisional commissioner Dinesh Kumar Yadav to carry out an administrative inquiry and take action against those abetted the suicide. The SP of Dausa Anil Kumar has been transferred and the SHO of Lalsot police station Ankesh Kumar has been suspended. Gehlot has set up a committee of senior officials headed by Additional Chief Secretary (Home) to give necessary suggestions on preventing recurrence of such incidents. A local BJP leader Jitendra Gothwal and another person Ram Manohar have been arrested on charge of abetment of suicide.
The death of Dr Archana Sharma could be a case of suicide, but I would like to term it as a deliberate murder of a doctor. This is a big blow to the hearts and minds of every capable doctor in India. Two years ago, during Covid crisis, the Modi government had enacted a law which made attacks on doctors and healthcare personnel, their property and their working premises, as cognizable and non-bailable offences. Any act of violence against doctors and healthcare personnel shall be punished with imprisonment from three months to five years, and a fine from Rs 50,000 to Rs 2 lakh. If the attackers cause grievous hurt, they can be jailed from six months to seven years with fine ranging from Rs 1 lakh to Rs 5 lakh.
The Supreme Court has clearly said that a doctor cannot be declared a murderer. It is alright but if a patient dies during treatment, what should we expect? Should a doctor continue treating patients or go to courts to fight cases? In Dr Archana’s case, if the police had arrested her on murder charge, should we expect her husband to go to courts seeking bail for her, and after getting bail, fight the cases for several years in court, to prove her innocence?
Dr Archana Sharma did not commit any crime, yet there were people who were trying to prove that she was guilty. She was being labelled as a murderer. Her mental agony shows that she was innocent and a good human being at heart, who tried her best to save her patient. The saddest part is that she had to take her own life to prove her innocence. The death of Dr Archana Sharma is a blot on the face of our society and our system of governance. Her family must get justice. Those policemen who filed murder charge FIR against her must be charged for abetment to suicide.
कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर गैर-बीजेपी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश शुरू कर दी है। उन्होंने सभी गैर-एनडीए मुख्यमंत्रियों और सीनियर विपक्षी नेताओं को चिट्ठी लिखी है। अपनी चिट्ठी में ममता बनर्जी ने सभी विपक्षी दलों को एक बैठक बुलाने का सुझाव दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ‘विपक्षी नेताओं को दबाने के इरादे से केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है’। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ‘न्यायपालिका के एक खास वर्ग को प्रभावित करने की कोशिश की गई है।’
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी इन दिनों मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के चलते प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। ममता ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि वह ‘बीजेपी की बदले की राजनीति को बर्दाश्त नहीं कर सकती जिसमें चुन-चुनकर लोगों को शिकार बनाया जा रहा है।’ उन्होंने कांग्रेस समेत सभी ‘प्रगतिशील ताकतों’ से यह अपील की है कि वे एकजुट होकर ‘बीजेपी के दमनकारी शासन’ के खिलाफ लड़ाई में शामिल हों।
ममता बनर्जी ने लिखा, ‘चुनाव आने पर ही केंद्रीय एजेंसियां हरकत में आ जाती हैं। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि बीजेपी शासित राज्यों को उनके खोखले शासन की एक गुलाबी तस्वीर दिखाने के लिए इन एजेंसियों से मुफ्त में एक पास मिल जाता है… ईडी, सीबीआई, सीवीसी और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल प्रतिशोध के तहत देश भर में राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने और उन्हें घेरने के लिए किया जा रहा है। यह कुछ और नहीं बल्कि देश के संस्थागत लोकतंत्र के ताने-बाने पर सीधा हमला है।’
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसे ममता बनर्जी की चाल बताया। उन्होंने कहा बताया कि ममता बीरभूम नरसंहार की चल रही सीबीआई जांच से ध्यान बंटाने की कोशिश कर रही हैं । बीरभूम में 9 लोगों की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई थी। संबित ने कहा, ‘पार्टी की अंदरूनी लड़ाई में 9 लोगों की मौत से पश्चिम बंगाल में व्याप्त अराजकता एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है और ममता बनर्जी अपनी पार्टी के नेताओं द्वारा अपराधियों को खुले तौर पर दिए जा रहे संरक्षण से ध्यान बंटाने की कोशिश कर रही हैं।’
ममता बनर्जी ने भी अपनी ओर से सोमवार को आरोप लगाया कि बीरभूम हत्याकांड के पीछे एक साजिश है, इसकी जांच सीबीआई को सौंपना एक अच्छा फैसला था, लेकिन अगर सीबीआई बीजेपी के आदेश का पालन करती है तो फिर इसके विरोध में सड़कों पर उतरेंगे। इन हत्याओं को लेकर ममता बनर्जी ने कहा, ‘एक तृणमूल कार्यकर्ता की हत्या दूसरे तृणमूल कार्यकर्ता द्वारा कर दी गई लेकिन हर जगह केवल तृणमूल कांग्रेस की आलोचना की जा रही है।’
ममता की कही बातें उनकी अपनी पार्टी के नेताओं की बातों से ही मेल नहीं खाते। मंगलवार को सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायल हुआ जिसमें पंडावेश्वर विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के विधायक नरेंद्र नाथ चक्रवर्ती बीजेपी समर्थकों से ‘अपने रिस्क पर मतदान करने’ की बात कह रहे हैं। दरअसल आसनसोल लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है और12 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इस वीडियो में नरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती बीजेपी वोटर्स से कह रहे थे कि पोलिंग बूथ पर गए तो दिक्कत होगी। वीडियो में चक्रवर्ती को यह कहते हुए सुना गया, ‘हमें चुनाव जीतने के लिए हर वोट से 40 और वोट चाहिए। लोगों को वोट करने दीजिए, लेकिन आप वोट देने जाओगे तो हम समझ लेंगे कि आप बीजेपी को वोट दोगे। वोट के बाद आप कहां रहोगे ये आपका रिस्क है। और अगर वोट देने नहीं जाओगे तो हम समझ लेंगे कि आप हमारा समर्थन कर रहे हो। आप चैन से अपने घर में रहो।’
यह आरोप नहीं है। कैमरे पर धमकी देने के लिए विधायक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। अब आप सोच रहे होंगे विधायक धमकी क्यों दे रहे हैं जबकि बंगाल में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं और टीएमसी ने अपनी सत्ता बरकरार रखी है? दरअसल, आसनसोल में उपचुनाव के लिए 12 अप्रैल को वोटिंग होगी। ममता बनर्जी ने आसनसोल से शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट से बाबुल सुप्रियो बीजपी के टिकट पर लगातार दो चुनाव जीते थे। अब बाबुल सुप्रियो बीजेपी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और बालीगंज से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े रहे हैं।
बाबुल सुप्रियो दो बार, 2014 और 2019 में आसनसोल लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने 1 लाख 90 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। आसनसोल में बीजेपी का अच्छा जनाधार है और इसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है। लेकिन अब ममता इसे किसी भी कीमत पर जीतना चाहती हैं, इसलिए उनकी पार्टी के नेता हर तरह के दांव अपना रहे हैं। मतदाताओं को धमकी देने के आरोपों को लेकर मंगलवार को बंगाल बीजेपी सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल शिकायत दर्ज कराने चुनाव आयोग पहुंचा। प्रतिनिधिमंडल चाहता था कि चुनाव आयोग टीएमसी विधायक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।
अब मैं आपको नरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती का बैकग्राउंड भी बता देता हूं। नरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती के खिलाफ गंभीर आरोपों में कई केस दर्ज हैं। 2016 में नरेंद्र नाथ चक्रवर्ती को कोलकाता के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बिना लाइसेंस की लोडेड गन के साथ पकड़ा गया था। पुलिस ने उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार किया था। नरेन्द्र नाथ चक्रवर्ती का अपने इलाके में खौफ है और लोग उनके नाम से डरते हैं।
मंगलवार को बीजेपी सांसद रूपा गांगुली ने एक चौंकाने वाली बात बताई । रूपा गांगुली ने कहा कि बंगाल में ममता ठप्पा कल्चर चला रही हैं। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के नेता अपनी पार्टी के कैडर का वोट भी खुद ही डालते हैं। अपनी ही पार्टी के लोगों को पोलिंग बूथ पर जाने से रोकते हैं क्योंकि उन्हें उनपर भी यकीन नहीं है।
इस बीच पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने चिट्ठी लिखकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राजभवन बुलाया है। बंगाल में बढ़ती हिंसा और बिगड़ती कानून व्यवस्था पर राज्यपाल मुख्यमंत्री से बात करना चाहते हैं। धनकड़ ने इस चिट्ठी में ममता बनर्जी के उस बयान पर चिंता जताई, जिसमें उन्होंने बीरभूम की घटना की सीबीआई जांच के विरोध में सड़क पर उतरने की बात कही थी। धनकड़ ने कहा कि सीबीआई जांच के आदेश हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए और हाईकोर्ट की निगरानी में ही जांच जारी है इसके बावजूद इसका विरोध किया जा रहा है। धनकड़ ने लिखा है कि बंगाल की कानून व्यवस्था कमजोर है और इस तरह के बयान माहौल को और खऱाब करते हैं।
ममता की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती हैं। मंगलवार को ममता के लिए एक और बुरी खबर आई। ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी पर ईडी का शिकंजा और कस गया है। ईडी ने खनन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अभिषेक बनर्जी को पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन वह ईडी के सामने पेश नहीं हुए। अब ईडी ने यह संकेत दिया कि सम्मन के बावजूद पेश नहीं होने पर वह अभिषेक बनर्जी के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। मनी लॉन्ड्रिंग केस में अभिषेक और उनकी पत्नी रुजीरा सह-आरोपी हैं इसलिए दोनों को पूछताछ के लिए पेश होना पड़ता है। दोनों ने दिल्ली हाईकोर्ट से यह अनुरोध किया था कि वह ईडी को यह निर्देश दे कि उनसे दिल्ली के बजाय कोलकाता के दफ्तर में पूछताछ की जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने 11 मार्च को दोनों की याचिका खारिज कर दी। अब दोनों ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
अभिषेक बनर्जी से ईडी के अफसरों ने 21 मार्च को करीब 8 घंटे तक पूछताछ की थी और अब तीसरे दौर की पूछताछ के लिए सम्मन जारी किया है। दो दौर की पूछताछ में अभिषेक की पत्नी रुजिरा ईडी के सामने पेश नहीं हुई थीं। रिपोर्ट के मुताबिक जांच में सहयोग नहीं करने के आरोप में ईडी इन दोनों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा है।
करीब 1300 करोड़ रुपये के कोयला खनन घोटाले में सीबीआई ने टीएमसी नेता विनय मिश्रा को भी आरोपी बनाया है। इस घोटाले का सरगना विनय मिश्रा इन दिनों फरार चल रहा है। विनय के खिलाफ आसनसोल की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 17 मार्च को गैर-जमानती वारंट जारी किया है। ऐसी खबरें हैं कि वह दक्षिण प्रशांत द्वीप वनातु में छिपा हुआ है। दिसंबर 2021 में विनय मिश्रा ने दुबई के दूतावास में यह कहते हुए अपना भारतीय पार्सपोर्ट सरेंडर कर दिया था कि उसे वनातु की नागरिकता मिल गई है। सीबीआई ने विनय मिश्रा के प्रत्यर्पण के लिए इंटरपोल के जरिए कार्रवाई शुरू की है।
सीबीआई सूत्रों का कहना है कि इस कोयला खनन घोटाले के बेहिसाब पैसे का एक बड़ा हिस्सा बंगाल के कुछ ताकतवार नेताओं तक पहुंचा है। विनय मिश्रा अभिषेक बनर्जी का करीबी है जबकि विनय मिश्रा के भाई विकास मिश्रा को गिरफ्तार किया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक अभिषेक बनर्जी को डर है कि इस केस में उनकी भी गिरफ्तारी हो सकती है इसीलिए वह ईडी के सामने पेश होने से बच रहे हैं।
ममता मुसीबतों से घिर चुकी हैं और इसलिए अब उन्होंने सभी गैर-एनडीए मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ विपक्षी नेताओं को चिट्ठी भेजी है। उन्होंने बीजेपी के खिलाफ सभी विरोधी दलों से एकजुट होने की अपील की है। केवल शरद पवार ने उनकी अपील का समर्थन किया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी ममता के प्रस्तावित विपक्षी खेमे में शामिल होने के लिए अपना झुकाव दिखाया है। जबकि अन्य दलों की ओर से अभी कोई रिएक्शन नहीं आया है।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार को कहा, ‘ममता बनर्जी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। उनकी बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह कभी कांग्रेस को खत्म करने की बात कहती हैं तो कभी कांग्रेस से समर्थन मांगती हैं, इसलिए ममता से दूरी ही भली।’ कांग्रेस के एक अन्य नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा, ‘जब चुनाव आते हैं तो ममता मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ने की बात भूल जाती हैं और जब ममता मुसीबत में होती हैं तो उन्हें विपक्ष की एकता याद आती है।’
कुल मिलाकर कहें तो पश्चिम बंगाल में भारी बहुमत से चुनाव जीतने के बावजूद ममता बनर्जी की दिक्कतें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। एक तरफ सीबीआई है जो बीरभूम की जांच कर रही है तो दूसरी तरफ ईडी है जो ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी की जांच कर रही है। वहीं तीसरी ओर प्रो एक्टिव गवर्नर जगदीप धनकड़ हैं जो हर वक्त ममता बनर्जी पर लगाम लगाने की कोशिश में लगे रहते हैं। बची-खुची कसर ममता की पार्टी के नेता अपनी बयानबाजी से पूरी कर देते हैं। कोई मारकाट और खून-खराबे को जायज ठहराता है तो कोई बीजेपी को वोट देने वालों को सरेआम धमकी देता है।
ममता बनर्जी इन सब चीजों को संभाल सकती हैं लेकिन इनका एक बड़ा नुकसान उनके नेशनल कैंपेन को हुआ है। बंगाल में बीजेपी को हराने के बाद ममता बनर्जी ऐसे लीडर के तौर पर उभरी थीं जो मोदी के खिलाफ सारे विरोधी दलों को लीड कर सकती हैं लेकिन अब लगता है कि पहले उन्हें बंगाल संभालना होगा। वहीं, पंजाब में जीत के बाद अब केजरीवाल को लगता है कि मोदी का नेशनल चैंलेंजर तो उन्हें होना चाहिए क्योंकि उनके पास दो-दो स्टेट है। वहीं एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने मंगलवार को यह पुष्टि की कि उन्हें ममता की चिट्ठी मिली है। उन्होंने कहा, ‘हम इस मुद्दे से जुड़े हैं। हमें बैठक के लिए जगह और तारीख तय करनी है। यह बैठक दिल्ली या मुंबई में हो सकती है।’ वहीं ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के सुप्रीमो नवीन पटनायक ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई चिट्ठी नहीं मिली है।
The challenges that Mamata Banerjee is now facing
West Bengal chief minister Mamata Banerjee has renewed her pitch for a joint platform of all non-BJP opposition parties by writing letters to all non-NDA chief ministers and senior opposition leaders. In her letter, she has suggested a conclave of all opposition leaders to stop what she alleged as “misuse of Central agencies with the sole intention of suppressing opposition leaders”. She has also alleged that there have been attempts “to influence a certain section of judiciary”.
In her letter, the Trinamool Congress supremo, whose nephew Abhishek Banerjee is facing Enforcement Directorate’s action on money laundering charges, wrote that she cannot “tolerate the vindictive politics of BJP that has led to a witch-hunt”. She appealed to all “progressive forces” including Congress to join in the united fight against what she called “oppressive BJP regime”.
Mamata Banerjee wrote, “Central agencies are jolted to action just when elections are round the corner. It is amply clear that BJP-ruled states get a free pass from these agencies to paint a rosy picture of their hollow governance.. Central agencies like ED,CBI, Central Vigilance Commission and Income Tax department are being used to target, harass and corner political opponents across the country for vendetta. ..This is nothing but direct attack on the country’s institutional democracy.”
BJP spokesman Sambit Patra described this as Mamata Banerjee’s ploy to divert attention from the ongoing CBI probe into the horrific carnage in Birbhum where nine people were charred to death. He said, “the death of nine people in an intra-party fight has brought out lawlessness that is now rampant in West Bengal and Mamata Banerjee is seeking to deflect attention from open patronage that is being given to criminals by her party leaders”.
On her part, Mamata Banerjee alleged on Monday that “there is a conspiracy behind the Birbhum killings, it was a good decision to hand over the probe to CBI, but if CBI follows the diktat of BJP, then we will come out on the streets to protest”. About the killings, Mamata Banerjee said, “A Trinamool worker was killed by another Trinamool worker, but only Trinamool Congress is being criticized everywhere.”
Mamata’s words do not match what her own party leaders are saying. On Tuesday, a video went viral on social media in which her party MLA from Pandabeshwar, Narendra Nath Chakraborty, asked BJP supporters “to vote at their own risk” in the April 12 Asansol Lok Sabha byelection. In the video, Chakraborty is heard saying, “We need 40 more votes from each vote to win the election. Let people vote, but tell the BJP supporters, if they vote, we will take them as having voted for BJP. Tell them they will be at their own risk after the election, but if they stay at home, do their business and go to work at their jobs, they can live in peace”, the TMC MLA said.
This is not an allegation. The MLA called a press conference to give this threat, in front of cameras. You might wonder why the MLA is giving threats, now that assembly elections in Bengal are over and TMC has retained power? Voters of Asansol are due to go to polls on April 12 for the byelection, because the Asansol LS seat has been vacated by Babul Supriyo after he resigned from BJP to join TMC. Supriyo is now contesting for assembly from Kolkata’s Ballygunge seat on TMC ticket, while Mamata Banerjee has made film star Shatrughan Sinha her party candidate from Asansol.
Babul Supriyo had won the Asansol LS seat twice, once in 2014 and then in 2019. Last time, he had won by a huge margin of 1,90,000 votes on BJP ticket by defeating the TMC rival. Asansol is considered a BJP stronghold where the party has a strong base of supporters. This time, Mamata Banerjee wants to win this seat by all means, and hence, this open threat from her party MLA. On Tuesday, a delegation of BJP MPs from Bengal went to Election Commission to lodge complaint against TMC for giving threats to voters. The delegation wanted the EC to take strong action against the TMC MLA.
Let me explain the background about this TMC MLA. Narendra Nath Chakraborty was caught in 2016 at Kolkata International Airport while carrying an unlicensed loaded gun. He was arrested under Arms Act. Chakraborty is considered a strongman in his area, and people fear him.
On Tuesday, BJP MP Rupa Ganguly disclosed that Mamata Banerjee does not even trust her own party workers, and her leaders have started ‘thappa’ culture during elections, in which leaders cast votes on behalf of their supporters, because they do not trust them.
Meanwhile, West Bengal Governor Jagdeep Dhankar, in a letter to Mamata Banerjee, has summoned her for a meeting in Raj Bhavan to discuss the Birbhum killings and other incidents of violence. He pointed out that the Birbhum probe was being done by CBI on the directives of Calcutta High Court, and it was not proper for a chief minister to threaten street protests against the probe.
Mamata’s agony does not end here. Enforcement Directorate on Tuesday indicated that it could take action against Mamata’s nephew Abhishek Banerjee in the money laundering case, for not appearing despite summons. Abhishek and his wife Rujira are co-accused in the money laundering case, as some transactions have been found in the money trail, which require both to appear for questioning. The couple had pleaded before Delhi High Court to direct ED to question them in their Kolkata office, instead of in Delhi, but the High Court rejected their plea on March 11. Both of them have now moved the Supreme Court to quash the Delhi HC order.
Abhishek was questioned for eight hours on March 21 and he was issued summons for a third round of questioning. His wife Rujira did not appear for both the rounds of questioning. There are reports that the ED is waiting for SC verdict, before it may take action against both “for not cooperating” in the investigation.
The Rs 1300 crore coal mining scam involves its lynchpin Benoy Mishra, against whom a CBI special court in Asansol has issued non-bailable warrant on March 17. The kingpin of this scam is reported to be hiding in the Pacific island nation of Vanuatu. In December, 2021, Benoy Mishra surrendered his Indian passport in the embassy in Dubai, saying that he has acquired the citizenship of Vanuatu. CBI has initiated an Interpol move for his extradition.
CBI sources say, a large portion of ill-gotten money from this coal mining scam has reached some powerful politicians in Bengal. Benoy Mishra was close to Mamata’s nephew, and his brother Vikas Mishra is now in custody. Sources say, Abhishek Banerjee is evading ED summons fearing his arrest.
It is in this background that Mamata Banerjee has sent letters to all non-NDA ministers and senior opposition leaders. Only Sharad Pawar has supported her appeal, while Shiv Sena chief Uddhav Thackeray has also showed inclination to join the proposed opposition bloc. Other opposition parties are yet to react.
On Tuesday, Congress leader from Lok Sabha, Adhir Ranjan Chowdhury said, “Mamata cannot be trusted. She has no credibility. Sometimes she wants to crush the Congress, and sometimes she seeks support from Congress. It is better for our party to keep distance from her”. Another Congress leader Shaktisinh Gohil said, “Mamata forgets opposition unity when she fights elections, but harps on opposition unity, when she is in trouble.”
To sum up, Mamata is still facing troubles despite scoring a major victory in West Bengal assembly elections last year. On one hand, CBI is probing Birbhum killings, and on the other hand, ED is probing the role of her nephew in money laundering case. She is facing a third front from a pro-active governor Jagdeep Dhankar, who tries to keep her on leash. Her party leaders add to these troubles by making controversial statements. One TMC leader justifies killings and violence, while another TMC leader openly threatens BJP supporters.
Mamata Banerjee has the capability to face all these challenges, but, in the process, her plan to project herself as a national leader has been badly dented. After her historic victory last year, Mamata was being projected as a leader who could united opposition parties to mount a challenge to Prime Minister Modi. But now, it seems, Mamata would have to devote much of her time to her own troubles. At the same time, Aam Aadmi Party supremo Arvind Kejriwal, fresh from his landslide win in Punjab, is trying his best to project himself as a leader who can challenge the Modi.
Nationalist Congress Party supremo Sharad Pawar on Tuesday confirmed that he has received Mamata’s letter. He said, “we associate with the issue. We have yet to decide on the venue and date for the meeting, it may take place either in Delhi or Mumbai”. Odisha chief minister and Biju Janata Dal supremo Naveen Patnaik said, he has not received any such letter.
क्या यूपी में बीजेपी समर्थक की लिंचिंग मुसलमानों को डराने की कोशिश है?
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में एक दिल दहलाने वाली घटना में भारतीय जनता पार्टी के एक युवा मुस्लिम समर्थक बाबर अली को स्थानीय बीजेपी उम्मीदवार पंचानन पाठक की जीत की खुशी में मिठाई बांटने पर उसके ही समुदाय के लोगों ने पीट-पीट कर मार डाला। भीड़ की अगुवाई उन स्थानीय मुस्लिम नेताओं ने की थी जिन्होंने गांववालों से समजावादी पार्टी को वोट देने के लिए कहा था। बाबर अली ने उनकी बात नहीं मानी। बाबर ने अपने घर की छत पर बीजेपी का झंडा लगाया था, और जब पार्टी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की तो उसने इस खुशी में पटाखे चलाए और मिठाइयां बांटी थी।
बाबर अली को स्थानीय गुंडों ने धमकाया और जब वह शिकायत दर्ज कराने के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन गया तो पुलिस ने उसकी शिकायत नहीं सुनी। 20 मार्च को कई मुसलमान इकट्ठा होकर उसके घर में घुसे और उस पर हमला कर दिया। बाबर अली खुद को बचाने के लिए छत पर भागा, लेकिन भीड़ वहां भी पहुंच गई और उसे बुरी तरह पीटने के बाद छत से नीचे फेंक दिया। कथित हमलावर अजीमुल्ला, आरिफ, सलमा और ताहिद ने उसे बुरी तरह पीटा। बाबर अली को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से उसे लखनऊ रेफर कर दिया गया। लखनऊ के अस्पताल में इलाज के दौरान 5 दिन बाद बाबर की मौत हो गई।
बाबर के परिजनों का आरोप है कि उसे राजनीतिक विरोधियों से पिछले 2-3 महीने से धमकियां मिल रही थीं। उस पर दबाव बनाया जा रहा था कि वह बीजेपी के प्रत्याशी का प्रचार न करें। बाबर अली के भाई चंदे आलम ने कहा, उसे मारने की योजना पिछले 4 महीने से बनाई जा रही थी। उन्होंने आरोप लगाया कि बाबर अली को बीजेपी से दूर रखने के लिए 10 लाख रुपये तक की पेशकश भी की गई थी।
जरा सोचिए, बाबर की मां, उसकी विधवा और 2 छोटे-छोटे बच्चों का इस वक्त क्या हाल हो रहा होगा? बाबर की हत्या के बाद उसके परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है। बाबर की विधवा फातिमा ने आरोप लगाया कि कैसे समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता विनोद प्रधान ने अपने समर्थकों से कहा कि अगर वह सपा को वोट देने से इनकार कर देता है तो वे उसे मार डालें। फातिमा ने बताया कि कैसे हमलावरों ने उसे पत्थरों, ईंटों और लाठियों से मारा और फिर छत से फेंक दिया।
बाबर की बेवा की बात सुनकर दिल कांप उठता है। हैरानी की बात ये है कि बाबर की जान लेने वाले लोग अनजान नहीं थे, वे उसके अपने रिश्तेदार और पड़ोसी थे, जो उसे बचपन से जानते थे। जब बाबर अली ने सुरक्षा की गुहार लगाई तो कुशीनगर जिले के रामकोला थाने की पुलिस ने कोई ऐक्शन नहीं लिया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस हत्याकांड का संज्ञान लिया और उच्च स्तरीय जांच का आदेश दिया है। रामकोला के थाना प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया गय है। गोरखपुर रेंज के डीआईजी जे. रविंदर गौड़ ने बाबर के परिवार से मुलाकात की और पीड़ितों को हर संभव मदद और सुरक्षा का आश्वासन दिया। अब तक 4 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। स्थानीय एसडीएम ने यह माना कि जब बाबर अली ने पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई तो पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
सीओ संदीप वर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री ने बाबर के परिवार को 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का फैसला किया है। भारतीय जनता पार्टी विधायक पंचानन पाठक बाबर अली के घर गए और उसके जनाजे को कंधा दिया। पाठक ने कहा कि सरकार आरोपियों को ऐसा सबक सिखाएगी कि फिर कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगा।
योगी के मंत्रिमंडल में नए मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा, ‘मैं उस परिवार को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि उन्होंने अपना एक बेटा खो दिया है, लेकिन उनका दूसरा बेटा (योगी आदित्यनाथ) उन्हें न्याय दिलाने का काम करेगा।’
समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने ऐसी बात कही जिसे सुनकर सबसे ज्यादा हैरानी हुई। उन्होंने कहा, ‘मुसलमान नहीं चाहते कि उनमें से कोई भी बीजेपी का समर्थन करे, बाबर अली बीजेपी को सपोर्ट करके गलती कर रहे थे।’ बर्क ने घुमा-फिराकर बाबर अली की लिंचिंग को सही ठहराने की कोशिश की।
मैं यह जानकर स्तब्ध हूं कि समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद लिंचिंग की ऐसी खौफनाक घटना को सही कैसे ठहरा सकते हैं। यह बीजेपी के प्रति नफरत की इंतेहा है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और स्पष्ट करना चाहिए कि क्या उनकी पार्टी इस बात का समर्थन करती है कि अगर कोई मुसलमान बीजेपी की जीत पर मिठाई बांटे तो उसकी हत्या कर दी जाए।
कोई भी कानून, धर्म या समाज इस तरह के आपराधिक कृत्य को माफ नहीं कर सकता। यह तो सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार 90 फीसदी मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया। अगर किसी ने बीजेपी को वोट दे भी दिया तो उसकी जान लेकर क्या मुसलमानों को डराने की कोशिश हो रही है? क्या मुसलमानों को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि अगर बीजेपी का समर्थन किया तो क्या हश्र होगा? इस सवाल का जवाब उन लोगों को भी देना चाहिए और अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए जो बीजेपी के राज में मानवाधिकारों के हनन का सवाल उठाते हैं और असहिष्णुता का आरोप लगाते हैं।
शफीकुर्रहमान बर्क जैसे कट्टरपंथी नेताओं को एक अन्य मुस्लिम नेता, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के माजिद मेमन की बात सुननी चाहिए। मेमन ने सोमवार को एक ट्वीट पोस्ट किया, जिससे सियासी हलकों में हलचल मच गई। मेमन ने ट्वीट किया: ‘यदि नरेंद्र मोदी जनादेश जीतते हैं, और उन्हें दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में भी दिखाया जाता है, तो उनमें जरूर कुछ गुण होंगे या उन्होंने अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता अब तक जान नहीं पाए हैं।’ मेमन ने कहा कि विरोधी दलों के नेता सिर्फ मोदी को कोसते रहते हैं, लेकिन ये नहीं देखते कि प्रधानमंत्री का जनता के साथ जुड़ाव कितना मजबूत है।
बाद में, मेमन के सुर थोड़े ढीले पड़ गए और उन्होंने कहा, ‘हमें यह पता लगाना चाहिए कि संविधान का उल्लंघन करने, लोगों के बीच नफरत पैदा करने और समाज को बांटने के बावजूद वह कैसे जीत जाते हैं। विपक्ष को EVM के हैक होने वाली बात अब नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसमें गड़बड़ी की कोई बात सामने नहीं आई है।’
मेमन ने यह भी कहा कि विपक्ष को शोध और आत्मनिरीक्षण निरीक्षण करना चाहिए ताकि पता लगे कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो मोदी को न केवल भारत में बल्कि बाहर भी स्वीकार्य बना रही हैं। उन्होंने कहा, ‘2019 में विपक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद हम उनकी सरकार नहीं हटा सके। मैं इस बात की सराहना करता हूं कि वह एक अच्छे वक्ता हैं। वह रोजाना 20 घंटे काम करते हैं। नरेंद्र मोदी के ये असाधारण गुण हैं जिनकी आलोचना करने की बजाय सराहना करनी चाहिए।’
माजिद मेमन की यह बात सही है कि जब तक विरोधी दलों के नेता यह नहीं समझेंगे कि मोदी का जनता से जुड़ाव क्यों है, तब तक वे मोदी को हराने की कारगर रणनीति नहीं बना पाएंगे। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस इस बात को समझने में नाकाम रहे कि मोदी पर आम जन का विश्वास और योगी आदित्यनाथ की 5 साल की उपलब्धियां बीजेपी के काम आईं।
योगी की योजनाएं जैसे गरीबों को मुफ्त राशन, रियायती दरों पर मकान, माफिया और बाहुबलियों पर बुलडोजर का वज्रपात, लोगों के मन में सुरक्षा की भावना चुनावों में बीजेपी का हथियार बन गईं और पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता में लेकर आईं। विपक्ष के नेता जितनी जल्दी इस बात को समझ लेंगे, वे भविष्य के लिए उतनी ही कारगर रणनीति बना पाएंगे।
Was the lynching of a BJP supporter in UP an attempt to intimidate Muslims?
In a spine chilling incident in Kushinagar, Uttar Pradesh, a young Muslim supporter of BJP, Babar Ali, was lynched by people of his own community for distributing sweets to celebrate the victory of the local BJP candidate Panchanan Pathak. The mob was led by local Muslim leaders who had directed villagers to vote in favour of the Samajwadi Party candidate. Babar Ali refused to tow their line. He had a BJP party flag on his house top, and when the BJP candidate won, he distributed sweets and set off firecrackers to celebrate the win.
Babar Ali was threatened by local goons and he went to the local police station to lodge a complaint, but police did not attack. On March 20, several Muslims in a group attacked him inside his house. Babar Ali ran to the terrace to protect himself, but the mob reached there and threw him from the terrace, after lynching him severely. The alleged attackers Azimullah, Arif, Salma and Tahid beat him up badly. Babar Ali was admitted to district hospital in critical condition. He was referred to Lucknow hospital, where he succumbed to injuries five days later.
Babar’s family members alleged that he was getting threats for the last two to three months from political rivals. He was being pressurized not to canvass for the BJP candidate. Babar Ali’s brother Chande Alam said, the plan to kill him was being prepared for the last four months. He alleged that Babar Ali was also offered Rs 10 lakhs to stay away from BJP.
Imagine the plight of his mother, widow and two kids who are surviving after his lynching. Babar’s widow Fatima alleged how the local SP leader Vinod Pradhan asked his supporters to kill Babar if he refused to vote for Samajwadi Party. She described how the attackers beat him up with stones, bricks and lathis, and then threw him from the terrace.
It is indeed spinechilling. Babar Ali was killed not by unknown people, but by his own relatives and neighbours who knew him since childhood. The police officials in Ramkola police station of Kushinagar district did not take any action when Babar Ali sought police protection.
Chief Minister Yogi Adityanath has taken cognizance of this murder and has ordered a high-level probe. The Ramkola police station in-charge has been sent to police lines. DIG, Gorakhpur range, J. Ravinder Gaud met Babar’s family and assured all help and protection to the survivors. Till now, four accused have been arrested. The local SDM admitted that police officers did not take any action when Babar Ali had sought their protection.
Circle Officer Sandeep Verma announced that the chief minister has decided to give Rs 2 lakh ex gratia to Babar’s family. BJP MLA Panchanan Pathak went to Babar Ali’s house, and carried his coffin on his shoulder. Pathak said, the government would take exemplary action against the accused so that such lynching incident is never repeated.
Danish Azad Ansari, the new minister in Yogi’s cabinet, said, “one son (Babar) may have gone, but the family must know that they have another son (Yogi Adityanath) who will stand by them”. The most surprising remark came from Samajwadi Party MP Shafiqur Rahman Barq, who said, “Muslims do not want any one of them should support BJP, and Babar Ali was doing a mistake by supporting BJP”. He was indirectly justifying the lynching incident.
I am surprised how a senior MP of Samajwadi Party can justify such a horrifying lynching incident. This indicates the depth of hatred some people have toward BJP. Samajwadi Party supremo Akhilesh Yadav must break his silence and clarify whether his party justifies lynching of a man only because he was distributing sweets after the victory of a BJP candidate.
No law, or religion, or society can condone such a criminal act. It is no secret that nearly 90 per cent Muslims in UP voted for Samajwadi party this time. Is it an attempt to intimidate Muslims by lynching a person who was canvassing votes for BJP? Is it an attempt to give a message to Muslims in UP the fate that awaits them, if they support BJP? Those who champion the cause of human rights and allege intolerance during BJP rule, must also come forward and express their opinion on this incident.
Fundamentalist leaders like Shafiqur Rahman Barq must listen to another Muslim leader, Majeed Memon of NCP, who, on Monday, posted a tweet which caused ripples in political circles. Memon tweeted: “If Narendra Modi wins people’s mandate, and is also shown as world’s most popular leader, there must be some qualities in him, or good work he may have done which the opposition leaders are unable to find”. He said, Modi must be given his due at a time when opposition leaders leave no opportunity to criticize every policy move by the ruling NDA government.
Later, Memon tried to dilute his stand a bit by saying, “Despite violating the Constitution, creating hatred among people, and dividing society, we must find out how he wins. Opposition should stop talking about hacking of EVMs, since there is no argument on rigging of EVMs that can hold water”, Memon said.
He also said opposition parties must do introspection and research to find out what are the things which are making Narendra Modi acceptable not only to India, but even outside. “In 2019, despite all efforts by the opposition, we could not remove his government. I appreciate that he (Modi) has a good oratory power. He works for 20 hours every day. These are extraordinary qualities of Narendra Modi which I must appreciate besides criticizing him”, he said.
Majeed Memon is right. Until and unless opposition leaders realize the connect between Modi and the people, they cannot formulate an effective strategy to defeat him in elections. Leaders of SP, BSP and Congress in UP failed to realize the fact that it was the common man’s trust in Modi and the five years’ achievements of Yogi Adityanath, that swept BJP to power again.
Free ration to poor people, subsidized housing loans, suppression of local mafia leaders by using bulldozers to raze their ill-gotten properties, creating a sense of security in the minds of common man, were the big weapons that helped BJP in retaining power. The sooner the opposition leaders realize this fact, the better it will be for them to formulate a proper strategy for future.
एजेंडा ’24 रहा योगी के मंत्रियों के चयन का पैमाना
लखनऊ के भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम में शुक्रवार को एक भव्य समारोह में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में एक नई सरकार ने शपथ ली. इस नये मंत्रिमंडल के गठन पर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी समेत कई केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और हजारों बीजेपी समर्थक, योगी और उनके कैबिनेट मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी बने। उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार 5 साल तक रहे किसी मुख्यमंत्री ने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली। इस मौके को खास बनाने के लिए पूरे राज्य में जश्न मनाया गया और कई जगहों पर धार्मिक अनुष्ठान किए गए।
सभी की निगाहें योगी के 32 नए मंत्रियों पर थीं और उन 26 मंत्रियों के बारे में भी काफी चर्चा थी जिनकी इस बार छुट्टी हो गई। दिनेश शर्मा की जगह कभी बसपा में रहे ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। ये दोनों नेता ब्राह्मण हैं। यूपी में बीजेपी के ओबीसी चेहरे के रूप में उभरे केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव में हार के बावजूद उपमुख्यमंत्री के रूप में बरकरार रखा गया। जिन मंत्रियों की छुट्टी हुई उनमें आशुतोष टंडन, श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थ नाथ सिंह, 8 बार विधायक सतीश महाना, बीजेपी का मुस्लिम चेहरा मोहसिन रजा समेत कई अन्य नाम शामिल हैं।
योगी की टीम में सवर्ण जातियों के 21 और अन्य पिछड़ी जातियों के 20 मंत्रियों को शामिल कर एकदम सही सन्तुलन ऱखा गया। इसके अलावा 8 दलित मंत्री बनाए गए हैं, साथ ही अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम और सिख समुदाय से एक-एक मंत्री बनाया गया है। उच्च जाति के मंत्रियों में 7 ब्राह्मण, 6 ठाकुर, 2 भूमिहार, 5 वैश्य और एक कायस्थ हैं। 20 ओबीसी मंत्रियों में 4 कुर्मी, 3 जाट, 2 निषाद, 2 लोध और सैनी, गुर्जर, तेली, मौर्य, गडरिया, कुम्हार, यादव, राजभर और कश्यप जाति के एक-एक मंत्री शामिल हैं।
बीजेपी के दोनों सहयोगी दल, निषाद पार्टी और अपना दल, दोनों को नए मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया गया है। विद्यार्थी परिषद के पूर्व छात्र नेता रहे दानिश आजाद अंसारी अकेले मुस्लिम मंत्री हैं, जिन्होंने मोहसिन रजा की जगह ली है। गुजरात आईएएस कैडर के पूर्व नौकरशाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद एके शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, जबकि चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस लेने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी और कानपुर के पूर्व पुलिस चीफ असीम अरुण को स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनाया गया है।
शपथ समारोह का आयोजन यह संदेश देने के लिए किया गया था कि ये तो सेमीफाइनल की जीत का जश्न है, फाइनल तो 2024 लोकसभा चुनाव में होगा।
इस मेगा इवेंट के सियासी असर का अंदाजा उन सभी वरिष्ठ बीजेपी नेताओं की कतार देखकर लगाया जा सकता है, जिन्होंने शपथ समारोह में शिरकत की। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि इस आयोजन का तत्काल प्रभाव गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पड सकता है, जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
संक्षेप में इसे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत कहा जा सकता है। यूपी में पार्टी को मिली लगातार बड़ी सफलता को देखते हुए योगी निश्चित रूप से कल के हीरो थे।
मोदी ने योगी को अपनी टीम और इस कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए खुली छूट दी थी। स्टेडियम में बने विशाल मंच की पृष्ठभूमि में ‘शपथ, शपथ, शपथ: राष्ट्रवाद की, सुशासन की, सुरक्षा की, विकास की’ लिखा हुआ था। ये शब्द, जिनका इस्तेमाल मोदी और योगी ने अपने यूपी अभियान के दौरान प्रभावी ढंग से किया था, 2024 में पार्टी के चुनावी एजेंडा, रोडमैप और लक्ष्य का आधार बन सकते हैं।
यह रोडमैप मंत्रियों के चुनाव में साफ झलकता है। केशव प्रसाद मौर्य सिराथू से अपना चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्हें फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया गया क्योंकि उन्होंने ही 2017 और इस साल के विधानसभा चुनावों में पिछड़ी जातियों की लामबंदी का नेतृत्व किया था। वह 2017 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे और उन्होंने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत की थी। इसीलिए पार्टी आलाकमान ने उन्हें चुनाव हारने के बावजूद इस बार भी नंबर दो की पोजीशन पर रखा है।
ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने एक साथ कई संदेश दिए हैं। पहला, पार्टी नौजवान नेताओं को तरजीह देगी, दूसरा, पार्टी क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों का भी ख्याल रखेगी, यानी एक ब्राह्मण के स्थान पर दूसरे ब्राह्मण को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। तीसरा संदेश यह है कि पार्टी प्रतिभा और प्रतिबद्धता का सम्मान करेगी, और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन किस पार्टी से आया है। ब्रजेश पाठक पहले BSP में थे, लोकसभा के सदस्य रहे और काफी मुखर सांसद के रूप में जाने जाते थे। बाद में उन्होंने मायावती का खेमा छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। चुनाव जीतकर वह विधानसभा के सदस्य बने और उन्हें योगी की सरकार में मंत्री बना दिया गया। उन्होंने अपनी काबलियत साबित की है।
योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छाप बिल्कुल साफ देखी जा सकती है। मंत्रियों का चुनाव क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के हिसाब से दुरूस्त है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह से इस बार ज्यादा नौजवान विधायक चुनकर आए हैं, उसी तरह मंत्रिमंडल में भी नए और अनुभवी नेताओं का बेहतर कॉबिनेशन है। पूरे शपथग्रहण के दौरान मोदी और योगी के बीच अच्छी केमिस्ट्री दिखाई दी, और करीब सवा घंटे तक दोनों नेता मंच पर एक दूसरे से गुफ्तगू करते दिखे। दोनों नेताओं के बीच की केमिस्ट्री से साफ था कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के रोडमैप की रूपरेखा तैयार हो चुकी है।
असल में यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन था कि यूपी में योगी की इस ऐतिहासिक जीत के जश्न को राजभवन के हॉल में राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच मनाने के बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं से भरे स्टेडियम में एक भव्य समारोह में मनाया जाए।
मोदी जानते हैं कि यूपी में यह चुनावी जीत उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के कड़े और अथक प्रयासों का नतीजा है। इसलिए, उन्होंने फैसला किया कि पार्टी कार्यकर्ताओं को शपथ समारोह के जश्न में भागीदार बनाया जाना चाहिए। इसका मकसद कार्यकर्ताओं में और ज्यादा जोश पैदा करना था ताकि 2 साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के दौरान उन्हें अच्छी तरह से लामबंद किया जा सके। यही मोदी का स्टाइल है।
सिर्फ चुनाव जीतना ही मंत्री पद के लिए एकमात्र पैमाना नहीं था। लिस्ट बनाते समय एक प्रमुख पैमाना यह भी रखा गया कि संगठन के लिए किसने कितनी कड़ी मेहनत की है। मिसाल के तौर पर दयाशंकर सिंह अब तक पार्टी संगठन के लिए काम कर रहे थे और उन्हें पहली बार मंत्री बनाया गया। उनकी पत्नी स्वाति सिंह, जो पिछली बार मंत्री थीं, को टिकट नहीं दिया गया था, और इस बार दयाशंकर सिंह को बलिया शहर सीट से समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता नारद राय के खिलाफ खड़ा किया गया था। सिंह को समाजवादी पार्टी के नेता को हराने का इनाम मिला है।
मोदी और योगी दोनों के सामने अब यह चुनौती है: 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनावी जीत कैसे हासिल की जाए। योगी जानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करना होगा, पिछला रिकॉर्ड तोड़ना होगा। यूपी में कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका है और मायावती की बहुजन समाज पार्टी की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गई है और वह अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
उत्तर प्रदेश में सबसे कठिन चुनौती अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से मिलेगी। पार्टी ने इस बार यूपी में अपना वोट शेयर और सीटों की संख्या बढ़ाई है। इस बात को बीजेपी नेतृत्व भी जानता है। चाहे वह कैबिनेट का गठन हो, या अगले 2 सालों के लिए सरकार का रोडमैप, मुख्य उद्देश्य यही होगा कि 2024 का लोकसभा चुनाव कैसे जीता जाए।
Agenda ‘24: Key to selection of Yogi’s Ministers
The imprint of a strategy to win the 2024 Lok Sabha elections is clearly visible in the new government led by Yogi Adityanath, which was sworn in at a mega event on Friday at Bharat Ratna Atal Bihari Vajpayee Ekana stadium in Lucknow.
The swearing-in ceremony was attended by Prime Minister Narendra Modi, his key ministers Amit Shah, Nitin Gadkari, Rajnath Singh and others, most of the BJP chief ministers from different states, religious gurus, industrialists and thousands of BJP supporters who had assembled there. Across the state, there were jubilations and special religious rites to mark the occasion of a chief minister of UP being sworn in for a second consecutive term, a first in the history of Uttar Pradesh.
All eyes were on the induction of 32 freshers as ministers and there were animated discussions about the 26 ministers who were dropped this time. A new deputy chief minister Brajesh Pathak, formerly in the BSP, was sworn in replacing Dinesh Sharma, both representing the Brahmin community. Keshav Prasad Maurya, the OBC face of BJP in UP, was retained as deputy chief minister despite his defeat in the elections. Among the ministers dropped were Ashutosh Tandon, Shrikant Sharma, Siddharth Nath Singh, eight times MLA Satish Mahana, BJP’s Muslim face Mohsin Raza, and several others.
There is a perfect balance in Yogi’s team with 21 ministers from upper castes and 20 from other backward castes. Eight Dalits, one each from scheduled tribe, Muslim and Sikh communities made up the rest. Among the upper caste ministers are seven Brahmins, six Thakurs, two Bhumihars, five Vaishyas and one Kayasth. Among the 20 OBC ministers were four Kurmis, three Jats, two Nishads, two Lodhs and one each from Saini, Gurjar, Teli, Maurya, Gadariya, Kumhar, Yadav, Rajbhar and Kashyap castes.
Both the BJP allies Nishad Party and Apna Dal have been given representation in the new ministry. A former ABVP student leader Danish Azad Ansari is the lone Muslim minister, who has replaced Mohsin Raza. Prime Minister Narendra Modi’s trusted former bureaucrat from Gujarat IAS cadre, A K Sharma has been made cabinet minister, while former IPS officer and ex-Kanpur police chief Aseem Arun, who took VRS to contest the elections, has been made MoS with independent charge.
The swearing-in event was organized to give the message that it was more of a semi-final victory jubilation in the runup to the finals that is going to take place in 2024 during the crucial Lok Sabha elections.
The political impact of this mega event can be gauged from the line-up of all senior BJP leaders who took the stage as Yogi read out his affirmation of oath. Party strategists expect the immediate impact of this event to take place in states like Gujarat, Himachal Pradesh, Rajasthan, MP and Chhattisgarh that will go to assembly polls.
In brief, it can be termed as the beginning of preparations for 2024 LS elections. Yogi, of course, was the hero of the day, given the major consecutive success that the party has scored in UP.
Modi had given a free hand to Yogi to plan his team and this event. In the backdrop of the huge dais was written ‘Shapath, Shapath, Shapath: Rashtravad ki, sushashan ki, suraksha ki, vikas ki’ (Promise, promise, promise for Nationalism, Good Governance, Security and Development). These words, which Modi and Yogi had effectively used during their UP campaign, will now be the template on which the 2024 poll agenda, roadmap and objective, will be scripted.
This roadmap is clearly reflected in the choice of ministers. Keshav Prasad Maurya lost his election from Sirathu, but was inducted again as deputy CM because it was he who led the mobilization of backward castes, both in the 2017 and this year’s assembly polls. In 2017, he was the state BJP chief who worked tirelessly to bring his party to power. The party high command, therefore, decided that Maurya should continue in Number Two position after Yogi.
By inducting Brajesh Pathak, a Brahmin leader, as deputy CM, the party wants to give some messages: One, that the leadership will give preference to young leaders, Two, it will keep regional and caste equations in mind by replacing a Brahmin with another Brahmin, Three, preference will be given to talent and commitment, and it does not matter who is coming from which party. Brajesh Pathak was a vocal BSP MP in Parliament several years ago, when he left Mayawati’s camp and joined the BJP to become minister in Yogi’s cabinet. He had proven his administrative competence.
Modi’s stamp of approval can be clearly seen in the line-up of Yogi’s new cabinet. Regional and caste equations have been taken care of, and there is, of course a good combination of fresh and old, experienced faces. The chemistry between Modi and Yogi was evident during the 75-minute oath ceremony, when both of them were involved in long discussions, sitting next to each other. The body chemistry between the two clearly depicts the contours of the BJP roadmap for the coming Lok Sabha polls.
It was Modi’s plan to convert the celebration of Yogi’s historic success by organizing a mega ceremony in a stadium packed with party workers, instead of a bland ceremony inside a Raj Bhavan hall attended by politicians and bureaucrats.
Modi knows that this electoral victory in UP was the result of tireless and strenuous efforts by his party workers. He, therefore, decided that party workers must be invited to become participants in the jubilation at the oath ceremony. The aim was to inject more enthusiasm among them so that they could be effectively mobilized two years later during the LS polls. This is typical Modi style.
Winning elections was not the sole criterion for selecting ministers. Strenuous work fone for the party was also taken as a major criterion while preparing the list. For example, Dayashankar Singh used to work for the party and was made minister for the first time. His wife Swati Singh, who was minister last time, was denied ticket, and this time Dayashankar Singh was pitted against top Samajwadi Party leader Narad Rai in Ballia town. Singh was rewarded for defeating the SP leader.
The challenge that both Modi and Yogi face now is: how to achieve a bigger electoral victory from UP in 2024 LS polls. Yogi knows that he would have to break the past record of success from UP in the Lok Sabha elections. Already, the Congress has been nearly decimated in UP, and Mayawati’s Bahujan Samaj Party is gasping for survival.
The toughest challenge in UP will be posed by Akhilesh Yadav’s Samajwadi Party, which has enhanced its vote share and number of seats this time from UP. The BJP leadership realizes this. Whether it is the formation of a cabinet, or charting out a roadmap for the next two years, the main objective will be: how to win the 2024 Lok Sabha elections.
बीरभूम नरसंहार : ममता को झगड़े की तह तक जाना चाहिए
पश्चिम बंगाल के बीरभूम में हुए नरसंहार मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को आपना आदेश सुरक्षित रखा। हाईकोर्ट में दाखिल कई याचिकाओं में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कराने की मांग की गई थी। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश के दो घंटे के अन्दर पुलिस ने नरसंहार के मुख्य आरोपी और तृणमूल कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष अनारुल हुसैन को गिरफ्तार कर लिया। वह तारापीठ में छिपा हुआ था। मुख्यमंत्री ने डीजीपी मनोज मालवीय को आदेश दिया था कि या तो हुसैन ‘सरेंडर करें या फिर उसे किसी भी तरह पकड़ा जाए।’
नरसंहार के तीन दिन बाद मुख्यमंत्री बोगटुई गांव पहुंची जहां 21 मार्च को हथियारों से लैस भीड़ ने आठ लोगों को जिंदा जला दिया था। ममता बनर्जी के इस दौरे से दो बड़े असर दिखाई दिए। पहला यह कि मुख्य आरोपी अनारुल हुसैन को पुलिस ने कुछ ही घंटों में पकड़ लिया। अनारुल के सेल नेटवर्क को ट्रेस कर उसे आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरा असर यह रहा कि पीड़ितों के परिजनों को मुख्यमंत्री से खुलकर बात करने का मौका मिला। वरना पिछले तीन दिनों से स्थानीय पुलिस पीड़ितों परिवारों की बात सुन ही नहीं रही थी।
जिन लोगों के घर जलाए गए हैं उनके रिश्तेदारों ने ममता बनर्जी को बताया कि अनारुल हुसैन उस भीड़ का नेतृत्व कर रहा था, जिसने बस्ती में आग लगाई। इसके बाद ममता बनर्जी ने वहीं DGP को निर्देश दिया कि मुख्य आरोपी अनारुल हुसैन को तुरंत पकड़ा जाए और फिर दो घंटे के भीतर वह पकड़ा गया। अनारुल की गिरफ्तारी तारापीठ से हुई जो घटनास्थल से करीब 9 किलोमीटर दूर है।
पीड़ितों से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने माना कि पुलिस की लापरवाही से इतनी बड़ी वारदात हुई। ममता बनर्जी ने अधिकारियों को फटकार लगाई और यह भी कहा कि अगर समय पर एक्शन लिया गया होता तो आठ लोगों की जान बचाई जा सकती थी। उन्होंने ड्यूटी में लापरवाही बरतने के चलते थाना प्रभारी और सब-डिविजनल पुलिस अधिकारी को हटाने का आदेश दिया। पीड़ित परिवारों ने ममता बनर्जी को बताया कि पहले भी उन्होंने पुलिस से कई बार शिकायत की थी और बताया था कि तृणमूल का ही एक नेता गुंडागर्दी कर रहा है तथा उन्हें डराया, धमकाया जा रहा है लेकिन पुलिस ने उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जिसके चलते यह नरसंहार हुआ।
ममता बनर्जी के आदेश देने के दो घंटे के अन्दर मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया, इस बात के क्या मायने निकाले जाएं। जो शख्स तीन दिन से पुलिस की गिरफ्त से दूर था वह दो घंटे में पकड़ में आ गया? आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? क्या पुलिस को ममता बनर्जी के आदेश का इंतजार था? मैं आपको बता दूं कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को पकड़ना इतना आसान नहीं है। आरोपी अनारुल हुसैन रामपुरहाट ब्लॉक में तृणमूल कांग्रेस का अध्यक्ष है, यानि उस इलाके का इंचार्ज। ऐसे में पुलिस के लिए अनारुल हुसैन पर हाथ डालना आसान नहीं था। पिछले दो दिनों में पुलिस ने 11 आरोपियों को पकड़ लिया लेकिन जिस पर आग लगाने वाली भीड़ की अगुआई करने का आरोप था वह खुलेआम घूम रहा था। पुलिस उस शख्स तक तब तक नहीं पहुंची जब तक खुद ममता बनर्जी ने गिरफ्तारी का आदेश नहीं दिया।
यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि जब पीड़ित परिवार ममता बनर्जी के सामने अनारुल हुसैन को नरसंहार का सरगना बता रहे थे, उस समय भी ममता बार-बार यही कह रही थीं कि उन्हें खबर मिली है कि कुछ बाहरी लोगों का भी इसमें हाथ हो सकता है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘ कुछ लोग कह रहे हैं कि बाहर से गुंडे आए थे। नहीं आए होते तो घटना नहीं होती। यहां बाहरी लोगों की साज़िश चल रही है। यहां पर लगातार पुलिस की पिकेटिंग की व्यवस्था की जाए। हर वक़्त अगर निगरानी रखी जाएगी तो ऐसी समस्या नहीं होगी। लगातार निगरानी करिए। जो लोग अस्पताल में हैं उनके इलाज की पूरी ज़िम्मेदारी उठाई जाएगी। हम यहां पूरी व्यवस्था करने को कहते हैं और ज़रूरत पड़ने पर कोलकाता भी ले जाया जाए। चूंकि लोग जल गए हैं और यहां के डॉक्टर इजाज़त नहीं दे रहे हैं, तो हम यहां एक्सपर्ट की टीम भेज रहे हैं, जिससे अच्छा इलाज हो।’
ममता बनर्जी ने स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिया कि वह प्रभावित परिवार के सदस्यों को तुरंत एक लाख रुपए की अनुग्रह राशि दें और फिर से घर बनाने में मदद करे। उन्होंने कहा, ‘मैं पहले ही कह चुकी हूं कि ऐसी सज़ा मिलेगी जो नज़ीर बने। ज़िंदगी का कोई मुआवज़ा नहीं हो सकता है। कोई नौकरी किसी की ज़िंदगी का विकल्प नहीं बन सकती। मुझे ये पता है। पीड़ितों को पांच लाख रुपए हाथ में मिलेंगे। इसके अलावा नौकरी भी मिलेगी। इसलिए मैं अपने कोटे से 10 लोगों को नौकरी दिलाऊंगी।’
अच्छी बात है कि ममता बनर्जी घटनास्थल पर गईं और पीड़ितों से मिलीं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह माना कि पुलिस की ओर से बड़ी लापरवाही हुई है। लेकिन ममता बनर्जी के दौरे से पहले बोगटुई गांव की जो तस्वीरें मैंने देखी उससे हैरानी हुई। ममता बनर्जी आठ लोगों की वीभत्स और दर्दनाक मौत पर शोक जताने गई थी। जिंदा जल चुके इंसानों की राख पूरे गांव में बिखरी थी और गांव में मौत का सन्नाटा था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने ममता के स्वागत की तैयारी ऐसे की जैसे ममता किसी रैली या किसी जलसे में आ रही हों। ममता के स्वागत के लिए पोस्टर लगाए गए थे। बड़े-बड़े गेट बनाए गए थे। बोगटुई गांव तक पहुंचने के पूरे रास्ते पर पोस्टर-बैनर लगाए गए थे। इन पोस्टरों में उनके अभिनंदन की बातें लिखी गई थीं।
बीरभूम के मामले में ममता के सामने 2 गंभीर चुनौतियां हैं। एक तो यह कि हमला करने वाले और मरने वाले दोनों मुस्लिम समुदाय से हैं। दूसरा, पश्चिम बंगाल में उनके सामने एक प्रोएक्टिव गवर्नर हैं जो उन्हें चैन से नहीं बैठने देते और फिर बीजेपी ने इस मामले को हर स्तर पर बड़े पैमाने पर उठाया है। ममता यह कहकर नहीं बच सकती कि ऐसी घटनाएं दूसरे राज्यों में भी होती हैं। उन्हें इस मामले की तह तक जाना होगा।
मुझे अपने सूत्रों से जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक यह पूरा झगड़ा इस इलाके में न सियासी था और न मजहब की वजह से था। यह झगड़ा लूट का माल बांटने वालों के बीच में था लेकिन इसकी आड़ में जो अपराध हुआ, वो बहुत ही जघन्य था। पश्चिम बंगाल ने पहले न ऐसा देखा, ना सुना। इस नरसंहार की विचलित करने वाली तस्वीरों को लोग लंबे वक्त तक भूल नहीं पाएंगे।
Birbhum: Mamata must find out the cause of rivalry that resulted in carnage
Even as the Calcutta High Court on Thursday reserved its order on multiple petitions seeking a court-monitored CBI prove into the horrific Birbhum carnage, the West Bengal Police, on orders of chief minister Mamata Banerjee, arrested Anarul Hossain, a Trinamool block level president, hiding in Tarapeeth. The arrest took place minutes after the chief minister directed the Director General of Police Manoj Malaviya that Hossain “must either surrender or he should be hunted down”.
Three days after the carnage, the chief minister visited Bogtui village, where eight people were charred to death by an armed mob on March 21. Mamta’s visit had two fallouts: one, the main accused was arrested by police within hours by tracing his cellphone network, two, family members of the victims had a chance to speak to the chief minister openly. The local police had turned a deaf ear to their pleas for the last three days.
The family members told Mamata Banerjee how Anarul Hossain was leading the violent mob that set fire to a row of houses in the village. The chief minister, on the spot directed the DGP to arrest the main accused immediately, and within two hours, reports came about Anarul Hossain’s arrest in Tarapeeth, nine kilometres away.
After speaking to the victims, Mamata Banerjee admitted that there were serious lapses on part of police otherwise the carnage could have been prevented. She lashed out at local police officials, and ordered the suspension of local officer-in-charge of police station and subdivisional police officer for lapse in duty. Mamata Banerjee admitted that the eight innocent lives could have been saved had police taken timely action. The victims told her they had complained to local police several times in the past about the main accused and his supporters threatening and intimidating them, but police did not act.
How was the main accused Anarul Hossain arrested within two hours of the chief minister issuing verbal orders? Was the police awaiting her orders? The fact is, in West Bengal, arrest of Trinamool Congress leaders by police is not an easy task. The accused was the block president and it was not easy for local police to arrest him. In the last two days, police had rounded up 11 persons, but the main accused was moving around freely. It was only when the CM ordered that the police swung into action and arrested him.
One other point to note is that while the family members of victims were naming Anarul Hossain as the leader of the mob, the chief minister was saying that this could be the handiwork of outside forces. Mamata Banerjee said, “some people are saying that some hoodlums from outside had come to the village, otherwise this incident would not have happened. Police should set up pickets to prevent outsiders from coming. We are ready to take the seriously burnt people for treatment to Kolkata, or if the doctors do not allow, we can send experts here for their treatment.”
Mamata Banerjee directed local administration to give Rs one lakh immediate ex gratia relief to the affected family members, and provide them with more assistance for rebuilding their burnt homes. “I promise we will punish the killers and it will set an example for others. There can be no compensation for a life lost, giving a job is not an alternative to a life lost. Yet I will ensure that the family members get Rs 5 lakh assistance and I will give jobs to 10 persons from my own quota”, she said.
The chief minister did the right thing in visiting the spot and meeting the affected family members. She was also right in publicly admitting that there were serious lapses on part of police. But I was surprised to find visuals of how the local Trinamool Congress unit had set up welcome arches, and displayed posters and banners welcoming the chief minister, as if it was a joyful occasion. These local leaders should realize that their supreme leader was going to the village and express her condolence and sympathy to the bereaved families, whose near and dear ones were charred to death.
There are two main challenges now before Mamata Banerjee. One, the killers and the victims, both belong to Muslim community. Two, she has a pro-active Governor in her state, who will never allow to sit in peace. Already, the main opposition party BJP has raised this carnage issue at several levels. Mamata Banerjee cannot wash off her hands by saying that similar incidents “frequently” take place in other states. She needs to go into the bottom of this entire episode.
What I understand from my sources is that, this was not a rivalry based on religion or community or politics. The rivalry was on the issue of distribution of ill-gotten money. The crime that took place because of this was horrendous, unprecedented in Bengal’s history. The visuals of the carnage are disturbing and it will take a long time for people to forget them.
बीरभूम नरसंहार: न्याय न सिर्फ हो, बल्कि होता हुआ दिखाई भी दे
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट के पास स्थित बोगटुई गांव में सोमवार की रात 50 से 60 ग्रामीणों की हिंसक भीड़ ने कई घरों पर पत्थर, बम और गोलियां बरसाई और फिर उन्हें आग लगा दी। यह हमला तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय नेता की कई घंटे पहले हुई हत्या के बाद किया गया। आग की चपेट में आने से 8 लोगों की झुलस कर मौत हो गई।
पहले तो तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि आग बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण लगी , लेकिन जैसे ही नरसंहार का भयानक सच दुनिया के सामने आया, सत्तारूढ़ दल मुश्किल में फंस गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, मोटरसाइकिलों पर सवार 10 से 12 लोगों ने बरशाल ग्राम पंचायत के उपप्रधान और तृणमूल नेता भादु शेख पर बम से हमला किया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। भादु शेख बोगटुई पश्चिम पाड़ा (बोगटुई गांव के पश्चिमी हिस्से) का रहने वाला था, और उसपर हमला करने वाले लोग बोगटुई पूरब पाड़ा (बोगटुई गांव के पूर्वी हिस्से) में रहते थे। हत्या के तुरंत बाद भीड़ ने बोगटुई पूरब पाड़ा पर धावा बोल दिया और रात करीब 10:30 बजे एक लाइन से 10 घरों में आग लगा दी। जलते हुए घरों में कई लोग फंस गए और भीड़ ने इन लोगों को भागने का कोई मौका नहीं दिया।
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पुलिस जांच की बात कहकर इस हत्याकांड पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। यह एक दिल दहलाने वाली घटना थी, लेकिन इसके बाद ममता बनर्जी ने जो कहा वह और भी ज्यादा डराने वाला है। बंगाल के बीजेपी सांसदों ने गृह मंत्री अमित शाह के सामने पूरे वाकये के बारे में जानकारी दी थी जिसके बाद केंद्र सरकार ने जैसे ही मामले का संज्ञान लिया और अदिकारियों का एक दल भेजने का फैसला किया, तो ममता बनर्जी ने बुधवार को बीजेपी पर तुरंत हमला बोल दिया।
ममता बनर्जी ने कहा, ‘यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी। मैं बीरभूम हिंसा का बचाव नहीं कर रही, लेकिन इस तरह की घटनाएं उत्तर प्रदेश, गुजरत, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में अक्सर हुआ करती हैं। तब क्यों लोग शोर-शराबा नहीं करते? लोग सिर्फ बंगाल को ही बदनाम करने के लिए क्यों आतुर रहते हैं?’ मुख्यमंत्री ने इस तरह की प्रतिक्रिया क्यों दी?
घटनास्थल पर मौजूद शव इतनी बुरी तरह जल चुके थे कि उनकी पहचान नामुमकिन थी। क्राइम सीन से पुलिसवालों को जली हुई लाशों के अवशेष ले जाते देख रोंगटे खड़े हो गए। जब आग फैल गई तो उन लोगों को बचने का कोई रास्ता नहीं मिला, ऐसे में वे आपस में लिपट गए। जब आग ने उनके घर को अपनी चपेट में लिया तो दो लोगों द्वारा खुद को बचाने के लिए एक-दूसरे से लिपट जाने का दृश्य दिल दहलाने वाला था। यह इंसान नहीं बल्कि हैवानों द्वारा किया गया एक पाशविक और भयावह कृत्य था।
कुछ चश्मदीदों ने बताया कि मौके पर पुलिस भी मौजूद थी, लेकिन उसने भीड़ को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। जब भीड़ ने घरों को आग के हवाले कर दिया तो अंदर फंसी महिलाएं और बच्चे चिल्ला-चिल्लाकर मदद की गुहार लगाने लगे, लेकिन कोई आगे नहीं आया। यहां तक कि भीड़ ने पीड़ितों को बचाने के लिए आई फायर ब्रिगेड के क्मचारियों को भी कुछ नहीं करने दिया। एक घंटे से भी ज्यादा का वक्त बीतने के बाद जब आग बुझ कई और सारे घर जलकर खाक हो गए, तब जाकर दमकलकर्मी आगे बढ़े। तब तक आग की गर्मी से छत पर लगा पंखा भी पिघल कर गिर चुका था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नरसंहार पर दुख व्यक्त किया। एक के बाद एक कई ट्वीट्स करते हुए मोदी ने कहा, ‘ मैं पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुई हिंसक वारदात पर दुःख व्यक्त करता हूं, अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। मैं आशा करता हूं कि राज्य सरकार, बंगाल की महान धरती पर ऐसा जघन्य पाप करने वालों को जरूर सजा दिलवाएगी। मैं बंगाल के लोगों से भी आग्रह करूंगा कि ऐसी वारदात को अंजाम देने वालों को, ऐसे अपराधियों का हौसला बढ़ाने वालों को कभी माफ न करें। केंद्र सरकार की तरफ से मैं राज्य को इस बात के लिए भी आश्वस्त करता हूं कि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलवाने में जो भी मदद वो चाहेगी, भारत सरकार मुहैया कराएगी।’
प्रधानमंत्री मोदी की बात सही है। इस तरह का अपराध करने वालों को जितनी कड़ी से कड़ी सजा हो, जल्द से जल्द मिलनी चाहिए। लेकिन मुश्किल यह है कि ममता बनर्जी की सरकार इस वारदात को आम अपराध की तरह ही देख रही हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बुधवार को मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए CBI जांच की अर्जी को खारिज कर दिया और विशेष जांच दल (SIT) को केस डायरी एवं अन्य दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया।
हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल पुलिस को जिला जज की निगरानी में गांव में तत्काल सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL), दिल्ली को क्राइम सीन का दौरा करने और जल्द से जल्द सबूत इकट्ठा करने का निर्देश दिया। अदालत ने DGP और IGP को सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उन्हें कोई धमका या प्रभावित न कर सके।
मामले की गंभीरता को समझते हुए ममता बनर्जी ने वरिष्ठ अधिकारियों और अपने विश्वस्त मंत्री फिरहाद हकीम को उस गांव में भेजा। जब फरहाद हकीम बोगटुई गांव पहुंचे, तो वहां की महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। महिलाओं ने उनसे पुलिस के रवैये की शिकायत करते हुए कहा कि आरोपी तो भाग चुके हैं, और पुलिस ने पीड़ितों के रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया है। महिलाओं ने बताया कि उनके घर के लोगों को कैसे खौफनाक तरीके से मार डाला गया।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने राज्य सरकार द्वारा घटना के बारे में पूरी जानकारी भेजने से इनकार करने से नाराज होकर आरोप लगाया कि राज्य ‘राजनीतिक हत्याओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए एक प्रयोगशाला’ बन गया है। उन्होंने कहा, ‘मैं परेशान हूं, चिंतित हूं, जिस भयानक और बेरहम तरीके से बेगुनाहों को मारा गया, वह बेहद चिंताजनक है।’
ममता बनर्जी ने तुरंत राज्यपाल पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘लाट साहब’ ( अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान गवर्नर के लिए ‘लाट’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता था) कहा। उन्होंने कहा, ‘यहां एक लाट साहब हैं, जिनके लिए बंगाल में सब कुछ खराब है।’ उन्होंने पीड़ितों से मिलने के लिए मौके पर गए बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल पर भी निशाना साधा। ममता ने आरोप लगाया कि कुछ बीजेपी नेता गांव पहुंचने से पहले स्थानीय मिष्टान्न का स्वाद लेने के लिए एक मिठाई की दुकान पर रुके थे। उन्होंने कहा, ‘मैंने स्थानीय थाना प्रभारी, अनुमंडल पुलिस अधिकारी को हटा दिया है। मैंने वहां DGP को भेजा है, मैंने अपने नेताओं फिरहाद हकीम, अनुब्रत मंडल और आशीष बनर्जी को भी वहां भेजा है। सबको न्याय मिलेगा।’
ममता भले ही सही कह रही हों, लेकिन बीरभूम के लोगों को ममता की बात पर यकीन नहीं हो रहा, उनका भरोसा टूट गया है। बदले की कार्रवाई के डर से बोगटुई और आसास के गावों के तमाम लोग पहले ही थोड़े-बहुत सामान के साथ घर छोड़कर भाग चुके हैं। गांव के लाग रिक्शे पर सामान लादकर निकलते देखे गए। बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने कहा, पूरा बोगटुई अब खाली है क्योंकि सभी गांव वाले जा चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आसपास के गांवों में रहने वाले लोग भी सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं।
ममता बनर्जी जब विपक्ष में थीं तो हिंसा की हर घटना के लिए लेफ्ट फ्रंट को जिम्मेदार ठहराती थीं। लेकिन अब 11 साल से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है, वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी हैं, फिर भी विक्टिम कार्ड खेल रही हैं और बीजेपी पर अपनी सरकार को ‘बदनाम’ करने का इल्जाम लगा रही हैं।
एक मुख्यमंत्री के रूप में, बंगाल के लोग ममता बनर्जी से अपेक्षा करते हैं कि वह पीड़ित परिवारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करें। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की, जबकि विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने CBI जांच की मांग की है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया है कि हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों के बाद बंगाल में राजनीतिक हिंसा बढ़ी है, जबकि लेफ्ट फ्रंट के नेता बिमान बोस ने एसआईटी जांच को ‘एक धोखा’ बताया है।
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि पश्चिम बंगाल की निर्वाचित सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए या फिर SIT एक धोखा है। बीरभूम में हुए शर्मनाक नरसंहार की साफ शब्दों में निंदा करने की आवश्यकता है। यह सच है कि ममता बनर्जी ने कार्रवाई करने में देर नहीं की, लेकिन अगर कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर ममता बनर्जी का रिकॉर्ड बेदाग रहा होता, तो यह मुद्दा इतना बड़ा रूप न लेता। विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी की प्रचंड जीत के बाद उनकी पार्टी के समर्थकों ने बीजेपी समर्थकों की हत्या की, उनके घर जलाए गए, औरतों के साथ रेप किया गया। बीजेपी का समर्थन करने वाले सैकड़ों परिवारों को पश्चिम बंगाल से पलायन करके पड़ोसी राज्यों में शरण लेनी पड़ी।
उस वक्त पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने तक राज्य की कानून व्यवस्था का जिम्मा चुनाव आयोग के पास था। लेकिन अब ममता बनर्जी की पुलिस और प्रशासन पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। उनके पुलिस अफसरों और नौकरशाहों की नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इसलिए इस मामले पर इतनी सियासत हो रही है।
जरा कल्पना कीजिए कि अगर किसी बीजेपी शासित राज्य में 8 मुसलमानों को जिंदा जला दिया गया होता तो कितना बवाल होता? पूरे देश में इस्लामिक संगठन उठ खड़े होते मुसलमानों पर जुल्म की बात होती। ये खबर न्यूयॉर्क टाइम्स में हेडलाइन बनती। मोदी को मुसलमानों का दुश्मन, ‘मौत का सौदागर’ करार दे दिया जाता। लेकिन ममता बनर्जी से ये सवाल किसी ने नहीं पूछा क्योंकि उन्हें मुसलमानों का हितैषी माना जाता है।
अब यह ममता बनर्जी की जिम्मेदारी है कि इस मामले में सख्त कार्रवाई करें और दोषियों को जल्द से जल्द कड़ी सजा दिलवाएं। जैसा कि 1924 के ऐतिहासिक फैसले में इंग्लैंड के चीफ जस्टिस लॉर्ड हेवर्ट ने कहा था, ममता को यह सुनिश्चित करना होगा कि ‘न्याय न केवल हो, बल्कि होता हुआ दिखाई भी दे।’
Birbhum carnage: Justice should not only be done, but be seen to be done
On Monday night, a violent mob of 50 to 60 villagers attacked a row of houses with stones, bombs and bullets, and then set fire to them in Bogtui village near Rampurhat of West Bengal’s Birbhum district. The attack took place after the death of a local Trinamool Congress leader in a bomb attack several hours ago. Eight persons were charred to death in the blaze.
Initially, Trinamool Congress described the blaze as a result of electric short circuit, but as gory details about the massacre came to light, the ruling party was caught in a bind. According to eyewitness reports, 10 to 12 people on motorbikes hurled bombs at Bhadu Sheikh, the Trinamool up Pradhan (deputy chief) of Barshal gram panchayat, killing him on the spot. Bhadu Sheikh was from Bogtui Paschim Para (western side of Bogtui village), and his assailants were from Bogtui Poorba Para (eastern side of Bogtui village). Soon after the murder, the mob descended o Bogtui Poorba Para and set fire to a row of 10 houses at around 10.30 pm. Several people were trapped in the blaze, and the mob did not allow people to escape.
The ruling Trinamool Congress is trying to cover up the massacre by carrying out a travesty of police probe. The ‘dance of death’ was terrifying and the manner in which Chief Minister Mamata Banerjee reacted was shocking. As the Centre took notice and decided to send an official delegation, after Bengal BJP MPs presented their case before Home Minister Amit Shah, Mamata Banerjee lashed out at the BJP on Wednesday.
Mamata Banerjee said, “The incident was unfortunate. I am not justifying, but such incidents frequently take place in UP, Gujarat, Bihar, Rajasthan and Madhya Pradesh. Who don’t people raise a hue and cry then? Why are people ready to defame Bengal only?” Why did the chief minster react like this?
The bodies at the spot were too charred beyond recognition, and it was horrifying to watch visuals of policemen carrying lumps of human remains from the scene of crime. There were two charred bodies holding each other tight, when the blaze had spread. It was heart rending to watch two individuals holding each other to protect themselves when the blaze engulfed their home. This was a bestial and horrendous act not by human beings but by devils in the shape of humans.
Some eyewitnesses said, local policemen were also present but they did not stop the mob. Women and kids trapped inside houses, when the mob set them on fire, cried and pleaded for help, but none came forward. The mob prevented firemen to save the victims. More than an hour later, when the flames subsided and when the row of houses was reduced to ashes, did the firemen move forward. The fire had reduced ceiling fans into twisted, burnt metal.
Prime Minister Narendra Modi, on Wednesday, expressed his grief over the massacre. In a series of tweets, Modi said, “I express my grief over the violent incident in Birbhum district of West Bengal. It is my hope that the state government will punish those who committed this dastardly sin on the great soil of Bengal. I also appeal to the people of Bengal never to forgive those who committed this crime and also those who instigated these criminals. On behalf of the central government, I want to assure the state that whatever assistance required to punish the culprits at the earliest, will be given by the Centre.”
Prime Minister Modi is right. The culprits for this heinous massacre must be punished at the earliest. But the problem is that Mamata Banerjee’s government is taking up this case as an ordinary crime. On Wednesday, Calcutta High Court took suo motu cognisance when a division bench headed by Chief Justice Prakash Shrivastava and Justice Rajarshi Bhardwaj directed the Special Investigation Team to present the case diary and other documents, while declining a prayer for CBI probe.
The high court directed the state police to immediately install CCTV cameras in the village under supervision of district judge. It also directed Central Forensic Science Laboratory (CFSL), Delhi to visit the crime scene and collect evidence at the earliest. The court also directed the DGP and IGP to provide security to vulnerable witnesses and ensure that they were not threatened or influenced by anyone.
Realizing the severity of the crime, Mamata Banerjee sent senior officials and her trusted minister Firhad Hakim to the village. Hakim was surrounded by women in the village, and complained that the criminals have fled and the local police have rounded up relatives of the victims. The women narrated the horrendous manner in which their family members were killed.
West Bengal Governor Jagdeep Dhankar, angry over the state government declining to send details about the incident, alleged that the state has ‘become a laboratory for political murders and human rights violations’. He said, ‘I am disturbed, I am worried, the horrible and merciless manner in which innocents were killed, is worrying.’
Mamata Banerjee immediately lashed out at the Governor, describing him as “a laat saheb” ( the word ‘laat’ was used during British rule for Governors). She said, “there is a laat saheb here, for him, everything about Bengal is bad.” She also lashed out at the BJP delegation that went to the spot to meet the victims. Mamata alleged that some BJP leaders stopped at a sweet shop to savour local delicacies before reaching the village. She said, “I have removed the local police station officer in-charge, the subdivisional police officer. I have sent the DGP there, I have also sent my leaders Firhad Hakim, Anubrat Mandal, and Ashish Banerjee there. Everybody will get justice.”
Mamata may be right, but the people of the affected areas are unwilling to believe her promise. Many villagers in the area have already left their homes with their belongings, in fear of more reprisals. There are visuals of villagers, along with their belongings, leaving on rickshaws. BJP MP Arjun Singh said, the entire Bogtui village is now vacant as all the villagers have left. He alleged that people living in nearby villages have also left for safer places.
When Mamata Banerjee was in the opposition, she used to blame the Left Front for every incident of violence, but in the eleventh year of her rule, after becoming chief minister thrice, Mamata is still playing the victim card and is blaming BJP for “defaming” her government.
As a chief minister, people of Bengal expect her to go and offer sympathy to the families of victims. The state chief of BJP Sukanta Majumdar has demanded that Central rule be imposed in West Bengal, while the leader of opposition in Assembly Suvendu Adhikari has demanded a CBI probe. Congress leader Adhir Ranjan Chowdhury has alleged that political violence in Bengal has increased after the recently held local bodies elections, while Left Front leader Biman Bose has described the SIT probe as “a hoax”.
I don’t agree with the suggestion that an elected government should be replaced by President’s rule and that SIT is a hoax. The shameful carnage that took place in Birbhum, however, needs to be condemned unequivocally. It is true that Mamata Banerjee did not delay in taking action, but this issue would not have taken such a big proportion, had Mamata Banerjee’s record on law and order front been impeccable. After her party scored a thumping victory in assembly elections, her party supporters indulged in killings, rape and arson in the homes of BJP supporters. Hundreds of families of BJP supporters had to flee the state and take shelter in neighbouring states.
At that time, it was the Election Commission which was in charge of law and order in the state till the electoral process was over. But now, questions are being raised about Mamata Banerjee’s police and administration. Questions are being raised about the real intention of her police officials and bureaucrats. That is why, the issue has taken a political colour.
Just imagine, if eight Muslims had been charred to death in a BJP-ruled state, what could have happened? Muslim outfits across India would have raised a hue and cry alleging atrocities on minorities, and it would have figured as a headline in The New York Times. Prime Minister Modi would have been painted as an enemy of Muslims and as ‘maut ka saudagar’ (merchant of death). But nobody is raising such questions at Mamata Banerjee, because she is considered as a sympathizer of Muslims.
It is now Mamata’s responsibility to take strong action and ensure stringent punishment to the criminals. She must ensure that “ justice is not only done, but seems to have been done”, the dictum laid down by Lord Hewart, Chief Justice of England in a 1924 landmark judgement.